Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
( ४१ ) अष्टम अध्ययन : वीर्य : ७१४---७४५ इस अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, विभिन्न पहलुओं से वीर्य और उसके प्रकार, वीर्य, वीर और वीरत्व, कर्म और अकर्म : वीर्य के दो भेद, प्रमाद : कर्म -- बालवीर्य एवं अप्रमाद : अकर्म -- पण्डित वीर्य, प्राणि विघातक शास्त्रों एवं मंत्रों का अध्ययन, सुखेच्छाओं के पीछे दौड़ने वाले कपटी लोगों के कारनामे, असंयमी पुरुष हिंसा करतेकराते हैं, जीवहिंसा वर परम्पराजनक एवं दुखान्त, स्वयं पापकारी, साम्परायिक कर्मबन्ध करते हैं, सकर्म वीर्य का उपसंहार, अकर्मवीर्य का प्रारम्भ, पण्डितवीर्य के धनी की विशेषताएँ, पण्डितवीर्यणाली का पुरुषार्थ और बालवीर्यवान का भी, सभी स्थान और सम्बन्ध अनित्य, ममत्व छोड़े : समत्व पकड़े, सद्धर्म का ज्ञान : पाप का प्रत्याख्यान, आयुष्यक्षय से पहले संलेखना ग्रहण करे, कछुए की तरह पापों को समेट ले, मन, वचन, काया की अशुभ से निवृत्ति आवश्यक, कषायों और सुखैषणाओं मे दूर रहे, जितेन्द्रिय पुरुष का धर्म, शान्तिपूर्वक आत्माराधना में शक्ति लगाये, आत्मरक्षातत्पर साधक त्रैकालिक पाप का अनुमोदन नहीं करते, मिथ्यादृष्टि का समस्त पराक्रम कर्मबन्धफलजनक, सम्यक दृष्टि का पराक्रम शुद्ध और कर्मबन्धफल से रहित, महाकुलीन साधु पूजा प्रतिष्ठा के लिए तप न करे, साधु का निवृत्तिमय शान्त पुरुषार्थ, काया की भक्ति से दूर रहकर आत्म-भक्ति में ओतप्रोते रहे।
नवम अध्ययन : धर्म : ७४६-७८० अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, निक्षेपदृष्टि से धर्म के विभिन्न अर्थ, भ० महावीर ने कौन-सा धर्म बताया था ? आरम्भ-परिग्रहरत जीवों का स्वभाव और दुष्परिणाम, स्वकृत कर्मों के दुखद फल का स्वयं ही भोक्ता, जिनभाषित धर्म का आचरण क्यों करे ? सांसारिक ममत्व छोड़ कर संयम में प्रगति करे, षट्जीव निकाय के आरम्भ-परिग्रह का त्याग करे, विद्वान् साधु इन अनाचरणीय बातों का त्याग करे, धर्म का यह उपदेश भ० महावीर का है, साधु कैसी भाषा बोले, कैसी नहीं ? दृढ़धर्मी साधु के लिए कुशील-संसर्ग निषिद्ध है, साधुजीवन की कुछ मर्यादायें, अप्रमादयुक्त माधुचर्या, माधु आपे से बाहर न हो, साधना में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org