Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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में श्रमण परम्परा के अन्य पाँच सम्प्रदाय विद्यमान थे।२९ उनमें से कुछ ऐसे थे जिनके अनुयायियों की संख्या महावीर के संघ से भी अधिक थी। उन पाँच सम्प्रदायों का नेतृत्व क्रमशः पूरण काश्यप, मंखली गोशालक, अजित केशकम्बल, पकुध कात्यायन और संजय बेलट्ठिपुत्र कर रहे थे। परिस्थितियों के वात्याचक्र से वे पाँचों सम्प्रदाय काल के गर्भ में विलीन हो गये। वर्तमान में उनका अस्तित्व इतर साहित्य में ही उपलब्ध होता है। तथागत बुद्ध की धारा विदेशों तक प्रवाहित हुई और भारत में लगभग विच्छिन्न हो गई थी। यदि हम उन सभी धर्माचायों के दार्शनिक पहलुओं पर चिन्तन करें तो स्पष्ट होगा कि भगवान् महावीर ने जीव, अजीव प्रभृति तत्त्वों का जो सूक्ष्म विश्लेषण किया है, वैसा सूक्ष्म विश्लेषण उस युग के अन्य कोई भी धर्माचार्य नहीं कर सके। यहाँ तक कि तथागत बुद्ध तो 'अव्याकृत' कहकर आत्मा परमात्मा आदि प्रश्नों को टालने का ही प्रयास करते रहे।३०
प्रज्ञापना के भाषापद में "पन्नवणी" एक भाषा का प्रकार बताया है। उसकी व्याख्या करते हुए आचार्य मलयगिरि ने लिखा है-"जिस प्रकार से वस्तु व्यवस्थित हो, उसी प्रकार उसका कथन जिस भाषा के द्वारा किया जाय, वह भाषा 'प्रज्ञापनी' है।३१ प्रज्ञापना का यह सामान्य अर्थ है। तात्पर्य यह है कि जिसमें किसी प्रकार के धार्मिक विधि-निषेध का नहीं अपितु सिर्फ वस्तुस्वरूप का ही निरूपण होता है, वह 'प्रज्ञापनी' भाषा है।३२ ___आचार्य मलयगिरि का यह अभिमत है कि प्रज्ञापना समवाय का उपांग है।३३ पर निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि प्रज्ञापना का सम्बन्ध समवाय के साथ कब जोड़ा गया ? प्रज्ञापना के रचयिता आचार्य श्याम का अभिमत है कि उन्होंने प्रज्ञापना को दृष्टिवाद से लिया है।३४ पर हमारे सामने इस समय दृष्टिवाद उपलब्ध नहीं है, अतः स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रज्ञापना में पूर्वसाहित्य से कौन सी सामग्री ली है? तथापि यह सुनिश्चित है कि ज्ञानप्रवाद, आत्मप्रवाद और कर्मप्रवाद के साथ इसके वस्तुनिरूपण का मेल बैठता है।३५
प्रज्ञापना और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ षट्खण्डागम का विषय प्रायः समान है। आचार्य वीरसेन ने अपनी धवला टीका में षट्खण्डागम का सम्बन्ध अग्रायणी पूर्व के साथ जोड़ा है।३६ अतः हम भी प्रज्ञापना का सम्बन्ध अग्रायणी पूर्व के साथ जोड़ सकते हैं। २९. तेन खलु समयेन राजगृहे नगरे षट् पूर्णाद्याः शास्तारोऽसर्वज्ञाः सर्वज्ञमानिनः प्रतिवसंतिस्म। तद्यथा-पूरणकाश्यपो, मश्करीगोशलिपुत्र, संजयी वैरट्ठीपुत्रोऽजितः केशकम्बलः , ककुदः कत्यायनो, निग्रंथो ज्ञातपुत्रः।"
(दिव्यावदान, १२/१४३/१४४) ३०. मिलिन्द प्रश्न -२/२५ से ३३, पृष्ठ ४१ से ५२ ३१. 'प्रज्ञापनी-प्रज्ञाप्यतेऽर्थोऽनयेति प्रज्ञापनी"-प्रज्ञापना, पत्र २४९ ३२. यथावस्थितार्थाभिधानादियं प्रज्ञापनी॥-प्रज्ञापना, पत्र २४९ ३३. इयं च समवायख्यस्य चतुर्थाङ्गस्योपांगम् तदुक्तार्थप्रतिपादनात्। -प्रज्ञापना टीका पत्र १ ३४. अण्झयणमिणं चित्तं सुयरयणं दिविवायणीसंद। जह वण्णियं भगवया अहमवि तद वणइस्सामि॥ ॥गा०३ ॥ ३५. पण्णवणासुत्तं-प्रस्तावना मुनि पुण्यविजयजी, पृ०९ ३६. षट्खण्डागम, पु०१, प्रस्तावना, पृष्ठ ७२
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