Book Title: Mahavira Vardhaman
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown
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Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिलामुकः। ईशसवेत्तिमघवादेवं चराचरं जगह रुतितः स्तीर्थ विहारस्य । वात्स्तिावना मिमां । २ भगवं भव्य सस्पानां । पापाच ग्नह शोषिणीं । धम्म म्मतजसे के नाम मैधिशरणं विभो ॥६॥भव्य साथी धिपषोद्यः याधन विराजिता धर्म्मचक्रमिदंव जं च जयों द्योंगसाधनं ॥६४॥ निर्हृय मोहप्रतिमां मुक्तिमार्गो परोधिनीत वोष देखुस न्मा । का लो यं समुपस्थित्तः॥ ६॥ इतिप्रबुद्दन व स्पा स्वयं भर्जु र्जिगीषत्तः॥पुनरुक्ततरावाच ॥ प्रादुरास सनकत्तेोः ६हीतं देवं त्रिदिसाधिपाच्युतपदघतिक्षयनि ल। खोक्तानंत चत्रुळ जिन मिमां भव्याज्विनाभावि नो|मानस्थंभ विलो किनात त जगत्मानं विलो कं प्रति। प्राज्ञानंत चतुष्टयं जिन मिमं भक्तविवर्धमहे ॥६॥ इतिश्री जिनसेनाचार्य प्रणीतिजिनाये तरसहस्त्रनाम स्त्रवसंम्॥ ॥मपदेवानी की रजा लिएबने । उनमः सिद्देभ्यः उजयजय जया रामस्तु रामोस्तु । एमोस्तु | रामो अरहंता गांगमो सिद्धा । मारिया । रामो उसे झाया। मौलो ये सच्च साहू ।। रे ही श्रीजिन राजमंत्रेम्पोनमः ॥ चत्तारिमंगल अरिहंत मंगलं सिंह मंगल साहू मंगल के वलि पता तो धम्मा मंग Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लासिइमंगल साहूमंगलीकेवलिषणतोधिमी मंगलांचवारिमंनोगतमा अरिहंत लागतमा सिइलोनिमासाहलोगुनमा केवलिया तो धम्मोलोतिमाचतारिसरणपञ्चजामिा प्ररह तसरणंपवजामिासिसरांपवजामिासाहू सरणंपबजामिाके वलिपणा तोधिम्मोसरणांप बजामिाजपविर्वपवित्रीका।सुस्थितोस्थिनो पिवागध्यायेत्यंचनमस्कारानासर्वपापैषमु च्यता अपवित्रपत्रिी वापसर्वावस्यांगतो पिवायःस्मरेत्परमात्मानंासवापामनरेशुचिः अपराजितमंत्रोय सर्वविघ्नविनाशनामंग लेयुचसर्वेषुपथममंगलंमतरासोपंचरण मोयारोसर्वपावपासपणे।मंगलाणचसरि पदमंगहाई मंगलरामहमित्यक्षरंजस्लामांचक परमेटिनः सिइचाकसहीजासर्वतःप्रणमाम्यह अकाष्टकविनिर्मुक्कामोक्षलक्ष्मीनिकेतनासम्म लादिगुणोपेतासिद्धचक्रनमाम्यहाशाश्रीमजि नंदमभिवंयजगत्रयेशीस्याहारनायकमनंतचतु याही श्रीमसिंघसुशांसुरुनैकहेतु जैनेंदय ज्ञविधिरेयमयाम्पधारास्वस्तित्रिलोकगर बेजिनपुंगवायास्वस्तिस्वभावमहिमोदयखस्तिता GORIDABINDA A R Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यास्वस्तिषकासहिजोर्जितग्मयायास्वस्तिमाल । लितादूतवैभवाया आस्वस्तिललहिमलबौधसुधा लवायास्वस्तिस्वभावपरिभावविभासकाय स्वस्ति त्रिलोकबितनैकचिमवायास्वस्तित्रिकालस कलायतविस्ततायाव्यस्यसुहमधिगम्पय यांनुरुपामावस्यसुधमधिकामधिगेनुकॉमश्रा लंबनानिविवधान्यवलंबिवलगानामरतार्थयन एरवस्य करोमियजालीमहनपुराणपुरषोत्रम पावनानिावस्तुनिनूनमखिलान्ययमेकरवान स्मिन् हॉलहिमलकेवलबोधबन्हो॥रन्यसमग्न महिमेकमनाजुहोमिासाही विधियाजाला লজ্বলিলক্ষ্যক্তিস্বাতজ্বঙ্ক্ষিাভলু আঁৰ सर्वनाथजीवस्तिास्वस्तिश्री अजितनायजोशी संभवनाथजीस्वस्तिास्वस्तिश्रीअभिनंदनजी। श्रीसुमतिनाथजीस्वस्तिास्वस्तिश्रीपनषभुजी। श्रीसुपार्श्वनाथजीस्वनितास्वस्तिश्रीचंदपमुजी श्रीयुय्यदंतजीस्वस्तिस्वस्तिश्रीवासपुज्यनी श्री विमलनाथजीस्वस्ति स्वस्तिश्रीअनंतनायजीची धर्मनाथजीस्वस्तिस्वस्तश्रीशांतिनाथजीश्रीकुं थनाथजीस्वस्तिास्वस्लिीमनाथजीश्रिीम चिनायनीस्वस्तिनीमुनिसुव्रतजीनीनेमिना, स्वस्तिमा शीतलनाथमी यो नया रासापानीस्वा Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - यजीस्वस्तिास्वस्तीश्रीनेमिनाथजीश्रीपाच नाथजीसस्तिास्वरित श्रीवईमानजी शानिया पकंपादूतकेवलोपास्करन्मनःपर्ययशुधवो धा दिव्यावधिज्ञानवलभवोधास्वस्तिक्रियासुः परमरर्ययोनाकोठसधान्योपममेकवीज संभिनसंश्रोतपदानुसारी।चतुर्विधबुधिवले दधानास्वस्तिक्रिमा२॥संस्पर्श संश्रवणच दुरादास्वादनाघोण विलोकनानिदिव्यान्म निज्ञानबलाइह तस्वस्लिापज्ञाप्रधानाव गांसमसाायतकबुहादशसर्वराषवादिनी दांगनिमन्त्रविज्ञास्वस्तिकिलाप्रणिमिद साकुशलामहिनिलधिनिसकारुतिनोगरी नामनोवपुर्वाग्वलिनश्चनिया स्वस्ति शस कॉमररुपिलवशिखमैश्यापकाम्पमताईनथा 'मानानथापतीघातगणपधानास्वस्तिक • शाफलावुनंतासुन विनाक्रुरुषा रुपणशानभौगुगोचरनिहारिणशास्वस्ति॥७/ पंचततंचमहातयोग्नापोरंतपोधोरपराकम शाब्रह्मापरं घोरगुणास्वरंनास्वस्तिमात्राम सावधयस्तथासोवियंवियांदृषिवियांति यश्चासवितबिजनमलोयधीश्चास्वस्ति०॥ - - - Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - NAGAU - - ADURG ENERALDARADUNon-Marwanam भासीरंवंतोंथघ्रतश्वतोमातोप्परतंत्र बंताबक्षीसंबासमहानसाश्चास्वस्तिः॥२०॥ रतिस्वस्तिमंगलविधान सार्बःसर्वजनाथःस कलननसांपापसंतापहना त्रैलोक्याक्रांतीकी तिःछिमदनरिपुनिकर्मषणाशा श्रीमान सिंपनवरयुवतिकरालीदकंवमुकंदै वंदैईधपादोजयतिजिनपतिः पानकल्याण पुनः॥उंजयात्रीसक्रांतिजाभोजगताप ने जयरामनानेवस्वामिभवांभसिमजतो जयः महामोहहीतषभावरुतेरचनाजय जिनेशलेनाथलसीदकरोम्पहाताचार्यजिनचर्णाम्नेष रिएण्यांजलिंक्षिपेत् जिनवरारजनपति देवीश्रीश्रुतदेवतेभगवतित्वत्पादपंकेरह ई दयामिशिलीमरखत्वमपरंभपामयांपार्थते मातश्चेतसिविएमेजिनमुखोदूसरावाहि माहगरानेनमयिषशीरभवनिसंपल्यामो नाइल्युत्वार्थ पुलकानेपरिपुब्यांजलिक्षिरे नानिनिरजनशतिजा संरजयामिर ज्यस्यापारयन्नायगंगुरोः पचत्रिपतिलस्प गरिसस्पमहात्मनःनिवार्यगुरुपादानेष र रियांजलिंसपेन्।गुरुवरणारजातादि का amaAARtor - mar. Nok m memop । Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अथाष्टकं देवेंदनागेदनरेंदबंधान श्रुभत्य दानशोभितसारवर्णानाधाञ्चिसंसाईगुणे जलोपानिने सिहोतजतीनजयेहाशमलिन बस्तुजलकरौयहसुभावजलमांहि नलसुंजि नपररजतो रुजकलंकमिटिजाहिराईहीनह। श्रीपरमत्रलनंतानेतज्ञानशक्तयेनमात्री अरहनजीसिइजीप्राचार्यजीउपाया यजयासर्बसाधुपंचपरमेसम्मोनमःशिपथ मानजोगजीकरणानजोगजी वरणानुजो गनीमानजोगजानीसम्यकदर्शजी २०॥सम्मकुज्ञानजाशासम्मकचारित्रेमोनमः २२॥जलंगलामतालोकोदरमध्मति समस्तस वाहितहारिवाकरानाश्रीचंदनैर्गधविलुभगत जिनेदेशातपतवस्तुशीतलकचंदनशीतल पापाचंदनौजिनपजतामिदैमोहसतायार चंदनाअपारसंसारमहामाई योनायोषार ज्यतरीनस्वभकानाचक्षतांगैवलाक्षतो पौर्जिनशतदलधक्लपवित्र प्रतिगोध सुअधिनत्तासानक्षतसौं जिनरजनाअग गोनपरकासाअक्षतालीनिविभज्यादविवो पसुनि वासुचाकियनैकान कुंदार - - Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिंदजमुखज सुनें। जिनेंद्रस्य चापधरय च्य शिर धारी मनमथ वीर यांतै ए जो पहूपसौं हरौ मदन सरपीर॥६॥ पुष्पं ॥ कुंदकुंद बिस मी प्रसय निनीसनचैनतेयान् । जाज्याय सारै श्वरुभिः रुशादेनैः (जिने इशपरममन्ननेवेद विधिःसुधाहरननन पोया। जिन जित नैवेद्य सो। मिदैक्षुधादिक दोष चानियेां ॥ ध्वस्त्रौघ मादकत विश्व विश्वमोहांधकारप्रति घानदीप नादीपैकेन त्कांचन पात्र संस्यैौ। जिनेंद्रणासामा पापरदेखे सकला निसमैरीपक होत दीपक सौं जिन जती। निर्मलज्ञान उद्योत ॥ १० ॥ दीपं ॥ दुष्टाष्टकम्मैधन पुढेहीला संप ने भासुरध मकेतून धूपैर्विना निसुंगंध गंधर्जिनेंद्र बावकर है सुगंध कौं। धूप कहा वैसा या सेवन धूप जिनेसपै। कर्मदहन क्षय हो या१शा पंध सुभ्याद्दिलुभ्यन्मन साम्पगमन / कुबा दिबाद(स बलिनप्रभा वान फलैरलै मोक्ष फलाभिलाषै। र्जिने/२आयोजैशी करनी करै। सोने सा फल ले या फलसो जिन पदपूजती । निवैशिवफलदेय ||१४|| फलं | सदारिगंधाक्षतप जाते । नैवेददी पी मल पधमै फलैर्विचित्रैर्घन पुंन्य जो ग्यान जिनेंद्/१५॥ जल चंदन प्रक्षन पुष्याप्ररुवरु Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नैवेघरीपरपफलअर्घजुताजिनएजाबसु बदारराजिनरजाप्रविधिाकीज्यकरिसु विगापतिएजाजलधारसौदीय मर्षअभं |गार॥अघाउँहीमहाविदेहीकै वियैवीसतीर्थ करसास्वताविराजमान।।श्रीमंधरजी राजु गर्मधरजीशबाहजीशसुवाइजीहासंजानक जीशस्वयंपरजीरियमाजी अनंतची र्यजी सुरप्रभुजी विशालकीजिीवन धरजीरचंदाजीरशचंदगाह मुर्य गमजीआईश्वरजीशनेमसमजावीरसे जी.२७महाभजीरादेवजसजीसी जितबिर्यजीवाल्यांकाचरणकमलकीरजा प्रत्येक प्रत्येक संक्षेपमात्राअाहीपंचमेरु अदादीपसरिसौक्षेत्रोकैवियभगवानजीका ऋतमचैतालाविराजमानछैत्याकाचरनकाला कीरजामिनबचनकायकरिसंक्षेपमावायची हीभगवांनजीकासंख्यातादैतालाऊईलोक मध्यलोकपाताललोककवियोअतमान मविराजमान, त्याकाचरणकमलकापूजा। गाथा।णमकोडिसयापणवीसाविषनलमाई सहससताईसाणावसैनेडियारराजिप डिमां प्रकिटमाबंदो३॥ अपीपंचषका - - women Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काज्योतिगीदेवाकानिमांणाकैविय अलपकार काव्यतरदेवाकास्थानाविभगवानकायक तमचैतालाविराजमानछेत्याकाचरणकवलकी रजापत्येकपत्येकसंक्षेपमात्रासीमहि मातूमविया ओरधेरैनहिकोया जोसरिजमैजो तिहीनहितारागिनसोयास भाग पानि ननाथशास्त्रयमिनामांसदाकुर्डनोविसंध्या सविचित्रकाव्यरचनाभितलासरावनेत्रिसंध्या सुविचित्रकाव्यरचनाम्रचारयंतेनरा स्लेभन्या सकलाविवीधरुचिरसिईलमतेपरा॥२॥रज्या जलिंक्षिपेत्य भोजितनायासंभवश्वा भिनंदनासुमतिपनमासनासुपाजिनस मामाचंद्राभिषय्यदेशश्नाशीतलोभगवान निः योसोवासएज्यश्चाविमलोबिमलधुनी अनंनोधर्मनाथश्व शांतिकुंथुर्जिनोनमः अरवेमलिनायचासुननोनमितीर्थकता। हरिवंशसमुन्दशोभरिटनेमिर्जिनेश्वरालास्तो पसर्गदेसारीपाचनाणेदपजिनःकर्मात रुन्महावीररासिद्धार्थकुलसंभवः।गतेसुरासुरौ घेनारजिनाविमलखिषणारजिताभरताचे नाभद्रीरभतिभीचर्बिधिस्पसंघस्पो निकुर्वनुशास्वती मक्ति जिनेभक्तिर्जिनभक्ति - - Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जिनेभक्तिसदास्तुमे सम्यक्तमेवसंसारावारण मोक्षकारणाला श्रुतेभक्तियुतेभक्तिश्रुति सदास्तुमो सज्ञानमेवसंसारावारणमोक्षकारां गुरीभक्तिगुरुभक्तिगुरुभक्सिदास्तुमचा रित्रमेवसंसारावारण मोक्षकारा भारती लत्यो वताऍटागोजणुधाण परपोसिर तहखतधरुपनवचरणविहागाकेवलणाणेन इपरमपरपरमपरु॥जयरिस हरिसीसरण मियपायाजयअजिभजियंगयरोसराय जय संभवसंभवकयविउयाजय अभिनंदनणेदीय पउया।जयरमयसमयसम्मयपयासाजया पउमपहपउमाणिवासा जयजयहियसुपास सुवासगत्तजयचंरप्पहर्षदाहिबजयपु पर्यतर्दनंतरंगा जयशीयशीयलबयणभंग, जयसेयसेयकिरणोहसुजु।जयवासरा जागारमा जयविमल विमलगमासेदिता गाजयजयहि प्रांताणतणाजयधम्मथ म्मतियारसंताजयसैतिसंतिविहियायबना जयकुंथकुंथयागिसरयाजय अरुन माहरवियरसमयाजयमतिमलिभारामगंध जयमुसुक्यसवयविधाजयणमिण मियामरणीयरसामिाजयणेमिधर्मरहैसकरणे|| - - । - - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - मिाजयपासपासछंदणकेबाणाजयबदमार जसबरमागणापता ईयजागा मामाहाद रियबिरामहिपरहरविणमियसुरावलिहि मणि रियबिरामहि। परहरविणमियसुरावलिहिान हणिहेमणारहि।समयकुमारहिपविविधर हंतावलिहियाइनि भयजस्माल बर्वेयुक्यो तरपर्वनेयुनिंदीवरेयानिचमरिरेयुायावं तिचैत्या न्ययतनानिलोको सर्बाणिबंदेजिनपुंगवानाराम वनितलगतानाकतिमानीवनमवनगतानारिय बैमानिकानांहमुनिजनानांदेवराजार्जितानी जिनवरनिलयानांभावनोहंस्मरामि॥२॥जंबूधा तकिएकराईबसुधारक्षेत्रत्रयेमेमवावंडांभो जसिखंडिकंटकनकपारधनाभाजिनासम्म म्जोनचरित्रलक्षणधरादग्धाटकम्मैधनाभिता। नागतवर्तमानसमयातेम्पोजिनेभ्योनमः मन्त्री मन्मेरोकुलादौरजलगिरवशाल्मलोजबूतक्षे रक्षारेचैत्यरक्षेरनिकाररुचिकेकुंउलेमांनु के ईलाकारेंजनादौदधिमुशिययंतरेस्वर्ग लोकेभिवंदेभुबनमहितलेयानिचैत्यनियर्यानि areीरेंडतुषारहारधवलोहाविदुनील भी दाबंधोकूसमर्षभोजिनरयोदौलवीयंगुषभौ।। - Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - शेयांगोडसजन्ममत्युरहितासंताहेमप्रभारले संज्ञानरिसाकरसुरनतासिपियछंतूनाशका मिर्मताचेमतोकाउसरगोकउलस्सालोचेउन हलोयारिलोयाउदलोयमिः किहिमांकिरिमा गिजाणिजिणचेयाणि ताणसशिणानिसुवि लोयेसुमवणवासियावाणिज्यंतरजौरसियावर्ष) पासियानिचउबिहारेवासपरिवारदिवेहिगंधे हिदिव्येहिवासेहिरिबेण्हायोहिणिञ्चकालेध चंतिरतिवदंतिमसंतिमहर्मविसंतोत्र थसंताशचिकाला अचंतिारजतिबंदंतिण मसंता अहमविसंतोतथसंताशवकालय चेमिाएजेमिाबंदेमिाणामसामिादुरखरखाकम्म खाजोहिलाहौ।सुगईगमगासमाहिमरणानि । नगुणसंपतिहोहिमाछा पथपौर्याटिकमया निकमपरानिकादेववंदनायाराचार्या चुक। मेणासकल कर्मक्षया भावपंजाबंदनाास्तव समेत श्रीपंचगूरुभक्तिकायोत्सर्गकरोम्पह। गणमोअरहंतागणामोसिहागणमौमारिया राणमौ उवाया।गमोलोयेसच्चसाहूण। यजमानामायणदसुरधरियननयो। वकलाणसुपावलिपनयादेशणणाणसाणं | - - Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ●प्रणं तं बलं ते जिणोर्दिनु म म्हंबर मंगलाश जो हा एग्गबाहिम ईयदयं ( जम्मजरामरणा गयरतयंदरयं (जिहिपतं शिव सासर्या ने महान सिद्धा बरगा । पंच महा चार पंच गिसं साहिया बारसं गाइ सुयजल हि प्रवगा है. या (मोक्षलछी महांती महने सया। स रि दिनु मौखंग या संग या आघोरसंसार भिमा डिविका गाणे तिख वियरालाह पाचपंचाखदम गायण जी वाण पहूदेसया बंदे उने उचकाय मह मे सया॥४॥ उग्गतव चरणा करणे हि की मां गया। धम्म बरका गए। सुकेक कां गया। णिव्भरं तव सिरीरास म्ही लिंगया। साह वो ते सहा मोसमहमग्गया ।शरा चुनेगा जो पंच गुरुबंदिये। गुरुवं संसारघणवे लिसोदिये। लहई सो सिद्ध सुखाय वहूर्मा ग कुणा ये मिंघार जपुज्जा लो॥द्य श्रप्र रुभ्म सिद्धा•मो ईरिया । उवकाया साहु पंच परमेबी इए पंचमी या रो भवेभवे मम सहदिंनु ॥ ॥ इति संपूर्णम्॥ शांति तिष्यते ।। शांति जिनं श सि निर्मलबतं । शीलगुणा व्रत संजम पाव अद सह चिंतुना गावं नौ मिनिममं जिने पंचममी सिकरार जित इंडन रेंशा Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्वाशांतिकरंगणशानिमभिप्सु योरशतीर्थ करंषामामिग दिव्यतरुःसुरपुण्यसुरलिई दभिरासनयोजनघोषोमातपबारणाचामर युग्मायस्पबिभानिचमंडलतेजाशानंजगदान निशांतिजिनेदा शांतिकरंसिरसाषणमामिास ईगएणयत्यछत शांतिमऊपरंपटनेपरमांच भिर्विनामुकटकुंडलहाररशिक्रादिभिः सुरगणौस्तुतपादपमाशानेमेजिनाःपवरवंश जगत्वरीपास्तीर्थकरासतना निकराभवंतु शसंपजिकानांजनिपालिकानांायतीइशामा नितपोधनानादेिसस्परायसराज्ञाकरोतिशी तिभगवानुजिनेंद्राअशोकवक्षःसुरपुष्पर हिदिव्यध्वनिश्वामरमाशनचाभामंडलं डं भिरातपात्र सत्यातिहार्याणिजिनेवरा क्षेमसर्वपजानापभवनुबलवानाधा कोमाम पालामालेकालेचसम्पकवर्षभषवायाधयो पांतुनासोपार्मिसंचौरमारीक्षिणमपिजगनों मानुजीवलोमिनिंद्रधर्मचक्रषभवतुसततं सर्वसौसषराषिध्वस्तिधानिकर्माण केवल शानभास्करा। कुवातुजगतःशांतिः रयमाद्या जिनेश्वरासायथेषणार्थलामपथमं कराच --- - - - Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरणं द्रव्यं न्मः शास्त्रीभ्पासो | जिनपनिनुतिसंग तिः सर्वदार्यैः सहूतानां गुणांक था। दो खवा देच मैौ नं सर्वस्यापिप्रिय हितबचो | भावना चात्मतत्वे | संपयंता ममभवभवे। यावदेते पवर्गः॥ तच पादौ ममहदये। ममहदयेत्तव पादहलीनं नि व्यजिनेंद्र नायता यावन्निर्वाण संप्राप्ति प्रक्ष रपय यही मनाही यांच जम्मयेभणियां ख | मउगांगदेवया मझ विदुखं खयं दितु। १श दुख | खकम्मा उ| समाहिम रगांच बो हिला हो है। म महोई। मम होईजगनबंधातुव जिनवरचरणा सरोग॥१॥ च दुर्बानी का मध्यानीका प रानी का देवबंदना या । पर्चाचार्य नुक्रमे एएस कल कर्मायार्थ भाव प्रजाबंदनी । स्तसमेतं श्री अर्हतभक्तिमाचार्यभक्ति। पंचमहागुरुभक्तिं माधिभक्तिभक्ति। शांतिभक्तिका योन स करोम्प | रामअरहंता । गामो सिद्धाराम। "माइरिया गां। राम उवसायागमो लो ये सच्च साहू । उत्पा दिजाणं । उ छा रखा ।। इति श्रीदेव जासं पूर्णम् ॥ मघवी सविररुमानजी की एजा लि रखते । पूर्वापर विदेहेषु विद्यमान जिनेनि वरा स्थापयामित्येतत्र सुद्द सम्यक्त हेतवे ॥ २॥ २२॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ट. क. खासि तजलो चिन हेमभंगे डोराचयं ददत्तिजन्मजराय हा नितीर्थ कराय जिनविंशतिवि द्यमानं संचर्चयामिसदपंकजशांति हेत लोकास्मीरचंदन विलेपनपादयुग्मं संसारताय हरदूर करो नि नित्यं तीर्थ करानाश चंद ॥ भो जचंपक सुगंधसुपुष्प जात्तैः कामं विध्वंससक रोतिममंजिनाय तीर्घ ॥ ३ ॥प्पुटं ॥ मखंडप्र सत सुगंध करो मिर्युजं प्रक्षय्य पदस्य सुखसंप तिप्राप्तिहेतोः तीर्थ ॥॥॥॥ प्रक्षतं ॥ नैवेद्य कै खु चितरैर्घतपरक्क खंडैः। सुधादि रोसह रितविना शनाई। तीर्घ शानवेधं दीपप्रदीपिजगत्रय रश्मि ने जै । दूरी करो तितिमिर मोहविनाशनाय नी ये ॥ दी । कर्पूर कहना गुरुवंदनाद्ये वैधस गंधरुतसारमनोहरा तीर्थेना दाडिममनोहर श्री कलाद्यैः । फलं प्रभी सुखसँ पतिप्राप्ति मेवानीर्यणाच॥ फले । जलैश्वगंधा सतपुय्य चरुभिः दीपः सुप फलमिश्रित है मपात्रैः अर्ध करोमि जिन पूजन शां तिहेतोः सं सारण कुरुसेवकानाती श्री बी सजिने सुरविरहमानं पणिधिविपंचसय धनुहपरमाशां जोभवकमक परिबोहयंता विह 1* Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रंतविदेह तमहरंता श्रीमंधरपणवोंजिनवार दाजुगमंधरवंदरदहदलवाहिउँबंद बाहसु वाह खामीबूषिदेहजेसिहगामीसंजायस्व यंषभजनजयंताक्रमाननधम्म पयास यंतातहअनंतवीर्यसरप्पहोरीबंदोविशाल बजरधरोचिंदाननभम्मवीयवाहीपण वउपचहत्तीगतहपुहकराई जिन मटगमसोईसुरजगनाहानेमीयह (तीवुमनवीरसेण महामभभवतिरिय नाहतयणादेवसुसच्चमावाणुअजय बायरामोरकपाका पत्ता एचीसजिनेसरण मियसुरेसुर विरहमानमैसवणि या जो एजकोचइपरपटावर जोएजरमात इपटइपटावर पावे शिवपरमपयं (५६ हरात दिरहमा राजार ८६ জ্বষীঃবিশুদষ্টা ইয়ত্ত नोखणादीनरेयानिचमंदरेयुायावंतचैत्याय निनानलोकेसुर्वागवंरेजिनपुगवान अवनि नलगयुगतानांकतिमाकतिमानीवनभुवना गतानां दिव्यवमानकानांयस्मुनिजरूतानी जिनवरनलयाना भावतोहं स्मरामि जंबूधानि किपुस्कराईवसुधाक्षेत्रत्रयेभवांश चंद्रांनो - रा - Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जसिखंडकंटकन का प्रावद्यनाभाजना सम्प ज्ञान चरित्र लक्षणधराधग्पाष्टक में धना भता नाग नवर्तमान समये। तेभ्यो जिनेभ्यो नमः श्रीम न मे र कुलाद्वौ र जित गिरबरे शाम लौ जंबूरसे वक्षारे चैत्यव क्षे। रतिकर रुच के कुडले मानवे रख्या कारेजना है। दधिमुखसिखरो व्यंतरे स्वर्ग लोके । यो ति ले के भिवंदे भुवनगले मान चिप्पालया नि |देवासुरेद्रनरनागय सुखसंप पायजणास करिभव्य मनो हरेभ्यः पकैषु जादिवार विशतेभ्यः नित्संनमो जगत्स सर्व जिनालयेभ्य है कंरे निशारहारधवलौ हावं धनोलज हौवं धे कुशमप्रभननवशो दौ च प्रयंगप्रभो। येषा शोडशजन्ममुरिहि ता संतप्तहेमप्रभा । स्ते सज्ञान दिवाकरस्सुर्गु नाः । सिद्धप्रयंकंतुन निःबको उसथापाबीसा बियलल स्काय सहसग ईशा। नवसैति-प्रडिवा ला।। जिन पदमा किद्यमावंदे / हिं इच्छामिभते चेयमका उस क उस्सा लो वे ये उडलोय म्मिकिटमा कि हमारा जाए जिराचे या गाता। एसा शातिय सव लो ये शुभव वासिया व्यं तर जो सिपि कष्प वासिय तिच उदेवा से व्य परवारा दिवे शाम गंधेधून रिबे चू ↑ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोरियेषु पेशादि देखावा से दिवे एहाः कोचि का ले म ॥ चति प्रतिवदंतिया में सति हि कवि हसतो तत्यस ताई (शीच्च कालं यचमि पुजाम वदामि साम सामि दुरकरक उ कम्मरकउ वोहि लाहो सुगम समाहि मरा जिनगुरा संपत्ति होउ मशी R ॥ व्यथ सिरुरता लिखते ॥ उ उर्धा धोरयुतं सविंद ब्रह्मसु रावेष्टितं । वर्ग पर न तीज र संधिवात त पात्रत टेस् नाह तरह का रसं चेष्टितं । देवंध्यापितयस सुभगो वैरीव कंदी राहीं नमो सि या सिडूपरमेष्ठेि अवावत रावत संवौ श्रद् आव्हाननः । अत्रममसन्निहितोभव भवर्षद सन्निधीकरणमिव तिष्टतिष्यतः यः स्थापन ॥निजमनोमनभाजनभारया। समरसेक सु धारसुधारया। सकल वो धक्का लारमनियक सहज सिद्धमहं परिपूजयेत् ॥ २॥ डेही न सोसि मां सिरुपरिमेषिते ॥ समना। दर्शन वीर्य | स्वहमेत हेव | अगर लघु । म वाहनं ""अह गुण सिद्धा । जलं ॥ सहज कर्म केल कविनाशनैः रमलभाव सुवाशितचंदन। नुपमान गुणवलिनायकं । सहज.चंद सहजभाव सुवाशिततं दुलैः सकल दोष Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशालविधनैः अनुपरोधसुवोधनिधानक सहजन समयसारसुपुव्यसुमाल या सहजकर्मकरणविशोधया परमयोगव लेनबशीकत सहज ॥ शुरु । अरुतबोध सुविधवेचकैर्विहितजातरामरणोतकेनिर वध अचूरात्सगुणालयासहजानिधया। शासहजारतरुचिपतिरीपनै रुचि विम्मनितम अविनाशनर्निरवधिसविकाशाशनासह जादीपं निजगुणक्षयरूप गुणघातमलैंपविनाशनः विसरबोधना सुखासकोसहजपा पापरममावफलावलि संपदा सहजभावकुभावषिशोधया निजगुण सरणात्मनिरंजन सहज धपापरममावक लोवेलिसेपदासहजेभावकुलावविशोधयाँ निजगुणसगात्मनिरंजनी सहजाफरलोसा नेत्रोन्मीलविकाशभावनिवरयंतवोधायचे वाग्गंधाक्षतपुष्यरामचलकैसंरीपरफले पचिंतामणियमावपरमंज्ञानात्मकैरचयत्र सिइंसाधमगाधवोधमचलसंचयामोवयं श्र प। अथजयमाला त्रैलोको सुरवंदनीय चरणाजाशुश्रियंशानतीगानाराध्यनिरु चंडमनसासंनोपितीर्थकरातत्सम्मति बोधवीर्यविशदान्यावाधवोधेता धैगुणायुका Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - PORASIDDHARAMOROSTANDROINon E स्लानिहतोसुचीमिसनसिझविणस्यान विरागसनातनशांतिनिरंशः निरामयनिर्भयान मखहंस।सुधामनियोधनिधान तिमोहापसीर विसुरसुसिइसमहाशचिरेशसंश्रितभाव निरंग समामृतपरितदेवषिसंगाप्रबंधकया यविहीन विमोहपसीद शनिवारतदुःकनक मविपासासरामलिकेवलिकेलिनिवास भयो रधिपारगतिविमोहसीदा अनंतसुख मता सागरधीर कसकरजोमरमरिसमीरल विखंडितकामविरामविमोहापसीदविवि कारविवर्जिततर्जितशोक विनोधसुनेत्रविलो कत्रिलोक विहारविरावतिरंगविमोहापौर है रजोमलखेदविमुक्तविगावानिरंतरनिस्ससु खास्तपात्र सुदर्शनराजितनाथविमोहपसीरः भानरामवंदित निर्मलहमावअनंतमुनी श्वरराज्यविहाव सरोदयविश्वमहेशविमोह || प्रसीदवाविरंभवितलविरोयविनिंदा पसी २०परापरसंकरसारविनंद विकोपविरुस विसंकविमोह प्रसीद साजरामरणोशितवी , तविहार विचिंतनिर्मलनिरहंकार मचित्य चरित्रविरप्पविमोह पसी०।२९ विवर्णविर्ग धषिमानविलोम विमायविकायविरविशो क.मनाकुलकेवलिसविमोहा असीद विशुद्ध Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in - - सम्ररुः १२॥ घता असमसमयसार चारु चतन्यचिन्हं परपरिणतमुकंपयनरी इवनि विलगुणनिकेतसिड्चविसईस्मरतिनम नियोबास्तोतिसौमेशिमुक्॥ि२॥निख एजाजामालसंधासम्मतणासा वीरयसुहेमंतहेव अवगहाअगुरुली वाहं अवगुणा होनिसिधा॥१॥१५॥॥ प्रथमोडशकाणापजालियन सोलहका रणभावनामायतीर्थकरणाहरखिदुमपार मैरपरलेगर पुजाकरनिजधन्यलयावाला वशोहमहशोडशभावनमावमारसौपाईहीद र्शनविशुभारिशोऽशकारगोम्पोत्रिवारस्याप नर्कचनकारी निर्मलनीरण रजोत्रीजिनगुण गंभीरापरमगुरु हो जैजैनाथपरमगुरुही दर्श विशुद्भावनामाया सोलहतीर्थकरपरपायप || रमाईहीदर्शनविदिशोडशकारणोम्यो दर्श नविद्धि विनयसंपवितासशीलर तीवन तिमीसना॥ज्ञानोपयोगाईसंवेगासनित त्यागा॥शक्तिस्तपसारा समधिारावे यारतकरण॥१२॥ अर्हतभकि।१३॥ प्राचार्यभक्ति २४ वह श्रुतभक्तिाशपाचनकि पारसक मार्गषभावनाय शोउयकारणोम्पोजल चंदना शोकपरमिलाया एजौं श्रीजिनसुरकेपायापर १ - - Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ masomarawww m मनरल अस्तिसुगंधिअनूषा एजी जिनवरतिहगुणाम्रपापरमा फूल सुगंधमधुपगुंजार पजोश्रीजिनवर माधार परम० सदनेवजवह विधिपकवान रजौ श्रीजिनवरगुनखाना परमावर दीपकजोतितिमरछयकार एजोश्रीजिनके विलकधारापरमादी पारखेउ अगरवमल अधिकायापशोरजोत्रीजिनराया पर मा श्रीफल आदिवहुनफलशारापर जोमनवांछितदातारापरम जलफल माटोद मिलायमानतभक्तिकरीमनलाय परमारजीभारमा ८(सोर का शोडशकारणगुणकरे। हरैचतुर्गवासापाप त पुन्यसवनाशकैज्ञानभानपरकाशासोपाई। दर्शविशुधरैजोकोई ताको आवागमननहो ईविनमहाधेरेजोपानी शिववनिताकोशखी वरखानी शीलसरारिक जोनरपालासोपोरन की मापदादालै ज्ञान अभ्यासकरैमनमाहि। नाकोमोहमाहतमनाहिज्योसंवेगमावविस्तारै स्वर्गमुक्ति पर भापनिहारो दानदेयमनहर्खवि शेवै। यहभोजशपरभौसुखदीजै जो नरतपैन पैअभिलाया जैकरमेशीसकरमशीलगुरसा na - Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सासाधिसमाधिसरामनलाचै तिहूनगमो गमोगशिवपानीनिशदिनवैयारतकरयासो मित्रभौनी र तरे या जोनर भरिहंतम गतमनमानै सोनरनिययकशायनजान जो प्राचरजभक्तिकरैहै। सोनिर्मलभाचारधरहै वहश्रुतमांनिभरिजेकर सोनरसंहरण नधरई अवचनभनि करैरपानालहैज्ञानपर. मानंदशांतारिखदमार शर्मकालजोसाथै सोर रत्नत्रयाराधै।धर्मषमारधरैजोपानीति वमारगॅरीतपिछानी वत्सल-अंगसराजोध्या वासोरतीर्थकरपदपावैहाराईशोरश भावना।सहतधेरैवतजोयादेवरंडनरट्रिपर मानतसिवसुखहोयतिनीझोडशकार मारवासालासर माययुरबांजलि पंचरूरमालिनतिर्थकरोकेन्हवन जलतैमयोतिरथसर्वानातैपदिशिनदेति सुरगिरपंचमेरनकीसरा॥ोजलप्रदादी पमैसवगिनलविराजहिारजोमसी जिन धामपतिमाहोरसुखदुखमाजीपंचमे रअस्सी जिनालयेमोत्रिवारस्थापनाशीतमि रसुवाशमिलायाजलसोरजोत्रीजिनरायम हासुरसहोजनैनाथमहासुबहोपांचोमेरुर - Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - sareasangaronmmeroPOREprnormaanyaramparame - eoammumom e m सीनिनधामासवपतिमाजिकूकरूपरिणाम सहायाहीपेचमेरअसीजिनाय॥श्रादिसुद। र्शनमेरुविजयअचलस्तथा चतुर्थमिंदिरो नामि विद्युन्माली मेरुसंबंधीजिनालयाजसं केशरमगरकररमिलायाचंदनपजोशीजि नरायामहा आनंद मामलप्रखंडसुगंध सहायान्मशतसौंरजोश्रीजिनरायामही २ वरण भनेकरदेमहिकायाफूलनरजी श्रीजिन रायामहा मनवंछितवहन रतउपायाचरसोरजोत्रीजिनराया महा० नवजातिमरउजलजोतिजगायादीपकर जोश्रीजिनरायामहा दीखे उअगरख वलअधिकायापसोपजोजिनराया महान | सर्ससुवर्णसुगंधसुहाया फलसौ परजोत्रीजिन रायमहामाज सरमाला प्रथमसुदर्शनस्वामिविजयम चलमंदिरक है। विद्युन्मालीनामापंचमेरज गमेषगर चौपाई॥अथमसुदर्शनमेरुवि राजभशालवनउपर लाजै चेत्साले चारो सुखकारी मनवचतनकरिवंदनाहमारी। चेपाचशतकपरसोहै नंदनवनदेषतमनमो हो। चैत्या० सादेवाशतसहस उचाईविनर प्राटदमै अपवायाधानतरजौबीजिनराय शुरु ma wwmom w Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ elso सोवनसोभैअधिकाई चैत्या० ३।चारिमेर समानवखानोभपरमदशालचदुजाणेचै त्याउचेपाचकमानकपुरभायोचारोनं. दनवन-अभिलाखोचैत्सा साडेपचपनस हला उतगोवनसौधनसंभवहरंग चित्याई उचेउगाईसहसवताणापांडकचारपोवनसुभ गागलेल्या सुरनरचारनवरननावै।। सोसोभाहमकिहमुखमावै। वैस्याः॥पना | रोहापंचमेरकी भारतीपटैसुनैजोकोई घानतफलजानै प्रमुातुरतमहामहोय হেলী দ্বভুজুংছ। মুহিজাবি লি" सर्वपर्वमैक्डोनहाईपर्वहै। नंदीस्वरसुरजा हिलेयवसुदर्वहै।हिमसकतसोनाहिहियाकणे स्थापना रजौजिनरहपतिमा हैहित अपना हीनदीस्वरहीपेदापंचाशजिनालयेत्रिया रस्थापन। कंचनमाणमयभंगारतीरयनीरम| रातिहधारदरनिरवारजामनामराजरा नंदी श्वरश्रीजिनधामवावनपुंजकरुवसदिनपति मा अभिरामभानरभावधराशाहीनदीस रोपेदापंचाशजिनालयपूर्वरक्षिणपश्चिम तररिगस्थसंबंधी एक अंजनगिरुचरिरधि में - - । - Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LL मुख-माटर तिक र केम्पो नली भवतपहर शीत वाच सो चंदननाहि । प्रभुयह गुण कीजै साना यो नुमराही | नंदी सशायद। उतमध्य क्षतनि नराज पुंज धेरै सो है। सवजीते प्रक्षसमाजनुमस मध्मर कोहे नंदी स्वभानुम कामविनास कदेव ध्यावो फूलन सो। सहोशील लछमीवेव छूये सुलन सोनं स्व० ४। पुरानेवज इंडीवलकार सोतुमने चूरा। चरुतुम दिग सो हैशार / अचरज है चुरा | नंदी स्वानैवेजमा दीपककी जो निप्रकाश नुमतन माहिल शै। इदूक र्मन की राशध्यान कनी दरसैा नंदी स्वारी पीक नागुरुधूप सुवाश दशो दिशन पर वरौ। अति हर्ख भावपरकासमा नौ न्दत्य करे नंदीवण निहुकाल मानदराचन है। तुमसिवफलदेहद या लयो हम जावत है| नंदी स्वगचाफख यहा र्घ की योनीज है न तुम को अ र्पत है। । द्यानत कियो सिव हेतम्पस मपर्त हूं। नदी व राजखात ॥ कार्तिक फागुण शाटके | अन भा र दिनमा हिनंरी स्वरसुर जात हम पूजे यहा हा १० नौ पई ॥ एकसो त्रिसङ्घको डिजोजन महा चौरासी यह विधिहमलहा अष्टमं दीपनंदीस रंभास्वरं/भौनभावन्नप्रनिमाल सुख करें | ११|| चारिदिश चारित्र्यंजनगिर राजदी । स सेहे चौरासी बहुविधिफलले Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक एक छाजही । दोल शम गोल उपर तसे सुं दरं भौनणार एक एक चारी दिशचार सुभवा वरी । एक एक लरक प्रमल जोजन की भरी चा रि दिशचा रिवीस लाख जोजनवरी भव० 1 १३ सोखनापीनमध्य सोल गिरिदधिमुखं । सह कादशयोजन महालखत्त दी सुखं वा वरी कोन दो मारिदो रति करें। भव॥२४॥ सय लवनीश एक सहरख जो जनक है। च्या रिसोले मिलैस वैवावन कहे ॥ एकएक शीशपरएक जिनमं दिग्भवणाराविंव मठशोरत्नमय सोही देव देवीय सर्वमन मोहई। यां च से धनुयतन पद्म-प्राशन व भवणारा लालमुखनयन वस्था मरुशेन हौ स्याम रंग भोयशी र केशह विदेन है। वचन वो लतमा नौहशत्तकलुश ताहरो भो ॥१७ को टिशशिभान दुनितेज् छिपजात है महावैराग्यचरण म ठहराते है वेननहिक हत होत सम्पक्धरं / भोव० १.१ ॥ दोहा॥ नंदी स्वर जिन धाम । प्रतिमा महिमा को कहै । घाननली नौ नाम । यहभक्तिसवसुख करै।।१७|इति ष्टमीप सुहावरोव रायो सुगु एगुए थान ॥ श्रष्टकर्मनाशन कौ जजौ च सुखका ॥ २०॥ इतिश्री मनि काजा संपूर्ण मय रत्नभयपरजा लि Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । AM MitrampurnapRESEREDUCEDANDRO D AISALMAGaamaan monsuas asernmompRMIRRORSumanumansamanna SCONORMANEERICANWARKHA हाचगतिकणविक हरनमने दुख पावकजलधासिवसुखसरासरोवरी सम्पक नयनिहाराहीसम्पक हमारवा त्रिवारस्या पनानीरो रघिउनहाराजलजलजलैप्रतिमे हनो जन्मरोगनिर्वारसम्यकरत्नत्रय भजो हीसम्परत्नत्रययजलाचंदन केशरजरापरम लमहासुगंधमाजन्माचंदनालअमल चितारावासमतिसुखरासकेममहि के फूलअपारा अलिगुज्यायुतिकरै जन्म. सुजलाइवइविस्तार चिकन मिटरसगंध ताजन्म. निवेधादीपरतनमयशाराजोनिस काशेजगतमे जन्मबारपसुवाशउदार रननगरकपरकी जन्मा फलसोभा अधिकारसोगवाराजायफल जन्म। सम्पदर्शनसारकतासीवगतकोराताराया। नतरजौरतसहिनापारउतारनहारमधी पुख्याजतिक्षयेता मोहा सिनरगुणमै पक्षमामुक्निीवसोपानाजाविनज्ञानचरित्र फलासम्मकदर्शनधान। उहीअवांगसम्प। करर्शनायत्रिवारस्थापनाको रसानीरसुगं। धनपारनिखाहरैमलख्यकै शो सम्यकरर्श नसारा पाठ गरजौसदा॥जलजलकेश रघनशारा तापहरैशीनलकासम्याचल B ARSHIP- ROSCARS A I ISISTAN - - Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - मक्षतमनूपनिहार लिइनासै सुखभर सम्यान पुण्यसुवासउदार खेरहरैमन शुद्धिक सम्पयनवविवधषका र सुधाहरैथिरताको सम्यक लेवेपदीय रतनमयशार जोतिषकाशेजगतमासम्पर Jer दो॥ एपसुवासउरार चरन-अगरकर रकी सम्यकपाकलसोभाअधिकार लों गछुहारेजायफलासम्य० ॥फलाजलगंधा सतशारादीपपफलफूलचरासम्य० ॥ স্ক্যাঙ্গাত্মা(১৪ ( গানি जैवियतवपतीनिन्यौहाररहिनरोसप बिसहै सहनमगुणसागीताईद। सम्यकदर्शनरत्नमहिने जिनवचनमैसंदेह नकीजात्यहभवविभवचाहादुरखदानोसपरभो, भोगचहैमनिजाणीधीमीगिलानकरीत्र समलखधर्मगुरुषभुपरखियैापरदोशठकी| येधर्मरिगतकोसुथिरकरहरख यौचत्रसंघ 2 कोवात्सल्यविजोधर्मकीपरभावना गुना उभौगम प्रायनहियैरसाफेरम पावना। रित्ननथापनासंदरना। ॥ ५ ॥ ত্বজ্ঞাজিনাস্তি उत्तमसमासुमाईवभावभावहै सत्यसो संयमतपत्यागउपावहै प्राकिंचनरसव २३ - - Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म्म रश शारदे। चद्गनिदुरचने का दिमो हुँ दशाक्षणी पगार सदाता र है ॥२॥ विचारस्थापन || सौरा। हिमाचल को धार मनिचित समशीतल सुरभा भवन्त्रताप विचार दशलक्षण पर जो सदा॥२॥ उदेश लक्षण ॥ सनी पदः उत्तम क्षमा माईचा जैव सत्य (सेोच्या संयमा नपा त्यागा मा किं चना ब्रह्मचर्य धर्मा गाय जलं ॥ चंदन केशर डारिहोय सुवास दशो दशा भवनं अमल भक्ति शार। तं दुलचंद समान भाभवणा४॥श्वत फूल अनेक कार महके उरध लोकलो भवन५०ने वज्ञविव धनिहार ॥ उत्तमखद रससंग जुना भवाई देवातिकरसभारि दीपक जो तिस हामीमा दीप ।। अगर धूप विस्ता राफेले सर्व सुगंधता भवन फल कीज तभ्नपार|घ्रारणीनयनमन मोहने भवन ।। फलं ।। रौद्रव्य सभार मानत अधि कउछा हसौं भव॥१०॥भसा मयजय याला ॥ दोहा ॥ पीउ दुष्ट अनेक स्वाधिमारिव हुविधिकरे। धरिपेक्षमा विवेक कोपन की जेपीतमै । र्र ही उनमाक्ष माधर्माणा यमर्ष T Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौपाई॥ । उनमा क्षमा गहरो भाई ॥ यहम बज 10 स परभवसुख राई ।। गाली नसुन मन खे माना गुनको मोगरा कहे मया ना॥२॥ करुहैःप्रया नाव छीजै । मारिबाधिबहुविधिकरै। घर नै नि कारैतन विदारे। वैरजोनतहा धरै । नैकर्म्मप कि एखोटे सौ नहि जियरा प्रति कोष अगनिबुकायमाणी सोमजल लेसिय ह्रीं परब्रह्मणो उतमक्षिमा धम्मगायनगी दोहा मानि, विश्वरूपा करे निचगति जगनमै कोमल सदा अनूप सुखपावेजारणी सदा ७५॥ चौपाई।। उही पर बस मे उनमा देव धर्मायार्षे ।। उत्तममार्दवगुनमनमाना । मानिक रिन को को निठिकाण व श्यो निगोदमाहितैौ । आया मा रीमेरीकनभाग विकाया । रुकन विका या कर्म्मवशतै देवरकेंड्री हुवा।। उतमम्र चाचं उडा लहुँबाप कि डी मे री या जीतव्य जोवन धन गुमानन कहांकरेजल व रेंवदा। करिविनय बहुगुन वडैजन कीग्पान को पावैसुदा भा ही परबले उनमाईव धर्मा गायत्री सो रहा। कपट न कीजै कोया चोरता को पुरना वसै। सरल सुनावी हो या ता के घर वह संपदा उहीं पर बस्न उत्तम मार्जरित वखानी ₹ || चकद्दगाँवैौ हत्त दुखानी। मन में होय सोवन २४ J Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न उचरिये। नचन होय सोतन सौ करये ॥ करि ये सरल तिहूं जो गसाचे देख निर्मल मार सी मुख करें जैसा लखें तैसा कपटजीन प्रगार सीन हि होइलछमीमधिकचलकर कर्मबंध विशेता भय त्यागद्धविला व पीवै मापदान हि देख तो । ह्रीं पर वस्नो उनम मार्जवध मँगायमधीश सोरा कर्तन वचनमति वोल पर निंद्रा भ्मरसूदनज | साज जवाहर लसतवादी जग मैसुखी हरमन होउ नमसत्यधम्मी गापामध्ये उत्तमसत्यवरे तपालन ॥ परिविश्वासघात नहिकीजै (सा चेश्देमानुख देखो आपन पुत्र सुपाश नपे खेो ॥स।। पेखोनि हा इति पुरुष साचेको इन्यस वदिजिये ॥ मुनराज श्रावक की प्रतिष्ठासाच गुगल खलि जिवै ॥ उचे सिंघाशनवैटवण्डन पधर्मकाम्पतिभयाः॥ वचजूटशेतीन र्क पो हौ चा सुर्गमै नारदगया। ड्रीमरनोनय सत्य धर्मागा समर्पी सोरठा ॥ धरिहिरदै सं तोश | करहत] प स्पा देह सौ | सौच सदा निर्देशाध मवडो संसारमै ॥ उही रहाह्मणे उत्तम सोचध मोगापः वर्ष ॥ उतम सौ च सर्वज जज जानौ । लो भपाप को वापबखानो । प्राशा पाशिम हा दुखरा Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नी॥ सुख पावैशं तो सी आनी जानी सदा सुचि शीलजपतप पानध्यानजभावतै। (नितगंगज मृनसमुइन्हायेभ्प्रयु चिरोशम्भावनै । उप रूप मलमलभरपो मितर कोन विधिघटष्पुचि करै। वह देह मे ली सुगन थली सोच गुणसा धुल है | डे पर नाम मोचधर्म्मा मासमर्थ॥ ॥ाये रखा। काय छ हो प्रतिपा ल।पंच इंडी मनवश करे। ॥ संजम रत्न समा रवि खै चोर वह फिर है ।। ईहीं परब्रह्म ऐड तमसमधलगान वर्ष | चौपाई॥ उत्तम संजम गहुमनमेरेरो भवभव के भाजै प्रपतेरे सुरगनरकपयुगत्तिमै नाहि. माल शहरन करन सुखदा ही टाईप्रथी जल प्रा गिमारुती विचित्रिकरुना धरै । स्पर शंना घाण नयना कामम सववाशिकरे, निशाविना नहिजि गाराज सीओ नूफ सौ जग की चमे इकघडीम त्रिविशराभविकजन -आवजम मुखबिचमै उही परिक्षामा उत्तम संयम धमों गाय म र्च" सोरान व चा हो स्वर राय कर्म्मशिखर को वज्र है हादशविधिसुखदाय सौनिकरै नि जसक्किसु उहीपरमराले उत्तममपधम्मो गाय अर्धे ॥ चौपाई ॥ उनमनपसवमाहिव Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खाना कर्मशेलकोवनसमानालस्यौनिगोदर अनादिमकारा मिविकलनय पसुतनधा धारामनुखननमहादुर्लभसुकुलमावनि | रोगनाश्रीजेनवानीतखम्पानी भई वियय पयो गताअतिमहादुर्लभत्यागविषयकशायजेनप मादौनरमौअनूपकनकधरपरमनिमक लशाधरैहों परजालो समारोह नीलो र दानचारपरिकारचारिसीघ - कोदीजिधनविजलीउनहारनरभोलाहौलिजि यहीं परवारलताना त्याला समीर शुभम उतम सागकहेजगसारा मोवधिसापनभै माहारा निरागोशनिारापानादो नोरान समारादिौनौसभाराकुपजससमश्यघमैयर नयानिजहाथरीजैसाथलीजा खायरखोयाभेग याधनिसाधसास्त्रप्रभैदिवयासागरागविरो धको विनरानश्रीवगसाधदोनोलहै नाहियोध काहीचरकालो धनमारमा सम्मान hter ५० परिग्रह चौषिशमेर त्यागकरेमुनिरा जजी तल्लामावउछेदा घटतीजानपराश्याई ह्रींपरब्रह्मणे उनममाकिंचनधागायचौपई | उतिम माकिचनगुजानपरिचिंताईखही |मानो को सतनकशीतनमेशा लोचाहिलोगोटी momemataramantaRansomwa p AGRICUy p - Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - कीदखभालेगभालेनसमतासुखकभीविना। नरमुनिमुनरोधनिमगनपरिधियनगन साडेसुर असुरपायनपरै घरमाहिबरमाजोपटा वरुचिनहीसे सारसविरुधनबुराहमलाकहि) यिलीनपर उपगारसाही समालोर हामा | मा लिंदानधारको २०६ माया मोर॥शीलवार | नोराखिानलभावतरलाखोकरिदोनोअमि लारखाकरीसफलनरभासदाचीपरी उतिमब्रह्म चर्यरसवजानोमातावहिनिस्तापहिचानोस हैवानिवररवावद सुरोदीके नैनवाणिलरिसकूरै | करैत्रियाकेअशुचितनमयकामरोगीरतिक रोगविहरतकसैडेमसानिमा हिकाकहीचूचैम गिसंसारमै विशवेलिनागितजिगयेजोगीव सध्यानतधर्मदशयै चिदकरसिवमहलैमैप गधरापरवाणेउनमवनचर्यधर्मागाय अघी दोहाादशलगावंदोसदामनवंछितसुख हरायाका भारतीभारतीमनवरितसुखराय चौप है। उत्तमसमाजहामनहोरी अंतरवाहिरसवुनको ईशा उत्तममाईदिनेषकाशीनानामेदज्ञानपरका शाउन्नममार्जवकपटमिटविदुरगनित्यागसु गत उपजावै।उतमसत्यवचनसुखबोलासोपानी संसारन रोलै उत्तमसोचलोकपरहारीसंतोसीगु गरत्नभंगरी उत्तमसंजमयाग्पाताानरमोस - Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फल करेल हिसाता उत्नमननिनिर्वछि कपालै ||सोनर कर्मसत्रुकोटाले उन मत्याग करैजो कोई भोगमो मिसिर सिवसुख होई॥ उत्तमभ्या किंचन वतधारी परम समाधि दिशा विस्तारै । उनमवा चर्यमन लागे। नरस्तू रस हितमुकति पद पावे। दोहा करे कर्म की निर्जरा भो पिंजरूपविनाश अजर प्रमरपद को लहै । द्या नतसुख की रात्रि दशलक्ष रजा संपूर्ण ॥ त्रयस्वयंभ तो लिख्यते ॥ येन स्वयंवोधमयेन लोकाश्वार शिता के चन चित्तकार्ये प्रवेोधिता केचन मोक्ष || मार्ग । तमा रिनाथं प्रया मामि निसं उंडारमि क्षीरसमुद्र तो ये सेनापितो मेरु गिरौ जिनेद चका मजेता जन सौख्यकारी तां युद्धभावाद जि तं नमामि॥शा ध्यान प्रबंध प्रभवेन येन निहत्य कर्म्म प्रकृतीसमस्ता मुक्ति स्वरूपां पदवीज पे दो। तं संभव नौमिमहानुभावात् स्वनं यरी प्रय ननीक्षपातेजादिवन्हांत मिदं ददर्श । पत्रात इत्याह गुरु परो या नौमित्र मो दादभिनंदनंत ४॥ कुवा दवा दीज यता महांत | नयजमानेर्वचने गत्सु | जैनं मतं विस्तरतं च येन तं देवदेवं सुमति नमामि॥५॥ यस्यावता रेशति यै त्रिधिले । ववर्ष रत्नानि हरेर्निदिशात्॥ धिनाधिप हस मास Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सर्वपापभषामा मिसाया नरेइस येवरनाकिनाथाचीनीभवंतररहेस्वचि जोयस्पात्मवोधपथितासभायांस पार्श्वननुतनमामिाजासत्तातिहार्योति सयपपनोगुणपविणणेहतरोयसंगायो लोकमोहांधतमात्रःदीपावंदंप्रभवतंषण मामिभावानानागुप्नित्रयंपंचमहारतानि पंचोपदिष्टासमतिश्चयेनाभवानयोबार शधालियांशिानंयत्रणमामिरेखा ब्रह्मारतीतोजिननायकेनोतमक्षमादिदश धायिधम्मीयेनपयुक्तोत्रतबंधवुया तंशी/ तलतीर्थकरं नमामिाजनानंदकरोध रोते॥विधस्त्रकोपेषसमैकचितोयोहारो गश्रुतमादिदेश॥श्रेयांशमानौरंजितं नमिशिं ||१|| मुरंगणायैरचितं विशालारत्नत्रयंश खरकाययेनायकंठमासायवमवश्रेदात , वासरज्यंजणमामिवेगातारायानीविवे कीपरमस्वरूपी॥ध्या नीयतीपाणहितोय देशमिथ्यावघातिसिवसौरव्यमोगी वर वयन विमलेनमामि॥१३॥ अभ्यंतरंवादाम नेकधायापरिग्रहसर्वमयाचकाशायोमार्ग मुहिस्सहिजनानांशवबेजिनंतषणमामिन a Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - meromans तारासार्थपदार्थानवसानोपचास्ति कायाश्वनकालकायायव्यामिनी निल क युक्तियनोदित पवनीवाकतोयस्ता नासर्वज्ञध्वनिसंभावितकरणायापारस् ध्यानिशमन्यानोजसमालयाविमलया पुण्यांजलंदापयानित्यं सालिममातिनोति सकल वर्गपिवर्गस्थित रात्रिी स्तोत्रसंहारम् ।। प्रयागरनारिएजाति व्यो।दोहा।।श्रीजिनराजमणामकरिता दिभारतीमायसिद्धक्षेत्रगिरनारकीरजार चूसुभाया॥छंद महिला सिइक्षेत्रगिर रिकीरनामामारजगतविख्यात है। कोरिवहतरमुनी अधिकसनसानसातही सिवधुवरभयेने मिजिनराजजीवंडम नवचकायकरननिजकाजनी ही श्री गिरनारिसिखरीपरिमुक्तिधातावहतर सनसतमुनयःयात्रीनेमिजिनसहिता बावतरावतरवतरसंबोबदमाहाननं बनियनियरातःस्थापनं अनममनि हितोमवमवववरसन्निीकरण अथ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टक ॥ चालनंदीवर जापान नरायक की मै ॥ क्षीरोदधि को शुभ वारिहाटक मंगभ रूं जिनचरनदेनधारजन मजराधिहरु जपत गिरराज महिमा को वर रौ ॥ मनव नजूंसार मातम हितकर ह गिरना रिथ्म चलो परिमुक्तिप्रालानां निनो म्भूमिभ्मोजन्मजराम्म त्यु विनाशनाय जलं यामीति स्वाहा॥॥मलया गिरमरुकर केसर संग घ सुं। जिन चरण सरोज विले पडवसंभवतपसुं श्री सिद्धक्षेत्र गिरनार हिमा को वर | मनवचतनए जूं सारमा महित करणै । उहाँ श्री गिरनारि प्रचलो रिमुक्तिप्राप्तानां निर्धारमिम्पो भवतापनि | नाशनाय चंदनं निर्वयामीति स्वाहा। शसि तसोमसमान प्रखंडतंदुल सुबदासी जिन चरणध्मग्नधरिपुंज पाऊसुयरासी। श्रीसि दक्षेम गिरनारमहिमा को वश । मनवच तन पूजूं सार प्रात महित कर गोंग उंड्री श्रीगि रनारिध्चलो परिमकिपालानां निर्धारण भूमिम्पो प्रक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। शबर Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - केतकीकुंदगुलाबसुरतुमसुमनपनेपर जूपुण्याचदायकामकलंकहनोश्रीसिद। क्षेत्रगिरनारिमहिमाकोवरणामनवचन निरजूंसार मातमहितकरगाह्रीं श्रीसि इक्षेत्रगिरिनारिगिरीशिवपातानानिर्वाण ममिम्मोकामवाणविधंसनायपुष्यनिर्व पामीतिसाहाराक्षावरु उतमयदरसमुक्तता दिनमिसुधाजिनवरननभरघुसारनासे दुलक्षुधाश्रीसिरक्षेवगिरनारिमहिकोवर गगोमनवरतनपजूसारामातमहितकरण उही श्रीगिरिनारिगिरीशिवपाशानां निर्वाण ममीयोसुधारोगविनाशनायनैवेनिनी यामीतिसाहाशानवनीतकररसुजोयआ। रतीप्रमुभांगैकरतांलयितेनमहानमोहति मरभागे।श्रीसिइक्षेत्रगिरिनारिमहिमाको वरणेमनवयतनरजूंसार मातमहितकर কান্নগ্ধমাহহিত্ৰিাৰামালাঁ নিৰীয় रमिभ्योमहांधकारविनाशनायदीपनिया मोनिसाहागरुनागुरुवरकरपरचूर्णधने जयमेष्यजिनपरनहजरवसुविषिकर्ममै - - Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिइलेवगिरनारिमहिमाकोबरगोमन वचतनरजूंसारमातमहितकरणमाई दी। श्रीगिरनारिगिरौशिवशाप्तानांनिर्वाण मम्पोजलकर्मदहनायधपंनिर्वपामीति | स्वाहा गाचित्रीफलसरसरसालदाडि नारंगीफलमेटधरं गुनगायमुक्तिति या श्रीसिरक्षेत्रगिरनारमहिमाकोवरों मनवचतनपजंसार मातमहितकराई है। श्रीगिरनारिगिरीशिवपाशाननिर्वाणमि पोमोक्षफलपाशानांफर्तनिर्वयामीनिस्वाहा युमनीरसुचंदनसारतंदुलेकुसुमनवरू हीपक्षपफल सारताकोअर्धकरं स्त्रीसिद्धा क्षेत्रगिरनारमहिमाकोवरण मनवचतन जूंसारमातमहितकरीमीगिरनागिर रीशिवपाशानांनिरिणभरमीभ्योअनपदा पातयेअघनिर्वषामोतिस्वाहाला अथा सेकसलियते॥दोहापितरधरविदित 3 महिमाजुतगुणाधामादतनासैपापसबक पावसुबनभिरामछिदछङ्गा कोडिवहतर सनसतकमुनिराजमान ही शुभसंजमा । - - Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TR परिकर्महनिल ही केवलज्ञानहीविहरे ना येसुदेश मोक्षजगभयलगायोउरजपता गिरमायसिथलवासकरायो याहीय लमैनेशिवगयेजगनाधजिननेमा मात्र तनकरिशुभमल्दोमनधरिलेमा होश्रीगिरनारिशिखरोपरिमुक्तिपालेभ्पो हादशसप्तकोदिसप्तसताधिकमुनिभ्पोस मुच्चयामनिर्वयामीतिस्वाहामायनेस ननाथनीकार्यलयल्यान्वनाईदछप्पन गभोगमजिनननेममासकार्तिकवादियों जनमेश्रावणमलिशलमगीकांचनवदी। तपधारेगिरिनारिशुलावदीश्रावण जानह) तितिषतिपदस्कुमारघातीच उनी केही ग्यानीव होपासादरलसप्तमीगाशेयकर्महनिर मोक्षजिनावंदौधिकालभन्यअर्घौशुड़कर हमनवचतनाहौश्रीनेमिनाथ जिनेंशय पंचकाल्याणकायअर्घमनिर्वपामोतिस्वाहा ईद अडितानेमिनाथ जिनरायसोरपशुवन नासुणिकैहोयविरकसंगद्विविधालयकर्म चातीयानासिज्ञानकेवललयोनुर्जयंततेमुक्ति হকাৰী আঁহিন্বষী रिशिवपातये नेमिनाथ जिनेंदाया अनिर्ब - - - - - - - Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पामोतिस्वाहाराहार्छदअडियलासंवूषघुम्ब कुमारपत्रमार पुत्रमाधवतमामारसुमन निरुओरमुनिवरघोण्याहीयलसिइम যখখিলাবিনবিধিनकाश्रिीगिरिनारि अनलोपरिमुक्तिया झानांसंवूषामकुमार अनिरु हारिमुनीना निर्वाणरमियोअर्षनिर्बिपामोतिस्वाहा मथनयमालादोहापंचमसमपदयण|| मिकामनछजकायनिकाल उर्जपतगिर राजकीनववरणंजयमालादोहावीसकोस, सिगिरतदरसहोयसुयकारताही थलतैर्भ अजनपैदलहोयसुमाया छंदन्यडिका जूनागदतेकोसोदषयहैसकापर्वतकूल वनखंडसुरससुंदरमहाविचिदामोदरकंजा अवरमगीकुंडह। विचरैवनकेवीचकपिनक ऊरहराको टोरहोरपथमाहिअमराजल वहतही चालतमंदसुगंधपवनम्ममहरतहै। जेजात्रीजनजाहिवेदन हिलहत है चलोवरना करनवेगश्मकहत है।॥ईद दी चल | तयोगिरनिकटसुभात सलिलसीतलवा पीसुहातहौयिपिमलमुत्रसुभविजातहत्वदा । तभचलहरबसरसात है।दोहानयत्र - R Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धको सरु गिरते रवै स्थान विश्रामजाविजिन वैठे नहीं मिटैपंथ श्रम घाय॥ ६॥ चोपई॥उर्ज्जयं नगिरउन म छाजै ॥ भूपरिसिद्ध क्षेत्र शुभराजे •अन्य प्रचलम हिमालविलाजै। वंदन जाकैा घसवभान।। ७॥सनकोस उंचो सुखदाई महिमा जा की बरनीनजाईजा के वननंदन सम सो है रेवत सुरनर के मन मोहे इमबली फलफूल विराज न जालबिकल्पद्रुम लाजता सरसरसालता लनरूभारी एलाश्रीफल सुभगसुभारी॥सासो है। सरस अनार नारंगी पंछी शव्द करत वहच चिंगी॥ मालती चंपा जा यज्ञ ही है। सुमनम धुपक रिमिरही २ स्वक्षसलिलम्भनसरवर सोहैं चक्रवाकसारस ध्वनिमो है। दुख जंतुत होनिज रनमा सो प्रभु प्रतिसय दर सावें शागिर निरतें अय को स उचाई॥ धर्म सालत हो भरंचाई | जहां पहरायितसदा र है है जा बीजन बखारि धेरैहै॥ १२॥ जहां वे तां वरमत के मंदिर तामै काम वडा प्रतिसुंदरात होने कछुक उत्तर दिशजावें निर्मलजल को कुंड सुहावें ॥ ९३॥ जात्रीजनन हां स्नान करावे॥ मानुषाप पंक उतरावें । उन लवस नये हरिष्यु चिहोनें वसु विधिसामग्नीमधी } Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । - - - - - टालेविधिफिरि उनहीपंथावैवाईदरव सनमुखांवोउँचोचदैकछुकगि ऊपरतही श्रीनेमभवनसुभम्दयशाप्रतिउतंगसे दरसुयकारीवंदन यासुरनरनारी चेरीम श्रीनेमजिनंदागराजन उदय अपरवचं दावंदतनासैसवयदंदा मिटेंसर्वक मिनकेकंदा।उत्तरमुखसोहै अविकारीसीत छविपद्मासनधारी॥२७॥निरामर्णभास्वर ननसुंदरासोहैसुरनरनमपुरंदराजाबीजन नही रजाकरिहैगमवमवसंचित अपसवर रिहरियाताजिमगह केवीचंभारी राजसती कोगुफानिहारीतामेंमरनिराजमतीकगासो हैसुंदरपरमसतीकीसफिरिजात्रीजनऊ चाचदिहाएरवदिसमुखपाठसुपदिहा धकोशफिरिऊंचावखेतांवरजिनसदनकहा वि २० फिरिचदिहैउचेजात्रीजन हर्षसहन निमीश्वरवंदन पथमैतरफूलेसवसुंदरसोहै| अनविकामंदिर २९ तहांतेवहरकिनेर कऊंचा गोरखनाथस्थानतहांपईचोकिरि निउत्तरैजाबीजनश्रुद्धकरीकैअपनेमन वचतन २२ ऊंचनीचकेईम्समिसुझावैप । - - Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साजाची सुखसै च दिजावैं यचदती उतरतीव हुंबरा मानिकदनेम मुक्ती चला २३॥ कैसें है बहुकूट उतंगा मानुपर सतगगरीप्रभंगा सी उच्चता कूदतनी है। प्रतशिव मगनीसरनी है।। २४। जहां पीरां चढ़ी है नर नारीतही चदा वाच कटप्रतिभारी जिजन रद्ध मसक्क थके थेडेलि माहि वैठि चलते थे ।। २५॥ सोमीरहीत ही पचसां चै॥ प्रागे च देिचादै नरकांचे श्री मरिहंत सि मुख बोमा रगध्यान चित्रनही डोलै ॥ २६॥ प्रनुक्रम चढत सिडूयल पहुंचे। पापपुंजभव संचित मुंचे भाग्योदयतेम बिनहां जावै भाग्यहीन दरसनन ही पावै ॥ २७॥ या चलते श्रीने मिजिनेश्वर नि वसुकर्म भए सिवई नरम रमनेक मुनीयाथ लतै सिद्धमए लश्विसुकर्म ननैः। २८ यातैपाव नक्षेत्र सुकहिए भवभव संचित घसवदहि ए जोभविमनवचतन करिवंदे भवमवसंचित पापनिकंदै २ छंदमडिल जेजाबी जनजी हिद्व्यवसुलेय के पंचास्तमभिषेक घरास करे बकै निरगंधसित सालिकु सुभचरुधरी दीपपफलन्नर्घय अनभविश्म करो ३० चंदगीता इमसज्यपरमधुरासुभर्विजननें 1 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ नेमबमरजाकरोदशचीपत्रातदेहजिनदु तिनीलमणिमसुंदरी। आयुवर्षसहयसहस कोषमुवालवयमेतपधरोगतिजिराजमति, चितदयाधरिश्न मायशिवसुंदरवरो॥३०॥ छंदपती इमरज्यधरासबपापहानिनिन। जन्मसफलमयधन्यमानिफनिकरैस्तुतिम नवचकायाजयदेतपक्षशासनायामा मरीमैनेमजिनेशचरणानीपोदेवतिमापिही रणभिव्यर्वदिपज्यनिजशीशनायाजयसद करतघंटापनाया॥३३॥फुनिताहीपयउतरे सुमव्यनिजहालियांवसुविधिसुमात्र तिमतिसहित जिनमानस्लीनापथमंदसर। उत्तरेषवीन वासवमुखने जैजैयननिकर नपथऊंचनीचचदिउत्तरंतायौ चलतसुगणे मुखकुंउवातानीरसदानिर्मलवहताशात हांगोमुखनालोवहधारा तान रहनामनिसा तसाराजाकोजलशीतल मतहीमिव जीहपी वतनासैतयाकाशनिहिकुंडनिकटहोय पंथजाय दिशउत्तरमैनन्दुतसुहायकितनी कदूरगिरपैचलंत फुनिमशैलते उनरंत जहांपैटीपथनिर्जतुमिफलफूलवेलिदुमा - - - Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 रहेर मियाँ चलन प्रात वन सहलान को किलमय रध्वनि कर तिका वरण जहां म्रमिमनोहर प्रति सुरंगान पधेरैने मकर मदनभंगा तहांस फललक्ष सीतल सुद्धा यजल टोरो र निर्मल व हा यासान हां शीतल कुंडमरे सुनीर नहीं मंद सुगंध चलै समी रत हांफ लै फूल बहस घनश्याम । तातै विज्ञातव न सहसा मानोरा से रथ ने फिरे नेमिनाथ ॥ सुनिसोरप उरद या सिंत्या द्वादशमनुप्रेक्षा सुभगचिंत्या भयभीतभयेभवंत संत देशभ वभोगदे हमै भयेउदास तोरीस व मोहनी जूफा सप्तवही लोकांतक देवप्राय पद पुय्यक्षेपि । निजसीसनायाः ४ प्रभु जोग्य विचारी यात राह करिऐन विसंवदेवाधिदेवयोकरि नियोग निज सदनजाय। तव चतुरनिकाय सुदेव माय ॥ ४३॥ रचिशिव का प्रभुतनक रिसिंगार बैठाय लिये निज कंध धारशिवतिय के बींदवने अनुपाल बीहर श्री मुक्ति ति या सुरूपादे प्रभुभक्ति स हि नमानंदधारि इंद्राणी इंदन चै जुसार मानं दमेघगरलग्पोमिस्ट जिहदे वितचक्षु होत पुष ४श ताये ईथेईध्वनिरही पर। सुरसुरीनचैसुर पति हजुर छमछम छम चरुवजेता घन घन Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नेमषभरनाकरोदशचीपत्रातदेहजिनद तिनीलमणिमसुंदरी मायुवर्षसहयंसह कोपभुवालवयमैतपधातजिराजमति चिनदयाधरिश्न मायशिवसुंदरवरो॥३|| छंदपड्डी इमरज्यधरासबपापहानिनिन जन्मसफलमयधन्यमानिफुनिकरैस्तुतिमा नवचकायाजयदेतपक्षशासनाया२३॥ मरीमैनेजिनेशचरणानीपोजितिमापहा रणभिव्यर्वदिपज्यनिजशीशनायाजयसद करतघंटाघनाया३३॥ फुनिताहीपथाउत्तर सुमव्यनिजहालियांवसुविधिसुमात्र निमक्तिसहितजिनमानलीनापथमरमर उतरैषवीनारासवमुखन जैजैयध्वनिकर नपथऊंचनीच दिउतरतायो चलतसुगो मुखकुंउमानानीरसदानिर्मल वर्हताशात हांगोमुखनालोपधारा तान रहनामनिसा तसाराजाकोजलशीतलतही मिलजीहपी वतनासैतयाकशाहीनिहिकुंडनिकटहोय पिंथजाय दिशउत्तरमैनन्दतसुहायकितनी कदूरगिरपैचलंत कुनिनशैलते उन्नरंता जहांपैडीपथनिर्जतुमिफलफूलवेलिदुम। - - - Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहेर मियौ च लत प्रॉत बन सहलाम्म्र को किलमय रध्वनि कर तिका ना३ि जहां मर मिमनोहर प्रति सुरंगात पधरैने मकरमदनभंगा तहांसफलवक्ष सीतल सु का यजल टोरोर निर्मल व्हायरसान हांशीतल कुंडमरे सुनी नहीं मंद सुगंध चले समी रत हां फलै फूल बहस घनश्याम तातै विज्ञातव न सहसा तो रा से रथ ने फिरने मिनाथ॥ सुनिसोरपप्पु उरद या स्त्रित्य। द्वादशमनुप्रेक्षा सुभगचिंत्याभयभीतभयेभवं ते संता देशभ विभोगदे हमै भये उदासा तोरीस व मोहनी जूफा सप्तव ही लोकांत के देव माय पर पुव्यक्षेपि । निजसीसनाय देशाप्रभु जोग्य विचारी बात राह करिऐन विसंवदेवाधिदेव. यो कृरिनियोग निज सदनजाय। तव चतुरनिकाय स देव प्राय ४३ रचिशिव का प्रभुतनक रिसिंगार बैठाय लिये निज कंधधार शिवतिय के बींद बनेनुपाल श्रीहर श्री मुक्तितिया सुरूपा४४॥ प्रभुभक्तिस हिनमानंदधारि इंद्राणी इंदन चैजु सारा ध्यानं दमेघगरलग्पोमिस्ट जिहदे खितच सुरोतपुर ४ नाथेईथेईज्व निरहीए। सुरसुरीनचैसुर हिजूर छमछमछमघुघरू वर्जत (घनघन um t न Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । घननपंतपनंत महादुमदुमदुमदुमयाजनम्र दंगाननननननननूपरंगनननननललेन संसाग्मदीसारंगीकरताना पाहानिरयो अतसुठाटा तहांपदेपुरायमंगल सुपातायो सहलायवनप्रायमध्य हैएरवसनमुखर्वति सिद्धासाकचलोचकियेमुटीसुपंचाधाररि क्षाजिनतजिअपंचकपलोंचतउपज्योमनह) ज्ञानकरिदेवचलेषभुतपकल्याणासानेपा वनराधराजानएजैसुमव्यबसुदव्य मानिति हतपधरिघातुचतुकनासउपजायो केवलर) विषकासा ५॥तहांतपनरुग्यानकल्याण दो यापजैसोधरासुरशिवसुहोयागुमटीजिन चरणगरविंदपजेस्पापुरायहोवैभमंदाशार मरज्यमन्यताहीसुपंथा कुनिचलैमानमदत निषाफिरधर्मसालपीछोसुभायावस्त्रादि लेयनिजयाँथानजाय॥विदेपंडितरमराम सुबामनवचतकायत निरागरुयनिजजन्मः सफलकतरुत्यमानिमैभयोषभुतुममत्या नि॥५३६ तासुवेगकीजैसहायावसुकर्मनतेली जैछुदायाइसजगमाहीयमेरुजांना सुपसि रस्युंसमनाहीषमांन॥६॥दुपहरणकारणासु %ERED - Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुमजिनेश मिथ्यानमहर तुम ही दिनेशमा नुश नाथ •प्रवप्ररज राहा दीजै सुवासु शिव पर सुगेह ॥५५॥ घत्रा गिरनारी गिरंद सरद सुरनर वंद्यधरि आनंदनंदिन है। नरसुरसुख पावै शिवपुरजावै नि रबलसार गुन मंडिन है । उही श्री गिरनारिशिख रोपरिमुक्ति प्राप्रेभ्यो म नि र्विपामितिस्वा हा डिल जो बंदे मनसाय प्रर्चा गिरनार हो। सिद्धि सिद्धबहर दिल है सुखसा रही। शकरक पभोग्य सुजगधार हो । शा एल. शीर्वादासंवत सतगीस ऊप रित्रयवीस है। पोयं मास सितपस सुपरमजगीस है तिथिभ्प्रष्टमी रविवार प्रमलउ क्रूरंग ही। तादिनवंदै प्रचलराज सब संघ ही ॥ २ ॥ इतिश्री गिर्वार सजा संपूर्ण ॥ संवत्॥१॥ अथापि वरजीको प्रज्ञाभावा लिख्यते ॥ म ल।गिरिस मे देतेवीसजिनेश्वर सिवगए। मेर संव्यापुनी तिहांने सिडूमरावं दमनबचकाय नपुंसिरनायके ॥ तिष्टौ श्री महाराज्य सवैत यकै । उड्री मेदसियरतै मुक्तिपधारे ज्यां की चर एक मल की स्थापनी प्रञ्चावृतराव खोय ●प्राननाम त्रममसन्निहितोभवभवबाट रे न्नधीकरणां ॥ खंदगीत सोहनकारी रतनजडि Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - हिगंगाजलभरी जिनराजचर्णचदायभवि जिनन-मम्रत्युजना हरीसंसारउदधिउवारों कोलीजिएसुदभावसो समेदगिरिपरवीसजि नवरएजहर्षउछावसोबाईहीसंमेदसिबरपर्व तसेतोजोजिनमुनीमुक्तिपधारेजिनके चरणक वल कोरजाजन्मजरामरत्युरोगविनासनायज लंनिर्वामीनिस्वाहा॥१॥जला जाकीसुगंधको अह अलिगुंजने आवैधना सोमलयसंगघसा यकेसरएजिपदजिनवरतने।भव आतापनि वारणोंकोलीलिासुभावोसमेनागरपरिती सजिनवररजिहर्षउछावसोह्रौंसमेरसिय रपर्वतसेतीजेजिनमुनिमुक्तिपधारे। जिनकेच राकवलकीरजाभवनातापरोगविनासनाया चंदनंनिर्वयामीतिस्वाहाराचंदनी अक्षय यंडअत्यंतसुंदरजौनिससिसमलीजा।सुभसा लिउज्जतीयधोयरपुलषभुपदकीजिणापत्र दकारनलेशभनिनसुद्धनिर्मलभावसौसिमेद गिरपरिवीसजिनवर जिहर्षउछाहसौं।उहै। संमेदसियरपर्वतसेतोजेजिनमुनिमुक्तिपधारे जिनके चरणकरलकीरजाअवैषदखाशाय | अव्यतनिर्वयामीतिस्वाहामक्षाहम Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ रस पररसनां दंनदुष्टभ्प्रसंत दुर्जयहनै सव के जारा हो । ना के नि राहेत कुसममं गायरंजन नाएाही जा की सवा सनिहारयट प्रददौ रिश्प्रावैचाव सौ ॥ स मे दगिर परवीस जिनवर जिह अच्छा व सौ। उही समे सिवरपर्वत सेतीजे जिन मुनिसुक्ति पधारेजिन के चरणा कवल की पूजा काम बागा विनासनायपु निर्वपामि ती स्वाहा॥ मणिरंजनचक्षुप्रियभ्मतिमिष्ट हो। जिनराजन रनचदाय उतिमयुध्मा हो है निस्टहीतमरिचालकं चनविविधकंचनविविधव्यंजन लीजीरा सुद्धभाव सौ संमेदगिरपर वीस जि बरफ जिहर्ष उठाव सौं॥ उहास मे द सिबरपर्वन से चीजे जिन मुनिमुक्तिप धारे जिनके चरण कवलको प्रजासु द्यावेदनीरोग विनासनाय नैवेयं निर्वपामीति स्वाहा । निवैद्यं ॥ त्रिलोका गर्मित पीनता को मोह निजवस करलीयो •अज्ञानतममैप डपैौचेतनचतुरगतिभरमन की यो विनम हिमोह विद्वंस हो वै मारतिकरिचावसों ॥ ॐ हाँस मे सियरपर्वत सेतीजे जिनमुनिमुक्तिपथा रेजिन के जिन के चरन कवल की पूजा जितेमा हा धकार विनासनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। दीपं ॥ ६॥ सुभ-प्रगरांबरवास सुंदररूपप्रभु दिगंषेप Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सादुलकर्मपचंरतिनकोंहीयतनदिन छेयही सोधपवसुविधिजरनकारनलीजिएसुस्भावसौं संमेदगिरपरवीसजिनवरपजिहर्षउदारसौई हौसंमेदसियरपर्वतसेनीजेजिनमुनिमुक्तिपथा रेजिनके चरणकक्लकीरजाप्रकर्मदहनाय एपंनिर्वपामोनिस्वाहा धूप॥७॥वादामश्रीक लौगपिस्तालेयसुधसमालासहकरदापत्र नारकेलातुरतलूटेशलहीरामविलेपउनमहेनति वकेतिविधकैदावसौं समेदगिरपरवीसजिन वरर जिहर्ष उछावसौ उहौंसमेदसियरपर्वत सेतीजेजिनमुनिमुक्तिपधारेजिनके चरणकमल कीरजामोकफलषाशाया फलंनिर्वयामीनिस्ता हा कालाजन्ममत्युजलहरेगंध या तापनिवारैतंदलपदनामदनकौंसुमनविदारै| युद्धाहरैनैवेपदीपनैजानमसावारपदहैवसु कर्ममोक्षसुयफलदरसावरावसुयमिलाय केअर्घरामचंदकीजिगारजाकारगिरसियरकी नरभवकाफललीजीयाहीसमेदसियरपर्वत सेतीवीसजिनमुनिमुक्तिपधारेजिनकेचरणाकन लकीरजा अपमहानिर्वपामोतिस्वाहा ॥ आ दोहा महिमावरीसंमेदकोकोकविक - - Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हे बनाय ( करैजा नसुद्धभाव सो दोग तिमे नही जा या भगियेको सकलकर्महनिमोखि पडिवासित वैसाख ही जिजूं चरण गुरण घोषग संमेदा चलय की । उही संमेद सिखर पर्वत सेती श्री कुंथ नाथ तीर्थ करज्ञान घर कुंड दर्शक लको डिउपवाश रंदिन वै को वित्तीस लाय छिनवें हजार सात से वियालीस मुनि मुक्ति पधारे अजेय सुकलच उदिसदिवस (मोक्ष गए उपनाह जिर्जूमो विदिन के चरा करिकैबहुउ साहा उही समेदसियरपर्वत से ती सुदन वरके ददर्श साफल को डिउपवासमरधर्मनाथती ये कर उगुणीस कोडा कोडि गुरासको डिनोला बनो हजार सात से पिया गावैमुनिमुक्ति पधारे तिन कुंर्च निर्वपामीति स्वाहा॥॥॥ २ ॥ सो रथाः। सिवपुरमै प्रभुजाय चैत सुकल एकादसी •प्रातम सौ लवलाय । लहि अनंत सुखथिर रहे। उ ही समेदसिबर पर्वत सेती अविचल कुंददर्श या फन को डिउपवास प्ररसुमतिनाथतीर्थ कर एक को डा को डिचोरा सिकोड बहन र लाय वासी हजार सात सैमुनिमुक्तिपधारे तिन कुं घे निर्वपामीति स्वाहा॥ प्रर्घ ॥ ॥ सकलकर्मय Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wMAndamala - - अग ययकीनी जेरगुल चौदिसदिन हुए प्रया गालीनसिद्धगसुपरमाईहीं संमेंदसियरपर) वनसेतीपमासिकुँददर्शणा फलकोटउपवास) अरसांतिनाथतीर्थकरनोकोडाकोडिनोलाम हजारनोसैनिनांगावैमुनिमुक्तिपधारेशिनक अर्धमहाअनिर्वपामीति साहा दोहावदिप्रसाद प्रष्टमदिवसामोयगामु। निईशामिभक्तितैविमलपमुअर्घलायन मीशीश हीसमेदसियरपर्वतसेतीसंकुल कटदर्शणा फलकोडिउपवासभरविमलना यतीर्थकरसन्नरिकोडिसादिलायछैहजारसा नस४ि मुनिमुक्तिपधारेनिनकूलमहाल र्घनिर्वपामोनिस्वाहा अघोशाकागुणासुदस तमिदिनांहा प्रघानीयाराया जगतपासिका कादिकमोबिगजिनराया होसमेतसियर पर्वतसेतीप्रभासकुंटदर्शकोकलाकारिक तीसकोडिन्त्रीसुपानाथतीर्थकरगुणचास कोराकोरिचौरासीकोरिवहनरलायसातहजार शमुनिमुक्तिपधारेतिनकुंअर्धमहाअर्घ निर्वपामोतिस्वाहा:अर्घ चैतशुलपंचम दिनाहनिअघातीयारायामोविभासुरपति | ३ mms me - -- - Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिजै ॥ मे जनि हंगुण गाया हीं स मे द सियरसे तीसिद्धवरकुंट दर्शफल बत्री को डिम्ब मजि तनाथतीर्थ कर एक मडव प्रसी को डिचौवन लाखमुनि मुक्ति पधारेतिन कुंअर्ध महान घे निर्वपामीति स्वाहा ॥ जुगल नागसा रेप्रभुपार्श्वनाथ जिनराया सावण सुदिसाने दिवस | ल है मुक्ति सुखजाय। उही समे दसिय‍ सेती सुर्भगभ दूकुंददर्श फल को डिउपना स श्रीनाथ तीर्थंकर पी चसे छत्तीस उप बॉस : श्री पार्श्वनाथतीर्थ करपांच से छत्तीसमु निसहित मोक्षपधारेः "मौर चौरासी लाख मुनिर "ओरमोय पधारे तिनकूं प्रर्षे महा मधे निर्वपा मीति स्वाहा वर्षे माया हनिमघाति सिवचनः चतुरदशी वैशाख वदो ज जूं मोक्षक ल्पा गये संमेदाचा लय को उहाँ स मे दसिय रपर्वत सेती मित्र धरनामा कुंट दर्शक फल डिउपवास | अरनमी नाथ तीर्थंकरन व कोडा कोडिएक मडव पें तालीस लाख सात हजा सेवियालीस मुनिमुक्ति पधारे तिनकूंप्र मर्च निर्वपामीति स्वाहा । निमोषि चैत प्रमावससियगरा मैज जिहुंच सर्वकर्मह Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुघोषिाचतुरनकायसुरागाहसमेसि बरपर्वतीसमेदाचलपर्वतसेतीमादकमान कुटदर्शाफलछिनकोडिनीन्याणलायनि पाणवैसे मुनिमुकियधारेतीनकुंअर्घमहान निर्वपामोतिस्वाहा ॥१०॥दोहा॥फागु म सापंचगुलहीशेयकमहनिसोयगयेसमेहा चलयकीशिवपदगुणहितधोयाही स्नमे दसियरपर्वतसेतीसवलकुदर्शणफलकोरि | उपवास परमलिनायतिर्थकरछिनौकोरिमु निमुक्तपधारेतिनकुंअर्धमहाअनिर्षियामी तिस्वाहा अर्धा लोरा हनिमघानसिव यांनसावणसुदिएनमगणाजमायकल्सान।। सुरनरअगपतिमलिजिताहीसमेसिवरण तसेतीसंकुलनामकुंटदर्शणफलकोडिउप वासश्रेयांसतीर्थकरछिनकोडाकोडिदिनको डिदिनवैलाबनोहजारपांचसैछियालीसमुनि मुक्तिपधारेतिनकुंअर्घमहाअभिर्वपामीति स्वाहा ॥ ९॥ गरायुय्यनिर्वाणणभारवसुदी अबमोदिनी एजूमोक्षकल्पानसवसुरमिलिएं। ||जाकरीणहीसमेसिबरपरवनसेनीसुप्रभकूँ। ददर्शणफलकोडिउपवास अरपुय्यदंततीर्थकर Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निन्या वै को डि निचे लाख सात हजारच्या रसै अ सीमुनि मुक्तिपधारेतिनकूं। मधे महामर्घनिर्व पामीति स्वाहाः॥॥॥ हनिमघाती जिनराय चोच किसन फागुण विखे जिजूंचर्ण गुन गायमो बस मेदय की गरगार्ड हौंसमेदसियर पर्वत से नी मोहन कुद दर्शक फल को डिउपवास पद्मप्रभुती ये कर नियां वै को डि सियासी लाख विद्यालीस हजार सात से सताईस मुनिमुक्तिपधारे जिनका अर्धमहाप्रर्धनिर्वियामीति स्वाहा॥ भाधी हनिघाती निध्मघाती निर्वाण का गुण हा द सीर नही। जजुंमो ष क स्पा गागरा सुरासुरपदजं । उही संमेदसियर पर्बत सेती निजेरनामर्कुट र रस कोडि उपवास मुनिसुव्रत तीर्थ कर निन्यानवे को डाको डि सि त्यागावै को डिनो लाख नो से निन्यावे मुनिमुक्तिपधारे तिन कुंम पे महाप्रचेनिर्वपामी ति स्वाहा ॥ ॥ १५॥ सेय कर्महनिमो ॥ फागु सुकल जुसत मीज जूगुणन के को या ॥ गए संमे दा चलथ की। उड्रीस मे द सियरपर्वत सेती ललितप टकुट गा फल सोला लाय को डिउपवास अर श्री चंद्रप्रभतीर्थकर चौरासी मउबवहत्तर कोडि असी लाया।। ८४५५५॥ मुनिमुक्ति पधारे तिन कूं। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S अर्धमहामनिर्वपामोतिस्वाहा पासोरठा गामोविमगवान अमिसित त्रा सोजकोण घोह घोहशिवयांनवसुविधिपदपंक जजजाह्रीसमेदसियरपर्वतसेतीविद्युतवर कुटदर्साफलकोडिउपवासाअरसीतलनाथ तीर्थकर अटाराकोराकोडिबियालीसवतीसला यवीयांसोहजारा०५॥ मुनिमुपधारेतिन अर्घमहा अर्धनिर्वधामी निस्वाहा दशहाचैतकिसनपर्णदिसनिजातमकोचिन्ह मुक्तिस्थानजायकै हुए जयगुणालीनाहीस मेदसियरपर्वतसेनीस्वयंरनामाकूटररसमाफ लकोडिउपवासभर श्री अनंतनाथतीर्थकरछि नमैकोडाकोडिसतरिकोडिसनरलायसनरिहना रसातसैमुनिमुक्तिपधारेतिनकुंअर्धमहा अघी निर्वियामीनिस्वाहापासोमासेषकर्म | निरिचैतशुक्लयमिवियाजजूधणोघउचार मोमवरांगनपतिभराईहीसमेदसियरपरवत सेतीधवलरतकुटर्सगफलवीयालीसलाबर पवासकलसंभवनाथतीर्थकरनोकोडाकोरिबह रिलायवीयांलीसहजारपाचसोमुनिमुक्तिपधा रेनिनकूअर्घमहाअनिर्वियामीतिस्वाहा || ३८ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - AND Anaemarg - मोहसित अलमीसायासिनगरामो बिहनिकर्मजनूंचरणधरिभक्तिकरिशदेवदेउनि जधर्म उहौंसमेदसियरपर्वतसेतीनददर्श गाडूंटदर्शणफलएकलायउपवासभर अभिनं रनतीर्थकरतेहतरिकोटाकोडिसनरकोरसन्नर लायवियासीहजारसातसैसातमुनिमुक्तिपधारे निनकुंभमहावनिपामोशिसाहा जयमालावधीदा जयपथमन जिनकुं थदेवजयधर्मवणीनितक सेवाजयसुमतिन संसददिहतजयसांनिनमुनिजसतिन मुनिन सांतिहेता॥जयविमलनमलानंदकंदजयसुपा चनम्रहतियासिकंदजयअजितगयेसिवहानि कर्मजयपार्यकरीजुगनग्नसमा २०पछिमदिशि जानौटौकएक वंध्याचगतिकोहोयछेवनरसुर पदकी तोकोनवातरजैअनुक्रमतैमुक्तिजाना३॥ जयनमीनरनिनिधरोध्यानजय अरिहंतलीयो। सिदांना जयमखिमदनजयसीलधाराजयपास, गरभवसेजुपारीजयसुबदिसुबुधिदातामहीस जययानरंतमहरिदिनेसजय मुनिसुवनगुए। गणगरिराजयचंदकतापनिदाशीयसीन लजयमवकी आतापजय अनंतनमनसिजायपाप mare - - Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयसंभवभवकोहरोपीराजय अभयकरोत्र भिनंदवीसाररवदिशहादशदोकजाणाम तेहोहै असुमहारण फिरलमिको करिषणाम पावासिवरमनीवेगर्धाम॥७॥कलिनासिवरस मेदजीकेवीसकूटनासौमौयगएमुनिराजनाकी संख्यासवनानिय चौदासकोडाकोडिपैसदनाङ परिजोडिछियासी अडबताकोभानहिए प्रानि एवारासैतेहतरकोडिलायज्ञारासैबयालीससात सैचोतीससाटासहसबानिएसैदतिनैपनि 5 कर्ममानिए॥दोहा॥वीसकूटकोसफलोया संव्यांजानिएकसोतेहतरकोडिगगुणगुणासर लायहीमान रहा ॥रावीसजिनेसरनमतस्वरा सुरमधवापजकोंभावैनरनारीराधासुधपाचे रामचंदनितसिरनावे निसंदस्सिवर जा संपरा॥ संवत् १६ ५ १ का १० सुस अथशांतिपाठलियते॥शांतिजिनशशिनि मलवक्राशीलगुणवतसंयमपाबाटश तार्चितलक्षणगानीनौमिजिनोतममंजनेचं पंचममीसितचक्रधराणांप जितमिदनरेंद गणैवाशांतिकरंगणाशांतिमभीप्सुतायोडश तीर्थकरंषणमामिाादिव्यतःसुरपुण्यसुर । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिंदुभिरासन योजन घे| औ॥ प्रातपवार ॥ चा मर युग्मयस्प विभातिच मंडल तेजानं जगद चित्र शांति जिनेंद्रं शांतिकरं शिरसा प्रणमामि ॥ सर्वगुणानुक्षन शांतिं । महामरं पदने परमांच येभ्यर्च्चिता मुकट कुंडल हार र लैः॥ शक्रादिभि सुरगणैः स्तुतपादपद्माः ॥ ते मे जिनाः प्रवरवंशज जगत्वदीयास्तीर्थं कराः सननशांति कराभवं ||२||संष्टज्य का नां प्रतिपाल कानांमंती सामान्य तपोधनानां । देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतुं शांतिंभगवान्जिनेंद्रः ॥ ६ ॥ शो करक्षः सुरपुय्य वृष्टिः दिव्यध्वनिश्रामर मासनं चाभामंड लंद भिरानपत्रं । सत्स्वातिहार्य्याणि जिनेश्वरा ॥ क्षेमं सर्व प्रजानां प्रभवनु बलवान् धार्मिको मिपालः॥कालेकालेचसम्यकवर्यतुमधवाच्या धयो यांतुनाशं दुर्भिक्षं चौरमा रीक्षणमपिज गतां मास्मभ्भज्जीवले के जैनेंदूधर्म्मचक्रप्रभव तसततं सर्व सौख्यंप्रदायि॥ चप्रध्वस्तघातिक र्माण केवलज्ञानभास्कराः। कुर्वेति जगतः शांति वृषभाद्याः जिनेश्वराः॥ ॥ प्रथेट प्रार्थनाप्रथ मंकरद्रव्यं नमः ।। शाखाभ्या सो जिन पत्तिनु ति संगतिः सर्वदाय्यैः सहतानां गुणा गणक या दो 1 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अथ चरचा सतक लिख्यते।। प्रथम सर्वयस्तुति || जैसखाप लोक लोक इक उडवूतदेह स्तामल ज्या हाथलीक ज्या सरव विशेवै। छहोदर व गुरापरज कायत्र्यवर्तमानसमा दर्पननेम कासनासमल कर्मम हातमा परमेष्टी पांचौ विधनहरमालकरी लोकमामन वचन काय सि रलायमुवत्र्यानंदसदेहु धोक में। ॥ वेदेनि मिजिनंद चंदसवकैौ सुखदाई।व लिनारायण वे दिमुकट मशि सोभापाई। व्यत्तरइंद्र व त्तीसभुवन चालीसा आवे। रवित सिचक्री सिंह स्वसा चै वी साध्यावै। सवदेवनके सिरदेव जिन सुगुर नवे गुरदा यहै।। हुजैद पालम महाल पर गुशा नंतसमुदाय है।। २] इंद्रफ निद्रनरिंद्रपूजि तुमभागत्तिवढावै । वलनारायनॅवंदि मनसोभापा मुकर वे । चिनजाने जियभ्रमं जा निधिन सरागवसावै। ध्यानवानरिधिवांनामरपद आापक होवे। स वदेवन के सिर देव जिनसुगुर न के गुरदाय है।। हुजैद यासमम हाल पर गुरा अनंत समुदाय है।। ३ चंदौ आठ करोरलाय छप्पन सत्तानं । सहसचा रिसैासी एक जिनमंदि रजानानवसेवी स डिलाखत्रेपन सत्ताईस | वदौपतिमास र खसहनौस अडतीस व्यंंत रजोतिस नितसकल ली चित्यालेप्रतिमा नमीं । यानंदकारदुःखहारसव फेरिन ही भवन नभ४ लोकईसतनवात Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीतजादीसविराजैएकरूपवसुरूपगुणअनंतातमधाजी अस्तवस्तपरमेयारुलघ श्वपदेसी चेतनअमूर्तीकाठगुणधमलसुदमी उतकरजानअनगाहपदमासन घडगासनलासक्तायकलोकअलोकविधिनमोसिहभवभयनसी॥अथश्राचार्य उपाध्यायसाधुतीनोकोवंदन।श्राचारजउवायसाधमनतीनाध्या गुणवत्तीसपचीस वीसअराठमनातीनाकोपदसाधमुकतिकोमारणसाधाभोतनभोगविशारागसुभा, ध्यान धराधीगुणासागरअविचलमेरुसमधीरजसोयरीसहसहोमनापायजुगलायमन मरीजीवांछितलहै।६ अथलोकसरूपा अमलअनादिअनंत अक्रतअनमित्त अखंड सुभानिअिचलअजीवअरुयपंचनहिस्कअलोकनभनिराकार अविकार अनंतपदेश विराज सदसगुणवहादसौदिसतनयाजीयामध्यलोकनभतीनविधिधकत अमिटअनईसरो अविचलनादिअनंतसवमायोश्रीश्रादीस्वरोअथलोक | स्वरूपावयाशापूरवयधिमसाततलेराजूसातआघटनामध्यलोकराजूरकर साहदितिउत्तरादिश्रुतमध्यराजूसात उंचाचादराजूपददविभरालघाहे। उंची। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | दिगयावम्हलोकराजूपांचभयाआघातएकराजूसरदहाहै। असंख्यातपरदेसमू रतीककियोमेसकरैधेरैहरैकौनयंतिकहाँहै।पुनातीनालोकतीनीवात्तवले वटैसवतौरवशतालअंजालतनचामदेषिय अधोलोकवेवासनमध्यलोकथालो भनिराधमुदानिश्रेप्साहीविसषीयाकरकटधारिपावकोपसारनराकारडेदमुरज आकारप्रविनासोपरिषयाघरमाहिटीकासलोक अलोकवीचीकेको आधारय यहनिराधारपेपियारीपना तीनतेत्तालराजूघनाकारसवलोकयनोदधिधनत्तन वातके वाधारहै। तामेचौरहचौखूदीवसनाडीवसथावरपरेतीनसैउनतीसथावरस हारहोलिणउत्तरडोरक्यालीसराजूसवपरवपछिमउनतालीसकौविचारहाराची सवीसामोत्ततालीसप्रधिककहलोकसीससिहनोंमेरोनमोकारहै। १०) पुनः उयलमें छकवंसनालिलोकत्रसनाडीउंचीचादहवारीएकराज्यसभरीहै।यात्रसथावरवा हिरवाववाधीकाहमरणसौंअगाउगायावसचालकरीहै। वाहिरथावरकाईनसभा वांधीहोयमरणप्तमेकारमाणावसरीतिधरोह केवलसमधातवसरूपजहाजात २ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीनोभांतय हांस जिनवानी घरोहै॥ ११॥ पन समुच्चय तीन मैत्तेतालीसराजू घनाकार फ लावटकथन। छय्यै॥ पूरयद्यिमतलै सातमध्यएव वयानी पंचस्व में पंच ते में एक वषा नी|| चहु मिलाप चहुअस तीन साठे परमानौ दक्षिणा उत्तरसातसाद चौबीसवमानो| उंची चौदह राजू गिनों अधिक ते तालिसत्ती नसे। यहधनाकार तिहूं लोन को केवलम्यान विषैले से |२२|| अथ अधोलोक एक सौ छयानवेरा जूनाथन छ। पूरवपछि मतले सातमध्य एकै गाई|| उभे मिलै सु आठ अर्धक रिचाखताई। दक्षिणा उत्तर सात गुगे अठ्ठाईस राजार्डचा | राजू सातसतक नानवैभयाजू। यह अधोलोक का सवक घाघनाकार जिनधर्म में मति करोयापक रिनरक में रहोस माग परम | १३|| अथ उधलोक एकसी से ताली सराजू मध्य लोक इकब्रम्हयां चदुहुभया मेलवटा पूरव पछिम दिसा अर्धक रिराजू तीनर या दक्षिणा उत्त रसात्तगुणीइक्कीसवयानीची सादेत्तीन साद तिहत्तरजानी||सावेतिहत्तर विधियह लोक अंतमो म्हला राजूइक सौ सत्तालीस सवधर्म करे पावै सुम२४॥ प्रथ तीनसे ते ता लीमराजू लोक मैताका जुदायार ॥ यालीस चालीस और चौतीस साईवाईस सोल Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसउनीससादेवतलाहीसाठसत्तीससाठिसोलसादे सोलैभनि योगदोदोहीन अंतराज ग्यारेनिाइमसातनकाठोजुगलयरसोलेथानोराजूतेतालीसतीनसेघनाकारक हिपानार५ अथतीनलोककत्तीनवातवलयकाजुबाजुदापमाणकथनासवैयार, तलैवातक्लेमोटेजोजनसहससाठउंचरकराजूलासाठिसहसधारने। आगेतातपांच चारतीनसोलेजोजनकेमध्ययांचचारतीनवारकेचितारना वम्हलोकत्तीनसोलेचैतमा हितीनीवारेतीप्तदायकोसएककोसकेचिचारनातन्वातधनपानसाल सभागताकेपद्र सैसिद्धाकभामेनिहारने॥२६॥अथतीनलोकपटलएकसौवारको योगाप्पाएका त्तीसपरतातभरनोपारतरजिया इकतीसप्तातसुचारदोयएकएकत्तीनतियातीनती नआरतीनसकइकपटलवताये।सकसीवारेसरववीसथानककेासासवतातनरतत्रा ठोजालजयग्रीवकदयनोत्तगणनेचासनकोसठिसुगनिदानासमकितभरे। अथछहसंहनननर्वस्वोउत्पत्तिकथन छहोतीसरेजाहिरांचचापंचमला चार सहननछठेएकसातएकनरकमा यहोआठवेस्वरगपंचवारमेसुरजावै॥चारसोल ३ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलोकतीननोग्रीवकयावादोनौसंघननउत्तरेएकपंचपंचातगएकचरमसरीरीसिवल हवेहोजैनवचनबरेशनअथश्होकालचौदानस्थानसंहननव्यौरालय्ययाम प्रथमदतीयश्रश्वतीयकालमेंपहलाजानी चोपटसंहननपांचमेतीनवयानौकरमभू ||मितियतीनएकवठेकेमाही विकलचतुक एकएकइंद्रीक नाही घटकहेसातगण यानलातीनीयारैलोकादकषिपक श्रेणिगुणातरधनिजिनवानीमंकारची थचौवीसजिनअंतरकथनासयाशापंचासत्तीसनौकरोडलाषनवनीसहसकोड नौसकोडनवनीकोडह।सोसागरवायलायाछासठिसहसथ्वीसघाटकोडसागरचीव नतीसरहानवचारत्तीनघाटपोनपल्यअर्धपावघाटिलायोलापवर्षलापोलाय जोरहा चौवनश्यांचलाषसहसयौनचौरासीपावअंतरजिनसावनिप्तिभोरह|२०| प्रथएकसोअठतालीसयक्रतिकिसकिसगुनस्थानधियी सातपतिकोधा तठीकसानमगुनथानातीनायनहिहोयनवमेतिसौभानादसमेलोभविदारवा रहेसोलमिटावे चौदहमेकेअंतवहत्तरितेरषियावाइमत्तोडकर्मण्डतालिसौमुक Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिमोहिमुख करते हैं। प्रभु मोहि लावैौ प्रायदिंग हमहूपायनपरत है ॥२॥ प्रथमानवो त्रयमाणकथनाक वित्त मानुषेोचयखत चौडाईभूपर एक सहसवाईस | मध्य सात से तेईस योजनउपरचारसत्तक चोवीस || सत्तरहसेइकाई सञ्चाईजडचा रिसेपावच्चर सरजु विमाशाक हिभांति मिल्यो है जोजन लाषक है। जगदीस |२२|| प्रथदेवलोक नारी संयोगकथन || दोयस्वामि काय भोग है दोयस्वामि फर सनिहारा चार सुगमें पनिहारे चारि सुरग में सव्दविचार ॥ चारस्वरगमेमन कौ विकलप प्रोगेस हज सील निर धार। प्रहमिंदरसवस दामुषी है वे है। सिइसषीय विकार||२३|| अथ एक सौ. रपुरसकथन।। छप्पे | चौवीसो जिनराजयायवे दो सुषदायक | कामदेव चोवीस ईस सुमिरोभुविनायका भरत आदिचत्रे सदेस वह सुर नर स्वामी | नारदपदममुरारिपौ रप्रतिहर जगनामी। जिनत्तात्तमात कुलकर पुरस संकर उत्तमजियधरौ। कुछ. वकुछभवधर जगतमुक तिरूपवंदन करै।। २३) पथकर्म प्रकति: १४८ | काव्याश ग्यानावरणीयेचदर्शनावर शीनो विधि/दोयवे दनी जानि मोहनीजा निमोहनी पाठ ४ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीस निधि) = यव चार पर कारनाम की प्रक्रति तिरान्। तथा एक से तीन गोत दोमेदवा नौ कहि अंतराय की पांच सव सौ अटुताली सजा नियै। इस पाठ कर्मच्चडता लसों भिन्नरूप निजमानिये ॥२५॥ सवैया३श, वर्णादिकवीस संस्थान संहनन वारे बंधन संघात देह अंगोपांग गरे है। अगुरुलघुताय पपघात परधान निरमाणपर तेव साधार हा सारे है। थिर उद्योत थिर शुभच्चसुभवासठि युगाल विया की भौ विद्याकींचा रहे। त्रिविया की चारे प्रानपूर वी८त्तरवा की जीव की विपा की धारै अघटार है।२६ केवलदर्शनापानावरता की दाय मिथ्यातसमै मिथ्यात्त निद्रापाचभानिये। तीनचौ कडी की वो रेसर्व घाती इक ईस संज्वलनचाश्नव नोकषायमानी यै॥ ग्यानावरण की चार दर्शनावरणी तीन अंतराय यांचसम्पक मिथ्यातगनिये। रेस घात की छबीस वा की इ कसौधात ती नौ घातकर्मधात आापस जानिये ॥ २१॥ दिकचारि सोलेना हि देहादिपांचदसना हि मिथ्या एक होय बंधना ही है। सो लैट्स दोय विनांचं धतर कवीस मिथ्याउदैती नदो यवेदै उदया ही है। उदै औ उदीर ना हैए कसत वा ईस की ना सौं Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट ताल विशेष सताठा ही है। मिथ्या गुनसो छ्यान्त का इसन सत्ताईस पांचौ तिरभंगी सौं गोपमा ही है। २८ छ। वंधएक सैौबीस हुँदै सो वाईस च्खावै। सत्तासौ-प्रदतालपा कहलावे। पुण्यप्रत्र तिच्छवसठि अठत्तरजीवनिया की। वासविदेह विपाकयेतवहु चहुँच हुँ वाच इकईस सर्व घात्ती प्रतिदेसघाति वीस है। वाकी प्रघातइकअधिक सत भिन्न सिसव ईस है|२८|अथपापप्रकति। ९००॥ नाम॥ सवैया३॥ घातसत्तालीस दुखनीचनरक पंचसस्थान संहनन वीरसमानिये। नरक पंसगति आनुपूर वीफरसाठाधिदाय इंद्री रखुरीचालठानियां पथिरपर्यापतिसूक्ष्म और साधारण अपघात यावर प्रसुभयर निये दुरभादुखर और अनाद्यञ्चजसरूप पाय प्रकति सौभेद त्यागधर्मजानिये ॥३०/पुन्यकी । ६८| प्रकतिवशीन || सवैया ३१|| सुरनरपसु या साता उंचमली चाल सुरनर च्यान निर्माण स्वास है । बंधन संघात देह वरिसपंचचस तीन अंग सुभदोयगंधच्याठ फास है। अगुरुलघुप चंडी संस्थान संहनन वाद र प्रत्येक थिर पर्याप्त रास है। -प्रातप उद्यो तपरघातसु स्वरसुभग=प्राहरतीर्थंकर वंदे। श्रंघना है। ३९॥ अथ जनमत प्रधानव Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नः छप्पय तिहूंकारावरद्रव्य पदारथेन। तुमभाषे । सानतत्व- पंचास्तिकायंट काय करावे वा ठकर्मगुन चारभेदले स्पा घटाने पंचपंच समितचरितगतिमानवाने |सरधैपती तिरुचिमन धेरै मूक तिमूलसमकित यही पदनमै जार करि सीसधर धनिसरखतयह विधि कही। ३२ इथ३क सौ साठा निन्यानवैकुलको डिक थन। सवैया ३२॥ प्रथ्वी काय वीस दोय जल सात तेज तीन वायु सात तर वीस आठ परवानिये। वैतेनोइंट्री सात-आठ नवखा वारे जलचर साढेवारै चोपेदसजानिये। सिरी सर्प नवनार की पचीस नर चौदेदेवता छवीसकुल लाखको डिमा निये। दोय कोड़ा कोडमा हि प्राधलाय को डिना हितक्कै निहारि कैदयालभाव चानिये। ३३ प्रयापार भेदक गिनती नांम॥ यय ग्यार कयद एक कदमसवप दयानी पूरव चौदे गंगवीस अन्तर जिनवानी । उनतीस क मनुष्य पल्प पैतालीस अक्षर। सरसौकंड घ्याल डेटसी अक्षर चितिवर) इकतीस अंक पलक लय के जंबू फलावट दस वर सक्वातवलयम्पारे वरणा धन्यजैनसंसय हरण | ३४ | अथ तेर में गुणास्थान सा तचभंगी कथन छप्यय] सातच्या श्रव द्वार वंधइक सा ताक हिये। चौदह भावप्रमारायच्या सीसा त्ताल हियै प्र Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीचौरासीइक्यासीआरपच्यासी यहसत्ताचाभेदविसबजिनेवरभासीइकलमचालीस दीरनाउदेवयालीसमानियायहतेरहमेंगुयानसातत्रभगीजानिया३५॥ अथवध दसविधिकथनाप्ययाजीवकर्ममिलिबंधदयरसतासउदैभनिाउदीरनाउपायरहै। जवलासत्तागनि उत्करखनयितिवदैछटैपकीनकहीयत्तासंकरमनपररूपउदीर नविनउपसममतासंक्रमनउदीरनविनुनिधत्तघटवघउदीश्नसंक्रमनाचहुविना निकाक्त्तिवंधदसमिन्नयापपदजानिमना३६ अथतीनलोकवियश्कत्तमचेत्या लसंख्या सबैया२३॥सातकरोखहत्तरलाषयतालविजिनमदिरजानोमध्यलोक मिचारिसठांमनजोतिसव्यतरके अधिकानोोलाषचौराप्तीहजारसत्यानवतेईसउरध लोकधखानों एकडकमपतिमाप्ततारनमौकरजोरित्रकालसयाना अथती नघाटिनाकोडिमुनीसंख्याउत्तकिष्टीयचिकिरोतिरागावलापहजाअवाक्नदोयसे शेजाने।जीवछठेगुनतेअधिसात ग्यारसछमानवैचारिठिकाना अठनवदसवारह चौदह उनतीसनवपरवानतिरमें पाठहिलाषहजार अठानवैयांचसदोयवधान।। ६ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ॥ प्रथ अढाइ द्वीप जोतिस संख्याकथन | कवित। एक चंद्र एकसूर असा सीग्रहन तत्र अठाईसव याना धनास विसह सय चहत र नासेको डा के डीत्तारे जाना इक सो वत्ती | सचंद्रयही विधिअढाई दीप मरवान सवचे त्यालेप्रतिमामंडित वंदनकरोजो रिजुग पाना ३८ प्रथमायुकर्मके वध के भेद कविता - आवयंसपैस ठसे इकस ठिइव ई समसत्यासीजांना सातसतक गुन तीस दोयसैते तालीत क्या सीमाना सत्ताईस और नौतीन एक पाठमाभेदवयांन नौमी अंतकालमे वांधे पगलीगतिकी - पाव निंदान |४०| अथसत्तावन जीव समासकथन। भूजल पावक वायु नित्तउत्तर साधारना सूक्ष्मवाद रकरत होतदविदस उचारन। सुप्रतिष्टव्यप्रतिष्ट मिलत है। देयरखाने। परजच्पपरजअ लब्धगुनत व्यालीस वयाने गुनवे ते चौइंद्री त्रिविधिसख एक पंचासमनि मनसहित रहित तिहूभेद सो सत्तावनधरिदयामना४९॥ अथव्यनागावै जीवसमा सकयनास विया ३१ । इक्यावन थान जीव यावर विकलत्रय के गर्भज दोतीन समर्थन गए है। पां चैसैनी आपसे नीजल थलचानमचारी भोगभूमिषेचर दोदो पाए है। दो दो नारकी सुदे Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . वनवविधिमनुष्यभेवभोगकुमोगभूमलेशभूवताएहै।दोरदोइदोइ तीनचारजौरान तहम्पटनागवेदयाकरसाधनेकहाएहै।४२॥ अथसादेतीतजारपमादकथनभेद। छप्पयाविषयास्पपचीस श्रीरपणवीसकवायनागनतसप्तवापांचईद्धीमनसोग नि पौनचारहजारपंचनिद्रासोनियासहप्तपोनउन ईसनत्यमोहसुसुनीयै। साद . तीसहजारभेदसवपमादपमानियाथ्टेगुनथानकलौकहे त्याबापाविरहानीया४ प्रथजोतिसपटलकात्तलपरकाकथनाच्या सातसतकरुनवतातपरतारेरा ताउपरदसभानअस्तीपरचंदविना चारनतबुधवारतोनपरसुकवत्तायो।तीन कुजतीनतीनप्रतिसनिठहरायोइिमनवसेयोजनभूमितेजोत्तिप्तचकवपानियोइकसो दसयोजनानफेलिरधापरवानिया४४ा अथणुनस्थानम्यागकोउयप्तमीकौकि मिश्नोवेजावसोकथना थप्पयामिथ्यामारणचारनीनचीयाचसातभनितीयएकमि . यातवत्तीयचौथापहलाना अवत्तमाएपचित्तीनदायएकसातपणापंचमपंचसु तचारितियदायएकमणिोछठेवटकपंचमअधिकसातवाठनपदससुनौतियः ७ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - Anymaaaa उधचोथमरणग्यारवारविनदोमुनी ४५॥अथचोवीसतीर्थकरवर्गानं अय्यपापुष्पदंतप भुचंदचंदसमवेतविरानै पारसनाथसुपासहरितपनामयछाने वासपूज्यश्ररपदमरक तसमानिकदतिमाह। मुनिसवतचरन मिस्पामसानरमनमोह वाकीसालकंचनवराय हयवहारसरीरातिनिहचैत्ररूपचेतनविमलददीनपानचरजुता४६अथोमस रवीनादिनमस्कार अश्वसूचक छप्पविदोनेमिजिनंदनाचोचीसजिनेवर)महावीरवं|| दामिवंदासवसिद्धमहेस्वरासुद्धजीवपणमामिपंचपदसणमौसुषप्रति गोमटसानमामि निमिचंदनाचारजनिता जिनसुसियवर्लकवरगुनमुनिभूषनउत्यधरीकहवीसपाही पनभावसायहमगलसवविधनहरा ४७ अषषरविधिमाल श्ययानिमूनांमत्र रहंतफुनहुनिनर्विवकलुषहराद्धाश्रीदारिकदियविवनिवीणअवनिपर कहींकल्याण ककालभजहकेवलगुनग्मायका यह विधिषटनिषेपमहामंगलवरदायका मंगलदभेदी सबजायगलमालसुषलहजीयगायनादिमध्यपरजतममंगलाषाहीयरा॥४८अथा पांचपरुपयांचौदहमाशाविषगर्मितहसोकथनामवैयाशाजीवतमासपरजापतिमना) Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्वस्वासइंद्रीकायमाहियावातिर्मवयोनियो कायक्लजोगमाहिइंद्रीपाचग्यानमारिवाहा , परिग्रहस्लोभमेपमानौयाकोधमाहिभयधावेदमाहिमथुनपानमाहिदर्शदासमाहि निया पांचोपरस्पनाएचौदहमोभित हैगुनथानमारानादोयमेदमानियोश्री अथवा रेभेदनामीपुरसनामाण्यपावंदौपारसनाथनमौवलरामचंदवाराकामदेवहनुमंतपण दरातनमानीनरादानेस्वरयांससील सीतानामी तयवाहवलनांनिभावभरतस्वर स्वामीजगमहादेवहरडपवाग्मनामहरिनानियोद्यानतकुलकरमेनाभिनपभीमव ली।५० सवदीयसमुद्रोकेचंडमाकीगारातीकथनासवैयाशाजंबूद्वीपमेदोयलवना दधिमेचारचंद्रधातखंडवोरैकालोदधिक्यालोसह युस्वरजलधिसारदोसत जारागैागेचौगुनेवयानेनिससहै।जेतलायतेतवलेदूनेदनअधिकेहसासं । ख्यातचैत्पालार्वदितमुनीसहै। अथअधोलोकचैत्यालेसल्याकथना कविता चौततिलाषअसुरजिनमंदिरलाषचौरासीनागकुमारोहेमकुमारप्तुलापवहतरछरह विधिलापथहत्तारधारालापछयानवातकुमारपाताललोकभावनदसतारसा ८ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोडिसक्लायवहतचित्यालेबंदूसुषकारा५२ मध्यलोकचैत्यालसरव्याछिय्ययापचम रिकेचतीअमीवतार विराज जतनमेवीसतीमवलपरवनशजी सोसत्तावताडमधा हरिकुरभूमिरसोतर इष्वाकारपहारच्यारचवमानसुपातपरनेदीस्वावावनरुचकर्मचार चारकुडलसियर इममध्यलोकमेंचारिसेठांमनवदोविधनहर ५३ उरलोकचन्याले संख्या सवैपासासथमवतीसनेमाईसतीजवारेचोयाटपाचवेछरचारलाखवि ख्यातहै। सातवाठमपचाप्सनामंदसमेचालीसम्पारमेवारमेयमारसतसातह अधोए। कशातापामध्यएकसतसातअधरपानौनवनवोत्तरेजातहै।यंचयंचातीचउरासोलाब सतानहजारतेईसप्तवचैत्यालवदौअधधातहे।५४ अथसौधर्मद्रकीसेनासातपकारति सकी गिनती॥सवैपा३शाउंद्रसनसातहायोघोरेरथययादेवेलांधर्वनत्यतातसातयकार: आदिवीरासोहजाराषटदूनएककोडिलाषअठसविहजारहै। एताजततेसवछह दकतेसातकोडिछयालीसलापनिरधारहै। सहप्तछहतरिनोएकधारनोएपयोगका रमभाभोगमोक्षकोसिधारहै। ५५ अपएकड़ीयादिसनीयरजतष्टभेदजीवनिजद्री Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषेषेत्रसामाकथनाथप्यया फरसचारिधनुषयोनीलीदानानिरसनांचौराठिध नुषधाणाप्ततिइंद्रीभनिाचछुयोजनउनतीसशतप्तचीवनपरवाणी कानठसहप्तधन पसुने सौतेनीजाने नोवयोजनधारणरसनफरसकानवादसयोजनाचिनुसैताली ससहसदोयसतरेतरिजिना३५६अथदंडकपाटश्चाठसमेतीनयोगयाश्यकिसमेसो कथनासवैया३१ पहलेसमेंमकरदंडवाठमेसवरपदेसातमीदारीकपमानियोन सरेकपाटहोयसानमे संवरतेयसवरपत्तस्थलसिपयोगजानिया तीक्षोपतचौथेपूरतस लोकपूरनसंवरपांचकारमानमानिया आठसमेमाहिजातकेवलसमुदघातनिरास वामनदेवसोवधानिये ५७ अथमिथ्यातमुकतनहायसम्यक्तहोयसोकथनासवै या एकसमेमाहिएकसमेपरवधैएकसएकसमेपरवंधारेहोवामाजघन्यमें भव्यसोचनतगुनीउत्तकरसिहयोअनंतभागधारह जिसएकातपायसातधात होयजायत्ततएक सातकमरूपअनुसरहायानलहमोतकोयजानेउरापानहोयएकम मैवहयोयतारसिववरहायचआठकमयाद्रमांतासयादेवपेयवाहपटर Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पकौनग्यानहाय सहावानभूपदेखनौनिवार सहतलपेटीअसिधारासुबत्यकारम दिराज्योंजीवनकमोहनीविथारहै काठमेंदीयोहपावकरथितिकोसुभावचित्रकारताना कामचित्रकसमारहै चक्रीड़चनोवधरैभूपदीयोमनकरःयेही आठकमहप्ताईसमता रहै.५९ अथगुनस्थानमेवाअवकथनासयापिचपनपचासत्ततालीसच्या लीससेतीसचौवीसनांना वाईसवाईससालेदसमस्नवनवसातअंतवधानाचादैनथा निकायहविधियाठावदारकरभावीन मूलचारिउत्तरसतावननासकरौधरि संवरम्या ना६ अथवंधपतिचादेशरणस्थानकमकथना कविताएकसोसतरैएकएकसाता। हतरसतहत्तरमांना सतसहित्तरेसठिउनसठिवावनवाइससत्तरदसमयानाम्यारमवार मिरमें सातएकबंधनही अंतनिधानासवानथानकवधेयकतिइमनिहधावा पिशन ६शवथउदै विभगीपतिवादगुणस्थानकर्मकथनकिविताइकतीस त्तरेहकसौग्यारहसाप्ताचौसित्यासीयावासीयस्व छाछठिसाहिबरसाठिउदी, य उनसठिसत्तावनवयालीसवारपवतिउदैहजीया चौगुनथानककीरचनाउदीम Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लतुमसुहसुनीया अपडदोरनात्रभंगीक यनाकविताइकसोसतरैइक सौग्यारे सोसाची सत्यासीजानवपासीतिहत्तरगुनहतरत्रेतटिप्सत्तावनमानिछप्पनचीवनउनतालीसत्तर अंतनहीपरवानाएहउदीरलाचादेशुनथानककरेग्पानक्लसैतम्पानाशप्ततावनेगी कथन वयाशायहलेसोडतालोप्तोपतालतीजेमाहिसासतालचोथेअठतालस। यंचमानसोसताल हातभारनामेदसमग्यार उपसमीहछयालसोआठनोमेसो भाठत्तीसरसमइकसोहायवार एकसाएक आगपंवहदालसातिौचौदसैपच्यासीसता नाप्तीश्वविनासीनमालोकधनरधराजूसतालसौ६४ अथभावभंगी।कविताचा तीसक्तीततेवीसछत्तीसग्नत्तीसइकतीसमानाअाईसमठाईसवाईसरकवीसवा रमेथानाचादेतौअंतमयानकपंचमावसिहालेजानासम्यकग्यानदरसवलकजीव तनिश्वयसोत नायपिशना६॥अपछलासठिहजारतीनसैश्तीसवारजम्मनमरण करेताकाव्यागासव्याशभूजलपावकोनसाधारणयंदभेदसूक्ष्मवादरदसपरतेक ग्यारह छहजारवारवारजामणमरणधरैवतेचाद्रीतीसाठिचालीसधारेहोचावी २० aam n -emnaamsan Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | सपचेंद्रीसवघ्नास ठिसहमती नसे छत्तीस सैतीस तिहतीर सारे है। छत्तीसतै पच्यासी खा अधिक तीजा असनमोनाथमेो हि सवदुः खप्तौ उधार है॥ ६६॥ द्यात्तीयाकर्मकी ऋति सेतालीसनांम॥ सवैया॥मति श्रुतवधिमनपर्ययकेवल ग्यानपंचच्यावर शाग्याना वशीपंच भेद है। चतुमोच्च प्रवधिकेवल हासन चारिप्रावरणाचारि निद्रा निद्राषेद है। प्रचलाप्रचलाप्रचला स्त्यानगृह नाभेद दर्सनावरणी मोह दाईसवेदेहै। दान लाभ भोगउपभोगवल अंतराल पंचस वसेत्तालीस घातीयानिये दहे ॥ ६६॥थमोहकी कति पढाईस नाम सवैया इस अनंतानवेधी अप्रत्याख्यानीप्रत्याख्यानी से ज्वलन चौरीको धमान माया लोभ है। हास्यरति परति सोकभयजग्पसानारीनरसंठ एपचीस चारि तकैौक्षोभ है। मिथ्यात समै मिथ्यात समैप्रकत्तिमिथ्याततींनीदर्सन मोह दर्सन कौचा भहै। अठाईस मोहनीये जीवन का मोहतहेनासे यथाख्यातसम्यक चारित्रमोभहै॥६ ८ अथच्प्रधातीयाकी प्रकृति एकस। एकत या आठ कर्म की स्थिति उतकष्टजघन्ययथा | माता प्रसाना दोयवेदनी नरक पसूनरसुर-पावचारि उंचनीच गोत्र है। नामकी तिरान् Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • एक शत एक प्रघाती =पादितीन अंतराय स्थितितीस होतेहै। नामगोतवीस मोहनीसन रि के के रिधिया की सागर तेतीस उद्यानहै। वेदनी चौवीसधरी सोल नाम गोत पांचौ च्यंतर नहंती विना सैग्पानजेो तिहै । ६८। अथनामकर्म प्रकतितिराणवैनांमसेवे या तनबंधन संघात्तव रसज्ञात पंच संस्थानसं घन षट्याठफास हे गति अनुपूर चारिदाय विहागंध=पंगतीन पेस ठि एव स्थूलभाप्त है। पर्याप्त थिर सुभा स्वर आदर दोदे। निरमाण स्वास है। अपघात पर घात त्र्यगुरुलघु प्रताप उद्यो करजी व दो अधनासहै । ७०) अयजेव द्वीपपूर वयश्चिमव्यौरा ॥ जेवू द्वीप कलाष मेरु इस ही हजार भद्रसाल दोवन सहस चवालीसके। बाकी छ्यालीसमाधौ आधदोनो ही विदेहदेवार एपवनउनतीसस वाईस के। तीनो ने दी यौनचारसत्त चारा ही वृक्षार दोह रसाठी ही विदेह व चईस के। सत्तरै सहस सातसे ती नयोजन के नमों चारतीर्थंकर स्वामी जाग दी सके । ७१| दक्षिएउत्तरव्यो। जन द्वीपद क्षिनउत्तर लावयोजनकैौभाग एक सौ एकभरत पाइये। दोय हिमव नसेल च्यारि हैमवत क्षेत्रमहाहिमवन आटसेोलैरगाईयै Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वतीस निततरातरेस ठिउधै तिरेस ठिविचमें विभाग चैास ठिवताइये। भागपाच छवीस कला छह मोचन उनीस की पढत्तरि चैत्यालेसदांमीस नाईये ॥ ७२॥ अधोलोकश्रेणीवध विलेसे ख्या सबैपा ३१|| सातनरकभूमिउनंचास पाथरे निवास इंद्रक भीउनंचास विचमां ही विलैहै। पहला सीमंतचारि दिससैन उनंचास चारि विदिसामै पढतालीस विलैहै। पा दिसाश्रेणीबद्ध तीनसेनासीभये प्रागै पाठ आठ घंटे अंत चा रि मिले है। सवसान विसैचारियोजन असंषधार दद्याधरधरम करे तिनो दुष गिले है । ७३ | प्रथउर्धलोक गोवध विमाण संख्या। सवै ||३१||अरधत्रेसठियटलक हे आगम में चेस ठिही इंद्रक वि मानविचजानिये। पहले जुगलता के पहले कैरिजुना मजा की चारि दिसा में गी वासठि प्रमाणी या चारो दिसाड तालीस - प्रागे घटे चार चार अंतर चारिउंचचा रिठी कठानिये। श्रश्रेणीवप तरसे मोल योजना सोख्य सिद्धवारे योजन में ध्यान मां हिमानिये ॥७४॥ पयलवनोदधि के मांहि २००८ विलसेय था। सवैया ३१२) लवनोदद्धिचारिदिसामाहिचारक प क है हैमगंग जम तिनको प्रमान है। चारि विदिशामें चारिपेट पर उंचेदस हजार एके नीचे और मुखकै। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चर्चा:सः वयान है। पेटच उंचेएक, एक्लायपोजन के नीचे मुखताकै दस हजार मान है। पंता १२ दिसाहना र उँचे है हजार नाँचे और मु खसावे धन्यज्ञेनापान है। १५ बेसठिइंद्रकविमानत काव्योरा। सवैयाइ पैतालो सलाम को ह इंद्रकऋजु विमान सर्वार्थ सिद्ध अंतर एक लाख कहा| चवालीस घटनेत दिवा सदिदार उचे उचे एक एक के ता घाटतील हा सत्तरिह र नौसे सतरि सठियोजन हतेईस अधिकुभाइ कती सका है।। तिस रिइंदुकनाम तेस वही जिनधामवेदोमनवच काय तिनकी सोभामह ॥ १६॥ याठ पुत्र तिउपर केगु शास्थान "नौच उदपावै छवीस प्रकतिजहांवधता ही उदेश्रविवाकी नीच रास्थाननधिकै चउदै ताका न्यारा ॥ सवैया ३२॥ देवगतिद्यावद्यानपुरखीपक तितीनैवेक्रिय का हारक ] चारहै॥ प्रजप्त ए आठो उंचे वर्धनी चे उदेश्वावे संज्वल लोभ विनां पदह निहा है। हांसर तिभोगा। लानिनर वेदना का अपर्याप्तसाधारधार है।।तथ्वीसबंध उदे साधनीचे बंधउंचे छयासी विचारहै ॥ श्रपरावर्तन कथन।भावपरा तन-पनंतभावभवि कालभावपरावर्तन अनंतभागकाल है। काल परावर्तनानंत Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गक्षेत्तका क्षेत्तको अनंतभागपुगाल विसाल है। ताकैौ श्राधौनाम अर्धपुलपरावर्त न फिरतौर हायहायानीभा है। ता हीसमें सम्यक उपजतेका जोगभयौ -और कहासम्य कतालर का का ख्याल है | ७८) भावपरावर्तन अनंततेकरे है जी एकभावते अनंतभौ कपरावर्त है। एक भौसेती अनंतकाल परावर्तक र तकालते अनंतक्षेत परावर्तक रहते है। ए कक्षेवतेपनं तपुल परावर्तन पंच विषै फेरिआय मि घ्यावस पर ते है। सात कै विना सजि न्हे सम्पक प्रकाशते ई द्रव्ययेत कालभावभावते निकर तहै। ७८। पांचलब्धिकथनस चैत्रः॥ ३२॥ याव रतैसे नी हे| यय ही पै उपसम है दान पूजा उद्धत विसोही उपयोग है। गुरु3 | पदे सतत्वायाने मोईदेस नाहै-अनंत कोरा कोरीकर्मकीथितिप्रयोग है। जग में अनंतवारच रलब्धिपाईइन कलब्धिविनांसमक तियोग है। प्रधो-अपूर्व अनहितकर्णाति न करिमि थ्यामा हिपा छैचोथानयोगहै । ८० । अयनंदी स्वरद्वीपयथा॥ सवैया॥ एकसौत्तरेस ठिकरो रचवरामीलाष जोजन चौरा द्वीपवावनपहार है। दिसाचारित्र्पंजनजोजन चौरासी हजार से दधिमुखजोजनदसहजार है । र तिकरहै वत्ती सयोजन हजार एकलवे चौरे उंचेसस्टोल Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के प्रकारहोसवयरजिनभौनवावनविराजतेहैवर्यतीनवारकरदेवजनकारहै।८। मेस्य यासवैया३९ मेरुलायसननडउंचानिन्यानवेहजारहेलिकाचालीसवाल अंतरविमानहै नीचभद्रमालयन दिशाचारिजिनभौनपोचतपैननचेत्यालचारभासह सादेवासटिह जारसौमनसवनगाश्चैत्यालेउंचाउंचासहमछतीसवधान है। तहोवनपडुनचत्पालेवारस वसोलेमनवचनकायसेतीवेदीपापहानहै। दशमगोलाजडतलैदसहजारनीचको मिमैहजारदहानंदनपेकहाहै। नोहजारनाप्सचावनमारकहनही सोमनसवयालसवहत राहोपडकहनाएकवीचारचाकाचौसचौरानुवनपोडकसादहा।सोमनसनंदन पाचौकभनमालवाईतहजारपूर्वपश्चिममेकरार चौदागास्थानत्यागउत्पतिक यनाछिप्पयामितीणसंजोगतीनममरणानपावसातवाहनामग्यारमरिचौथो आवे पथमचरगतिजायदतियाविननरकतीनातिचिोयेपूरव भावबंधतेचहतियार तिापंचमेतायारमसातगुणमरैस्वामअवतविदाइववादसथानतजिअजाधमारत वपरवानवमेंगुनयानपत्तिलिपी॥३६॥सवाशापत्यास्यानीचारश्रीप Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्याख्यानी चारिभेद मंज्वलन तीनन वनोकषाय जानिये। एकेंद्री विकलव्य था वर=प्राताय न दोन सूक्ष्म औ साधारण जीवनको मानिये। निद्रानिद्राप्रचला परस्यानग्रद्विनीतीने महाघोटीक वह नठानीयै । नरपसुगतिमान पूर्व प्रतिचार नौमगुन थानक में छत्तीसभा निये। ८५। जिनवानीकेप दे की संख्या। सवैया। सोलेस चौतीस करे। र लाख तिरासी उशाहत रसेश अवनीशी र राम्री । इक्यावन को डि-आठला पसहसचौरासी छे से सादे इकईसए सी लोकपखी ये ताको पद एक जोर इक सोबारे किरो र तेरा सोला ष स हत अठावन देषिये। पंचपदएते सन द्वादशांग जिनवा निवेदोमन लायभेद ग्यान कैौविसे दिये। च्६। अथ चौदागुरा स्थानकटप र सत्तावन शाश्रवद्दारकथन ॥ सवैया३॥ः पलिल पांचो मिथ्यात्तदुजे नेतानवेधी ग्यार हम्प्रतप्रत्याख्यानीपा चौक है। तीन वेदती नसञ्चलन नये लोभ दशम सत्य उभैवच नमनवारक है। रिकिय को प्रप्रत्याख्यानी च स वचायच्या हा एक छूटैघट हास्य-पाटले लहै। सनिनभयवचन -प्रोट्) रिक तैरै मिश्रकारमा न चार गुणस्थानवर दहै। छ। चौदै गुणा स्थान विषैप्राववेधतथाउदै विवरण | मवैया३१९॥ नरक आावपहलेवं धउदैचौथेही Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लपसुवावजेवंधउदेपाचमेकहीनरचविचौथालावधउदेचीदवलोसुरश्चावसात बंधउदैचारिमलहानरपसुजीवनकीपसुनरावबंधवायतश्रागचदिवेकोनसकति हीचारभावतीजेगुनथानकमेवधेनही भावनासभऐतिद्वंदोतिनकोसही।८८ अाठमपानकनिदिनहीचारथानकसाप्तादनजायनहीतीर्थकरसताजहानपा सूत्मारकामीणामसरीरामपर्यपरमावधिसर्वावधिमोक्षजाहिसोकथनात । शाभूमिनीरागिपानकेवल धोआहारकनरकसुरगआठमनिगोदनाहिगाईयो । सूलमनरकतेनवायमनमासादनभौनत्रकपसमेनतीर्थंकरपाइयोसवरीसत्मा . कहेहैकपोतरंगकाागदेहकोसुपेदरूपभाइयो वियुलमनपयेयधोपरमधि सर्वोधिटीकलहमोक्षतातेइसासोतनाश्याच्या सातनसोलेस्वतियाग्रह उत्पतिकथनाप्तवया३॥ साततैनिकसिपउछठेनरकवतनाहिपांचमहावतते चायसतीमोक्षमारहै।तीजेदूनेयहलेतेश्रायजिनराजहोतमौनत्रकीएकेंद्रीधारे हिाहादसमस्यासेतीपेचेंद्रीपसुहायउपरकोभायाएकनरककोधातारार . Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सौधर्मशीलोकपाललोकांतिकसवार्थ सिहमोतलहनमोकारहै। सोलकषाय दांततयाफलाप्तवया३शयाहनकीरेषभपाथाकोवाप्सविडाकमोरासमचारोनर वामाहिलेधरोहललीकहाइभमेषासिंगगाडोमलकोधमानमायालोभत्तिरचनेमे पौ। रथलीककाठयभगोमूतदहमेलसेकषायभाजीवमानुष मेधोतराजलरेयवेत दिंडषुरपाहलदरंगद्यानतएचारोभावस्वारिद्धिकेकशिचीत्तीसभावचौदानस्थानक विवेकथनाप्सया३॥पहले मिथ्यातचभव्यदूसरे विभेगतीनलेस्पानीनअवतनरल धावचारमापूसुपाचलेश्यादायसातलोभदैसलगाकोधमानमायातिनवेदनाविवार मोसतेतैरनरभवजीवत्तसिइचोदयंचलधियानचनुवारमाचीतीसभाव कहेचोदानस्थानकवतैउनीसवारमहेनविकारो।उनीसभाववाएगुणवा नकासवैया३शाउपसमनायायारहवेदकहेचौथेसाततायकहचायवाददसवता याचम्पानतीनतीजवारमनययेयछठेवाचारिताछठेदसेवघाताचीपंचमल वधिनायकदरसम्यानतीचौदैनमौभावउनसनराचमेनोधितीजवारठ। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ चर्चास० पसमचारितहीम्मारैद्यायक चारित वारे चोदे कर्मवाचमें । २३| चारोगतिमेंच्चाश्रव द्वारम किन दोय विनांनरपचपन द्वार आहारक दोय विनात्रेपन विजेचे है। औदारिखदेोय होय आहारक बंधने पांचविन देवन के बावनकै। संच है। प्राहार व होयदायादा रिकनर नारी छ हौ विनाइक्यावननरक में प्रपंच है। चारो तिमां ही प्रेते प्राश्रव निनमों सिद्धभगवान जहांना हीरं चहै । २४च्या रोगतिमंत्रेपनभाव व्यारा॥वै ३१|| सास्वतौ स्वभावपंचभावसिवंदत होतोनोगतिविनाना पचास होस है । दाय कके पाठ समकित विनामनपर्ययचारित दो ग्यारै विनपसूउनतालीस है। शुभले तीन नरनारी वेददेशयत एछ भाव विना नरक ते ती सहै । हीन तीनले श्या मंडवे रीभावना हि शुभलेश्यानर नारीसुर के चौतीस है। ८५। अथ षट लेश्या वा लेमिथ्यात नस्थान व्यापक लिए कसावीस बंधकी। सवैया ३१ | विकलत्रयस्चम साधारण प्र प्रजापति नरकगतिवान पूर्व नरक आव है। मिथ्यात्तमांहि लेश्या तिनवाधैर कसौस त्तौ नवौ पिनापीत केोत्तर सौभाव है। पसुगति द्यावयानपुर वीउ दोत चारि • Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कललेश्याएकर्वधपुनचावहै।२६॥चौरासीलापनोवोनियोगासवैयाशासातला प्रथ्वीकायसातलाषअपकायसातलायत्तेजकायसातलाषवातहे।सातलापनित्यचौइतर सातसाधारणदसलाषप्रत्येक एकरंद्रातहीवतेचौरंदीदादोमानुपचौदहलावनार कवावपसुचारचालाघजातहचिौरासीलापनातमोपरतिमाकरोहमतिमारी किकियघातहै।छात्रसहिपतिनामावेयानरक पशुगनिभानपूरवीपतिवार) पिचेंद्रियविनाचारचातापउद्यातहै।साधारणसूत्मोपावरपतित्तौनावावक्निाती नमिलेसोलेहोतह।सैतालीसघातीयाकीवसठिपकतिसवनाप्तभयतीर्थकरण्यानमई जोतिहादेवनकदेववाहेतरैपरमयूयतिनहीको विवपूनहोतउंचगोतहचारिण तिविधवंधपतिनामइकसानीसा सवैयाशा श्रीदारीकदोयाहारकोयनरकदेव|| गतिश्रावधानपूर्वोदसौवषानीहै। विकलत्रसूक्ष्मसाधारणपर्याप्तसोलेक्निाप्ततचा रीदेवरूपवानी हे डिसेंद्रीयावर आतापतीनपतिविनानरकमेएकएकवंधजोगजानी, होतीर्थकरचाहारकवि पतुसोसतरनाकैवीप्सासौनासै सिवयानीहै। डेटाचोरोगति Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ चर्चा के जीवथिति। सवैया३१॥ मूदिभू मिनारे रखर भूवाईसजल सातवात तीन तह काय की दस हजार पंधि की वहत रिसहस वियाली ससांप च्या दिगिनतीनं दो इंड्रीवर सवार है । ते इंद्री दिन उन सास पौइंडी छ मास सिरीसर्वपूर्वमानव अवधिभर है। मत कोरियर व मनुष्य पस् तीन पल्पसाग रतेतीसदेवनख की सार है। १००। अठाईस नक्षत्रत तारो की गिरती ॥ सवैबा ३२॥ षटपां तीन एक घटतीनघरचारि दो दो पांच एकएकचै। षटती नहै। नव चो चौ तीन तीन या चएक सौ ग्यारह दोय होय बत्तीस पांच तीनतारेल है। ऋतिका दिपठाईस के सब दो सैइकतालीस एक एक के ग्यारह से पार हसर द है। दोयलावसठ सठि सातात सक्यावन सबमे चेत्पाले प्रतिविं ववानीमें कहै । १०१। सप्तभंगवानी के नाम सरूप ॥ सवैया ३२॥ द्रव्य क्षेत्र कालभाव अपने चतु अस्ति परम चतुष्टय से नास्तदर व है। आपस है पर से न एकसमें अस्तिना सत ज्यौ केत्यों कहेन जॉय अवतव्य है। स्लिक है ना स्त को अभाव अस्ति अवतव्य नासक है अस्तिनाहि नासक-पव तव है। एक ठेकन जांय अस्तिनांमवतव्य स्याद्वाद सातभंग सधै सव है । १० केवलम्पान की अनंतभाषातरूपः सवैया ३२|| जीव है अनंत एक जीवके अनंत गुनएक Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णके असंख्य परदेसमा निये। एक परदेस में अनंत कर्मवर्गणा है एक वर्ग नाच्ने त परमान्दा नि ये। अणूमे अनंतगुरा एकगुरा में पनंत पर्योय एक वेच्अनंतभेदजानिये । तिनतें हूवेनंत ताते होया अनंत सवज्ञानस में माहिदेवतो व या निये। १०३ | पूरनता||प्ययाचिरचामुख सोभने सुनेप्रानोन ट्रीकांनना केई सुन्य घरजां हिना हिमाषेपिरानन । तिन कौल डिपार सारयहततव नाई। पटतसुनते है वुद्धि सुद्धिजिन वानी गाई। इसमें अनेक सिद्धांत को मथ नवाशद्यानत कहा। सवमा हिजो वको मरम है जीवभाव हम सरदह ॥ १०४ ॥ इतिवरचास तक संपूरणे॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'द्रव्यसे दिगाद्याजयेत्तत्तः परममूत्तैत्वकथनेन व समरस इत्यादिसूत्रमेके तलोपिकमकरेत्वेप्रतिपादन रूपेणा युग्गलकम्मादी गां इतिप्रभ्टति सूत्रमेकं तदनेतरं भोक्त्वनिरूपणाप्यववहारासुहरुः खं इत्यादिसूत्रमेकं तत्तः परंखदेहप्रमितिसिद्धार्थे श्रणुगुरु देहपमारणे। इतिप्रभृति सूत्रमेकं ॥ तते। 'पिसंसारे जीवस्वरूप कप्यनेनपुढ विजल इत्यादि गाण्यात्रयं तदनेतराणेक्कम्मा प्रहगुणा इति प्रभृतिगाथापूर्वीदेनसिद्द स्वरूपकम्प्यनः। उत्तराद्वैन पुनरुईगतिस्वभावः ॥ इतिनमस्कारादिच | तुईशा थामेलापकेन मय्यमाधिकारेसमुदायपातनिका ॥ छ ॥ [पणेदानींगाप्पापूचीद्वैन से | वधाभिधेयप्रयोजनानिकथयाम्पुत्तरार्हेनचमंगलाप्येमिटदेवतानमस्कारेकरामि' इत्यामि प्रायमनसिधत्वा भगवान् सूत्रमिदम तिपादयति ॥ ३ ॥ गाच्या जीवमजीवेदच्चे चिराचरवत हे जसरि ॥ देविंद वैद चंदे ॥ ॥ वेदेनं सद्यदागोरसाग॥ वेदेइत्यादि किया कार कसंवेधेन | पद खेडेनरूपेनच्या ख्याने क्रियते वंदेएकदेशश्रुद्धनिश्वयनयेन स्वश्रुद्धात्माराधनलक्षण Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a n d- stakamumanna Kutumorian-IRKARIMARIES erumemaAMPA mean खपरमात्मादिनवपदार्यानाचस्वरूपमुपदिसंगपुनरपिकप्पभूतेनतेनभगवताजिणवरवसहे जीवास्तिकायादिपंचास्तिकायानापरमत्लाजोतिःस्वरूपशुजीवादिसप्ततत्वानोनिः । वयातहिलक्षणापुजलादिपेचमजीवादिभष्मजीवश्वयंचतवचिचमत्कारलक्षण हिछकायतेमाकजीवमजीवेदवेगजीवाजीवश्यगतप्यासहजसुद्धचैतन्पादिलक्षणेजी प्याकथितलक्षणेागाशतेनवेद्यलाईवश्ववेद्याजेणायेनभगवताकिंस्तणिगिनि सावितादेवाणोनिवत्तीसाशकण्यामरचवीसावेदोस्रोयतिरियमणुऊयालाइतिगा। किविशिरणदेविपविश्वदेवेशदिवंगमाक्षपदामिलाविया याभवणालयचालो प्यवदेसवदासर्वकालाकेनासिरसा उत्तमोगेनकंकतापन्नतातकवीतासर्वज्ञे रममुनिश्वयनयनपुनवंद्यवेदकभावोनास्तिसक कतीप्रहेनेमिसझातदेवसक भावलवेनाप्रसनव्यवहारनयनतत्प्रतिपादकवचनस्पश्व्यस्तपनवेदेनमस्करोमिप -- asiasma ommaananduranianimaAN--.४ -- --.hun dation.and .mmmar Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्यसे M मजितमिष्यात्वरागादित्वेनवोदेशानिमानसयतसम्यारयादयस्तपोवरागणधरेदेवास्तपोजिन वरागारमाप्रधानाजिनवरवषभस्तोर्यकरपरमदेवरतनजिनवरस्यभेोतिबाधात्मशा खेयद्यपिसिइपरमेष्टिनमस्कारउचितस्तण्यापेव्यवहारनयमानित्यप्रत्युपकारस्मरणायमहत्यरमे टिनमस्कारावकतःगतमाचोक्तगग्नेयामास्पिससिहि शप्रसादात्यरमशिनः इत्यस्तगुणस्तर वशाखादामुनिपुगवास अवगाण्यापराईननास्तिकलपरिहार शिष्टाचारमपालन पण्पावा मिश्वनिर्विन्नशाखादातनसंस्तुतिः॥छातिालाकथितफलचतुष्यसमा क्षमाणायेपर्क रास्तुशास्तस्यादतिधादेवतारयाधिरुताऽभिमततधादेवतायाविधानमस्कारक्वेति इत्या दिमालव्याख्यानेचितमेगलोमत्युपलक्षण उत्तयामालाणमित्तहेगपरिमाणणामत्त हरकत्तागवागरिमणिपकावरकाणउसत्यमारि उपकावरकाणउव्याख्यातासका.. तीसायारेजमाचार्यशकिंगसशाखापछापश्चाताकिसत्वाधानवारियव्याख्यायकान Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ e . लप्पिपडप्याधिकारानाकर्णभूतानमगलाणमित्तहेपरिमाणणामतस्यकत्तासमेगलनि मित्तहेतुपरिमाणनामकतैज्ञामितिमाप्याकणितक्रमणमगलाधिकारषदमभिजातव्ये गाथापूर्वीईनतुसंवैधाभिधेयप्रयोजनानिचितानि कयमितिचेताविज्ञानशोनस्व) भावपरमात्मस्वरूपादिविवरणभूतावतिययाव्यापयतुगततप्रतिपादकम्नमितियारया नव्याख्ययसवेधाविज्ञेययदेवव्याख्यसूत्रमुत्तातदेवाविधानवाचकप्रतिपादकभरापत्ते अनतज्ञानाद्यनतगुणाधारपरमात्मादिस्वभावाभिधेयोवाच्या प्रतिपद्यरत्यभिधानाभि यस्वरूपवाहव्याप्रयोजनेतुव्यवहारेणषटश्व्यादिपरिज्ञानानिश्वयननिजनिरजनभुशा मसनितिसमुत्पन्ननिर्विकारपरमानदेवलक्षणसुखामतरसास्वादस्पस्वसंवेदनजाने पर मिनिश्वयनपुनस्तत्फलरूपाकेवलज्ञानायनेतगुणाविनाभूतानिजात्मायादान सिहानतमु खावासिरिनिगराचनमस्काराणायारण्यातामयनमस्काराणायामयमंयक्तीजीवश्य ... L/manandinin Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसे ४ तत्संवेधेनवाधिकारान् संक्षेपेणासूचियामीत्यभिप्राये मनसि संप्रधार्यसूत्रमिदे निरु पयामिः ॐ जीऊडव आमऊ गम्यमुचिकशास दरमा भुवा सपारका हिंदू साचिगईजी वो निश्चयन येणादिमध्यांतवर्जितः स्वपर प्रकाशकाविनि स्वरनिरनिरुपाधिशुद्धचैतन्य|| 'लक्षणानिश्वयमानयद्यपिजीवत्तित्तथाष्पमुद्दनयेनानादिकर्मवेधवशादभुद्दद्रव्यभावना गोज्जीवतीति जीवः। उपगम उशुहज्यौकिन ये नयद्यपि सकल विमलज्ञानदर्शनोपयो 'गमयस्तप्याय्यमुनयेन क्षायोपशमिक ज्ञानदर्शनेनिक्तनिष्पन्न त्वा तज्ञानदर्शनोपयोगम योभवति प्रमुत्ति" यद्यपिव्यवहारे गामूर्त्तिकम्म धानत्वेन स्पर्शरसगंधवणीबत्वा मूल्यी सहित त्वान्नमूर्त तथा पिपरमार्थेनामूतीती प्रियमुद्धबुदेकस्वभावत्वाद मुक्तेः॥