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पाठ-7
अपभ्रंश काव्य सौरभ
महापुराण
[1] तो दूत पहले राजा के घर पहुँचा (और) बोला- हे श्रेष्ठ राजन ! ( ग्राप) सुनो। हे देव ! शील के सागर तुम्हारे भाई श्राज ( ही ) मुनि हो गये हैं। [2] किन्तु एक बाहुबलि ही प्रत्यन्त दुर्मति (है) (जो) न तप करता है (और) न तुमको प्रणाम करता है ।
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सन्धि - 16
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[1] जो पाप के नाशक महर्षि ( ऋषभ ) के द्वारा (मेरे लिए) केवल (कुछ) नगर और देश दिए गए हैं, वह मेरे लिए लिखित आदेश (है); (तथा) (वह) (मेरे) कुल की शोभा (है) । (उस) प्रभुता को कौन छीनता (छीन सकता है 1 [23] जो (व्यक्ति) सिंह के बाल को, श्रेष्ठ सती के वक्षस्थल को, सुभट की शरण को तथा मेरी जमीन को हाथ से छूता है, क्या ( तुम समझते हो) वह कैसा (होता है ) ? ( वह ऐसा ही होता है) जैसा यम और कालरूपी अग्नि (होती है ) । [4] वह कौन ( है ) ( जो ) मैं उसको प्रणाम करूँ ? पृथ्वी खंड के कारण किसकी परम उन्नति कही जाती है ? [5] क्या ( वह) जन्म पर देवताओं के द्वारा अभिषेक किया गया ? क्या (वह) सुमेरु पर्वत के शिखर पर पूजा गया ? (है)? अरे ! (वह) स्वेच्छाचारिणी लक्ष्मी के द्वारा क्यों और दण्ड उसके लिए ही महत्वपूर्ण ( मूल्यवान ) है, किन्तु (च) ( है ) । [8] हाथीरूपी सूअरों योद्धा मनुष्य ( हैं ) ( उनको) मैं रण बल को क्या हरेगा ? यदि (वह) जिनवर का स्मरण करता है, तभी ( वह) बच निकलेगा ।
[6] क्या उसके आगे इन्द्र नाचा पुलकित ( है ) ? [7] वह चक्र मेरे लिए (तो) वह कुम्हार का श्रेष्ठ रथों पर तथा छोटे रथ (समूह) पर जो भी मारूंगा ( नष्ट करूँगा ) । [ 9 ] भरत मेरे भुजा
पर,
घत्ता-- - तुम्हारी पृथ्वी और मेरा पोदनपुर नगर आदिजिनेन्द्र के द्वारा दिए हुए ( हैं ) | यदि ( वह ) स्वीकार किये हुए (विभाजन) को नहीं मानता है, (तो) (मेरी) तलवार को मिले (और) अग्नि की ज्वाला में पड़े ।
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