Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५६ विजयद्वारस्य पार्श्व योर्वर्णनम् ६९ आकाशस्फटिकवदति स्वच्छा यावत् प्रतिरूपाः, 'तेसि णं पगंठगाणं उवरि तेषां खलु प्रकण्ठकानामुपरि-ऊर्ध्वभागे 'पत्तेयं पत्तेयं पासायवडेंसगे पण्णत्ते' प्रत्येकं प्रत्येक प्रसादावतंसकः प्रज्ञप्तः-कथितः, तत्र प्रासादावतंसको नाम प्रासादविशेषः प्रासादा. वतंसक इव शेखरइव भाति यः स प्रासादावतंसकः। 'ते गं पासायवडिंसगा' ते खलु प्रासादावतंसकाः, 'चत्तारि जोयणाई उडूं उच्चत्तेणं' चत्वारि योजनानि ऊर्ध्वमुच्चैस्त्वेन 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' द्वे योजने आयामविष्कम्भेण 'अब्भुग्गयमूसिय पहसियाविव' अभ्युद्गतोत्सृत प्रहसिता इव, अभ्युद्गताः-अभि-आभिमुख्येन उद्गता उन्नताः सर्वतो विनिर्गताः उत्सृताः प्रबलत या सर्वासु दिक्षु प्रस्ताः धवलत्वेन प्रहसिता इव तिष्ठन्तीत्यर्थः । 'विविहमणिरयणभत्तिचित्ता' विविधमणिरत्नभक्तिचित्राः, विविधाः-अनेकप्रकारका मणय:-चन्द्रकान्तप्रभृतयः यानि च दो योजन के हैं। 'सच्चररयणामया' ये प्रकंठक सर्वात्मना वज्ररत्नमय है 'अच्छा जाव पडिरूवा' आकाश और स्फटिक के समान अतिस्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है 'तेसिं णं पगंठगाणं उवरि' इन प्रकंठकों के उपर-ऊर्ध्वभाग में-'पत्तेयं२' अलग अलग 'पासायवडेंसगे पन्नत्ते' प्रासादावतंसक कहा गया है। जो प्रासादों के बीच में मुकुट के जैसा प्रतीत होता है, वह प्रासादावतंसक है । 'ते णं पासायडिंसगा' ये प्रासादावतंसक 'चत्तारि जोयणाई उडू उच्चतेणं' चार योजन के ऊंचे और 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' दो योजन के लम्बे चौडे कहे गये हैं। 'अब्भुग्गयमूसिय पहसियाविव' ये प्रकंठक अभ्युद्गत प्रभावाले समस्त दिशाओं में फैले हुए से एवं हंसते हुए से-प्रतीत होते हैं। 'विविह मणिरयणभतिचित्ता' अनेक प्रकार की चन्द्रकान्त आदि मणियों की और कर्केतनादि रत्नों की रचना से ये एक रूप हो मा सारे भय हाय छे. 'अच्छा जाव पडिरूवा' मा भने २२टिमणिनी म २५२७-२मत्यत नि छ. यावत् प्रति३५ छ. 'तेसिंणं पगंठगाणं उवरि' । प्रजनी ०५२ 'पत्तेयं पत्तेय' PAL PAL 'पासायवडेंसगे વળ' પ્રાસાદાવતંસક કહેવામાં આવેલ છે. જે પ્રાસાદમાં મુકુટો જેવા જણાય छ. ते प्रासाहात स४ ४उपाय छे. 'तेणं पासायडिंसगा' मे मा प्रासादास 'चत्तारि जोयणाई उड्ढ उच्च तेणे' या२ योननी या 40॥ मने दो जोयणाई आयामविखंभेणं' मे योनी 5 पडा ॥ ४॥ छ. 'अब्भुग्गय मसिय पहसियाविव' से था । उन्नत अमाप सी हिशायामा ३॥ गयेसा वा अने उसता न डाय तेवा पाय छे. 'विविह मणिरयण भत्तिचित्ता' यन्द्रत विगेरे भायो भने तन विगेरे २ auी अने:
જીવાભિગમસૂત્ર