कत्ता यद्यपि भूतायेनये ननिक्रियरेकोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभाबोयजीवस्त प्याय्यभूतार्थनयेनमनेोवचनका यव्यापारो। त्वादककर्मासहितत्वेननुभाशुभकर्मकर्त्तृत्वात्कर्त्तीसदेह परिमाणोयद्यपि निश्वयेनसहजभु Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकाकाशममिता संख्ये यप्रदेशास्तप्यापित्यव हारेणानादिकर्माचे चाधीनत्वेन शरीरनामक |म्मीदपजनितापसंहार विस्ताराधीनत्वाद्यादिभाजनस्थप्रदीपवत्स्वेद रुममाणाः ॥ भोत्ताय पियुश्यार्थिकनयनरागादि विकल्पापाधिरहित्तः स्वात्मोच्छ सुखामत भोक्ता तय्याय्यार शुरुनयनतयाविधसुखामृतभोजनाभावात् शुभाशुभकर्मजनितसुखःखमा सत्वात् भार्त्ता संसारको यद्यपिभुरुनिश्वयनयेननिः संसारे तिष्टति तय्याप्प मुनयेनचतुर्गति भ्रमरणारूपसे सारविद्यते । इति सेसारस्यः सिद्धेो व्यवहारेण स्वात्मोपलब्धिलक्षणसिद्धत्वप्रतिपक्षभूत कमी देयेनयद्यप्यसिद्धस्तथापिनिश्वयनाने तज्ञानाद्यनंतगुण स्वभावत्वा सिद्ध: सासए वेगुणविशि राजीव निस्ससोहराई। यद्यपिव्यवहारेण चतुर्गतिजनकम्मीदयवशेनासीद्यस्तिये शातिस्व भावस्तप्यापिनिश्वयेन केवल ज्ञानाद्यनंत गुणाचा शिलक्षणमाक्षगमन कालेबिस्स सास्वभा बिनागतिवति त्रपद खेरनारूपेन शब्दार्थः कथितः मुद्दामुन यद्वय विभ्योननयाथी Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसः ५ य्युक्तः इदानीमतार्थः कथ्यते "जीवसिद्धिश्वानीकंप्रति ज्ञानदर्शनोपयोगलक्षतो नैयायिके प्रति-अमूर्त्तजीवख्यायनं भट्टचाहीकेह एमतिकर्मकरीत्वस्थापनेसा व्यंप्रति। स्वदेहममिति पननैयायिकमीमांसक सौख्यत्रयमति कम्मैफलभोक्तत्त्वव्याख्यान॥ वैोद्वेप्रति संसारेच्यारख्या नसदाशिवेप्रति सिद्धत्वव्याख्याने भरवावाकइयंप्रति॥ ऊर्द्वप्रतिस्वभावकथनमेडलिषेय कारप्रति ॥ इतिमता ज्ञातव्यः ॥ श्रागमार्थः पुनस्त्यात्मा अनादिवद्धइत्यादिप्रसिशेोपिच थुइन याश्वितजीव स्वरूपमुपादेयेोबेच हे यमिति ॥ ॥ इतिथे| वादे यरूपेणा भावाणीप्यवचे। | दुव्यः श्वशब्दन यमतागम भावार्थेनय संभवव्याख्यानकाले सर्वचज्ञातव्य: ॥ इतिजी वादिनवाधिकार सूचनसूत्रमा प्यागता अतः परेादागा। प्याभिन्नैवाधिकारान विवरण "तिविस्तारयति ॥ तत्रादोजीवस्वरूपेकव्ययति ॥ तिक्वालेचर पारणा । दियक्लमा उमारायें गोयववहारास जीवे ॥ च्छ्रियागदेषु चेद गाजरस ॥३॥ शतिवालेच पाएगा। काल Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उयचत्वारःप्राणाभवतितिकाईदियावलामाउमाणपाहायप्रतिद्रियमुनेतन्यपा सालमातशत्रुपक्षभूताक्षायोपशामिकरियप्राणःसनेतवीपलक्षवलमाणादनकभा गमितामनावचनकायक्लमाण: मनाचनेतचैतन्यमाणविपरीततविलक्षणासा दिसातवायुमाछासपरावतीत्पन्नखदरहितविशुचिमाणाविपरीताशात्री नपानपातमवहारासाजी भूतेश्चतुर्मि-श्यभावपाणयेप्यासंभवजीवतिजीवध्यति जीनीतिपूर्णवायाव्यवहारनयात्मजीवाश्याश्यादिव्यप्राणाअनुषचरितासभूतपव हारणभावश्यिादिक्षायोपशमकभावप्राणा: पुनरगुनिश्वयनसत्ताचैतन्यबोधादिः शुभभावपारण निश्चयनयनातिमणिछायणयदाउनेदणाजस्सा शुनिश्वयनयताशके गाउपादेयभूताशुश्चेतनायस्यसजीव करावेगवछरकभवसारिखसानाणियापियराय चुच्चपहंडियएणमडअनादेहत्ताजायलाइतिदोहककथितनवरातीचीकमता HadidhaRA PARImmunismakawan emaamanapasun-- .m di Anim Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्य अनुसारिश छासंबोधना जीवसिद्धिव्यारव्याने नगाप्या॥ ॐ ॥ अप्याध्यात्म भाषयानयलक्षणोक थ्यते। सबैजीवाः शुइबुद्वैकस्वभावाइति शुद्धनिश्वयलक्षरता रामादयरावजीबाइत्पचरूनि श्र्वयलक्षण गुरगगुणेनारभेदेपिभेदोपचारइत्व सद्भूतव्यवहारलक्षणेचेति तप्याहि जीव स्वकेवलज्ञानादयो गुणा इत्यनुसह्ज्ञेोत्पन्नानुपचारित संज्ञशुद्ध सद्भूतव्यवहारलक्षण जी विस्ममतिज्ञानोदयो विभावगुणाइत्युपचरितसेज्ञाशुद्द सद्भूतव्यवहारलक्षणे॥ मदीयादेह इत्यादि संश्लेषसंवेश्धसहितपदार्थेपुन सुचरितः संज्ञाः सद्भूतव्यवहारलक्षणं यच नुसे म्लपसंवेधानास्तितत्रमदीयोदेह इत्याद्युपचरिताभिधानासभूतव्यवहारलक्षणे मिति। नयचक्रर्यथाभिधानोक्रममूलभूत संक्षेपेननयमज्ञात्तव्यमिति ॥ प्रप्यगाप्यात्रय पर्य तेज्ञानदर्शने! प्रयोगद्दयेकच्यते तत्र प्रथमायायमुख्यवत्यादर्शनोपयोगव्याख्यानका राति पचमुख्यत्वमितिवदतितत्रयथासंभवमन्यदपिविवक्षितलभ्यइतिज्ञाता व उ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ anima उवियप्पा देसणणारचदेसोचायचरकुलचरकुरीही दिसणामधवेवलेणेयेसाचतुद र्शनमचक्षुर्शनमवायशीना अयप्रहाकेवलदर्शन मितिविज्ञेयेातथाहियात्मारिजा वकालवयवर्तिसमस्तवमासामान्पशाहकसकलविमलकेवलपोनस्वभावस्तावत्यम्या दनादिवामिवेधाधीन सनरतुर्दर्शनावरणक्षयोपशमाहिरंगाश्व्येश्यिालेवनाच्चमूर्तम त्तासामान्यनिर्विकल्पसाव्यवहारेणप्रत्यक्षमापनिश्वयनपरोक्षरूपेणोकदेशनयत्यायति तञ्चतुदर्शनातवीनरसनप्रणश्योवेश्यिावरणक्षयोपशमासकीयदहिगाइयोलि लेवनाचमूर्तसत्तासामान्य विकल्परहितं यत्परोक्षरूपनैकदेशेनयत्पश्यतितदचक्षुदर्शन तथैवनाशेश्यावरणक्षयोपशमात्सहकारिकारणभूताएदलपनाकारश्यामनावलेवनाच्च मूतीमूर्तसमस्तवस्तुगतसत्तासामान्यविकल्परहितेपरोक्षरूपणवत्पश्यतितन्मानसमचक्षुद शेने सणवात्मायक्षवाशनातरणक्षणाशमानमूर्तवस्तुगतसत्तासामान्यनिर्विकल्यापार % 3A Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 , ༡ | शोक देशम त्वदायत्पप्रयतितदवाधिदर्शनं यत्पुराणः सहजाशुरु सदानेदेकपरमात्मत्तत्वसंवात्तिमा सबलेन केवलदर्शनावरण क्षयेसति मूर्त्ता मूर्त्तसमस्तवस्तुगत सत्तासामान्यविकल्पर हितंसक । समन्यारूपेौकसमये पश्यतित्तदुपादेय भूतेज्ञायिकेकेवलदर्शनज्ञातव्यमिति ॥ अथ मष्टविकल्पज्ञानायये। प्रतिपादयति ॥ गणां [अहविगप्पे म दिसुदि उही अरणारण खारा।।। शि: महायज्जय केवलमविभचचरकपरोरकमेयंच मरणा सोडवियय्यं ज्ञानमष्टविका त्यभवति : मदिसुदिरही अशासारखा खारिणमत्राए विकल्पेमध्येमतिश्रुतावधये। मिथ्यात्वे! |दपरशेन विपरीताभिनिवेशरूपात्वज्ञानानि भवेति गत्तान्यवशुद्धात्मादितत्वविद्ययविपरीत भिनिवेशरहिततत्वेनसम्पादृष्टिजीवस्यसम्पाज्ञानानिभवेति मणयज्जयकेवलमवि मनः पर्ययज्ञानकेवलज्ञानमण्येवमए विधेज्ञानं भवतेि ॥ पञ्चरक परोरक भेयचः प्रत्पक्षपरोक्षभेदेच अवधिमनः पर्यय हयमेक देशाप्रत्यन्ते विभेगाव धेर विदेशप्रत्यक्ष : केवलज्ञानसकलप्रत्पत्ते Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषचतुष्टयंपरोक्षामिति इतिविस्तारः प्रात्याहि निश्चयन येन सकल बिमला खेडेकप्र | स्पक्षप्रतिभासमयके वलज्ञानरूपस्तावत्प्रात्मासचव्यवहारेणानादिकमेवं धनला दितः सन्मतिज्ञानावरणीय क्षयोपशमाहीयतरायक्षयोपशमाञ्चबहिरंगपंचेंद्रियमनोव लेवनाज्जमूर्तीमूर्त्तवस्त्वकदेशन विकल्पाका रेणपरोक्ष रूपेणासो व्यवहारिक प्रत्यक्षरु वणवा यज्जानातितत् क्षायोपशमिकं मतिज्ञाने किंच॥कास्थानावीयात्तरायायें। पशमः केवलिनातुनिरवशेषायेज्ञाने चारिचायुत्वत्ता सहकारीसर्वचज्ञातव्य: ॥ सेो व्यवहारलक्षणे कष्यते ॥ समीचीनोव्यवहार : संव्यवहारः प्रवत्तिनिवृत्तिलक्षणः संव्य बहारो भगपते॥संव्यवहारे भवेसाव्यवहारिकं प्रत्यक्षेण्यप्याचररूपमिदमयादृए मित्यादि तथैवकृतज्ञानावरण क्षयोपशमान्नाई दियाचलेवनाञ्चप्रकाशोपाध्यायवहिरंगासहर्क रिकारणा चमूतीमूर्तवस्तु लोकालोकच्या सिज्ञानरूपेण्यदस्पऐजानातित्तत्यरोदे शु Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यस: $ समितिवचनात् कस्मात्सामान्येजीवलक्षणां भणिते "बबहा राज्यवहारात् अत्रकेवलज्ञानदर्शनंप्रति मुझसद्भूतशब्दवाच्चोऽनुपचरितसद्भूतव्यवहारः सस्यत्ज्ञानदर्शनापरिपूर्यापेक्षया) पुनरश्रुइस तशब्दवाच्यउपचरितसद्भूतव्यवहारः कुमतिकुवतिविभंगजयेपुनरुपा चरितासद्भूतव्यवहारः मुइन या शुद्देपुसद राणा युद्धनिश्वयनयात्पुनः युद्दमवउंकेवल ज्ञानदर्शनद्वयेजीवलक्षणमि तिः वित्व ज्ञानदर्शनोपयेद्यविवक्षायामुपयोग प्रशब्देनाविवदितार्थपरिवित्तिलक्षणेोऽर्यग्रहणम व्यायारोपाते" शुभाशुभशुद्धोपयोगत्रयविवक्षायापुनरूपये शव्देनशुभाशुभशुद्ध भावनेकरूप मनुष्टानं ज्ञातव्यमिति प्रत्रसहजयुद्धनिर्विकार परमानंदैकलक्षणास्य साक्षादुपादेय भूतस्याऽ क्षयमुखस्योपादानकारणत्वात् ॥ केवलज्ञानदर्शनद्वयमुपादेयमिति सर्वनैयायिक प्रतिगुणगुणि भेदैकांतनिराकरणार्थमुपयेाव्यारव्यानेन गाप्यत्रयेगतेः प्रय्यामूत्तीतींद्रियनिजात्मद्रव्यसंवित्ति रहितेन पूर्वपचेद्रियविषयाशक्तेनचय उपार्जितं मूर्तकनडुदयेनव्यवहारेणभूतीपिनिश्वयेनाऽ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RADAILEAKS मूतीजीवातापदिश्यता वारसचाउचापाकासाअडाग याय। ति अनुसार पहायवेवस्मरसफ्वाधाोफासामहणिच्छयाजीरणासंतिारखेतपीतनीला रुणझसेनापंचवमी गतिक्तकटुकषायाम्लमधुरसंज्ञा-पचरसागसुगंधाधसेनाक्षणे चोपशानाध्यस्निाधरुतमारकर्कशगुरुलघुसंज्ञाःअष्टोस्पर्शानिच्छयामुनिश्वयनयात् मुइनुकस्वभावमुझजीवनसेनिअमुत्तितदेशाततःकारणादमून यद्यमूर्तःसहितस्यका कर्मवेधातिरताववहारामुतिगअनुपचरितामजूतव्यवहारान्यूयतः तदपिकस्मातवेधाो अनंतनानाद्युपलेभलक्षणपनादिकर्मबंधनादितिगतय्याचाक्तोकस्यचिन्मूतीमूर्तजीवल क्षणानपरिएपन्नालस्करणदोहवादिनस्सामिणतातम्हाप्रमुन्तिभावाणोतोहादिजीचस्स अपमनार्थःगयस्येवामूर्तस्थानमन गारसभावादनादिसेसारेषभूपितोपजीवःसएवामूतीम् । चेत्रियविषयत्यागनिनिरतरध्यातव्य छाअनिकियामू-टकोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावन - Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसं० Co कम्मीदिकर्त्तृत्वर हितोषिजीवोव्यवहारादिनयविभागेन कत्ती भवतिकप्ययत्ति ॥ ॥ युगालाकामा दो मन्त्रामं चाादोऽ शिळयदे।। चिदशाकमालाक्षा तुज्यासु भावासं ॥ अत्रसूत्रे भिन्नप्रक्रम रूपव्यवहितसंवर्धनेन ॥ मध्य पदगहीत्वाव्याख्यानं क्रियते ॥ प्रादा श्रात्माः द्योगालकम्मादी क नायवहारदोऽपुमालक म्मीदीनाकत्ती व्यवहारातस्तुपुनः तथाहिमनोवचनकायव्यापा रक्रियारहितनिजशुद्धात्मतत्व भावनाशून्यः सन्ननुपचरितासद्भूतव्यवहारेणज्ञानावरणादि द्रव्यकम्र्म्मणमादिशादेनदारिकवैकियकाहारकशरोरच्याहारादिषट्पयशियोग्पपुल पिंडरूपनाकम्मैणाकर्त्ता भवति । तथैवोपचरितासद्भूतव्यवहारेणावहि विषयच टपरानांच कत्ती भवति शिच्छपदोवेद कम्मादोण निश्वयतश्वतनकर्मणां तद्यथा शातदि विकल्पोणाधरहितनिःक्रियवरमचैतन्यभावनारहितेनय पाज्र्जितरागाद्युत्पाद कंकर्मत | डुदपेसतिनिः क्रियनिर्मलस्वसंवित्तिमलभमान। भावकर्मशब्दवाच्यरागादिविकरूपरूपये Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |तनकर्मणाममुनिश्वषनकतीभवतिअनुवनिम्वयार्थ:कथ्यताकोषाधिसमुत्पन्ना वाद तत्कालतमायपिस्वतन्मयावनिम्नयेणइत्युभयमलायकेनामनिम्वयाभ रयत सुघणयाधुभावाणशुभाशुभयोगवयव्यापाररहितेनशुश्वदेवस्वभावनपदापार मततदानेतज्ञानमुखादिशुद्धभावनाछास्थावस्यायोभावनारूपेणविवक्षितकदेता सुनिश्वयनकी मुक्तावस्यायोतुयुझ्नयनेतिकिंशुक्षायुकभावनापरिणममानामव कर्तृत्वज्ञातोपनवहस्तादिव्यापाररूपमितिमयताहिनित्यनिरजननि किनिजात्मस्व रुसभालनारहितस्पकर्मादिकत्वेव्याख्यातातितस्तत्रैवानिजमुहात्मानभावनाकतव्या एवं सारव्यात प्रत्येकानाकर्तत्वनिराकरणामुख्यत्वेनगाप्यागतामयपद्यपिशुधनयननिर्विक रपरमानदैकलक्षणमुखारतस्पभोक्ता तणायपशुभनयनससारकमुखासस्थापिभोक्ती भवतीत्यारव्याताबाहारामुलाला आयुबमल जालोपजीविvi! SITE India Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्य: दाभाया 11 ववहारामुरुगरकोपुग्गलकम्मेपलेप जेदि व्यवहारात्सुरखरखरूप सुजलकर्मपालेभुत्तो सकाकी प्राणिहायणयोचपणभावेरखुमादस्स निश्वयनय तःएनवलनाभावभुक्ते रसुस्फुरकस्ससेवेचन यात्मनःस्वस्यति तद्यथा आत्माहिनिजाम हात्मसेवित्तिसमुभूतपारमाणिकसुखसुधारसभोजनमलभमाना उपचरितासभूतव्यवहारेरणा सानिएपेशियविषयजनितमुख भुक्तातयेवानुषचरितासङ्ग्तव्यवहारेभ्यतरेसुखदुः। खजनकेश्व्परसंसाताऽसातोदषभुत्तेसण्वाशुक्षनिम्नयनहविवादरूपमुखकारखचभुत्ते सुनिखयेनतुपरमात्मस्व ... . मतभुक्तातिरामनयस्पवस्वाभाविकसुरखामतस्पभोजनाभावादिषयले जानःसन्स सोपरिम्मति तदेवातीप्रेयसुखसर्वप्रकाराणापादेयमित्यभिमायाणवेकीकर्मफले नमुक्ततिवादमतनिषेधार्थभुक्तत्वव्याख्यानरूपणास्त्रातमा छ। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nupamanarmanakamataoamarika a ममिताऽसेख्यमशामावोपियवहागणदेहमानोजीवइत्पविदयतिाछमा योहान्सर गदेविला मतमुलाया सा छमबसकाम जल्मोचा। 2 मणुगुरुदेरुप माणोगिश्वयनस्तदेहमिन्नस्यकेवलज्ञानाद्यनेतगुणरायमिन्नस्पनिजाक्षात्मस्वरूपस्या पलब्धेरभावात्तप्यवदेहममत्वमूलभूताहारभयमेथुनपरिग्रहसंज्ञामभतिसमस्तरागादिविना भावानामाशक्तिसनावाचयापार्जितशरीरनामकर्मत पेसतिशफारुहप्रमाणाभव तिसकःकावेदाचेतायेताजीवः कस्मात् उपसंहारपसर्वतशरीरनामकर्मजनितवि स्तारोपसंहारधाभ्यामित्यर्यकोवरातःगययाप्रदोषागजाजनातरंसर्वप्रकारापति लघुभाजनाच्छादितस्तजाजनातरमकायापति वृरुमाजनमच्छादितस्तजालनातरणका यति पुनरपिकस्मात्मासमुहासमुधातातावदनाकषायविकियामारगतिकतेज साहारकेचलिसजासससमुद्यातवर्जनातातथाचात्तसप्तसमुद्यातलक्षणावयणकवायवि Marainirever rautarinakam Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसै उबियामारणातिसमुपयातादेशतिजाहारोबहोसत्तमरकेचलीत:शतद्यथा मूलसरीरमर्छ | दिगउत्तरहस्मजीवपिंडस्सामणिरामदेहायोगस्वपिसामुग्धादयेणामाशातीनवेदनानुभ वानमूलशरीरमत्यवानात्मप्रदेशानावहिनिर्णमनमितिवेदनासमुद्यातापातीकषा यादयानमूलशरीरमत्यत्वापरस्परधतामात्मदेशानावहिर्गमनमितिकषायसमुधातः छामूलशरीरमत्यनकिमपिविकुईयतुमात्मप्रदेशानावहिरीमनमितिविकुर्वणासमुद्यातः छामरणातसमयेमूलारेमत्यज्ययनिहद्दमायुस्तत्मदेशपाटेतुत्मात्मप्रधानावहिगे मनमितिमारणातिकसमुद्यात स्वस्थमनोनिष्टजनकविचित्कारणातरमवलोक्सा त्यन्त्रकाधस्पसयमनिधानस्यमहामुनेशमूलपारीरमत्पज्यसिंहपजभमादीर्घलेनझारसायो जनप्रमाण:सूगाणुलसेयमामूलविस्तार नवयोजनाप्रविस्तार काहलाकृतिपुरुषों चामास्वापान्निातावामप्रदक्षिणेनहत्यनिहितविरुद्धवस्तुभस्मसात्रूत्यतेनैवसेमिनास Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हसलभावनातदीपायनवत् प्रसावनुभस्तेजःसमद्यात लोकव्याधिक्षिादिपीडितमा विलायसमुत्पन्नतपस्यपरमसयमनिधानस्यमहर्वमूलशरीरमत्यज्यनुभमितिमागुप्तदेहप्रमा णापुरुषारक्षिाप्रदक्षिणनव्याधिशक्षिादिकस्फायित्वायुनरपिस्वस्थानप्रविशति सानुभसतेजःसमुद्यातःसमुत्पन्नपदपदार्थमातेपरमधिसेपन्नस्यमरूपेशमूलपारीरमत्या ज्यशुद्धस्फटिगारुतिरेकहस्तप्रमाण:पुरुषामस्तकमध्यानिर्गत्ययत्रकुन चिरतर्मुहूर्तमध्ये केवलज्ञानिनेपायतस्तदर्शनाचवाश्रयस्पमुनेःपदपदायीनेश्वयसमुत्यापयिष्यतायुनः स्वस्थानेमविशतःअमावाहारसमुद्यातः शासप्तमकेवलिनादेरकपाटमतरलोकपूरणा मायकेचलिसमुद्यातानयविभाग कथाताववहार अनुपचारितासङ्गंतव्यवहारनपाता। णिच्यणाययोअसरवसोवा निश्वयतलाकाकासममितासेरायप्रदेशममाणावाशन स्वसेवितिसमुत्पन्नकेवलज्ञानोत्पत्तिप्रस्तावेज्ञानापेक्षयाव्यवहारनयनलाकालाकव्यापक Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्त्यसे चिनदेशापेक्षयानैयायिकमोमासकसायमतवतातयेदेश्यिमनाविषयविकल्परहितसमा घकालस्वसंवेदनलक्षणावोधसमावपिवहिनिषिभियवाद्याभावातरानचसर्वप्यासारख्य मतवातप्यारागादिविभापरिणामापेक्षयाभून्पोपिभवतिानचानेतज्ञानाद्यपेक्षयापिनी हमनवदितिकिचामाणुमावराणशनावरत्सेधधनागुलासययभागममितलब्धपूर्ण सूलमानगोदशारीरेयानचएलपरमाणुगुरुशरीरशादेनचयोजनसत्रपमारणेमहाम स्पारगमध्यमावगरेनमध्यमशरीराणिचाछाइदमवतात्पर्योदेरममत्वनिमित्तेनरहे । रहीत्वासेसारेपरिभ्रमति नकारणनदेहादिममत्वत्पलानिमोहनिजयुशात्मनिभावनाक तिव्यतिगण्वस्वदेरमावव्याख्यनेनगाण्यागतात परंगाप्यावयेननविभानिससारितीच खसेतदवसानथुछजीवस्तरूपेचकप्ययतित्ययापुढवितालात वाजविणकदीविरह यावेनाचिनतिरच सवरतालाजीबाझरते तरबादशाहोतिइत्यादिव्याख्यानक्रियता Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होति प्रतीदियापूर्तनिजपरमात्मस्वभावानुभूतिज्ञ नितसुखाएत्तरसस्वभावमलभमाना सुकुम पोरियमुखमामिलखति” रूमस्यातदासक्ता संतरकेंद्रियादिजीवानां घातकुवतिः तिनोपार्जित यस स्प्यावरनामकर्मत उदये नजीबा भवेति कयेभूता भवेति पुदविजलते उना ऊचरणष्पदी विवि हप्यानरेइंद्री, पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयःकतिसंख्णापेताः विविधाः श्रागमकथितस्वकीयांत भेदैव ऊधाः स्थावरनामकम्मीदयेन स्थावरा एकेद्रिजातिनामकमदयेनस्पर्शनंद्रियमुक्ताराकेशिया नकेवलमिच्ंभूताः स्थावराभवेति॥विगतिगचडुपेचरका तसजीवाद्वित्रिचतुः पंचाक्षात्रसनामक मदियेन च सजीवाभवति तेचकष्येभूताः संखादी संख्यादयः स्पर्शरसनशिपश्ययुक्ताः संखयुक्तिस म्पादयादींदिया : स्पर्धानरसनघ्राणेंद्रियचययुक्ताः कुंष्युविपालिकाजूकामक्षुरणादयस्त्रीशिया: स्पर्शनरसनप्रारणचक्षुरिद्रय चतुष्टययुक्ततदेशमशकमक्षिका भ्रमरादयश्वतुरिया स्वनिर सनघाणचच्तु श्रोवेश्यिषेचयुक्तामनुष्यादयः पंचेद्रियाइतिः ॥ प्रयमत्राऽश्रः विशुद्धज्ञानस्वभा Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसे ० १५ हवे तितह विशेयाध्यप्य्यापूर्वस्ते चादितचतुर्द्दशजीवसमास र्भवेती मार्गणागुणास्थानेश्वतच्या भवेती तिविज्ञेयाज्ञात्तव्याः कति संख्यायेते. त्चउदसहिमत्येकेचतुर्दशाभिः कस्मात् असुनयात्सक त्इच्ंभूताः केभवति ॥ संसारिजीवाः सबेसुद्दाङ्गसुझाया तरावसर्बसंसारिणः शुद्धा. ज्ञायकैकस्वभावाः कस्मात् ॥ शुद्दनयात् युद्ध निश्चयनयादिति॥ प्रप्या गममसिद्धागाप्याइयेन गुणस्थाननिकथयति॥२॥ मिच्या सास सामिस्स ॥ [मविददसम्मोयदे सविरदाय विश्वासत्र राक्ष्य ॥मसुखम्प्ररिमर्याहिमाम उपसंविधी सोमाही सोगिक वत्तिनिधि विचउदनु खाद्य खामिय ॥ कनय्ण शद्धाय लाक्वा ॥ इदानी तेषामेवगुणास्यानानोप्रत्येकंसंक्षेपे . शकष्पते ॥२॥ तवाहि॥ सहजशुद्ध केवलज्ञान दर्शन रूरूपा खेडेकप्रत्यक्षप्रत्तिभासमय निजपर मात्मप्रभृतिष्टद्रव्यपेचास्तिकाय सततत्व नवपदायैषुमूढत्र्यादिपंचविशतिमलरहि सर्वज्ञ प्रशीतनय बिभागनयस्य श्रदानेनास्ति। समिष्यादृष्टिर्भवाते पाषातरेषादि. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nakamanawimanna Junia नुवोधकोशमानलाभमायान्यतरोधोनमप्यमोपशामिकसम्पत्तात्यत्तितामिथ्यात्वनाद्यापि गच्छत्तीत्येतरालवासासादन गनिजात्मादितत्त्लेनीतासर्वज्ञप्रणीतपरप्रतिवमन्य तेयासानमाहनीयभेदमिनकोदयनागुरुमिश्रभावनिमयाणरयानवीभवान तिप्रथमतयेनकेनाप्पकेनममदेवेनप्रयाजनातव्यासर्वदेवावंदनीयानचनिंदनीयाइप दिवनपिकमिप्याधिगसंशयमिण्याइटिवीतामन्यततनसहसम्पमिथ्याटकावि शेषतिगतवपरिहार: ससर्वज्ञदेवेषुसर्वसमयषुरभक्तिपरिणामनयेनकेनापनमम एभवख्यतीनिमत्वाशयस्पेरणभक्तिकरोतिनिध्वपानास्तिमिमस्यपुनरुभयवनिम्न यास्तीतिविशेष स्वाभाविका नेतज्ञानाद्यनेतागाधारभूतनिजपरमाताध्यमुपायोनि यमुखादिपरस्त्यहिहयोग इत्पर्हत्सर्वज्ञपणीतनिश्वएयरहारनयसाकभावनमन्यताप रोकेतुभूमिरेखादिसहकाधादिकक्षितीयकषायादेशेननिमित्तेतलारणहीततस्कारला ADANAAKANGARHamasumaannasanikamsinindianuamunautartinusiamutharma/ minantarwasna Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसं त्मनिंदादि सहितस्मन्निद्रियसुखमनुभवति इत्यपिरतसम्पादृशिलक्षणण्यापूर्वोक्तमकारेणसम्प ग्हएिसनभूमिरेखासहशोधादिहितीयकषायोदयाभावसत्पभ्पतनिश्वयनयनेकदेशारा दिरहितस्वाभाविकमुखानुभूतिलक्षणषुवहिविषयेषुनरेवोदेशाहिसान्तस्तयाब्रह्मपरिग्रहनिया तिलक्षणेषुगाणवयसामाश्यापासहसचित्तराभत्तयाावभारंभपरिगाहामणउद्दिह देसविरायाछ इतिगाप्याकरितकादानिलयेषुवर्ततसपेचमारणस्प्यानवीक्षावलोम चतिसयेवसदृष्टितिरेखादिसशोधादिततीयकमायादयाभावसत्यम्पतरेनिमयनयेन राजुपाधिरोहतस्वयुधात्मसेवित्तिसमुत्पन्नसुखामतानुभक्तपणेषुबहिर्विषयपुपुन-सम स्तनहिसान्तस्तयारम्हपरिग्रनितिलक्षणेषुनपचमहापतेषुवतया स्तमादिव्यताब तप्रमादसहितोषिषक्षमागास्थानवतीममत्तसेयताभवातासयबजलरेखादिसशासनलनका पायामोदयसतिनिम्ममादमुहातासोवोत्तमलजनतावाताव्यत्तत्प्रमादरहितासनसतमगुणाले Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .- .-. - ManrTTPHYTVRITTIMES AINIMURARIERamPmistantemrudraem नरपप्रमत्तसेयताभवति। सयवातीतमज्वलनकषायमेदोदेशसत्यपूर्वपरमालादेकसुखानुभूतिल क्षणभपूर्वकरणापामाकक्षपकसेवाएमगुणस्थानवीभवतिगदृष्क्रतानुभूतभागाकाक्षा दिसणसमस्त सेकल्परहितनिजानन्वयपरमात्मतत्कायध्यानपरिणामेनकवायवाजीलाना मेकसमयपरस्परेषयत्वेनायाति सेवासस्थानादिभेदणनिरसिकरणापशमक्क्षपा कसैज्ञाधितीयवधायदिएकदिशतिमेदमिन्नवारिचमापरुतीनामुपसामनक्षपणसमचान बमाणस्थानतिनोभवतिसमकाहगतलाभकायस्थापशमकाःक्षपकावदशमगुणी नर्निनोभवतिगपरमापराममूतिनेजात्मस्तमारसेवित्तिवलनसकलापशातमायाकाशाम गुणस्थानतिनोमवेतिाउपशमश्वणिमार्गणनि कयायमुशात्मभावनाक्लनक्षीणकवाया। दशमगरणस्थानवानाभवेतिष माहक्षपणानेतरप्रतमहलेकालेस्वभुशात्मसवितिलक्षण कत्वरितकीवीचाहितीयनुलध्यानस्थिलातदत्यसमयज्ञानावरणदातावरणातरायत्र oortamaram Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यसे dansar RamaanwRILa येणुगपदेशसमयेननिर्मूल्यमेधजो विनितिदिनकरऽबसकलविमलकेवलज्ञानाकरणालीकालो कमकारयकात्रयोदशामागास्थानातिनाजिनभास्कराभवेतिमनोवचनकायदर्शगालेवनक ममोपाननिमित्तात्मनशायरिस्यदलक्षणयोगरहिताश्चतुर्दशामाणस्थानतिनस्वयोगिजिन नाभवतिगततनिश्वयरत्नश्यात्मककारणभूतसमयसारमेजनपरमपणारख्यातनारिनच तिक्षागुणस्यानातीतःगज्ञानावरगाद्यएकम्मरहितासम्पत्कायसगुणातर्भूतनिनामनिगोर्च धनंतगुणाः सिाभवतीति वाशिष्य केवलज्ञानोत्पत्तामाक्षकारणभूतरत्नत्रयोरे .. .... भाव्यासपाययोगिलिनस्थानहपकालानास्तिक यथावातचारिचजातपरकिंतुपरमपणाख्यातनास्तिाप्रबहशतायणाचौर, भानपिपुरुषस्पचारसंसगीदोषजनयतिगतयास्त्रविनाशकचारित्रमोदयामा - केवलिनानिलियनुशात्माचरणक्लिक्षणायावयव्यापारमारित्रमलजन amanna mainamainancernAmastepm.marad Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ranAmai-1BREACHHSaamanawar यातायातयातेपुनरयाणिजिनेचरमसमयविहायशेषातिकर्मतीवादयश्वारिचालन नयति चरमसमपतुमयोध्येसतिचारिखमलाभावानाक्षानिाइतिचतुर्दशगुणस्थानी रयानातोलाइदानीमानाकपतेगाइदिशेचा गजात यासंबादेत बालस्वावयासमन्वयानमाहोराशाइतिगाथाकप्णितजमेणत्यादिचतुर्दशमासा ज्ञातव्या छातयथास्वात्मापलाधसिदिविलक्षनारकतिरामनुदेवातिभेदन चतुर्विधागतिमानाभवेति । अतोरियनुशात्मतत्वप्रतिपक्षभूतांचकक्षिविचतुःपेश्यि निदेनपेचप्रकारेश्यिमानापशरीरात्मतत्व विशदशीपाययोजोवायुवनस्यतिवर्क यभेदेनषनेपोकायमार्गना निव्यापारनुशात्मपदाविलक्षणमनोवचनकाययोगभेदे नविधायोमानापमप्यवाविस्तरेणसत्यासत्योभयानुभयभेदेनरतुर्विधोमनायोचन याउदारिकादारिकमियावकिपकमियाहारकप्राहारकमिक्षकामीणकायभेदन जम्मामा Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ सप्तबिधिकाययेोगश्चेति॥समुदायेनपेचदशविधावायोगमार्तणा ॥ वेदोदय इचरातादिदोषरहि तपरमान्मइव्यातमिन्नास्खोषुन्नपुंसक भेदेनाविधावेदमार्गरता निः कषाय शुद्धात्मस्वभावप्रति कूलाकोधमानमायालाभभेदेनचतुवैिद्याकषायमार्गना विस्तरेणाकषायने। कषायभेदेनये चविंशतिविधावा॥मत्यादिसेज्ञानयेचकेकुमत्पाद्यज्ञानत्रयेचेत्यष्टविद्याज्ञानमतना साम शिकवेदायस्यापनयरिहारविभुः सूक्ष्म सोयरायय प्यारव्यात भेदेन चारित्रयेचविधे संय मासेयमस्तथैवा संयमश्वतिप्रतिपक्षद्वयेनसनप्रकारसंयममार्गना॥ चतुरचतुरबाधकेव स्नदर्शनभेदेन चतुर्विधादर्शनमार्गना॥ कषायोदय रेजितयेोगप्रवत्तिविशदृश परमात्मव्य प्रतिपक्षिशीकमनीलपोकोततेजपद्ममुक्त मेदेनषडिधालेश्यामार्गना॥भव्गाभगभेदे नद्विविधा भव्यमार्गणात्राहशिष्यः शुरु पारिणामिक परम भावरूपगुरू निश्वयेनगुणा। स्थानमार्गना स्थानरहिताजीवाइत्युक्तं पूर्वइदानीयुनर्भव्या भव्यरूपेण मार्गणामध्येषि HT Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 53 सरिणामिकभावेाभखितः इतिपूर्वायरविरोधः॥७॥ परिमोहं हो र॥ पूर्वच मुइर्परिणामिक भावापेक्षयागुणास्थानमार्गना स्थाननिषेधः कृतः इदानीपुनर्भव्या भव्यत्वद्दयममुद्रपारि णात्मक भावरूपं मार्गणामध्येपि घटते ननुमुद्दायुद्धभेदेनपारिणामिकभावविधाना स्ति किंतुशुश्रवनैवं यद्यपि सामान्यरूपेण त्सोव्याख्यानेनशुद्धपारिणामिकभावक प्य्यते तथाप्यवादव्याख्यानेनाशुद्ध पारिणामिकभावाय्यस्ति तथापिचजीव भवाभवा निचेत् तत्वीष्येसूचे विद्यापारिणामिकभानोभणिततत्रशुश्चैतन्यरूपंजीवत्वमविनश्व रत्वेनमुरुश्याश्चितत्वात् शुरुव्यार्थिकसेज्ञः शुरुपारिणामिकभावाभण्यतेयत्पुन: कर्मजनितः दशमारणरूपेजीयत्वे भात्वम भव्यत्वेवेति ॥ चयेतद्दिनम्वरत्वेनवर्यायाश्वितले • पर्यायार्थिक संजालमुद्ध पारिणामिक भाव उच्चते ॥ अशुद्दलंकथमिति चेत् यद्यपित्तद 1 शुरु पारिणामिकत्रयंव्यवहारेण संसारिजीने स्ति। तप्यापि सदसुद्दा सुद्दरणया इतिवचना Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इय i h रशुराणाया।इतिवचनातहनिम्न नास्ति मुक्तजीवएना सर्वथैवनास्ति इतिहतोरशुद्ध लेभापतेातवाशुशणारिणामिकमध्येशुपरिणामिनभावाध्यानकालध्येयरुपाभव तिआनरूपानभवति कस्मातध्यानपर्यायस्यविनश्वरत्वातणमुपारिणामिकवस्तुमच्या पत्वादविनश्याइतिभावार्यः॥रुपरामिकक्षायापशामिकक्षापिकसम्पत्तभेदेनविधासम्प क्तमार्गणामिण्याधिसासादनामभसेज्ञाविषझवयभेदेनसहनियाज्ञातव्यासासेज्ञत्वा इसजित्तविशदशपरमात्मस्वरूपाजिन्नासेज्ञासनिभेदनविधासजीमागेमामाहारकाने नाहारकजीवभेदनाहारकमानापिक्षितिचतुशामागास्वरूपेज्ञातो सवेपुढविजल तेयवाकत्यादिगाणाध्यनरतीयगावापारयणवाणजीनापजाती पारणासमाय मागरणाअयाउवोगाविषकासावीसनुपरूवणाभणियानिमायामभातकथित स्वरूपचवलजयसालमहाधक्लपवेधामियानसिकतवयवीजपदसूचितवसवसुबासु SIMILIAnema.manuadimarat Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित्यादिविशेशधगुरणा । तथैवास्तित्वा वस्तस्व प्रमेयत्वादि सामान्यगुणा। स्वागमाविरोधेनानेता ज्ञातव्या । संक्षेपरुचिशिख्यमतिपुनवैिव ता भेदनयेनानंतज्ञानादिचतुष्टय मनतज्ञान दर्शनसु खत्रये केवलज्ञानदर्शनद्वये साक्षादभेदनयेन मुद्दचैतन्य मे बैके। गुरग। इति॥ पुनरपिकव्येभूता सिद्धाः चरणशरीरात किंचिदूनाभवेति तच किं तदूनत्वं शारीरोगे। योगजनितनाशिकादिश सोत्व सति। यस्मिन्नेव दाणे सय। गिचरमसमय विशत्प्ररुत्युदये विछेदमध्येशरीरोगो 'नामकमदयेविच्छेदोजातस्तस्मिन्सरोजातमितिज्ञातये॥ कश्चिदा है। यप्यानदीयस्य भाजनाद्यावरणात प्रकाशस्य विस्तारो भवति ॥ तयादेहा भाक्लिाकप्रमाणेन भाव्यमिति चेते प्रदीप संवेधीयेोऽसोप्रकाशविस्तारः पूर्वभावेनैव तिष्टति यच्चादावरहोजाते जी प्रदेशत्वस्वभावेाभवति यस्तुमदेशानांसंबंधी विस्तारः सस्वभावो । भवति कस्मादिति चेत् पूर्वलोकमात्रप्रेदेशाविस्तीर्णानिरावरणास्तिष्ऐतिः पवातादीप Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्य ले तशुद्धणयाइतिवचनातनुनिस्वपननास्ति मुक्तजीवएना सर्वथैवनास्ति इतिहतोरशुद्ध त्वेभारतातवाशुश्यारिवामिकमध्येशुष्परिणामिलभानाध्यानकालध्यरूपाभव तिध्यानरूपानभवति कस्मात्यानपर्यायस्पविनम्वरत्वाताशुपारिणामिकरस्तुभारू पत्वादविनश्यरतिभावार्थः॥ऊपरामिकक्षायापालिकदापिकसम्पत्तभेदेनाविधासम्पा तामार्गणामियपादृष्मिासादनीमश्रज्ञाविषझावयभेदेनसहनियाज्ञातव्यासजत्वा इसजित्तविशाहशापरमात्मस्वरूपाजिन्नासेज्ञासनिभेदेनविधासजीमागणामाहारकाने नाहारकजीवभेदनाहारकमानापिक्षितिचतुशामागास्वरूपज्ञातयसपटरिजाल तेयवाकरस्यादिगाणाध्यनरतीयगाथापादयणवागुणजीनापजातोपागासहाय मारणाअयाउवोगाविषकमसावीसनपरूवणाभाणयालानिमायामभातकथित स्वरूपधरलजपालमहाधक्लपवेधानिधानसिकतवयवीजयदेसूचितपसबसुझाकसु Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छाया॥ इतिश्रुद्धात्मतत्वत्रकाश फेरतीयगाथाचतुर्थपादेन पंचास्तिकायप्रवचन सारसमयसा रामेधानत्राभतित्रयस्यापिबीजपदंसूचितमिति । चतुणस्यानमार्गणादिमध्ये केवलज्ञानदर्श नइये। नायक सम्यक्तमनाहारक मुद्दात्मस्वरूपंचसाक्षादुपादेये ॥ इत्युनश्वात्मसम्पत श्रानज्ञानानुचरणलक्षणे कारण समय सारस्वरूपततस्यैवेोपादेयभूतस्यविवक्षितेक शशु नयेन साधकत्वास्योपयेरे पादे ये शेषंतुहेयमिति यत्व ध्यात्मयेयस्यवीजपदभू तंशुद्धात्मस्वरूपमुक्तं नत्पुनरूपादेयमेव । अनेनप्रकारेणनीनाधिकारमध्येद्दायुद्ध जीवकण्यनमुख्यत्वेनससमस्यलेगाव्यात्र यंग मदानीत्यापूर्वद्धन सिद्ध स्वरूप मुत्तरार्देनः पुनस्तशति स्वभावत्वेचकपतिय सिकम्मान्महमुना चिचूणा परमदेह देते सामादिवशिय उपादचपेहि मामा सिद्धासिद्धा भवतीतिक्रियाऽध्याहारः किं विशिष्टाणिक्कम्मा>प्ररुगुरलाकि चूणाचरमदेहदेोनिः कम्मीणो ऽष्टगुणाः किंचिद्दूणाश्वरमदे Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसे रतः शकागादितिस्बपूर्वी नासिझस्वरूपमुक्तक॥ईगमनपाथ्यतेलायपाहियाणिचा उप्यादरहिसजुत्तागतेचासहा लोकायस्थिता निस्या उत्पादव्ययाभ्यासयुक्तारतियता विस्तार कामारिविध्यसकबहात्मसेवित्तिवलनज्ञानावरणादिमूलात्तरगतसातकर्मप्रति विनाशकत्वादएकम्मोहिता सम्मत्तणाणदेसणावीरीयसुहमेतहेवावगणनामगुरुलघ महावाहेबहाणातिसिहागा हाइनिगाप्याकणितक्रमणातयामएकर्महितानामबाणा कथ्यतेसप्याहि केवलज्ञानादिगुणस्पदनिजयुद्धात्मवापादेयरतिरुचिरूपेनिश्वयनयसम्पत्तो यत्पूर्वतपश्वरावस्थायाभावितस्यफलभूतेसमस्तगीवादिसत्सविषयविपरीतामिनिवसहित परणतिरसेपरमक्षायिकसम्यक्तभरपते पूर्वउदास्यायोभावितस्यानोर्वकारस्वसवेदनज्ञान स्पपालभूतयुगपब्लोकाताकसमस्तवस्तुगतविशेषपरिपककेवलज्ञानानिर्विकल्पस्वभुझा स्मसत्तावलाकनस्सयत्पूर्वदर्शनेभाविततस्यैवफलभूतेयुगपत्वाकालाकसमस्तवस्तगतर्स amanthanwar Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAamreneumsum - मायग्राहबायेवलपीनाकस्मिविस्वरूपचलनकारगजातसतिघोरपरीवहोमगादोनिजनिर || जनपरमात्मध्यानपूर्वपदेवमालवितेतस्रफलभूतमनेतपदार्थपछितिविषयखदरहितत्व मननवीय मूलमतीनियकेवलज्ञानविषयवासिकरूपस्यसूतावभावते. एकप्रदीपप्रका नानाप्रदीपप्रकारावदेकसिमक्षेत्रसकरत्यतिकरदोषपरिहारणानतसिझावकाशदानसामे येगवगाहनालाभण्यता दिसतेयागुरुत्वभवतितपालासपिस्तदापतनत्यदिवसदेणगु सवैभवनितालाहविरवध पतनादिचसयालघुले भवतितकावासारतातीलवत्सर्व दिवभमगरमवस्थानचतवातस्यादगुरुलघुगुगाविधीयतासहजमुझस्वरूपानुभवसमुत्पन्नमयदेवि भावहितसुरवाएतस्ययदेकदेशासवेदनरुतपूर्वतस्थवफलभूतमव्यावाचानतमुखत्वेभरवत इति मध्यमरूचिशिय्यापेक्षयासम्पत्तादिगुणाष्टकमणिता विस्तारसचिशिस्यप्रतिपुनर्विशेषभेदनये ननितिनिश्यित्वेनिकायले नियागत्वनिर्वदत्वंशतिःकवायत्त निर्माचत्वानिरायुषत्वा। RAAAAAAtanaararmers Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसेव |मित्यादिविशेषगुणा तथैवास्तित्व वस्तस्व प्रमेयत्वादि सामान्यगुरणा | स्वागमाविरोधेनानेता ज्ञातव्या । संक्षेपरुचिशि छाप्रतिपुनर्विवदः ताभेदनयेनानंतज्ञानादिचतुष्टय मनतज्ञान दर्शनसु खत्रये केवलज्ञानदर्शन ६ये साक्षादभेदनयेन शुद्धचैतन्य मेवे के। गुग। इति ॥ पुनरपिकष्येभूता सिद्धाः चरमप्रशरीरात् केचिदूनाभवेतिः तज्ज्ञकिं तदूनत्वे शरीरोगोपोगजनित्तनाशिकादिश सामपूर्णत्वे सति । यस्मिन्नेव क्षणे सया शिचरमसमय विशत्प्ररुत्युदयेविच्छेदमध्येशरीरोगो योगनामकमदयेनिच्छेदोजातस्तस्मिन्क्षणे जातमितिज्ञातये कश्चिदाह भाजनाद्यावरशते प्रकाशस्य विस्तारो भवति ॥ तप्यादेहा भाक्लिाकप्रमाणेन भाव्यमिति परिहार: । प्रदीप संवेधीयेोऽसोप्रकाप्राविस्तारः पूर्वभावेनैव तिष्टतिपयच्चादावरजाते जी वस्यनुले कमाचासंरलेपय प्रदेशत्वस्वभावेा भवति॥ यस्तुप्रदेशानासंबंधी विस्तारः सस्वभावा । नभवतिः कस्मादिति चेत् पूर्वलोकमाचप्रदेशाविस्तीर्णानिरा चरणास्तिष्टेतिः। पश्वातादी Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . || वदावरगाजातमवतन्न कितपूर्वमेवानादिसतानरूपनगरीरेणारततिशेतातत.कारण तपदेतानासहाविस्तारानभवतिः विस्तारवशारीरनामकम्माधीनगवनचस्वभावातन कारगनशरीराभाने विस्तारानभवतिगमपरमप्युदाहरणदीयतेश्ययाहस्तचतुष्क्ष्यमा गावखपुरुषनमुशवइतिहात पुरुषाभावसकाचविस्तारोवानकरातिमनमतिकालमात्रा मन्मयभाजनेवाभुक्कसन्तलाभावसतिगतप्याजीदोषिपुरुषस्थानीयजलस्थानीयशरी राभाव विस्तारसवाचीनकरातीतिछायजेवमुक्तस्तववातिएतीतियकेचनवतितन्निया चार्यपूर्वमयादसेगलाधछेदातणागतिपरिणामाञ्चतिाहेतुरतुपयनतवाविछन् । लालचकचहापातलपालावदेरेस्नीजवाग्निशिखाक्चतिरोतचतुष्टयनरस्वमा चाईगमनजातातचलोकायपयतमेवनचपरताधमा स्तिकायाभावादिति नित्वाइति विशवाणयुमुक्तात्मानकल्पशतप्रमितकालागतजगतशून्यजातसतिगुनगामनभवति PAARAARADASTI AntasAHAR LataxindianR.JanuaJANJunuser.. Anmomaamanamami - Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pran. m अयसक २२ mmmmertime. . . | मासिक्वादिलोवदतितन्निषाविज्ञेया उत्पादव्ययसंयुक्तविपोषणसर्वणेवापारिया षेधाणामतिकिचविशेषानिवनाविनस्तरणुशात्मस्वरूपातिसिद्धानानारकादिग तिमुभमणानास्तिवायमुत्पादचयत्वमितिशतजरिहारगमकोणतागुरु.. नगतितहानिरद्धिस्वरूपरणयामपयायास्तदेपेक्षया॥अथवायनयनोत्पादययप्रीव्य रूपेणाप्रतिक्षरणजयपदार्या परिणामतितत्परिछिल्पाकारणानीहितरस्यासिकज्ञानप्रेम परिणामनितनकारणनात्यादयत्वा अथव्यजनपयायपक्षयाससारपर्यायविनाश सिह . योत्शामुलीवश्चात्लेनीव्यत्वमितिावनविभागेननवाधिकारजीवज्ञातव्याला अथवातदेवलिरात्मातरात्मापरमात्ममेदनरवानवतिगतणावमुशात्मसापेत्तिसमुत्पन्ना स्तवसुलत्प्रतिपक्षभूनने पसरवनाशताहिरास्मात्तहिलक्षणोतरामाभययादहरहि तानिजसुधात्मइत्यभावनालक्षणज्ञानरहितत्वनदेहादिपरस्योकत्वभावनापरिणताव Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिरात्मातस्मात्प्रतिपक्षभूतातरात्मामयबारेयोपादेयकाविचारचित्तनिदोषयरमात्मने मिन्नराणादयादोषाः श्रुधचैतन्यलक्षणयात्मत्युक्तलक्षणचित्तावात्मसुविधुवीतगास|| वैज्ञपणानेखनेकेषुवापदायस्थपरस्परसापक्षनयोविभागनभानेज्ञानचनास्तिसहिरा स्मातस्मादिसातरात्मतिरूपणनहिरात्मातरात्मनाक्षणज्ञातव्याछापरमात्मल क्षणेकथ्यतासकलविमलकेवलज्ञानेनयनकारणेनसमस्तलाकालाजानातियानाति तिनकारणेनविमुर्भएपतापरमब्रम्हसजनिजशुक्षात्मभावनासमुत्पन्नसुरवामतसमस्यस || तउर्वशीरभातिलोत्तमादिदेवकन्यामेरपियस्यबम्हचर्यजतेनडितसपरमब्रम्हभएप केवलज्ञानादिगुणश्चयेयुक्तस्यसतादेवशदयापितत्पदामिलाषिणःसेतोयस्यानाकुति सश्मिरामियानोभवतिकेवलज्ञानाववाचतज्ञानयस्पसुगतानथवागमनमविन श्वरमुक्तिपदेगतःसुगताछशिवपरमकल्पागनिर्वाणशातमझयापानमुक्तिपदेगेन Amritam Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यक सशिवकीर्तितः॥इतिश्लोकवाचितलक्षणशियाकामकाधादिदोयजयनानेतनानादि सहिनाजिना इत्यादिपरमागमकथितादृशेत्तरसहस्रसत्यनामवाच्य परमात्माज्ञातव्योःएवम निघुनधात्ममुमध्येमियादर्भिपजीवहिरात्मायक्तिरूपेरनतिएतिगतरात्मपरमानमध्ये शक्तिरूपणभाविनामनयापेक्षयाव्यक्तिरूपेणचभव्यतीवेपुनहिरामाव्यक्तिरूप तरात्मपरमात्मापेशलिस्पनेतियद्यपिजीवपरमात्माक्तिरूपेणाविद्यतताईकष्यमभव्यत्व मितितापरमात्मशक्ति वेवलज्ञानादिरूपणव्यक्ति भविष्यतीत्य भव्यत्वयक्ति पुनः॥ शुभनयनाभयवसमानातिन शाक्तिरूपणापभाजीचकेवलज्ञानेनास्तिताकेवलज्ञा नावरणनाचटताभल्याभव्यध्येणुनरमुधनयनतिभावागवेयष्यामिप्याइटिसेजवाहरा। त्माननविभागोनदर्शितमात्मत्रयातापायगुणास्थानपिगतयथा वहिरामावस्थाया मतगत्माध्याक्तिरूपेणाभाविनामनयनव्यानरूपणभाविजेयतरात्मावस्यायोतुबहिरा Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रानतरात्मकभेदनमावात्मकाविधाभवतिशतवाप्पक्षरात्मक संस्कृतापभ्रसपैशाचिकादिभाषाभेरे नायम्लेक्षमनुस्यादिवयवहारहेतुर्वजधागमनक्षरात्मकस्तुश्यिादितियालीबेखुसर्वज्ञदिव्यध्वनाच, प्रभावात्मकाप्रायोकवैनसिकमेनहिविधा छाततेवीपणादिवशिय वित्ततपहादित्वाचनतुल! सतालादिसुविखेादिकदित इतिश्लोककणितक्रमणप्रयोगभवप्रायोगिकचतुझा विस्त्र सास्तभावेनभावावैप्रसिकोमेघादिप्रभवावजधाः छाकिंचाददातीतनिजपरमात्मभावनायुतनराका दिमननामनोज्ञपनेमियविषयातीनचजीवनयापार्जितस्वसुर स्वरनामम्मतव्येनयमपिजी विशदश्यतेतवापिसजीवसयोगेनोत्पन्नत्वाद्यवहोणजीवपायाभएपतेः निश्वयेनपुनःपुगल स्वसणवति । वेधकथ्यते मतिरादिरूपेनपासावाधावयासकेवलएकलवेधःयस्तुकर्मनोकर्म | सजीवपुजलामखगवेघालाकिंचविशेष कविधएप्याभूतस्तस्तुशात्मभावनारहितजीवस्यानुपच रिताऽसद्भूतव्यवहारेणश्व्यवेधस्तथराशुनिश्चयनयोमारामादिस्पोभादवेधःकण्यासापिशुनि asmum MaicharsodmamtaarsawanRamananemamacana.SAURLIANCARNaDiabuaak LICATrasaamanaraanasannauLLINEAR TLAncinarsunayanarassmen Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्य |सशिवकीर्तितः॥३॥इतिश्लोकवाचितलक्षणशिवःकामकाधादिदोयजयनानेतज्ञानादिगण सहिनाजिन इत्यादिपरमामकथितादृशेत्तरसहस्रसत्यनामवाच्यापरमात्माज्ञातव्योः एवमे निषुतधात्मसुमध्येपिण्याधिर्भपजीवहिरानमात्तिरूपेरनतिक्षतिगतरात्मपरमात्मा शक्तिस्वाभाविनगमनयापेक्षयाव्यक्तिरूपेणचमननयजीवपुनहिरामाव्यक्तिरूपणी नरात्मपरमात्मारूपेशतिरूपनतियद्यपिजीवपरमात्माशक्तिरूपेणाविद्यतेतहिकप्यामभव्यत्व मितिलतापरमात्मशक्ति केवलज्ञानादिरूपणव्यक्तिनविष्यती न्यऽभव्यत्वशक्ति पुनः इनयनाभयत्रसमानानिपुनशक्तिरूपेणाप्पभाजीचकेवलज्ञानेनास्तितपावचलना नावरणनाचरत भव्याभव्यक्ष्येणुनरभुझनयनतिमभावार्थापयामिप्याष्टिसेजवाहरा स्माननविभागनदर्शितमात्मनयाताशेषगुणस्थानापातया विहिरामावस्थाया मितरात्माध्यशक्तिरूपेणाभाविनामनयेनत्यनिरूपणभाविजेयतरात्मावस्यायोतुबहिरा Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || त्माभूतपूर्वन्यायनघटनतपरमात्मस्वरूपतुशक्तिरूपेणाभाविनेगमनयनाव्यक्तिरूपनरपरमात्मे नस्यायापुनरंतरात्मायभूतपूर्वेनगननिमियावविद्यामानेगुणस्थानघुयोजयतिामिप्यात सासादमिश्रगुणस्थानत्रयतारतम्यन्यूनाधिकभेदेनवहिरात्माजातव्यास अविरतगुणस्या नितद्योग्पस्णाभलण्यापरिणतजन्यातरात्मागदाणकषायगुणस्थानेपुनसत्कवासावर ततीकवाययोमोमध्यमासयालयोगिगुणस्थापयविवक्षितकदेशामुनयनसिस || दशा परमात्मासिस्तुसाक्षात्परमात्माता अव्यवहिरात्माहेगाउपादेयभूतस्यानेतसुखसाथ कत्लोस्तरात्मापादेयापरमात्मापुनःसाक्षायादेय इतिशाभिमायाकारानेबस्यपेचास्ति कायप्रतिपादकप्रथमासिकारमध्यनमस्कारादिचतुर्दशाणायाभिर्नवाभिरतरस्थलेजोवर पकथनरूपनप्रयमोत्तराधिकारसमासतपरयद्यपि हरेकस्वभावपरमात्माश्यम् पादेयभवति तथापियरूपस्यमजीवश्वास्यगाथाष्टकेनन्यायानेकरोतिाकस्मादितिचे K S al.IESELEA - Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दम २४ तू हे यनत्वमपिज्ञाने सत्तिपश्वाऽपादेयस्वीकारे भवतीतिहेते। तद्यच्या पज्जी उयुरगड पणालधर्मे अधम्म शायसेि कालापुगालमुत्तेरुत्वादिगुणाप्रमुत्तिसेसा ॥ २६३ अन्नी उपुणर्ड अजीवपुन र्ज्ञेय: सकलबिमलकेवलज्ञानदर्शन रुयेयुडोपयेागइति मतिज्ञानादिरूपे निकल्पाः शुद्ध। पये इ तिद्विविधोपयोगः ॥ अव्यक्तसुखड, खानु भरनरूपाकर्मफलचेतना तथैवमतिज्ञानादिमन:पर्यय पर्यंत ग्मशुद्धाययेागइतिस्खेहापूर्वेषानिष्ट विकल्यरूपेरणा९विशेशेषरणादेषपरिणामनेकम्मैचेतना केवलज्ञानादिरूपश्रुश्चेतना ॥ इत्युक्तलक्षण|पये।देवर्तिनाचयत्रनास्तिस भवन्यजीवइतिविज्ञेय पुनः पश्चात् जीवाधिकाराने तरेयुगाल धम्मोप्रधम्मप्रायासकाला सचयुफल धर्म्मा धर्म्मीका शकालत्य भेदेनयेन चाचूरणालनस्प भावत्वायुरुलइत्युच्यते प्रतिस्थित्यवगाहवर्त्तनाला शाधमी धर्माकाशकाला युगालमुते ॥ युक्लेभ्मूर्त्तः कस्मात् ॥ वादिगुणे ॥ रूपादिगुणसहि तोयतः अमुनि सेसा ॥ रूपादिगुणाभावादमून भवति । पुलारशेष्याश्चत्वारइति॥ तवाहित्यर्थ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एयस्यानुद्धत्वं तप्यास्त्रिग्धरुद्धात्वगुणेन अनंतज्ञानदर्शन सुखयोर्य गुण चतुए ये सर्वजीव साधारणं ॥ तत्वारूपरस मेधस्वगुगाचतुष्टये सर्व युक्लसाधारण: यच्चाननुबुकस्वभावसिद्जीबेगमनेन चतुष्टयमतीजिये : तय्येनमुरूयुकल परमाणेऽव्यरूपादिचतुष्टयमतीदियेः यप्यारागादिखे दगुणेनकर्मावं धावस्थायाज्ञानादिचतु गुकादिषेधावस्थायारूपादिचतुष्टयस्यमुले त प्याचनिस्नेह निजपरमात्मा भावनावलेन रागादिस्निग्धविनाशसत्यऽनेतचतुष्टयस्यमुद्धत्व न याचक्ष धन्यगुणानावेधानभवतीतिवचनात्परमा गुड्शनिधरूक्षत्वगुणस्यज्ञघन्यत्वसात रूपादिचतुष्टयस्यत्वमववो धन्यमित्यभिप्रायः नाप्यपुनव्यस्यविभाव जनपीयान्त्र तिपादयति ॥ २२ ॥ सहोर्वधोमुकमी यूला बारादधः ॥ उदय महिना उस 01 शब्दवेधसौदास्याल्यसंस्थानभेदतमः छाया॥ यातापायात सहितायुकला द्रव्यस्यपर्यायाभवेति [छ॥ प्रप्यविस्तरः॥ भावात्मको भावात्मकश्वद्विधाशब्दः तचाऽक्षरानच 1 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यसक ५ रानतरामभेदेनभावात्मकाविधाभवतिशतवाप्पक्षात्मकःशंस्कृतापसपैशाचिकादिभाषामेरे नायम्लेक्षमनुष्यादिव्यवहारहेतुर्वजधामनक्षरात्मकस्तुशियादितियेगलीषुसर्वजदियध्वनीच प्रभावात्मकाप्रायोकोवैनसिकमेनिधिविधालाततवीणादिवज्ञेयः विततेपहादिका .. सतालादिसुखिरंवशादिकंदित इतिश्लोककणितक्रमणप्रयोगभवप्रायोगिकःचतु सास्तभावेनभावावैनसिकोमेधादिप्रभवावजधाशकिंचाददातीतनिजपरमात्मभावनायुत दिमनजामनोज्ञपेशियविषयापत्तनरजीवनयापार्जितस्वसुरास्तरनामम्मतयेन .. वेशदश्यतेतप्वापिसजीवसयोगेनोत्पन्नत्वाद्यवहोणजीवपायोभएपत निश्वयेनपुनःपुगल स्वस्त्सगवति वेधकथ्यतामपिरादिरूपेनपासावाधावपासवेवलएकलवेधःयस्तुकर्मनोकर्म रूसजीवपुशलमवावध किंचविशेष कविधएप्याभूतस्वस्नुशात्मभावनारहितजी रिताऽसतव्यवहारेणश्यवेधस्तथानिध्वयनयासारागादिस्लाभादवेधःकप्य्यतेसोफ्युिनि Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयनयेनपुनलवेधावपविल्वापेक्षयावरापीनीसूक्ष्मत्वेयरमाण साक्षादितिवदराद्यपेक्षयाविल्या नास्थूलत्वजाहापिनिमहाकधेसल्कियमितिसमचतुरखान्यावसात्तिका फुलकावामना गभेदेनषट्प्रकार संस्थाने ययपिव्यवहारनयननीवस्यास्तितयायासस्थानाविञ्चमवारपरणतिमि नत्यान्निश्वरनपुलस्यानमेवा यद्यपिजीवादपत्रवत्तत्रिकोणचतुष्कोणादित्यक्ताव्यक्तरूपवाधा संस्थानगतदपिपुलरलगोधूमादिचूर्णरूपेणघतखादिरूपेणवजधाभेदानातव्याधिपतिवधा काधकारस्तमइनिभरपते रक्षाद्यानयरूपामनुष्यादिप्रतिविवरूपाचछायाविनेयाउद्यात वनविमा - नवद्यातादितिर्यगजीवनभवतिः प्रातपत्रादित्पविमानेऽन्यत्रापिसूर्यकांतमणिविशेषादाएथ्वी कायेज्ञातव्यालयामनार्थ ययाजीवपश्वनिम्तनस्वात्मोपलान्चलक्षणसिस्वस्पेस्वभावव्ये || जनण्वस्वभावयजनपर्याय एकविभावयज्ञनपर्याय:पयोयेविद्यमानायनादिकर्मवधवशारास्निग घरुक्षस्थानीयरागदेवपरिणामसतिस्वाभाविकपरमानकलक्षणस्वास्थाभावभ्यस्यनारकादि| CAREERamundardNILAthAGE Mandinindmanukasatayapainvitesamaiduducatomer meaninainamunamanunHAIMAHARAaimadananandacanasha Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रयास निर्विकल्पसमाधिस्पस्वकीयापायानकारणपरिणतानाभव्यानासिकातःसहकारिकारणभवति त मेरकापिसिहवयनतज्ञानादिगुणस्वल्पाहामेत्यादिव्यवहारेणसविकल्पसिदभक्तियुक्तानोनिश्वयन तोर्ययष्यामसानास्वयतिहतोनवसनयनितानीति तप्याहियप्यासिद्धभावानमूतीनि विपस्तयेवा याणTORI T-गतिपरिणतानाधमीजीवपुलानागमनसहकारिकारणभवति रशतमाह || यधर्मव्यमारख्यातागोरगयामागवालजीवाणामतत्यारो) ताजहसवान तस्परोक्षपाणुस्वधर्भवभिन्नस्यपुरालव्यस्यच्यात्यानमुरव्यत्वनप्रप्यमस्यालगायायगत छान बजेवाधिकारमध्येपूर्वसूत्रादितस्पादिगुणारतुएययुक्तस्पातवैवाधसबोदितावादिषयोयसहि त्युक्तलक्षणाव्याल्यापागमाक्तलक्षणाचनसारणदाधिग्धादयाविभावय्यजनीयाज्ञातव्याः योयसत्यपिस्निग्धस्तत्वाधोभवतीतिवचनातारादेवस्थानीयवेधयोग्यास्निग्धस्तत्वपरिणामिस विभावोजनपयोयाभवतिगरतल्यापुलस्यायिनिश्वयनयनक्षपरमाणववस्थालक्षणेस्वभावव्यजनप manandorkat niasain M IRammanim - ent... ----- T bri SE.... actaknamesh ... ranatilaaunusumernamaAImationaireamshan Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - MannuinduINDIAnacon यानिःक्रियामूनोप्रेरकापिधर्मास्तिकाय नकोयापायानकारनाछतानाजीवपुतलानाचतम हकारिणोभवतिगलाकप्रसिदृशातनतुमत्स्यादीनाजलादिवदित्यभिप्रायः छ एवंदामेश्व्यव्याख्यान स्पेनगल्यागता छ। प्रप्या धम्मेश्व्यमुपदिशातिमहाला सराहाणायारो/i हहि माघालावा स्थानयुक्तानामधर्मपालजीवानास्थितिःसहकारिकारणे भवति ततादृहातमा छायायप्याथिकानास्वयगच्छताजीदपुजलानसनवधरतीत तद्यप्या स्व यवित्तिसमुत्पन्नसुषामतस्त्सेपरमस्वास्येयद्यपिनिम्पेनस्वरूपस्थितिकारणभवतित्तप्यासिहयुद्ध हेप्रणतणाणादिगुणसमिक्षारादेहपरिमाणाणिचा असंखदेसाप्रमुत्तायाछाप्रतिगाप्याकथित सिइभक्तिस्णरुपूर्वीसविकल्पावस्यायासिझोपियण्याव्यानावहिणासहकारिकारभवति तथैव खकोयापादानकारणेनस्वयमवतिएतंजीवपुग्लानाप्रधामव्यस्थितेःसहकारिकारणलोकव्यवहां रिणतुझायावहाएथिवीवतिलवायलाएवमधामश्पकप्यनेनगाप्यागताअाकाश्त्यमा hiunnainamust.bur.aurhathirur.awana - mahetana hinadiasmaari nukamard. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रव्य अवममदासानामावोवाहा कामात जागा animals जीवादीनामवकाशदानयापनकाशविजानाहिहेपिसापतिनिशिजबहाजिनस्येदेने . . . वातचलाकाकाराअलोकाकासाभेदेनधिविद्यामतिछाइदानीविस्तरःसहजमुझसुखाम स्वादेनपरमसमरसोभावनभरिताचस्पषुकेवलज्ञानाद्यनेतगुणाधारभूतधुलाकाकारामितासरव्ये यस्वकीयशुद्धप्रोपद्यपिनिश्वयनयनसिक्षास्तिऐतिगतप्पुयापचरितासनत . लायतिरेतीतिभणपति सचईशामाक्षायवप्रदेशोपरमध्यानेनात्मास्थितःशकमरहिताभवा , तितवैवभवतिनापत्रध्यानदेशाकर्मपुजलान्त्यक्ता ऊर्षगमनस्वभावनगलामुक्तात्मानाप तालाकागतिक्षतिततःउपचारणलोकायमपिमाक्षामाच्यते यथातीयेभूतपुरुषसवितस्यानम विभूमिजलादिस्त्यमुपचारेणतीर्थभवति सुखवाधाकाणतमानययात?वसर्वश्व्याणिणायद्यपि वयनलकीयस्वकीयप्रदेशोषतिष्ठति तथाप्युपचरितासभूतव्यवहारणलाकाकतिष्ठतीत्यभि Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राया भगवतांश्रीनेमिचंद्र सैद्धांतदेवानामिति ॥ १४॥ तमेवलाकाकारांविशेषेणदृढयति॥२॥ चमाच कलि युगलगवाय मेशिनमा रोखिम संबनधम्मी धाम के लाः पुमलजीवाश्वसंतियावत्याकापोसलाकः ॥ तप्याचाक्तं लववेत्तेजीवादिपदाप्रीयत्रसलाकर तिः तस्माच्वोकात्परतावहिर्भागेपुनरनंताकाशमलोकइति। अत्राह ॥ सोभाभिधानराजश्रेष्टिक हे भागवन्॥ केवलज्ञानस्याऽनंतभाप्रमिताकापात्रद्रव्येतस्याप्पनंतभागसर्वमध्यमप्रदेशलोक स्तिष्ट तिसचानाद्यनिधनः केनापिपुरुषविषैोशनकतानहतानद्यतोनच रक्षितः तथैव संख्यातप्र || देशाः तत्राः संख्यातप्रदेप्रालेाकेऽनंतानंतजीवस्तिभ्पोप्पनेतगुणपुलालाकाकाशप्रमितासं । ख्वयकालान्द्रव्याणि मत्यकलोकाकाशप्रमागांधम्र्म्मा: धर्मश्यमित्युक्तलक्षणपदार्थाः कम्य मवकाशलभ्यते इति भागवानाह ॥ एकप्रदीप कोनानाप्रदीपप्रकाशवदेशीसोगद्याणामेक टरसनागगद्याणकेभस्साघरमध्येसुइका उष्ट्ााधइत्यादिवऊसुवर्णवदित्यादिदृशाते नविशिष्टा Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाहनशत्तिावशारसंख्यातप्रदेशपिलोकवस्थानमवगाहानविसघताशयदिपुनरिभूतावारनग तिर्नभवतितहिमसरव्यात नसल्यातयरमाणनामकव्यवस्प्यानातवासतिसवैनीवायथायुद्ध निश्वयेनपाक्तिरूपेणनिएवरणमुचुईकस्वभावास्तप्पाव्यक्तिरूपनत्व्यवहारनयनापिनचतष्याप्रत्य क्षागमविरोधावतिलाशवमाकापश्यप्रतिपादनरूपनसूत्रध्यगत अनिश्वयव्यवहारका लस्वरूपकप्ययतिवरियह काले- सेलकायद्यपाल स्कायवरमहो॥२॥दवपरियरस्ता जोश्यपरिवर्तनरूपायासोकालाहवेववहागासकालोभन नियवहाररूपासचकणभूतःपरिणामादीतोपरिणामक्रियापरत्वापरलेनलक्षणतिपरिणा मादिलक्षानीनिश्वयकालःकय्यतावरणलवायपरमहोमवर्तनालक्षणावपरमाप्येकाल इतितघणाजीवपुलिया परिवर्तन नवजीर्णपयोयस्तस्पयासमयटिकादिस्लास्थितिः स्वरूपेयस्य सभवतिाश्व्यपर्यायस्ताव्यवहारकालतप्यास्त प्राभतेनस्पितिःकालसजकास्तस्यपयो| Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यस्यसेविधिनीयासासमयचटिकादिस्सस्थितिःसाव्यवहारकालसेज्ञाभवतिनवपयोयत्यामिप्रायः यतणवपयोयसेवाधनास्थितिव्यवहारकालसेनाभवति ततएवनीवपुलसेवेधिपरिणामेनपयोये नातवदेशातरचलनरुपयायोगवाहितीतिदोहोपनपाकादिपरस्यदलक्षणरूपयावाशियथा तणेवदूरासन्नचलनरूपकालरातपरत्वापरत्वनचलक्ष्पते। ज्ञायतयःसपरिणामकियापरलाप खतक्षणत्युच्यतामयश्व्यहानिश्वयकालमाहालकीयायादानकारणरूपनस्वयमेयरिणा ममाणानापाथीनाकभकारकचकस्याधस्तनशिलावताशीतकालाधायनेअग्निवापदार्थपरि णामतर्यसहकारित्वेसावर्तनाभपतास्ववलक्षणेपस्यवर्तनालक्षणकालागाश्व्यस्पानिश्वय कालाऽतिव्यवहारवालानश्वयकालस्तरुपेचविनेयेकशिवदाहसमयरूपण्यानिश्चयकाल स्तमादन्याकालाणुस्त्व्यस्यानिश्वयकालानास्थपर्शनातागतवोत्तरेदीयतासमयस्तावत्काल स्तस्यवयायःगकर्णपर्याय तिचेताययोयस्थात्पन्नमवेसितत्वातात याचातासमयउत्पन्नमध्य - Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसेठ सीसचपीयोऽव्यविनानभवति यस्यतस्यसमयल्पपर्यायवालस्यापापानकारणभूतेश्व्यतेनापिकाल लभाया इंधनामिनसहकारिकारपोत्यन्नस्यादनपयोयस्पतालापापानकारणवतःमत्यवानरनारका यस्यजीवोपादानकारणदिति तदपिकस्माउपादानकारणसहाकार्यभवतीतिवचनाता अप्पमतसमयादिकालपर्यायाणाकालव्यमुपादानकारणेनभवाता किंतुसमयोत्यत्तामेदातिपरिणातपुजा । . . तयानिमियकालात्पत्तोनयनपुटविघटनातयेवटिकाक्लपयायोत्पत्ताटिकासामग्री, भूतजलभाजनपुरुषहरतादिव्यापारादिवसपयोयेनुदिनकरविवमुपादानकारणमितिनवः ययातेउला पादानकारणात्पन्नस्यसतरदनपीयस्य मुलकमाविण सुसभितरोधास्निग्धरूलादिस्पर्श म धादिरसनिशेधारूपागणारयतेतल्यापुलपरमाणेनयनपुटविघटनजलभाजनपुरुषव्यापारादि .. पै. पुलपयायल्यापानभूतः समुत्पन्नासमयनिमिषटिकादिवसादिकालपर्यायागाम पिशुलागुणातिमानिनवतयााउपाखनवारणासधोकोयैभवति इतिवचनात विवाना Damitramaniamam Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यो सावनाद्यनिधनः तय्यैवाभूतीनित्यः समयायुपादानकारण भूतापिसमपादिविकल्परहितः काला गुव्यरूपस्यनिश्चयकालः यस्तुसादिसांतः समय घटिका महरादिविविक्षित्तव्यवहारविकल्परूपस्ता स्यैवद्रव्यकालस्य पर्यायभूतः सव्यवहारकालइतिः छमयमत्रभावः यद्यपिकाललब्धि विशनानंतसु खभाजन। भवतिजीवस्तथापि वियुज्ञानदर्शनस्वभावनिजपरमात्मतत्त्वस्व सम्पक श्रद्धानज्ञाना | नुष्टान समस्तवहिन्यद्यानिवृत्तिलक्षणतपश्चरणारूपा यातुनिश्वपञ्चतुर्विश्वाराधनासेवतत्रो पार्द नकारणेज्ञातव्य नवकालस्तन सहयइति ॥ प्रप्यनिश्चयकालस्यावस्थानक्षेत्रेश्व्यगणनाचप्रति पादयति माया शक्तेकेि मेडिया के ऐसी จง दवा . ३. लोया यासपदे ॥ इक्विक्वेजे डियाक्क्किा"लाकाकाप्राप्रदेशोव्वेकैकेषुणे स्थिता राके कसंख्यायता स्फुटंकडून स्वै यरणा होरासीमिवः परस्परस्य तादात्म्ययरिहारेणारत्नानांराशिरिव ते | काला गाव कति संख्यापेतामसंनद चागि। लोक्ाकाप्राप्रमिताऽसंख्ययद्रव्याणीतिः छः तथाहि । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यसे योगुलिश्व्यस्पयस्मिन्नवक्षनचनापयर्यायोत्पत्तिस्तस्मिन्नवक्षणपूर्वीपाजलपर्यायविनायोगुलिरूप रणधौव्यमितिश्यसिदिन्यस्येवचकेवलज्ञानादित्यक्तिरमणकायेसमयसारस्योपादानानिर्दिवल्पस माधिसकारणसमयसारस्यविनाशानभयाधारपरमात्माश्यलनीव्यमितिवारयसिमितयाकी लागारपिमेदातिपरिणतपुजलपरमाणनासक्तीशतस्यकालाणपादानकारणात्पन्नस्ययावव मानसमयस्यात्पादणमयेवातीतसमयापेक्षयाविनाशस्तऽभयाधारकालाणुश्यलेनीव्यमित्यु त्पादव्ययधोव्यात्मकपालस्वामिहिलाकवहिभोकालागस्यानवात्तयामाकायस्पपोरगति रितितासावरव्योत्तादेवादासाहकोभकारकममावन तोदेकदेशमनारस्पोनेश्यिविष गानुभनसागसुलवब्लेकमध्यस्थितकालाणु त्याचारगावदेशनापिसर्वत्रपरिणामनेभवतीति 'शेषम्याणपरिणते सहकारिकारणभवात कालव्यस्याकमकारकारणमिति छ य ! याकारान्त्यमोषव्यापामाधारस्वस्थापितणाकाल्पव्यमापयरेखेपरिणतिसहकारिकारणे Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARELI H स्वापि प्रप्यमनो यथाकालव्यवस्थापानकारणपरिणते सहकारिकारणचभवति यथासर्व श्व्याण कालव्यणकिप्रयोजनमितिछानेरेयदिएण्याभूतवहिरोसहकारिकारणेनमयाजनेना। तिनर्हिसवेश्याणासाधारणगतिस्थितावगाहनरियषधमाधम्मकापायरोपसहकारिकारणभू तःप्रयाजनेनास्तिपकिरकालस्यचटिकादिवादिकार्यतत्पक्षणाश्यताधमक्षिनापुनशामकाप्प नमवप्रत्यक्षणकिमपिकायनरम्यताततस्तवामपिकालव्यसावाभावामानातिाततश्वजीरपुत्ता श्व्यध्यमवसवागमविरोधालाकिंचसवेश्व्याणापरणतिसहकारिलेकालस्थवगुणगानाणेनियरमा स्वादनमिवान्पश्यस्यगुणान्यास्पवानागातिश्यमेकरोषपसगारितिछाकविदा वाव ताकालेनकाकारामशोपरमाणुरतिकामातगततःतावल्कालेनसामयाभवतीत्युक्तमागमएकसमये नचतुर्दशारज्जुगमनोवरावताकासाशास्तावेतःसाया मानवेनीतिक परिहारमाएकाका प्रदेशानियामणयत्समयव्याख्यानरुनेतन्मदात्यपक्षया यत्पुनरेखसमयचतुर्दशारजगमनमाय aapममाMATHEMS ......wmananews.AAImanarentsLABE: Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ नंतयुनाशीघ्रणत्यपेक्षयातिनकारणनचनईशारज्नुगमनकसमयतबदृष्टोत कापदेवदतायाजने। शतमेदगत्यादिनशतना इतिगमण्वविद्याप्रभावेनशीधगत्यादिननैकेनातितविदिनशतेभव तिकित्तकरावदिवसातथाचतुर्दशारजगमेननकरवसामय छ। किंचास्वविषयानुभवरहिताण यजीवः परकीयविषयानुभवहरेनुनतमलसिस्मत्यायनिषणाभिलायकपतितपयध्यानभणपते तभतिसपस्तविकल्पनातरहितस्वसेवित्तिसमुत्पन्नसहजानदेवलक्षणसुखरसास्वादसहितयन् तद्दीतगाचारित्रभवति यत्युनःस्तदविनाभूतेतन्निश्वयसायक्तवीतगणसम्पत्तंतिभएपतातदेवकी लवयापक्तिकारलाकातस्तुतदभावसहकारिकारणामपिनभवतिःततोहय इतिशतवाचाक्तकिप लईएणवजणाजेसिधानखाएकालसिलिहिलेनिभवियातेजाहेसम्ममारपेछापमानता येकालाव्यस्यमन्पहायरमागमाविरोधेनविचारणीयेपरेविनवीतरागसर्वज्ञवचनेप्रमाणमितिम नसिनिश्वित्यदिशाशनकर्तव्यावास्यादिनिचताविवादरायाभवतश्वसेमारवारितिकाशवेका ...:. -- . Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wear लश्याव्यात्यानमुत्यत्तयापनमस्पलसूत्रहयेगताइतिगाप्याएकसमुदायनयेचमिःस्क्लेम्युज लादिषचमिदानीवश्यकश्यनरूपणधितीयोत्तराधिकार:समानतपरंसूचनकपयुत्तेपे चास्तिकायन्याल्यानेकरोति वातासापूर्वाहणषटश्याव्याख्यानापसहारा उत्तरोईननुचास्ति कायव्याख्यानमारभाकपताल मोनाशि 37 गाया। समान 41 3-1 २.7 एवेखनेपमिदेनीवाजीवष्यभेदवोदछ। एनपूर्वोक्तमकारणमिदेजी वाजीवमभेदतः सकासाद्दामुक्तकणितेप्रतिपादित उत्तेकालविजुत्तणावापेचमास्थिकायात दिवपरमेश्येकालनवियुक्तरहितज्ञानव्ययेनास्तिकायोपुनरितिगानिसख्यामतातावदिया नीमस्तित्लेकायत्वचनिस्पयति छ सेतिजदातरणदेशप्रतितिभरतिनिणरत्नम्मा कायाइतका दिसा ताहाकायायप्रस्थिकायायासेतिजतिणेदेशपछित्तिनतिजितवासतिविधतायत एतेजीवायाकाशयता:पेन तेनकारणेनतस्तीतिभरणतिजिणवरासर्वज्ञा जम्हाकागाईव amanumanmahanmain a HARASunaran Standaudaim vidocrapa Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थ्यसे देसाहाहाकावायापस्मात्कायाइववशास्तस्मालारणातकायाश्वमणतिनिणवराजछिकाया याएवनकोक्लपूर्वोक्तप्रकारेणस्तित्वेनयुक्ताप्रास्तसजास्तबकायत्वेनयुक्ताःकायसेज्ञाभवेतिाकि नूभयोलापकेनास्तिकायसनाविभवेति इदानीसेजालक्षणप्रयोजनानिभेदोयस्तित्वनसहमे देदशीतिताहि शुद्धजीवास्तिकामिहत्वलक्षणःश्याननपर्याय केवलज्ञानादर योनिशेषगुणाशस्तित्ववस्तित्वागुशलघुलादया सामान्यागुणावयवाव्याधानंतसुखायनेतगुण व्यक्ति समस्यकापसमयसारस्यात्यायोरागादिविभावरहितपरमस्तास्यास्पस्यकारणसमयसारस्य स्वयत्ताभयाधारभूतपरमात्माश्व्यत्वनीव्यमित्युक्तलक्षणर्गुणैपर्यापेरुत्यादययप्रयम्बस हसतावस्थायासज्ञालक्षणप्रयोजनाभेदेषिषसत्तारूपेणदेशापेमारूपणचभेदोनास्तिाक स्मादितिचनामुक्तात्मसत्तायागुरणपोयाणामुत्थादापोव्याणाचास्तित्वेसियतीतिपरस्प रसाधेितसिदित्वादितिकायलेकथ्यतेश्वकप्रदेशापचयदृष्टाययाशरोस्कायोभण्यातयानेता Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राधारभूतानामो का कलाप्रमितासंख्येयमुद्धप्रदेशानात्रचयं समूळे संघातंमेलापकं दृष्ट्रा मुक्तात्ता निकायले भरापत्तेः पयामुद्ध गुणापर्यीयात्यादव्यय धौवे : सहमुक्तात्मन: सत्तारूपेणानिश्र्वयना मे दर्शितस्तप्याथ प्यासे भवे से सारिजीवेषुपुलधम्मो धर्माका कालेषुचयः कालद्रव्यनि हायकायत्वेचेति सूचार्य ॥ अव्यकायत्वव्याख्यानपूर्वप्रेयदेशा स्तित्वं सूचितंतस्यविशेषच्या ख्यान | करोतीत्ये कापातनिका द्वितीयातुकस्यव्यस्यकिगत: प्रदेशा भवतीतिप्रतिपादयति छ।हाँति प्रसंखाजीचे धम्मा धमेमे>पोक्तप्रायासः मुत्तत्तिविहपदेसा कालस्सगो खाता से ।। का ॐ॥ २६ ॥ | होतिप्रसादाजीने श्वम्पा धम्मे भवेति। लोकाकाशप्रमितासंख्येयमदेशा-प्रदीपनडु उपसंहार विस्तारयुक्ते व्येकजीव नित्यस्वभावविस्तीर्णयोमा धर्मायोरपि / अनंत मासे अने तमदेशण आकाशभवेति मुत्ततिविरूपदे सामूर्त्तयुक्लद्रव्य संख्यात्ताऽसरख्याता नेता नापिं डाः स्कंधास्तएवत्रिविधाः प्रदेशाभणपतेः नचक्षेत्र प्रदेशाः कस्मात्पुक्लस्यानतप्रदेशक्षेत्रेश Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्यसे ३ वस्यामानादिति कालस्सगो कालाणुश्व्यस्पकपणेकस्यापिघणुकाविस्कंधपर्यायस्परणवऊमेदारूपका काऊ यत्वेजात तयाकालागारपिइयणकस्पापिपीयेगकायत्वेभवत्विति छातत्रपरिहार स्निावरुदहेतुःण्यपे कस्पस्याभावान्नमवति तदपिकस्मातस्निाधस्तत्वंपुशलस्वधर्मीयताकारणादितिामणुत्वे पेसो पुदलसंज्ञाकालस्थाणुसज्ञाकामितिचेताछतवोत्तरे अणुशव्देनत्यवहारेणापुलाउच्यते निवः । पेनतुवाणीदिगुणानापूरणालनयोगातः पगलाइति वस्तुरत्या पुनरापदा सूक्ष्मवारकातर्यः परमेणामकर्षणामकाप्ये सूक्ष्माइतिगुत्पत्यापरमाणुः सचस्तावाचकोऽणादानिर्विभाव गपुजलविवक्षायापल्ला[वदंतिमविभागाकालव्यविवक्षायानुकालाणु कप्पयतीत्यर्थः अयर सर्वे दिशातरणमुपलक्षपतिजावदियमायासे अविभागपुगालाणुउद्दडू तखुपदेसजाणास ! वाणहारमाणरिहे०२८जावदियेमागासप्रविभागीयुगलाणुउद्धे तरखुपदेसजायावत्यमाण के माकाशामविभागपुशलपरमाणुनाएोव्यामतदाकारानुस्फुटप्रदेशोजानीहि हेपियाकयाभूतं सरन पिराश्यस्थानीयवैधयाम्पस्निग्धरक्षाणाभ्यापरिणाम्याणकादिस्कंधस्सविभायनोवारिधोवप्रदेशोभवति तैनकारण कानवझमशालयाकापकारणात्वाइपचारकायाभयपत प्रथमते यप्यापुमलपरमाणाव्यरत Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रदेश: सच्चाणुद्धारण दाशारिहं सर्वाणूण सूक्ष्मस्तं धानाचरणानदानस्यावकाशदानाईयो ग्यसमर्थ मिति पतरावें भूतारणाहशक्ति रस्त्याकाशस्थततरावा संख्यातप्रदेशेपिलेाके प्रनतानं तजीवा स्यायनंतगुणयुद्धविकाशलभ्यते तथाचेोक्तं ॥ जीवपुल विषये युवकाप्रादानसम 103 | शिगोदसरीरे||जीवादद्यप्यमाशादशद्धि सिद्धहि अांतगुरणा: सच्चेणावितीदकालेशा॥३२॥ उमगाट | गाढणिचिदे। पुग्गलकारहिसबद लोगो सुऊमेहिवादरे हियशांताणंतेहि विविहेहिं ॥३०॥ प्रय मतपूर्वपुलानांविभागेोवेदा भवतुनास्तिविरोधाः अभूतीवरस्याका प्राश्व्यस्यकयविभागकल्पने तितन्त्रकरणाद्युपाधरहितस्वसंवेदन प्रत्यक्ष भावनात्पन्नसुखामतरसास्वादन्यस्यमुनियुग लस्यावस्थानदेवत्रमेकमनेकेवा यद्येकेत हैइयोरेकत्वेप्राप्रोतिः। नचतप्णाभिन्नचेत्॥ तप्यानिविर्भ गद्रव्यस्यापिविभागकल्पनामायातः घटाका पटाका प्रामित्यादिवत् । रात्वे स्वयंचकेनपेचात कायप्रतिपादकनामरतीयों तराधिकार : विनापि चेद्र सदा सरवावेश चितद्रव्य संग्रहशे येनत्र के Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्व्यसे ३४ दिसतशतमा यामेरा जवारमाबाबुरामबरन यायाकाबनालयाच्याज्यान या विकार मराह ३४अतःपूर्वीतपूकारयटइच्याणाचूलिकारूपरणविस्तरव्याख्यानक्रियतालातद्ययापरिणा मजोवमुत्ते सदसण्यवित्तकिरियापणणिञ्चकारणकत्ता सलामिदेरहियपदेसालपरिणामऽत्या दियात्यानेकियतपरिणामपरिणामिनाजीवपुजलोस्वभावपरिणामाभ्पाकत्त्वा दोषचत्वारिद्रव्या. णिविभावोजनपायाभावामुख्यरत्यापुनरपरिणामीतिगजीवः घुनिश्वयनयनविमुधज्ञान दानस्वभावशुश्चैतन्येप्राणायवेदनाव्यततेनजीवतीतिजीव व्यवरारनयनपुन कोदयजनितव्यः भावसपैश्वनुर्मि मागाजीचतिजीवष्यनिजीवितपूर्णराजीन. पुजलादिषेचश्व्याणिपुनरजीवरूपाणिः मुत्तेगसमूहात्मनादिलक्षण स्वारसगंधवर्णरतीपूर्तिरुध्यतमतत्सनावातमत: पुशल जीव व्यएनसपचारतासभूतव्यवहारेणमूर्तमपिवनिम्बपनामूर्तः॥धमाधामाकाशकालश्च्याणि चामूलीनिसदेस लोकमात्रममितामययनदेशालक्षणजीवश्यमादिक Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तिकायसंज्ञानिशप्रदेशानि कालद्वव्येषु नर्वऊप्रदेशत्वलक्षण का यत्वाभावाद प्रदेशः राय प्रव्यार्थिक नयेन धर्माधर्माकप्राद्रव्यारोपकानि भवति जीवपुली कालच्या शिपुनरनैकानिभवति रेवस सर्व इव्याणामवकतादानसामर्थ्यात् दोन माका प्रमेकं शेषव्याएण क्षेत्राणि किरियापः क्षेत्रात दो चोत्तरगमनरूपायरिस्येदवती चलनवती किया साबिद्यते ययोस्तानियावत्तै। जीवपुहले धम्मी धर्म काशकानइव्याणिपुनानीकेणाणि शिशु . धम्मीसम्मकाशकालद्रव्याशियद्यप्यर्थपर्यायत्वे | नानित्यानि तथापि मुख्यवत्याविभावव्यंजनययोया भावानित्यानि इव्यार्थिकनयेनचजीवपुल इव्येपुनर्यद्यपि व्यार्थिकनयापेक्षयानित्यः तथाप्यगुरु लघुपरिणातिस्वरूपस्वभावपर्ययापेक्षया विभावव्यंजन पर्यायापेक्षयाचानित्यर [13] कारण 17 10. पुली धम्मी धामीकारा कालद्रव्याणिव्यवहारनयेन जीवस्यशरीर बाउयनः प्रारणा यानादिगतिस्थित्व वगाहवर्त्तना कार्याीरितकुन्द्वैतीतिकारणानि भवेत्ति जीवव्यंपुनर्ययागुरुशिष्यादिरूपेणावरस्परोपग्रहं करोति तप्यापिपुरुलादिपं चद्रव्याणा किमा 1 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ megas मयिनकरोतीत्यकारणा का सुपरिणामिकपरमयाहकेनभुश्व्यायकनयनयद्यपिबंधमाक्षयभावरूप . भयादीनामकत्तोजीवनयापमुनियननुभाशुभाययाभ्यापरणनिःसनपुरणयाप यो.कतीतत्फलभारताचभवतिविमुखज्ञानदर्शनस्वभावनिमझाताव्यस्यसम्पकमशानज्ञानानु। शनरूपेणमुशापयोगनियरिणत सन्माक्षस्याधिक तत्फलभोक्ताचेति भानुभयुश्परिणाम पोरणामनभवक्तालसर्ववज्ञातव्यमिति पुलादिपचश्व्याणाचस्वकीयपरिणामेनपरिणामान : मेवकनलवस्तुरत्यापुन पुगपणापादिरूपणाकतत्वमेवासहगोलाकालाकव्यास्पक्षयासतमा कायमण्यते लोकांच्यापेक्षयाधम्माधर्मजीवश्व्या पुनरेकजीवापेक्षयालोकपूरणावस्याविहां यासर्वगता नानाजीवापेक्षयासातमेवभवतिः पालश्ययुनलोकस्समस्कंधापक्षयासर्वगत. शोधपुलापेक्षयासदेगतनभवति कासव्येपुनरककालाव्यापक्षयासवानभवति लाकरे राधमाणानानाकालानविनक्षीयारोवेसर्वगतभनति इस्पियवसायद्यपिसईया . . Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | रेक क्षेत्रावगाहेणान्यान्यानुप्रवेशेन तिष्टति तथापिनिश्र्वधनयेन चेतनादिस्वकीयस्वरूपनत्य नीति | ॥ चव्येमध्येवीतरागाचिदानदेकादिगुणस्वभावमुभाशुभमतो वचनकार्यव्यापाररहित निः अमुद्दात्मभ्यमेवापादेयमिति भावार्थ असई पुनरपि षट्च्या रसामध्येहेयोपादेयस्वरूपंवि शेवेणाविचारयति। ॥ तत्र भुरू निश्वयेनशक्तिरूपेण ददैकस्वभावत्वात्सर्वजीवा उपादेयान | बेति व्यक्तिरूपेणपुनः पंचपरमेष्टिनरावतत्राप्यहेत्सिद्धयमेव सत्रापिनिश्वयेनसिद्ध एक परम निश्चयेनतु भोगाकांच्तादिरूपसमस्त विकल्पज्ञास्तरहितपरमसमाधिकालेन सिद्ध सदृशः स्वभुम् शत्मैवोपादेय शेषच्याणियानीतितात्पर्यं ॥ शुद्धबुद्वैकस्वभावइति कार्य: मिथ्यात्वरागादि समस्त विभावरहितत्वनशुद्धइत्युच्यते ॥ केवलज्ञानाद्यनंतगुणसहितत्वाहुद्ध ॥ इतियुद्धबुदै क सदासर्वत्रज्ज्ञातव्यं ॥ [रावेखट्श्च्यचूलिकासमाप्ता ॥ छ। चूलिकाशब्दस्यार्थः कष्यते। चूलिका विशेषग्यारख्यानं ॥ अप्यवा उक्तानुक्तच्याच्याने अथवा उक्तानुक्त संकी व्याख्यानं चेति ॥ अतः परं ३३ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसह जीवालपर्यायरूपाणामाश्वयादिसमपदार्शनामकारणाप्यापर्यंतव्यारयानेकरोतिकातबारा सबरधरणात्याद्यान्धकारसूचगाणेकातदनेतरमाअपायव्यारव्यानरूपणमासदिजगाइत्यादि गाप्याव छ ततःपरेवैधव्याख्यानकननरन्जदिकमातेप्रभातगायाश्याशाततापिसेवकायन रूपेणादायरिणामाइत्यादिस्वध्याछात्ततावानजेराप्रतिपादनरूपणाहकालणतवणयति शभतिसूत्रमके लगतदनंतरमोक्षस्वस्पकरणनेना सबस्सकम्मगायोइत्यादिस्बमके तत्तवपुरत्यर्ष पत्यकप्यननसुहममुरुइत्यादिसनामकरेत्पकालाप्याभिस्थलसप्तबोनसमुदायनाहितीयाधि कारेसमुदायपातनिकारातबारशियःगयरकोतनजीवाजीनीयरिणामिनाभवतस्तामयागपी यरूपणकमवपदार्थ : यदिएनरकातनापरिरणामिनोभवतस्तदाजीराजीवश्यरूपोहोचवपदार प्यास्तस्ततःभाग्वादिसमपदार्थ:कणपटेतइति सवोत्तरेकप्ताकचित्परिणामित्वाद्य देतेगकारपोरणामिलेको यणास्फटिकमणिविशवायपिस्व Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | पुण्याशिजनितेपयीयालरपरिणामतियकातिव्यद्यपाधिगमतितापिनियनथुझस्वरूपन स्पजति तप्याजोगपिपद्यपियुयाकिननसहजयुद्धचिपानदैकस्वभावस्तथापनादिक |म्मेवेधपर्यायवसेनरागादिपरमव्यापाधिपायरज्ञान.. यद्यपिषीयनपरिणतितप्यापिनिश्व यनमुखमपनत्यज्यतिापगलावितणातिपरस्परसापासकरित्यरिणामित्वशनस्थाणे एबेकायचित्यरिणामित्वसतिजीवपुलसयोगपरिणतिनिर्वत्ताभाववादिससयदायाधटतातेसपूती तातीवानीपपदार्याभ्यासहनवभवेतितरावनवपदायाः पुण्पपापपदाप्यन्यस्याभदनयनकला पण्पयायवेद्यपदार्थस्थलामोऽसभीवविवक्षायाससत्तत्वानिभरपेता इतिारेभावनायपिकप्ये वित्परिणामिलमलनभेदप्रधानपयोयायिकनयननरपदासप्ततत्त्वानिवासिनितथापि तिप्रियाजने योवमेदनयनपुल्यपापपदाध्ययातभावोजातःतवविरोधाभेदनविन क्षायामामवादिषदायीनामापजीवाजीवमातभोवरुत्तज्ञानाजीनोहारपदाप्यावित्तिातच Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसं० ३७ परिहार: हेयोपादयत्तत्वपरिज्ञानप्रयोजनार्यमाचवादिपदायीव्याख्ययाभवतीति: । तत्रैवक व्ययति यतत्वमक्षयानेतसुखे तस्य कारणमोक्षः मोक्षस्पस्यकार तं संवर निर्जरादयः तस्य कारणं विशुद्ध ज्ञानदर्शनस्वभावनिज्ञात्मत्तत्त्व सम्यक श्रद्धान्ज्ञानानुचरानिश्वयरत्नत्रयं स्वरूपतत्साधवो व्यवहा ररत्नत्रयस्वरुसंथेति इदानोंहेयतत्वकप्पत्तेः श्राकुलत्वोत्पादकेनारकादि३ः स्वानेश्वद्रियसुख चहेयत्वं तस्यका राशंसार संसारकारणमाश्रवबंध पदार्थद्वयं तस्यकारणांपूवक्तव्यवहारान यरत्नत्रयाद्दिक्षदारांमिष्य्यादर्शनज्ञानचारित्रत्रयमिति रावहेयोपादेयतत्वव्याखने रुते सत् सप्तत्तत्वनयपदार्यस्वयमेवसिद्धाइति इदानींकस्यपदार्थस्यकः कत्तैीतिक ष्यतेः निजनिरंजनमुद्दा त्यभावनोत्पन्त्रपरमानंदैकलक्षणसुखाम्टतरसास्वादपरान्मुखेावहिरा त्माभण्यतेः सचाश्र्वबंधपा यस्पकतीभवति क्वापिकालेषु नमेदयिष्ण्वास्त्वमंदकषायोदये सति भोगाकांक्षादि नवेधेन भाविकालयायानुवंधेिपुरापपदास्थापिकतीयस्तु पूर्वोक्तवहिरात्मना विलक्षणः सम्य Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ inhindi छिसम्वनिर्जरामोक्षपदाप्यंत्रयस्याको रागादिविभावरस्तिपरमसामायकेपदास्यानुसमानभ. वति तदाविषयकलायात्पन्नानवेचनाप्यंसंसारस्थितिछेदकुर्वनपुरापानुवेधीतीर्थकरनामक ममरुत्यादिविशिष्टपुण्पपदार्यस्यापिकीभवतीति लावावविषयनविभाग कथ्यता मिय रदिस्यपालापर्यायरूपाणामावबंधपुगण्यापपदार्यानाकर्तत्वमनुमचरित्तासत्तय वहारेण जीवभावपर्यायरूपाणापुनरगुनिलयतिसम्पग्हरेस्तुसंवरनिरामोक्षपदानाश्त्यरूपा गायक तत्वंसदप्पनुपचरितासातव्यवहारेणजीवभावपर्यायरूपाणातुविविक्षितकदेशामुनि वयननात छ,परमशुझनिम्बयननुयाविउणज्जरणविमरवधुरणमुरकुकरे निउपरमले जोडूयाणासाममगई छाइतिवरनाइंधमाक्षौनखःसचपूर्वोक्तविवक्षितका युनिश्व यामभाषयाकिभणपतमस्वयुद्वात्मसम्पकस्यवानज्ञानानुचरणस्पणभवष्यतीतिभयाण, विभूतभवात्वसेजस्यपरिणामिकभावस्यसेवोधनीव्यक्त भएपता अध्यात्मभावयापुन व्याक्ति SANResunawon RWAmate haiuttarivi.inbanANANE I A AH S Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्य रूपमुक्ष्यारिणामिकभावविषयभावनाभरापते पर्यायणामातरेणानिर्विकल्पसमाधवायुरूपयोगाके चेति यतावभावनामुत्तिकारणाननण्वशुद्धपरिणामिकभावोद्योगस्पोभवतिध्यानभावनापान भवति कस्मादितिचेत ध्यानभावनारूपानमवस्थि कस्मादिनिचेताध्यानभावनापर्यायाविनस्वाः 'सव्यस्तत्वादविनम्मरण इतिहमवतात्पर्य मिष्य्यात्वादिविकल्पजालहताननशुधात्म वनोत्पन्नसहजानेदेकलक्षणसुरवसेवित्तिरूपाचभावनामुत्तिकारणभातातोचकपिजनके नाविपर्यायानामांतरणभागतीति एवेपूर्वोक्ताकारणानकातव्याख्यानेनारवेधपुण्य पापपदायीजीवपुगलसेयोपरिणामपविभावपर्यायलोत्पद्यतेसेवरनिजेरामाक्षपदाची पुनजीवपुलसयोगपरिणामविनाशात्पन्ननविवक्षितस्वभावपर्यायतिस्थिताशातयणा मानववेधणसवरणणिजारमारकस्सपुरमपावाजाजीवाजीवविससानिविसमासणपभरणामा छ सासवानरायवस्वसवितिलक्षण भानुभयहिणामनभाशुभकामोगमनमानवावेधणा Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंधातीतियुद्धात्तमत्तत्त्वापलंभ भावनाच्युतजीवस्यकर्मप्रदेौः सहसंश्लेषवेध : सेवर कम्मश्रवनिरो धसमर्प्यस्वसंवित्तिय रिणातजीवस्यशुभाशुभकर्मागमनसेवर संवरः शिज्जराः क्षपयोरा भावना सामननीरसी भूतकमिषुञ्जलाना मकदेशगलननिज्तराः मोरको जीवपुलसंश्लेषरूपवेधस्यचि घटनसमर्णः स्वयुद्धात्मोपलव्ध: परिणामामाक्षा इति। सुपुण्यपावाजे पुण्यपापसहिता येन विसमा से सावभखामेो यथाजीवाजीवपदा यौग्याख्यातापूर्वतप्यानाप्पाचवादिपदार्थान् समासेनसंज्ञेये खाद्यभामावयत्तेचा कप्ये भूताजीवाजीनविसेसा जीवाजीवविप्रशषाः चैतन्यभावरूपाजीवस्य वि। शेषाः चैतन्याभावस्तत्पभ्प्रजीवस्यविशेषा विशेषाइतिको र्थः पर्यायाः चैतन्या प्रमुद्दपरिरणामाजी बस्यरुप्रचेतनाःकर्मयुकलपर्यायाः अजीव स्पेत्यर्थः एवमधिकार सूत्रगाप्यागताः ॐः प्रवत्यात्र येणाश्र्वव्याख्यान कियते तत्रादी भावाश्रवइव्याश्रवस्वरूपं सूचयति । दिसा-ने खरेिरजोनामप्रेरोगादिखेारकभानामती तोक व परोहादि२॥ नासवदिजेरण कम्मपारे । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसे मप्पणासविस्मभावासाईगशामवातयनकम्मेपरिणामेनात्मनःसविजयाभावाचवणकामानवान मलनसमयेमुशामभावनाप्रतिपक्षाभूतनयनपरिणामनायवतिकर्मकस्यमात्मनस्तस्यसपरिणामा · · फसवकार्यभूत नियुत्ता जिनेनसर्वज्ञवीतरागनाता कम्पासवणेपरोहादिकम्मा भवति जानापरणादिश्व्यकम्मेधावणमागमन पर कार्यःभावाचवादन्यामिन्नाभावा श्रवानमित्तनतेलमुखितानाचूलिसमागमानमिवश्याववभवतीनिछाननुभाववतियनकम्मेतेने वपदेनश्व्यायवालव्य पुनरोपकमालवणेयरोभवतीतिश्यामवव्याहव्यानेकिमयमितिय तंत्यया तन्नायनपरिणामेनकि भवति साध्वनिकम्मतपरिणामयसामयीतनरत्याभूवय्याख्या नामनिभावार्थःअध्यभावानवस्तरूपविशोषणकथयति मियत्ताविरदपमादायागाकाखा दयावसायापणपणपणपनियरा कमसाभदाऽवस्साशमित्ताविरदिपमायाजागाकाधायल। य्यात्याविरतिषमाप्लेागकाधादयसम्पतरवीतरागनिजात्मतत्यानुभूतिसनिविषयविपरीताभिनिवेशाज Mariam Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mamma SARITHERameramanawwar i uAAAAGE नववाहविषयतुपरकीयमुक्षात्मतत्त्वपतिसमस्तव्यपुनिपरीताभिनिवेशात्पादवेचमियाभरंप तापपतेनिजपरमात्मस्वरूपभावनात्पन्नपरमसुखामतरतिविलक्षणावाहविषयनिरव्रतादिरू पोवेत्यविरति गमभातरेनिःप्रमाक्षसुधात्मानुभूतिचलनरूपत्वहिविषयेत्तमलातरराणमलेन । वनतिप्रमादःनिश्वयनान कियस्थापिपरमानाव्यवहारोपदीयोतरायक्षपापामात्पन्नामना) वचनकायरिणावलेपन कम्मीदानहेतुमात्मप्रशायरिस्पोयाइत्युच्यतेप्रभपतरेपरमाणा प्राममूर्नकोवलज्ञानाद्यनेतगुणस्वभावपरमात्मस्वरूपक्षाभकारकावहिनिषयेतुपरेषासवेधित्वे नकूरलाहावा जोधादयश्वत्पुक्तालक्षणापेचायवाणप्रयहोनियागविजेयाजातव्याः । कतिभेदास्तापरणपणपणदसतियचकमसाभेदापचपचपेचमाविचतुर्भेदा कमसाभवेतिपुन छातणाहिरायतनुभदरसोगविवरीवाहतावसादिगाउ इमोनियससायोमडियामागी इतिगाप्याकथितलक्षणेचविधेमिथ्यात्वहिसानतस्तेयानम्मपरिग्रहाकाक्षारूपेणाविरतपेचविधा . n MAnimunaminchowan-dia-../nline IRAHMAtterrearran-Tara R mactaamanaHAI Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यक मण्यवामनसहितपेश्यिप्रतिणियादिषटकाविराधनाभेदेनहायाविधाविकणातल्यकषाया दियाणातहेवपणणयचचापणमगेग होतिपमावाजपस्मरसाशको इतिगाणाकथितकमपंच दाप्रमादामनोवचनकायव्यापारभेदेनविविछोयोगाविस्तरेणपेचदादारावोधमानमायाले' भभेदेनकषायावत्वारः कषायनाकषायभेदेनपेचविंशतिविद्यावारितेसबभेदाः कस्यसाधिन पुत्र स्थापूर्वस्वादितभारण्यवस्पत्यये प्रयश्यामवस्वरूपमुद्यातयतिपणावरदणजो गोयुगगले पासपोदनवासईशाप्राहायभेदविवाद 340णातावरणादणासहजयुद्ध केवलज्ञानमभेनकेवलज्ञानाद्यनेतगुणाधारभूतज्ञानालस्वाच्ोपरमानेवाभावणातीतिज्ञानावरको तपादिधानानिदानावरणादीनितपाजाग योग्पज्ञपुगालसमासाद स्नेहाभक्तारीराणा -.. समागमइनेनिष्कवायनुज्ञात्यसवित्तियुतजीवानाकर्मदानास्पयत्युकलापसमावति दवाई सणेश्याअवविजेपयाण्यभेउवासरज्ञानदर्शनावरणीयवेदनीयमोहनीयायुनीमगोत्रातरा . . Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | नामष्टमूलप्रकृतिभेदेन तथेव पशारणवश [प्ररखीसा चउत्तियणवदीयदो। शिपिचेव बाबाहीशा विय | सय: पयडिरिणासेाहातिनेसिझा: ॐ इतिषांच्या कथितक्रमणाष्टचत्वारिंशदधिकशतसंख्याप्रमितत्त | श्प्रकृतिभेदेनतप्याचासं ख्ययलेाकप्रमितर थिवीकायनामकम्मीद्युत्तरोत्तरप्ररूतिरूपेण मेकभेदइति जिणरकादो जिनाख्याताजिनमणीनइत्यर्थः॥ॐ॥ एवमाखवव्याख्याने गायात्रयेाप्रप्यमस्थलगत अतः यसूत्रइयेन वैधव्याख्यानक्रियते । तत्रादौ गायापूहोईन भावबंधमुत्तराद्वैनतुद्व्यवेधस्वरूपमा बेदयति । बज्जादेवमेचिदाधविका भावये चेतिय कम्मादयेदसालेमसाया नेक्स रेप || | बज्तदिक मंजेशाडु: चेदण भाषेण भावबंधोस व ध्यते कर्मयेनचेतन भावेनसमावचे द्योभव निः| समस्त कर्माविश्वविध्वंसन समणीस्वरेकप्रत्यक्षप्रतिभासमयपरमचैतन्यबिलासलक्षण ज्ञानगुण स्वाभेदमयेनानंतज्ञानादिगुणाधार भूतपरमात्मनेावासवेधिनीयातुनिर्मलानुभूतिस्तद्विपक्षभूतेन मिथ्यात्वरागादिचरणातिरूपेणचानुश्चेतन भावेनपरिणामेनबध्यतेज्ञानावरणादिकम्र्म्मयेनभावेन K Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इव्यसे ४१ | सभाववंद्यो भगपत्ते: कम्मादय देसाठी शो अस्माशापवेसांइदरोः कम्मी त्प्रमदेशानामन्योन्यप्रवेशमित्तरखे भाववेधनिमित्तेन कम्मेप्रदेशानामात्मप्रदेशानाच क्षीर नीरवदन्यान्यप्रवेशनसम्ले षोडव्यवेधइ तिम्प्रय्यतस्यैव चे धस्यगाय्यापूवीर्डेन प्रकतिवं धादिभेदचतुष्टयेकण्ययति उत्तराद्वैनतुप्रकृतिवेधा। 'चेति॥ॐ॥ पयो| हे दिशतु भागबदेसमा उडवेवेोचे थे। भोगावया उपदेशा वेिदिनः समाजवादी होते है । पय डिडिदिभ्प्रस्तुभागव्यदे सभेदाडु चषु विधावंद्योः मरूतिस्थित्यनुभागमदेशा भेदाश्वतुर्विधो भवति तप्याहि ज्ञानावरणीय स्वकर्मण: कामकृतिः देवतामुरम्यस्त्रमिवज्ञानमया तादर्शनावरणीयस्पकाप्रकृति : राजदर्शनप्रतिषेधकप्रतीहारवद्दर्शनप्रखादनता सातासात वेद नोयस्यकाप्रकृतिः मधुलिशखड्‌ग धारास्वादनवदनल्पसु रखवऊडः खात्पादनता। तिः मद्यपानवशेयोपादेय विचारविकलता प्रायुः कर्मणः काप्रकृतिः निगलवत्यत्तरणम नामकर्मण: काप्ररुतिः चित्रकार पुरुषवन्नारसकररणता गोत्रकर्मशा: काप्रशतिः निग Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m omamerammam amim रुलघुभाजनकारककुंभकारकाञ्चनीचगावकरणतातरायकम्मेणाकाश्रुतिःभेरगारिकवदान विघ्नकरतेति छातयाचात परपडिहासिमछा हरिदिनकुलालभरपारीगजमएदेसिभावा तहति हकम्मामुणेया इतिहष्क्षातकारकेनश्रुतिवेद्योज्ञातव्याजागोमहिमादिग्धानामर रक्ष्यादिस्वकीयमधुरमावास्थानपर्यतेपणास्थितिभापते तणाजीवप्रपोषियारकालेकम्मसे चेनस्थितिःतावत्कालस्थितिरघोजातोयल्याचतषामवाधानालारतम्भनरसागतसक्तिविश योनुभागाभणपत सयाजीवप्रदेशस्थिनिकम्मस्केधानामपिसुखाखदानसमर्थशाक्तिविशेषानु | भागवेधाविनेयासघानिकर्मसंवेधिनीतिलतादास्रतिपावारणमातिभेदेनरतुचो नयेला शुभाघातिकम्मेसेवेचीचनिवकजीवियहालाहलरूपेणाशुभघातिकम्मरदेशीयुनारखेडावेरारत स्मरणचतु भवतीति कारकैकात्मनदेशसिमानतेकभागसेरख्या प्रभव्यानेतगुणाममिताभनेताना तपरमाणवः प्रतिक्षणवेधमायातीनिदेशावधानोवेधकारणकात जाणापरिपेक्ष्साहिदि m............... aratrammarominencannomimmamneeneurs m Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसे १२ अणुभागाकषायदेहातिश्योगात्मकतिपदेशास्त्पनुमानकषायतोभवताति तयासिनिश्चयननिः वियागमविभुशात्ममदेशानाव्यवहोरणापरिस्पदनहेतुः तस्मात्परुतिप्रेदेशवेधयभवतिनिधी पपरमात्मभावनाप्रतिवेधवक्रोधादिकषायादयास्पित्पनुभागवधायभवतीति मानवबंधे। चमियालाविरत्यादिकारणानेसमानाना कोविशेषतिचेतनवाप्रपामक्षणकमेस्कंधानामागमनमा अवागमनानतरादितीपक्षणाजीनामवस्यानवेधातिभेदायतस्वयोगकषायाधचतुए यभवति तत्ववेधोरेनवायायालयायत्यागननिजसुधात्मनिभावनाकर्तव्यतितात्पर्य एवं वेधव्यारव्याननस्वस्येनहित्तीयस्थलगतायतमावास्येनसेवरपदाय कथ्यतेतजमयमगाया योभावसेवरश्च्यवरस्वरूपनिरूपतिगादाणपरिणामाने कामासासवाणाहगाहेमा चारोगल्लयुदयालयोहणाचाचपणपरिणामायकभूताकम्मानिरोधनेहेतु सभा बसेबरोभवतिरबस्नुस्फोदवासदराहणेप्रमाश्यकम्मोत्रानण्येनेसहारन्यायसेवरइति Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तथा निबनवतःसिहत्वात्यकारणनिरापेक्षासरेवाविनश्वरत्वातन्नित्य परमाद्यात स्वभाव स्वास्वपराकाशनसमये अनाधनेतत्वादादिमध्यातमुत्ता हलमत्तानुभूतभोगाकाक्षारूपनिदान बंधादिसमस्तरागादिविभावमलरहितवादत्तनिर्मल-परमचैतन्यविलासलक्षणवाडिलक्ष रणनिमारस्वाभाविकपरमानदैकलक्षणत्वापरमसुखमूर्ति निरामसहजस्वभावत्वात्सर्वकामेसे चरहेतुरित्युक्तललण परमात्मातत्सभावभावनात्पन्नायासोबुद्धचेतनपरिणाम-समावसेबरोभवति यस्तुभानसेवरात्कारणभूतात्पन्नकार्यभूतानवसरत्यकर्ममागमनाभाव सच्यसबस इत्या अप्यसे साविषयनविभागवियतानयाहिमित्यादिक्षीणकवायतमुपयुवरिमेदत्वात्तारतम्पन तालमुनिश्चयावततात्तामध्येगुना व्हायानभेदन भानुभमनुशनरूपमुपयोगत्रयत्तिय निषताच्यतामियासिसासादासाहुबारस्योगाणीपरिमलतानाशुभेपयागावतातताय्य संयनसम्पाविश्वासकामहतसेशलोकायादारलियाशेषयात सायकउयेषरितारतम्पनःशुभोपयो Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस गोवर्तने तप्लनरममतादिक्षीणफपायर्ययत्तेजघन्पमात्रुभेदनदिवटेतकशुझ्नयरूपशुशेषयागोवत्त नि तमिण्याष्टिगुणस्थानतावत्सररोनास्तिसासादनादिगुणस्थानमा जवेअवछिन्ना जनशरत्चपरासाजराइतिवावविभेगोकणित क्रमणोपर्युपरिप्रकर्षणसेवरोज्ञातव्यातिमध्यमुनिश्चयमध्यामिण्यादृष्टयादिगुणस्थानरुपयोग यारव्यातेपतवाशुनिस्वयमुशेषयोगाकप्यघटतर्शतचत्तवात्तणमुझपयोगयुशबुकस्वभावा निजात्माध्यस्लिपोतनकारणनशुध्यत्वात् जुझावलेवनत्वातणशुशात्मतरूपसायकस्वाच मुझपयोगाचटतेसवसेबरावयाच्या भुशापयोगासेसारकारणभूतमिथ्यात्वरागादिशुरूपयोया चदशेनभवति तयरफलभूतकेवलजानलक्षणक्षपर्यायवतमुझपिनभवतिावितुताभ्यामनु" साघुरुपयोयाभ्यालक्षणभुक्षातानुभूतिरूपनिथूयरलवयात्म . .. मकदेशोनरावरणेचरतोयमवस्थातरंभापते कश्विपाहारलज्ञानेसकलानरावरण Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Hamammeetinatimatemement - कारणेनापिसकलानरावरणनमुनभाव्यमुपादान कारणसहकार्यभरतीतिरचनाता छातबोत्त रेदीयते युक्तायुक्तभवनायराकेतपादानकारणमपिपासावर्णिकार्यस्थाधस्तनवाणीकायादान कारणवत मनायकलपाकायस्पत्पिडस्थासकाशकुशलोत्पादानादेतिनकार्यादेकोन मिन्नेभवति यदीपुनरेकोतनोपदानकारणास्थकार्यगासहाभेदाभक्षेवाभवतितारपूर्वोक्तस्वरण काहशतक्ष्यवनकार्यकारणभावानघरताततलिसिक्षिाएकशननिरापरणलक्षायोपामि मज्ञानलक्षणमेकदेशतिरूपविवक्षितकशमुदनयनसेवरशास्वायशुइययागस्वस्समु तिकारणेभवति यञ्चलब्धपोशमल्लनिगाजीवनित्योछारेनिरावरणेज्ञानेसूयतात्तदपियदा निगदसर्वजघन्यक्षयोपशमापक्षयानिरावरणनच्चसर्वयाकस्मादितिचेनातावरणजीनामा चयापानि वस्तुतः उपरितनक्षोपरामिकमेव योदएनीचनपरलस्थकदेशनिरावरारलेव लज्ञानासस्पेभवति तयकोनापिलाकालाकप्रत्यक्षताशानातिनरतयाश्यता कित - --- m manas - Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसं० ४४ प्रचुरामेचप्रच्छादितादित्य विनयन्निनिडलोचन परलवास्ताकेप्रकाशयतीत्यर्थसप्यक्षयोपशमलक्षणक य्यते सर्वप्रकारे शमात्मगुणप्रच्छादिकाकम्मैशक्तयसर्वघातिस्पर्द्धकानि भत्येते "विवक्षितैकदेशेनात्मगुण प्रच्छादिकशक्तयोदेशघातिस्पर्द्धकानि भगपतेः सर्वधाति स्पर्धकानामुदयाभावएवायस्तेषामेवास्तित्व मुक्ाममुच्यते सर्वच्या न्युदयाभावल क्षणक्षेपेणासहित उपशमः तेषामेकदेप्राचातिकानामुदयति मुदायेनक्षयोपशमाभण्येते क्षयोपशमेभव. क्षायोपशमिका भाव ः अप्यनादेशधातिस्पर्द्धको दयेपि सतिनीवएकदेशेन ज्ञानादिगुणलभतेयत्रसक्षायोपशमिको भावः तेनकिंसिंद्धं पूर्वोक्तसूक्ष्मनिगो दिनीवज्ञानावरणीयदेशघातिस्पर्द्धकादपेसत्येकदशनज्ञानगुणलभतेतेनकारणे। नतत् क्षायोपशमि केज्ञानंनचक्षायिकःकस्मादेकदेशेोदय सद्भावादिति प्रयमत्रार्यः यद्यपिपूर्वोक्तंश्रुद्धावयोगलक्ष · सोक्षायोपशमिक ज्ञानमुक्तिकारणं भवति तवाविध्यायतापुरुषेणयदेकसकल निरावरणामखेडेक सवाल विमलकेवलज्ञानलक्षणपरमात्म स्वरूपतदेवाहंनचखेरज्ञानरूपइति भावनीये: स्वसंवरतत्व 20 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -यारयारियषनयविभागाजातव्यमितिणनयमेवरस्कारणभेदात्वाणपतीत्येकापातनिकाहितीयातुकै रुत्वासदराभवतीनिएप्रत्युत्तरददातिषतिपातनिकायमनसिएत्वासूचामिप्रतिपादयतिम য ক্তিরাজ্জাৱৰ ব্য ৱৰণ বগুনতাবিথানিয় | पाचदसमिदिगुती कसम्मापहापरीसहजरूपणमतसमिति गुसया सम्माणुषहाधर्मस्तयेवानुप्रेक्षाः || परीसहजाऊयापरीवहनपाचारित्तपोभेयाचारितभेदयुक्तपणादवाभावसबसिसा एते सर्वमिलित्वाभावसवर्णरेषाभेदाज्ञातयतिलामविस्तर निम्वनविमुझज्ञानदीनस्त भावानेजात्मतत्वभावनात्यन्नसुरवसुधास्वादवलनसमस्त शुभाशुभरागादिविकल्पनियतिव्रताव्य वहारेणतत्साधकहिंसान्तस्तयाबम्हपरिग्रहाज्जारज्जीवनितिलक्षणवेचविधवत निश्वयेना" नेतज्ञानादिस्वभावनिनात्मसमसम्पासमस्तरागादिविभावयरित्यारोनतल्लीनतचित्ततन्मयतेन अयनामनपरिणामनेसमिति गदहारणत्वहिरंगसहकारिकारणभूतानाचचिराषियेण्यात Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यस योभाषेषणादाननिष्पोत्सर्गसंज्ञापेचसमितयशनिश्वयनसहजानुशात्मभावनालणेपूटस्थानसंसा रकारणादिभयावस्यात्मनागोपनाच्छादन पनप्रसानेरक्षणेगुमितव्यवहारेणबहिरंगसाध नायैमनोवलकायव्यापारानरोधोगुप्ति निम्बयनसेसारपतेतमात्मानमोक्षस्थानधरतीतिविषु ज्ञानदर्शनलक्षणनिजभावनातमको धर्मःणव्यवहारणतत्साहनाणेदेवेनेरेशादिवेद्ययदेवरती तिउत्तमक्षमादेमावान वसत्पचिसयमतपस्यागादिचन्पत्रम्हचर्यलक्षणादामकारोधमः हादानप्रक्षा कोणसभ्रवाशारणसंसौरकलान्यत्वाच्याअवसंवर्गनिजेरालाकालेभयो विधमानुचितनमनुमेक्षा ताश्वकप्यते तद्यप्याश्यार्थिकनयनटेकालोणज्ञायकेकस्वभावले नाविनस्तरस्वभावनिजपरमात्मश्यारन्पनियतावसवेरेमइनिश्वयनयेनगारितिभा ... यभावकर्मधनुषचरितासभूतव्यवहारेणश्यवार्मरूपेच तयवतत्स्वस्वामिसेवेचनाहीतेयञ्चत्तने चनितादिकेश्मरतनेसुवर्णादिकताभयमिश्चेत्युत्तालक्षणतत्सर्वमवमितिभावयितले तना Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49 विनासहित पुरुषस्पतेषादि योग पिसत्युद्धिष्टेटिवममत्वेन भवति तत्र ममत्वाभावादविनस्वरनिजपरमा | त्मानमेवभेदाभेदरत्नत्रय भावनाभावयतिः यादृप्रामविन श्वस्मात्मानं भावयति तादृशमेवादायानेतसु | खस्वभावमुक्तानप्राप्रातीति अझवानुभेक्षागता ॥ प्रयनिश्वयरत्नचयपरि सात स्वातायत हिरंगसहकारिकारण भूतपंचपरमेस्वाराधनेचारण : तस्मादहिर्भूतायेदेवेंश्चक्रवर्त्तिषु भटकोरि भरपुत्रादिचेतनाः गिरिभूमिवरमणि मंत्राज्ञाप्रसादोष धादयः पुनरचेतनास्त भयात्मकामिश्र श्रमरणकालादमासरगोहाटयांच्याघ्रग्रहीतम्भृगवालकस्यनमहासमुझेयोतच्युतपक्षिणावर | नभवतीति विज्ञेयेतद्विज्ञाय भोगाको छशपनिदा नवे धादि निरालेवनेस्वसोवेतिसमुत्पन्नसुखाम्टतमा | लेवनेस्वान्मन्ववाच लेवनेरुत्वा भावनाकरोति यहां शरण भूतमात्मानं भावयतितादृशमेव सर्वका तरारणभूत। शशरनागतवज्जरसहोनिजशुद्धात्माप्राप्नोतीतिशरणानुमे दाव्यारव्यानेः छमयमु -सन्मश्यादितराणि सपूर्वपूचमिायुक्लव्यालिज्ञानावरणादिव्यकर्मस्वरूपे शरीरपोवणाची Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यसेशनपानादिपेश्यिविषयरूपेणचानेसनारानगहीवीवोमुक्तानि विश्वाससारः स्वमुद्यात्मश्व्यसवे ४६ सहजसुदेलोकाकाणामितासरव्येयमदेशभगामिन्नायलोकक्षेत्रप्रदेशास्तस्वबौवामदेवान्याया नेतवारान्यवनयातानरतोयजीव सकारिप्रदेशानास्तीतिक्षबसेसारस्वधुशात्मानुभूतिरूपनिर्वि कल्पसमाधिकालेविहायपत्यकदशकोटाकोटसागराएमपितोत्सागपवसर्पिणपकैकसमयना नापरावर्तनकालानानेतवारानयजीवायत्रनयातानमनःससमयानास्तीतिकालसेसारःअभेद रत्नत्रयात्मकसमाधवलेनसिक्षिणतोस्वात्मोपलावलक्षणसिहपर्यायरूपेणायोसावुत्पाभिवरले विलायनाएकातरीमनुष्यभवतयेवदैवभवनिम्बयरत्नत्रयभावनारहितभागाकाक्षानदानपूर्व कश्यतयावरणरूपाननदिक्षाक्लेननवानपकताछोरस इमारोपालाणा दो लाख जा ..मलाषयारोवाद PAAN 2महाबुदेव - इनिगाथाकथितपदानितयागमानषेधान्य पदानिचत्पभविध्वसत्कानिननुज्ञातमभावनपरिताभवोत्पादकमिथ्यात्वादिभावनासहि Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रावसन्नयेजीवाऽनं तवारान् जीवितमृतमेवतिभवः सेसारोज्ञातव्य: गणवेशी संसार: कष्यतेः. स सूप्याः सर्वजधन्यप्रज्ञतिबंधप्रदेशवे धनिमित्तानि सर्वज धन्यमना वचनकायपरिस्येदरूपाणि श्राप संख्येय भागमभितानि चतुस्यानपतितानि सर्वज्ञ धन्यये ॥ स्थानानि भवतितप्यरसवत्कृष्टप्ररुतिवेध प्रदेशवेश्धनिमित्तानि सर्वोत्कृष्टमनावचन काय व्यापाररूपाणि तद्योगखेख्य संख्य भागममितानि चतुस्थानयतितानिसर्वोत्कएयोगस्यानानि चभवेति ॥ तप्येव सर्व्वजघन्यस्थितिवेध निमित्तानिसर्व जघन्यकषायाधविसायस्थानानि तद्योग्यासंरवयलोकप्रमितानिषट्स्यानपतितानिच भवेति/त थैक्चसर्वोत्कष्टास्थितिबंधनिमित्तानि सर्वेत्किसकषायाध्यवसायस्थानानितान्यप्य संख्यलोकप्र मित्तानिस्रस्थानपत्तिनानि चर्चेति तय्येव सर्वजच्च न्यानुभा॥ वेधनिमित्तानि सर्वजधन्पानुभावाध्य वसायस्यानानि तान्यप्यसंग्मिथलोकप्रमिता निवरस्थानपतितानिच भवेतितथैवचसवीरकृष्टानु भागवे धनिमित्तानि सर्वोत्कनु भाषाध्यवसायस्थानानि तान्यव्ययासंख्यलोकप्रमितानिषट् DJ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसे स्थानापत्तिसानिचविशेषानिवासेनेवप्रकारेणस्वकीयस्वगायन्याशयमामध्यतारतम्पनमधमानि चभवतिणतणवतचन्पायुत्कएपयेतानिज्ञानानुवरणादिमूलात्तरप्रस्तानास्थितिवेवस्थानानिरतानि सीणिपरमागमवाणितानुसारेणानेतवारानभूमितान्यनेनजोदनपवितपूर्वोत्तासमस्तप्रतिवेधा नानाविनाशकारणानिविशज्ञानदर्शनस्वभावनिजपरमात्मतत्वसम्पकलझानज्ञानानुचरण रूपाणियानिसम्मादीनानचारिचालिनान्यवनलव्यानीतिभारससारकाएरवीक्तमकार पश्यत्रकालभवभावरूपेपेचप्रकारससारभारयताम्मस्पनीवस्यसंसारातीतयुद्धात्मसेनि तिविनाशकेषुसेसाररहिवारणषुचमिण्यात्वाविरतिममादकवाययोगेषुपरिणामनजायतणकितु संसारातीतसुख्खास्वादरताभूत्वावसुझातासेवित्तिरलेनसमारोवनाराकनिजनिरंजनपरमानान्य पभावलोकरातिततश्वयाहशामवपरमात्मानभावयतिताहशामक्लन्धासेसार विलक्षणामाक्षाने नकालेतिनीतिमयतुविशेष नित्पनिमाजवान्विहायपचप्रकारसेसारव्याख्यानेज्ञातो क. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दितिचे नित्यनिगादीवानोकालत्रयेषिसत्वेनास्तीतितिष्याचाक्ते मामिणेताजीनाहि णपतोतसारणपरिणामोभावकलेकसुपउरामणगोदवासणामुति ५५ मनुपहितीये नादि मिथ्याशाषिभरतपुजाखयाविशत्यधिवानवरातपरमाणातभिनित्यनिशोदवासिताक्ष । गितकर्माणिगोपा सेजातास्तवाचजीभूतानामुपरिभरतहस्तिन्यापादादतस्ततस्तमत्वाविव इनकमारादयाभरतपाजानास्तचकननिधिसहनवटेति नतोभरतनसमवसरणभावानएला भाववाच मातानेरत्तोतं कायततरकत्वाततपारसीलालणतास्तोककालनमाक्षाता. माचारोगराधनाटीपनकनकापतमास्तालाइनिससाराक्षाला मदकत्त्यानुभक्षाकात तयणा निम्तपरत्ननयलक्षणकावभावनापरिणतस्वनीवस्यनिवपनपेनसहजानतसुखाय नलगुणाधारभूतकेवलज्ञानमेवैकेसहारोबारकार्य स्वरूपचनससथातुमयादस्किारी रतवातीरोहीनविलक्षणपरमसामायकलक्षणकत्वभावनात्परिणतानमात्मतत्त्वमेव Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्व्यसे कसदासास्वत्तेपरमहिलेसवारीपरमावेधुनचविनस्वाहिलपारीपुक्कालवगोवादितनवमयारेणयरमाप तासयमलावावभावनासहितस्वाक्षात्मपदीर्थकरवादिनस्वहितकारोपरमार्थानचसुरणी सगातवेवनिर्विकल्पसमाधिसमुत्पन्ननिर्विकारपरमानेदेकलक्षणाकुलत्वस्वभावात्मसुख मेवेक सुखेनचाललात्याकरिपसुखमिनिवास्मादिदेदैवेधुननसुनणोद्यायमुखादिकजोर स्थानम्वननिराशपमितिचेतायतामरणकालजीपणकएचभपाताचति नचदेहादीनि तय बरोयाग्निकालाविषयकोबायादिसध्यानरहितस्वधातमकसहायाभवति तदपिकप्यमितितायीद चरमदहाभयतितोहकेवलज्ञानादिव्यक्तरूपमाक्षमापयतीत्यर्थः अप्यचरमदेहस्यत्तसंसारस्थितित रुत्वादेवेशायदयमुस्खेदवारम्वापारपेयणमोक्षमापयतीत्यर्थ तयाचाक्ते सागासवरणस या विषालकिनुभागलागणापावरसोपावडापरभवसासयेमोरोपायमेकत्वभावनापालेशा वालिरतरोनिजकारमकमायनाकच्यातिएकत्यानुप्रतागता मयान्यत्वानुमक्षाकणयति । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहिः पूर्वोत्तानियानिदेहबंधुजनस्वणीयरियसुखावनिकम्मोचीनत्वेनविनस्वरागतरेय भूतानिरतानिसबोलिटेकोरकाणजायकेकस्वभारत्खनमित्यानयासबंधकारयादेपभूतान्त्रिविकारपरमत न्यविचमत्कारस्वभावन्निजपरमात्मपदाप्याननियनयनान्यानिभिन्नानितम्यापुनरात्सायन्याभिन्न 'इतिः अयमिवभाव पवात्त्वानुप्रक्षायामकाहमित्यादिदिधिरूपेणग्याव्यानासन्यत्वानुमेक्षायातदेहा दयामत्सकाइन्यमदीयानभवतीति निषेधरूषणति एकत्वानुमायाविधिनिषेधरूपाचविशेषस्ता' न्ययेत्तत्व इत्यन्यत्वानुमक्षासमासा मतपरममुचित्वानुमेलाकण्यात ताणा सहीसुचिकर साणितकारलायन्नत्वातप्येवरसासग्मासमदास्थिमजाकाणिधातवायुक्ताचुचिससधातुमय वन तथानाशिकादिलवरधामपिरूषणाशुचित्वात्तवमूवपुणेषाद्यशुचिमलानामुत्पत्तिस्था नत्याचाचिरणेदेर नकवलममुचिकारणत्वनामुल्चस्वरूपरामुच्युत्पादकत्वनयाभुतिःमुनि धमाल्पबखादीनामचित्तववादकोत्यादमुदिइटानोचिल्वेापत सहायुद्धकेवलशा Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रयास नादिगुणानामाधारभूतत्यात स्तयनिम्पनशुचिस्पत्वातचपरमात्मेवमुचि जीयोयम्हाजीचम्हिदेव चिरियाहारजुजोजादोषणतजारभचेर विमुक्तपदेस्मालयपशितगाथाकथितनिमलप्रहम येचविचनिजपरमात्मानस्थितानोमक्लभ्यतत्तवनम्हचारिसदाचित्तावचनातथाविधवारि गामेवमुस्विनचकामकाधादिरीतानाजलस्नानादिशापितयवा जन्मनाजायतका क्रियायाहिजउच्यते श्रुतेनानियोजया ब्रम्हनार्यगजाम्हणातिवचनात्तवनिम्बयमुना म्हणाणत्तप्याचातानारायणनयुधिवरेप्रतिविमुशात्मनदोस्तानमेवपरमभुचिल्वकारणेनचलो किकागादिनीनानादिकालमात्मानीसंयमतायपूर्णी:सत्यावहारीलातरादयतिबा मियककपारपवनवारिणाझतिचोनरालमा इत्पचित्त्वानुपागतातसईमानचाहने क्षाकयोता समसखिश्यातचरजीवशेश्याम्याव सेसारसागरेषततीनियर्तिकेनतौश्यि शुद्धामसेवितिर्विलक्षणानिस्पोनरसनवाणरक्षुमोचाणोद्रियाणिभरपते परमापरलमलिपर Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मात्मस्वभावस्पक्षोभोत्पादका-जाधमानमायालाभकषायामभिधीयते रागादिविकल्पनियति रुपाया सुमात्मानुभूत प्रतिकूलानिहिसानतलवाजम्मपरिग्रहपत्तिरूपाणिपेसाप्रतानि निः किनिदिवरात्मतत्वनिपरीनामनावचनकायव्यापाररूपापरमागमातासम्पत्तक्रिया मिर्गा स्वकियाइत्यादिपरविशतिक्रियाउच्यते शियनयागाजतक्रियास्पावालगास्वरूपतहिन्जय यथासमुझेऽनकरत्नभारपूर्णसायातस्पजलमनोतिपातामयति नरसापत्तनमानातितर्व सम्पदशेनज्ञानचारिजलक्षणामूल्यरत्नभारपूर्णजीवातस्यपूर्वोक्तामवारे कर्मजलप्रवेश सतिसंसारसमुपाताभवतिनसकेरलज्ञानाव्यावाधसुखाद्यनेनागपत्नपूर्णमातोलापत्तनमा मातीति एवमासवगतोषानुचित्तनमाश्वानुमक्षाज्ञातव्यतिः । अयसबानुमक्षाकतात थातदेवजलपारिश्स्यऊपनतिजलशेवशाभावनिर्विप्रेनवलापत्तनपानाति तथाजीवजन! पानिजमुशात्मानुभूतिल्लनेश्यिायामशरणकयनेसतिकमीजलवाभानिर्विघ्नेनके Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनंनगुणरत्नपूर्ण मुक्तिक्लापत्ननंप्राशेतीतिः एवं सेवरगुणानुचिंतनसेवरानुश्क्षाज्ञातव्यतिरू यमक्षयति ॥दनः पच्चा कोष्णजी सीदविशामलसेच येजाते सत्याहा रे त्यक्ताकिमविहरीतम दिकमलपाचकमग्निदीपने चौपद्यग्टज्ञातितनचमलवा के नमनानायतेनेगलननिर्जर नसतिसुखाभ वाँत ॥ तय्याय्यये भव्यजी बाप्यजीजनकाहार स्थानीय मिथ्यात्वशाद्यज्ञान भावेनकमलसंचये सति मिथ्यात्वरागादिकल्पक्त्वा परमावधस्थानीयजीवितमरणाला भालाभसुखदुःखादिसमभावनाप्रतिपाद केकमीमलवाचकेच शुद्ध ध्यानाग्निदीपके चजिनवचनाद्यर्धसेवेतेतेनचकम्मैमलानोगलनेयतनेनि करने सनिसुखी भवति के चयध्याकोपि धीमानजोगी भावेयः खेजातेतदजीरोगते पिन विस्मरति त तद्रादि जोशीजनकाहारयोराति तेन च सवैदेव सुरखेाभवतिः यप्यायनिवक्जनौप्पा तीनराधम्र्मपरा भवति इति वचनाद्दुः खोत्पत्तिकालेयेधम्मेपरिणामाज्ञायेते': तातः कु. रेखात पिननिस्मरेति ततख निशबरमात्मानुभूतिबलेननिज्जराणैदृएवत्तानुभूतभोमाकाक्षादि विभारपरिणामत्यागः संवे Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणापपरिणामवतन सेवेगवैराग्यलक्षणकष्यता पचमचम्पाला प्रद शेयरह 17 min m ar3 .in .infi Feedhar : 2107 अनेतानताकाशवमध्यप्रदेशोपनादधिधनरातननुवातापिधानवातत्रय हनानादिनिधनावर्नमनिश्वलसत्यातमशालाकास्तितस्पाकारकण्यता सद्या मुखामुरज' स्थापरिपूतोमुरजस्थापितयाशाकारायभतिनाशाकारायभतितासाकार परकेतुमुरता वत्तालाकस्तुचतुकोणतानशेष अथवापसारितपादस्यकातिदेविन्यस्तटस्तुस्यबादस्थित रुपस्पयाकारोभवनिताहमाइदानीतस्पनोसधायामविस्तारास्कोतरतुदेशरज्जुषमागास यस्तयेनदाक्षिणात्तरणसर्वरसप्तरज्नुप्रमाणायामाभवति पूर्वपश्विम नपुनरधोभागसप्तरज्जुचित रजननवाचोभागाचमहानिरूपणहीयतण्यावन्मालारानुषमागविस्तारोभवति ततामध्य लोका(कमलशावर्ततयावहलाकोतरन्नुपरफारिस्तारोभवति ततयाकिएनरपिहीयतेणे Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनाकोतस्तनपाररिस्तोगभवति तस्यबरेनाकस्यमधेपुनरुदूरवलस्यमध्ययोभागछिरेसनसोतनिक्षि सवेशनालकेवचतुःकोणावसनारीभवति सोचकारनुविभाचतुझारज्जन्सेधाविज्ञया तस्यास्त्व चोभागसमरजुवोधालाकसेवामन्या भागमध्अलावाससवेधिलचयोजनममामसत्सयस प्रज्जुवकलेलोकसेवाधपात परमधालाककप्प्यताअधोभागमरोराधारभूतारत्नप्रभारल्या मणमएणवोतस्याश्योधःप्रत्यकमकैकरन्नुपमाणमाकाशेगलाययाकमेकाशरावालुकाकधूम तमामहातमासेज्ञापटमपाभवेतिासस्मादयाभागेरनुप्रमाक्षेत्रभूमिरहितानगोदादिपेचस्थावरम तेचतितिारत्नप्रमादिधिचीनाभत्यकेघनादधिधनवानतनुवातत्रयमाचारभूतभवतीतिविजया वास्याणियाकतिनरकक्लिाभवनीतिप्रययाक्रमणकप्योत लासुदेशात्पविशतिपदा याविषचानवानवशतसहयाचिचेवराणाकमे४.6666अप्यरत्नप्रभादिथिवीनाक मणापडस्पषमाणकथति पिरस्पकाय मेश्वस्पाऊल्पस्यनिशीतिसहस्राधिककलातणे Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बसाविशदशादिशतिचतुर्विशतिर्विशतिवारशासहस्त्रपमितानियोजनानिज्ञातव्यानिातिविस्तरस्तुच, नदिमाग यद्यपिवसनायपक्षयकरज्जुममारणस्तप्यापित्रसहितवतिभोगलाकातप्रमाणता तथा भवामतस्पोनीना लाकातसदिक्षुच अवविस्तारणास्तविस्तारयंतामेश्वममेदरानगाह योजनसहसराऊल्पामध्यलोकपारिवाणिवीतिति तस्याधामाधारशसहसवाफाल्पावर " भागतिपति तस्मादप्पधनतुरशीनियोजनसहशवाजाल्पत्येकभागस्तितित्तताव्यधोभागमा तिसस्वबकल्पासबालभागस्तिति एवरत्नप्रभापच्चीविभाज्ञातव्यातबरखरभासुरक्ले विहह्मपनवप्रकारभवननासिदवाना तथवराक्षशकुलविहायससमकारस्यतरदेवानामागसाजात व्याति पेकभागपुनरस्तुसुराणाराक्षसानाचति अबसलभागनारकास्तिऐति तबरजभूमिकमा सादयधोध-सवेथिचीपुस्वकीयराजल्यात्सकारादधउपरिचवोचायोजनसरस्वविहायमध्यमा गभूमिजमेणपटलानिभाताचयोदशकादशनवससपेचव्यसंख्यानिासान्पवसर्वसमुदायेनपुनरे। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रय कानबारात्यमे तानिपटल्सनियरलानिको मस्तारास्कानभूमयति तवरत्नप्रभाग सोमेनसेशे श्यमभस्तोररलाकरद्यत्सपाययोजनविस्तार मध्यारलतस्पडकसमासस्थचतुर्दिभागप्रतिदिशेणे तिरुणायान्यसरपययोजनविस्तारापकानपेबाराहिलानितविदिकचतुष्यतिदिशयोक्ति तान्पणसेरख्यालयोजनविस्तानियामपिणीवसेनादेखि दिगमातरणपक्तिरहितलेनपुष्पकारखवानिचित्सख्ख्ययोजनविस्ताराणिकानिविदसरव्यययो जनविस्ताराणिपानितिएतितेपारकीर्णकसन्नाइतोश्करणीयमकोर्णकापरणविधानरका भरतीत्यनेनक्रमणप्रथमपटलव्याख्यानारजग मनपूर्वोक्तवानपचास्पटलण्यमेवयारख्या नकमावत्वपक्षणकैकेपटलमकैकेहीयतेयावन्ससऐमशियाचतुर्दिशाभागखकेपिलेनिए रत्नप्रभादिनारकदेहान्सधाकष्णने प्रयमपरलहस्तत्रयातत-कमरयावसानत्रयोदशापरलेस सरापानिहस्तवयमेगषट्चेति तताहितीयराणियादिएचरमेश्केपछिगणक्षिगुणज्ञिपमा Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो सप्तममष्पिव्यांचायशतपंचकं भवतिः उपरितन नरके यडुत्कृष्णै। त्सेधः स्वा धस्तननरके विशेषाधिकोज बन्यो भवति तथैवैबयरले प्रायुः प्रमाांकथ्यतेः प्रच्यमदथिन्यांप्रव्यमपटलेजघन्येनदशसहस्त्रवर्षाणि ततः गमोक्तक्रम२यावसात्पटले सर्वोत्कर्षेणैकसागरोपमः ततः परंद्वित्तीयपथिव्यादिषुक्रमेणचिसप्तद शससदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंप्रात्सागरोपमा स्युत्कृष्टजीवितं यज्चमप्यमपृथिव्यामुत्कृष्टं तद्वृतीयाया समयाधिकं जघन्यं तथैवचटलेषुच। एवंससमएपिवीपर्यंतंज्ञातव्यं स्वशुद्धात्मसंवित्तिलक्षणानि उपरत्नत्रयविलक्षणैः तीचमे थ्यादर्शनज्ञान चारित्रैः परिणतानामसंज्ञिपंचेंद्रिय सरउपक्षी सर्ण सिंहस्त्रीणांकमेणरत्नप्रभादिषट् पृष्णिवीषुगमनशक्तिरस्ति सप्तम्यातुकर्म भूमिमतेनुष्यालाम णामेव किंच|यदिकापिनिरंतरंनरके गच्छतित्तदाएथिवीक्रमे राष्टसप्तषट् च चतुस्त्रिद्दि संख्यवारामे बकिंतु सप्तमनरकादागताः पुरेनप्पेकचारतन्त्रात्पत्रवान स्वेगच्छं निइतिनियम : नरकादागताजी वाचलदेववासुदेवप्रतिवासुदेवचक्रवर्त्तिसंज्ञसलाका पुरुषानभवेति चतुर्य्यपंचमषष्मससमनरके / ng⋅ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यक MamSararaDE भ्यासमागनाक्रमेणतीर्थकरचरमदेहभावसंयतनावकानभवेति तोहभिवातावरणालाहारापोवा , मायोपियाकया ITAsमालिया 112) इदानीनारकहरवानिकाते तणाविभुजानदर्शनस्वभावनिजपरमात्मतत्वसम्पप्रधानज्ञानानुषानभावनात्पन्ननिर्विकारपरमा. नदेवलक्षणसुरखामतरसास्वादरहित येचेंद्रियविषयसुरवास्वादलपटे मिययारिजोदेऽपातित नरकायुन्नरकगत्यादिपापकर्मतरुप्यननरलेसमुत्पद्यरायिवीचतुश्यतीब्रामारपेचम्पा:पुनस परिमविभागेतीवाडाख याभागतीब्रशीतारवषीससम्पारतिकारशीतात्पन्नहरवमनुभवति तयेवछेदनभेदनक्रवचविदारणायनपोरनबूलारोहणादितीब्रसंसरते छातथाचात्तामारणे ক্লীয় ব্যাক্টিাফাভিত»ে নিয300 3753 शिवोचपपर्यंतमसुरोदीरितंचेति एवज्ञात्वानाकाविनाशाय भेदाभेपरत्नत्रयभावनाकर्तव्येति । क्षेपणाधोलोकप्यारयानेज्ञातव्य प्रतापरतियोलोकधारयानंकय्यत जोपादिशुननामानाहोपा Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लरणादादिशुभनामानःसमुशश्वद्विशक्षिगुणविस्तारेणपूर्वपरिवेष्टयरत्ताकाराः स्वयंभूरमणापयेताः निर्यविस्तारेणविस्ताणातिप्रति यतस्तनकारणेनतिर्यग्नाकोभएपते मध्यलाकम्वतराया तिवार देरतीयाहासागरोपमलोमवेदममितवसंरख्यातवीपसमुषुमध्येजवहापस्तिएति सच जरक्षा पलक्षितो मध्यभागस्थितमेरुपर्वतसहितोक्ताकारोलक्षयोजनप्रमाणस्तट्विाणविष्काभेरणयान नलक्षध्यप्रमाणेनरत्याकारणाचहि गलवणासमुद्रेणवेष्टितः सापिलवणसमुश्स्ततष्गुिणविस्ता रेगायोजनलक्षचनुष्यप्रमाणेनरत्ताकारणारभोगेधातकीखेरीपेनवेदित.सोपिधातकीरखरखी पस्तद्विगुणविल्लारेणयाजनाएलक्षापमाणपहिभोगेकालादकसमुवष्टितःसापिकालादकसमुशस्त ट्विगुणविस्तारेवाडरायोजनलक्षप्रमायानरत्ताकारणवहिर्भागेषुपुष्करकोयगाव हितः इत्यादिवि गुणदिगणविवेभ स्वयंभूरमणीयस्तयेभूरमणसमुश्पताजातव्यः यथाजवूद्वीपलवणसमझवि कभक्ष्यसमुदायाद्याजनलक्षवयप्रमितान्सकाशाहातकोखरएकलक्षणाधिकातणेवासरत्ययहीप Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यस समुविकामेभ्यःस्वपभूरमरणसमुहविष्कमाएकलक्षणाधिकाज्ञातव्य एवमुक्तलक्षणवसेख्ययद्वीपस मुखव्यतरदेवानापर्वतायुपरिगतापावासाअधोभूभागतानिभवनानि तवक्षोपसमुशदिशातानिपुरा पिचपरमागमाक्तमिन्नलक्षणानि तवरवरभागकभागस्थितप्रतऽसरव्ययभाममाणासव्यपव्ये तरदेवावासास्तव्यवहासमतिलक्षाधिककोटिसप्रमितभवनवासिदेव संबंधीभावनान्यकत्तिमजिन त्यालयसहितानिभवतिले प्रतिसक्षपरतातिर्यग्लाकाव्यात्यात प्रतियोलाकमध्यस्थितामनु खालोकायायायत तन्मध्यस्थितनबूझोपेसमक्षेत्राणिकतापक्षिणविभागारम्भरतहमवतह शिविदेहरम्पकहाणपतरावतसेज्ञानिसप्रक्षेत्राणिभवति क्षेत्राणिकार्यश्वोदेशदिशाजनपदाइत्पर्य ते पाक्षेत्राणाविभागकारका पकुलपर्वता:कायत दरक्षणदिमागमादिरुत्वाहिमवन्महाहिमपन्निष धनीलसकशिवसंज्ञाभरतादिसमक्षेत्राणापेनरेषपूर्वापरायता.