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आप दोनों ही निज पिता के चरणरूपी कमलों के भौंरे ( हैं ) । [8] आप दोनों ही जन-जन के चक्षु ( हैं ), ( प्राप) हमारे धर्म-पक्ष को चाहें । [9] प्रखर आयुधों की धार से विदारित (और) मारे गए अनुचर - समूह से क्या (लाभ) ( है ) ? [10] सजा दिए हुए (उन) बेचारों से ( आपका ) क्या (लाभ) ? विधवा किए हुए नारी समूह से (आपको ) ( क्या) (लाभ) ? [11] (आप) दोनों (सेनात्रों) के ही मध्य स्थित होकर ग्रायुध छोड़कर क्षमा-भाव को धारण करके (रहें) ।
घत्ता - उपयुक्त और भली प्रकार कहे हुए को समझते हुए हे राजन् ! इतना किया जाए - तुम दोनों में ही धर्म और न्याय से निर्धारित तीन प्रकार का युद्ध हो ।
[1] पहले (आप) एक-दूसरे पर दृष्टि डालो (और उसमें ) पलकों के बालरूपी बारणों के अग्रभाग का हलन चलन मत करो। [2] दूसरा, हंस की कतारों से सम्मानित पानी द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध छिड़काव करो ।[4] ( उसी प्रकार ) ( माप) दोनों ही राजारूपी पहलवान तब तक युद्ध करें जब तक एक के द्वारा एक उठा (नहीं) लिया जाता है । [5] (ग्रपनी) शूरवीरता से एक-दूसरे को जीतकर (ग्रपने) सामर्थ्य से पितृ-गृह के वैभव को ग्रहण करें । [6] (जिनके द्वारा) शरीर की शोभा के कारण इन्द्र का उपहास किया गया (है), (उन) दोनों सुन्दर ( राजाओं) द्वारा भी उस समय विचारा गया । [7] दुःखी करनेवाले नव-यौवन से क्या (लाभ) ? फले हुए कड़वे वन से भी क्या (लाभ) ?
17.10
घत्ता जो मन्त्रियों द्वारा कहे हुए सुन्दर वचनों को (तथा) नीति वचनों को व्यवहार में नहीं करते हैं, उन राजाओंों की रिद्धि कहां से (रहेगी) (तथा) (उनके लिए) सिंहासन, छत्र और रत्न कहाँ ( होंगे) ?
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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