Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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चौदहवाँ अध्ययन : ग्रन्थ : ६१७-६५० अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, ग्रन्थत्यागी शिष्य गुरु के सान्निध्य में शिक्षा ग्रहण करे, अपरिपक्व साधक के लिए गुरुकुल से बाहर खतरा है, गुरुकुलनिवास से साधक को लाभ, निर्ग्रन्थ मुनि पंचेन्द्रिय विषयक ग्रन्थ को तोड़े, भूल बताने वाले का वचन शिरोधार्य करे, धर्मतत्त्व में कब अनिपुण, कब निपुण, निर्ग्रन्थ साधु समस्त प्राणियों की हिंसा आदि ग्रन्थों से मुक्त रहे, गुरुकुलवासी निर्ग्रन्थ द्वारा ली जाने वाली शिक्षा की विधि, गुरुकुलवासी साधु द्वारा वाणी प्रयोग : कब और कैसा?
पन्द्रहवाँ अध्ययन : आदान : ६५१-६८० अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, निक्षेपदृष्टि से आदान शब्द के अर्थ, त्रिकालवर्ती पदार्थों का ज्ञाता, संशयातीत सर्ववस्तुतत्त्वनिरूपक अन्य दर्शनों में नहीं, अर्हद्भाषित तत्त्वकथन ही सत्य है, प्राणि मात्र के साथ मैत्री की साधना का क्रम, भावनायोग साधक की गति-मति बन्धन मुक्त मेधावी साधक, कर्मबन्धन से मुक्ति और उसके बाद, पूर्वकृत कर्म एवं स्त्रीवश्यता नहीं, वही पुरुष महावीर है, स्त्री-सेवन से दूर : मोक्ष के अत्यन्त निकट, मोक्षाभिमुख साधकों की साधना का सारांश, मोक्षप्राप्ति योग्य मनुष्य जन्म तथा अभ्युदय : कितना दुर्लभ, परिपूर्ण अनुपम शुद्धधर्म के व्याख्याता : जन्म-मरण रहित, ऐसे मुक्त महापुरुषों का पुनः जन्म कहाँ, संयम नामक प्रधान स्थान : संसार के अन्त का कारण, कर्मों से मुक्त : मोक्ष सम्मुख साधक, संयम एवं मोक्षमार्ग की साधना का सुपरिणाम ।
सोलहवाँ अध्ययन : गाथा : ९८१-६६६ अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, गाथा अध्ययन क्या और कैसे, माहन, श्रमण, भिक्षु और निर्ग्रन्थ : स्वरूप और प्रतिप्रश्न, ऐसे साधुओं को 'माहन' क्यों कहा जाए ?, ऐसे साधक को 'श्रमण' कहने में कोई आपत्ति नहीं, इतने गुणों से सम्पन्न ही वास्तव में भिक्षु है, इसे निर्ग्रन्थ कहना चाहिए, आप्तपुरुष के इस कथन की सत्यता में संदेह नहीं ?
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