षरकलपर्वताभवेति कायसवर्षधर परीना सीमापर्वताइपर्थातखापर्वतानपुपरिक्रमेणापा कोतपयमहापानिगिलकेसरिमलापेल Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रीकपरीकसंज्ञानरुत्तिमाः षट्महाभवेतिहातिका सरोवराणीस्पर्य तेभ्पपवादिष्टालेभ्यःसर्को शामवाणितजमेणानिर्गतायावतद्देशमहानद्यस्ताकाण्यत तयारि हिमवत्तपतस्थपानाममहाराहा संक्रोशावगाह जोराझोधिकषट्योजनप्रमाणविस्तारपूर्वतोरणधोरणनित्यपर्वतस्यापरिपूदिरमा गनयोजनातपंचकंगछतिततागेगाकूरसमेपेदक्षिणेनवावत्यभूमिस्याकुरलेपतति तस्माइक्षिणा धारणनिर्गत्यभरतदेवमधामस्थितस्यदीर्घत्वेनपूर्वायरसमुनस्याशिताविजयाहस्य यहाधारणनिर्ग त्यनतभायेवराईभागपूर्वणव्यावत्यप्रप्यमावगामवेक्षयादागुणेनगव्यतिपचकानगाहेनतयेवप्रय' मविकभापेक्षायामागुणनयोजनासहितहिषायोजनप्रमाणनिस्तारणचयूवेसमुभविष्ागे गा तयाणवनसिधुरषितस्मादेवहिमवत्पवेतस्थपाहात्पवेतस्यवायरिमश्विमझारणनित्पिपश्या दिदिमागनपात्यविजयाईगुहासोरणनिर्गत्यावरखेडाईभागरिखमनव्यारत्यपश्विमसमुत्रविष्टे ति गदक्षिणदिग्भागसमागतगंगासिंधुभ्योपूर्वापरायतेनविजया पर्वतेनरषटराकातभरतो aatailasom. aadimanasiudi-E- C Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसे● पूधू ० अप्यमहाहि मनतपर्बतस्य महापद्मइहाद्दक्षिणदिग्भाग नहैमवत क्षेत्रमध्ोसमागत्पतत्र स्यनामिशि रिपर्व संयोजनाईना स्पृशांतीत स्वार्द्धप्रदक्षिणारुत्वारोहितपूर्व समुद्रंगता तय्यबहिमवत्पर्व्वतास्थित बसरहाद्दुत्तरेणागल्पतमेवनाभिमरियोजनाईनास्यप्रांतीतस्य वार्द्धप्रदक्षिणां कृत्वारोहितास्यापश्चि मसमुद्रता इति रोहिद्राहितास्या संज्ञेनदीयहेमवत्तसंसेज धन्य भोग भूमिक्षेत्रेज्ञातव्यमप्यारी निषिचपर्व्वतति गिळूनामहाद्दक्षिणेनागत्यनाभिगिरिवर्ततयोजनार्देनस्टांती तस्यैवाई प्रदक्षिणे रुत्वाहरित्पूर्वसमुद्रंगता तथैव महाहिमवत्पर्वतस्य महापसनामात् उत्तरभागोनागत्य त्तमेवना भिणिरियोजनाईनास्पप्रांतीतस्यैवार्द्धप्रदक्षिणं कृत्वाहरिकांत (नामदीयश्विमसमुद्रंगता) इतिहरि | इरिकांता संज्ञानदीक्ष्यरुरिसंजमध्वमभोग भूमिक्षेत्रविज्ञेयं प्रप्यनीलपर्वत स्थितकेसरिनामहाद क्षिणेनागम्पोत्तरकुरु संज्ञात्कष्ट भोग भूमिक्षेत्रेमध्येनगत्वामेरुसमीपेगजदेतपर्व्वताभित्वाच प्रदक्षि नियोजनादैनमेरुं विहायपूर्व भशालवनस्यमध्येनपूर्वविदेहस्यचमध्येनसीतानामनदीपूर्वसमुद्रे Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सणेनिषिधपर्वतस्थिति नामहाउत्तरदमानागत्यदेवकुरुसोत्तमभोगभूमिक्षेत्रमध्येना त्यामरुसमीगजदतपर्वतामित्वाचप्रदक्षिणानयोजनाईनमसेविहायपश्चिममालवनस्पमध्ये निश्चिमविदेहस्यमयनसीतादापश्चिमसमुश्यता एवेसीतासोतोदामननयोध्यावहामिधानक म्मेभूमिक्षवज्ञान अध्ययत्पूनागासिंधुनदीपस्यविस्तारावारुपमाणभाणतातरक्षेत्र देवनीयुगलपतिविदेहपर्यतेहिणणेज्ञातव्य अयोगाचतुर्दशसहस्त्रपरिवारनदीसहितासि धुपिताइगुणसत्यानगरोहिशहितास्याश्यततापिविगुणसंस्थानहरिरिकोताध्यमितितयाष द्विशत्यधिक्योजनातपंचकमकानविंशतिभागीरुतैकयोजनस्यभागषट्चात्यदक्षिणतरणकम्म भूमोनामजभरतक्षेत्रस्यविष्कभाप्रमाणेतागणेहिमवत्पर्वताससमाविगुणहिमवत क्षेत्रात्यादि गणहिगुणविदेहयतेज्ञातव्यणतयापारयोजनसहखायामस्तदईप्रमाणविष्कभोक्तायोजनाव गाहायोजनकपमाणपयाविष्कभस्यातस्मानमयपशिगुणस्तस्मादपितिपिछेक्षिगुणइति प्रायया Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्व्य संक भरतहिमवत्पतेतान्निर्गनगासिंधुझ्यतणोत्तरेकम्मेभूमिसरावतक्षेत्रशिरवरियतान्निर्गतरक्तारकादान दोश्य यशाचरेमवतसेजजघन्यमातभूमिहिमवन्महाहिमवन्नामपर्वतक्ष्याकमणनिर्गलेरोरिओस्ति स्पानदीये तयारीमापक्तसेनजघन्पभोगभूमिक्षेत्रेशिखरिसक्नसंज्ञपर्वतक्ष्याक्रमणनिर्गतसुव गोकूलारूपकूलानोहयेण्यणेवरिसज्ञमध्यमभागभूमिक्षेत्रनिषधमाहिमपन्नामपर्चतध्याक्रमण निर्गत होरेझरिफातानोहयतयात्तरेरम्पकसेजकमध्यमभागभूमिक्षेवरुकिानीलनामपर्वतध्याक मेणालीतनारोनरकातानदीधयमितिविनेय सुखममुखमाहिषालसेवेचीपरमागमातापुरुत्सधादि सहितदशसागरोदमकटोकारिममितावसायणीतप्यात्सोयरगीच यथाभरतेवदत्तततयेरावनेच अपेतुविशेष भरतरारतम्लक्षखडेविजयानग्रेषुच्चय समयाद्यततुल्पकालास्तिनापर कि वनापण्याषदायाणवभागजातहितीयभागस्तथैवज्ञायोजथवजे वृक्षपस्थक्षेत्रपर्वतनदोहादी नायस्वदक्षिणभागधारयामतउत्तरपिविजयणमयदेरुममत्वभूतमिथ्यात्वरागादिविभावरहित केवल Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सानपानसुखाद्यनंतगुरणसहितेचनिजपरमात्मव्ययासम्पदशेनजानचारित्रभावनातयाकस्वादि गतदेहादेहरहितासनोमुनयः प्रचुरेणयबमोक्षगच्छतिसानदेहोभरोपेतातस्यजेयूटीपस्यमध्यत्तिनःकि मपिविवरणाफियतकनमया नवनवतिसहस्त्रयाजनासधारकसहस्त्रारगार मादोभूमितलाशयोज नसरुवमवतारेस्तारउपर्युपारेएनरेकायद्योगलानिकामगहीयमानत्वसत्तिमस्तकेयोजनसहसविस्तर भागमोक्ताकतिमत्वालपादेववनदेवाबासाद्यागमकायनानकावयेसरिताविरुक्षेत्रमधोमहामेस पर्वतोस्ति सरावगजाजातस्तस्मान्मकाजासकामाउत्तरमुरेखदतक्ष्याकारणपन्नितिपर्वतश्येतस्य गनदेत्तस्येसेजेतिषसयातरभागनीलपर्वतलग्नेतिष्ठति तयामध्यपत्रिकोणाकारक्षेत्रमुत्तमभाग भूमिरूपतस्यातररुसेशातस्यचमध्येमेरारीशानदिमाशोतानीलपर्वयोर्मध्येपरमागमवर्तिता नाद्यकविमवावानेचूरक्षरितति तस्याएवशासायातुभयतटेयमलगिरिसक्षपर्वतक्षयविज्ञेय तस्मात्पर्वतक्ष्यादत्तिणदिग्भाकियतमध्यानेगत्वाशीतानदीमध्यभतरोतरणपद्मादिघहलेका Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसे ---radimamimaraRanAmALIK रणविस्तारस्पकिसेज्ञातस्परतुर्दिभागबसेरययोजनविस्तारिणयक्तिसालसर्वायसमुन्शुपरिप्रति दिशयानिनिधिनियष्टिविमानानिनिष्पत्ति नवाशीवासेनागानिचपातरहितपुष्यप्रकारका हिदिकचतुष्यतितितेपासेरयासरत्यययोजनाविस्तागणाप्रकाणेकसति समुोयनपटलल क्षणेज्ञातव्य तत्पूर्वापरदक्षिणरिणत्रयविमानानि तन्मध्यविदयविमानानिसाधर्मस चोभाने शेखावदियोवमानानितष्योत्तरजेणीविमानानिचएनरेशानसेवेधीनि मस्मात्पर लाउपविजेनराएमानेनासययान्पसंख्ययानियोजनानिगत्वासनवकमेणाहितीयादिपटलानिम चनि मतविरोव लेणीचनुष्यपटलेपरलप्रतिदिशेमकैकविमानहीयते यावत्पेरानुसरबटले रनुदिक्ष्यकेकावमाननियतीनि नसोधम्मादिविमानान्तुतिलक्षससनतिसहस्त्रचणाविर शतिममितामाविमसुवर्णमयरत्नमनिनग्रहमोडताज्ञातम्यातिमयदेवानामापुष्याप्रमाणका प्यता भवनसासिएनधन्वनदायसहस्त्राणाउकऐनपुनरसुरक्रमारेषुसागरोयमेनागकुमारेषु .. Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पल्पवये सुरणे साकेदय होपकमारेपुष्टयः पोषकुलबहेसाईपल्पमिति व्यतरेजघन्यनदशवर्षसहस्र गि उत्कर्षणपल्पमाधिकमिनिज्यातिष्कदेवेषजयन्येनपल्याएमभापत्कर्षणश्लक्षवाधिक क्ल्यामर्यसहस्साधिकेपल्याखेन्पातिकदेवतानामागमानुसारगति अयसाधार्मशानोनयन्यन साधकपल्या उत्कर्षणसार्थकसागरोपमध्येसनत्कुमारमाहेश्या साठकसागरोपमससको बम्हनम्हे तरयो साईकसागण्णमाकेशलोतवकाविषयो :साधिकरनियतुशासागरोपमानि भुकमहामु जयापारासाधिकानिासतारमहस्वारयारकादासायकानेगाननपाणतयाविशतिरेव मारमा सतयाशाविधातिरिनिजप्रतापरेमच्युतकल्पापूवाल्यातीतनवमेवयोएविशतिसागरोपम । प्रमाणपूमेकैकसागरोयमवईमानसत्त्वकाशसागरोपमागवेयोभवतिनवानुदिायटले विशत्येचानुनरपरलेवयविंशञ्चत्युकृपायुःप्रमाणज्ञातव्यातदायु साधम्मदिखाएगाकरे तत्यास्मन्यमनस्वर्गसीयोसिद्धिविहायजन्यचति शोषविषव्याख्यानविलाकसारादावाद Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसला छ। किंचआदिमध्योतमुक्तेमयुद्धकस्वभावपरमात्ममिसकलबिमलकवलज्ञानलाचनेना विवानिवत महात्मादिपयाणालाक्यतेप्रयतेज्ञायतेपरिखिोतेयतनवारणनण्यनिश्वयला क तस्मिन्निश्वपलेकायस्वकीय मुझपरमात्मनिप्रयताकनेवासनिश्वयलाका २ समाउ यत्तिलेस्सा दियवसदायप्रसारिणयाचप्पउत्तपमाहापायप्पलौदीपिइतिगाप्यादित विभावदारणामादिकस्यासमस्त भानुभसंकविकल्पत्यागननिजमुशस्मभावनोछपरम लादेवसुखामतरसास्वादानुभवनेनचपाभावनास्थवनिश्वयलोकानुप्रेक्षा शेषानव्यवहारे गिति एवंसंक्षेपेणलाकानप्रेक्षाव्याख्याने समावबजावायलि.०२. पुहिण एके दियपेश्यिसजीपीसमनुष्यादेशकुलरूपेशियपटुत्वनियोध्यापुष्कररक्षिसामनवराय .. धारणबहानसयमविषयसुरवव्यावनबोधादिसायायनिवर्सनषुपरेपोइलेभनु कायरत् । तालीयकन्यायनलोषितस्ववियरूपबाधेफलभूतस्यमुशासवित्यात्मकनिमेलधर्मध्यार . Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवहभागतस्मिन्बारक्षेत्रसूर्यस्यचतुतिशतसेरख्यामागाभदेति चरस्पपेचदेवातटीया येत रेकर्करसेकतिदिनदक्षिणायनमारेभेनिवधपर्वतस्यायोरेमप्यममार्गसूर्यःमयमादयेकरोति यवसूर्य विमानस्थानीयपरमात्मनाजिनपरस्पारुत्रिमजिनार्दप्रत्यक्षनवायेध्यानारस्यानिम्मेलस म्यतानुगणाभरतरक्रीपुष्पांजलिमुत्विय्यार्थददातीतितन्मार्गस्थितभरतलेचादित्यस्यरावतक्षेचा दिपनसहनथापिचरस्थापिचेरेणसहयचमरूणापिसहयदत्तभवतिस्तविशेषणामताविनेयेछ प्रासदामिसभरणीअक्षाभसलस्सनलम्साररवणारारिणिविसरूपुरणासुतिउत्तरामाझमाससा १३॥इतिगाथाकथितानिनवन्यात्तषमध्यमनक्षत्राणितषमध्यवास्मिनक्षेत्रकियेतदिनानिति एस्पादित्य इतिहरविंदोरिकासत्तठियपेचगमणखेडलियासहियाहियगयणलेडारिरकारवि अकरमुत्ता इत्पननगाणासत्रणागमकथितक्रमणएयगनीयमेलायकेरुतसतिपराधकालय तविशनसख्यादिनानिभवतिगतस्यदिनसमूहाईस्यपदाहोपाभ्येतरदक्षिणेनहिगिदिनकरोग Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इससे छति तदादक्षिणायणा संज्ञा यदाबुनः समुझत्सकाशान्तरेणाभ्येत्तरमार्गेषुसर्वयातितदे। त्तरायण सेरे ति॥ तचगदादीषाभ्येते रेमप्यममार्तेयारे धो कर्कट संक्रातिद्दक्षिणायनमारमे निष्टत्यादित्यस्तदाच नुशयति सहस्त्र पंचविशत्यश्चिकपंचयोजनशतप्रमाण उत्कर्षेणादित्य विमानस्यपूचीवरेणातपवित रोविज्ञेयः "तचपुनर एदशामुस्तौदव सेो भवति द्वादशरा मुहूर्तेर निरिति गततक्रमेणातपहानासत्या मुहू सदयस्यैकवष्टिभागीकृतस्यैके । भागादिव समध्येदिनंप्रतिहीयते ॥ याव स्त्रवणासमुरे प्रवसानमार्गमा घमासे मकर संक्रांता]बुत्तरायणादि बसे वियटिसहस्राधिक षोडशयोजनप्रमारगजच्चन्येनादित्यवि मानस्यपूचीयरेरणावयविस्तारेरोभवतेि ॥ तथैवादशमुहूर्तेदिवसा भवति ॥ अष्टादशामुक्तैरात्रिश्वति। प्रोयविशेषव्याख्यानलोक विभागादोविज्ञेये॥येतुमनुष्य क्षेत्राइहि भागे ज्योतिष्क विमानास्तेबांचल नानास्ति ॥ ते बमानुषेात्तरपर्वताइ हिर्भागेचे चाशत्सहस्राणि योजना नोग स्वावलयाकार पंक्तिक्रमेण पूर्वक्षेत्रेपरिवेष्टानिष्टेति ॥ तत्रप्रप्यमचलपाश्वतु भवत्वारिंशदधिकशतप्रमाणास्तप्यादित्या । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खातारोतरणतिष्ठति ततःपरेयोजनललेलगतेनैवक्रमेणवलयभवत्तिामयतुविशेषाचलयेष लयेतेश्चतुराय सूर्यचतुस्येचवईते यावत्पुष्कराई चहिभागेपलएकमितिततःपुष्करसमुविधादि काया:कायापचारात्सहसममित्तयाजनानिजलमध्यमविश्यत्पूर्वेचतुश्चत्वारिंशदधिकतममा णेप्रणमनलव्याख्यानातस्मातदिगुणसव्यानरममवलयभवातात्तदनंतणेपूर्चनोजननक्षा लोगनेवलयभवतिचेश्चनुष्यस्यसूर्यचतुष्यस्यचद्धिरित्यतेनेवक्रमेणस्वयंभूरमणासमुश्चरि भोगेलेदिकापर्यतज्यातिष्कदेवानामरस्थानेवाइवातेन तरासंख्ययभागप्रमिताप्रसेपयज्याति कविमानाप्रकत्रिमसुवर्णरत्नमयनिनचैत्यालयमोडताज्ञातस्यालाइतिसक्षेपणयातिलीक : यारण्यानसमासथानेतरमूईलोककथ्यतेनयाहि सोधर्मशानसनत्कुमारमाहेबम्हनम्मा तरलोतवकाविषमुनमहामुजसतारसहस्वारानतमारणतारणायुतसंन्ना पारशस्वीततापि ननवेयकसेजास्ततश्वनवानादेशसजनविमानसंख्यमकपटलाततापिपंचानुत्तरसन्नपंचावर Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इव्यसे मानसंख्यमेक पटलंचेत्युक्तममेगापर्युपरि वैमानिकदेवास्तिएती ति बार्त्तिकं। संग्रहाच्चसमुदायकप्यनमि तियावत्प्रादिमध्यातेषुदा दश चतुर्योजनस्तविष्कं भाचत्वारिशत्प्रभित्तये। जनोत्स धायामेरु चूलिका तिष्ट तिमलस्याउ परिकुरुभूमिवालाग्रेत रितंयुनः रिजुविमानं मस्तितदादिरुत्वा चूलिकासहि तल क्षयेाजनप्रमा शामेरुत्सेधमान मी वैचैक रज्जुस्यारो यदाका प्राक्षे चतत्ययैते सौ धम्मैशान संज्ञस्वर्गयुगले तिष्टति । ततः परमदीधि कैक रज्जुपर्येतं सनत्कुमार माहे इसेज्ञे स्वर्णयुगलं भवति । तस्मादईरज्जुप्रमाणाकाशय येत्ते ब्रम्ह ब्रम्हात्तराभिधानस्वर्णयुगलमस्ति तस्मादईरनुपये ते लातवकापिष्ट नामस्वर्गद्वयांतेष्ट तिन सवाईरन्तु पवैतं शुक्र महामुक भिधानेस्वर्ग६ ये ज्ञानब्बे 0 तदनंतरमईरज्जु पयैतेसतारसहखार से सेव श्ये भवतिः सतोष्पदैरज्नुपर्यंत मानतमा गतनाभस्वर्णयुगलेः ततः परमर्द्धरज्नुपर्यंतमाकाशे याबदार खुत्ताभिधानस्वयेज्ञानम्यमिति तत्रप्रप्यमयुगलंघये स्वकीय स्वकीयस्वानामानश्वत्वारश मध्ययुगले चतुश्येपुन: स्वकीयमप्यमस्वगीमि धानस कै सर्वेो भवतिः उपरितनयुगलइये पिस्वकी Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिगुणानिभवति भरतक्षेत्रादानिनचविस्तारायामापेक्षयाकुलपर्वताः पुनर्वितारोपक्षपैवाहिगुणानचायामप्रतिन न्नधातकीखरदोषेयथ्याचक्रस्पारास्तयाकारा कुलपर्वताभवंतिज्ययाचागणाविवराणिछिताणमध्यान्पभ्यतम् । | संकीणीमिवरिभौगदिस्तीमीनितप्याक्षत्राणिज्ञातव्यानिकाळभूतधातकीखरीपमध्याजनलक्षवलयो कभाकालादकसमुपारवेष्यनिष्ठतिगतस्मादहिभागयोजनलक्षावागत्वापुष्करवरीपस्याईवलयाकारणा चतुर्दिशाभागमानुयात्तरनामपर्वतास्तपतिगतवपुष्करोईषियातकोवस्वक्षिणात्तरेणख्याकारनामपर्वतक्ष | ये पूर्वीपरणक्षुचकामेरुश्यच नवभरतादिक्षवविभागश्वबोधव्यः परकिंतुजेधीयभरतादिसंख्यापेक्ष पाभरनक्षेत्रादिविएणत्वनचधानकोखंडापेक्षयाकुलपवतानातुध्यनुवाखरकुलापर्वतापक्षयाहिगुणविा कंभापामश्वउत्सेद्यममारणपुनक्षिणभागविजयासपर्वतेयोजनानिर्विवाति हिमवतिपर्वतरात माहिमवतहिातनिषरतुःशतगतयात्तरभागचमेससमीपणजयतेपुशसपेचक नदीसमीयवक्षारेषुचत्रे त्पनीलनिषधसमीपचतशतेचा शेवयेतानाचमेरुत्पत्तायदेवाजवूदीपेभाणततदेवाईरतीयोषषुचवि Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अव्यसं 89 ज्ञेयं तथार्थिनामानिच क्षेत्र पर्वननदीदेशन गरादीनात्तान्ववतप्यवकोशइयो त्सेधावं चशतधनु बिस्तारा पद्म | रागरस्त्रमयो वनादीनांवेदिकासवेच समानेति मचापिचक्राकारवत्पर्व्वताज्यारानिवस्से स्थानानिक्षेत्रारिण ज्ञानम्पानि मानुषेात्तर पर्वतादभ्येतर भाग रावमनुख्यारित ऐतिनचवहि भीगे तवेोचज धन्यत्जीवितमेतम् हूर्तजमा यो मुक्ताफल्यचयं मध्येमध्यमविकल्यावहवः तष्यातिरश्वाच एवं प्रसंरव्यय । पसमुद्र बिस्तीणतियालाकमध्येऽर्द्धन्तीयद्वीपप्रमाणाः संक्षेपेण मनुष्यलोकोन्याख्यात: प्रवाचमानुषेो तश्यर्वतात्मकारणाइहिर्भागेस्वयं भूरमणशेोपाई परेि क्षिष्ययासानागेइनामायवेत्तस्तस्मात्पूर्वभागये. संख्यानोताडीपसमुशतिऐति ॥ तेषुयद्यपिव्यं तरानि रेत्तराइतिवचनाच्चे तरदेवानासातिऐतिस्ता त्यापियल्यप्रमाणायुवातिरश्वासेवेचिनो भोग भूमिर्जघन्य इतिविज्ञेये नागेश्पर्वताद्वहि भीगेस्वयं भूमहाद्धीपार्थे समुद्रेचयुनावैदेह वत्सर्वदेवैौचेम्मे भूमिको चतुर्थकालभव परेकिंतु मनुष्यान सेति । एवमुक्तलक्षणतियैग्लोकस्पतदभ्येत्तर मध्य भागवर्तिनोमनुष्यला कस्पचप्रतिपादन न संदेोपणम Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ maritr ध्यलोकव्यारव्यानसमाछा मनमनुष्यलोकेश्यहीनातचतुष्यतियालोकेतुनेदीस्वरकरलरुचका. मिधानहीपत्रणाकमहिपाशचतुझ्यसेरख्यानिवारुविमागस्वतंत्र जिनगुहाणिज्ञातयानि म .. ताजज्योतिलोकाकण्यते तद्यया चेशदित्यपहनक्षचालित्रकोणकतारकाम्वतियातिष्कदेवाः चावधाभोतारतेषामध्यस्सातमिलापरिनरत्याधिकटामशतयाजनान्याकाोगत्वातारकतिमा नासतिः ततोपियोजनागत्वासयेविमानाःततापरासीतियोजनानिगत्वाचेविमानात तोपिलाक्पसारकथितकमणयोजनचतुमयगते नविनादिनक्षत्रविमानामतपनेतरयोजनचतुए यातेरुविमानासतापियोजनवयगतमुकविमानाशततत्यायोजनवयगतेरहस्पतिविमानाः नतायोजनवयानेतरमंगलविमानाततापियोजनवयानेतरेशनवराविमानाति कातणाचार तास इत्तलारण्या दसवडचा यावासोलमनातेच ज्योतिष्कदेवाअईततोयोनिरतरेमेरो प्रदक्षिणनपरिभ्रमणेगतिरुवैतितवघटिकामादि Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बसेठ सादिरूपास्यूलव्यवहारकालसमयानमिवादिसूक्षणव्यवहारकालवता यद्योगिनायनिधननसमयद्य सिटिकाविवक्षितावकल्परहितेनकालाणुश्यरूपेणनिश्वयकालनापादानभूतनलोत्पतेतथापि चशादित्यादिज्योतिष्कदेवविमानगमनागमनेनलंभकारनिमित्तभूतनमत्यिरोपादानजनितचटर यजतेप्रकटरीक्रियतेनाप्यतगतनकारणेनापचारणशानिष्कदेवा इत्यभिधीयतधनश्वयकालस्त तहिमानगतिपरिणतर्वहिरंगसहकारीभवति कभकारचक्रममणस्याधस्तनशिलाविदिति इमार नीमईततीयेप्चेशदित्यसव्याकथ्यते तयाहि जबूतीपश्श्यसूर्य रयेचलवणादेवचनुष्ये । धानकोखरीपेद्वादशादित्या कानाकसमुक्षिचत्वारिशातच मादित्यास्तापुष्करा इंद्वीपाकासमतिचेशादित्यावति सतःपरंभरतरावतस्थितजेधोपचंमीया किमषिविवर गक्रियते तद्यथा जेठोपभ्पतरयोजनानामशीतिशतकवहिनीलवणासमुश्सव शतवमितिसमुदायनदशातरयाजनरातपंचकेचारक्षभरापते तशदित्ययारेकमेवतत्रभरते Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवति तदनेतरक्षेतिऐति ततोप्पनेतरविभगानदीभवतिगततावतस्मादपिवक्षारपर्वतस्तिति सतम्व .. वाततापिविभेगानदो तदनेतरेक्षेत्राततापरवक्षारयतास्ति तत्तश्वक्षने तताविभेगानदी ततस्वक्षे ३. सतावक्षारपर्वतः ततःक्षेत्र तदनेतरपूर्वसमुझसमीपयवारपतस्यवेदिकाचति नवामेत्तिरएसवारिक ज्ञातव्यानि ज्याक्रमेणनामानिकप्रयताकाका सुकच्छा महायाकन्फावतीमावती लागलाव तो पुष्कला पुष्कलावतीचति छ इदानीक्षेत्रमध्यस्थितनगरीणानामानिकप्यते क्षमा क्षमपुर शरिटपुरो रवडा मेजूया अपधीपररीकणीचतिसतसईसीतायादक्षिणभागनिषिधपर्वताऽत्तरभ गेयान्यएक्षवाणितानिकप्योत तद्यथाःपूर्वोक्तायादवारएपदिकातस्या पश्चिमभोगदेवमस्तिः तदनेतरेख) क्षारपर्वतस्ततः परक्षेत्र नतोरिभगानदी ततावदेवतस्माइक्षारपर्वतः ततःक्षेत्र तताविभंगानदीत तश्वदेवेन्ततावक्षारपर्वतः। तताक्षेत्र तताविभगनदीतदनतरेक्षनेततावक्षारपर्वतः तताक्षेत्रातसामे सदिशाभाmपूर्वभशालवनवेदिकाभवतीतिनियमित्तिसुमोटोक्षवाणिज्ञातव्यानिश्मनीतयाकमेणना Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसे मानिकप्पने वश मुक्च्छा महापच्छा वकावती रम्या रम्यका रमणीयामालावनीचति खानो तन्मयास्थितनारीणानामानिकप्यतिासुसीमाकरलाअपराजितामभाकरीशकानमा शुभारत्नसे चतिगतिपूचिदहक्षेत्र विभागम्यारव्यामेसमासणसण देणेश पावणेदad यो व्यय का विशातसहस्त्रयान नविष्कायश्विममशालवनानतरपश्विमविदेहस्तिष्टोत तनिषधपर्वताउत्तरभागसातोदनद्यादक्षिण भागयानिदोवाणितषाविभागरततयारिमदिशाभागयापविमभालवनवधिकातिएतिगतस्य पश्विमक्षेत्रेभवति तनाक्षिणात्तरायसावक्षारपर्वतनिधतिगतदनेतरेक्षनेत्तताविभगनदो ननक्षेत्र सतावक्षारपर्वतासनापरेक्षेनेतनाविभेगनदी तत क्षेत्रगततावतारपर्वताततःपरेक्षवत्तताविभेगम दालत क्षेत्र मनायतारपनि ततक्षितदनेतरपडितमसमश्समीपयभूनारपवनतिर्शततस्यवे। दिवाचतिनभित्तिसुमोनोवाणिभवनितषानामानिकपतिपया सुपमा मापयाम्पसकाव सो संस्थापनलिनागकुमुमारासलिलातिसमध्यस्थिसिमारोगानामानिकायतिलस्वपुरीपसिंहपु Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोमहापरी महापुरीस्नियापुरजापुरीगरिरजापुरीशाकापुरीयालयाकापुरीमतसीतार याउसरभागेनीलकुलपतिक्षिणभागयानिक्षत्राणिनितिमतविभागभेदेकथयति पूर्वभरिणतायाभू तारणपनदिकारस्या पूर्वभागक्षेत्रभवतितलतरेरक्षारपर्वतः तदनेतरेक्षेत्र सताविभेगानदीसतादेव ततावक्षारयतेत तत क्षेत्र ततश्वविभानदीततापिक्षणतताक्क्षारपवेतातताक्षेत्र तताविभेगन दो.तत देवेतनश्ववक्षारपर्वतातत क्षेत्रगततापिमरुदिशाभापश्चिमभाशालयनवदिकोचति नवमि तिसुमध्येमोक्षवाणिभवति तवाजमेणनामानिकप्तेषासुरमा महावमा वमकावतीधा सुगंधा गोधमा रोधमालिनीतिाततस्तन्मध्यस्थितनारीणानामानिकप्येत विजयावैजयसोजयेतो. मप राजितााचकपुरोकरबापरी नयाध्यायध्यावनिमयययाभरतक्षेवोगासिंधुनोध्यनस्जिपाईप । सनचम्लेरखरपेचवमार्यस्वेरेवेतिषटरानिजानानिकतावनषाविशारक्षेत्रघुगेगासिधुसमाना नदोहयन विजयाईपर्वतननत्यकरखरषदेशानां अपनु विशेषः एतषुक्षेत्रषुसदैवचतुर्णकालादिसमा Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नकाल उत्कर्षणापूर्वकोटोजाविता पचानचापोत्सेधश्वतिविनयापूर्वस्पत्रमासोकथ्यतापूर्वस्पायरिमाणो सहरिरक लुखदसहस्सवोटोउछप्परणेच सहस्सावाधावासगणणा तिसक्षेपणजबूतीपयाख्यानेसमा छ तपने तरयणासवेरेयधुसर्वसमुपद्वीपसमुश्मयादाकारकपाजनाष्टकोत्सेधारवेदिकास्तिगतयाजेपीपरपस्तति विशेपेनहरिमागेयोजनलवाइयवलयविना आगमकथितषोडशसहस्रयोजनजलात्सेधाधनकायसहित नोलवलसमुशस्ति तस्मादविचहिभागयोजनलक्षचतुएयक्लपवित्रभोधातकारवरहीयोस्ति तदक्षिणमा गेलवादविकालादायसमुपदेदिकास्पतिदिक्षिणालयामसहस्रयोजनविष्कभरातचतुषयात्सेबल कारनामापतास्तिनातरमापिनेनपतयनवरीसत्तेपूर्वापरधानकोखरहोजात तवपूर्वधातकीखे उसीयमध्येचनुरोतिसहस्त्रयाजनान्स सहस्त्रयोजनावगाहालकमरुस्तितापश्विमधानकीले रेपिपयाजेठीयमहामेरार्भरतारदेक्षेचस्मियादिपर्वसमेगादिनीपदयादिहातोदिक्षिणपतरव्याख्या नस्तेजयात्रपूर्वधातकीखेउमेरोपटिनमधातकीखरमेरोचनातव्या अतएवजेचूटीपापक्षपासरल्याप्रति Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋध्यानरूपः परमसमाधिदुर्लभः कस्मादिशत्तेचेत् तत्प्रतिवेधके मिध्यात्वविषयकपायनिदान । विभावपरिणामानोप्रक्लत्वादिति॥ तस्मात्सवनिरेतर भावनीयस्तद्वान नारहि लाना नरपिसं तथाचेोक्ते इत्यति दुवै मरुयोवोधिल व्यायदिप्रमादीस्यात् संसृति भीमा ररोपे भूमि कोनरः सुचिरं पुनः चोक्तं मनुष्य भबहु स्त्रभत्वं प्रभुभपरिणामवऊलतालोकस्य चविपुलतामा हत्तियोनिक तोच कुरुते मुदुर्ब्रभो मनुषोयोनिः शाखोरी समाधिलक्षणकथ्यते सम्वादर्शनज्ञान चारिवारणामप्राशप्रायरसंबोधिस्तेषामेव निर्विझेन भवात्त रमायण समाधिरिति रावे संते येाडुत्र भानु | प्रेक्षासमाशा॥॥॥ यञ्चमो सुहाक ययति ॥ तच . संसारयत्त संजीवम् हृत्यनागेंद्र नरेंद्र देवेंशदिवेद्य व्यास धानेतसुखाद्यनेन गुगल क्षण मोक्षपदे धरतीति धम्मं ॥ तस्यचमेदा: प्रतिपाद्येते" अहिंसाला शा. सागारा नागारलक्षण वा उत्तम क्षमादिलक्षणोवा निश्चय व्यवहार रत्नत्रयात्मकोवा शुद्धात्मसे 'चित्यात्मको रक्षा रहितात्मक परि रतामा वा धम्म :|| अस्पधम्र्मस्थात्ला मेऽतीताने त्तकारले क्षमता जी। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वास ববৈচ্ছেধোয়কত্ববলাজাহবত্রে বিষয়ক বই निगाप्याकथितचतुराशतियोनिलक्षघुमध्येपरमस्वास्थ्यभावनात्पन्ननिव्याकरतपरमाणिकस खविलक्षणानियेचेश्यिासुरवामिलाखजानतव्याकुलत्वात्पादकानिडरवानिसहमान सेभमतायेजी वायदापुनरोगगुणनिशियस्यधम्मेस्वरनामोभवतिः तदाराजाधिराजमहाराजाई मेरलोकमहामेरनो कवलदेववासुदेवकामदेवसकालयकवत्तिदेवगणधरस्वतीयकरपरमदेवप्रथमकल्याणकवयपये विविधाभ्युदयसुखपाण्यपम्वादभेदरनवयभावनाचलेन्यक्षपानेतसुरखादिगुणास्पदमहेत्यसिहयदेलभ त तिननकारनधार्मएचपरमरसरसापरणानिधिनिधानकल्परक्षाकामधेनुचितामणिरितिकार किवकनायजिनेश्वरप्रणीतीधर्मशायरमतयाजातास्तरावधन्यागतयात धन्यायमतियुः मरवलुजिनवरे समुपदिश येनासपन्नाचम्मस्वभावनापस्थितमनाया इतिसेक्षेपेणमम्मीणुप्रर्द समासालाइत्युक्तलक्षणम्ननित्यावरणसंसारकलान्यत्वामुनित्यानरसेदरनिर्जगलोकास्नेभयो Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - धर्मतत्वानुचितनसंज्ञानिरा विवस्वशात्मतलपरिणतिस्पस्पसेवरस्यकारणभूस्वादशानुपेक्षा समसाममध्यपहावाबदारता क्षुत्पिपाशाशीताप्रशमसकनान्यारतिस्बीरपनिषद्यासययाके) शवधयाचनालाभरोगलास्तरीमलसहोत्यारपुरस्कारवज्ञाजानीनानातिकाविधातिपरीवहाविजय तषासुधादिवेदनानातीनादयोपिसुखकारखजीवितमरणलाभालाभनिदानासादिसमत्तारूपपरमर्स मायिकेननरतरभुभाशुभवर्मसंवरणचिरतनमुभानुभकर्मनिरनसमर्थनार्यनिजपरमात्मभाव नासजाननिर्विकारनित्यानंदलक्षणमुखामतसविनिरचलनसवरीपरजपरतिपयलयाने सब ति मुशेययोगलक्षणेनिन्जयरत्नचयपरिणात्तस्वभुक्षात्मस्वरूपेचरणमवस्थानेचारिसञ्चतार नम्पभेदेनषेचविधानप्याहिकसेवजीवावेवलज्ञानमयाइतिभावनापणसमतालक्षणसामाणि केगमणवापरमस्वास्थ्यचलनयुगपत्रसमस्तभुभाशुभसवल्पविकल्पत्यागरूपसमाधिलक्षणवा निर्विकारस्वसवितिरलेनरामशेषपरिहारस्येवामुशात्मानुभूतिवलनातरोग्यरित्यागरूपवा समस्त Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यसह मुरबारबादिमध्यस्थस्पेशतिमाकोषस्थापनेकण्ययनियमायुगपतस मस्तविकल्पस्थागरूपे परमसामयिकेस्थातुमयतोजोबस्तासमस्तहिसान्तस्तपात्रम्हपरिग्रहेन्याविरतिवेतमित्यननषेच श्कारविकाल्पभेदनवतछेदेनरागायिविकल्परूपस्यावो पानिवेत्पनिमशात्मन्यानपुषस्थापयतीति छेोपस्थापना अथवादेनतरखरनसतिनिर्विकारस्वसोवेतिरूपनिमयशायश्वितनतत्साधकब हिरेगव्यवहारप्रायश्चितनवास्वात्मन्युपनेोपस्थापनमितिालाव्यप्यपरिहालिमुदिकप्यनिती सवासाजम्मा यासपुधत्तेचतित्ययरमूलापिचकारणपोटेदासभागविहारो इतिगायाका थितजामणमियात्वरागादिविकल्पजालानाप्रत्यारव्याननपरिहारेनविशेषणस्थात्मनः मुनिमल्ये परिहारोवमुश्विारितिछायादामाबायायात सूक्ष्मानोयिनिजकात्मसेवि तिरलेनसूलालानामिधानसोपायस्थकषायस्पयत्र निरवाषापशमनक्षपणवातत्सूक्ष्मपण्य चावमिति छायाप्या चाकमा यासहजसुझस्वभावत्वननिवेपत्तेननिष्का Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पायमात्मस्वरूपतयेचारख्यात कथितयथारख्यातचारित्रमिति छाइदानीसामायिकादिचारित्रपरकस्य गणस्थानस्वामित्वकातिप्रमत्ताप्रमत्तापूचीनियत्तिसेनगुणस्थानचतुष्पेसामायिकमारित्रभ गति दोपस्थापनपरिहारविधिस्तुभमत्ताश्मत्तगुणस्प्यानयसक्षमसापरायचारिपुनरकस्मि नवसूक्ष्मसापरायगुरणस्थाने यथारयातचारित्रमुपशासकपायताणकपायसयोगिजिनायोगि जिनाभिधानगुणस्थानचतुष्येभवतीतिजन्य व्यापलेपाक्षकसता सेपमासयमसेजदोनिके चकादशभेदमिन्नेदेशाचारित्रकारस्मिन्नवचमगुणस्थानयज्ञातव्या असेयमस्तुमिण्यारोष्सा सादनमियाविरनिसम्पादृषिसंज्ञगुणस्थानचतुष्यभवतीति चारित्रव्यारयानेसमासारवव्रत. समिनिगुप्तिधम्मेबादशानुभक्षापरोषजयचारित्राणोभावसेदरकारणभूतानामधारयानेकत नव निश्वयरत्नवयसाधकव्यवहारत्नवयरूपस्पशुभापयागप्रतिपादकानियानिवाक्यानितानिपापान वसेवाकारणानिजातव्यानि यानितुपबहारनवयसायास्यमुझोपयोगलक्षणनिम्बयरत्नत्रया Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यसे साध्यस्योपयोगमक्षणनिश्तपरत्नत्रयस्यमतिपादकानितानिएपपापक्ष्यसेवाकारणानभवतीतिज तसवाहमामानामराजशभावनतान्त्रतादिसवरकारणामध्यसेवरानुप्रेक्षवसारभूतासचिवस। सस्वारस्यति विशयप्रदेनेति भावानाहाविगुमिलक्षणनिर्विकल्पसमाधिस्थानाजतानोनयतपू यसेतवासमीनापुनर्बजसकारणवस्प्रतिपक्षभूतामोहविभतनकारणनन्त्रतादिविस्तरकप्पया स्पाचायोति प्रसिदिसदकिरियाणप्रकिरियाणेतहोदितुलसोदिसत्तहीबाणोदण इया निवत्तेसेजोएपरिषदेसाहिदिप्रभागाकषाययोहादिनपरिणिविसामअधतिदि कारण एपेसेवरतत्वव्याख्यानसूत्रष्यनरतीयस्थलगत अयसटिजीवस्यसेवा पूर्ववनिर्जएतलेकथयनिजहकालणतवणयाभुत्तरसेकम्मपुगालेजेगा भावणसरदेण्यात स्मरणचदिणिजगविखा गयाइत्यमेदव्याख्यानेकियताणयानातत्याकानिज्जेराभावनिज" रासाकानिर्विकारपरमनन्यरिचमत्कारानुभूतिसजानसहजानंदस्वभावमुरवामनरसास्वादरूपाभा Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 | वइत्यध्याहार :00 जेरणा भोवरा येन भावनजीवयरिशात्मनकिः भवतिः सरदि विशयिते पतत्तिगलतिविनश्य तिः किंकर कम्मयुगाले कम्मीरिविध्वंसकस्वकीयस्वात्मनोविलक्षण कर्मकुलद्रव्यः कप्येभूतं भु तरसे : स्वादयकाले प्राप्यसे सारिक सुषः स्वरूपेण भुत्तरसे : दत्तफले केनकारणाभूतेनगलनि जहका गोल स्वकालपच्यमानामुफलवत् सविषाकानिर्जरापेक्षया निजात्म से वित्तियरिणाम स्यव हिरंगसह कारिकाररणभूतेनकालला सीसे ज्ञेन यथाकालन नकेवलेपणाकलिन तवे गायका लपच्यमानानो माभूदिफलविपाकनिर्ज्जरापेक्षयाध्येतरेणाः समस्तपरश्वारोधनलक्षणेन व हिरोगांतस्तत्व से वित्तिसाधक से भूतेनानशनादिशादशविधेनतसाचेतिः। तस्मरणे चतस्यकम्मेलो गलनंयञ्चसायनिज्मेराननुपूर्वया तं सदृदितेनैवश्य निर्जराल या पुनरपिसरने किमर्थमारी ते ततात्तरे तेन सरदिशब्द ननिर्मलात्मानुभूतिग्रहणा भावनिज्जैरामि धानपरि शामस्य सामथ्र्यैम् तेनचद्रव्यनिज्जैरेति ॥ इतिद्रव्यभावरूपेानिज्र्ज्जराडुबिहाः निज्जेराद्विधा भवतीति॥६॥प्रवाह 80 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वासे शिम्यः सविधाकानेर्जरानरकादितिष्वज्ञानिनामपिदश्यता संज्ञानिनामवति नियमानास्तिकातवात्तत्र विवमाहस्कारणेसेवरपूर्वकानिरासैक्ग्राहाया पुनरजानिनानिज्जरासागजस्नानवन्त्रिःफला यतस्ताकक मनिर्जरासायद्यपिनाशुभकर्मविनायकरोतिस्तथापिससारस्थितिस्ताकाकुस्ततनयेतीयकरणहत्यार विलिसपुगपवेधकारणभवति पारपर्यणमुक्तिकारणचेतिारीतगणसदृष्टीनापुनःपुन्पपापक्ष्यविनाशन नशेचपिमुक्तिकारणामितिउत्तचनाकंदकंदाचायेदेनेजप्ररणागीकम्मे खेवदिभवसदसहस्सकारी हिंगतस्यागीतिहिगुत्तागरदिउस्मासामेलणः कविशालासहीनावीतराविशेषणकिमय रागा दयालयमदीपनेभवतीतिभेदविज्ञानजातसरागानुभेतपिज्ञानमाणमाक्षामवतीतितत्रपरिहार मेध कारेणुरूपक्षपएकाप्रदोषहस्त तिष्ठति सत्यापनरकाप्रदीपरहितस्तिएति सचकूपेपतनसादिक वानजानानितस्यविनाशदोषानास्ति यस्तुश्तीपहलस्तस्पकूपपतनादिविनासप्रदीपफलंनास्तिा . कूयपतनादिवोत्पतिलस्पप्रदीपकलमस्तितथाकपिरामादयोहेयामदीयानभवतीतिभेद . -- -- Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नातिसकर्म्माचध्यते तावदन्यः कोपिशादिभेदविज्ञानज्ञाते पियावता। नराणादिकमनुभवतिता बताशे नसापिवध्यते। रावतस्याधिरागादिभेदविज्ञानफलं नास्ति यस्तुराणादिभेद विज्ञाने जातेसतिरागादिकंत्यजति तस्य भेदविज्ञानफलमस्तिइतिज्ञातव्यतयादेक्तिं चरकुस्सदे सास्सय सारो सप्पादिदो सपरिहारो चरकूहो दिणिरत्यतदूराबिलयतस्स ३६ सवनिज्तराज्याख्यानमुद्वेगाकेन चतुर्थस्थलंगतं माचक्षतत्वमाययति छ्चमकाজ।।ফहेमारा पৰडेल' ॥ विदद्यविवेक यद्यपिसामान्येननिरवशेषनिराकृतकर्ममलकलंकस्यात्मनः आत्यंतिक स्वाभाविकाचिंत्याद्भूतानुयमस कलविमलकेवलज्ञानाद्यने तगुणास्पदमवस्या तरमोक्षा भण्पते । तप्यविशेषेणच्यभावरूपेण द्विद्याभव तीति वार्त्तिकः ॥ तद्यथा उस भावमारके। ज्ञेपेाज्ञातव्यः सभावमाज्ञः सकः अप्परगञ्ज परिणामोनिश्व यरत्नत्रयात्मक कारणासमयसार रूपाऊंस्फुटं प्रात्मनः परिणामः कष्येभूतः सङ्घस्सकम्मरण जोरवयहेदू सर्वस्यव्यभावारूपस्य मोहनीयादिद्यातिचतुष्यस्यकम्र्म्मणेो यः क्षयहेतुरिति ॥ इव्यमोक्षकष्यपत्ति दद्यवि Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्य ७० मुरको भवत्ति प्रयोगि चरमसमयेऽव्यानि मोक्षो भवति ॥ केोसेो ॥ प्रण्य कम्मयुध भावे 'टेक की शुद्धबुकस्वभावपरमात्म : नग्मायुरादिशेषाद्यातिकर्मणामयिये। प्रात्यंतिक एयाभावविशेल घोविघटनमिति । तस्यमुक्तात्मनः सुखेकय्या त्मोपादान सिकिस्वयमतिशयवशेनवा देविशाल वद्धिश्ासव्ययेतं विषयवेि रहितनिः प्रतिद्वंद्व भावे अन्यद्रव्यान पेक्षनिरूपममितसास्वतसच काले मुत्कष्टानेत सारपरमसुष्मतस्तस्यसिद्धिस्यजातं कश्विदाहव इंद्रियसुख मेदसुखमुक्तात्मनामिंद्रियशरीराभावे पूर्वोक्तमनिद्रियसुखंकण्यंघटतइति तत्रोत्तरंदीयते संसारिक सुवर्त वनखी सेवादिकपंचेंद्रियविषयप्रभवैमेन यत्पुनः येचेंद्रियविषयव्यापाररहिताना निर्व्याकुसुर्खेतदत्तोद्रियसुखमचनदृश्यते ॥ पंचेंद्रियमन जनित्त विकल्पजालरहितानानिर्विकल्पसमाधिस्थानाप रमयोगिनांरागादिरहितत्वेनस्वसंवेद्यमात्मसुखं तद्विप्रोषेणातींद्रियेयच दैकर्परमार्थिकपरमानंदपरिशातानामुक्तात्मनामतो दियसुखं तदत्पतविशेषेणज्ञातव्यमिति : संसारिणां निरंतरकवं धोस्ति"तथैवादयोप्यस्तियुद्धात्म भावनाप्रस्ताबोनास्तिकष्येमोक्षोभविष्यतीति Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्रप्रत्युत्तरययाप्रात्रेः क्षीरणावस्याहाको पि धीमानवयीला चयत्ययं ममहनने प्रस्तावस्ततः परुषक वाशत्रुहति तय्याकर्माणामव्यकरूपावस्यानास्ति हीयमानस्थित्यनुभागत्वेनरुत्वायदालघुत्वं भवतिव दाधीमान् भव्य सागमभाषया। सुपस्य उक्स खिचेन्द्रगदे खाया उसी करणरावेकाचचा वि करणसम्यसन्या देते इतिशाप्याकथित लाळी पंचकसंज्ञन अध्यात्म भाषयानिजमुद्दात्माभिमुखपरि गाम संज्ञेन निर्मल भावना विशेषखङ्गेनपैौरुषंकत्वाकर्म्मशचुं हंतीति यत्पुनरंतः कोटाको टीप्रमितक म्मीस्यतस्त्वेणा"तथैलतादारुस्थानीयानु भारारुपेणच कर्म्म लघुत्व ज्ञातेपिसत्पयजीवः प्रागमभाषर्य अधः प्रवृत्तिकरणापूर्वकरणानिवृत्तिकरणसंज्ञा अध्यात्म भाषयास्तमुद्दात्माभिमुखपरतिरूपा ॥ अन्यदपि 1 कर्ममहननवुद्धिकत्वाच्चापिकालेनकरिष्यतितदभव्यत्वगुणस्पैवलक्षणेज्ञातव्यमिति दृष्टाननवकमा क्षविषये ज्ञातव्यं ॥ ॥ श्यरगदी वदिणय र दहि उउद्धधा उपहाणु सुरारुण्यफलेह उ अगि शिणवदिडंत्त(जाणु॥२॥ नन्वनादिकालेमेगिठताजीवानां जगत्सून्यं भविष्यति इति तत्र परिहार : Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसं - यथाभाविकालसमयानाकमणगछतियद्यपिभविकालसमयरोस्ताकत्वभवतितथाप्यवसानेनास्ति तथा गच्छनोजीवानापद्यपिजीवरा-स्तकलभनितयाण्यवसानेनास्तिभवतीति चेताहपूर्वकालबहवोपिजी चामाक्षगनाइदानीजगत अत्यत्त्वविनहायत किनावभन्यामेनोभव्यसमानभव्यानाचमाक्षानपिनास्तिक यमूल्यभविष्यति।३० एवमक्षेपणमाक्षतत्वव्यायाननकसूत्रणपंचमस्थलगता अतऊडैपटमस्थलगा प्यादीनपुण्यपापपदार्थक्ष्यस्वरूपमुत्तरोईनपुरापपापप्रतिसरयाकथयामेत्यभिपायमनसिधवाभगद नसूचमिष्यतिपात्यनिभा सुरुप्रमुभावनुत्ता परमपावरतिरवलुजीवासादेसुहाउणाम गोदपुरमपरा णिपाच॥३०॥पोपावरवेतिरवलुजीवाचिदानदैकसहजभावत्वनपुगपपापवेधमाक्षादिपयोयर पविकल्परहिनाअपिसतानागोदीतानोकामेचंथपीयनपुण्पयायचभवात पलुस्फुरेजीवा कप्पभूताः । सुरुषसुभावजुत्ता उऊममिथ्यात्वविषाभाचयापचकुरुपराभक्तिभावनमस्कारनाज्ञानायुक्ताभय । सदापि छ। पंचमलाबनरक्षाकोपचक्षुष्वनियहपरमादोभियविजयातपसिविविधकरुयोगशाल्या Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योध्यवाधिनलक्षणेन भोपयोगभावनपरिणामनधिलक्षणना भोपयागपरिणामनचयुक्ता इदानी पण्पपापभेदानकप्यतिसादसुहाउणामगोदपुर सवेद्य भायुनीमगात्राणिपुरणचभवतिः पराणिपार विचातस्मादपराणिकम्माणिपापचतिगतद्यथा सदद्याकेशनियामनुष्यदेवायुस्त्रयः सुभायरा कीर्तिती यकरत्वादिनाममसतिनासमविशतानादौत्रमिति समुदायनविचत्वारिंशत्सरत्या पुरपमरुत याविज्ञयागशेषाद्यशीतियापमितिमतनमानविशुद्धिविनयसंपन्नताशीलव्रतवनस्चिारोभीक्ष्णता नोपयोगसेवेगौशातितस्त्यागतपसीसाधुसमाचबयारत्यकरणमर्हदाचार्यजयतमवचनभक्तिराव प्रयकापरिहाणिमा प्रभावनामवचनवात्सल्पसमिनितीर्थकरत्वस्य इत्युक्तलक्षषोडशभावनात्य नतीर्थकरनामकर्मविपरायुपपाराभावनासुमध्यपरमागमभाषया मूस्वयमदाचा तथानापननानिष प्रयोगकादयम्वतिरदोषा-पंचविशनि इतिालाकथितपेचविशा निमलरहिततयाध्यात्मभावयानिजमुशात्मापादेयरुचिरूपासम्पत्तभाननेवमुख्यतिरिज्ञेये छ।सम्प Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यस || म्हपापपापक्ष्यमपित्यकथेपुषकरातीतिचेवातत्रयुक्तिमालायप्याकापिदेशोतरस्थ मनाहरवीसमापा' पागलपुरुषाणातदेयंदानसन्मानादिकति तथासम्पादपिरप्युपादेयपदरूपणवशुमात्मानमेवभाव यात चारित्रमाहोदयातनवासमय सन्निदोषपरमात्मस्वरूपाणामसिकानातदाराधिक्ताचार्यापार आपसाधूनाच परमात्मपदमास्पाविषयवयापवंचनायेचदानपूजनादिगुणस्तपनादिनापरमभक्ति करोति तनभोगाकालादिनिपानरहितपरिणामनकुटविनापलालमितीनाहितरत्याविशिषपुण्यमा श्रोत नेलचस्वदेवेशलाकातिकादिविभूतिप्राप्पोवमानपरिवारादिसेपदेजीगोलणमिनणणयन्पचम हाविरुखुगतापश्यति विपश्यतीतिचेतसादसमवसरणेतरातवीतरागसबैज्ञाःतगतभेदाभेदरन स्थाराधकागणदेवदयापूर्वधोनेरानोमपक्षणशातिमत्वाविशेषणधर्ममनिर्भूला चतुर्यगुणस्थानपारपायात्मभावनामपरित्यजन भोगानुभवधिसनियमेध्याननकालनीत्वासामाग त्यतीर्थकरादिपदेशासपिपूर्व भवभावितविशिषभेदज्ञानवासनावलनमानकरोतिसताजिनदीक्षा Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रहीत्वापुणपणापस्तिनिजपरमात्मध्याननमाक्षाच्यतीतिममिय्याराधिस्तुतीप्रनिदानवेधपुन्पनभोगमा प्यपश्बाईचक्रवतिरामणादिवतनरकेगच्छत्तीतिगरपमुक्तलक्षणपुण्यपायपदाध्यनसरुपी कानिसमतत्वान्पनरपदायाभवतीतिज्ञातव्यगायोगामे तक गोवर तर यामध्ये भासमोचलाइरूपादेवराम न्यायालयको नामाको लामो सारे लामावगायाmaa AARA . Raitary का सबसे स सम्मसणाइत्यादणाणामिनिश्चयव्यवहारमोक्षमार्गप्रतियाकमुरव्यत्त्वना समोउत्तराधिकार सतःपरतविरुपिमारको निभनिधासासमध्यानमारतेध्येयध्यानफल कथनमुख्यत्वनादतोयोत्तराधिकार प्रत्युत्तराधिकारश्यनस्टतीयाधिकारसमुदायपाननिका प्रथमतः सूचनोनयवहारमोक्षमार्गमुत्तराईनचनिश्वयमोक्षमार्गनिरुपयातायात जोगामाला सारा जमाए 13 : सम्मईसणणाणे Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्व्यसंचरणमारकस्सकारणेजाणेयवहारा सम्पादोनजानचारित्रवयमाक्षस्पकारणाशियजानीहियवहारनपा सालिच्छपदातत्तियमाणिजमप्या निश्वयतस्तविलयमयोनिजामतिमत्तथाहि वीतरागसर्वज्ञमणीत परभव्यपंचास्तिकायससतत्वनवपदार्थसम्पकमानज्ञानबतायनशानविकल्परूपाव्यवहारमाक्षमा गणनिजानरजनभुशात्मतत्वसम्पकमानज्ञानानुचरणकायपरणतिस्पानिश्वयमोक्षमार्ग:अप्य वानुशतमभावनासाधकचोर न्याश्मिताव्यवहारमोक्षमारी केवलस्वसेवित्तिसमुत्पन्नरागादिविका ल्यापाधिरहितसुखानुभूतिरुपति नियमोक्षमा अत्यवाधातुपाषाणाऽनिवत्साधकाव्यवहा रमोक्षमार्ग:सुवर्णस्थानीयनिर्विकार वापिलायसाधास्पानिश्वयमाक्षमागेःमएसेक्षेपेणव्यय हानियमातमार्गलक्षणज्ञातव्यमितिकामयाभेदेनसम्पादानजानचारित्राणिस्वकार त्मवतनकारणननियेनात्मयनिश्वयमोक्षमार्ग इत्यारध्यातिपयवावो . गैःप्रकारातेनस्टपतिमछारयाचब-यूIT या अनुमान यातहातोयना Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जमारक TET Ession?:23 रपणतयेणवर अप्यारणमुपेतु प्रस्सदवियाम्ह रत्नवयनरतस्वकीय सुशात्मानमुक्तासन्याचतनश्या तम्हानात्तपमाहोपिजमारकस्सकारणम्यादा तस्मातनविषम यमास्मनमनिश्वयनमातस्यकारणहादिजनानिहाति अथविस्तर रागादिविकल्पोपाधि रहिताचेञ्चमस्कारभावनोत्पन्नमधुररसास्वादसुरवाहमिनिनिश्वयसचिरूपसम्पादयोन तस्वसु स्वस्थसमस्तविभावभ्य स्वसेवेदनज्ञानेनमयकपरिछेदनेसम्पाजान नवदृशकतानुभूतभागा' कापतिसमलायध्यानरूपमनारयजनितसेकाल्पविकल्पजालत्पागनतरसुरेखेरतस्यसतुषस्य तपस्यकाकारपससमरसीभावेनश्चीभूतचितस्यपुनःपुनःस्थिरीकरणसम्पकचारिरित्युक्तल क्षणनिश्वपरत्नत्रयभुधात्मानविहायान्यचघरपटादिवहिव्येनवर्ततेयत्तस्ततःकारणादने देनयेनानेकश्यात्मकैकपानकमत्तूदेवसम्पादोन तदेवसम्पानानंतदेवसम्पकचारित्रातदेवता मतवमित्युत्तालक्षणनिजशानमेवमुक्तिकारणजानीहि छाएमयमस्थलसूत्रध्येननिम्न Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्य यव्यवहारमाक्षमागस्वरूपेसेक्षेषनव्याख्यायातक्षमतरवित्तीयस्थ्यलगायाधडपर्यतेस्मसम्यक्तादिवयकमादि वणाति पतधासम्पत्तमाnswer शहरोल्वाडया हा अव्योडायोजयि स्मिोपणो पतुल्गादि दि0 20 जीवादीसहहरणसम्मत्त वीतरागसवैज्ञदेवमणीतगुरुजीवादितत्त्वविषयेच लमलिनाटेगारहितत्त्वेनश्वधानसचिनिश्वपदमवेच्छामेवतिनिश्वयबुद्धि-सम्पादन रुवमप्पण तेतु नस्पभिटेनयनरूपस्वरूपेतुपुनः कस्यात्मनः यात्मपरिणामइत्यत्तस्पसामयमाहात्म्यादा प्रीतिगडमिाणिवेसारमुक्केणारणसम्मेखलादिसादजम्हि यस्मिनसम्पत्तोसतिज्ञानसम्पकमाति स्फुरवणभूतसम्पन्भवति रामनिवसारमुक्केचलितपत्तिगनणस्पर्शमुक्तिकात्सकलरजता विज्ञानसरसा सेरायोक्माहविभूमक्तरहितमित्ययकारतोनिस्तरणसम्पत्तेसतिज्ञानेसम्पाभवती नियउक्त सस्पविवरणक्रियतेस्ताहिगोतमाग्निभूतिवापुभूतिनामानाविधायचशतबाहम गोपाध्यायानेदचतुष्पज्योतिष्काव्याकरणादिषडेगानिमनस्पतित्याग्रहासागनेशाला Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ marama नतितथापितवाहिनज्ञानसम्पक्तबिनामिप्य्याज्ञानमेवग्यदापुन मसिझकथान्यायनीरी खईमानस्समितीर्थकरपरमदेवसमवसरणामानस्थभावलोकनमायदेमभाषयादर्शनचारि बमास्नीयाअपमक्षपसजेनाध्यात्मभाषयास्वशात्माभिमुरवपरिणामसजेनचकालादित्ताधम विशाषणमिथ्यात्वविलयगतातदेवमिण्याज्ञानसम्पाजानजातातत्तवजयतिभावामित्यादिन मस्कारकत्वाजिनदीक्षारीत्वाचलाचनतरमक्चतुझीनसप्ताईसपन्नास्वयायिगणवरदेवासे जातागोतमस्वामीतभव्यापकारायशादोपकतरचनाकतवानापश्वान्निध्ययरत्नवयमा बनापलेनयापिमागताःोषयेचदशामिनत्राम्हणालिनदीक्षापहीत्वापयासमवे स्वर्गमातंगतानभव्यसनिःपुनरेकादागधारकापिसम्पतविमासामय्याजानीजात इति एक्सम्यक्तमहात्म्पनज्ञानतपश्चरणबतत्पसमध्यानादिकैमिय्यासपमापसम्परभवति तदा aneneumsteoaran Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसं० ७५ भाषेविषयुक्तऽग्धमिव सवैवचेतिज्ञातव्येातच्च सम्प क्षेच विंशति मलरहितं भवतिः तद्यथा। लो कपूट समयमूढचय भवति ॥ तचक्षुधाद्यष्टा दादोषरहितमनेन ज्ञानाद्यनेतगुणा सहितंवीतरागस वैज्ञदेवनास्वरूपज्ञोमेननख्यातिपूजाला भरूपलावण्प सौभाग्यपुत्रकलत्रराज्यादिविभूतिनिमि रागद्वेषोपहता तेरौ परेिगात क्षेत्रपाल चेरिकादि मिथ्यादेवतानोपदाराधना करोतिजी वस्त देवसामूढत्वं भण्णतेन चतेदेवाः किमपिफलंप्रयच्छंति कप्यामितिचेत् राजरो नराम स्वापिलक्ष्मी धरविनाशाप्न जरूपिणीविद्यासाधिता"कोर वैस्तुपाव निर्मूलना थैकात्यायणो विद्यासाधिता कंणे नरौनी याविनाशार्थं वझपि विद्याः समाराधिताभिः कृते नकिमविराम स्वामि पारस नारा यांवांस्तु यद्यपि मिथ्यादे बताराधनारुता तप्याचिनिम्मेलसम्यक्तेापिार्जितेन पूर्वक तपु रोपन सर्जनर्विच्चेज्ञातमिति, छै.ग्मथलोक मूढत्वेकव्ययति ॥ गेोगादिनदोती थे स्वानसमुद्रस्नानप्रातः स स नजस्वप्रवेश मरणाग्निप्रवेशमरणाग्रग्रहणादिमरण भूम्यानि वर रक्षपूजादीनिपुरपका रखा। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निभवतीति यहयेतिस चाकमूढत्वे अन्यदपि लैाकिक्क पारमार्थिकहेयोपादेयस्वकी परिज्ञानरहिता नामज्ञानजनानामवानवमनुष्टानंतदपिलोकमूढत्वविज्ञेयमिति ॥ प्रप्य समन मूढ.-महाज्ञानिज नचित्तचमत्कारोत्यादके ज्योतिष्कमंत्रवादादिकंद ष्ट्रवितरण सर्वज्ञप्रणीतसम्यनिहाय कुदेवाशमलिगि ना/भयाशास्त्ररुलाभ: धर्मशथविनयप्रनामपूजासूस्क। रेरादिकरनमूढ त्वमितेि राबमुक्तलक्षणमूढ जयसराग सम्पाष्टीवस्थायोपरिहरणीयमित्ति त्रिगुसावस्थानलक्षणचीतरातसम्यक्त प्रस्तावपुननि जनिरंजननिर्दोषपरमात्मवदेवइति निश्चयबुद्धिर्देवत्यमूढ रहितत्ववि ज्ञेयं तथैवमिथ्यात्वरागादिरूप मूढभावत्यापन स्वात्मन्यवानुष्टाने लोकमूटरहित्तत्वं ज्ञातव्यं तथैवचसमस्त शुभाशुभसंकल्प विकल्प रूपपर भावस्या तननिर्विकारतात्विक परमानदैकलक्षणापरमसमरसा भावेनतस्मिन्नवस पलायनं गमनंपरिणामनसमयमूटर हितत्वंचो धव्यं ॥ इतिमूढचयव्याख्याता ॥मश्रमदा कचरूपकयत विज्ञानेश्वयैज्ञानतयः कुलवलजातिरूपसज्ञे मदाष्टकंसरातसम्पादृष्टिभिस्या Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दव्यसं ७६ ज्यामिति वीतरागसम्पासीनो पुनमानकषायोदयात्यन्नमदमात्सयदि समस्तविकल्प जाल परिवारेण ममकाराहेका ररहितस्वश्वात्मनि भावनैवमदाष्टकत्यागवृत्तिममकाराहंकारलक्षण कथयति कम्मे जनिते देरुपुत्रकलत्रादैाममेदमित्तिममकारः स्वत्रैवाभेदेनगौर स्थूलादिदेह। हे राजाहमित्य हे कार / लक्षणमिति ॥ श्रन्यखतेपिष्पादेनामिथ्यादेबाराच्धनाः मिण्यातयो: मिथ्यात पस्वी मिथ्याममिच्प्रागम धरपुरुषश्वेत्युक्त लक्षणमनाय तनषट्केसराणसम्पादृष्टीनात्या से भवतीति: वीतरागासम्पादृष्टीनापुनः समस्तदोषायतन भूतानामिथ्यात्वविषयकषायरूपानायतना। नापरिहारेणाकेवलज्ञानाद्यनंतगुणायतन भूतस्वशुद्धात्मनिनिवासण्वानायतनसेवापरिहारइति अनायत न शब्दस्पार्थकथ्यते सम्पक्तादिगुणानामापतनाररूमावास : प्राश्रयमाधारकारणेनि त्तिमायतने भण्यते तद्विपक्षभूतमनायतनमिति ॥ म्प्रतः परंशेकाद्यष्ट्रमलत्यागेकाप्ययति निःशेका टाइगुणप्रतिपालनमेवशंकाद्यष्टमन्नरवागो भवते तद्यत्याभवतितप्याकप्ययतिरातादिदोषा अर्ज Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवासत्यवचनकारणेन भयमपिवीतरागसर्वज्ञानानास्तिततःकारणातानपणीतरगापादयतत्व मोक्षमोक्षमार्गचभव्य रोकारोवय सदसोनकर्तव्यः तत्रोकादोषपरिहारविषयपुनरेननवारक यामसिसातवविभीषणकया तयारि सीताहरणमघरकेरामणस्परामलक्षाणाभ्यासहसेर्ग मप्रस्तावेविभीषणानविचारितरामस्नायदएमवलवालक्षमणध्वारमारासुदेवारामणवाएमः निवासुदेवति तस्यचानिरासुदेवस्पवासुदेवहस्तेनमरणामितिजैनागमकथितमास्ततन्सिच्या नभवतीतिनियोकोभूलाविलोककेटकरावणस्वकीयज्यभानरेत्वक्तानियक्षहणोमितरतु: रेगरलेनसहरामस्वामिपागातर्गततयवदेवकीवासुदेवश्यचनिःशकतातो तयारियदादे चकीचालकस्यमारणानिमित्तेकेसनमार्थनाकतातदाताभ्योपयोलोचितमदीयपुजानयमवासुदे चोभविष्यति। तस्वहस्तेनजरासिंधुनाम्नानरमप्रतिवासुदेवस्यकशास्थापिमरणभविष्यतीसिजना गमभागतेतिएतीतिगतर्थयातिमुक्तकभहारकेरविकणितमितिनिश्वित्यकेसायस्वकीयवालके Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यक दत्तनवाशेयभव्यापितिनागमेशेकानकर्तव्यति छाइदेव्यवहारेणनिः शोकितव्यारव्यात निश्व येनपुनस्तस्यैरव्यवहारनिःशेकगुणस्यसहकारित्वेनारलोकपरलोकाचाणासिमरणाव्याधिवेद नाकसिमकामिधानभयससकमुक्ताचोरोपसर्गपरोषहप्रस्ताभुशेषयोगलक्षणनिश्चयभार नेनिशंकगुणाज्ञातव्य इति निक्षतागुणकप्णयतिपाइहलोकपरलाकासरूपभोग कोक्षानिदानत्यागनकेवलज्ञानायनेतगुणयत्तिारूपमाक्षायेशनपूजातपम्बरणा झनुशाना करणाने कोक्षागाभण्यते तणानतमतिकंन्यातल्याप्रसिधारिती । कथ्यते यदालाकाक्वादपरिकारादित्यनुबाजानातदारामस्वामिनादलेफ्टमहादेवीविभूतिय दत्यकासफलभूषणानागारकेलिपानमूलकतातयकादिरानाभिस्तयावअराजीभिश्वसहा ! जिनक्षीक्षारकीयोगशामभार्यिकासमुदायनसहयामपुरखेटकादिविहारणभेदाभेदरत्नत्रमा बनायादार्षदोणिजिनसमयमभावनारुत्वापावादवसानेत्रविंशदिवसपतनिर्विकार Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |परमात्मभावना सहिते सन्यासरुत्वा च्युताभिधानखोडास्वर्गेपनी। जातः ततश्वानर्मलसम्पत फलेदृष्ट्वा धर्माशशोगनरके रावशालक्ष्मणयोः संवोधनकत्वेदानोस्वर्ग तिष्टति श्रयेस्वर्यादा | त्यसकल चक्रवर्त्ति भविष्यति नौचरावरणांलक्ष्मीधरोत्तस्यपुत्रो भविष्यति ततश्वती करपा दमूलपूर्व भवानरे एट्रा पुत्रइयेन परिवारेणच सर जिनदी क्षागृहीत्वा भेदरत्नत्रयभावनयापेचानुन रविमाने वयो अहमिंद्र। भविष्यति तस्मादागतारावरशास्तीर्थकरो भविष्यतिशीता चमरणधर इति ले क्ष्मीधरोपिधातकीखंडशीपे तीर्थकरो भविष्यति इतिव्यवहारनि:कांक्षागुणज्ञातव्य निम्न .. येन पुनस्तस्यैव व्यवहार निः कोक्षा गुणस्य सहकारित्वेन दृछतानुभूतपचेंद्रिय भोग त्यो तनिश्वय रत्नत्रयभावनोत्पन्न पारमार्थिकस्वात्मसुखामत रसेवित्तसेतोय. सरवनिःकाक्षागुणइति खायत्रिविविचित्प्राणु वेवास्यति भेदाभेदरत्नत्रयाराधक भन्यजीवाना दुग्धवो भत्सादिकंदृष्ट्राध र्मबुध्याकारुण्येभावेनयच्या योग्यचिचिकित्सापरिशोऽव्यनिर्विचिकित्सागुणेा भरत्वते यत्पुनर्ज Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इव्यसे ७८ "नसमये सर्वसमीचीनंपरं किंतुरस्त्राणाघरांजल स्नानादि कंचनकुञ्चति तदेवदूषणमित्यादि कुत्सित भावस्य विशिष्ट विवेकवलेनपरिहरण भावनिर्विचिकित्साभण्प तइति अस्पव्यवहारनिवैि चिकित्सागुरणस्यविषयो उद्दायनमहाराजकण्यासाकाणीमहादेवी कप्पा चागमप्र सिद्धाज्ञातव्येति निश्वयेनपुनस्तस्य वन्य बहार निर्विचिकित्सा गुणस्यवलेन समस्तदेषादिविकल्यरूत्वकत्रा लमालात्पागेननिलात्मानुभू तिलक्षणेोनिजशुद्धात्मनिव्यवस्थानेनिर्विचिकित्सागुणइति छञ्जतः परममूढदृष्टिगुणकथयति वीतरणसर्वज्ञमणोनागमवहि भूतैः कुटष्टिभिर्याणीत धानुचीदखन्यवाद र मेखलक्षु विद्याव्येतर विकुर्वणादिकमन्नानिजनचित्त चमत्कारो त्यादकं दृष्ट्राक्रस्वाचमूढ भावेनयोसौधारी बुद्ध्या तत्रसचिंभ तिंनकरोति रावव्यवहारेणामूद दृष्टिरुच्यते तवचान्तरमथुराया उदरुलि भट्टारकरे वतिश्वाविकाचंद्र प्रभनामविद्याधर ब्रह्मचारिसंवेधिनी कप्पाप्रसिद्धेति निश्चयेनपुनः तस्यैव Go प्रशादेनातस्तत्व वहिस्तत्वनिश्वयेजतिसनिसमस्तमिच्छ्या त्वरागादिशुभाशुभसंकल्पनिकल्पेष्वात्म Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "वधिमुपादेयबुद्धिदित्तबुद्धिममत्वभावत्यक्तानिगुभिरूपणविधिज्ञानदर्शनस्वभावननिस्वलावस्यानंत देवामूदहष्टित्वमितिका विकल्पलाइनपुरकलवादावाहईव्यमममिनिसंकल्पनसेक लास अभ्यत्तरेसुरख्या सारख्यहे इतिहविषादकारणरिकल्पाति मथवावास्तुष्यत्यासकल्पनातिकार्यः विकल्पइनितस्वपर्याय:यणमूह रोकायागभेदाभेदरत्नत्रयभावनास्पोमाक्षमा:स्वभाव नथुधरवतावततत्राज्ञानिजनानमित्तनतयैवाशक्तिजननिमित्तनवधर्मस्यपैनून्यदूषणमपदार घभावनायाभवतिनागमविरोधनयथाशक्तवार्यनयमोपदेशनवायइम्पोणेोषस्योपनोनवारण जियतेतहरहालयनोपहरणभएपते तबमायात्रह्मचारिणाभधारक प्रतिमालग्नरत्नहरणसते सत्पएगहरणाविषयनिभदलनेशिकण्याप्रसिद्धति प्रणवारजनन्यायशसंज्ञायालोकापवादेजाते सति यायसपनेरुततवलिनीमहादेवीकति नियनपुनस्तस्यैवयवहारोपासणगुणस्यस . हकारितनानजनिरंजननिषपरमात्मनःपच्छादकामियात्वरागादिशेपास्तवातस्मिन्नेवपरमात्म Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एव्यसनितम्बकमशानज्ञानानुशानरूपयशानंतनाखादनविनारानगोपनपनेतदेवोपरनमिति व्याप्तीपरोकप्या भेदाभेदरत्नत्रयाधारस्पचातुर्वर्णसंघस्यमोययाकोपिदर्शनचारित्रमा दयनदर्शनंज्ञानचारित्रचापरित्यक्तुंयाति तदागमाविरोधेनयप्यायल्याधीभरणेनवायन कनाणुयायनयमस्थिरत्वकियततयवहारेनस्थिताकरणमितितक्यपुष्परालतपोधनस्यस्थि तीकरणप्रस्तावेवारिषणकुमारकयागमसितिनिश्वयनयनपुनमस्तेनैवयवहारस्थितीकर गुणेनधर्मटवजातसतिशोनारिचमाहोदयजनित्तसमस्तमिण्यालरागादिविकल्पनालय गेननितपरमात्मस्वभावनात्पन्नपरमानदेवलक्षणसुखामतरसास्वादनतत्वयतन्मयपरमसम रसीभावचित्तस्थिरीकरणमवस्थितीकरणमितिमाशबारमेयानगोगप्रतिकारका निवासाभ्पतरत्नत्रयधारेचतुर्विधर्मधेरत्सेसेनुपतपेशियविषयनिमित्तेपुत्रकलवसुवणी दिनबहायपरविनहकलेतहरहारेवात्सल्पेभएपते तयचर .. . Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धिनीवलिनामएमेत्रिणानिम्बयव्यवहाररत्नत्रयाराधकापनाचार्यप्रतिसमशतयतीनाम वसीक्रयमाणेमतिनिकमारनाम्ननिश्वयव्यवहारमाक्षमादकपरमयतिनादिकुर्दशातर्व प्रभावेनवामनरूपेरुत्वादालमविपाचपाश्चयप्रमाणभूमिपर्यनरुत्वापाम्बोदकपादमसमस्तके दत्तोदितीयस्तुमानुसोत्तरपर्वतैरतीयपादस्थावकाशोनास्तीति वचनलेनमनिवात्सल्यनिमि चलिमंत्रीवतेपकातावासमप्रसिक्षाकप्याक्तिीयाचक्षापुरनगराधपतेवञ्चकरण नानांउज्जयनीनगराधिपतिनासिहोदरमहाराजेननोयममनमस्कारेनकरीनितीमत्यादा शपुरनारपरिवेषचोरोयसकीयमानेभेदाभेदरत्नत्रयभावनाप्रियणरामस्वामिनावकर्ण रात्सल्यानिमितसिंरोदरोवरतिरामायणमध्येपासगंवाकरलकप्पति छानिश्वयात्म ल्यपुनस्तस्यव्यवहारदात्सल्पगुणस्यसहकारित्वेनासमेटदत्त्वज्ञातसतिमिथ्यात्वरागादिस . मलनुभाशुभयहिभावेषुप्रीतित्पत्तारागादिरिकल्योगाधिरहितपरमस्वास्थसवित्तिसजातम Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अल्पसं० १० दानेदैकलक्षणसुखामृतरसास्वादेप्रीतिकरशामेवेति सप्तमोगंयाख्याते ॥ ३॥ अथा घुगाधनापमभावना गुरोच्चाव्ययति॥३॥ श्रावके नदानपूजादिना तपोधनमचतपः श्रुत्वादिनाजैनशासनप्रभावनाक तैव्यति: व्यवहारेणाप्रभावना गुणज्ञातयः ॥ तत्रपुनःरुत्तमे रथुरायाजिनसमयप्रभावनाशीलायैः रक्स्पिामहादेव्याःप्रभावनानिमिचमुपसर्गे जातेसति वज्रेकुमार नाम्नाविद्याधरश्रमणेनाकाशज्ञ 'नरभूमगोनप्रभावनाकतेसत्यका तावदागमप्रसिद्धा कथाः ॐ द्वितीया। तुजिन समयप्रभावना 'शीतपणा महादेवी नामस्वकीयजनन्यानिमित्तस्वस्य धम्मौनुरगोन चहरिषेणनामदशमचक्रवति नातद्भवमोक्ष्यामिना जिनसमयप्रभाव नार्थमुत्तुंगतोरण जिनच्यत्वालय मंडित सर्व्वभूमितले क समितिरामायणेप्रसिडूयेकच्या 10 नि श्र्वयेन पुनस्तस्यैबव्यवहार प्रभावनागुणस्य चलेनमिष्याव विषयकषायप्रभूतिसमस्तविभा वपरिणामरूप रैपै ससयानांत्र भावहत्वापयेोगलक्षणस्वसंवेदन ज्ञानेन विशुद्धज्ञानदर्शन स्वभावनिजमुद्धात्मनः प्रकाशनमनुभवनमेवप्रभावानेति ॐ एवमुक्त Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारणभूटलयमाकषरनायतनशेकायमलरहितभुजीवादितत्वार्यशानलक्षणेसराम तमातापिधानन्यवहारसम्पतिविज्ञेये तयवतेनेवव्यवहारसम्पत्तनपारपर्यनसाध्यमुझपयोगल क्षणानिश्वयरत्नत्रयभावनात्पन्नपरमालादेकरमसुखारतरसास्वादनमेवापारया मिश्यिसरवादिर कचहेयमितिरूचिरूपवीतरामारिवरिनाभूननीतरागसम्यक्ताभिधान निश्वयसम्पत्तेचतातयमित निअश्यरसारसम्यक्तमध्येनिश्वयसम्पत्तकिमर्थव्यारयातिमितिचेताव्यवहारसम्पत्तेननि श्वयसम्पासाध्यताइतिसायसाधकभावनापनामिति इदानीयवाजीचानासम्पादनहरा पूर्वेभायुवेधोनास्तीति तपोवताभातपिनरकादिकुत्सितस्थानजन्मनभवतीतिकथयति सा म्यादीनशुशानारवतियानएसकतीत्वानिःकुलरिकताल्पायुरिश्ताचबर्जतिनापतिको मनःपरेमनष्यातिसमुत्पन्नसम्पाशे प्रभावकातिलाउजरूजाविद्यावाणिवारशिविर जयभवसनाप्या उत्तमकुलामहामानवतिलकामवंतिपोनपूना मयदेवगतोपुनःपकी Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --- -- इससे -- रोकदेवावारुनदेवाकिल्विषदेवनारदेववविहायान्मधुमकिदेवेशोत्पद्यतेसम्पाटिइदा नीसम्पत्तागणापूर्वदेवायुष्कारिहाययोहायुप्तास्तानप्रतिसम्पक्तमाहात्म्यकथयति छार है। मछपढनीरण जोमवरणभवरणसवइत्यासुपारपदरगाहसम्माणमासणारयापुरमा तमेव यमकासरेणकति ज्योतिभोवनभोमेषु षट्स्वधःस्वभूमिछु तिपक्षनरसरतीषुः सह विनैवतायत अध्यापशमिकवेदकक्षापिमानिधानसम्यक्तत्रयमधेकस्यागतोकस्यसम्पत्ती स्यसभनास्तीतिकथयति साधम्मोबसरमालायुष्कतिरीक्षुतोपरत्ननभावनाचस्पात्सम्यक्त क्तवयंभेगिना कमभूमिजपुरुषवयसभवनिमवसापुष्करलगायुकेपितित्वोपमिकमप योसावस्थायोमहाईकोदेववव रोपेखुवतियेषट्स्वधा स्वभूमिवावकोपामिकास्य तोपयोमहिना इतिनिश्वयव्यवहाररत्नत्रयात्मकक्षमादयविनामप्यारयवभूतस्यसम्पत्ता स्यव्याख्यानेनगाप्यातायरलवयात्मकमाक्षमाहितीपाययभूतस्यसम्पकज्ञानस्प. Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुपप्रतिपादयति ससायमाहविनमविजियमप्यपरसस्पस्सागरणसम्मलागासायारमणयों यंतु॥४संशयात्मतत्वादिप्रतिपादकमागमज्ञानकिवीतरागसवेशंगणातभनिस्पतिपरसमय सीतेचतिसंशवतबहोतास्थाणुापुरुषोवादिमाहपरस्परसोपक्षनरायनश्याणपर्यायादिप रिजानाभागाविमाह... तवरातःगछत्रणस्पर्शामाहयाचिभम मनकानात्मकरस्तुनोनित्य क्षणिकैकोनादिरूपणाहणविनमतवातः मुक्तिकायोजितविज्ञानरत् दिजिये इत्यु क्तलक्षणसंशयानमारविभौमवर्जित पपरसस्वस्सागरण सहजघुझकेवलज्ञानपीनस्वभाव स्थात्मस्पस्परणेपारेछेदनपरिछित्तिस्तथापरन्त्यस्परभापकर्मश्च्यवर्मनीकम्मरुपस्पजीवसे नाधिनस्तथवागलादिपचन्दयस्परूपस्थपरकीयजीवस्यचपरिसदनयततसम्मेणाण सम्पानाने भवतिगतच्चकयभूतमायारेगघटायपरायमित्ययेशहरायापाररूपेणसाकारंगसविकल्पावरसा यात्मकनिम्वयात्मकमित्यपुनश्वविविशिप्रणेयभेयत्तु अनेकभेदताएनरितितस्पभेद Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्य से રૂ कथ्यते मतिश्वत्तावधिः मन:पर्ययकेवलज्ञानभेदेनपेचथाः मय्यवाश्वत ज्ञानीपेक्षयाादशभंग ह्यंचेतेिः द्विभेदे ॥ द्वादशोगनामानिकखते आचारे सूत्र कृते स्थानसमवायनामध्येये व्याख्याप्रगुप्तिः ज्ञानकशोपासका ध्यायने प्रेत सद्दशेोमनुत्तरोपपादिक दश प्रमव्याकरण। विचाकसू चे दृष्टि दश्वेत्ति हाष्टबादस्यचपरिकम्मे सूचा प्रथमानुयेोगः पूर्वगत्तः चूलिका भेदेनपेचभेदाः कथ्येते ॥ चचेद्रसूर्यजवूदीयदीयसागर व्याख्या प्रज्ञप्ति भेदेनपरिकम्मैव चविधेभवति सूत्रमेकभेदमेव प्रय मानियेोगोण्यकभेदः पूर्वगतेयुनरुत्पादपूर्व अग्रायणीये ॥ बीर्यानुवादे ॥ अस्तिनास्तिप्रवादे स प्रवादे ॥ [पात्मशवादे ॥ कर्म्मजवादे प्रत्याख्याने विद्यानुवादे ॥ कल्पानामध्येयं ॥ प्राणानुवादे । याविशाले लोकसज्ञं पूर्वेचेति चतुर्दशा भेदं जलगत स्थलगताकाप्राह रमेखलादि माया स्वरू पशास्त्रेन्यादिरूपपरावर्त्तनभेदेन चूलिकायेचावे धाचेति ॥ संक्षेपेाद्वादशांगेच्याख्याते ॥ ॥मंग बाह्येपुनः सामायिकं चतुवैिशतिस्तवे ॥ वेदनाशतिक्रमण ॥वैनाये के॥ कृतिकर्म ॥ दशवेकालिका " ma: Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराअपने कल्यव्यवहाराकल्पावाल्पामाहाकल्प पुरीकर महायुडरोकेगमगीतिकतिर नईशाप्रकीरहिसञवाइव्यमिति अथवारसभादिचनुर्विशतितीयकरभरतादिक्षालाच वातविनयादिनक्कलदेवाचिएलादिनववासुदेवा नोवापिनवप्रतिवासुदेवसेवधीनिषष्टिपु रुपपुराणभेदमिन्नयमानुगोगाभण्पत्ते उपासकाध्ययनादावारकाधम्मेमाचाराधनादाय निमिवयवमुत्पत्लेनकथयतिसचरणानेयोगाभगवताबिलोकसारजिनोत्तरलाकविभागार दिशेयव्याख्यानं करणानियोगाविजेयप्राभततस्वामिझोतानपत्राभुरुजीवादिष्ट स्थादोनोमुख्यरत्याव्यात्यानक्रियेसश्व्याणियोगाभएते।इत्युक्तलक्षणानियोगरतुष्यरूपण सत्ताधेश्चतज्ञानेजातव्यमिता भनिगमकारपोरेशदयकरणमित्यायकाय अपवर पचास्तिकायसमतत्वनवपदार्थांमध्यनियनयनस्ववीयवशात्मश्व्यवमुजीवास्तिका पानिजमुशात्मतत्वनिजमुशात्मपदायेउपादेयाशवेनहेयमिनिसोपनहेवापादेयभेदेना MAHANISARMILIARoma Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पच्यसेक धापनहारज्ञानमितिइदानीतेनवरिकल्परूपयहारज्ञानेनसाध्यनिश्वयज्ञानकथ्यते तयादि। रागात्परकलबादिवोछारूपाख्यात्परवेच्छदादिवोछारूपंचमीयापध्यानापिनजानातीतिमत्यात अक्षात्मभावनासमुत्पन्नसदानदेकलक्षणसुरवातनिर्मलजलनचित्तबुद्धिमीण सन्नरजीवो " भेषेणयशायरलानाकरोतितर्मयाम्पेभएप्तामनिमनिरंजननिदीयपरमात्मवापोदया इतिरुचिरूषसम्यकाहिलक्षमिथ्याशल्पभणपतनिर्विकारपरमेचतन्यभावनात्पन्नएरमालादकरूप सुरणामतरसास्वादमलभमानायजीवोहरकतानुभूतभोगेषुगन्नियतनिरताचददातितन्निपानशे . धीयते इत्युक्तालक्षणशल्यवयविभावपरिणामप्रभातसमलनुभामुनसेवल्पविकल्परहिते । .. समत्पन्नताविकपरमानदैकलक्षणसुरवाततप्शन .. विकल्परूपेणवेदनपरिजानमनभवनमितिनिर्विकल्पासवेदनज्ञानमनिश्वयज्ञानभएयते हरियः इत्युक्त प्रकारणाभतशेयेयनिर्विकल्यस्तसेवेदनजानेमण्यततन्नपटते कस्मादितिरे Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ d स्तयते सत्तावलोकरूपचक्षुरादिदर्शनियाजनमतनिर्विकल्पकप्तानथारोधमतज्ञाननिर्विी कल्यभएपते परकित्तुतनिर्विकल्पमपिरिकल्पजनकंभवति जनमततुविकल्पस्यात्पादकभरस्पवेना किंतुलरुपनेवसविकल्पमिति तयवस्लपरप्रकाराकतिगतवपरिहाराकरितसरिकलेव तथाहि ययाविषयानेदसमस्वसंवेदनरागसेवित्तिविकल्परूपेणविकल्पमपिशेषानीहितमसिल्पाना सोचविसतिगतवामुख्यत्वेनास्तितिनकारणेलानोर्वकल्पमपिभएपना तथास्वमुशात्मसेषितिरूपा चोतराणस्वसेवेदनजानमपिस्ववित्तकारकरिकल्पनसक्किल्पमपियहिर्विवयानीहितसमरिकल्प नासजावापिसाततधोमुख्यसनास्तितेनकारणनिर्विकल्पमपिभण्पतायतस्वहापूर्वस्वसरित्याका रातमुख्यानभासविवाहविषपानीहितस्ताविकल्यामपिसेतिततएकारणातस्थपरपकाशेचत्र सिदिनुसविकल्पनिर्विकल्पस्यतयवस्वपरप्रकाशकस्वचज्ञानस्पधारल्यानेयरबारमात्म तर्कशास्त्रानुसारेणविशेषणयारयायतेनयामानविस्तारोभवतिसवाधात्मशास्वत्वाचकताइ। . - . indian Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ইস तिकारानरत्नत्रयात्मकमोक्षमाओवयविनहितायावयवभूतस्यसम्पाज्ञानस्यव्याख्यानमायापता १२ अयोनिशियाकेशालययोग ३० जेसामणगाणे भावाणेणेवकहमायारेरिससिदूण अहेदेसणमिदिमागसमर ५१४३ जेसामसोगहरणभावाणणेषकहुमायार यत्सामान्यनसत्ताव नाकेनयनोपरिच्छपने भायासापदार्थानापिरुत्याणेवकटुमाया नैवकत्याकेमाकारेविकल्प . तदपिकिरुवा अविससिपूणबहे विशेष्यविभेद्यपान केनरूपेणमुस्कायेरुमा दोघीय करवाया घरायेपटायमित्यादिशदेसणामिदिमणसमएतत्सत्तावलाकने खोनेतिभापते समये परमागमेण इदमेवतत्वायनशानलक्षणेसम्पादनवत्तायाकस्मादितिरेनातववादानविकल्प रूपमिदतनिर्विकल्पयतःलासयमवभावयदाकापिकिमणवलोकयतिपस्यतितदायावधिकल्पा नकरोतितावत्सत्तामावगुणेशोनेभएपसेपश्वाशुकादिनिकरूपजातज्ञानमिति॥४३॥ सवय स्थानानानेसत्तावलोकनदर्शनपूर्वक भवति मुक्तात्मनायुगपदितिप्रतिपादयतिलादेशमाहोला Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवयवग्रेहादिरूपेमतिज्ञानेभ खितं तदपि दर्शनपूर्वकत्वाऽपचारेादर्शयां भवते: यतरेनन कारणेन वनज्ञानमन: पर्य्ययज्ञानरूयमपि दर्शनपूर्व के ज्ञातव्यमिति संबद्धग्रस्थानांसाच साक्षयोपशमेकज्ञा नसहितत्वात्तदर्शनये के भवति केवलिनानु भगवतो निर्विकारस्वसंवेदनसमुत्यन्ननिरावरणासायिक ज्ञानसहितचानिर्मघादित्ययुगपदाचपप्रकाशवदर्शनज्ञाने चयुगपदेवेतिविज्ञेयः ऊसस्थाइति कार्य :: अप्रसन्देनज्ञानदर्शनावरणोदये भरल्यते ॥ तत्रतिक्षेतीति यस्था: रावतर्कभिप्रायेनसत्ता बलोकदर्शने व्याख्याते । इन अहंसिद्धांताभिप्रायेणकथ्यते तच्याहि उत्तर ज्ञानोत्पत्तिनिमित्तय स्प्रयत्नतडूपे यस्यात्मनः परिच्छेदनमवलोकनं तद्दर्शनं भशपते सदनेन रंयइति विघये विकल्परूपे पदार्थगुहांनद्ज्ञानमितिवार्तिकं यथा पोषिपुरुषो घर विषय विकल्पकुर्वन्नास्तपा स्परपरिज्ञानाथैरितेजातेस तिघर विकल्पाद्वर्त्यय स्वरूपे प्रयत्न मवलोकन परिखेदनं करोति। तद्दर्शनमिति तदनेतरं पटोयमिति तद्गमिति निश्चय हिर्विषयरूपेण पदार्थग्रहणविकल्पक Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T 143 मजा आ गयेकासकेसिलाले प्रवित्तिशकि 2413331/ देसलपुचेरणा ॥ कूदमन्छ गोखदासिड उगा सत्तावलोकनदर्शनपूर्वकं ज्ञाने भवतिः सस्यानासेसारिशांकस्मात्सादेउि वर्डमा जुगवे जाहाज्ञानदर्शनोपयेागद्दयेयुगपन्त्रभवतिः यस्मात्केवलिखा हे जुगावेतुनेदाचिकेवलिनाये तुयुगपत्ताज्ञानदर्शनोपयोग है। भवतः ॥ भ्प्रप्यविस्तरः चक्षुरादी दियारोवस्वकीय क्षयोपशमानुसारेण तयेोगदेशस्थिनरूपादिविषयाणाग्रहणमेवसन्निपातः संबंधः सन्निकर्षो भवते नचैनेया विकमतव न.. चतुराट्रशियाशास्वरूपादिस्वकीयविषयवागमनइतिसन्निकर्षे वक्तव्य: सराब सेवंधोलक्षणेय, स्यतस्त्रक्षणपन्निर्विकल्पे सत्तावलोकनदर्शनंतत्पूर्वमुक्त्वमित्याद्यवग्रहादिनि कल्यैरुषमिडिया निि यज्ञनितमतिज्ञानं भवति इत्युक्तलक्षण मतिज्ञानपूर्वकंतु धूमादा विनविज्ञानवदश्री दप्यतरग्रहरु पनिंगजे तयैवघरादिशब्दश्रवणरूपं शब्दतं चेतिद्विविधेश्श्रुतज्ञाने भवति कयच्या बाधज्ञानपुनरा धिदर्शनपूर्वकमिति ईहामतिज्ञानपूर्वकं सुमन:पर्ययज्ञानेभवति अत्रश्रुनज्ञानमन: पर्य्ययज्ञानज Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्बक्तंभएयतेश्यतःकारणातदिभेदानास्तितरिकप्यमावरणश्यमितिलेला तोत्तरेयेनकम्मेणाध्यपरिक्षित ससाक्षयोपशमनळाद्यतेतस्यज्ञानावरणसंज्ञा तस्वक्षयोपरामविशेषस्मयकम्मपूर्वत्तिलक्षणविपरी ताभिनिवेशमुत्पादयतितस्पमिथ्यात्वसेजेतिभेदनयनावरणभेदनिश्वयनपेनपुनरभेदविवक्षायाकर्मवन त्यावरणाध्यमकमेवाज्ञातव्यागरशीनपूर्वकंज्ञानभवसातिव्यारव्यानरूपेणगाणागतास अयस पादर्शनपूर्वकर नवयानक मोक्षमागेरतीयावयवभूतस्वशुद्धात्मानुभूतिरुपमुशेपयोगलक्षणवीत रमाचारित्रस्यपारपर्यणसाधकंसाचारित्रप्रतिपादयतिमाशुकायावागायती हाती विजोइदिनदिशिक पार जयाNिISTOTTISTOMनस्पवसरागचरित्रस्पकदेशा व्यवभूताचारितावत्याध्यत्तानद्यया मिथ्यात्वादिसमप्रसत्पुपरामक्षयोपशमक्षयसत्यध्यात्मभा पयानिजात्माभिमुरवपरिणामवासतिनुज्ञत्मभावनोत्पन्ननिर्विकारखास्त्वसुरवामसमुपादयेला त्या संसारसरीरभगषुयोसोदेवबुद्धिःसम्पादर्शनमुक्षिः सचतुष्यगुणस्थानवीतहिताशीनिको Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |afarmera : ।।अण्णवेज बोराडे लगाने firpoem 370.सखापुराणोछदमच्छा गोरखदाणिडपर्दया सत्तावलोकनदर्शनपूर्वकज्ञानेभपति समस्थानासेसारियाकस्मात गदाणे गजुगवजाहा ज्ञानदर्शनोपयोगाइयेयुगपन्नभवति यस्मात्केचलिणारेजुगनुतोविणकेवलिनाये तुयुगपतीज्ञानदर्शनापोगोभवतः अविस्तर चक्षुरादौरियारपस्वकीयक्षयोपशमानुसार तद्योगदेशस्थितरूणादिविषयाणाहणमेवसन्निपात सेवधासनिक भएयतानचनैयायिकमतव तरतुराहोरियाणा स्वरूपादिस्वकीयविषयपाशगमन तिन्त्रिकवितव्यःसण्यसेवेधोलक्षणय स्थतस्त्रक्षणपन्निर्विकल्पसत्तावलोकननितपूर्वशुलमित्पायरगुणादिविकल्परूलामझियानिधि यजनितमनिज्ञान भवति इत्युक्तलक्षणमनिज्ञानपूर्वकेतुधूमावातिनविज्ञानवदीदातरग्रहण पोलगातयघटादिशावरणरूपेशयोनिविविधेचुतझानेभवनिमयावधिज्ञानपुनरमा धिदानपूर्वकामिनिलामतिज्ञानपूर्वकतुमनःपयेषज्ञानेभवति अवशुनजानमनःपर्यापज्ञानज Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोतितनतानेभापते ३ सवाहाशमाययात्मशाहकशानभरपतेतर्हिगण्यनैयायिकमतेजानमाम ननजानातित योजनमतेपिज्ञानमात्माननजानासीतिदूषणप्राप्नोति सपरिवार नैयायिकमतज्ञाने प्रथादीने प्रथगितिगुणयनास्तिकतेनकारणनतामात्मपरिज्ञानाभावभूषणामामातिगमनमत नजीरनगुणेनपायजानातिदीनगुणेनात्मनेचज्ञानात्मात्मयरिज्ञानाभावलणनमाप्रतिक स्यादितिवेलाययकाप्पानिदेस्सीतिमारकापचतीतियारकाविषयभेदेनरिधामिद्यसातवा भेदनयेनकमपिचैतन्यभेदनयविवक्षायोगदात्मयाह कवनश्यलेतातस्यशीने तिसजापता तरापरइव्यशाहकलेनमरतेनस्पज्ञानसतिविषयभेदनदिधामिद्यतेजकेच दिसामान्पयार केदर्शन विशेषयाकेजानभरपतेतपाज्ञानस्यपमाणत्वनपालातिकस्मादितिरत्णवस्तुपाहक । प्रमाणे वस्तुचसामान्यविशवात्मके जाननपुनर्वस्वकारिशेषरावग्रहीतानचवस्तुसिकोतन पुननिरपेनगुणगुणिनारमिन्नत्या छायनिमाविभूमरहितवस्तुजानालरूपात्मवप्रमाणेसच Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ar Homeaman प्रदीपवनत्वपरगतसामान्यविशवचजानातिनकारनाभेदनतस्थपत्रमाणत्वमितिमयमतीय दिशेनवाहविषयनमवर्ततेतदोपवत्सर्वजनानामधलेमानातिनोनवेशकतव्यावहिर्विषयदर्शनामा: विपिजाननविशेषणसर्वयोरेछिन्नतीति अनुदिरोखीनेनात्मनिहीतेसत्यात्माविनाभूतज्ञा नमपिरहातभतिज्ञानचहीतसतिज्ञानविषयभूतवाहिवेस्वपिग्रहीतभवतीतियानवता पद्यात्मयारको दर्शनभएपसलाई जेसामगहणभागानेनशानमितिमाप्यायकोरटतेला सामान्य गहनदर्शनकस्मादितिचेतामात्मावलुपरिचितिकुन्निदेनजानामादेजानामि निविशेषपक्षपातेनकरोतिकिसुसामान्यनवस्तुपरिछिनन्नितनकारगोनसामान्यशदनारमा भएपते इतिगाथार्य कियानादिकापितकीयासहोसायचज्ञानकात राहत्यारोननयति भागनमधास्थरत्याव्याख्यानकारोति सदाइयमपिघटसतिलकमिनियतातरूमवरस्याप रसभराव्याख्यानातवपदाकापिपरसमयीएच्छतिजैनागमनिज्ञानेतिगुणस्पेनीवस्यकथ्य Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mheroine ते संस्कधरनानि तदारयामात्मणालानमितिकतेसाततनजानेति पवादाचायलेया सोल्पयस्वमवारपानवाविषयसामान्पपरिवेदनेतस्पसत्तारलोकनदर्शनसंज्ञास्यापिसाय भलगमस्यादिविषधरोषपार पनेतस्पजानसेनास्यापिनेतिदोषानास्ति सिहोतयुनःस्वसमयया - स्थानमुपस्त्यानवादावारमाझियमानमत्याचारात्मगारकर्शनव्याख्यातमित्यवापिर्दधानास्ति • 'पाय' सत्ताममोकाशीनस्पतानेनसहभेदोजानेनस्तावत् इदानींयत्तत्वाश्वशनरूपसम्पादन नामिनारमसम्पादानातयोशिशेषानजाप्ता कस्मादितिचेतसम्पादानेपदार्यानम्वयास्तिातच सम्पाजाने कोरिओषतिपरिहायशरणपरिछितिरूपाक्षयोपामरिराषाज्ञानभणपते । जौनभेदनयनपीतगासवेजप्रणीतात्मादितले विदछमेवेतिनिमयसम्पत्तमितिाप्रवि। पराभेदनयनानदेवसम्पानानंतदेवसम्बक्तमितिकस्मादितिरेतायतत्यतत्वविरदेवेदे अविरसम्ममाम्नुधिरित्यादिविपरीतामिनिवेशरस्तिस्पज्ञानसम्पाविशेषवाच्यावस्वालियर minimu Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यास. चारित्रमुपदिशनि असुरुादारिणिवित्तीमुपवित्तीपजाणाचारितामसुभान्नित्तिशुभेमवृत्तिम्बारिजा नोरिचारिजातक भूतवदसामोदगुत्तिस्वंदवहारणपाइजियणभणियवतमामातातिरूपव्यवहानयाक्ति नेरुक्तमितिकातप्यालिगमत्याख्यानावरणसेजततीयकषायक्षयोपशमसातादिसपवासाउगाढाऽस्मुदिडचि नटमारिजुदोउगोउम्मगपरोउचउगोजस्ससाम्ममुहोछाइतिगाप्याकपित्तलक्षणादशुभाषयागान्निव त्तिस्वहिलक्षणेमुभोपयोगपतिवदेशिस्यचारवजानीहितसाराधनादिचरणमालाक्ताकारण चमहाजतपेचसमितिविगुप्तिरूपपरमपहससेयमारव्या भोपयागालक्षणेसरागवारिवाभिधानभवतिस्ता वयोमावालोषयपश्यिविषयादिपरित्यागसरितासभूतव्यवहोरणयवाभ्यतररागादिपरिहार सपुनरमुनिश्चयनतिनविभागाज्ञातव्य. एपेनिश्यचारित्रसाधकेयवहारचारित्रव्याख्यातमिति। छात्मयतेनेवव्यवहारचारित्रणासाध्यनिश्वयचारिनिरूपयतिछाहिरपितराकेरियारोकोभवकार। गप्पणासहरणाणिसजिणुते तेपरमसम्माचारितासाचातत्परमापेक्षालणनि । .. Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mee n 91-12tur मेवित्यात्मवायुझपयोगाविनाभूतपरमेसम्पकचारित्रज्ञातव्यातत्विावहिरोतकरियारोहोनिष्कि यनित्यनिरजनविशुभज्ञानशीनस्वभावस्यनिजात्मनःप्रतिपक्षभूतस्परहिर्विषष भानुभवचनकाय व्यापारस्सस्पतयेवाभ्येतरशुभाशुभमनोविकल्परूपस्यचक्रियाव्यापारस्पयासानिरोधस्वागःसचकिम भवकारणप्पणासह पंचमकारभवातीतनिदोषपरमात्मनोविलक्षणस्यभवस्पसेसारस्यमापारस पस्यकारणभूतायासानुभाशुभकम्माप्रवस्तस्यपणासार्थविनाशायइत्युभयकिपानिरोधलक्षण चाहिनाकस्यभवतिाणाणिसानिम्बयरत्नवयात्मोन्नभेदज्ञानन पुनधिकिविशिर्ष यताजी जिणुतायजिनेनवीतरागसीनातामेतिगरववीतगासम्पक्तनानाविनाभूतेनिम्बयरत्नत्रयात्मक निश्वयमोक्षमारतीयावयवस्पेवीतरागचारिनेव्यारव्यात दाइनिधितीयस्थलताप्यापकगताछ एवमोक्षमार्गप्रतिपादकतनीयाधिकारमध्येनिश्वयव्यवहारमाक्षमार्गसंक्षेपकयनेनस्वाध्यातदने । तस्तस्यैवमोक्षमास्यावयवभूतानांसम्पादरीनशानचारित्राणाविपोषविवरणरूपणस्वषङ्केति। ANSARIRamanane Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दग्यसे० स्थलक्ष्यसमुदायेनाष्टगाथाभिमष्यमात्तराधिकारः समासः॥मतः परंध्यानध्यानध्येयध्यानफलक प्यनमुख्यत्वेनमप्यमस्यलेगा प्याजये। ततेोपि पे च परमेष्टि व्याख्यानरूपेनद्वितीयस्यगाथापेचके ततस्त स्पेवध्यानस्योपसंहाररूपविशेषच्याख्यानेन वत्तीयस्थलसूत्र चतुष्टयमितिः स्थलत्रयसमुदायेनद्वादश मूत्रद्वितीया तराधिकारे समुदायपात निकाः मतप्याहि ॥ निश्वयव्यवहारमोक्षमार्ग साधकध्यानाभ्यासेकु रुतयूयमित्युपदिशति "ख॥ऽचि हिताकडे कागवाड नि नक्सल कुविहे थिमो एक हे उझारो। या उस दिजेमु गिलियमा द्विविधमपिमोक्षहेतु ध्या ननमोक्ष हेतुप्राप्नोति यस्मान्मुनिनियमात् ॥ तद्यथा ॥ निश्वयरत्नत्रयात्म के निम्नयमोक्षहेतु नियमा क्षमा तथेव व्यवहारत्नत्रयात्मकं व्यवहारमोक्षहेतु व्यवहारमोक्षमार्गच यसाध्यसाधक भावेनका ! थितवान् पूवैतद्विविधमपि निवैिकारस्वमेरित्यात्मकपरम ध्यानमुनिः प्राप्नोति । यस्मात्कारणात् त म्हापयत्तचित्ताज्यक्काणे समझसर|| तस्मात्प्रयत्नचित्ताः सेतो हे मच्याय्र्यध्यानेसम्यगभ्यस्य तथा Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ c CHECOACTICKEEnatimanchamunainamuitomi हितस्मात्कारणातएकत्तानुभूतनानामनोरयस्पसमस्तशुभाशुभरागादिविकल्पमालेत्यक्तापरमस्ता स्प समुत्पन्नसहजानेदेकलक्षणसुरपामतरसास्वादानुभवस्थित्वाचध्यान्याभ्यासकुस्तयूपमिति २॥ जय पराकास मुरार3.17 3gp ) हमाचल का मामुहमासकरमादूसरु समस्तमारूराजनितवि काल्पजालरहिताननपरमात्मतत्त्वभावनासमुत्पन्नपरमानेदेकलक्षणसुखामतरसात्सकाशादातासे जाना तत्रैवपरमात्मसुरखास्वादलोनानन्मयायानुपरमकलापरमसेवित्तिस्तवास्थित्वाहभव्यामारु वान्साकुरुतकेपरिषयऽहणिहरसुवावनितादनतालादय देश्यिाप्याहिरिषकेटका व्याधिप्रमतय पुनर्गनशिपायोस्तपुदिकिोथरमियरजाचित्ततवेवपरमात्मानुभवस्थिरनिम्बल चित्ता परिचयूकिमणेविचितगाणप्यसिदीय रिचित्रनानाप्रकारेणधानतत्मसिद्धनिमित्तात्र यवाचिगनचित्तचितोड्वभुभाशुभसंकल्पनालेयवतहिचिवध्यानेतर्यमिति इदानीतस्यवध्याना Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वसं०^ 11 < ह स्वत्तावदागमभाषया विचित्रभेदाः कथ्यते तप्याहि अनिष्ट वियोगेष संयोगच्याधिमती कारभोगादिनिदाने षुवोछारूपं चतुर्विधमात्ध्यानं तच्चमिथ्यादृष्यादितारतम्येन घट्गुणा स्थान वर्तिजीवसंभव यद्यपि मि। प्यारीनातिर्यगानिकारणो भवतिन प्यापिचायुष्कं विहायसम्पादृष्टोनानभवति कस्मादितिचेतः स्वभु दात्मैवावादे यइतिविशिष्ट भावनावलेनत्तत्कारण भूतसं क्लेशाभावादिति सानंद) मखानंद स्तेय्ानंद विषय संरक्षरणानंदप्रभवेराश्चतुर्विधं तारतम्यनमिष्या दृष्यादिपं चमगु शास्थानवर्त्तिजीवसे भवेतञ्चमिष्य्यादीनां नरकगतिकाश्यामपिः बद्धायुष्कं विहाय सम्पारणीनांतत्का रोन भवति तदपिकस्मादिति चेत्"निजशुद्धात्मत्त त्वमेवापादेयमितिविशिष्ट भेद ज्ञान वाले नवत्का र भूलती! इसेक्लेशाभावादिति छे म्भतः परमात्तैरौद्रपरित्यागलदारामाग्पापाय विद्या क संस्थान विचयसेज्ञाचनुर्भेदा मे चेतारतम्यनदिमेशा संयत सम्पार विदेश विश्नप्रमत्तसंयताभिधान चतुर्गुणस्थान मर्तिजीव संभवेः मुख्य त्यामु राघवे धका रताद्यापि परंपरा यामुक्तिकारणांचेति सवस्वये मंदबुद्धित्वविविशिष्टो 33 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाध्यायाभावधि शुरुजीवादिपदार्थानोसामन्क्सतिशक्षाजिनादित्वाकरतुभिर्यन्नहन्यते मानासिशेतु सहाहानान्पयाचादिनाजिनामा ? नवभेदाभेदरत्नश्यभायनारलेनास्माकेपरपाषाकदायमणामपायाविनागोभविष्यतीनिमितनमपायविचर्यज्ञात मे सुनिश्चयेनानुभाशुभकामेषियाकरहितायापजीवा पवादनादिकमाधवरानपापस्यादेवननारकादिकारखाच याकफलमनुभवति पुन्यादेयेनदेवादिसुरदिपाकमनुभवनि इनिश्चिारणविषाकवियोवज्ञये पूर्वोत्तलोकानु प्रक्षाचितनसंस्थानविचयमितिरतुर्दियधर्मध्यानभवनोनिगममा जनतानिया नायिका मम 33 पथदितईवीचारताचल्काप्यते ऽव्याणपर्यापारणामिणत्वपयक्तभएपने स्वमुशात्मानुभूतिलक्षणमा समतेसहारकमेत ल्पवचनदादिनाभरापानीहितरत्यायोदयोचरपरिणमनभवनाचनात ___. मनमनावचनकाययोगधुपागाद्योगातरपरिणामनविचारोभएपने सयमवाय त्यापध्यातापुरु Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसं● षः समुदात्मस्वसंवेदनविद्दाय वह्निश्वितोनकरोति। सच्यापियाचनाशेन स्वरूपे स्थितावताशेनानी हित्तवत्याविकले : स्फुरेतितेन कारणेन एव्यक्त वितर्कवीचार ध्याने भरयते॥ तचापशमश्श्रेणी विवक्षायामपूर्वोपशमकानिरत्युप शमकसूक्ष्मसोयराययोक्शमके। पशातक पापपये नगुणस्थान चतुष्ये भवतिः क्षपकल्पायुनरपूर्वकरणाच पकानिर्वृत्तिकरण क्षपक सूक्ष्म सोपराय क्षपकाभिधानगुणस्थानत्रयेचेतिप्रथममुक्त ध्याने व्यारव्याने ॐ नि जमुझत्मद्रव्य वानिर्विकारात्म सुखसंवित्ति पयोये चानिरुपाधिस्वसंवेदनगुगवायचे कासिमन प्रदत्तं तत्रैव वित्त ईसनस्वसेोवेत्तिलक्षणाभावात बलेन स्थिरी भूय: वीचारद्रव्यगुणवयीय परावर्त्तनं करोति यत्तदकत्ववित्त कीथ्वी चारशेतीच्या यगुणस्थानसेभवेद्दिती ये मुक्त ध्यानभएयते "तेनैव केवलज्ञानात्पत्तिरिति अणसूक्ष्म का या पायाचा ररूपंच अप्रतेि पातिच सूक्ष्मक्रियाप्रसिया तिसेनेत्तीयभुक्तध्याने तञ्चोपचारे शासयोगिकेबलिज्ञिन भक्तीतिः ॥ विशेषे गोवर सानिए ताजिया यत्रतद्व्युपरत किये। सुपरतकि ये च तदनि रत्तित्व अनिवर्त्तके चतद्युपरतकि यानि वत्तिसंज्ञं चतुर्थयुक्त ध्यानंतञ्चापचारेणा योग केवलि जिन भवतीति 3g Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानानांपरकीय चेतेारत्तिपरमाराचादि सूक्ष्मपदार्थानामिव ध्ययनाजगत्रयवर्त्तिपुरुषाणामनुपत्ता सिक्कशाने भरद्भिज्ज्ञातेचे तर्हि भवत: राव सर्वज्ञाइतिपूर्वमेव भगिनं तिष्टतीत्यादिहेतुवरज्ञा सज्य यथासंखरविवारण वदितिदृष्टांतवचनं तदप्यनुचित्तं खरविद्याशांना स्तिाबाद। तिष्टतीत्यभा वोन भवति:: गण्यातच्या सर्वतस्यापिनियतदेशकालादिष्व भावेपिस चैप्या नास्ति त्वेन भवतीतिदृष्टा नदूष गोगते मय्यमते सर्वज्ञविषयबाधकममारोनिराकृतं भवद्भिस्तर्हि सर्वज्ञसद्भावसाधकंसमागकिमि तिः पूयेप्रत्युत्तरमाह ॥ कवित्पुरुषो धर्मासर्वज्ञेो भवतीतिसाध्यते धर्मः संबंधामधर्मा समुदाये नपक्षवचने कस्मादितिचेत् पूर्वोक्तप्रकारेतबाधकप्रमारणभावादिति हेतुवचनकिंवत् स्वयमनुभू यमानसुखपुरवादिवदितिदृष्टांतवचनं सर्वज्ञसङ्गावेपिज्ञ हेतवोत्तरूपेागमणुमानं विज्ञेय षष्यवाद्वितीयमनुमानेकच्यते ॥ रामरावणादयः कालोतरिसामेवादयोदेशांतरिता:: भूतादयः स्वभा बालरिताः परचेतावत्तयः परमाश्वादयश्व सूक्ष्मपदाची धर्मिणः कस्यापिपुरुषविशेषस्यप्रत्यक्ष Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्यसेय भवतीतिसायाधम्माताधीधर्मसमुदापनपक्षवचनकस्मादितिचे मनुमानविषयत्वादिमिहत्व चन किवता यमदनमानविषयतत्तत्वस्यापिप्रत्यक्षेभरतियखान्यादितत्पन्वयहातवचनवानुमाने नविषयावति इत्युपनयक्चनेतस्मात्कस्पापिनत्यक्षाभवतीतिनिगमपचन इदानाव्यतिरकहोता। कथ्यतायकस्यापिणत्यक्षेतदनुमानविषयमापनभवतिायप्यास्वपुष्पादिइतिव्यतिरेकडातवचने मनुमानविषयवति पुनराफ्नयवचने तस्मात्प्रत्यक्षाभवतीति एनपिनिगमनवचन मितिाकि त्वनमानविषयत्वादित्ययहेतुःसजस्वोसायसमकारणसभातायतस्ततःकारातस्वरूपा दिसिहभायासिपिशषणायसिद्धानभवतिातयवसवैज्ञस्वरूपस्वपक्षविहायसवैज्ञाभावोरिपतन साधयनितेनकारणेनविरूदोनभतिातयक्चयायासवेजसारस्वपवर्ततेातवासनाभावे विविपक्षविनवर्तता तेनकारनानकातिकानभवति भनेकोनिकायोप्याभिशारीतिगतवमा स्यदादिप्रमाणवाधितानभवतितोवरप्रास्तादिना प्रत्यक्षमिसबैजसजावेसाधयतिःतेनका -sani -: - -.:- --. :-. Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कस्वाञ्चमणचतुर्णातिकम्मीदेसणसुरुबागोरियमीततेवघातिकम्मीभावनलवानंतचतुए यत्वात् सहजशुशाविनस्वरदानज्ञानसुखवीर्यमयःसुहदेखत्यानिमायनागरीरोपियवहोरणासस धातुरहितदिवाकरसहसाभासुरपरमोपारिकपारीरत्वाच्नेदरस्य सुद्धे तुधारषाभयेश राणे मोहम्वचिंतन जरासनाचमत्पुश्व स्वोरदामोतिः। शनिश्मयोजननेनिशा विषाक्षेषादर ता:एते विनिर्मुक्तःसोयमाप्तानिरजनः इतिश्लोकध्यकथितारासादोषरहितत्याछ प्रयाणवंगुणविशिष्मात्मारिहो अरिशदवायामाहनीयस्यारजःशवाच्यज्ञानद पानावरणस्यस्परहस्यादवाच्यातरायस्यहननादिनाशात्सकाशादिशादिविनिर्मितोगीय तारजन्माभिवकाने कमणकेवलज्ञानोत्पत्तिनिवाणामधानपेचमहाकल्याणरूपापूजामहेति योपाभवति। ततःकारादहनभएपत विनितिजा इत्युक्तविशेषणविशिषमासागमप्रति यकथितवीतरागसर्वज्ञाद्यशत्तरसहस्त्रनामानमतजिनमहारकेपदस्थांपरस्यरूपस्थध्याने SAMRAAmanumanusakeskamalamannaahu Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यस MPETITIONS स्थित्वाविशेषणचिंतयतध्यायतनयायूषमिति काभवावसरेभरचावीकमतरहीत्याशियः पूर्वप स्करोनिडानास्तिसर्वज्ञानुपलव्धेवरवेमारवत्तवपत्युत्तरेणकिमबदेशवकालअनुपला सर्वदेशोकालवायवैद्यशोकालेनास्तितदासमत्तणवालासर्वदेशकालनास्तीतिभणपतगतज्ज गवयेकालवयसोजरहितकप्यज्ञान भवताज्ञातंचताहभनानेवर्समप्यनजातनिषेधकार येतातबलातशयथायोपिनिषेधकोचरस्थाधारभूतेघररहितभूतलेचक्षुषादृष्ट्रापास्वायत्यत्रभू ततधोनास्तीतियक्त यस्तुचक्षुरहितस्तस्यपुनरिवचननयुक्तधातणेवयस्तुजावरोकालचसर्व ज्ञहितेनानातितस्पजगत्रयेकालत्रयपिसर्वज्ञानास्तीतिवतंयुक्तंभवति यस्तुजगत्रयेकालवये नजानातिसर्वजनिवेधंकायमापनकरोतिषचास्मादितिवनजगत्यकालचपोरेज्ञानेनस्वयमेक्सी ज्ञत्वादिनि स्यातमनपलव्यरितिहेतुवचनतरप्पयुक्तो कस्मादितिचेकिंभरतामनुपलाछः किंजाबपति पुरुषाणादायोदभवनामनुपलाञ्छस्तावतासर्वसभावोनसिद्धति भवझिरनुपलाभ्य' Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुयथास्थितएकाचिंतनध्यानाफलसंवरनरोगतिलोककथितलक्षणानाध्यातयेयध्यानफलाना संक्षेपप्यारव्यानरूपेणगाप्पाउणहितीयोतरा धिकारप्रयमस्थलगते भेना परेरागादिपिकल्यापारिरि ननिजपरमातापदार्थभावनात्पन्नसदानेदेकरलक्षणासुरखामतरसादसतिरूपस्यनिश्वयध्यानस्यपरंपराया कारणभूतपयुभाषयागलक्षणव्यहारध्यानातहयभूतानापेयपरमेटिनामध्यतावद स्वरूपेकथया मोपकापातनिका दिसीयानुपूर्वस्वोदितसर्वपदनामपदादिषदानावारकभूतानावाच्यायपेचपरमाए नस्तधानक्रियमाणेप्रामस्नायलिनस्वरूपनिरूपयामि अणवारतीयापातनिकापरस्थपिरस्य पस्थध्यानवयस्यशेयभूतमहात्मनस्वरूपदर्शयामोतिपातनिकामनासयत्वाभगवानमिदम् । अतिपादयतिवडाइक बादलणसुहानामा एक masti विचाविजan Jहचउचाइकम्मानिश्वयरत्नत्रयात्मक मुद्दोपयोगध्याननप्रघाति कर्ममरणाभूतमाहनीयस्यविनायत्तदनंतरंज्ञानदर्शनावरणातरायसेनपुगपतधातित्यविनाश Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पसंस्थित्वाविशेषणचिंतयतायतहेभन्यायूपमिति नवावसरेभस्चावीकमतरहीत्वाव्या पूर्वप करोतियानास्तिसर्वतोनुक्लन्छ रखनेवारणवत्तवप्रत्युत्तरेणकिमवदेशेवकालअनुपलादीः सर्वदेोकालवायवैद्यदेशकालेनास्तितदासमत्तएवामप्यसर्वदेशकालेनास्तीतिभएपते तज्ज गर्यकालत्रयसवैज्ञरहितकणंज्ञानभवतानातंचताहेभवानेबर्समप्यनस्तानानिषेधकाय येतातघरातःशयथायोपिनिवेधकोचरस्याचारभूतचटरहितभूतलेचक्षुषारष्ट्रापावादपत्रभू ततधोनास्तीतियुक्त यस्तुचक्षुरहितस्तस्यपुनरिवचननयुक्तोतयेवयस्लुजावयेकालवयसर्व जरहितेनानातितस्पजगनयेकालत्रयपिसर्वज्ञानास्तीतिवक्तुंयुक्तंभवति यस्तुजगत्रयकालवये नजानातिसर्वजानिकप्यमापनकरोति कस्मादिविताजगञ्यकालचपोरेज्ञानेनस्वयमक्सर्व जत्वादितिययातमनुपलबेरितिहेतुक्चनेतदष्पयुक्तो कस्मादितिचेकिंभरतामनुपलान्धः किंजावयवर्तिपुरुषाणादायोदभवन्तमनुपलास्तावनासर्वतभावोनसिद्धति भवद्भिरनुपलाभ्य Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a maARImandarme सेलेषणागमभाषयाविचित्रध्यानव्याख्याने छ अध्यात्मभाषयापुनःसहजगुरुपरमचैतन्पशालिनिनि सनदमालिनिभानतिनिजात्मन्युपादेयताहिकत्वापवादलेतज्ञानात्मनेतसुखाहमिस्पादिभावनारूपमध्ये तर धर्माधानमुयते॥ पश्यरधिभत्त्यादितदनुकूल भानुशानपुनबीहोगधर्मध्यानभवति छत्तथै चस्वशात्मनिनिर्विकल्पसमाधिलक्षणवलयानामिनाया अयया पदस्थमेक्वारस्य पिरस्य । मारतने रूपस्यसनियरूपातीनिरजनालाइनिलोककथितकमणनितिनमानसातव्यमिति नयध्यानपानधकानोमोहागपाणावस्यकव्यतेनुकास्मादिनलघुविपरीतामिनिराजनके |माहोदर्शनमालामिप्य्यात्वमिति यानिर्विकारस्वरितिलक्षणीतरागाचारित्रपक्षाचारिखमाराम वाभण्याचारित्रमाणादेनगावाकणभएपत्ताशनेचेतावपायमध्येकोधमानध्यदेवोगामायाला जदयेरागोगनोवधायमध्येतुखोपन्नसकवेदचहास्यरनिहोचरागागा भरतिशोकम्येभयजुगुप्साये || चहलोमिनिज्ञातव्यास आजारशियः रागदेवादयविकर्मनिता विजीरजाननाइतिसातो apanaapaa manimaamanardanimamsumann S Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरे सीएमयसयागोस्पन्नपुवन सुधारेशासयोगात्यन्त्रणीवशेषोभयसयोगजनिताप्रति पश्चान्नति रक्षाशनविनाक्षनेकदेशामुनिश्वयनकामीजनित्ताभरायसत्तथैवानिवपनजीबजनिता इति । समानुनिश्चयाधुनिश्वयापेक्षया व्यवहारणकायमत साक्षामुनिश्वयनकस्थति पकामावये नचोर सादामुनिश्वयनवापुसक्सयागरहितावस्यन सुधारिशासयोगरहितगाविषस्पक तेषाम त्पत्तिवनास्तिापाप्ययुत्तपयच्यामनिरपेध्यारत्यारयानमुख्यत्वेनतधजेनविश्विध्यानकप्पनेन सूबेगाउपदस्णधानमंजवाफयाक्तत्तस्यविवरणकरोतिमा 53131 TETTIST A113 7.1.1 20३) पणनीमाणमाजरहताणगामासिहाण मोबाइरियाणेकशामायापारणेपणमालाएसबसाहूणाएतानिपेचविशवक्षराणिसर्वपदानिभएपने । सालापरतसिहभारियश्यमापामारातानिवारशातराणिनामपदानिभरपतापरतसिक । एतानिवाक्षराएपदोन्सहयानामहेभएयताप-मसिम्मासानानिषेचाक्षराणादिपदानि । Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सासरत इदमक्षरयतुषयमहतोनामपदेगासिकात्यक्षादयस्पसिधस्यनामयोगच माइत्पका क्षरमहतमादिपदेमणचा उत्पेकाक्षरेपेचपरमेहिनामानिपतत्कायमितिचेतामरहता सरीरामाः रियासर उराया मुणियापदमरकरणिप्परमाणकारपेचपरमही इतिगाव्यादित्तप्रथमाक्षरगास - मानःसवर्णदो भवति परमबलोपे उपगो इतिस्वरसाधविधानेन शवदानिष्पद्यते कस्मादिति जया कसाराहारनवोपदानासीमेववादयदेषुमध्येसारभूतानामिरलेोकपरलोकेएफलप्रदानामयज्ञात्यापन नेतनानादिगुणसारणमणवञ्चनाझरणेनचजायकुरुता सभेषभुभाषयागरूपनिगुप्तावस्यायामानेन ध्यायता पुनपिपायभूतानां परमडिपारयाणा परतातिपदयात्रनेतज्ञानादिगुणयुक्तोऽहेन्बाया मिया इत्यादितपणपेयपरमविवादकानासम्मणोचगुरुसदेसामन्यदपिकाससममितवनमर्क स्येप्याकथितकमा मधुसिहचक रहसिइचकामित्यादिदेवानविधानभेसभेवरत्नत्रयाराधकगुरू प्रमादिननात्वाध्यातयामतिपदस्थध्यानस्वरुपयाख्याता राममननमकारणागुझियमनाध्याताये Aanimelionmanmmechaninainmennainamann.mmitra - Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्व. MARATrainemamars, वस्तुययास्थितएकातिनध्याने फलसेवनज्जरोगतिम्लोककथितलक्षणानाध्यानध्येयध्यानफलाना संक्षेपयारण्यानरूपेणगाप्यारपणाहितीपोतरा अधिकार प्रथमस्थलगते भेना परेरागादिपिकल्पापाविररि ननिजपरमालापदार्थभावनात्पन्नसदानंदैवलक्षणासुरखास्तरसादराप्तिरूपस्यनिश्चयध्यानस्यपरंपराया वारणभूतेयभापयागलक्षणव्यवहारमाने तोयभूतानापेयपरमणिनामशेतावरी स्वरुपेकराया मोरेपकापातनिका हिसोयानुपूर्वस्वोदितसर्वपदनामपदादिपयानोवारकभूतानावाच्यायपेचपरमटि नस्ताद्यानक्रियमाणेप्रणमस्तापजिनस्वरूपनिरूपयामि अणवानतीयापातनिकापरस्थपिरस्पर पस्थध्यानवयस्पशेयभूतमहासजस्वरूपदर्शयामोतिपातनिकामनसियवाभगवानमिदम् । अतिपादयति चयाका सदसणासुहालवारीशकेहसाना गुजर पNिPA17 -70 पहचउचाइकम्मानिन्वयरत्नत्रयात्मकोपयोगध्याननपूवेधाति कर्ममरणभूतमाहनीयस्यविनाशत्तदनंतरज्ञानदर्शनावरणातरायसंज्ञयुगपतधातितृयविनाय Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणेवाकिंचित्कारोपिनमयति एवमसिहानेकानिकोकिचित्करोपिनभवति।वमसिहविस्कानकातिकाकि चिक्करहतदोषरहितत्वात सर्वज्ञसत्रावसाध्यात्येवा इत्युत्प्रकारेणसर्वज्ञसदावहेतुपक्षरणतोपनयनि गमनरूपेणापेवागमन नामानंज्ञातव्यमिति सकिंचायवालाचनहीनएसपस्यादर्शविरमानयिमति विरानांपरिजाननभवति यालाचनस्थानीयसईज्ञानागुणरहितपुरुषस्पार्श स्थानीयवाले कार्य तानाप्रनिर्विवस्थानीयपरमारवायननसूक्ष्मपदाचीनाक्कापिकालेपरिज्ञानेनभाना तयाचातीयस्या नास्तिस्वयंपनाशास्वतस्पकरातिक लोचनाम्माविहीनस्यादर्पण किंवरिस्पति छातिसंक्षेपण, सर्वज्ञासहिरेववाहव्यापलाएवंपदस्थापेरस्थरूपस्थध्यानध्येयभूतस्यसकलात्मनोजिनभहारकस्यव्या - व्यानरूपणगाथागताप अत्यासिसहशानिजपरमात्मतत्वपरमसमरसीभावलक्षणस्यस्पातीतान श्वयद्यानस्यपारपर्यणकारणभूतंक्तिगतसिद्धभक्तिरूपणमासिधारणइतिपयोचारणलक्षणयत्यद स्यध्यानंतस्पोयभूतसिद्धपरमेशीस्वरूपकथयतिसमाजमहालयासमाजा Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यसं दीनाचारपतस्थवशुशात्मनोनिरुपाधिस्वसंवेदनलक्षणभेदज्ञानेनमिथ्यात्वरागादिपरभावभ्यएयकपरिक दनसम्पाजाने तबाचरणपरिणमनेनिश्वयज्ञानाचारातत्रैवरागादिविकल्यापारिहितस्वाभाविक खास्वादननिश्वलचितवीतरागचारित्रगतनाचरणपरिणामनिवपचारिवाचारःसमस्तपरयच्यान रोधेनतयवानपानादिशादातपवरणहिरेगसहकारणेनयस्वस्वरूपेपतपनविजयननिम्त्यतपद एणतबाधरणपरिणमनानेश्वयसपम्वरणाचारः सस्पेनिश्वयरततुर्वियाचारस्यरक्षणाय स्वशता नवग्रहणनिश्वपीयोचार इत्युक्तलक्षणनिश्वपपेचाचारेतयवासमा सामान्य वेचाया हा सारासार विनिमुद का सायाविर महादेव इतिगाप्याकथितक्रमणाचारा धनादिवरणाशारघनिस्तारणेचहिरोगसहकारिकारणभूतव्यवहारपेचाचारेचस्वपरंचयोजयत्यनुपानेनमे वेधेकरोतिस प्राचार्याभवति सचपदस्यध्यानध्यातव्या इत्याचार्यपरमष्टिव्याख्यानेनसूत्रगत ॥५२॥ अयस्त धामनियाभनमध्यायाभ्यासानिश्वयस्वाध्यायलबक्षणनिश्वयध्यानस्यपरणकारण. Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुभमनवरनकायनिरासनसत्यात्मात्मनिस्थिरीभवति तदेवपरमध्यानमित्युपदिशतिसायमाने पहायचरहकि जिला in mid- पाशा १२ माचिठहमाञपहमा चितहकचिनित्यनिरंजनाननियनिजमुवात्मानुभूतिप्रतिवेधकेशुभामुभनेपारूपकायापारणतयैव शुभाशुभातदोहजुल्परूपेवचनव्यापारेचकिमपिमाकसतहविवेकजनाजेगोणिरोयनपिनयोगवया निराधनास्थरो स्वभवतिसकसप्याथात्माकणभूतः स्थिरोभवति अव्याअयामिमीसह नवराजमाननिस्वभावपरमात्मतत्वसम्पकलादानज्ञानानुचरणस्पाभेदरत्नवयात्मकपरमसमाधि समजूनसर्वप्रदेशालाप्जनकसुरखास्वादपरिणतिसहितानजात्मनिरतःपरिणतस्तब्बीयमानस्ताच्च तस्तन्मयाभवातावरणमनपरेलेवेशाण।इदमेवात्मसुखस्वरूपेतन्मयत्त्वेनिम्दपेनपरममुरुषेध्याने भवति लातासमनध्यानस्थितानापढीतरापरमानदसुखप्रतिभातिसदेवनिम्बयमोक्षमार्गखा रूपतवपर्यायनामोतरेण विभतण्या तदमिदीयते तदेव क्षात्मस्वरूपातदेवपरमात्मस्वरुपात Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दवा से देवैकदेशव्यक्तिरूपविवक्षितै कदेशत्रुरु निश्वयेनस्वमुद्धात्मसे वित्ति समुत्पन्न सुखाम्एतजलसरोवरे राणा दिमलरहितत्वेनपरमहंसस्वरूपं इदमेकदेश व्यक्तिरूपे सुरूनयाय्याख्यानमनपरमात्म ध्यानभावनाना ममालायो | यप्या संभवे सर्वत्रयोजनीमिति सदेवयर मन्त्रह्मस्वरूपं तदेव परमविघ्स्वरूपं तदेवपरमशि वस्वरूपं तदेवपरमबुद्धस्वरूपे) तदेव परमजिनस्वरूपे तदेवस्वात्मोपलब्धिलक्षणसिद्धस्वरूपं तदेव निरंजनस्वरूपं तदेवनिर्मलस्वरूप ॥ तदेव स्वसंवेदनज्ञाने तेदेवपरमतत्वज्ञानं तदेवशुद्धात्मदर्शने तदेवपरमावरणास्वरूपे तदेवपरमात्मस्यदर्शनं तदेवध्येयभूतमुहव रिणामिकभावरूपं तदेवशुद्ध चारिजे । तदेव ध्यान भावना स्वरूपं तदेवात्तस्तत्वं तदेवपरमतत्वे सदेवशुद्धात्मव्यये तदेवपरमज्योतिः सेवशुद्धात्मानुभूतिः सैवात्मप्रतीतिः ॥ सैवात्मसंवित्ति स्यैव स्वरूपोपलाख 27 सेवनित्पापलब्धिः सएव परम समाधि - सराव परमानंद ॥ सरवनित्यानंदः सएवसहजानंदः सराव सदानंदः सएवशुद्धात्मपदार्थ ध्ययनरूपः सरावपरमस्वाध्यायः सरावनिश्वयमाक्षापायः सवैकायचिंता निरोधः सरावपरमवोधः Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समयमुझपयोगासवपरमयागः सरावभूतारी सायपरमासण्वनिश्चयाचार सयसमय सारःसणवाध्यात्मसार तदेवसमत्तादिनिवलपरावश्यकस्वरूपातदेवानेदरत्ननयस्वरूपातदेव वीतरामसामायिकासदेवपरमशरणोत्तममेगलेगतदेयकेवलज्ञानात्पत्तिकारणेतदेवसकलकर्म क्षयकारणशनिश्वयचतुर्विधाराधना सैवपरमभावना स्वशुशात्मभावनात्यन्नसुखानुभूति रूपपरमकता वाचव्यकलातदेवपरमाइते सदेवपरमारतपरमधर्मध्यानातदेवमुक्त मानते देवगादिविकल्पशन्यध्याने तदेवनिष्कलध्यान नदेवपरमस्वास्यातदेवपरमवीतरागत्वे तदेव परमसाम्पमतदेवपस्मकत्येष तदेवपरमभेदक्षाने सावपरमसमरसीभाव इत्यादिसमस्तरागादिवि कल्यापाधिरहितपरमालादनेक सुखलक्षणाध्यानरूपस्यनिश्वयमोक्षमार्गस्थनाचकान्यपन्या विषयोयनामानिवितेयानि भनेतिपरमात्मतत्त्वचितितिापाततःपरेयद्यपिपूर्वाधामणिध्यार रूपलक्षणोध्यानसामिशीच तथापिचूलिकोपसंहाररूपरणपुनरव्यारव्यानि सबसुस्वर मेला Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारधरोजम्हा रावतियारण हानवमुक्ष्वदलेचेदाधारणरहपुरेशरोरु जिम्हातपयुनजवानात्माचतायताध्यानरयस्यधुरंधरःसमोभतिजमायस्मात् तम्हात्तनियणि रदातस्वीरसदारा तस्मात्कारणाततपावतानानासबंधनयत्रतयेतत्रितयेरताः सर्वकाले भवतोभयागकिमयतस्यध्यानस्पलछिस्तब्वाइस्तीमितिगलातल्याणासनसनावमा येजतिपरिसरयानरसयरित्यागविविक्तगप्पासनकायलेशभेदेनवाहोपविद्यालयसपायवित्तविक नगरयावृत्पस्याध्याययुत्सर्गध्यानभेदेनाभ्येतरमाविष देवेतिहासाविषेतयातेनेवसायमा त्मस्वरूपमतपने विजयानश्चयतपस्येवाचाराराधनादिश्यश्रुतेतदाधारणात्पन्नानाविकार, स्वसंवेदनजानरूपेभारत तयेवचहिसानतस्लेयन्नसपरियाणाश्यभावरूपाणापरिकरणे तपेचरोचति एवमुक्तालक्षणसपः सनतमहिनाध्याताएसयोभवतिगइयमवध्यानसामग्रीचे। ति तथानात बरातत्वविज्ञानानेगेणेवसचित्ततायरीखल्जयतिापचेतत्यानहेतवः। Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तभेदाभेदरत्नत्रयादितत्वोपदेशपरमापाध्यायभक्तिरूपणमाउवलापाणशतिपदोच्चारणलक्षणेया पदस्यध्यानंतस्पध्येयभूतमुपाध्यायमुनीम्यालयति लामा मतदेवी HINDISIT नाराज : २२ जारयणतयजुत्ता यासावाह्याभ्येतररत्नत्र यानुमानेनयुक्त परिणत.णिवधम्मावदेसणणिरदोषट्श्व्यपेचास्तिकायनमितत्वनवपदार्यषुम छोलश्रुधामन्यथुखेहजीवालिकायेलमुक्षात्मपदायमेवोपोदयेशेषचहेयसवात्समक्षमादि चम्मचनित्यमर्यादान यासम्मनित्योपदेशननिरनोभणपतेसो उजाउमा सचभूतना, स्माउपाध्यायइतिः पुनरपतिविशिष्ट दिवखसहा पेप्रियविषयजयेन निजामुशात्मनियत्नपरा यणोतिवराणामध्येचषभामधानायतिवररषमा मातस्स तस्मश्यभावस्पानमानमस्कारास्तु । इत्पयाध्यायपरमेष्टिव्याख्यानरूपणगाप्यागता।। ५३॥ध्मयनिश्वयरत्नवयात्मकनिश्वयथानस्यप रेपरयाकारणभूतवाद्याभ्पतरमोक्षमासिाधकेपरमसाधुभक्तिरूपेणमालागसहसाणा इतिपदार्च || Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसे: 123 रारूपजपच्यानलक्षणेयत्पदस्यध्यानतस्यध्येयभूतंसाधु परमेष्टिरूपेप्रकाशयत्ति भन्छ ॥देतसा शरी ऊस १२ साऊसमुगी समुणी साधुर्भवति यः किंकरोति "जोऊसाधयदि यः कत्तीस्फुटंसाधयतिः किंन्चारितेचारिनेकथे भूतं "देसा खारणसमो "चीतरागसम्पादनिज्ञानाभ्यांसमग्रे परिपूर्ण पुनरविकप्यभूतेः मगोमोरकस्स मार्गभूते कस्यमोक्षस्य पुनश्वाकेरूप णिञ्चसुद्द नित्यं सर्वकालमुद्दे रागादिरहिते । सामा तस्स एवगुणविशि पायनस्मसाधवेनमोनमस्कारोस्तुइति तथाहि ॥ उद्योतनमुद्योग निर्वहरणसाधनेचनिस्तर वामचरण तपसा मारव्यात्ताराधनासङ्गिः ३ इत्यायकथितबहिरंगचतुर्विधाराधनावलेनतयेवः । सम्मत्तेसंणाणणे सञ्चारितेहिसत्तवेाचेव" चडरो चिह्न हि आदे॥ तम्हा ज्यादा इमे सर॥ इतिगाथाकथि ताभ्यांतर निश्चयचतुर्विधाराधनाबस्लेनचवाद्याभ्येत रमा क्षमागीली बनामाभिधोयेनरुत्वायः कत्ती वीतणाचारित्राविनाभूतेश्वशुद्धात्मानं साधयनिससाधुर्भवति ॥ तस्यैवसहज मुझसदाने देकानुभूतिल Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षणभावनमस्कारस्तष्याणमालागसबसाहणेश्व्यनमस्कारभववितिसारावमुक्तमकारणमाया चकेनमध्यमपनियत्यापेचपरमेष्टिस्वरूपेज्ञातव्य मयनानिम्नयेनालासरूहासिद्धाइरिया उरमायासा अपरमहिनेविचिहाहादातम्हाल्मायामसरो छ इतिगाथाकथित्तकमेणसेक्षपणतयेव विस्तारापेचपरमर्शकायतनम्मणामतिविस्तरेणसिहचकादिदेवार्चनाविधिरुपमवापसेवेधि चनमस्कारयेथेचेनि एमाप्यापरकनहितीयस्थलगतामा प्रयतदेवध्यानविकल्पिता निश्व येनरिकल्पितनिश्वयनप्रकारोतरणोपसेहाररूपणपुणरणार नवतावतमप्यमपादध्येयलक्षण हितीययादेध्यास्लक्षणेस्तीयपादेयानलक्षणः चतर्यपादनावेभागकथयाम्पत्यभिमायमनसिया त्वाभावान सूचमिक्ष्मनियादयाने छाजीकेचितिचिननेपाणिरीहवित्तीवेजदासाहलायण्यत्ते तदानतेत्तस्मणिच्छयेजकारणातदात्तेतस्सलिच्छयमाणे तदातस्मिनकालेभाजजुवेतिातत स्माणियमाणे ततस्यनिश्वयध्यानमितियाकिनिरीहवित्तीहवेजदामानिरीहत्तिनिस्पति Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यसेदाभवतिसाधुःकिंववेन जोकित्रिविचिततो यकिमयिद्योगवस्तरुपेरणविचितयन्नितिपकिकत्यापूर्वी लघणयणवत्तेतस्मिनोयलाशकिएकत्वे एकापातानिरोधनमिति अध्यविस्तराय विचितध्यमित्पनेनारमुक्तेभवति मायादशकापेक्षणासविकल्पावस्यायाविषयकषायवचनाचि नम्स्यिोकररणाप्येषेचपरमयादिपरश्यमापध्येयेभान पवाभ्यासवसनचित्तेस्थिरीभूतसनिशुद्धबुद्धक, स्वभावनिजयुद्धात्मस्वरूपमारोपमित्युक्तं भवतिमनिस्परबचनेनएनमिप्यात्वरेदत्रयस्यादिसडको धादिचतुष्करूपचनदेशाध्यतरपरिग्रहणातयनक्षेत्रवास्तुहिरणपसुवर्णाधनधान्पदासीदासकुष्णभोरा मिधानाविधवहिरेगपरिग्रहेगाचरतिध्यासस्वरूपमक्ते भवतिएकाचितानिरोधेनचपूर्वोक्तक्षित विधध्यपवरसुनिस्थिरत्वनिम्बललेवानलक्षणभणमितिगनिम्बानतुप्राप्यमिकापक्षया यहाणारत्नमयानुकूलनिश्वयवाहनिष्यन्नयोगनिवलपुरुषापेक्षयामुक्षपयोगलक्षणवि चक्षितकशामुनिश्वयायाोगविशेषनिश्वयागपुनररक्षमानस्तिपतीतिसवाअयशुभा Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - शोभावानधानतान्योक्षमाभूितः मोक्षार्थनापरुषेणपुण्यपेक्षकारणलाइतानिस्पान्यानिभ तिगभवनिएन नसमिशीकारणानिसपासतबनानिव्याख्यानानितत्कचरततिालवात्तरे दीयतायतान्दोक्लानित्याज्यानिएलेना किंतु पापरेकारणानिहिंसादिविकल्पमसालियान्य बतानितान्यपित्याज्यानिमत्तथाचाले पूजपादस्वामिामेछु।अपुगषमवत पुरवतर्मातम्तयाये यशमवतानीचमाक्षामतान्यपितात्तज्यजेनाफिजतानिपूर्वपरित्यजतसम्बनतेयुत निभूत्वानिर्विकल्पसमाररूपेपरमात्मपदमाप्पपम्वाहकदेशामतान्यपित्यत्ततिासातदए. तंतवासनानिपरित्यज्यावतपुपरितिष्ठतगत्यजेतान्यपिसपाय्यापरमपदमारमना यतिरोष भयरहारस्पाणियानिमसिहायकदेशातानित्यतानि यानिपुनःसर्वभुभाशुभाना रितिस्पाणिनिध्वयनतानितानिमुसिलक्षणस्वरोधात्मसेवितिरूपनिर्विकल्पध्मानस्वीरुता नेपनरत्यक्तानिमसिहमहाप्रतानिययमकादेशशरूपाणिजातानिचेदितितरच्यते । जीवधातनिर। Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इयर्स: १०२ यत्ति सत्यामपि जीव रक्षणे प्रवृत्तिरस्ति तथैवासत्यवचनपहारेपिसत्य यचनप्रवृत्तिरस्ति । तथैवचाहते दानपारे हारेपिदत्तादानप्रवृत्तिरस्तीत्येक देशमवत्यपेक्षयादेश व्रतानि तेषामेकदेशखिताने त्रिशु खनिर्विकल्पसमाधिकालेत्यागः ॥ नचसमस्त शुभाशुभनिछत्तिलक्षणस्पनिश्चयव्रतस्येति त्यागाकार्य यथैव हिंसादिरूपात्रतेबुनिवृत्तिस्तथेकदेशशव्रतेष्वपिकस्मादिति चेत्॥चितुःस्वस्थायांजर तिनिव तिरूपविकल्यस्य स्वयमेवावकाशो नास्ति ॥अथवावस्तुतस्तदेवनिश्चयचतकस्मात्सर्वनि रत्तित्वादि ति "योपि घरिकां इयेनमे क्षिगतेो ॥ भरत च कीसोपिजिन दीक्षाग्टहीत्वाविय पकषायनियत्तिरूपे क्षरण मात्रजन परिणामकत्वापश्चासु दोष या तरूपरत्नत्रयात्मकनिश्वयधतानिधानेन वीतराग सामायि कसेज्ञेनिर्विकल्पसमाधौ स्थित्वा केवलज्ञानेलध्वावानिति ॥ परकिंतुतस्यस्ताककालत्वात्रो का बलपरिणाम नजानतीति ॥ तदेव भरत स्पदीक्षाविधानं कष्यते ॥ हे भाव निजि नदीक्षायानतरेभरत 'चकिरण: कियनिकालकेरल ज्ञानंजातमिति ॥ श्रीवीर वईमानस्वामितीय्येंकरवरमदेव समवशर Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्येझेशिक महाराजेन ष्ट्ये सतिगौतम स्वामीशाह ॥ ॐ॥चमुसिमिरुत्याद्यचेन्द्यनुवेधस्थितानुकचान् लोचानंतरमेवापशजन् श्रेणिक केवले माहाय्यः। मद्यकाले ध्यानंनास्तिकस्मादिति चेन्न उत्त मसंहनना भावाद्दशचतुर्दशपूर्वगतश्चतज्ञाभाषा वा मञपरिहारः मुक्तध्यानेनास्ति ॥ धर्माध्यानमस्ती ! ति॥ तप्याचोक्तं मोक्षप्राभूतेश्रीकुंदकुंदाचार्यदेवैः ॥भ रहेदुस्समकाले धम्माझाणे हवेइखाणिस्सा तेज़ व्यसहावठि ॥ साडमहाइसोङ प्रणाली अञ्जनितिरियसामुद्रा ॥ अण्णा झारणे ऊलह हिदू देते। लायं तिपदेवत्तं । तच प्रानिबुदिन्नतिः॥२॥ तथैवतत्वानु शासनये यचेोक्तं पवेदानीनियेधेति शुक्ला ध्यानंजिनात्तमाः ॥ धम्ममेध्यानपुनः प्राङ्गः श्रेणीभ्याप्राश्विवतिनो यथेोक्तंमुत्तमसंहनना भाषा रा त्सवचने ॥ [प्रयवादव्याख्यानेपुनरुत्पाप्मक्षयको: भुक्तध्याते भवति तञ्चोत्तमसंहननैवञ पूर्वगुणास्थानादश्वस्तने थुगुणस्थानेषु धर्म ध्यानं तचादिमं वेकाचमसंहनना भोवण्यनिमेजिकसे हननेनापि भवति तदप्युक्तं तत्रैवतत्वानुशासनेन ॥ ॥ यत्पुनर्वञ्चकायस्थ ध्यानमित्यागमेवचः॥ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्व्यसे पाहानेप्रतीत्याक्तेजतन्नोस्लान्निषेधकेशयचाक्तेदाचतुर्दशापूर्वतयुतज्ञानेनध्याने भवति तदा सायरन अपवादव्याल्यानेनपुनःपेचसमितिविगुमिप्रतिपालकसारभूतपतेनापिध्यानभवति केवलज्ञानेच यशवमयवादल्यारमानानास्तिताहेतुसमासघासतासिवभूदीकेक्लोजायो इत्यादिगे धोरानादिभणितवारयानकापरते। अप्यमतेपेचसमितिविगुमिमतिपादकेश्यकतामा तिजानातीदभावक्षनेपुनःसबेमस्तिनदेवक्तव्यायदिपेचसमितिविप्निपतिपादकेश्व्यतेजा नातितोहमारूसहमातूसाइतस्केपदेविनजानाति ततएवज्ञायता असतवरनमात्ममाणमयमा रयुतश्यकतेपुनःनिर्मापनास्ति॥ इदेसुव्याख्यानमस्माभिन्नकल्पितमेवा सञ्चारित्रसारादियशष्य विभागतमास्त तणाहित हतीयेकेवलज्ञानमुत्यादयतिनक्षीणकषायगुणस्थान नोनियमनासषपोभनिनेवाचावणानतुईशापूर्व दिशतभवनि जान्पनघुन.. विसिमाजमतिमणमतामाक्षाणेयानक्रियतनचायकालमाताप्तिधाननकिश्याजना Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यमयकालेपियरेषरखमोक्षोस्लिायमितितासाझामर्भवनाक्लनससारस्थिनिस्ताकाकत्तादेवलाके गलतिस्तस्मादागन्यमनुष्यभेररत्नत्रयभानोलशाशाप्रमोक्षाच्छनीतिायेषिभरतसाररामपारवा दयामालेगनास्तपिपूर्वभवरत्नत्रयभावनयासेसारस्थितिस्ताकारुत्वापानमाक्षातात वसवर ' बामाक्षाभवतीतिनियमानास्तिावमुक्ताकारणाल्पभुतनाल्यध्यानभवतीतिज्ञात्याकिंकर्तगाव धनेधलेदादेईवाशगावपरकालनादेःप्राध्यापनमयध्याने शासतिजिनशासनविशदासे वल्पकल्पतरूसेनयमावदीयताचनिमन्जनिमनोरणसास्मिनातवायतस्तववकास्तिनाच नापिपक्षपरेशभवतिकल्पवसेश्वयस्पालादैविध्यदाधमनसोन्नतुपातमुक्तावितषयावसतिते स्फत्तिालगानिस्फरेष्वदिसण्यापरमात्मसेनाकोतस्कृतीतबभवक्षिपल्लाप्रतिछा केखिद कलुसिदभूदेवासकामभावाहिमुछिदाजीऊ॥णय ततभागावतिभावणकामागितालाइत्याद्यप खानेत्यक्ताममतिविनामिबियमतिमनोहदोभानेवणेचमेश्रादाप्रससासरेनाश Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यक मक्षायादामदेसणाचरित्तय साक्षपञ्चरकाणम्यादामसेवरयोगशोमेसस्सोमप्यारणा गदेसणलवारणाससामवाहिराभावासदेसजायनरकरणाला इत्यादिसारपक्षानिरहोत्याचध्याना कर्तव्यमिति यस्यमादोशषयजुजविजयविचार। सपा माक्षालावधिपूर्वक तणाचे तामुक्तयेत्याभवावधोनोक्शयाचनकयामवेधेमाचतनवा चरीनिरणेकालावधषु द्धनिश्वयनयननास्तितणावेधपूर्वकामाक्षप यदिएनामुनिश्वयनवद्योभवतितदासदेवरघो वमाक्षानास्तिविचायष्याम्टेखलारपुरुषस्यवेधकएकारणभूतभावमोक्षस्थानीयवेधछेदकार भनेपोरूपेषरूपस्वरूपनभवनिम्नणययलापुरुषवार्ययमाक्षस्थानीयस्थकारणेतदपिपुरुष स्वरूपेनमान किन्नाध्यामिन्नयहरेहस्तपादादिरूपेनदेवपुरुषस्वरूपानवमुपयोगलक्षणभाव . ... भवति तयवतेनैववेचनसायनीचकमीमदेवायो: रणेश्यामाक्षरूपेतदपिजीवस्वभावानभवतिकित्ताभ्यामिन्नणययनेसज्ञानादिगुणस्वभावफलभूत Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - दिवमुझजीवस्वरूपमिनियमवाय अयथाविवक्षितकदेशनिम्नयनपूर्वमाक्षमार्णव्याख्याता तथा पर्यायमोक्षपास्माक्षापिनर मुनिश्वयनेनियस्तुयु व्यक्तिरूण मुदणारिणामिकपरमभाक्लक्ष परमाननयमादसवपूर्वमेवजीनतिएतीदानीभविस्यतीत्वेनसणवरागादिविकल्परहितमाक्षकारण भूतध्यानभावनापयायध्येयाभवनिनचध्यानभावनापयोगासायदिएनरकातनश्यायिकनयनापि सगरमाक्षकारणभूताध्यानभावनापयायोभएतातार व्यवयीयस्पधर्मयाधारभूतस्यजीवाम गामाक्षपयोगजातसति यथाध्यानभावनापीयरपणाविनाशाभवतिगनणायभूतस्पजीवस्या शुद्धयारिणामिक भावलक्षणश्यरूषणापिदिनारामाशानिानवश्यरूपणचिनायोस्तिाततःस्थि नेपक्षणारिणामिकभावनवेधमाक्षानभवतइति साहायका यामतधात सातत्य गम नेक्त गमनसादेनाकमानेभापतेपसर्वगत्यायोज्ञानाणी इतिवचनात्मतेनकारणेनयणासभ जानसुखादिगुणेष्वासमेतानाम्प्रतनिवर्ततेयःसन्मात्माभण्यतामयवानुभा मुनमनावचनकाय - - CHAPre--- Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इव्य १०५ - भवेतीजमेदादिरूपेण प्रासमेतादत्तत्तिवत्र्त्ततेयः समात्मा अप्यवात्यादव्ययधौच्चैरासमे लाइत्तेतेयःसपत्येति किंच) येथेकोपिचंद्रमानानाजलघरे षुदृश्यते तथैकोपिजीवानानाशरीरेषुति गतियद्ददेतितन्त्रद्यरतेः कस्मादितिचेत्) चेशकिरणोपाधिवशेन घटस्यजलपुलासवनानाचेद्रा कारेगा। परिवतानचे कश्चंद्र ॥ नजदृदांतमाह : गप्यादेवदत्तमुखेोपाधिक्। ननानादलस्यपु लाण्चनानामुराकारे एापरिखनानचे केदेवदत्तमुखनानारूपेण परिशाते। परिणमतिचेत् तर्हि द हास्यप्रति विवेचेत नत्वंप्राप्रोतिनचतप्याकिंतु यदिएकरा बजी वेो भवति ॥ तदाएक जीवस्य सुख... जीवितमरणादिके मामेतस्मिन्नवतो सर्वेषां जीवितमररणादिकेप्राशोतिः नचसप्या हायते / विचारावदेति। यथेकापिसमुद्र कापिताश्जलः कामिसृजल : स्वय्थैकेोपिजीयः सर्वदेहेषुतिछतिः र दपिन घटते | कप्यमितिचे ते जसरास्यपेक्षयानचैकत्वेन चजलपुलापायातचकत्वे यदिजलपुरु भवत्येक स्वेतं दास्ताक जलग्रहीतशेषज्ञ से सहेव किंनायाति ॥ तनः स्थितंषोडशयरिंगकासु Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ masmnna RAHEL.ELA. A वर्णशिवदनेतज्ञानादिलक्षणमत्कालजीवराशिमतिनकजीवाषक्षति अध्यात्मराटदस्यापक यातःमिप्यपात्वादिसमस्तक्विल्पजालरूपपरिहारानुशात्मन्याध्यदनुपनेतदध्यात्ममिति ध्यानसामीप्याल्यानापसंहारमोणगाप्यागतासाजवाडयाने हाका माग माया गुलाम मे चोदेगा जो 21 साधयेतायुद्धकुवत केकतीरा मुणिणाहामुनिमधानाशकिविशिदोषसंचयनुपानिर्दोष परमात्मनाविलक्षणायेरागादिदोषास्तष्यवनिर्दोषणपरमात्मादित्तवपरिज्ञानविषयायविमोह। विभमास्तेलुनारहिनादेोषसंचयच्युता एनपिकणभूता सुदपणा वर्तमानपरमागमायिधानश्य श्रुतेनतयवतदाधारात्पन्ननिर्विकारस्यसवेदनज्ञानस्सभारतनचपूर्णाःसमयाःगुती : वर्स यादवसमहमियो सुवईकस्वभावपरमात्मादिश्व्याणासपाइयसयरा नान्यसेशहाभिधान यमिमे प्रत्यक्षीभूताकिविशिरे भणियोमणित प्रतिपादितायोप्यकेनकभूतनागमिचेदमा KALAnatindukannada.. Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसं● २०६ गिरणाः श्रोनेमिचंद्र सैद्धांतदेवाभिधानेनगलिना सम्पादर्शनादिनिश्वयव्यवहार रूपयेचा चारोयेत्ता चायैण कप्यंभूतेन तमु सुत्तश्वरेण तनुश्चत्त घेरेर नुनुनुतेस्तो केश्वसंतदरतीति तनुश्रुत धरस्तेनतिक्रिया कारक संवेद्यः पूरा ध्यानोपसंहारसाच्याचयेगाद्वत्ययरिहारा प्रासरतेनचद्वितीयांतराच | कारेसति यस्य लगते इत्युतराधिकाररुयेनचिद्या विमा प्यारिसेनानववाद भारतीय. यतः सततः कम्प्रचयेप्येविवक्षितस्यसधिर्भवतीतिवचनात्पदानासधिनियमांनास्ति वाक्यानि चस्तो कस्ताकानिरूतानि सुख्याद्याप्येतव्येव लिंगवचन क्रियाकारक संवेधसमास विशेवेण वाक्यसमा । प्यादिदूषणे॥ तप्या चमुद्धात्मादि॥ नत्वमतिपादन विषये विस्रत दूषणे चविद्रङ्गिनेग्राह्यमिति छ सर्वपूर्वा रूमकारेाजीयमजीवेद छेइत्यादि सस विंशतिशाव्याभिः षट्व्यवचास्तिकायमतिपादकनामाश्रयमेो तराधिकारस्तदनंतर प्रसववे धरणइत्याद्येकादशाच्यामिः ससतत्वन वयदार्थमतिपादक नामादिती / योधिकारस्ततः परेसम्म देसरा इत्यादि विशत्तिगाथाभिमोक्षमार्गप्रतिवादक नामतृतीयाधिकारू इ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमि न्य कोपरितोषः प्रयात्मने। ज्ञत्वस्वतश्वमासिधदितिज्ञानत्वस्याप्यज्ञानत्वमस्ति त प्यन्यदित्यनवस्याप्यात्नवस्थामा भूदितिस्वत एव ज्ञानत्वस्यज्ञान त्वमिएननुप्रति जाहानिरथी तरात्संप्रत्ययइति॥ किंच तत्परिणामाभाद्यय देउ संबंध विदेडिना नदे उपरिणामः देडीव्यपदेशमाचप्रतिलेभात्तप्या उहमगुणस्य। हमत्वसामान्य विशेषसे बंधेनाघ्मत्वं गुणसामान्यविशेषपदार्थभेदादत उद्यमत्ववानुमगुणइत्यासक्तं नत् घाइते । तप्योध्मगुणसंवेधेपि प्रानन्त्रीघ्म त्वंव्यगुण पदार्थ भेदादतहमैडवानानि त्यासक्तेन तुस्वयमुहमइति । समचाया वितिचेन्न प्रतिनियमाभावात्॥ स्यान्मनसमचा योनामायुत सिद्धलक्षणः संवेधः॥ इहेदैबुध्यभिधानमरतिहेतुस्तेनैकत्वमिवनीता नोव्यपदेशा भवति मे उत्वसमवायाऽहमोगुण उघ्मरण समवायाच्चानिरुघ्मइ तितन्नः कुतः॥