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(हुआ) ( है ) ? [9] (जो) राजा के समीप ( स्थित ) ( रहता है), (वह) ढीठता / निर्लज्जता को पाता है, (जो ) ( राजा का) बहुत थोड़ा दर्शन करनेवाला (होता है ) ( वह) स्नेहरहितता को ( प्राप्त होता है / पाता है) । [ 10 ] मौन के कारण वीर आलसी (कहा जाता है), क्षमा के कारण (वीर) कायर (कहा जाता है), सरलता पशु का ( चिह्न मानी जाती है), बकवास करनेवाला पण्डित ( कहा जाता है) । [11] सुन्दर व महान् ( किन्तु ) हृदय में न समझे हुए (नासमझ) के द्वारा योद्धापन के कारण (व्यक्ति) कलहकारी कहा जाता है। [12] ( राजा से) मधुर बोलनेवाला खुशामदी ( कहा जाता | सेवा (चाकरी) में लीन (व्यक्ति) किसी प्रकार भी गुणी नहीं होता है ।
निमित्त ( माला में को नष्ट करता है वृक्ष को जलाकर
(
उससे ) तिलों की खल को
[1] अथवा (जिसके द्वारा) प्राप्त दुर्लभ मनुष्यत्व नष्ट किया गया (है), उससे क्या ( लाभ है) ? तो जो विषयरूपी विष के रस में (अपने को) डालता है, (वह) दूसरे के वश में (होता है), उसकी क्या विद्वता (है) ? [2] (वह ऐसा व्यक्ति है) (जो) सोने के तीर से सियार को आहत करता है, (जो) मोती की रस्सी से बंदर को बाँधता है। [3] ( जो ) खम्भे के प्रयोजन से देव मन्दिर को तोड़ता है, (जो) सूत के पिरोये हुए) दीप्त मरिण को फोड़ता है । [4] (जो) कपूर के श्रेष्ठ वृक्ष (और) (उससे) कोदों के खेत की बाड़ बनाता है । [5] ( जो ) चन्दन के पकाता है (और) (जो ) हाथ में सर्प को ढोकर विष ग्रहरण करता है । [6] वह पीले, काले, लाल और सफेद माणिक्यों को छाछ के प्रयोजन से बेचता है । [7] जो मनुष्यत्व को भोग के प्रयोजन से नष्ट करता है, उसके समान हीन कौन कहा जाता है ? [8] (जो) समत्व में चित्त को नहीं लगाता है (गौर) पुत्र, पत्नी और धन की अत्यन्त चिन्ता करता है । [9] (जो ) जिह्वा और स्पर्शन इन्द्रियों के रस से सताया हुआ मरता है, जिस प्रकार मेढा मे मे (शब्द) करता हुआ (मरता) है। [10] (जो) प्रलयकालरूपी बाघ (सिंह) के द्वारा खाया जाता है (तथा) दुःखरूपी अग्नि की ज्वाला के द्वारा जलाया जाता है। [11] ( ऐसा ) जीव बिलाव, हाथी, भैंसा, कुत्ता, बन्दर और सर्प होता है ।
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घत्ता - जिसके द्वारा कैलाश पर्वत पर जाकर पिता के द्वारा बताया हुआ तप का आचरण (यदि) किया जाता है (तो) (उस) संसारी जीव के द्वारा यहाँ अत्यन्त दुसह्य - दुःखकारी प्यास छेदी जाती
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अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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