प्रतिनियमाभावा घ्मत्वाध्मगुणयो एन्फाललोश्वान्यत्व काये पति 2 Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - गजलटी - विशिशेनियमायामगुणस्याग्नामवसमवायोनाप्मुशीतगुणस्पचाप्सेवसमवायो नानाउध्मत्वस्यचोमगुरणेनैवसमवायोनणीतादिगुणोतरेणतिगतस्माद्येनविशेष रसायप्रतिनियमरूपतेनतपण्यामा अतरवश्यपरिणामएवोल्यमितिसिईनान्यस्त मातिनियमहतरास्तिस्वभावोहेतुरितिचेततरोवतत्परिणामासद्धिकिंचासमवायलावा वत्पतराभावान्नास्तितत्परिकल्पितःसमवायकुत्तावत्येताभावात्ययागुरणाना पदायानोश्यणसमवायसवाचाहत्तिरिणतयासमवाय.पदार्यातरंभूत्वाकेनसे विधेनम्यादिपवयतिसमवायोतराभावादेकरलहिसमवायलॉनरेनच्यारयतमिति वचनातनचसयोगनरत्तियुत्तसिद्धाभावाद्युतसिद्धानाममाम्सपूर्विकामासिसेयो। ग नचान्या सेवेध"मपोगसमचायविलक्षणास्तियेनसमसयस्यश्व्यादिपुर तिगस्यादतगसमवायमिरनाभिसंधान्नास्तिरखरविषाणवत्समवाय मामिला। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यासंतराभावनिवेत्॥ नव्यभिचारावास्यान्मतेच्यादीनिमाप्तिमतिसतस्तेय कयाचित्मासानातव्यसमवायस्तुमासिन्नेमासिमानतमासेतराभवपिस्वतस्वमा प्रोतितीतचनकस्माद्याभिचाद्ययासयोगःमासिरपिसपासंतरेणसमवायनवर्तते तयासमवायस्यापिस्यादितिपदीपवदिति चेन्नतत्परिणामादनन्यत्वसिद्देस्पाद तद्ययामदीपाप्रदीपोतरमनपेक्षमाणात्मानप्रकाशयतिघेरादीनातथासमया या सेवेधांतरापेक्षामेतरात्मनश्वश्यादिषुरलिहेतु पोदीनोचपरस्परतातित नाकृतस्तत्परिणामादनन्यत्वसिद्धयेयाप्रदीपः स्वयंप्रकाशपरिणामाप्रकाशात्म नानन्यप्रकाशोतरनापेक्षतासन्ययापकाशात्मनान्यत्लेप्रदीपस्यापदीपलप्रसंग यता नपकासात्मानापोम्पान्यताप्रदीपोस्तितप्यानच्यादन्यगुणकम्मसामान्यविशेषसम वायासंति॥श्यस्यवाभयपरिणामकारणापेक्षस्यगुणाकम्मसामान्यविशयासमा Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज०टी० चाय इत्येवमादिपयोयोत्तरेणपरिणामः। यप्याप्रदीपः॥स्वलक्षणप्रसि दोघटादिभ्योन्य - नैवंसमवायः स्वलक्षणमसिद्धः प्रव्यादन्यास्तिच्यस्यैवगुरणादिपयीयपरिणामात्तस्मा |न्नप्रदीपवत्समवायसिद्धिः ॥ अन्यथाचद्रव्यादन्य त्वगुणादीनाऽव्यस्पाइव्यत्वप्रसे तोनगुणादिपर्यायानप्रोक्यान्यश्व्यमस्तिय दिवागुणादीन्प्रो झींद्रच्ये ॥ केनचिद सविशेषेरणप्रसिद्धेयमुरणादिभिः "संवधते ॥ सावशेष उच्यतो यतेानगुरणा गिनान्याश्च्यस्य विशेष स्वतः प्रसिद्धास्तितोऽव्यपरिणामास्वगुरगादयइतिसि द्वे॥ किं चावेशेषपरिज्ञानाभावाद्यस्ययुक्त्तायुक्त सिद्धायेमाह के विज्ञानमेकमस्ति र |युत्तसिद्धानोसमवायः युत्तसिद्धानासंयोग इति ॥ स्याद्विशेषविज्ञान भवतस्तचणि केकाणेविरूपत्वात् ज्ञानानो तद्विशेषविज्ञानाभावस्तदभावात्तद्विवकाभावः॥ संस्कारादिति चेन्न तस्यापितादात्म्याश्यादेतत् ॥ ज्ञानजेाज्ञानहेतुश्व संस्कारोस्तिष् ४ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस्पाइ सामण्यमितितन्नकुतस्तस्पापिलादात्म्यादकार्थयाहिज्ञानस्यसंस्कारस्यच कोगमाहितानहेतुत्वानापनकाययाहिज्ञानाभावाचानेकार्थमाहिज्ञानसस्का रामावस्तस्मात्पूर्वानादोषस्तदवस्यवाणवायमा ककरण्यारन्यवाद अन्यत्वमात्मज्ञानोदीनापरवादिवदितिचेन्नातत्परिणामादीनदितियप्याग्निर निस्वभावादन्योदहनदाहाकियायाःकत्तीकिंकरणादहतितत्परिणामादान्या। त्मविकरणेतयात्मानस्वभावत्वातज्ञानादन्यस्तत्परिणामादर्यानजाननज्ञान कियायावतीकिकरणाजानातितत्परिणामात्तेदवज्ञानकरणत्वनविवत्पने अन्यथावाततस्याभायनवधारणसगाग्निवदित्यवमादिवाक्याप्यविवरणेदहा। नस्वभावापेक्षया पाल्याकंचानकोतात्पर्यायपय्यीपिणारयोत्तरभावस्यघटा दिवायापरकपालशकलपार्करादीनानयद्धयापरणाभेदात्स्यादेकत्वस्यादन्य) I- त्- स Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजारी लेकथमिहापायायकारणभावव्यापकप्राधान्यापर्यायानपणान्मश श्यानीवानुपयोगादिश्च्याप्पणास्यादकत्व र नजहतिगतषोमवश्यायकगुणभावपोयार्णिकाधान्यायायीनप्पणात्कार रणविशेषायादितभेदपर्यायापापणास्पादन्यत्वायतान्याघटपपीयोन्यम्बकपा लादिषयीयस्तयामदोघटादिपय्यायाणाचस्यादेकत्वस्यादन्यः । स्यादकत्लयताम्पमेवउभयपरिणामकारणवशा . ततापदेशमाभवतिानान्येघरादयाम्पव्यतिरिक्तघटादिपयोपाभावात्पपीयि पीयभेदाचस्पादन्यलायतपर्यायपपपर्यायाघटादयस्तया दिपय्यायाणीचस्पादेकत्वास्पान्नानावकर्यपगोयार्थिकगुण न्यापीयाप्योनपेणादनादिपारिणामिकचैतन्यजीवश्यायाप्पणात्स्यादेकत्वय Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोतानादयानादिपारिणामिकचैतन्यजीवश्व्यादिश्यार्थनजहतितेषामेवग्याय काणभावपयीयार्थिनप्रधान्यापाप्यानपणाकारणविरोधापादितभेदपी याप्पीपणात्स्यादन्यत्वयतोन्यातानपयीयोऽन्येचदर्शनादिपयीयास्तयात्मनाः || नादिपयोयाणाचस्यादेकत्वस्यादन्यत्वेगकतत्परिणामादेशात्स्यादेकत्वयता मात्मवाभयपरिणामकारणवणारतानादिपर्यायपरिणत:ज्ञानादिव्यपदेशमा ग्भवतिनान्यम्मात्मानान्येतानादयःमात्मश्यव्यतिरिक्ततानादिपपीयाभावा! तपप्पीयेपयोयभेदाचस्यादन्यत्व यतापीयीमात्मापोया:ज्ञानादयस्तस्मादे कत्लान्यत्वेप्रत्यनकोतापपत्ते । तत्परिणामत्वेपिकरणभावायुक्तः॥इतरयाहिए कार्यपीयादन्यत्वमाभिरेक्षपद्यस्यैकोतिककर्तकरणयारल्यत्वतस्यकार्यपर्याया) यादन्पत्लेमाकियरक्षवद्ययामासादेकरोतिपरश्वादिमिरित्यनकर्तकरणयार Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज- टोन्यखेतमाभज्यतावक्ष शारवाभारणारत्यकस्परक्षस्पशास्वाभारार्थपर्यायादन्यत्व। मासनवादस्तियतोनसाखाभाराहतत्यारक्षानशाखाभारादन्यारक्षोनभवती तिभज्यतरक्षा शाखाभोरणतिगरकार्यपयोगात्मकराकरणनिर्देशानभवतिर नात्मश्याहतेऽन्यज्ञानेनचात्मश्च्यातनान्यज्ञानमितिजानात्पननाप्योतात्मात एकाप्येपर्यायात्मकंकरणनभवतिकिचाकरणस्याभपयापपत्तश्यस्यत्तिमदम्। तिभेदवद्यप्याश्यस्यमूर्तिमदमोत्तभेदादेकातपरिग्रहानास्ति. शम्मीकारकालाप्रमूत्तयमात्माचामूतश्यायोदेशान्नपयोयाप्योदेशातस्याना दिकाम्मरणशरीरसंबंधात्तप्याकरणद्देधाविनाविभत्ताककभेदालतरन्य तकरीको स्थापरसुनाछिनत्तिखदत्तइतिकर्तुरनन्यदविभुतकर्डकययाग्निरे चनेदहत्याध्यतितयात्मासाननायीनजानातीत्यविभक्तर्तकेंककरणकिंव Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाताचवमलस्वातव्यपद्ययाभिननिजामूलदेवदत्तत्यकुशलायदाभिदिक्ति यायाः सुकरतमाखातोगविवक्षित स्वयमेवात्मानाभिनन्तीतितदाकिकरण सावात्मानभिनतीतिविवक्षायोकुमूलात्मककरणलेनोपादायततयात्मवज्ञा ताकरणचभवत्तियविचाएकार्यपयोयविशेषोपपत्तरिशदिव्यपदेशवत्ताहका स्पायस्पानकपयोयविशेषोपपत्तिहानचास्यतेभ्यम्पयोयम्पान्यत्वकपिशादि) व्यपदेशवतयणकस्यदेवराजायस्पेशक्रपुरेदराद्यनकच्चजनपीयविशा पपत्तिानचदेवराजस्पेशाकपुरदरादिपयायेम्पोऽन्यत्वेनचानन्यत्वाद्येनाया प्रस्तनकराकर परंदरोवायनवाशनस्तनराशावाकयमिहयता जादोनो प्रतिनियतपेजनपोयोपपत्तिाप्रेनादेशाशकनाछक पूरिणात्युरेदरति नदनशकनपूद्दीरणव्येजनपर्यायभेदान्नेदेवराजमाकापुरदरावानभवति । Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवटी भवत्यवान कस्यात्मनाजानादिपर्यायविशेषापपत्ति "तस्मादेकायपीयविशेषोपय तेनीन्यत्वमात्मश्च्यादकोतनशानादीनोगकरीसाधनलाझादोषाभावालयवानमान नदशीनादाकरणसाधनोकित्तहिक-साधनातयाचारित्रशापिनकम्मसाधना किताहैकरसाधन कप्पमेवभूतनयवशात ज्ञानदर्शनचारमाणिमात्मवेशात सत्परिणामारज्ञानादिपरिणतमात्मवज्ञानातीतितानपश्यतीतिदीनंचरतीतिचा रित्रमतायउता करकरणयारन्यत्वादन्यत्वमात्मज्ञानादीनामितिदोषासनभवतिले क्षणमावइतिवेलवालकात्स्यादतन्नलक्षणमस्तिकत्तरियटाविधायकमितितन्न कृत वाकलकारयुड्यावशलमितिकारियुणिवम्बयनविहितास्ततान्यचापि दृश्यते व्याभावकम्मरणाविहिताःकरणादिष्वपिभवतिस्नात्यननस्नानीयंम्वूर्ण दात्यस्मतिदानीयातिथिःसमाक्ततेतस्मादितिसमावर्तनीयोगुसाकरणाधिक Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i राधिकरणयाWडुक्तः। कम्मीदिष्यपिदृश्यतनिरदाततादेतिनिरदनमस्कदतितस्मा) दितिपस्केदना पप्यवामानसाधनाजानादिशयास्तत्वकथनाहाचस्यकरणव्यपदेशाव योदासीन्येनावस्थितमन्दितणादिवाकरणमितिव्यपदिश्यततयादासीन्पर्ने। वास्थतानिज्ञानदीनचारिवाणिप्रतिनियतज्ञानदर्शनचरणावयाच्यापार प्रतिनिरा तोत्सुक्यानिकप्तकासामोक्षमार्गाजानदर्शनचारित्राणिजातिजीनापी नचरणचारिणमितिक्रियाच्याएतानातुन्जानादोनोवानादिकारकव्यवहारांव्यक्ति भेदादयतामतिचेन्नकार्यशान्यत्वाद्यक्तिभेदात स्यादेत्तताज्ञानमात्माते मयु क्तिकस्माद्यक्तिभेदादामधेयवस्लिंगसरयभवाताभिधानस्यतिन्जानमात्मतिमाशाती तितन्नकिकारणएकातदान्यत्वादातिभेदातःगएकस्मिन्नप्पयशवभेदादाक्ति भिदादृश्यतययारोहकुटीमर पुष्प-तारकानक्षमितिण्वज्ञानमात्मत्यपिस्यात। Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजरी ज्ञानग्रहणमादान्याय्यानपूर्वकत्वादशेनस्यामाहाज्ञानग्रहणमादान्याप्याकुतस्तत्पूर्व कत्वादशीनस्पयत पदार्थतत्लापलब्धिपूर्वकेनशाना सल्यामरतिस्वरस्यसे । ज्ञारत्वाच्चदर्शनावतानमल्याचरेसतश्चपूर्ववाच्यानाभवायुगपत्रारत्त-मतापमकाश चिन्नपदोष कुत्ता उभयसैगपदाफियपकासप्रतापरूपवद्ययासवितुरनपटला वरणविगममतापणकापामरतियुगपनवतितप्याज्ञानयानयायुगपदात्मलाभस्तद्य यो यदानिमाहस्योपसमाक्षयोपशमाक्षयायामात्मासम्यग्दर्शनपर्यायेणाविर्भ चति तदेवतस्यमतिज्ञानमताजाना निक्षिपूर्वकमातजानेझुतज्ञानेचाविष्लेवातादर्शन स्यैवान्यहितत्याद्यदप्युक्तमल्पाचरवारज्ञानस्यपूर्वनिपातरतिस्तदसताकस्मादी नस्यवाभ्योहतत्वात ज्ञानाशीनमेवाभ्यहितदर्शनसैनिधानसतिम ज्ञानस्यापित ज्ञानभावाला ज्ञात्वाप्पझधतस्तदभावानमध्येजानवचनज्ञानपूर्वकत्याचारित्रस्य Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यत्ताजीवादिपदायतबज्ञानसन्निधानेसतिचारित्रमाहस्योपशामाक्षयोपशमाक्षयाहाक मोदानहेतुक्रियाविशेषापरमम्बारित्रपरिणामोभवतिततश्चारित्रस्यज्ञानपूर्वकत्वातज्ञा नपूर्वप्रयुक्तश्तरेतरयोगहामार्गप्रतिपरस्पराताराप्राधान्यातासायमितिरतरयोग द्वेद दर्शनवज्ञानरचारितेचदर्शनज्ञानचारिवाणीनियकुत्तामापतिपरस्परांपेक्षा गोप्राधान्याद्ययाप्लनन्यसाधपत्ताशाइति मास्त्यादिसमानकारतक्रियाणाक्षादी नापरस्परोपक्षणामितरतरयोगः सर्वपदार्यप्रधानत्वाहावचनांतातल्याद शेनज्ञानचारित्राणामस्त्यादिसमातकालनियारणापरस्परोपेक्षाणामित्तरतरयो गेहा सर्वपदायमधानत्वावक्चनातायतस्वयाणामपिदर्शनादानोसहिता नोपरस्परापेक्षाणामाक्षमारीत्वमतिमाधान्यनकस्पनयोः मत्येकेसम्पविशेष परिसमासि निवद्ययादेवदत्तजिनदवासदत्ताभाज्यतामितिभुजिः प्रत्यकंप Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज०टी० १४ रिसमाप्यत्तेत्तथाप्रशंसावचनस्यसम्यक्तष्ट्रस्यप्रत्येकमभिसंवधोदर्शनादिभिः सम्यग्दी नेसम्पाज्ज्ञानसम्यक्चारिचमितिपूर्वपदसामानाधिकरणमात्तद्व्यक्तिवचनम संगइतिचेन्न मोक्षापायस्यात्मप्रधानत्वात् ॥ स्यादेतद्दर्शनादिभिः सामानाधिकरण्यात्तद्व्यक्तिवच नमोक्षमार्गस्यप्राप्तइतितन्नाके कारण मोक्षोपायस्यात्मप्रधानत्वाद्यामागमोक्षाये यः॥ तस्यात्मास्वभावः "येनात्मायेनस्वभावेन समोक्षमार्गउच्यते ॥ सदीन ज्ञानचारित्रा गासर्वेषामविशिष्टएक: पुल्लिंगश्चातस्पप्राधान्यात्सत्यपिसामानाधिकरणेपनत व्यक्तिवचनप्राप्तिः यथासाधवः ॥ प्रमाणमितिग्मात्पतिक सर्वकमी निक्षेपोमोक्ष : मोक्षाणसनेइत्येतस्यद्यत् भावसाधनामोक्षणमोक्षः असन क्षेपणमित्यर्थ स आत्यंतिकः सर्वकम्मनिक्षेपमा दाइत्फच्यतेमजे सुद्धिकर्म्मणामार्गइवाप्याभ्यंतरी करणान्मुष्टः श्रुद्धासावितिमार्गः । मार्गइवमारी ॥ करुपमाय्यायप्यास्याणुकेस्कोप Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लशर्करादिदोषरहितेनमार्गणमार्गशालामुखमाभितस्थानगछतिनियामिण्याद. शनासयमादिदेवरहितनव्यशनानेयामाणिसुखेमाक्षगच्छति अन्वषणानिया स्यवाकरणालापफ्तेमप्यवामार्गअन्वेषणइत्यस्यमार्गःसिध्यति कुत्ता सम्पाद शिनादीनांकरणोपपत्तामाक्षायेनमातिसमाक्षमाइतियुक्तानभिधानादमा गतिचन्ना मिण्यादीनानानासयमानासत्यनीकत्वादीषधवता स्यादेतन्नानय. तिरुत्तासम्पादनादिवयमिच्छ मोक्षमातिाप्रतास्यमारीत्वनोपपद्यतति तन्नर्विकारणामिप्ययादर्शनाज्ञानासंयमानासत्यनीकत्वात्कयोषधवद्ययावा नादिविकारोगाणानिदानप्रत्यनीकास्तिग्धस्ताद्याषधमुछेदकारण तयार मिय्यादीनाजानासयमादीनानिदानप्रत्पनीकसम्यादीनाद्याधधमुच्छेदकारण । तिललाप्येवातफेव्याख्यानालंकारेनमध्यासमयmaaisa ॥३३३ विषय .. Anamnewmnimun... Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याधस्यात्मलाभेसत्तिज्ञानादेवत्तहिनिरत्तेखित्वानुपपत्तिः दाह॥॥ विपर्ययाइयस्पात्मलाभोगभवनितदभायात्तत्वानेसतिवेधनिरत्तिर्भवतिकारणामा गाडिका भावतिबंधानरत्तरेवचमोक्षाअतामोक्षमार्गस्यात्रित्वनोपपद्यतेप्रति ज्ञामावमितिचेन्नसर्वेषामविसंवादातास्पादतत्प्रतिज्ञामाचमतहिपय्येयाइंधोम वतीतितन्नार्किकारणसवामविसवादान्नाचप्रतिवादिनाविसवदतगतद्ययाधी मेरामनमित्पादिवचनमेकेयोधर्मणामनमूभवति असुवासाम्पमाजापत्ये गोधर्वपक्षराक्षसपिशाचमनमधस्तावत्पधेर्मणामधर्मरणरवलुपदसुस्थान एमानुषपश्मामत्ससरीस्पस्थावरघुगमनेशाननचापवणायदास्यरजस्ामसागण नावात्सत्वस्यप्राधान्यात्मरुतिपुरुषोतरपरिज्ञानमाविभोवतितनापतिविषयेया दिप्यतेबंधप्यास्पायक्तमहदहेकारतन्माचसंज्ञास्वासुप्रतिष्पनात्मीयास्वाहा Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --- कारिकवैकारिकेचनियेष्वात्मत्त्वाभिमानभ्सविपर्ययत्तस्माईधरत्येकेषावचनंत थानात्मीयव्यात्माभिमानविपर्ययात्तस्यशदायुपलब्धिरादिशेणपुरुषोपतरोपल वीरंतयोवदस्याविभक्त प्रत्ययःमाबादौश्यिरत्तिघुमवणादियुहेालातत्वमा दिपोचभौतिकेचार: पारस्पादिसमूहागरहेपुरुषप्रतिपययोभवतिगतावर प्रतिबुद्धत्वात्सेसारः गापुरुषोतरोपलाधिरतायपदोस्पवळसर्वेषरुतिरुतवि गणमचेतन भोग्यमितिजानातिभोक्तारपकत्तीरचेतनेचपुरुषमन्येप्राधानाद वितिम्चतनेवारणास्तदातस्यगणपुरुषांतरोपलाधरंतसंसारस्पतिज्ञानान्मा क्षाविपर्ययावेधडत्यकेषोछाहेषाभ्यामपरयाइछाडेपपूर्विकाधमीधर्मपत्तिस्त ध्यासुखकारवततश्चाधिोनचविमोहस्पतामियादीनाभावात माहवातानवि मोहस्पयतेगषट्पदाप्यतत्वज्ञस्यवैराग्यवतासुरवर खेच्छाषाभाव छायामा - Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजरो वाम्माधम्माभावारूदभावसंयोगाभावोपाभीवनसमोक्षस्तयाइम्माधर्मयारभावे १६ भवत्यपवर्गाकयेप्रदीपॉपरमप्रकाशभाववाहियानावेप्रतीत्यात्मानप्रतिलभते तन्त्र स्यापस्मातिरोभावयातितद्ययानदीपापरमासकाशाभाव वैधम्बाहाङ्गवतिकप्य मधर्मसेशादहशादज्ञानभवति प्रज्ञानाचमाहामोहतत्ताइछावोजातिइलाहे पाभ्योधमाधार्मासएषवेधसतसंसारस्पप्रसूतिस्तस्माजवत्यराभोवसेयोगाभा चकत्तरस्यमयोगस्याभावजीवनसेज्ञकस्यधम्मीधमापेक्षासदेहस्यात्मनाम "नसासयोगाजीवनेत्तस्यधर्माधर्मयोरभावादभावाप्राउभीषश्यप्रत्ययशारीरस्पात्मा तमभावासमाक्षःकायमभावधिमाधर्मपारनागतानुत्पत्तिसंचितनिरोधाभ्याम नागतानुसत्तिः सचितनिरोधम्वद्विविधोभावस्तवानागतानुत्पत्तिस्तावमाध मेयोःशारीरोज्यमनाव्यतिरिक्तात्मदरीनादकुशलस्या Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानोपरिवर्तनाधर्मस्यापितत्साधनानामनभिसेवेधान्नानाभिसहितकर्मबन्धाती/ निसेचित्तनिरोधापिनऽगपोरेखदफलादधमेनास्तस्मात्समागधेगारीरलाक्ता कनालीतानकादिनिमित्तारपोरेखदेप्रदायाधीतिरिच्यते।भागदोपदशोनात परमाचपदार्यानोतलविनिरणयातीतिमारभ्यधर्मस्पविनालगतामाक्षात्पपेरसाद शेने उत्खादिनितिरित्ययषोतापजन्मत्रवत्तेदापमिय्यानानाजोमुत्तरोत्तरापी येतदनंतराभावान्निश्रेयसाधिगमस्त्यन्पषोदर्शनोटपत्फत्तरामिण्याज्ञानेस वैषामुत्तरस्पतत्वज्ञानान्निरतायतदनतरार्यस्तस्पनिरतिकवासादोष सहि मियाजानादनतरस्तकार्यत्वात्सचातरम्परत्तापरत्तिश्यानंतरा तत्कार्यला तादोषाराभावेपरल्यभावाप्रतिरप्पनराजन्मनःप्रवत्तरभावान्जन्माभावातली यत्वाजन्मोत्तरेऽरवादत्ताजन्माभावादकरवनिरत्रिस्तन्निरत्तोचात्पतिक सुख DIReemanmama Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ राज टोखानुपभागोनिः श्रेयसमितिम प्रविद्याप्रत्यया संस्काराइत्यादिक्चनकेपाचिदविद्याविय योयात्मिकासर्वभाववनित्यानात्मा थुचिखषुनित्यसात्मकमुचिसुरवाभिमानरूपातका त्ययासेस्काराइत्यादिवचनकेषाचिताकेपुनस्तसंस्काराराणादयस्तचविष्वासापरापाप रापानापसंस्कारातवीरपापमानासंस्कारागोपुण्यापगमेचविज्ञानभवतिायत मुच्यताप्रविद्यामत्ययासंस्कारावस्त्रपतिविज्ञामिविज्ञानमितिमापरापापमानास स्काराणामपुण्यापामचविज्ञानभवनिमयदेत मच्चतासस्कारप्रत्ययविज्ञानविज्ञा नसभूताश्वत्वावधानामचत्वारिमहाभूतानिरूपनामचरूपनामचस्पेचनामरूपा मिनिसानन्यापमानासस्कारागणमानजोपगमेचविज्ञानभवतियतादमुच्यतेविज्ञानप्र त्ययनामरूपनामरूपसनिहितानीश्यिानिापरायतनमितिमानरूपरध्यापन्निराय तनाहारैःसत्यनियाचप्रजायतइतिनामरूपप्रत्ययपडायतनमुच्यताचपाणाध Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोणासनिपातःस्पीकेषावयागोविषयेश्यिविज्ञानानासंगतिस्पर्णाघालायतने भ्यागषट्स्पशेकापाः प्रवर्ततइतिषडायतनप्रत्ययः स्पषी स्वानुभवनवेदनायजाती यस्पीभवतितजातीयोवेदनापततश्तीदमुच्यतस्पप्रत्ययक्दिनेति वेदनाध्य वसानातलायतस्मान्वदनाविशेषानास्वादयत्याभिनंदयत्पध्यवस्थतिस्पतीतिसावदना मत्यया तमाचतेरघ्नविपुल्पमुपादोनेसामप्रियासानुरागेतिभेदेनानित्यमपरित्या माभ्याभूयाचप्रार्थनातच्यतेत्रमाप्रत्ययमुपादानमिति। उपादाननिमित्तेपुनर्भ वजनकेकर्मभव रावसायमान:पुनर्भवजनकेकीसमुछाययति कायेनमनर्स वाचातहेतुक वैधाषिोजानिशीतिस्कंधपरिपाकोजराजाप मिनिरत्तानो संधानामपचयापरिपाकः परिपाकादिनाशामवनितन्मरणातदेवंजातिप्रत्ययजराम | रणमुच्यता एवमयेद्दादशोग प्रतीत्यसमुत्पादअन्पोन्पहेतुकस्तत्रसर्वभावखविपरी Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा टी- तदर्शनविद्या यत्सर्वभावेष्वनित्पानात्मकासुचिषष्यनित्यानात्मकाचिठरवद शेनेसाविद्याततामाक्षाकप्यमविद्यापाविद्यातानिादतिअविद्यानिरत्त संस्कारनि रोधा संस्कारनिराधादिजाननिरोधारावमुत्तरेष्वपीतिगतदनमविद्यातावधोभवति विद्याताम्बमानतिमिप्य्यादीनादरितिमतः भवतामिण्यादर्शनाविरतिप्रमादकषा पयोगविधहेतवतिभवतामार्हतानामपिमतापदाविपरीताभिनिवेशादानमि यादतीनविपरीताभिनिवाबमाहातमोहत्याज्ञानमितिामज्ञानाधानता मियादर्शनमादिधस्पसामायकमात्रप्रतिपत्तश्चानंता सामायिकमावमिधाति वचनात सामापिकेचज्ञानमतमार्हतानामपितानान्मासश्त्यविसंवादावितया मोक्षमार्गकल्पनानपुताकिच. दृशतमामप्यादागाकस्वप्रियकपुचवत्तद्यया। वणिकस्पप्रियकपुरसहाविग्रहानेनावमद्यमानवालमुपलम्यातिऊरवामिभवमूल Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यागतमाणश्वाभवदिनिवत्तकायादिक्रियस्पचास्यकुशलमहानिरूपायपूर्वक प्रा त्याहितप्राणरत्तापपुवरावदर्शनविषयमुपनीतमयममप्वइत्याविभूततत्त्वज्ञा नस्पस्वपुत्रस्यस्वपुत्रसाहायाभूतमिय्याज्ञानजनितेऽखंतभूतपूर्वमिवाभवदेवमना) नाईधा केवलाचतानान्माक्षशतिनवानातरीयकत्वासायनवतानवाएषदो कारणेनोतरीयकत्वान्नहिवित्तयमंत्तरेगामादमामिरास्ताकयरसायनावद्य), नरसायनज्ञानोदेवरसायनफलेनाभिसवेधारसायनप्रदानकियाभावाचदिवार। सायनज्ञानमावादलरसायनफलसेवेधाकस्यचिद्दएामाभिधीयतानचासावस्तिन चरसापनक्रियामाचादेवा ज्ञानवधानाभावान्नचरसायनप्रदानमात्रादेवरसायन ज्ञानपूर्वक्रीयासेवनाभावादत्तारसायनज्ञानप्रदाकियासवनापत्तस्यतत्फलनामा संवेधातिनि प्रतिष्मततयानमोक्षमार्गज्ञानादेवमाक्षणामिसंबंधादशेनचा Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = रानी रिवाभावान्नचप्रधानादेवामाक्षमार्गज्ञानपूर्वाकयानुशनाभावान्नचक्रियामानादेव ज्ञानबहानाभावाद्यतः॥क्रियाजानभवानरहितानि फलेति यदिचज्ञानमात्रादेवाकचि दप्यासिद्धिदृशामाभिधीयतानचासावस्त्पत्तामाक्षमागनितयकल्पनाज्यायसीतिमनता सामायिकसिदाइत्येतदपित्रितयमेवसाधपति कयशस्वभावस्यात्मनस्तत्वाधानस्य सामायकचारित्रापपत्तः समयणकत्वमभेदइत्यनप्यौतरंगसमयसवसामायिकेचारिची सर्वसावद्यानरत्तिरितिभेदेनसंग्रहादिति उक्तंच॥ हतंज्ञानक्रियाहीनहत्तचाज्ञानिना किया धावनाकेलाधकोधिपश्यन्नपिचपेगुलः संयोगमेवबदेतितज्ञान। करनेणारयः प्रयातिाधावपेणग्वयनप्रवितोसमयुत्तानगरप्रविशयिति। दिवमोक्षतिचदनवस्यानाउपदेशाभावः यस्पज्ञानादेवमोक्षस्तस्यानवस्यानापदे ! शावावल्यप्याप्रटीपम्यतमानित्तिहेतुत्वालादीपेसतिनमहत्तमपितमावतिहतिान Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ह्येतदस्ति प्रदीपश्वनामत्ज्वलतितमच्चावतिष्टतइति। तप्यात्मस्वरूपाववेाधाविभचा नंतर मेवासस्यमानः स्यान्नद्येतद्यक्तिमज्ञानचनाममोक्षस्पकारणाम स्निनच मोक्ष इति ततो ज्ञानानंतरमेवामस्य शरीरेंद्रियनृत्यदिनिवृत्तेः) प्रवचनोपदेशाभाव: संस्काराक्षयाद वरथानादपदेश इति चेन्न प्रतिज्ञानविरोधात्स्यादेतद्यावदस्य संस्कारानक्षी येतो. ता वदवस्थानमित्युपदेशः उपपन्नइतितन्नः किं करणंप्रतिज्ञातविरोधाद्यद्यत्प न्न ज्ञानो पिसंरका रक्षयापेक्षत्वादंवतिष्टतेनमुच्यते नतर्हिसा नादेवमोक्षः कु तः संस्कारक्षयादितियत्प्रतिज्ञातं ज्ञानेन चापवर्गइति। तद्विरोधः) किंच उभय यादोवोपपत्ते इदमिह संप्रधार्य। संस्कारक्षयस्यज्ञानं वा हेतुः स्यादन्यो वेतिः य दिज्ञानं ननुज्ञानादेवसंस्कार निरोधइति) प्रवचनोपदेशाभावः ॥ अथान्यः संकोन्या भवित्रुमर्हति अन्यतश्चारित्रादितिपुनरपिप्रतिज्ञातविरोधंइतिः किंचप्रवज्या Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा द्यनुष्टानाभावप्रसंगच ॥ यदिज्ञानादेवमोक्षः॥ ननुज्ञानएवयन कार्यः । शिरखं डगुडनकायायांवरधारणादिलक्षणप्र व ज्यायमनियमभावनाद्यभावप्रसंग: स्पात्मज्ञानवैराग्यकल्पनायामपि । किमंवस्थानाभावादुपदेशा थेपरिज्ञाने सत्तिविययानभिब्बंग लक्षणीच वैराग्य प्राप्त स्वतः क्षणएवमोक्षोपप तेः। किंच नित्यानित्यै को तावधास्योतत्कारणतं भवःभा नित्त्याएवार्थम्प्रनि: त्याएवेति । एको तावधारीत क्वारणासंभव तत्कारणस्य ज्ञानवैराग्यस्थसंभव स्तद्यथानित्यत्वैकां ते विक्रियाभावात् ज्ञानवैराग्यभावः॥विक्रियाद्विविधा ज्ञा नादिविपरिणामलक्षणा देशांतरसंक्रमरूपाच॥ येषां नित्यएवात्मा सर्वगतश्वे तिदर्शनं तेषामभय्या पिसानास्तित्तत्तश्चतुष्टयत्रययसंनिकर्षानाभावाद्वैरा पत्तेरात्मनःप्राकास स्पेवमोक्षाभावभास Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मवायादितिचेलातस्यपत्याख्यातयातक्षणिकैकांतेय्यवस्थानाभावात्यासानवे रापभावनाभावायेयाम क्षणिकासर्वसंस्काराइतितेवामय्यत्यत्त्यनंतरविड नाशेसनिशानादीनामवस्थाननास्तिनचतेभ्योऽन्यदवस्थाखवस्तुविद्यतेतरलद भावातज्ञानवैराग्यभावनाभावरततरावोत्पत्यनतरंनिरन्वयविनाशाभ्युपगमात्य रस्परसंश्लेयाभावनिमित्तनैमित्तिकव्यवहारापन्हवादविद्यापत्ययानासंस्कार इत्येवमादिविरुध्यता सेतानादिकल्पनायोवान्यवानन्यत्वयोरनेकदोयानुष गाविपर्यायामाव: पागउपलञ्चौवाबंधाभावबहलोकेषागनुभूतस्थाप रुयविशेषस्यपकासाभावार्दभिवात्करगालमाहाविशेयानुपलचोविपर्ययोह टीनचावनितलभवनसंवतस्पतागपतीतदंतस्पविपर्ययप्रत्ययोभवतिनचतथा नादीससारेनभिव्यक्रशक्त परुषपणापरुपांतरोपलचिरस्तिाराताला Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा २१ 'नुपलन्निस्तिविपर्ययस्तथा सर्वभावेय्वनित्त्या नात्मकाचिदुःखेयु नित्यसात्म 'कशुचिसुखरूपेणविपर्ययो नास्तिप्रागनुभूत विशेषत्वात्॥ यदिवाक्क चिदप्रसि इसामान्यविशेषस्पकस्पचिद्विपर्ययेो दृष्टः सेोभिधीयतांन चोच्यते तोवियय्यैया भावाद्वैधाभावः तत्रयदुक्तं विपर्यया इंधइतिनयाहन्यते अथमा क तद्विशेयोप लचिरभ्युपगम्पतेन नुनदेव नद्वे चुके नमोक्षेाभवितव्यमितिवेधाभावः॥स्या चप्रत्यर्थवशवर्तित्वाञ्चविपर्ययाभाव। इत्यनुवर्त्तते । येषां दर्शनंप्रत्यर्थवशवर्तिवि ज्ञानमितितेषां पुरुयविषयविज्ञानं नस्था गुमग्ट का निस्थाणुविषयं चयद्विज्ञानं नतत्पुरुषमवबुध्यते। अतः परस्परविषयसंक्रमाभावान्नसंशयो नविपर्ययस्त यासर्वेयपदार्थेय्वनेकार्थग्न हौक विज्ञानाभावादसतिविपर्ययेवं धाभावस्ततए |चपदार्थविशेयानुपलमक्षिोभाकः ॥ नये कार्थग्ग्रा हिविज्ञानंतदंतरमवाञ्चनत्ति · Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानदर्शनयोरेकखंक्रुतम्यगयत्पतेरितिबन्नकिकारणातखावायश्रद्धानभेदा|| कतापप्रकाशवद्यथातापप्रकाशयोर्युगपदामलाभेपिदाहद्योतनसामर्थ्यभेदान्लैक वतयाज्ञानदर्शनयोरतत्वावायग्रहानभेदान्लेकलतवस्यांवगमोज्ञानं श्रद्धानंदर्श नमिति हटविरोधाच्चयस्यमयुगपदामलामः एकवेहेवरितितस्यदृष्टविरोध आपद्यतेहटहिंगोवियागादीनीयुगपत्यद्यमानामयिनानावंउभयनयतहावेन्य तरस्याश्रितलाहारूपादिपरिणामवत्यक्षतिसुत्रीउभयनयसदावेन्यतरस्याश्रितत्या हानदोयाकथरूपादिपरिणामवद्ययापरमारवादिषद्लद्रव्यागोवाह्याभ्यंतरप रिणामकारयायादितेयुगपद्पादिपरिणामेपिरूनयादीनामेकखानथाज्ञानद र्शनयोरपिालथवाउभयनयासद्भावेन्यतरस्याश्रितत्वाद्यथारूपादिपरिणामा नांदध्यार्थिकापर्यायार्थिकयोन्यतस्यणप्रधानभावोयरातस्यादेकबस्यालाना वकयमिहपर्ययार्थियभावेद्रव्यार्थिकप्रधान्यात्यर्यायानिपगार्दनादिपा Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवार्तिः ॥रिणामिकपडलद्रव्यर्थीदेशाश्यादेकलंयथारूपपर्यायापालगव्यंतयारसादयो पद्रव्यार्थीिदेशाइलद्रव्यतेयामेवद्रव्यार्थियणभावेपर्यायार्थिकपाधान्याद्र । नयेणात्यतिनियत्तरूपादिपर्यायाथैनार्पितानांस्यादन्यवयतोन्यारूपपर्यायः अन्येचरसादयतथाज्ञानदर्शनयोरनेनविधिनानादिपारिणामिकचैतन्यजीव ध्यार्यादेशाश्यादेकवायतोद्ध्यार्थादेशाद्यथाज्ञानपर्यायधात्मद्रव्यं तथादर्शन मपितयोरेषपनिनियनशानदर्शनपर्यायार्था पगाश्यादन्यवयस्मादन्योज्ञान पर्यायान्यश्चदनिपर्यायःज्ञानचारित्रयोरकालभेदादेकत्वमगम्याववोध वदितिलाश्रूत्यन्लीसमकालापति यत्रुत्पलपत्रशतव्यधनवश्यादेतत्रज्ञानचा स्त्रियोरेको करमादकालभेदारकथमगम्याववोधवद्ययाकेनचिलो तान्यानाभिसरणेसकामतिनापंसामेघोदयातवहलांधकारायारात्री लेमारपश्चलीखाभिलवितेतिस्राष्टातदेवविधताचविद्योतिततेनद्यो . . सार्नयदोत्पन्लेतयादेवागम्पाववाचादगम्पागमननिष्टत्तिनागम्पाव Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वोधागम्यागमननिष्ट कालभेदोस्ति तथाय देव ज्ञानावरणक्षयोपशमा जीव ज्ञान जीवा इत्याविर्भवति तदैव तेनहिंस्या इति जीवेहिंसा इति जीवेहिंसाप्रत्यस्य निवृत्तिः, निवृत्तिश्व चारित्रं नच ज्ञानहिं सानिया: कालभेदोस्तीतितन्न किंका रणमाश्रत्य तौ सूक्ष्म का लापतिपत्तेरतत्राय्य लेव कालभेदः ॥ सौक्ष्म्यातुनप्रतीय ते कथमुत्पलपत्रशतव्यधनवद्यथेोत्पलपत्रशव्यधनक्रमः ॥ संख्येयसम यिकः सर्वशप्रत्यक्षोऽतिस्रक्ष्म स्तन तु विभाव्यतेषु अस्थैर्यता यावदेकमुत्पल पत्रमंसिरयत्वाद्वितीये छिनत्ति तावदसंख्याः॥ समया अती ताइतिकालसूक्ष्मा प्रदेशस्तथा न्यागम्यावबोध कालः ॥ अन्यश्वनिवृत्ति कालः ॥ अर्थ मेदाच्चकिं नैक त्वमितिवर्त्तता, ज्ञानस्पतत्वाबवो धोर्थः॥ चारित्रस्प कर्मादान हेतु क्रियाविशेषोपर | मोर्थइति प्रतो नानात्वे कालभेदाभावो नार्थ भेदहेतुर्गति जात्यादिवत्य,नकाल भेदाभावः, अर्थभेदहेतु न्याय्यः कथंगति आत्यादिवद्यथा, यदेवदेवदत्तजन्म तदैवमनुष्यगत्तिपंचेंद्रिय जातिशरी वगंधादीनी जन्मना यदेिवदत्तजन्मका Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवानिलः।अन्यश्चमनुष्यगत्यादिपर्याय जन्मकालः॥निचैक कालत्वान्मनुष्पगत्यादी ना कलंयस्पनः॥] कालभेदाभावएकत्व हेतुरिष्ट रत स्पमनुष्यगत्या दिपर्यायाणामे कत्वाप्रसेमोन चेपते अतोन कालभेदाभावात् ज्ञान चारित्रयेोरेकत्लंग उक्तंचा किं क्तमभयनयसद्भावाश्यादेकत्वस्यान्नानात्वमितिलक्षणाभेदात्तेषामे पपत्तिरित्तिचेन्नः परस्परसंसर्गसत्येकत्वंखदी पवत् स्यादेतत्तेषां सम्यग्दर्शनादी नामेकमार्गत्वं नोपपद्यते कुतः लक्षणाभेदान्नहिभिन्न लक्षणानामेक युज्य ततस्त्रयोमी मोक्षमार्गः। प्रसक्ताइतितन्नकिं कारणां परस्परसंसर्गेसत्येक पवद्यथा परस्परविलक्षणवर्तिरने हान लार्थानांवाह्याभ्यंतर परिणा मकाररणपादित संयोगपर्यायाशांसमुदये भवत्येकशः प्रदीपोनत्रयः॥ | रविलक्षणसम्पदर्शनादित्रयसमुद्ये भवत्ये को मोक्षमार्गेनत्रयः किं नामेकत्वावामौनप्रतिवादिनोविसंवदेने के चित्तावदाहः दिभिन्नलक्षणानांसत्वरजस्तमसा साम्पे વે 1 Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पधानमेकंनतेयात्रित्वावधानस्यत्रैविध्यमितिलपराहकाकवडतादीनी चचभूतानामीनिकानांचवर्णादीनोविलक्षणानांसमदयएकोरूपपरमाराव नयाभेदातपरमाणारनेकवतयारागादीनांधागांप्रमाणापमयाविगमरूपायों चविलक्षणानांसमदयएकविज्ञानंनतेयाभेदाविज्ञानभेदतिइतरमाहश्चि बायर्णतंतनासमदयश्चित्रपटएकानयाभेदात्पत्स्यभेददत्तिातदिहापि सम्पग्दर्शनादीनोभिललक्षणानांसमदयएकोमोक्षमार्गदतिकोविरोधण्यापूर्वस्पलभिजनीयमत्तरंण्यांसम्यग्दर्शनादीनापूर्वस्पलाभेभजनीयमत्तरं वेदितव्यंउत्तर नेत्रनियतापूर्वलामा उत्तरस्पत्रलाभेनियतापूर्वलाभेद ष्टव्यः सम्यग्दर्शनशानचारित्रागोपाठखतिपूर्ववमन्त्तरत्वंच श्र्वस्पसम्यग्दर्श नस्यलाभेशानमत्तरभजनीया उत्तरज्ञानलाभेचनियतःपूर्वसम्पग्दर्शनलाभ तथापूर्वज्ञानला उत्तरंचारिश्चंभजनायो उत्तरचारित्रलाभेनियत सम्पाद निशानलाभगतदनुपपत्तिरज्ञानपूर्वक श्रद्वानखसंगारपूर्वस्पलाभेजनी | Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवानि । यसत्तरमित्येतस्यानुपपत्तिः कुतः अज्ञानपूर्वक प्रधानप्रसंगात्यदिपूर्वस ___ २५ म्यग्दर्शनलाभेउत्तरज्ञानलाभोमजनीयः ननुज्ञानाभावादज्ञानपूर्वश्रद्धा नवसंगकिंचा अनुपलञ्चखनबेनहानानुपपत्तिरविज्ञानफलरसोपोग वत यथानाविज्ञतिफलेतद्योपयोगोमव्यफलस्परसंसंपादयतेनिग्रहानमस्ति तथानाविज्ञानेखाजीवादियबहानाभावः स्यात् किंच सात्मस्वरूपाभाव संगात् यदिसम्पग्दर्शनलाभेशानभजनीयत्वादसद्विरोधान्मिथ्याज्ञाननिवृत्ती सम्परज्ञानस्यचाभावात्मानोपयोगाभावात्मनःपसात ततश्चलक्ष गाभावालक्ष्यस्यात्मनाय्यभावः स्यात्तदभावाचा मोक्षमार्गपरीक्षाव्यतिनवायावतिज्ञानमित्येतत्परिसमाय्पततावतोसभवालयापेक्षवचनंनवारयादीयः किंकारर्णयावतिज्ञानमित्येतत्परिसमाय्यतेतावतोऽसंभवान्नयापेक्षामिदेवचनं भजनीयमन्तरमिति वचनशानमित्येतत्यैरिसमाय्यतेश्रतकेवलयोर्यतः तकेवलज्ञानग्राहीशब्दनयतकेवलेयवेबतिनान्यत्नानमपरिपूर्णत्वार। Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दितितदपेक्षसंपूर्णहादशोगचतुर्दशपूर्वलक्षश्चतीकेिवलंचभजनीयमतं. तथापूर्वसम्पदर्शनलाभेदेशचारित्रंसंयतासयन्तस्यसर्वचारित्रमन्तादारभ्प सक्षमसंपरायोतानायचयावञ्चनियमादत्तिसंपूर्णयथाख्यातचारित्रंभजनी यंपूर्वसम्यग्दर्शनशानलामभजनीयमन्तरमितिचेलनिदेशस्यागमकत्वाश्यादे तन्लाज्ञानपूर्वकन्ग्रहानप्रसंगास्तिकतः पूर्वसम्पग्दर्शनशानलाभेचारित्रमन रंभजनीयमित्यभिसर्वधादितितिलविकारणनिदेशपागमकवाचतोयम योननुजस्यनिर्देशोगमकापूर्वस्पलाभदतिपूर्वयोरितिहिवतव्यम्पादयमामा न्यनिर्देशानुभयगतिकल्पतेनैवंशवव्यवस्थाविशेषम्यविवक्षतत्वादितरथा हिउत्तरेपितथापळमौतहोयानतिवन्तिभास्यात्तस्मात्यूक्तिएवार्योनयापेक्षव चनमितिअथवाक्षायिकसम्यम्दनलाभेक्षायिकसम्परज्ञानभजनीयालय वयगपदामलाभेसाहचर्यादभयोरपिपूर्वखोयथासाहचर्यात्पर्वतनारदयोः पर्वतग्रहणेननारदस्परग्रहणोनारदरगहणेनवायर्वतस्पग्रहांतयासम्यग्दर्श RIMINAATMAL ...... S Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नस्पसम्पकतानस्यान्यतरस्यामलामेचारित्रमत्तरंभजनीयरतितत्वाशेवा निकच्याख्यानालंकारखयोध्यायहितीयमान्हिक अमीयोमोक्षकार गासामान्यसत्यविशिष्टानांविशयपतिपत्त्यर्थाभदमाह तत्वार्थप्रहाने सम्यग्दर्शनां सम्पगितिकोयंशब्दः सम्पगितिप्रसंसायोनिपातःवयतोवासम्पा गित्ययनिपातः प्रशंसा-वेदितव्यः)सर्वेयांप्रशस्तरूपगतिजातिकुलायर्वि झानादीनामाभ्युदयिकानोमोक्षस्पवधानकारपणखात्यशरदर्शनसम्पग्दी नीननचसम्पगियार्थतत्वयोरितिवचनाखोसार्याभावइति तन्लानेकार्थ त्वान्निपाताना अथवासम्पगितित वायोनिपातस्तवदर्शनसम्यग्दर्शनंजवि परीताविषयंतत्वमित्युच्यतेअथवाचतोयंशब्दासमचतीतिसम्पकयथा यवस्थितरलथैवावगलतीत्यर्थशासथकिमिदंदर्शन मितिकरणादिसाधनो दर्शनशब्दशःकरणादिसायजेयटिदर्शनशब्दोव्याख्यात हशेरालो कार्थवादभितार्थासंपत्ययइतिचेन्लोनेकार्थत्वात स्यादेतहशिरयमालो L Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धैवतासालोकश्चेद्रियानिद्रियार्थवामिनचासाविहाभिषेतद्वानमिष्टनात स्यार्थस्पसंजत्ययोरतीतितन्ना,किंकारणामनेकार्यवादिहश्रहानमिष्टमभिसव , ध्यतकर्यनज्ञयितअलोकहनष्ट श्रद्धानमिष्टमितिअनउत्तरपठतिमोक्ष कारणपकरणाकाहानगविनामोक्षकारप्रकृतवार्थविययंत्रहानमोक्ष स्पकारानालोकइत्यताप्रकरणाबहानगतिर्भवति नयनत्यमित्यनेनकि खत्यारपतेपकृत्यपेक्षत्वातप्रत्ययस्यभावसामान्यसंप्रत्ययजत्ववचनातदित्ये याप्रकृतिनसामान्याभिधायिनीसर्वनामत्वात्सत्ययश्चभाविउत्पद्यतेकस्पभावेत दित्यनेनयोछडच्यते कश्वासीसौर्यभारमतरतदपेक्षत्वाद्रावस्पभावसामान्य मुच्यतेतत्वशब्देनयोयेयिथावस्थितरतेयातस्पभवनमित्यर्थः तत्वेनार्यतिरतित स्वार्थमातंगम्पतज्ञायतेरत्यर्थतत्वेनार्थस्तत्वार्थयेनभावनाोव्यवस्थि तरतेनभावेनार्यस्पराहणेयशनिधानद्भवतितशम्यग्दर्शनहानशब्दस्पकर गादिसाधनबंपूर्ववद्यथादर्शनशब्दस्पकरगणदिसाधनवव्यारव्यातो तथा --MEDNET/ HTET Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• २७ द्वानशब्दस्यापि चेदितव्यं सत्वात्मपरिणाम स श्रद्धा नशब्दवाच्यथेः करा दिव्यपदेशभागात्मपरिणाामावेदितव्यः वक्ष्यमाणानिर्देशादिसूत्र विवरणात्स मलद्रव्यसंप्रत्ययइतिचेन्नात्मपरिणामेपित्तदुपपत्तेः स्थादेतद्वा मायानिर्दे शादिसूत्र विवरणाखद्गलद्रव्य स्पसंप्रत्ययः ॥ प्रामीतितन्न किं कारणमात्मये. रिणामे पितदुपपत्तेः किंतत्वार्थश्रद्धानमात्मपरिणामः कस्प आत्मनइत्ये वमादिकम्मी भिधायित्वेय्यदोयइति चेन्नमोक्षकारणात्वेनख परिणामस्य विवक्षि तत्वाश्यादेतशम्परकम्पङ्गलाभिधायित्वेय्यदीयइतितन्न किं कारणमोक्षका रणामस्पविवक्षितत्वादीपशमिकादिसम्पग्दर्शनमात्मपरिणाम त्वान्मोक्षकार एल्वेन विवक्षा तेन च सम्पक्ककम्पय्पीय: पौगलिक वेऽस्पपरयययित्वा ख ★ परिनिमित्तत्वादुत्पादस्येति चेन्नोपकरणमात्रत्वा स्थादेतत्खपरनिमित्तउत्पा दोदृष्टः यथाघटस्पो त्या दोम्टन्निमित्तोदंडादिनिमित्तश्च तथासम्पम्दर्शनोत्पा आत्मनिमित्त. सम्यमुद्गलनिमित्तश्वतस्मात्तस्यापिमोक्षकारणात्वमप Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H- STE करणमात्रत्वादपकरणमात्रहिवाद्यसाधनंकिंचामात्मपरिणामादेवतद्रव्ये घाताद्यदिददर्शनमाहात्यकामतदात्माघातिकतचिदालपरिणामादेवा पक्षागाशक्तिसम्पत्काव्यालभतेश्अतोनतदात्मपरिणामस्यजधानका रणामात्मैवस्वशक्तादर्शनपर्यायेगगोत्पद्यतरतितस्पेवमोक्षकारात्वंयुक्त किंचा महेयत्वावधम्मस्या नहीपतेपरित्यज्यतरत्यहेयोयपितरशालना सम्पकपरिणाम:यतःसत्या पंतरेयात्मनःसम्पत्तपरिणामेनियमेनात्मा सम्पग्दनिपर्यायेणाविर्भवतिवाद्यसुहेय-कर्मपजलानमंत्तरेणापिक्षायि कसम्पत्कपरिणामाकिंचपधानखादारभ्यंतरात्मीयःसम्पग्दर्शनपरिणाम प्रधानसतितिमिन्वाद्यस्यापरवाहकत्वादत्तीवाद्याम्पतरस्योपगाहकाप रोयनवततितिअनधाना किंचा प्रत्यासन्तो प्रत्यासलाहकारमात्मपरिणा मोमोक्षस्यतादात्म्पनाविर्भावान्ल ठसम्परूरकर्मविषष्टौतरचान्तादात्म्पेनवा परिणामाच्चतस्मादहेयत्वावधानखात्यत्यासत्तेश्चमोक्षस्पकारणामात्मपरि RS. Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा• गामायक्तीनकर्मतिअल्पवहबकल्पनागिधरतिचेन्नोपशमाचपेक्षस्पमाप ग्दर्शनत्रयस्यैवतदुपपत्तेमस्यादेतशम्पग्दर्शनस्पात्मपरिणामत्वेअल्पवहत्व कल्पनाविरोधइतितलर्किकारगाउपसमाधपेक्षस्पसम्पग्दर्शनत्रयस्यैवतह पपत्तेःसर्वेपत्ताका उपसमसम्पाययसंसारिणःक्षायि योसेखयणक्षायोपामिकसम्पदृश्योसखियणगासिद्धाःक्षापि सम्पहरियातंतगाइतितरमाशम्यग्दर्शनमात्मपरिणामशेयोभिमखम । ध्यधन्यामतत्वाग्रहणामार्यत्रदानमित्यर्थत्वलत्वात्य कश्चिदाह ' रामनर्यकाअर्थश्रहानमित्येवाखकुत्तोलघुत्वादितिनसर्वार्थवसेगालेतर युक्तकुतः सवर्यप्रसेगात्तत्यपाहणाहतोमिय्यात्यादिवशीनेयसी मिसम्पादनंपामोतिमदेहाचार्यशब्दस्याने कार्यत्वादशध्दीयमनेकार्थः । चिस्पराकम्मरवर्ततर्थरतिपयशाकम्मरचतिवचनासचिरलत्ययोजने वर्तकिमयमिहागमनेवर्ततकिमीमहागमनभवनषियोजनामितिक Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FammarTRINITES चिहनेवततसर्थवानयंदेवदत्तधनवानितिक्वचिदभिधेयेवतीत शब्दार्थसंबंध इतिएवमर्थशब्दस्यानेकाधीभिधायित्वेसंदेह यकस्यार्थस्यश्रद्धानंसम्यग्दर्शन मिति सर्वानुग्महाददीयतिवेन्नासदयविषयत्वाश्यादेतलायंदोयासर्वार्थपसंगति अखसार्थविषयंहानंसम्यग्दर्शनी तथासतिसर्वानुहनकृतोभवति.कग्वेदा नीभवतोमशरनासोलोकोध्यदयेनयज्यतामितितन्ना किंकारणामसदविषय खान्नरखलुकचिन्लोमशरासदर्शविषयहिनछहानसंसारकारणमितिल न:सर्वानुग्रहार्थमेवतधेनविशिष्यता अर्थग्रहणादेवतसिद्धिरितिचेलविपरीत ग्रहगणदर्शनास्यादेततापर्यतत्पोनिश्चीयजइत्यर्थः लचमिथ्यावादिषगाना प्रा-असत्वाततरमादर्थमहरणादेवतत्वसंपत्ययानार्थस्तखाहणेनेतिाजन्न किंकारगणविपरीनग्रहणादर्शनाथापिन्तोदयाकलितकरणानःपमानमरर सेकदकंमन्यतेतयात्मामिय्याकदियदोबादतिलानास्तित्वनित्यचानित्यत्वाऽ नन्यत्वाधेकातरूपेणमिथ्याध्यवस्पतिशतलन्निराकरणातचग्रहणमित्य INCARDance...amination onam Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा महणांकिमग्ननुतत्वान्येवार्थ निसाथीनांतवसातत्वसामानाधिकरणयात्तत्व क्चनेनैवसंप्रत्ययःसिहा उच्यतेथग्रहणामध्यभिचारार्थअर्थाहणंक्रियते ॥ व्यभिचागर्यत्तस्यमितिद्वानमिनिचेदेकोतनिश्चितेपिखसंग हानंतधनहानमित्यच्यतेएकांतनिश्चितेपिखामोतिएकोतवादिनीपिहितारत्या लेत्येवमादितखमिनिग्रहश्चति तलस्पश्रद्धानमित्तिवेतभावमात्रषसंग यदित यस्पश्रद्धानंतवणद्वानमित्यच्यताभावमात्रजसंग स्यात्तखंभाव: सामान्यमि केचिवययनिद्रव्यखण्याक्कम्मत्वादिसामान्यद्रव्यादिभ्योऽतिरंतस्पग्रहा .. म्पादनखामोतिनहिगव्यादिभ्योऽन्यशामान्ययक्तिमदिति परी ...। वातलमेकत्वमित्यर्थः सरुयणवेदसमित्यादितस्पश्रद्धानसम्पग्दर्शनंषानोतिन' चादीयुक्त क्रियाकारकभेदलीपलसंगादितितत्वेनग्रहानमितिचेकस्पकमि अनानिवृत्ति यदितखेनग्रहानमित्युच्यतेकस्पकस्मिन्वेनिपश्नानविनिवर्तते तरमासक्तमर्थग्रहणणर्मव्यभिचारीमतिरछाबहानमित्यपरेवायतिगतद' Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयुक्तमिथ्याटेरपिषसंगाद्यतोमिय्यायायोवाहुश्रुत्यसचिख्यापयिययाहन्मान विजिगीययावासार्हतमतमधीयतेनचेघामंतरेणाध्ययनमलिभातरतेवामयिसम्प दर्शनप्रामातीत्ययुक्तमतंरचानहानमिति केवलिनिसम्पक्वाभावप्रसंगाचयदि चेवासम्पत्कंध्याचलोभपर्यायानचक्षीणमोहकेवलिनिलोभोलितदभावादिया भावतिसम्पवाभावास्यात्यातस्माद्यद्धावाद्यथाभूतमर्थग्रहात्यात्मतसम्पग्दर्श नमितिप्रत्येततव्योतविविधसरागवीतरागविकल्यात्तदेततसम्पग्दर्शनविविध कतशासरागवीतरागविकल्यातपशमर्सवेगानुकंपारितक्याभिव्यक्तिलक्षाप्रथ मंरागातीनामनुकापशमससारानीरुतासेवेग: सर्वधाशियमैत्रीअनकंपा जीवादयोधायथावभावैः संतीतिमतिलिपरतैरभिव्यक्तलक्षणांप्रथमसरा गसम्यक्त्वमिन्सच्यतेसात्मविश्ठहिमात्रमितरत्या समानांकमवलतीनोआत्यति केपगमेसत्यात्मविश्वहिमात्रमितरहीतरागसम्पमित्यच्यतो पूर्वसाधनभवतिउ तरसाधनसाध्यंचा अथेतसम्पादनो जीवादिपदार्थविषयकथमत्यद्यतनत्यत Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. इत्यतमाहातन्निसीदधिगमानिसर्गनिकोयंशब्दः॥ निस्टिजेविसाध नोयत्ता निसर्जननिसर्गःस्वभावइत्यर्यत्रमथाधिगमतिकाअधिपू . . धनः अवधिगमनमधिगमरलयोहेतुत्वेननिर्देश: निसर्गादधिगमादिति .. यायाकाचक्रियाउत्पद्यतइत्यध्यान्हियता सोपस्कारत्वातस्त्रागातदेतत्सम्यग्दर्शनं निसर्गादधिगमाहाउत्पद्यतइति कश्चिदाहसम्पग्दर्शनद्वविध्यकल्पनानपपतिरतु पलश्चतत्व श्रद्धानाभावादसायनवर विविधसम्पग्दर्शन मिनिकल्पनानोपपद्यतेक तीनुपलञ्चनलस्पनहानाभावात्कधरसायनवता यथात्यंतपरोक्षरसायनतत्वफल स्पनरसायनेग्रहानंहयंतथानाधिगतजीवादितत्यस्पनत्तऋग्रहानमितिनैसर्गिकस म्पग्दर्शनाभावानद्रवेदभनिवदितिचेन्न वैयम्पास्पादेतद्यथाद्भस्थानाधिगतवेदा स्पवेदाथैआत्यतिकभकिस्तथानपलचजीवादितत्वस्यवहानमितितलिकिंका रावेसम्पायुज्यतेपदस्पभारतादिश्रवणातशावचनानुवृत्यादिभिश्ववेदार्थभ तिभातासोनैसर्गिकीसहननैसर्गिकोरुचिरिटतिवैषम्पनियवासम्पवाधिन Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवादिपदार्थभक्तिमानासोनेसर्गिकोरुचिरिटेतिवयम्पअथवासम्पकाधिकाराजा वादिपदार्थतत्वोपलब्धिपीकेगासम्यग्दर्शनेनमोक्षकारणेनेहभवितव्यंनचद्र स्पतादृशंशद्वानमितिवैवम्यामणिग्रहणावदितिचेलपत्यक्षेणोपलश्चिसहावार स्यादेतद्यथानाधिगतमणिविशेषस्यापिसोमणिग्नहोभवतितस्पचफलंदृष्टतथा नाधिगतजीवादितत्वस्पापितञ्चमहाभवतितस्पचफलंभवतीतितलैसर्गिदर्शन मितितलार्किकारांपत्यक्षोपलवसद्भावान्लायतपरोक्षमणिग्यतातिकिंउपत्य क्षतउपलभ्यग्यतातिविपर्ययविशेयतुनपतिपद्यते। अतास्यानुपलेश्चमणिविश यस्यापिपत्यक्षदर्शनाद्रहात्याय्यासत्यतपरोक्षजीवादितखेकथमस्पनिसर्ग जसम्यग्दर्शनसिहि सामान्याधिगमेत अधिगमसम्पग्दनिमेवेति तायप्रकाश युगपदत्पत्तेरसुपगमाव किनिसर्गजसम्यग्दर्शनाभावइत्यनुवर्तते यदास्पसम्प ग्दनिमत्पद्यत्तेतदेवपातनमत्यज्ञानेचसम्पकैनपरिरामतीत्याधिगमजमेवतद्भव नियस्यज्ञानात्याग्दर्शनस्यात्तस्यनैसगिर्कस्पान्तच्चानिष्टमित्राच्यतो उभयत्रचुल्पे Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ राजवा. तरंगहेतीवाद्योपदेशापेक्षाउपेक्षभेदानेदा उभयत्रदर्शनेतरंगोहेनुस्खल्यः . मोहस्पोपशम:क्षय क्षयोपशमोवातश्मिसतियवाद्योपदेशात्तपादर्भवति . सर्गिम्यत्यरोपदेशपूर्वकंजीवाद्यधिगमनिमित्तदन्तरमित्यनयोरयभेदः - पूर्वकेनिसर्गाभिषायोलोकवद्यथालोकेहरिशाइलकसुजगादयोनिसर्गतको योियोहारादिसंपतिपत्तीवनतद्रत्युच्यतेनचासावाकस्मिकीकर्मनिमित्तत्वादनाक मिक्यापिसतीनैसर्गिकोभवतिपरोपदेशाभावात्तयहाय्यपरोपदेशपूर्वकेनिसर्गाभिषा कासपर साह भव्यस्यकालेननियसोपपत्तिरधिगमसम्पत्काभावः यद्यवधत मोक्षकालापागधिगमसम्पत्कवलान्माक्ष स्पातस्यादधिगमसम्पग्दर्शनस्पसाफल्य. नचादोश्त्यतः कालेनयोस्पमोक्षासोसनिसर्गजसम्पादेवसिहरतिनविवक्षितापरि शानालेतछतकुती विवक्षितापरिज्ञानातसम्पग्दर्शनादित्रया-मोक्षउक्तीतत्रय स्थमंतकातउत्यद्यतइत्युक्तनिसर्गादधिगमाहेत्ययमयोवविवक्षितः यदिसम्पग्दर्शना देवकेवलान्निसर्गजादाधिगमजाहाज्ञानचारित्ररहितान्मोक्षस्ट: स्याततर्दयक्तस्पा Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यंस्प कालेनंनिश्रेयसोपपत्तेरिति नचायमर्थोत्र विवक्षितः॥अथवा यथा कुरुक्षेत्रे क्वचित्कन कंवा ह्यपौरुषेयप्रयत्नाभावा जायते तथा वाह्यप्ररुयेोपदेशपूर्वक जीवाद्य धिगममतरेणयजायतेतन्निसर्गजां यथाकनकाप्रमाविध्युपायसमुरुषप्रयोगापेक्षः कनकभावमापद्यते ॥ तप्यायसम्पादर्शनंविध्युपायजमनुष्यसंपञ्चजीवादिपदार्थ तत्वाधिगमापेक्षमुत्पद्यतो नदधिगमजम्पग्दर्शनमित्ययमथेोविवक्षितः नचान्यत रस्याभावइति। अतो विवक्षितापरिज्ञानान्नसम्पग्रक्तमधिगमाभावइति कालनिय मानिर्जरयाः यतोनभव्यानी कुलक म्र्मनि पूर्व कमोक्षकालस्पनियमो स्ति केचिद्रव्याः संख्ये येनकाले नसेश्यति केचिदसंख्येयेन केचिदनंतेनअपरे अनंतानेते नापिनसेश्यंती तिततश्चनयुक्तं भव्यस्पका लेननिश्रेयसोपपत्तेरिति चोदनानुपपत्ते सर्व स्पेयं चोदना नोपपद्यते ज्ञानक्रियायाचितयाच्चमोक्षमाचक्षणस्पसर्वस्य नेदंयुक्तं भव्यस्पका लेनमोक्षइति । यदिहिसर्वस्पका लोहेतुरिष्ट स्पास्वाद्याांतरका रानियमस्पवृष्टस्पेष्टस्पवाविरोधः स्यात्तदित्यनंतर निर्देशायेतदित्येतदनंतरस्यस Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजवा- म्यग्दर्शनस्पनिदेशाक्रियतामनुजपकृतमंतरेगणपितद्वचनसिइतरायाहिमार्गसे बंधषसंग:मक्रियमाणोहितवचनेमोक्षमार्गापिसकतातेनाभिसर्वधःपस नोनिसर्गमात्रेणापिमोक्षमार्गलाभक्तास्याहाहलत्यपचिख्यापयिषयाचमोक्ष ममिििधगममात्रौदेवमिय्यादृष्टीनामपिमोक्षस्याताननचातरस्पविधिभिवति प्रतियधीचेत्यनतरत्याशम्पग्दर्शनेवसर्वधोन्याय्यपत्यासत्तेः पधानेचलीयइति मार्गशवसवध्येततरमातहचर्ननाक्रियतेविस्पटाइ निनवार्थवार्तिकेयारमाना बोकारवायमोध्यायेत्रतीयमान्हिक तत्वायत्रहीनसम्पग्दर्शनमिल्यक्त साव्यत्तित्वमित्यत्तस्दमाह जीवाजीवास्त्रवधसंवरनिगमोक्षारतले किमर्थमेयामपादानाननगव्यभिस्येववक्तव्यतद्भदाहिसवेपदायीभवतीतिअनउत्तर पठति एकाधनंतविकल्पोपपत्तीविनेयाशयवशान्मध्यमाभिधानाएकहीवयासे विषयान असाव्यया अनेनाइतिपदार्थाभिद्यतोत्तत्रैक पदाभिवति एकद्रव्यमर्न तपर्यायमितिवचनाराहीपदाजिीवाजीवमेदाराप्रयापदार्थाअर्या Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यभेदान/एवमत्वरेववचनविकल्पापेक्षयासंख्येयाज्ञानयज्ञेयविकल्यापेक्षया | असरव्ययाअनंताश्चभवनितऋविनेयाशयवशात्पदाधीनरूपगाभेदातिमध्यमे नक्रमेणाभिधानकातोरतिसक्षेपेसमेधसामेवपतिपत्तिःस्पादतिषपंचेचानिचिरेण संप्रतिपतिलस्यादिति कश्चिदाहाजीवाजीवयोरन्यतरत्रैयांतर्भावादास्त्रवादीनाम नपेशाास्त्रवाहिजीवावास्यादजीवीवायदिजीवीजीवंतर्भवतिअथाजीवेएवंसे वरादयोपितम्मादेवामनुपदेशोनर्थकउपदेशअनुपदेशनानवापरस्परोपरमधेस सारपततितदुपरमधानकारप्रतिपादनार्थवान्लवानर्थकउपदेश कुतःजी वाजीवयोनापरस्परोपलेयेसतिसारपत्तितदपरमप्रधानकारप्रतिपदानार्थ त्यादिहमोक्षमार्गप्रकृतः तस्यफलमवरपेमोक्षोनियध्यासकस्पतिजीवउपा जासंचसंसारपूर्वका संचसत्यजीवेजीवस्यभवानीत्यजीवउपात्तःतयोश्चप रस्परोपण्लेव संसारतत्सधानहेवमास्त्रवीर्वधरसपातीतदुपरमस्पमोक्षस्पषधानहेतूसंवरनिर्जरजसपादानतन्योरेवमेषानिनिसनिपधौय्यस्पमीक्षा Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ स्पप्रधान हेतू संवरनिर्जरेंद्र सुपादानंतयोरेवमेघां निर्ज्ञाने सतिप्राय्यस्पमोक्षस्पनि श्रनिभवतीतिदृश्यतेसामान्पेतभूतिस्यापि विशेषस्पष्टथगुपादानंप्रयोजनार्थक्षत्रि याप्रयाताः सूरवमयी तिउभयथापि चोदनानुपपत्तिः यो जीवाजी वयोरजर्भावा दास्त्रवादीनामनुपदेशं चोदयतितस्योभयथापि चोदना नोपपद्यते निजी वा जीवाम्पोष्टथग्रपलभ्पवा चोदयेदनुपलभ्यवायदिष्टथग्रपलभ्यातण्वत तोतरसिद्ध अथानुपलभ्पानुपलभादेव चोदनाभावः ॥ किंच जीवाजीवा यकदा वाचो दयेदा सिद्धान्वा "यदिसि दागे। दयेदतएवार्थेीतरभावः॥ अथासिद्धां श्येदयति कथमातर्भावश्वाद्यते नहि खरविवारणा दी नामतः भविश्या दनाई: प्र नेकांताच्च चोदनानुपपत्तिरितिवर्त्ततेकथं द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिक योजधान भावेनाणानरेणभेदा उती वा जीवयोरास्त्रवादी नास्यादतभविः स्यादनतर्भाविः प यायार्थिकगणभावे द्रव्यार्थिकप्रधानप्रादात्रवादिप्रतिनियत्तपर्या नादिपारिणामिव चैतन्या चैतन्यादिद्रव्यापिादास्त्रवादी नॉस्पा जी वे जीवे Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाँतर्भावितथाद्रव्यार्थिकगुणाभावेपर्यायार्थिकप्रधान्यादास्रवादिप्रतिनियतपर्या याथी- पेरणादनादिपारिणामिकचैतन्याचैतन्यादिद्रव्यार्थानर्यणादास्त्रवादीनां जीवाजीवयेोः स्पादनंतभविः तदपेक्षयास्यादुपदेशार्थवास्तेषां निर्वाचनलक्षणा क्रमहेत्वभिधानं तेषां जी बादी नोटथगपदेशे प्रयोजनमुकंदानी निर्वाचनलक्षण क्रमहेत्वाभिधानकर्तव्यं तदुच्यते त्रिकालविषय जीवनानुभवना जीव दसमुपा खयथेोपान्तप्राणपर्यायेयात्रिकालेख जीवनानुभवना जीवत्पजीवी जी विष्‍ तीतिवाजीवः तथासत्तिसिद्धानामपि जीवत्वंसिद्धा जीवित पूर्वत्वासंप्रतिनजी वंतिसिद्धाभूतपूर्वगत्या जीवत्वमेयामित्यैौपचारिकत्वस्यान्मख्यं चेष्यतेनैष दोषः भावः प्राणज्ञानदर्शनानुभव नासोपनिकमपि जीवत्वमस्ति अथवारूढिशब्दा रूढी चक्रियाव्यत्यर्थेवैति कादाचिचं जीवनमपेक्षासर्वपदाव- निगोशब्दव तू तद्विपर्ययजीवः यस्पजीवनमुक्तलक्षणां नासीतद्विपर्ययादजीवइत्यच्य ते स्त्रवत्यनेनास्त्रवणमात्र वास्त्रयः येनक मस्त्रिवति यद्वाश्रवणमात्रवः Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजधा. त्यनेनास्त्रवणमाञवास्त्रवत्रायनकर्मास्ववतिायडानवामाखवः वध्यतेनेनबंध ॥नमात्रेधार्वधःवध्यतेयेनाखतंत्रीक्रियतेयेनोवतंत्रीकरणमात्रेवाधसनि । तेनेनावरणमावातवर येनसंवियत्तेयेनसरुध्यतेसंरोधनमार्थवावर नि जीर्णतेययानिरिणामात्रधानिगिनिजार्यतनिरस्पतेययानिरसनमात्रेधा | निजगमोक्ष्यतेयेनमीक्षमामात्रेवामोक्षमोक्षमतेस्पतयनासनभावामोक्षः एजेषामितरतरयोगउक्त निर्वचनभिदानीलक्षापयन खात्तहिकल्पलक्षणजीवःजीवखभावश्चेतिनायतस्तरेभ्योदव्येभ्योभियते तहिकल्याज्ञानादयोयसैनिधानादात्माशाताहयकत्ताभीताचभवतितल्लक्ष गोजीवस्तहिपरीतत्वादजीवस्तदभावलक्षणातद्विपरीतत्वा • तज्ञानादानामभावोयस्पलक्षणेसोजावः कथमभावोनिरुपारच्या क्षणाभवतिलभावीपिवमुधर्मोहित्वंगत्वादविवत्तीसीलक्षायुज्यते सहियदिवलनोलक्षणनस्यात्सर्वसंकरस्यायद्येववनस्पत्यादीनामजीवत्वं Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रामोनितदभावात्॥ ज्ञानादीनां हि प्रवृत्तितउपलचिचते यांत स्पूर्विकाप्रवृत्तिरस्ति || हिताहितप्रातिपरिवर्जनाभावादुक्तं चखद्धिपूर्वाकियां हटाख देहे न्यत्रततात् मन्यते बुद्धिस ड्रामा नये खन तेषु धीरिति। नैष दोषस्ते वामपि ज्ञानादयः संतिस वैज्ञप्रत्यक्षा इतरेयामां गमगम्पाः आहार लाभालाभयोः पुष्टिम्लान्यादिदर्शने नयक्ति गम्पा चांडगर्भस्थ मूर्च्छिता दिवसत्यपि जीवत्वेतत्पूर्वक प्रत्यभावाद्धेतुव्यभिचार: प रायपायागमद्वार लक्षणास्रवः पुण्यपापलक्षणस्पकम् आगमनद्वारमास वइवात्रवः॥ कउपमार्थ भयथामहोदधेः सलिलमांपगामखैरहरापूर्यते तथामिथ्या दर्शनादिद्वारा नुप्रविधैः ॥ कर्मभिरनिशमात्मासमापूर्यतइतिमिथ्यादर्शनादिद्वारमा सवात्मकम्मरोरन्योन्य प्रदेशानुप्रवेशलक्ष बंधमिथ्यादर्शनादिप्रत्ययोपनी तानीकम्मप्रदेशानामात्मप्रदेशानां च परस्परानुप्रवेश लक्षण बंधः। बंधवबंध: कउपमार्थः यथानिगडादिद्रव्यर्वधनवहोदेवदत्तो वतंत्रत्वादभिषेतदेशगमनाद्य भावादतिदुःखीभवति तथात्मा कर्मबंधनवदुः । पारतंत्र्या छारीरमानस दुःखाभ्प Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ राजवा. द्वितोभवति आस्रवनिरोधलक्षणः संवरः पूर्वोक्तानामात्रबद्वा रागांशुभपरिणा मवशान्निरोधः संचरः संवर द्रवसंवरः कउपमार्थः यथासुगमसुसंवृतहारक बापुरंसुरक्षितंदुरसदमरातिभिर्भवति तथासु मिसमितिधर्मानुपेक्षापरीयह जयचारित्रात्मनः सुसंकृत्तद्वियक याययोगस्याभिनवकर्मागिमद्वारसंवरणासंवरः एकदेशकर्म्मसंक्षयलक्षणानि जरा उपात्तस्पकरयो एकदेशसंक्षय लक्षणानि निविनिर्जरा कउपमार्थ: "यथामंत्रौषधवला निजी वीर्य्यविपाकं विषंनदोषष दंतथास विपाकाविपाक निर्जराप्रत्ययतपोवि शेघेरपनि जीरिसंकर्मनसंसारफलप्रद । कृत्स्नकम्र्म्मवियोगलक्षणे मो शनादिहेतुप्रयोगषक वैसतिल नस्यकम्र्म्मरणः ॥ चतुर्विधर्वधवियोगोमाक्षा मो क्षमोक्षः कउपमार्थयथानिगडादिद्रव्यमोक्षात्सतिस्वातंत्र्येऽभिप्रेतपदेशगमनादे श्रगमनादेप्रमान्सुखी भवति तथा कृन कम्र्म्मवियोगेसत्तिखाधीनायेतिक ज्ञानदर्श नानुपमसुखमात्मानुभवतिलक्षणमुक्तमिदानी क्रमहेतुरुच्यत। तादयत्यरिस्पं Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + दस्या दो जीवग्न हयांयो यमोक्षमार्गतत्वाविष्करणपरिस्पंदनसभ्झात्मार्थ रतस्पमोक्षप ययिपरिणामाद्योवाजी वाद्युपदेशपरिस्पंदनासनात्मार्थस्तस्योपयोगस्वाभाव्येसति ग्राहकत्वाददी जीवनहरांतदनुग्रहार्थत्वा तदनंतरम जीवाभिधानयतः शरी वाङ्मनः । खारणापानादिनोपकारेणा जीवमात्मानमनुग्टन्हा तितस्तदनंतरमजी वाभिधानां तदुभयाभिधानत्वास्तत्सभी पेमाखवग्रहरणं यतःप्रात्मकर्मणोः परस्प रामले ये सत्या स्त्रवप्रसिद्धिर्भवतितरतत्समीपे शास्त्रवहणं तत्पूर्वकत्वाधस्य ततः परंबंधव चनंयतः आस्त्रवपूर्वकोवं धरततः परंवचनंतस्पक्रियतेसंटनस्यवैधा भावात्तत्प्रत्यनीकातिपत्यर्थसंवरवचनां यतः संवृत्तस्पात्मनोर्वधो नातितततत्य नीकपतिपत्यर्थ तदनंतरसंववचनं संवरेसतिनिर्झरोपपत्तेरतदनंतरे निर्जरावचनं यतः संवरपूर्वका निर्झराततस्त दंति के निर्जण्वचनं संप्राप्तत्वान्मोक्षस्यतिवचनं निजी कर्मचं ते मोक्षः प्राय्पत इत्यंतेवचनं पयपपापपदार्थोपसंख्यानमिति चेन्ना वेवंधेवातर्भावाश्या देत सुरापपापदार्थयोरुपसंख्यानं कर्त्तव्यं मन्यैरव्यक्तञ्चादिति Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नन्लर्फिकारसास्वेवंधेवोतर्भावाद्यात साखवावधश्चपण्यपापात्मकस्तचशब्द स्यभाववाचिवाजीवादिभिस्सामानाधिकरणपानपपपत्तिरतवशब्दोभाववाचीतिव्या ख्यातमेततात्मतरतस्यजीवादिभिध्यवचनै सामानाधिकरएपेनोपपद्यतनवाव्य तिरेकात्तद्रावसिद्धेनवानदोषः किंकारणामध्यतिरेकान्तद्रावसिद्धेलहिन्द्रध्याद्यति रिक्तोभायोरितामातरतावेनाध्यारोय्यते यथाज्ञानमेवालेतियदितावोध्यारोय्य तेतलिंगसंख्यातिप्रामातितल्लिंगसंख्यानुवृत्तीचोक्तंकिमक्तनोपात्तव्यक्ति वचनलादितिइतितत्वार्यवालिकेव्याख्यानालकारेषयमेध्यायेवतुर्थमान्हि । आएवंसंज्ञारवालक्षण्यादिभिरुदिानाजीवादीनोसंव्यवहारविशेषव्यभिचारनिव त्यर्थमाह।सूनामायापानाद्रव्यमावतस्तल्यासनीयतेगम्पनऽनेनानिमतिवा यमभिमरवीकरोतीतिनाम स्थाय्यतेपतिनिधीयतेसावितिस्थापनादोव्यतेस्पतेय णेन्द्रोग्यनिगमिव्यतिमानितिवाद्रव्यं भवनभवतीनिभावः नामादीनामितरेतरयोग लक्षणोईहानामस्थापनाद्गव्यभविन्नमिस्थापनाद्रव्यभावतलाधादित्वादृश्यतेन्य Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोपीतिवानसिमान्यसनंन्यस्पतरनिवान्यासोनिक्षेपनत्यर्थःगतेयोन्यासातल्या समारतेयांनामादीनार्किलक्षामित्यत्रीच्या निमित्तांतरानपेक्षसंशाकर्मनामनि मित्तादन्यन्निमित्तौतरंतदनपेक्ष्यक्रियमाणासंतानामेत्युच्यते यथापरमैश्वर्यल क्षोंदनक्रियानिमित्तांतरानपक्षकस्यचिदिवइतिनामसथाजीवनक्रियानपेक्षत्र छानक्रियानपेक्षवाकस्पचिजीवः सम्यग्दर्शन मितिवानामसायमित्यभिधत्वे नान्यस्यव्यवस्थापनामात्र स्थापनायथापरमैश्वर्यलक्षणोयशचीपतिरिद्रः सोय मित्यन्यवखुपतिनिधीयमानस्थापनाभवतिएवजीवरतिवासम्पग्दर्शनमिति अक्ष निक्षेपादिवसायभितिव्यवस्थापनामास्थायना अनागतपरिणामविशेषषतिग्य हाताभिमुख्यंगळयद्भाविपरिगामवासिंपतियोग्पताादयाननध्यमित्युच्यते अत द्राववालयवातावादध्यमित्यच्यतो यथेदार्थमानीतकारमिंद्रपतिमापयायपा मिपत्यभिमदत्यच्यतोलयाजीवसम्यग्दनिपर्यायपासितिग्रहाताभिठ व्यंगध्यद्रव्यजीवद्रव्यसम्पग्दर्शन मितिचीच्यतोऽयक्ततावत्सम्यग्दनिपानिपति Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा ग्टहीताभिमुरव्यमितिमातत्यरिणामस्यजीवस्यासंभवादिदंत्वयुक्तंजीवनपर्याय जावितिग्राहीनाभिमव्यमितिकुतः सदातत्यरिणामोद्यदिनस्यात्यागजीवः नोति नैयदोष मनव्यजीवावादिविशेवापेक्षयासव्यपदेशावदितव्यः॥ धमागमनोआगमभेदातदेतद्यहिविधंकुतःआगमनासागमभेदादागमद्व्य जीवनोपागमद्व्यजीवआगमद्व्यसम्पग्दनिमितिचअनपयक्तः य्यात्मागमअनुपयुक्त पातज्ञायागमद्गव्यमित्युच्यतइतरधिविधज्ञायक ' शरभावितद्यतिरिक्तभेदादितरलोमागमद्रव्यचैविध्यमारकंदतिकुतः।। . रीरभावितधातिरिक्तभेदात्माचर्यदरीरनिकालगीचरंतरज्ञायकशरीरंजी नसम्पग्दर्शनपरिणामपार्मिखत्यभिमखेदव्यभावात्युच्यतेतद्यतिरिक्तकर्मनी कम्मविकल्प वर्तमानतत्यर्यायोपलछितंद्रध्यभाव:विमानेनतेनजीवनसम्प ग्दर्शनपर्यायेणोपलक्षितगव्यंभावजीवोभावसम्पग्दनिमितिचीच्यतियथगना मकम्मेदियापादितेदनकियापर्यायपरिगान मामाभावेन्द्र सद्विविधः पूर्वव Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सण्यभावोद्विविधीवेदितव्यः।प्रर्ववदांगमनी भागमभेदात्तत्वातविषयोगावि विष्यमात्मागमजीवादिलातविषयेगोपयोगेनोविटनास्मागमतीभावजीवो भावसम्पग्दर्शनमित्तिचोच्यतीजीवनादिपर्यायावियोन्यजीवनादिपर्यायेणाधि एमात्माऽन्योनो आगमनोभावरत्कच्यतनामस्थापनमोरकवर्ससाकवि शेषादितिचेलादरानुग्रहाकाक्षित्वातस्थापनायास्यान्मनीलामस्थाय्यत्तरति तच्चनकतादरानुग्रहाकाक्षित्वाराथापनार्यायथाहदिंद्रवंदेश्वरादिषति माखादरानगहाकक्षित्वेजनस्पतयापरिभाषितेचतततोन्यवमनयोगव्यभाव योरेकरमव्यतिरेकादितिचेलाकचित्शाचालक्षण्यादिभेदसिद्धःस्पादार काव्यभावयोनिःकर्वषसज्यतिकुतस्तदव्यतिरेकाम्नहिन्ध्यव्यतिरेकेशामा वउल-पत्तेभावव्यतिरेकेशावाद्व्योमतीमयोरकत्वमिति तच्चनकत्तःशाखाल क्षयपादिदात्तद्भवसिहोरिहययोःसंज्ञारवालक्षण्पादिहतीभेदलयोलानाच मुपलभ्यततधाद्व्यभावयोरपीति कश्चिदाहद्रव्यस्पादीवचनन्याय्यतापूर्वक Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. खानामादीनोसतोहिसेशिनोनामादिभिर्भवितव्यमिनिनवदीयासव्यवहारहठवा सेनायाःपूर्ववचनर्सव्यवहारहेतवासंज्ञायामापूर्ववचन क्रियते सर्वहिलोक सेव्यवहारवासनापूर्वकस्त्रदात्मकत्वात्तदनात्मकलेवखच्यवहारविछेदः तदा मकवाच्चस्तुतिनिंदयोरागद्वेषपत्तिःसिहाततःस्थापनावचनमाहितनाम कस्पस्थापनोयपत्तेन्ततःयरथापनाविधीयतकत्तामाहितनामक । पनोपपत्तेः माहितनामकस्पसायततिर्किचित्यतिनिधायनद्रव्यभावयोःपूर्व परन्यासः पूर्वन्तिरकालमिवाद्यभावयोलायूपिरन्यासःक्रियतेकिं गणपूतिरेकालवृत्तित्वात्पूर्वकालविषयहिद्रव्यैउत्जरकालभावाभावरति खपल्यासतिपकधिकर्षभदाहातक्कमनाअथवातत्वपत्यासत्त-प्रकपिक यभेदानयानामादानीमद्दिष्टः क्रमोवेदितव्यः तत्वभावःषधानंतदर्थानीत गणितत्रपत्यासत्तरतत्समापेट्रव्यापयततावापत्तेतत-पूर्वरथापनीयादा नर्मतदावेपिनद्भावपतियधानहेतुत्वात्ततापूर्वनामोपादानभावप्रतिविपक Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ष्टत्वान्नामादिचतुष्टयाभावो विरोधात्या अन्नाहनामा दिचतुष्टयस्याभावः । कुतो विरो धादेकस्यशब्दा: र्थस्पनामादिचतुष्टयं विरुध्यतेयथा नामै के नामैवन स्थापना अ थनामस्थापना इष्यतेन नामेद्नाम स्थापना हिने चेयं स्थापना नामेदमं सोनामाई एको विरोधान्नस्थापनातथैकस्प जी वादेरर्थस्यसम्पग्दर्शनादेवाविरोधान्नामाद्यभाव इति नवा सर्वेयांसंव्यवहारंप्रत्यविरोधान्न वाएष दोयः किं कारणं सर्वेषां संव्यवहा रंप्रत्यविरोधात लोके डिसवेर्नामादिभिर्द्दष्टः संव्यवहारः इंद्रोदेवदत्तइति नामा/ प्रति मादिखचेद्रइतिस्थापनाइंद्रार्थेच काटे द्रव्येइंद्रसंव्यवहारः। इंद्र पानी नइतिवचना नागतपरिणामेवार्थेद्रव्यसंव्यवहारो लो के दृष्टः द्रव्यंमयंमारण्वको आचार्यः श्रेष्टीवैयाकरो राजावाभविष्यतीतिव्यवहारदर्शनाचीपतौ च भावेइंद्रनिच विरोधः किंचा अभिहितानववोधात्यथानामैकं नामैवेय्यतेनस्थापनेति प्राचक्षा गोनत्वया अभिहितानव वोधः ॥ प्रकटी क्रियतेयतो नैवमाचक्ष्महेनामै स्थायनेति किंत्वक स्पार्थस्प नामस्थापना द्रव्यभावैन्यसत्या चक्ष्म अनेकांताच्चनैतदेव 时 Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजव• * तेनप्रतिजानीमहे नामैव स्थापनाभवतीति न वास्थापना वानामभवत्तिनेतिचक थंमनुष्प ब्राह्मणवाद्यथा ब्राह्मणाः स्यान्मनुष्पः ब्राह्मणस्पमनुष्य जात्यात्मक नमनष्पसुब्राह्मणः स्पान्न बामनुष्प स्प नाह्मण जात्यादिपर्यायात्मकत्वादर्शना स्वतथा स्थापनास्यान्नामाक्तत नाम्नःस्थापनानुपपत्ते नमितु स्थापना स्यान्न वोभ यथादर्शनात्तथा द्रव्यै स्याड्रायः भावद्रव्यार्थ देशान्नभावपर्यायार्यादेशा द्रव्यंस्यान्नवानुभयथादर्शनाचंच अतस्तसि द्वेर्यतएव नामादिचतुष्टयस्पवि रोधंभवानाचष्टे अतण्वनाभावः कथमिहयोयंसहानवस्थान लक्षणो विरोधोब ध्यघातक वच्च सतामर्थानां भवत्तिनासनी का को लूक व छायातपवन का कदंत खरविद्यारणयेो विरोधोसत्वाकिंचनामाद्यात्मकचानात्मक त्वेचिरोधस्पाविरोधकत्व योनामादिचतुष्टयम्पविरोधः । सनामाद्यात्मको वास्पान्नवानुभयथा चविरोधाभा यदिनामाद्यात्मकः। नासी विरोधको दीनां विरोधकः नामाद्यात्मापि विरोधकः स्यात्ततो नामादीनामभावद्विरोधएवन Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पादधननामाद्यात्मकःएवमपिनामादीनानासौविरोधकार्यातरत्वादतिरभावेपि। विरोधकत्वमिव्यतेसवैयांपदार्यानांपरस्परतोनित्यविरोधःस्थालचासोवस्तीति नोविरोधाभावशातारापाडावस्पपामारपमितिचेलेतख्यवहारनिहन्तः स्यादेतत्ता दुरपानावरावषमाणाननामादि सजीवनादिर्यशीयस्यसतंडरगरतस्पभावरताराप अनोभावपवपमाननामादिलाहुरापाभावादितितन्तर्किकारामितव्यवहारनि हत्तेभएपहिसनिनामाद्याश्रयोव्यवहारोनिवतेतसचारतीत्यतीनभावस्येवघामाण्य मपचारिदितिचेलतणाभावास्यादतियद्यपिभावस्पेवनमारायंतयापिनामादिव्यव हारोननियततकतउपचारान्माणवकेसिंहशब्दव्यवहारविदितितन्नकिकारातही गाभावायुज्यतेमाणावकेसिंहशदव्यवहारकीर्यशोर्यादियणौकदेशयोगादिह तनामादिजीवनादियोकदेशोनकश्चिदय्यरतीत्यपचाराभावाद्यवहारनिवृत्ति स्यादेवमुख्यसंपत्यययसंगाच्चयापचारान्नामादिव्यवहार: स्पादोगमव्ययामध्ये संपत्ययइतिमयस्पेवसंप्रत्ययःम्पान्लनामादीनायतरत्वर्थखकरणादिविशेषलिंगा Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा. भावेसर्वत्रसंपत्यय अविशिष्टाकतसंगनेर्भवत्यतीननामादियूपचाराद्यवहारः कृत्रिमयो कृतिमेसंपत्ययोभवतीतिलोकेतद्यथागोपालकमानयकटेजकमानये तियस्पेयासंशाभवनिसानीयतेनयोगापालयतियोवाकव्जातवमिहापि यस्पैयाजीवादिरितिसंज्ञाकृतातस्पैवसंपत्ययःस्यालेतरेखामितितन्लकिंकारणाम मयगतिदर्शनातालोकेत्यिकरणहाकृनिमेसंपत्यय: स्पादयविाअस्पेर्वसंश केनभवतिसकतवातत्रभवतीदमेवंसंज्ञकेनकर्तव्यमित्यतश्चारिसकरराहा, केसैपत्ययोभवति गहिभवान्याम्पेयांशुलशुरपादकमपकरणज्ञमागतंब्रवी , पालकमानयकटेकजमानयेतिउभयगतिरतस्पभविष्यतिर्किंचानेकोता कोत: कृत्रिममेवेदनकृत्रिममेवेतिर्कितीनकातीनामसामान्यापेक्षयास्पार्दकृत्रि मविशेयायेक्षयाकृत्रिम एवंस्थापनादयश्चेति ततः किंकृत्रिमाकृत्रिमयीकृत्रि मिसंपत्ययइत्यस्याभावाकिंचानययविषयत्वा दोनयोद्ध्यार्थिक,पर्यायार्थि का पर्यायार्थिकश्चतयोविषयोनामादिन्यासरत-. Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यात्मकत्वात्याश्चात्यस्पभावनापरिणतिपधानत्वात्ततः किंगोरगमरव्ययोमरव्येस प्रत्ययःकृतिमालत्रिमयोकृत्रिमर्सप्रत्ययइनिचनभवतिप्रतिविषयनयभेदाध्यार्थि पर्यायार्थिकांतभावान्तामादीनोनयोश्चनयशव्दातिधेयत्वात्योनरुक्ताप्रसंगायतो नामस्यायनागव्याणिद्रव्यार्थिकस्याभावनापर्यायार्थिकस्पेसक्तंततोनामादीनानयो तर्भावान्तयचिकल्यानांचवक्ष्यमागत्यात्यानरुक्तंसामोतिनवाविनयमतिभेदाधीनला द्यादिनयविकल्पनिरूपरणस्पनवारवादीयःर्किकाराविनेयमनिमेवाधीनत्वाह्यादि नयविकल्पनिरूपणास्पयेसमेधमोविनेयारलेयोद्धाभ्यामेवव्यार्थिकपर्यायाधिका भ्यासर्वनयवक्तव्यार्थप्रतिपतिस्तदंतभवाघेवतोमंदमेघसरलेयाच्यादिनयविकल्प निरूपणामतोविशेयोपयत्तेन्नमिादीनामपनरुतत्यानछदामहराषकतत्वासम्प ग्दर्शनादित्रयस्यपकत्तलादेवनामादिन्यासाभिसर्वधस्तछब्दस्पग्रहयामनर्थकोष त्यासलत्वाचीवादिषषसंगइतिचेलसम्पग्दर्शनविषयत्वात्यास्यादेतत्तछादाद्वि नापत्यासन्ताजीवादयोलेवामवन्यासाभिसंबंधीभवेन्नसम्पग्दर्शनादीनांकुतः Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजवा. अनंतरस्यविधिभिवतिपतिषेधोवेतितन्नतिकारणसम्यग्दर्शनं विययत्वासम्पम्दर्श नादित्रयस्यपाधान्येनोपदेशस्तदर्शयत्वछास्त्रारंभस्यसम्पग्दर्शनादिवयत्येमतजी वादीनांगणातखेनोपदेशः अतःस्तछवाहत्तेपिसम्यग्दर्शनादित्रयस्पखाधान्यान्ना मादिन्यासेनाभिसंबंधोयक्तःविशेयातिदिएखाचाजीवादयसम्यग्दर्शमविषयखेन विशेयेगानिदिव्या सकृतसम्पग्दर्शनादित्रयनवाधिय्यत विशेषातिदियाः सक तनवाधंतद्रति सर्वभावाधिगमार्थदनुसईयाभावानाजीवादीनामधानानाप्रधानांना चसम्यग्दर्शनादीनामधिगमार्थतर्हितछब्दयाहयामितरयाहिपधानाभिसर्वधरवः चरावमजीवादिसुज्ञानचारित्रयोख्यनामादिन्यासविकल्यायोजयितव्याअधिकृता नामेचसम्पग्दर्शनादिजीवादीनोपदार्थानामभिधानाभिधेयसंव्यवहाराध्यभिचाराय नामादिभिलिक्षिमानांतच्चाधिगमहेनुर्वक्तव्यइत्यतमाह। नयोधिगमः०० प्रमाणनया: राधिगमोभवातिसम्पग्दर्शनादीनांजीवादीनाषमाणनयावक्ष्यमागाल क्षरणः नमुचनयशब्दस्याल्पाचूरत्वात्पूर्वनिपातेनभवितव्य अभ्येहितित्वात्पमाणशा Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शस्यश्वनिपातोवेदितव्यः कयम पहितित्वंषमाणापकाशिरतेवर्थेवनयपतेर्व्यव हारहेतुत्वाद पहनायतः खमाणाधकाशितेवनयपतियवहारहेतुर्भवतिनान्ये यवतोस्याभ्यार्हितत्यसमदायांवयवविषयवाहाअथवासमुदायावयत्वाद्वानयवासम दायविययंत्रमाणामवयवविषयानयारतिसमारणस्याभ्याहितिखोजथाचोक्ती सकलादे || शः समाराधीनोविकलादेशानयाधीनइतिश्नधिगमहेनहिविधः स्वाधिगमहत्तु: पराधिगमहेतुश्चवाधिगमहेतुज्ञानात्मकःषमागानयविकल्पनापराधिगमहेतु वचनात्मकरतेनक्रताव्यनषमाणेनस्यावादनयसंस्कृतेनप्रतिपर्यायसहभगीमती जीवादयः पदार्थासधिगमयितव्या सत्राहकैयसमभंगीत्यत्रोच्यत्ता प्रश्नवशा देकरिमन्चनुन्पविरोधेनविधियतिवेधविकल्पनासमभेगीएकस्मिन्वस्तुन्यविरोधे नषश्नवशाटेनरेनचप्रमाशोनाविरुहाविधिप्रतिवेधकल्पनाससभेगीविज्ञेयात| घथा।पारघटःस्पादघटस्पारघटश्चाघनश्चस्यादवक्तव्यन स्याहत्तश्वावक्तव्यश्च स्यातघनश्यावक्तव्यश्चेत्ययितानतिनयसिहनिरूपयितव्यातरवारमनास्याह Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. परमात्मनास्पादघटनाकोवाघटस्पस्वात्माकोवापरामा घखद्यभिधानपतिलि |गावात्मायत्रतयारसत्तिसपरामापतादिःखपरात्मोपादानापोहन व्यवस्थापा घंहिवखनोवखत्वंयदिखलिम्पटाद्यात्मध्यातिविपरिशातिलस्यात्सर्वात्मनाघनद निध्यपदिश्पत अथपरामनाव्याहत्तावपिखार गावदवरत्वेवस्यादद्यवानामस्थापनाद्ध्यभावेषयोविवक्षितःसवात्माइत्तर:पर स्मात त्रविवक्षितारमानाचटोनेतरात्मनायदीलरात्मनापिघटः स्याद्विवक्षिता घटनामादिष्यवहारोछेदासादयवातत्रविवक्षितघराब्दवाच्यसादृश्य. संधियकर्मिश्चिदविशेोपरिग्टहीतेषतिनियतीयासस्थानादिहसःस्वात्माइ तर परास्मातत्रपतिनियतेनरूपणघटोनेतरेणयदीतरालकः स्यादेकघटमात्र पसंग: सामान्याअयोव्यवहारोविनश्पेदवातस्मिन्नेवघदविशेषेकालांतरावस्था यिनिपूर्वोत्तरकुशूलातकपालाद्यवस्थाकलापपरामातदंतरालवत्तीखारमारते नेवघातकर्मणराव्यपदेशदर्शनान्नेतरास्मानायदिहिकुशलोतकरालाद्याम Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नापिघटन स्याहटावस्थायामपिनदपलाथर्भवेदत्यत्तिविनाशार्थपरुशापरुषपय लफलाभावश्चानयज्यतमयोतरालवतिय-यात्मनाय्यघट स्पाइटकृत्यैफ. लेनोपलभ्येता अथवासतिक्षांद्रव्यपरिणामोपचयापचयभेदादातरोपपत्तेः राजसवनयापेक्षयापत्यत्पन्नघटखभावनखात्माघवपर्यायवातीतोनागतश्व परात्मातेनपत्युत्पन्लखभावेनसत्तासघटोनेतरेगासत्तालथोपलखनपलचिस दावादितरथाहिपत्यत्पन्लवदत्तीसानागतात्मनापिघटवेएकसमयमात्रसर्वस्यादती तानागतवहानत्यत्यन्नाभावेघवाश्रयव्यवहाराभावापद्येतविनष्टानत्पन्नघटव्य वहाराभाववदयवातस्मिन्यत्सत्यन्लविषयेरूपादिसमदयेपरस्परोपकारवर्तिनय यवनाद्याकारःखात्माइतरः परात्मातेनयशवनाद्याकारेशासघटोक्तिनेतरण घटव्यवहारस्पतद्भावभावात्तदभावभावाद्यदिहिएयवघ्नाद्यात्मनापिघदोनस्पास एवनस्पादयतरात्मनापिघवः स्यात्तदाकारशून्येपिघल्व्यवहाराः सायादथवा रूपादिसनिवेशविशेषः संस्थानंतत्रचक्षयाघटोग्य्यतइत्यस्मिन्व्यवहारोरूपमा Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. खेनघटोप्यतइतितिरूपस्यात्मारमादिः परास्मासघोरूपेशालिनतरेणारसादि नापतिनियनकरणाबाह्यत्वादयहिचक्षवाघदोग्यतइत्यत्ररसादिरपिघटइति घेतसवैयारूपत्वसंगततश्चकराँतरकल्पनानार्थिकायदिवारसादिवद्धपमपि घटनतिनग्धेतचक्षविषयतास्पनस्यातमथवाशब्दभेदेझवार्थभेदइनिघदक। दादिशब्दानामय्यर्थनेदः घटनाहुदाकोटिल्याल्कुटतितक्रियापरिणातिक्षण एवतस्पशब्दस्पत्तिर्यातत्रघटनक्रियाविषयकलभाव खात्माइतरः पराम नत्राद्येनघटोनेतरेगातथार्थसमभिरोहराधदिचघटमक्रियापरिणतिमखेना प्यघटः स्यात्तद्यवहारनिति स्याद्यदिचेतरव्यपेक्षयापिघट स्यात्पादिव्य पितक्रियाविरहितेयतछब्दहत्तिः स्यादेकशब्दवाच्यछवावस्खन अथवाघर शब्दप्रयोगानंतरसत्पद्यमानउपयोगाकार श्वात्मामहेयत्वादतरंगत्वाचवा टाकार परमात्मानदभावपिघटव्यवहारीदर्शनासघटउपयोगाकारणास्तिना न्येनयदिछपयोगाकारात्मनाय्यघटीस्पात्रोलहेतुफलभतोपयोगयता Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राभावात्तद्धीनो व्यवहारोविनाशमाप्नुयादितरोऽ सन्निहितोपियदिघटः स्यात्पतादी नामपिस्याटत्वषसंग अथवा चैतन्यशक्तेर्द्धावा का रौज्ञाना कारो ज्ञेया कारश्यातु पयुक्तंप्रतिर्विवाकारादर्शतलवत्ज्ञा नाकाराः प्रतिविद्याकारपरिणतादर्शतलज्ञेया काररतत्रज्ञेया कार• ॥ वात्मानमूल-त्वादव्यवहारस्यज्ञानाकारः परात्मासर्वसाधा रगात्वात्सघटो ज्ञेयाकारेणारित नान्यथायदिज्ञेया कारेणाय्यघटन स्यात्तदाश्रयेपि कर्त्तव्यतानिरासस्यादथहिज्ञाव नाकारेणापिघटन स्पात्पदादिज्ञानकालेपित संनि धानाद्धटव्यवहारवृत्तिः प्रसज्येत उक्तैः प्रकारैरर्पितंघटत्वमघटत्वंचपरस्परतो | नभिन्नं ॥ यदिभिद्येत सामानाधिकरण्येनतदुद्ध्यभिघानप्रवृर्तिन्न स्पाट पटवत्ततश्रे ||तरेतरे विनाभावे उभयोरप्यभावात्तदाश्रयव्यवहारपन्हवः) कृतः स्पादत्तस्तदुभया त्म की सौ कमेणतछन्दवाच्यतामारके दनस्याश्वाघच्यते यदितदुभया मर्कवसुघटत्येव येतइतरात्मासंग्रहाद्मत्वामेवस्यात् अथाघटएवेत्फच्यतेघ नात्मानुपादानादन्यतमेवस्यात् नवखता वदेवेति नचान्यः शव्दस्तदुभयात्मावस्थ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा | तत्वाभिधाविद्यतो अतीतीघटोवचनगोचरातीतत्वाश्यादवतव्यइत्यूच्यते,घटा मार्यशामधेनउतावक्तव्यस्वरूपनिरूपणेनचादिपमानःसरावार्थदतिस्याद हरचावक्तव्यश्वनिरूपिताघट गर्सगेनपदर्शितावक्तव्यवमनाचापदेपस एवार्थदतिस्यादघटथ्यावक्तव्यश्चातदुभयाभिधानक्रमाक्रमायणावादोधि तित्तद्यपदेशाःसरावार्थःस्पाघटवाघटनावक्तव्यश्वभवति एवमियेससर्भ गीजीवादिषसम्पग्दर्शनादिषचगव्यार्थिकपर्यायार्थिकनार्यशाभेदाद्योज यितध्यातवद्यार्थिकैकोतलनिश्चिततवनमततदेवेत्यवधारणादुन्मत्तव त्यर्यायाधैकातोपितथैवातहखतदेवत्यवधारणादुन्मत्तवरूपाहादीनिश्चित्ता था अपेक्षितयाथातथ्यवस्सुवादित्वादनुनमन्तवचनवदवक्तध्यैकोतोय्यस हादास्ववचनविरोधात्सदामोननतिकवत्य अय्यार्थः स्यादवक्तव्यवादश्व क्तव्यावक्तव्यवादित्वात्सत्येतरवचनविशेषज्ञवादनकोतेतदभावादव्यामि "रितिचेलातत्रापितापयत्ते: स्पादेतदनकोसाविधषतिषेधधिकल्पना Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नास्ति यदि स्याद्यदाने को तो नभवति तदाएको त दोषानयं गोभवेदन वस्था प्रसंगव ततस्तयाने कांत त्वमेवेति सासमभंगी व्याप्तिमतीनभवतीतितन्नकिं कारणं । तत्रापित दुपपत्तेः स्यादेकीतःःः स्यादुभयः स्यादवक्तव्यः स्यादेको तश्या वक्तव्यश्व स्पादने को तश्वावक्तव्यवस्थादे कोनवाने की तश्या वक्तव्यश्चेतितत्कथमिति चेटुच्यतेः ष मागानयागादै भेदादे कांते द्विविधः सम्यगे कांतीमिथ्यैकांतइति अनेकांत द्वि विधः सम्पाने को तो मिथ्याने कांतइत्तित्तत्रसम्पगे को तो हेतु विशेषसामर्थ्यापेक्षः प्रमाणरूपिताथैकदेशादेश: एकात्मावधारणे नान्याशय निराकरणप्रवण्ड यिधिमिध्ये कोतः। एकत्रमप्रतिपक्षाने कधम्मस्वरूपनिरूपणः । युक्तागमाभ्या मविरुद्धः सम्पगनेकीत रतदत्त स्वभाववत्परिकल्पितानेका मकं केवलंवाग्वि =तानंमिथ्याने कांतः तत्रसम्पगेकोतोनयइत्यच्यतेसम्पगने कोतः प्रमानपापी देकोतोभवतिएकनिश्चयप्रवणा वारप्रमाणा पाइने कांतो भवति अनेक निश्व याधिकरणत्वाद्यद्यने कांत अनेकांतएवस्पान्नैको तोभवे वे कांताभावात्तत्समूहात्म Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ एजवा. कस्पातस्याय्यभावस्था शारखाद्यभावेवृक्षाद्यभावकत्तदविनाभाविशेषनिराकरणारा मलोपेसर्वलोप: स्यादेवछत्तरेच गायोजयितव्या कलमात्रमनेकांतइतिचेनछ ललक्षगाभावीस्यान्मतंतदेवास्तितदेवनास्ति तदेवनित्यं तदेवानित्यमितिचानेका तसरूपांछलमात्रमितितन्तकुतःछललक्षणानावार छलस्पहिलक्षणमतव चनविघातार्थविकल्पोपपत्याछुलमिति यथानवकंवलायरत्यविशेषाभिहितेथें। वक्तरभिखायादोतरकल्यनंनवास्पकवलानचत्वारइनिनवोवास्पर्कव... इतिनवकैवलनतथानकांतवादः यतउभयपणजधानभावापादितार्पितव्य . रसिद्धिविशेयवललाभपायितयुक्तिपरकलानिकोतवाद: संशयहेतुरिति । विशेयलक्षणोपलश्चस्यामते संशयहेतुरने कोतवादः कथमेकत्राधारेविगे . नेकस्यासंभवादागमश्वेर्वपवताएकंद्रव्यमनतपर्यायमितिकिमागमषा स्तिवानातिवानित्यवानित्यवेतितञ्चनकरमाद्विशेषलक्षणोपलोरिहसामान्यप त्यक्षाहिशेषापत्यक्षाद्विशेयतेश्यसंशयः तद्यथा स्थाणुपुरुयोचितेदेशोनाति Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Boara सकाशोधकारकलवायांवेलाया त्वमात्रसारूय्यपश्यतीवक्रको_रवियोययोनिलय नादानस्थाणुगतान्विशयान्वस्वसंसयनशिरकयनशिखाबंधनादीन्युरुवगनाश्च । नपलभमानस्पतियांचरमरतः संशयउत्पद्यतनचतहदनेकांतवादेविशेयानुपल श्चियतःखपराद्यादेशवसीकृताविशयामाव्यताप्रत्यर्थमपलम्पसातताविरोयो पलश्चलसंशयहेतुरितियदगदिमतत्सम्पन्निरवैमएचमयिसंशयः कथमिंदताव दितिपयव्यनारयामस्तित्वादीनांधीगणीसाधनहेतुसैनिधानेसतिभवितव्यसंशयेने तिउच्यतेविरोधाभावशंशयाभावयदिविरोधीभविष्यशेशयोगजनिय्यतनचविरो। धोनयोपनीतानांधम्मीगोमतिकुतापर्यशाभेदादविरोधः पितापत्रादिसंबंधव दत्तादयेणाभेदादेकत्राविरोधनावरोधोधमायापितापत्रादिसर्वधवत्तद्ययकम्प देवदत्तस्पजातिकुलरूपसंज्ञाव्पपदेशविशिष्टस्पपितापुत्रीमाताभागिनेयइत्येवंषा कारागसंवेधाजन्यजनकत्वादिशातपायगाभेदालविरुयतेनोकापेक्षयापित ति शेयापेक्षयापिपित्ताभवतिग्रोवापेक्षायावापनादिव्यपदेशाहइत्युक्तायेक्षयापि Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजवा तापुत्रादिकृतसंवैधवहर्वदेवदत्तस्पेकत्वेनविरुध्यत तहदरिल खादयोनयोतिविरोधमेकत्रमपक्षासपक्षापेक्षोपलक्षितमत्वादिभेदोपचितकधर्मव हा अथवासपक्षासपक्षपेक्षयाउपतक्षितानासबादीनाभेदानामाधारणपक्षधर्म गोकेनकल्सर्वव्यंनिरपेक्षयोकत्रवादिपतिवादिषयोगापेक्षयासंशयउक्तः इतरथाहिपक्षधर्मपिसंशय:कल्पताएकस्यहेतीसाधकद्यकत्वाविसंवादवद्वा अथैवमुपपन्त्या विरोधेसतिपादितपिमिथ्यादर्शनाभिवेशातत्वनपतिपद्यतेयस्लेष तिसार्वलोकिकहेतुवादमाश्रित्योच्यतेन्द्रहवपक्षमर्यादानक्रमेणन्यायधर्ममनपाल यतावादिनाभितप्रतिज्ञार्थसिहिमार्शमताहेवनपदेणेसर्वाभिलषितार्थसिद्धिः प्रतिज्ञामात्रादेवमालापदितिप्रतिपसगरीयनिहत्तययोहतरुपदिश्यतेससाधको दुयकश्शवपक्षसाचयतिपरपसंदूषयनिनननीसाधनद्यार्थीहनोरन्यीभवतः नचाननाघमरतीतिकवपिनसाधकरतेनयकायेनवादूयकतेनसाधकानतयोसंकरीविरोधोवा एवंसयिषविरोधदोयमनदति विसर्यत्यनकोतपक्रियेति सर्व Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . पवाद्यविपतिपत्तेश्यनावपतिवादिनीविसंवदंतएकमनेकात्मकमिनिके चित्तावदाह सवरजस्तमांसाम्यावस्थाजधानमितितेयाप्रसादलाघवयोयतायावरणासाधना विभिन्न स्वभावानांजधानात्मनामियश्चनविरोधगमथमन्येथानानपधाननामेकं गणेभ्योछीतरभूतमंतिकिंनतरावगरमासाम्यमापन्तानपधानारख्यालभंतरति यद्यर्वनमाजधानस्यारस्यदितत्यासमदायमाप्रधानमेकमितिमातरवाविरोधः सिद्धःयगानामवयवानांसमदायस्पचालियरमन्यता अनुत्तिवाभिधानलक्ष सामान्यविशेषइतितेयाचसामान्यमेव विशेषत्रासामान्यविशेषरतिएकस्यात्म नःउभयात्मकंनविरुध्यनाअपराहमावादिपरमाणुसमदायोरूपपरमारणरि नियोककवडावादिभिन्ललक्षणानारूपात्मनामियश्चनविरोधाअथमतनप रमारा मेकोलिवाह्यतिविज्ञानमेवताकारपरिणतपरमाराव्यपदेशाह मित्युच्यते अनापिनाहकविषयाभाससंवित्तिशक्तित्रयाकाराधिकरणास्पेकस्पा पगमालविरोधः॥किंचासवेवमिवतेयापूर्वतिरकालभाव्यवस्थाविशेयार्यरणा Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. . . स्पकार्यकारणाशकिसमन्चयोनविरोधास्यास्पदमित्यविरोधासिहावंस णनयैरधिगतानाजीवादीनीषनरय्यधिगमोपायानरपदर्शनार्थमाहानिर्देश खसाधनाधिकरणस्थितिविधानतःकेखनरिमनिर्देशादयः .. मिलमाधिपत्य साधनकारणी प्राधिकरणप्रतिष्टास्थितिः कालक विधानपकार-अधिगमइत्यनुवर्तते एतिरेतेभ्योवाधिगमः पूर्ववत्तसिः • गमःजीवादीनासम्पग्दर्शनादीनांचासतर्हितयानिर्देशाः कर्त अर्थर्वशद्विभक्तिपरिणामोभवति तद्यथा उच्चनिदेवदत्तस्पग्रहारपामंत्र खेनंदेवदत्तमितिगम्पूते (अयकिमर्थमादीनिर्देशउच्यते अवधनार्थ ल्पपतिपत्रादीनिर्देवचनखूरूपेगावटतस्पार्थस्पस्वामित्वादिकाधर्मवि निपत्तिर्भवति यतोऽस्पनिर्देशाम्पादोवचनक्रियते इतरेयोपनवशाक्रमीद • खादीनाप्रश्नवणक्रमोवेदितव्यायद्येवसण्वतावदुच्यताकोजीवर 'तउपशमिकादिभावपर्यायोजीवीपीयादेशावक्ष्यमारराउपशमिकादिभाव Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्यायोजीवन्त्युच्यतेपर्यायादेशार द्रव्याधीदेशालामादिजावरत्यच्यतेतदुभय' संग्रहातमागतस्याभयस्पसंग्रहः।समारणनिदेशदराच्यतेकस्पजीवानस्परिशा मस्यभेदादग्नेरीलसपरिणामायस्पसायनत्यरिणामस्तस्यासोव्यपदिश्पतेकुतः कथंचिद्रेदात्परिणामपरिपगामिनोभेदकल्पनासनावात अग्नेरौनक्तद्यथा लात्मकस्पाग्नदहनपचनखेदनादिक्रियासामर्थ्यमौतभेदेनोच्यताध्यवहारनय वशासवैया जीवादीनीसवैधापदार्थानांव्यवहारनयवशालीवास्वामीकिसाथ नोजीवापारिगामिकभावसाधनोनिश्चयतायोसीजीवात्मापारिगामिकरत साधनाजीवानिश्चयनयनतेनासोवारमानंसर्वकाललभतइनि उपशमिका दिभावसाधनश्चव्यवहारतः व्यवहारनयवशादीयशामिकादिभावसाधनश्यति व्यपदिश्पतेचशब्देनशक्रशोणिताहारादिसाधनश्यंकिमधिकरगोजीवशाख पदेशोधिकरणोनिश्चयतःायोसीखपदेशअसल्यानखरूपनकर्मकृतशरी रपरिमारणानविधायित्वेपिअपरिखामहीनाधिकभावरतदधिकरगोजीव रखा - - - Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा मप्रतिष्ठाकाशवयवहारतः॥शरीराधियानः कर्मापात्तशरीरमेतच्चाधिकरण मात्माव्यवहारनयवशादधितिष्यतीतिउच्यते किंथितिकोजीव स्थितिस्तस्पद्र व्यपपिक्षानाद्यवसानासमयादिकाचा तस्पजीवस्यस्थितिमाद्रव्यपर्यायापेक्षा विधाकल्य्पत्तिाद्रव्यायेक्षाऽनाद्यवशानाजीवद्रव्य हिचैतन्यजी . व्ययपदेशादिसामान्यदिशान्तप्रच्यचतासर्वकालमितिपर्यायस्नुअन्य तितदपेक्षासमयादिकाकल्प्पत्तिकिमस्पविद्याननारकादिसंख्ययोसंख्ययानंत पकागजीव:नारकादय: सैख्यया असंख्ययाअनंतषकाराभिद्यतेजीवस्पन यतरेखामागमाविरोधानिर्दशादिवचनतेनैवप्रकारणागमाविराधैनैतरेखामजी वादीनोनिदेशादयोवक्तव्यारतद्यथासजीवस्तावशाखापर्यायाहितीनामा दिश्चाजीवत्मेिवाजीवस्यवामीजीवोवाभोक्तत्वारा पहलानामणत्वादिसाधन भिदादितन्निमित्वाकालादिधर्मधर्मकालाकाशनौगतिस्थितिवर्तनावगाहहे उत्तापारिणामिकीअरुलघुग्रानुग्रहीताखात्मभूतसत्तासर्वधाजी। Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वातदपेक्षत्वाद्रत्यादिहेतुताभिव्यक्तेः। श्वात्मैवाधिकरणां सर्वद्रव्याणां स्वात्म व्यवस्थि तत्वादाकाशं सारासाधारणंचघटादि जलादीनांस्थितिव्यापेक्षानाद्यवसनाप यायापेक्षा समयादिकाविधानं धर्मादित्रिकंप्रतिनियतानादिपारिणामिकद्रव्याथी ||देशादेके कंपर्यायार्थिकनयादेशाट्ने कं। संख्ययानं ता नांद्रव्यासांगति स्थित्यवगा हनाद्युपकारपर्यायादेशाश्यादेकं स्पादने के स्पाशं रखेयंस्यादसंख्ये यंस्यादनंतका लःसंख्या संख्येयोनंतश्चभवति। परप्रत्यया युगलद्गव्यरूपस्पर्शा दिपारिगामि कद्रव्यार्थदेशात्स्यादेकं प्रतिनियतॆ कानेक संख्ययासंख् या नंतप्रदेशपर्यायादे शास्वादने के स्पासंख्यंस्यादसंख्ये येस्यादनंतं प्रसवनिर्देश: कायवाङ्मनः क्रि यापरिया मोनामादिवजी वो स्पस्वामी कर्मवातन्निमित्तित्वात्सात्मैवसाधनंशुद्धस्य तदद्भावात्कर्मवासतितस्मित्तेरधिकरणात्मनेवासीत्त्रतत्फलदर्शनात्क ||मणिकर्महत्तेचकायादावुपचारतः स्थितिर्वा नसास्त्र वयो जघन्येनैकसम यः ॥ उत्कर्षेण महतः कार्यासवस्य जघन्येनात्तमुहूर्तः उक्तवैरणानंतकालः Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. असंख्यया पडलपरिवत्ती-विधानवाङजनसास्ववयोश्चतुर्विकल्पसव्यसत्यम्स योभयानुभयभेदाक्कायास्त्रवः सप्तविध उदारिकवैक्रियिकाहारकमिश्र भेदादोदारिकोदारिकमिश्रकीमनव्यतिरण्यावक्रियिकक्रियकमिश्रकीदेव कागोसाहारकाहारकमिश्रकोर्सयतानाम्यद्विधामानांकामगाकायास्त्रवाविन हापन्लानोकेवलिनीवासमहानगतानीअथवास्त्रवस्पत्रकार यिकः हिंसान्यतयाब्रह्मादिवपत्तिनिवृत्तिसंझावाचिकापरुयाक्रोशवि शुनपरोपघातादिषवचस्मप्रवत्तिनिवृत्तिसंशः मानसोमिथ्याश्रुतेथ्योस्पादि खमनसः सत्तिनिटत्तिसंज्ञावधनिदेशजीवकर्मखदेशान्यान्यसंश्लेयोवंध: नामादिवासजीवस्यतत्रत्तत्फलदर्शनाकर्मणश्चत्तस्पहियत्वान्मिय्यादर्शनाविर तिषमादकषाययोगार्वधस्पसाधने 'धिकरणं भवतिविवक्षात:कारकहते स्थिति जघन्योकृयाचातिब्रजघन्यवे दनीयस्पद्वादशहूर्ता:नामगोत्रयोरटोशेषाणामतमहतकियाज्ञानदर्शना Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरावेदनीयांत राया खांश साग रोम कोटी के द्यः मोहनीय स्पसमतिन्निमि गोत्रयोर्वी शतिस्त्रयस्त्रिंशश गरोपमा एपायुषः ॥ अथबाबंधसंतानपर्यायादेशाश्पादनादि रेनिधनश्चाभव्यानोभव्या नोच के घोचिद्येनतेनापि का लेननसेश्येतिज्ञानावरणां |दिकर्मात्यादविनाशाश्यात्सा दिवासनिधनः विधानंवंधसामान्यादेशादेकः। द्विवि धः शुभाशुभभेदात् विधाव्यभावोभयविकल्पात् चतुर्द्धा प्रकृतिस्थित्यनुभाग प्रदेशभेदात्यं वधामिथ्यादर्शनादिहेतुभेदातः घोढानामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकाल भावैः। समधात्तैरेवभवाधिक अष्टधा ज्ञानावरणादिमूलप्रकृतिभेदादेवंसंख्ये यासंख्येयानंतविकल्पश्र्वभवति हेतुफलभेदाशंवर निदेशः प्रास्त्रवनिरोधाना मादिवजीवोस्पखामी कम्मवानिरुध्यमानविषयत्वान्निरोधस्यसाधनं मिसमि तिधम्मदियखामिसंबंधाईमेवाधिकरणामि फक्तं स्थिति जघन्येनांतहत उ त्कृष्टापूर्व कोटी देशोना विधानंएकादिरयोत्तरशातविधः ततउत्तरश्वसंख्ये |यादिविकल्पः निरोध्यनिरोधक भेदाद्वेदितव्यः तत्राष्टोत्तरशतविधउच्यते ति Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा· खेलमयः॥ पंचसमितयः धमेदिशविधः) अनुप्रेक्षाद्वादशपरीबहाद्वाविशतिः त यो द्वादशविधंप्रायश्चित्तं नवविधंः विनयश्वतुर्विधः । वैयावृत्येदशविधंखाध्या यः पंचविधः व्युत्सर्गोद्विविधः ॥ धर्म्यध्यानदशविधंशुक्तध्यान चतुर्विधमि तिनिर्जरानिर्हे सभयथाविपाकात्तपसे वाउपभुक्तवीर्यकम्र्मनिर्जरानामादिवसा आत्मनः कर्मणवाद्रव्यभावभेदतः साधन तयोयथाकर्मविपाकश्च अधिक र्जरात्मैदवास्थितिर्जघन्यनेक समयः उक्तर्षे गोतमूहर्त्तः सादिः सपर्यवसानावा: विधानेसामान्यादेकानिर्जरा, द्विविधायथा कालक्रमिक भेदा दष्टधामूलक प्रकृति भेदादेवसंख्यासंख्ययानंतविकल्पाभवति कर्मरसनि हरेणाभेदान्मोक्षनिर्देश: कलकर्म संक्षयो मोक्षो नामादिर्वात स्पस्वामी परमात्मा मोक्षामै बवासाधनसम्यग्दर्शनज्ञानचारिचारि॥ खामिने बंधार्ह मेवाधिकरांत द्विषय चाखित्तिस्तस्पसादिरनिधानाविधानं सामान्यादे कोमोक्षः द्रव्यभाव मोक्तव्यभेदादनेकः सम्पग्दर्शन निर्देशन त्वार्थ श्रद्धानसम्पम्दर्शनंनामादि २० Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -malinton N IMAamananesana निस्सनरात्मनस्वस्यैववादर्शनमाहोपशमादिसाधनोवायचोपदेशादिस्वात्मावा स्वामिसंबंधाभागेवाधिकरणोस्थितिजघन्येनोतर्मुहर्तभ उत्कर्यायवष्टिसा गरोपमाणिमातिरेकरणि अथवासोदिसनिधनो अपशमिकक्षयोपशमिकेसी द्यनिधनंक्षापिकंविधाना सामान्यादेकहिधानिसर्गजाधिगमनभेदाविधाअप प्रमिकक्षायिकक्षायोपशमिकल्पादेवसेरययानंतविकल्पचभवतिनध्यवसा नभेदातासाननिर्देशजीवादितत्वपकासनमानेनामादिवीतदात्मनः खाका रस्पवाशानावरगादिकर्मक्षयोपशमादिसाधन खाविर्भावशक्तिर्वाधिकरण खात्मारवाकारोवातत्रप्रतिष्टानास्थितिमासादिसनिधनक्षायोपशमितानं चनर्विकल्पसधिनिधनक्षायिकंविधानसामान्यादेकंज्ञान प्रत्यक्षपरोक्षभेदा द्विधाहव्यगणापर्यायविषयभेदाविधानामादिविकल्पाच्चतुझमत्यादिभेदात्य। चधाइत्येवसेरव्येयासंख्येयानेतविकल्पंचभवतिभेदाचरिव्रनिदेशाकर्मादान कारणानिहन्तिश्चारित्रनामादितित्सनरात्मनःस्वरूपस्पवाचारित्रमाहीपश A Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. मादिसाधनवशक्तिर्वारखामिसंबंधभागेवाधिकरणीस्थितिजघन्यनातमहतलक घेणापूर्वकोटीदेशोनालयवासादिपर्यवसना अपशमिकक्षयोपशभिक सा द्यपर्ययवसानंक्षायिकंशुद्विव्यतपपेक्षधाविधानसामान्यादेकद्विधावाद्याभ्यं तरनित्तिभेदात्रिधाअपरामिकक्षायिकक्षायोपशमिकविकल्या. चतुर्थमभेदारपंचधासामयिकादिविकल्यादित्येवसंख्येयासव्ययान्तविक ल्पचभवति परिणामभेदाक्षिमेतेरेवजीवादीनामाधिगमोभवतिउतान्योय्यधि गमायायोरलीनिपरिएएमालस्तीत्याहासत्संख्या मात्रस्पर्शनकालाजारभाषा न्यवहलेचा अधिगमदत्यनुवतिषशंसादिषसछन्दहते इच्छात: सद्भाव ग्रहणेसछब्दःपर्शसादिवत्ततेतद्यथाप्रशंसायोतावशत्पुरुषः सदश्वश्वे निक्वचिदरिजलेसटा सत्पटइतिक्वेचित्यतिज्ञायमानेषनाजित सत्कथम • भूयात्सवजितहतियज्ञायमानइत्यर्थक्वचिददिरेसचत्यातिथान्नोज तिमाहत्येत्यर्यातत्रेहेछातसड़ावोग्यताअव्यभिचारात्सर्वम्लत्वाच्च Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस्पादोवचनसत्वं व्यभिचारिसर्वपदार्थासत्ताव्यभिचरतियदिव्यभिचरेहावि झानगोचरातीत: स्यातायणास्त्ररूपादयोज्ञानादयश्चकेतचिसैतिकेयचिन्न सतिक्रियांचपरिस्पैदात्मिकाजीवपद्लेथलिनेतरेल्वेनिनव्यातिमती सर्वयाच विचाराहगामस्तित्वमूलतेनहिनिश्चित्तस्यवस्तुनउत्तरार्चितायुज्यतेलातम्जस्या दीवचनक्रियतेोसत:परिणामोपलश्चःसव्यायदेशः सनोहिवखनसंख्या तानंतपरिणामोपलवेनासख्याताद्यन्यनमपरिमाणावधारणार्यसंख्यानेदल क्षगाउपदिश्यतेनिज्ञातिसत्यस्यनिवासविपतिपत्तेजनाक्षेत्राभिधाननिश्चये नज्ञानतव्यस्पार्थस्यावधिनियग्निवासविपतिपत्राद्यन्यनमनिश्वया यो क्षेत्राभिधानभवस्थाविग्रोवस्वैचित्रिकालविषयोपण्लेषनिश्चयार्थ स्पर्शनं अवस्थाविशेषाविचित्ररत्र्यप्रचतुरस्त्रादिलस्पत्रिकालविषयमप लवौस्पनिकस्पचित्तक्षेत्रमेवस्पर्शनांकस्पचिद्रव्यमेवकम्पचिजवःप डयोवेति एकसर्वजीवसंनिधौतलिश्चयातदुच्यतस्थितिमतोवधिय mital Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. रिछेदार्थकालोपादानस्थितिमत्तीर्थस्यावधिपरिछेत्तव्यइति कालायादानक्रियते ५२ . अंतरशब्दस्पानेकार्थत्तश्चि. गः कचिछिद्रवर्ततेसातरकारीसछिद्गमितिकचि भतइतिक्वचिन्मध्येहिमवशागरोत्तरइतिवचिशामीप्यस्फटिकस्पष्ठकर कायतररलस्यतहाततिशुलरक्तसमीपास्यस्पेनिगम्यते क्वचि. वारणलोहानोकाटपाषाणावाससानारीपरुयतोयानामतारमहदतरमितिम हान्विशयत्यर्थावचिहहियोगेनामस्यांतरेपारतिक्वचिदुपशमरव्याव्या नेतरेशाटकाइतिक्वचिहिरहेअनभितश्रीटजनेतरेममंत्रयतेत हिरहेमंत्रयतत्यर्थनातहलिगमध्यविरहेवन्यतविदितव्य वीर्य स्पन्यावेपनरूद्धतिदर्शनातचने अठपहनवीर्यस्पदव्यस्यानिमित्त वशात्कस्यचित्पर्यायस्पन्यग्नावसतिननिमितीतरत्तस्यैवाविभावदर्श दत्तरमित्युच्यतेपरिणामंषकारनिर्णयार्थभाववचनउपशभिकादिः). Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ maina मपकारोनिन्नत पंडनिभाववचनक्रियतेसैख्यानाद्यन्यतमनिश्चयेय्पन्योन्यवि यषतिपत्यर्थमल्पवहत्ववचनसंख्यातादिश्चन्यतमेनपरिमाणेननिश्चेताना मन्योन्यविशेषमतिपत्यर्थमल्यवहत्ववचनक्रियतेइमेराभ्योऽ ल्यारमेवह वदत्याहनिदेशवचनाशत्वप्रसिद्धसरग्रहणनिदेवचनादेवसत्वंसिहनास तोनिर्देश तितरमादसदहणमनर्यकंसदहरामसडहर्णनवावास्तिक नास्तीतिचतुर्दशमार्गगास्थानाविशेषणार्थवालवारावदोष किंकारणों नानेनसम्पग्दर्शनादसामान्येनसत्वाच्यतीकितगतीद्रियकायांदिचल ईशाखमार्गास्थानेषवास्तिसम्पग्दर्शनादिचनास्तीत्येवेविशेषणार्थसह चनासर्वभावाधिगमहत्त्वाच्चाधिकृतानोसम्यग्दर्शनांजीवादी चनिद्देश वचनेनास्तित्वमधिगर्तस्यात्वनधिकृत्ताजीवपयोयाःकाधादयसयोवाजी वपर्यायाः वशीदयोघनादयश्चेतेयामस्तित्वाधिगमाषनर्वचन: अनधि छतत्वादितिचेन्नसामर्थ्यास्यादेशदनधिकतारलेलतानपनर्यक्तमेयोग्रहण Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ५३ W मितित्तन्न किं कारणं सामर्थ्यान्तेयामपिग्ग्रहशांभवति विधानग्रहणानार्थत्वा त्वास्यादेतद्विधानग्नहरणादेव संख्या सिद्दिरिति तन्न किं कार सांभे दग गानार्थत्वात्व कारगरणनहित ड्रेदगणाना श्रमिदमुच्यतेः उपशम सम्पादयश्यतः । क्षायि कसम्पदृष्टयर तावतइति । क्षेत्राधिकरणायोरभेदइतिचेन्नाक्तत्वाश्यादेतद्यदे वाधिकरणं तदेवक्षेत्र अतस्तयोरभेदात्पथग्रहण मनर्थक मितितन्न किंका रोमक्तार्थत्वादुक्तमेतत्सर्वभावाधिगमार्थत्वादितिक्षेत्रे सति स्पर्शनोपलचेर युघटवत्यथगग्रहणं यथे इसतिघटेक्षेत्रे बुनोवस्थानात्तन्नियमा हुटस्पर्शन मन ह्येतदस्तिघटेड अवनिष्टतेनचघर्टस्टशती तित्तथाकाशक्षेचे जीवावस्था नियमादाकाशे स्पर्शनमित्तिक्षेत्राभिधानेनै वस्पर्शनस्यार्थग्ग्रहीतत्वात्य्यथग्ग्रह शामनर्थकं । नवाविषयवाचित्वान्नवाएष दोषः ॥ किंकारांविषयवाचित्वाद्विषय वाचीक्षेत्रशब्दः यथा जाजन पदक्षेत्रे वत्तिष्टत्तिन चक्र से नेतु लग्नविषयमितित्रैकाल्यगोचरत्वाञ्चयथासांप्रतिके नीबुनासोप्रतिकंघट Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेत्रेस्टमेनातीतानागतनवमात्मनःसापतिकक्षेत्रस्यर्शनस्पर्शनाभिप्राय:स्पर्श, ||नाभिप्रायः स्पर्शनस्पत्रिकालगोचरवार स्थितिकालयोरीतरत्वाभावइतिचेन्न मख्यकालास्तित्वसंप्रत्ययार्थस्यादेतस्थितिरेवकालकालरावस्थितिरित्यतोना ख्यभयारोतरभावइतितन्नकिकारगामख्यकालास्तित्वसंखत्ययार्थपुनःगका लग्रहणाद्विविधोहिकालोमख्योव्यावहारिकश्यतितमरव्यानिश्चयकालाप योयिपर्यायावधिपरिछेदोव्यावहारिकातयोरुत्तरत्रनिलयोवक्ष्येतोउक्तच. किमतसर्वभावाधिगमहेतुत्वादितिनामादियभावग्रहणात्यनर्भाधायहणामिनि चिन्तापशमिकाद्यपेक्षत्वातस्यादेतलामादिषभावगाहणंकृततेनैधसिहत्या पिनविगाहणमनर्थकमितितन्नकिकारांऊपशमिकाद्यपक्षत्वात्पूर्वभावग्रह गणेद्व्येनभवतीत्येवेपरमिदत्वोपशमिकादिवक्षामाणभावापेक्षर्किसम्पग्दर्शने अपरामिक्षायिकमित्यादिविनेयाशयवशावातत्वाधिगमहतुविकल्यः यवासवैयामेवपरिहार विनेयाशयवशहितत्वाधिगमहेतुविकल्पावेदितव्यः Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• हिस्तरेखाइतरथाहिप्रमाणहरणादेव सिद्धेरि तारेखामधि । गमोपायानीग्रहणमनर्थकंस्पादिति ॥ इनित्तत्वाचा निकेचथमेध्यावपंचम कंसमाते । एवंसम्पदर्श स्पादावुपदिष्ट स्पलक्षणो त्यत्तिस्वामिविषय न्यासाधिगमे। : तत्संबंधेनचजीवादीनांसंज्ञापरिणामादिनिर्दिष्टं तदनंतर मिदानी, सम्पज्ञानविचाराही मित्याह ॥ मति कताच चिमनः परयि के क्लानि ज्ञानं ॥ मत्या दयइत्तिकरातेशव्दाःमतिशब्दाभावक टंकरणसाधनः), अयमतिश दो भावकी वेदितव्यः। मनेर्भावसाधनेक्तिः तदावरणकर्मक्षयोपश मिसती द्वियापेक्षमर्थस्पमननमतिः॥२ []] ऊदासीन्येनतत्त्वकथनाद्वहलापेक्षयाक साधन: करणसाध नोवामनुते यन्मन्यतेनेनेतिवामतिः भेदाभेदविवक्षोपप तेष्टश्रुतशब्दः कर्मसाधनश्च किंचपूर्वोक्त विषयसाधनश्चेतिवर्त्ततेऋतावरणक्ष योपशमायेत रंगवहिरंग हेतु संविधाने सतिश्रूयतेम्मेतिकर्तकन्तरिश्रुतपरिणत आत्मैवटरीतिश्रुतभेदविवक्षायांश्रूयतेनेनेतिश्रुतंश्रवणमात्रेवाः अवपू Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पदधाने कर्मादिसाधना किःकर्मादिसुसाधनेश्चन्यतमेकिरयंचेदितव्यः वधिज्ञानावराक्षयोपशमाद्यभयतुसंनिधानेसत्यवधीयतेवाग्दधाति अचा गधानमात्रंदावधिःअवशब्दोध:पर्यायवचनमाययाअधीक्षेपणामवक्षेपण मिति अधोगतभ्योगध्यविषयोधवचे अयवावधिर्मर्यादाअवधिनापति वज्ञानभवधिज्ञान तथाहिवक्ष्यते रूपिव्ववधैरिति सवैयाप्रसंगनिचेन्न रूदिवशाह्यवस्थापपत्ते गौशब्दहर्तिवरमनापतीत्यसनिसंधायवाशा नमनापर्ययातदावरणकर्मक्षयोपशमादिद्वितयनिमित्तवशात्परकीयमभी गतार्यज्ञानेमनःपर्यय:भावादिसाधनत्वंपूर्ववद्वेदितव्यंकर्थमनसतीत्यप निसंघायवाज्ञानमित्यत्रोच्यतेपरकीयमनसिगतामनइत्युच्यतेनास्यात्ताछद्यमितिसचकमा मनोगताोभावघटादिरतमधेसमतादेत्यावलव्यवखतसादाम नोज्ञानमनपर्ययमतिशामजसैगतिवेलाअपेक्षामात्रत्वात्स्पादितन्मनः पर्ययाज्ञानमनिशानेसासकतमनोनिमित्तत्वादेवहिआयीत्रक्रियामनसाम Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा नःसंपरिचिंत्येतितलतिकारमपेक्षामात्रत्वातखपरमनोपेक्षामात्रंतत्रक्रिय तेययात्रेचंद्रमसंपएपेतिनतकार्यमतिज्ञानवयात्मशुद्धिनिमित्तत्वादनस्ये तिवाह्याभ्पतरक्रियाविशयान्यदर्थकेवंतेतकेवलंतपःक्रियाविशेबान्ता उननसकायाश्रयान्वास्थान पंतश्चितपःयदर्थमर्थिन केवतेसेवतेत वलंध्यत्पन्लोवासहायार्थ केवलशब्द यथाकेवलमनभुक्तदेवदन्त इतिअसहायव्यंजनरहितं तिइतिगम्पत्तनधाक्षायोपशमिकशानासय कैमसहायकेवलमित्यव्युत्पन्नायशब्दोद्रयव्याकरणादिसाधनोशानशा व्याख्याताअयंज्ञानशब्दःकरणादिसाधनरनिव्याख्यानपुरमादितरे तदभावातरेयामेकांतवादिनातस्पज्ञानस्पकरणादिसाधनचनोपपद्यते "मितिचेदुच्यतमात्माभावेज्ञानस्पकरणादित्वानुपपत्तिःकरभावा यामात्मानविद्यनेनेयाज्ञानस्पकरणादित्वेनोपपद्यतेकत कारभावात्सनि : छेत्तरिपरशोरकरणावहातथाचात्मन्यसतिनास्पकरत्वं त . Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावसाधनलमपिनोपपद्यतेज्ञानिनिमितिनासतिभाववतिभावरतिस्यादेना नातीनिज्ञानमिनिकटसाधनत्वमिनितन्ननिरीहकत्वान्तहिनिरीहाकाभावकल त्वमारकंदतिनिरीहकाचसर्वेभावाः॥किंचपूर्वोत्तरापेक्षस्पलीकेकरीवहनचत स्पज्ञानस्पपूर्वोत्तरापेक्षारितक्षणकत्वादत्तोनिरपेक्षस्पकर्टवभावः किंचकरण व्यापारपेक्षस्पलोकेकटत्वंहष्टनचज्ञानस्यान्यत्करणमलिमतोस्पकत्वमापी नोपपद्यतेश्वशक्तिरेवकरणमितिचेन्नशक्तिमद्भेदाभ्युपगमेयात्मारितित्वसिद्धेः अभेदेचसदोयलदवस्थाएवेनिसंतानापेक्षयाकरीकरणभेदोपचारइतिचेन्लप रमाविपरीतत्त्वेम्टया वादोपपत्तेभेदाभेदविकल्पनयोरुक्तदोयससंगाचमन श्चेद्रियं चास्पकरणमितिचेन्ततस्पतछत्तयाभावात्मनस्तावलकररगविनष्टत्वा तयणार्मनंतरातीतविज्ञानयहितन्मतइतिवचनान्नेद्रियमय्यतीतंततरावनाय्य पजायमानस्पकररणत्वनाहिंसव्यवियागीयगपजायमानमितरस्यविधागास्प करगीभवति। किंचजकत्यर्यादन्यस्याभावाशाइत्यस्पा सकतेरववोधन Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजावा. मनतस्मादन्यः कश्चिदोस्तियः कलखमनुभवरानोस्पकरीत्वाभाः वाकिंचएकक्षणावियययत्करीवंतदनेकक्षणगोचरोच्चारणअजन्मनाक लेशव्देनकायमच्यता कर्यवायमेकक्षणेसत्वाचकःस्यासतानावस्थानाहा च्यावाचकभावसंबंधइति चेन्नतस्यपतिविहिनत्वालयमतमेतत्रस्वात्प तितानारनवृष्टिरंवाध्यमेवहितत्वमिय्यतो अव्यापारेयहिसर्वधम्मेयवाय. ॥वहारोनारत्येवेनितदपिनोपपद्यते खवचनविरोधात्तत्वप्रतिपत्फयायापन्ह वपसंगाचा किंचा जानातीतिज्ञानमितिकलसाधनत्वेनोपपद्यतेकतोविशेया तुंपलञ्चेनायेनहिकरीसाधनलमवगतकरणादिसाधनबंचतेनेदेयज्यतेव कुकरीसाधनमिदनकारणादिसाधनमितिनचक्षणिकवादिनः . वार्तिज्ञानविकल्पनाया अनवधारितोभयखभावस्पतहिशेयोपलचिरतिन हिशुक्लेतरविणेयानभिज्ञस्पशुलमिदननीलादीनिविशेयगामपपद्यते अलि त्वय्यविक्रियाम्पतदभावोनभिसंबंधादात्मनश्प्रस्तित्वेपिज्ञानस्पकरणाद्यभावः Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतोनभिसंबंधाद्यस्यमतमात्मनोज्ञानारख्योगमारतस्माचार्यातरभूत-पादि यमनार्थसन्निकर्याद्यन्निय्यद्यात नदन्यदिनिवचनादितितस्पज्ञानकरगांनभवि, तुमहीतिकुतगरथगात्मलाभाभावादृष्टाहिलोकेळेतुवत्तातिरभूतस्यपरणे लेहागौरवकारिन्यादिविशेषलक्षणोपेतस्यसत: करणाभावः नचतयाज्ञान स्यस्वरूपैययापलभामहोकिंधापेक्षाभावादृष्टीहिपरशोहिवदताधिष्टिताद्य मननिपतनापेक्षस्पकरणाभावशानचतयाज्ञानेनकिचित्कटसाध्यक्रियातरंस मपेक्ष्यमस्तिचितत्यरिणामाभावाछेदनक्रियापरिशतेन हिंदेवदत्तनतक्रिया याया।साचिव्येनिपज्यमान परशुरुकरणमित्येनद्यक्तीनचतयारमाज्ञानकि यापरिणात अतिरत्वेतस्पाशत्वादिहयझानादन्यद्भवतितदहटा यथा || घटादिदव्या तयाचशानादन्यसात्मेत्यञ्जवनसंग सानयोगाइबंदृष्टत्वाई दिवदितिचेन्नतखभावाभावेसंबंधनियमापयतिरिदियमनोवत्रज्ञखभावा भावैसत्यात्मन्येवयोगोनमनसेंहियेगवेतिनियमाभावः यतसिहयोश्चदमिर्द - Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ५७ डिनो से वधो दंड स्पचप्रसिद्धस्य चैप्रै ससनो विशेषणमात्रत्वेनोपादानादात्मनश्च तुटुत्पत्तौ हित विचारणाविक्रियोपपत्तेरसाम्पे उभयेोश्राज्ञयेोः संबंधेय्य त्वप्रसंगो दृष्टत्वात्यंधयेो: संबंधे दर्शनशक्ताभाववत् किं च इंद्रियमनः प्रसंगाद्यदिज्ञायतइति किंचउभयोर्लिक्रिया त्वात्सर्वगतस्य तावदात्मनः कि | यानातिनापि ज्ञानस्पक्रियावत्त्वेद्रव्यस्पैवलक्षणमितिवचनान्ततः क्रियावि रहित्तस्पकथं कर्त्यत्वं करण चैवास्यात्यस्यापिमतमन्यत्तगुणाव्यतिरेकात् दः परुयोनित्यश्च निर्विकारत्वादितिितस्पतानंकरा नभवितुमर्हति कुतः अनभिसे बंधा द्यावुद्धिरिद्वियमनी हे कारमहहृत्प्रपनीता लोचनसे कल्यामि मानाध्यवसायरूपासाप्रकृतिः परुषः पुनरविक्रियः शुद्धश्वतस्यसाक रोक र्थस्याचियापरिणातस्पहिदेवदत्तस्प लोके करण प्रयेोगेो दृष्टत्येवमा दियो ज्येनापिकले साधनत्वंडा ज्यते लोके हिकरणत्वेनप्रसिद्धस्या से शतप्रसं सापरायामभिधानप्रवृत्तौ समीक्षितायोनै गोरख काठिन्याहितविशेषो यमे Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विछिनतीतिकर्लधर्माध्यारोपः क्रियतेनचतयाज्ञानकरणखेनपसिद्धमरित) पूर्वदोधोपपत्तेः मतोस्पकर्टलमयक्तीनचभावसाधनखमपपत्तिमा अवि क्रियस्पतत्परिणामाभावादिक्रियाखभावस्पहिवस्खननंदुलादिविलेदादिदी| नात्यचर्नयाकत्येवमादिभावदिशोयुक्तोनाकाशस्येति चिफलाभावाताज्ञा निहिषमारामिटमारगेनचफलवताभवितव्यनचाववोधनमंतरेशाफलमन्यदा पलभ्यतोतस्मादन्येनज्ञानेनभवितव्यंयमित्रसतिसाशातिरववोधः फलमा मनोभवति तच्चनारत्यतीनभावसाधनवंमधिगमश्वाचनभावोत्तरमितिफले खामारापोपचारारतिवायुक्तंगरख्याभावादात्फलप्रमाणपरिकल्पनाचायका आकारावत्तीभेदाभेदयोरनेकदोयोपपतनिर्विकल्पकत्वाञ्चतत्वस्याकारक ल्पनाभावशवायवरत्वकारापोहे अंतरंगाकारालपपत्तिश्चेतिजैनेंदारणांतप रमविसर्वशेषगीतनयभंगगहनप्रपंचविपश्चितास्पाहादलकाशोन्मीलित शानचक्षवामेकरिमन्नय्पर्यनेकपर्यायसैभवादुपयधतइतिविम्यष्टाछमें Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ राजवा. |वतन्मत्यादीनां ज्ञानशब्देन प्रत्येकमभिसंबंधोऽजिवद्यया देवदत्तजिनदत्तगुरु दत्ताभोज्यतामितिदेव-त्तादी नोभुजि नौपत्येकमभिसं वेधोभवतिएवमिहापिस स्पेकमभिसंबंधः मतिज्ञानंश्रुतज्ञाने अवधिज्ञानं केवलज्ञानमिति सत्यपित सामानाधिकरण्ये उपात्तलिंगसंख्यत्वात्तलिंग से ख्य पादानंनास्तीत्युक्तं परस्ता तश्वंतत्वाद ल्यात्तरत्वादल्यविषयत्वामत्तिग्न हा मादौ मतिरित्येतत्पदंश्वत |मल्याचूर यावध्यादिभ्यो विषयश्वास्या ल्पाश्चक्षुरादी नोप्रतिनियतविषयत्वा तस्मादस्पा दीगृह क्रियते तद्नंतरं ततत्पूर्वहितमि निययतेतनम्त दनंतरश्वत कृयतेइतच्च विषयनिबंधननुल्पत्वाच्चमतिश्च नयोनिबंधोद्रव्ये व्वसर्वपर्यांयेवितिवक्ष्यते। अतस्ततुल्पत्वाच्च तदनंतरंश्रुतं तत्सहायत्वाच्चय | यानारदपर्वतः यत्रपर्वतस्तत्र नारदः परस्परपरित्यागात्तथामतिष्ठत्तयोः परस्परापरित्यागः यत्रमतितत्रयुतंयत्रतंत्तत्रमत्तिरितिप्रत्यक्ष त्रयम्पा दावधिवचनंविशुद्यभावात्सत्यपिमनिश्शुनाभ्यो प्रत्यक्षत्वादिशुद्धत्वे अव Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धिरौपदिष्टं प्रत्यक्ष ज्ञानमपेक्ष्यअवधिन्नविशुद्धरत तो स्पषा उपन्यासस्ततो विव दुत्तरत्वान्मनः पर्ययग्नहरणं ततोवधेर्मन:पर्ययज्ञानं विष्णुत्तरं किंकृतोपवि शुतरां किंक्ल तो स्पविश्वद्विप्रकर्षः संयमगुण सन्निधान कृतः अतोस्पनदनं तरंगहां ते केव लग्नही ततः परंज्ञानप्रकर्षाभावात्सर्वेषां ज्ञाना नोपरि छेदने केवल सामर्थ्यादस्य चान्येन ज्ञानेनापरिच्छेदद्य त्वान्नातोऽन्यत्प्रकृष्टं ज्ञानं मरती तित्ततः परंज्ञानखक भावस्तेनैवसहनिवरणाच्च यत्तश्र्व केवलेने बसहनिवक्षायोपशमिक ज्ञानैः सहा तोते के वलग्गा हर कश्विदाहम तिश्शुप्तयोरेकत्वसाहचर्यादेकवारखानाच्चाविशेषान्मतिश्चत्तयोरेक लंपा भौतिकुतः साहचर्यादेकभावस्था नाच्चाविशेषान्ना तरन शिद्धेनाविशेषःकु ततस्तसितएवमतिश्वतयोः साहचर्यमेकचावस्थानंची व्यतेस तएवविशेषः सिद्धः प्रतिनियतविशेषसियो हिंसाहचर्यमेकत्रावस्था नवज्यते नान्ययेति तत्पूर्वकत्वाच्च मतिपूर्ववतमितिवक्ष्यते ततश्वा Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नयोर्विशेष यतपूर्वयच्चपश्चात्तयोकथमविशेयः तिसरावाविशेष कारणासह शछाकगपडतेतिचेलातएवनानात्वार स्यादेतद्यतोमतिपूर्वकत्वमतरवा शेयःकुतःकारणासहशत्वाकार्यस्य कर्थतंतुपटवद्यथाशुलादितटकार्य पटद्ध्येशुक्लादियामेव तथामतिकार्यवाछुतस्यापिमत्यात्मकत्वंयुगपढनेश्व यथाम्नावोमप्रकाशनयोगपद्धत्तेरन्यात्मकत्वंतथासम्पग्दर्शनाविर्भावादनंत रंयगपन्मतिश्चतयोनिव्यपदेशदत्तोरविशेषइतितन्नतिकारशर्मितरावना नात्याद्यतएवनानात्वाद्यतरावकारणामइसत्वयमपत्तिश्च चोच्यतेसतराव नामावसिईद्योहिंसाहर्ययगपत्तितिविषयाविशेषादिति चेलमहाभ दाश्पादेतहिययाविशयान्मतिश्चतयोरेकत्वमेवहिवक्ष्यतेमतिश्रुतयोरेकत्वमेवहि वक्ष्यतेमनिश्चतयोर्निर्वयोगटोव्यसर्वपर्यायेवितितन्तकिंकारगारग्रहगाभेदाद न्ययाहिमत्याग्रह्यते अन्यथाश्रुतेनयोहिमन्यतेविययाभेदादविशेषानितस्यै कघटविषयदर्शनस्पर्शनाविशेष:स्पात उभयोरिद्रियानिमित्तत्वादिनिचेन्लन Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ manaKIR AMANASAnima... सिद्धत्वानास्पादेतदुभयोरिट्रियानिद्रियमिनिनवादत: करनिमित्तत्वाचनदर्भय निमितितलतिकारशामसिहत्वाजिदाहिशब्दाचारक्रियायानिमित्तनज्ञानस्पथ वगामपिस्वविययमतिज्ञाननिमित्तनश्चतस्पसभयानिमित्तत्वमसिइंसिहोहेतुः साध्यमर्थसाधयेलासिहाकिनिमित्तंतर्हितमनिद्रियनिमितोऽथीवगमः। नविलियविधिोइंद्रियानिद्रियवलाधानात्पूर्वमपलशेर्थेनोइंद्रियजधान्याद्या स्पद्यतेशानंतद्यतेझानंतछुतईहादिवसंगतिचेनावग्रहीतमात्रविययत्वात्स्या देतदीहादीनामपिशुनश्व्यपदेशसासरतेय्यनिद्रियनिमित्तारतितन्नतिकारणाम वग्टहीतमात्रविययत्वादिद्रियगावग्रहीतीर्थरतमात्रविययाईहादयः शतंपन। तहिययतर्हिवतंत्रपूर्वविषयगकंघटमिद्रियानिद्रियाभ्पोनित्रित्यायघटइति तजातीयमन्यमनेकदेशकालरूपादिविलक्षगामपूर्वमधिगछत्तियत्तळुतं नाना सकारार्थप्रकारार्थपपणापत्यत्तद्वानुसथवारेद्रियानिद्रियाभ्यामेकजीवमजावं योपलभ्यतत्रससरव्याक्षेत्रस्पर्शनकालांतरभावाल्यवहत्वादिभिन सकारेरपरू Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. पोकर्तव्येयत्समनछुनं श्रुत्वावधारणाकुनमितिचेलमतिज्ञानपसंगात त्याप देवधारयतितकुत्तमितिकेचिन्मन्य नेतन्नयतकात:मतिज्ञानपर्सगान्तदपिशब्दश्चत्वा गोशध्दीयमितिपतिपद्यते असाधारणननामलक्षणेनभवितव्यश्चनपनस्तस्मिन्नि द्रियग्रहीतारहीतपर्यायसम्हात्मनि शव्दतदभिधेयेचश्रोत्रिद्रियव्यापारमंतरण जीवादीनयादिभिराधिगमापायैर्यायाम्पनावबोधःखमारानयैराधिगमइत्फक्त . रोकेयोचिस्तानमभिमतकेयोचिसंलिकर्यइत्यतीधिकृतानामेवमत्यादीनापमाशाख ख्यापनार्यमाहामायापमाशब्दस्पकार्थःभावकरीकरणत्वोपपत्तेकाप माणशब्दस्पेछातीर्थाध्यवसाय अयंपमाणशब्द भावेकतरिकरणेचवर्ततो नत्र भावतावत्यमेयार्थप्रतिनिवृत्तव्यापारस्पतत्त्वाकयनारसमारणमिति कत्तरिखमया खनिजमारत्वशक्तिपरिणतस्याश्रितत्वात्तवमिणोतिषमेयमिनिसमार्णकरणेष मारपमेययोःसमागापमेययोश्चस्पदिन्यत्वात्पमिशात्यनेनेतिषमा अनवस्थति चितानहाएवात्मदीपवार स्पान्मातमिमिहसंपधार्यखमारासिद्धि Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नएक्वेनियंदिययापेमपसिद्विपमासिदिनपरनोवास्यास्वतरावतियदिययापमेय सिद्धिसमाराधीनाएवं प्रमाणसिद्विरपिप्रमाणांतराधानतितस्याय्यन्यत्तस्याय्यन्यदि त्यनवस्था अथखतरवसिद्धिएवमपियथावमारास्यस्वतण्वसिद्विरतथाप्रमेया मनरावसिद्धिरितिषमारणव्यस्थाकल्पनापकाशकः खस्ययतयापमाणामपिरति अथवायमपरार्थः यदिभावकटकरणनामन्यतमसाधनाषमाणाशब्दाअन| वस्याखामोनितोकस्मिलोमनिविरुद्धशतपवस्थानमिति तल किंकारांहय्या स्वासदीपवद्यधैकस्पषदीपस्यपदीपयति प्रदीय्यतेनेनेति वाभावादिशापावि रोधरलयासमारस्यापीतिइतरयाहित्रमाणाव्यपदेशाभावयदिखमावस्या स्परसंवेद्यत्वादस्पषमागाव्यपदेशीनस्यात विषयशानतहिज्ञानयोरविशेयःवि शेखाविषयाकारपरिछेदात्मनिज्ञानेयदिखाकारपरिवेदोनस्यात्तद्विषयेविता नेविषयाकाररूपतेवेतितयोरविशेषःस्यारस्टत्यभावपसंगश्चनद्यनुपलश्च विसरावायमितिमतिर्भवतियदिवविज्ञानखात्माननचिजानीयादत्तरकालमन Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ६१ धिगतखात्मविज्ञानः " कथंत्र्यात सौहमितितत स्टतेरभावः स्यात्फलाभावइतिचे न्नाथीव वोधेखी निदर्शनास्यादेतद्भावसाधने प्रमाणे समैवप्रमाणमितिनफलमन्यद पलभ्पतइतिफलाभावइतितन्न किं कारणमर्थाववोचेजी निदर्शनात् तखभावस्था त्मनः कर्ममली मसस्य करणा लेखनार्थनिश्चये जी तिरुपजायतेः साफलमित्य | च्यतै उपेक्षाज्ञाननाशी वारागद्वेष यो रख शिधानमुपेक्षा अज्ञानमुपेक्षा प्रज्ञानना ||शेवाफलमित्युच्यते ज्ञाला मारणयोरन्यत्वमिति चेन्नासप्रसंगात स्यान्मतं प्रमिगो त्यात्मानंपरंबाप्रमाणमितिक साधनत्वमयुक्तं यस्मादन्यत्यमा गाँज्ञानं संचय गान्पश्वमाता मासचग्रणी गरी राणयोश्चान्मत्वंद्रव्यरूपवन्तथा चामे द्वियमनोर्थसन्निकर्षाद्यभिपद्यतेतदन्यदितिचनादन्य समागमन्यः समातात्ततः करण साधनत्वमेवयुक्तमिति तन्न किंकारामज्ञानादन्य प्रात्मा तस्याज्ञत्वं प्राप्नो तिघटवत्। ज्ञानयोगादिति चेन्न तस्वभावत्वेशात्यत्वाभावो धूप दी पसंयेोगवत् स्यादे नज्ञानयोगाड्रात्त्वं भवतीतितन्न किं कारण अतत्खभावत्वेज्ञात्यत्वाभावः कथम Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ sammtaraamanarramme arentine Miamsamanarmireesome धपदीपसंयोगवद्ययाजात्यंधस्पसदीपसंयोगेपिनत्वातथा ज्ञानयोगेधयों सोय्यमस्वभावस्पात्मनोनशाटखंघमाणाप्रमेययोरन्यत्वमितिचेन्नामवस्थानार स्थान्मतीजन्यत्समारणमन्यत्पमेयंकतालक्षणभेदादीपघटवदितितन्तर्किका रमा अनवस्थानाधदियथावाध्यात्ममेयाकाण्दन्यत्स्यात अनवस्थास्यस्याल काशवदितिचेलपतिशाहानेरतत्रैतत्स्पान्लानवस्थादोषःकर्यप्रकारावद्यथा ||काशस्यघटादीनामात्मनश्चपकापास्पनानवस्थादोयरवमिहापानितन्नकिका रापतिशाहाने प्रकाशीहिवात्मनोनाशाखपरसकाशनेसमर्थः सदश्यमानः प्रमाणावमेययोरन्यावपत्तिाहापयनिअनन्यत्वमेवेतिचेन्नोभयाभावपसंगाद्य द्यधन्यवेदोधानन्यवतहिशाटनमारगयोषमागावमेययोश्चेतितन्नर्किकारगम भयाभावपसगाद्यदिशातरनन्यत्समागीलमायावसमेयमन्यतराभावेतदविनाम विनोवशिष्टस्याय्यभावत्यभयाभावजसंगकर्थतर्हिसिद्धिरनेकीतासिद्धि-स्पादन्या वस्यादनन्यत्वस्यादनन्यत्वमित्पादिसंज्ञालक्षणादिभेदास्यादन्यत्वंव्यतिरेकेशानु Mamme ale mam Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ६२. तुपलब्धेः स्पादनन्यत्वमित्यादिततः॥ सिद्धमेतत्समे ये नियमात्समे यंत्रमागे तु स्पासं मास्यात्प्रमेयमिति वक्ष्यमाणभेदापेक्षयाद्वित्वनिर्देशः॥ आद्येपरोक्षंप्रत्यक्षमन्य दित्तिवक्ष्यते तदपेक्षयाप्रमाणेइति द्वित्वनिर्देशः क्रियतेतद्वचनेसन्निकर्षादिनिट त्यर्थ जन्मत्यादिनानंवरिणतिं प्रमाणव्यपदेशलभ-ते नसन्निकर्षादीनि अथसन्नि कर्यादेप्रमाण छे को दोषः सन्निकर्षेप्रमाणेसकलपदार्थपरिच्छेदाभावस्तदभावा द्यस्पमतंसन्निकर्षः प्रमाणामर्थाधिगमः फलमिति तस्पसकलपदार्थपरिछेदो | नास्तिकुतस्तद्भावात्तस्पसन्निकर्षस्याभावाक्कथमिति चेदुच्यतेयेन केनचित्सर्वज्ञे नभवितव्येतस्यार्थपरिच्छेदहेतुर्यदिसन्निकर्षः सचतुष्टयत्रयविषयः। स्पात त्रचतुष्टयविषयस्त्रयविषयश्चनसंभवतिमनसइंद्रियाणां वायुगपत्पवृत्तित्वात्स तिनियतविषयत्वाच्चाने तोहिशेयस्त्रि कालविषयः॥सूक्ष्मांतरितविप्रकृष्टरूपः सकथमिहतैः सन्निक्कष्पत्ते असंनिकृष्टे नत्तत्फलमवबोधः प्रवर्त्ततेअतः सर्व शाभावः स्यात्ततएवद्वयसंनिकर्षोपिनभवति सर्वगतत्वादात्मनः सकलेनाछे Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नसन्निकर्षइति चेन्न तस्य परीक्षायामनुपपत्तेः॥ यदिहिसर्वगत प्रात्मास्पानस्पति याभावात्पुण्यपापयोः कर्त्यत्वाभावे तत्पूर्वक संसारस्तदपररितिरूपश्वमोक्षो नया क्ष्यतइनिकरण ग्रामस्य संसार इति चेन्न तस्याचेतनत्वानस्यैवमोक्षप्रस के सर्वे ट्रियसन्निकर्षाभावश्व उपरियाद्वक्ष्यते सर्वथा ग्रहण प्रसंगश्वसव मनासंनिक्क व्टत्वाद्यानीहिंया गिप्राय्यकारी गितैरपि सर्वथार्थस्यग्न हा मोतिकुतः॥ सर्वा मनासंनिकृष्टत्वात्तत्फलस्य साधारणत्वप्रसंगः॥ स्त्रीपुरुषसंयोगवत्तस्य संनि कर्यस्पप्रमायास्पयत्फलमर्थावबोधनंतेन च साधारयो नभवितव्यं कथं स्त्रीपुरु | बसंयोगव द्यथा त्री पुरुषसंयोगजं सुखमुभयोरपिसा धार तिर्थेद्रियाणामन सोर्थस्पभावबोधनंप्रामातिशय्यावदिति चेन्ना चेतनत्वात् ॥ स्यान्मतंयथाशय्यादी नांपुरुषस्यचसंयोगे साधारोपितत्फले सुखनशय्यादीनां भवतिकिंतर्हिषुरुष स्पेवेति तथेहापीत्तित्तन्न किं कारणमचेतनत्वादचेतना नाशय्यादी नौ सत्यपिसंयो सुखेन भवति इहापिततएवेति चेन्नाविशेषात्तस्यादेतन्मनः प्रभ्टतीनांसत्यपि Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. सलिकनतफलमववोधनभवतिकुत्तोपेतनखादेवेतितलकिंकारगांजविशे यादाखभावस्खेतावत्सर्वयामामादीनामविशतत्रकिंवत्तीयविशेषःसन्नि कर्यफलमववोधनमधोतरभूतमपिसदात्मनैवसंवध्यतेनमनः सम्पतिभिरिति शखभावत्वेचालनपतिज्ञाहानिसमवायादितिवेलाविशवारस्यदितत्सम वायोनामायतसिद्धिलक्षगा:संबंधोरिततरकृतोयविशेषइतितलकिंकारण मवियासमवायोहिसर्वगतासभावशून्यत्वेसमानेपिसात्मनैवज्ञानयोजय|| निनमनप्रतिभिरितिवचननविपश्चिन्मनापीतिकरंएवमिद्रियेपियोपना नुमानीयम्पयारनुमानागमयोरनुमानप्रत्यक्षयोरोपम्पप्रत्यक्षपोरोपम्पाग मप्रत्यक्षयोप्रत्यक्षपरोक्षयोश्चविपर्ययजसैगेमत्यादीनामविशेषेणापमा गाथमाह ॥ भोपरीक्षादिशब्दस्पनेकार्यत्तिखेविवक्षा तपाथम्या सहा अयमादिशब्दोनेकार्यन्तिः क्वचित्याथम्येवनने अकारादयोवा . स्वभादयस्तीर्थकण्रतिक्वचित्यकारभुजंगादयःपिरिहर्त्तव्याइक्विचिद्यव Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । areasoma स्थायोसीटिसर्वनामनिवचित्मामीटयनयादीनिक्षेत्रागीतिक्वचिदवयवेदिदा दिरितिातहादिशब्दस्यविवक्षातवायम्पायवेदितव्यमादीभवमाद्यपि नरसन्मतिःश्चताग्रहणमप्रथमखानस्पगहानपानातिकतमसपथमत्वान्न हिस्त्रेष्ठतथा उत्तरापेक्षयादिवमितिचेलतिषसंगातस्पान्मतोमवध्याय तरमपेक्ष्यश्चत्तस्यादिवमितितला किंकारणामतिप्रसंगान्तरमपेक्ष्ययद्यादि। वकल्य्यनेकेवलेव्यदस्यसर्वस्पादिवसामोतिहिखनिशादिनिचेलतरवस्थता तस्यादेतहिखनिर्देप्रोनसर्वग्रहगीभवनितानातिप्रसेगइतितलविकारगीत दवस्थत्वादेवमय्पतिषसंगरावभवतिकयाईयोस्रहणामितिनवाप्पत्यासन्नम्य निग्रहालवारापोवार्किकारगप्रत्यासन्ते नग्नहगांभवतिद्विवनिर्देशाद्री हलमागीयदाद्यस्यप्रत्यासन्नतदेवग्यह्यतेतस्पहिसामीय्पादोपवारिकंजायम्पम नीतितथासामार्यश्चत्तरर्थाच्या उपात्ताउपात्तपरजाधान्यादवगमपरोक्षंड पातानीद्रियाणिमनश्चानुपाजकाशीपदेशादितत्वाधान्यादवगमः परोक्षं HIR Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजवा- उपान्नानीद्रियाशिगमनश्चातपातप्रकाशोपदेशादिनयाधान्यादवगमपरोक्ष यथागतिशम्पपितस्यापिस्वयमेवगंतुमसमर्थस्पयद्याहावलवनप्राधान्यंगमनं तयामनिवजावराक्षयोपशमसतिशखभावस्मालनमाश्वयमेवानिपल मसमर्थस्पपूर्वक्तियत्ययपधानी तानंपरायत्तवान्तदुभयंपरोक्षमियच्यते तरवणमारावाभावइत्यनुपालभः पत्रान्येउपालभतेपरोक्षषमागोमभवति || जमीयतेनेनेतिहिषमा नचपरीक्षेणार्किचिवमीयतेपरोक्षत्वादेवेनिसाउपा लेमः कुतः अतएवयस्मात्परायतपरोक्षमित्राच्यतिनानववीधरति अभिहि तलक्षणात्परोक्षादितरस्यसर्वस्पषत्यक्षवपतिपादनामाहात्याय अन्यत्रिविधप्रत्यक्षमित्कच्यता किमिदखत्यक्षनामईद्रियानिद्रियानपेक्ष मितीतव्यभिचारंसाकारग्रहीषत्यक्षद्रियाणिचक्षरादीनिपंचानीद्रियमनः तेबपेक्षायस्पनविद्यतेतश्मिरतदितिज्ञानव्याभिचारसातीतोस्पाकारोविक ल्पः यत्सहाकारेणवतततत्यत्यक्षामित्युच्यतेद्रियानिद्रियानपेक्षामितिविशे Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 वामतिश्रुतनिकृत्यर्थतीतव्यभिचारमित्येतहि गज्ञातनिहत्य तद्विमिथ्या दर्शनोदयांद्यभिचरतीतिसाकारग्रहणमित्येतदवधिकेवलदर्शनध्य दासार्थ मनाकारहितदितिर्किंगतमेतदियतासूत्रेयाहोश्चिदेववक्तव्यमितिगतषतिप लेकथमितिचेदुच्यतोअक्षजतिनियतमितिपरपेक्षानिहात्तिामलीतिव्या नीतिजानातीनि अक्षमालापासक्षयोपशम पक्षागावरगावातमेवपति नियतप्रत्यक्षमितिविग्महात्परापेक्षानिन्तिकृताभवति अधिकारादनाकार व्यभिचारपूदास अधिकृतमेतत्रज्ञानसम्पगितिचततोनाकारस्यदर्शनस्पत्य भिचारियोज्ञानस्पचव्यवासः कृतीभवनिकरणात्पयग्रहणाभाव इतिचेलहर खादीसवरस्पादेतत्करणात्पयेथे स्परग्रहणीनजान्नोति नपकरणास्पकस्पचिङ्का नहटमितितन्तकिंकाराष्टवाक्कथमीशवद्ययारयस्पकत्तअिनीश उपक रशापेक्षोरयंकरोतिसतवभावेनशक्तोयसपनरीशरतयोविभोयात्परिखासहि || विशेयः॥सवाद्योपकरगाणगानपेक्षःखशक्तवरथेनिवत्तीयनपत्तीतरलथा Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा ६५ . कर्मलीमस आत्माक्षायोपशमिकेंद्वियानं द्रिय काशाद्युपकरणापेक्षार्थासंवेत्ति क्षयोपशमविशेषक्षयेचसतिकारणानपेक्षः" वशक्तीवयन्वितीति को विरोधः ज्ञानदर्शनस्वभावत्वाच्च भास्करादिवद्यथा भास्करादयः प्रकाशस्वभा यत्वात्प्रकाशांतरानपेक्षांप्रकाश्यानर्थान्प्रकाशयेति तथा ज्ञानदर्शनखभावा स्मातदावरणक्षयोपशमशेयेसतिरवरा पदार्थानाविष्करोतीतिसिद्धं इंद्रियमि ज्ञानप्रत्यक्षंतद्विपरीतंपरोक्षमित्यविसंवादिलक्षणमिति चेन्नामम्पप्रत्यक्षा स्पान्मतमिंद्रियव्यापारजनितं ज्ञानंयत्पर्क्षव्यती तेंद्रियविषयव्या 'त्येतदविसंवादिलक्षणांतथा चोक्तं प्रत्यक्षकल्पनापोढनामजा यादक्षैस्तद्यपदिश्यते इंद्रियार्थसन्निकोत्पिन्नं ज्ञानमव्यपदेश्यः प्रव्यभिचारिव्यवसायात्मक आतमेंद्रियमनोथसंनिकर्षाद्य "न्निष्पद्यते तदन्यछ्रोत्रादिवृत्तिः प्रत्यक्षंसत्वत्संप्रयोगेपुरूषस्पें द्वियाणांबद्धि जन्मतत्प्रत्यक्षमितिचसर्वैरैभ्युपगम्पते अतरस्वतल्लक्षणमविसंवादिनेश्वेत Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यमितितलविकारणामासस्यपत्यक्षाभावजसंगारयदद्रियनिमित्तमेवज्ञान, प्रत्यक्षमिष्यते एवंसत्यासस्पषत्यक्षशानंनस्यायनहितस्पेंद्रियपछिीधिग मोयतस्यापिकरणापूर्वकमेवज्ञानंकल्पते.तस्पासर्वशवपरस्तादुक्तीमागमा दिनिचेलतस्पप्रत्यक्ष ज्ञानपूर्वकत्वातस्यादेतदागमादतीदियार्थाधिगमेव्याहत शक्तसर्वार्थाववाघइतितन्नर्किकारांतस्पप्रत्यक्षज्ञानपूर्वकत्वादासनहिक्षी गादीवेशाप्रत्यक्षज्ञानेनप्रशीतनागमोभवनिनस यदिसर्वः स्यादवशेयस्या सवनास्तीत्यागमस्यपामारापाभावः अपौरुषेयादिनिचलतंदसिद्धः स्यादेत दपौरुषेयम्सागमारित पानादिनिधनः अत्यनपरोक्षेवय्पर्येव्वखतिहतगतिरता सर्वाधिगमनतितलविकारांतदसिद्धेनचक्रश्चिदागमोपीरुयेयः सिहोलि हिंसादिविधायिनःपामारापासिद्धि अतीद्रियंयोगिपत्यक्षमितिचेलार्थाभावातस्या मतयोगिनोतीदियेप्रत्यक्षशानमति आगमविकल्पातीततेनासी,सनिर्यान्सत्य शिवेत्ति उक्तंचा योगिनांगरुनिर्देशाद्यनिभिन्नार्थमात्रहकइतितलर्किकाराम Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा र्याभावादक्षमावनिवर्तताइतिसत्यक्षंनचायमयोगिनिविद्या पक्षाभावादावा नसतिसर्वभावाखपरोभयहेत्वहेतुभ्यउत्पत्याद्यभावारसामान्यविशेययोमेकानिका योवृत्त्यसंभवादिदोषपपत्तेरतार्थाभावालिगलंव योगिनोसानकास्यात्परिकलित मनानसतिभावानिर्विकल्यात्मनासतीतिचायतंदधिगमोपायाभावान्तहिनिर्विक ल्पासितहिषयज्ञानं चेतिप्रतिपादयतुंशकालक्षणाभावात्तदभावाच्यतस्ययोगि नोभावाचनाहिकश्चित्तत्परिकल्पितायोगीविद्यतेविशेयलक्षणाविरहारसर्वविर हाच्चनिवारणपातीतत्रैतत्स्यालिवाणद्विविधंसोपधिविशेयनिरुपधिविशेयचेति तत्रसोपधियिशेयेनिगियोद्धास्तीतत्रापियथावायस्याभावप्रकल्पात परतथा भ्यंतरस्पापीतिाबोदुरभावण्वयोगजधर्मानुग्रहादात्माकरणविरहितोव्ययेतीतिचे लतस्यनिक्रियस्यनित्यस्यसत्तरतक्रियातदनुग्रहविकाराभावान्तल्लक्षणानु पपत्तिश्चखवचनव्याघातान्तस्पषत्यक्षस्योक्तलक्षगामयिनोपपद्यत्तेत्रकुतिःख वचनध्याघातादन्यापाहिकपतिविहितान्येवशेयषमारालक्षागानिततरतननोना Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तितरांप्रतिविधानादः। किंतुतःप्रमाण लक्षण यासंभावनातिरस्काराथी के चिड्या. प्रियामहेयदुक्तं कल्पनापोढंप्रत्यक्षमितिकल्पना हि जातिद्रव्यग्रणक्रियापरिभाषा कृतोवाखद्विविकल्पस्ततः पटंकल्पनापोर्ट किं तत्सर्वथा कल्पनापो मुताहोक थंचिदितियदिसर्वथारित प्रमाणां ज्ञानं कल्पनापोढमित्येवमादिकल्पना पाय्य पोट |मित्य रत्यादिवचनव्याघातः अथा रत्यादिकल्पना पानयोदमिष्यते। सर्वथा कल्प | नापोड मितिवचन व्याघातः॥ अथ कथंचिक्कल्पनापोढमेकांतवाद त्यागात्पुनरपि | स्वपिस्ववचनभ्याघातएव अथमती, नास्माकमेकांतः कल्पनापोढमेवेति किम तर्हि विशेषपरमतापेक्षविशेषपरमत्ते हि नाम जात्यादिभेदोपचारकल्प ना प्रोक्ता ततोपो नवविकल्पादिति। उक्तं चा. सवितर्क विचाराहिपंचविज्ञानधा तवः निरूपणा नस्मरणविकल्पनविकल्पकाइति अत्रोच्यते। प्रालंबने अर्पणा वितस्तत्रैवामर्शनंविवार स्तस्पनामादिभिः॥ प्रकल्प नानिरूपणपूर्वानुभू तानुसारेणाविकल्पनमनुस्मरणमित्यतेधर्माः क्षणमात्रावस्थानेष्वक्षविषयवि Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ६७ ज्ञानेखनिरन्वये बुनोपपद्यते युगपदुत्य त्तेरनवस्थानाच्चा तो ग्राह्यग्नहरणभावाभाव श्वस्पात्सव्येतरगोविबाग वत्त' क्रमवृत्तित्वे चतेषां स्वार्थाभावप्रसंगचैति संताना द्यपेक्षयात्तदुपपत्तिरिति चेन्नतत्परीक्षाक्षमत्वादतः सर्वस्मिन्नसतिविकल्पेऽयं विकल्पेोरूपये नास्तीति विज्ञानस्प विवेको नोपपद्यते सर्वविकल्पविरहाच्चनास्ति त्वमेवास्पस्पात अनुस्मरणाद्यभ्युपगमे चएक स्पाने कक्षणवर्त्तिनीवस्तु नोरितत्वंसिद्धमनुस्मरणादिहि खयमनुभूतस्पार्थस्पदृष्टं नानुभूतस्य नान्यनुभूतस्पैति तथामानसमपिप्रत्यक्षंनीपपद्यते अपिचाणामनंतरातीतं विज्ञानंयद्वितन्म नइति अतीतमसत्कथं विज्ञानस्य कारणं स्यात् अथ पूर्वोत्तरनाशोत्पत्त्योर्युग पहुत्ते कार्यकारणभावा ॥ कन्य ते भिन्नसंतानयोरपि विनश्पत्यप्रमानयो का र्यकारणभावः स्यादेक संतानेशक्त नुमापगमेषतिज्ञाहानिश्व स्यादपूर्वाधि गमलक्षरणानुपपत्तिश्व सर्वस्पज्ञानस्पप्रमाणत्वोपपत्तेरपूर्वाधिगमलक्षण मारणमित्येतच नोपपद्यते कुतः सर्वस्पज्ञानस्पप्रमाणात्वोपपत्तेः प्रमीयतेनेने Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ e se निपमाणसवेशाचज्ञानेनसमायतेयांधकारेवस्थितानामत्यत्यनंतर सकाशाप दीपः उत्तरकालमपिनतव्यपदेशंजहातितदवस्थानकारणावादेवंज्ञानमत्पत्यन तरघनादीनामवभासभूत्वाप्रमाणात्यमनुभयोत्तरकालमपिनतव्यपदेशंत्यजति तदर्थत्वासयमतक्षीक्षणोऽन्यएवषदीपः-अपूर्वमेवप्रकाशकत्वमवलव इति एवंसनिसानमपिताहगेवेतिक्षोन्यवायपत्तरपूर्वाधिगमलक्षणमविशि समितिलत्रयदक्तगतीछादेवादिवत्यूर्वाधिगतविषयत्वानपनापनरपिविधा। नशानंघमाणामितितधाहन्यतो खसेवितिफलानुपपत्तिश्चातिरत्योभावासमा गलोकेफलवदपलो अस्पचषमागास्पकैनचित्फलेनभवितव्यमिति कश्चि दाहायभासहिज्ञानमत्पद्यतेखाभासविषयाभासंचात्तस्योभयाभासस्पयत्सवे दनतत्फलमिति तन्नोपपद्यते कत्तः। अर्यातरत्याभावालीकेजमायाकलमर्यो। तरमतमपलभ्यते तद्यथाछेन्टलेन्तव्यछेदनसेनिधानेहेधीभावः,फलनयतया स्वसंवेदनमत्तिरभूतमलितस्मादस्पफलत्वनोपपद्यते सत्यमेवमेतरनतएव | Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. --m तस्मिन्नधिगमरूपेफलेसव्यापारसतीततामपाधायनमारणोपचारातिसमारोप चाएनपपत्तिमरख्याभावासतिमयलोके उपचारोवृश्यतेयथासतिसिविशिष्ट तिसंग्गतिपंचेद्रिय जातिनखटासोपभासुरकपिलनयनतारकाद्यवयववि शिअन्यत्रोर्यशायर्यादियशासाधोसिंहोपचारः क्रियतेमचतयेहमख्य जमाणामस्तितदभावारफलेखमागपचारोनयज्यतेमाकारभेदारेदश्तिचेन्न एकोतवादत्यागात्स्यादेतबाहकविययाभाससंवित्तिशक्तिलयकारभेदात्समा| एणमियफलकल्पनाभेदइतितन्नतिकारगाएकांतवादत्यागादेकमनेकाकारमि त्येतजिमेंद्रदर्शनतनयमेकोतवादेषज्यतेयदिह्येवमध्यपम्पतपेकोपरितोयः रूपाद्यमेकालर्कमेपरमाणद्रव्यंज्ञानाद्यनेकामद्व्यमितिअथगव्यसिद्धिा भूदितिआकाराएवनशानमितिकल्पतेएवंसनिकस्पतिआकाराइनितेषामय्य भावः स्याकिंचतेषामाकारागीयोगपश्येनवाउत्पत्तिः स्पाक्रमेणवायदियो गपद्येनहतुहेतुमहाबोविरुध्यतेमयक्रमेणाक्षणिकस्यविज्ञानस्पाकाराणां Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्यक्रमः यदिस्यादधिगमश्चाबनभावातरमितिव्याहन्यते अपिचवाद्यस्पति शेयस्याभार्वेतरंगाकारत्रयकल्पनार्याषमाणापमारणभासोनोपपद्यतेतरंगा काराभेदादसहस्रयत्सदितिकल्पयतितत्वमारणाभासमसदेवेतियत्पतिपद्यते तत्वमाणमित्यत्तिविशेयइतित्वमेययव्यवस्थापितसमाहयकल्पनाच्या घात:वलक्षणविषयहिखत्यक्षसामान्यलक्षणाविषयमनुमानखलक्षणमसा धारगोधर्म विकल्यातीतत्वादिदंतदित्यव्यपदेश्पन्नातद्विपरीनेसामान्यलक्षा मितिसर्वस्यासह किंकृतोयविशेषाअसत्वहिनखतोभिद्यतेसैवधिभेदाश्याद्भवः घरस्पासर्वपदस्यासत्वमितियोघवादीनीसंवधिनामभावेतद्विशेषाभावइनिस्पा न्मतखात्यतितानोरलटिरिष्टमेवाप्तर्कितमपस्थितमतण्वसर्वेविज्ञानाभिधा नमयथार्थपरिकल्पितार्थत्वालिविकल्यार्थगोचरमालीयमेवविज्ञानसमामि तिचा शास्षपक्रियाभेदविद्येवोयवरापीतोमनागमविकल्याहिखर्यविद्या अवततिइतिएबचानुपपन्तदाधिगमोपायाभावादुक्तंचा प्रत्यक्षवुहिःक्रम Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजवा. नयत्रतलिंगगम्पेनतदलिंगेवाचोनवातद्विययेगायोग करतगतिकटमट एयतरनेइत्याहिताभयपकारस्यप्तमारणस्पादिधकारविशेयजतिपत्त्यर्थमाहमति टनिकाचिन्नावोवाइल्यायोमाइतिशब्दस्यानेकार्थसंभवेविवक्षाव शावाद्यसेनत्ययनाइनिशादानेकार्थ संभावितिक्वचिद्धेतोवनीतेहतीनिपलाय तवर्वतीतिधावनिक्वचिदेवमित्यस्याथैवतेइतिस्मनुपाध्यायः कथयतिएवंस्म इतिगम्पते क्वचित्खकारेवतत्तययागौरव शुक्लीनीलश्चरतिलवतेजिनदत्तोदे। वदतइतिएवंषकाराइत्यर्थः क्वचिद्यवस्थायावतीतयथालितिकसेतालोइति क्वचिदर्शविपतितत्तयथागोरित्ययमाहगौरितिजानीतइति क्वचित्समासीव मितिद्वितीयमाहिकमिति क्वचिछापाविपत्तीतइतिश्री एन्तमितिमिहसेनमितितत्रैहविवक्षावशादादिशदार्थविदितव्यहीमतिएटतिज्ञा चिताभिनिवोधादयरत्यर्थः केपनस्तेषतिभाकपलश्यादयीपकारवाएवंष काण्इति कयमेघाशब्दानामनीतरवमतिज्ञानावराक्षयोपशमनिमित्तायो Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिविषयत्वादनयतरत्वंरू ढिवशादे ते खां मत्योदी नोशब्दा नोमतिज्ञानावरणाक्षयो पशमनिमित्तायामर्थोपलश्वेो वृत्तेरनयतरत्वंवेदितव्यं कथं पुनर्मननं मन्यतइति वामतिइत्येवमाद्यर्थविषयाणामेखी मनांतिरत्वमित्यत आहरू टिवशादितियथा गच्छतीतिमोरित्यंगीकृतमपिगमनेनशव्दद्वृत्तिनियम कारणो रूटिवशाल चिदेववर्त्त तेत्तथामत्यादयः॥ शब्दाव्युत्पत्तिकर्म्मणिसत्य पर्यायेणभेदेक्वचिदेववर्त्ततइत्यन थोतरत्वमवसीयतेशब्दभेदादर्थ भेदोगवाश्वादिवदितिचेन्नानः संशयास्पदेत्तन्म त्यादीनीशब्दानांपरस्परतो यतरत्वमस्ति कुतः॥ शशब्दभेदाद्रवाश्चादिवदितित्तन्न किंकारामतः। संशयाद्यत्तण्वमत्यादीनांशदभेदादन्यत्वमाह भवान तएव संशयः कथमिंद्रादिवद्यथेद्रशक्रपुरंदरादिशब्दभेदेपिनार्थ भेदस्तथामत्यादिशब्दभेदेय्य यभिदहूति नहियतएवंसंशयस्ततएवनिन्नयः किंचशब्दाभेदेप्पर्थैकत्वप्रसंगा द्यस्पशब्दभेदेोर्थभेदेहेतुरितिमत्तंतस्पवागादिनवार्थेख गोशब्दाभेददर्शनाद्यागाद्य र्थानामेकत्वमसु प्रथनैतदिष्टं नतहिशब्दभेदी न्यस्त्वस्य हेतुः । किंच आदेशव Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा |चनाद्ययेद्रादीनामेकदध्यपर्यायादेशात्स्यादेकत्वंप्रतिनियतपर्यायार्थीदेशाच्चस्यार न्यवदनादिंद्रः शकनाक्रमहरिणापुरंदरइतितयामत्यादीनमिकद्रव्यपर्याय दिशात्स्यादेकर्वजतिनियतार्थययादेसाच्चस्यान्लानात्य मन मतिः स्मरसोरटतिः सेञानसंज्ञाचिंतनर्चिता मिनिमयननियतवोधनमभिवोघइति पर्यायशब्दोल क्षणाने तिचेलानतीनन्यत्वावास्यान्मर्तमत्यादयअनिनियोधयर्यायशब्दानाभिनि वाचस्पलक्षोमय्यादिवद्ययामनुष्यमय॑मनुजमानवादय:पर्यायशब्दाःम व्यस्पलक्षानभर्वतीतितम्नर्किकारगीततोनन्यत्वादिहयर्यायिगानन्यपर्यायां शब्दसलक्षाकथमोप्लानिवद्ययापर्यायशध्दः ऊस्लमग्नापर्यायिरगोनन्यत्वा दग्नेलक्षाभवतित्तयापर्यायशव्दामत्यादयःमाभिनिवाधिकशानपर्यायिशाना न्यत्वेनाभिनिवीयस्पलक्षण अथवातनान्यत्वारा व्यथामनुय्यमयमलुजमानवा दयःसाधारणत्वादन्यघटादिगव्यासर्वधिनोमनुस्यादनन्यत्या-तस्पलक्षणों: अन्यथाहिमनुख्यादिपर्यायालक्षणत्वान्मनुव्यभावोभवेद्यतोनमनुय्यादिलक्षण Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यतिरेकेण स्पान्मल्लक्षणमस्ती तिनचाभावतः॥पर्यायशब्दो लक्षण । तयाम तिरम्टत्यादयः। असाधारणत्वादन्यच्चानासंभविननामभिनिवेोधादनन्यत्वात्तस्पल क्षणमितश्श्र्चपर्यायशब्दो लक्षणां कस्माद्भूत्वाप्रत्यागतलक्षण हरणात्कथमच विद्यथाग्निरिति गत्वा ज्ञात्वाबुद्विरुमपर्यायशब्दंगछतिक थंगछत्तिकोयमग्निर्य उल इत्ति उमइति चत्वाबुद्धिः प्रत्यागछति को यमुघ्नः योग्निरितित्तथामति रितिगत्वाबु द्विस्ट तिंगछत्तिकामतियरिस्ट तिरिति तत्तः स्टतिरागत्वाबुद्धिः प्रत्यागच्छत्तिकास्ट तिर्यामितिरित्तिएवमुत्तरेष्वपितस्मा द्रत्वाप त्यागतलक्षणश्रहणात्पश्यामः पर्याय शब्दोलक्षणमित्ति) किंचा पर्यायद्वैविध्यादग्निवद्यथाग्नेरात्मभूत्तउपर्यायलक्ष शॉनधूमरतस्यवायेधननिमित्तत्वेकादाचिक्कत्वात्तथा प्राभ्यंतरोमत्यादिपर्याय मभूतत्त्वा लक्षणं नानात्मभूतोवा ह्योमत्यादिशब्द भाषद्दलः तत्प्रत्यायनसमर्थस्त |स्पवाह्यकरणप्रयोगनिमित्तत्वादिति करणस्पवाभिधेयार्थत्वादथवाइतिकरण यमभिधेयार्थ प्रसज्यते मतिःपतिः संज्ञार्चिताभिनिवेोधंइति योर्थोभिधीयते Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ राजवा• तन्मत्तिज्ञानमिति ततो लक्षणत्वमुपपद्यते श्रुतादी नामे ने रनभिधा मान्न ह्येतैर्म त्यो दिभिः श्रुतादीन्यभिधीयते । वक्षमाण लक्षास ड्रावाच्च तादी नाहिंलक्षणे वक्ष्यत्तेत्तत्तस्तेषा मत्यप्रसंग: 'यदैवं लक्षणं मतिज्ञानमवध्रियते। अथास्यात्मलाभेकिंनिमित्तमित्यता हसतादे द्विनिद्रयनिमितं ॥ अथवा आत्मससावाविशेषात्सर्वज्ञानानामेकत्य प्रसंगेनिमित्तभेदान्नानात्वंप्रत्तिपिपादयिषत्रवीतिसत्य य्यमस्मिन्नविशेषेष्टथक्क | मेयामवेमः कुतः यस्मात्तदिंद्रियानिंद्रियनिमित्तमिनिकिमिदमिंद्रियं नामइंद्रिय स्यात्मनोथेोपलश्चिलिंगमिंद्रियां। इंद्रमात्मातस्य कर्म्मम ली मसस्पस्वयमर्थात्रिहीन | मर्थस्यार्थोपलभनेयल्लिंगेतदिंद्रियमित्युच्यते॥ अथर्किमिदंमनिंद्रियमः निद्रियं मनोनुदात्मनोतः करणमनिंद्रियमित्प्रच्यते। कथमिं द्वियप्रतिषेधेनमनउच्च ते यथायमवाह्मणइत्युक्ते ब्राह्मणत्वरहिते कस्मिंश्चित्संयत्ययेोभवति तथा इंगलि गविरहितेन्यस्मिन्ननिंद्रियमिति संप्रत्ययः स्यातून लिंगलिंगएवमनमिनैष दोषः ई यत्सतिषेधात् कथमनुदावद्यथानुदाकन्याइत्तिनास्पाउदनविधत्तेकिं तुगर्भ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mana - - भारोबहनसमोदराभावादनदरातयानिद्रियमितिनास्पैद्रियत्वाभावः किनच क्षरादिवत्पतिनियतदेशविषयावस्थानाभावादनिद्रियेमनइत्युच्यतातिरंगत करामिद्रियानपेक्षत्वान्तास्पेंद्रियेअपेक्षास्तीतीदियानपेक्षेनह्यस्पयादोयवि चारखविचाप्रपन्नोद्रियापेक्षास्तिततोतरेगेतकरणमिनिवेदितव्यंतदभयम वष्टभ्ययदुत्पद्यतत्तन्मतिज्ञानोतदित्यग्रहणामनंतरत्वादितिचेन्लोजरायवार स्यादेतन्मतिज्ञानस्पानंतरत्वादनेनाभिसंबंधोभवतीतितदित्येतद्रहणामनर्थकमि तितन्लकिंकारगोमत्तरार्यत्वादन्तरार्ययेत इतरयायवग्नहेहावापधारणा मनिशानभेदाइतिविज्ञानुमशवधारतमहोपनः क्रियमाणेनन्मतिज्ञानमवय हादयनिसबंधासुगमोभवति यदेतस्मिन्निमित्तयसंनिधानेसत्यारमला भसत्याग अनिवर्शितभेदमितितनेदसतिपत्त्यर्थमाह नवमहाराज ! राविषयविषयिसनिपातसमनत्तरमाद्यग्रहणमवरमहा विषयविषयिस निपातेदर्शनभवतितदनंतमयस्परमहणामवमहामवहीतेऽर्थतहिशेषा AAA AMANAN Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ७२ कांक्षरणमी हायथा पुरुष इत्यवग्रह। ततस्पभाषा वयो रूपादिविशेषैराकांक्षामी हाविशेषणनिर्ज्ञानाद्याथा स्पावगमनमं वायः। भाषादिविशेषनिर्ज्ञानात्तस्यया थाम्पेनायामनमवायः।। दाक्षिणात्या यंयु बागौरइतिवानिनी तार्था विस्म्म तिर्द्धा रणाभावावयोरूपादिविशेषैर्याथाम्पेननिनी। तस्परुषस्पेोत्तरकालं सरावा | यमित्यविस्मरणं यतोभवत्तिसाधारणतरातेमति ज्ञानभेदाः अत्राहइदमान पूव्यकिं कृतमेषामुच्यते। अवाहादी नामां नुपूर्व्यमुत्पत्तिक्रमापेक्षं अवन | हपूर्वकत्वादितरेखामा दावा वाहः । क्रियते तथैतरेष्वपियोज्यं अत्राह । अवन हेहयोर प्रमाणपतत्सद्भावेपिसंशयदर्शनाच्चक्षुर्वद्यथा चक्षविननिर्मायः। सत्ये वत्तस्मित्किं मये स्थाराही चित्पुरुषइतिसँशयदर्शनात्तथावग्न हेपिसतिननि |सीयई हा दर्शनादी हायां चननिर्णयः॥ यत्तो निर्नयार्थमी ज्ञानत्वी हैवनिर्त्तयः य श्र्वनि योन भवतिससंशया जातीयइत्यषामाएपमनयोरितिवस्त्र हवचनाद्यत नुक्तःपुरुषोयमितिश्वग्नहस्तस्पभावावयोरूपादिविशेषाकांक्षामी हेनि | Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m निसंशयरलपतिपत्तिरेवेशितलर्किकारांसंशयानतिनकायमालोचनवद्ययाही लोचनेकिमयमर्थािस्थागरुतपुरुषतिसंशयाननियतिलयोहेयिमर्यर|| त्यवाहेईहाद्यपेक्षवारसंशयाननित्तिरुच्यतेलक्षणाभेदादन्यत्वमग्निजलवद्यथा निजलयाईहनपकाशनादिद्रवतारनेहनादिनतिनियतलक्षणभेदादन्यतयाव|| सहसंशययोलोक्षणभेदादन्यत्वकोसीलक्षणभेदउच्यतमनेकार्थानिश्चितापर्य दासात्मकःसंशयरतद्विपरीतोवग्रह खारापरुयाधनेकार्थालंवनसन्निधानादने कार्थात्मकःसंशयएकपरुयाद्यन्यमालकोऽवग्रहास्यारापुरुषानेकधर्मानि श्चितात्मकरसंशयः यनोनस्याराणुधर्मात्सरुयधर्मश्विनिश्चिनोतिअवरग्रहण रुयाद्यन्यतमैकधर्मनिश्चयात्मकः स्थारापरुयोनेकधम्मपिर्यवासासात्मकासं शयायतीनपतिनियतानस्थारापरुयधर्मान्यर्यदस्पतिसंशयाअवरमहा पुनः पर्यदासात्मकःोसह्यन्याभवादीन्यायान्यर्यदस्यपुरुषरत्येकपर्यायालवन:संश यतुल्यत्वमपर्यदासादितिवेलनिर्लयविरोधारसंशयस्यस्पादेतत्संशयतुल्यावर Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजवा. हरकन अपीदासाद्यथासंशयः स्थाणपुरुयविशेयापर्यवासात्मकरतथावय होपिपुरुयरतिभायावयोरुपाद्यपर्यदासात्मक अनश्वेतदेवंयदतरकालंहिशेया यामाहामारभतइतितन्नतिकारणांनिलीयविरोधात्संशयस्पसंशयोहिनिर्णयवि ऐधानत्ववाह निदर्शनादीहायोनत्यसंगइतिचेलार्थादानास्यादेतद्यदिनि नयाविरोध्यवसहरतिनसंशयीनन्वीहायानिर्णयविरोधित्वासंशयत्वषसंगह। नितलविकारणमर्यादानादंवग्रहार्यतविशेषलश्यर्थमर्यादानमाहासंशयः अनन्नाविशेषालवनःसंशयपूर्वकलाबासशयोहिश्वमयज्ञायतेईहाया- कथ मितपरुधर्मवाटयकिमयदाक्षित्यउत्तउदीच्यरत्येवमाद्यप्रतिपत्तीसंशयनारावण शयितस्यात्तरकालविशेयोपलिप्सोपनियतनमीहेतिसेण्यादत्तिरवाअतरव संशयावचनमर्थग्टहीतजासतएवम्ञसंशयोनाक्तःकतःअर्यग्टहीतेसतिसश येईहायानपत्तिलीस्तीतिमाहाकिमयपायउतावाइयतिउभययानदोय अन्य तरवचनेन्पत्तरस्यायग्टहीतत्वात्यदानदाक्षिणात्योयमित्यपार्यत्यागकरोतिमदा| Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदीच्यइति सवायाधिगमोर्थ ग्टहीतः ॥ यदा चादी व्यइत्यवायं करोतित दानदक्षिणा त्यायमित्यपायोर्थ ग्टहीतः कश्चिदाहयदुक्तं भवताविषयविसयिसन्निपातेनिंभ वति तदनंतरमवग्रहइति तदयुक्तमवैलक्षण्यान्न ह्यवग्रहाद्विलक्षणं दर्शनमस्ती त्यत्रोच्यतेनवैलक्षरापात्कथमिह चक्षयाचद्दर्शनावरगावी यतिरायक्षयोपश मांगोपांगनामावछं भादविभावित विशेष सामर्थ्येन किं चिदेतहूस्तितिलोकनम नाकारदर्शनमित्युच्यतेवालवद्यथा जातमात्रस्पवालस्पप्राथमिक उन्मेयोसावभा वित्तरूपद्रव्यविशेषा लोचनाद्दर्शनंविवक्षितंतथासर्वेषांत तोद्वित्रादिसमयभावि बून्मेबेखचचरवग्नहमतिज्ञानावरणवी यतिण्यक्षयोपशमांगोपांगनामावष्टंभा द्रूपमिदमितिविभावितविशेषोऽवग्रहः यत्प्रथमसमयो मेषितस्पवालस्य दर्शनंत द्यद्यवग्रहजातीयत्वात् ज्ञानमिष्टं तन्मिथ्याज्ञानंवास्पात्सम्यग्ज्ञानंवा मिथ्याज्ञान पिसंशयविपयनिध्यावसायात्मकं स्यात्तचनतावत्संशयविपर्ययात्मकं वाचेटि 'तस्पसम्यग्ज्ञानपूर्वकत्वात्प्राथमिकत्वाच्चतन्नास्तीति नवानध्यवसाय रूपं जात्यंध Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा ७ व्दवत्त्वस्तुमाचाप्रतिपत्तेर्भसम्पग्ज्ञानमर्था काराव लंवनाभावात्किंच कारण नानात्वा कार्यनानात्वसिद्धेः यथाम्टतंतु कारणभेदाद्धटपटा कार्यभेदस्तथा दर्शनज्ञानावरणाक्षयोपशम कारणाभेदात्तक्कार्यदर्शनज्ञानभेदइति अस्ति प्राग वग्रहाद्दर्शनंततः शुक्त कृघ्नादिरूपविज्ञानसामर्थ्यापितस्पात्मनः ॥ किंशुक्लंडत कृप्तमित्यादिविशेषाप्रतिपत्तेः संशयस्ततः॥ शुक्ल विशेषाकांक्षप्रतीहॅनमीहा शुक्लमेवेदंनचूनमित्यवायनमवायः॥ अवेतस्याविस्मरणे धारणाएवंश्रोत्रा न्यस्यपि योज्यं तदावरणकर्मक्षयोपशमविकल्पात्सत्ये कमवग्रहादिज्ञाना कथं ज्ञानावरणामूलप्रकृतेः पंचोत्तरपकृतयस्ता सामय्य-त्तरो विशेषाः सेनिज्ञानावरणस्पोत्तरखकृतयः असंख्या लोकाइतिवच | ईहादी नाममतिज्ञानप्रसंग: कुनः परस्परकार्यत्वादवग्रहः। कारगाईहाका हाकाररणमवायः कार्यमवायः कारणं धारणा कार्य नचे हादी नामिद्रियानिद्रि त्वमस्तीतिनैवदोषः। ईहादी नामनिंद्रियनिमित्तत्वान्मनि ज्ञानव्यपदेशः य Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घेवश्रुतस्यापिसानोतिरंद्रियग्रहातेविषयत्वादीहादीनामिंद्रियनिमित्तत्वमा पचर्यतेनतुचनस्यायविधिरस्तितस्यानिद्रियविषयत्वादितिश्रुतस्याप्रसंगाय घेवचक्षरिद्रियेहादिव्यपदेशाभावनिचेन्लेंद्रियशक्तिपरिणतस्पजीवस्पभावेदि यत्वेनद्यापारकार्यत्वादिद्रियभावपरिणनीहिजीवीभावेंद्रियमिय्याने तस्यवियया कारपरिणामाईहादयतिचक्षरिदियेहादिव्यपदेशदतियइमेवमहादयोमनिशा नत्रभेदाउक्तानातज्ञानावरणक्षयोपशमानिमित्ताःकयोभवतीत्युच्यतेबवाह विद्याक्षिाशानिबातावमा सोसासंख्यावैपुल्पवाचिनोवहुप्राब्दस्प ग्रहणमविशयावहशब्दोहिंसंख्यावाचीवपल्यवाचीचनस्योभयस्पापिमहणों |कस्मादविशेषात्सख्यायामेकाद्वीवहवरनिवैपल्पवहरोदन वहसपनाति वह वग्रहाद्यभाव: प्रत्यर्थवशवतिखादितिचेन्लसर्वदेकप्रत्ययप्रसगात्रस्यादेतत्पत्य यवरावर्तिविज्ञाननानकमगहीलमलमतोवहाहादीमामभावरति तन्नकि काररणसर्वदेकप्रत्ययपर्सगाद्ययारणपरव्योकश्चिदैकमेवपुरुषमवलोकयन्ता Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा ७५ नेकइत्यवैतिमिथ्याज्ञानमन्यथास्यादेकचाने कबुद्धिर्यदि भवेत्तथानगवनरकंधा बारावगाहिनो पित्तस्यैकप्रत्ययः स्यात्सार्वकालिक अनमनेकार्थनाहि विज्ञा नस्पात्येतासंभवान्नगरवन स्कंधावारप्रत्ययनिवृत्तिन्नैता संज्ञा होकार्थनिवेशि न्यस्तस्माल्लोक से व्यवहारनिवृत्तिः ॥ किंच नानात्वप्रत्ययाभावाद्यस्यैकार्थमेवनि यमाज्ञानंतस्पपूर्वज्ञाननिवृत्तावुत्तरसानोत्पत्तिः स्यादेनिवृत्तौ वाउभयथाचदो यः यदि पूर्वमुत्तरतानोत्पत्ति का लेस्नियदुक्तमे कार्य मेकमनुखादिति प्रादावि 'यथैकंमनोनेकप्रत्ययारंभकतथैकप्रत्ययेोनेकार्थेभविष्यति अनेक कालसंभवान्नन्वनेकार्थोपलश्चिरुपयस्पतेतत्रयदभिमतमेवै कस्पज्ञानमेकं चार्थमुपलभततिअमुष्पव्याघात ॥ अप्यपनन्तिवृत्तेपूर्वस्मिन्न तरज्ञानोत्पत्तिः प्रतिज्ञायते ननु सर्वथैकार्थमेवज्ञानमित्यंत मम्मादन्यदित्ये बपवहारोनस्यादग्निचसनस्मान्नकिंचिदेतत्किं चप्रापेक्षिकसे व्यवहारनिवृत्ते यस्पैक ज्ञानमनेकार्थविषयनविद्यतेतस्यमध्यमाप्रदेशिन्योर्युगपदनुपलभान्त Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिवयदाहखव्यवहारोविनिवर्ततमविक्षिकाह्यसीनचापेक्षालिकिंचसंशया | भावप्रसंगादकाविषयवत्तिीनविज्ञानेखागीपरुषेवापाकात्ययजन्मस्यान्लोभा योनाजतिज्ञातविरोधात्यदिश्यागीपरुयाभावाल्याररावंध्यात्रवत्स्पैशयाभा वनस्पातपथपरुघेतथास्थागद्रव्यानपेक्षत्वात्रसंशयानस्वायतत्पूर्ववलत्वमा वाहनाअतोनेकार्थग्नाहिविज्ञानकल्पनाश्रेयसीतिचिईसितनिष्पत्य नियमाहिसानस्यैकार्यावविवेचित्रकामणिनिलातस्पचैत्रस्यप्राकिलशमा लिखतःस्तक्रियाकलशवत्यकारग्रहणविशानभेदादिनरेजरविषयसंगमाभा वादनेकविज्ञानोत्पादनिरोधक्रमेसत्यनियमेननिष्पत्तिस्पायनसानियमेनमा चिकार्यवाहिरिणविज्ञानविरुद्धततरमान्लानापियत्ययोस्पेयः विवादित्य याभावाच्चएकाविषयवर्तिनिविज्ञानहाविमाविमेवयन्यिादिप्रत्ययस्याभाव: यतोनेकविज्ञानहित्यद्यानासाहकमालिसंतानसंस्कारकल्पनार्याचविकल्यान पनि सतानेसंस्कारेचकल्प्यमानेविकल्यायोरलयपत्तिमसतानबासीकारश्व. Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• ७६ ज्ञानजातीयायास्यादज्ञान जाती यो यायद्यज्ञान जातीयः॥ानततः। किंचित्खयेोज ममलि ज्ञानजातीयत्वेपिएका एरिना हि त्वं स्यादनेकार्थमा हि त्वं स्यादनेकार्थना हि त्वंवायोकार्थग्ना हित्वं दो यविधिस्तदवस्था अथानेकार्थश्राहित्यंप्रतिज्ञाहानिः प्रसज्यते। विधग्रहणप्रकाराः थे। विधयुक्तगत कारा समानाथीइतिप्रकारा यविधशब्दः बहुविधंबहुष कार मित्यर्थः, क्षिप्रग्रहणामचिरखतिपत्यर्थे अचिरप्रतिपत्तिः कर्थस्यादितिक्षिञ्जग्रहणं क्रियते अनिस्ट तत्रहरणमसक लडद्ग लोडुमार्थ अनिस्टत्तग्रहणं क्रियते असकलग लोगमा अनुक्ता |मभिप्रायेणप्रतिपत्तेः॥अभिप्रायेणप्रतिपतिरस्ती व्यनक्तग्न ही क्रियतेधवं यथार्थग्रहणाग्रहणंकि यत्तेयथार्थगामस्तीति सेतरग्नहरणाद्विपर्या विरोधः॥ अल्पमत्पविष्यचिरंनिरवृतमध्वमिति एतेषामवरोधो भवतिसेत रनहरणादवग्न हादिसंवैधात्कम्र्मनिद्देशः वहादी नोमितिकर्मनिर्देशप्रव महाद्यपेक्षी वेदितव्यः वहादीनामा Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षयोपशमविश्वदिपकर्ययोगेसतिवहादीनामवहादयोभवतीतितियोगमह: गमादीक्रियतेतेचसत्येकमिद्रियानिट्रियेशुद्धादशविल्य्पनेयातद्यथान कयौद्रियावरणवीर्यातरायक्षपशमांगोपांगनामोपटभासभिलो: तान्योवाटगपत्ततावितनघनसुधिरादिशब्दश्रवाहहुशव्दमवग्यहाति ल्पात्रोत्रंद्रियावरणाक्षयोपशमपरिणाम प्रारमातत्तशब्दादीनामन्यतममल्य शब्दमवारहातिप्रकृयत्रोत्रंद्रियावरणाक्षयोपशममादिसन्निधानेसनि तनादिशब्दविकल्पस्पषत्येकमेकद्वित्रिचतु:संख्येयासंख्ययानंतरयास्पा वगाहकत्वाइविधमवग्रहात्यल्पविष्णुहिम्मोद्रियादिपरिणामकार गामात्मातत्तादिशब्दानामेकविधावग्रहणादेकविधमवाटल्लातिपय श्रोत्रंद्रियावरणाक्षयोपशमादिपरिणामित्वात्रक्षिशब्दमवक्तात्यल्पविष्णद्वित्रिद्रियावरणाक्षयोपशमादिपारिगणमिकत्वाचिरेशाशदमवाम्यहा निविष्ठहिनीत्रादिपरिणामात्साकमल्पेनानुचारितस्परग्रहणादनिस्टते - - नाममा Jaan Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा- मवग्यतातिनिस्टांपत्तीतंपकृष्टविशुद्धिाश्रोत्रंद्रियादिपरिणामकारणत्यादेक वर्मनिगमेपिअभिपायेगवानच्चारिताब्दमवण्यलानिर्मभवानशब्दंवक्ष्यती त्यथवास्वरसंचारणात्यातंत्राद्ध्यातीद्याद्या . अभिखायेगावग्याचप्टेभवानिमंशार्दवादयिव्यतीत्यसतीतसंल्लेशपरि गामनिरुत्सकस्पयद्यानुरूपात्रोत्रंद्रियावरणाक्षयोपशमादिपरिणामकार गणवस्थितत्वाधथापाप्यमिकेशव्दगहगीतथावस्थितमेवशब्दमवग्यताति नोननाभ्यधिक यौनः मन्येनसल्केशविशुद्धिपरिणामकारणापेक्षस्पात्लनीय थानुरूपपरिणामोयात्तात्रंद्रियसालिध्येपित्तवावरणस्पेषदीयदाविर्भावा यौनपनिकंपदावलय्याश्रीद्रियावरणादिक्षयोपशमपरिणामत्वाच्चाध वमवग्यतानिशदक्वचिवहक्वचिदपक्वचिवहविर्धक्वचि क्वचिच्चिरेगा क्वचिदनिस्टतेक्वचिलिस्टतेक्वचिदक्विचिदनुक्त। विधयोः कातिविशेषः Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्यतेनविशेयदर्शनाद्यथाकश्चिद्वहनिशास्त्राणिमौनिनसमान्यार्थनाविशेषिते । नव्याचटेननुवहुभिर्विशेषिताथैः कश्चिततेयामेववहूनाशास्त्रागावहुभिर थैः परस्परनिशययुक्तहिकल्पेारख्यानंकरोति तथाततादिशब्दसहरा विशेवपियत्वत्येकेततादिशब्दानामेकद्वित्रिचतुःसंख्यासरख्ययानंतगण | परिणतानांगहातहविधमहगायत्तत्तादीनोसामान्यग्नहोतहहरग्रहण साहउक्तनिःस्टतयो-कप्रतिविशेष यतःसकलशब्दनिःसरणालिस्ट तमक्तमय्येवंविधमेवीच्यते अन्योपदेशपूर्वकशब्दमहामक्तंगोशब्दोयमि निखतरावग्रहणोनिस्टतंचक्षवाचविष्णुद्धचक्षरिद्रियावरणक्षयोपशमपरि गामकारणवाछुलकरमरक्तनालपीतरूपपर्यायवहमवम्टह्णातिअल्पपूर्व वतपकष्टविश्वविक्षरिद्रियादिधक्षयोपशमपरिणामकारणत्वाछुल्लादि पेचतयरूपाणपत्रत्येकमेकहित्रिचतुःसरपयासयमानतगणपरिणा मिनीववाहकत्वसामयहिहुविधरूपमेवग्यतात्येकविधपूर्ववक्षिपचिर Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ एजवा- योरयुक्तरावक्रमःपंचवर्गावस्वकंवलचित्रपटादीनासतदेकदेशविययपंच वस्मीग्रहणात्कृस्लपंचवट्याटेवनिस्टत्तेस्वपितहाचिष्करसामयपदिनि स्तमवग्टक्लातिमथवादेशांतरस्थपंचवर्मपरिणतैकवरयादिकथनाशक ल्पनाकरल्पनाकथितस्पाय्याकदेशकथनेनैवतर कस्तपंचवरणग्रहणादनि स्टतनिस्तखतीतो सुविधविचक्षरिद्रियादिक्षयोपशमआत्मावलकला दिवममिश्रीकरदर्शनात्यारेगगकथितमपिवमिभिखायेगवसतिपद्यतेभवा निर्मवभिनयमिश्रणाकरिष्यतीत्येवंगहयादवक्तरूपमवाटतात्पथवा देशातरस्थपंचवौकद्रव्यकथनेताल्चादिकरणसंश्लेवात्साकसत्कदय्यक थितमेवगव्यमाचरीभावानेवंविधमस्माकंपंचवींव्यतिकरिय्यतीत्यनक्त. मवग्यहातिपरकीयाभिमायानपेक्षमात्मी वोक्तरूपमवरहातिसेले यावरणक्षयोपशमपरिणामकारणावास्थितत्वाद्यथापाथमिकरूपमह Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतद्यावस्थितमेवरूपमवग्रहातिनीनंनाभ्यधिक पीन:पुन्येनसेक्लेशवि छद्विपरियामापेक्षस्यात्ममोययानरूपरिराममोपात्तचक्षरित्रियसान्निर, ध्येपिनदावरणास्पयदायदाविर्भावारपीनःपनिपटावकृष्टचक्ष रिद्रियावरणाक्षयोपशमपरिणामकारणात्वाचाक्रवमयपहातिरूपं कचिहहक्वचिदल्यवचिहहविधवचिदेकविर्धक्वचिक्षिक्वचिच्चि रिक्वचिदनिःस्टतक्वचिन्लिस्टत्तक्वचिदनुक्तक्वचित एवंघागाद्य वगहेय्यपियोज्यतयाइहावायधारणाअपिवदादिभिःसेतरैरवसीयाः। कश्चिदाह प्रोत्रघ्रायस्पर्शनरसनचठव्यस्पषाय्पकारित्वादनिस्टता उक्तशवाद्यवग्रहहावायधारणानयक्तारत्फच्यतेखासत्वावयपिपीलि कादिवद्यथापिपीलिकादीनानागारसनदेशाजासेपिण्डादिद्रव्यगंधरस झाने तच्चयैश्वयावद्भिश्यामदाद्यप्रत्यक्षमक्ष्मण्डावयवैः पिपीलिका दिघागारसनेद्रिययोः परस्परानपेक्षाहत्तिरलतोनदोय असदादानी Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. तदभावरतिवेलश्रुतापेक्षत्वाद्यथाभूएहसंवड़ितोछितस्पर्पसश्चक्षरादि भिरंधभासतेम्वपिघटादिघटीयरूपमिदमित्यादियहिशेयपरिशानंतर तापेक्षपरोपदेशापेक्षवात्तद्यारमदादीनामय्यस्थत्तानक्तमपिज्ञानविक ल्पशव्दाद्यवग्रहादिलानेतनापेक्षकिंचलश्चक्षरत्वाळूतज्ञानपी देखरूपयायालश्पक्षरलतकथनखोटापभिभक्तगतद्यथाचा :श्रो घारगारसनस्पनिमनीलश्यक्षरमित्यार्यपदेशातश्चक्षःश्रोत्र घाारसनस्यनियिमनीलशाक्षरसान्निध्यादेतशिध्यनिअनिस्टता तुक्तानामपिशब्दादीनामवग्रहादिज्ञानयद्यवमहादयोववादीनांकम्र्मणामाक्षे मारवहादीनिपुनर्विशेषगानिकस्पेत्यताह अर्थसा। चक्षरादिविषयो अस्तस्यवहादिविशेषणविशिष्टस्यावग्नहादयोभवति इयर्जिपर्यानयंतेवातैरि त्यद्रिव्यप्रत्यामसंबंधिनः पर्यायानुभयनिमित्तवशाढत्यपित्यागानिय सिंगछत्यर्यतेगम्पतेवातैरित्यर्थःकसन रसोद्रव्यकिमर्यामिदमच्यते !! Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ n a वचनंगाग्रहणामिहत्यीकेचिद्रूपादयोयगारावरंद्रियेस्सन्नियंतेत तस्तद्रहणमितिमन्यतेतन्मातनिहत्यर्थमर्थस्पेत्युच्यतेनहितेरूपादयोगणा अमरिंद्रियसंनिकर्षमापातरतितपचयविशेषसतिसलिकर्मसंभव इतिचेन्नयशादीनांजचयानुपपत्तेः सत्यपिवानचयेथोतरखादुर्भावामा वारसंक्षमावस्थाननिक्रमादरमहामवेयास्योलतहीदानीमिदभवतिरू पमयाइटंगंधोवाधानतिभवतिचार्यग्रहणातव्यतिरेकात्तेयामपिग्ग्रह गोपपत्तेमानेससमनिशानामलाभात्सप्तमीसंग व्यतीविषयेषसस मनिज्ञानमाविर्भवति मनोर्थनिवायनानेकीतान्लायमेकांतोलिसत्यर्थे मतिज्ञानभवतीतियनः सत्यय्यर्थवनितलभवनसंभूतम्पकमारस्योनार्म मात्रस्पघटरूपादिमतिज्ञानाभाव अथवानायमेकानास्त्यधिकारणास्प सत्वात्ससमीपसंगायत्तीविषयेससमतिज्ञानमाविर्भवति। अतोर्यवति वायनानेकीतान्लायमेकातोलिसत्ययमनिशानभवत्तीनियत्नासत्यय्पय्येवा menomenawatimammeedMINERATE Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नितलभवनसंभतस्पकमारस्पोताणेमावस्यघटरूपादिमतिलानाभावःन यवानायमेकांतारत्याधिकारस्यसत्वात्सममालसंगकरमाजस्याविवक्षितत्वा द्विवक्षावाहिकारकाशिनर्वतिक्रियाकारकसंबंधस्पविवक्षितत्वादवग्रहा दयक्रियाविशेयानुक्तानातयामेवरकेनकिकर्मयाभिवितव्यमितिवहा दिविकल्पस्यास्पित्यध्यत वादिसामानाधिकरणपाहहत्वषसंग यत्तोब कादिरेवानिातोन्यरततीवक्षादिसामानाधिकररांपादीनामिनिवहत्वंपा नोतिनवानाभसंबंधालवाएपदोयार्किकारणामनभिसंबंधान्नह्यस्यवह त्वादिभिरभिसंबंधःक्रियतेकेनतविग्रहणादिभिक स्वत्यक्तार हसेवध्यतेलदविशेषावहादिग्रहण सर्वस्ववार्यमाणत्या यत्वे अतोजातिवधानस्यालिसस्यार्थ स्पेत्येकवनिर्देशोयुक्त प्रत्येक | मानसेवधाहलयवाजत्येकमभिसर्वधनकि यस्पति किममीअवमहादयासर्वस्येंद्रियार्थस्पभवेखतकश्चि Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेयोस्तीत्य आह व्यंजनस्यावग्रह। व्यंजनमव्यक्तंशब्दादिजातं तस्यावय होभवति। किमर्थमिदे नियमार्थ में बहाएवने हादयइतिसतर्हेवकारः कर्त्तव्यः नवासामर्थ्यादिवधारणप्रतीतेर नावन्नवाकर्त्तव्यः । किं कारणं सामथ्यीवधा राप्रतीतेः कथमनक्षवद्ययानक श्रियो नभक्षयतीति सामर्थ्यादिवधारणा प्रतीयते अपण्वभक्षयतीतितथासर्वेयामवग्रहादी नीप सिहौ अवग्रहवच नमवधारणाप्यविज्ञायते तयोरभेदोनहरणाविशेषादिति चेन्नव्यक्ताव्यक्तभेदा दभिनवशमववश्यादेतन्तयोरर्थावग्ग्रहयं जनावग्रहयो र्नास्तिनेदः ॥ स्नहरणावि शेयान्न हिशब्दादिग्रहांप्रति विशेषोस्तीतितन्नकिं कारणं व्यक्ताव्यक्तभेदाहा तग्नहंगामर्थावग्ग्रहः अव्यक्तग्रहणंव्यं जनावग्रहभिनवशराववद्यथासूक्ष्म अलकाद्वित्रिसितः शरावोभिनवो नान्द्रीभवतिसएनएन सिच्यमानः श नेस्तिम्पत्ति तथात्मनः । शब्दादीनां व्यक्तग्नहरणासामध्ये जनावग्रहःभव्यक्तग्रह शामर्थावग्ग्रहः सर्वेद्रियाणामविशेवेणव्यजनावग्रहप्रसंगेयत्रा संभवस्त Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. मम्मामा दर्थपत्तियेधमाह माबोहरमियान्याचक्षयाअनिद्रियेगाध्यंजनावग्रहो नभवतिकतव्यंजनावग्रहाभायथ्यक्षमनसारजाय्यकारित्वाद्यतः अजाम मर्थमविवियर्सनिकर्यविषयवस्थितवाद्यप्रकाराभिव्यक्तमपलभते चक्षर्मनश्याजासंततीमानयोध्यंजनावग्यहोरिलछामात्रमिति श्यादेतदिछामात्रमिदमघासायर्यायग्नाहिचक्षरितितन्तर्किकारासामयी येसामयेागमतोयक्तितशमागमरतावरगाहापहसदिसाय्य इंजणवियस्सदेरुवंगधरसंचपासंपदंपविजागादिहसोदिसा परागापरसदेरुगंधरसंचयासंघद्धमपविजागादितियक्तितोपि बाय्पकारिचस्पस्टानवम्बाहाद्यदिखाय्यकारिस्यान्चगिद्रियवर्गीस्टष्ट मजनंग्रहीयालचग्यतात्यतोमनौवदघाय्यकारीत्यवसेर्य अत्रकेचिदाहुः खाय्यकारिचक्षत्रावृत्तानवग्रहात्यागिद्रियवदिति अत्रीच्यतेकाचान्त्र स्फटिकाहतार्थावरमहेसत्यध्यापकत्वादसिदोहेतुर्वनस्पतिचैतन्येरखापक्त Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राय या संशयहेतुरखाय्यकारिस्य स्की तो पले साध्यविपक्षेपि दर्शनादिति । भौति कत्वात्प्राय्पकारिचक्षुरग्निवदितिचेन्ना प्रयस्कांनेनैव प्रत्युक्तत्वाहा हो द्रियत्वा स्वाय्यकारिचक्षरितिचेन्नद्रव्येंद्रियोपकरणस्पभावेंद्वियस्पप्राधान्यादप्राय्य कारित्वेव्यवहितातिविषक्कृष्ट ग्रहणप्रसंगइति चेन्नायरको तेनैवप्रत्युक्तत्वा दयस्कांतापलमप्राय्य लोहमाकद पिनव्यवहितमाकर्षति नातिविषकृष्ट मिति संशयावस्थमेतदित्यनाय्पकारित्वंसंसयविपर्ययाभावइति चेत्तखा य्पकारित्वेपित्तदविशेषात्कश्चिदाहरश्मिवच्चक्षरमैन सत्वात्तस्मात् शत्यग्निवदित्येतच्चायुक्त मनभ्युपगमान्नहिवयमभ्युपगच्छामस्तेजसंचार तिते जो लक्षणमास्यमिति वाचक्षुरिंद्वियस्थानमले स्पान्नचतद्देशंस्पर्श नेंद्रियमनस्यशेपिलंभी दृष्टेमितिइन ध्यातैजसं चक्षमरित्वानुपलनिरह ष्टवशाद नुमाभासुरत्वमिति चेन्नादृष्ट स्पास्वादक्रियस्पभावस्वभावनिय हा सामन्यन्नक्तंचररश्मिदर्शनास्मिवच्चरिति चेन्नातै जसो पिपगल Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ८२ व्यस्पभासुरत्वपरिणामोपपत्तेरित्तिकिं चगतिमद्वैधम्र्म्या दिहयङ्गतिमद्रवत्तिन तत्संनिकृष्टविप्रकृष्टाभिन्नकाले प्राप्नोति नचतथाचक्षुचचर्हिशाखा चंद्रम सावभिन्न कालउपलभेतेयावता कालेनशाखांप्राप्नोति तावता चंद्रमसति स्टटे गतिमद्वैधर्म्येतस्मान्नगतिमच्चक्षरितियदिचषाय्यकारिचक्षुः स्यात्तमिश्रायाँ रात्री। दूरेग्नोष तलतितश भी पगतद्रव्यायलं भनं भवति कुतो नातरा|लोचनंप्रकाशाभावादितिचेन्नते किंचयदि प्राय्यकारिचक्षुः॥ ॥ स्यात्सीत राधिकग्रहणनजामतिरिंद्रियाणां निरंतरे विषयोगंधादौ सीतरत्र ही इयं नाय्यधिकमाँ । अथमतं बहिरधिष्यमा हृत्ति रिंद्रियस्प अनउपपन्नं तद्विषयस्य सोतराधिकाहरणमिति तदय केयरमान्नवहि रधिय्यनादिद्विय। तत्रचिकित्सा दिदर्शनादन्यथाधिष्टानपिधानेपि मनसच्या वहिर्भावान्मनसाधिष्टिते ही द्रिये खविषये व्याप्रियते। नचमनोवहिरधि |ष्टयनमस्तित्तदभावादग्रहणप्रसंगः। अनुष्टत्तौ चसेभवाभावा द्विप्रकीर्णनाव Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रस्मिसमहनाकयमणमनोधिष्टस्पति कश्चिदाहा श्रोत्रमप्राय्यकारिविषय विषयग्रहणादिति एतच्चायुक्तप्रमिहत्वात्साध्यतावदेतद्विपकटंग्रहानियो मतघागोंद्रियवदगाखविययभावपरिरणनएनलगव्यंग्यन्हातीतिविवकृष्ट शब्दशहणेचरखकरमतांतर्विलगतमशकशदोनोपल पेतनहीद्रियकिंचिदेक दूरस्एयविषयमाहिदृष्टमितिमाकाशययात्वाछब्दस्पस्पर्शवडगावाभावरति चिन्लास्तरास्यात्मगणावदिद्रियविषयत्वादर्शनादितिखामावग्रहेनोवस्यदिग्द भेदविशिष्टविययग्रहणाभावइतिचेलशब्दपरिणतविसत्यिहुलवेगशक्ति विशेषस्यतयाभावायत्तेःसूक्षमत्वादपतिघानात्समततःप्रवेशाच्चसिद्धमेतच्चन मनसावजयित्वाशेषाणामिद्रियाणांव्यंजनावग्रहासर्ववामिद्रियायाम व महतिमनमोनिद्रियव्यपदेशाभावः स्वविषयमाहोकरणोतरानयेक्षत्वाच सवरियथावक्षरूपग्रहगोकरणीतरनापेक्षतइतिरंद्रियव्यपदेशलभतेतथा मनोपियशादीयविचारादिखव्यापारेकोतरनापेक्षततिरनिर्यनामोलिनानि Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा दियमितिनवाजत्यक्षवालवायवदोषः किंकारांप्रत्यक्षवाद्यथावक्षरा ८३ दिपरस्येंद्रियकत्वात्सत्यक्षंनतथामनरेंद्रियकुतःसूक्ष्मद्रव्यपरि. दनिद्रियमित्युच्यते। अत्रापाकथर्मवगम्पतेखत्यक्षतदरनीति अनुमानान्त स्याधिगम अप्रत्यक्षागामय्यानोलोकेनमानादाधिगतिहटाययादि । गतिर्वनस्पतीनोचद्विहासी तथामनौय्यतिमनुमानादवगम्यतेकोसावतु मानः गपनानक्रियानुत्यन्तिर्मनसोहेतु सत्सचक्षरादिकरोयसक्किमल चवायिरूपादियसतिचानेकस्मित्सयजनेयतोतानानांक्रियायांचयगपद सत्यनिरनदस्तिमनदत्यनमीयत अनुरमरणादर्शनाञ्च यतःसकदृष्टंक्रतवा गुरमीतेतलईर्शनान्तदस्तित्वमवसेयंअन्लाहएकस्यात्मन: कतकरयाभेदः शखाभावस्पापिकरणभेदोऽनेककलाकसलदेवदत्तवन्त शक्तियुपेक्षाकायकर्मणिवत्तमानस्यवासीघरमखवृक्षादनादि .. यात्मनोपिक्षयोपशमभेदाज्ञानक्रियापरिणामशक्तियुक्तस्पचक्षराद्यनेक Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रगापेक्षानविरुद्ध्यतेसनामकर्मसामसिएपकरणभेदोनामकर्मसामय्यांत दितव्यः कथमिहदेतहरीरनामकर्मादयाद्यापादितंयवनालिकासंस्थानश्रोत्रं द्रियमेतदेवशदोपलश्चिमहिलनेतगणितथायदेतद्यार्णोद्रियमतिमुक्तकचंद्र कसंस्थानगतदेवगंधावगमसमर्थनेतगणितयायदेतजद्रियक्षरखाकृत्ये नदेवरसावगमेनान्यानितथायदेतश्यर्शनेद्रियमनेकाकृतितदेवस्पोपलभनेने तरराशि तथापदेतच्चक्षरिद्रियमसरिकाकारंकलताराधिष्टानंतदेवरूपाविष्का रउलनेतराणीनिएवमाभिनियोधिकद्रव्यक्षेत्रकालभाववसेयंद्रव्यतामतिज्ञा नासर्वद्रव्याएपसर्वपर्यायाण्यपदेशेनज्ञानातिधीत्रत उपदेशनसर्वक्षेत्राणिजा नातिअथवाक्षेविषय वक्षय क्षेत्रसमचत्वारिंशद्योजनसहस्राणियष्टय धिकेचह्नयोजनशतेयोजनस्पचकविंशतिः यस्टिभागाः श्रोत्रस्पक्षेत्रहादश| योजनानिघागारमनस्यर्शनानानवयोजनानिकालतः। उपदेशनसर्वकालजाना, तिभावतः उपदेशेनजीवादीनामोदयिकादीन्नावान्वानातीनात्सामान्यादेकर्मिदि। AarmanaraEAT wearamre Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. याभेदाढिधाअवग्रहादिभेदाच्चतहतिरिद्रियश्चितुर्विशतिविधरेवयं जनावग्रहाधिकैरटाविंशतिविधतेरेवमूलभंगाधिकैद्रव्यादिसहितैर्वाद्वात्रिं सहिधतगत्रयोविकल्यानावहादिभित्रात्यडिरितरानपेक्षशिवाचतुश्चत्वा रिंशछनष्टषत्तरंशतानवत्यधिकंशतमितिचभवनितएवववादिमिट्टी दशभित्तिा देशातेअशाशीत्यत्तरेत्रीणितानियाईशानिचतुराशीत्यधिका नित्रीणितानिचभवतिमाहव्यंजनावमहेवाद्यभावाकरमार्दव्यतबादच्य तप्रवाहवत्तसिद्धिःयथाअव्यक्तग्रहणमवग्रहल तथावहादिविकल्पो रूपेणीववेदितव्याअथानिस्तेकर्यतत्रापिपेचयावतश्चपद्लाःसक्ष्मानिस सासतिरक्षमाखसाधारयोग्यतयामिद्रियस्थानावगाहर्नमनिस्टर्तव्य जनावमहापरोक्षदविध्येसत्यपकमलक्षणाविकल्पमतिझानविधायद्विती यमपदियेतविनिमित्तकतिविचंचेसध्यताक्रमनिर्वधनेकवादाने श्रुतशब्दोजहत्वार्थन्तिरूदिवशाकुशलशब्दवद्ययाकुशलशब्दक Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शलशब्दावेथाकणलशब्दःकुशलवनक्रियांपतीत्यव्यत्यादित तहित्वासर्वत्र पर्यवदानेवततथालताशब्दोपिशवरामपादायव्यत्यादितोरूदिवशात्कस्मिंश्चि नविशेषेवर्ततेकार्यपतिपालनात्वररणाद्वापूर्वकारणीकार्यपालपतिपूपत्ती निवापूर्वे! कारगोलिंगनिमित्तमित्यनयतिरी मतिज्ञानव्यारव्यात तत्पूर्वमस्पतिमतिपर्वमनिका रमाकमित्यर्थनामतिपूर्वकत्वेश्रुतस्पतदालकखप्रसंगोघटवदतदात्मकर्खेवा तत्यूर्वकरवाभावाकश्चिदाहामनिपूर्वश्रुतंतदपिमत्यात्मकंवानीतिःकारागा नविधानहिकार्यहोयथाम्रलिमिनीघटोम्टदात्मक अथातदात्मकत्वमिष्यते तत्पूर्वकत्वंतहितिस्पहीयतरति मवानिमित्तमात्रत्वादंगादिवलचेयदीयभाकि कारणोनिमित्तमात्रत्वादंडादिवद्यथाम्रद खयमनभवनपरिणामाभिमख्ये दिडचक्रयोरुयेयनयन्नादिनिमित्तमात्रभवति यतःसत्खपिकादिनिमित्लेख करादिप्रचितोथिंड: स्वयमंतघलभवनपरिगामनिरुत्सकत्वान्लघतीभव नितीम्रपिंडराववाघदंडादिनिमित्तापेक्षामाभ्यंतरपरिणामसालिध्याधये - Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजधा भवतिनदंडादयइतिदंडादानानिमित्तमात्रत्वतयायर्यायिपर्याययोः स्यादन्यत्वा दोरमनः खयमतःचन्तभवनपरिणामाभिमरयमतिज्ञाननिमित्तमात्रभवतिय तःसत्यपिसम्पग्रेप्रोत्रंद्रियवलाधानेवाद्याचार्यपदापिदेशासनि' - नशानावरगणोदयवशीकृतस्पखयमताश्वतभवननिरुत्सकत्वादात्मनो. श्वतंभवति ततोवाद्यमनिशानादिनिमितापेक्षात्मेवाभ्पतरऋतज्ञाना क्षयोपशमायादितश्चत्तभवनपरिणामाभिमख्याकृतीभवतिनमनिसानस्प ऋतिभवनमस्तितस्पनिमित्तमात्रखात अनेकोनाच्वनायमेकांतीक्लिकारणस दृशेमेवकार्यमितिकतरतत्रापिसप्तभंगी संभवा कथंघटवद्यथाघरःकारणे नम्मापनस्पात्सशस्याजसदृशदत्यादिहातिम्टदृव्याजीचा . सानार्पिघटसंस्थानादिपर्यादेशान्तसदृशःपूर्ववदन्तरभंगानेतव्याः कोतेनकारणानरूपकार्येतस्पघटपिंडाशविकादिपर्यायाउपलभ्पतकिंच डेनवदर्शनादपिचम्मात्तिददश Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्यघटत्वेनपरिणामवञ्चटस्यापिघटत्येनपरिणामास्यादेकांतसहशत्वानचैवंभवति तोनकोनकारासहशत्वानथाशर्तसामान्यादेशात्स्याकारणासहर्शयतीमतिरपिशा निश्रुतमपिअव्यवहिताभिमखग्रहांनानाप्नकारार्थषरूपरणसामर्यादिपर्यायादेशा स्यान्नकारासहशंपूर्ववंदत्तरेभंगानेतव्याश्रोत्रमतिपूर्वस्पेवश्रुतत्वापसंगतद यत्वादितिचेलोकत्वात्स्यादेतोत्रमतिपूर्वकस्यैवक्रतवंषानातिकतरतदर्थवाछत्वा |वधारराहिलमिमित्कच्यतेनचक्षणदिमतिपूर्वकपेवक्रतवनमामोतितलर्किकार गउक्तत्वात उक्तभवक्रतशब्दोर्यरूदिशब्दइनिरूनिशब्दाचखात्पन्तिक्रियानपेक्षाः प्रवर्ततइतिसर्वमतिपूर्वस्पश्रुतत्वसिद्धिर्भवति।आदिमनीतवत्वाछुतस्यानादिनिधन लानुपपत्तिरितिचेन्लद्रव्यादिसामान्यापेक्षयातसिद्धेः स्यादेतछुतस्यादिमखमयपग तमतिपूर्वमितिवचनादादिमतश्चलोकेतवत्वलंतताद्यतसंभावादनादिनिधनश्च तिमितिव्याहन्यतेततश्चपरुयकृतिवादंग्रामाण्यस्पादितिर्नषदोयदिध्यादिसामा न्यापेक्षयातसिद्धि द्रव्यक्षेत्रकालभाधानांविशेयस्पाविवक्षायांश्रुतमनादिनिध Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा नमित्युच्यतेनहिकेनचित्यरुयेणक्वचित्कदाचित्कथंचिदस्पेक्षितमितितेयामेववि शेयापेक्षयामादिरंतश्चासंभवतीतिमनिवमित्युच्यते याकुरोवीजपूर्वःसच संतानापेक्षयाअनादिनिधनतिनवापरयकृतित्वंषामाण्यकारांचौर्यायुपेदेश स्थासयमाणकटकस्यखामाण्यापर्सगादनित्यस्यचजत्यक्षादलामारोपकोविरोधः सम्यक्वोत्यन्तीयगपन्मनिश्चत्तोत्पत्तमतिपूर्वकत्वाभावइतिचेलसम्पञ्चस्पतदपेक्ष खास्यान्मन मत्यज्ञानक्राज्ञानयोग प्रथमसम्पकोत्यत्तीयुगपदज्ञानपरिरामान्म तिपूर्वकर्वभुतस्पनोपपद्यतइतितन्नर्किकारसम्पन्कस्पतदपेक्षत्वान्तयोहिस म्यकंसम्पग्दर्शनोत्यत्तीयगपद्भवति मात्मलाभवक्रमवानिनिमनिपूर्वकलयुक्त, । नापत्रवन्मतिपूर्वकत्वाविशेषरतिनकारगाभेदान्तड्नेदसिद्धेश . नांश्चत्तमविशिषानीति कत:कारणाविशेषान्मतिपूर्वखहि । यामविशिष्टमिनिनन्लकिकारणीकारणभेदान्तद्भेदमिपनि रुहिमतिश्ठता वरण्याक्षयोपशमोवहुधाभिन्नरतद्भेदावाद्यनिमित्तभेदाचश्चत्तस्यपकवधिकर्ष Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योगोभयत्तिमति पूर्वत्वाविशेषेपितातप्रतिपते क्षरणा व्या मिरिति चेन्नतस्यो |पचारतोमतित्वसिद्धेः स्यान्मतंयदा शब्दपरिणतपुद्गल कंधादाहितवपिदावा क्यादिभावाञ्चक्षुरादिविषयाञ्च्च आद्यश्चतविषयभावमापन्ना विनाभाविनः कृ तसंगतिजनोद्य गजलधारणादिकार्यसंवंध्यंतरंप्रतिपद्यते धूमादेवग्न्यिादिद्वले तदाता छूतप्रतिपत्तिरितिकृ त्वामतिपूर्वलक्षणमध्यापीति तन्न किं कारोतस्प पचारतोमतित्वसिद्धेः मतिपूर्वहितवचिन्मतिरित्युपचर्यते अथवा व्यवहिते पूर्वशब्दोवन्ततो तथा पूर्वमथुरायाः पाटलीपुत्रमितितत्तः साक्षान्मतिपूर्व परंपरयावामतिपूर्वमपिमतिपूर्वग्रहणेनग्टह्यते भेदाव्दस्पप्रत्येकं परिसमामि भुजिवद्यथादेवद-तजिनद-तरुदन्ता भोज्यतामितिभुजिः प्रत्येकं परिसमाय्य तितर्थेहापि भेदशब्दः प्रत्येकमभिसंबध्यते द्विभेदमनेकभेदद्वादशभेदेचेतितत्रां गजविष्टमगवाह्यं वेति । द्विविधं अंगप्रविष्टमा चारादिद्वादशभेद यतिशयाई युक्तैगरणधरानुस्ट तंत्रंथरचना भगवदर्ह सर्वज्ञहिमवन्तिगतिवाग्गंगार्थविमर Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा- लसलिलप्रक्षालिताःतःकरणेवध्यतिशयर्द्धियुक्तैर्गणाधरेनुजसंथरचनामाचा दिग्दविधर्मगषविष्टमित्युच्यते तद्यथा आचारसत्रकर्तस्थानसमवायोध्या ख्याप्रज्ञासिज्ञलिधर्मकथाउपासकाध्ययनअंतकृद्दशअनुत्तरोपवादिकदसपना व्याकरणवियाकम–हष्टिवादरनिमाचारेचर्याविधानशुयष्टकपंचसमितियमि विकल्पकथ्यते सूत्रकृतेशानविनयज्ञापनाकल्य्याछेदोपस्थापनाव्यवहारधर्म क्रियाखरूय्पने स्थानेनेकानयाराणमर्थानानियिः क्रियते समबापेसर्वपदार्थी नोसमवायश्चित्यते सचतुर्विधाद्रव्यक्षेत्रकालभावविकल्पेनववर्माधर्मास्तिका यलोकाकाशैकजीवानोतुल्याख्येपपदेशत्वादेकेनप्तमायोनद्रव्यागासमवाप नारद्रव्यममवायःजवूलीयसवर्थिसिधवतिष्टाननकनंदीश्वरैकवापानानल्ययोजनशतसहस्त्रविष्भत्रमाणेनक्षेत्रसमवायनातक्षेत्रसमवायउश्पर्पिण्य वसपिण्पोखल्यदशसागरोपमकोटीचमागारकालसमवायीक्षापिकसम्पन्कके वलज्ञानकेवलदनियथारख्यातचारित्राणीयोभावस्नदनभयस्पतुल्यानंतषमारणवा Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावसमवायनाद्रावसमवायव्याख्यातासायटिव्याकरणासहस्त्राणिकिमलिजी) योनारजीत्येवमादीनिनिरूप्यतेशाटधर्मकथायामाख्यानोपाख्यानानांवरुषकाराणी कथनछपासकाध्ययनश्रावकधर्मलक्षणसंसारस्पीतः कृतार्यरतकृतःनमि मनंगमोमिलरामपत्रमदर्शनयमलीकवलीकनिष्र्कचलपालोवष्टपत्राइत्येतेद सवईमानतीर्थकरतीर्थशवम्यमादीनीत्रयाविशतेतीर्थव्वन्पन्येचदशदशानगा। रादशदेशदरगानुपसगीनर्जित्यकलकर्मक्षयादत्तकृत दशास्यांवरफ्तदान अंतकद्दशाअथवा ततादशाअंतकशानस्यामहंदाचार्यावधि:सिध्यतो चउपदोऊन्मपयोजनेयेयोनेइमेऊपपादिका:विजयवैजयतजयंतापराजितस वासिहाव्यानिपंचानुत्तराणिमन्तरेय्चापपादिका अत्तरोपवादिकारवि दासवायसनक्षत्रकार्तिकनंदनंदनशालिभदाभयवारिणचिलानपत्राइत्येतेद शवमानतीर्थकरतीयेएवम्टयभादानोत्रयोविंशतरतीर्थचन्येन्येचदशदानमा रादणादशदारुणानपसगान्निर्जित्यविजयाद्यनुत्तरेवत्यन्लाइत्येवमठत्तरोपपादि Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... मायक्रियिकनबंधविशेयःसाक्षेपविक्षेपैहेर्नुनायाश्रितानोपना नोव्याकरणायमध्याकरणात्तस्मिल्लोकिकवैदिकानामोनानिलयः विपाकम् . कृतादाकतानीविषाकश्चित्यत्तिो हादशामगंदृष्टिवाददातिको कलकाण्वविद्धिको शिकहरिशमक्रमौछपिकरोमसहारितमंडाश्चलादीनोक्रियावाददृष्टीनामशी . मरीचिकुमारकपिलोलकमारपेव्याघभतिवाहलिमातमोजल्योयनादीनामक्रि वाददृष्टीनोचतुरशीनिशाकल्यवाकलयभिसात्यमद्रिवाशायणकंठमाध्ये मोदपैय्यलादवादण्यांवीकृरिकायनवसंजमिन्यादीनामज्ञानिकहानी भावषिष्टापारासरजनकर्णिवाल्मीकिरोमर्पिसत्यदत्तव्यासैलापत्रीय जायस्यगादानोवैनयिकदृष्टानाद्वात्रिंशदेषीदृष्टिशनानांत्रयागात्रिय नराशाखरूपणोनियाहश्वदृष्टिवादीक्रयतेसपंचविधापरिकर्मसूत्रैश्चमा •पूर्वगतंचलिकाचेतितत्रपूर्वगर्नचतुर्दशषकारेउत्पादपूर्वमनायाची . नालियवादेशानसवादेसत्यजवादमात्मवादकर्मपवादचप्रत्या Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख्याननामधेयंविद्यानुवार्दकल्याणनामधेयं प्रारणावार्य क्रियाविशाले लोक वि दुसारमिति कालप्रद्गलञ्जीवादी नोयदायत्रयथाचपर्यायेणोत्पादो वर्ण्यतेतदुत्या दपूर्वक्रियावादादीनां क्रिया अग्नायणी चांगादी नांखसमवायविषयश्चयत्रख्या पितरतद्रायणं छमस्थ केवल गांवी सुरेंद्रदैत्याधिपानांशैड्यो नरेद्रचक्रध बलदेवानांचवीर्यलाभोन्द्रव्याणां सम्पक्क लक्षणे चयत्राभिनंही प्रवादपंचा नामस्तिकायानामर्थेनयानांचानेकपर्यायैरिंदमस्ती देनारतीतिचका नियत्रा बभासितं तस्तिनालिषवादो अथवा मामपिव्यारणभावाभावपर्यायविधि नाखपरपर्यायापामुभयनयवशीकृताभ्यामर्पितानतिसिहाभ्यांयत्रनिरूप तदस्ति नास्तिप्रवादपचानामपि ज्ञानानां प्रादुर्भावविषयायत्तनांनां ज्ञानिनाम ज्ञानिनार्मिंद्रियाणां चप्रधान्येनयत्रविभागेोविभावितः तद्भानवादी वाग्ग्रमसं |स्कारकारण्झयोगोद्वादशधाभाषावक्तारश्यानेकप्रकारम्य्याभिधानंदशप कारश्यसत्यसङ्गावोयत्ररूपितस्तसत्यवादे वाणुसिंवक्ष्यमारणखा करक Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. रकारणां निशिरःकंठादी न्यष्टौ स्थाना निबाक प्रयोगः श्रभेतरलक्षयो दृश्यते भ्याख्यानकलहपैशुन्यासंबडूज लापरस्परापधिनिकृत्पतिमोषसम्पग्मि थ्यादर्शनात्मिकाभावाद्वादशधाहिंसादेः कर्मणाः कर्तु विरतस्पविरताविरतस्प वायमस्प कन्तेत्यभिधानमपाख्यानं कलह, प्रीतीतः ष्टष्टनोवो याविष्करण पैशुन्यधर्मार्थकाममोक्षासंबद्वार वागसंवप्रलापः शब्दादिविषयदेशादिस रत्पादिकारतिवाकतेय्वेवार व्युत्पादिकारतिवाक्यो वा चंद्र त्वापरिग्रहा जैनिरक्षरणादिष्वासज्यतेसोपाधिवाका वाणग्व्यवहारेयामवधायनिक एगमात्माभवतितानिष्कृतिवाक'' यो श्रुत्वातपोविज्ञानाधिकेष्वपिनप्रणमति साझागातिवाकमाशुत्वानेयेवर्त्तत सामोयवाकर · ग्दर्शनवाक तद्विपरीतामिथ्या दर्शनबाक वक्तारस्याविष्कृतवक्तृत्व पर्यायाह्नी द्वियादयः॥द्द्रव्यक्षेत्रकालभावाश्रयमनेकप्रकारमन्टनं दशविधः सत्यसङ्गा बः नामरूपस्थापनाप्रतीत्यसंवृति संयोजना जनपददेशभावसमयसत्यभेदेन Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्रमःचेतनेतरदव्यस्पासत्यय्पर्धयद्यवहारासंशाकरणातलामसत्याई ददत्यादियदछसिनिधानेपिरूपमात्रेयोच्यततद्रूपसत्यययाचितुपुरुषादिव्यस त्यपिचैतन्योपयोगादावर्थेपरुषहत्याधसत्यय्यर्थयत्कार्यारथापितंधूतांक्ष निक्षेपादियततस्थापनासत्यात्मादिमदनादिसदोपरामिकादीनावान्सत्तीत्य यहच तत्वतीत्यसय॑यल्लोकोसंवत्यानीर्तवचरत्नत्संवृतिसत्ययथायथिव्याधे निककारात्येपिसतिपके जातपंकजमित्यादिपचूर्णवासानलेपनमघर्यादि उपनमकरईससर्वतोभद्रक्रोचव्यूहादियवासचेतनेतरध्यागीययाभाग विधिसनिवेशादिवियवचस्तरीयोजनासत्यावात्रिंशजनयदेय्चायानार्य भिदेवधर्मार्थकाममोक्षाणांपापर्कयचरनजनपदसयमामनगरराजगरणया घडजातिकलादिधारामपदेश्यदचस्तदेससत्य छयस्थज्ञानस्पद्व्ययाया स्पादर्शनेपिसेपतस्पर्सयतासयतस्पवाखगणपरिपालनार्थखासकर्मिदमता सकमिदमपासुकमित्यादियद्वचरतद्भावसत्य। प्रनिनियतबद्यध्यपर्याया Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. यामागमगम्पानांयायालयाविष्करायचरतत्समयसत्यो यत्रात्मनोस्तित्वना . स्तिखनित्यत्यानित्यत्वकलवमी कृत्वादयोधर्माभयडीवनिकायाभेदाश्चयक्ति तोनिर्दियाग्नदात्मवाद वैधोदयोपशमनिरापर्यायानभवपदेशाधि करणानिखिनिश्यजघन्यमध्यमाञ्ऋष्यायत्रनिद्दिश्पतितकर्मजवादीव्रता नियमपतिलेबनतःकल्पोपसर्गाचारजतिमाविराधनाराधनविणुकपक्र मश्रामरापकारांचपरिमितापरिमितद्व्यभावप्रत्याख्यानेचयत्राख्यातन खत्याख्याननामधेयंसमस्ताविद्याअष्टोमहानिमित्तानितद्विषयोरजुराशि विधिःक्षेत्रं श्रेणीलोकप्रतिव्यासंख्या समवातश्चयत्रकथ्यतेतद्विद्यानु चादो तत्रांगठपसेनादीनामल्पविद्यानीसमशतानिरोहिण्पादानीमहावि द्यानीपंचशतान्पतरिक्षमीमागखरखप्नलक्षाध्यंजनछिन्लान्यष्टोमहा निभित्तानिनेवाविषयोलोकनाक्षेत्रमाकासेपटसूत्रवच्चमविपववद्वान पूर्वगोहधिलियग्व्यवस्थिताः असंख्याताआकाशप्रदेशाभूमयःश्रे, Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % यउताामलोकाकाशस्यानंतस्पवहमध्येसपतिष्टकसंस्थानोलोकउर्द्धम धस्तियनदंगवेत्रासनगलाकृतितनुवातवलपपरिक्षिसस्तियक्षप तरन्तश्चतुर्दशरमयामोमेरुप्रतिष्यवज्ञवैयपटलीतररुचकसंस्थित्ताआ व्यावाकाशदेशालाकमध्यलोकमध्याद्यावर्दशानोतरतावदेकारज्जरईचमा हेंद्रातमित्रःब्रह्मलोकातईचतुर्थाशकापिटीनेचतवशमहाशुक्रतिपईप चमा सहस्त्रातपंचधारणतातअईयव्याक अध्यनोतेय आलोकमध्यादयः यावयवरायधिव्यतालावदेकारसुरतनोधःयथिवीनापंचानाजत्येकमंते तोरजरेकैकारज्ञानतोघरलमलम: सभायाआलोकोतादेकारजुःएवंसमा धोरजवाघनीदनोदधिधनानिलतनवातवलयानित्रीणियैरयपरिक्षिसःसर्वस मताल्लोकात्रयायामय्यधोलोकदिग्विदिकपाश्वभाविनोप्रत्येकैविस्तारोविंश नियोजनसहस्त्राणिततउपरिक्रमतोहानिवशात्तिर्यगलोकभाविदिक्याझुव्व व्यासप्रत्येकैत्रीपपिवलयानिपचचचास्त्रियोजनविस्तीरणनिपनरुपरिवद्धि Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा वशाहललोकेदिग्विदिक्याचव्यव्यासपत्येकंबीरपपिवलयानिससर्पचचतुयो। जनविस्तीशानिएनहानिवसालोकाग्मे अष्टास्वपिदिग्विदिकपार्श्वघनत्येके एपपिवलयानिपंचचतुस्चियोजनविस्तीमोनिदंडनलयानिपनरुपयधिश्चत्री एयरएपरिलोकाग्रेघनादधेर्द्धिगव्यूत चनानिलस्यक्रोश'तनुवात्तस्पदेशोना कोणविस्तारीप्रधःकलंकलयथ्वीपर्यंत नोदधे ससघनानिलस्पपंचत नुवातस्पचित्वारियोजनानिविस्तार अधोलोकमूलेदिग्विदिक्षविष्कभःस सरजवस्तियरलोकेरतुरेकानललोकेपंचपनलोकाग्रेजुरेकालोकमध्या दधोरजमवगाह्यशर्करोते अष्टाखपिदिक्षविदिक्षविश्कंभरजरेकारक्षा श्वषट्सममागास्त्रनोरञ्जमवगारवालकोते हरजरक्षाश्वपंचससभागारत तोरजमवगायकानेतिस्त्रोरजवीरक्षाश्चत्वारःससभागारततीरमवगा. घमोतेचतस्त्रीरतवःरक्षापत्रयः समभागारलतारमवगायतमः पेचरजवारक्षाश्चदौसमभागीततोरञ्जमवगायतमस्तमः प्रभातेयद्रज Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाससभागश्चैकरततोरजमवगायकलंकलाविष्कंभःससरजवायजतलद परिरजमक्रम्पविष्कंभोढेरतरक्षश्चरकःससभागः ततोरजमुम्पतिस्त्रो रावकारक्षाचौसमभागीततौरजमक्रम्पचतचोरतवः रक्षाश्वप्रयाससभा गानोमनोहरजमक्रम्परजवाचततोहरजसुकम्पचत्तस्त्रारजवारसाय ||त्रयःससभागाततोरजमुकम्पतिस्त्रोरजवरदानहोससभागोततोरजू मक्रम्परिरक्षाश्चएकससभाग-ततोरजमक्रम्पलोकातरजरकाविक भन्मएयरजुविधिःहतेगीभक्रियवासभूयात्मपदेशानांचवहिरुद्वमनसमडा नासससविधावेवनाकयायमारणांतिकतेजोविक्रियाहारकाकेवलिविययभेदा तत्राधातिकादिरोगवियादिद्रव्यर्वधासतापापादितवेदनाकातोवेदनासद्धा त:हितयप्रत्ययप्रकत्पिादितक्रोधादिकत्तःकयायसमहातःऊपक्रमिकान पक्रमायुः क्षयाचिभूतिमरणांतप्रयोजनोमारणतिकसमहातगाजीवानुग्रहोप चातसवाज शरीरनिवन्तनार्थरनेजस्समहातभारकत्वय्यकनानाविधि Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा. विक्रियशरीरवाकप्रचारपहारशादिविक्रियाप्रयोजनोवैक्रियसमुद्धातः प्रोक्त विधिनाऽल्पसावयसक्ष्मार्थग्रहणणअयोजनाहारकशरीरनित्यर्याहारक समहातःवेदनीयस्यवहत्वादल्यत्वाचाययोनाभोगपूर्वकमायासमकरणार्य द्रव्यस्वभावत्वासराद्रव्यस्पफेनवेगवडुदाविर्भावोपशमनवदेहस्थात्मजदेशा नीवहिासमहात केवलिसमहातःआहारकमारांतिकसमडातावेकदि को यतःसाहारकशरीरमात्मानितयरगिगतित्वादेकदिवानात्मपदे शानसंख्यातान्लिगमय्याहारकशारीरन्निमात्रंनिवन्तयतिअन्यक्षेत्रसमद्भा न्यतेनान्यक्षेत्रेतरतावेकदिकोशेषापंचसमझाताःयडिक्वायतोवेदना दिसमहातवशाहहिनिस्टतानामात्मनदेशानांपूर्वपरदिक्षिणोत्तरोधिोदि क्षगमनमिष्टेणिगतिवादात्मपदेशानीवेदनाकषायमारांतिकतेजोये क्रियिकाहारकसमहासायसंख्येयसमयिकाकवलिसमहासानास यसमयिक दंडकपारपतरलोकपूरणनिचलरसमयेखापन:लोक Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणनियतबसमयेष्ठ पुनःलोकपूरणनि-पतरकपाटदंडकस्वशरीरावप्रवे शाश्वर्धिति रविशशिरग्रहनक्षत्रतारागणानांचारोपपादगतिविपर्ययफला निशक्रनव्याहृतमहबलदेवावासदेवचक्रधरादीनांगर्भावतरणादिमहाक ल्यागानिचयत्रोक्तानित्तवल्याणनामधेयकायचिकित्साघम्टोगमायुर्वेद भ्रतिकर्मजागलिपक्रमः॥पागापानविभागोपियत्रविस्तरेगावर्शितस्तत्वा गावार्यलेवादिका कलादाससतिगाश्चतुषधिस्वरापाःशिल्यानिका व्ययगादोयक्रियाछंदीविचितिक्रियाक्रियाकलापभोक्तारवयत्रध्यारव्याता तक्रियाविशालंयत्राष्टीव्यवहाराश्चत्वारिवाजानिपरिकर्मशिक्रियाविभा गश्चसर्वश्चत्तसंपदपदिव्यातखललोकविंदसार आरतीयाचार्यकृतोगायो प्रत्यासन्नरूपमंगवाह्यं यगणधरशिष्पप्रशिध्येरागतीयैरधिगतवत्तार्थत खैःकालदीयादल्यमेधायचलानोपामिनामनुग्रहार्थमपनिवडासक्षिमा गार्थवचनविन्यासतदगवायतदनेकविधकालिकोवालिकादिविकल्या Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. तदगवाघमनेकविधंकालिकमत्कालिकमित्येवमादिविकल्पास्वाध्या लेनियतकालकालिको अनियतकालमत्कालिकेत दाउत्तराध्ययनादय अनेकविधा मित्रोहनमानादीनायथगनपदेशाकिमर्थ . पृथगनपदेशःशुलाधरोधाद्यस्मादेतान्यनमानादीनिश्छतेतर्भवति .. यथयपदेशानक्रियते तद्यया प्रत्यक्षपूर्वत्रिविधमनमानेपूर्वव . मान्यतोहरचेति तत्रयेनोग्नेलिस्सरन्यूर्वधूमोहयःसपसिद्धाग्निधूमसंबंधा हितेसंस्कारः पश्चाइमदर्शनादरत्यत्राग्निरितिपूर्ववदग्निग्रहातीतिपूर्व . मान तथायेनवैविधाणाविधागिनो संबंधउपलभरतस्पवियाणरूपद नाद्विवाशिन्यनमानयवत्यातयादेवदत्तस्पदेशांतरपासिंगतिपूर्विको छासवंध्यतसवितरिदेशोतरजामिदर्शनामतेरत्यैतपरोक्षाया सामान्पत्तोपतदेतचितयमपिखपतियत्तिकालेसनक्षरशतपरपतिप तिकालेक्षरस्वतयथागोस्तथागवयः केवलंसारलारहितनखपमानममि Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खपरप्रतिपत्तिविषयत्वादक्षरानक्षरश्रुतेः नर्भवति तथाशाव्दमपिसमा श्रुतमेवरोतेः ह्यस्पचती हसभगवान्टयभः इतिपरंपरी पुरुयागमाद्रा तदूतिश्रुतेतर्भावः प्रकृतिपुरुषोदिवानभ्रंक्त प्रयच जीवतीत्यर्थादापन्ने रात्रीत इत्यर्थापतिश्चत्वारः प्रस्था आदकमितिसत्तिज्ञाने प्राट के दृष्ट संभवत्यर्द्धाढकं कुडुवोवेति प्रतिपतिसंभवः शाल्मादी जो स्नेहपरफिं लाद्यभावे दृष्टानुमीयते नूनमंत्रनदृष्टः पउन्यि इत्यभावएतेषामय्यर्था पत्र्यादीनामनन्तानामनुमानसमानमितिपूर्वक्ततिभावः व्याख्यातंयरो संप्रत्यक्षमिदानी वक्तव्यं तद्वेधादेशप्रत्यक्षं सर्वप्रत्यक्षं च देशप्रत्यक्षम वधिमन:पर्ययज्ञानेसर्व प्रत्यक्षकेवर्तयद्येवमिदमेव तावदवधिज्ञान त्रियाकारप्रत्यक्षस्पाद्येच्या क्रियतामित्यत्रोच्यते, व्याख्यातमस्प लक्ष आत्मप्रशादविशेयेसत्य त्वर्थसंज्ञाकरणादबधी यत्तेत्तदित्यवधिज्ञान मिति यद्ये वनस्पेदानी भेदोवक्तव्यः उच्यतेोद्विविधोवाधः भवरण Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्ययसर्वशष्टस्यनिरवशेषवाचित्वात्सर्वावधिमपेक्ष्यपरमावधेद्देशावधित्वमेवेति वक्ष्यामातचयोसौभवपत्ययस्तयतिपादनार्थमाह।भवनपयोवाचविना रकाराभवदसच्यातेकोनॉमभवायनमिकर्मोदयविशेषापादितपर्यायो । सामनोया,पर्यायसाययोनान्तश्चउदयविशेषावकारणापेक्ष विर्भवतिसाधारणलक्षोभवन्त्यच्युत्तेसत्यक्षशब्दस्यानेकार्थसंभवेविवक्षा तोनिमित्तार्यगतिभाशयंप्रत्ययशदोनेकार्थक्वाचितज्ञानेवततो यथार्थाभि धानप्रत्ययाइति क्वचिछपथेवत्ततेययापरद्रव्यहरगादिषसत्यपालभेल. निनवतरतिवचितीवर्ततेयथाविद्यावत्ययाः।मेरकाराशतितत्रेहविवक्षातो निमित्तावेिदितव्यः भवत्ययोभवनिमित्तरतिक्षयोपशमाभावनिचलन रिमसतिसद्भाधारक्षेपतत्रिगतिवारस्यादेतद्यदितत्रभवनिमित्तीवाधिक मणःक्षयोपशमनर्थकरतितन्नर्विकारणांतरिमसतिस . वतययाकाशेसतिपक्षिणोगनिर्भवतितथावधिज्ञानावरणाक्षयोपशमेतरंगे Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोसत्यवधेर्भावोभवस्तु वा यो हेतुः इतरथाह्य विशेषप्रसंग: यदिहिभवहेतुः स्पात्सर्वेषां देवनारका गोतल्पइत्यवधेरविशेषप्रसंगः। स्पादिष्यतेचप्रकर्षा प्रकर्यभावेनवृत्तिः कथंपुनर्भवो हेतुरिति चेद्रतनियमाद्यभावाद्यथातिर श्वांमनुष्याणां चाहिंसादि चतनियमाहेतुको बधिन्तथादेवानां नार का चाहिंसादियत्तनियमाभिसंधिरस्निकुतोभवंसती त्यकर्मोदयस्प तथाभावा तस्मात्तत्रभवएबवाह्य साधनंज धानमित्यच्यतेः सविशेषात्सर्वप्रसंगइति चेन्न सम्पाधिकारात् स्यादेतदेव भार का रणामित्यविशेषवचनान्मिथ्यादृष्टी नामय्यवधिसँगइतितन्नकिं कारणांसम्पगधिकारात्सम्यग्दर्शनसम्यग्ज्ञानं मितिवर्त्ततत्संबंधासम्पग्दृष्टी नामवधिर्मिथ्यादृष्टीनांविभंगो वेदितव्यः अथ वावक्षमाणभिसंबंधान्नसर्वप्रसंग:वक्ष्यते ह्येतन्मतिश्च तावधयोविपर्ययश्चे तिः अथवाव्यख्यानाद्विशेषप्रतिपत्तिः आगमेासि द्वे-नरिकशब्दस्पपूर्वन पातइतिचेन्नोभयलक्षणप्रामत्वादेवशब्दस्पस्यादेतन्नारकसव्दस्प पूर्वनिपा Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ||तरविचन्लोमयलक्षणालामवाद्देवशदस्यस्यादेतन्नारकसदस्पपूर्वनिपातेनभ विल्य कता आगमेजसिद्दे मागमेहिजीवस्थानादिसदादिव्यनयोगहारे गादेशवचनेनारकामामेवादीसदादिलरूपगाकता ततोनारकशब्दस्पए वनिपातनभवितव्यमितितन्लर्किकारीउभयलक्षाजासत्वाद्देवशब्दस्प देवशब्दोहिल्याजम्पहिनश्यतिवृत्तीपूर्वनियोगाह'आगमोवाका विष योनिर्देशतिनालिनियम आहोतंभवतेय्यतेषकवतिकर्षभावनहति रितिक्कयमितिचेदुच्यते देवेयतावनवासिनांदशप्रकाराणामपिजघन्यो वाधिःपंचविंशतियोजनान्यतयटोसुराणा असंख्यातायोजनकोठीकोटमाध ऊर्व मनुविमानस्योपरिपयेतोनागादिकुमारानवविधानामयलो वधिरघोसरव्यानोनियोजनसहस्त्रारापूर्वमंदरचूलिकाया उपरिपर्यतिरित योगसंख्यातानियोजनसहस्राणियंतराणामष्टविधानांजघन्योवाधिःपंच विशतियोजनानि उत्कृष्टोस्पसंख्यातानियोजनसहस्त्रारपधा। उद्धव Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नस्योपरिपर्यंतरितयंगसंख्यातायोजनकोटीकोद्यःज्योनियोजघन्योवधे, रघासव्ययानियोजनाएकृष्टयासंख्येयानियोजनसहस्त्राण्यूही मारमा यविमानस्योपरिपर्यंतःतियंगसंख्यातायोजनकोठीकोवःवैमानके सौधर्मशानीयानांजघन्योवधिज्योतियामकृष्टः रत्ननभाया अधारम उत्कृषःसानमारमाहेन्द्रागांजघन्योवधिःरनषभायाअधश्चरमार स्कृष्टःशर्करानभायालयश्चरमब्रह्मब्रह्मोत्तरलोतवकापिय्यानांजच न्यावधिः। शरिषभाया अधश्चरमनवटावालकाजभायाअधश्च रमा लक्रमहाशुक्रसतारसहस्त्राराणाजघन्यायाधिवलिकप्रभायास धश्वरमनकृष्टपेकसभायानिश्चरमउन्कृयपंकनभायामिवचारमः लानतलागातारगायतानाजघन्योवधिपकपभायाप्रधश्चरमाउकृष्ो धूमनभायाअधश्चरम उत्कृष्टःनवानागवेयकानांजघन्योवाधिईम सभायामधश्वरमः उन्कयतमःखभायामधचरमःनबानामवधि Sunaulusara Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजधा दिशानांपंचामुप्तरविमानवासिनोचलोकनालिपर्यंतोवधिःसौधर्मादीनामं उत्तरांतानाऊखविमानस्पोपरिपयोतस्तियंगसरख्यातायोजनकोटीकोद्यः अथैयोकालव्यभावेख्याकोवाधिरित्यन्लोच्यो यस्पयावक्षेत्रावधिरत स्पतावदाकाशनदेशपरिछिन्लेकालद्व्येभवत तावत्ससमयेव्यतीते बनागतेय्यचज्ञानवर्ततोतावदसंख्यातभेदेवनंतपदेशेखापगलस्कंधे घजीवेयुचसकर्मकेखभावतःखविययपगलस्कंधानोरूपादिविकल्ये जीवपरिणामेचऊदायिकीपशमिकक्षायोपशमिकेवायोजनमग व्यतहीनमागच्यूतात्तद्यथारननभायोयोजनमवधिरधद्वितीयायामधी ईचतोनिगमतानिरतीयायामंधात्रीणिगव्यूतानिचतुर्थ्यामधोईल तीयानिगव्यूतानिपंचम्पोहेगस्तेयायामचोर्वाधिकंगव्यूत ससम्पमधो गव्यूत सर्वासप्रथिवीपनारकागार्मवाधरुपरिमात्मायनरकावासो यंगसंख्यातायोजनकोतीकोद्यकालद्ध्यभावपरिमारणेपूर्ववदितव्यय Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A nimalMANA warwwmarianarassmannaman दिभवपत्ययावधिवनारकागामष्टाक्षयोपशमहेनुकाकवामित्यतमाहः क्षयोपशमा मिनबाल्बापो अवधिज्ञाना: परस्पदेशघाति स्पईकानामदयेसतिसर्वघातिस्पईकानामदयाभाव सशेधाराविदितव्याः केपन:शेषाःमनुष्यातिर्येचचशेयारततस्तेषामविशेबात्सर्वेयोतिरश्याम व्यागांवावधिप्रसंगरतितन्तर्किकारणोतसामर्थ्यविरहातनश्यसजिना मपर्यासकानांतत्रसामर्थ्यमस्तिसशिनांपर्यासकानांचसर्वेयांकेयांताहिय योक्तनिमित्तसंनिधानेसतिशोत क्षीणकर्मांतस्योपलश्रेः यथोक्तसम्प ज्दर्शनादिनिमित्तसैनिधानेसतिशीतक्षायाकर्मगोतस्योपलचिभवतिननस वस्यक्षयोपशमनिमित्तलत्रकिमच्यते क्षयोपशमनिमित्त शेवाणामिति सर्वस्पक्षयोपशमनिमित्तवेतवचननियमामिनक्षवता ययानकशिदपो नभक्षयतीत्यवग्नहानियमाक्रियते अपरावभक्षयतातितथासर्वक्षयो पशमनिमित्तरमहरगनियमार्य,क्षयोयशमनिमित्तारावनभवनिमित्तरति Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जवा. सरायोवधिः पडिकल्पः कुतः अनगाम्यननगामिवईमानहीयमानावस्थि तानवस्थितभेदात्वविधः कश्चिदंवधिभरिकरखकाशववंतमनगछति के चिन्नानगलतितत्रैवानियततिउत्सरखपुश्माहोशिकपरुयवचनवरा-अप वाधिररणिनिर्मथनोत्यन्लयरकपत्रोपचीयमानधननिचयसमिपाचक वत्सम्यग्दर्शनादियाविष्ठद्विपरिणामसैनिधानाद्यत्यरिमाथाउत्पन्नस्तोवहीं जाप्रसंख्येयलोकेन्यप्रायरीवधिः परिछिन्लोयादानसंतस्पम्निशिखा : वत्सम्यग्दर्शनादियाहानिसलेरापरिणामविहियोगाद्यसमागाउत्पन्लत नाहीयते पागलस्पासव्ययभागात इतरोवधिःसम्पग्दर्शनादिगाव स्थानाद्यत्परिमाणउत्पन्लरतत्परिमागरवावतिष्टनेनहायतनापिवईतलिं, गवदाभवक्षयादाकेवलज्ञानोत्पत्तेचा अन्यावधि सम्पग्दर्शनादिगणादि हानियोगात् यत्परिमाणउत्पन्नतातोवर्द्धतेपायदनेनवईितव्यहीयनेचयाव दनेनहातव्यवायवेगप्रेरितजलोमिवदेवयाहिकल्पावधिर्भवतिस्पनरपरेव Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धेस्त्र यो भेदाः॥ देशावधि परमावधिः सर्वाविधिश्वेति तत्रदेशावधिस्त्रेधाजघ न्यरकृष्टः अजघन्योत्कृष्टेति तथापरमावधिरपित्रिधाः सर्वाविधिरविक रूपत्वादेकएव उत्सेचागलासंख्येय भागक्षेत्रादेशावधिर्जघन्यः उत्रत्कृष्टत्कृ हमलो करत योरतराले संख्येयविकल्पः अज्जघन्पोत्कृष्टः परमावधिर्जघन्य । एकप्रदेशाधिक लोकाक्षेत्रः उक्तष्टोऽसंख्येय लोकक्षेत्र अजघन्योत्कृष्ट मध्यमक्षेत्र, उक्कृष्टपरमावधि क्षेत्राद्वहिरसंख्यात क्षेत्रसर्वाविधिर्वईमानो हीयमान अवस्थितः अनवस्थितः अनुगाम्यननुगामी अतिपातिपतिपाती तियत प्रष्टौ भेदादेशावधे भवंति हीयमानप्रतिपातिभेदव इतरेय दाभवे तिपरमावधेरवास्थितो अनुगाम्पननुगाम्पप्रतिपाती त्ये ते चत्वारभेदाः सर्वावधे रतचयाद्याउक्त लक्षरणाः प्रतिपातीतिविनाशी विद्युत् काशवत् तद्विपरीतो प्रतिपातीतत्रदेशावधेः सर्वजघन्यस्पक्षे त्रमत्सेचांगलस्पासंख्येयगः आ बालिका या असंख्य भाग कालमंगल स्पासंख्येयभागक्षेत्र प्रदेशप्रमाणे 23 Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. द्रव्यंतत्समासापरिछिन्नेय्व संख्येयेषुरकं धेय्वनं तप्रदेशे बुज्ञानंवर्त्ततेविषय स्कंधगमानं तवर्णादिविकल्यो भावस्तस्पवृद्धिरुच्यतेषु देशे त्तराक्षेत्र वृद्विन्नस्ति एकजीवस्प नानाजी बानां चुपदेशो-त्तरक्षेत्रेवृद्धिर्भवति आसर्वलोकादे कजीव स्वत्वंयला संख्येयभागादूर्द्ध विशुद्धिवशान्मंडूक त्यांय ला संख्येयभागक्षेत्रे वृद्धिर्भवत्यासर्व लोकान्नाना जी वा अपिप्रदेशान्तर ह्या तावतेयावदंग लस्यासंख्येयभागःकालवृद्विरेक जीवस्य नाना जीवा नांवामी ला दावलिकाला "ख्यभागात्क्वचिदेक समयोन्नरक्वचिद्दिसमयोत्तराक्क चिसंख्येयसम योन्तरायावदावलिकाया असंख्ययभागः ॥ सेयं क्षेत्र कालवृद्धिः कयाहया चन विधयासे ख्मेयभागवृद्ध्या संख्येयगुणकृया संख्यगण वृद्ध्यावाएवंद्रव्यमयि वर्द्धमानं चतुर्विधपायावर्द्धते भाव वृद्दिषोढा अनंतभाग वृद्धिरसंख्ययभाग • संख्येयभागवृद्धिः संख्ये यगुणदृद्धिरसंख्ययाच्चद्विरनंतगुणद्धि | रिति अनयाक्षेत्रकालद्रव्यभाववृद्ध्योक्तयाः सर्वलोका Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रपितयेवयोंगलसंख्ययभागक्षेत्रोवधिस्तस्पावलिकायासंख्पेयभागकालः अंग्रलसंख्ययभागक्षेत्राकासदेशनमाणोद्रव्यंभावन वर्वादनतोवास्यादर्स ख्ययोवास्पात्लेख्ययावास्याद्योगलमात्रक्षेत्रोवाधिस्तस्पयनामावलिकाका लाद्रव्यभावीपूर्ववद्योगलष्टयक्षक्षेत्रीवाधरतस्यावलिकाकालाद्रव्यभावी पूर्ववद्याहरलप्रमाणाक्षेत्रोवधिस्तस्पावलिकाययकंकाल द्रव्यभावीपूर्वव द्योगव्यूतिमात्रक्षेत्रोवधिरतस्पसाधिकोछासनकालाद्भव्यभावीपूर्ववत यो योजनमात्रक्षेत्रावधिरलस्पभिन्नमहूर्तमकालाद्रव्यभावोपूर्ववद्यापंचविं शतियोजनप्रमाणाक्षेत्रोयधिस्तस्पेबदनोदिवसभकालादध्यभावीपूर्ववद्यौ भरतक्षेत्रमात्रोवधिस्तस्पाईमासकालाद्रव्यभावोपूर्ववरयोजवहीपमात्र नोवाधिस्तस्पसाधिकोमास कालःद्रव्यभावीपूर्ववधोमुनव्यलोकमात्रक्षे| त्रिोवधिरतस्पसंवशर कालन्द्रध्यभावीपूर्ववरायोरुचकंतप्रमाणाक्षेत्रो वधिलस्पसंवत्सरयष्यकालाव्यभावीपूर्ववर यासेरव्येयहीपसमुद्र RadmaanRRAINon Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा क्षेत्रोवधिस्तस्यासंख्यया:संवत्सरा:कालःद्रध्यभाधीपूर्वरियोसरव्ययद्वीपसम द्रक्षेत्रोवधिस्तस्यासंख्ययागसेवत्सराकाल द्रव्यभावीपूर्ववर एवंजघन्यो कृष्टनियनरागांदेशावाधरुक्त आधानिरण्वामत्कृस्टदेशावाधिरुच्यते क्षेत्रमसरव्येयाद्वीपसमद्रा-कालोय्पसंखयामसंवत्सगंजःशरीर गोद्रव्यं कियच्चतदसंख्ययद्वीपसमन्नाकाशसदेशपरिछिन्नाभिरसंख्ये याभिरतेजः"शरीरद्रव्यवशाभिर्विर्तिततावदसपियरकंधाननंतप देशाजानातीत्यर्थ:"भावपूर्ववत्तिरचामनव्याणीचजघन्योटशाव धिर्मभवतितिरश्चोतदेशावाधरेवनपरमावधिनापिसविाधिःप्रथम नष्पारामकृष्टोदेशावधिरुच्यते क्षेत्रमरिमेयाद्वीपसमा कालो प्पसंपया संवत्सरो द्रव्येकामणिाद्व्यकिपच्चत्तदसरयेयद्वीपसमन्दाका शपदेशपरिछिन्ताअसंख्येयाज्ञानावरादिकामगाद्रव्यवशाभावम्पू वर्वदेवदेशावाधिरुकृष्टोमनपारगासयतानीभवतिपरमावधिरुच्यते Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जघन्यस्यपरमावधे ॥क्षेत्रपदेशाधि की लोक भाकालः सदेशाधिकलो का काशप्रदे! शावध्यत प्रमाणाः॥अविभागिनः समयास्ते चा संख्यात्ताः संवत्सराः द्रव्यंखदेशा |धिकलो का काशप्रदेशावध्टतसमाभावः पूर्ववदनः || परक्षेत्रहिनना जीवे क जीवानामविशेये विशु द्विवशादसंख्ये या लोका । एवं तावदसंख्येया लोका वृद्धिर्यावदुत्कृष्टपरमावधिक्षेत्र कि यंतश्च ते असंख्येयाः॥ आवलिकायाः असं ख्येयभागप्रमाणः॥ कालद्रव्यभावाः पूर्ववदुत्कृष्टपरमावधे क्षेत्रंस लोकालोक समारणा असंख्येया लोका॥ किं येतस्ते अम्ति जीवतुल्याः॥ कालद्रव्यभावाः पूर्वव नसण्यत्रिविधोपिपरमावधिरु-कृष्ट चारित्रयुक्त स्पेव भवति नान्यस्पवर्द्धमानोभ विति नहीयमान: अपतिपातिनप्रतिपातियस्पयावत्तिस लोके लो कसमारणा संख्ये यलोकक्षेत्रे जातस्तस्य ताद्यत्यवस्थानादवस्थितो भवत्यनवस्थितश्चवद्धिपतिन हानिमेह लौकिक देशांतरगमनादनुगामिपारलौकिक देशांतरानुगमनाभावाद ननुगामिसवविधिरुच्यते। असंख्येया नामसे खे यभेदत्वादुत्कृष्टपरमावधिक्षेत्र Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. मसरव्येयलोकगणितमस्यक्षेत्रकालद्रध्यभावागावरसण्यनवईमानोनान हायमानोनानवस्थितीनसतिपातिवायतभवक्षयादवस्थितोऽसतिपातिभ वांतरजत्यननगामिदेशोतरखत्यनुगामिासर्वशब्दस्पसाकल्पवाचिवाव्यक्षे कालभावैः सर्वावधेरंत:यातिपरमावधिशामतःपरमावधिरपिदेशावधि रपिदेशावधिखेतिद्विविधरवावधि सविधिदेशावधिश्वोक्तायोवृद्धीयदा कालहिस्तदायतुरामिपिद्धिनियताक्षेत्ररद्धोकालाद्विज्यिास्पात्कालह मस्यालेनिद्रव्यभावयोवद्विर्नियताद्व्यहोभावहाहिनियताक्षेत्रकालव विपन ज्यास्याद्वानवेनिभाववृद्धावपिद्रव्यहाद्विनियानाक्षेत्रकालाहिर्भा । सारापोवधिज्ञानोपयोगोविधाभवति। एकक्षेत्रीनेकक्षेत्रश्नश्री क्ताद्यन्यतमीपयोगोपकरणाएकक्षेत्रः तदनेकोपकर रणोपयोगोतकक्षेत्रायद्येवंपरायत्तत्वात्परोक्षत्वप्रसंगा नेद्रियेयपरत्वम्टेई द्रियाशिम्परागपाहरिंद्रियोभ्यः परंमन:मनसम्परखहिर्वन परतरोहिसइये Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुधा व्याख्यार्त अवधिज्ञानंमन पर्य्यय स्पेदानीमवसर प्राप्तस्तस्पभेदपुर: सरं लक्षणांव्याचिख्यासुरिदमाह । विषारामतीमनः पर्ययः ॥ ज्ञीनिवर्त्ति ताप गुरणाचक स्मान्निवर्त्तितवाकायमनस्तु तार्थस्य परंमनोगतस्पविज्ञानाह ही मतिर्यस्प सोयम्टजुमतिः॥अनिवर्त्तिता कुटिला चविपुला कस्मादनिवर्तितवा कायमनस्कृतार्थस्पपरकीयमनोगत स्पविज्ञानाद्विपलामतिरस्पसविपुलमत्तिः रुजुमतिश्वविद्यलमतिश्चक्र जुविपुलमतीएक स्पमत्तिशब्द स्पगत्तार्थत्वादप योगः अथवा रुजश्वविद्यालाच जविले विलेमती ययाद्यो ज विपुलमती इतिसएयमनः पर्ययो द्विधा जुमतिर्विद्य लमतिरिति । अत्रोक्तोभे दः लक्षणामस्येदानी वक्तव्यमित्यत्रोच्यतेमन संबंधेनल वृत्तिर्मनःपर्ययःवी येतिरायमनपर्ययज्ञानावरणक्षयोपशमांगोपांगनाम लाभीपष्टंभादात्मीयप रकीयमानसंबंधेनलमुत्तिरुपयोगोमनः पर्ययः मतिज्ञानप्रसंगइति चेन्ना न्यदीपमनोपेक्षामात्रत्वादग्भचंद्रव्यपदेशवर स्यान्मर्तथ थामनश्चक्षुरादिसं Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. १०५ वंधा चकरादिज्ञानमाविर्भवतितन्मतिज्ञानं तथामनः पर्ययो पिमनः संबंधा लवृत्तिरितिमतिज्ञानप्राप्नोतीतितन्न किं कारणं अन्य दीयमानोपेक्षामा त्रत्वात्कथमभ्भेचंद्रव्यपदेशवद्यथाने चंद्रमसंपश्येति अन्नमयेक्षा कारण मात्रं भवतिनचचक्षुरादिवन्निर्वर्त्त को चंद्रज्ञानस्पतथान्यदीयमनोय्पपेक्षा कारणामात्रं भवतिपरकीयमनसि व्यवस्थितमर्थे जानातिमनः पर्ययइतित तो नास्य तदायत प्रभवइतिनयति ज्ञानप्रसँगः स्वमनदेशे बात वावरणकर्मक्ष योपशमव्यपदेशाच्चक्षुष्पवधिज्ञाननिदेशवत्॥ अथवाचक्षुद्देशस्थानां मात्मप्रदेशानामचध्यावरण क्षयोपशमाद्यथा चक्षष्पवधिज्ञानव्यपदेश इष्ट नचावधितिर्भवतितथामन:पर्ययज्ञानावरणक्षयोपशमात्खम नो देशस्थानामात्मप्रदेशानांमनः पर्ययव्यपदेशो न चास्पमतित्वंमनः प्रति बंधज्ञानादनुमानप्रसंगइति चेन्नप्रत्यक्ष लक्षणाविरोधात् स्या धूमप्रतिबंधाडूमसंय्ट के मनावनुमानं तथान्यदीयमानः प्रतिबंधात्तन्मनः Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयुक्तानर्थान्जानन्मनः पर्ययो न मानमितितन्न किं कार प्रत्यक्षलक्षणाविरोधाद्यनप्रत्यक्षलक्षणाम-क्तमिद्रियानिंद्रियनिरपेक्षमनीतव्यभि चारसा कारग्रहुए प्रत्यक्षमितितेनाविरोधोनमनः । पर्ययो अनुमानंहितेनविरुध्य ते उपदेशपूर्वकत्वाच्चक्षुरादिकररणनिमित्तत्वाद्वानुमानस्पउपदेशाद्विप्रय मग्निरयं धूमइत्युपलभ्पपश्चाद्दुम दर्शनादग्नावनभानं करोति चक्षुरादिक रासंबंधात तो स्पोक्तं प्रत्यक्षलक्षणंविरुध्यते नचनथामना | पर्ययउप देश चवरादिकरणसंबंधेवापेक्षते सद्वेधा सूत्रोक्त विकल्पात्मनः पर्य | योद्वेधाकुतः सूत्रकविकल्पाहडमतिर्विद्युलमतिरिति आद्यस्त्रे चार्जमनोवा वायविषयभेदाद्यराजमतिमनः पर्ययस्त्रेधाकुतः रुजमनोवाक्कायवि वयभेदादजुमनरकृतार्थतः ऋजुवा कृतार्थः काय कृतार्थतवे तद्यथामनसार्थव्यक्तं संचिंत्य वाचवाधर्मादियुक्तामसं की रामच्चार्य कार्य प्रयोगे चोभय लोकफलनिष्पादनार्थ मंगोपांगप्रत्यंगनिपातना कुंचनप्र Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा.. सारशादिलक्षाकृलापनरनंतरेसमयेकालोतरेवातमेवाचिंतितंठक्तं कृतवावि रमतत्वान्तशक्तोतिर्चितयितुतमेवेविचमर्थरजमतिमनःपर्यया प्रयोऽप्यो वाजानातिसपर्मसावर्थअनेनविधिनात्वय्याचिंतितःउक्त कत्तीचेतिकयम यमलम्पतेनागमाविरोधादागमेयुक्तमनमामनःपरिछिद्यपरेयोसज्ञादी नजानातीतिमनसालमात्मनेत्यर्थःपरमनासमंताद्विदित्वापरिनियमनसार्चि तितस्पसचेतनेतरस्पायस्पमनस्पवस्थानान्मनोव्यपदेशामचरथानापरुषा गोमय्यपदेशवमात्मनाभस्माक्युध्यात्मनापरेयोचर्चिताजीवितमरणासस दु:खलामालाभादीविजानातिव्यक्तमनसोजीवानामर्थ जानानिनाध्यक्तम नमोव्यक्तःस्फुलाकृती चिंतयासनिवर्तितनयरलेजीवापतमनसस्लेरय चिंतितरजमति नातिनेतरेकालनोजघन्येनजीवानामात्मनश्चद्वित्र 'एयरकपैगामसायानिभवग्रहणानिगत्यागत्यादिभिषरूपयतिक्षेत्रत्तोज व्यूतिययकस्याम्पत्तनवहिरूस्कयैगायोजनय्यक Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहि द्वितीयःयोलारजवक्रमनीवाक्कायविषयभेदाहितीयोविपलमतिःयोटाभि द्यतेकतारजुवक्रमनोवाक्वायविषयभेदादजविकल्या प्रतिविक्रविकल्पा श्चतद्विपरीतायोज्यागतयात्मनःपरेयांचविंताजीवितमरणासखडाखलाभा लाभादीनव्यक्तमनोभियतमनोभिश्चर्चितितारजानातिविपलमतिकाल तोजघन्येनसमाययानिभवनहगारपत्कर्षशासख्ययानिगत्यागातिभिःापरू पयतिक्षेत्रतोजघन्येनयोजनपथचमत्कवैशामानयोत्तरशैलाभ्यंतरेनयहि एवं हिभेदोमनःपर्ययोवशितिरलस्यकिपरस्परतोविशेयोतिउत्तनास्तीत्यतमाह विशुध्यसानिमाविरोधातावरणकर्मक्षयोपशमेसनिआत्मनः |प्रसादीविचद्धिःपतिपतनखतिपात उपशीतकमायस्पचारित्रमोहानेकात्य सतसेयमाशिवरस्पषतिपातोभवनिक्षीयाकवायस्पजतिपातकारणाभावाद प्रतिपातवियश्चिअपनियातश्चविद्यापतिपातीताभ्योविश्वासतिपात पौतयोविंशयातदिशेया पूर्वसूत्रस्वतयोर्विशेषोनितिन किमर्थपुनरिदमय MAHARAMBINIREmraanaSAMAMAINARODAMADHAARARRARIABAD Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. १ ते विशेषांत्तरखनिपत्य कंपनर्वचनंया पूर्वसूत्रेविशेषउक्त तावता स्पनपरितोष रातों विशेषो तरखतिपत्यर्थं अनरिदमच्यते" चशब्दप्रसंगइति चेन्नप्राथमका. कभेदाभावात् यथामनः "पर्ययस्प ऋजु विद्युलमती भै हौ तथा विश्वतिया | तावपि तस्यैवयदिभेदी स्पा तायुक्त श्वशब्दः स्याद्यतविशुद्यप्रतिपाती विपलमत्येो विशेयोनभेदावतश्चशब्दा प्रसंगस्त विशुद्ध्या नाव रूम . लमतिव्यक्षेत्र कालभावैर्विशुद्वत्तरः कथमिहय काम द्रव्यानंतभागोत्प सर्वाबाधनाज्ञातस्तस्पयुनरनंतभागी कृतस्पमनात्पर्ययज्ञेयोनंतभागोनं तस्याने तभेदत्वा रुजमति काम द्रव्यानंतभागा दूरविप्रकृष्टो रुपीयाननंतभागो विष लमते द्रव्यक्षेत्रका लविशुद्विरुक्ताभावतो विष्ठाद्विरुक्ताभावतो विश्वद्विलक्ष्म तरद्रव्यविषयत्वादेववेदितव्याप्रकृष्टक्षयोपशमविष्ठाद्विभावयोगादपतिपा तेनापिविपलमतिर्विशिष्टः स्वामिनांसबर्द्धमानचारिचोदयत्वा रुजमति पुनः प्रतिपाती स्वामिनी कयायोगेका द्वीपमानचारित्रोदयत्वाद्यद्यस्यमन:पर्यय Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्यपत्यात्ममयविशेयः सथानयोरवधिमनापर्यययोजकतोविशेषदत्यता) हविशुचिरामिविषयोम्पावधिजागयययो विशुहिम्पसादाक्षे यत्रस्थानावान्यतिपद्यतरवामीप्योकाविययोयलवधिज्ञानान्मनः) पर्ययस्पविण्यभावोल्पद्व्यविययत्वादितिचन्तभ्यापर्यायशानातस्यात्मा तमवाधिज्ञानात्मनापर्ययोविछहतरस्कृतःसिल्पद्रव्यविययत्वाद्यत:सर्वा बधिरूपिदध्यानंतभागोमनायर्ययाव्यतितन्मर्किकारगांभूयःपर्यायज्ञाना द्यथाकश्चिबहूनिशाल्याशिव्याच एकदेशेननसाकल्पेनतनतमर्यशक्तीति वकी अपरत्वेकंसासाकल्पनध्याचव्यावतस्तस्पारितात्मनिशक्तीति वनयपूर्वमाहिष्णहतरविज्ञानोभवनितयावधिज्ञानविषयानोतिभागशी पिमनापर्ययोविशइतरमायत्तस्तमततभार्गरूपादिभिर्वहभिापर्यायपूरू पयनिक्षेत्ररक्तविषयोवक्ष्यतो स्वामित्वेस्च्यतिविशिष्टसंयमयोकार्यमा मवायिमनापर्ययत्राविशियःसयमयशोयत्रविद्यततचैववर्ततमनापर्यय Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा १०३ विभवतिनदेवनारकतिर्यग्पोनेयमनव्येयचोत्पद्यमानीगर्भवत्पद्यतेनसन छनजेयगर्भजेयूत्पद्यमानः कर्मभूमिजेयूत्पद्यतेनाकर्मभमिजेयकमामिले यूत्पद्यमानःयासकेयूत्पद्यतेनापोसकेपजायमानः सम्यग्दृर्षिखूपजा योनमिथ्यादृषिसासादनसम्परष्टिसम्पमिय्यादृष्टिषसम्पग्हरियूपजायमां नासंपनेयपजायतेनासंयनसम्परहटिसंयतासंयतेषसेयतेखूपजायमाना प्रमत्तादियक्षीयाकवायांतपजायतेनोत्तरेषतत्रीचीपजायमानः चारित्रेयपजायतेनहीयमानचारित्रेयसपवद्धमानचारित्रेषपजायमान:स सविधान्यतमईिपासेयजायतेनेतरेख हिनामिययकेवाचलसीचतिवि शियसंयमग्रहावाककृतमवाधनसुनश्चातगीतिकचितिखामिभेदादय्पन योविंशयन इदानीकेवलज्ञानलक्षणाभिधानंपाकालतलंध्यज्ञाना । ययनिधपरीक्षपति कत्तलस्यमोहमयाज्ञानदर्शनावरणीतरायक्षयाञ्चक क्लमित्यवक्ष्यमाणावाद्ययेवमाद्ययोरेवतावन्मति Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च्यतामित्यत आह ॥ मन्ये विधद्रव्येष्वर्वपर्याशेषः निबंधनंनियं धः क स्पमतिश्रुतविषयस्पतन्तर्हिविषयहां कर्त्तव्यंनकर्त्तव्यंप्रत्यासत्तेः प्रक्वत्तविषयग्रहणाभिसंबंध प्रकृतविषयग्रहणमतिक्कप्रकृतंविश्वहि क्षेत्रस्वामिविषयेभ्यइतितत्रप्रत्यासत्तेः वियग्ग्रहणमिहाभिसंबध्यतेननचसविभक्तंतरनिद्दिष्टोन शक्यतरह संबहुअर्थवशाहिभक्तिपरिणाम: । यथाउच्चानि देवदत्तस्पग्टहाणि आमंत्रय स्वैनदेवदत्तमितिगम्पते। देवदत्तस्पगावीश्वाहिर एवमाद्यो वैधवेयो देवदत्तइतिगम्पतेः एवमिहापिनिबंधः कस्पविषयस्येत्यभि संर्वध्पते। अथद्रव्येय्वत्तिबहुत्वनिर्हृशः किमर्थ: द्रव्येवित्ति बहुत्वनिर्देशसर्व द्रव्यपर्यायसंग्रहार्थ जीव धर्माकाशकालपुद्गलाभिधानानिषत्रद्रव्याणिते बांसवेयांसंग्रहार्द्धद्रव्येष्विनिवहुत्वनिर्देशः क्रियतेतद्विशेषणार्थमसर्वप पयिग्रहणं तेषां द्रव्याणामविशेषेणमतिश्रुतयो विषयभावप्रसंगेतद्विशेषणा अर्थमसर्वपयग्निहो क्रियतेः तानिद्रव्याणिमतिष्ठत यो विषयभावमापद्य Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. मानानिकत्तिपयैरेवपर्यायेर्विषयभावमारके दंतिनस पर्यायैरनतैरपीतितत्कथमिह ९०५ मतिश्चक्षुरादिकरणानिमित्ता रूपाद्या लवनासायमिन्द्ररूपादयोवतिनतत्र सर्वान्यर्यायानवग्टहानिचक्षुरादिविषयाने चालवतेश्वत्तमपिशव्दलिंगेशदा श्वसर्वेसंख्येयाण्बद्रव्यपयीय पुनःसंख्येयानंनभेदा,नतेसवैविशे षाकारे एतैर्विषयी क्रियते उक्तंच परमवणि सम्भावाप्रतिभागो अभिल पाविणिज्जायां प्रणप्रणेत भागो सुदणिबंधोत्ति अंती द्रिये खमतेरभावात्स द्रव्यासंयत्ययइतिचेन्न नोइंद्रियविषयत्वात्स्यान्मतं धर्मास्तिकायादिख मतेरभावती द्वियत्वान्कृत्तोमत्ति: सर्वद्रव्यविषयनिबंधेतिलक्षणमयुक्तमि तितन्नर्कि कारणांनी इंद्रियविषयत्वान्नोइंद्रियावरणक्षयोपशमलचपेक्षं नोइंद्रियाप्रियने प्रयहितचनवर्तेनावधि नासहनिहिये तरूपिथ्विव वृत्तेः प्रथमतिष्ठतयोरनंतर निर्देशार्हस्पावधेः को विषयनिवधइत्यंत आ हवि के रूपशब्दस्यानेकार्थत्वे सामथ्यछ क्लादियाह अयस् Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पमनंतस्वभामितितहसामर्थ्याचक्षयियेशलादीवर्तमानीग्राह्यतेयदिखभाव वाचिनोग्रहास्पादनकस्यालहिकस्पचिस्वभावोनारनीतिमायनेकार्यसे भवनित्ययोगोभिधानवंशाद्यद्यपिमत्वथायस्पभूमादयोविहवःसंभवति । हाभिधानवशालत्ययोगोवेदितव्यनित्यहिपहलायत्तारूपेगोतियथाक्षी गोवृक्षारतियद्येवमानाधिज्ञानस्पपगलारूपमखेनैवविषयभापतिपद्ये रननेरसादिमखेननैयदोबस्तदुपलक्षार्थत्वात्तदविनाभविरमादिगहरण तर्पद्रव्यस्पोपलक्षात्लेनीयातीयतेतरलदविनाभाविनोरसादयोपिम् यते यद्येवंतगतषसर्वेयनतेयुपर्यायव्यवधेविषयनियमाप्नोतात्य तपाहा असर्वपर्याययग्नहगामवृत्तेलसर्वगति असर्वपर्यायविनियत ग्रहणामनवर्ततो यथादेवदत्तायगोहीयताजिनदत्तायकवलतिलायती मित्यभिसवंध्यतेरावामिहाय्पसर्वपर्यायोचिस्याभिसर्वधात्तसर्वगतिविति ततोरूपिवपद्लेषायतन्नध्यादिपरिमागोयजीवपर्यायेखऊदाधिको Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. पशमिकक्षायोपशभिके उत्पद्यतेअवधिज्ञानरूपिदव्यसंबंधान्तक्षायिका रिशामिकेनापिधतिकायादिवतत्संबंधाभावारालयमनापर्ययरस विषयनिर्वधनत्यतमाह। तदनंतभागेमन:पर्ययस्य यदपिद्रव्येसर्वा, ज्ञानस्यविषयत्वेनसमर्थितंतस्यानंतभागीतस्पराकरिमन्नागेमननापर्यय प्रवर्ततो अयोयलिहिलंकेवलज्ञानंतस्पकाविषयनिबंधनत्यतमाह।स बदनापीयेषुकेवल अत्राहर्किद्रव्यंखपर्यायानद्रवतियतेवातरिति द्रव्यंग्यात्मनापर्यायारद्रयनिगछत्तीतिद्रव्यवहलापेक्षयाकरिसाधखोदयते वातरितिद्रव्योकथंचिनेदसिहोतस्कर्ट कर्मव्यपदेससिहिनद्रव्यस्पपर्यायागों चकचिनेदेसत्यक्त करी कर्मव्यपदेससिद्यतिइतरयाहितदप्रसिद्धरत्यता व्यतिरेकायद्यकतिनैकत्वमवधायेतस्यकटकर्मध्यपदेशावसिद्धिःस्पाक्ततः अत्यंताध्यतिरेकान्लहितदेवनिर्विशेषमेकशक्तयेतण्येक्षयाविनाकरीकर्मच भवितुमर्हति स्मथकापर्यायानस्पमियोभवनपतिविरोध्यविरोधनोधारणां Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपातानुपातहतकानाशब्दोतरमलाभभिमित्तवादर्पितव्यवहाहेरविययोवा स्थाविशयापर्यायःभियोभवनंपतिकेचिदमर्माविरोधिनः केचिदविरोधिन:त वजीवस्पतावदनादियारिणामिकवेतन्या जीवद्रव्यभव्याभयोईगतिखभावास्ति स्वादिभिरौदयिकादयोभावायथासंभवंयुगपदावादविरोधिनोविरोधिनथ्यना रकतैयारयोनदेवमनुष्यस्वीपनघुसकराकद्वित्रिचतुपंचेंद्रियवाल्यकोमा | रकोपषसादादयासहानवस्थानान्तथापोहलिकाअनादियारिगामिका:रू परसगंधस्पर्शशब्दसामान्यालित्वादयः। शुक्लादिपेचकतिक्तादियंचकगंध हयस्पर्शाटकशब्दबहपर्यायः प्रत्येकमेकहित्रिचतु पंचादिसंख्ययानेतण गापरिणामिभिर्यथासंभवयुगपदावादविरोधनोविरोधिनश्चललकलनीला तिक्तकदुकसरभेतरगंधादय प्रायोगिका वैवासिकश्चपरमारणखस्कंधेष चसहानवस्थानादेवधर्मास्तिकायादिव्वय्पमूतत्वाचेतनत्वासंख्येयपदेशव गतिकारशाखभावास्तित्वादयध्यनंतभेदागरुलघुगणहानिदिविकारैः। Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजधा. पत्ययैपरमत्ययैश्चगतिकारात्यविशेषादिभिरविरोधिन परस्परविरोधि नश्चयाःतेयकेचिदपातहतकाद्रव्यक्षेत्रकालभावानिमित्ताऊदयिकार यमनपातहतकाश्यत्रियकालेयविकारिणः पारिणामिकाश्चैतन्यादयरने घोविरोध्यविरोधिनांचागामयान्तानयातहतुकानांशब्दांतरात्मलाभास्पनि मित्तत्वाच्चेतनोनारकोवालकरत्यपितिव्यवहारविययतिव्यवहारमनत्रा त्रिविधशब्दनयामक दध्यार्थिकानय्योगात्पर्यायार्थिकेनापितरतस्पविय यस्तस्पद्रव्यस्थावस्थाविशेषपर्यायइत्युच्यत तयोरितरेतरयोगलक्षणो . तयोरितरेतरयोगलक्षणोद्योवेदितव्यम्द्रध्याणिवपर्यायाचगव्यपर्यायाह तिद्वंद्वेन्यबंशक्षन्यगोधवदितिचेल तस्यकथंचिदेदेपिदर्शनानोत्याोपिव तस्यान्मतयदिवानक्षन्यग्रोधवदन्यत्वंद्रव्यपर्यायाराजामातातितन्नति कारगतस्पकर्यचिनेदेपिदर्शनारगोखगोपिंडवद्यथागोवंचगोपिंडण्श्वगोर पिंडाधितिअनन्यस्वेपिडोभवति तथाद्रव्यपर्यायश्चिनिननुसामान्यविशेय Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योरन्यत्वात्साध्यसमेतदितिनैयदोयः। उतमेतदनन्यसामान्यविशेययोर्द्रव्य महणोपर्यायविशेषणंचेन्लानर्थयात्स्यादेतद्रव्यागांपर्यायाद्रव्ययायाइनि द्रव्यग्रहणपर्यायविशेययामितितन्नार्किकारणमानर्थवषादेवसतिद्रव्यगृहां मनर्थस्थालघव्यस्पपर्यायात्रासंतीतद्व्याज्ञानपसंगाच्चकेवलेनपयोय|| एवज्ञायतनगव्यागीतिगव्याज्ञानसानातिउत्तरपदार्थजधानत्वात्याअथमत मेतत्सर्वेषपर्यायेयशातेवन किंचिदेशातमानिततीव्यतिरिक्तस्याद्गव्यस्याभावा घवेन्द्रध्यमहामनर्यकमित्यतंयरस्तात्तस्मात्सायूक्तहोयमितिननचई|| देपिद्रव्यग्रहणामनर्थकंपर्यायव्यतिरेकेरगानपलञ्चरिति यदीवाशाखा लक्षरमादिभेदानेदोपपत्तेशअथसर्वग्रहांकिमर्येननबहवचननिदेशादेव ववहत्वसंप्रत्ययसिद्धनासर्वग्रहणोनिरवशेषप्रतिपत्यर्ययेलोकालोकवेदभि|| लाधिकालविषयाद्रव्यपर्यायासनतासतेयनिरवेशयेषकेवलज्ञानवियय|| निर्वधनिषतिपत्यर्थेसर्वग्रहर्णयावाल्लोकालोकस्वभावीनंतरजावतीनेता Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नतो यद्यपियरतानपिज्ञानमंस्यसामथ्यमस्तीत्यपरिमितमाहात्म्पतत्केवलशा नवेदितव्योपाहविषयनिर्वधीवटतोमत्यादीनामिदंनुननितिएकमिंन्ता मनिखनिमित्तसैनिधानोयजनितहत्तीनिशानानियोगपद्येनकनिभवतीत्य तउच्यते॥एकादीनिभाज्यानिलगवदकामनावपक्षि एकतिकोयं शब्दः अनेकार्थसंभवेविवक्षातम्याथम्पवचनएकशब्दाअयमेकशब्दः नेकस्मिन्नरामयोगाविचिसंख्यायोवत्तिएकाहीवहवशनिवचिदन्य लेण्के प्राचार्या अन्येभाचार्यइतिक्वचिदसहायेएकाकिनरतेविचरतिवीराद निवचित्वाथम्मेएकमागमनखयममागमन मिति क्वचित्माधान्येएकहनासे नांकरोमिसधानहतासेनांकरोमात्ययोजत्रेहविवक्षातपयम्पवचनएकशब्दो वेदितव्या आदिशब्दश्यावयववचननामादिशब्दश्चायमनकासंभवविव क्षातइहाचववचनोवेदितव्यःक्वचिद्यवस्थायावततनायगादयश्चात्वारोव गणी:ब्राह्मणव्यवस्थाःब्राह्मणक्षत्रियवियनास्त्यर्याक्वचित Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AINRIME R दयापरिहर्तव्याभुजंगणकारावियवंतइत्यथीकचिसामाय्येनद्यादीनिक्षे वाशिनदासमीपानीत्यर्यविचिदंवयवेरशादिमधानेरूगवयवधीतरत्य गातेनैतहतभवतिएकस्पादिरेकादिषयमावयवरतिकस्यपथमस्पपरोक्ष स्पकःपुनरवयवामिनिसानसामीय्पवचनोवा अथवाभयमादिशब्दःसमा व्यवचनीद्रव्यतेनप्रथमस्पमतिज्ञानस्पश्रुतसमीपमित्यक्तभवतिमतेवहिर्भाव प्रसंगनिचेन्नानयोगसदाव्यभिचारातस्यादेतदेवसतिमतर्वाहभविापानोतीति तलर्किकारणानयोसदाव्यभिचारदेहिमतिशतेसर्वकालमव्यभिचारियाना रदपर्वतक्त्तरमादनयोरन्पतरग्रहणेरम्पमहासलिहितभवति ततोन्पय दान्तावकस्यादिशब्दस्पनिवृत्तिरुष्पखवधथानमरवडष्ट्रमखवन्यख मस्पतिस्तावेकस्यमखशब्दस्पनियुत्तिरेवमिहापिएकादियेयोतानीमन्येकादी। नीतिरकस्यादिशब्दस्पनिदत्तिरवयवनविग्रहसमदायोहत्यर्थअवयवेनधि ग्रहः क्रियतेहत्त्यर्थ समदायोभवतितेनैकादीन्यभ्यंतरीकृत्यभाज्यान्यर्य RamannesamagramusamuHI Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. यथाव त्यर्थ किंसर्वाणिनित्याहा साचतुर्पकतपतर केवलस्यातहण्यत्वादित योगपद्याभाव यत्रकेवलज्ञानक्षायिकतदसहाय मितयविज्ञानानिक्षयोपशमनिमित्तान्यतो . . नाभावीभिभनत्यादहनिनक्षत्रवदिनिचेन्लक्षायिक । देतन्लाभावःक्षायोपशमिकानोसानानांकेवालिनितिकेवलज्ञानेनमहत्ता भिन्नतानिखपयोजनेनव्याधियतेभारकरसभाभिभतनक्षत्रवदितिवन्तर्किका ... वात्संक्षाशासकलज्ञानावरणीभगवत्यहीतिकर्थक्षायोपशमका ज्ञानानासंभव नहिपरिणामसथिदीपदेशदेशाचद्विरस्ति इन्द्रियवत्वादितिचे लायिनिववीधारी स्यादेतदेवमागमभापत्तापचेहिया असशिपचेद्रिया दारम्पआयोगिकेवलिनइतिअन्तद्रियवत्वात्तत्कायेगापिज्ञानेनभावतिच्या तितलिकिंकारमार्थािनववोधादावहिसयोग्पयोगिकेवतिनो पचिन्द्रि यंप्रत्यक्तंनभावेरियंजनियदिहिभाद्रियमभविष्यदपिनासंक्षाशासक Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लावरणासात्सर्वशवास्यन्यवर्तिव्यततरमादेतीभवतिएकस्मिन्नात्म निद्वेमतिथुनेकचित्राणिमतिश्चतावधिज्ञानानिमनिशुतमनापर्ययज्ञाना निवाक्वचिचत्वारिमतिश्चतावधिमनापर्ययज्ञानानिनपंचैकस्मिन्रयुगप संयंतीति संख्यावचनोचैकशब्द अथवासंख्यावचनीयमेकशव्दएकमादि ययातानीमानिएकादीनिकथमतिज्ञानएकस्मिन्नात्मनिएकंयक्षरश्वतंद्य नेकदादाभेदमपदेशपर्वतद्भजनीयंस्पादानवेनिजतत्पूर्वचदपर माह सेव्यासहायपाधान्पवचनेएकशब्देसतिएकादीनिकेवलादीनीत्याएकस्मि लामन्यैकेकेवलज्ञानक्षायिकत्वात्रमितिष्ठतरत्यादिपूर्ववर अयोकानिमा त्यादीनिशान्यव्यपदेशमवल तेउत्तान्ययापीत्यनमाह मलित्वावधयो विनाविपर्ययोन्यथाकतःसम्पगाधिकारांचशब्दासमुच्चयार्थः, वि पर्ययश्चसम्पतिकृतपनरेयाविषयीयमिथ्यादर्शनपरिग्रहात्मत्यादि विपर्ययायोसोदर्शनमोहनायोदयेसतिमिथ्यावनिपरिणाममातनसहै। Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. कार्थसमवायान्मत्यादीनांविपर्य्ययो भवति। ननु चमणिकनकादीनांव चेहिग ११० तानामपिस्वभावविनाशो न भवति तद्वन्मत्यादीनामपि स्पान्नैषदोष, सरजम कदकालांव्रगतदुग्धवत्सराविना संशयथासर जस कटुका लावूभाऊने निहितंदुग्धे स्वयमपरित्यजति तथामत्यादीन्यपि मिथ्यादृष्टिभाजनगतानि दुष्यतीति आधारस्पदोषादि। आधेयस्पदोषो जायते ननु चनायमे कांतउ क्तमेतन्मणिकनकादयोवच्चेगिताअपि स्वभावनत्य जंतीतितत्रकथमे तदवसीयते। मालवूदुग्ध बहुष्पत्तिमत्यादी निनपुनर्म्मण्पादिवन्तदुष्यंती तिपरिणामशक्तिविशेषात्परिणामक स्पविना शक्ति विशेषादन्यथाभा वोभवतिययालां वृद्रमंदग्धंविपरिणमयितुं शक्तोनितथामिथ्यादर्शनम पिमत्यादी मामन्ययात्वकर्त्तमर्वं तदये अन्यथानिरूपणदर्शनाचेग्यिहं तुमपादीनीविकारं पात्यादयतुमलं विपरिणामकद्रव्यसंनिधानेते यामै पिभवत्येवान्यथात्वंयदानसम्पग्दर्शनंप्राद्भूतदा Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |भावात्तेयांमत्यादीनांसम्पकमतःसम्पग्दर्शनमिथ्यादर्शनोदयविशेषात्तयां त्रयाणांविधाकृतिर्भवतिज्ञानमत्यशानंतनानंश्रुत्ताज्ञाने अवधिज्ञान विभंगशानमितिापत्राहरूपादिविषयोपलश्चिच्याभिचाराभावाविपर्पया भावःयथैवमतिज्ञानेनसम्पम्हटयोरूपादीनपल तथामिथ्यादृष्टयो पिमत्यज्ञानेनयथैवपटादिषरूपादीरतेननिश्चिन्त्यपदिशतिचपरे भ्यरतयात्रताज्ञानेनापि यथैवावधिनारूपिगोर्यानवयंतितथाविभेगेना पातित्स्मालातिविपर्ययनितसाहारविशनपल श्रुतवासछब्दस्पानेकाईसंभवेविवक्षातम्पर्शसार्थग्रहण येसछन्दोनेकार्थइतिव्याख्यातःगतस्पेहविवक्षातःपर्शसायस्परग्रहावे दितव्यप्रशस्ततत्वज्ञानमित्यर्थ असदज्ञानंतयो सदसतोरविशेषेणा यदृछ्यानपलश्चेःविपर्ययोभवतिकयमन्मत्तवघयोन्मन्तोदोयोदयाड पहत्तद्रियमतिविपरीतयाहीभवतिसोश्वेगोरित्यध्यवस्पतिवाअश्य Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा इतिलोटसुवर्णसवर्णलोट्टमिनिलोटलीष्टमिनिसुवर्णसवर्णमितितस्पेवमति शेयेगाध्यवस्पतःअज्ञानमेवभवति तहामथ्यादर्शनोपहत्तोद्रियमतमति श्रुतावधयोपिलाज्ञानमेवभवतीतिभवत्यर्यग्रहगोवाअथवासछोयंभ वत्यथैवेदितव्यसहिद्यमानमित्यर्थअसदाविद्यमानंतपौरविशेयेशायह छोपलञ्चेः धिपर्ययोभवनिकदाचिद्पादितदय्यसदितिपतिपद्यतेअदपि सदितिकदाचिन्नसत्सदेवासदय्पसदेवेति कृत 'प्रवादिपरिकल्पनाभेदादि पर्ययग्रह-प्रवादिनीकल्पनाभेदाद्विपर्ययग्रहोभवति तद्यथाकेचित्तावदाह द्रव्यमेवनरूदयइति अपराहु:रूपादयण्वनद्रव्यमिति अपरेयोदनि अन्यद्व्यं अनेकरूपादयरतिकथमेवाविपर्ययग्रहणीउच्यत्तयदिद्रव्यमेव नरूपादय लक्षणाभावाल्लक्ष्यातवधारणाप्रसेगा किंचद्रियेशासन्नि कृय्यमयोदव्यरूपायभावेसर्वात्मानासलिक्वय्येतत्ततसस्मिनामहाप । सेग:करणाभेदाभावपसंगश्चनचासोएटावा . Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवम पिनिराधारत्वादभावप्रसंगः। किंचपरस्परविलक्षणानां रूपादीनांसम दयेपिसत्तिएका नतरभावात्समुदयस्पस वभावः । परस्परतोर्थोत्तरभूत त्वादर्थ ह्यन्यद्रव्यमन्पेरूपादयः॥ एवमपितेषां लक्ष्यणभावाभावः परस्प तोरर्थ तरवारइंडिदंडवत् लक्ष्यलक्षणभावइतिचेन्नवैशम्पान्ययवत्य तो लक्ष्यलक्षणभावीयुक्तो नासतो रिति किंचरूपादिखय्यमूर्त्तख व्याथीतरभूतेयनेंद्रियसंनिकसिक्तस्ततश्च ज्ञानाभावः नचाथीतरभू तंद्रव्य कारणाभवितुमर्हति किं चामूल कारणाविजतिपत्तेः एवांघटरूपा दीनामूलकारयोप्रवादिनांविप्रतिपत्तिस्तद्यथाकेचिदाहः अव्यक्तान्मह दहंकारतन्मात्रेट्रियमाहाभूतम्टत्पिंडादिनिवृर्त्तिक्रमेाघटादेर्विश्वरूप स्प जगतउत्पादइत्तितदयुक्त नहिषधानस्पामू-तीनरवयवत्वनिः क्रियत्वा ती द्रियत्वानंत्यत्वापरपयोज्यत्वादिविशेयोपेत स्पतद्विलक्षण घटादिः का येभिवितुमर्हत्यदृष्टत्वान्नवापरजयो ज्यस्पप्रधानस्पस्वयमेोभिप्रायरहि Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. .. बैंकप्रसवक्रमायुकःपरुयरतावलिनियत्वान्नमहदादिसर्गा प्रधाननयंते खयंचनिक्कियत्वावधाननामा महदादिसर्गाथैपयोतम जहिस्वयंगतिविकलयंगरामानमेवाय-पोछायगछन्दृष्टाकिंचाव योजनस्पषधानस्पमहदादिसोनयतिमानपरुषभोगःप्रयोजनमितिचेन्न स्पस्पविभोरात्मनभोगपरिणामाभावाचकिवावेतनवादिहलो के चेतनश्चैत्र उदनाधीकियाफलसाधनजलदर्धव्यग्निसंघक्षणादिखप वर्तमानोदृष्टानचतयारधानचेतनमंतोस्पमहदाक्रियातसवकमाभावान .. क्रमस्पषयोजकोनिक्रियत्वादयरआहुपरमाणुभ्पाप्रतिनि यतपार्थिवादिजातिविशिष्टेम्पअदृष्यादितनिधानेप्सनिसहतेभ्यः अर्थात कार्यात्मलाभरतितदरयुक्तनित्यत्वादनांकायारंभशापाभावा .. नेचारंभनित्यवहानेलचार्योत्तरशतस्पकार्यस्यारंभोयताध्यतिरेकानफ्ल रूपलनीचाणमहत्वाभावानचजातिप्रतिनियमालिभिन्नजाती Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रंभदर्शनाद्विलजातायेयसमदयमात्रमिनिचेतुल्यजातीयेव्वपितत्यसंगा नचा मनोघटाद्यारंभेकर्टलमपयननिक्रियत्वान्नित्यत्वाचनाय्यात्मरणस्यादृष्य देनिक्रियत्वादेवनचनिानियोतिरक्रियाहेतुयनामन्यमन्यतेवर्णादिपर माणुसमदपालकारूपपरमाणावोअतीद्रियासमदिता:संत-इंद्रियग्राह्यत्व मनपघटादिकार्यात्मलाभहेतुत्वंपन्तिपद्यतरतिवदयुक्त प्रत्येकरूयपरमाण नामतीदियत्वाततोन्यस्यकास्पाय्पनीद्रियवपसगात्ततश्चदृश्पविषयममा गाभासविकल्याभावाकार्याभावाच्चतल्लिंगकारणास्याय्यभावनाकिंचक्षण कत्वालिःक्रियत्वाचकार्यारंभाभावाविविक्तशतीनोयरस्पराभिसंबंधाभावन नचान्यार्थश्वेतनरतेयासंबंधस्पकलितदभावासंबंधाभाव एवमन्येवपिप| वादियसत्यसदिनिअसत्यपिसदिनिविपर्ययोमिथ्यादर्शनोदयेवशाहेदितव्यः पित्तोदयाकुलितरसनेद्रियविपर्ययवत्तनीयदक्तरूपादिविषयोपलचिव्यभि चाराभावान्लमिथ्याहानत्रयमज्ञानमितितदसाम्पारव्याख्यानंशानलक्ष Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ११३ राणादिभिरिदांनी चारिनिर्देष्टवां तदुच्यनयाउच्यते करमान्मोक्षविधाने तस्क वक्ष्यमाणत्वा कुतः पुनस्तू-मोक्षविधीवक्ष्यतइति चेन्मोक्षंप्रतिषधानकारणा स्वात्किंकृतंप्राधान्य न केचननिर्द्दनकृतंयत-आत्माव्युपरत क्रियाध्यानावि भूतामवलः कृतकर्मेधननिईहनसमथेभिवनिननुक्षायिकसम्पक्क केव लज्ञानीपेत्तोपि यदिस्यातक्षायिक केवलज्ञानोत्पत्यनंतरमेकन कर्मक्षयः परतक्रियाध्यानोत्पत्त्र्यनंतरमेव भवतितञ्चोत्तमं चारित्रं कर्मादान हेतुक्रिया त्रिमितिवचनादादी हतदुच्येत्तमोक्षविधानेपितद्वक्तव्यमितिगोर वंस्यादेवमपि श्री बाट्यो निर्देट खाउ तेषमाशांच्या ख्यातं मागेकदेशानया: तदनंतरचनाहानयावके नेनयाइत्यतश्राह नैगमसेनइय्यवहारतत्रण देसमा मेरुदैवम्भूतानः ॥ शब्दपेक्षया एकादिसं खोयविकल्पानयाः तत्रातिसंक्षेपादप्रतिपत्तिरतिविस्तरेचल्य नामननुग्रहइत्तिमध्यतया प्रतिप-त्यासमानया अत्रोच्यते । तेषी सामान्यविशे Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलक्षणोवतध्यतत्रासामान्यलक्षणामध्यन लमाणपकाशितार्थविशेयषरूपको नयापकपैरामानंप्रमाणेसकलादेशइत्यनिषकाशिनानांनतमागाभासप . रिहानानामित्यर्थनियामानामरिहत्वनास्तित्वनित्यत्वानित्यत्वाधतास्मानाजी वादीनायविशेया पर्यायानेयांपकरारूपकःखरूपकनिरूदोबानगा। रेगोत्यर्थरावलक्षणोनयस्तस्पोमूलभदौद्रध्याक्षिका पर्यायाक्तिकरतिनव्य मरनीतिमतिरस्पद्रव्यभवनमेवनानोन्येभावविकारानाय्यभावलद्यतिरेकेशानप लवेरितिद्रव्यानिकोपर्यायएवारनीतिमतिरस्पजन्मादिभावविकारमात्रमवमव। नंनतनोन्पदव्यमलितद्यतिरेकेशानुपलबेरितिपर्यायास्तिकामथवाव्यमे वास्पिनगुणा कमीगतदवस्थारूपादितिद्रव्यार्थिकोपर्यायस्वार्थास्परूपा युत्क्षेपणादिलक्षणोनतनोन्पद्व्यमितिपर्यायार्थिक अयवार्यतेगम्पतनिष्य द्यतइत्यर्थः कार्यद्रवतिगछत्तीनिद्रव्यंकारादध्यमवास्पिकारणमेवकार्य नार्थतनचकार्यकारणायो-कश्चिद्रूपभेदनातदुभयमेकाकारमेवपर्चागलिन्द्र Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. व्यवदितिद्व्यार्थिकः परिसमंतादाय पर्यायपर्यायरम्वार्थ कार्यमस्पनन्नव्यमताता नागतयोविनव्यानुत्पन्नत्वेव्यवहाराभावात्सराबका कार्यकारणाव्यपदेशभागिति पीयार्थिक अथवार्थनमर्थःप्रयोजनद्रव्यमेवायोस्पप्रत्ययाभिधानानपत्र तिलिंगदर्शनस्पनिन्दोतमशक्यत्वादितिद्रव्यार्थिक पर्यायार्थ प्रयोजनमस्प वाग्विज्ञानव्यायतिनिबंधव्यवहारससिरितिपर्यायार्थिकतनेदानेगमाद यएयाविशयलक्षण्मयतार्थसंकल्पमात्रमाहानेगमा निगळूत्यस्मिन्नि निनिगमनमात्रैवानिगमनानिगमेकशलोभवीवानगमलस्पलोकव्यापारभास र्थसंकल्पमात्रमहापाछेद्रग्य्हगम्पादियानद्यथाकश्चित्वचपरथपुरु यंगछत्तमभिसमीक्ष्याहाकिमर्थगछतिभवानितिसतस्मैप्राचटेपस्कामिति एवमिहरहादावयितथाकत्तरोत्रगमीत्युक्तमाचटेमहंगीतिसंपत्यगछत्य पिगमीतिव्यवहार एवंपकारोन्पोपिनैगमनयस्यविषयमाधिसंज्ञाव्यवहारप्रति चेन्नतव्यासन्निधानारस्पदितनार्यगमनयवियय:भाविज्ञाध्यवहार Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तितलर्किकारानतद्रव्यासंनिधानातहिकुमारतंडुलादिद्रव्यमाश्रित्यराजीदना : दिकाभाविनीसंशाप्रवर्ततेनचनयानैगमनयविषयेकिंचिढ़ातंद्रव्यमस्जियदाश्रया भाविनीसंशाविज्ञायेता उपकारोउपलभासव्यवहारानुपपत्तिरिचेन्नावत्तिज्ञाना स्पादेतलैगमनयवक्तव्यउपकारोनीपलभ्यतेभाविसैशाविषयेतुराजादापल भ्यतेततोनार्ययक्तइतितन्तर्किकारगांप्रमनिशानान्लतदस्माभिापतिज्ञातंउपका रेसतिभवितव्यमितिकितीस्पनयस्पविययःपदयेतेअपिचउपकारखत्यभिम खत्वादपकारवानेवाखजात्यविरोधेनैकत्वोपनयासमलग्रहासंग्रहवाभिधा मानुजत्तिलिंगताडपंखरूपानगमोवाजातिसाचेतनाचेतनाद्यामिकाशब्दात सर्जिनिमित्तत्वेनपत्तिनियमालवायव्यपदेशभाकखाजाति,खाजातिप्रजच्यवन मविरोधास्वजातरविरोधखजात्यविरीधनतेनवजात्यविरोधेनेकत्वोपनयाके || योभनोसमलग्रहासग्रहमा यथासयंवदइत्यादिसदित्यक्तेसत्तासर्वधाहीं। गोगव्यपर्यायतद्भदषभेदानातदव्यतिरेकानेकनसेमहलाहव्यमितिवोक्तजी॥ Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. वाजीवरेदयभेदानंद्रव्यत्वाविरोधान्तेनैवसंग्रही घटइतिचीतनामादिभेदाम्टलव रमादिकारणविशेयासिस्थानादिकिविकाराच्चभिन्लानीघटावाच्यानातदव्य तिरेकादेकत्वेनसंग्रह एवमितरेखपीतितत्राभिधानजत्ययोसामान्यनिराकृतवि शेयभावादाहसत्ताद्यर्यातरभूतमलिजदभिसर्वधात्सदादिव्यपदेशः इतितन्न उभयथाउपपत्तरिदमिहसंपधार्यसत्तासंबंधात्याद्रव्यादिखसदित्यभिधानेप्रत्या यश्वस्पा हानवेतियदिस्यात्सत्तासंबंधवैयर्यप्रकाशितप्रकाशनवैयर्यावसत्ताव यसंगश्चएकाअर्पतरीनपरावाद्येत्यत्तश्चसमधविरोधी यलिंगाभावाच्चैकोभावइतिअयनास्तिवरवियागादिश्चतिप्रसंग यविशेषइतिचन्नतस्पपतिषिहरवास्किंचरात्तैजाया-सदितिव्यपदेशस्यसत्तांतद हेरकत्वाहतुकखयोरनवस्थापतिज्ञाहानिदोषप्रसंगमयपदार्थशक्तिपति नियमाद्रव्यादिषसदितिव्यपदेशीनिमित्तोतरहनुकासत्तायोखतरावतिचेल्सस गंवादत्याग लामात्रकल्पनापसंगम्याकिंचमत्तादेनोपदार्थी Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इत्तिःसोस्येतिवास्यात्सोयमितिवायदिसोस्प्रेतित्तिर्मवधीयेनभवितव्यसनावद्ध व्यमितियथागोमानुयवमानित्यतीमत्वर्थस्पभावार्थस्पचनिर्तिवक्तव्याअथसो यमित्यभिसंबंधेनहात्ति सत्ताद्रव्यमिनिखानोतियथायघिपुरुषदतिनसहव्यमि जितभावार्थस्पनिहतिवध्याकिंचहष्टांताभावान्लोकिंचिदनेसर्वाधि हर्ययदियदितिसमीक्ष्यसकानेकासबंधिनीगम्पेता नीतीद्व्यवदितिचेन्नत स्थानिकखालीलिखवदितिचेन्ननस्यासिद्धत्वात अनोविधिपूर्वकमवहरव्यवहा र एनरमादतः कुतःसंगहासंग्रहा नयाक्षिप्तानामर्थानीविधिपूर्वकमवहराध्य वहार: कोविधि संग्रहालहीतोपरतदानुसूयेगौवव्यवहारपवर्तननत्ययविधिल यथासर्वसंग्रहणाससंग्रहीतंतच्चानपेक्षितविशेषनालसंव्यवहारायतिध्यवहार नयात्रीयतेयसत्तद्रव्यगणोर्वतिदव्येणापिचसंग्रहाक्षिसेनजीवविशेयानये क्षेशानशक्यसंव्यवहार इतिजीवद्रव्यमजीवद्रव्यमितिवाध्यवहाराश्नीयतेजीवा जीवावपिचर्सग्रहाक्षिमीनालसंव्यवहारयतिप्रत्येकंदेवनारकादिघटादिश्वव्य Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• ११६ वहारेगा श्री यतेक घायाभैषज्यमित्युक्तेचसामान्य स्प विशेषात्मकत्वान्नैयनाधादिवि शेषसामर्थ्य नाहिशक्यं प्रभुराणपिचक्रम्टत्तासवः कषायसमा हारकर्त्तनाम स्थापना द्रव्याणिच संग्रहोपात्तानि नालंव्यवहारायेत्तिभावरम्वग्टह्यते एवमयनयस्तावत्वर्त्त | तेयावत्यनन्नास्ति विभाग सूत्रपातवत्जुत्रः। यथारुजः सूत्रपात्तरतथा-रू उपगुणसूत्रयति तंत्रयति सूत्रा सर्वत्रिकालविषयानतिशय्यवर्तमानका लविषयमादन्ते प्रतीतानागतयोर्विनय्यनत्यन्नत्वेनव्यवहाराभावा समवायमान |मस्पनिद्दिधिक्षितं कषायोभै ज्यमित्यत्रचसं जातरसकषायो भैषज्येन प्राथमिक कषायोऽल्पे/नभिव्यक्तरसत्वादस्पविवयः पच्यमानः पक्का पक्षस्यात्पच्य मानःस्यादुपरत पाक रित्यसदेतद्विरोधात्यच्यमानइतिवर्त्तमानः पक्काइतिप्रतीन रतयेोरेकस्मिन्नवरोधोविरोधीति नैष दोषः पचनस्यादावविभागसमयेकश्चिदश नि वृत्ती वानवायदिननित्तसद्वीर्यादिय्वपिमनिवृत्तेः पाकाभावः स्यात्तततोभिनिर्वृत् ग्लदपेक्षयापच्यमानः पञ्चइतरथा हिसमयस्पत्रैविध्यप्रसंग' सएवैौदनः Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aaHAINE m I NEAADORatani LAMEmai नदत्यच्यतेपरभिवायस्यानित्तःपकर्हिसविशब्दसखिन्लोदनेपक्काभिषाय. स्यादपरनयाकतिचोच्यतेकस्यचित्यकस्तावनैवकतार्थवादेवाक्रियमाणकत भुज्पमातभक्तवध्यमानवरसिद्मारसिहादयायोज्यारतथाप्पतिवंतरिमन्नितिष स्थायदैवामिमीतेतीनानागतधीन्पमानासंभवातकुंभकाराभावा शिवकादिपर्या यकरणेतदभिधानाभावातकुंभपर्यायसमयेवखावयवभ्परावनित,स्थितष निचकुनोद्यागछसीतिनकत्तश्चिदित्ययमन्यातकालक्रियापरिणामाभावाद्य मिवाकाशदेप्रामवगाढ़समर्थात्मपरिणामवातत्रैवास्पवसतिलकलकाकः उभयोरपिखात्मकलाकला कलात्मकोनकाकालका यदिकाकात्मक स्याङ्ग मरादीनामपिकाकचप्रसंग-काकश्चकाकालकोनकृनात्मकायादवलात्मक शुल्लकाकाभाव-स्पायंचवात्वाच्चपित्तास्थिकाधिरादीनापीतयलरक्तादिव रविात्तद्यतिरेकेराकाकाभावाच्चनसामानाधिकरण्येमेकस्पपर्याय पानन्यत्वा त्पर्यायाएवविविक्तशक्तयोदय॑नामनकिर्चिदरतीनिकलण्यावाधान्यादितिचे Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नास्तिरक्तादिवतियसंगात्कयायमधुरेचमधनिविरोधारपत्यवाख्यायमाने ... काकविशेषशेनकेनचित्रद्वीपीतरनिवासिन्पउपलश्कल काकविशेषेपरुयेसतिपाद्यमानेसंशयोजायनेकिमयंकाकस्पकालेगाषा धान्यादीचरेद्रव्यस्पैववानथापरिरणमादित्यत: पलालादिदाहाभावः पतिवि शिष्यकालपरिग्रहादस्पहिनयस्पाविभागोवर्तमानसमयोविषय अग्निसंव धनदीपनक्षलनदहनान्यसक्षेयसमयातरालानियतीस्पदहनाभावःकिंचय मिन्समयेाहन्नतमिरपलालभस्मताभिनिहन्तं यस्मिश्चपलालनतस्मिन्दा हतियत्यलालतद्दहतीतिचन्तसावशेयात्समदायाभिधायिनीशब्दानामवय वेष्वत्तिदर्शनारदीयइतिचेल तदवस्यत्वादेकदेशदाहाभावस्पोक्तत्वान्तिरव शेषदाहासंभवादितिचेलवचनविरोधात्तदवस्थत्यांच्चवचनविरोधातावद्यदिनि रवेशेषस्पपलालस्पदाहस्थासंभवत्येकदेशवाहात्यलालवाहोनादाहन्ननुभ ववचनस्पनिरखरोषपरपक्षद्धकत्वाभावात्परपोकदेशस्ययकत्वमतः । Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कदेशयकत्वात् सनमयी दंदू बक मेवेत्यस्यसाधकत्वा सामर्थ्यभावइति तदव स्थित्वमय्ये कसमये दाहा। भावइत्युक्तत्वादवयवानेकत्वेयद्यवयवदा हा सर्वत्रदा ह-अवयवीत्तरा हान्ननु सर्वदाहाभावः॥ अथदाहः सर्वत्रकस्मान्नादाहः अतो ||नदाह एवं पानभोजनादिव्यवहाराभावाः, नाक्लः कृलीभवत्पुभयोर्भिन्न काला विस्थत्यात्प्रत्युत्पन्नविषयेनिवृत्तपर्यायानभिसंबंधात्सर्वसंव्यवहारलोपइति चेन्नविषयमन्त्रप्रदर्शनात्पूर्वनयवक्तव्यत्वाशं व्यवहारसिद्धिर्भवतिशपत्पर्थमा, इयतिप्रत्याययतीतिशब्दउच्चरितः शब्दः कृतसँगतेः पुरुषस्परखाभिधेयेष त्यमादधातीतिशब्दच्यते सचलिंगसंख्यासाधनादिव्यभिचारनिवृत्तिपरः लिंगं स्त्रीत्वप्रेरवनपुंसकत्वा निसंख्या एकत्वद्वित्ववहत्वानिसाधनमस्मदाद्येवमा दीनां व्यभिचारोनन्याय्यइतितलिवृत्तिपरोयंनयेस्तद्यथा लिंगव्यभिचाररनावत्स्त्री लिंगे लिंगाभिधानंतारकावातिरितिपल्लिंगे व्यभिधानमावगमो विदेधतिस्त्री वेनपुंसकाभिधाने वीरणा-प्रतोद्यमितिनपुंसके स्वाभिधाने प्रायशक्ति रितिपि Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• गेनर्पसकाभिधानपटोवस्वमितिनसकेपलिंगाभिधानद्रव्यपरथुरितिसंख्याव्य भिचारनाएकहिलनक्षत्रपुनर्वसदत्येकवेयहत्वनक्षत्रंशतभिष्यजाइनिहित्खए कर्वगोदोगामतिहिलेवहा पुनर्वस्पंचतारकागदनि वहत्येएकर्वमानावा नमितिावहरहिवंदेवमठय्याउभाराशीइनिसाधनव्यभिचाररहिमन्येरयेनया स्पमिनहियास्यसियानलेपिनेनिमादिशब्देनकालादिव्यभिचारोग्यधविश्वद्या ग्यास्पयत्रीजनित्ताभाविकृत्यमासीदितिकालव्यभिचारसंनिष्ठतेपनियतवि रमसपरमत्यपगाहणाव्यभिचाराएवमादयोव्यभिचाराअताकताप्रन्यर्थ स्पान्यानसंधाभावाद्यनिस्पाटापटोमवतुपटोवाघासावइतितरमाद्यया लिंगयथासंख्ययथासाधनादिचन्याय्यमभिधानी लोकसमयविरोधहतिचेहि रुध्यतीत्तत्वमीमांस्पतिसहस्पचारनानार्थसमभिरीहारसमभिरुवीयती नानाथसिमतीत्यैकमर्थमाभियपनवतस्ततासमभिरुटकतीवरवंतरा संक्रमणातन्निष्टवाकयमवितध्यानवद्ययायनीयंटलंरक्ष्मनियम Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वितर्कमविचारध्यानमर्थव्यंजनयोगसंक्रांत्यभावारसूक्ष्मकाययोगनियल्यान प्यागोरित्ययंशब्दोवागादिपवर्तमानोगव्यधिरूढःएवंसेट्वपिरूटिशब्दोस्प विययलयवार्यगत्यशदखयोगनितत्रैकस्पार्थस्पैकेनगतत्वात्यर्याया। प्राब्दप्रयोगीनर्थका शब्दभेदश्वेदनिअर्थभेदेनाय्यवएपभवितव्यमितिना नार्यसमाभरोहगाशमभिरूनाइदनादिद्शकनायकापूरियापरदा रइत्येवसर्वत्रअथवायोयत्राधिरूढ सत्तत्रसमेत्यभिमख्येनारोहात्समभि रूबःयथावभवानारतस्वात्मनीतिकुतःवरत्वेतरत्यभावाद्यद्यन्यस्यान्य त्रतिस्पारमानादीनोस्तपादानाचौकाशेतिः स्यारयेनात्मनाभूतरले नेवाथ्यवसाययत्तीत्येवतायेनात्मनायेनाभिधेयेननतःशब्दरलेनैवा ध्यसाययत्तिययेंद्गशब्द: परमेश्वरत्वाभिधेयःसपरिणामोयत्रयदावत्ती तत्रतदेवयुक्तोननामस्थापनाद्रध्येयतत्परिणामाभावादित्येवमितरेष्वपिशब्दे | खाभिधेयक्रियापरिणतिक्रियाक्षणाएवयुकिर्लान्यदेतिमथवायेनामनायेन %3D Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा- . पेरतोयलेनेवाध्यवसाययतियधागछत्तीतिगौरितियदैवेगवतितदेवे . १११ गछतितदेगोरितिनस्थितीनशयितइतिपूवीत्तरकालयोनदोभाधाइडिवार | एवमितरेष्वपिअथवायेनामनायेनायनशानेनभत्तःपरिणतरनेनैवाध्यवसा ययत्तियथाईन्द्राग्निज्ञानपरिणतआत्मैर्वेनाग्निश्चेत्येवभतार्थपत्मायनाछन्द एवंनतःतत्कात्तिाव्यसिद्धे-दाहकत्वाद्यतिप्रसंगइतिचेत्तदव्यतिरेकादर स्यादेतदरम्यादिव्यपदेशोयद्यात्मनिक्रियतेदाहकत्वाद्यतिषस . च्यनेतदव्यतिरेकादपसंगरतानिनामादीनियेनरूपेशाध्यपदिश्यतेततस्तेषामा व्यतिरेकःप्रतिनियतार्थवत्तिबाहर्माणांतनोनोनागमभावाग्नीवर्तमानंदाहक कयामागमभावाग्नीवतउत्तानेगमादयोनया उत्तरोतरवक्ष्मविषयवाद यांक्रमापूर्वपूर्वहतुकवाच्चाएवमेतेनया पूर्वमनेनया पूर्वपूर्वविरुहमहावि ययाउत्तरोत्तरानंकूलाल्यविषयाव्यस्पानंतशतप्रतिशक्तिभिद्यमानाव पाजायते एतेगावधानतयापरस्परसंवा सम्यग्दर्शनहतवपरु Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार्थक्रिया साधनसामथ्यत्तित्वादयइवयथोपापविनिवेश्यमानाभ पतादिसंज्ञा स्वतंत्राश्वा समर्थारितं त्वादिवदेवचियमउपन्यास तत्वादयो निरपेक्षा अपिकां चिदर्थमात्रां जनयतिहिकश्चित्प्रत्येकं तंतुत्वकारणेसमर्थए कश्चवल्फ जीवं धनेसमर्थः । इमे पुनर्भयानिरपेक्षा: संतः नकांचिदपिसम्यग्दर्शनमात्रापा दुर्भावियंती तिनैष दोषः ॥ अभिहितानववोधादभिहितमर्थमनववध्यपरेणेद सपालभ्यते एतदुक्तं निरपेक्षितं त्वादिपतादिकार्यं नारतीतियत्तत्तेनोप |दर्शितंनतत्पदादिकार्य किंतर्हितत्वादिकार्यमपि तत्याद्यवयवेषु नास्त्येवेत्यस्म |त्यक्षसिद्धिरेवाथतत्वादि कार्यशक्तचापेक्षयास्तीत्फच्यतेनयेय्वपिनिरपेक्षेष भिधानरूपेष कारणवशात्सम्पदनिहेतुत्वविपरिणतिसावादात्म नास्तित्वमितिसाम्पमेवोपन्यासस्प ज्ञानदर्शनयोरत त्वं नया नोचैवलक्षणता नस्पचप्रमाणत्वमध्यायेस्मिन्निरूपितमिति ॥ चितत्वार्थमा र्त्तिध्याख्याचे कारेड थमोऽध्याय ॥ Page #530 --------------------------------------------------------------------------  Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभावतीति प्रवदंतिसंतः २ तस्याममूद्विश्वजनीनद्रुतिदानां बुवा हो भुविहीरपाख्यः व गोत्र विस्तार न मांशुमाली सम्यकरत्नाभरणार्चिताङ्गः ३ तस्योपरोधवशतो विंशदोरुकीर्ते मा। शोकानंदिकतशा म्न मगाध्वोयम् ॥ स्पष्टीकृतंकृति पयेर्व चेने रु दारे बलि प्रवोधकरमे तदनंत वीर्यैः ४ इतिपरीक्षामु म Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गूढपदपाययत्रमाहुरनाकुल मिति इदानीमात्मनःप्राख्यनिर्वहण मोहत्यपरिहारंचदर्शयन्नाह परी, मुखमादर्शहयोपादयो तत्वयोः संविदेमादृशोवालः परीक्षादक्षवघ्यथां ॥९॥व्यांकृतवानस्मि किमर्थ संविदेकस्यमादृशः जांचकयंभूत इत्यादवालोमंदमतिःगजनौहत्यसूचवचनमेतत् ॥ तत्वज्ञत्वंचप्रार व्यनिर्वहणादेवाबसीयते कितत्परीक्षामुखतदेवनिरुप्यतिजादमितिकयोः योपादेयतत्वयोः वादर्शात्मनोलंकारमंडितस्यसोरुप्यवरुपयवाप्रनिर्विवीयदर्शनद्वारेणसूचयति तथेदमपिहेयो यतत्वंसाधनदूषणोयपदर्शनद्वारेण निश्चाययतीत्यादर्शत्वननिरुप्यते कयश्वपरीक्षादक्षवत् परी क्षादक्षश्वयथापरीक्षाददाखपारधशानिरुठवांसथाहमपीत्यर्थःजकलंशशांकेयतू प्रकटकृत मखिलमाननिभनिरंतत्संक्षिप्तंमरिभिरुरुयपनिभव्यकिमेतेन ॥इतिपरीक्षामुखलधुवृत्तोप्रमाणा ___ समुद्देशःषष्टःपरिछेदः । श्रीमान्वेजेयनामाभूदयणीतिशालिनी बंदीपालवंशालिव्यो शिरुर्जितः १ तदीयपत्नीभुविविश्रुतासीनाणोवनामागुणशालियामा योरेवतीतिप्रथिताबिक Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माशातत्वान्नय स्वरुपं शास्त्रांतर प्रसिद्धम् विचारणीय मिहयुक्त्या प्रतिपत्तव्यं तत्रमूलनयेो द्वो द्रव्यार्थिक पर्या यार्थिक भेदा तत्र द्रव्यार्थि करनेधा गम संग्रह व्यवहारमेदात् पर्यायार्थिकम् तुशिनु सूत्रशब्दसमभिरुदैव भूतभेदात् जन्योन्यगुणप्रधानभूतभेदाभेदप्ररूपणा नैगमः नैगमोनगम इतिनिरुक्तेः सर्वथाभेदवाद स्तदाभासः प्रतिपदा व्यपेक्षा सन्मात्र याहीसंग्रहः बलवादस्तदाभासः संग्रहगृहीत भेदको व्यवहारः कल्प निको भेदस्तदाभासः शुद्ध पर्यायग्राहीप्रतिपक्षसापेदाः जजुरुतः क्षणि कैकांत नयस्तदाभासः कालकारक लिंगानां पेदा च्छन्दस्यकथेचिदर्यमदकयनंशब्दानयः अर्थभेदे विनाशब्दा नानावैकांत लदाभासः पर्याय भिदातू पदार्थानानात्व निरुपः सम मिरुढः पर्यायनानात्व मे तेरेणापींद्रा दिभेदकथनं तदाभासः क्रियाश्रये राभेिद प्ररूपणमित्यं भावः क्रियानिरपेक्षत्वेन क्रियाच केयु कल्पनिको व्यवहारस्तदा भासइति इति नद्य तदा भा सलक्षणं संक्षेपेणोक्तं विस्तरे शानय चक्रा प्रति पतव्यं अथवा संभवचिद्यमान मत्यद्वादश लक्षणां मंत्रल क्षणांवान्यत्रोत मिहद्रष्टव्यं तथा चाह समर्थवचनं वाद इतिप्रसिद्धावयवं वाक्यं स्वेष्ट स्यार्थस्य साधकं साधु Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदृपयन्नाह भेदेवात्मांतवरवतदनुपपतेः अययंत्रेवात्मनिप्रमाणसमवेतंकलमपितत्रैवसमवेतमिति समवायिलक्षणापास्याप्रमाणफलव्यवस्थितिनात्मांतरेतासंगइतिचेतपिनसूतमित्याह समवायेतिम • इतिसमवायस्यनिसत्वाध्यापकलाच सर्वात्मनामपिसमवायसमवायसमानधर्मकलान्लतनःप्रतियम इत्यर्थः इदानीस्वपरपक्षसाधनदूषणव्यवस्थामुपदर्शयति प्रमाणतदाभासोदुष्टतयोदावितोपरिहतादों वादिनःसाधनतदाभासोप्रतिवादिनोटूपणभूषरोचवादिनाप्रमाणमुपन्यतंतच्च प्रतिवादिनादृष्टत योदावितम् सुनवादिनापरिहतेदेवतस्यसाधनं भवति प्रतिवादिनश्व टूषणमिति यदातुवादिनाप्रमाणा .. मप्रतिवादिनातथैवोद्भावितम् वादिनाचपरिहितं तदातद्वादिनः साधनाभासोभवति प्रतिवा . ..मितिजयोकप्रकारेगाशेषविप्रतिवादिनानथेवोदावितम् वादिनापरिहतम् तदातहादिनः भासोमवनिवादिनचभूषणमितिजयोनसकारणाशेषविप्रतिपतिनिराकरणाहारणत्रमाणतत्व खत्र तिज्ञातं परीक्षनयादितत्वमन्यत्रोतमितिदर्शयन्नाह संभवदन्यद्विचारणीयमिनिसंभव विद्यमानमन्य Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चकिचनदेवमात्मकतत्वम् स्वयंसमर्थवाकारिस्यात् प्रथमपतेदूषणामाह समर्थस्यकरणेसर्वदोत्पतिरपेक्ष त्वात् सहकारिसानिध्यातत्कारणान्नेतिचेदवाह परापेक्षणपरिणामिलमन्यथातदभावात् वियुकावस्था यामकुर्वतः सहकारिसमधानयेतायाकार्यकारिणः पूर्वतिरा कारपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणा मोपयतेरित्ययःजन्ययाकार्यकारणामावात् प्राग्भावावस्थायामिवेत्यर्थःअथसिद्वितीयपोदापमाहा। खयमसमर्थस्थ अकारकत्वात्पूर्ववत् जथालाभासंप्रकाशयन्नाह फलाभासंप्रमारादभिन्न भिन्नमेवा कुतः पक्षाहयेषितदामासनेत्याशंकायामाधपोतदाभासलेहेतुमाह अभेदेतघ्यवहारानुपपत्तेः फला मेवप्रमाणमेववाभवेदितिभावः व्यावृत्यासंबृत्यपरनामधेययातत्कल्पनारिखसाह व्यावृत्यापिनतत्कल्स माफलोतरावप्रसंगात यमपिथालाहिजानीयात् फलस्यव्यावृत्यामलव्यवहारलयाली तरी दपिसजातीयाम्यावृतिरयलीफललमेनेवाभेदपक्षदृष्टोतमाह प्रमाणीतराध्यावृत्तवानमारावस्यति । जत्रापिपातन्येव प्रक्रियायोजनीया जमदपक्षनिराकृत्याचार्यपसहरति तलाच्छास्तवाभेदइति भेदेष | Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संख्याभासमितिदर्शयति सौगतसारख्ययोगप्रभाकरजैमिनीयानांप्रत्यक्षानुमानागमोपमानायपित्य - भावेरेकैकाधिकातिवन् यथापत्यमादिभिरेककाधिक व्यप्तिःप्रतियनशकानेसोगनादिभिस्तथापत्यो गालोकायनिकै परखुबुध्यादिरपीत्यर्थी जथपरबुध्यादिप्रतिपनि प्रयोगमाभूदन्यस्माविष्यनिइ त्याशंक्यार जन मानादेन द्विशयत्यमाणानरलंगच्छतुनपरबुध्यादिभिधीयने जनुमानादेपखुल्या दिविययतेप्रत्यक्षेकप्रमाणवादोहीयतइत्यय जत्रोदारणामाह नर्कस्येचव्याप्तिगोपरत्वेप्रमाणातर त्वंजप्रमाणस्याव्यवस्थापकत्वात् मोगताना मितिशेयः किंचमत्यक्षेत्रमाणवादिनाप्रत्यक्षाकेका कप्रमाणावादिमिशवसैवेदनेत्रियप्रत्यक्षभेदोनुमानभदश्च प्रतिभासभेदेनवनव्योगत्यंतराभावातूस चतडूदोलीकापतिप्रतिपक्षानुमानयोरितरेयोव्याप्तिज्ञानप्रत्यक्षादिनमारोधितिसर्वेयांप्रमागासंख्या विघटनेएनदेवदर्शयति पनिभासभेदस्यभेदकत्वादितिइदानी विषयाभासमुपदीयनुमाह विशया भासःसामान्य विशेषोद्वयवाखतंत्रमिति कथमेवांनदाभासनेत्याह नयाप्रतिभासनान कार्याकारणा Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदाहरणमाह ययानयालोरेमोदकराशयःसंविधानध्यमाणावकाकश्चिन्मणकेराकुलोहनचनातत्संगपरिनि होर्षयात्रतारणवाक्यनयादेशतान् सस्थापयतीत्यामोलेरन्यवादागमाभासत्वं प्रथमोदाहरणमात्रेणातुध्यानुदाहरणांतमाह जंगुल्पेत्रहस्थिययशनमारले इति अवापिसाख्यपशुःखदुरागमजनितवासनाहि नचेतादेशविरुहूं सर्वेसर्वत्रविद्यत इतिमन्यमानस्लयोपदिशतीत्सनापिवचनात्वादिदमपिनत्यत्यर्थः कथा मनंतरयायियोसदाभासत्वमित्यारेकायामाह विसंवादानं जविसंवादरुपप्रमाणलक्षणाभावान्ननहि शेषरुपमपीत्यर्थः इदानीसांख्याभासमाह प्रत्यक्षमेवैधमा मित्यादिसंख्याभासं प्रत्यक्षपरोक्ष। दाद्वैविध्यमुतं नेहेपरीसेनप्रत्यक्षमवाप्रत्यक्षानुमाने एतेपायवधारणसंख्याभासं प्रत्यक्षमेवेकमिनि कसंख्याभासमित्याह लोकयविकस्यप्रत्यक्षतः परलोकादिनिशेधस्यप्रारब्धादेवासिहरतहियत्वात जतद्विशयत्वात् अप्रत्याविषयत्वादित्य शेषसुगम प्रपंचतवैनत्संख्याविप्रतिपति निराकरण|| तिनेहपुनरुच्यते इतरवादियभारण्यतावधारणमपिविघटन इतिलोकायतिकदृष्टोनहारेणतन्मनेपिस । Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादिन नहिपरीतदर्शनमपिनदाभासमित्याह विपरीतान्वयश्चपादपोरुपेयंनदमनकतास्य .. - विद्यदादिनानिप्रसंगादिति नस्याप्यमनताप्राप्तरित्यर्थः व्याप्तिरेकोदाहरणाभासमार व्यतिरेके सिताव्यतिरेक परिमाणेट्रियसुखाकाशवदिनि जोरुषेयः शब्दोमर्नवादित्यत्रैवासिहासाध्यसाधना यव्यतिरेकापनेतिविग्रहः तनसिहसाध्यव्यतिरेकः परमाणुलस्यापोरुषेयलादिंट्रियसुखमसिहसा व्यतिरकंजाकाशत्वसितोभयव्यतिरेकमिनिसाध्याभावेसाध्यव्यावृतिरितिव्यतिरेकोदाहरणप्रयके. ख्यापितं तत्रातद्विपरीनमपिनदाभासमित्युपदर्शयति विपरीतव्यतिरेजवयन्लामूर्ततन्नापौरुषेयमि वालव्युत्पत्यर्थतंत्रयोपगमइत्युतमिदानीं नानप्रनिएववियहीनतायांप्रयोगाभासमाह वालप्रयोगा . पंचावयवेयकियहीनतानदेवोदाहरणअग्निमानयेदेोधमवत्तायछिदैनदिळे यथानहानसमित्यवय विपर्यायतत्वमाह नस्मादग्निमान्धमांश्चायमितिकथमवयवविपर्ययप्रयोगाभासदस्यारेकायामाह स्पष्ट नयामतपनिपनरयोगान् इदानीमागमभासमाह रागडेयमोहाक्रान पुरुषवचनात् जातमागमाभास Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंक्याह आकाशे नित्येप्यस्य निश्वयात् शंकित वृतिमुदाहरति शंकितवृतिस्तु नास्ति सर्वज्ञो वकृत्वादिति अ स्यापि कथं विपक्षे नृतिराशंका तत्यत्राह सर्वज्ञेन वकृत्वा विरोधादि अविरोधश्व ज्ञानोत्कर्षे वचनाना मय क दर्शनादिति निरुपंतप्राय अकिंचित्कर स्वरुपं निरूपयति सिद्धे प्रत्यक्षादिबाधिते च साध्ये हेतु र किंचिन्कर इ तिउदाहरति सिद्धः श्रावणः शब्दः शब्दत्वादिति कथमस्याकिचित्करत्वमित्याह किंचिदकरणादिति ज परं च भेदं प्रथमस्य दृष्टांती करणारेणोदाहरति यथानुष्णोग्निर्द्वष्यत्वा दित्यादौ किं वित्कर्तु शक्यला किंचिक रत्वमितिशेषः जम-चदोषों हेतु लक्षण विचारा बस एव नचादका लहूनि व्यक्तीकुयान्नाह लक्षरारएवासौ दोषो व्युत्पन्न प्रयोगस्य पक्ष दोषैव दुष्टत्वादिति दृष्टांतोन्नया व्यतिरेक भेदा द्विविधइत्यकं तत्रान्वयदृष्टांता भास माह हर्शता भासा अन्वये असिहू साधनोभयाः साध्यं साधनं चोभयं च साध्य साधनो भयानि ज सिद्धानिता नियेष्वितिविग्रहः एतानेकत्रानुमाने दर्शयति अपौरुषेयः शब्दोमूर्त त्वादिंद्रिय सुख परमाणु घटवत् इंद्रिय सुख मसिहु साध्येतस्य पौरुषेयत्वात् परमाणुरसिद्धसाधने दर्शनीयामिति दृष्टांता वसेरेम Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानाहहेत्वाभासा जसिहविरुद्धानकोतिका किंचित्कराः येयाययाक्रमेणलक्षणंसोदाहरणमाहज सत्सतानिश्चयोसिहासताचयश्वसतानिश्चयोजस्तोसतानिश्चयीयस्यभवत्यसत्सतानिश्चयः नत्रप्रया मभेदमाह जविद्यमानसताकःपरिणामीशब्दःचाक्षयत्वात् प्रयमस्यासिद्धत्वमाह गछस्वरुपेणासलाता द्वितीयासिहभेदमुपदर्शयनिजविद्यमाननिश्चयोमुग्धशुद्धिप्रत्यग्निरत्रमादितिजस्याप्यसिहत्ता कथा मित्यारेकायामाह सारव्यप्रतिपरिणामीशदारुतकत्वादितिजस्यामिहनायाकारणमाह तेनाज्ञानत्वा दितिनेनसाख्यनाज्ञानत्वातन्मतेमावि वितिरोभावावेवमसिटौनोत्पत्यादिरिति जस्याप्यनिश्रयाद | सिदत्वमित्यर्थः विरुद्दुरेत्वाभासमुपदर्शयन्नाह विपरीतनिश्चिताविनाभावाविरुहःजपरिणामीशब्दहन कत्वात् लतकत्व सपरिणामविरोधिनापरिणामेनव्याप्तिर्मतिअनेकांतिकत्वेहत्वाभासमाह विपक्षेप्यविरुद्ध तिरनेकांतिकः अपिशब्दान्नकेवलंपक्षसपक्षयोरिनिद्रष्टव्यंसचद्विवियो विपक्षेनिश्चितनिः शकिननि विनिजत्रायंदर्शयन्नाह निश्चितऋनिरनित्यः शब्दाप्रमेयत्तान्पटवदिति कयमस्यविपक्षनिश्चिता निरित्या Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुमाना भास माह इदमनुमानाभासं इदं वक्ष्यमाणा मितिभावः तत्र नद्वय वाभासो पदर्शनेन समुदाय रु पानुमाना समुपदर्शयितु कामः प्रथमावयवाभासमाह् तत्रापि निष्टादिः यत्राभासः इष्टमवाधितमित्यादि तछ क्षण मुक्तमिदानीं तद्विपरीतं नदौसमिति कथयति जनिष्टोमीमांसकरया नित्यः शब्दः असिद्धा द्विप रीतं तदाभासमाह सिद्धुःश्रावणः शब्द इति अनुमाना गम लोक स्वक्चैनैः एतेषां क्रमेणोदाहरणमाह तत्र त्यक्षादि वाधितो यथा अनुष्टो ग्निमत्वाज्जलवत् स्पर्शन प्रत्यक्षेप्य कृष्णः स्परात्मिको ग्निरनुभूयते जनु वाधितमाह अपरिणामीशब्दः कृतकत्वात् घटवत् इति अत्र पक्षो परिणामीशब्दः कृतकलादित्यनेन वाध्य ते आगम वाधितमाह प्रेत्य सुख प्रदोधर्मः पुरुषाश्रित्वादधर्मवदिति आगमेहिपुरुषाश्रितत्वाविशेये पिपर लोकेधर्मस्य सुखहेतुत्वमुक्तं लोक वाधित माह भुचि नरशिरः कपालंमा एयं गत्वा खं शुक्रवदिति लोके हिमा एयं गत्वेपि कस्य निष्ठु चित्वमशुचित्वंचतत्र नर् कपाला दीना मशुचित्वमेवेति लोक वा धितत्वं स्व वचन वाधितमाह मातामेवंध्या पुरुष संयोगेप्यगर्भत्वान् सिद्ध वंध्या वदिति इदानीं है त्वाभासानू क्रमाप Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनिभवति नचक्रमप्राप्तोप्रमाणातरमस्तितेजसत्वमस्तीनिचेन्ननस्यामिद्धेः जयचक्ष तैजसंरुपादी| नांमध्येरुपस्यैवप्रकाशकत्वात् प्रदेतितेदप्यपर्यायोचिताभिधानंमन्यंजनादेः पार्थिववेपिरुपयकाशवदर्श नात् प्रथिव्यादिरूपप्रकाशकलेपथिव्यादारधत्वप्रसंगाच नस्मात्सनिकस्यिाव्यापकत्वान्नप्रमाणावंम् कारणज्ञानेनव्यवधानाञ्चेतिप्रत्यक्षाभासमाह जैपेशयेप्रत्यक्षनदाभासंतोहस्याकस्माइमदर्शनाहिवि जानवदनि परोक्षाभासमार वैशपिपरोक्षेनदाभासंमीमांसककरणज्ञानवदति प्रापंचितमेतत् । परोक्षमेदाभासमुपदर्शयन् प्रथमक्रमप्राप्तस्मरणाभासमार जतस्मिनदितिज्ञानंस्मरणाभासं जिनदा निसदेवदतोयथेति जतस्मिन् जननुभूतइत्यर्यशेषसुगम प्रत्यभिज्ञाभासमार सहशेनेदेवेदंतरिमन्ने वनसदृशयमलकवदित्यादिप्रत्यभिज्ञानाभासद्विविधंप्रत्यभिज्ञानाभासमुपदर्शिनमेकत्वभिर्वधनेसाह श्यनिबंधनचतित्रैकलेसादृश्यावमासः साहकलानभासस्तदाभासमितिनकोभासमाह असेवहे नितज्ञानंतकोभासयावालसुत्रःसश्यामइतिययावन् ज्ञानमितिव्याप्तिलक्षणेसवेधज्ञानमित्यर्थः इदानी Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणमितरतदाभासमिति संशयादयश्वप्रसिद्वारवतत्रसंशयउभयकोटिसंस्पर्शस्थिाणुवापुरुषोवेनिप। रामर्शविपर्ययः पुनरतस्मितदितिविकल्पः विशेषानवधारणामनध्यवसायः कथमेवामस्वसंविदितादीनां नदाभासनेनि जाह स्वविशयोपदकत्वाभावादिति गनार्थमेनतू जत्रछातंयथाक्रममा पुरुषांतरपूर्वी अंगछतृणस्यस्थणुपुरुषादिक्षानवत् पुरुषांतरेचपूर्वार्थश्चगच्छतृणस्पभिस्थाणुपुरुषादिश्चयाज्ञाने नदिवनहत् जपरंचसन्निकर्शवादिनप्रतिदृष्टांतमाह चारसयाद्रव्येसंयुनसमवायवाचजयमयःयथा चक्षरसयोःसंयुगसमवायःसन्नपिनमागनथाचक्षरुपयोरपितस्मादयमपिप्रमाणाभासवेनि उपलक्ष | गमेतत् जतिव्याप्तिकथनमव्याप्तिश्वसन्विकप्रित्यक्षवादीनांचक्षपिसन्निकस्यिासंभवातू जयवर्स प्राप्तार्थपरिछेदकंव्यवहितार्थानांप्रकाशकलात् प्रदीपादिवदिनितन सिरितिमतं नदपिनसाथीय का चाचपटलादिव्यवहितार्थानांजपिचक्षषाप्रतिभासनद्वैतोरसिद्धेःशारखाचन्दमसोरेककालदर्शनानुपप निप्रशनेश्चनननक्रमपियोगपयाभिमानइनिवनव्यंकालव्यवधानानुपलयः किंचक्रमप्रतियनिः यातिनिश्चये Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षत्वायोमदर्यकर्मत्वेनाप्रतीयमानादप्रत्यक्षवेनहि फल ज्ञानस्याप्रत्यक्षतानतरवस्यात् जथ फलत्वेनप्रतिभा नानोचकरणज्ञानस्यापिकरणत्वेनावमासनालत्यक्षमस्तु जयकरणस्यचक्षरोदरपत्यक्षवेपिरुपपाकव्या ' इतिरन्न भिन्नकरीकरणस्येवनध्यभिचारादमिन्नकर्तन करणेसनिक प्रत्यक्षतायानदमिन्नस्यापि करणस्यकथेचितमत्यक्षवेनाप्रत्यक्षकोतविरोधात्प्रकाशात्मनोप्रत्यक्षवेपिप्रदीपप्रत्यक्ष्यविरोधवदितिया - अहिधारावहिज्ञानगृहीतार्थदर्शनोगताभिमतमूनिर्विकल्पेतचतविशयानुपदर्शकत्वादप्रमाणे व्या यस्यैवतज्जनितस्य नदुपदर्शकलादर्यव्यवसायस्य प्रत्यक्षाकारणानुरकत्वामतः प्रत्यक्षस्यैवप्रमाण्य व गृहीतग्राहित्वादनमायामितिमन्नसुभाषितम् दर्शनस्याविकल्पस्यानुपलक्षणानुपलक्षणानदावा सदावेवानीलादाविवक्षयादावपिनदुपदर्शकलप्रसंगातविपरीतसमारोपान्नेनचेतहिसिडेनीला रोपविरोधिग्रहणलक्षणातत्सदाबायोगान् सदावेदानीलादाविवक्षणक्षयादावपिनदुपदर्शकलन गाताविपरीतसमारोपान्नेतिचेनहि सिटुनीलादोसमारोपविरोधिग्रहणलक्षणोनिश्चयनितदात्मकमेव Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणातदिहोदितं इतिपरीक्षा मुखस्य लघुवृत्तो फल समुद्देशः पंचमः । अये दानं मुक्तप्रमाशा स्वरूपादि चतुष्टया भास माह ततो न्यतदाभासमिति ततः उक्तात् प्रमाशा स्वरूप संख्या विशय फल भेदादन्य द्विपरीतं तदाभासमिति तत्र क्रमप्राप्तं स्वरूपाभासं दर्शयति अस्व संबदिति गृहीतार्थ दर्शन संशयादयः प्रमाणाभासः अख से विदित च गृहीतार्थच दर्शनंचसंशय जा दियेषांत संशयादयश्चेति संर्वषांद्वंद्वः आदिशब्देन विपर्य यानध्यवसाय योरपिग्रहां वखसंविदित संज्ञानं ज्ञानांतर प्रत्यक्षलादिर्तिनेयायिकाः तथाहिज्ञानव व्यतिरिक वेद नवद्यं वेद्यत्वात् घटवदिति नद संगतधर्मिज्ञानस्यज्ञानांतर वेद्यत्वे साध्यांतः पातित्वेन धर्मित्वा योगात् स्वसविदितित्वेतेनेव देतोरनेकावात् महेश्वरज्ञानेनचव्यभिचारा व्याप्तिज्ञाने नाप्यनेकांना दर्शप्रति उपत्ययोगाच्च नहिज्ञापकात्य संज्ञाथं गम यति शब्द लि गादीनां मपि तेथे वगमकत्व प्रसंगा दनंतर भाविज्ञा नयामकत्वे तस्याप्य गृहीतस्य पराज्ञा पकत्वानंतर कल्पनीयं तत्रापि तदंतर मिल्स नवस्था तस्मान्नायंपदा श्रेयान् एतेन करणज्ञानस्य परोक्षत्वना स्वसंविदितत्वं बुवन्नपिमीमांसकाः प्रत्युक्तः स्तस्यापि ततोर्थ अत्य Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मास्वदेह मितिरेवस्थितः द्वितीय विशेषभेदमाह अर्थनिरगताविसहशपरिणामाध्यतिरेकोगोमहि पादिवदिति वैसादृश्यहि प्रतियोगिहरासत्यवभवति नचापदावादस्यावस्तुत्वमवस्तुनपेक्षिाला योगादेपेक्षायावस्तुनिष्टत्वात् स्यालारलांछितमवाध्यमनधर्मसंदेहवामनमशेषमपिप्रमेयं देवैम माणवलितोनिरवादिनच्चसेक्षिप्तमेवमुनिभिर्विवृत मयेनन् ॥१॥ इनिपरीक्षामुरवस्यलभक्तौ विशय - समद्देशचतुर्थः॥४॥ अवेदानी फलविप्रतिपनि निरासार्थमाह अज्ञाननिवृतिहीनेपिादानापेक्षाचाल माक्षात्पादज्ञाननिवृति पारेपयेगाहानादिकमितिप्रमेयनिश्चयोत्तरकालभावित्वातस्यति तहिधमपिफलंगमा गाटूिन्नमेवेनियोगः जमिन्नमेवेतिसोगतास्तन्मतद्वयनिरासनस्वमतेव्यवस्थापयितुमाह प्रमाणादभिन्नंच । कचिदभेदसमर्थनार्थहेतुमाह यःअमितेसस्वनिवृताज्ञानोजहात्पादभेदापेक्षतेचेनिषतः अयमयिस्यैवा मनःप्रभागाकारणपरिणतितस्यैवफलरुपनयापरिणामइत्येकप्रमात्रप्रेक्षयाप्रमाणाफलयोरभेदः कारणक्रियापा रिणामभेदादः इत्यस्यसामोसहलान्नोतंपारंपयेणसाक्षाञ्चलद्वैधाभिधायितत् देवभिन्नमभिन्नंच Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नापिपृथिव्यादिचतुश्यात्मकत्वमात्मनःसंभाव्यतेजचेतनेन्यःचैतन्योत्पनियोगात धारणरणवारण कतालक्षणाचयाभावाच्च नदहातवालकस्यतन्यादावभिलाशाभावप्रसंगाच्चअभिलाषोहिनत्य भिज्ञानेभवतिनन्यस्मरणस्मरणेचानुभवभवतीतिपूर्वानुभवःसिद्धः मध्यदशायोनियेयानः मतानी रिशोयक्षाहिकूसुस्वयमुत्यनलेनकथयतादर्शनात् अशांचिभवरमुनेरुपलंभाच्चानादिश्चतनसिद्ध एख नथाचोकम् नदहजलनेहानुरदोहोर्भवस्मृतः भूतानन्चयनान्सिम्भिकतिज्ञःसनातनति लचखदेहसमिनिरात्मेत्यत्रापिषमाणाभावात्सर्वत्रसेरायइनिवनव्यम् नत्रानुमानस्ससदाया न नयाहि देवदतात्मा हरवतत्रसर्वत्रैवविद्यते तत्रैवसर्वत्रेवस्खासाधारणगुणाधारतयोग लभात् योयत्रसवेनेवचखासाधारणगुणाधारतयोपलभ्यते सर्वभवसनत्रैवनेत्रचविद्यते यथा विदतग्रहस्खसर्ववचउपलभ्यमानःस्वासाधारणमासुरत्वादिगुण-प्रदीपः तथाचायनस्मा जथेनि नदसाधारयणगुणज्ञानदर्शनसुखवीर्यलक्षणलेचसर्वागीणानेवचोपलभ्यते सुख माल्हादनाकारविज्ञानमेयवोधनशतिः क्रियालमेयास्यामतः कोतासमागमतिवचनात् नरमादा Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिमाणसामान्याधिकरणत्वमात्मनइत्याचानुपपन्नं व्यधिकरणासिहि प्रसंगात् नहिपरिमा सामान्यमात्मनिव्यवस्थितम् दिनु परिमाराव्यानि वेवेति नचावातरमहापरिमायाहयाधाना यात्मन्यप्रतिपन्नेपरिमारणमात्माधिकरणतातत्र निवेशक्या दृष्टानश्चसाधनविकला जाकारास महापरिमाणाधिकरणतयापरिमाणमात्राधिकरणलायोगात् नित्यद्रव्यत्वेचसर्वयासिह नित्यस्य अमात्रमाभ्यामक्रियाविरोधादिनि प्रसज्यपक्षेपिभावस्यग्रहणोपायाभवान् नचविशेषगांत्वना वाग्रहीतविशेषणेमनाहीतविशेषाविशेश्यबुद्विरितिवचनात् नचप्रक्षेनद्रहणोपायः संवधामा वात् इन्द्रियार्थसन्निकजिहिप्रत्यक्षेनन्मतेसिंह विरोषणाविरोभ्यभावकल्पनायामभावस्यनारही तस्यविशेषणात्वमिति नदेवटूशणं तस्मात् नव्यापकमात्मद्रव्यं नापिवटकणिकामाबंकमनीयका नाकुचजघनसंस्पर्शकालेप्रतिलोमकूपमालादनाकारस्यसुखस्यानुभवात् जन्ययासवेगिागरोमादी दिकादियायोगादाशवत्यालातचक्रवनक्रमेोवनत्सुखमित्स्नुपपन्नं परापरातःकरणसम्बेधत नकारणस्यपरिकल्पनायांव्यवधानप्रसंगातू अन्यथासुखस्यमानसप्रत्यक्षादितिवायोगादिति Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लायाकारव्याप्तिवदेवस्यक्रमभाविपरिणामियापित्वमित्यर्थः विशेषस्यापिडेविध्यमितिदर्शयति वि शेषस्यापि विध्यमितिदर्शयति विशेषश्रेतिधेत्यभित्रियमाणेनाभिसर्वधः तदेवप्रतिपादयति का यिव्यतिरेकभेदादितिश्यमविशेषभेदमाह एकस्मिन्द्रव्येक्रमभाषिनः परिणामाःपर्यायाजात्मनित विशादादिवदिति जनात्मद्रव्य स्वदेहमितमानमेव नव्याप्य नापिवटकाणिकामात्रं नवकाया कारपरिणातभूतकदेवकमिति तत्रव्यापहले परशामनुमानमात्माध्यापनः व्यत्वेसत्य मूतवादाकाशदि नि तत्रयदिरुपादिलक्षमूर्त वसतिशेधोमूतत्व नदमनसानेकातःजयसवंगतदव्यपरिमाग तत्व तन्निराधलथाचेत्यरंभनिसाध्यसमोहेतुः यच्चापरसनुमानमासाध्यापन जणुपरिमाणाधिकर गोसतिनित्यव्यत्वादाकाशवदिति नदपिनसाधनसणुपरिमारणनधिकररावमित्यत्रनिमयनया र्थःपूर्युदासःप्रनिशेधोवाभवेत् तत्रायपणपरिमारणामाप्रनिशेयेनमहापरिणामावानरपरिमा गाधिकरणलंयव्यापकत्वमेवसाधयतीति परिमाणमानंचपरगसामान्योमैगीकर्तव्यो नयाचाण Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तणकारपरिहारावासितिलक्षणपरिणमिनार्थक्रियोपपतेश्चति अनुवृत्ताकारोहिंगोोरित्यादिनस्ययः ।। व्यावृताकार श्यामः शवलइत्यादिप्रत्ययस्तयोयोगोचरस्तस्यभावललंतस्मादेनतिर्यक सामान्य व्यतिरी लक्षणविशेषयात्मकंवस्तुसाधितं पूर्वतिरकारमार्यथासंख्यनपरिहारावातीताभ्यास्थितिः सेव लक्षणयस्यसचासोपरिणामस्यतेनाकियोपपतेश्चेत्पनेनन् तासामान्य पर्यायाव्यविशेषड्यरुपर्व स्तुसमर्थितंभवति अथप्रथमोद्दिष्ट सामान्यभेदंदर्शयन्नाह सामान्य हेवातियगढताभेदात् प्रथम मिदंसोदाहरणमाह सदृशपरिणामतियक वरमुदादिगोत्ववत् निकरुपस्यगोत्वादेः क्रमयोगपर्याय भ्यामक्रियाविरोधात् प्रत्यन परिसमात्याव्यतिवृत्ययोगाथानसहशपरिणामालकमेवेतितियों सामान्य मुकंहितीयभेदमपिसदृष्टोतमुपदर्शयति परापरविवर्तव्यापिव्यमु तामृदिवस्थासादि चतिसामान्यमिनिवर्ततेनायमर्थः उ तासामान्यभवतिक्तिव्यं तदेवविशिष्यत तदेव विशिष्यते परविक्तव्यापीति पूर्वापरकालवर्तित्रिकालानुयायीत्सर्थः चित्रज्ञानस्य कस्ययुगपदाव्यनेवगतनी Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्यव्येभ्यइनिकिंच समवायस्यानाश्रितत्संबंधरुपतयेवनघटतेनथाचप्रयोगः समवायोनसबंधःजनाश्रित नित्वादिगादिवदिति अत्रसमवायस्यधर्मिणः कथंचिनादाम्यरुपस्यानेकस्याचपेरेः प्रतिपन्नत्वादुर्भिपाकप माणवाधाजाश्रयासिद्धश्चनवाध्येतिनस्यात्रितत्वेप्यनदभिधीयते नसमायिएकःसंबंधात्मक सत्साश्रित त्वात्संयोगवन् सतायानेकोतइतिसंबंधविशेषणं जयसयोगेविरोननिविडसिथलादिप्रत्ययत्वानानानाना त्वनान्यत्र विसर्पयादितिचे नसमवायेयुत्पतिमत्त्नश्वरत्व प्रत्ययनानात्वस्य सुलभत्वान संबंधिन्नेदाढ़ेदो न्यत्रापिसमानइतिनैकौवपर्यनुयोगोयुक्ततस्यात्मसनगयस्ययोगपरिपरकल्पितस्यविचारासहत्वानहशा एगण्यादिवभेदप्रतीति: जयभिन्न प्रतिभासादवयवावयव्याक्षिनाभेदएवेतिचेन्नभेदप्रतिभासस्याभेदा विरोधात् पटपटादीनामपिकथंचिदभेदोपपतेः सर्वथापतिभासतेदस्या सिद्धेश्व इदामित्यायभेदप्रतिभास स्यापिभावाततः कथंचिढ़ेदाभेदात्मकंव्यपर्यायात्मकंसामान्यविशेषात्मकंच तत्वनीगदर्शिसकुनिन्यायेन्यायात मित्यलामितिप्रसंगेन इदानीमनेकांतात्मकंवरनुसमर्थनार्थमवहेनुहृयमाह अनुसनव्यारत्ययगोचरत्वान् पूर्व Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निनसामान्यविशेष दृष्टीतेनच परिततो जयतत्रताप्रतिभासनेपरस्यापिवस्तुनितयैवप्रतिभासोलु नस्यपक्ष पाताभावात् निनिसंशयोपिनयुतः तस्यचलितप्रदतिपतिरुपत्वादचलितप्रतिभास दुर्घटत्वात् प्रतिपन्नव लन्यप्रतिपनि रित्यतिसाहसं उपलव्यभिधानादनुपलभोपिनसिहततोनाभाव इतिदृष्टेष्टाविरुहममेकोतरी सनसिट्टमेनेनावयवायविनोगुणगुणिनोः कमलहतोश्कयं चिंदूदाभेदीप्रतिपादितोबोधव्यो अबसमवाया वशान्नेिश्वष्यभेदप्रतीतिरनुत्पन्नवस्तुलाख्यज्ञानस्येतिचेन तस्यापिनतोभिन्नस्यव्यवस्थापयितुमशः तथाहिसमवायवृत्तिः स्वसमवायियुतिमतीस्यादवृतिवादतिर्मत्वेनैववृत्यंतरेणचानवतावदाय-पक्षः समवाया समवायानभ्युपगमात् पंचानांसमवायित्वमितिवचनात् वृत्यनरकल्पनायांनदपिखवंधियुवननेनवेतिकल्पना याहत्यंतर परंपराभनिरनवस्थानसेतरस्यखसंबंधियुनत्यंतरानभ्युपगमानानवस्थेतिरेनहिं समवायेषिहत्येनरे माभून जयसमनासपुसल्वेवसमवायप्रतीतेलस्याश्रितत्वमुपदल्यते तहिमूर्तद्रव्ययुसत्वेवदिग्लिंगस्वेद मतः पूर्वणेत्यादिनस्यकाललिंगस्यचपरादिक्षत्ययस्य सद्भावनयोरपिनदाश्रितत्वेस्यात् नयाचायुतमैदन्यत्रव्य Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलेच वस्तुनोसाधारणाकारेण निश्रेतुमशकेः संशयस्तत्रश्चाप्रतिपतिस्ततो भावः इत्यने को तात्मक मपि न सौख्य मा मजतीतिकेचित् 'नेपीनप्रातीति वादिनः विरोधस्यप्रतीयमा नये। रसंभवादनुपलंभसाध्यो हि विरोधस्तत्रोपलभ्य मानयेोः को विरोधः यच्च शीतोष्ण स्पर्शया रिंवेति दृष्टांत तथोकं तच्चभ्रूपदहनामेकावयविनः शीतोष्ण स्पर्श स्वभा वस्योपलब्धेरयुक्तमेव एकस्यच लालच रक्ता इत्ता दिविरुद्धधर्माणां युगपदुपलब्धेश्व प्रकृतयोरपि नविरोधइति तिनवैय्यधिकरण्यमप्यपास्ता तयोरेकाधिकरणलेन प्रतीतेरत्रापिप्रागुक्त निदर्शनान्येव वोधव्यानि यच्चानवस्थ नं दूषणं तदपि स्याद्वादिमता नभिज्ञेर वा पादितं तन्मतं हि सामान्य विशेषात्मके वस्तुनि सामान्य विशेयांवेव भेदः दध्वनिना तयोरेवा भिधानाद्रव्य रुपेणाभेद् इति द्रव्यमेवाभेदः एकाने का त्मक द्वा स्तुनः यदिवाभेद नयप्राधान्येन वस्तुधर्माणि मानेत्यान्ना नवस्था तथाहि यत्सामान्यं यच्च विशेषक्तयोरनुवृत्तव्या नृताकारेण भेदस्तयोश्वार्थक याभेद। तद्दश्वशक्तिभेदात्सोपि सहकारिभेदादित्यनंतधर्माणा मंगीकरणात् कुतो नवस्था तथा चोकं मूल क्षतिक माहुरनवस्था हिंषां वस्त्वा नेतेप्यशकोच नानवख्या विचार्यते इति पोच संकर व्यतिकरो ता वपिमेचक ज्ञान निदर्श Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युक्तं प्रसंगसाधनान् प्राग्भावादौ हि सत्वाद्वेदो सत्वेन व्याप्त उपलभ्येत ततश्च व्याप्यस्य द्रव्यादावभ्युपगमो व्यापका भ्युपगमनां तरीय कइति प्रसंगसाधने अस्यदोषस्या भावा देतेन द्रव्यादीनामप्यद्रव्या दिवंद्रव्यत्वादेर्भेदे चिंतितं वोव्यं कथं नाव मुंग पदार्थानां परस्परभेदेप्रति नियत स्वरुप व्यवस्था। द्रव्यस्य हि द्रव्य मिति व्यपदेशस्यद्रव्यत्वाभि संबंधाद्विभाने ततः पूर्व द्रव्य स्वरूपं किंचिद्वाच्यं येन सह द्रव्यत्वाभिसंबंधः स्यातू द्रव्यमेवस्वरुप मिति चेन्न नस्यापि सतासंबंधादेवं तद्वयपदेशका रणां देवं गुणा दिश्वपि वाच्यं केवलं सामान्य विशेषसमवायानामेवस्वरुप सत्वेन तया तु व्यपदेशोपपतेः तंत्रयव्यवस्थेवस्यात् ननुजीवादिपदार्थानां सामान्य विशेषात्मकं स्याहादिभिरभिधीयते न योश्ववस्तुनोभेदाबिति तौ चविरोधादि दोषो यनिपातन्निक्कत्रयं भविता विताविति तथा हिभेदाभेदयो विधित्र प्रतिशेधयो रेक्त्राभिन्ने वस्तुन्यसंभवः शीतोष्णसंस्पर्शयोरिवेतिभेदस्यान्य दधिकरण मभेदस्य चान्यदिति वैयधि करण्यं यमात्मानं तु पुरोधाय भेदो पंच समाश्रित्याभेदस्ता वात्मानो भिन्नोचाभिन्नौच श्रापितथा परिकल्पना द नवस्था येन रूपेण भेदस्तेन भेदश्वाभेदखेतिसंकरः येनभेदस्ते नाभेदो येनाभेदस्तेन भेदइतिव्यतिकरः भेदाभेदात्म Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तू सहकारिभाव इति नस्वभाव भेदश्यते तर्हि नित्यस्यैक रूप स्यापि वस्तुनः क्रमेण नाना कार्यकारिणः स्वभाव भेद: का यस कार्यमा भूतः अक्रमा क्रमिणामनुत्पतेर्देव मितिचेदेकानं श कारणा झगपदे ने क कारण साध्या नेक कार्याविरोधा कमिणो पिनभिकस्य कार्यकारित्वमिति किंचभवत्पक्ष सतोसतो वा कार्य का रित्वं सतः कार्यकर्तृत्वे सकल कालक लाव्या पिक्षणानामेक क्षणा वृतिप्रसंग ः द्वितीयपक्षेवर विशाणादेरपिकार्य कारित्वमसत्वाविशेषात्स्वल्पलक्षणास्य व्यभिचारश्व तस्मान्न विशेषैकां तपसः श्रेयान् नापि सामान्य विशेषोपरस्परानपेक्षा विति योग मपितमप्रियति युक्तमव भानि तयोरन्योन्यभेदे इयो रन्यतरस्यापिव्यवस्थापयितुमशक्तेः तथाहि विशेषास्ता वद्रव्य गुरा। कर्मात्म नः सामानभतु परा पर भेदा द्विविधंतत्र पर सामान्यात्सत्ता लक्षणा भेदे सत्वा पतिरितितया च द्रव्य योगः द्रव्य गुण कर्मा एय सद्रपाणिसत्वादत्यतं भिन्नत्वा सारभावादिति नसामान्य विशेष समवायैर्व्यभिचारः तत्रस्वरुप सत्वस्याभिन्नस्य पैरे र भ्युपगमात् ननु द्रव्यादीनां प्रामाणोपपन्नत्वेधर्मियासक प्रमाणवाधितो हेतु ये नहि प्रमा गोन द्रव्यादयो निश्चियंते तेन तत्सत्वमपीति जथमप्रमाण प्रतिपन्नाद्रव्यादयस्तर्हि है तो राज्य या सिद्दुरितत्तद * Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मान्य प्रत्यभिज्ञानस्यवहुलमुपलभानलाण्यस्यचप्रागेवीतत्वादुत्तर कार्यपियानुपपतश्चसिद्धत्वात् पञ्चान्यासाधनसा त्वाख्येतदपि विपक्षवत्स्वपक्षेपिसमानत्वासाध्यसिहिनिधनन तथाहि सत्यमर्थक्रिययात्पमालयाचक्रमेयो गपयाभ्यांचेतिक्षाणकान्निवर्तमानेखव्यायामर्थक्रियामादापायनिवर्ततेसाच निवर्तमानाखध्यायसत्वमिति नित्यस्यवक्षणिकस्यापिरखरविशाणवदसत्वमितिनत्रसत्वव्यवस्थानचक्षाणिकस्यवस्तुनःअमयोगपयाभ्याम थक्रियाविरोधोसिद्धलस्यदेशतस्याललतस्यवासनस्यासंभवात् जयस्थितस्यैकस्यहिन देशकालकाला ध्यापित्वंदेशनमः कालक्रमश्चाभिधीयतेनचक्षाण सोस्ति योयत्रैवसतंत्रेश्योसंदेवं दैवेसः नदेशकालयो: ध्याप्तिभावानामिहविद्यते इतिखयमभिधानान नचपूतिरक्षणानामेन लेनकमायोगादसाणिकन्वेनैवसत्वादिसा धनमैनेकांतिकंजवास्तवरलेन नटपेक्षक्रमायुक्तशतिनापियोगपयनतत्रार्थक्रियासंभवति युगपग्रेननत्रार्थक्रिया संभवतीयुगपदेनस्वभावननानाकार्य करणेनकायकत्वस्यान्नानास्वभावकल्पनायोते स्वभावाले नव्यापनीयान त्रिकेनखभावेन नव्याप्तीनेषामेकखरुपतानानास्वभावेनवेदनवस्था जयेकस्यात्रैकस्योपादानस्वभावएवान्यत्र || संतानापियाकम संभनति।संतानस्यवास्तबावन स्यानिक्षीकत्वेन । Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देव रुपेण वृति वसीयते तत्र यथेोक्त दोषाणामनवकाशा द्विरोधादिदोषश्वा ग्रेप्रतिशेत्स्य इतिं नेह प्रतन्यते यचेकद हा स्थायित्वे साधनं यो यद्भावं प्रती त्याद्यकं तदस्य साधनं जसिद्धादिदिय दुष्टत्वात् तत्रान्यानये सत्वं तावद सिहुंघटाय भावस्थ मुग्द राचादिव्या परान्वयव्यतिरेकानुविधायित्वा तत्कारत्वा पपतेः कमलादिपर्यायांतरभा वो हिघटादेरभाव स्तुत्वा भावस्य सकलप्रमारा। गोचरातिकां तत्वात् किंचाभावेोयदितंत्रो भवेतदान्यानपेक्षत्वं विशेष युक्तं तच सोयत मते लोगत सो स्ति इतिहेतु प्रयोगा चरा त्तिक्रांत त्वात् ॥ नच सोगत मते सोस्ति इति हेतु प्रयोगा नवतारएवाने कार्तिकचे दंशालिवीजस्य कोद्रवां कुरजननं प्रत्यन्यानपेक्षत्वे तज्जनन स्वभावा नियतत्वात त्स्वभावत्वे सतीति विशेषणान्न दोष इति चेन्न सर्वया पदार्थानां विनाशस्वभावा सिद्धेः पर्यायरुपे गौव हिभावानामुत्पादविनाशावगं क्रिमते नद्रव्य रुपेण समुदेति विलय मृच्छतिभावो नियमेन नचयेनयस्य नोदेतिनो विनश्यति भावनया लिंगि तोनित्ये नि वचनात् नहि निरन्वय विनाशे पूर्व क्षणस्य ततो मृताच्छिखिनः केका इतस्ये बोतर क्षण स्यात्पत्ति घटते द्रव्य रुपेण कथं चिद स्तुरुपस्यासंभवात् नसर्वथा भावानां विनाश स्वभाव त्वयुक्तं नच द्रव्य रुपस्य गृहीतुमशक्यत्वादभावः नङ्गहणो पाप यस्य Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिवाल बिल सितंनिर्विकल्प बोधस्यानुपलक्षणात् गृहीनेति निर्विकल्पक्के नर योर्भेदै अन्या कारा नुराग स्यान्यत्र क ल्पनायुक्ता स्फटिक जया कुसुममाखिनान्यथेति एतेन तयो युग पहूने: लघुवृते वतिदेकत्वाध्यवस्या ये इतिभिर नस्यापि को पान प्रत्ययत्वा दिति क्रेन चातयोरेकत्वाध्यवसायोनता वद्धि कल्पेन तस्या विकल्प वातनिभिज्ञत्वात् ना प्यनुभवेन नस्पविकल्पा गोचरत्वात् नच तदुभया विशेया विश्यं नंदे कन्वाध्यवसाये समर्थ मतिप्रसंगात् नतोन त्यक्ष बुद्धौ नथाविधविशेषावभासः नाप्यनुमान बुडो तद् विनाभूत स्वभाव कार्य लिंगा भावादनुपलं भो /सौहुँ एवव तुरता कार स्य स्थूला कार स्य चोपलब्धेरुक्तत्वात् यदापिपर माणूनामेकदेशेन सर्वात्मना वा संवेधो नोपपद्यते इतित पत्रानुगम्य एवपरिहारः स्निग्धरुक्षाणां सजातीयानां च ध्यधिक गुणानां कथंचित् स्वं का कारि परिणामात्मकस्य सं निः बंधस्याभ्युपगमात् यच्चावयवे निवृति विकल्पादि बाधकमुक्तं तत्राय विनोवृत्तिरेवद्य द्विनोपपद्यते नदानव इत्य भिघातव्यं नैक देशादिविकल्पस्तस्य विशेषांतर नांतरीयकत्वात् तथाहि नैकदेशे भवर्तते नापिसवा न्मनेयुक्ते प्रकारां नरेगा वृतिरित्यभिहितं स्यादन्यथा नवर्तन इसेन वकव्यं इतिविशेषप्रतिशेधस्यशेषाभ्यनुज्ञान रूपत्वा कथंचितास्य धा 巧瓜 वे दा Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क दोष इति चेत पिनसाधुसंगतं नित्यस्य समर्थस्य परा पेक्षा योगातू नैः सामर्थ्य करगेनित्यता हानिः तस्मान्नि भिव सामर्थ्य तैर्विधीयत इतिन नित्यता हानिरितिचे तर्हि नित्यमकिंचित्कर मेव स्यात् 'सहकारि जनित सामर्थ्यस्ये व काय्र्यकारित्वात्संवधा तस्या पिकारित्वे नन्सं वधस्येक स्वभावित्वे सामर्थ्य नानात्वाभावान्न कार्यभेदः अनेक स्व भांवित्वे क्रम वल्लेच कार्य वेतस्या पिसां कार्यमिति सर्व मा वर्तते इति वक्रक प्रसँगः तस्मान्नक्रमेण कार्य कारित्वं नि त्यस्य नापि युग पद शेष कार्याणां युगपदुत्पतेो द्वितीयक्षणे कार्या कारणा दनर्थक्रिया कारित्वे ना वस्तुत्व प्रसंगा दिन नित्यस्य क्रम बौगपद्याभावः सिद्ध एवेतिसौगतः प्रतिपेदिरे नेपिनयुक्तवादिनः सजातीये तर व्यावृतात्मनां विशे या मनंशानां ग्राहकस्य प्रमारा स्वाभावात् प्रत्यक्षस्य स्थिर स्थूल साधरण कार वस्तुप्रा हेत्वेन निरंशा वस्तु ग्रहणायें गात् नहिपरमाणवः परस्परसंबद्धाश्चक्षुरादि प्रतिभांति तथा सत्य विबाद संगामानुभूय एवा प्रथमं तथा क्षरणाः पञ्चातु विकल्पवासना वलादा तरी लानुपलं भक्षणा द्वा संञ्चा विद्यमानो पिस्थूला या कोरो विकल्प बुँडो चका स्तिसच तदाकारेणानुर्ज्यमानःस्वव्यापारं तिरस्त्त्य प्रत्यक्ष व्यापार पुरस्त रत्वेन प्रतवान् प्रत्यक्षाय इति तदप्य क. ट Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सॉ करणे घटस्यस्थितिरेव स्यादथविनाश संबंधान्न ष्टइतिव्यपदेश इति चेद्रावाभावयोः कः संबंधो नता वदबिंदास्यं न योर्भेदान्नापितत्य तिर भावस्य कार्याधारत्वाघटा दभिन्नस्य करणे धटादिदेवकृतः स्यात्तस्य चप्रागेवनिःपन्नत्वा व्यर्थ करण मित्यन्वानपेक्षा त्वं सिद्धुमितिविनाशस्वभाव नियत त्वं साधयत्वेव सिद्धेवा नित्यानां तत्स्वभाव नियतले तदितरेषामात्मादीनां विमत्यधिकरण भावापन्नानां सत्यादिना साधनेन दृष्टां तावदु वत्सेव क्षरण स्थितिस्वभावत्वं तथाहि बन्सनन् सर्वमक क्षरा स्थितिस्वभावं यथा धटः संतश्वामीभाव इति जमवा सत्यमेव विपक्षे वाधक प्रमा राम मिति नहिनित्यस्य क्रमेण युगपद्दा सा संभवति नित्य स्यैकैनैव स्वभावेन पूर्वपिर्काल भाविकार्यद्वयं कुर्वतः कार्या भिदकत्वात्तस्यैवस्वभावत्वात् तयहि कार्यनानात्वे अन्यन्त्र कार्यभेदा कारणभेदकल्पना विफलेव स्या ना हशमेकमे व किंचित्कारणंकल्पनीयं येनैके स्वभावेनैव चराचरमुत्पद्यत इति अथस्वभावना नात्वमेव तस्य कार्यभेदादिस्य ते नइति तर्हि स्वभावस्तस्य सर्वदासंभविन स्तदा कॉर्य नो चे तदुत्यति कारणं वाच्यं तस्मादेव मित्येक स्वभावानां दुत्पतौ तत्स्वभावानां सदा संभवा त्सेवकार्याणां युगपत्प्राप्तिः सहकरिक्रमापेक्षया तत्स्वभावानां क्रमे शाभावान्नोर्यसांक Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तदुकं एकत्र दृष्टो भावो हिक्कचिन्नान्यत्र दृश्यते तस्मान्नभिन्न मस्त्ये त सामान्य बुरुयभेदत इति तेच विशेषाः परस्परा :43 संबद्धा एव तत्संबंधस्य विचार्यमाणस्यायोगात् एकदेशेन संबंधे जगुशंकेन युगद्योगादोश तापतेः सर्वात्मना भिसंबंधेपिंडस्यास्तु मात्रका पतेः अवयव निशेधाज्ञा संबंधत्वमेषामुपपद्यतएव तन्निरोधश्वरनिविकल्पादिवाधना तू तथा हि अवयवा अवयव विनिवर्तत इतिनाभ्युपगत मवय वी चा वयं वेयु वर्तमानः किमेकदेशेन वर्तते सर्वात्मना वा ए कदेशेन वृत्या वय वां तर प्रसंग स्तचाप्येक देशांतरेणावयविनोद तावन वस्था सर्वात्मना वर्तमानो पि प्रत्यवयवं स्वभावदे नवर्तिता हो व देऊ रुपिशोति प्रथमपक्षे अवयव विवहुत्वा पतिः द्वितीयपदो ववयवानामेकरूपता पतिरिति प्रत्येकंप परिसमास्या पत्ता वय्यवय विवहुमिति तथा यदृश्यं सन्नोपलभ्यते तन्नास्त्येव यथा गगनेन्दीवरं नोपलभ्यते चावयवे स्ववयवीति तथा पद आहे पद वुद्धिभावस्ततो भावार्थतिरं यथा वृक्षाग्रहे वनमिति नतम्व निरंशा एवान्योन्या संस्पर्श नो रुपादिपरिमाणवः 'तेचे कायस्थापिनोन नित्या विनाशंत्र सन्यानपेक्षणात् प्रयोगश्च यो यद्वा वंप्रतन्यानंये क्षत भाव नियतेा यथा त्या कारण सामग्रीस्व कार्येना शोहिमुग्द्रा दिना क्रियमारा। स्वतो भिन्ना वा क्रियते भिन्नस्य ल Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मान प्रधान संसर्गादात्मनो पितथा प्रतिभास इति तदप्यनुषन्नमप्रतिभासमानस्यापि संसर्गकल्पना यां तत्वे यता या निश्चेतुम शक्तेः तदुकं संसर्गादिविभागश्वेदयो गोलकवि भेदाभेदव्यवस्थेव मुच्छिन्ना सर्व वस्तु चिति यदपिपरिमाणाख्यं साधने तदप्येक प्रकृति केयु घटघटीश स्वोदेचना दिनेक प्रकृति केषु पर मुकुट शकटा दिथु चोपलेभा देने का निक मिति नततः प्रति सिद्धिः तदेवंप्रधानगृहणोपायासंभवातू संभवेवाननः कार्ये दया योगाच्च यदुक्तं परेखा प्रकृतेर्महान्। नतो हे कारः तस्मा दु श्वशोडषक तस्मादपिशोडश कां सैचभ्यः पंचभूनानीति सृष्टिक्रमो मूल प्रकृति रविकृतिर्महदाद्याः प्रकृति विकृतयः सप्तशोड शत्रुश्च विकारोनप्रकृतिः पुरुष इतिस्वरुपाख्यानंच बंध्यासु तसौ रुप्य वनमिवा सद्विशयत्वादुपेक्षा मर्हति अमूर्तस्थाकाश स्य मूर्तस्य पृथिव्यादेश्चैव कारण नृत्वायोगाश्च अन्यथा अचेतनादपि पंचभूत कदेवकांच्चैतन्य सिद्दिश्वाब कमल सिद्धि प्रसंगा सांख्य मलगन्धएव नभवेत् सत्कार्यवाद प्रतिशेधश्वान्यत्र विस्तरेणोक इतिनेही येते संदीप रूख रूपत्वा द्स्येति तथा विशे या एक्तत्वं तेषामसमौने रविशेषोत्मनाविश्लेषात्मकत्वात्सामान्यस्यैकस्यानेकस्याव्या त्या वर्तमानस्य संभवाभावाच नस्येक व्यक्तिनिष्टस्य सामरस्य नोपलब्धेस्त व्यक्ति वदन्यथा व्यक्त योपिभिन्नामाभूवन्निति ततो बुझ्य भेद एवसामान्य Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्रसारव्ये प्रधानसामान्यमुकंत्रिगुणामविवेकविशयः सामान्यमचेतनप्रसवधर्मिव्यतनथाप्रधानाद्विपरीतस्त थाचपुमानिनिवचनात नच्चकेवलंप्रधानमहदादिकानिःपादनायवर्तमान विमप्यपेक्ष्यमवर्ततेनिरपेक्षवाप्रथमा पक्षनन्निमितवाच्यं यदेपेक्षेप्रवर्ततेननुपुरुषार्थ एवनाकारगपुरुषार्थ हेतुनाप्रधानं प्रवर्तते पुरुषार्थश्चधाश दायालब्धियुगापुरुषांतरविवेकदर्शनं चेत्यभिधानादितिचेन सत्यतयाप्रवर्तमानमापिसुभान रुपनविदि दुपकारंसमासादयत्प्रवर्ततानासादयहाप्रथमपक्षेसउपाकारस्तस्मादिन्नाभिन्नोवादिभिन्नःतदानस्पेनिव्या पदेशाभावः संबंधाभावातदभावश्चसमवायादेलस्युपगमात् तादात्म्यचभेदविरोधीतिजथाभिन्नउपकार इति पक्षजात्रीयतेनदाप्रधानमेवतेनहानेस्यातू जयोपकारनिरपेक्ष्यमेवप्रधानप्रवर्तते नारीमुक्कामा प्रत्सपिप्रवर्तन विशेषादतेननिरपेदाप्रवृतिपदोषिप्रयुकलतएव चिसिषधानेसर्वमेतदुपपन्नस्यान्नचन सिद्धि-कुन चिन्नि श्वीयते इनिननुकार्याणामेकाचयदर्शनादेवकारणमवत्वेभेदानांपरिणामदर्शनाच्चेनितदप्यचारुचर्चिवंसुखदुःख मोहरुपनयाघटादेरचयाभावादंतावस्यैक्तयोपलंभातूजयातस्तत्वस्यनसुखादिपरिणामः किंतुनथापरिणम Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चभावकार्ययोरसंभवान किंचगोशब्दस्यागोपोहराभिधायित्वेगोरित्यत्रगोशब्दस्यकिमभिधेयस्यादज्ञानस्यविधि निशेधयोरनधिकारान् जगोनिनिरितिदितरेनराश्रयत्वमगोव्यवच्छेदोहि जगोनिश्चयभवनिसचागोगोनि वित्यात्मागाश्चागोव्यवष्ठेदरुपइति अंगोरियौनर पदायिनयेवदिशाचिंतनीयः नन्वगौरिसमान्यस्यविधि पोगोशब्दाभिधेयस्तदापोह शब्दार्थ निविघटेन तस्मादयोहस्योनयुक्त्याविचार्यमारणस्यायोगानान्यापोह शब्दायी इनिस्थिनं सहजयोग्यतावशाच्छन्दादयारसप्रनिपनिहनवइति स्मृनिरनुपहनयंप्रत्यभिज्ञानवज्ञाप्रमितिनिरत विनालैगीसंगनार्यभवचनबद्यनिश्चि देववाचारचितमुचिनवाग्मिनथ्यभेनेनगीनं ॥ इतिपरीदासुखस्यलधुनी परोक्षप्रपंचनृतीयःसमुद्देशः॥३॥जयखरुपसंख्याविषतिपनि निराहत्यविशयविमतिपनि निरासार्थमाह सामा त्यविशेषामिातदयविशयः तस्यप्रमाणस्ययायाविशयनियावन् सवविशिष्यतेसामान्यविशेषात्मासा मान्यविशेषोधक्ष्यमाणलक्षणेतावात्मानीयस्येतिविग्रहः तदुभयग्रहणंत्रात्मग्रहणंचवलस्यसामान्यस्यवि। शेिषस्यतटुभयस्यवास्वतंत्रस्यप्रमाणविशयत्वप्रतिशेधार्थतत्रसन्मादेहस्यपरत्रमशानिरस्तत्वातदितरहिचायोग Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिकनानास्वादिपिकल्लानांप्रतीतेः भेदेवाजभावस्यवस्तुनापतितलक्षणत्याहस्तुत्वस्यनचापोशलक्षणसंवधिभेदा दिदः प्रमेयाभिधेयादिशब्दानम प्रवृत्तिप्रसंगात् व्ययछेयस्यानपणाप्यप्रमेयादिरूपत्वेनताव्यवच्छेदायोगाना अर्थतन्त्र संबंधिमदादूदः किच शावलेयादिविकोपोहो प्रसज्येतकितप्रतिव्यविभिन्न एवस्यादयसांवलेयादय न जन्नमिदंति नर्यश्वादयोपिभेदकामानुभूवन यस्यातरंगाः शावलेपादयोनभेदकालस्याश्चादयोभेदकाइत्यति साहसेक्खनोषिसंबंधिभेदादेदोनोपलभ्यतेविमुतावस्तुनि तयायेकएवतादिः कटन तंडलादिभिरभिसंवध्य | मानोननॉत्वमारितधुवानः समुपलभ्यते इनिभवनुवासंवधिनेदादूदनथापिनवलुभूतसामान्यमनरेणान्यापोता श्रयःसंबंधीमवतिभवितुमर्हति तथाहि यादिशावलयादिषुवरनुभूनसासप्याभावोश्वादिपरिहारण तत्रैवविशिष्या भिधान प्रत्ययोजयस्यातां ततः संबंधिरेदादूदमिच्छसापिसामान्यंवारनवमंगीकनन्यमिनिकिंचापोहशब्दार्यप क्षेसंदेनएवानुपपन्नलद्दरणी पायासंभवातून प्रत्यक्षद्हणसमर्थनस्यवस्तुविशयत्वादन्यापोहस्यचारसुवा दनुमानमपिनतदायमववोधयनि नस्यकायेखभावलिंगसंपायत्वापोहस्यनिरुपाख्यत्वेनायक्रियाकारित्वेनच Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातू नहिगवादिशब्दश्रवणादेव गवा दिव्यावृतिः प्रतीयते ननस्सारखा दिमत्य ये वृत्ति दर्शनादवगवा दिवुट्ठिजन कं तत्र शब्दोतरं मृग्यं मये करमादेव गोशब्दादर्य द्वयस्यापिसंभावना न्नार्यः शब्दांतरे सो तिचेन्नैव मे कस्य पर विरुद्धा यद्वय प्रतिपादन विरोधातू किंच गोशब्दस्या गोव्यावृति विशयत्वे प्रथमगोरिति प्रतीयते नचैवमतेो नान्यापो हः शब्दार्थः किं चापो हाख्यं सामान्ये वाच्यत्वेन प्रतीयमानं पर्यु दास रूपं प्रसज्य रुपवा प्रथम पक्षे गोत्वमेव ना मांतरे णोकं स्यादभावभावस्य भावांतर स्य भावेन व्यवस्थितत्वात् कश्वायमश्वादिनिवृति लक्षणों भावोभिधीयतेन तावत्स्वलक्षणा रुपस्तस्य सकल विकल्पवाणो च राति कांता त्वान्ना पिशाबलेयादिव्यक्तिरुपस्तस्यासामान्यत्यम संगातू तस्मात्स कलगो व्यक्ति धनुवृत प्रत्ययजनकं तंत्रे व प्रत्येकं परिसमा त्या वर्तमानं सामान्य मेव गोशब्दवाच्यंन स्यापोह इति नामकरणे नाममात्रै भिप्रेतं नार्य इति अतोनामः पक्षः श्रेयान् नापिद्वितीयो गोशब्दादेः क्वचिद्वा येथे प्रवृतियोगा। तुच्छा भावमभ्युपगमे पर मत प्रवेशानुशंगाच्च किंचगवा दयोयेसामान्यशब्दाये चला बले पादयस्तेषां भवदभिप्रायेण पययितास्यादर्यभेदाभावा हु क्षपाद (पादिशब्दवत् नखनुवा भावस्य भेदोयुको वस्तु न्येव संस्टष्ट Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न त्य इति तदप्ययुक्तं पराभित्राया परिज्ञानातू नास्माभिर्वतुरभावे वेदस्य प्रामाएया भावः समुद्राव्यते किंतु तब्याख्यान ज्यौ णां मतींद्रियार्थ, दर्शनादिगुणाभावे ततो दोषाणामा यो दिन त्वान्नप्रामाएय निश्चयइति नतोकषायत्वेपिवेदस्य आमाएयनिश्वयायोगात् नानेनलक्षणाख्या व्यापित्वमसं भवित्वेवैझेलमति जल्पितेन ननुशब्दार्थयोः संबंधाभावा दन्यापोहमाचाभिधार्यत्वादा समरणिता दपिशब्दात् कथं वस्तुभूतायविगम इत्य माह सहजयोग्यता संकेत ( वशा हि शब्दादयो वस्तु प्रतिपति हेतव इति सहजा स्वभाव भूता योग्यता शब्दार्थयोषच्यि वा चक शक्ति स्तस्यां संकेत स्त दशाहि स्फुटंशब्दादयः प्रागुका वस्तु प्रतिपत्तिहेतव इति उदा हर माह यथामेघादयः संतीति ननुयएवशब्दा स्सं यथेद टास्तएवाथीभावेपिदृश्यते तत्कथमर्थमिधायिकत्वमिति तदप्ययुक मनर्थ के म्योशब्देस्यार्थवता मन्यत्वान्न चान्न स्वव्यभिचारेभ्यस्यासोयुक्तोति प्रसंगा दन्य भागोपाल घटिकांतर्गतस्य धूम स्यपाथकस्य च व्यभिचारे पर्वतादिधूम स्यापि तत्प्रसंगात् यन्नतः परीक्षित कार्य अरणं नातिवर्तते इत्यन्यत्रापि समानं सुपरीक्षितो हिश दोर्य नव्य मिचरति तथा चान्यापोहस्य शब्दार्थत्वकल्पनं प्रयासमात्रमेव नचान्या पोहः शब्दा यो व्यवतिष्ठतेप्रतीतिविरो Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कप्रतिपादितत्वादभावप्रमाणाबनायोगात् प्रमाणापंचकाभावे भावप्रमाणाप्रकृतेः प्रमाणपंचकंयन्त्रवस्तुरुपेन जायतेवर स्वस्वभाववोधार्थतत्राभावप्रमाणतेति पेरेरभिधानात् ततोनवादिनः कर्तुरस्मरणमुपपन्नं नापिप्रतिवादिनः स्मरणा त ननुप्रतिवादिनावेदेशकादयोवहवः कतरिस्मयते अतस्तस्मरणस्यविवादविशयस्वाभामाएयादवेदेवसर्व स्यकतुरस्मरणमितिचेन्न कविशेष विशयरबासौविवादैनकर्तसामान्यतः सर्वस्यक रस्मरमप्यसिद्धं सवोत्मना नविज्ञानरहितोवाकथं सर्वस्यक रस्मरणमवैति तस्मादेपोरुषेयत्वस्योदेव्यवस्थापयितुमशक्यत्वान्न तलक्षण व्यापकत्वमसंभवत्ववासंभवनि पौरुषेयत्वे पुनःप्रमाणानिवहूनिसंत्येव सजन्ममरणशिंगोत्रचरणादिनामधुनी रनेकपदसंहति प्रतिनियाँमसंदर्शनात् औलियेयवेपिवानप्रामाण्यवेदस्योगपयिते न तनांगुणानामभावान् ननुनगुणाकृतमेवप्रामाण्य किंतुदोषाभाव प्रकारेणापिसचदोषाश्रय पुरुषाभावेपिनिश्चीयतेन गुणासदावएपेनि तथाचशेनं शब्देदोषोपरतावहकधीनमितिइनिस्पितं तदभाव चिनाबदणवेहानत्वतः सोरपाठीनी क देदोकानाहनधानमितिइतिस्थितंतनावः संकायसंभवात् यहावहरभावननस्युदोषानिए प्रयामा Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गसाधनाददोषइतिचेन्नपरप्रतिसाध्यसाधनयोव्यापकमावाभावादिदानीमपिदेशांतरेवेदकारस्याटमादे सोगतादि निरभ्युपगमात् यदप्यपरंपेदाध्ययनमित्यादितदपिविपक्षेपिसमा भारताध्ययनसंवैगुवध्ययनपूर्वकं तदध्ययनया न्यवादतकानाध्ययनंययेति यथान्यदुतमनवाछिन्नसंप्रदायत्वसत्समयमानकर्तृत्वादितितमजीदिपारामादि भिव्यभिचारनित्यमनच्छिन्नसंपदायत्वविशेषणेषिविशेष्यस्यास्मयेनाराककत्वस्यविचार्यमारणस्यायोगादसाधनलं कर्तरस्मरणहिवादिनःप्रतिवादिनःसर्वस्ययातादिनदनुपलव्धेरभावाहा जायेपक्षेपिटकनयेपिस्याद/ नुपलव्यविशेवातत्रपरैः कनरंगीकरणान्नोवेदन एखानापिनतदनुजमावादितिचेदरमा तदभाव सिहावितराश्री यत्वंसिद्धेहितदभावनन्निधनंतदस्मरणमस्माञ्चतदभावइति प्रमाएमान्ययानुपपतेस्तदभावान्नेतरतराश्रयत्वमिति चिन्नप्रामाण्यनाप्रामाण्यकारणस्यैवपुरुषविशेषस्यनिराकरणात् पुरुषमात्रस्पानिराहतेः जथातींद्रियार्यदेशिनी भावादन्यस्यचप्रामाण्यकारणत्वालपपतेः सिहुएवसवेथापुरुषाभावइतिचेन्नकुन सवैज्ञभावोविभावितः प्रामाएयान्य यानुपपरितिदिननराश्रयत्वं करमरणादितिचेञ्चकनसंगः जभावप्रमाणादितिवन्नतत्साधकस्यानुमानस्यमा Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यार्थएवंवेदोवसीयत्तरतिचेन् नकिंचिज्ञानामतींद्रियार्थयुनिःसंशयव्यारव्यानायोगादधेनासष्यमाणस्या। दिशपरिहरिणामिमतभन्न प्रापगएनुपपतेः किंचानादिव्याख्यान परपरागतत्वविहार्थस्यगृहीताविस्मनस नाकौशलदुष्टाभिप्रापतयाध्यानस्या पभेवकोरणादविसंवादायोगादामाण्यमेवस्यात् दृश्यतेयधुना योतिः शास्मादिषु रहस्ययथार्थमवयंतोपिदुरभिसंधेल्यथाव्याचक्षणाः केचिज्जा तोपिवंचनाकौशला . थोपदिशतः केचिञ्चविस्मृतिसंवेधाः पापातथ्यमभिदधाना इतिकथमन्ययाभावनाविधिनियोगवाक्यार्थ प्रतिपतिवेदस्यान्मनुयास्यवदादीनां श्रुत्यनिसारिस्मृतिनिरुपणायांवातस्मादनादिप्रवाहपतितत्वपि पयार्यत्वमेवस्यादितिस्थितम्।ययोकमतीतानागता वित्यादितदपिखमननिर्मूलन हेतुलेनविपरीतसाधनातदा समेवेति तयाहि अतीतानागतोकालोवेदायज्ञविवर्जितो कालशब्दाभिधेयत्वादधुनातनकालपदिति दिच काल शव्दाभिधेयत्वमतीतानागतयोः कालयोहगोसतिभवति तन्हांचनाध्यक्षनरलयोरतीट्रियत्वादनुमाननी पिनसाध्येनसंबंधलयोनिश्चनुपातिप्रत्यक्षगृहीतस्यैवासंवैधास्युपगमान्नचकालाख्यव्यमीमांसकस्यालि .. Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उप्रदीपदृष्टांताभ्यांकारमध्यंजक पक्षयोविशेषसिद्धेरित्यलमिनिजल्पितेन यञ्चान्य प्रवाहानत्यत्वेदस्यापोरुषेयत्वमिनिः किशब्दमात्रस्यानादिनित्यत्व मुनविशिष्टानामिनि आयपक्षयएव शब्दालौकिकालववैदिकाइयत्मइदमभिधीय यतेवेदएवापोषियइति किंतु सर्वेषामपिशागणापौरुषेयननि जयविशिष्टयपूर्विकाएकशब्दाजनादित्वेनाभिधीयते नियामवगमतायीनामवगतार्थानांवा अनादितास्यायदितावदुनरः पक्षलदाज्ञानलक्षणामषामाण्य मनुफ्यते अय आय: पदाजाश्रीयते नघ्याव्यातारः विचिताः भवेयुः सज्ञिावा प्रथमपदोडरधिगमः संबंधनामन्यथायर्यस्यकल्लयि | तुंशक्यत्वात् मिथ्यात्वलक्षणमप्रामाण्यस्यातदुतं जपमयनिायमर्यइतिशब्दावदनि नकल्लोयमर्थपुरुषेनेतर्रादि ग. विष्णुताः विच विविज्ञनाव्याख्याताशीवशेषादग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामइत्यस्यदेच्छसमित्यपिवाक्यार्थःकिनस्या न संशयलक्षणमप्रामाण्यमा असर्वविद्विदिनार्थववेदोन्नदिपरंपराधात इतिचेहंत धर्मचोदनेवप्रमाणनि निहतमेतत् जनीदियार्थप्रत्यक्षीकरणसमर्थस्यपुरुषस्यसविच नहचनस्यापिचोदनावदावोधकवेनमा माल्या हिंदस्य पुरुषाभावसिद्धेनप्रनिर्वधनस्यात् जयनय्याख्याटग किचिज्ञपि यथार्थज्ञानपरंपया कच्छिन्नसंतानवेन Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लभेननशक्यनेनिश्चत्तुं नचप्रत्यभिज्ञानवलेनैचोतरालेसतासंभवतस्यसादृश्यादपिसंभवाविरोधान् नचयदादावेप्रसं गस्तस्योत्पत्तावपरापरमपिंडोनरलसणस्या कारणस्यासंभाव्यमानत्वेनांतरालेसतायाः साधयितुं शक्यत्वादचतुकारणाना म पूर्वाणांव्यापार संभावनतोनांतराले सतासंभवइति यञ्चान्यदुतसेकेनान्यथानुपपतेः शब्दस्यनित्यत्वमिनीदमप्यनात्म जभाषितमेवनित्येपियोजयित शक्यत्वातथाहि गृहीनसकेनस्य दंहस्य पध्वंसे सत्यग्रहीतव्यासकेन इदानीमन्यस्वदंडास मुपलभ्यते इतिडीनिनस्यानयाधमस्यापिगृहीन व्याप्तिकत्यनाशेजन्यथमदर्शना हिविज्ञानभावस्य अगसादृश्यान थाप्रतीनिनदोषतिचेदनापिसादृश्यशादर्थप्रत्ययेकोदोशेयेन नित्यनेन्नदुर निवेशजाश्रीयते नथाकल्पनायामनरालेस वनप्यदृठनकाल्प स्यादितियज्ञान्यदभिहित यजमानांप्रनिनियनवालयुगपछिति तदयाशिक्षितलक्षितम् समानेंदि दिययायेयुसमानदेशेयुविशयविशयेयुनियमायोगात् नयाहिश्रोत्रमानदेशंसमानेन्दिययाससमान धमपिन्नानामों नायहणायप्रनिनियन संस्कार संस्कार्यनभवतीन्द्रियत्वान् राखत शब्दावा प्रतिनियनसंस्कारकसंसायोनभवति समानदे शिसमानेन्द्रियग्रास्यसमानधपिन्नत्वेसतियुगपदीदियसंहन्वान् घटादिवत् उत्पनिपक्षप्ययंदोषः समानइनिनवाच्यमन्तिी Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटः सर्वगनश्चक्षुरादिसंनिधानादनेकदेशेषतीयतइती ननुयोत्पादकस्य मृत्पिंगदेरनेकस्योपलंभादनेकत्वमैमत्व तथा मरर दरण परिमाणासंभवाञ्चेति तज्जवधिपिसमानं तत्रापिभनिनियतनाल्वादिकारणालापतीधादिधर्मभेदस्यचसंभवाविरोधी व ताल्वादीनांव्यंजकत्वमन्त्रेयनियेस्यतइत्यास्यातवदेनन् अथव्यापिलेपिसर्वनसात्मनास्तमत्वानदोषोयमिति न नथासति सर्वथैकलविरोधान्नहिं देशभेदेन युगपन्सर्वात्मनाप्रतीयमानस्येकत्वमुपपन्नंप्रमाणाविरोधात् नयाचप्रयोग प्रत्येकंगकारादिवर्णानेकएव युगपरिर्वदेशनयातयवसात्मनोपलभ्यमानत्वात् घटादिवत् नसामान्येनव्यामि चारः तस्यापिसदृशपरिणामात्मनस्यमिकवाना पिपर्वनायनेकप्रदेशस्थतया युगपदनदेशस्थिततया पुरुष परितस्य मानेनचन्दाकदिनाव्यभिचारः नस्यानिविष्टतयैकदेशस्थितस्यापिभोतवादने देशस्थत्वेन प्रतीनेः नरानातस्य भान्नेनव्यभिचार कल्पनायुकेति नापिजलपानप्रनिविवेननस्यापिचन्दादिसन्निनपेक्ष्यनयापरिणममानस्यनिक त्वातस्यादनेकप्रदेशेषुगृपासनीभनोपलभ्यमानविशयस्यैकस्यासंभाव्यमानत्वात् नत्रप्रवर्तमानं प्रत्यभिज्ञानप्रमाण मितिस्थितम् तथानित्यत्वमपिनप्रत्यभिज्ञानेननिश्चियत इतिनित्यत्वेदिएकस्यानकक्षणव्यापित्वं तच्चानरालेसमानुप॥ Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाटसन्निष्टेथे हिरिसभिधानात नाप्योपेतेस्तत्सिहिरनन्ययाभूतस्यार्थस्याभावदुपमानोपमेययोरप्रत्यक्षत्वाञ्च नायुपमानसाधककवलमभावप्रमाणमवैवावशिश्यते तञ्चतदभावसाधकमिति नच सुरुषसदारबदस्यापिटुःसाध्य त्वासंशयापतिस्तदभावसाधक प्रमाणानोसुलभत्वात् अधुनाहिनदभावे प्रत्यक्षनेवातीतानागतयोःकालयो अनुमा नंतदभावसाधकमिति तयांचातीतागतीकाली वेदकार विवर्जिती कालशब्दाभिधेयत्वादिदानीतनकालयत् वेदस्या ध्ययनं सर्वतदध्ययनपूर्वकं वेदाध्ययनवाच्यत्वादधुनाध्ययनयथेति नयापौरुषेवेविदा अनवछिन्नसंप्रदायवेसने सत्यसमयमाणकर्तकत्वात् आकाशवत् अर्यापतिरपिप्रमाण्य लक्षणास्यास्पान्ययाभूतस्यदर्शनानदावेनिधि यते धर्मायतीट्रियाविशयस्यवदस्यावग्भिागदर्शिनः कमिशकात्यात जनीष्ट्रियार्थदशिनिश्वाभावात् भामाएर पोरुषेयतमेवकल्पयतीतिअनप्रतिविधीयते यत्तावदुवर्णानांच्यापित्वेनित्यत्वेचप्रत्यभिज्ञाप्रमाणमिति नदसन् प्रत्यभिज्ञायालनप्रमाणत्वायोनातू देशांतरेपिनस्येवरस्यिसत्वेषंशःप्रतिपनिस्यात् नहिसर्वत्रव्याप्तावनमान स्येकास्मिन् प्रदेशेसामन्येनग्रहणमुपपनियुकमव्यापकत्व प्रसंगात घटादेरपियापकत्वमसंगः शक्य हिरनमेव Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रवणप्रसेगः सर्वदातदभिव्यरसंभवश्चाभिव्यंजक्यायनोप्रतिनियतत्वात् नचतेष्टामनुपयपन्नत्वंप्रमाणप्रतिपन्न त्वान् तयाहिवतूमुखनिकटदेशवनिभिःस्पर्शनिनाध्यक्षणव्यंजकावायचोटसंते दूरदेशस्थितेन मुखसमीपस्थित दलचलनादनुभीयन्ते श्रीन प्रोत्रदेशदश्रवणान्यथानुपपतेरपित्याधिनित्रीयते दिलोत्पतियोविभानीयंदोष स्लथाहि वायाकाशसंयोगादसमवायिकारणादाकाशाचसमजाविणादिदिशाविभागेनोत्पद्यमानोयशब्दोन संबरेनुभूयतेजतुनियतदिदेशस्थैरेवतथाभिव्यज्यानपिनाप्यभिव्यनिसाकार्यमुभयत्रापिसमानत्यादयं तथा हि अन्येसाल्वादिसंयोगैर्ययान्योवनक्रियते तथाधान्यतरसारिभिस्ताल्वादिभिरन्यावनिरिभ्यते इत्युत्य भिव्ययोः समानत्वेनेकवपर्यनुपर्यनयोगावसरइतिसर्वस्वस्थ मानिांतदात्मकस्यवाशब्दरत्यकोटरयनित्याचे तथाप्यनादिपरंपरायातत्वेनवेदस्यनित्यत्वातू भलतलक्षणस्याव्यापनत्वं नवप्रवाह नित्यत्वमप्रमाणनमेवास्ये नियुकं वन मधुनानकर्तुनुपलंभादतीतानागतयोरपिकालयोसदनुमापकस्यलिगस्याभावातदभावोपिसर्वदायती दयसाध्यसाधनसंबंधस्येन्द्रिययासत्यायोगान प्रत्यदा प्रतिपन्नमवहिलिगमनुमानहियहीनसवेधस्येकदेशसंदरी Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिप्रतिरेननहेतुना पक्षमतदाधारसचनायसाध्यव्याप्तसाधनाद्याधारमचनीयोकरमतीयदुनंपरेणानदावौहिदृष्टीनेतदवेदिन व्याप्यतेविटुषांवाच्योहेतुरेवहिकेवलइतितन्निनसत्पन्न प्रतियथोनहेतुप्रयोगोपिपक्षप्रयोगाभावेसाधनस्यनियताधा स्तानवधारणात जथानुमानस्वरुपं प्रतिपायेदानींक्रमप्रान्नमागमखरुपंनिरुपयितुमाहात्मवचनादिनिधनमज्ञा निमागमइनियोयनाचकः सतनाम जासस्यवचनमादिर्शदनांगल्यादिसंज्ञापरियहः आतिवचनजादिर्यस्यसनन थानेनान्निधनं यस्यार्थज्ञानस्वनि आप्तशब्दोपादानापौरुषेयत्वव्यवच्छेद: जयंज्ञानमित्यनेनायोहतानस्या मित्रा यसचनस्यचनिरासः नन्दसंभवीदलदाणशब्दस्य नित्यत्वेनापौरुषेयत्वादाप्तभणीतत्वायोगान्नित्यत्वंचनदवयवानांचा गगनांव्यापकत्वान्नित्यत्वाञ्चतचतथ्यापकत्वमसिमेकन प्रयुक्त्यगकादिः प्रत्यभिज्ञयदिशांतरेपियहणात परवायंगका इति नित्यत्वमपित्तथैवावरसीयते कालांतरेपितस्यैवगकारदेनिश्चयात् इतोवानित्यत्वंशब्दस्यसंकेतान्यथानुपपतेरनि तथारिगृहीनसकेनस्यप्रधसत्यगृहीतसकेनः शब्ददानीमन्य एवोपलभ्यते इनितत्कयमर्थप्रत्यय: स्यातू नचासोनभवती तिसएवायंशव्दतिप्रत्यभिज्ञानस्यानापिसलमत्वाञ्च नचपर्णानांशब्दस्यवानित्यसत्वसंधेसर्वदाश्रवणप्रसंगः सर्वदा Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनस्यहि कारणभृगस्तस्यविधिमृगारिलस्यकातिच्छन्दममिनिइदे यथाविश्कापिलपावनभवनि यथाप्रमतमपी त्यर्थः वालव्युत्पत्यर्थपंचावयचगिइत्युकं व्युत्पन्न प्रतिकथं प्रयोगनियमइतिशंकायामाह यत्पन्नभयोगस्तुतथोपपत्या न्यथानुपपेतेचवा व्युत्पन्नस्यव्युत्पन्नायवाप्रयोगः क्रियतेइतिशेषः तयोपपत्यानथासाध्येसत्येबीयपतिस्तया अन्यया । उपपत्यैववाअन्यथासाध्यामदिनुपपनिलस्यातमिवानुमान मुमुन्नायनि अग्निमानयदेशलथेवधर्मवत्वोपपत मत्वान्यथानुपपतेविति ननुदतिरिकदृष्टानादरपिव्याप्ति प्रतिपतानुपयोगितात् सत्यमापदाया कयनदप्रयोग इत्याह है। नुप्रयोगोहियथाव्याप्तिग्रहणविधीयते सत्तावन्नानिगा सुत्पन्नैरवधार्यते इनिहिशब्दोयस्मादथै यस्माययाव्याप्तिय हगव्याप्तिग्रहणानतिक्रमेगबहनुप्रयोगाविधीयतेसावतावन्मत्रिणव्युत्पन्नस्तथोपपत्यान्यथानुपपत्यावधार्यते दृष्टातादिन मतरेणैवेत्यर्थः यथादृष्टांतादेव्यतिप्रतिपतिप्रत्यनंगत्वं नयापाकापंचितमिति नेहपुनःप्रतन्यते नापिदृष्टानादिषयोगः साध्यसिध्ययनलवानित्याह तावताचसाध्यसिद्धिः चकारएवकारार्थनिश्चितविपदासंभवहेतुप्रयोगमात्रेणसाध्यसिद्दिरि त्यर्थः तेनपक्षप्रयोगोपिसमलइतिदर्शयन्नाह नेनपसलदाधारसचनायोनः यतःलयोपपत्यन्ययानुपपतिप्रयोगमानगव्या Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिदात् बिरुद्धकायोयनुपलब्धिविधीसंभवतीति विरुद्धकारणकार्यस्वभावानुपलब्धिरितिताविरुद्धकार्यानुपलब्धिमाह यथास्मि आणिनिव्याधिविशेषास्ति निरामयचेष्टानुपलब्धरिति व्याधिशिषस्यहित्यसहस्तवावलस्यकार्यानरामयचेष्टातस्यानुपलचे रिनि बिरुद्ध कारणानुपलब्धिमाह अस्सत्रदहनिदुःवमिष्ठसंयोगाभावाच्च 'दुःखविरोधिसुखेतस्य कारणमिटसंयोगस्न दिनुपलब्धिरिति विरुदुखभावानुपलब्धिमा अनौकान्तात्मकंवरचेमा नात्मकंवले कान्त स्वरूपानुपलव्यः अन्यका लात्मकविरोधिनित्यायकान्तनपुनस्तद्विषविज्ञानंतस्यमिथ्याज्ञानरुपतयोपलंभसंभवात् तस्यस्वरुपमावास्तवाकारनस्या अनुपलब्धिः ननुचव्यापकविरुङकायोदीनी परंपरयाविरोधिकार्यादिलिंगानाचवहुलमुपलभरसंभवातान्यपिकिमिति ना चार्यरुदाहृत्तानीत्याशंकायामाह परंपरयासंभवात्साधनभनेवांतभविनीयं अत्रैवैतेषुकादिवित्यर्थः तस्यैवसाध नस्यापलक्षणार्थमुदाहरणहयंप्रदर्शयति अभूदनचक्रेशिवकःखसासत् एतच्चदिसंज्ञिनान्तर्भवतीत्यारेकायामात कार्यकार्यमविरुष्कापिलव्यावतिभविनायमितिसंवन्धः शिवकस्यहिकार्यछत्रं तस्यकार्यस्थास्यः इतिष्ठानहारेराव द्वितीयमदाहरनि नास्यनगृहायाभूगक्रीऽनंमृगारिसंशब्दनात् कारणविरहकार्यविरुद्ध कापिलधौर्यथेति मुगकी Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शल्यमपि विरहपूर्वचरमाह नोंदेश्यतिमुहूर्तातेशकटरमत्युदयात् शकटोदयविरुहोमश्चिन्युदयतत्पूर्वरोबत्यु |दयइतिविरुद्वोत्तस्वरलिंगमाह नोदगादूगर मुहूतात्पूर्व पुण्योदयातू भरण्युदयविरुद्वोडिसनेवसदयालदुतरचरःपु योदयइति विरुद्ध सहचरमाह नाल्यत्र भित्तोपरभागाभावोबभिागदर्शनादिति परभागाभावस्पविरुद्ध लावलन सहचरोधारमावति अविराहानुपलब्धिमदमाह जविहानुपलब्धिः प्रतिशेधसप्तभावभावण्यापन जार्यकारणापू वित्तिरसहचरलुपलभभदाहरणामाह नात्यत्रभूतलेधटोनुपलव्यः अत्रपिशाचपरनाएवादिभिः व्यभिचारपरिहार थमुपलब्धिः लक्षणाप्राप्तेत्वसतीनिविशेषणामुन्नेयं व्यापकानुपलब्धिमाह नास्यनशिशपापक्षानुपलव्य शिंगणा त्वहिवृक्षात्वनव्याने तदभावनध्याप्यशिशपायाजयभावः कार्यानुपलब्धिमार नभविश्यति सन्ततिशकटकनिकी दयानुपलब्धः उतरचरानुपलब्धिमाह नोदगादूरणिमुहूतोलकातएव तनवशतिकादयानुपलव्धेरेवेत्यर्थः सहचर उपलब्धिःप्राककालेस्यात् नास्त्यवसमतुल्यायाम नामानामानुपलव्यः विसरलायर्यायनुपलब्धिविसिभवनीत्या लक्षागालद्दालयस्यतिनलेवदर्शयितुमाह विरुहानुपलब्धिविधोत्रेधाविरुद्ध कार्यकारणस्यमारनपयधि : स्याप्रतिसानिमानुनमः ।। अतिसामर्थहि कार्य प्रत्यनुपहतमालिकत्वाच्यते भावश्चका डिलमाक्षिति। कारगनपलचिमार लालासानिः इरानसलचि माहना Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जामीशनः कतकत्यायएवंसएवंदृष्ठीयथाघटः इतकश्चायतस्मात्परिणामीतियस्तनपरिणामी सनातकोदृष्टो विध्यारतनधयः शतकश्चायतस्मात्परिणामीनिस्योत्पतीजाश्रयाक्षितपरण्यापारोहिभावः शतउच्यते तच्चतता पक्ष कित्येनक्यूटस्थानित्यपक्षेनापिक्षणिकपक्षेकिंतुपरिणामित्वेसत्येवेत्सवक्ष्यतेकार्यहेतुमाह जस्त्यत्रदेहिनिबुद्धिली हारादेः कारणहरुमाह जस्यत्रछायात्रात् जयपूर्वविदितुमाह उदेश्यतिशकटंकतिकोदयातू सहूतन्तिइनि संबंधः जयोतरचरः उदगादूरणिः पाकन एव अत्रापिमुहूर्तात प्रगिनिसबंधनीयं ततस्वरुनिकोदोदेवसर्थः सहचरलिंगमाह अस्सत्रमातुलिंगेपरसात् विरुद्वोपलछिमाह विरुहूतदुपलब्धिः प्रतिशेधतयनि प्रनिशेधमा ध्य प्रतिषेध्येन विरहानांसवेधिनस्तव्याप्याप्यःनेषामुपलब्धयइत्यर्थः तथेतिषोटेनिभावः तंत्रसाध्यबिरुद्रव्या नमोपलब्धिमाह नास्त्यत्रशतिस्पशेउष्णादिभिः- शीतस्पर्शभनिशेध्यन हिविरुद्वोग्निलघ्यायमोष्णमितिविरुह कार्यापलभमाह नास्यत्रशीतस्पेशीधमान अवापिप्रनिशेधस्यसाध्यस्यशीनस्पस्थिविरुद्वोग्निस्तस्यकार्यम धमइति विरुद्वकारणोपलब्धिमाह नास्मिशागणिसुखमलिहदय शल्यातू सुखविरुहोदुःवनस्यकारणहदया Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दाम्यसंभवादनंतरयोरेवपूर्वतिरक्षणयोहेर्नुअलमावस्यदृष्टत्वातू व्यवहितयोस्तदघटनात् ननुकालव्यवधानपिकार्य कारणाभावोदृश्यतएव ययाजागृलदशाभाविप्रवोधयोमरणारिष्टयोपैतितत्परिहारमाह भाव्यतीतयोमरणाजा रहोधयोरपनारिटोडोभतिहेतुत्वंसुगमेमेनन् अत्रैवोपपतिमाह तठ्याराचिने हिनदाविभावितं हिशब्दोयस्मा दथैयस्मातस्यकारणस्यभावकार्यस्पभावित्वं नद्रावभाविवंचनव्यापाराश्रित तस्मान्नभकतयोः कार्यकारण भावात्यर्थः जयमर्थः जन्वयव्यतिरेक्समधिगम्योहिसर्वत्र कार्यकारणभावः नौवकार्यप्रतिकारणव्यापाव्यपेक्षा विवोषयते कुलालस्येव कलशप्रतिनचातिव्यवहितेषुनच्यापाराभितत्वमिनिसहचरस्यास्युकरेनु धनेतविंदर्शयनि सहचारिणरिपिपरस्पर परिहारेणावस्यानात्सहोतादाश्चहत्वंतरत्वमितिशेषः जयमभिप्रायः परस्परपरिहारेणोपले मातादातभवात्स्वभवहितावनंतभविसहोत्पादाश्च नकार्यकारणेवेति नबसमानसमवर्तिनो: कार्यकारणमा यः सव्यतरगोविषाणवन कार्यकारणयोः प्रतिनियमाभावप्रसंगाच्च नस्माइत्वंतरत्वमेवेति इदानींच्याप्परेलु क्रमप्राप्तमुदारमतान्वयव्यतिकरसतानाधाशयवशात् प्रतिपादितभतिज्ञायणवपंचदर्शयतिपरि Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयाविद्यमानस्यापि निश्चनुमशक्य त्वादितिनदसमीक्षिताभिधानमिनिदर्शयितुमाह रसादेकसामय्यनुमनिनरुपाई नमिवदिरिष्टमेवकिविकारणेहेनुर्यत्रसामध्यमितिबन्धकारणातवैकल्सेइति जास्वायमानाहिरसिकानज्जनिका मय्यनुमायते ततोनुमानभवति पाकनोहिरुपलक्षणः सजातीयरुपलक्षणांतर लसणकार्य बन्नेगविजातीयंरसलक्ष कार्यकरोतिरुपानुमान मिच्छद्विरिष्टमेवविचित्कारण हेतु पालनस्यरुपक्षणस्य सजातीरुपलदाणांतराव्यभिचागद रससमानकालरुषप्रतिपत्तेरयोगात् नमनुकूलमानमंत्यक्षरप्राप्तवकारणं लिंगमीश्यते येनमणिमंत्रादिनासान प्रतिवन्धान कारणातवैकल्पेनवाकार्यव्यभिचारस्यात् द्वितीयक्षणकार्यप्रत्यक्षीकरणनानुमानर्थकावाकार्यो भावितयानिश्चितस्यविशिष्ठकारणस्यछत्रादे: लिंगत्वेनागीकरणात् यत्रसामप्रिनिवन्धकारणानरावेदलचनिया * तस्थेवलिंगत्वनान्यस्येनिनोकदोपप्रसंगः इदानीपूर्वतिरचरयोः सभावकार्यकारणेधननरभावादातरलमेवेनिद यति बचे प्रवैतिरचारिणोतादात्म्य नटुत्पत्तिवीकालमरधाननदनुपलब्धरितिनदास्यसंवेधसाध्यसाधनयोः स्वभावदेना वेतदुत्पतिसेवेधेचकार्यकारणेवात बीविभाव्यते नचतदुभयसंभवः कालव्यवधानतदनपलव्यसहभाविनोरेखना Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबंधः जस्मिन्पसेकार्यकारणस्योपचारतिशेषः वचनस्यानुमानत्वेचप्रयोजनमनुमानावयवाः प्रतिज्ञादयइतिशास्त्रव्यवा हार एव ज्ञानात्मन्यनंशनध्यवहारस्याशक्यकल्पत्वात् तदेवंसाधनात्साध्यविज्ञान मनुमान मित्यमुमानसामान्यलक्षणं तदनुमानं वेधेत्यादिनानप्रकारचसप्रचंचमभिधाय साधनमुकलक्षणापिक्षयरमप्यनिसंक्षेपणमिद्यमान द्विविधमित्या पदर्शयति सहनैईधोपलस्यानुपलब्धिमेदादितिसुगमेतत् नमोपलब्धिविधिनवानुपलब्धिः प्रतिशेधसायिकवेनिया रस्यनियमं विघदय लपलब्धेरनुपलब्धवाविशेषणविधिप्रतिषेधनत्वमाह उपलब्धिविधिप्रतिरोधोरनुपलब्धिश्चेतिगता मितत् इदानीमुपलव्धरपिसंक्षणविरुहाविसहमदान ध्येविध्यमुपदीयन्तविरुद्वीपलब्धेर्विधीसाध्येविस्तरनोभेदमा| हि अविरुहोपलब्धिविधीशोट व्याप्यकार्यकारण पूर्वतिर सहवरभेदादिति पूर्वचोनरंचसहनिहहः पूर्वोत्तरसरइत्या तिन्यश्वरस्त्यनकारणनिर्देशः हृद्वाश्य माणश्चरशब्दः प्रत्येकमभिसर्वध्यतेनायमः पूर्वरोतरचरसहचराइनि पश्च व्याप्यादिभिसहह. जत्राहसोगतःविधिसाधनंहिविधमेवस्यभावकार्यभदात कारणस्य तुकार्याविनाभावाभावा दलिंगवनावस्यकारणनिकायवंतीवचनातू अप्रतिवहसामथ्र्यस्यकार्यप्रनिगमकल मित्यपिनोत्तरं सामथ्र्यस्यातीन्दि Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नशक्यते इनितत्स्वरुपमपिशारमिधातव्यमेवनि नदेवमनभेदेनहिनिश्चत पंचावयरुपमनुमा द्विभकारमेवेनिदर्श यन्नार तदनुमानढेधा तेहैविध्यमेवात स्वार्थपरयमैदादितिरवपरविप्रतिपनिनिरासालवाद्विविधमेवेनिभावः सा थीनुमानभेदंदर्शयन्नाह स्वार्थमकलक्षणंसाधनात्साध्यविज्ञान सनुमानमितिप्रायकलक्षयस्यतत्तथोक्रमित्य यः द्वितीयमनुमानभेदंदर्शयन्नाह परार्थततदर्थपरामशिवचनाजानमिति तस्यत्वाचीनुमानस्यार्भःसाध्यसाथ नलक्षणाः तेपराभृशतीसेवंशीलंतदर्थपरामर्शितचतड्चनंचतरमाज्जातमुत्पन्नविज्ञानं परार्यानुमानमिति लन | वचनात्मपरायीनुमानं प्रसिद्धेनत्वपनदर्यप्रतिपादकवचनजनितज्ञानस्यपरायीनुमानत्वमभिदधतानसंहीतमिनिन वायं मचेतनस्य साक्षात्ममितिहेतुत्वाभावननिरुपचरितप्रमाणाभावात् मुख्यानुमानहेतुलेन तस्योपचारतानुमान व्यपदेशेनवार्यतस्वदेवोपचरितपरायानुमानत्वं तहवनस्पाचार्यभार नहचनमपितहेतुत्वादिनिा उपचारोहि मुख्याभावसतिप्रयोजनेनिमितेचमात्यते तत्रवचनस्यपरायीनुमानव निमितनहेतुत्वं नस्यप्रतिपायानुमानस्यो तुलझेतुलस्यभावस्तयेतस्मानिमितातडूचनमपिपरायानुमानहेसुयस्यतनवतलस्यभावस्तत्वंततलवचन मिति तथेनि Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भेदेन प्रमाण द्विवै प्रथम भेदंव्यापेतरं व्याचष्टे परोक्ष मितर दिनिउक्त प्रतिपक्ष मितर शब्दो नेः ततः प्रत्यक्षादिनर् दि ति लभ्यते तच परोक्षमितिनस्य चसामग्री स्वरुपे निरुपपन्नाह। प्रत्यक्षादि निमित्तं स्मृति प्रत्यभिज्ञान नकनुिमाना गम भ मितिप्रत्यक्षादिनिमित्तमित्यादिशब्देन परोशम पिगृह्यते न यथावसरं निरुपयिष्यते प्रत्यक्षादिनिमित्तं यस्येनि विग्रहः तत्र स्मृति प्रक्रमप्राप्तां दर्शयन्नाह संस्कारो द्बोधनिबंधना नदिल्या कारा स्मृतिरिति संस्कारस्योद्बोधः प्राक सनि बंधनं यस्याः र ाः सा तथो का नदि त्या कारा नदि व्युलेखनी एवभूता स्मृनिभवतीतिशेषः उदाहरण माह सदेवदतो यथे अनि प्रत्यभिज्ञानं प्राप्त काल माह दर्शन स्मरण कारण संकलनं प्रसभिज्ञानं तदेवेदं तत्सदृशं सहिलक्षणं नसतियोगित्या आदि अत्र दर्शन स्मरण कारण कुलात् सादृश्यादि विशय स्यापि प्रत्यभिज्ञानत्वमुक्तं तेषानुसा हा विषय मुयमानाख्यंत्र मांतरं तेषावैलक्षया दिविश्यं प्रमाणांतर मनुषज्येत तथा चोकं उपमा नमसि द्वार्थ साधमत्सिाध्यसाधनं तद्वैधर्म्या प्रमाणं किं स्यात्संज्ञिप्रतिपादनं इदमल्यं महदूरमासन्नं प्रांशनेति वा व्यपेक्षातः समपेक्षेर्ये विकल्पः साधनां तर मिति एषाक्रमेणोदाहरणं दर्शयन्नाट् यथा सएवायं देवदत्तः गोसदृशेोगवयः गोलक्षणो महिषः इदंमरमा टूरं वृक्षो यमित्या Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसमर्थकारण कार्यस्पापम्पभावान् जन्यथाक्रमेणापिसाततोनस्यात् जयसभागादसोजगन्निर्मिनोति ययाग्निद हतिवायुवातीमतं नपिवालभावितमेव पूर्वक्तिदोषाः निदनेः नयाहिक्रमपनि विपर्नजानमपियुगपटुत्परतापेक्षण यस्य सह कारणोपितत्साध्यत्वेनयोगपदसंभवान् उदाहरणवैशम्येचनादेः कदाचिकखहेतुजनितस्यनियन्श मात्मकत्वो पनेरन्यत्रनित्यव्यापिमर्थकस्वभावकारणजन्यत्वेनदेशकालप्रतिनियमस्य कायेदरुपपादान नदेवधाम | शोसिट्ठी वेदानांनत्सुनप्रबुहारस्थावनिपादनं परमपुरुषारख्यमहाभूतानिवासिनाभिधानंचगगनारविंदमकरंदच्या बनिनदनवधेयाविशयत्वादुपेक्षामर्हति यच्चागमःप्रमासरेवल्लिदेवसत्यादिउणनाभइत्यादिचनसमु कनिधिनाजनीविरोधीनिनावकाशलभते नचारुषेयजागमोस्तीत्यग्रेप्रपंचदश्यते तस्मान्नपुरुषोतमोपिविचार पाचति प्रत्यक्षेताभेदभिन्नममलमा हिपोवोदितं देवेदीप्तगुगविचार्यावधिसंख्यातनः संग्रहान् मानानामि तिनगिप्यभिहितं श्रीरभनयान्येलघ्याख्यानमतोविशुधिषणैवोहव्यमानं मुखसंन्यवहाराभ्यांप्रत्यक्षमुपदशि देवोकमुपजीपतिःसरभिज्ञापिनम्॥इतिपरीक्षामुखस्यलपूनतोद्वितीयः समुद्देशःगजबेरानामुहिरेप्रसोनर । Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीनि जादिशब्देनपयोवुजदीहंस स्यात् षट्पोदेर्भमस्स्मृतः सप्तपणेतुनल विज्ञेयोनिशमच्छदः पंचवर्णभवेदन मिचकामेश्युलनी अवतीभेकशृंगोपिगंडकपरिकीर्तितः शरभोप्यष्टभिःपादेहिसःचारुसदान्वितः इसेवमादिक्ष श्ररणातयाविधानेनमरालादीनवलोक्य नयासत्यापयनियदानदातासंकलनमपिप्रत्यभिज्ञान मुलं दर्शनस्मरण कारणचा विशेषान् परेषानुनप्रमाणोतरमेवोपपद्यने उपमानादौनस्यानभावाभावान् जथाहोवसरमाप्तइत्याह उ पलभानुपलंभनिमितंव्यतिज्ञानमूहः इदमस्मिनूसत्सेवभवत्सेसतिनभवत्येवेतिचउपलभःप्रमाणमात्रमत्रय घने पदिप्रत्यक्षमेवोपलभशब्देनोच्यते तदासाधनेधनुभवेयुयानज्ञान नस्यात् जथयान्तिः सर्वोपसंहारणमा जीयते साकथमतीन्द्रियस्यसाधनस्यातीन्दियेणसाध्येनभवेदितिनैपत्यक्षविषयेष्यिवानुमानविशवपिव्याप्त त्याविरोधान नरक्षणस्याप्रत्यक्षास्याभ्युपगमान्दाहरणमाह ययाग्नाचेवधमलदभावेनभनोवेनिचन् इदानीम|| अनुमानंक्रमायात मिनिनलक्षणमाह साधनासाध्यविज्ञानमनुमानमिनि साधनस्यलक्षणमाह साध्यविनाभावि वननिश्चितोहेनुरिति ननुरुप्यमेवहेनोर्लक्षणं नस्मिन्ससवरेतोरसिद्वादिदोषपरिहारोपपतेः तथारिपक्ष|| Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मनमसिद्भुत्व्यवच्छेदार्थमभिधीयने सपक्षेसत्वंनुविशाहुलापनोदार्थविपक्षेचासत्वमेवानकोनिकयुदासाथी मिति नदुके हेनोस्सिवपिपेषुनिर्णयनवगिनिःजसिहपरितार्थव्यभिचार विपक्षनइनियट्युतंजविनाभाब नियमनिश्चयादेवीषनयपरिहारोपपने अविनाभावोसन्यथानुपपन्नत्वनचासिहस्यनसंभवत्सेवजन्यथानु पपन्नखमसिइस्यनसिध्यनीसभिधानान् नापिविरुद्धस्यनलक्षणस्यत्वोपपनि विपरीतनिश्चिनाविनाभाविनी यथोकसाध्याविनाभावनियमलक्षणस्यानुपपने:विरोधानव्यभिचारिण्यनप्रकतलक्षणावकाशमानएवननोन्य थानुपपनिरेक्श्रेयसिनविरुपतानस्यासत्यामपिययोग लक्षणभावेहेनोमिकन्या दर्शनान् तथाहिशस्यामस्तत्व वादितरनपुत्रवदित्यत्ररुप्पसंभवेपिनगमकत्वमुपलक्ष्यने जथविपदाव्यातिनियमवती तन्ननगमकवमिति नदपिमुग्धविलसिनमेवनस्याएवाविनाभावरूपत्वात् इतररूपसाचेपितदावेहेनोःस्वसाध्यसिद्धप्रनिगमकत्वा निष्टप्रधानलक्षणमक्षरणमुपलक्षणीयमिनिनन्सविचेतररुपहयनिरपेक्षनयागमकवोपपतेश्च यथासंत्या दिनपादिनीपिप्रमाणनिष्टानिष्ठसाधनटूषणान्यथाउपपतेर्नचात्रपक्षधर्मत्वंसपक्षानयोवालिकेवलमविभाषमा - 2 Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशा गम कल प्रतीतेः यस्य परसुतं परैः पक्षधर्मता भावेपि का कस्य काल्या नलः प्रसादइत्यस्यापिगमकत्वा पतिरिति न दप्यनेन निरस्तमन्यथानुपपति केलेने वा पक्षधर्मस्यापि साधुत्वाभ्युपगमान्नदेह सास्ति ततो एवं बिना भाव हेतोः प्रधानं लक्षण मभ्युपगेतव्यं तस्मिन्सत्य सति भिल क्षण त्वेपि हेतोर्गमकल दर्शनादिति नेत्रे रुप्यं हेतु लक्षगमव्यापकत्वानूस षांक्षाणि कले साध्यसत्वादेः साधनस्य सपक्षे सतोपि स्वयं सेोगेतेर्गमकत्वाभ्युपगमात् एतेन पेच लक्षणत्वमपियो परिकल्पि नमून देतो रुपय तिमियतत्य भिहितं बोद्धव्यं पक्षधर्मत्वे सत्यन्वयव्यतिरे का बना धित विश यत्न मसतिपक्ष त्वं च चेतिलक्षणानि तेषामप्य विनाभाव प्रपंचैतेवं बाधित विशयस्थाविना भानयोगात् तत्प्रतिपक्षस्येवेति साध्या भास निशयले नासम्यग्धेतुत्वाच्च यथोक्त पक्ष विशय त्वाभावात् दोषेणैवदुष्टः नातू अनःस्थितं साध्या विनाभावि ले न निश्चितो हेतु रिति इदानीमविनाभाव भेदं दर्शयन्नाह सहचारिणोः व्याप्यव्यापक योश्च सहभाव इति सहचारिणो रूपरसंयो व्याप्य व्यापकयोश्च रक्षत्वशिंशपा लयो रिति सप्तम्या विशयो निर्दिष्ट क्रमभाव नियमस्य विशय न्दर्शयन्ना पूर्वोत्तरचारिणोः कार्यकारणयोग्य क्रमभावः पूवेतिर चारिणोः कृतिकार्यशकटादययोः कार्यकारणयोश्व धूमधूमध् Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सको नयो:कमभावः नन्वेवभूनस्यापिनाभावस्यनप्रत्यक्षेणग्रहणं तस्यसन्निहिनविशयवान् नाप्यनुमानेनप्रतापरान मानकेनयामि नरेतुराश्रयत्वानवस्यावतारादागमादेरपिभिन्न विशयत्वेन सुप्रसिद्धत्वान्ननतोपिनवनिपनि रियोर कायांमार इष्टमाधिनमसिईसाध्यमिनि जत्रापरेदूपणमाचक्षते जासन शयन भोजन पाननिधूवनादेरपीट वानदपिसाध्यमनुशज्यन इनिनेप्यनिवालिशःजास्लुन पलापिस्तान जनहिसाधनविशयत्वेनेसिनमिस्ट मुच्यते इदानीखाभिहितसाध्यलक्षणस्यविशेषणानिसफलपन्नसिहविशेषणसमयितुमाह संदिग्धवि पर्यस्तासुत्पन्नानांसाध्यलेययास्यादिसासिद्धपदं नत्रसंदिग्धंस्थाणुवीपुरुषोवेत्यनवधारणेनोभयकोटिप एमर्षि संशयाकलिनलु उच्यते विपर्यसनविपरीतावभासविपर्यज्ञानविशयभूतंरजनादिजव्युत्पन्नतुनामजा नेसंख्यादिविशेषापरिक्षानेणानीनविषपानवध्यवसाययायमेषांसाध्यत्वप्रतिपादनार्थमसिदूपदोपादान मत्सर्षःअधुनेष्टावाधिनविशेषण यस्यसाफल्यदर्शयन्मार जनिष्टाध्यक्षादिवाधिनयोःसाध्यत्वमाभूदिति . बाधितवचनंजनिशेमीमांसकस्यानित्य शब्दःप्रसक्षादिवाधिनयोः साध्यवंशाश्रावणत्वादि आदि Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्देनानुमानागमलोकखवचनवाधिनानांग्रहगोचाकिंचित्करस्यहत्याभासस्यनिरुपणावसेरेवयमेवग्रन्यकारःप्रप चयिस्यनीरकपरम्यने तबासिहपदेप्रतिपायपेक्षेवर पदंतुवायपेक्षनि विशेषमुपदीयनुमाह नचासिद्धेवदि प्रिनिनादिनमिनिजयमनिहि सर्वेसर्वापेक्षया विशेषणमपिनुकिंचिकमविश्यभवतीतिजतिरादितिव्यनिरी कमुखेनोदाहरणं यथाजसिहूंपतिवायपेक्षयानतभेष्टमित्यर्थः कुजएनदित्साह भत्यापनायहीछावकुरेरो इछया दवलुविशयीकनमिष्टमुच्यते प्रत्यापनापहीच्छाचनुरेवेनि नच्चसाध्यधर्मःकिंग नहिशिष्टोधर्मोनिष्टरनेट्रेदंदयिनी ह साध्यधर्मः क्वचिनहिशिष्टोवाधर्मसिोपस्काराणिवाक्यानि भवतितनामलिभ्यतेव्याप्तिकालापेक्षयानुसाध्या मिः कचिलयोगकालापेक्षयानुनहिशिष्टोधर्मसिामा स्पेनयर्भिणानामांतरमाह पक्षानियावन् ननुधर्मधर्मिस मुदायः पक्षनिपक्षस्वरूपस्य परातेनि:पिनत्वादुर्मिणसहननेकन राष्ट्रान विरोधइनि नैवसाध्यधर्माधारतया विशेषःस्तस्यधर्मिण: पक्षालवचनेपिदोषानवकाशन रचनावैचित्र्यमात्रेणनासर्यस्यानिराहनावासीहांनावि विरोधान जवाहसोगतः भवनुनामधर्मपिशव्यपदेशभाक्तयापिसबिकल्पवृहोपरिवनमानएवनवास्तनःसर्वाएगा Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नुमानानुमेयव्यवहाराखड्यानटेनधर्ममिन्यायेनवहिःसदसत्वमपेक्षतात्समिधानादितितन्निरासार्थमाह प्रसिहो धर्मोनिजयमर्थ:नयंविकल्पबुद्दिवहिनीनासादितालेभनभावाधर्मिणव्यवस्यापपनि तदवास्तवत्वेननदाधार साध्यसाधनयोरपिवासवत्वानुपपतेल द्वेः पारपर्येणापिवस्तुव्यवस्थानिबंधनत्यायोगान् तनोविकल्सेनान्येनवा व्यवस्थापिनः पर्वनादिषियभावभजन्नेधर्मिताप्रतिपयन इनिस्थि प्रसिद्धोधमति नससिद्विश्वयचिहिकल्ला नःचित्रमाणतः पविञ्चोभयनइतिनैकानेनायिकल्पादिरुटस्य प्रमाणप्रसिद्स्यवामित्वं ननुमिरणेविन ल्पान् प्रनिपनोकिनवमित्याशंक्रयामार विकल्मसिंहनस्मिन्सलेतरेसाध्ये तस्मिन्धर्मिणिविकल्पसिद्धेसना वनदेपेक्षयेनरासनाचतेहे अपिसाध्येसुनिीता संभवहाधनमारावलेनयोग्यानुपलाधरलेनचनिशेषाजों दाहरणमाह जस्लिसर्वज्ञोनास्तिखरनिपाणमितिसुगम ननुर्मिण्यसिसत्तोदभावोभावोभवर्मिणामसिहविरुद्ध निकानिकचारनुमानविशयन्वायोगान् कथसनेनरयाःसाध्यत्वनदुरजतिहोभावधर्मिश्चेहम्पश्चार्युभयाश्रितः । वरुद्दोधमेभिावस्य सासनासाध्यतेस्थमिनियदुक्तं मानसप्रससेभावरुप स्वधर्मिणः प्रतिपन्नलान् कपम् Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध ले तू नच ता त्सिद्वैौ तत्सत्वस्यापि प्रतिपन्नत्वात् अर्थमनुमानं तदभ्युपेतमपिवैया त्पाद्यदापरोन प्रतिपद्यते तदानुमानस्य स फल्यातूनच मानसज्ञानाद्गमन कुशम मादेरपि सद्भाव संभावन तोतिप्रसंग: तज्ञानस्य वाधकप्रत्यय व्यपाकृतसत्ताक व परंतु विवियन या मानसप्रत्यक्षाभासत्वात् कथं तर्हितुरगभुंगादेः दुर्मित्व मिति न चोधर्मित्रयोग काले वाधक प्रत्ययानुदया सत्वसंभावनोत्पत्तेः न च सर्वज्ञदि साधक प्रमाणासत्वेन मत्तंप्रति संशीतिः सुनिश्विता संभव हा कत्रमा राखेन सु खादा विवसत्वनिश्वयात् तंत्र संशयायोगात् इदानीं प्रमाणोभय सिद्धे धर्मिणी किंसाध्य मिखाशंकयामाह प्रमाणो भय सिद्धेतुसाध्य धर्मे विशिष्ठता साध्येइतिशब्दः प्राग्दिवचनांतो प्यर्थ देशांदेक वचतन या संबध्यते प्रमाण चोभयेच विकस इयं ताभ्यां सिद्धेधर्मिणी साध्यधर्मविशिष्ठता साध्या अयमर्थः श्रमाशाप्रतिपन्नमपिवस्तु विशिष्ट धर्माधार तया विवादपदमारोहतीति साध्यतांना निवर्तत इति एवमुभयसिंद्वेपियोज्यं प्रमाणोभयसिद्धं धर्मिद्वयं क्रमेण दर्शयन्नाह ग्निमानयदेशः परिणामी शब्द इतिययेति देशो हि प्रत्यक्षेणा प्रसिद्धः शब्दस्तुभय सिद्धः नहिप्रत्यक्षेणावग्दर्शिभिरनिय तदिग्देशकालावच्छिन्नः सर्वेशब्दाः निश्चेतुं पार्थते सर्व दर्शिनस्तु तन्निश्वयेपितं प्रत्यनुमाना नर्थ क्यान् प्रयोगकालापेदा याधर्मविशिष्ठधर्मिशः साध्यत्वमभिधाय व्याप्ति काला पेक्षा या साध्यनियम दर्शयन्नाह यातैौ तु साध्यधर्म एवेत्तिसुगम Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मिणापिसाध्यत्वकोदोष इत्यत्राह जन्यथातदधटनादितिउनविपर्ययेन्यथाशब्दःधर्मिणाः साध्यत्वेतदयटनातू या| घटनादितिहेतुः नहिधमदर्शनात सर्वत्र पर्वतोग्निमानितिव्याप्तिः शक्याक प्रमाणाविरोधात् नन्वनुमानेपक्षप्रयोग . संभवातू प्रसिद्बोधरियादियचनमयुक्तस्य सामर्थलव्यत्वान् तथापितहरने पुनरुक्ताप्रसंगात् अर्यादापन्नस्या पिपुनर्वचनं पुनरुकमित्याभिधानादितिसोगन तबाह साध्यधीधारसेदेहापनोदापगम्यमानस्यापिपक्षस्यवचन सा * धर्मस्तस्याधारलत्रसदेतोमहानसादिः परतादिवैतितस्थापनोदोव्यवच्छेदः लदर्थगन्यमानस्यापिसाध्यसाध॥ * व्यस्तव्यापकभावप्रदर्शमन यथानुपपतेस्तदाधारस्यगम्यमानस्यापिपक्षस्यवचनं प्रयोगः अबोदाहरणमाह सा गिसाधनधर्माववोधनायपक्षधोपसंहाखत साध्येनविशिष्टोधर्मपिर्वतादिलासाधनधर्माववोधनायपक्षय पसंहारवत् पक्षधर्मस्यहेतोरुपसंहारउपनयासहतू इतिजयमर्थः साध्यध्यानसाधनप्रदर्शनननदाधारावगतापि निी तमिसंबंधिनाप्रदर्शनार्थययोपनयस्तथासाध्यस्यविशिष्ठधर्मसंयधितावोधनायपक्षवचनमपीति किंचहेतुभयोगे र्थनापस्यवनव्यमसमर्थितस्याहेतुत्यायोगात् तयाचसमर्थनोपन्यासादेवहेनोः सामसिहत्वात् तेनुप्रयोगोनयी स्यात् हेतुप्रयोगाभावकस्यसमर्थन मितिचेन् पक्षःप्रयोगाभावगहेनुपर्तनामिनिसमानमेनन् नरमाकार्यखभावानुपलंभी Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोवा भिदेनपक्षधर्मत्वादितिभेदेनचनिधोमुकासमर्थयमानेनपक्षप्रयोगोप्यभ्युपगंतव्यखेतिजमुमेवार्थमात , विधा हितमुत्कासमर्थयमानोनपक्षयतीति कोवावादीप्रतिवादीचत्यर्थः किलार्थवाशब्दः युक्त्या पक्षप्रयोगस्यावश्यंभावे ककिलनपक्षयति पक्षनकरोत्ययितकरोत्सेवकिकुर्वन् समर्थयमानः किंस्त्वहिनुमुक्तीवन पुनरमुकेत्यर्थः समयी नहिहेतोरसिद्धत्यादिदोषपरिहारेण स्वसाध्यसाधनसामर्थ्यवरुपयांवचनं तच्चहेतुप्रयोगोतरकालंपरेणांगीशन मित्युकेनिवचनं ननुभवतुपक्षःप्रयोगःस्तथापिपक्षहेतु दृष्टीतभेदेन अवयवमनुमानामितिसारख्या प्रतिज्ञा हिनदाहरणापनयभेदेनचतुषयवमितिमीमासमा प्रतिज्ञाहेतदाहरणोपनयनिगमनभेदात्पचावयवमितियो तः तन्मतमयाकुवनूखमतसिहमवयवद्वयमेवोपदीयन्नाद एतद्वयमेवानुमानानीदाहरणमिति, एतयों शक्षहेतोः इयमेवनातिरिकमित्यर्थः एखकोरेगौयोदाहरण दियवच्छेदेसिपिपरमन निरासार्थ पुनदिाहरण मित्युन नहिर्विसाध्यप्रतिपत्यर्थमतस्विदूतोरविनाभावनियमार्थमाहोखिन् व्याप्तिस्मरणमितिविकल्प्यक्रम र्थ सदियन्नाह नदितत्साध्यप्रतिपत्तीयथोकस्यसाध्याविनामावित्वेन निश्चितस्यहतोव्यापारादिति द्वितीयविकलं लदास साध्यापतरंगाररातिसगातसाध्ययक्षतेपाययोलस्यताभाविक Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणवसा प्रशिनालय क्रोशयन्नाह तदविनाभावनिश्चयावाविपोवाधकॉदेवतत् सिद्धः तदितिवर्तनेनेतिचतेनायमित्ययः नदाहरण it साध्येनाविनाभावनिश्चयावानमवतीतिविपक्षेवाधका देवतन सिहेरविनाभावनिश्चयसिद्धेःकिंचव्यात रुपनिदर्शनं तत्कयसकल्पेनव्याप्तिंगमयेन् अत्यंतरेखुव्याप्त्यर्थपुनरुदाहरणातरमग्यं तस्थापि यनिरुपले नव्यानेखधारयितुमशक्यवान् अपरापरपदंतरपेक्षयामनवस्थास्यात एतदेवार व्यकिरपंच निदर्शनंसामा न्येनतुव्याप्तिस्तत्रापिलहिषभियानावस्थानस्यादृष्टानांतरापेक्षणातू तोपिउदाहरणेपि नहिमतिपतौसाना न्यव्याप्तिविभनिपतावित्ययः शेषव्याख्यानं तृतीयविकले दूषणमाह नापिव्याप्तिस्मरणामतथापिविधिहे तुप्रयोगादेवतस्मृतेः गृहीतसवेधस्यहेतुप्रदर्शननवव्याप्तिमिहिरग्रहीनसंबंधस्यदृष्टानशनेनापिननस्मरणाना, मुनुभूतविषयत्वात् स्मरणास्येतिभावः नदेवमदाहरणप्रयोगस्यसाध्यार्थप्रतिनोपयोगित्वं प्रत्युतसंशयहेतुत्व मेवेनिदर्शयति तत्परमभिधीयमानंसाध्यधर्मिणीसाध्यसाधन नेसंदेहयति नदुदाहरणपरंडालमनि धीयमानसाधर्मिणिसाध्यसाधनेसंदेहयनिसेदेहवतीकरोति दृष्टीता धमिगोसाध्यव्यानिसाधनोपदनि । Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिसाध्यमिणीतन्निर्णयस्यकर्तुमशक्यत्वात् इति शेषः जनमेवाची व्यारेकमुखनसमर्थयमानः माह कतोन्य। भोपनयनगमने अन्ययासंशयदुतुत्वाभाविकरमानोपनयनिगमनेप्रयुज्येते अपरः प्राह उपनयनिगम नयोरप्यनुमानांगत्वमेवनदर्भयोगेनिखारसाध्यसंवितरयोगादिति तनिषेधार्यमाह नवेनेनदंगेसाध्यमि गिहित्वसाध्ययो चनादेवासंशयान उपनयनिगमनेजपिवसमाणलक्षणोतस्यानुमानस्योगेनभवनःसाध्यर्थ मिणिहेतुसाध्ययोर्वचनादेवत्यवकारेणदृष्टानादिकमंतरेणोत्यर्थः किंचाविधायापिदृष्टांतादिकसमर्थनमकी जाकव्यमसमर्थितस्याहेतुत्वादिनितदेववरतेनुरुपमनुपानावयबोधानुसाध्यसिद्रौतस्पेवोपयोगानोदाहरणा दिकमेतदेवाह समर्थनंगावरं हेतुरुपमनुमानावययोवास्तुसाध्येतदुपयोगादिति प्रथमोवाशदएरकाराहिती यस्तु पक्षातरमचने शेपंसुगमं ननदृष्टांतादिकमतरणमेदधियानववोधयित्मशस्यलात कपक्षहेतुप्रयोगमा त्रणतषांसाध्यप्रतिपतिरितिताह बालव्युत्पत्त त्रयोपगमेशापयासोमवादनुपयोगादिति वालानामा ल्पज्ञानासुसत्सयतेषामदाहरणादीनांत्रयोपगमेशावासोतत्रयोपगमोनवादेनहिगदकाले शिष्याःयुत्पा Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या: व्युत्पन्नानानियतत्राधिकारादिति वालव्युत्पत्यर्यतत्रयोपगमइत्यादिनाशास्त्रेभ्युपगतमेवोदाहगादि यमुपदर्शयति दृष्टांतोहयाजिन्वयव्यतिरेकमेदादितिदृष्टात्तीसाध्यसाधनलदाणोधविन्वयसलेन तिरेकडोरेणवायत्रसदृष्टांतहसमन्वयेसंज्ञाकरणात सहिधैवोपपद्यनेतान्वयष्टोतंदर्शयन्नाह साध्य व्याप्तंसाधनंयत्रदयतसोचयहष्टीतः साध्येनव्याप्त नियतंरेतुःयवादयेत व्यान्तिपूर्वकतयेतिभावः . तायभेदमुपदर्शयति साध्याभाबसाधनाभावोयत्रकथ्यतेसव्यतिरेकदृष्टांतः असत्यसायाव्यतिरेकर नोदृष्टांतोव्यतिरेकदृष्टांतः साभ्याभावेसाधनस्याभावएवेतिसावधारणदृष्टव्यं क्रमप्राप्तमुपनयखरुपनिरुप निहितोपसंहाउपनया पक्षेइत्यायाहार नायनो हतोपक्षधर्मतीसेनासपनयति निगमनरवरुपमुपदर्श च यतिाप्रतिज्ञापास्तु निगमनमितिउपसंहारइतिवतेने प्रतिज्ञायाउपसंहारः साध्यधीवशिवत्वेन प्रदर्शनं नि मित्यर्थः ननुशादृष्टांतादयोवकव्यारवेनिनियमानभ्युपगमात् कयतत्रहिमिहसरिभिःप्रपंचितमितिनचोपं. यमनमभ्युपगमेपिप्रनिपायानुरोधेनजिनमतानुसारिभिःप्रयोगपरिपायाः प्रनिपनत्वात् साचाज्ञान तत्स्वरुपेकर्नु Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा प्रत्युत साधकत्वमेव न वाधकत्वमित्यलमितिप्रसंगेन तथा सौगतस्य प्रमारासंख्या विरोधिविध्वस्त वार्धतक ख्यमुपयैकत एव नचैतत्प्रत्यक्षतर्भवेति साध्यसाधनयो व्यष्किभावस्य सोर्कस्येव प्रत्यक्षा विप्रत्यया विषया तू नहि नदिमतो व्यापारान् कर्तुं शक्नोमि अविचार कत्वात् संनिहित विशयत्वाञ्च नाप्यनुमाने तस्या पिदेशादिवि शय विशिष्टत्वेन व्यास्य विशयत्वात् तद्विषयत्वे वा प्रकृतानुना नां तर विकल्प यानतिक्रमात् तत्रप्रतानुमानेन व्याप्तिप्रतिपत्ता वितरेतराश्रयन्यत्र संगः व्याप्तोहि प्रति पन्ना या मानुमाननिर्विकसक बाद मासादयति तदात्म लाभे चन्या शिप्रति पति रिति अनुमानांतरेणा विनाभावप्रतिपत्तावन स्थाचं मूरी पर पक्ष चमूचंच मीति नानुमानगम्या व्याप्तिः नापिसंरव्यादिपरिकल्पिनै रागमोपमानाथपित्य भाँवैः साकल्येना बिना भावाव गतिः तेषां समय से गृहीत सादृश्यान्यया भूताभाव विशयत्वेन व्यास्य विशयत्वात् परैस्तथान म्युपगमाश्चअन्य प्रत्यक्ष पृष्टभाव विकसा तू साकल्पेन साध्यसाय भावप्रतिपत्ते ने मामा णांतर मृगमित्यपरः सोपिनयुक्तबादी विकल्प साध्यक्ष गृहीन वि ति प्रप 引 विशयस्यंवात व्यवस्थापकत्वमा घे पक्ष दर्शनस्येव तदनंतर भावि निरयिस्यापि नियत विशयत्वेन व्याप्ता गेोच Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्वात् हितीयपक्षपि विकल्पदृय पैसेंकतवन हिकल्सज्ञान प्रमाणमन्यथावेति प्रथमपक्षेत्रमाणातरम् मंतव्यंप्रमाण्डूयलोतम्बावात उतरपक्षेतु नतनोनुमान व्यवस्था नहिव्यानिज्ञानस्याप्रामाण्य नपर्व मनुमाप्रमाणमास्कंदति संदिग्धादिलिंगादप्यत्सायमानस्य प्रामाण्यप्रसंगात् तनोव्याप्तिज्ञानंसविक मपिसंवादकंच प्रमाणहयादन्यदभ्युपगम्यामितिनिसौगताभिमतप्रमाणसंख्यानियमः एतेनानुपलं, कारणथ्यापकानुपलंभाच्च कार्यकारणयापकभावसंवितिरिनिनदलपि प्रयुक्त जनुपलभस्यपसक्षति शवेन कारणायनुपलभस्यचलिगलेननजनितस्यानुमानत्वात् प्रत्यक्षानुमानाभ्याध्याप्तिग्रहणपक्षोपक्षि षानुसंगात् एतेनप्रत्यक्षपलेनोहायोर विकल्पज्ञानेनव्याप्तिप्रतिरिसप्पयाले प्रत्यक्षफलस्याषिप्रस क्षानुमानयोरन्यतरत्वेव्यतिरविषयीकारणात् तदन्यत्वेचप्रमाणातरव मनिवार्यमिति जथव्याप्तिविक . . लत्वान्नप्रामाएयमितिनयुतं फलस्यानुमान लसणफलहेतुनयाममाणत्वा विरोधिन्चान यथासंन्निकरीफ तस्यापि विशेषेशज्ञानस्यविशेश्यज्ञानलक्षाफलापेक्षयाप्रमाणत्वमिति नवशिविकाभ्युपगतोहायोदवि Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ কৰিবৰালিৰবিনামলাম্বলাম্বাবিলিদিকৰিৰীষাবন্ধিকারে दिसव्यपेक्षादेवात्मनःस्तहिशान मिनि किनकसने दृश्यतदिखनसारखतषोडालिकाक्षिविद्यासंरकतादात्मनोनित शिष्टज्ञानोत्पत्तिरितिनजनादिसंरखतमपिचक्षणनिशयमपुलक्षन इनिचेत् नतस्पखानितिक्रमणेवानिश योपलब्धेनविशयोतरग्रहण लक्षणानिशस्य यथाचीनं यत्रातिश्योरः सत्वानितिलंघनात् दरममा |दिदृष्टोस्यायोगोजेनं पाहन्नरुप-भीत्रनितः इति नन्वर्यवार्तिकस्य सर्वज्ञप्रनिषेधपरवाहिशमोदृष्टोतइति । चन नइन्द्रियाणा विशयानर प्रवृतावतिशयाभावमात्रेसादृश्यान् दृषोतलोपपतेः नहिसो होतधमेरािष्ट्रनि भिवितुमर्ह पन्यथादृशांत रखनस्यादितिनतास्थितंप्रत्यक्षानुमानाभ्यामनिरमत्याभिज्ञानं सामग्रीस्वरुपभेद विनिनचेतप्रमाणे ततीर्थपरिछियप्रवर्तमानस्याक्रियायामविसंवादात् प्रत्यक्षवदिति नचैकत्यापलीयन मोक्षादिव्यवस्थाअनुमानव्यवस्थावा एकवाभायेवहुस्यैवमोक्षादेगृहीतसंबंधस्यैवलिंगस्यादर्शनादनुमानस्य चअवस्थामोगादिनिनचास्यविशयेवाप्रमाणसदावादप्रामाण्यन हिममेप्रत्यक्षस्यलैंगिकस्यचा प्रवृतेः प्रहने Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोनोवलक्ष्यते तस्यानुभूतीनेषय लोलविनातनत्येकैदयहि पुत्पमिशाननिमपःचलाता ल त्याभिज्ञानमपिसोगतीयप्रमाणुसेख्याविघट्यत्येव तथापिप्रत्याक्षानुमानयोरनतर्भावातू ननुनदितिम रणमिदमिनिप्रत्यक्षमितिज्ञानद्वयमेवनताभ्योविभिन्न प्रत्यभिज्ञानास्पवयंप्रतिपयमानंप्रमाणानरमुपल भामहेनतः इथेनेनप्रमाणासंख्या विघटन मिनिनदप्यघटेनमेवयनः स्मरणप्रत्याक्षाभ्यांप्रत्यभिज्ञान विशय स्यार्थस्यगृहीतमशक्यवान् नापिप्रत्यक्षणातस्यवर्तमानविवर्तवनिन्चात् यदुयुत ताभ्यां भिन्नमन्यदज्ञान र नास्तीति तदप्ययुतमभेदपरामशरुपतयामिन्नस्यैवावभासनातू नचनयारन्यतरस्यवाभेदपरामशात्मक चमस्तिविभिन्न विषयत्वातू नचैतरस्यवाभेदपरामर्शान्मत्वकत्वमस्तिविभिन्न विशयलात नचैनत्यसक्षेनभव स्यनुमानवानयोः पुरोवस्थिताविशयत्वेनाभूतलिंगसंविषयत्वेनच॥ पूर्वापरविकारव्याप्येकत्वाविषयत्वातूना जिला पिस्मरणेनेनापिनदेकत्वस्याविशयीकरणातू अयसंस्कार स्मरणसहकत मिन्द्रियमेव प्रत्यभिज्ञानजनयतीन्दिय. जचाध्यक्ष मेवेतिनप्रमाणोतरमित्यपरः सोप्यनिवालिशएव स्वषिशयाभिमुष्यनप्रवर्तमानस्येन्द्रियस्यसहकारिशन समवधानपिविशयांतरप्रवृतिलक्षणातिशयायोगात् विशयानरचानीनसांपनिकावस्थाव्याप्येकयमिंद्रियाणा Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तः पातित्वान्नततो नुमान न हि भीवे तेरे व देते। व्यभिचारः अप्रतिभासमान लेपि तव्यवस्थाभावात् ततो नानुमान मिति जया नाम विद्या विनुंभितत्वात्सर्वमेतद् संबंधनि सनल्पतमो विलसितं अविद्याया मप्युक्त दोषा नुशंगानू सकल विक अल्प विकल वा तस्या नैव दोष इत्यप्यतिभुग्धमा बिनम् केनापि रुपेण तस्याः प्रतिभासा भावे तस्वरुपा नवधारणातू अपर मन्यत्र विस्तरेण देवागमा लंकारे तमितिनेमतन्यते यञ्च परत्रन विवर्तन मखिलभेदाना मित्तं तत्राप्येक रुपे णान्वितत्वं हेतुरन्वे त्रन्वीयमान हुया बिना भावित्वेन पुरुषा द्वैतं प्रति वभातीति वेष्ट विद्या तकारित्वा द्विरुद्धः अन्वित मेकले तुके घटादा बने करे, तुके स्तंभ मांगो कहा दावप्युपलभ्यत इत्येंने कां तिकः श्वक्रिमर्थ चदं कार्य मंसो विद्धानि अन्येन प्रयुक्तत्वात् कृपावश्ात् लडावशात् स्वभावाद्वा अन्येन प्रयुक्तले स्वातंत्र्य हानिद्वैत प्रसंगश्व रूपावशा दितिभोन रं कृपाया दुःखाना मकरुणा प्रसंगात् परोपकरण निष्टत्वा तस्याः सृष्टेः प्रागनुकंपा विशय प्राणिनाम भावाञ्चन सायुज्यते कृपा परस्य प्रलय विधाना योगाच्च अदृष्टवा तद्विधाने स्वातंत्र्य हानिः रूपापरस्य पीड़ा कारणा दृष्टव्यपेक्षा योगाच्च क्रीडा वशात् प्रवृत्तौ नप्रभुलं क्रीडो पाय व्यपेक्षणा हाल कवन् क्रीडो पायस्य तत्साध्यस्यच युगपदुत्पति प्रसंगश्वस N Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमायसिउरणेनाभवाशनाचन्द्रकानइयांभसा प्ररोहरगमिवलक्षः सहेतुः सर्वजन्मनामिति नदेनन्मदिरा गद्गदनोदितमेव मदनकोद्रवामपयोगजनित व्यामोत्सग्धविलसिनमिवनिखिलभवभासतविचारासहत्व नयाहि यसक्षस्यसताविशयत्वमभिहितम् नकिनिर्षिशषसना विशयत्वंसविशेषसतावबोधकलंगानता रख्या पक्षःसतायाः सामान्यरुपचा हिशेषनिरपेक्षतया नवभासनात् शावलेयादिविशेषानवभासतेगोवा वभासवत् निर्विशेष हिसामान्यभवेश विशणदित्यभिधानात् सामान्यरुपलेनसतायाः तत्सदित्यन्वय विशयलेन सुप्रसिद्धीवजयपाश्चात्यःपक्षःकक्षीक्रियते नदानपरम पुरुषसिद्धिः परस्परव्यावृताकार विशेषा मध्यक्षतावभासनान् यदपिसाधनमभ्यधायि पनिभासमानत्वं तदपिनसाधुविचारसत्वान् नथाहिनिमा नत्वं वनः परनोवा ननावत्खनोसिहलान् परतःश्नहिरुई परनः प्रतिभासमानत्वंहिपरं विनानोपपयते प्रतिभा मात्रमपिनसिडिमधिवसनि नस्य नहिशेषनोतरीयकवानहिशेषाभ्युपगमेहेनलसनिः किंवधर्महेतु दृष्टाना • मानोपायभूताः प्रतिभासनेनवेतिप्रयमपोप्रतिभासानाः प्रविष्टः प्रतिभासिवहिभूनानाययायःपक्षालदासाय Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नापिनमयःगतस्यापिसदादानेदकत्रमाणाभावात् ननावलसक्षेतदावेदकमविप्रतिप्रसंगात् नचानुमानमान नाभावलिंगाभानात् ननुप्रत्यक्षतद्वाहकमल्यवाक्षविस्फालनानंतरं निर्विकल्पकस्यसन्मात्रविधिविशयतयो नेः सतायाश्चपरबलरुपत्वात् नथांचोतं जस्लिमालोचनाज्ञानं प्रथमंनिर्विकल्प वालमूकादिविज्ञानसरगै शुहवस्तु नचविधिवत् परस्परल्यावृतिरप्यध्यक्षतप्रतीयते इनितसिद्धिः तस्यनिशेधाविशयत्वात् तथाचो आहुविधानपसक्षननिपेहविपश्मिनः नेकलेजआगमलेन प्रत्यक्षरानवाध्यते अतुमानादपिनासदावोविमाय नएव तथाहियामारामादयःमदार्थाःप्रतिभासोनाः प्रविष्ठाः प्रनिभासमानत्वात् यसनिभासते नसनिभासात प्रावष्टं यथाप्रतिभासवरुपअनिभासतेचविवादापन्नाइति नदागमनामपि पुरुष एंवदं पतयचभाव्यमितिक हुलमुपलभात सर्ववैखल्विदंबाने नानालिकिंचनजारामनस्यपश्यनिन पश्यनिकश्चनेतियुनेश्चननुपर ब्रमणएव परमार्यसत्वे कथंघटादिभेदोरमासने इतिनचोय सर्वस्यापिनदिनयनयानमासनात् नचाशेषभेदस्यन हिवनत्वमसिहंप्रमाणमसिहत्वान् नमाहि विवादाध्यासितविश्वमेवारणपूर्वमनपानितंच निखिलंगस्तिति Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुविधाइत्वं च कारण मात्रापेक्षयायदीप्यते तदा विरुहु साधनं कारण विशेषापेक्षयां चेदितरेतराश्रयत्वं सिद्धे हिकारण विशेषे बुद्धिमती तदपेक्षया कारणा व्यापारा सुविधाइ त्वं कार्यन्वं ततः स्वदेशेष सिद्धिरिति संन्निवेश विशि ष्टत्वमचेतनो पाटनत्वं चोल दोष दुष्टत्वान्न प्रथक चिंत्यते स्वरुप भागा सिद्धत्वादेस्तत्रापि सुलभत्वान् विरुद्धा महतो दृष्टांतानुमदेशा सशरीरा सर्वज्ञ पूर्व कल्ल साधनात् नधूमात्पावकानुमाने प्ययं दोषः नत्र तारपिार्णादिविशेषाधागा निमात्र व्याप्तधूमस्य दर्शनात् नैव मात्र सर्वज्ञा कर्तृ विशेषाधिकरण तत्सामान्येन कार्यन्वस व्याप्तिः सर्वज्ञस्य कर्तुरे नोतुमानाखागसिद्धत्वात् व्यभिचारिणश्वामीहेतवः बुद्धिमरका रण मंतरेणापिनिषदादीना प्रादुर्भाव संभवात् स साय वस्थाया मबुद्धिपूर्वकस्यापि कार्यस्य दर्शनात् तदवस्य तत्रापिभग ख्यं कार र मिस तिमुग्धविलसितं नयाप रस्याप्यसंभवादशरीरत्वाज्ज्ञानमात्रेण कार्य कारित्वा घटना दिखा प्रयत्नयोः शरीराभावे संभावातु दर्शभवश्व पुरातने विस्तरेणाभिहित जाप्त परीक्षादो जनः पुनरत्रनोच्यते यच्च महेश्वरस्य क्लेशादिभिरपराभृष्टत्वं निरतिशयत्व मैश्वयद्यिपेतत्वं तत्सर्वमपि गगनाब्ज सौरभव्यावरनिमिव निर्विशयत्वादुपेक्षा महति तनोन्महेश्वरस्या शेषत्वं तस Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ प्रथम पक्ष अवयव सामान्यनाने कांता तू द्वितीयपक्षे साध्या विशिष्टत्वात् अथ संन्निवेश एव सावयवत्वं तच धादि वत् प्रथिव्या रानुपलभ्यत इत्सभूलाभावित्वमभिधीयते तदप्यपेशलं संनिवेशस्यापि विचारा सह त्वान् सप्तवयव संवधो भवेद्रचना विशेषोवा यद्यवयव संबधस्तदागमनादिनानेकांत: सकल मूर्तिमद्रव्य संवधस्याप्युपचरितवान् वगतत्वमप्युपचरितं स्यात् श्रोत्रस्यार्थ कारित्वं नच स्यात् उपचरितप्रदेशरूपत्वात् धर्मादिना संस्कारा ततः सेस ज्युक्तं उपञ्चरिनस्य सद्रूपस्यतेनेोपकारायोगात् खरविशाणास्येन ततो नकिंचिदेतत् जथरचना विशेषः तदापरं निभागासिद्धं तदवस्थमेवेति नाभूत्वा भावित्वं विचार सहते नाव्यक्रियादर्शिना पिरूत बुद्धि उत्पादकत्वं तहिन समयस्यवाभवेत् सत समयस्य चेत् गगनादेरपि बुद्धिमहेतुकलं स्वात् तत्रापिखननो सेचनात् कृत मति गृहीत संके स्य कृत बुद्धि संभावात् सामिथ्येति चेत् वदीयापिकिंनस्यात् वाधासद्भाव स्य प्रतिप्रमाणाविरोधस्य चान्यत्रापिक तुरग्रहणात् क्षित्यादिकं बुद्धिमहेतुकत्वं नभवति अस्मदाद्यन वया परिमाणाधारत्वात् गगनादिति प्रमारण स्प धारणत्वात् तन्नकृत समयस्य कृत बुझ्युत्पादकत्वना यकृत समयस्या सिद्दुत्वात् जविप्रति संगाञ्च कारण व्यापारा Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिदुपादानमित्यपि वार्तुव स्तूत्पादपेक्षया अभिव्यते रघट नातू वस्त्व पेक्षया भिव्यक्तो कारण संपातात्प्रागपि कार्य वस्तु सान प्रसंगातू उत्पादस्याप्यभिव्य फिर संभाव्या स्व का रहा सभा संबंधलक्षणस्योत्पादक स्मापि कारण व्यापारातू प्रसद्भवेि वस्तु सद्भावप्रसंगात् तलक्षणम्वा तु सत्वस्य प्राक सत एव हि केनचितिरोहितस्याभिव्यंजके नाभि व्यक्तिस्तमस्ति रोहितस्य घटस्येव प्रतिपादिनेति तन्ना न्निव्यन्यर्थ कारणो पादानं युक्तं तन्न स्वकारण स ता संबंधः कार्यत्वं नाप्य भूत्वा भावित्वां तस्यापि विचारासह त्वात् अभूत्वाभावि त्वं हि भिन्न काल किया द्वयाधिकरण भूते कारिसि दुमसाध्यास्ते कांत पद विशषित वाक्यार्थत्वा भुत्वात्रजति इत्यादिवाक्यार्थवत् नचात्र भावना भवन योराधारभूतस्य कर्तररनुभबोलि 'जभवनाधारस्या विद्यमानत्वेन भावनाधारस्यच विद्यमानतया भावा भाव स्योरेकाश्रय विरोधात् अ विरोधेच तयो पर्यायमा विभेदोन वास्तव इति अस्तुवा यथा कथं विदभूत्वा भावित्वं तथापित न्वा दो सर्वशन न्युपगमा द्वावा सिहूं नदिमही एक पारा रामादयः प्रागभूत्वाभवेतोभ्युपगम्यते पते स्लेषा तैः सर्वदा व स्थानामुपगमात् जय सावयवत्वेनतेषामपि सादित्वं प्रसाध्यते तदप्यशिक्षित लक्षिनं अवयव इतेरवयवेरारभ्यत्वेन च सावयवत्वानुपपतेः Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुत्पन्लानोभवेयुत्पद्यमानानोसतासमतावानतावदसताखरविशाणादेरविनत्प्रसेगात् सतोचेन सत्तासमवायातूख नोवानतावत्सतासमवायादनवस्याप्रसंगातू प्रागुनविनाध्यानतिद्वेः स्वतःसतानुसतासमवायानर्थको अयोमा यमानानो सनासंबंधःनिटासंबंधयोरेककालवाभ्युपगमादितिमन नदासत्तासंबधउत्पादादिलाइनि यदिमिन्नस्तदो त्पत्तेरसलाविशेवहत्पत्यभाव्याकिनोभेदः अयोत्पतिसमाक्रीनवरनुभत्वेनोत्पनिरपिनथाव्यपदिश्यते इनिमतं नद यनिजाग्यवलितमेवोत्पतिसत्वंपनिसत्वप्रनिविवादेवस्तु सत्वस्यानिटत्वात् इतरेतराश्रयदोषश्चइत्यत्पतिसत्येव स्नुनि देककालीनसतासम्बधावगमलदवर्गमचनत्र त्यसलेनोपीने सत्वनिश्चयइनिजथेनदोष परिजिहीर्षयानयोरेका मन्यनुज्ञायने नहितसंबंधएक्कायेलमिति नतोमिहेनुकत्लेगगनादिमिरनोनः एतेनखकारणासवेरेपिचितेनाज अयसंबंधकार्यत्वमितिननिः सापिनयुका तत्संबंधस्यापिकदाचिकत्वेसमवायस्यानियमच प्रसंगात् यदादिवन जकदा चकत्वेसर्वदोषलेभाप्रसेगः जथवरतूत्यानककारमानासंनिधानाभावान्नरर्वदीपलेभनप्रसंगः ननुवस्मात्यर्थकारण मायापारःउत्पादश्च खकारणसनासमवायः सबसर्वदाप्यस्ति इनितदर्थकारणोपादानमनर्थक्रमेवस्यान अभिष्यत्य Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चादीनांसुपलेभात् जयतादृशःप्रसादादोसन्निवेशविशेषादृष्टीनतादृशस्य कस्यचिदप्यभावान्सानिशा . हिसानिश्यकतारेगमयनि प्रसादादिवत् नवदृष्टकर्नुकादृष्टकर्नुकाभ्यांनुहिमंत मिनेनरत्तमिहिःकनिमर्मणिमुक्का दिभिव्यभिचारान् एतेनाचेतनोपादानत्वादिकमपिसमर्थिनमितिसतंबुद्धिमहेनुकसंनतश्वसर्ववैदिलमिनिनेदे विमनुमानमुद्रविणदरिद्रवचनमेवकार्यत्वादेजसम्यग्धेनुकत्वेनतज्जनिनस्यमिथ्यारुपपलान् नयाहिकार्यत्वंसक रणसतासमवायःस्यादभूलाभानित्वमक्रियादर्शिनापिकन उठ्युत्पादकत्वकारगन्यापारानुविधायित्ववास्याइत्वं । तिराभावात् जथायःपक्षानदायोगिनामशेषकर्मपक्षेपपक्षानःपातिनिहेतोः कार्यवलक्षणस्यप्रदत्तभागासिद्ध नचतवसनासमवायःस्वकारणसमवायोचासनलिनसत्यक्षपध्वसरूपत्वेनगन्नासमवाययोरभावात् सत्ताया, . गुणक्रियाधारत्वाभ्यनुज्ञानात् समवायस्पचपरेःट्रव्यादिपंचपदार्थवृत्तियोगत्वाभ्युपगमात् जथाभावपरित्यागन भावरेयवेक्किादाध्यासितस्यपक्षीकरणालायंदोषःप्रवेशमागिनिचेन् नर्तिमुत्यर्थिनांतदर्थमीश्वराराधनमनर्थको स्यातत्रस्याकिंचित्कस्त्वातू संगासमवायस्यविचारमधिरोहनःशनधाविशीयमाणानान् स्वरुपासिढुंचकार्य Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुःख संवाहुभ्यां धमति संपतिवैद्यावा भूमी जन यन् देव एक तथा व्यासवचनंच अतोजंतुर नीशो यमात्मनः सुख : खयोः ईश्वरी प्ररितो गछै सर्व वाश्व श्रमेववा नचा चेतनेनैव परमा एवादिकार रैगेः पर्याप्रित्वा दुद्धिमतः का श्णस्यानर्थक्यं अचेतनानां खयं कायो त्यतो व्यापारा योगात् जुर्यादिवत् नचैवं चेतन स्या पिवेतनांतर पूर्वक दन वस्था तस्य सकल पुरुष ज्येष्टत्वान्निरतिशयत्वात् सर्वज्ञे वीजस्य क्लेशकर्म विपाकाशये रपरामृष्टत्वादनादि भूतानश्वर ज्ञान संभवाञ्च यदाह पतंजलि : क्लेशकर्म विपाका शेयेर परामृष्टः पुरुषः सर्वज्ञः सपूर्वेशा मपि गुरुः का लेन विच्छेदादिति च एश्वर्य मेप्रति हतं सहजो विरागः खष्टिनिसर्गजनिता वशितेन्द्रियेशु आत्यंतिकं सुखम मनावरणाच शक्ति ज्ञानंच सर्व विशयं भगवत्यवैवेत्यवधूत वचनाञ्च नचात्र कार्य त्वमसिद्धं सावयवत्वेन कार्यन्व! सिद्धं विपक्ष एव वत्यभावात् नाप्यं नैको निकं विपक्षे परमाण्वा दा वप्रवृतेः प्रतिपक्ष सिद्धि निबंधन स्याभावातून प्रकरण समं अथ तन्वादिकं बुद्धिमहेतुकं नभवति दृष्टकर्षक प्रसादादि लक्षण नादाकाशादिवदित्य स्त्ये न प्रतिपक्ष साधन मिति नैतकं हेतोरसिहुलान् सन्निवेश विशिष्टत्वेन प्रासादादि समान जातीयत्वेनन Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..स्मरणेचसर्वज्ञनास्तिनाज्ञानमभावप्रमाणो युकनापरया नकस्यचिदनारदर्शित रिषजगत्रिकालज्ञान सुप . सर्वज्ञस्यानीष्ट्रियस्थासर्वज्ञवहिनोधर्मनयासनीन्द्रियं तदपिनपालनपुरुषविशयं इति कथमभावप्रमाण यमासादयेत् जसर्वज्ञस्यनदुत्पादसामय्याजसंभवातू असंभवे नथाज्ञातुरेवसर्वज्ञत्व मिनि जवाधुनातन वसाधनमित्सपि नयुक्त सिध्यसाध्यनानुषंगान ननःसिळूमुख्यतीदियज्ञानमशेषतो विशंदे सार्वज्ञज्ञानस्या तन्दियत्वादश्रुच्यादिदर्शनंनद्रसाखादनदोषोपिपरिहन एवकयमनीन्दियज्ञानस्यवेशयमितिचेन तयासत्य खपज्ञानस्यभावनाज्ञानस्यचेनि दृश्यतेहिभावनावलादतनदेशवसुनोपिविशददर्शन मिनि पिहिनेकारणा सिसचीमुखाय यनयिनिर्मिलितनयतेनयापिकाताननं मकमितिबालमुपलभान ननुचनावरणविश्ले शेराजत्वमपितुननुकरणभुवनादिनिमित्तचिन नचायतन्नादीनांबुद्धिमहेनुकत्वमसिद्धमनुमानादेनस्यसुभसिद्ध चानू तथाहिविकल्मादिकरणभावापन्ने पर्वपिर्वनेनरुनन्नादिसद्विमतेनुकं कार्यलादचेतनोपादान वान्सनिवेश शिष्टत्वादावरूपादिवदिनिजागमोपिनदावेदनःश्रूयने विश्वनश्वकरुनविश्वतोमुखविश्वतोगदुरुन विश्वनःयान Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमिति सिहूं सकल पदार्यसाक्षात्कारिकस्यचित्पुरुषस्यातोनुमानादितिनप्रमाणपेचकाविशयत्वमशेषज्ञस्य जया स्मिन्ननुमानतः सर्ववित्वमनहेनोवाअनर्हनश्चेदई हाक्यमप्रमागास्यात् जनिश्चेत्सोपिन त्यासामर्थनवावर्गत पार्यते खश यादृष्टानानुग्रहणाबाहेतोः पक्षांतरेपितुल्य इतिवादिनि नदेनत्परेशववधायजयोत्थापनमेववि अधिनिशेधप्रश्वस्य सर्वज्ञसामान्याभ्युपगम पूर्वकलान् जन्यथानकस्याप्पशेषजन्वमित्येवं वक्रव्यं प्रसिद्धानुमानेय स्पदोषस्यसमबोनजात्यनरत्याच तथाति नित्य शरः प्रत्यभिज्ञायमानमादित्युक्त व्यापक शब्दोनिसान त्यप्रसाध्यते अन्यापकोना यय व्यापकर नदायापहवे नोप्यकल्पमानो नकिचिदर्थ पुष्णानि जयन्यापकः | सोपिनश्रुत्यासामर्थनवावगम्यने स्वशत्यादृष्टीनानग्रहेणारा पक्षांतरेपिनुल्यवृतित्वादिनिसिहमतो निर्दोषात्मा धनादशेषज्ञत्वमिनि यञ्चाभावप्रमाणासनाकबलिनमशेषज्ञस्येनियटुकमेवानुमानस्सनट्टाहास्यसदानसनिप्रमा गापंचकाभाव मूलस्याभावप्रमाणस्योच्छानायोगात् गृहीत्वावलुसदावस्मृत्वाच प्रतियोगिनं मानसनातिनाज्ञा नजायतक्षानयक्षयतिचभावातूकदर्शनंतयारकालत्रयनिकलक्षणवलुसदावग्रहणे जन्यत्रान्यदायहीन Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्तेः माट्रा मदन कोद्रवादिभिराबर पपतेः नचेद्रियस्यतै राव रहा मिन्द्रियाणां मचेतनामप्यनावृत मख्यत्व त् स्मृत्यादिप्रतिबंधायोगात् नापिमनसस्तरावरण मात्मव्यतिरेकोणा पस्य मनसो निवेश्यमानत्वात् ततो ना मू तस्य वरणाभावः जतो ना सिद्धं तद्गुहास्वभावत्वे सति प्रक्षीगण प्रतिवन्धप्रत्ययत्वं नापि विरुद्धं विपरीतनि श्विता बिना भावाभावात् नाप्यने कांतिकं देशतः सामरत्येन वा विपक्षे नृत्यभावात् विपरीतार्थेपिस्याभावातू मिस्त्येव विवादापन्नः पुरुषो ना शेषज्ञो वकृत्वात् पुरुषत्वा पाएया दिमत्वाच्च रथ्या पुरुषवदिति नैतावत्वा देरसम्यग्धेतुलात् वक्तृत्वं हि दृष्टष्ट विरुद्वायविक्तृत्वं तद् विरुद्ध वक्तृत्वं वक्तृत्व सामान्य वा गल्ये नराभावान्न प्रथमः पक्षः सिद्धू साध्यतानुशेगान्नापिद्वितीयः पक्षः विरुद्धत्वात् तद विरुद्ध वक्तृत्वं हि ज्ञाना तिशय मं तरेर नोपपद्यत इति वक्तृत्व सामान्यमपि विपक्षाविरुद्धत्वात् नपति साधना यालम् ज्ञानप्रक विकृत्वाय कर्षादर्शनात् प्रत्कृतज्ञाना तिशय बना रचना निशय वतो स्यैव संभवात् एतेन पुरुषत्वमपि निरस्तं पुरुषत्वंहि रागादिदोषरवितं नदा सिद्धसाध्यता नदूषि तंतुविरुडूं वैराग्य विज्ञानादिगुणयुक्त पुरुष न्वस्याशेषज्ञत्व मंत्तरेणा योगात् पुरुषत्व सामान्ये तु संदिग्ध विपक्ष व्यावृति Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयत्वमशेषज्ञस्येति यदुकं नाहकस्यानुमानस्यसंभवा नयाहिकश्चित्पुरुषः सकलपदार्यसाक्षात्कारीताहरणस्वभा वत्वसनिपक्षीणमनिबंधमत्ययाचात् ययगरणस्वभावत्वसनिपक्षीणमतिबंधात्स्यं तत्साक्षात्कारी यथापगतान रिलोचनरुपसाक्षात्कारी तद्गुण स्वभावचेसनिपक्षीणपतियालयबतिवादापन्नः कनिदिनिसकलपरायग्रहण स्वभावलंवेदवचनान्ममोन्सिही चोदनातः सहलपदार्थपरिज्ञानस्यान्यथायोगादेवस्यवादशीपानीनेरिनि व्या विज्ञानोत्पतिवलाञ्चाशेषविशयज्ञानसंभवः केवलं वैशयेविवादः नत्रचावरणायोगस्वकारण रजोनीलागयात्रता ज्ञानस्येवनदपगमइति प्रमाणप्रतिवन्धप्रत्ययत्व कथमिनिचदुध्यने दोषावारणमचिन्निमूलप्रलयमुपाजतः अनस्यमानहानिकत्वान् यस्यपलक्ष्यमानाहानिः सकचिनिलंभलयभुपजति यथाग्निपुट पाकापसारित किट कालिकायनरेगवहिरंगमलहयात्मनिटेम्निमलमिनिनिसिानिशयवनीचदोषावरणे शनियंपुनर्विवादाध्या सिनस्याज्ञानस्यावरणसिद्धं प्रतिशेधस्यविधिपूर्वकला इतिजत्रोच्यते विवादापन्नसावणमविण्यतयास्ववि शयावबोधकत्वाद्रजोनीतारायंतरिताज्ञिानवदिनचान्मनोमूत्वादावारकाहत्स्योग जमूनीयाजपिचेतना | Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्तमान विशयत्वाच्च नचाशेष वेदी संवद्धो वर्तमान श्वेति नाप्यनुमाना तसिहरनुमानं हि गृही तसंबंधस्य केदश दर्शनादसंन्निकटे वुद्धिः नच सर्वज्ञस्ट्रा वाविना भाविकार्यलिंगंखभाव लिंग वा संपश्यामः नद्को पूर्व तत्त्वभावस्य न त्कार्यस्यवा तत्सद्वावाविनिभाविनो निश्वेतुमशकेः नाप्यागमा तत्स द्वानः सहि नित्यो नित्यो वा तत्स द्वावं भावयेत् नताव न्नत्यः तस्यार्थवादरूपस्य कर्मविशेषा ववोधकला योगात् अनादेरागमस्या दिमत्कनुष वाचकत्वा घटनाञ्च ना -रागमः सर्वज्ञं साधयति तस्यापितत्यगीतस्वत निश्चयमेतेरे एगमा माल्या निश्वयात् इतरेतराश्रयत्वाच्च इतर प्रणी त्वनासादित प्रमाणभावस्याशेषज्ञ प्ररूपण सरत्वं नितए मसंभाव्य मिति सर्वज्ञ सदृशस्य परस्य गुणा संभा नोपमानमनन्यथाभूतस्यार्थस्याभावान्ना थपिति परि सर्वज्ञा वचोधिकेतिधर्माचेप देशस्थ च्या मोहादपि संभावान् बंधोपदेशः सम्यक मिथ्योपदेशभेदात् तंत्रमन्वादीनां सम्यगुपदेशो यथार्थ ज्ञानोदय वेदमूलत्वान् बुद्धादीनां मोह पूर्वकः तदमूलत्वान् तेषामवेदार्थज्ञत्वात् ततः प्रमाण पंचकां विशयत्वा भाव प्रमारा। स्यैव प्रवृत्तिः स्तेन वा एवज्ञायते मवाशेप्रत्यक्षादिप्रमाण पंचकस्य व्यापारादिति अत्र प्रतिविधीयते यत्तावदुक्तं प्रत्यक्षादिप्रमाणा वि Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारणादिना व्यभिचारइति कारणादिकारणं न परिच्छेद्य मिति तेनव्यभिचारः न ब्रूमः कारणत्वात् परिच्छेपलमपितु परिखे त्वमपिपरिच्छेद्यत्वमपिपरिच्छेद्याला कारणत्वमितिचेन्न तथा पिके शोड़ का दिना व्यभिचारात् इदानों मतीन्द्रिय प्रत्य दांव्याचष्टे सामग्री विशेष विश्लेषिता खिला वर हा मतीन्द्रियमशेषतो मुख्य सामग्रीद्रव्य क्षेत्र काल भावलक्षणा तस्या विशेषसमग्रता लक्षण होन विश्लेषितानि अखिलान्या वरणा नियमे तत्तथो कं किं विशिष्टं अतीन्द्रियमिन्द्रिया एयतिक्रां तं पुनरपि कीदृशमेवतः साम तेन विशदं अशेषतो वैशये कि कारण मिति चेत् प्रतिबन्धाभावइतिश्रमः तत्रापि किं कारणमि तिचेत् अतीन्द्रियत्व मनावरण लं चेतिश्रमः एतदपिकुन इत्साह सावराण त्वेकरणजन्य स्वेच प्रतिबन्धसंभवान् नन्ववधिम नः पर्य यो रने ना संग्रहा व्यापक मेनछ क्षा मितिन वाच्यं तयोरपि स्व विशेये अंशषतो विशदत्वादिधर्म से भवान्नं चैवं मति श्रुतयोरित्यति व्याप्ति परिहारः तदेतदिन्द्रियमवधिमनः पर्यय केवल प्रभेदात्रिविधमपिमुख्यं प्रत्यक्ष मात्मसंन्निधिमा या पेक्षत्वा दिति नन्द शेष विशय विशदा भासिज्ञानस्य तद्वतोवा प्रत्यक्षादि प्रमाणं पंच का विशय लेनाभाव प्रमाण वि शधर विध्वस्तशका कल्वात् कस्य मुख्यत्वं तथाहि नाध्यक्ष मशेषज्ञ विशय नस्य रूपादिनीयन गोचर चारित्वात् सं Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीत्यर्थःउभयत्रापिप्रतीपस्यातज्जन्यस्यास्तदा कार धारिणो पितल्न काशकत्वं तथा ज्ञानस्यापीत्यर्थः ननु यद्यथदिना स्वार्थ के पाननुकारिणो ज्ञानस्यार्य साक्षात्कारित्वं तदानियत दिग्देशकाल वर्ति पदार्थप्रकाश सर्व विज्ञान मप्रति नियत विशयं स्यादितिशंकायामाह स्वावरणक्षयोपशम लक्षण योग्यतया हि प्रतिनियतमर्थ वस्यापयति स्वानि च तान्या वरणा निच स्वाभरणानि ते मांदाय उदयाभावः तेषामेव सदस्या उपशमः तावेव यस्याः योग्यतायाः तयाहेतुभूतया प्रतिनियतमर्थ व्यवस्थापयति प्रत्यक्ष मितिशेषः हियस्मादर्थे यस्मादेव कदोषइत्यर्थः इद्मत्रतात्पर्य कल्पयित्वा पिताद्रूपं तदुत्पतिं तदध्य वसा पंचयोग्यतावश्याभ्युपगंतव्य ताद्रूपस्य सामानायैरेतदुत्पतेरिन्द्रियादिभिस्त हय स्यापि समानार्थ सम नंतर संयैचितय स्थापिशले संख्येपीति का नेनव्यभिचाराःयोग्यताश्रवए मेवश्रेय इति एतेन यदुक्तं परे अर्थेन घटय सेनां नहिमुत्कार्थ रुपता तस्मात्प्रमेया प्रमाण रुप तेति तन्निरस्तं समा नाथ कार नाना ज्ञानेयुमेय रूपता या साबात् नच परेशां सारूप्यं नास्ति वस्तूभूत तियोग्य तयोवार्थप्रतिनियम इति स्थितं इदानीं कारणं त्या परिच्छेयोर्थ इतिमनं निराकरोति कारणस्य परिछेरा ले " Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रहाहिनेयव्यामोहरावस्यानदियत्तानवधारणात् नचभगवतः परमकारुणिकस्यचेयानध्यामोहाएवं प्रभव तीसाशंकायासुमते नाथालोको कारणेपरिच्छेयत्तानमोक्तसगममेतत् ननुयायालोकाभावाविहागनमसो न्यस्याभावात्साधन विकलोदृष्टीनइनिनवमेयंसनिवासालोकस्यापितमोभावादन्यस्थासंभवानेजोव्यस संभयइतिविस्तरेणेनदलकारे प्रतिपादितंवीहव्यं अत्रैवसाध्यहेत्वेनरमाह नदन्वयव्यतिरेकानुविधालामावा अत्रव्याति अग्रस्यान्वयव्यतिरेकोनानुविधानि नमत्कारणकययाकेशोकज्ञानं नानुविधनेचज्ञानम न्वयव्यनिरका विनितथा जालोकेपिएतापानविशेषस्तनकंबरदृष्टान इतिनकचरामजीदादयः ननुविज्ञान - मजनितमयाकारंचार्थस्यमादकम् तदुत्पनिमतरेणविष्यप्रतिनियमायोगात् तदुत्पतेरालोकादाविशिष्ट चानापसहिताया एक्तस्यासंप्रनिनिगमहतुवात भिन्नकालत्वेपिज्ञानक्षेपयोगायग्राहकभावाविरोधात नथाचोकं भिन्नकालंकयंप्रासंमितिदारांनोविद हेतुत्वमेवमुक्तिज्ञासयाकारापेक्षममित्याशंकाएपगमामि दमाह जनज्जन्यमपिनषदीपकप्रकावन जयजिन्यमप्यर्षक प्रकाशमित्यर्थः जनज्जन्यत्वमुपलक्षणनेननदाकार Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमिनिअर्थःसमीचीनःप्रतिनिशतिरुपोव्यवहारः संव्यवहार तत्रभवसाव्यवहारिकभ्यःभितमिन्द्रि निन्दियनिमित्तं इंदियंचक्षरादि जनिंदियमनः निमित्तंकारणंयस्यसमलव्यसंचकारणमभ्युपगंतव्यं , इंद्रियप्रधान्यादनिन्दियवलाधानादुपजातमिन्द्रियप्रत्यक्षमनिन्द्रियादेव विझविसाव्यपेक्षादुपजाय निमनिदियप्रसक्षं नेनेन्द्रिय प्रत्यक्षमवग्रहादिधारणापर्यतनयाचतुर्विधमपिवहादिद्वादशभेदमष्टच रिंशतसंख्य प्रतीन्द्रियं प्रतिपत्तव्यमनिंद्रिय प्रसक्षस्यचौकप्रकारेणाटचत्वारिंशदेनमनोनयन नाचतुमियीन्द्रियाणांव्यंजनावग्रहस्याटचत्वारिंशदूदैनच समुदिनस्येन्द्रियानिन्द्रियप्रत्यक्षस्य षटत्रि दूतगत्रिशतीसंख्याप्रतिपत्तव्या ननुखसंवेदनभेदमन्यदपिप्रत्यदानस्सनत्कथनोकमिनिनवाच्यं . करवादिज्ञानखरुपसंवेदनस्यमानसप्रत्यक्षावात इंदियज्ञानरुपसेवेदनस्यचेन्द्रियसमक्षत्वादन्यथा .. खव्यवसायायोगात स्मृत्यादिस्वरुपसंवेदनं मानसवेतिनापरखसंवेदननामाधक्षमनिननुप्रत्यक्षस्सो दककारणबदनाथकारपियानिन्दियवदाला कावपिक्निकारात्वेनोको तदवचने कारणानांसाकल्यस्या Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पप्रमाणातरत्वमनिवनेने एतेनत्रिचतुःपंचशप्रमाणवादनोपि सांत्याक्षपादप्रभाकरजैमिनया खत्री माणसंख्यानव्यवस्थापयितुंक्षमाइनिपतिपादितमवगंतव्यमुक्तन्यायेनस्मृनिमत्यभिज्ञानानकीणावदस्य पगतप्रमाणसंख्यापरिपेथित्वादिति प्रत्यक्षतरभेदाइएवप्रमाणेइनिस्थितंगवाजदानीप्रथमप्रमाण भदस्यस्वरुपनिरुपयितुमार विशदंप्रत्यक्षमिति ज्ञानमिनिवनेने प्रत्यक्षमिनिधर्मनिर्देश: त्रिशरज्ञानात्म कंसाध्यप्रत्यक्षादितिहेतुः नथाहि प्रत्यक्ष विशदज्ञानात्मक एवप्रत्यक्षत्वात् यन्नविशदज्ञानात्मकनन्न यक्ष यया परोक्षप्ररपक्षच विवादापन्नतस्माहिशतज्ञानात्मकमिति प्रतिज्ञाथैकदेशसिहोहेनुरितिचे काप नप्रतिज्ञा नदेकदेशेवाधर्मिधर्मिसमुदायाप्रतिज्ञाः तदेकदेशोधधिर्मविहिनःप्रतिज्ञापैकदेशसिहइनि निमिणारेतुत्वजसिहत्वायोगात् धर्मिणीहेतुन्वेजनन्वयदोषइतिचेन् नविशेषस्यधर्मित्वान् सामान्य न्यचरेनुत्लान् तस्यविशेषमुममोविशेषनिष्टन्तान नस्यसामान्यस्य जयसाध्यधर्मस्यहेतुत्वेषतिज्ञार्थकदै गसिद्धत्वमिति नदप्पसंमतं साध्यल्पखरेपणैवासिहत्वान् नप्रतिज्ञार्थकदेशासहत्वेिननस्यातिहत्वधर्मिणा नस्मनक्षत्रयोगकालबनमा Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यभिचारात सपशेवृत्यभायातोरनचयइसप्यसत् सर्वभावानाक्षणभंगसंगममेवांगवेगारमंगीकुर्वनाम तथागतानां सत्वादिहेतुनामनुदयमसंगात् विपक्षेबाधकत्रमाणाभावात् पक्षव्यापकत्वाचावयवत्वप्रनिक नेपिसमानंदानी खोकमेव विशदत्वव्याचष्टे प्रतीसंतराव्यवधानेनविशेषवनयावाप्रतिभास वैशयमिनि । एकस्याप्रतीतल्याप्रनीति:प्रतीत्यतरं नव्यवधान नेनपतिभास वैशय यायवायस्थावग्रहहामनीतिभ्यो व्यवधानंतथापिनपरोक्षवं विशयविंशयिणाभेदनापतीने यत्र विशयविशयिणाभेदेसनिव्यवधानेननपरोस त्वं तर्हिजनुमानाध्यक्षविशयस्यकामयासस्यामिरभिन्यस्योपलंभाध्यक्षस्यपरोक्षतेतिनदयसकनि नविशयत्वाभावात् विसहशसामग्रीजन्याभिन्न विषयाप्रतीतिः प्रतीसंतरमुच्यतेनान्यदितिनदोषः नकेत लमेतदेव विशेषतयावाप्रतिनासनेसविशेषवरसिंस्थानादिग्रहणवेशयं तच प्रत्यक्षद्वेधामुत्यस .वहारभेदादितिमनसिकत्समनसोव्यवहारीलप्रत्यक्षस्योसादिकांसामग्रीतदेदेचार इंदियाणानि दियनिमितंदेशतःसंव्यवहारिकमिनिविशदंज्ञानमिनिचानुवर्तते देशतोविशदज्ञानमिनिसाव्यवहार Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % E पादयेत् परस्यप्रत्यक्षेणगृहीतमशक्यत्वान् व्याहादिकार्यप्रेदर्शनातंप्रतिपयनेनिचेत् जायाने नहि कार्यास कारणानुमानजथलोकव्यवहारापेक्षयेण्याएवानुवानपि परलोकादावेवानयुगमारभारादितिकथेनदर्भा वोनुपलव्धेःइतिचे नदानुपलब्धिलिंगजनितमनुमान परमापनित मिनिप्रत्यक्षमायमपिखभावहेतुजा नानुमिनिमेनरेगनोपपतिमियनानिनि प्रागेवोकमित्युपरम्यने नदयुतधर्मकीतिना प्रमाणेतरसामान्य स्थितेरन्यधियोगनेःप्रामाणानरसभावःप्रनिशेधाचकस्यचिदिति ततःप्रत्यक्षमनुमानमिनिप्रमाणाध्यमेवे निसोगतः सोपिनयुकवादिस्मतेरविसंवादिन्या स्मृतीयायाः वकिप्रतिप्रमाएंनएबादनंनतःप्रमाणभूता सं याः सदावान स्मृनरप्रमाण्यं नतथाप्यनुभूतेनार्थनस्यलेवनाचो पपत्तेःजन्यथामत्यक्षस्याप्यनुभूनाविश देवियत्वादनामाण्यमनिवार्यस्यात् स्वविशयावभासनेस्मरणेप्यविशिष्ठमितिकिचस्मृतिप्रामाण्येनुमानवानी व विदुलभानयाध्याप्नेरविशयीकरणेतदुच्छामायोगादितिततः इंदवतव्यस्मृनिःप्रमाणे अनुमानप्रामाण्या यथानुपपने रितिसैवप्रत्यक्षानुमानस्वरुपतयाप्रमाणस्पद्वित्वसंख्या नियमविघटयतीकिनश्चितयातथा -Anal/incomeamatigyantuPATRONMARAamaree नामाण्य Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थापिभावात् प्राक् कव्य भिचायैवततः प्रत्यक्ष मैवैकं प्रमारण मस्येवाविसंवादकत्वादिति तदेत हाल विलसित मिवा त्युपपतिशून्यत्वात् तथाहि किमप्रत्यक्षस्योत्पादक कारणाभावा जालं वनाद्वा प्रामाएंय निशिध्यते । तत्र ताबा प्राक्तनःपक्ष: तदुत्पादकस्य सुनिश्चितान्यथा उपपतिनियम निश्वय लक्षणस्य साधनस्य सद्भावा तू नो खलाप्युदी नः पक्षःस्तदाले वनस्य पाचकादेः सकल विचार चतुर चेन सिसर्वदाप्रतीयमान नातू । यदपि खभावतोय चारसंवनमुकं तदप्यनुचितमेव स्वभाव मात्र स्याहेतुलात् व्याप्यरूपस्यैव रच भाव स्य व्यापकं प्रतिगमक भ्युपगमात् नच व्याप्यस्य व्यापकव्यभिचारित्वं व्याप्यत्व विरोधप्रसंगात् किंचैव वा धितोनाध्यक्षमा : तिष्टते तत्राप्यविवादस्यागौण स्वत्वस्यत्रामा एया बिना भावित्वेननिश्चेतुमशक्यत्वात् यच्च कार्य हे तो. न्यथा पिसं भावनं तदप्यशिक्षत लक्षितं सर्ववेचितस्य कार्यस्य कारणाव्यभिचारित्वान् यादृशो लन कार्ये भूधर नितं वा दावतिवहल धवलन या प्रसन्नु पलटिका दाविति यदयुक्तं शक्रमूहूनि धूमस्या थापिभाव इति वेऋम्हुअिग्नि स्वभावो सोधम स्तत्र कथं भवेदिति किंच प्रत्यक्षे प्रमाण मिति रूप मयं परं प्रति एक्र मूर्द्धा अग्निस्वभावोऽन्यथावा यद्यग्नि स्वरमान स्तदा ग्निरेवेति क न उल भ्यतेन सला. पाकने प्रयतं 2717 Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -अथ प्रमाएास्वरुप विप्रतिपति निरस्ये दानों संख्या विप्रतिपतिं प्रति क्षिपन् सकल प्रमाणाभेद संदर्भ संग्रह परं प्रमाणे यता प्रतिपादकं वाक्य माह तद्वेयतितच्छब्देन प्रमाणं परामृश्यते तझमाणं स्वरुपेणा वगतं द्वेधाहि प्रकार मेव सकलन माएणभेदना मंत्र बांतभावात् तद्वित्व मध्यक्षानुमान प्रकारेणापि संभवतीति तदा शंका निराकरणार्थं सकल प्रमाए भद संग्रहशालनी संख्या प्रव्यक्तिकरोति प्रत्यन्तेन सदा दिति प्रत्यक्षवदय मारा लक्षणमितर परोक्षं ताभ्यां भेदा भिदात् प्रमाण स्येतिशेषः नहि पर परिकल्पितैकं द्वित्रिचतुः पंच शट्प्रमाणं संख्या नियमे निखिल प्रमा एगभेदाना अंतर्भाव विभावना शक्या कर्तु तथाहि मत्ले दोक प्रमाण वादिनश्वा वा कस्य नादांध्यक्षे लैगिकस्यांतभावयुक्तः तस्य द्विलक्षणत्वात् सामग्री स्वरुप भेदात् अथना प्रत्यक्षं प्रमाण मस्ति विसंवाद संभावात् निश्चिता बिना भावा लिंगा लिगि निज्ञान मनुमान मित्या, नुमा निक शासनं तत्र चस्व भाव लिंगस्य बहुल मन्यथा पिभावो दृश्यते तथाहि कराय रसोपेता नौमे तद्देशकाल संबंधिनां दर्शनपि दशांतरे कालांतरे द्रव्यांतर संबंधेचान्यया पिदर्शनातू स्वभाव हेतु व्य भिन्वाये वलता चूतवतू लता शिंशपादि संभावनाच्च तथा कार्य लिंग मपि गोपाल घटिकां दोधूमस्य शक्र मूहूनि चान्य Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशय एव परानपेक्षत्वव्यवस्थानातू अनभ्यस्ते तु जल मरीचि का साधारण प्रदेशे जल ज्ञानं परापेक्षमेव सत्य मिदंजले शिष्टा कार धारि त्वात् घटचेनि कार्य टक दर्ड एव सरोज गन्धत्वात् परिदृष्ट जल वदित्यनुमान ज्ञानार्थक्रिया ज्ञानाञ्च सिद्दुप्रामा एयासाचीन ज्ञानस्य यथार्थत्वमाकल्प मव कल्पत एव यदस्य महितं प्रामा एय यहणोत्तर काल मुत्पत्य रिछिते विशेषो नामाव सत इति नत्र यदभ्यस्त विशये नाभाव सत इत्यच्यते तदा तद्विश्यत एव तत्र प्रथम मेव निःसंशयं · परि छिति विशेषः पूर्वप्रमाण प्रमाए। साधारण्या एव परिछिते उत्पत्तिः ननु प्रामाएय परिछित्योरभेदात्कथे पौवपि मिति नैवं नहि सर्वापि परिछितिः प्रामा एयात्मिका मामा एयं तु परि खित्यात्मक मेवेति नदोषः तदप्युक्तं बाधक कारण दे ज्ञानाभ्यां प्रामाण्यं मयोद्यनइति तदपि फल्गुभाषितमेवा प्रामाण्येति तथा वक्तुं शक्यत्वात् तथाहि प्रथममत्रामाए ज्ञानमुत्पद्यते पश्वादवाधवोधगुणज्ञानो तर कालं नदयो धन इति तस्मान्यामा एयमप्रामाएयं वा स्वकार्ये क्वचिदभ्य नभ्यासापेक्षया स्वतः परतः श्वेति निनैतव्य मिति देवस्य संमन मपास्त समस्त दोषं वीक्ष्य प्रपंच रुचिरं रचितं समस्य नंदिविभुनाशिशुवोधहेतोर्मानस्वरुप ममुना स्फुट मभ्यधायि ॥ इनिपरीक्षामुख लघु इतौ प्रमाणःखरूपों Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्योदोषाणामभावइत्यत्रकिंचिग्निबंधनमुत्पत्रकिचिन्निवेधन मुत्पन्यामोन्यत्रमहामोहान् जथानुमानेत्रिरुपलि. गमात्रजनितप्रामाण्योपलब्धिरेवतबहेतुरिनिचेन्नउकोतरत्वान् तत्रहिरुप्यमेवगुणोयथाने?कसंदोषइनि न्यासमतोरेनुरपिचापामाण्येवेवक्तुं शक्यत एवतत्रहिदोषेभ्योगुणानामभावनदवभावाच्चपामाएयासस्पेज प्रमाण्यमोत्सकिमारूत्यपामाण्यवन एवेतितस्यभिन्न कारण प्रभवत्ववर्णनमुन्मतभाषिनभेवस्यान् किं. च गुणेभ्योदोषाणामभावइत्यभिदधनागुणेभ्योगुणाएवेत्सभिदिनस्यान भावांतरस्वभावात्वादभावत्वादभावस्य तितो प्रामाण्यासत्वंपामाण्यमेवेतिनैतावतापरपक्षःप्रतिक्षेपःजविरोयकित्वान् तथानुमानगुणःपनीय स्व तथाहि भामाएवं विज्ञान कारणानिरिक कारणमभवं विज्ञानान्यत्वे सतिकार्याचात् जनमाणमामाण्यवान तथाप्रमाणपामाण्येभिन्नकारएवजभिन्न कार्यचान घटवरूनवदिनियतनः स्थितंभामाएय मुत्पनो परोपदा मिति नथाविशयपरिछितिलक्षण प्रवृत्तिलक्षणेवासकार्यखगृहर्णनापेक्षन इनिने कानः कचिदभ्यसविः Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यावन्नज्ञानतावस्व विशयात्पुरुपनिवर्नयानिति नदेनन्समनल्पतमोविलसितं तथाहि ननावपामाण्य त्पत्तीसामध्यनरापेक्षत्वमसिहनाप्तषणीनत्वलदाणगरगसेन्निधानेसत्सेवाप्तपणीनवचनेयुधामाण्यदर्श यावाभावाभ्यां यस्योत्पत्यनुत्पतीनाकारणकमिनिलोकेपिसुमसिहत्वात् यदुनं विधिसुखेन कार्यमुखेनगुणा । नाम प्राप्तीनिरिनि तत्र तावदानातपणानशब्दैन अनीनिगुणानामित्ययुक्तमाप्त भणीननहानिषसंगान जय झगदोगुणनामपनीतिरित्युच्यते नदप्य युक्रेनल्यादिभिरप्युपलव्धेः जयनैल्यं स्वरुपमेवनगुण . . रविनाभावबैकल्पमपिस्वरुपविकल्पनेव नदोष इनिसमान जयनेहेकल्ममेवदीपस्तहिलिंगस्य चक्षरादेर्वा नत्वरुपसाकल्यमेव गुणःकयंनभवेने आप्ततिपिशब्दमोहादिलक्षणस्पदोषस्य॑भावमेव ययार्यज्ञानादिर क्षणगुणसद्भावमभ्युपगच्छन्नन्यत्र तयानेच्छनीति कथ मनुन्मतः अयोकमेवशंदे गुणाःसनोपिनप्रमा पत्तोव्याभियंने किनुदोषाभावएवेनिसत्य मुकंकिंतु नसुकमेनन् पनिजामात्रेणसाध्यसिहरसोगान नरिगुरणे Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि व्य नान्यथेति । तत एवा झोत न्व गुरण सद्भावेपि नतत्कृत मागमस्य प्रामाएवं तत्रहि गुणेभ्यो दोषाररागमभावस्तदभावाञ्च संश म विपर्यास लक्षणा प्रामाएय हया सत्वे प्रामाण्यमौत्सर्गिक मनयोदित मातएवेति ततः स्थितं प्रामा एंव मुत्पला सामन्य वि तरसा पेक्ष मिति । नापि विशय रिष्छिति लक्षणे स्वकार्येयहरण सापेक्ष मगृहीतत्रमा एयादेवज्ञाना द्विशय परिछित लक्षण कार्य दर्शनात् ननुपरिच्छिति मात्र प्रमाण कार्य नस्य मिथ्याज्ञानेपि सद्भावान् । परि छितिवि शेषंतुना गृहीन प्रमाणं विन ज्ञानं जनयतीति तदपि वाल विलसितं नहि मामा एय गृहणोत्तर काल मुत्पत्य वस्थातः परिछिते विशेषो वभासते गृ हीत पामा एयादपि विज्ञानान्निविशेष परिछेदो पलब्धः ननु परिछिनि मात्रस्य शकि कायां रजन ज्ञानेपि सावा नस्यापि प्रमाए कार्यन्व प्रसंग इति चेन् भवेदेवं येद्यथन्यियान्यप्रसह खहेत् पदोष ज्ञानाभ्यां तन्ना पो घेत तस्मा कारण दोष ज्ञानं वाधकप्रत्ययो बानोदेति नत्रस्वत एव प्रामाण्यमिनि नचैव मत्रामाएये प्याशंकनीयं तस्यविज्ञा नकारणातिरिक्त दोष स्वभाव सामग्री समये शतयोत्पत्तेः निवृति लक्षणे च स्वकार्य स्वगृहगसापेदा नातू । नहिया Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतः सति अदृष्टानुपायिकरणत्वात् प्रदीप भासुरा कारवत् अथ भवतु नामोक लक्षण लक्षितं प्रमाणं तथापि तत्मामायं नः परतोवा नता वत्स्वतः अविप्रतिपत्तिप्रसंगात् नापि परतो ऽनवस्थाप्रसंगादिति मनः इयमाशंक्य तन्निराकरणेन स्वमत मवस्थापयन्नाह नत्रामाण्यं स्वनः परतः श्वेति सोपस्कारागिहि वाक्यानिभवंति तत इदं प्रति पतन्य मभ्यास दशायां परत इति तेनप्रागुके काय निरासः नचानभ्यास दशायां परतः प्रामाएयेय्यनवस्था समानाज्ञानांतरस्याभ्यस्त विशयस्य स्वतः प्रमाणभूतस्यांगीकरणातू अथवा प्रामाण्यमुप्तन्नौ परत एव विशिष्टकारण प्रभवत्वाद्विविशिष्टका यस्येति विशय परि छिति लक्षणे प्रवृति लक्षणे वास्तु कार्ये अभ्यासेतर दापेक्षयाक्स चित्खतः परतश्वेतिनिश्चीयते ननुत्पत्तौ विज्ञानकारणातिरिक्त कारणान्तर सव्य पेक्षत्वमसिद्धं प्रामा एक स्य तदितरस्यैवाभावात् गुणाख्यमस्तीति वाग्मात्रं विधिमुखेन कार्य मुखेन वागुणानामप्रतीतेः नाप्य प्रामाण्यं स्वत एक प्रामाण्यंतु परत एवेतिपर्ययः शक्य पि वि. ति कल्पयितुमन्वयव्यतिरेकाभ्यां हित्रिरुपा लिगादेव केवलान् प्रामाण्यामुद्यमानं दृष्टे प्रत्यक्षादिवपि तैथैवप्रतिपत्त Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ↓ णा २. रागमेव प्रतीतिरित्यन्ये तेषांमत मखिलमपि प्रतीतिवाधित मितिदर्शयन्नाह कर्मवत्कर्तृकरण क्रिया प्रतीतेः ज्ञान विशय भूतं वस्तु कर्माभिधीयते तस्येवज्ञप्ति क्रियाव्याप्यत्वात् तस्येव तक तत्मा कारणं प्रमाणं क्रियाश्रमि तिः कर्ताच करणंच क्रियाच तासो प्रतिस्तस्या इति हेतौ का प्रागुक्तानुभवाच्छेषे यथाक्रमं तत्प्रतीतिइत्याननुशब्द परामर्शसचिशेषंप्रति तिर्देवैस्तु तत्व बलोथ जाते त्यत्राह शब्दानुच्चारणेपिस्वस्यानुभव नमर्थवत् य घटादिशब्दानुच्चारणेपि घटाञ्चनुभवस्तथाह्न किया योपसंर्तमुखा कारतया बभासः सशब्दानुच्चारणेपि त्वय मनुभूयत इत्यर्थः अनुमेवार्थमुपपत्ति पूर्वके पर प्रतिसा छुट माचष्टे कोबा तत्प्रतिभासन मर्थ मध्यक्ष मिचं तदेव तदा नेहेत् । कोवा लौकिकः परीक्षको वातेन प्रतिभासितुशीलं यस्य सतयो कस्तं प्रत्यक्ष मिवन् विशयि धर्मस्य विशयेजवा चारान् तदेवज्ञानमेव तथा प्रत्यक्षत्वे नपठेत् अपितिष्ठेदिव अन्यथा अप्रमाणिकत्वप्रसंगः स्यादि सर्थः अत्रोदाहरण माह, प्रदीपवत् इदमत्रतात्पये ज्ञानं खानिरिक्त सजातीययतरानपेक्षां प्रत्यक्षार्थगुणले Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 呼 वृक्षस्य जथेदानीं सविशेषेण मर्थग्रहणं समर्थयमानः तदेव स्पष्टी कुर्वन्नाह अनिश्चितोपूर्वर्थिइति ठ यः दिव्यवच्छेदेनानध्यवसित: सोपूर्वार्थ इत्यर्थः तेने हाज्ञान विश यस्या वग्रहादिगृही तत्वे पिनपूर्वर्थिलं - हादिविशय भूतावा तर विशेष निश्वया भावान् अथो कप कार एवपूवर्थिः किमन्यो प्यस्तीत्याह द्रष्टोपि तादृगिति दृष्टोपि गृहीतो पिध्या मलिता कार तयाय निर्णेतुं न शक्यते तदपि कस्व पूर्वमिति व्यप समारोपाध्यवच्छेदात् ननुभवतुनामा पूर्वार्थे व्यवसायात्मकत्वं विज्ञानस्य व्यवत्ताचं तुं न विद्मइस त्राट्ठः प्रतिभासनं स्वस्यव्यवसाय इति खस्यो नमुखता स्वो मुखता तया स्वानुभवन तया प्रतिभासनं . : अत्रदशंतमाह् अर्थस्यवनदुन्मुखः तयेति तच्छद्रे नार्यो भिधीयते यथार्थोन्मुख तथा प्रति. व्यवसायस्तथास्वान्मुखतयाप्रतिभासनं स्वस्यव्यवसोयोभवति जत्रो लेष माह घट महमात्मना नेमीत ननु मर्थमेवाध्यवस्यति नखात्मार्न मात्मानं लभ्फलं वेतिकेचित् कर्तृकर्मणोरेव प्रतीतिरित्यपरे कर्तृकर्म फ a です Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवती तिन चैतद् सिद्धं हितप्राप्तये जहित परिहाराय च प्रमारण मन्चे शयति प्रेक्षा पूर्व कारण नव्यसनितया सकलप्रमाण वादि‌द्भिर्मत्वात् जत्राट् सौगतः भवतु नाम संन्नि कशी दिव्यवच्छेदेन तस्यैव प्रामाण्यं नतदस्माभिर्निशिध्यते ननुष्य ||वसायात्मकमेवेत्यत्रनयुक्ति मुत्पश्यामः अनुमानस्यैव व्यवसायात्मनः नः प्रामाण्याभ्युपगमात् प्रत्यक्षस्यतु निर्विकल्प त्वप्यविसंवादकत्वेन प्रामाण्यो पपत्तेः इति नत्राह तन्निश्वर्यात्मकं समारोप विरुद्धत्वादनुमानवदिति तत्प्रमाए त्वेनाभ्युगतं वस्त्रितिधर्मिनिंर्देशः व्यवसायात्मकं मितिसाध्यं समारोप विरुद्धत्वादितिहेतुः अनुमान बदितिट्ट अष्टांत इति अयमभिप्रायः संशय विषयसानध्यवसाय स्वभाव समारोप विरोधग्रहण लक्षण व्यवसायात्मकत्वे सत्येवा विसवा दित्वमुपपद्यते अविसंवादित्वेच प्रमारणत्वमिति चतुविधस्यापि श्रमक्षस्यप्रमाणत्वमभ्युपगच्छता समारो पविरोधग्रहण लक्षणं निश्चयात्मकं मम्युगतं तव्यं ननु तथापि समारोपि विरोधिव्यवसायात्मकत्वयोः समानाम वाकथंसाध्यसाधनभावइतिनमंतव्यं ज्ञान स्वभावतया तयोरभेदेपि न्याय्य व्यापकत्वधर्माचार तयार्भेदोपपत्तेः शिशनाल Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकट सिहोरेतःस्वादितिचेन्न विशेष धर्मिणकत्वासामान्यहेतु अवतादोषाभावात् एतेनापक्षधर्मत्वमपित्री युतं सामान्यस्याशेष विशेषनिष्टत्वानू नच पक्षधर्मतावलेनहेतोर्गमकत्वमपित्वन्यथानुपपतिवलेनेति साचात्रनियमवती विपक्षेवधिकप्रमाणवलानिश्चितेवः एतेनविरुद्दल मनेकांतिकत्वंचानिर बोद्धव्यं वि रुद्रस्यव्यभिचारिणश्चापिनानावनिश्चयलक्षणत्वॉयोगादतौ नवत्येवसाध्यसिद्विरितिकेवलव्यतिरेकेणोपि हेनोमिकत्वात् सान्मकंजीवच्छगरंप्राणादिमत्वादित्यादिवन जथेदानीखोकप्रमाणलक्षणस्यज्ञानमिति विशेषणंसमर्थयमानःप्राह हिताहितप्राप्तिपरिहारसमयहिप्रमाणं तनोज्ञानमेवन हितसुखकारणेचा खतत्कारणेचहितवाहितंचहिनाहितेनयोःप्राविश्वपरिहारश्वतत्रसमर्थहिशब्दोयस्मादर्थतनय मसिंपादितोभवति यस्माहितप्राप्तिपरिहारसमर्थप्रमाणतत:तन्त्रमाणत्वेनाभ्युपगतंवस्तुज्ञानमेवभवितुमर्हनि ज्ञानरुपसन्निकशदितथाचप्रयोगःप्रमाणंज्ञानमेवहिताहिनपातिपरिवारसमर्थच विवापन्नंतस्मादनान Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नया त्यक्षस्यनिर्विकल्पस्य प्रत्यक्षत्वेनप्रामाण्यसोगेनेः परिकल्पितेतन्निरासार्थव्यवसायात्मकग्रहणंतथावहिरीप - होतृणां विज्ञानाहेतबादिनापुरुषाद्वैतवादिनापश्यताहरगरिशान्येकात वादिनाचविपर्यासव्युदासामर्थयद ये पंजस्यचापूर्वविशेषणंग्रहीतग्राहिधारावाहिज्ञानस्यत्र माणतायापरिहार्यमुळे तथायरीशज्ञानवादिनी मीमांसकानामरखवेदनज्ञानवादिनामांतर प्रत्यक्ष ज्ञानवादिनांपोगानांचमनमयाक खपदोपादानमित्यव्या न्य व्यसंभवदोषपरिहाणत् सुव्यवस्थितमेवप्रमाणलक्षणं अस्यचप्रमाणस्यययोकलक्षणत्वेसाध्येप्रमाणत्वा दिनिहेतुःजत्रेवदृष्टव्यः प्रमातस्यापिहेतुपरलेन निदेशपपत्तेः प्रत्यसविशदज्ञानमित्यादिवन नथाहि प्रमाणंसापूर्वार्थव्यवसायात्मकंज्ञानभवनिप्रमाणत्वान्यनुस्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकंज्ञानंनभवतिननलमाण यथासंशयादिघटादिचप्रमाणेचविवादापन्नंनस्मात्यापूर्वार्थव्यवसायात्मकंज्ञानमेवभवनीनि नचप्रमाणात्वमसि ई सर्वपमाणस्वरुपवादिनांप्रमाणसामान्येविप्रतिपनिभावान् जन्यथालेष्टानिष्टसाधनदूषणायोगान् जथध | Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवाक्यस्य नमस्कार परता निधीयते अर्थस्य हेयो पाट्र्य लक्षण संसिद्दिज्ञप्तिभवति कस्मात्प्रमाणा दि तुष्टय स्वरुपां तरंगलक्षणदिस्वभावा बहिरंग लक्षणाच लक्ष्मी माइत्युच्यते अरगनमा रणः शब्दः माचआ गश्च माणो प्रकृष्टो भाणो यस्यासोप्रमाणः हरि हराध संभवि विभूतियुक्ते दृष्टष्टा विन हुवा भगवान् हन्ने निधीयत इत्य साधारण गुणो पदर्शन मेव भगवतः संस्त्रवन मनिधीयते तस्मा प्रमाणावधिभूतादर्थसं र्भवति तदाभासाञ्च हरिहरादेरयसिद्धिर्न भवति इतिहेतोः सर्वज्ञ नदा भासयो लक्ष्मलक्षरण महंबक्ष्ये -विशेषे त्या दिना जथेदानीं मुपक्षिप्त प्रमारग तत्वे स्वरुप संख्याविशय फल लक्षणा सुचतसृषु विप्रति यु मध्ये स्वरुप विप्रतिपति निराकरणार्थमाह् स्वापूवर्थि व्यवसायात्मिकंज्ञानं प्रमारग मिति प्रकशेन संश व्यवच्छेदेन मीयते परिछिद्यते वस्तुतत्वं येन तस्मारणं तस्य चज्ञान मितिविशेषरण मज्ञानरूपस्य संन्निक नैय्यायिकादि परिकल्पितस्य प्रमारगल व्यवच्छेदार्थमुक्तं तथाज्ञानस्यापि स्वसंवेदनेन्द्रियमनोयोगिक Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदिति सत्यं प्रमाण तदाभास पदो पादानात्तदभिधेयम निहितमेवप्रमा ण्तदाभासयोरनेन प्रकरणे नाधाय न वंधश्वार्थः यातः प्रकरणत दो निधेय योवच्य वाच्यक भावलक्षणः प्रतीयत एव तथा प्रयोजनं चोक लक्षणं मा दि लक्षये श्लोके नैव संलक्ष्यते प्रयोजनं हि द्विधा भिद्यते साक्षात् सर पस्येति तत्र साक्षात् प्रयोजनं वक्ष्यते ना निधी यते शास्त्र व्युत्पन्नैरेव विनेयेरे । न्वे क्षणात् पारं पर्येशातु प्रयोजन मध्य संसिद्धिरित्यनेनोच्यते शास्त्र व्युत्पन्ना तर नाविश्वात अर्थ से सिद्धेरिति ननु निःशेष विद्मोपशमनाये ष्टदेवता नम रकारः शास्त्र कृता कथंन कृत इति नवा व्यं तस्य मनः का याभ्यामपि संभवात् अथवा वाचनिको पिनमस्कारो नेनै वा दिवाक्ये नाभिहितों वेदितव्यः कांचिद्वाक्यानामुभयार्थप्रतिपादन परत्वेनापि दृश्य मानत्वात् यथाश्वेतोधावति इत्युक्ते श्वाइतो धा वति श्वेन गुण युको धावति इत्यर्थद्वय प्रतीतिः तत्रागत्वम सिद्धं सर्वप्रमाण स्वरुप वा दिनां प्रमाण सा मान्यविपति पति नावातू अन्यथा खेष्टानिष्ट साधन दूषणा योगात् जथधर्मिण एवहेतुत्वे प्रतिज्ञा क Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाधवमतिकृतमिहगृह्यतेनपरिमाणकत नापिकालहतंतस्यप्रतिपाद्यत्वव्यभिचारातू कयोस्खलक्ष्मतयोः प्रमाणनदानासयोकुतः यतीर्थस्यपरिच्छेयस्यससिद्विःसंप्राप्तिर्वानवनिकस्मान प्रमाणातू न केवलं ससिद्विवति विपर्ययोर्भवति अर्थसंसिद्विनावो नवनि कस्मातदाभावात् इतिशब्दोहेत्वथे इतिरे तो:अयमत्रसमुदायार्थः यतःकारणातू प्रमाणादर्थससिद्धिर्नवति-यमाञ्चनदानासाद्विपर्ययो भवति देतोलयोप्रमाणनदानासयो लक्ष्मलक्षणमहंवक्ष्ये ननुसंवेधानिधेयशक्यानुष्टानेष्ट प्रयोजनवंति शास्त्राणि नवंनि तत्रास्यप्रकरणोवन् निधेयंसंबंधोवानानिधीयते ननावदेस्योपादेयत्वे भवितुमर्हति वंध्यासुनोयानिइत्यादिवाक्यवत् दशदाडिमादिवाक्यवच्च नथाशक्यानुष्टानेष्ट प्रयोजनमपिशालादाव यवतव्यमेव जशक्यानुष्टानुष्टानस्य इष्टप्रयोजनस्यसर्वञ्चरतरनाकडालालंकारोपदेशस्येवप्रेक्ष्म नादरणीयत्वान् ।तथाशक्यानुष्टानस्याप्यनिएप्रयोजनस्यविदिरखधीरणान् मातृविवाहादिप्रदर्शकवाक्य Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीवीतरागायनमः॥उँनमःसिटेन्यः। नतामरशिरोरत्नप्रभारोतनखलिये गनमोजिनायटुरिमारवीरनखछि विदे॥१॥जकलंकवचोभोधेरुदधेयेनधीमता। न्याय विद्यामृतेतस्मनमो माणिक्यनंदिने गणनेदुवचनोहारचा दिकाप्रकरे सति ।मादृशाधनुगण्यन्नेज्योतिरिगण सन्निनाः॥३॥तथापितहचो पूर्वरचनारुचिरंसतांगचेतोहरे मृतयहन्नधानव घटेजलम् ॥४गजेयप्रियपुत्रस्यहीरयस्योपरोधतः। शंतियेणार्थमारश्वा परीक्षामुखपंचि का॥५॥श्रीमन्यायावारपारस्यामयप्रमेयख्नसारस्यावगाहनमव्युप्तन्ने क पार्य्यतेइनिनदवगाहनायमीतप्राय मिदंप्रकरणमाचार्यःप्राह तत्प्रकरणस्यचसंबधादित्रयापरेशाने प्रक्षावतांप्रवृतिर्नस्यादिति तंत्रयानुवादपुरस्सरी वस्तुनिदेशपरंप्रतिज्ञाश्लोकमाह प्रमाणदर्थससिद्विलदाभासाद्विपर्ययः इतिवक्ष्यतयालक्ष्मसिद्धमल्मला - घायसः इत्यस्याःजहवक्ष्येप्रतिपादयिथे किनलक्ष्मलक्षण किविशिष्टलक्ष्मसिद्ध पूर्वाचार्यप्रसिद्ध वान् पुनरपि कयंबूनमेल्पमल्पग्रन्थवाच्यत्वात् संथतोसमर्थनस्तु महदियथः कान्लघीयसोविनेयानुद्दिश्य Page #640 --------------------------------------------------------------------------  Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ततकिंभवतः अभिमतनेत्याह यद्यपिकचियपदेशादिभेदहेचपेक्षमायादन्येनयापि नदव्यतिरेकात्तत्परिणामाच्चनान्योयमउन्मत्तीका परिणामति तनिश्वयार्थ मिरमु आते धर्मादीनिळ्याशियेनात्मनामवंतितावः तत्वंपरिणामति माग्यायते सहि विधी नादिरादिमाश्वतत्रानादिर्धमादीनांगत्युपग्रहादिसामान्यापेक्षयामरावादिमानमवनिवि शेयापेक्षया॥॥इति तत्वार्थरतौसर्वार्थसिद्धिसैनिकायोपंचमोध्यायःसमाप्तः॥५॥ Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोकं व्याप्पावस्थिताः उक्तं चलो या का सज्ज दे से ए के जे विदा हु ए के कारदास रासी विवने का ला मोदवरूपा दिगुण विरहाद मूर्ती वर्तना लक्षणस्य मुख काल स्वप्रमाग मुक्तं परिणामादिग स्पस्प व्यवहार कालस्य किं प्रमाण मित्तिभ्मत इदमुच्यते ॥ सेनंतसमयः॥ सांपत्तिक स्पैकसमयि कल्येष्पत्तीतानागताश्च समया तातीता । इति क वामनंत समयइत्युच्यते अथवा मुख स्पै व कालस्य प्रमाणावधारणायेमिदमुच्यते अनंतपर्याय वर्तना हेतुत्वादे को पिकाला सुरनंतर सुपचर्यते समषः पुनः परमनिरुद्धः काली शस्त्रत् प्रचयविशेषभ्मावलि कादिर व गंतव्यः माहगु पर्ययवद्रव्यं इत्युक्तं तत्र के गुण उत्पचोच्यते ॥७॥ आन् या निर्गुणागुणाः॥ इव्यमाश्रयेोये यांने इमाच्चयानिः कोंतागुणेम्पो निर्गुणाए वे उभय लक्षणोपेता इति निर्गुण इतिविशेषणं एका दिनिवृत्यर्थतान्यपि हि कारणभूतपरमाणुव्याश्न या गुिणचंतितत्तस्मा र्निर्गुणाइतिविशेषणा तानिनिवर्तितानिभर्वति ननुचपर्यायामपिघरसंस्थानादयो व्याश्रयानिर्गुणाश्रतेषाम पिगु एवंप्राप्नोतिः दूव्माश्रयारति वचनान्नित्यं दूव्यमा स्रत्य वर्ते ते यतेगुणाइतिविशेषण खात् पर्यायाश्वनिवर्तिता भवंति तेहिकादाचित्का इतिभ्मास कत्परिणाम शब्द उक्तः तस्य कोर्थर निपहने उतरमाह ७ तावपरिणामः अथवा गुणा इव्यादी नरभूता इति केषां चिदर्शनं 7 Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त् व्यपोदयौपरवत्ययौ अगुरूलघुगुणरविहान्यपेक्षयास्वपत्ययौच तथागुणाअपिकालस्पसा धारणासाधारणरूपाःसंतितवासाधारणा वर्तनाहेतुत्वंसाधारणश्वाचेतनत्वामूर्तत्वास्तक्ष्म वागुरुलघुत्वादयःपर्यायाश्चव्ययोत्यादलक्षणायोज्याः तस्मातदहिसकारलक्षणोयेतत्वात॥ आकाशादिवतकालस्पइव्यवंसिइंतस्यास्तिवलिंगंधादिवतव्याव्यातंवर्तनालक्षणःका लइनिननुकिमर्थमयंकालःपथगुच्यते ननुयवधारयः तत्रैवायमयिवक्तव्यःमजीव कायाधम्माकाशकालरतिपुद्धलारतिनैवंशवतत्रोपदेशेसतिकायत्वमस्पस्यात् नेव्यतेचम य्योपचारपदेशपचयकल्पनाभावान धम्मादीनांतावतमुख्यपदेशपचयउक्त मसंरव्येयापदे शारस्येवमादिनामणोरप्येकदेशस्यपूर्वोतरमावधज्ञापननयापेक्षयाउपचारकल्पनयापदेश अचय उक्तः कालस्पचपुनःविधाषिप्रदेशषचयकल्पनानास्तीत्यकायत्त्वे अपिचत्रपाठेनिःकि याणिचेत्यवधमोदीनामाकाशातानांनिःक्रियखेतिपादितेस्तरेखाजीवपुलानासकियत्व शाप्तिस्तावनकालस्यापिसक्रियत्वंस्यात् अथाकाशातपाकाल उद्दिश्यतेमा माकाशादेकड्या गीतिएकदव्यत्वमस्पस्यात् तस्मात्यथगिहकालोपदेशःक्रियते अनेकद्रव्यखेसतिकिमस्पन मागलोकाकाशस्पसावंतः पदेशाःतावंतःकालावनिःक्रियाएकै काशःप्रदेशेएकैकरस्या Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसंकरखसंग-स्यात तद्यथाजीवःपुगलादिभ्यःज्ञानादिगुरवीशय्यतेषुगलादयश्वरूपादिभिः ततश्राविशेषेसंकरस्यात् ततःसामान्यापेक्षयान्वपिनोज्ञानादयोजीवस्यगुणाः युद्धलादीनांचरू पादयतेस्रोविकारादिशेत्रात्मनाभिद्यमानाःपयायःघदज्ञानंपटज्ञानंक्रोधोमानःबीगंधः तीनो मंदस्त्येवमादयः तेम्पा अन्यखकथंचिदापद्यमानःसमुदायोदव्यव्यपदेशभाक. यदिहिसर्वथा समुदायोऽनोत्तरभूतमेवस्यात सर्वाभावःस्पात तथथापरस्परविलक्षणानांसमुदायेसतिरा कानातरभावात्तमुदायस्यस मावापरस्परतो.तरभूतत्वाध्यदिदंरुपंतस्मादीतरभूतारसा दयः ततःसमुदायोप्रोतरसूतःयश्वरसादिभ्योतिरभूतातरूपादनातरमत्तःसमुदायासक थरसादिभ्योतिरमतोनभवेताततश्चरुपमासमुदायः प्रशक्तानेचैकरूपंसमुदायोमवित् “मर्हति ततःसमुदयाभावाचतदनतिरभूतानांसमुदायिनामप्पभावरतिसर्वाभावःएवरसादिक्ष पियोज्यं तस्मात्समुदायमिछताकथंचिदर्थातरभावःशयितव्यः उक्तानीव्याण्णांलक्षणनिर्देशान तद्दिषयावव्याध्यवसायेषशक्ने अनुक्तव्यसंरचनार्थमिदमाहाकालन्याकिंव्यमिति वावाशेयःकुतस्तलक्षणोपेतखातदहिविधलक्षणमुक्तंउसादव्ययध्रीव्ययुक्तं सत्गुणपर्ययव व्यमितिचतदुभलक्षणकालस्पविद्यते तद्यथाः ध्रौव्यंतावत्कालस्यखात्ययस्वभावव्यवस्थाना Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योवंधोव्याख्यातः नसमगुणविषयइत्यतमाहः॥॥वंधेधिकोपारिणामिकाचाआधकारा दशब्दःसंवध्यते अधिकगुरगावधिकावितिमाचांतरोपादानंपारिमिककलैक्लिनगुरवत् यथालिनागुडोधिकमधुररसः पतितानारेरावादीनांस्वगुणोपादनात्यारिणामिका तयाम न्याय्यधिक गुणअल्पीयसःपारिणमिकरतिरूवादिगुणादिरिनग्धरक्षस्यचतुर्गणदिरिलो ग्धरक्षणामिकोमवति ततःपूर्वावस्थापच्यवनपूर्वकंतातीपीकमवस्थातरंपादर्भवतिरत्येक बमुपपद्यते इतरथाहिएलकनतंतुवत संयोगेसत्यपिअपरिणामिकत्वात्सर्वविविक्तरू पेणैवावतिष्ठते उक्तनपारिणामिकत्वेनविधिनावंधेषुनःसतिज्ञानावरणादीनांकमणाविंशः सागरोयमकोटीकोट्पादिस्थितिरुपयन्नाभवति उत्पादव्यपध्रौव्ययुक्तं सदितिव्यलक्षणमुक्त पुनरपरेणषकारेणव्यलक्षणपतिपत्यर्थमाहराछ।गुणपर्ययवल्यागुणाश्चपर्ययाश्चगु पर्ययाशतेस्यसंतीतिगुणपर्ययवद्व्यं अनसतोरुत्यत्तायुक्तावसमाधिः कथंचिद्भेदाभेदो पपतेरिति के गुणा केपर्यया: अन्नयिनोगुणाव्यतिरेकिरणःपर्यायाउभयैरुपेतंव्यमिति उन च गुणरतिदवविधादवविकारोछपजर्जमाणदो तेहि मारणेदवं अजुदयसि ईवदिनिच मिदं एतदुक्तं भवति इव्यंयोतरायेनविशिष्यतेसगुणस्तेनहितव्यविधीयते असतितस्मिंद Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंशशमहणकिमर्थगुणवैषम्येवंधपतियत्यर्थ सरशनहर्णक्रियते नतोषियमगुणानी तु ल्यजातीयानांमतुल्पजातीयानांचननियमेनबंधषशक्तावशिष्टार्थसंपत्ययार्थमिदमुच्यते॥२॥ यधिकादिगुणानांतु॥हाभ्यांगुणाभ्यामधिकाधिकाकःपुनरसोचतुर्गुणा मादिशाप्रकारार्थः । कापुनरसौप्रकारर्थःयधिकतातेनत्रिगुणापंचगुणादीनांसंप्रत्ययोभवति तेनाधिकादिगुणानी नुल्यजातीयानामतुल्यजातीयानांचवेधउक्तोमवतिानेनरेतयथादिगुणनिग्धस्यपरमाणोः एक गुणनिधेिमहिगुणरिनन्धेननिगुणनिग्धेनपानास्तिवंधाचतुर्गुणरिनग्धेनयुनरस्तिवंधः तस्यैवयु नःहिगुणस्निग्धस्पपंचगुणरिनग्धेनवटसम्राटसंख्येयासंयासंख्येयानंतगुणस्निग्धेननबंधी स्तिएवंचिगुणरिनग्धस्यपंचगुणारिनग्धेनवंधोस्ति शेयःपूर्वोत्तरैज्रमवति चतुर्गुणास्निग्धस्पषद्ध । गरिलग्धेनमस्तिबंधाशेःपूर्वोत्तरै स्तिएवंशेषेवपियोज्यस्तथाहिगुणस्तस्यएकद्विवियु गानीस्तिवंधः चतुर्गुणरुक्षेणवस्तिवंधः तस्यैवहिगुणरुक्षस्यपंचगुणरक्षादिभिःउत्तरेत्री स्तिवंध एवंविगुणरक्षादीनामपिहिगुणाधिकैर्वधीयोज्यः एवं भिन्नजातीयेवपियोज्यः उक्तंच णिस्सािहेणदराधियेणलुखस्सलुखेणदुराधिकणणि इस्सलुखेणउवेदिवंधोजरणवजाति समेसमेवातुसदोविशेषणार्थःप्रतिवेधंच्यावर्तयतिबंधंचविशेषयति किमर्थमधिक गुणविय Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरावोःपरस्परम्लेक्लक्षणेवंधेसतिघणुकस्कंधोभवतिएवंसंख्येयासंख्येयानंतप्रदेशस्कंधो योज्यः तबस्नेहगुणाकडिविचतुःसंख्येयासंख्येयानंतविकल्पःतथारुक्षगुणोपितःपरमा रणवःसंतियथा तोयाजागोमहिषीउदीक्षीरघतेमुनिग्धगुणःप्रकोषकगापवर्ततेषांक गिकाशर्करादियुचरुक्षगुणोडयः तथापरमाणुस्वपिरिनग्धरक्षगुणयोईनिःषकर्यापकर्वे गानुमीयतेरिनग्धरूलगुणनिमितेवंधे प्रविशेषेश अनिष्टगुणनिरत्यर्थमाह॥॥ न जघन्यगुरानोजघन्योनिकटगुणोभागःजघन्योगुणोयेयोनेजघन्यगुणाः नेयाजघन्य गुणा नांनास्तिवंधः तद्यथाएकगुणालिग्धस्यएकगुणनिग्धेनद्यादिसंरव्येयासरव्येयानंतगुणस्नि धेनवानास्तिवंधःतस्पचैकगुणास्निग्धस्यएकगुणारतक्षेणयादिसंरव्येयासंख्येयानंतगुणारत क्षेावानास्तिवंधानथाएकगुणरक्षस्पापियोज्यमिति एतौजघन्यगुणरिनग्धरुक्षौवर्जयित्वा अन्येारिनग्धानोरक्षाणांचपरस्परेणवंधोभवतीत्यविशेषेणषसंगेतत्रापिषतिषेधविषय रख्यापनार्थमाह॥॥गुणसाम्पेसहशानांसहशाहणतुल्य जातीयसंजत्ययार्थगुणासाम्यग्नह तुतुल्यभागसंप्रत्ययार्थ एतदुक्तंभवतिहिगुणस्निग्धानाद्विगुणरूक्षेत्रिगुणरिनग्धानांत्रिगुणरू क्षैः द्विगुणनिधानांहिगुणनिग्धैर्डिगुणरुक्षाणांदिगुणरुश्रेत्येवमादियुनातिवंधरति यद्ये Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपयोजनाभावात् सतोप्यविवक्षाभवतीत्युपसर्जनीभूतमनर्पितेरत्युच्यते अतिंचमनर्पित चमर्थितानर्वितेताभ्यासिद्धिः तस्यार्यितानर्पितसिदेनीस्तिविरोधः नद्यथाएकस्पदेवदतस्स पितायचोभातामागिनेयःतिरावमादयःसंबंधाजनकत्वजन्यखादिनिमितानविरुध्यते अर्य गाभेदात् पुत्रापेक्षयाषितापित्रयेसयापुत्ररत्येवमादितथाव्यमपिसामान्याप्पणयानित्यंवि शेयायेणयानित्यमितिनास्तिविरोधः तौचसामान्यविशेयोकथंचिद्भेदाभेदाभ्याव्यवहारहेतूभ वतः माहसनोनेकनयव्यवहारतंत्रत्वात, उपपन्नामेदसंघातेभ्यः सतांस्कंधानामेवोत्पतिरि रिंतुसंदिग्धःकिंसंघातःसंयोगादेवधणकादिलक्षोभवतिउत्तकविहिशेयोपनियतरत्युम. सनिसंयोगवंधादेकत्वपरिणामकारसंघातान्निय्ययतेपयेवमिदमुच्यतो कुनोनुखलुयुद्ध । लजात्यपरित्यागेसंयोगेचमवतिकेमांचिहंधोप्यन्येयांचनेत्युच्यते यस्मातेयांपुगतात्माविशेये प्पनंतपर्याणांपरस्परविलक्षणपरिणामाहितसामर्थ्यात्मवन्यनीतः॥स्निग्धरमतत्वाइंधःयाह्या भ्यंतरकारणवशातलेहपर्यायाविर्भावातस्निग्धतेस्मिन्नितिस्निग्ध तथारूक्षणाक्षःस्लिपवरू। क्षअस्निग्धरूक्षौनयोर्भावःनिग्धरु क्षत्वरिनग्धत्वैचिकिणगुणलक्षणषयीयः तद्विपरीतपरिणा मोरक्षवस्निग्धत्वरुक्षत्वादिनिहेतुनिर्देश-तत्कुतोवंधोयणकादिपरिणामःहयोःस्निग्धरुक्षयोः Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पर्थः उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् उत्पादव्ययध्रौव्याकमितिपावत् एतदुक्तं मवति उपादारी नोत्रीणव्यस्यलक्षणनिदव्यलतबयर्यायाधिकनयापेक्षयापरस्परतोट्याचार्यात रभावः व्यर्थिकनयायेक्षयाव्यतिरेकेणानुपलब्धेरनर्यातरभावतिलस्यलक्षणभावा भावसिद्धिः माह नित्यावस्थितान्यरुपाणीनियुक्तं तबनज्ञायते किंनित्यमित्यत माह॥॥ तद्भावाव्ययंतेयंगतदावइत्युच्यतेकस्तब्दावःपत्यभिज्ञानहेतुता तदेवेदमित्तिस्मरणांप्रत्यभि ज्ञानंतदकस्मानभवतेतियोस्यहेतुःसतभावःभवनंभावःतस्पभावस्तद्भावःयेनात्मनापारहवं वस्तुतेनैवात्मनापुनरपिभावात्तदेवेदमितिपत्यभिज्ञायतोयद्यत्यंतनिरोधोभिनवधादुर्भाव मात्रमेवपास्यात् ततस्मरणानुपपत्तिः तदधीनोलोकःसव्यवहारोविरुध्यते ततस्तदायेना 'व्ययंनित्यमितिनिथ्वीयते तत्कथंचिडेदितव्यंसर्बथानिस्यत्वेअन्यथाभावाभावात्संसार-त. द्विनिकतिकरण प्रक्रियाविरोधस्यात् ननुश्दमेवविरुईतदेवनित्यं तदेवानित्यमितियदिनिर्यव्य योदयाभावात्मनित्यत्ताव्याघातप्रथानित्यमेवस्थित्यभावान्नित्यत्ताच्याघात्तरतिनैतदिलं ईकुतः॥॥अर्पितानर्षितसिडेः॥भनेकात्मकस्यवस्तुनःप्रयोजननशावशायस्यकस्यचित् धर्मस्पविवक्षयापापितषाधान्यंअर्पितमुपनीतमभ्युपगतमिनियावत तद्धिपरीतमनNि Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 -पिकश्चिवालयःकश्विरचाक्षुष तवयोचाक्षयासकथंचाक्षयोभवतीतितेच्यतेमेरसंघा. ताभ्यांचाक्षुषः नभेदादितिकातनोपपत्तिरितिचेद्रमासक्ष्मपरिणामस्पस्कंधस्यभेदेसौम्याय रित्यागादचाक्षुषसमेनसौक्ष्मपरिपातःपुनरपरःसत्सेपितद्भेदेन्यसंघातीतरसंयोगासौम्य परिणामोपरेमेस्थौल्यौत्पतीचाक्षुषोभवति माहधर्मादीनांग्याविशेषलक्षणयुक्तानि ? सामान्यलक्षानोनितव्येकिंसदित्यत माह॥५॥सव्यलक्षणमितिमयसत्तव्यमित्यर्थः पयेवंतदेवत्ताबडतव्यकिंसदित्यत्त माह॥॥उत्पादव्ययश्रीव्ययुक्तंसत।चेतनस्यांचतनस्यवा द्रव्यस्यस्वाजातिमजहतः निमितवशाद्भवांतरावाप्ति उत्पादनमुत्यादःस्पिंडस्पघटपर्यायवत. तयापूर्वभावविगमनेव्ययः यथाघदोत्यत्तौपिंडाकतेः अनादिपरिणामिक स्वभावेनव्ययोद याभावानध्रुवनिस्थिरीभवतिरतिध्रुवःध्रुवस्यभावःकर्मवाधौव्यं यथाम्रपिंडघदाद्यवस्था सुम्पदाद्यन्वयात् तैरुत्यादव्ययप्रौर्युक्तं उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सदिति माहभेदेसत्तियुक्तशदो दयः दंडेनयुक्तोदेवदतरतितयासतियांत्रयाणांयुक्तस्यव्यस्यचप्रभावःसानोतिनैयदोषः अभेदेपिकथंचिद्भेदनयापेक्षयायुक्त शब्दोहयः यथासारयुक्त स्तंभरते तयासतियां मविनाभावातसयपदेशोयुक्तः समाधिवचनोपायुक्तशदायुक्तसमाहितःशानदात्मकर । Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहकिमेवांपुगलानांचरणस्कंधलक्षणःपरिणामोनादिरूतमादिमानित्युच्यतेसबलू त्यतिमलादादिमानचतिज्ञायते यद्येवंतस्मादभिधीयतांकरमानिमित्तादुत्पतरतितत्रस्कंधा नांतावदुत्पतिहेतुपतिपादनार्थमुच्यते॥शाभेदसंघानेभ्यउत्पद्यते॥संघातानीहितयनिमि नवशाद्विदारणभेदः एथग्भूतानाएकखापतिःसंघाताननुचहित्वातद्विवचनेनभवितव्यंव हुवचननिर्देश तत्तीयसंग्रहार्थःभेदात्संघानानभेदसंघाताभ्यांचउत्पद्यतरतितद्ययाद योःपरमाएवोःसंघातातदियदेशस्कंधउत्पयतेहिवदेशस्यागोवत्रयाणांवा अरणनीसंघा वे तातपदेश दयोः हिवदेशयोस्वपदेशपायोश्चतुर्णाचाानीसंघाताचतुः प्रदेशएवंसंरव्ये यसंख्येमानं तानां अनंतानंतानांनसंघातातावत्यदेशराबामेवभेदात् हिपदेशपर्यताःस्कंधार त्ययंतेएवं भेदसंघाभ्यामेकसमयिकाभ्यांहिवदेशादयःस्कंधाउत्पद्यते अन्यतोभेदेनान्यस्यसं घातेनेति एवंस्कंधानामुत्पतिहेतुरुक्ताअगोरुत्यति हेतु दर्शनार्थमाहा॥भेदादणुः॥ सिद्धेविधिरारम्पमागोनियमार्योभवति मगोरुत्पतिभेदादेवनसंघातात नापिभेदसंघाता भ्यामिति माहसंघातादेवस्कंधानां मामलामेसिडेभेदसंघातग्रहणमनर्थकंरति नगुह एषयोजनपतिपत्यर्थमाह॥शाभेदसंघापांचाक्षुयः॥ अनंतानंतपरमाणसमुदायनिण्यायो Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिकश्चिवालयःकश्विदचायतचयोचाक्षयासकथेचाक्षयोभवतीतिनेच्यतेमेरसंघा साभ्यांचाक्षुषः नभेदादिनिकातनोपपत्तिरितिचेडूमःस्रक्ष्मपरिणामस्पस्कंधस्यभेदेसोभ्याय रित्यागादचाक्षुषत्वमेवसोमपरिपात पुनरपरःसत्येपितद्भेदेन्यसंघातीतरसंयोगानसौम्य परिणामोपरेमेस्थौल्यौत्यतीचाक्षुषोभवति माहधर्मादीनाइल्याणांविशेषलक्षणयुक्तानि सामान्यलक्षणंनो तडककिंसदित्यतमाह॥५॥सव्यलक्षामितिगयत्सत्तव्यमित्यर्थः पयेवंतदेवतावरक्तव्यंकिंसदित्यतमाह।।।उत्पादव्ययधीव्ययुक्तसत्॥चेतनस्यचितनस्यवा द्रव्यस्यस्वाजातिमजहतः निमितवशावांतरावाप्ति उत्पादनमुत्पादारथिंडस्यघटपर्यायवत् नयापूर्वभावविगमनेव्ययः ययाघटोत्पत्तौपिंडाकतेः अनादिपरिणामिक स्वभावेनव्ययोद याभावान ध्रुवनिस्थिरीभवतिरतिध्रुवःध्रुवस्यभावःकर्मवाधौव्यं यथाम्रपिंडघदाद्यवस्था सम्पदाद्यन्वयात् तैरुत्यादव्ययध्रौर्युक्तं उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तंसदिति माहभेदेसतियुक्तशदो दयः दडेनयुक्तोदेवदतरतितयासतिनेयांत्रयाणांयुक्तस्पद्व्यस्पचप्रभावःयानोतिनैयदोयः नभेदेपिकथंचिद्भेदनयापेक्षयायुक्तशब्दोहरः यथासारयुक्तस्तंभश्तेतयासतियां मविनामावातसयपदेशोयुक्तः समाधिवचनोवायुक्तशदायुक्तसमाहितः तदात्मकर Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...वारसः स पंचविधः ति काम्ल कटु मधुरकषायभेदात् गंधध्यतेगं धनमाचंवागंधः स द्वेधासुरभिर -सुरभिष्व वर्ण्य तेवर्णन मात्रं वा वर्णः स पंचविधः क घ्ननीलपीत पुललोहितभेदान् तराने मूलमेदाः प्रत्येकं संख्ये या संख्ययानंतभेदाच्च भवंति स्पर्शश्वरसव गंभश्व वर्णश्वस्पर्शरसगंधवणीः तरा तेषां संतीति स्पर्शरसगंधवर्णावंत इति नित्प योगे चतनिर्देशः यथाक्षी रियोन्यग्नोधा इति ननु च रू पिणः बुडला इत्यत्र पुद्धलानां रूपवत्त्वमुक्तं तदविनाभाविनश्चरसादयः तत्रैवपरिग्रहीता इति व्याख्या तं तस्मातेनैव युद्धलानां रूपादिम त्वसिद्धेः सवमिदमनर्थक मितिनैष दोषः नित्यावस्थितान्यरूपा गीत्यत्रधम्म दीनां नित्यत्वादिनिरूपणेन युद्धला नामरूप त्वश्च संगेत दया करणार्थ तदुक्तं इदं तु ते यस्वरूपविशेषप्रतिपत्यर्थमुच्यतेभ्प्रवशिष्टपुद्गल विकारप्रतिपत्यर्थमिदमुच्यते ४५॥शब्दवं 'सैम्य स्थेय संस्थानभेदत्तमस् छायातपोद्योतवं तव । शव्दो द्विविधोभा बाल क्षणो विपरी वेति भाषा लक्षणो द्विविधः साक्षर अनक्षरम्श्वेति मक्षरीकृतः शास्त्राभिव्यंजकःसंस्कत विपरीत मेदार्यम्ले व्यवहार हेतुः मनक्षरात्म कोई डिया दीनां अतिशय ज्ञान स्वरूप प्रतिपाद नहेतुः सएव सर्वः प्रायोगिकः प्रभाषात्मको द्विविधः प्रायोगिको वैध्य सिकवेतिवै सिकोव लाह का दिप्रभावः प्रयोगजश्व तु द्वीत्तत वित्तत घन सैषिरभेदात्तचवर्म्मत्तत्तननिमितः पुष्करभे Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दी दर्दुरादिप्रभवः ततः तंत्री कृत वीणा सुघो बादिसमुद्भवविततः ताल घंटा लालनाद्यभिघा तजः घनः वंश शंखादिनिमितः सैयिरः बंधोहि विधः वैष्न सिकः प्रोयोगिक व पुरुषप्रयो गानपेक्षा वैश्यसिकः तद्यथा स्निग्धरूक्षत्वगुणानिमितः विद्युदुल्का जलधरा ग्निंदू धनुरादि विषयः पुरुष योगनिमित्तः प्रायोगिकः भ्मजीवविषयो जी वा जीव विषयश्चेतिद्विधाभि न तवाजीव विषयः जनुकाष्टा दिलक्षणः जीवा जीवविषयः कर्मनो कर्मबंध ः सौरपंडिवि समापेक्षिकंचनची त्पं परमाणू नापेक्षिकं विल्वा मलक बदादीनां स्थौल्यम पिहिडि विधं त्यमापेक्षितं चेतितत्रत्यं जगद्यापि प्रन्यवोक्तं सिम्हा स्कंधे प्रापेक्षिकं चवदरामल क विस्वतालादिषु संस्थान माकृतिः तत् द्विविधमित्यलक्षणमनिस्यलक्षणं चेतिवत्तन्यस्त्र चतुरखायत्त परिमंडलादित्यं लक्षणां मतोन्यत्त् मे घादीनां संस्थानमनेकविधं इत्यमिति निरूपणाभावादनित्यं लक्षणं भेदः खोदा उत्कर चूर्ण बंड चूर्ण का पतरा गुचदनविकल्पात् तत्रोत्करः काय्यादीनां कर यत्रादिभिरुक्कर चूरण यवगोधूमादीनां शक्तुकणिकादिः खं डोघो दीनां कपाल शर्करादिः चूर्ण का मात्र मुद्दादीनां जत्तरो अपटलादीनां म चटर्न संतप्ताय स्पिंडादिषु म यो घनादिषु अभिहन्यमानेषु स्फुलिंग निर्गमः तमोर टिपतिवं Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धकरणंघकाशविरोधि छायाधकाशावरणनिमितासाद्देधावर्णादिषकारपरिणतापतिवि वमानामिकाचेनियातपादित्यादिनिमितउनबकाशलक्षण उद्योनार्चमणिस्वद्योता दिवभवःषकाशः तएतेशदादयःपुलव्यविकारास्तगतेयांसतीतिशदवंधसोक्षपस्या यसंस्थानभेदतमः छायाद्योततयोवंतःपुगलारत्यभिसंवंध्यतेचशब्देनो नोदनाधभिघा तादयः पुदलपरिणामामागमेनसिद्धाःसमुच्चीयंते उक्तानांपुगलानांभेदपदर्शनार्थमाह ॥त्रणवःस्कंधावाबदेशमानमाविस्पर्शादिपर्यायषसवसामर्यनारायंतेशचंतेति . भगवःसाक्षम्यादात्मादयःमात्मामध्यामात्मांताश्च उक्तंच प्रतादिमतमज्जनतंतनेव रंदियगेजु जंदवअविभागीतपरमाणुवियाणाहि स्थूलमावेनग्गहण निक्षेपणादिव्यापार स्कंधारतिसंज्ञार्यतेरुदौक्रियातचित्सत्तीउपलक्षात्वेनाप्रीयतरतिग्रहणादिव्यापारायो ग्येवपियाकादियुस्कंधारव्यासंज्ञापवर्तते अनंतभेदायियुगलाअजात्यास्कंधजात्या चदैविध्यमापद्यमानाःसर्वेश्रयंतरतितजासाधारानंतभेदसंसाचनार्थवरवचनक्रियत्नेश वास्कंधारतिभेदा विधानपूर्वोक्त सत्रयमेदसंबंधनार्थस्पर्शरसगंधवर्णवतोणवःस्कं धाम्युनःशनबंधसोमयस्यौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातयोद्योतवंतश्वस्यादिवंतति Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'माहकिमयांपुगलानां अणुस्कंधलक्षणःपरिणामोनादिरूतादिमानित्युच्यतेसबलू। , त्यतिमखादादिमान्पतिज्ञायतेयद्येवंतस्मादभिधीयतोकस्मानिमित्तादुत्पयंतरतितवस्कंधा नांसावत्यतिहेतुपतिपादनार्थमुच्यते॥॥भेदसंघानेभ्यउत्पयंते॥संघातानाहितयनिमिः तवशाहिदारणभेदः पथग्भूतानाएकखापतिःसंघातःननुनहित्वातद्विवचनेनभवितव्यं व हुवचननिर्देशाततीयसंग्नहार्थ भेदात्संघानानभेदसंघाताभ्यांचउत्पद्यतरतितद्यथा इ. योःपरमाएवोःसंघातादिषदेशस्कंधउत्पयतेहिषदेशस्याणोनत्रयाणांवा अरणनीसंघा त्रि तातपदेशादयोः हिवदेशयोरखपदेशस्यारणेश्वतुर्णाचाणनासंघाताच्चतुः प्रदेशएवंसंरव्ये यसव्येयानंतानांअनंतानंतानाच संघातातावत्यदेशःराषामेवभेदातहिपदेशपर्यता:स्कंधाउ त्ययंतेएवंभेदसंघाभ्यामैकसमयिकाभ्यांहिवदेशादयःस्कंधाउत्पद्यते मन्यतीभेदे नान्यस्यसं घातेनेति एवंस्कंधानामुत्पतिहेतुरुका भयोरुत्यति हेतुनदर्शनार्थमाहाभेदादरणः॥ सिद्धेविधिरारभ्यमाणोनियमार्योभवति अगोरुत्पतिभेदादेवनसंघातात नापिभेदसंघाता, भ्यामितिमाहसंघातादेवस्कंधानां मामलामेसिडेभेदसंघातग्नहरण मनर्थक रति नह एगायोजनपतिपत्यर्थमाहाभेदसंघाम्पांचाक्षुयः॥ अनंतानंतपरमाणसमुदायनियायो। Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालस्यास्तित्त्वंगमयति कुत्तोगोणस्यमुरण्यापेक्षत्वाद्यस्यपर्यायाधीनरनिवतिःधीतर जनकरूपः अपरिस्पंदात्मक परिणामःजीवस्यकाधादिः पुलस्पवर्णादिः धमाधम्मीकाशानी अगुरुलघुगुणरदिहानिकता क्रियापरिस्पंदात्मिकासाहिधापायोगवैअसिकभेदात् नवप्रायोगि कोशकरीदी नीवैनसिकीनिमितामेघादीनापरत्वापरत्वेक्षेत्रकतेकालकतेचस्तः तत्रकालोपकार प्रकरणोक्तत्वात्कालकतेपरीतेतरावर्तनादयः उपकाराःकालस्यास्तिस्वंगमयंनिननुवर्तनाग्नहण . मेवास्तुतज्दाः परिणामारयातेमापयग्नहणमनर्थर्कनानर्थकंकालयसचनार्थत्वात्मपंचस्यका . लोहिदिविधः परमार्थ कालोमवहारकालख्न परमार्थकालोवर्तनालक्षणःपरिणामादिलक्षणोव्य वहारकालः अन्येनपरिस्छिन्न अन्यस्पपरिछेदहेतुःक्रियाविशेषःकालरतिव्यवमियते सत्रेधाव्य वतिष्ठतेभूतोवर्तमानोभविष्यत्रितितवपरमार्थकालेकालव्यपदेशोमुख्यः भूतादिव्यपदेशोगोणः व्य वहारकालेभूतादिव्यपदेशोमुव्या कालव्यपदेशोगौण कियावतव्यापेक्षत्वात् कालकतत्वाचवा हधर्माधर्माकाशपुगलजीवकालानांउपकाराउकाःलसणंचोक्तं उपयोगोलक्षणमित्येवमादिमुयुद्ध लानांतुसामान्य लक्षणमुक्तविशेषलक्षणांनोक्नकिमिस्मत्रोच्यतास्पर्शरसगंधवर्णवंतःपुला॥ स्पर्शतेस्पर्शनमात्रेवास्पर्शःसोडविधामदुकठिनगुरुलघुशीतोरनस्निग्धरुतभेदात्रस्पतेरसनमा Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिभावेनतिःपरस्परोपरगहः स्वामीतावदित्तत्मागादिनारयानामुपकारेवर्ततेस्त्यश्वहितपनिषा दनेनाहितपतियेधेनमाचार्य उभयलोककलपदोपदेशदर्शनेन तदुपदेशविहितक्रियानुयाया नेनचशिव्यायामनुग्गहवर्ततेशिख्या अपितदानुकूल्यरत्या उपकाराधिकारेषुनरुपानहवचनंकि मर्थपूर्वोक्तसुखादिचतुल्यपदर्शनार्थपुनरुषग्गवचनक्रियते सुखादीन्यपिजीवानांजीवकत उपकाररतिमाह यद्यवश्यसतोउपकारिणभवितव्यसंश्यकालोभिमतःतस्पक उपकाररति अबोच्यते॥शावर्तनापरिणामक्रियापरवापरत्वेचकालस्यारत्तेजितात्कर्मणिभावेवापुदमी लिंगेवर्तनेत्तिभवतिवमै तेवर्तनमानवावर्तनेति धमादीनांव्याणांवपर्यायनिर्दतिप्रतिस्वात्म नववर्तमानानांवायोपग्नहादिनातहत्यमावात् तस्ववर्तनोपलक्षितः कालरतिकत्वावर्तनाका लस्पोपकारकोणिजथः वर्ततेव्यपर्यायः तस्यवर्तपिताकालव्ययेवंकालस्यक्रियावत्वंयोनोति यथाशिय्य अधीत उपाध्यायोध्यायपतीतिनैयदोयः निमितमात्रेपिहेतुकर्तव्यपदेशोरमः यया कारीयोग्निरमाययतीतिएवंकालस्यहेतुकर्तलासकथंकालरत्यवसीयतेसमयादीनांकियावि शेषाणांसमयादिभिर्निवत्यैमानानांचपाकादीनांसमयःपाकरतिएवमादिस्वसंज्ञाररुदिसद्भावेपिस '. मयःकाल उदनपाककालरनिअध्यारोप्यमाणः कालव्यपदेशः नद्यपदेशनिमितस्पमुख्यस्य Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरत्रवक्ष्यते. इदंतुजीवान्प्रतियुगलानामुपकारप्रतिपादनार्थमेवेतिउपकारखकरोउर यतेशरीराणिउकानिउदारिकादीनिसौम्यादप्रत्यक्षाणितदुदयोपयादितरतोन्युयशी राणिकानिचित्रत्यक्षाणिकानिचिदखत्यक्षाणिगतेयाकारणाभूतानिकार्माएपिशरीरग्न हणेनग्यते एतानिपौगलिकानीतिरुत्वाजीवानामुपकारेषुद्रलाःप्रवर्ततेस्पान्मतकाम्मेण मपौलिक अनाकारत्वात् आकारवत्तांऊहारिकानांपोहलिकत्वंयुक्तमितितन्नतदपिपोलि कमेवनहिपाकस्यमूर्तिमत्संबंधनिमित्त्वात् दृश्यनेहिनीह्मादीनाउदकादिव्यसंबंधपापित रिपाकानीपौलिकत्व तयाकामणमपिगुरकंटकादिमूर्तिमव्योपनिपातेसनिविपच्यमानत्वा न पौगलिकमित्याचसेवंचाकाहविधाव्यवाक्भाववागिनिनत्र भाववाक्तावत्वी-तरायम निश्रुतज्ञानावराक्षयोपशमांगोपांगानामलाभनिमित्तवान्पोनलिकी नदभावेतहत्यभावात् तत्सामोपेतेनक्रियावतात्मनाघेर्यमाणाःयुगलाः वाक्वेनविपरिणमंतरतिव्यवागपिपीहति कोनोद्रियविषयत्वात्तरेंद्रियविषयाकस्मानभवति तहोयोग्यस्वातघ्राणना गंध व्येरसानुपलब्धिवन अमूर्तवागितिचे नमूर्तिमगृहावरोधण्याघानाभिभवादिदर्शनातमूर्ति मलसिहेमनोविविध व्यमनोभावमनवेति भावमनस्तावतस्युपयोगलक्षणांपुगलावलव Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आकाशस्योपकारोवेदितव्य माहजीवयुद्धलानाक्रियावतामवाहिनामवकाशदानयुक्त धमस्तिकायादयःपुनर्नि क्रियानित्यसंबंधारतेयांकथमवगाहरनिचेतनोपचारतस्तसिद्धः ययागमनाभावेषिसर्वगतमाकाशमित्युच्यतेसर्वत्रसद्भावात् गवंधमाधम्मीवपिनवगाह नक्रियाभावेपिसर्वनव्याप्तिदर्शनात प्रवाहिनावित्युपर्यते माहयद्यवकाशदानमस्पस्व भावःवजादिभिौयादीनाभिस्याभिर्गवादीनांचव्याघातोनपानोतिरश्यतेचव्याघातःतस्मादस्या बकाशदानंहीयतरतिनैयदोयः वजलोव्यादीनांस्थलानोपरस्परख्याघातरतिनास्यावकाशदा नसामर्यहीयते तत्रावगाहिनामेवव्याघाताभावाहवादयः पुनःस्थलखात्परस्परंपत्यवकाश दानंनकुर्वतीतिनासाचाकाशदोमायेयलुपुङलाःसूक्ष्मातेपिपरस्परंपत्यवकाशदानं कुर्वनिपये वनेरमाकाशस्यासाधारणलक्षणमित्तरेयामपितत्सद्भावादिति तत्रसर्वपदारर्थानांसाधारणव गाहनहेतुत्वमस्यासाधारणलक्षणमितिनास्तिदोषः अलोकाकाशेतदभावादमावरनिचेत नस्व भावापरित्यागात्. अतउक्त माका शस्योपकारमयतदनंतरोदियानांक उपकारस्त्यत्रोच्यते॥॥ शरीरबाङमनःप्राणापानाःपुगलानांइदमयुक्तंवर्ततेकिमत्रायुक्तंपुगलानांक उपकाररतिपरि घनेयुगलानीलक्षणमुच्यतेमवताशरीरानिपुगलमयानीति नैतदयुक्तंपादलानीलक्षणांड : Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लेष्माचाभिभवः नवामूर्तस्यमूर्तिमड्रिभिघातादयःस्फः प्रतएवात्मास्तित्वसिद्धिःयथा पंजेजतिमाचेष्टितंश्योकुरस्तित्वंगमयतितधामायणायानादिकपिक्रियानमात्मानंसाध यति किमेतावानेवयुगलकतउपकारः माहोम्विदन्योप्पस्तीत्यनमाहासुखदुःखजीवित्तमर गोपरगहाश्वासदसदेयोदयेअंतरंगहतीसीतवाद्याव्यादिपरिपाकनिमितवशान उत्पद्यमानः 'प्रीतितापरूपःपरिणामःसुखदुःममित्यारव्यायतेभवधारणकारणापुराव्यकम्मीदयादवस्थि तिमारधानस्यपूर्वोक्तधाणापानक्रियाविशेषादव्युछेदःजीवित्तमित्युच्यतेतदुछेरोमरण एता निसुरवादीनिजीवस्ययुगलस्यकतउपकारःकुतःमूर्तिमनहेतुसन्निधानेसनितदुत्पतेः उपका ,राधिकारादुषग्नहवचनमनर्थकं नानर्थकखोपबहादर्शनार्थमिदंयुगलानायुगलकत्तउपका रति नद्ययाकंसारिनामस्माभिर्जलादीनांकनकादिभिरयासरतीनामुदकादिभिरुपकार कि येतेचशब्दःकिमर्थःसमुच्चयार्थः अन्यापिपुगलकतउपकारोस्तीतिसमुच्चीयनेयथाशरीराणा वंचक्षुरादीनिंदियाएयापीतिएवमायजीवकतमुयकारंपदर्यजीवकतोपकारपदर्शनार्थमाह॥६॥ परस्परोपग्नहोजीवानांपरस्परशदःकर्मव्यतिहारेवर्तते कर्मव्यतिहारश्यक्रियाव्यतिहारेवर्तते परस्परस्य उपग्नह परस्परोपग्रहःजीवानांमुपकारकःपुनरसोस्वामित्य प्राचार्यशिय्यरत्येवमा Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नखात पोहलिकंव्यमनश्वज्ञानावरणवीयीतरायक्षयोपशम अंगोपांगानामलाभप्रत्ययाःगु एणदोषविचारस्मरणदिषणिधानाभिमुख्यस्यात्मनोनुग्गाहकाःयुद्धलाःमनस्वेनपरिणतातियो हुलिकं कश्चिदाहमनोव्यांतररुयादिपरिणामविरहितंअणुमातस्यपोनलिकत्वमयुक्तमिति जदयुक्तउच्यते नर्दिद्रियेणासनाचसंवड़चस्यादसंवड़वास्यात्ययसंवईतनात्मन उपकारक न भवितुमर्हतिरंदियस्यचसाचियनकरोति अथसंक्रएकस्मिन्यदेशसंबईसत्तदास्तरेयुषदे शेयुउपकारं नकुर्यात् अस्यवशादस्यमलातचक्रवत्परिममणमितिचेतननसामामावा अमूर्तस्यात्मनोनिःक्रियस्यारोगुणःसनिःक्रियासनिःक्रियःसन्अन्यत्रकियारंमेनसमर्थः खोहिवायुयविशेषःक्रियावान्स्पर्शवान्याशवनस्पतीपरिस्पदहेतुः तहिपरीतलमाथ्यावर तिक्रियाहेतुत्वाभावः वीर्यातरायज्ञानावरणक्षयोपशमांगोपांगनामोदयापेक्षिात्मनाउदस्यमानः कोसोवापुरुासलक्षणःषाणारत्युचते तेनैवात्मनाबायोवायुरभ्यंतरीक्रियमाणोनिश्वासलक्षणे पानरत्यायमायते एवंतावण्यात्मानुपाहिणोजीवितहेतुत्वात् तेषामनःपाणापानानीमूर्तिमत्वमव सेयं कुतोमूर्तिमद्भिःप्रतीचातादिदर्शनात पनिमयहेतुभिरशनिपानादिभिरमनसःपतीघानाह श्यते सुरादिभिश्वामिमवाहस्ततलपदादितिरास्यसंवरणात् पाणापानयोःपतीघातउपलभ्यते Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नधर्माधर्मयोगतिस्थिस्योश्चयथासंरत्यंभवतिएवजीवपुगलानीययासंयंपामोनिधर्ममा पकारोजीवानांगतिमधर्मस्योपकारःयुगल्पनीस्थिनिरितितभिरत्यर्थ उपमहवननंकि यतेमाहधीधर्मयोर्य उपकार:समाकाशस्ययुक्तःसर्बगतत्वादितिचेतदयुक्त तस्या न्योपकारसद्भावात्सर्वयोधमोदीनाल्याणामवगाहनतत्ययोजनएकस्यानेकपयोजनक ल्यभायांलोकालोकविमागाभावः भूमिजलादीन्येक्तत्वयोजनसमर्थामिनाAधर्माधर्मा भ्याइनिचेतनासाधारणाअयरतिविशेय्योतत्वात अनेक कारणसामखाचैकस्पकार्य स्पतुल्यवलवानयोर्गतिस्थितिप्रतिवंधारतिचेत्नारकत्वात् अनुपलब्धे तौरतः स्वरवि याणवदितिचेतनसर्ववाद्यविनिपनेःसर्वहिप्रवादिनःप्रत्यक्षावत्यक्षानानमिवांछं ति अस्मान्यतितोरसिद्देश्वसननिरतिशयपत्यक्ष ज्ञानचक्षुषाधर्मादयःसबै उपल भ्यतेतदुपदेशाचश्रुतज्ञानिभिरपि अवाहपयतींद्रिययोःधर्माधर्मयोरुपकारसंबंधेनास्ति त्वमवध्रियते तदनंतरमुद्दिश्वस्यनमसोतीदियस्याधिगमेक उपकारस्त्युच्यते॥छप्राकाश स्पावगाहः।उयकारहतिअनुवर्तते जीवपुद्गलादीनामवगाहिनायवकाशदानमवगाहः।। आकाशस्योपकारोवेदितव्यमाहजीवपुद्गलानांकियावतामवगाहिनामवकाशादानमवगा Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काशपरिमाणस्पनदीपस्यशरावमानिकायवरकाद्यावरणवशात्तत्यरिमागतेतिपत्रा हधर्मादीनां अन्योन्यप्रदेशानुषवेशासंकरेसतिएकसंधानोतितन्त्रपरस्परात्यंतप्लेसेस पिस्वभानजहति उक्तंच लोगोपविसंतादिताउवासमस्ममस्मस्तमेवंता वियोणच सगसद्भावनविजहंति ययेवंधमादीनांस्वभावभेदउच्यतामित्यतमाह।शागतिस्थित्युप रमहीधर्माधर्मयोरुपकारःदेशांतरचालिहेतुर्मतिः तद्विपरीतास्थितिःउपरातर। निउपग्नहगतिस्थितिमतिस्थितीगतिस्थितीएवउपग्नहोगतिस्थित्युपग्नहोधमा धर्मयोरितिकतनिर्देशः उपकुवैतरत्युपकार:कापुनरसौगत्युपगहःस्थित्युसमहन्थ्य ययेवंदित्वनिर्देश प्राप्नोतिनैयदोयःसामान्येनव्युत्पादित शब्दःउपातसंख्याशब्दांतरसंबंधे. सत्यधिनपूर्वोपातसंव्यांजहातियथासाधो कार्यतपः श्रुतेरतिरातदुक्तंभवतिगतिपरिणा मिनाजीवपुगलानांगत्युपणकर्तधर्मास्तिकायः साधारणमायाजलवन्मत्स्यगमनेत . थास्थितिपरिणमिनीजीवयुद्धलानास्थित्युपगहेकतैव्येन्मधर्मास्तिकायःसाधारण यापथिवीधातुरिवाश्यादिस्थितावितिननुचउपमहवननमनर्थकमुपकारस्त्येचंसिद्ध खातगतिस्थितीधर्माधर्मयोरुपकार इतिनैयदोबायथासंव्यनिरस्यर्थमुपग्नहवाच, Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नादगादनिचिदोपुग्नलकाहिसवदोलोगोसुकुमेहिंवादरहिंपणेनाणोत्तेहिंविविहिपत्र कर्यासपिंडोहदोनः अथजीवानांकथमवगाहनमित्यत्रोच्यते॥॥असंव्ययभागादियुजी "वानांगलोकाकाशस्त्युवर्तते तस्यासरत्ययभागीकतस्यएकोमागः असंख्येयभागस्त्युच्यतेस मादियांतेप्रसंख्येयभागादयानेगुजीवानामगाहोवेदितव्यः तद्यथा एकस्मिन्नसंख्ययमा गएकोजीवावतिष्ठते एवंरित्रिचतुरादिवपिनसंय्येयमागेवास लोकादवगाहःप्रत्येतव्यः नानाजीवानांनुस लोकरावयोकस्मिन्नुसंध्येयभागेएकोजीवावतिष्ठते कथंदुव्यषमाणोना नंतानंतोजीवरासिःसशरीरोवतिष्ठते लोकाकाशेसूक्ष्मभावदेवएकजीवनिगोदावगाद्यपिज देशेसाधारण शरीरानंतानंतावसति नतेपरस्परेणवादरैशव्याहन्यंततिनास्त्यवगाहविरोधः प्रबाहलोकाकाशनुल्यप्रदेशएकोजीवस्त्युक्तस्यकथंलोकस्यासंख्येयभागादियुरतिर्न नुसर्बलोकस्यव्याशेवभवेतितव्यमित्युच्यते॥॥प्रदेशसंहारविसप्पीभ्यांधदीपवत्नम् तेस्वभावस्यात्मनोनादिकर्मधजत्येकत्वात्कथंचिन्मूर्तखंविनतःकार्मणशरीरवशा न्महदणचशरीरमधितियतः तइशायदेशसंहरणाविसर्पणस्वभावस्पतावत्वमाणतायां सत्यां मसरव्ययभागादिसुरतिरूपपद्यतेपदीपवत् यथानिरावणव्योमपदेशेवधतष सूक्ष्मवादलावस्थान प्रत्यतव्येवा९रास्ताव Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा खोका लोक विभाग सिद्धिः तत्राव धियमारएणनां मवस्थानभेदसंभवात् विशेनप्रतिपत्य माह ॥ २॥ धम्मधर्म्मयोः क तेन ॥ क तलवचनम शेख व्याप्तिदर्शनार्थे मा गोरे व स्थि तो घर इत्तिययात्त या धम्मीधम्मेर्यो लौ का काशेवगा हो न भवति किंत र्हिक ने युत्तिले खुतै लवादेति मन्योन्यग्नदेशख वेशच्या घाताभावो वगाहन शक्ति योगान् वेदितव्यः मत्तो विपरीतानां मूर्तिमतां एक प्रदेश संख्ये या संख्ये यानंत प्रदेशानांबुजलानां भ्मवगाह विशेषप्रतिपत्यर्थ माह। एक प्रदेशादियुभाज्यः पुद्धलानां ॥ एकः प्रदेशः एकप्रदेशः एक प्रदेशमा दिये यांते उमेएक प्रदेशादयः तेषुयुद्धला नाम वगा हो भाज्या विकल्पोभ्मवयवे म विग्ग्रहः समुदायस मासार्थ इतिएकपदेशो पिग्रह्यते तद्यथा एक स्मिन्ना काश प्रदेशे पर मागो र बगाहः द्वयो रेकचोमयत्रचवडयो श्वत्र या रणामध्ये क च हयो त्रियुचवद्वानां प्रवद्धानां च चएवं संख्ये यानंत प्रदेशानां स्कंधानामेकसंख्येयमसंख्येयपदेशे खुलो का का शेवस्थानं प्रत्येतव्यं न नुयुक्तं तावद मूर्तयोर्धम्मीधम्म यो रेकवा विरोधेनावरोध इतिमूर्तिमत्तां बुद्धलानां कथमि त्यत्रोच्यते "अवगाहनस्वभावत्वात् सूक्ष्मपरिणामाञ्च मूर्तिमतामय्प वगाहोन विरुध्यते । कायवर के अनेक प्रदीपनकाशा वस्थानवत् भ्प्रागमझा मा ण्याच्ञ्चत्तथाध्यवसेयं उक्तं चउ 1 2 Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धार कल्पते प्राकाशस्याप्पन्यः भ्नाधारः कल्पः तथासत्यनवस्थान संग इतिनैष दोषः ना काशादन्यदधिक परिमाणां व्यमस्तियचा का श स्थितमित्युच्यते सर्वतोनं तं हितत् धम्मदी नोपुनरधिकरणामाकाश मित्युच्यते व्यवहारनयवशात् एवंभूतनयापेक्षयात् स वी शिव्या स्विप्रतिष्ठितान्येव तथा चोक्तं भवानास्ते तू मनीतिधर्मादीनि लो का का शानवहिः संतोतिएतावदत्र प्राधाराधेय कल्पना साध्यंफलेन नु चलो के पूर्वोत्तर कालभा विनामाधारा धेयभावोदृष्टः यथा कुंडे वदरादीनां तथा काशं पूर्व धम्मदी नि उत्तरकालभावी निभ्मतो व्य वहार नयापेक्षयापि प्राधाराधेय कल्पनानुपपतिइतिनैष दोषः युगपद्धा विनास पिंधा राधेयभावो दृश्यते घटेरूपादयः शरीरे हस्तादयइ तिलोक इत्युच्यते को लोकः धम्मदी निड् या त्रिलोकांस लोकइतिभ्प्रधिकरण साधनो घर्ज आकाशं द्विधा विभक्तं लोकाकाश मलो का काशं चेति लोकउक्तः सयात्त ध्वो का काशं ततो वहिः सर्वतोनंत मलो का काशंलो का लोकालोक विभाग धम्म धम्मी स्ति काय सहावात् विज्ञेयः मसतित्तिस्मिन् धर्मास्ति काये युद्दल जीवानां गति नियमहेत्वभावात् विभागोन स्यात् असतिवाधर्मास्तिकाये स्थिते राष्यये निमित्ताभावात् स्थिते रभा वोलो का लोक विभागाभावो वा स्यात् तस्मात दुभयसड़ा Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमितिचेनानेतसामान्याता अनंतषमा त्रिविधमुक्तंपरीतानंत अनंतानंतंचेतितत्सर्वम नंतसामान्यनग्रयतेस्यादेतदसंरख्यातपदेशालोकःअनंतबदेशस्यानंतानंतपदेशस्यचस्के धस्याधिकरणमितिविरोधः ततोनानंत्यमितिनैयदोषःसूक्ष्मपरिणामावगाहनशक्तियोगा त परमारवादयोहिसक्ष्ममावेनपरिणताःगकैकस्मिन्नषिमाकाशनदेशेअनंतानंतार अवत्तिदंतेनवगाहनशक्तिश्चैया नव्याहतास्तित्तस्मादेकस्मिन्नपिपदेशेअनंतानंता नामवस्थाननविरुध्यतेषुगलानामित्यविशेषवचनात्परमागगरपिपदेशवत्वषसंगत स्वनिषेधार्थमाह॥॥नाएगभगो देशानसंतोतेवापशेषःकुत्तोनसंतीतिचेत॥ प्रदेशमानत्वात् यथाकाशपदेशस्यैकस्पपदेशभेदाभावादप्रदेशत्वं एवमरोरपिवदेश : मावसात प्रदेशभेदाभावःकिंचततोल्पपरिमाणाभावात् नह्मणोरल्यीपानन्यास्तियनोस्य : घदेशाभिधेरन एयामवछतमदेशानाधर्मादीनामाधारअतिपत्यर्थमिदमुच्यते॥शालो। काकाशेवगाहः। उक्तानांधमादीनांव्याणी लोकाकाशेवगाहोनवहिरित्यर्थः यदिध मीदीनालोकाकाशमाधारः माकाशस्यक माधाररतिमाकाशस्यनारयन्यमाधारःस्व अतिवमाकाशंमधाकाशवप्रतिस्टेधर्मादीन्यपिस्वप्रतिथान्येवप्रथधर्मादीनां अन्यमा Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांवेतैसहनाधिक्रियते अजीवकायाश्त्यत्रकायग्नहोनपदेशास्तित्वमा–निजीतनवियत्तावर धारितापदेशानां अतस्तनिहरणार्थमिदमुच्यते॥असंख्येयाःपदेशाःधम्मीधर्मकजी वानसंख्यामतीतामसंरव्येयाप्रसंख्येयरिवविधःजघन्यः उत्कृष्ट अजघन्योत्कयोसंरत्ययः परिग्रह्यतेप्रदिश्यतरतिपदेशःवक्ष्यमाणलक्षणम्परमाणुःसयावतिक्षेनेवनिष्ठतेसषदेशर तिव्यवझियतेधमाधम्मकजीवाःनुल्या असंख्येयपदेशाः तबधर्माधर्मोनिःक्रियोलोकाका, व्याप्यस्थितौजीवस्तावत्यदेशोषिसत्संहरणविसर्पणस्वभावत्वातकर्मनिर्बति शरीरमण महहाअधिनिठस्तावदवगायवर्ततेयदानुलोकपूर्णभवनितदामंदरस्याधःचित्रवज्रगतपा लमध्येजीवस्याटोमध्यपदेशाव्यवतितेस्तरेषदेशाऊईमधस्तिर्यवकलोकाकाशंज्यानी वते प्रथाकाशस्याकतिपदेशाश्त्यतमाहाछामाकाशस्यानं नालोके प्रलोके चाकाशोवा तिते अविद्यमानोंतोयेयोते अनंता:केपदेशाःकस्पभाकाशस्यपूर्ववदेवास्यापिनदेशकल्पना बसेयाउक्तममूर्तानोपदेशपरिमाणइदानीमूर्तानांपुदलानांपदेशपरिमाणनिजी तव्यस्त्यता हासंख्येयासरव्येयाश्ययुगलानीचशदनानंतावानुसयकस्यचित्युहलव्यस्यह्मण कादेःसंख्येयापदेशाकस्पचित प्रसंरव्येयाःप्रदेशाः कस्यचित-अनन्ताश्य अनंतानंतोयसंरत्या Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तदनेनरयाप्पता अधिकतानामेवएकरव्यागाविशेषपतिपत्यर्थमिदमुच्यते॥छानि:क्रियाणिच । उमयनिमितवशादस्पद्यमानःपर्यायाव्यस्यदेशांतरजाप्तिहेतुःक्रियातस्यानिकांतानिनिःकि याणियत्रचोद्यतेधर्मादीनिव्याणियदिनिःक्रियाणिततस्तेषामुत्पादोनभवेतापरिस्पंदकिया पूर्वेकोहिघटादीनांउत्पादोरमा उत्पादाभावातव्यवाभावरतिसर्वव्याणामुत्पादादिवितयरू पकलपनायाघाततितन्नकिकारणमन्यथोषयते क्रियानिमितोत्यादाभावेप्येयांधमादीनां अन्यथोस्वादःकल्पत्तोतयथाद्विविधउत्पादःस्वनिमितःपरत्ययश्चस्वनिमिमित्तस्तावदनं। तानोमगुरुलघूराणानाध्यागमषामाण्यादभ्युपगम्यमानानांबटस्थानपतितयानाहान्पाच वर्तमानानांस्वभावादेशामुत्पादोज्यपश्चपरवत्ययोपिअन्नादिगति स्थित्यवगाहनहेतुत्वातक्ष रोक्षपोतेयांमेदान्तहेतुत्वमयिभिन्न मितियरयत्ययापेक्षउत्पादोविनाशअध्यावक्रियताननुय दिनिःक्रियाशिधम्मादीनिजीवपुगलानांगत्यादिहेतुस्खनोपपद्यतेजलादीनिहिक्रियावंतिमत्स्या दीनांगस्यादिनिमितानिरयानीतिनैयदोयम्वलाधाननिमितत्वावसुर्वद्यथारूपोपलब्धौचक्षु निमितमितिनव्यासिप्तमनस्कस्यापिभवतिनिधिकतानाधर्माधर्माकाशानांनिःक्रियखेभ्युष गतेजीवपुलानांसक्रियत्वमर्यादापनकालस्यापिसक्रियत्वमितिचेन्नानधिकारान: अतएवा Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यमितिाश्यताव्यभिचारास्थितानीतिउच्यतेन विद्यतेरुपमेतेयास्त्यरूपाणिरुपतियेधेन तत्सहचारिणगरसादीनामपिपतियधनतेनमरूपाण्यमूर्तानित्यर्थः यथासयांद्व्याणांनि स्यावस्थितानीत्येतत्साधारणलक्षषाप्ततथाअरूपत्वमपिपाषुहलानामपिमतस्तदप वादार्थमाहगारूपिणःयुदलारपंमूर्तिरित्यर्थःकामूर्तिःरुपादिसंस्थानपरिणामोमूर्तिः रुपमेश्रामस्तिररूपिणःमूर्तिवंतरत्यर्थः अथवारपमितिगुणविशेयवचनशब्दस्तेषामस्तीति रुपिणःरसाद्यग्नहामितिचेतानतदविनाभावानदंततीवःषुद्गलारतिवहुवचनंभेदरतिपाद नामिनाहियुदलाःस्कंधपरमाणभेदात्तहिकल्प उपरिसाहक्षतेयदिषधानवादूपत्वमेकत्ल चेयंस्यात्तविस्वरूपकार्यदर्शनविरोधस्पातामाहकिंपहलवत्धादीन्यपिइच्याणिवत्येकंभि नानीत्यत्रीच्या प्रामाकाशदेकड्याणि पाडयमभिविध्यर्थःसौत्रीमानुपूर्वीमास्टत्यैतद र तेनधर्माधर्माकाशानिरयंनाएकशब्दःसंरव्यावचनातेनयंविशेष्यते एकंदव्यंकद्रव्य मितिपद्येवंबहुवचनमयुक्तंधायपेक्षयावहत्वसिद्धिर्भवतिएकस्पानेकार्यपत्यायनशक्तियो) • गाताराकैकमित्यस्तुलघुवातव्यामहणमनर्यकंतक्रियतेढ्यापेक्षयाएकत्वख्यापनार्थव्य नहणक्षेत्रभावापेक्षमाप्रसंख्येयवानंतलविकल्यस्येलखानानजीवपुद्गलवदेवांवहसमित्ये mara m an Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दियोगाभावःरतिचेतानवायुस्तावपादिमानस्पर्शवनातापदादिवत्चक्षुरादिकरणबाह्य स्वाभावानारूपाद्यमावरतिचेतन परमाएवादिस्वतिषसंगःस्यात् मापोगंधवत्यःस्पर्शादिमत्ता तप्रथिवीवत्तेजोपिरसगंधवद्रूपवत्वात् तहदेवामनोपिद्विविधंदव्यमनोभावमनश्चेतितवमा (वमनोज्ञानंतस्पजीवगुणत्वातामात्मन्यंतर्भावः दुव्यमनस्वरूपादियोगात्पुदलव्यविकार रूपादिमन्मनाज्ञानोपयोगकारणत्वात् चक्षुरिदियवत्ननुअमूर्तपिशदेजानोपयोगकारा स्वदर्शनाता व्यभिचारीहेतुरितिचेनानतस्पापिपौलिकत्वानमूर्तिमत्वोपपतेःननुययासर्वेया परमाणुनारूपादिमतकार्यवदर्शनातारस्पादिमवंनतथावायुमनसोरस्पादिमत्कार्यदृश्यते । तिचेतननुतेयामपित्तदुपयतेःसर्वेयापरमाणूनासर्वरूपादिमत्कार्यवशाभियोग्यताम्युपगमात् नचकेचिसार्थिवादिजातिविशेषयुक्ताःपरमाणवःसंनि जातिसंकरेणारंभदर्शनादिशोप्पाका शतर्भाव आदित्योदयायपेक्षया आकाशपदेशपंक्तिपुरतरमितिव्यवहारोयमतेः उक्तानां इच्याणांविशेशपनिषत्यर्थमाहानित्यावस्थितान्यरूपाणिनित्यंभुवमित्यर्थ-नध्रुवेभ्यरति नेधुवेनित्यरतिनिव्यादितखात्धर्मादीनिद्व्याणिगतिहेतुत्वादिविशेयलक्षणयार्थादेशाद तिखादिसामान्यलक्षाणायार्थादेशाचकाचिदपिनव्ययंतीतिनित्यानिवक्ष्यतेहिातभावाव्ययनि । HaRIMALAILtdnasilienarammar Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एयकसिद्धेस्तःयद्यपथकसियोरपियोगःस्यातामाकाशकुशुमस्पषकतिपुरुषहितीयशि रसश्चयोगःस्यादिति अथपथकसिद्धिरभ्युपगम्पोव्यत्वकल्पनानिरर्थकागुणसंझावोइयमि तिचेनातवापिगुणानांसमुदायस्यचभेदाभावेतव्यव्यपदेशोनोपपद्यतेभेदाभ्युपगमेचपूर्वोक्त एवदोयोननुगुणान्वतिगुणैर्वादूयतेइतिविग्नहेपिसरावदोयाइतिचेनकचिझेदाभेदोषम तेस्तदव्यपदेशसिहाव्यतिरेकेरणानुपलव्येरमेदःसंजालक्षाषयोजनादिभेदादेदरतिपकता धर्मदयोवहतः। तत्सामाण्याधिकरण्यात्वहखनिर्देशःस्यादेतत्संरव्यानुवतिवत्युलिंगानुरति रपियानोतिनैयदोयः माविरलिंगाशब्दानकदाचिल्लिंगंव्यभिचरंतिाअतीधर्मादयोव्याणि मवंतीति ननंतरत्वाचतुर्मामेवदत्यव्यपदेशप्रसंगेमध्यारोपणार्थमिदमुच्यते॥॥जीवाश्च ॥जीवशब्दोव्याख्यातायःवहुवनिर्देशोन्यायातमेदपतिपत्यर्थःचशब्दाव्यसंज्ञानुकर्षणा र्थःजीवाचव्याणीतिएवमेतानिवक्ष्यमाणेनकालेनसहपदयाणिभवंतिव्यस्यलक्षणं वक्षते।गुणपर्ययद्रव्यमितितलक्षणयोगानधर्मादीनांव्यव्यपदेशोभवतिनार्थःपरिगण . नेनपरिगणनमवधारणार्थतेनान्यवादिपरिकल्पितानांप्रथिव्यादीनानिरतिःकत्तामवति कथंरथिव्यानेजोवायुमनांसियुगलइयंतर्भवंतिरस्परसगंधस्पर्शवत्वाता वायुमनसोरणा Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..प्यारोप्यतोकुतउपचारःयथाशरीरंपुगलट्यपचयात्मकंतयाधादिवपिपदेशपचयापे क्षयॉरवकायारतिअजीवाश्यनेकायायमजीबकायाविशेषणविशेव्यागोनिरनिःननुचनी लोत्यलादियुः व्यभिचारेसतिविशेषणाविशेश्ययोर्योग्यः॥रहायिव्यभिचारोस्तिा प्राजीवश दायकायेकालेपिवर्ततेकायोपिजीवेकिमर्थःकायशदःपदेशवहत्वज्ञापनार्थःधर्मादीनी प्रदेशावहवरतिनिनचअसंख्येयावदेशाधमाधम्र्मकजीवानामित्यनेनपदेशवहत्वज्ञापित सत्यं परंकिंवाअस्मिविधीसतितदवधारणविज्ञायतेमसंव्ययाःप्रदेशानसंख्येयानाम्यानं नाःाइतिकालदेशपचया:भावज्ञापनार्थचरहकायग्रहांकालोवक्ष्यनोनिस्यपदेशप्रत्यय तिषेधार्थ रहकायानहायथागोः प्रदेशमानवाताहितीयादयोस्पनदेशानसतित्यप्रदेशोरणुः नथाकालपरमाणुरोकप्रदेशत्वादपदेशरतियोधमीदीनामजीवरनिसामान्यसंज्ञाजीव ख लक्षणाभावमुख्येनधरताधाकाशपुद्गलारतिविशेयसंज्ञासामयिकात्मवाहसर्वव्यापी येयुकेवलस्पेत्येवमादियुट्याएयुक्तानिकानितानीत्युच्यते॥॥व्यागायथायथायोग्यस्तय यीय यंतेगम्पतेषाप्यंतेयथाखंयथायथंययात्मीपपर्यायैर्यानिवंतिवातानीतियाणिव्यत योगाव्यमितिचेत्रोमयासिद्देश्यथादंरंडिनोर्यागोभवनिएथकसिद्धयोनचतथाद्व्यव्यले Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र्शनार्थमाह॥॥दशवर्षसहस्राणिपथमायोग अपरास्थितिरित्यनुवर्तते प्रथमवनवासि नांकाजघन्यास्थितिरित्याह॥॥मवनेयुचाचशब्दःकिमर्थःप्रकतसमुच्चयायःतेनभवनवा. सिनामपरास्थितिर्दशवर्षसहरलाणीस्वमिसंवंध्यते न्यतराणांतर्हिकाजधन्यास्थितिरित्यता हामंतराणांचाचशब्दषकत्तसमुच्चयार्थःतेनव्यंतराणामपरास्थितिईशवर्षसहस्राणि इत्यवगम्पतेअथैयांपरास्थितिके त्यत्रोच्यते।ापरापल्यापमधिकंगपराउत्कटास्थितिव्यंत राणांपल्योयममधिकंरानीज्योतिरकाणापरास्थितिर्वक्तव्येत्यतमाह॥॥ज्योतिकाचाच शब्दःपकतप्समुच्चयार्थः तेनैवमभिसंबंधःज्योतिरकाणांचपरास्थितिःपल्योषममधिकमिति अथापराकिपतीत्याह॥तदस्मागोपरागतस्यमल्योपमस्याप्टमायोज्योतिरकाणामयरा स्थितिरित्यर्थः प्रथलोकांतिकानांविशयोक्तानांस्थितिविशेयोनोक्तःसकियानितिगालो कांतिकानामौसागरोपमागासर्वयो। प्रवशिष्याःसवैतेश्यलालेश्याःपंचोत्सेधशरीराः च तुत्रिकायदेवानांस्थानभेदाःसुवादिकंपरापरस्थिनिर्लेश्यातुर्याध्यायेनिरूपित॥ ॥इतित्त वार्यरतोसर्वार्थसिदिसंज्ञिकायोचतुर्याध्यायः॥४॥रादानीसम्यग्दर्शनविययभावेनोपये युजीवादियुजीवपदार्थोव्याख्यातः प्रथाजीवपदार्थोविचारपातःस्तस्यसंज्ञाभेदसंकीर्तनामि मुच्यते॥अजीवकायाधमाधमाकाशयुद्धताकायशब्दःशरीरेव्युत्पादितःरहोयचाराद Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ येसप्तविंशति-ततीये प्राविंशतिः उपरिमागेवेयकेयुषयमेएकोनविंशहितीयेत्रिंश तृतीयेएकविंशत् मनुदिशविमानेयुहाविंशविजयादियुत्रयस्त्रिंशत्सागरोपमानिउत्कया स्थितिः सर्वार्थसिद्धोत्रयस्त्रिंशदेवेतिनिर्दियोलष्टस्थितिके मुदेवेयुजघन्यस्थितिप्रतिपादना र्थमाहाअपरापल्योपममधिकंपल्यापमंव्याख्यातंअपराजघन्यस्थितिःपल्योषमसाधि कंकेयासौधर्मशानीयानांकथमवगम्यतेपरतःस्त्युतस्ववक्ष्यमाणत्वात् ततऊँईजघन्यस्थि तिप्रतिपादनार्थमाहाापरतःपरतःपूर्वापूर्वीनंतरापरस्मिन्देशेषरतःवीप्सायोहित्वंपूर्वसद स्थापिअधिकग्रहणमनुवर्ततेतेनैवमभिसंबंध कियोसौधम्मैशानयोईसागरोषमेसाधिके । उक्ततेसाधिकेसानत्कुमारमाहेंदयो धन्यास्थितिःसानत्कुमारमाहेंद्रयोःपरास्थितिः सप्तसाग रोपमानिसाधिकानितानिसाधिकानिब्रह्मब्रह्मोतरयोर्जघन्यास्थितिरित्यादिरावंविजयादिपर्य तेयुज्ञेयनारका उत्कष्यास्थितिरुताजघन्यांसूबेनुपाताअधकतामपिलघुनोपायेनपनिया दयितुमिछन्नाहानारकाणांचहितीयादिमुचिशन्दःकिमर्यःप्रकतसमुच्चयार्थःकिंचय • कर्तपरतःपरतःपूर्वानंतराअपरास्थितिरिनितेनायमीलम्पतेरत्नषभायांनारकाोपरास्थि तिरेकंसागरोपमंशर्करामभायोजघन्याशर्कराघमायोउरूळास्थितिस्वीणिसागरोषमाणासा वालुकाउभायोजघन्येत्यादिरावंद्वितीयादिमुजघन्मास्थित्तिरुतापथमायोकाजघन्येतितस्वद Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्त॥भ्प्रनयोःकल्पयोर्देवानां सप्तसागरोपमा नि। साधिकानि उत्कृष्टा स्थिति ब्रह्मलो का दिव्खच्यु तावसाने सुस्थितिविशेषप्रतिपत्यर्थमाह ॥ त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपंचदशभिरधि कानितु!! सहजतं तस्येह यादिभिर्निर्दिष्टैरभिसंबंधोद्रष्टव्यः सप्तत्रिभिरधिका निसप्तसत्यभि रधिकानि इत्यादिद्दयोर्द्वयोरभिसंबंधोवेदितव्यः तुशब्दो विशेखरणार्थः किंविशिनष्टिन्प्रधिकश दोनुवर्त मानवतर्भिरिहसंबध्यतेनोत्तराभ्यामित्ययमर्यो विशिष्यते तेनायमर्थेभवति न ह्मलोक ब्रह्मो तर यो शसागरोपमा णिसाधिका निली व काष्टियोर्दश सागरोपमा तु निसाधिकानिक महाम्पुकयोः षोडश सागरोपमा निसाधिकानि सतारसहरनार यो रिष्टादश सागरोपमा निसाधिकानि प्रानतप्राण त यो विंशति सागरोपमा णि मरणाच्यु तयो ई विंशतिसागरोपमा तिन ऊई स्थिति विशेषप्रतिपत्यर्थमाह ॥ २॥ प्रारणाच्युता दूर्द्ध मे के के न नव सुग्मैवेय के षु विजयादिषु सर्वार्थः सिद्धैौ च ॥ अधिक ग्रहणमनुवर्तते ते नेहसं व धोवेदितव्यः एकैकेनाधिकानी तिन वहां किमर्थ प्रत्येकमेकैकमधिकमिति ज्ञापनार्थश्नर था हि वेयके एकमेवाधिकं स्पानिया दिविति प्रादिशब्दस्य प्रकारार्थत्वात् अनुदिशा नाम पिग्नहां सर्वार्थ सिद्धेश्वटणग्ग्ग्रहणं जघन्याभावप्रतिपादनार्थ तेनायमर्थः प्रधग्मैवेयकेषु प्र त्रयोविंशतिः द्वित्तीयेचतुर्विंशत्तिस्तत्तीये पंचविंशतिः मध्यम ग्यैवेय के षुषथमे षड्विंशतिः द्वित्ती 4 } Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्यः शेषा स्तिर्यग्योनयः ॥ उपयादिका उक्ता देवनारकाः मनुष्या ध्वनिर्दिष्टाः प्राग्मानुषोतरा न्मनुख्याइति एभ्योन्ये संसारियो। जीवाः शेषा स्तिर्यग्योन यो वेदितव्याः । एयां तिरी देवादीनामि बक्षेत्रों विभागः पुनर्निर्देवव्यः सर्व लोक व्यापित्वातेयां क्षेत्र विभागो नोक्तः माह स्थितिरुक्ता ना र कारणांमुनुष्याणां ति रवां चदेवानांनो ज्ञातस्यां वक्तव्यायां भ्प्रादावु दिव्यानाभवनवा सिनां स्थिति प्रतिपादनार्थ माह ॥ ॥स्थितिर सुरनाग सुपर्णा ही पशेखाणां सागरोपमन्त्रिप ल्योपमाईही नमिताः॥ प्रसुरादीनां सागरोपमादिभिर्यथाक्रमं प्रवाभिसंबंधो वेदितव्यः इयं स्थितिरु कृष्णा जघन्याप्युत्तरचवक्ष्यते तद्यथा प्रसुराख्यां साग रोप मा स्थितिर्नागानांत्री शिपल्योपमा निस्थितिः सुपर्णानाममङ्केत. ती या निही पानां हे शेख गांव मां अडाईयल्पो पर्म ॥ प्राद्य देवनिकाय स्थित्य भिधानादनंतरे॥ व्यंतरज्योति को स्थिति वचने क्रमप्राप्तेसति तदुत्वंध्यवैमानिकानां स्थि तिरुच्यते। कुतस्तयोरुत्लंघनमुत्तरबल घुनोपायेन स्थितिवचनात्॥ तेषुचादावुद्दिष्टयोः स्थिति विधानार्थमाह ॥ २२॥ सौ धर्मै शानयोः सागरोपमे प्रधिके ॥ सा गरोपमेइति द्विवचननिर्देशात् द्वित्वगतिः अधि के इत्ययमधिकारः प्राकुतः प्रासहस्रा राजू इदं तु कुतो जायते इति चेत्। उत्तरच तु शब्दकरणात् तेन सौ धर्मै शान यो है बानी सा गरोपमे सा तिरे के प्रत्येतव्ये उत्तरयोः स्थिति विशेष प्रतिपत्पर्य माह॥ सानत्कुमारमा हेइयोः f Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वतादित्यात अग्न्याभसामा आदित्यस्यचवन्हे श्वानरेचाहामसत्याभाः वयरुणांनरालेरने यस्करक्षेमंकराअरुणगर्दतोयांतरेश्यमेश्कामचराः गर्दतोयतुषितमध्येनिमणिरजोदिगंत रक्षिताःतुषिताज्यावाधमध्ये मात्मरक्षितसर्वरक्षिता अव्यावाधारियांतरालेमरुद्वसवःभरि टसारस्वतांतरे अवविस्वाःसबैस्वतंबाहीनाधिकवाभावात् विषपरतिविरहातदेवर्षयरतरेयांदे वानांअर्चनीयाचतुर्दशपूर्वधरा तीर्थकरनियक्रमणानिवोधनपरावेदितव्याः आह उकालो. कांतिकाततताएकंगर्भवासमवाप्यनिर्वास्पतीत्युक्तं किमेवमन्येवयिनिर्वाणपाप्तिकालविभा गोविद्यतस्त्यतमाह॥॥विजयादिबुद्धिचरमा॥आदिशाप्रकारार्थेवर्तते तेनविजयवैजयं तजयंतापराजितानुदिशविमानानामियानोग्नहसि भवतिकःपुनरवषकारःअहमिंसति सम्यग्दष्टनुपपादःसर्वार्थसिद्धिषसंग तिचेनतेयांपरमोत्करत्वात मन्वर्थसंज्ञाएकाचरम स्वसिद्धेःचरमवंदेहस्यमनुव्यभवापेक्षया दौचरमायेयांतेहिचरमाःविजयादिभ्यश्युत्ताप्रप निपतितःसम्पकामनुय्येयूत्यद्यसंयममाराध्यपुनर्विजयादियुउत्पद्यततव्युत्ताःपुनर्मनुष्यभव मवाप्पसियंतीतिहिचरमदेहत्वं माहजीवस्यऊदयिकेयुभावेयुतिर्यग्योनिरोदयिकीत्युक्तं पुन अस्थितीतिर्यग्योनिजानांचेतितवनज्ञायतेकेतिर्यग्पोनयरति अत्रोच्यते।उपपादिकमनुव्ये Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'दंनज्ञायतेस्त भारभ्यकल्पाभवंतीतिसौधर्मादिग्नहामनुवर्ततेतेनायमोलभ्यतेसौधमी दयःपाराग्नवेयकेभ्यःकल्यापारिशेय्यादितरेकल्पातीतारतिलोकोतिवादेवावैमानिकाःसंतःकरां तेकल्योपपन्नेयुकथमितिचेदच्यते॥॥ब्रह्मलोकालयालोकांतिकारात्यतस्मिनीयंतश्यालय भावासोब्रह्मलोक मालयोयेषांतेब्रह्मलोकालया:लोकांतिकादेवावेदितव्याःपद्येवंसयांब्रह्म लोकालयानालोकांतिकत्वेषसतं अन्वर्थसंज्ञारगहणाददोयाब्रह्मलोकोलोकःतस्यानोलोकोतः लोकांतेमवालोकांतिकारतिनसयोग्नहणतेयाहिविमानानिब्रह्मलोकस्यांतेस्थितानिनथवा जातिजरामरणाकोणालोकःसंसारसूतस्पोतोलोकांतेभवालोकांतिकाःतेसर्बपरीतसंसाराः तन श्यताराकंगर्भवासंघाप्यपरिनिवास्पंतितेयांसामान्येनोपदिष्टानांभेदपदर्शनार्थमाह॥॥सारस्व तादित्यवरुणगर्दतोपतुषितान्यावाधारिवाचावेमेसारस्वत्तादयः प्रयासुपूर्वोत्तरासुदिक्षु विदिक्षयथाक्रमेमेते सारस्वतादयोदेवगणावेदितव्या तयथापूर्वोतरकोणेसारस्वतविमानपूर्व स्यांदिशिमादित्यविमान पूर्वदक्षिणस्यादिशिवन्हिविमानं दक्षिणस्यादिशिअरुणस्यविमाने दक्षिणपरकोणेगई तोयविमान अपरस्यादिशितुशितविमानं उतरापरस्यादिशिअव्यावाधा विमान उतरस्पादिशि भरिय विमानंचशब्दःसमुचिनार्थस्तेयामतरेयुद्दौहीदेवगणोतयथासार Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधिप्रतिपत्यर्थ माह । यी तपद्मयुक्तले श्या हि त्रिशेयेयु ॥ पीता च पद्मा चक्का चपीतय पाचपी पद्म का लेश्या येषां ते पीतपद्म शुक्लले श्याः कथं र स्वत्वं उत्तरपदिकं यथा दुतायां तपरकरणे मध्ययले वित्त यो रुप से ख्यानमिति अथवा पीतश्च पद्मश्वशुक्लापी तपद्मयुक्ताः वर्णवं तोर्थाः तेषामिव लेश्या येषां ते पीतपद्मशुक्लालेश्याः तत्रकस्य काले श्ये सत्रोच्यते सौ धर्मैर्मेशानयोः पीतले श्याः सानत्कुमार माहें दूयोः पीतपद्मलेश्याः ब्रह्मलोकन ह्मोतरला तवकायीष्ट शुक्र महाच्यु के खुपद्मलेश्या मध्यमांशः सतारसहखारयोः पद्मल लेश्ये- मानता दिसुन यो दशस्थाने युयुक्त लेश्याः तत्राप्यनु दिशा नुतरे बुपरमसुक्त लेश्पा स्वेऽनभिहितं कथं माग्नहां साहचर्यात् लोकवत्तद्यथा छ त्रियोग छंतीतिः प्रछत्रिषु छत्रिव्यवहार एवमिहामपित्र्ायोः प्रन्यतरणहीभवतिभ्प्रयमर्थः स्तन्त्रतः कथंगम्पतेर तिचेदुच्यते एवमभिसंबंधः क्रियते द्वयोः कल्पयोर्युगल मोः पीतले श्याः सानत्कुमार माहें दूयः पद्मलेश्या यामविवक्षात ब्रह्मलो का दिखुकल्प युगले खुपद्मलेश्याः युक्र महाम्एकयोःशु कलेश्यायाः प्रविवक्षितत्वात् शे ये खुत्तारादियुक्त लेश्या पद्म लेश्या यामविवक्षातइति नास्ति दोषः प्राहक स्पोषपचा इत्युक्तमुक्तं तत्रे देन ज्ञायते के क ल्याइत्युच्यते ॥ २॥ प्राग्गे वैय प्य 1 Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीरेणसहस्थानस्थितिःशायानुग्नहशक्तिःपभावःसुखमिंदियार्थानुभवःशरीरवसनाभर . गादिप्तियुनिलेश्यालेश्यायाविशुद्धिलेश्याविबुद्धिः रंदियाणामधिश्वविययइंद्रियावधि विषयातेभ्यस्तैर्वाधिकारतितस्यउपर्युपरिषतिकल्पप्रतिषस्तारंचवैमानिकास्थित्याभिरधि कारत्यर्थः यथास्थित्यादिस्यभरूपर्युपरिअधिकाःएवंगत्यादिभिरवीत्यनिषसंगेतन्नित्यर्थ माह॥णागतिशरीरपरिमहाभिमानतोहीनादेशाद्देशांतरणाप्तिहेतुर्गतिःशरीरवैकियकमु लोभकमायोदयाहिमयेयुसंगःपरितहःमानकमायोदयादुत्पनोहंकार अभिमानःशतैर्गमा दिमिरुपर्युपरिहीनादेशोतरविययक्रीडारनिषक भावातपरिउपरिगतिहीनाःशरीरंसौधम्मे शानयोर्दैवानांसप्तारनिषमाणसानत्कुमारमाहेंइयो यररनिषमाणब्रह्मलोकब्रह्मोतरलोतव काविष्टेयुपंचारनिषमासुकमहाशक्रसतारसहलारेयुचतुरेनिप्रमाण मानताणतयो: परईचतुथीरनिप्रमाणभारणाच्युतयोरनित्रयषमा मधोग्नवेयकेयुभईततीयारलिषमा मध्यमगचेयकेवरनियषमागांउपरिमग्नवेयकेयुअनुदिशविमानेचाध्यदरिलिष माअनुतरेवरनिषमाणपरिग्नहश्चविमानपरिकदादिउपर्युपरिहीनः अभिमानश्वउपर्यु परितनुमंदकवायत्वाहीनःपुरस्ताविधुनिकायेयुदेवानालेश्याविधिरुताइदानींवैमानिके खुलेश्या. Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वत्वारियोजनानि उत्प्लुत्य शनैश्वराचरं तिसरा य ज्योतिर्गणगोचरो नभोव का शोदशाधिक योजनशतबहल तिर्यग संख्या त्तद्वीपस मुद्दझमाणे घनोदधिपर्यतः उक्तंच नवतदुरसत्वंस याद सप्तीदीचदुतियं दुगच उक्क तारार विससिरिरका वहुभग्रवभ्यं गिरारसरणी ज्योतिष्का गांग तिविशेषप्रतिपत्यर्थमाह ॥ २५॥ मेरु प्रदक्षिणा नित्यगत यो न लोके ॥ मेरोः प्रदक्षिणो मे रुप दिक्षिणा मेरु प्रदक्षिणाइतिवचनं गतिविशेषप्रतिपत्यर्थ विपरीतगत्तिर्मा विज्ञायी तिनित्य गतयइतिविशेषणामनुपरत क्रियाप्रतिपादनार्थन्न लोक जहां विषयार्थमर्द्ध तृतीये बुद्दी पे बुद्धयोश्व समुद्र यो ज्योतिष्का नित्यगतयो नान्यच इति ज्योतिष्क विमानानां नित्यगति हेत्वभावा त्तहत्य भावइति चेन्ना सिद्धत्वात् गतिरताभियेोग्यदेव प्रेरितगतिपरिणामात् कर्म विपाकस्य वैचिम्पाते बांहि गति सुखेनैव कम्मे पिपच्यनइतिएका दशभिर्यो जनशतै रेकविंशमै रुमप्रा प्प ज्योतिष्काः प्रदक्षिणाश्व रंतिगतिमज्योतिः संवंधेन व्यवहार कालप्रतिपत्यर्थमाह ॥ ॥ तत्कतः काल विभागः तहां गतिमज्योतिः प्रतिनिर्देशा चैन के वलया गत्यानापि केवलै ज्योतिभिः कालं परि छिद्यते । "मनुपलब्धेः भ्मपरिवर्तनाच्च का लोहि विधः व्यावहारिको मुख्य श्वव्यवहारिकः कालविभागस्तत्कृतः समयावलिका दिक्रिया विशेष परिच्छिन्नो अन्य स्पा 1 Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिछिन्नस्पपरिछेदहेतुर्मुव्योन्योवक्षमाणलक्षणरतरत्रज्योतियामवस्थानलक्षणपति पादनार्थमाहावहिरवस्थिताः॥वहिरित्युच्यतेकुतोवहिलोकातकथमवगम्यते नर्थ वशाहिभक्तिपरिणामोभवतिननुचन्टलोके नित्यगतिवचनादन्यत्रावस्यानंन्योतियासि इंगतोवहिरवस्थिताइतिवचनमनर्यकमितितत्र किंकारणांन्रलोकादन्यन हिज्योतियां अस्तित्वमवस्थानंचनसिई अतस्तदुभयंसियर्थवहिरवस्थितारत्युच्यतेविपरीतगति निरत्यर्थकदाचितगतिनिरत्यर्थचस्स्त्रमारब्धव्यतुरीयस्यनिकायस्पसामान्यसंजासंकीर्ति "नार्यमाह॥वैमानिका वैमानिकग्रहणमधिकारार्थरतउत्तरंयेवक्ष्यतेतेयांवैमानिक संप्रत्ययोयथास्पादित अधिकार क्रिीयतेविशेषेणात्मस्थान सुरुतिनोमानयंतीतिविमा नानिविमानेयुभवावैमानिकार तानिविमानानित्रिविधानिरंश्रेणिपुष्यप्रकीर्णकभदेन तबरंदुकविमानानिरंवत्मध्ये अवस्थितानितेयांचतसमुदिक्षुमाकाशवदेशश्रेणिवद, वस्थानातणविमानानिविदिक्षुप्रकीर्ण पुष्पवदेवस्थानानपुय्यमकीर्णकानियांचेमा 2 निकानांमेदावोधनार्थमाहाकल्पोपपन्नाःकल्यानीताश्चाकल्येमुखोस्वर्गीयपप कर नाःकल्पोपपत्राःकल्यानतीना:कल्पातीततिनवग्नवेयकदेवानवानुदिशदेवाःपंचा। Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 य नुतरनिवासिनो विप्रकारा॥ प्रथ्य हमिंद्राः कल्पातीताः कय्यंते द्विविधावैमानिकाः तेयाम 1. वस्याविशेषनिक्षी नार्थमाह ॥ ५ ॥ उपर्युपरि किमर्थमिदमुच्यते तिर्यगवस्थितिप्रति शे धार्थमुच्यते नज्योतिष्कवत्तत्तिर्यगवस्थितान संतखदसमव्य स्थितयः उपर्युपरिइत्यु व्यंते के ते कल्पाद्येवं किप्रत्सु कल्पविमाने बुते वा भवंती त्यत्तभ्नाह ॥ २॥ सौ धर्मेशानस नत्कुमार माहेनह्म ब्रह्मोतरली त व त्कापिष्ठ शुक्र महा शुक्र सतार सहश्रारेखा नत जाण तयोरारणाच्युतयोर्न व सुग्गैवेयकेषु विजयवैजयंतजयं तापराजितेषु सर्वार्थ सिद्धौ च ॥ कथमेव सौ धम्मी दिशब्दानां कल्पा भिधानं सत्यं चात्र र्थि के नागस्वभाव तो वा कल्पस्या भिधानं भवतिभ्प्रथकथमिंद्राभिधानंस्वभावतः साहचर्या हातत्कथं इति चेदुच्यतेसुध म्मी नामसभा सास्मिन्त्रस्तीति सौधर्म्मः कल्पः तदस्मिन्नस्ती त्य एतत्कल्प साहचर्यात् इंडो पिसौ धर्मः ईसानो नाम व स्वभावतः ईशानस्य निवासः कल्पऐशानस्तस्य निवासरत्परास्तत् साहचर्या दिं द्रोपि ऐशानः सनत्कुमारो नामडूः स्वभावतः तस्य निवासरत्या सानत्कुमारः कल्पः त साहचर्या दिंड्रो पिसानत्कुमारः माहें दूना में दुः स्वभावतस्तस्य निवासः कल्पः माहें दुः तत्साहचर्यी दिंद्रो पिमाहेंदुएवमुत्तरत्रापियोज्यं प्रागमापेक्षया व्यवस्थाभवतीति उपयु Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परीत्यनेन यो ईयोरभिसंबंधो वेदितव्यः प्रथमैौ सौ धम्मैशान कल्पौ तयोरुपरिशात्कु मारमा | हैं। तयोरुपरि ब्रह्मलोकन ह्मौ तरौ त यो रु परिलांत व कापि खैौ तयोरुपरिक्रम हा कौन यो रुप रिसता र सहरमा रौ तयोरुपरि मानता तौत्तयोरुपरिवार एण च्युत्तौ प्रध उपरिच प्रत्येक मिंद्र संबंधो वेदितव्यःः मध्ये प्रतिद्वयं सौधर्मे शान स्म नत्कुमार माहें द्राणां चतुरंगी च 'त्वाररंडा : ब्रह्मलोक ब्रह्मो तर यो रेकः ब्रह्मो ना माली नव कापिष्टयोरे को लात वाख्यः शुक्रमा 'हाउ यो रेकः सतार सहरमा रयो रेकः सतारनामा-मानत आणत मारणाच्युतानां चनुचच त्वारः एवं कल्पवासिनीहा दशकेाभवेनि जंबू ही पे महा मंदो यो जनसहरना वगाहो नव नियोजन "" सहरसा कायः न स्पाधस्ताद धो लोकः वाहल्येन स्वमास्तिर्यक् प्रस्टतस्तिर्य ग्लोकः तस्योपरि यात् उई लोकः चूलिका चत्वारिंशे योजना छाया नस्या उपरि के शांत रमावे व्यवस्थितमनुवि मानमिंद्रकं सौधर्मस्य सर्वमन्य लोकनि योगा हे दिनव्यं न व सुग्मै वे य के वि तिनवशदस्य पय ग्वचनं किमर्थमन्यान्यपिनवविमानानि मनुदिससंज्ञका निसंत्ती निशापनार्थे तेनानु दिशानां जहांवेदितव्यं एषामधिकतानांचे मानिकानांपरस्परतो विशेष प्रतिपत्यर्थमाह ॥ २॥ स्थिति प्रभावसुद्युतिले श्या विश्व ड द्वियावधिविषय तोधिकाः॥ स्वेपा तस्यायुषः उदयात स्मिन्भवे 1 Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वानां कुमारार्णवासाः द्वितीय निकाय स्प सामान्य विशेष संज्ञावधारणार्थ माह ॥ ६२॥ व्यंत्तराः॥ किन्नराः किंपुरुष महोरगगंधर्वयक्षराक्षसभूत पिशाचा ॥ विविध देशांत राणि येषां निवासास्ते व्यंतरा इति मन्वर्था सामान्ये संज्ञेयमपिविकल्पानां ते श्री व्यंत रागां प्रौविकल्पाः किन्नरादयो वेिदितव्याः नामक मोदय विशेया पादिनाः च पुनस्तेषामा बासा इति चेदुच्यते ॥ मस्मा जंबूदीपादसंख्या यातीपसमुझतीत्य परिष्दे खरय थिवी भागे सप्तानान्यं तराणामाचासाः राक्षसानांचे कबहुलभा ततीयस्प निकायस्य सामान्य विशेष संज्ञा कीर्तनार्थमाह ॥ २॥ ज्योतिय्काः स्रुर्या चंद्रमसौग्नहन क्षत्रप्रकीर्णक तारकाश्र्व ॥ ज्योतिः स्वभावत्वा देयां यं चानामपि ज्योतिष्का इति सामान्य संज्ञाभ्यन्व र्याः स्तूर्यादयस्तद्विशेषसंज्ञानामकर्मोदय प्रत्ययाः स्त्रर्या चंद्रमसा वित्तिष्टथ कग्नहां प्राधान्य ख्यापनार्थं किंकतंपुनःप्राधान्यं प्रभावादिक तं क्व पुनस्तेषां मा वा सा इत्यत्रोच्यते प्रस्मात्समान भूमिभागा दूईसप्त योजनशतानिनवत्पुत्ता उत्तमुत्प सर्वेषां ज्योतिषामधोभागं विन्यस्तास्तारका वरंति तनोदश योजनान्युत्युत्पर्यावरंति ततोशी नियोजनानामुद्धृत्य चंद्रमसोनमंति न तस्त्रीणियोजनानि उपत्य नक्षत्राणि ततचत्वारियोजना निबुधाः ततस्त्रीणियोजनान्युत्प काः तत स्त्रीणि योजनान्युत्प वहस्पतयः॥ ततश्वत्वारियोजना निउत्पत्य अंगार का मानन Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्मोतरलांतवकापियुदेवादिव्यांगनाटंगाराकारविलासचतुरमनोज्ञवेयरुपालोकनमा त्रादेवपरमसुखमाप्नुवंतियक्रमहाक्रसतारसहरलारेयुदेवावनितानांमधुरसंगीतम्र दुहसितललितकथितभूषणरवनवणमात्रादेवपरांषीतिमास्कंदंतिमानतपाणतारणा युतकल्पेयुदेवाःस्वांगनामनःसंकल्पमात्रादेवपरंसुममवाप्नुवनि प्रयोत्तरेयोकिंधकारसु समित्युक्तेतन्निश्चयार्थमाह॥॥परेजवीचाराः॥परग्नहणमितराशेयसंग्नहार्थअपवीचार : महणपरमसुमतिपत्यर्थेषवीचारोहिवेदनापतीकारःतदभावतेयांपरमसुषमनवरतमित्यु तंभवति।उक्ताये मादिनिकायादेवाः देशविकल्याइत्तितेयांसामान्यविशेषसंज्ञवधारणार्य मिदमुच्यते।भवनवासिनोरसुरानागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तिनितोदधिद्दीपदिकुमारा॥भवने युवसंतीत्येवंशीलाभवनवासिनः मादिनिकायस्पेयंसामान्यसंज्ञाः असुरादयःविशेषसंजावि शिष्टनामकर्मोदयायादितरतया सर्चयांदेवानां प्रवस्थितवयःस्वभावत्वेपिवेषभूषायुधया नवाहनकीउनादिकुमारवदेवांयाभासत्तरतिभवनवासियुकुमारव्यपदेशोरूद प्रत्येकंपरि समाप्यतेश्नसुरकुमारास्त्येवमादिकतेषांभवनानीतिचेदुच्यतेरत्नषभायाः कवहुलभागे. असुरकुमाराणभवनानिखरप्पथिवीभागेउपर्यधश्वएकैकयोजनसहरसंवर्जयित्वाशेखेन ..LASALA Mant-artisinin Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाघोषश्व उदधिकुमारा शांजिल को तो जल प्रभवदीप कुमाराणां पूर्णा वसिष्टवदिकुमा राणाममिति रसीतिरमित वाहनश्चेति व्यंतरेव पिकिंनरा गा हा विंझे किया र किंपुरुषश्व के पुरुषाणां सत्पुरुषोमहापुरुषश्च महोरगागमतिका यो महा कायश्वगंधर्वा गांगी तर तिग तयशाश्वयक्षाणां पूर्णाभ ट्रोमा भिश्व राक्षसाणां भीमो महाभीमश्च पिशाचानां कालोम हाकालभ्वभूतानां प्रतिरूपोऽप्रतिरूपश्वभ्मथैषां देवानां सुखं कीदृशमित्युक्ते सुखावबोधना र्यमाह ॥ ५॥ कायप्रविचारामारोशानात् ॥ प्रवी चारो मैथुनाय सेवनं कायेनजबी चारोयेयांते काय वीचाराः प्राङ-भिविध्यर्थः भ्नसंहितया निर्देशः भ्प्रसंदेहार्थः एतेभवनवास्यादयाः ऐशानां ताः संक्लिष्टकर्मकत्वात् मनुष्यवत् स्त्रीविषय सुखमनुभवतीयः अवधिर्ना दि तरेषां सुख विभागेभ्प्रनिज्ञतेत स्त्रतिपादनार्थमाह ॥ ७॥ शेषाः स्पर्शरूपशब्दम में प्रवीचा राः । उक्ता विशिष्यसंग्रहार्थशेष ग्रहण के पुनरुक्ता वशिष्टा कल्पवासिनः स्पर्शश्वरूपं चशब्दस्य मनश्व स्पर्शरूपशब्दमनांसि ते सुपवी चारो येषां ते स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचाराः कथमभिसंबंध मार्गाविरोधेनकुतः पुनःप्रवी चास्न हामिष्टसंप्रत्ययार्थमितिकः पुनरिष्टो मिसंबंधः माषी वि रोधीसनत्कुमारमाहेंद्रयेोर्देवा देवांगनांग स्पर्शमात्रादेव परांप्रीतिमुपलभ्यते तचादेव्यापि ब्रह्म त्य 1 Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रिंशाःवयस्पषीठमईसहशा:पश्यिदिभवापारिबदामात्मरक्षाःशिरोपक्षोपमानाः अर्थचरारक्षिकसमालोकपालाःलोकंपालयंतीनिलोकपालापदात्यादीनिसन्तानीका निसैन्यस्थानीकानिदंडस्थानीयानि प्रकीर्णकाःपौरजनपदकल्पाः माभियोग्यादाससमा नावाहनादिकर्मणिपरता मंतेवासस्थानीया:किल्बियिकाःकिल्वियमेयामस्तीतिकि विषिकाएकैकशःगतेदंडादयोदशविकल्पाश्चतुर्युनिकायेयुउत्सर्गेषशक्तास्ततोपवा दार्थमाह॥वायस्त्रिंशलोकपालवाव्यतज्योतिकाव्यतरेयुज्योतिकेयुचवायरिंचं . शानलोकपालांचवर्तयित्वाश्तरेदीविकल्पाडव्याल्मथतेषुनिकायेयुकिमेकैकरंदुर तान्यःप्रतिनियमःकश्चिदस्तीत्यतमाह॥पूर्वयोहीदाः॥पूर्वयोनिकाययो भवनवासिय तरनिकाययोः कथंक्तिीयस्यपूर्ववंसामीप्यात पूर्ववमुपयोक्तंही दाइति मंतरनीतः चीतार्थ हीदौड़दौयेषांतेहाति यथासप्तपर्णाष्टोपदरनितद्यथामवनवासियुताव दसुरकुमारागाहाविदोचमरोवैरोचनश्वानागकुमारागांधरणभूतानंदश्य विद्युत्कुमा राणहरिसिंहोहरिकांतवसुपर्माकुमारावेणुदेवोवेदारोची मग्निकुमाराम ग्निशियोग्निमाणवच वातकुमारावैलंगभंजनश्चस्तनितकुमाराणांसुघोयोम Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यांते पीतातले श्याः एतदुक्तं भवत्तिमादित विमुनिका येशु भवन वासिव्यं तर ज्योतिष्का गांमसुरदेवानां कनानी ला का पोत पीते तिचतस्त्रले श्याभवति तेषां निकायाना मंतर्वि कल्पप्रतिपादनार्थमाह ॥ दशाष्ट पंच द्वादश विकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यंताः॥चतुर्गादेव निकायानां दशादिभिःसंख्या शब्दैः य या संव्यमितिसंवध्येवेदितव्यःदशविकल्पाःभवः नवासिनमष्ट विकल्पाव्यंतराः पंचविकल्पा ज्योतिय्काः । द्वादश विकल्पावैमानिका इति सर्व वैमानिकानी हादशविकल्पांतः॥पातित्वेन शक्ते ग्मैवेयकादिनिवृत्यर्थविशेषणमु पादीयते कल्पोपपन्नपर्यंता इतिभ्न यक यंकल्प संज्ञाः। द्रादयः प्रकाराः दशैतेयुकल्प तइतिकल्पाःभवनवासिषुतत्कल्पना संभवेपिरू दिवशात् वैमानिके खे न वर्तते कल्पश दः कल्पेषूपपन्नाः कल्पोपपन्नाः पर्यताये यांने कल्पोपन्न पर्यंताः पुनरपितद्विशेषप्रति पत्यर्थमाह ॥ इंदूसा मानिकनाय खिंशत्परिशदात्मरक्ष लोकपालानीकप्रकीर्णा का भि योग्य किविका क॥ि अन्यदेवा साधारण मादिगुणा योगादिं देती ती इमा श्ये वर्जितं यत्तस्थानायुर्वैर्यपरिवारभोगोपभोगादितत्समानं तस्मिन समाने भवाःसा | मानिकाःमहत्तराःपितुगुरूपाध्यायतुल्याः मंत्रिपुरोहित स्थानीयाः। चयस्त्रिंशदेवत्रय ST: Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः॥भूविलले श्याद्या बुद्दी यो दधिर्वास्य गिरिसरः सरित्तो मानेन्द्णाभेद स्थितिः तिरश्वामयि तृतीये॥५॥भवजखयो व धिंदेवनार का शामित्येवमादियुध्न सकदेव शब्द उक्तः तत्र न ज्ञाय ते केदेवाः कतिविधाइतिवातन्निर्णयार्थ माह ॥ २॥ देवाश्च तुर्ण कायाः॥देवगतिनामक 'र्मोदये सत्यभ्यंतरे हे ती वाह्य विभूतिविशेषैः औं पादिसमुद्रादि प्रदशेमुयथे बंदी व्यंति कीडं तिीतिदेवाः ॥ इहैकवचननिर्देशोयुक्तः देवश्व तु काप३त्तिसजात्यभिधानात् बहूनां प्रति पादकोभवति बहुत्वनिर्देशस्तदंतर्गत भेदप्रतिपत्यर्थः इंदसामानि कादयो व हवा भेदाः संन्ति स्थि तित्यादिकता व तत् स्वचनार्थ देवातिनाम कर्मोदय स्वस्व कर्म्म विशेश्रापादित भेदस्य सामर्थ्यात् निचीयंत्र इतिनिकायाः संघाता इत्यर्थः चत्वारो निकायाये बां ते चतु त्रिकायाः के पुनस्ते भवन वासिनो व्यंतरा ज्योतिष्कावैमानिकावेति तेषां लेश्यावधारणा ये सिदमुच्यते ॥२॥ प्रादित त्रि खुपी तांत लेश्याः॥ मादित इत्युच्यतेभ्प्रतेमध्ये अन्यथा बाग्नहगांमा विज्ञाप्रीतिमादौ प्रादित द्वयोरेक स्पचनिवत्यर्थे विग्गहां क्रियते प्रथच तु निवत्यर्थकस्मान्न भवति मादित्तइतिवचनात् खटुलेश्या उक्ताः तत्रचतस्वणां लेश्या नांग्नहरणार्थ पीतांतग्रहणां क्रियतेपी तांतेज इत्यर्थः पीतानंते यासां ताः पीतांता ले श्याये. Page #693 --------------------------------------------------------------------------  Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ inानाची दलहर वारदीजिनसमा कार्यकाल यता स्वयं मुवेनमस्तुभ्यामुत्पाद्यात्मानमात्मनात्मनेव तयोता रत्तयचितवनयातमनेजगतां पत्यालक्ष्मीमनमोनमःमविदांवरनमस्तुभ्यं ।। नमस्तेवदतांवरा कामशJहणंदेवामामने तिमनीषिणावामानुमसुरेगमोलिसग्मार लाभ्पर्चितक्रमो ध्यानपणानिर्मिनापन घातिमहाना अनंतमवसंतानाजयादासी रनंतजिना शलोकानिर्जयावान्तापुर्दप्पमान १ दजेयोनवाना। विरताशेसंसाराबंधनोमय व्याधव त्रिपुरारित्वमीशोसिाजन्मम्रत्युज राजकता निकालविययाशेषांतत्वमेदात्रि धौस्थित केवलारुदधचक्षुःस्विनेत्रोसित मीशितः॥सामंधकांनषाहामोहांधासुर मनाताईतेनारयोयस्माईनारीस्वरो स्पतमा शिवःशिव पदधंसा दुरितारिहरी या हरः शंकरःकनसंलोकेशंभवस्वभवन्मुखे रसभोसिजगज्येयः पुरुःयुरुगुणोदयः। नामेयोनाभिसंदरतारिश्चाककुल नंदनः त्वमेकपुरुयस्कंधावंहलोकस्यलोचनावंत्रि SHABo-khulakadukan a Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाबुधिसन्मार्गविसस्त्रिज्ञानधारकारचातुः सरणमांगल्सातिरखंचतुरश्रधी पंचब्रह्म मयोदेवा पावनस्वंयुनीहिमा २२(चतुःसरणार, मांगसाम्रर्तिस्वं चतुरश्रधीपंचनामयोदेच पावनागस्वर्गवारिणेनुभ्यां सद्योजानात्मने मः जन्माभियेकमाराय वामदेवो नमोस्तुते ॥२३॥ पुरुयायसुरुषलेनाविमुक्तिपरभानिने नम स्वत्पुरुषावस्याभाविनीतेपवित्रतेश नीक्रांतायघोरायपरंपशममीयुगे केवल ज्ञानसंसिहावीश्यनायनमोस्तुते २५ ज्ञानव रणनिर्हासा नमस्तेनंतचभुये रसोनावरमा छेदी नमस्तेवियदर्शिने १९ नमोदर्शनमोहमें सायिकामलरययोनमः अारित्रमोदधि रागायमहोजसेशनमस्ते नवीर्यायानमोने नस्लुयात्मने नमस्लेनंतलोकायालोकालोकार लोकिने २८. नमस्तेनंतरानाया नमस्तेनंतलब योनमस्तेनंतभोगापानमोनंतोपमोगिनोर नमःपरमयोगायनमस्तुभ्यमयोनयनमः परमम्मलायानमस्तेपरमर्य. १॥ नमः रमविद्यायानमःपरमतहिरे नमःपरमतर बायानमलेपरमायने २१ नमपरमरूपा । Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यानमःपरमतेजसे नमःपरममार्गाया नमस्तेपरमेटिने ॥२२॥परमंभेजषेधाम र मजोतियनमानमःपारेजमाजामधानेप | रमरात्मनो २ नमःक्षीण कलंकायाक्षी बंधुनमोस्तुतेोनमस्तेक्षीणमोहायासीगारोया यतेनमः २४ नमःसुगनयेनुभ्यंशोभनांग निमीयुयानमस्तेनीदियज्ञासुरवायीनीरिया मनारशकायबंधननिर्माक्षारकायायन मोस्तुतो नमस्तुभ्यममोग्गाया योगिनाम धियो ने।२६ अवेदायनमस्तुभ्य मक या यतेनमः नमःपरमयोगोंइवेदितादियाय ते।शानमःपरमविज्ञानानमःपरमसेयतः नमःपरमहरू परमार्थायनापिनोनमस्तुभ्य मलेश्यायशुहलेसकस्यशोनमोमव्येतराव स्थाव्यतीतायविमोक्षिणा संज्ञसंजिद, यावस्यांव्यतिरिकामलात्मने नमस्तेवितसे ज्ञायानमायिकदृदयावामनाहाराय लिलायानमःपरमभानुयोग्यतीसेयदोया य भवापारमीयुये अजरायनमस्तु भ्पामचलायक्षरात्मनो अलमास्तांगम स्तोत्रं मनंतास्तावकागुलनामस्रतिमा - - - Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यापर्युपासिशियामहै।३३ वसिहालसहभेद लसणखांगिरांपति नाम्मामएसहरलेगा तो मोभीष सिइयो इतिस्तुतिःश्रीमानस्वयंभुः यभाशंभवःसंरराममःवर्यजभःअभुर्णी ताविश्वभरपुनर्भव॥३शविस्वात्माविश्वलो केशोविश्वनचक्षुरक्षरःविश्वविहिश्यविधेशो विश्चयोनीरनीरसविश्वरपाधिमुद्दीता विश्वेशोविश्वलोचनः विश्वयाषीविधि। शाश्वतोवियतोमुषः॥३॥विश्वकर्माजगसे यो विश्वजिनेश्वर विश्व विश्वरतेशो 'विश्वजोनिरनिश्चरभाइजिनोजिनुरमेयात्मा विसुरीशोजगसनिअनंनयरिचितात्माम व्यबंधुरबंधनासायुगादिपुरुषोब्रह्मापंचन समयःशिवः परःपरतरःसत्मापरमेटीस नानन स्वयं योनिरजोजन्मा ब्रह्मयोनिरयो निनामोहारिविजयोजेना।धर्मचक्रीदयाव्यजः आषांतारिरनंतात्मा। योगीचिराचिनः बल - विदेविदलातखज्ञोबलोषिद्योघिद्यनिवरः ४२। मिहोत्सवुहात्मा सिद्धार्थःसिड्सासनःसि रसिहातबुद्देयासिड्साहसोजगद्वितः०४३ सरि। सुरव्युतोनताप्रविस्नुर्भवोदयः प्रभुलरजरो -- Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयो । श्वा जिघ्नुर्धपि रोग्ययः॥४४॥ विभावसुर सं/स्वयं पुरातनःपरमात्मा परंज्योति स्त्रिजगत्परमेश्वरादेशादतिश्रीमत। दिव्य भाषा पतिर्दिव्या फतवा वरून शासन पत्ता ला परमं ज्योतिर्धमध्मसोदमीप्परः धेरै श्रीप तिर्भगवान्नहें नरज्ना विरजा शुचितीर्थ कन के क्लीशान जाई नांत कोमलः॥४॥ अनंत दि प्तिर्ज्ञानात्मा स्वयं बुद्दःप्रजातिः मुक्तसको निरा बाहो निःकलो भुबनो परः४चा निरंजनो जग ज्यो नि निस्कनिरामय प्रचल स्थितिरसोर म्यः कूटस्थस्थानुरक्षय (४४ मग्नीनी म नेता प्रणेता न्यायशास्त्र कत्ः शास्त्राधर्म्मपति धम्मौ धम्मात्माधर्मतिर्यकन् । ४० वखध्वनीव याधीशो रख के तुर्रखायुधा व मोरयप निर्भत मां को वयोवः। ५२३ हिरएपनाभिर्भनाला मतम्भजून भावेनः प्रभवो विभवोभाभिवो भावोभवांतकः॥हिरण्यगर्भः श्रीगर्भः । इमे निविभवो भवः स्वयंप्रभु प्रभुतात्मा भूनना था जगत्खभुः। ५३० सर्वादिसर्वदितार्व सर्वजस दर्शिनः । सर्वी त्सास र्व लोके स । सर्वस वे लोकजित् ॥ ५४ ॥ सुगतिः शुश्रुतः सुश्शून् Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सवापतुरिर्वहशुताविशुतोविशुतःपारो, विश्वशीर्थयुचिश्वाः १५सहरलशीर्यक्षेत्र शसहस्राक्षःसहरलपात् मतभयनवाद। जो विश्वविद्यामहेश्वरः ५६.दिव्यशत स्य वियःस्थनिरोज्येला जमाघेस्टोवरीधीचे योगरिसोवहिल शेटोणियोगरिसगी विश्वाहिश्चश्चिरिश्वभुग्विन नायक विश्वासीविश्वरूपात्मा विश्वजिहिनि तांतक, विभावोधिभयोबीरोविशोको विजरोमर नाविरागोविरतोसंगणे विवितोवी नमत्सरः। विनयजनिताधुर्विलीनाशे यकामयः वियोग्गेयोगविहिवान विधातासु विधीसुधी शांतिभागपथिवीम्सति शांति भाकालिलात्मक वायुम्रेतिरसांगात्मा त्यति मुर्तिरधर्मएका सुपहायजमनात्मा सुखा सभामरजितः ऋखिगयज्ञपतिर्ययोजण्यां गममतंहविग व्योमरततरम्रतात्मानि शोनिर्मलोचन: सोमतिःसुसोम्पात्मा(स मतिमहाधमुः १३.मत्रविमंजकन्धी मध मर्तिरनंतर स्वतंत्रतंत्रक खेतः कांतात: कतिकता रहेरुतीरुतार्यसलत्यः कतरुः Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लत्ताक्रतुःनित्योम्रत्युंजयोम्रत्यु रम्नासाम्ल || तोरवः ६५ ब्रह्मनिरपरब्रह्माब्रह्मात्माबलस ||भवामहाजनपतिर्बले ब्रह्माब्रह्मपरेश्वरः। ६६ ।। सुषसनप्रसन्नात्माज्ञानधर्मरमः समुपशमा मापीतात्मा।पुराणपुरुषोतमा ६० ।६.४१३२.०० विष्यशान महाशोकवनोशोकः कालव्याप यविष्ठर पद्मसत्ययसंम्मतिः पानाभिरनु तर ६...पद्मयोनि गयोतिरित्यस्तुतिःस्तुति स्वरः स्तवनाझेहषीके शो जिनजेयरुतःक्रिया १६गणाधिपोगणाज्येयो।गुपयःपुण्यागुणागली गुणाकरोगुणाभत्धिार्गुणाजोगणनायक:{9°F ; गुणादरीगुणोलेरी निर्गुणः पुण्यःगीगुणःश रएपपुण्यवावरतोवरेण्यगुणनायक गण्यपुण्यधीगण्या पुण्यकत्युन्पशासनःधिमा 'रामोगुणग्नामापुण्यापुण्यनिरोधक:॥२॥पा पापेनोवियापात्मा विषाभावीतकल्मयःनिर्द - होनिर्मदःशांनो निर्मोहोनिरुपद्रवः।७३ मिनि मेयोनिराहारो निक्रियोनिरुपनवनिःकर्लको निरस्तेनोनिई नागोनिरामयः। विशालो विपुलज्योतिरनुलोचिंत्यवैभवः।सुसंबनासुगु मात्मा सुभत्सनयनलविता॥५॥एकवियोमहा Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्यो मुनिःपरिहपतिःधीशोविद्यानिधीसा सोमविनिता विहितानका पितापितामहापा ताः पवित्रपवनोगतिः भातावियगवरोवर्या वर रःपरमापुमान् कविःपुराणापुरुयोवीया न रमभःपुरुतापनियापवसोहेतुर्भुवनैकपिताम हा...तिमा पाई। श्रीरक्षलक्षणः क्ष लक्षएयःशुमलक्षणःनिरीक्षगरीकाक्षः पुष्कलःपुष्करेक्षणासासिहदःसिहसंकल्पः सिहात्मासिसाधन: बुडवोझोमहाबोधिार्ब ईमानोमाईिकारावेदांगोवेदवेद्यो जातरु । पोविरांवरमबेरवेपस्वयंवेद्यो विवेरोबदतांव शअनादिनिधनोग्यतो व्यक्तवाग्व्यक्तशा सनः युगादिकागाधारोत्युगादिजगरादिजः ८२.ती दोतीदियोधोंडो महेंडोजीरियार्थहरू प्रतिदियौहमिंदाच्या महेंदुमहतोमहान्।।३।। उध्वकारणंको पारगोमवतारकानगाहपोग हनंगुह्यं पराई परमेश्वरानमंतरिमे यदि रचित्यग्नीसमारनधी भाग्यमानहरोम्पान ७ यःपसग्नोमिमोग्नजामहातपोमहातेजाः महोरोमहोरयः)महाजसामधामाः महासों महाति महाधी-महावीर्यो. महासंपन्म Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Here imagessure हाबलामहाशक्तिर्महाज्योतिर्महासनिर्मा तिमा आमहामनि महानीतिमलानिमहोदयः महापमहानमहाभागोमहाकवि च्याम हामहामहाकीर्तिी महाकांतिमहावपुःामझरानो महाज्ञानोमहायोगोमहाराणायामहामहाप निषातामहाकल्याणपंचकामहासभुमहापाक्षिः हार्योधीहिमेश्वर महा मुनिमहायानी प्रहामोनीमहारमः।महाक्षमा साहाशीशमहायसीमहामरखमाबामहाजनप तिर्महेशामहा कांतिविरोधिपः॥महामैत्रीमयोमे यो।महोपायोमहोमयाशिमहाकारुणि कोम तामहामंत्रोमहायतिसमहानादोमहाघोयोम हेयोमासांपतिदशामहाधरंधरोधुर्यो।महोद योमहिलयाकामहात्मामहसंधामा महियि महि तोदयायामहालेशांकुष्टरोमहामतपतिगुरु, महापराक्रमोनंतो।महाकोधरिपुर्वसीशमहां भवाहिवसेनारि महामोहादिस्सरनामहागुणा रिसानामहायोगीश्वरशमामहाभानीय निर्माता।महाधर्मामहाव्रती।महाकरिहाल ज्ञोमहारेयोमहेशितासर्वकेशापहःसाधुास दोषहरोहर असंख्येयोपमेयात्माशिमात्मा . mumtamanslU. P ERATOPATI AAAAPatanAINIKANNAAmAnas Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ krism अशमाकरःयासर्वयोगीश्वरोचिंत्याशुनासा विस्टरवादिनात्मादर्मतीर्थेशीमोगो तात्मा ज्ञानसर्वगामापधानमात्मापरुतिपरमः५ रमोदय पक्षीपंधकामालेमरुतम शाशन जाणवःषणायवाणाःमामाया णनेसर अमागांजणधिदक्षोदिक्षिणेयरधरः आनंदीनंदनोनदोवंधोनं घोभिनंदकः का महाकामदकाम्या कामधेनुरजयः।१०२॥ लिमहामुनिशता असंस्कृत सुसंस्कारोजा सत्तोवैरुतांतकताअंतःकांतगुण क्रांति चिंतामणिरभीर द॥३॥ मजितोजितकामारी रमितोमितशासन जितक्रोधोजितामित्रोनि तिलेशोजितां तक जिनेंदःपरमानंदोमुनि डोदुंदुभिःस्वनः।महेंदुवंद्योयोगिंदोयनोंदीनाभि । नंदनाशनाभेयोनाभियोजातःसुनतोमुनिरुत मान्मभेद्योनिरयोनाचलाधिकोधिगुरुःसुगी शस्वमेधासहनमीस्वामीदुराधोनिरुत्तुका विशिष्टशिल कोरापत्ययःकामनोनयम सेमीक्षेमकरोक्षज्याक्षेमधर्मःपतीक्षमीर नाहमोग्याननिम्नहिलोभानगम्पोनिरुतरा सुकनिधीतुरिस्साहनसुनयचतुराननभश्रीनिवा Torrharu - - - -- - SahazLEAZARSAALAClakhainitiarenTERTG - - - rware rt- 1.MamtkariimaadhaNI-MA Amritvesaree.merosamerpr-ram.or.Na Huanthambhustin-ar Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - yamonk- - - - -- - - --- E skr. --- चतुर्वक्रामतुरास्यश्चतुर्मुख सत्पात्मास त्यत्यषिशानासत्यवायतत्पशासनासस्थासी सत्यसंधानः सत्यसत्यपरायणः॥२०॥स्येयान् । स्थवीयानेरीयानादवीयानदूरदर्शन अगे रणियासुरणपशुरुरायोगरीयस २२॥ सरायो गःसदाभोगासदावतसदासिवः सरागनिस दासोरव्यः सदावियःसहोदयः॥२॥सुपोयास मुखसौम्पासुरसरःसमितःसुकतासुगुप्तागु तितोनालोकाअसोदमेश्वरः।२१३॥इतिसं सहनशतारहस्य तीर्वाग्मी वाचस्पत्तीरुदा साधीमनीयोदियरोधीमानाशेमुयीशोगि। संपति।२४ नकरुपौनयोतुंगोनिकात्मानकध मरुताअविज्ञायिषतिकात्माकतज्ञाकतले सणःशज्ञानागर्भोदयाग रत्नगर्भ:प्रभा चरः पद्मग महाग हिमगर्भसुदर्शना लक्ष्मीवॉरिखदशाचसोरदीयातनयीशितामा नोहरोमनोजांगोधीरोगंभीरशासनः॥२॥ मरूपोदयायोगोधर्मनेम मुनिश्वरः धर्मच। कायुधोदेवोकर्महात्मनेघोषणाअमो घर्षगमोद्याज्ञो निर्मलामोपसासन स्वरूप सुभगस्त्पागोसमयसमाहितासुस्थितः --- ----- --- Amandanindmarlimmanihaskar -- - - - - - Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EmainaeratiwV.IAATLamRJMARIArmware.dawn स्वास्थस्वस्थस्यो नीरजस्कोनिरुवा प्रलेपोनिः कलंकामाचीतरागोगनस्य हारषावस्येंद्रियोपि मुक्तात्मानिसपलोजितेहियषशांतानंतधा मिश्रिीमंगलंमलहानयात्रीगुपमा नोदिहिर्देवमगोचरासीम्रतीमनेको ने कोनानेकतखरकाश अमात्मगम्पोगम्या समायोगवियोगवंदितः।सर्चन्न सराभाविधि कालविययार्थरकाशाशंकर शंबोरांनोद मोक्षांतिपरायण अधिषःपरमानंदपराम ज्ञःपरापरः।२६त्रिजगहलमोभ्यर्चबिजन्म गलोदयः भिजगत्यनिरज्यहि खिलोकानशि सामणिशाइतिरहवंद ॥॥त्रिकालदर्शी झतेशो लोकधातारदरतः सर्वलोकातिगार ज्यः सर्वलोकै कसारथि॥२५॥पुराणपुरुयाप कतरवागाविस्तर मारिदेवपुराणायः राणायः पुरदेवोधिदेवनाआयुगमुरव्योयु गज्येष्यो। युगादिशितिरदेसकाकल्पीणवर्णः कल्पाणाकल्प-कल्पागालक्षणासाकल्याण परतीदरीतःकल्पाणामाविकरमसः विकली कवलातीताकलिलग्नः कलाधरः॥२४ देवदै वोजगनाथोजगईधुर्जगद्विभुःजगहियो Prammam -. Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोकज्ञः सर्व गोजगग्नमी । ३ चराचरगुरु गोप्पो ग्टढा त्मा गूढगोचरः। सद्यो जाताः अ काशात्मा। हल: इलन संप्रभुः ॥ ३शामादित्य वर्माभशा सुप्रभकन कःप्रभः। सुवर्णव रुकता सर्यकोटिसमप्रभःक्तपनीयनि भस्तु गोवला कैमोनल प्रभुः संध्या म्रममुहे म तप्तचामीकर विनिष्यलकनक छाया कनत्कांचन संमिभः। हिरण्यच एव गर्भः शांत कुंभ निभषमः॥३४॥ द्युम्नाभोजान रूपाभो। दीप्लिजांबुनदद्युतिः। सुधौत कलधैौ तश्री प्रदीप्तोहार] कदनि॥३५॥ शब्देष्टः पुष्टि दः पुष्टिः स्पष्ट क्षैष्टाक्षरःक्षमः शत्रुघ्नोपनि घोमोघः शास्त्रांशितास्वभुः । ३६। शांत नि स्टोमुनिज्येष्टः शिवतातिः शिवः प्रदः शक्ति शांति कछांनि कांतिमक्कामितप्रदः । ३ श्रेयान विधिराधिधि/श्रमम् प्रति ब्दः प्रतिष्ठितःसु स्थिरःस्थावरस्याच्च। पथिव्यान्य निर्यिः पयः उचाइनिनिकालशनं दिग्वासाचा नरस नो निर्मेयेशो दिर्गवरानि के चनो निराशंशो ज्ञानचक्षुरमोमुहः॥३३॥ तेजोराशिरनंतौजा ज्ञानाब्धिः शीलसागरः तेजोमयो मितिज्योति Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ marwadmanA P aiantra... -योनिमातिस्लमोपहा॥जगचुडामणिदीप्ति शिंवानविघ्नविनायकाकलिनःकर्मशत्रु । लोकालोकपकासका अनिदालुरतिदालु। जीगरकःषमामयःलक्षीपतीर्जगज्योति ईर्म राजपजाहितरामुमुक्षुबंधमोक्षजो जितातो जितमन्मयापशांतरसशैलूयोभिव्यपेटकना यका४३. मलकाखिलज्योतिमुलघोरलका राणाप्लोषागीश्वरीयाना आयसोक्तिनिरु तवाका पवनामय शामीशोमारजिीन भाववितासुतनुतनुनिर्मुक्तासुगतोहतदुर्नया याशीशःश्रीनिनपाराजीचीतभीरभ यंकरः॥ उछल्लोोयोनिर्षिी निश्चलोलोक वसलादालोकोनरोलोकपतिलोकचक्षर पारधीआधीरधीदिसन्मानः।सुइसन्तरत वाकाटेषज्ञापारमितिःषाजोयतिनियम तेद्रियः मतोभद्र कल्परक्षीवरखदः सम्मन्मूलनकारि।कर्मकाशशुश्रुक्ष्म णिकर्मण्यकर्मवाषांशु हैयादेयवियक्षण: अनंतशक्तिरछेदाखिपुरारिरित्रलोचन भिनेत्रःस्माविका वक्षः केवलज्ञानवीक्षण समंतमदःशांतारिधर्माचार्योहियानिधिः। xamAoron. Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्यक मक्षायादामदेसणाचरित्तय साक्षपञ्चरकाणम्यादामसेवरयोगशोमेसस्सोमप्यारणा गदेसणलवारणाससामवाहिराभावासदेसजायनरकरणाला इत्यादिसारपक्षानिरहोत्याचध्याना कर्तव्यमिति यस्यमादोशषयजुजविजयविचार। सपा माक्षालावधिपूर्वक तणाचे तामुक्तयेत्याभवावधोनोक्शयाचनकयामवेधेमाचतनवा चरीनिरणेकालावधषु द्धनिश्वयनयननास्तितणावेधपूर्वकामाक्षप यदिएनामुनिश्वयनवद्योभवतितदासदेवरघो वमाक्षानास्तिविचायष्याम्टेखलारपुरुषस्यवेधकएकारणभूतभावमोक्षस्थानीयवेधछेदकार भनेपोरूपेषरूपस्वरूपनभवनिम्नणययलापुरुषवार्ययमाक्षस्थानीयस्थकारणेतदपिपुरुष स्वरूपेनमान किन्नाध्यामिन्नयहरेहस्तपादादिरूपेनदेवपुरुषस्वरूपानवमुपयोगलक्षणभाव . ... भवति तयवतेनैववेचनसायनीचकमीमदेवायो: रणेश्यामाक्षरूपेतदपिजीवस्वभावानभवतिकित्ताभ्यामिन्नणययनेसज्ञानादिगुणस्वभावफलभूत Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | देवयुद्धजीवस्वरूपमिति पशमनार्थ ॥ यथाविवक्षितैकदेशयुद्धनिश्वयेनपूर्वमोक्षमार्गोव्याख्यात तथा पर्यायमोक्षमो मोक्षोपिन चमु निम्बयेनेति वस्तुयु इज्यशक्तिरूपः मुडवारिणामिकवरमभावलक्ष सापस्मनिश्चयमाक्षसचहूर्वमेवजीवति सत्तीदानी भविष्यतीत्ववेनसल्वरागादिविकल्परहितमोक्षकारणा भूतेध्यानभावनाद्ययौयेध्येयेो भवतिनचध्यान भावना पर्यायरूपः यदिषुनरेकाते नव्यार्थिकनयेनापि सश्वमोक्षकारण भूतो ध्यान भावना पयोयो भएयते । तर्हिव्यवयाय रूप धर्म्मश्याधारभूतस्यजीवधमि तामोक्षपयोयेजाते सति ययाध्यानभावना पर्यायरूपेणाविनाशो भवति ॥ तय्या ध्येयभूतस्यजीवस्य । शुरुयारिणामिक भावलक्षणइव्यरूपेणापिविनाद्या: माझोति नचझ्व्यरूपेण विनाशो स्तिः ततः स्थि ते पारिणामिक भावनवेधमोक्षान भवतइति ।। अय्या मध्यार्य जयते॥ म्मत धातुः सातत्य गम नेवितेते || गमनशब्देनावज्ञाने भएष ते सर्वतत्यायी ज्ञानाणीइतिवचनात् ॥ तेनका रो नयथासंभ बेज्ञानसुखादिगुणेष्वासमेतान् ॥ अत निवर्त्ततेयः सम्प्रात्माभण्यते ॥ अप्यनाशुभाशुभमनोवचनकाय Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इव्य १०५ - भवेतीजमेदादिरूपेण प्रासमेतादत्तत्तिवत्र्त्ततेयः समात्मा अप्यवात्यादव्ययधौच्चैरासमे लाइत्तेतेयःसपत्येति किंच) येथेकोपिचंद्रमानानाजलघरे षुदृश्यते तथैकोपिजीवानानाशरीरेषुति गतियद्ददेतितन्त्रद्यरतेः कस्मादितिचेत्) चेशकिरणोपाधिवशेन घटस्यजलपुलासवनानाचेद्रा कारेगा। परिवतानचे कश्चंद्र ॥ नजदृदांतमाह : गप्यादेवदत्तमुखेोपाधिक्। ननानादलस्यपु लाण्चनानामुराकारे एापरिखनानचे केदेवदत्तमुखनानारूपेण परिशाते। परिणमतिचेत् तर्हि द हास्यप्रति विवेचेत नत्वंप्राप्रोतिनचतप्याकिंतु यदिएकरा बजी वेो भवति ॥ तदाएक जीवस्य सुख... जीवितमरणादिके मामेतस्मिन्नवतो सर्वेषां जीवितमररणादिकेप्राशोतिः नचसप्या हायते / विचारावदेति। यथेकापिसमुद्र कापिताश्जलः कामिसृजल : स्वय्थैकेोपिजीयः सर्वदेहेषुतिछतिः र दपिन घटते | कप्यमितिचे ते जसरास्यपेक्षयानचैकत्वेन चजलपुलापायातचकत्वे यदिजलपुरु भवत्येक स्वेतं दास्ताक जलग्रहीतशेषज्ञ से सहेव किंनायाति ॥ तनः स्थितंषोडशयरिंगकासु Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ masmnna RAHEL.ELA. A वर्णशिवदनेतज्ञानादिलक्षणमत्कालजीवराशिमतिनकजीवाषक्षति अध्यात्मराटदस्यापक यातःमिप्यपात्वादिसमस्तक्विल्पजालरूपपरिहारानुशात्मन्याध्यदनुपनेतदध्यात्ममिति ध्यानसामीप्याल्यानापसंहारमोणगाप्यागतासाजवाडयाने हाका माग माया गुलाम मे चोदेगा जो 21 साधयेतायुद्धकुवत केकतीरा मुणिणाहामुनिमधानाशकिविशिदोषसंचयनुपानिर्दोष परमात्मनाविलक्षणायेरागादिदोषास्तष्यवनिर्दोषणपरमात्मादित्तवपरिज्ञानविषयायविमोह। विभमास्तेलुनारहिनादेोषसंचयच्युता एनपिकणभूता सुदपणा वर्तमानपरमागमायिधानश्य श्रुतेनतयवतदाधारात्पन्ननिर्विकारस्यसवेदनज्ञानस्सभारतनचपूर्णाःसमयाःगुती : वर्स यादवसमहमियो सुवईकस्वभावपरमात्मादिश्व्याणासपाइयसयरा नान्यसेशहाभिधान यमिमे प्रत्यक्षीभूताकिविशिरे भणियोमणित प्रतिपादितायोप्यकेनकभूतनागमिचेदमा KALAnatindukannada.. Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यसं● २०६ गिरणाः श्रोनेमिचंद्र सैद्धांतदेवाभिधानेनगलिना सम्पादर्शनादिनिश्वयव्यवहार रूपयेचा चारोयेत्ता चायैण कप्यंभूतेन तमु सुत्तश्वरेण तनुश्चत्त घेरेर नुनुनुतेस्तो केश्वसंतदरतीति तनुश्रुत धरस्तेनतिक्रिया कारक संवेद्यः पूरा ध्यानोपसंहारसाच्याचयेगाद्वत्ययरिहारा प्रासरतेनचद्वितीयांतराच | कारेसति यस्य लगते इत्युतराधिकाररुयेनचिद्या विमा प्यारिसेनानववाद भारतीय. यतः सततः कम्प्रचयेप्येविवक्षितस्यसधिर्भवतीतिवचनात्पदानासधिनियमांनास्ति वाक्यानि चस्तो कस्ताकानिरूतानि सुख्याद्याप्येतव्येव लिंगवचन क्रियाकारक संवेधसमास विशेवेण वाक्यसमा । प्यादिदूषणे॥ तप्या चमुद्धात्मादि॥ नत्वमतिपादन विषये विस्रत दूषणे चविद्रङ्गिनेग्राह्यमिति छ सर्वपूर्वा रूमकारेाजीयमजीवेद छेइत्यादि सस विंशतिशाव्याभिः षट्व्यवचास्तिकायमतिपादकनामाश्रयमेो तराधिकारस्तदनंतर प्रसववे धरणइत्याद्येकादशाच्यामिः ससतत्वन वयदार्थमतिपादक नामादिती / योधिकारस्ततः परेसम्म देसरा इत्यादि विशत्तिगाथाभिमोक्षमार्गप्रतिवादक नामतृतीयाधिकारू इ Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोपरितोय यात्मनोजत्वस्वतत्वमासिदितिज्ञानत्वस्याप्पज्ञानत्वमस्तितस्प प्पपदित्यनवस्यालयानवस्यामाभूदितिस्वतण्वज्ञानत्वस्थतानत्वमिश्ननुप्रति जाहानिरयोत्तरात्सप्रत्ययतिकिचातत्परिणामाभाययदिइसेवेघापदेडिनानदे। उपरिणामदेडीव्यपदेशमावप्रतिलेभात्तयारमगुणस्यात्मत्वसामान्यविशेषसे विंधेनोमवा गुणसामान्यविशेषपदार्यभेदादतउन्मत्वाचानुघ्मगुणइत्यासक्तैनन् मातिातयोमगुणसेवोपमानन्नीमलेश्यगुणपदार्यभेदादंतमेउवानानिरि त्यासतनतुस्वयमध्मतिासमवायादितिवन्न प्रतिनियमाभावानास्पान्मतसमवा गानामायतसिहलक्षणःसंवेधाइटेदेवुध्याभिधानमरसिहेतुस्तनकत्वमिवनीता नोव्यपदेशाभवतिउत्वसमवायाउमोगुणा उमगणसमवायाच्चानिरुम तितन्नाकुतः॥प्रतिनियमाभावाइमत्वोमगुणयासन्फललाम्चान्यत्वेकायपति । Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - गजलटी - विशिशेनियमायामगुणस्याग्नामवसमवायोनाप्मुशीतगुणस्पचाप्सेवसमवायो नानाउध्मत्वस्यचोमगुरणेनैवसमवायोनणीतादिगुणोतरेणतिगतस्माद्येनविशेष रसायप्रतिनियमरूपतेनतपण्यामा अतरवश्यपरिणामएवोल्यमितिसिईनान्यस्त मातिनियमहतरास्तिस्वभावोहेतुरितिचेततरोवतत्परिणामासद्धिकिंचासमवायलावा वत्पतराभावान्नास्तितत्परिकल्पितःसमवायकुत्तावत्येताभावात्ययागुरणाना पदायानोश्यणसमवायसवाचाहत्तिरिणतयासमवाय.पदार्यातरंभूत्वाकेनसे विधेनम्यादिपवयतिसमवायोतराभावादेकरलहिसमवायलॉनरेनच्यारयतमिति वचनातनचसयोगनरत्तियुत्तसिद्धाभावाद्युतसिद्धानाममाम्सपूर्विकामासिसेयो। ग नचान्या सेवेध"मपोगसमचायविलक्षणास्तियेनसमसयस्यश्व्यादिपुर तिगस्यादतगसमवायमिरनाभिसंधान्नास्तिरखरविषाणवत्समवाय मामिला। Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यासंतराभावनिवेत्॥ नव्यभिचारावास्यान्मतेच्यादीनिमाप्तिमतिसतस्तेय कयाचित्मासानातव्यसमवायस्तुमासिन्नेमासिमानतमासेतराभवपिस्वतस्वमा प्रोतितीतचनकस्माद्याभिचाद्ययासयोगःमासिरपिसपासंतरेणसमवायनवर्तते तयासमवायस्यापिस्यादितिपदीपवदिति चेन्नतत्परिणामादनन्यत्वसिद्देस्पाद तद्ययामदीपाप्रदीपोतरमनपेक्षमाणात्मानप्रकाशयतिघेरादीनातथासमया या सेवेधांतरापेक्षामेतरात्मनश्वश्यादिषुरलिहेतु पोदीनोचपरस्परतातित नाकृतस्तत्परिणामादनन्यत्वसिद्धयेयाप्रदीपः स्वयंप्रकाशपरिणामाप्रकाशात्म नानन्यप्रकाशोतरनापेक्षतासन्ययापकाशात्मनान्यत्लेप्रदीपस्यापदीपलप्रसंग यता नपकासात्मानापोम्पान्यताप्रदीपोस्तितप्यानच्यादन्यगुणकम्मसामान्यविशेषसम वायासंति॥श्यस्यवाभयपरिणामकारणापेक्षस्यगुणाकम्मसामान्यविशयासमा Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजष्टी० चायइत्येवमादिपयोयोत्तरेणपरिणामः । यथाप्रदीपावलक्षणप्रसिदोघदादिभ्योन्य नवेसमवाय स्वलक्षणमसिद्धाश्च्यादन्यास्तिश्यस्येवगुणादिपयायपरिणामात्तस्मा न्नपदीपवत्समवायसिडिगम्मन्यप्याचव्यादन्यत्त्वगुणादीनोश्यस्पास्यत्वप्रसे: तीनगुणादिपर्यायानोपान्यश्यमास्तयदिवागुणादीनाशश्व्याकेनचिद ! सविशेषणपसिइयाणादभि सेवैधतासावशेषच्यत्तीयतानागुणा गनान्याश्यस्यविशेष स्वतःप्रसिदोस्तिपतोश्यपरिणामासवाणादयतिमि किंचविशेषपरिज्ञानामावाद्यस्ययुत्तायुतसिहामाहर्कविज्ञानमकमास्तर युतसिद्धानासमवाय युतसिदानासयोगइतिा स्पाहिशोषविज्ञानभवतस्तक्षणि निकायविइयत्तात्तानानातशेषविज्ञानाभावस्तदभावात्तविकाभावः ।। संस्कारादितेिचेन्नातस्यापितादात्म्याश्यादेतत्ाज्ञानजाज्ञानहेतुश्वसंस्कारास्तिा Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस्पाइ"सामथ्यामनिनन्नकुतस्तस्पापिस्तादात्म्यादकायाहिजानस्यसंस्कारस्यच कोगर्यपाहिज्ञानहेतुत्वासानेकार्यपाहिज्ञानाभावाचानेकार्थमाहिज्ञानसेस्का रामावस्तस्मात्पूर्वोक्तादोषस्तदवस्यवाणवायमः। कर्मकरणयारन्यवाद अन्यत्वमात्मज्ञानादौनापरवादिवदितिचेन्नातत्परिणामादीनदितियप्याग्निर निस्वभावादन्यादहनदाहाकयायाःकत्तौकिकरणादहतितत्परिणामादान्या मविकरणेतयात्माजस्वभावत्वातज्ञानादन्यस्तत्परिणामादयोनजानन्दज्ञान कियायाकतीकिकरणाजानातितत्परिणामात्तदेवज्ञानेकरणत्वनविवल्सने अन्यथावाततस्याभायनवधारणासग्निवदित्यवमादिवाक्याप्यविवरणेदहा। नस्वभावापेक्षया याज्यचिअनेकोतात्पर्यायपय्यीपिणारयोत्तरभावस्यघटा दिवायापरकपालशकलपारादीनानयद्यार्पणाभेदात्स्यादेकत्वस्पादन्य, त Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजारी लेकथमिहापायायकारणभावव्यापकप्राधान्यापर्यायानपणान्मश श्यानीवानुपयोगादिश्च्याप्पणास्यादकत्व र नजहतिगतषोमवश्यायकगुणभावपोयार्णिकाधान्यायायीनप्पणात्कार रणविशेषायादितभेदपर्यायापापणास्पादन्यत्वायतान्याघटपपीयोन्यम्बकपा लादिषयीयस्तयामदोघटादिपय्यायाणाचस्यादेकत्वस्यादन्यः । स्यादकत्लयताम्पमेवउभयपरिणामकारणवशा . ततापदेशमाभवतिानान्येघरादयाम्पव्यतिरिक्तघटादिपयोपाभावात्पपीयि पीयभेदाचस्पादन्यलायतपर्यायपपपर्यायाघटादयस्तया दिपय्यायाणीचस्पादेकत्वास्पान्नानावकर्यपगोयार्थिकगुण न्यापीयाप्योनपेणादनादिपारिणामिकचैतन्यजीवश्यायाप्पणात्स्यादेकत्वय Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोतानादयानादिपारिणामिकचैतन्यजीवश्व्यादिश्यार्थनजहतितेषामेवग्याय काणभावपयीयार्थिनप्रधान्यापाप्यानपणाकारणविरोधापादितभेदपी याप्पीपणात्स्यादन्यत्वयतोन्यातानपयीयोऽन्येचदर्शनादिपयीयास्तयात्मनाः || नादिपयोयाणाचस्यादेकत्वस्यादन्यत्वेगकतत्परिणामादेशात्स्यादेकत्वयता मात्मवाभयपरिणामकारणवणारतानादिपर्यायपरिणत:ज्ञानादिव्यपदेशमा ग्भवतिनान्यम्मात्मानान्येतानादयःमात्मश्यव्यतिरिक्ततानादिपपीयाभावा! तपप्पीयेपयोयभेदाचस्यादन्यत्व यतापीयीमात्मापोया:ज्ञानादयस्तस्मादे कत्लान्यत्वेप्रत्यनकोतापपत्ते । तत्परिणामत्वेपिकरणभावायुक्तः॥इतरयाहिए कार्यपीयादन्यत्वमाभिरेक्षपद्यस्यैकोतिककर्तकरणयारल्यत्वतस्यकार्यपर्याया) यादन्पत्लेमाकियरक्षवद्ययामासादेकरोतिपरश्वादिमिरित्यनकर्तकरणयार Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज- टोन्यखेतमाभज्यतावक्ष शारवाभारणारत्यकस्परक्षस्पशास्वाभारार्थपर्यायादन्यत्व। मासनवादस्तियतोनसाखाभाराहतत्यारक्षानशाखाभारादन्यारक्षोनभवती तिभज्यतरक्षा शाखाभोरणतिगरकार्यपयोगात्मकराकरणनिर्देशानभवतिर नात्मश्याहतेऽन्यज्ञानेनचात्मश्च्यातनान्यज्ञानमितिजानात्पननाप्योतात्मात एकाप्येपर्यायात्मकंकरणनभवतिकिचाकरणस्याभपयापपत्तश्यस्यत्तिमदम्। तिभेदवद्यप्याश्यस्यमूर्तिमदमोत्तभेदादेकातपरिग्रहानास्ति. शम्मीकारकालाप्रमूत्तयमात्माचामूतश्यायोदेशान्नपयोयाप्योदेशातस्याना दिकाम्मरणशरीरसंबंधात्तप्याकरणद्देधाविनाविभत्ताककभेदालतरन्य तकरीको स्थापरसुनाछिनत्तिखदत्तइतिकर्तुरनन्यदविभुतकर्डकययाग्निरे चनेदहत्याध्यतितयात्मासाननायीनजानातीत्यविभक्तर्तकेंककरणकिंव Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाताचवमलस्वातव्यपद्ययाभिननिजामूलदेवदत्तत्यकुशलायदाभिदिक्ति यायाः सुकरतमाखातोगविवक्षित स्वयमेवात्मानाभिनन्तीतितदाकिकरण सावात्मानभिनतीतिविवक्षायोकुमूलात्मककरणलेनोपादायततयात्मवज्ञा ताकरणचभवत्तियविचाएकार्यपयोयविशेषोपपत्तरिशदिव्यपदेशवत्ताहका स्पायस्पानकपयोयविशेषोपपत्तिहानचास्यतेभ्यम्पयोयम्पान्यत्वकपिशादि) व्यपदेशवतयणकस्यदेवराजायस्पेशक्रपुरेदराद्यनकच्चजनपीयविशा पपत्तिानचदेवराजस्पेशाकपुरदरादिपयायेम्पोऽन्यत्वेनचानन्यत्वाद्येनाया प्रस्तनकराकर परंदरोवायनवाशनस्तनराशावाकयमिहयता जादोनो प्रतिनियतपेजनपोयोपपत्तिाप्रेनादेशाशकनाछक पूरिणात्युरेदरति नदनशकनपूद्दीरणव्येजनपर्यायभेदान्नेदेवराजमाकापुरदरावानभवति । Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवटी भवत्यवान कस्यात्मनाजानादिपर्यायविशेषापपत्ति "तस्मादेकायपीयविशेषोपय तेनीन्यत्वमात्मश्च्यादकोतनशानादीनोगकरीसाधनलाझादोषाभावालयवानमान नदशीनादाकरणसाधनोकित्तहिक-साधनातयाचारित्रशापिनकम्मसाधना किताहैकरसाधन कप्पमेवभूतनयवशात ज्ञानदर्शनचारमाणिमात्मवेशात सत्परिणामारज्ञानादिपरिणतमात्मवज्ञानातीतितानपश्यतीतिदीनंचरतीतिचा रित्रमतायउता करकरणयारन्यत्वादन्यत्वमात्मज्ञानादीनामितिदोषासनभवतिले क्षणमावइतिवेलवालकात्स्यादतन्नलक्षणमस्तिकत्तरियटाविधायकमितितन्न कृत वाकलकारयुड्यावशलमितिकारियुणिवम्बयनविहितास्ततान्यचापि दृश्यते व्याभावकम्मरणाविहिताःकरणादिष्वपिभवतिस्नात्यननस्नानीयंम्वूर्ण दात्यस्मतिदानीयातिथिःसमाक्ततेतस्मादितिसमावर्तनीयोगुसाकरणाधिक Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i राधिकरणयाWडुक्तः। कम्मीदिष्यपिदृश्यतनिरदाततादेतिनिरदनमस्कदतितस्मा) दितिपस्केदना पप्यवामानसाधनाजानादिशयास्तत्वकथनाहाचस्यकरणव्यपदेशाव योदासीन्येनावस्थितमन्दितणादिवाकरणमितिव्यपदिश्यततयादासीन्पर्ने। वास्थतानिज्ञानदीनचारिवाणिप्रतिनियतज्ञानदर्शनचरणावयाच्यापार प्रतिनिरा तोत्सुक्यानिकप्तकासामोक्षमार्गाजानदर्शनचारित्राणिजातिजीनापी नचरणचारिणमितिक्रियाच्याएतानातुन्जानादोनोवानादिकारकव्यवहारांव्यक्ति भेदादयतामतिचेन्नकार्यशान्यत्वाद्यक्तिभेदात स्यादेत्तताज्ञानमात्माते मयु क्तिकस्माद्यक्तिभेदादामधेयवस्लिंगसरयभवाताभिधानस्यतिन्जानमात्मतिमाशाती तितन्नकिकारणएकातदान्यत्वादातिभेदातःगएकस्मिन्नप्पयशवभेदादाक्ति भिदादृश्यतययारोहकुटीमर पुष्प-तारकानक्षमितिण्वज्ञानमात्मत्यपिस्यात। Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजरी ज्ञानग्रहणमादान्याय्यानपूर्वकत्वादशेनस्यामाहाज्ञानग्रहणमादान्याप्याकुतस्तत्पूर्व कत्वादशीनस्पयत पदार्थतत्लापलब्धिपूर्वकेनशाना सल्यामरतिस्वरस्यसे । ज्ञारत्वाच्चदर्शनावतानमल्याचरेसतश्चपूर्ववाच्यानाभवायुगपत्रारत्त-मतापमकाश चिन्नपदोष कुत्ता उभयसैगपदाफियपकासप्रतापरूपवद्ययासवितुरनपटला वरणविगममतापणकापामरतियुगपनवतितप्याज्ञानयानयायुगपदात्मलाभस्तद्य यो यदानिमाहस्योपसमाक्षयोपशमाक्षयायामात्मासम्यग्दर्शनपर्यायेणाविर्भ चति तदेवतस्यमतिज्ञानमताजाना निक्षिपूर्वकमातजानेझुतज्ञानेचाविष्लेवातादर्शन स्यैवान्यहितत्याद्यदप्युक्तमल्पाचरवारज्ञानस्यपूर्वनिपातरतिस्तदसताकस्मादी नस्यवाभ्योहतत्वात ज्ञानाशीनमेवाभ्यहितदर्शनसैनिधानसतिम ज्ञानस्यापित ज्ञानभावाला ज्ञात्वाप्पझधतस्तदभावानमध्येजानवचनज्ञानपूर्वकत्याचारित्रस्य Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पताजीचादिपदायेतबज्ञानसन्निधाने सति चारित्रमोहस्योपशमात्क्षयोपशमाचयाद्दाक मीदानहेतु क्रियाविशेषेोपरमध्वारित्र परिणामोभवतिततश्चारिवस्यज्ञानपूर्वकत्वात्ज्ञा नेपूवैभ्यक्तं इतरेतरयोगेद्वद्वामागमतिपरस्पराये तारोगप्राधान्यात्॥ जयमितिर तरयोगे द्वंद्व,दर्शनवज्ञानचचारित्र्चदर्शनज्ञानचारिवारणति कुतः। मामिति परस्परापेक्षा गोमाधान्याद्ययालचन्यगोचपलाशाइति ॥ अस्त्यादिसमानकालन्नित्यागांलतादी नोपरस्परोपक्षरणामितरेतरयोगेहूं द्वः सर्वेपदाप्यैप्रधानत्वाद्वचचनात्त तप्याद निज्ञानचारिचाणामस्त्यादिसमानकालक्रियाणां परस्परांपेक्षारण मित्तेरतरये। | गद्देद्रः ॥ सर्वप दायमधान त्याद्दव अवचनात ॥ यतस्त्त्रयाणामपिदर्शनोदोनोस हिता नोपरस्परापेक्षाणामाक्षमार्गत्वमतिप्राधान्यनेकस्पनह्येोः मत्येकं सम्याविशेष परिसमाप्ति भुजिव च्यप्यादेवदत्तचिन दत्तगुरुदत्ता भोज्यतामितिभुजिः प्रत्येकंप Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज०टी० १४ रिसमाप्यत्तेत्तथाप्रशंसावचनस्यसम्यक्तष्ट्रस्यप्रत्येकमभिसंवधोदर्शनादिभिः सम्यग्दी नेसम्पाज्ज्ञानसम्यक्चारिचमितिपूर्वपदसामानाधिकरणमात्तद्व्यक्तिवचनम संगइतिचेन्न मोक्षापायस्यात्मप्रधानत्वात् ॥ स्यादेतद्दर्शनादिभिः सामानाधिकरण्यात्तद्व्यक्तिवच नमोक्षमार्गस्यप्राप्तइतितन्नाके कारण मोक्षोपायस्यात्मप्रधानत्वाद्यामागमोक्षाये यः॥ तस्यात्मास्वभावः "येनात्मायेनस्वभावेन समोक्षमार्गउच्यते ॥ सदीन ज्ञानचारित्रा गासर्वेषामविशिष्टएक: पुल्लिंगश्चातस्पप्राधान्यात्सत्यपिसामानाधिकरणेपनत व्यक्तिवचनप्राप्तिः यथासाधवः ॥ प्रमाणमितिग्मात्पतिक सर्वकमी निक्षेपोमोक्ष : मोक्षाणसनेइत्येतस्यद्यत् भावसाधनामोक्षणमोक्षः असन क्षेपणमित्यर्थ स आत्यंतिकः सर्वकम्मनिक्षेपमा दाइत्फच्यतेमजे सुद्धिकर्म्मणामार्गइवाप्याभ्यंतरी करणान्मुष्टः श्रुद्धासावितिमार्गः । मार्गइवमारी ॥ करुपमाय्यायप्यास्याणुकेस्कोप Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लशर्करादिदोषरहितेनमार्गणमाशाखमाभिनेतस्थानगढ़तितिप्यामिण्याद शनासयमादिदेवरहितनन्यशनायामाणसुरखमासंगतिप्रन्वषणक्रिया स्थवाकरणलापफ्ते:अप्पदामार्गअन्वेषणइत्यस्यमार्गःसिध्यति कुत्ता सम्पाद" शनादीनांकरणोपपत्तः मोक्षायेनमातिसमाक्षमा प्रतियुक्त्यानमिधानादमा गतिचन्ना मिथ्यादीनानानासयमानाप्रत्यनीकलादोषधवत्ता स्यादेतन्नानय तिरुत्तासम्पादनादिवयमिछमेक्षिमाप्रतिमप्रतास्यमागत्वेनोपपद्यतरत तन्नतिकारणामियादीनाज्ञानासंयमानासत्यनीकत्वात्कयोषधयद्यप्यावा नारदविकारोगाणानिदानप्रत्यनीकस्तिग्धस्ताद्याषधमुछेदकारणतया मिय्यादीनाज्ञानासयमादीनानिदानप्रत्यनाकसम्यादीनाद्याधधमुच्छेदकारण । तिललाप्यवाफेव्यारवानालंकारेशमध्यादेशमाsimar ॥३३॥ २॥विषय Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजब्दी ९५. |य्याद्वेधस्यात्मलाभेसत्तिज्ञानादेव त्तद्विनिस्ते स्त्रित्वानुपपत्तिः॥चा दाह विषर्ययाद्वेधस्यात्मलाभो भवतितद्भाचा तत्वज्ञाने सतिबंधनिवृत्तिर्भवतिकारणाभा नाडिकाणी भावइतिबंधनिरत्तिरे वचमादतः॥अनामोक्षमार्गस्यात्रे त्वंनोपपद्यतेप्रति ज्ञामात्रमितिचेन्त्रसर्वेषामविसंवादात् स्यादेतत्प्रतिज्ञामात्रमेत द्विपय्यैया द्वंधोन | वतीतितन्न" किंकारांसर्वेषामविसंवादान्नाच्चप्रतिवादिने। विसंवदेते तद्यथा ध मागमनमित्यादिवचनमेघां धर्मणामनमूर्ध्व भवति प्रष्टसुद्रा सौम्यप्राजापत्येश गांधर्वपक्षराक्षसपिशाचेामनमधस्ताद्भवत्यधर्मरणन्प्रधर्मरण रखलुषट्सुस्याने घुमानुषपभुम्मगमत्ससरीस्टप स्थावरेषुगमनेज्ज्ञानेनचापवर्गीयदास्यरजस्तमसेोगुण नावात्सत्वस्यप्राधान्यात्प्ररुति पुरुषांतरपरिज्ञानमा विर्भाव तितेनापवर्गसविषयेया । दिष्यतेबंध गयोस्याव्यक्तमहदहंकार तन्माचसंज्ञास्वष्टासुप्र ऋनिष्वनात्मीयास्वाहें। Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारिकेषुवैकारिकेषुचेंद्रियेष्वात्मत्त्वाभिमानः सविपर्ययस्तस्माद्वंध इत्येकेषावचने त च्यानात्मीयेष्वात्माभिमानविपर्ययात्तस्यशब्दाद्युपलाव्धिरादिर्गुणपुरुषोतरोपल विधरंतयीवदस्याविभक्तः प्रत्ययः श्राचादीशियरत्तिषुश्रवणादिषुहे नातेत्यवमा दि. पांचभौतिकेचाशेर पारष्यादिसमूहे शरोरे हे पुरुषइत्तिप्रत्यये । भवति तावद प्रतिबुद्धत्वात्संसारः गुणपुरुषांतरापलब्धिरतः ॥ यपुंदोरुषवर्तसर्वेप्रकृतिकतेवि | गुणामचेतन भोग्यमितिजानाति भोक्तार प्रकत्तौर चेतनेचपुरुषमन्येप्राधानाद वैति ॥ अचेतने श्वगुरणास्तंदातस्य गुणापुरुषांतरोपलब्धि रंतसंसारस्यतिज्ञानान्मा नोविषय्यैया द्वेधइत्येकेषां । इच्छाद्वेषाभ्यामपरेयो। इच्छाद्वेषपूर्विकाधमोधर्मप्रवत्तिस्ते भ्यासुखड: वतत्तं इच्छाद्वेषौनचविमोहस्पतामिथ्यादीना भावात मोहम्वाज्ज्ञानंवि मोहस्ययतेः षट्पदाप्येतत्वज्ञस्यवैराण्यवतः । सुखडः खेच्छाद्वेषाभावः । इच्छाद्वेषाभा Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजरो वाम्माधम्माभावारूदभावसंयोगाभावोपाभीवनसमोक्षस्तयाइम्माधर्मयारभावे १६ भवत्यपवर्गाकयेप्रदीपॉपरमप्रकाशभाववाहियानावेप्रतीत्यात्मानप्रतिलभते तन्त्र स्यापस्मातिरोभावयातितद्ययानदीपापरमासकाशाभाव वैधम्बाहाङ्गवतिकप्य मधर्मसेशादहशादज्ञानभवति प्रज्ञानाचमाहामोहतत्ताइछावोजातिइलाहे पाभ्योधमाधार्मासएषवेधसतसंसारस्पप्रसूतिस्तस्माजवत्यराभोवसेयोगाभा चकत्तरस्यमयोगस्याभावजीवनसेज्ञकस्यधम्मीधमापेक्षासदेहस्यात्मनाम "नसासयोगाजीवनेत्तस्यधर्माधर्मयोरभावादभावाप्राउभीषश्यप्रत्ययशारीरस्पात्मा तमभावासमाक्षःकायमभावधिमाधर्मपारनागतानुत्पत्तिसंचितनिरोधाभ्याम नागतानुसत्तिः सचितनिरोधम्वद्विविधोभावस्तवानागतानुत्पत्तिस्तावमाध मेयोःशारीरोज्यमनाव्यतिरिक्तात्मदरीनादकुशलस्या Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानोपरिवर्जनाचम्मैस्यापि तत्साधनानामनभिसेवेधान्नानाभिसंहितकच न्धाती निसेचितनिरोधोषित हे गपरिखेदफलादधमेनास्तस्मात्संसाराद्देगः वारीरत्वाक्लो 'कनाशीतेोमशोकादि निमित्तंशरीरपरिखेदं प्रदायाधमतिरिच्यते ॥भोगदोषदर्शनात् परमोचपदायीनो तत्ववि नियाती। निमारभ्यधर्मस्यविनाप्राः ॥ अतामोदाइत्यपेरखाद निःखादिनिवृत्तिरित्यन्ययोड : नवजन्मत्रवत्तेदोषमिष्यानोनाज्ञामुत्तरोत्तराप येतदनंतराभावान्निःश्रेयसाधिराम इत्यन्येषादीननोटप्रत्फत्तरेमिप्य्याज्ञानस वैषामुत्तरस्यतत्वज्ञानान्निरतोयस्तदनंतरे येस्तस्यनिरत्तिः कम्बासादेोषः सहि मिष्याज्ञानादनंत्तरस्तत्कार्यत्वात्सचान्तरः प्रवृत्तः प्रवत्तिश्वानंतर तत्कार्य त्वा ज्ञतादोषाभावेप्रदत्य भाव" प्रवृत्तिरप्युज्ञराजन्मनःप्रवृत्तेरभावाज्जन्माभावात्तक यत्वाज्जन्मोत्तरंड· खादत्ताजन्माभावादः खनिवृत्तिस्तन्निवृत्ताचात्पतिकः सुख Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ राज टोखानुपभागोनिः श्रेयसमितिम प्रविद्याप्रत्यया संस्काराइत्यादिक्चनकेपाचिदविद्याविय योयात्मिकासर्वभाववनित्यानात्मा थुचिखषुनित्यसात्मकमुचिसुरवाभिमानरूपातका त्ययासेस्काराइत्यादिवचनकेषाचिताकेपुनस्तसंस्काराराणादयस्तचविष्वासापरापाप रापानापसंस्कारातवीरपापमानासंस्कारागोपुण्यापगमेचविज्ञानभवतिायत मुच्यताप्रविद्यामत्ययासंस्कारावस्त्रपतिविज्ञामिविज्ञानमितिमापरापापमानास स्काराणामपुण्यापामचविज्ञानभवनिमयदेत मच्चतासस्कारप्रत्ययविज्ञानविज्ञा नसभूताश्वत्वावधानामचत्वारिमहाभूतानिरूपनामचरूपनामचस्पेचनामरूपा मिनिसानन्यापमानासस्कारागणमानजोपगमेचविज्ञानभवतियतादमुच्यतेविज्ञानप्र त्ययनामरूपनामरूपसनिहितानीश्यिानिापरायतनमितिमानरूपरध्यापन्निराय तनाहारैःसत्यनियाचप्रजायतइतिनामरूपप्रत्ययपडायतनमुच्यताचपाणाध Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोरणासंनिपातःस्पर्श केषांत्रयाणविषयैद्रियविज्ञानानोसंगतिः) स्पर्शः षड्ाप्रायतने भ्यः षट्स्यशेकायाः प्रवर्त्ततइतिषडायतनप्रत्ययः । स्पर्श ॥ स्पर्शानु भवनेवेदनायज्जाती यः स्पशी भवतितज्जातीयोवेदनाप्रवर्त्ततइतीदमुच्यत्तस्पर्शप्रत्ययक्दिनेति वेदनाध्य वसानारघ्नाय तस्मान्वेदनाविशेषानास्वादयत्याभिनंदयत्पच्यवस्यतित्रय्यतीतिसावेदना मत्यया भाच्यतेत्रघ्नविपुल्पमुपादानसामप्रियासानुरा गेति भवेत्। नित्यमपरित्या गोभूयो भूयश्वप्रार्थना ॥ तच्यते ॥ रघ्माप्रत्ययमुपादानमिति उपादाननिमित्तंपुन भ वजन के कर्मभव एवंप्रार्थयमानः पुनर्भवजनकेचमीसमुद्धाययति कायेनमनर्स वाचातहेतुक स्कंधमा ऽभाषा जातिजीतिस्कंधपरिपाकाजराः जात्यभिनिवेत्तानो संधानामपचयः परिपाकः परिपाका द्विनाशा भवतितन्मर। तदेवंजातिप्रत्ययंजराम रणमुच्यते। एवमयेद्दादशांगः प्रतीत्यसमुत्पादः ॥ अन्योन्पहेतुकस्तत्रसर्वभावेय्वविपरी 11 14 Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ राजवा. टी तदर्शनविद्या यत्सर्वभावेष्वनित्यानात्मकासुचि दुःषष्वनित्पानात्मकाशुचिऊखद निसाविद्यात्ततोमोक्षः॥कप्यमविद्यायाविद्यातानि । दत्तिः॥अविद्यानिवृत्तेः। संस्कार नि रोधः। संस्कारनिरोधाद्दिज्ञाननिरोधः" एवमुत्तेरष्वपीति तद्मविद्यातेोवधो भवति विद्यालयमाक्षइतिमिष्यादर्शनादरितिमतः भवतामिष्पादर्शनाविरतिप्रमादकषा पयशावं धतवशतिभवतामार्हतानामपिमते पदार्थविपरीताभिनिवेशश्रद्धानंमि | च्यादर्शनविपरीताभिनिवेशश्वमाहात्‌मोहश्चाज्ज्ञानमिति ॥ अज्ञानाद्वेधः । प्रता मिष्यादर्शनमादिवैधस्यसामाराकमाचप्रतिपत्तेश्वानेता सामायिकमात्रसिद्या इति वचनात्सामायिकेचज्ञानात आर्हतानामपित्ज्ञानान्मोक्ष इत्परिसंवादाचितया मोक्षमार्गकल्पनानयुक्ता किंच.. दृष्टांतसामप्याद्वाणस्वप्रियैकपुचवत्तद्यथा । वणिक् स्वप्रियैकपुचसहप्राक्जिनावद्यमानेवालमुपलम्या तिडुः खाभिभवमू Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यागतमाणश्वाभवदिनिवत्तकायादिक्रियस्पचास्यकुशलमहानिरूपायपूर्वक प्रा त्याहितप्राणरत्तापपुवरावदर्शनविषयमुपनीतमयममप्वइत्याविभूततत्त्वज्ञा नस्पस्वपुत्रस्यस्वपुत्रसाहायाभूतमिय्याज्ञानजनितेऽखंतभूतपूर्वमिवाभवदेवमना) नाईधा केवलाचतानान्माक्षशतिनवानातरीयकत्वासायनवतानवाएषदो कारणेनोतरीयकत्वान्नहिवित्तयमंत्तरेगामादमामिरास्ताकयरसायनावद्य), नरसायनज्ञानोदेवरसायनफलेनाभिसवेधारसायनप्रदानकियाभावाचदिवार। सायनज्ञानमावादलरसायनफलसेवेधाकस्यचिद्दएामाभिधीयतानचासावस्तिन चरसापनक्रियामाचादेवा ज्ञानवधानाभावान्नचरसायनप्रदानमात्रादेवरसायन ज्ञानपूर्वक्रीयासेवनाभावादत्तारसायनज्ञानप्रदाकियासवनापत्तस्यतत्फलनामा संवेधातिनि प्रतिष्मततयानमोक्षमार्गज्ञानादेवमाक्षणामिसंबंधादशेनचा Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकीरिवाभावान्नचप्रधानाद्देवामाक्षमार्गज्ञानपूर्वाकयानुशनाभावान्नचक्रियामाबादेव ज्ञानवद्वानाभावाद्यतःक्रियाजानवानरहितानि फलेतियदिचज्ञानमाबादेवाकाच दप्यसिद्धिदृशामाभिधीयतानचासावस्त्पत्तामाक्षमागनितयकल्पनाज्यायसीतिअनंता सामायिकसिदारत्येतदपित्रितयमेवसाधयति कयशस्वभावस्यात्मनस्तत्वधानस्य सामायकचारितापपत्तः समयणकवनभेदइत्यनोतरेगसमयसवसामायिकेचारचा सर्वसावद्यानरत्तिरितिषभेदेनसंग्रहादिति उक्तंच हतंज्ञानक्रियाहीनहत्तचाज्ञानिना बिया धावनाकेलाधकोधिः पश्यन्नपिचपेगुना संयोगमेवयदेतितज्ञान। कचकेणरयः प्रयातिधावपेणग्यवनप्रवित्तिोसमयुत्तानगरप्रविष्शविति। . दिवमोक्षतिचदनक्स्यानाउपदेशाभावःयस्पज्ञानादेवमोक्षस्तस्यानवस्यानापदे ! शावाव' यप्याप्रटीपम्यतमानित्तिहेतुत्वालादीपेसतिनमहत्तमपितमावतितिान Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ह्येतदस्ति प्रदीपश्वनामचलाततमाचावतिएततिातयात्मस्वरूपाववाधाविया नतरमवासस्यमाक्षास्यान्नतिकक्तिमज्ञानेचनाममाक्षस्पकारणमस्तिनचमोक्षइनि तनोज्ञानानंतरमेवासस्यशरीरोद्रियत्यदिनिहले प्रवचनोपदेशाभावःसंरकारक्षयाद वस्थानादपदेशइतिचेन्लापतिज्ञातविरोधात्स्यादेतद्यावदस्यसंस्कारानक्षायतोता वदवस्थानमित्यपदेशउपपलरतितला किंकरागजतिज्ञातविरोधाद्यद्यत्य लज्ञानोपिसंस्कारक्षयापेक्षवादवतियतेनमच्यतेनतर्हिज्ञानादेवमोक्षः कु तःसंस्कारक्षयादितियत्पतिशा ज्ञानेनचापवर्गरतिातहिरोध किंचा उभय यादीयोपपत्ते इदमिहसंपधार्य संस्कारक्षयस्यज्ञानवाहेचः स्यादन्योवेनिःय दिशानननुज्ञानादेवसंस्कारनिरोधरति प्रवचनोपदेशाभावः। अथान्यःसंकोल्यो भवितुमहीति मन्यतश्चारित्रादिनिपुनरपिप्रतिज्ञानविरोधइति किंचपव्रज्या Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा द्यनुष्टानाभावप्रसंगच ॥ यदिज्ञानादेवमोक्षः॥ ननुज्ञानएवयन कार्यः । शिरखं डगुडनकायायांवरधारणादिलक्षणप्र व ज्यायमनियमभावनाद्यभावप्रसंग: स्पात्मज्ञानवैराग्यकल्पनायामपि । किमंवस्थानाभावादुपदेशा थेपरिज्ञाने सत्तिविययानभिब्बंग लक्षणीच वैराग्य प्राप्त स्वतः क्षणएवमोक्षोपप तेः। किंच नित्यानित्यै को तावधास्योतत्कारणतं भवःभा नित्त्याएवार्थम्प्रनि: त्याएवेति । एको तावधारीत क्वारणासंभव तत्कारणस्य ज्ञानवैराग्यस्थसंभव स्तद्यथानित्यत्वैकां ते विक्रियाभावात् ज्ञानवैराग्यभावः॥विक्रियाद्विविधा ज्ञा नादिविपरिणामलक्षणा देशांतरसंक्रमरूपाच॥ येषां नित्यएवात्मा सर्वगतश्वे तिदर्शनं तेषामभय्या पिसानास्तित्तत्तश्चतुष्टयत्रययसंनिकर्षानाभावाद्वैरा पत्तेरात्मनःप्राकास स्पेवमोक्षाभावभास Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · मवायादिति चेन्नात स्पयत्वा ख्यातत्वात्क्षणिकै कांतेय्यवस्थानाभावात्) तानवे -राग्पभावनाभावः ॥ येयांमक्षणिका सर्वसंस्कारा इतिनेषामय्युत्पत्त्यनं तरवि नाशसति ज्ञानादीनामवस्था नैनास्ति नच तेभ्पोऽन्यवस्थाखचरतुविद्यतेत्तस्तद भावात ज्ञानवैरापभावनाभावस्ततएवोत्पत्त्यनंतरंनिरन्वयविनाशाभ्युपगमात्य रस्परसंश्लेयाभावेनिमित्तनैमित्तिकव्यवहारापन्हवादंविद्याप्रत्ययाः। संस्कार इत्येवमादिविरुध्यते संतानादिकल्पनायां वान्यच्चानन्यत्वयोरनेक दोषानुबंध गविपर्य्ययामावः प्रागउपलच्चैवावंधाभावः॥ इह लोके प्रागनुभूतस्थाप रुयविशेषस्पप्रकासाभावादभिभवात्करण क्लमाद्वाविशेषानुपलच्च विपर्ययो ह ष्टः॥ नचावनितलभवनसंभूतस्पजागती तदंतस्पविपर्ययप्रत्ययो भवति नचतथा नादौ संसारेनभिव्यक्रशक्तेः परुषस्पारुषांतरोपलश्चिरस्ति। अतः ज Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा २१ 'नुपलन्निस्तिविपर्ययस्तथा सर्वभावेय्वनित्त्या नात्मकाचिदुःखेयु नित्यसात्म 'कशुचिसुखरूपेणविपर्ययो नास्तिप्रागनुभूत विशेषत्वात्॥ यदिवाक्क चिदप्रसि इसामान्यविशेषस्पकस्पचिद्विपर्ययेो दृष्टः सेोभिधीयतांन चोच्यते तोवियय्यैया भावाद्वैधाभावः तत्रयदुक्तं विपर्यया इंधइतिनयाहन्यते अथमा क तद्विशेयोप लचिरभ्युपगम्पतेन नुनदेव नद्वे चुके नमोक्षेाभवितव्यमितिवेधाभावः॥स्या चप्रत्यर्थवशवर्तित्वाञ्चविपर्ययाभाव। इत्यनुवर्त्तते । येषां दर्शनंप्रत्यर्थवशवर्तिवि ज्ञानमितितेषां पुरुयविषयविज्ञानं नस्था गुमग्ट का निस्थाणुविषयं चयद्विज्ञानं नतत्पुरुषमवबुध्यते। अतः परस्परविषयसंक्रमाभावान्नसंशयो नविपर्ययस्त यासर्वेयपदार्थेय्वनेकार्थग्न हौक विज्ञानाभावादसतिविपर्ययेवं धाभावस्ततए |चपदार्थविशेयानुपलमक्षिोभाकः ॥ नये कार्थग्ग्रा हिविज्ञानंतदंतरमवाञ्चनत्ति · Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानदर्शनयोरेकखंक्रुतम्यगयत्पतेरितिबन्नकिकारणातखावायश्रद्धानभेदा|| कतापप्रकाशवद्यथातापप्रकाशयोर्युगपदामलाभेपिदाहद्योतनसामर्थ्यभेदान्लैक वतयाज्ञानदर्शनयोरतत्वावायग्रहानभेदान्लेकलतवस्यांवगमोज्ञानं श्रद्धानंदर्श नमिति हटविरोधाच्चयस्यमयुगपदामलामः एकवेहेवरितितस्यदृष्टविरोध आपद्यतेहटहिंगोवियागादीनीयुगपत्यद्यमानामयिनानावंउभयनयतहावेन्य तरस्याश्रितलाहारूपादिपरिणामवत्यक्षतिसुत्रीउभयनयसदावेन्यतरस्याश्रितत्या हानदोयाकथरूपादिपरिणामवद्ययापरमारवादिषद्लद्रव्यागोवाह्याभ्यंतरप रिणामकारयायादितेयुगपद्पादिपरिणामेपिरूनयादीनामेकखानथाज्ञानद र्शनयोरपिालथवाउभयनयासद्भावेन्यतरस्याश्रितत्वाद्यथारूपादिपरिणामा नांदध्यार्थिकापर्यायार्थिकयोन्यतस्यणप्रधानभावोयरातस्यादेकबस्यालाना वकयमिहपर्ययार्थियभावेद्रव्यार्थिकप्रधान्यात्यर्यायानिपगार्दनादिपा Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवार्तिः ॥रिणामिकपडलद्रव्यर्थीदेशाश्यादेकलंयथारूपपर्यायापालगव्यंतयारसादयो पद्रव्यार्थीिदेशाइलद्रव्यतेयामेवद्रव्यार्थियणभावेपर्यायार्थिकपाधान्याद्र । नयेणात्यतिनियत्तरूपादिपर्यायाथैनार्पितानांस्यादन्यवयतोन्यारूपपर्यायः अन्येचरसादयतथाज्ञानदर्शनयोरनेनविधिनानादिपारिणामिकचैतन्यजीव ध्यार्यादेशाश्यादेकवायतोद्ध्यार्थादेशाद्यथाज्ञानपर्यायधात्मद्रव्यं तथादर्शन मपितयोरेषपनिनियनशानदर्शनपर्यायार्था पगाश्यादन्यवयस्मादन्योज्ञान पर्यायान्यश्चदनिपर्यायःज्ञानचारित्रयोरकालभेदादेकत्वमगम्याववोध वदितिलाश्रूत्यन्लीसमकालापति यत्रुत्पलपत्रशतव्यधनवश्यादेतत्रज्ञानचा स्त्रियोरेको करमादकालभेदारकथमगम्याववोधवद्ययाकेनचिलो तान्यानाभिसरणेसकामतिनापंसामेघोदयातवहलांधकारायारात्री लेमारपश्चलीखाभिलवितेतिस्राष्टातदेवविधताचविद्योतिततेनद्यो . . सार्नयदोत्पन्लेतयादेवागम्पाववाचादगम्पागमननिष्टत्तिनागम्पाव Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ s .mahapa Durat वोधागम्यागमननिष्ठयोगाकालभेदोस्ति तथायदैवज्ञानावरणाक्षयोपशमाजीये खानजीवाइत्याविर्भवतितदैवतेनहिंस्यादतिजीवहिंसारतिजीवहिंसापत्यस्या नितिः.नित्तिश्वचारित्रंनचज्ञानहिंसानिहत्याकालभेदोरतातितलकिंका रणमाशूत्यन्तौसमकालापतिपत्नत्राय्यरतेवकालभेद: सौक्ष्म्यातनपनीय तोकयमुत्पलपत्रशतध्यधनवद्यथोत्पलपत्रशव्यधनक्रमापासव्ययसम यिका सर्वज्ञपत्यक्षोऽतिसूक्ष्मास्तिननुविभाव्यताबस्थेयेतोयावदेकमत्पल पत्रमंसिश्चित्वाद्वितीयेछिनत्तितावदसंख्ययात्रासमयाअतीताइतिकालसूक्ष्मो पदेशस्तथान्योगम्पाववोधकालाजन्यश्चनित्तिकाली अर्थनेदाच्चर्किनैक खमितिवनती ज्ञानस्पत्तत्वाववीधार्थचारित्रस्पकर्मादानहेत्रक्रियाविशेखोयर मोर्थदति अतोनानात्वाकालभेदाभावोनार्थभेदहतुगनिजात्यादिवत्यानकाल भेदाभावापर्यभेदहेतुल्याय्यःकथंगतिजात्यादिवद्ययाध्यदैवदेवस्तजन्म तदैवमनुष्यगनियंचेंद्रियजातिशरीरवर्गागंधादीनाजन्मनान्योदेवदन्तजन्मका Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवानिलः।अन्यश्चमनुष्यगत्यादिपर्याय जन्मकालः॥निचैक कालत्वान्मनुष्पगत्यादी ना कलंयस्पनः॥] कालभेदाभावएकत्व हेतुरिष्ट रत स्पमनुष्यगत्या दिपर्यायाणामे कत्वाप्रसेमोन चेपते अतोन कालभेदाभावात् ज्ञान चारित्रयेोरेकत्लंग उक्तंचा किं क्तमभयनयसद्भावाश्यादेकत्वस्यान्नानात्वमितिलक्षणाभेदात्तेषामे पपत्तिरित्तिचेन्नः परस्परसंसर्गसत्येकत्वंखदी पवत् स्यादेतत्तेषां सम्यग्दर्शनादी नामेकमार्गत्वं नोपपद्यते कुतः लक्षणाभेदान्नहिभिन्न लक्षणानामेक युज्य ततस्त्रयोमी मोक्षमार्गः। प्रसक्ताइतितन्नकिं कारणां परस्परसंसर्गेसत्येक पवद्यथा परस्परविलक्षणवर्तिरने हान लार्थानांवाह्याभ्यंतर परिणा मकाररणपादित संयोगपर्यायाशांसमुदये भवत्येकशः प्रदीपोनत्रयः॥ | रविलक्षणसम्पदर्शनादित्रयसमुद्ये भवत्ये को मोक्षमार्गेनत्रयः किं नामेकत्वावामौनप्रतिवादिनोविसंवदेने के चित्तावदाहः दिभिन्नलक्षणानांसत्वरजस्तमसा साम्पे વે 1 Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पधानमेकंनतेयात्रित्वावधानस्यत्रैविध्यमितिलपराहकाकवडतादीनी चचभूतानामीनिकानांचवर्णादीनोविलक्षणानांसमदयएकोरूपपरमाराव नयाभेदातपरमाणारनेकवतयारागादीनांधागांप्रमाणापमयाविगमरूपायों चविलक्षणानांसमदयएकविज्ञानंनतेयाभेदाविज्ञानभेदतिइतरमाहश्चि बायर्णतंतनासमदयश्चित्रपटएकानयाभेदात्पत्स्यभेददत्तिातदिहापि सम्पग्दर्शनादीनोभिललक्षणानांसमदयएकोमोक्षमार्गदतिकोविरोधण्यापूर्वस्पलभिजनीयमत्तरंण्यांसम्यग्दर्शनादीनापूर्वस्पलाभेभजनीयमत्तरं वेदितव्यंउत्तर नेत्रनियतापूर्वलामा उत्तरस्पत्रलाभेनियतापूर्वलाभेद ष्टव्यः सम्यग्दर्शनशानचारित्रागोपाठखतिपूर्ववमन्त्तरत्वंच श्र्वस्पसम्यग्दर्श नस्यलाभेशानमत्तरभजनीया उत्तरज्ञानलाभेचनियतःपूर्वसम्पग्दर्शनलाभ तथापूर्वज्ञानला उत्तरंचारिश्चंभजनायो उत्तरचारित्रलाभेनियत सम्पाद निशानलाभगतदनुपपत्तिरज्ञानपूर्वक श्रद्वानखसंगारपूर्वस्पलाभेजनी | Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवानि । यसत्तरमित्येतस्यानुपपत्तिः कुतः अज्ञानपूर्वक प्रधानप्रसंगात्यदिपूर्वस ___ २५ म्यग्दर्शनलाभेउत्तरज्ञानलाभोमजनीयः ननुज्ञानाभावादज्ञानपूर्वश्रद्धा नवसंगकिंचा अनुपलञ्चखनबेनहानानुपपत्तिरविज्ञानफलरसोपोग वत यथानाविज्ञतिफलेतद्योपयोगोमव्यफलस्परसंसंपादयतेनिग्रहानमस्ति तथानाविज्ञानेखाजीवादियबहानाभावः स्यात् किंच सात्मस्वरूपाभाव संगात् यदिसम्पग्दर्शनलाभेशानभजनीयत्वादसद्विरोधान्मिथ्याज्ञाननिवृत्ती सम्परज्ञानस्यचाभावात्मानोपयोगाभावात्मनःपसात ततश्चलक्ष गाभावालक्ष्यस्यात्मनाय्यभावः स्यात्तदभावाचा मोक्षमार्गपरीक्षाव्यतिनवायावतिज्ञानमित्येतत्परिसमाय्पततावतोसभवालयापेक्षवचनंनवारयादीयः किंकारर्णयावतिज्ञानमित्येतत्परिसमाय्यतेतावतोऽसंभवान्नयापेक्षामिदेवचनं भजनीयमन्तरमिति वचनशानमित्येतत्यैरिसमाय्यतेश्रतकेवलयोर्यतः तकेवलज्ञानग्राहीशब्दनयतकेवलेयवेबतिनान्यत्नानमपरिपूर्णत्वार। Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दितितदपेक्षसंपूर्णहादशोगचतुर्दशपूर्वलक्षश्चतीकेिवलंचभजनीयमतं. तथापूर्वसम्पदर्शनलाभेदेशचारित्रंसंयतासयन्तस्यसर्वचारित्रमन्तादारभ्प सक्षमसंपरायोतानायचयावञ्चनियमादत्तिसंपूर्णयथाख्यातचारित्रंभजनी यंपूर्वसम्यग्दर्शनशानलामभजनीयमन्तरमितिचेलनिदेशस्यागमकत्वाश्यादे तन्लाज्ञानपूर्वकन्ग्रहानप्रसंगास्तिकतः पूर्वसम्पग्दर्शनशानलाभेचारित्रमन रंभजनीयमित्यभिसर्वधादितितिलविकारणनिदेशपागमकवाचतोयम योननुजस्यनिर्देशोगमकापूर्वस्पलाभदतिपूर्वयोरितिहिवतव्यम्पादयमामा न्यनिर्देशानुभयगतिकल्पतेनैवंशवव्यवस्थाविशेषम्यविवक्षतत्वादितरथा हिउत्तरेपितथापळमौतहोयानतिवन्तिभास्यात्तस्मात्यूक्तिएवार्योनयापेक्षव चनमितिअथवाक्षायिकसम्यम्दनलाभेक्षायिकसम्परज्ञानभजनीयालय वयगपदामलाभेसाहचर्यादभयोरपिपूर्वखोयथासाहचर्यात्पर्वतनारदयोः पर्वतग्रहणेननारदस्परग्रहणोनारदरगहणेनवायर्वतस्पग्रहांतयासम्यग्दर्श RIMINAATMAL ...... S Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नस्पसम्पकतानस्यान्यतरस्यामलामेचारित्रमत्तरंभजनीयरतितत्वाशेवा निकच्याख्यानालंकारखयोध्यायहितीयमान्हिक अमीयोमोक्षकार गासामान्यसत्यविशिष्टानांविशयपतिपत्त्यर्थाभदमाह तत्वार्थप्रहाने सम्यग्दर्शनां सम्पगितिकोयंशब्दः सम्पगितिप्रसंसायोनिपातःवयतोवासम्पा गित्ययनिपातः प्रशंसा-वेदितव्यः)सर्वेयांप्रशस्तरूपगतिजातिकुलायर्वि झानादीनामाभ्युदयिकानोमोक्षस्पवधानकारपणखात्यशरदर्शनसम्पग्दी नीननचसम्पगियार्थतत्वयोरितिवचनाखोसार्याभावइति तन्लानेकार्थ त्वान्निपाताना अथवासम्पगितित वायोनिपातस्तवदर्शनसम्यग्दर्शनंजवि परीताविषयंतत्वमित्युच्यतेअथवाचतोयंशब्दासमचतीतिसम्पकयथा यवस्थितरलथैवावगलतीत्यर्थशासथकिमिदंदर्शन मितिकरणादिसाधनो दर्शनशब्दशःकरणादिसायजेयटिदर्शनशब्दोव्याख्यात हशेरालो कार्थवादभितार्थासंपत्ययइतिचेन्लोनेकार्थत्वात स्यादेतहशिरयमालो L Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धैवतासालोकश्चेद्रियानिद्रियार्थवामिनचासाविहाभिषेतद्वानमिष्टनात स्यार्थस्पसंजत्ययोरतीतितन्ना,किंकारणामनेकार्यवादिहश्रहानमिष्टमभिसव , ध्यतकर्यनज्ञयितअलोकहनष्ट श्रद्धानमिष्टमितिअनउत्तरपठतिमोक्ष कारणपकरणाकाहानगविनामोक्षकारप्रकृतवार्थविययंत्रहानमोक्ष स्पकारानालोकइत्यताप्रकरणाबहानगतिर्भवति नयनत्यमित्यनेनकि खत्यारपतेपकृत्यपेक्षत्वातप्रत्ययस्यभावसामान्यसंप्रत्ययजत्ववचनातदित्ये याप्रकृतिनसामान्याभिधायिनीसर्वनामत्वात्सत्ययश्चभाविउत्पद्यतेकस्पभावेत दित्यनेनयोछडच्यते कश्वासीसौर्यभारमतरतदपेक्षत्वाद्रावस्पभावसामान्य मुच्यतेतत्वशब्देनयोयेयिथावस्थितरतेयातस्पभवनमित्यर्थः तत्वेनार्यतिरतित स्वार्थमातंगम्पतज्ञायतेरत्यर्थतत्वेनार्थस्तत्वार्थयेनभावनाोव्यवस्थि तरतेनभावेनार्यस्पराहणेयशनिधानद्भवतितशम्यग्दर्शनहानशब्दस्पकर गादिसाधनबंपूर्ववद्यथादर्शनशब्दस्पकरगणदिसाधनवव्यारव्यातो तथा --MEDNET/ HTET Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• २७ द्वानशब्दस्यापि चेदितव्यं सत्वात्मपरिणाम स श्रद्धा नशब्दवाच्यथेः करा दिव्यपदेशभागात्मपरिणाामावेदितव्यः वक्ष्यमाणानिर्देशादिसूत्र विवरणात्स मलद्रव्यसंप्रत्ययइतिचेन्नात्मपरिणामेपित्तदुपपत्तेः स्थादेतद्वा मायानिर्दे शादिसूत्र विवरणाखद्गलद्रव्य स्पसंप्रत्ययः ॥ प्रामीतितन्न किं कारणमात्मये. रिणामे पितदुपपत्तेः किंतत्वार्थश्रद्धानमात्मपरिणामः कस्प आत्मनइत्ये वमादिकम्मी भिधायित्वेय्यदोयइति चेन्नमोक्षकारणात्वेनख परिणामस्य विवक्षि तत्वाश्यादेतशम्परकम्पङ्गलाभिधायित्वेय्यदीयइतितन्न किं कारणमोक्षका रणामस्पविवक्षितत्वादीपशमिकादिसम्पग्दर्शनमात्मपरिणाम त्वान्मोक्षकार एल्वेन विवक्षा तेन च सम्पक्ककम्पय्पीय: पौगलिक वेऽस्पपरयययित्वा ख ★ परिनिमित्तत्वादुत्पादस्येति चेन्नोपकरणमात्रत्वा स्थादेतत्खपरनिमित्तउत्पा दोदृष्टः यथाघटस्पो त्या दोम्टन्निमित्तोदंडादिनिमित्तश्च तथासम्पम्दर्शनोत्पा आत्मनिमित्त. सम्यमुद्गलनिमित्तश्वतस्मात्तस्यापिमोक्षकारणात्वमप Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करामात्रत्वादुपकरणमाचहि वाह्यसाधनंकिंचा आत्म परिणामादेवनद्रव्य घाताद्यदि ददर्शनमा हाख्यं कम्म तदात्मग्रयाघातितश्चिदात्मपरिणमादेवा पक्षी शक्ति कं सम्पत्काख्यां लभते अतो मतदात्मपरिणामस्यप्रधानंका रामा मैवस्वशक्तादर्शनपर्यायेोत्पद्यतइतिनस्पैवमोक्षकारणत्वयुक्तं किंच अहेयत्वाश्वधर्मस्य नही पतेपरित्यज्यतइत्यहेयोयमपिंतरवासन सम्यक्त्तपरिरणामः यतः सत्याभ्यंतरे प्रात्मनः सम्पक्त परिणामेनियमेनात्मा सम्पग्दर्शनपर्यायेणाविर्भवनिवाह्य हेय: कर्म्मपङ्गलः नमेतरेणापिक्षायि कसम्पत्कपरिणामाक्चिंच प्रधानत्वादारभ्यंतरः प्रात्मीयः सम्यग्दर्शनपरिणाम: प्रधानंसति । तस्मिन्वाह्यस्पापग्नाहकत्वादतोवाह्य आभ्यंतर स्पापग्नाहकः प रोथेनवर्ततरति अप्रधानं किंच प्रत्यासन्ते प्रत्यासन्नहिकारप्रात्मपरिणा मोमोक्षस्यतादात्म्येनाविर्भावान्न सम्पक कर्म विष तर चान्तादात्म्येनैवा परिरणामांच्च तस्मा दहेयत्वात्प्रधानत्वारखत्यासत्तेश्व मोक्षस्पकारणमात्मपरि Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा• गामायक्तीनकर्मतिअल्पवहबकल्पनागिधरतिचेन्नोपशमाचपेक्षस्पमाप ग्दर्शनत्रयस्यैवतदुपपत्तेमस्यादेतशम्पग्दर्शनस्पात्मपरिणामत्वेअल्पवहत्व कल्पनाविरोधइतितलर्किकारगाउपसमाधपेक्षस्पसम्पग्दर्शनत्रयस्यैवतह पपत्तेःसर्वेपत्ताका उपसमसम्पाययसंसारिणःक्षायि योसेखयणक्षायोपामिकसम्पदृश्योसखियणगासिद्धाःक्षापि सम्पहरियातंतगाइतितरमाशम्यग्दर्शनमात्मपरिणामशेयोभिमखम । ध्यधन्यामतत्वाग्रहणामार्यत्रदानमित्यर्थत्वलत्वात्य कश्चिदाह ' रामनर्यकाअर्थश्रहानमित्येवाखकुत्तोलघुत्वादितिनसर्वार्थवसेगालेतर युक्तकुतः सवर्यप्रसेगात्तत्यपाहणाहतोमिय्यात्यादिवशीनेयसी मिसम्पादनंपामोतिमदेहाचार्यशब्दस्याने कार्यत्वादशध्दीयमनेकार्थः । चिस्पराकम्मरवर्ततर्थरतिपयशाकम्मरचतिवचनासचिरलत्ययोजने वर्तकिमयमिहागमनेवर्ततकिमीमहागमनभवनषियोजनामितिक Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FammarTRINITES चिहनेवततसर्थवानयंदेवदत्तधनवानितिक्वचिदभिधेयेवतीत शब्दार्थसंबंध इतिएवमर्थशब्दस्यानेकाधीभिधायित्वेसंदेह यकस्यार्थस्यश्रद्धानंसम्यग्दर्शन मिति सर्वानुग्महाददीयतिवेन्नासदयविषयत्वाश्यादेतलायंदोयासर्वार्थपसंगति अखसार्थविषयंहानंसम्यग्दर्शनी तथासतिसर्वानुहनकृतोभवति.कग्वेदा नीभवतोमशरनासोलोकोध्यदयेनयज्यतामितितन्ना किंकारणामसदविषय खान्नरखलुकचिन्लोमशरासदर्शविषयहिनछहानसंसारकारणमितिल न:सर्वानुग्रहार्थमेवतधेनविशिष्यता अर्थग्रहणादेवतसिद्धिरितिचेलविपरीत ग्रहगणदर्शनास्यादेततापर्यतत्पोनिश्चीयजइत्यर्थः लचमिथ्यावादिषगाना प्रा-असत्वाततरमादर्थमहरणादेवतत्वसंपत्ययानार्थस्तखाहणेनेतिाजन्न किंकारगणविपरीनग्रहणादर्शनाथापिन्तोदयाकलितकरणानःपमानमरर सेकदकंमन्यतेतयात्मामिय्याकदियदोबादतिलानास्तित्वनित्यचानित्यत्वाऽ नन्यत्वाधेकातरूपेणमिथ्याध्यवस्पतिशतलन्निराकरणातचग्रहणमित्य INCARDance...amination onam Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ राजवा· श्रग्नहांकि मथे। ननुतत्वान्येवार्थइनि अर्थानांत त्वसा तत्व सामानाधिकरण्यात्तत्व वचनेनैवसंप्रत्ययः सिद्धः उच्यतेर्थन हगामंध्यभिचारार्थ अर्थग हणं क्रियते व्यभिचारार्थतत्वमितिश्रद्वानमिति चेदे कातनिश्चितेपिखसंग हानंतचश्रद्वानमित्युच्यतेएकांत निश्चितेपिजामी तिएको तवादिनो पिहिनारत्या मेत्येवमादितत्वमिति श्रद्दधति । तलस्पश्रद्धानमिति चेत् भावमात्र प्रसंग: यदित वस्पश्रद्धानंतत्वश्रद्धानमित्युच्यते । भावमात्रप्रसंगः स्यात्तत्वं भावः । सामान्यमि केचिक्कथयतिद्रव्यत्वग्रयात्वकम्र्मत्वादिसामान्यं द्रव्यादिभ्योऽयंतिरंनस्पञ्श्रद्धा म्यग्दर्शनप्रामात्तिनहिद्रव्यादि पोऽन्यशामान्य युक्ति मदिति । परी यातत्वमेकत्वमित्यर्थः पुरुषण्वेदसर्वमित्यादितम्पश्रद्धानसम्पग्दर्शनानोतिन चादोयुक्त क्रियाकारक भेदलोपप्रसंगादितित्तत्वेनप्रदानमिति चेत्कस्पकस्मि प्रम्नानिवृत्तिः ॥ यदितत्वेनानमित्युच्यते कस्प कस्मिन्वेति प्रश्नानविनिवर्तते तस्मात्सूक्तमर्थग्रहणामेव्यभिचारार्थमिति । इठाश्रदानमित्यपरेवर्णयति तद Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयुक्तमिथ्याटेरपिषसंगाद्यतोमिय्यायायोवाहुश्रुत्यसचिख्यापयिययाहन्मान विजिगीययावासार्हतमतमधीयतेनचेघामंतरेणाध्ययनमलिभातरतेवामयिसम्प दर्शनप्रामातीत्ययुक्तमतंरचानहानमिति केवलिनिसम्पक्वाभावप्रसंगाचयदि चेवासम्पत्कंध्याचलोभपर्यायानचक्षीणमोहकेवलिनिलोभोलितदभावादिया भावतिसम्पवाभावास्यात्यातस्माद्यद्धावाद्यथाभूतमर्थग्रहात्यात्मतसम्पग्दर्श नमितिप्रत्येततव्योतविविधसरागवीतरागविकल्यात्तदेततसम्पग्दर्शनविविध कतशासरागवीतरागविकल्यातपशमर्सवेगानुकंपारितक्याभिव्यक्तिलक्षाप्रथ मंरागातीनामनुकापशमससारानीरुतासेवेग: सर्वधाशियमैत्रीअनकंपा जीवादयोधायथावभावैः संतीतिमतिलिपरतैरभिव्यक्तलक्षणांप्रथमसरा गसम्यक्त्वमिन्सच्यतेसात्मविश्ठहिमात्रमितरत्या समानांकमवलतीनोआत्यति केपगमेसत्यात्मविश्वहिमात्रमितरहीतरागसम्पमित्यच्यतो पूर्वसाधनभवतिउ तरसाधनसाध्यंचा अथेतसम्पादनो जीवादिपदार्थविषयकथमत्यद्यतनत्यत Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. इत्यतमाहातन्निसीदधिगमानिसर्गनिकोयंशब्दः॥ निस्टिजेविसाध नोयत्ता निसर्जननिसर्गःस्वभावइत्यर्यत्रमथाधिगमतिकाअधिपू . . धनः अवधिगमनमधिगमरलयोहेतुत्वेननिर्देश: निसर्गादधिगमादिति .. यायाकाचक्रियाउत्पद्यतइत्यध्यान्हियता सोपस्कारत्वातस्त्रागातदेतत्सम्यग्दर्शनं निसर्गादधिगमाहाउत्पद्यतइति कश्चिदाहसम्पग्दर्शनद्वविध्यकल्पनानपपतिरतु पलश्चतत्व श्रद्धानाभावादसायनवर विविधसम्पग्दर्शन मिनिकल्पनानोपपद्यतेक तीनुपलञ्चनलस्पनहानाभावात्कधरसायनवता यथात्यंतपरोक्षरसायनतत्वफल स्पनरसायनेग्रहानंहयंतथानाधिगतजीवादितत्यस्पनत्तऋग्रहानमितिनैसर्गिकस म्पग्दर्शनाभावानद्रवेदभनिवदितिचेन्न वैयम्पास्पादेतद्यथाद्भस्थानाधिगतवेदा स्पवेदाथैआत्यतिकभकिस्तथानपलचजीवादितत्वस्यवहानमितितलिकिंका रावेसम्पायुज्यतेपदस्पभारतादिश्रवणातशावचनानुवृत्यादिभिश्ववेदार्थभ तिभातासोनैसर्गिकीसहननैसर्गिकोरुचिरिटतिवैषम्पनियवासम्पवाधिन Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवादिपदार्थभक्तिमानासोनेसर्गिकोरुचिरिटेतिवयम्पअथवासम्पकाधिकाराजा वादिपदार्थतत्वोपलब्धिपीकेगासम्यग्दर्शनेनमोक्षकारणेनेहभवितव्यंनचद्र स्पतादृशंशद्वानमितिवैवम्यामणिग्रहणावदितिचेलपत्यक्षेणोपलश्चिसहावार स्यादेतद्यथानाधिगतमणिविशेषस्यापिसोमणिग्नहोभवतितस्पचफलंदृष्टतथा नाधिगतजीवादितत्वस्पापितञ्चमहाभवतितस्पचफलंभवतीतितलैसर्गिदर्शन मितितलार्किकारांपत्यक्षोपलवसद्भावान्लायतपरोक्षमणिग्यतातिकिंउपत्य क्षतउपलभ्यग्यतातिविपर्ययविशेयतुनपतिपद्यते। अतास्यानुपलेश्चमणिविश यस्यापिपत्यक्षदर्शनाद्रहात्याय्यासत्यतपरोक्षजीवादितखेकथमस्पनिसर्ग जसम्यग्दर्शनसिहि सामान्याधिगमेत अधिगमसम्पग्दनिमेवेति तायप्रकाश युगपदत्पत्तेरसुपगमाव किनिसर्गजसम्यग्दर्शनाभावइत्यनुवर्तते यदास्पसम्प ग्दनिमत्पद्यत्तेतदेवपातनमत्यज्ञानेचसम्पकैनपरिरामतीत्याधिगमजमेवतद्भव नियस्यज्ञानात्याग्दर्शनस्यात्तस्यनैसगिर्कस्पान्तच्चानिष्टमित्राच्यतो उभयत्रचुल्पे Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ राजवा. तरंगहेतीवाद्योपदेशापेक्षाउपेक्षभेदानेदा उभयत्रदर्शनेतरंगोहेनुस्खल्यः . मोहस्पोपशम:क्षय क्षयोपशमोवातश्मिसतियवाद्योपदेशात्तपादर्भवति . सर्गिम्यत्यरोपदेशपूर्वकंजीवाद्यधिगमनिमित्तदन्तरमित्यनयोरयभेदः - पूर्वकेनिसर्गाभिषायोलोकवद्यथालोकेहरिशाइलकसुजगादयोनिसर्गतको योियोहारादिसंपतिपत्तीवनतद्रत्युच्यतेनचासावाकस्मिकीकर्मनिमित्तत्वादनाक मिक्यापिसतीनैसर्गिकोभवतिपरोपदेशाभावात्तयहाय्यपरोपदेशपूर्वकेनिसर्गाभिषा कासपर साह भव्यस्यकालेननियसोपपत्तिरधिगमसम्पत्काभावः यद्यवधत मोक्षकालापागधिगमसम्पत्कवलान्माक्ष स्पातस्यादधिगमसम्पग्दर्शनस्पसाफल्य. नचादोश्त्यतः कालेनयोस्पमोक्षासोसनिसर्गजसम्पादेवसिहरतिनविवक्षितापरि शानालेतछतकुती विवक्षितापरिज्ञानातसम्पग्दर्शनादित्रया-मोक्षउक्तीतत्रय स्थमंतकातउत्यद्यतइत्युक्तनिसर्गादधिगमाहेत्ययमयोवविवक्षितः यदिसम्पग्दर्शना देवकेवलान्निसर्गजादाधिगमजाहाज्ञानचारित्ररहितान्मोक्षस्ट: स्याततर्दयक्तस्पा Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्यस्पकालिनंनिश्रेयसोपपत्तरिनिनचायमत्रिविवक्षिताअथवायथाक्रुक्षेत्रे वचित्कनकंवाघपौरुषेयषयलाभावाचायतेतयावाद्यपरुयोपदेशश्वकजीवाद्य धिगममतरेणायज्ञायतेतन्निसर्गाजायथाकनकाशमाविष्ठपायपुरुषप्रयोगापेक्षा कनकभावमापद्यत तयायसम्पादर्श विध्यपायज्ञमनुष्यसपक्वजिीवादिपदार्थ तत्वाधगमापेक्षमत्यवतोतदाधिगमजम्पग्दर्शनमित्ययमोविवक्षितानचान्यात रस्याभावदति।प्रतीविवक्षितापरिज्ञानालसम्पयक्तमधिगमाभावरन्तिीकालनिय माञ्चनिर्जण्यानायतोनभव्यानाकृलकमनिउरिपूर्वकमोक्षकालस्पनियमोहित केचिद्रव्यासव्येयेनकालेनसेश्यतिकेचिदसंख्येयेनकेचिदनंतेनअपरेअनंतानते नापिनसेश्पतीनिततश्चनयक्तभव्यस्पकालेननिश्रेयसोपपत्तेरितिचोदनानुपपत्ते श्या सर्वस्पेयचोदनानोपपद्यत शानक्रियावयान्त्रितयाञ्चमोक्षमाचक्षणास्पसवस्य नर्दयक्तभव्यस्पकालनमोक्षरतियदिहिसर्वस्पकालोहेतुरिष्ट स्पास्वाद्याभ्यनरका रणनियमस्परस्पष्टस्पवाविरोधः स्पान्जदित्यनंतरनिदेशार्थतदित्येतदर्नतरस्यस Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ गजवा- म्यग्दर्शनस्पनिद्देशार्थ क्रियते ननुत प्रकृत्तमं तरेपि तद्वचनंसि इतराया हिमार्गसं वैधषसँगः॥अक्रियमा रोहितद्वचनेमोक्षमार्गोपिकृतः। तेनाभिसंबंधः प्रस तो निसर्गमात्रेणापिमोक्षमार्ग लाभउक्तः स्याद्वाहुश्श्रुत्यपचिख्यापयिषयाचमोक्ष मर्माधिगममात्र देव मिथ्यादृष्टीनामपिमोक्षस्यात् ननचानंतर स्पविधिवभवति प्रतिषेधोचेत्यनंतरत्वा शम्पग्दर्शनेनैवसंबंधो न्याय्य:॥ प्रत्यासत्तेः प्रधानंच लीयइति मार्गश्वसंवध्येत्तत्तस्मात्तद्वचनंना क्रेय ते विस्पष्टार्थे ॥ इतितत्वार्थवार्तिकेच्या रप-ना लेक रेषयमोध्यायेत्तीयमान्हिक ॥ ३॥ तत्वार्थाने सम्पग्दर्शनमित्यक्तं अव्यक्तित्वमिव्यतरमाह ॥ जीवाजी वास्त्र वबंधसंवरनिरिक्षातले किमर्थमेषामुपादाना ननद्रव्यमित्येवैवक्तव्यं तद्भेदाहिसवेपदाथोभवतीतिप्रतउत्तर पठति। एकाद्यनंत विकल्पेोपपत्तौ विनेयाशयवशान्मध्यमाभिधानं । एक हौत्रयः से ख्याः असंख्येयाः अनेनाइनिपदार्थाभिद्यते तत्रैकः पदार्थभिवति एक द्रव्यमन तपर्यायमितिवचनात् द्वौपदार्थोजी बाजी व भेदात्रात्रयः पदार्था अर्था Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यभेदान/एवमत्वरेववचनविकल्पापेक्षयासंख्येयाज्ञानयज्ञेयविकल्यापेक्षया | असरव्ययाअनंताश्चभवनितऋविनेयाशयवशात्पदाधीनरूपगाभेदातिमध्यमे नक्रमेणाभिधानकातोरतिसक्षेपेसमेधसामेवपतिपत्तिःस्पादतिषपंचेचानिचिरेण संप्रतिपतिलस्यादिति कश्चिदाहाजीवाजीवयोरन्यतरत्रैयांतर्भावादास्त्रवादीनाम नपेशाास्त्रवाहिजीवावास्यादजीवीवायदिजीवीजीवंतर्भवतिअथाजीवेएवंसे वरादयोपितम्मादेवामनुपदेशोनर्थकउपदेशअनुपदेशनानवापरस्परोपरमधेस सारपततितदुपरमधानकारप्रतिपादनार्थवान्लवानर्थकउपदेश कुतःजी वाजीवयोनापरस्परोपलेयेसतिसारपत्तितदपरमप्रधानकारप्रतिपदानार्थ त्यादिहमोक्षमार्गप्रकृतः तस्यफलमवरपेमोक्षोनियध्यासकस्पतिजीवउपा जासंचसंसारपूर्वका संचसत्यजीवेजीवस्यभवानीत्यजीवउपात्तःतयोश्चप रस्परोपण्लेव संसारतत्सधानहेवमास्त्रवीर्वधरसपातीतदुपरमस्पमोक्षस्पषधानहेतूसंवरनिर्जरजसपादानतन्योरेवमेषानिनिसनिपधौय्यस्पमीक्षा Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा- स्पषधानहतसंवरनिर्जरेत्यपादानंतयोरेवमेयोनि नेसतिक्षाय्यस्यमोक्षस्पनि ज्ञानभवतीतिहरपतिसामान्यतभूतस्यापिविशेयस्पस्टयपादानंषयोजनार्थक्षत्रि यातायाता सूरवमायातिउभयथापिचोदनानुपपत्ति योजावाजीवयोरजीवा दास्त्रवादीनामनुपदेशं चोदयनितस्योभयथापिचोदनानोपपद्यते निजीवाजीवाभ्याप्टयापलभ्पवाचोदयेदनुपलभ्यवायदिएथरापलभ्यातण्वत तोर्यातरवसिहप्रशानुपलभ्पाउपलभादेवचोदनाभावाचिजीवाजीवा थाकाहान्वाचोदयेदसिद्वान्वाग्यदिमिहाश्चादयेदंतएवार्थातरभाव अयातिही श्योदयनिकायमत्रातभविश्वाचन नहिरषरविवाणादीनामतभविश्यीदनाहीन नेकीताचचोदनानपपजिरितिक्तत्तकयंगध्यार्थिकपर्यायार्थिकयोप्रधान भावेना-गानयेणभेदातीवाजीधयोरास्त्रवादी नास्यादतभावः स्यादर्नतविप योयायिकगाभावेद्रव्यार्थिकषधानमादाववादिपत्तिनियतपयर्या नादियारिणामिवावेतन्याचैतन्यादिद्रव्यार्यिशादास्त्रवादीनांस्याउजीवेमजीवे . Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वांतर्भाव तथाद्व्यार्थिकणभावपर्यायार्थिकप्रधान्यादास्त्रवादिपतिनियतपर्या यार्थी येणादनादिपारिशामिकचैतन्याचैतन्यादिद्व्याधीनर्यशादास्त्रवादीनी जीवाजीवयोः स्पादनतर्भाव तदपेक्षयास्यादुपदेशोधवारतेयोनिर्वचनलक्षया क्रमहेत्वभिधानतियोजीवादीनोयथग्रपदेशेषयोजनमतदानीनिर्वचनलक्षण क्रमहत्त्वभिधानकर्तर्यातदुच्यतेत्रिकालविषयजीवनानुभवनातीवरसमा षययोपान्तपाणापर्यायेयात्रिएकालेजीवनानभवनाजीवत्पजीवीजीविष्य नीतिवाजीवालथासनितिहानामपिजीवत्वसिहाजीवितपूर्वत्वासपतिनजी तिमिहाभूतपूर्वगत्याजीवत्वमेवामित्यौपचारिकत्वस्यालख्येचेष्यतेनैवदोषः भाव-पाणज्ञानदर्शनानभवनासोपतिकमपिजीवबमस्ति अथवारूदिशब्दो येरूढौचक्रियाव्यत्यथैवतिकादाचिजीवनर्मपेक्षासर्वपदावततंगोशब्दव तातहिपर्ययोजीवः यस्पजीवनभक्तलक्षीनासौतहिपर्ययादजीवरत्यच्य तास्त्रवत्यनेनास्त्रवणामात्रेवास्त्रवःत्येनकर्मास्त्रवति यद्वाश्रवणमास्त्रवः Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजधा. त्यनेनास्त्रवणमाञवास्त्रवत्रायनकर्मास्ववतिायडानवामाखवः वध्यतेनेनबंध ॥नमात्रेधार्वधःवध्यतेयेनाखतंत्रीक्रियतेयेनोवतंत्रीकरणमात्रेवाधसनि । तेनेनावरणमावातवर येनसंवियत्तेयेनसरुध्यतेसंरोधनमार्थवावर नि जीर्णतेययानिरिणामात्रधानिगिनिजार्यतनिरस्पतेययानिरसनमात्रेधा | निजगमोक्ष्यतेयेनमीक्षमामात्रेवामोक्षमोक्षमतेस्पतयनासनभावामोक्षः एजेषामितरतरयोगउक्त निर्वचनभिदानीलक्षापयन खात्तहिकल्पलक्षणजीवःजीवखभावश्चेतिनायतस्तरेभ्योदव्येभ्योभियते तहिकल्याज्ञानादयोयसैनिधानादात्माशाताहयकत्ताभीताचभवतितल्लक्ष गोजीवस्तहिपरीतत्वादजीवस्तदभावलक्षणातद्विपरीतत्वा • तज्ञानादानामभावोयस्पलक्षणेसोजावः कथमभावोनिरुपारच्या क्षणाभवतिलभावीपिवमुधर्मोहित्वंगत्वादविवत्तीसीलक्षायुज्यते सहियदिवलनोलक्षणनस्यात्सर्वसंकरस्यायद्येववनस्पत्यादीनामजीवत्वं Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रामोतितदभावात ज्ञानादीनांहिपतितउपलचिर्लचोयांतमूर्विकाप्रतिरस्ति। हिताहितपातिपरिवर्जनाभावाचावहिपूर्वाक्रियादृष्टाखदेहेन्यत्रततड़हार मन्यतेवहिसावंसानयेषनतेचीरिनिा नैवदीयरलेयामपिशानादयःसितिगत विज्ञपत्यक्षाइतरयामांगमगम्पामाहारलाभालानयोगपटिग्लान्यादिदर्शनेनयति गम्याश्चांडगर्भस्थमूर्छितादिवसत्यपिजीवत्वेतत्पूर्वकपत्यभावावेतव्यभिचारःप रायपायागमहारलक्षणास्त्रवपण्यपापलक्षणास्पकर्मगमागमनहारमात्र वश्वास्ववकिउपमार्थायथामहोदधःसलिलमांपगामवरहरापूर्यततथामिथ्या दर्शनादिवारानुपवियनाकभिरनिशमात्मासमापूर्यतइतिमिथ्यादर्शनादिद्वारमा खवा आत्मकम्मरशोरन्योन्यपदेशानपवेशलक्षगोवंधमिथ्यादर्शनादियत्ययोपनी तानांकम्मपदेशानामात्मपदेशानांचपरस्परानपवेशलक्षशोधावंधश्ववेधः कउपमार्थः यथानिगडादिद्रव्यर्वधनवहोदेवदत्तोवतंत्रत्वादभिषेनदेशगमनाद्य भावादतिदुःखीभवति तथात्माकर्मर्वधनवह पारतंत्र्याछारीरमानसः खाम्प Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. द्वितोभवनि-पास्त्रवनिरोधलक्षण-संवरः पूर्वक्तिानामावदारागांशभपरिणा मवशालिरोधःसंचरण सेवरद्रवर्सवर किउपमार्थः यथासुससुसंवतहारक वाटपरंसरक्षितंदराम्सदमरातिभिर्भवतितथासुगमिसमितिधर्मानुपेक्षापरीयह जयचारित्रात्मनः संसहत्तद्रियकयाययोगस्पाभिनवकर्मागमहारसैवरणासवरः एकदेशकर्मसंक्षयलक्षणानिरि उपात्तस्पकर्मशालयो .. एकदेशसक्षयलक्षणानिस्तगानिखिनिर्जराकउपमार्यशययामंत्रीयधवला निजामाचार्यविपार्कविर्षनदोषपदतथासविपाकाविपाकनिर्जरायत्ययनपोवि शेधेरणनिजीरिसंकर्मनसंसारफलपदकत्तलकर्मवियोगलक्षणामो . शनादिहेतुपयोगपकसतिलरतस्यकर्मणश्चतुर्विधर्वधवियोगोमोक्षामो क्षमोक्ष:कउपमार्थयथानिगडादिद्रव्यमोक्षात्सतिरवार्तध्येऽभिपेतपदेशगमनादे शगमनादेपमासखीभवतितयारनकम्मवियोगेसनिखाधानात्यतिकशानदर्श नानपमसखमात्मानभवतिलक्षणामक्तमिदानीक्रमहरुध्यतातादपिरिस्पं Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कामकाERA दस्यादोजीवरग्रहणीयोयमोक्षमातित्वाविष्करणपरिस्यदनसमात्माधरणस्पमोक्षप यायपरिणामाधोवाजीवाशुपदेशपरिस्पंदनासारमार्थस्तस्योपयोगस्वाभाव्येसति । माहकत्वादतमादीजीवग्रहरणेतदनुग्रहार्थखातदनंतरमजीवाभिधानंयत्ताशरी रवाडनावारणापानादिनोपकारेगाजीवमात्मानमतुरटन्हातिमतस्तदनंतरमजी वाभिधानी तदुभयाभिधानत्वारतत्समीपाखवगहायतमात्मकर्मशो परस्प गमलेवेसत्यास्त्रवप्रसिदिभवतितमतरतत्समीपसास्ववगाहणणे तत्पूर्वकस्वाधस्य तत: परवेंधवचनयतास्त्रवपूर्वकोधलतःपरखचनंतस्यक्रियतेसंटनस्पर्वधा भावान्तस्यत्पनीकपतिपत्यर्यसंवरवचन यत्तः संत्तस्यात्मनोवैधोनातितततत्प नाकपतिपत्त्यर्थतदनंतरसंवरवचनसंवरेसतिनिरिपपत्तेस्तदनंतरेनिजिरवचनं यतःसंवरविकानिलराततस्तदंतिकेनिजगवचनयतेपातत्वान्माक्षस्यतिवचनं नितीनोयकर्मखंतेमोक्षगवाय्यतइत्यवचनंपण्यपापपदापिसंख्यानर्मितिचेम्ना स्ववेवंधेवातर्भावाश्यादेतत्सएपपापदार्थयोरुपसंख्यानंकन्तव्योमन्परक्तवादिति Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नन्लर्फिकारसास्वेवंधेवोतर्भावाद्यात साखवावधश्चपण्यपापात्मकस्तचशब्द स्यभाववाचिवाजीवादिभिस्सामानाधिकरणपानपपपत्तिरतवशब्दोभाववाचीतिव्या ख्यातमेततात्मतरतस्यजीवादिभिध्यवचनै सामानाधिकरएपेनोपपद्यतनवाव्य तिरेकात्तद्रावसिद्धेनवानदोषः किंकारणामध्यतिरेकान्तद्रावसिद्धेलहिन्द्रध्याद्यति रिक्तोभायोरितामातरतावेनाध्यारोय्यते यथाज्ञानमेवालेतियदितावोध्यारोय्य तेतलिंगसंख्यातिप्रामातितल्लिंगसंख्यानुवृत्तीचोक्तंकिमक्तनोपात्तव्यक्ति वचनलादितिइतितत्वार्यवालिकेव्याख्यानालकारेषयमेध्यायेवतुर्थमान्हि । आएवंसंज्ञारवालक्षण्यादिभिरुदिानाजीवादीनोसंव्यवहारविशेषव्यभिचारनिव त्यर्थमाह।सूनामायापानाद्रव्यमावतस्तल्यासनीयतेगम्पनऽनेनानिमतिवा यमभिमरवीकरोतीतिनाम स्थाय्यतेपतिनिधीयतेसावितिस्थापनादोव्यतेस्पतेय णेन्द्रोग्यनिगमिव्यतिमानितिवाद्रव्यं भवनभवतीनिभावः नामादीनामितरेतरयोग लक्षणोईहानामस्थापनाद्गव्यभविन्नमिस्थापनाद्रव्यभावतलाधादित्वादृश्यतेन्य Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोपातिवानसिलान्यसनंन्यस्यतालिवान्यासोनिक्षेपस्त्यर्थगतेयोन्यासरतल्या समारतेयांनामादीनांर्किलक्षामित्यत्रीच्या निमित्तांतरापेक्षसंज्ञाकर्मनामनि मित्तादन्यनिमित्तीतरंतदनपेक्ष्यक्रियमाणासंज्ञानामेत्यच्यते यथापरमैश्वर्यल क्षोंदनक्रियानिमित्तांतरानपक्षकस्पचिदिवइतिनामसथाजीवनक्रियानपेक्षत्र छानक्रियानपेक्षवाकस्पचिजीवः सम्पग्दर्शन मितिवानामसायमित्यभिधत्वे नान्यस्यव्यवस्थापनामात्र स्थापनायथापरमैश्वर्यलक्षणीयः शचीपतिरिन्द्रः सोय मित्यन्यवखुपतिनिधीयमानस्थापनाभवतिएवजीवरतिवासम्पग्दर्शन मितिअक्ष निक्षेपादियोयमितिव्यवस्थापनामा स्थायना। अनागतपरिणामविशेषषतिग्य हाताभिमुख्यगळयद्भाविपरिणामवासिंपतियोग्पतार्मादयाननध्यमित्युच्यते अत द्राववालयवाताववादध्यमित्यच्यतो यथार्थमानीतकायमिंद्रपतिमापर्यायपा मिपत्यभिमरवद्रयच्यतोलथाजीवसम्यग्दर्शिनपर्यायपासितिग्रहीताभिम व्यंगस्यद्रव्यजीवद्रव्यसम्पग्दर्शन मितिचीच्यतयक्ततावत्सम्पन्दनिषामिपति Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा ग्टहीताभिमुरव्यमितिमातत्यरिणामस्यजीवस्यासंभवादिदंत्वयुक्तंजीवनपर्याय जावितिग्राहीनाभिमव्यमितिकुतः सदातत्यरिणामोद्यदिनस्यात्यागजीवः नोति नैयदोष मनव्यजीवावादिविशेवापेक्षयासव्यपदेशावदितव्यः॥ धमागमनोआगमभेदातदेतद्यहिविधंकुतःआगमनासागमभेदादागमद्व्य जीवनोपागमद्व्यजीवआगमद्व्यसम्पग्दनिमितिचअनपयक्तः य्यात्मागमअनुपयुक्त पातज्ञायागमद्गव्यमित्युच्यतइतरधिविधज्ञायक ' शरभावितद्यतिरिक्तभेदादितरलोमागमद्रव्यचैविध्यमारकंदतिकुतः।। . रीरभावितधातिरिक्तभेदात्माचर्यदरीरनिकालगीचरंतरज्ञायकशरीरंजी नसम्पग्दर्शनपरिणामपार्मिखत्यभिमखेदव्यभावात्युच्यतेतद्यतिरिक्तकर्मनी कम्मविकल्प वर्तमानतत्यर्यायोपलछितंद्रध्यभाव:विमानेनतेनजीवनसम्प ग्दर्शनपर्यायेणोपलक्षितगव्यंभावजीवोभावसम्पग्दनिमितिचीच्यतियथगना मकम्मेदियापादितेदनकियापर्यायपरिगान मामाभावेन्द्र सद्विविधः पूर्वव Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सराय भावोद्विविधोवेदितव्यः । पूर्ववदांगमनी आगमभेदात्तत्प्राभ्टतविषयेोगावि विष्टात्मागम जीवादिप्राभ्टतविषये गोपियोगे नांविष्टमात्मागमत्तोभावजीवो | भावसम्पग्दर्शनमिति चोच्यते॥ जीवनादिपर्यायाविष्टान्य जीवनादिपर्यायेणावि आत्माऽन्यानो आगमनोभावयच्यते नामस्थापनघोरेकत्वं साकम्मवि शेषादिति चेन्नादरानुग्रहाकांक्षित्वात् स्थापनायी स्थान्मत्तीनामस्थाय्पत्तइति तञ्चनकुतः प्रादरानुग्रहा कांक्षित्वातस्थापनायां यथा ईदिंद्रार्कदेश्वरादिप्रति मास्वादरानुमहाकोक्षित्वं जनस्पतथा परिभाषितेच तितो न्यञ्चमनयो द्रव्यभाव योरेकत्वमव्यतिरेकादिति चेन्नाकथंचित्संज्ञाखालक्षण्यादिभेदसिद्धेः स्पादार का द्रव्यभावयोस्त किवंयस ज्यतेकुतस्तदव्यतिरेकान्नहिद्रव्यव्यतिरेकेणाना वउल पत्ते भावव्यतिरेकेणवाद्रव्ये प्रतीमयेोरेकत्वमिति । नञ्श्वनकुनः संसाखाल क्षरापादिभेदात्तदसिद्धेरिहययोः संज्ञावालक्षण्पादितो भेदस्तयोन्नानाच मुपलभ्यत्तत्तथाद्रव्यभावयी स्पीति कश्चिदाहद्रव्य स्पादी वचनं न्याय्यंतत्पूर्वक Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ই त्वान्नामादीनांस तो हिसे झिनो नामादिभिर्भवितव्यमितिनैष दोषः संव्यवहारहेतवा त्संज्ञायाः पूर्ववचनसंव्यवहारहेतुच्चासंसायाः॥ पूर्ववचनक्रियते सर्वोोहिलोक संव्यवहारासंज्ञापूर्वक स्त्रदात्मकत्वात्तदनात्मकत्वेवख व्यवहारविच्छेदः तदा कच्चाचखतिर्निदयोरागद्वेषप्रवृत्तिः सिद्धात्ततः । स्थापनावचनमाहितनाम कस्पस्थापनोपपत्तेः ततः परस्थापनाविधीयते कुतः। [आहितनामक पनोपपत्तेः आहितनामकम्पसोयरीतिर्किचित्यत्ति निधी यत्ते हव्यभावयो: पूर्व परन्यासः पूर्वोत्तरकालवृतित्वाद्रव्यभावयोग पूर्वापरन्यासः क्रियतेकिं 1 पूर्वी तरेकालवृत्तित्वात्पूर्व कालविषर्य हिद्रव्यंउत्तरकालभावी भावइति त्वत्पासत्तिप्रकषषिकर्ष भेदाद्वातकमा अथवा तत्वप्रत्यासत्तेः प्रकषप्रिक यभेदात्तेखानामा दीनीमुद्दिष्टः क्रमोवेदितव्यः। तत्वभावः प्रधानंतदर्थानीत गणितत्र प्रत्यासत्तेश्तत्समीपेद्रव्यंपयन ड्रावापत्तेस्ततः पूर्वस्थापनीयादा नर्मतद्भावे पितद्भावप्रतिप्रधान हेतुत्वात्तता पूर्वनामोपादान भावप्रतिविषकृ N Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्टत्वालामादिचतुष्टयाभावीविरोधात्याअन्नाहनामादिचतुष्टयस्याभावः।कुतोविरे|| धादेकस्यशब्दा:यस्पनामादिचतुष्टयंविरुध्यतेयथानामैनामैवनस्थापना थनामस्थापनाइय्यनेननामेदनामस्थापनानाहिनेचेयस्थापनानामेदंमनोनामाल एकोविरोधान्नस्थापनातथैकस्पजीवादेरर्थस्यसम्पग्दर्शनादेवाविरोधालामाद्यभाव इनिनिवासवैयांसंव्यवहारंपत्यविरोधान्तवाएषदीयःकिंकारगांसवैयांसंव्यवहा रखत्यविरोधारलोके हिसनमिादिभिर्दयः संव्यवहार इंद्रोदेवदत्तइतिनामापति मादिपचेगानिस्थापनाइंद्रार्थचकाटेदध्येइंगसंव्यवहारलाईदानीतइतिवचना दिनागतपरिणामेवाथैदव्यसव्यवहारोलोकेहट द्रव्यमयंमारणवकोआचार्य: श्रेस्टीवैयाकरणोराजावाभविष्यतीतिव्यवहारदर्शनाछचापतीचभावइंद्गतिनच विरोधः किंचालभिहितानववोधातयथानामैनामैवेय्यतेनस्थापनेतिमाचक्षा गोनखयाअभिहितानववोधमकदीक्रियतेयतोनवमाचक्ष्मनामेस्थायनेति किंत्वकस्पायस्पनामस्थापनाद्रव्यभावासत्याचक्ष्मअनेकांताच्चनैतदेव Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजव• - तेनतिजानीमहेनामेवस्थापनाभवतीतिनधास्थापनावानामभवतिनेतिचाकी मनुथ्यवाह्मणवद्यथाब्राह्मणानास्पान्मनुष्याब्राह्मणास्पमनुष्यजात्यात्मक तमनय्यस्वाह्मण: स्पान्लवामनुय्यस्यत्राह्मणाजात्यादिपर्यायात्मकत्वादीना चित्तथास्थापनास्यान्नामाक्ततनाम्नस्थापनानुपपत्तेनमिनुस्थापनास्यान्तवोभ यथादर्शनान्तयादळस्पाडाव: भावगव्या देशान्नभावपर्यायादिशा खुद्रव्यस्यान्लवानुभयथादर्शनाक्चिमितरतसिहेर्यतएवनामादिचनुपयस्यवि रोधभवानाचशेअतएवनाभावः कथमिहयोर्यसहानवस्थानलक्षणेविरोधोव ध्यघातकवचसतामर्थानाभवतिनासीकाकोलकवळायातपवनकाकर्दत रखरविधारणयाविरोधीसत्वाविंचनामाद्यात्मकवानात्मकत्वेचिरोधस्पाविरोधकल योनामादिचतुष्टयम्पविरीधः सनामाद्यात्मकोवास्पान्नधानभयथाचविरोधाभा वीयदिनामाद्यात्मकानातीविरोधको दीनाविरोधकांनामाद्यात्मापिविरोधक स्यात्ततीनामादीनामभावहिरीधएवन Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पादधननामाद्यात्मकःएवमपिनामादीनानासौविरोधकार्यातरत्वादतिरभावेपि। विरोधकत्वमिव्यतेसवैयांपदार्यानांपरस्परतोनित्यविरोधःस्थालचासोवस्तीति नोविरोधाभावशातारापाडावस्पपामारपमितिचेलेतख्यवहारनिहन्तः स्यादेतत्ता दुरपानावरावषमाणाननामादि सजीवनादिर्यशीयस्यसतंडरगरतस्पभावरताराप अनोभावपवपमाननामादिलाहुरापाभावादितितन्तर्किकारामितव्यवहारनि हत्तेभएपहिसनिनामाद्याश्रयोव्यवहारोनिवतेतसचारतीत्यतीनभावस्येवघामाण्य मपचारिदितिचेलतणाभावास्यादतियद्यपिभावस्पेवनमारायंतयापिनामादिव्यव हारोननियततकतउपचारान्माणवकेसिंहशब्दव्यवहारविदितितन्नकिकारातही गाभावायुज्यतेमाणावकेसिंहशदव्यवहारकीर्यशोर्यादियणौकदेशयोगादिह तनामादिजीवनादियोकदेशोनकश्चिदय्यरतीत्यपचाराभावाद्यवहारनिवृत्ति स्यादेवमुख्यसंपत्यययसंगाच्चयापचारान्नामादिव्यवहार: स्पादोगमव्ययामध्ये संपत्ययइतिमयस्पेवसंप्रत्ययःम्पान्लनामादीनायतरत्वर्थखकरणादिविशेषलिंगा Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा. भावेसर्वत्रसंपत्यय अविशिष्टाकतसंगनेर्भवत्यतीननामादियूपचाराद्यवहारः कृत्रिमयो कृतिमेसंपत्ययोभवतीतिलोकेतद्यथागोपालकमानयकटेजकमानये तियस्पेयासंशाभवनिसानीयतेनयोगापालयतियोवाकव्जातवमिहापि यस्पैयाजीवादिरितिसंज्ञाकृतातस्पैवसंपत्ययःस्यालेतरेखामितितन्लकिंकारणाम मयगतिदर्शनातालोकेत्यिकरणहाकृनिमेसंपत्यय: स्पादयविाअस्पेर्वसंश केनभवतिसकतवातत्रभवतीदमेवंसंज्ञकेनकर्तव्यमित्यतश्चारिसकरराहा, केसैपत्ययोभवति गहिभवान्याम्पेयांशुलशुरपादकमपकरणज्ञमागतंब्रवी , पालकमानयकटेकजमानयेतिउभयगतिरतस्पभविष्यतिर्किंचानेकोता कोत: कृत्रिममेवेदनकृत्रिममेवेतिर्कितीनकातीनामसामान्यापेक्षयास्पार्दकृत्रि मविशेयायेक्षयाकृत्रिम एवंस्थापनादयश्चेति ततः किंकृत्रिमाकृत्रिमयीकृत्रि मिसंपत्ययइत्यस्याभावाकिंचानययविषयत्वा दोनयोद्ध्यार्थिक,पर्यायार्थि का पर्यायार्थिकश्चतयोविषयोनामादिन्यासरत-. Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यात्मकत्वात्याश्चात्यस्पभावः॥परिणतिप्रधानत्वात्ततः। किं गोगामुख्ययोर्मुख्यसं प्रत्ययः॥ कृतिमालत्रिमयो कृत्रिम संप्रत्ययइति चनभवतिप्रतिविषयेनयभेदाद्रव्यार्थि पर्यायार्थिकांतर्भावान्नामादी नोतयोश्वनयशब्दातिधेयत्वात्पोनरुक्तप्रसंग यतो नामस्थापनाद्रव्याणिद्रव्यार्थिक स्पाभावः ॥ पर्यायार्थिक स्पेक्तं ततो नामादीनां नयां तर्भावान्नयचिकल्पानांचवक्ष्यमाणत्वात्यैौनरुक्तं साम तिमवाविनयमतिभेदाधीनत्वा द्यादिनयविकल्पनिरूपणस्पनवाण्वादीयः किं कारणं विनेयमतिभेदाधीनत्वाह्यादि नयविकल्प निरूपणस्पयेसुमेधतो विने यास्तेषां द्वाभ्यामेवद्रव्यार्थिक पर्यायार्थिका भ्पांसर्वनयवक्तव्यार्थप्रतिपतिस्तदंतभावाद्येञ्चतोमंदमेधसस्तेयांच्या दिनयविकल्प निरूपणमत्तोविशेषोपयत्तेन्नमादीनामपुनरुक्तत्वं तद्वव्दान हाशक्त तत्वासम्प ग्दर्शनादित्रयस्पप्रकृतत्वादेवनामादिन्यासाभिसंबंधातव्दस्पग्रहयामनर्थकं ज त्यासन्न त्वाती वादियुषसंगइति चेन्नसम्यग्दर्शनविषयत्वात्य स्पादेन तदा दाहि नाप्रत्यासन्नाजीवादयेोतेषामेवन्यासाभिसंवंधोभवेन्नसम्पग्दर्शनादीनां कुतः Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. अनंतरस्य विधिर्वाभवतिप्रतिषेधो वेति तन्न किं कारणसम्यग्दर्शनं विषयत्वा सम्पम्दर्श | नादित्रयस्य प्राधान्येनोपदेशस्तदर्श त्वद्वा स्त्रारंभस्य सम्यग्दर्शनादिययत्वे मनुजी | वादी नांगराभूतत्वेनोपदेशः अतः स्तछध्दा हतेपिसम्पग्दर्शनादित्रयस्य प्राधान्यान्ना मादिन्यासेनाभिसंबंधोयुक्तः विशेयातिदिष्टत्वाच्च । जी वादयसम्यग्दर्शनविषयत्वेन | विशेषेणातिदिष्टाः प्रकृतं सम्पग्दर्शनादित्रयनवाधिष्यंते विशेघातिदिष्टाः प्रक्ल | तंनवार्धतइति सर्वभावाधिगमार्थे तु सर्वेषां भावांनो जी वादी नामप्रधानानां प्रधानांनी |चसम्पग्दर्शनादीनामंधिगमार्थे तर्हितइव्दा हामितरथाहि प्रधानाभिसंबंधण्वः त्एवम जीवादिषु ज्ञान चारित्रयोश्च नामादिन्यासविकल्प योजयितव्यः ॥अधिकता नामेचसम्पदर्शः नादिजीवादी नापदार्थानामभिधानाभिधेयसंव्यवहाराध्यभिचाराय नामादिभिन्निक्षिमानां तच्चाधिगमहेतुर्वक्तव्यइत्यत आह ॥ झमाणनयेरधिगमः॥० प्रमाणनयाः तैरधिगमो भवातिसम्पग्दर्शनादीनां जी वादी नांप्रमाणनयावक्ष्यमाणल क्षरणः ननुचनयप्रशदस्या ल्या चूरत्वात्पूर्वनिपातेनभवितव्यं अभ्येहितत्वात्प्रमाणश Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शस्यश्वनिपातोवेदितव्यः कयम पहितित्वंषमाणापकाशिरतेवर्थेवनयपतेर्व्यव हारहेतुत्वाद पहनायतः खमाणाधकाशितेवनयपतियवहारहेतुर्भवतिनान्ये यवतोस्याभ्यार्हितत्यसमदायांवयवविषयवाहाअथवासमुदायावयत्वाद्वानयवासम दायविययंत्रमाणामवयवविषयानयारतिसमारणस्याभ्याहितिखोजथाचोक्ती सकलादे || शः समाराधीनोविकलादेशानयाधीनइतिश्नधिगमहेनहिविधः स्वाधिगमहत्तु: पराधिगमहेतुश्चवाधिगमहेतुज्ञानात्मकःषमागानयविकल्पनापराधिगमहेतु वचनात्मकरतेनक्रताव्यनषमाणेनस्यावादनयसंस्कृतेनप्रतिपर्यायसहभगीमती जीवादयः पदार्थासधिगमयितव्या सत्राहकैयसमभंगीत्यत्रोच्यत्ता प्रश्नवशा देकरिमन्चनुन्पविरोधेनविधियतिवेधविकल्पनासमभेगीएकस्मिन्वस्तुन्यविरोधे नषश्नवशाटेनरेनचप्रमाशोनाविरुहाविधिप्रतिवेधकल्पनाससभेगीविज्ञेयात| घथा।पारघटःस्पादघटस्पारघटश्चाघनश्चस्यादवक्तव्यन स्याहत्तश्वावक्तव्यश्च स्यातघनश्यावक्तव्यश्चेत्ययितानतिनयसिहनिरूपयितव्यातरवारमनास्याह Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• વેર |टः॥परमात्मनास्यादघटः॥ को वाघटस्पस्चात्मा की वापरात्माघाभिधानप्रवृतिर्लि गवात्मा यत्रतयोरवृत्तिः सपरात्मापतादिः खपरात्मो पादा नापोहन व्यवस्थापा हिवखनो वस्तु त्वयदि खस्मिन्पदाद्यात्मव्यावृत्तिविपरिशातिर्नस्यात्सवत्मिनाघट |तिव्यपदिश्येत अथपरात्मना व्यावृत्तावपिखा || गावदवरत्वे वस्यादथवानामस्थापनाद्रव्यभावेषु यो विवक्षितः सखा माइतः परा स्मातत्रविवक्षितात्मा नाघ टोने तरात्म नायदी नरात्मनापिघटः स्याद्विवक्षिता घटः नामादिव्यवहारो छेदः॥ सादथवातत्रविवक्षितघटण्दवाच्यसादृश्य. संबंधिय कस्मिंश्चिदविशेषेप रिग्टहीते प्रतिनियतोय संख्या नादिः सः खात्माइ उतरन परात्मात्तत्र प्रतिनियते नरूपेण घटोने तरेायदीत्तरात्मकः स्यादेकघटमात्र प्रसंग: सामान्याश्रयो व्यवहारो विनश्येदथवातस्मिन्नेवघट विशेये कालांतरावस्था यिनिपूर्वोत्तरकुलांत कपालाद्यवस्थाकलापः)] परात्मात्तदंतरालवत्तीखा मारते नैवघटः तत्करिणव्यपदेशदर्शनान्नेतरात्मा नायदिहिकुशूलीत कयाला द्यात्म Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नापिघटन स्याहटावस्थायामपिनदपलाथर्भवेदत्यत्तिविनाशार्थपरुशापरुषपय लफलाभावश्चानयज्यतमयोतरालवतिय-यात्मनाय्यघट स्पाइटकृत्यैफ. लेनोपलभ्येता अथवासतिक्षांद्रव्यपरिणामोपचयापचयभेदादातरोपपत्तेः राजसवनयापेक्षयापत्यत्पन्नघटखभावनखात्माघवपर्यायवातीतोनागतश्व परात्मातेनपत्युत्पन्लखभावेनसत्तासघटोनेतरेगासत्तालथोपलखनपलचिस दावादितरथाहिपत्यत्पन्लवदत्तीसानागतात्मनापिघटवेएकसमयमात्रसर्वस्यादती तानागतवहानत्यत्यन्नाभावेघवाश्रयव्यवहाराभावापद्येतविनष्टानत्पन्नघटव्य वहाराभाववदयवातस्मिन्यत्सत्यन्लविषयेरूपादिसमदयेपरस्परोपकारवर्तिनय यवनाद्याकारःखात्माइतरः परात्मातेनयशवनाद्याकारेशासघटोक्तिनेतरण घटव्यवहारस्पतद्भावभावात्तदभावभावाद्यदिहिएयवघ्नाद्यात्मनापिघदोनस्पास एवनस्पादयतरात्मनापिघवः स्यात्तदाकारशून्येपिघल्व्यवहाराः सायादथवा रूपादिसनिवेशविशेषः संस्थानंतत्रचक्षयाघटोग्य्यतइत्यस्मिन्व्यवहारोरूपमा Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. खेनघटोप्यतइतितिरूपस्यात्मारमादिः परास्मासघोरूपेशालिनतरेणारसादि नापतिनियनकरणाबाह्यत्वादयहिचक्षवाघदोग्यतइत्यत्ररसादिरपिघटइति घेतसवैयारूपत्वसंगततश्चकराँतरकल्पनानार्थिकायदिवारसादिवद्धपमपि घटनतिनग्धेतचक्षविषयतास्पनस्यातमथवाशब्दभेदेझवार्थभेदइनिघदक। दादिशब्दानामय्यर्थनेदः घटनाहुदाकोटिल्याल्कुटतितक्रियापरिणातिक्षण एवतस्पशब्दस्पत्तिर्यातत्रघटनक्रियाविषयकलभाव खात्माइतरः पराम नत्राद्येनघटोनेतरेगातथार्थसमभिरोहराधदिचघटमक्रियापरिणतिमखेना प्यघटः स्यात्तद्यवहारनिति स्याद्यदिचेतरव्यपेक्षयापिघट स्यात्पादिव्य पितक्रियाविरहितेयतछब्दहत्तिः स्यादेकशब्दवाच्यछवावस्खन अथवाघर शब्दप्रयोगानंतरसत्पद्यमानउपयोगाकार श्वात्मामहेयत्वादतरंगत्वाचवा टाकार परमात्मानदभावपिघटव्यवहारीदर्शनासघटउपयोगाकारणास्तिना न्येनयदिछपयोगाकारात्मनाय्यघटीस्पात्रोलहेतुफलभतोपयोगयता Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राभावात्तदधीनोव्यवहारोविनाशमानुयादितरोऽसन्निहितीपियदिघटः स्यात्यवादी नामपिस्याहटत्वपसंग अथवाचतन्यशक्तावाकारीज्ञानाकारोशेयाकारण्यात पयुक्तपतिर्विवाकारादतिलवत्रज्ञानाकाराः अतिर्विवाकारपरिणतादर्शतलया कारतत्रज्ञेयाकार-मास्वात्मातन्मूलवाहटव्यवहारस्यज्ञानाकारः परात्मासर्वसाधा रणत्वासघटोज्ञेयाकारणालिनान्यथायदि याकारेशाय्यघट स्यात्तदाश्रयेपि कर्तव्यतानिरासस्यादथहिज्ञावनाकारेगापिघटनास्पात्पदादिशानकालेपितत्सनि धानाद्धटव्यवहारवृत्तिापसज्पेत उकै सकारैरपितघटत्वमघटत्वंचपरस्परतो नभिन्ता यदिभिधेतसामानाधिकरपिनतहाभिधानपर्तिलस्पाटपदवत्ततश्रे तरेतरेविनाभावउभयोरय्यभावात्तदाश्रयव्यवहारपन्हवकतः स्यादत्तलदुर्भया मकोसोकमेणतछन्दवाच्यतामारकेदनस्याहटश्चाघदश्वराच्यते यदितड्भया मकवसुघटइत्येवोध्येतइतरात्मासंग्रहादमत्वामेवस्थामथाघदरावेफच्यतेध दात्माठपादानादन्टतमेवस्पार नवखतावदेवति नचान्यः शब्दरतदुभयात्मावस्या Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• तत्वाभिधार्याविद्यते। अतोसी घटोवचनगोचराती तत्वाश्या वक्तव्यइत्पूच्यते, घटा मामुखेनउक्त वक्तव्यस्वरूपनि रूप सेो नचादिश्यमानः सएवार्थ इत्तिस्पाद हुश्यावक्तव्यश्वनिरूपिताघटभंगसंगेन प्रदर्शितावक्तव्यवर्त्म ना चापदेश्पः स एवार्थइति स्पाद घटश्यावक्तव्पश्चातदुभयाभिधानक्रमाक्रमाणावशा दोचि भूततद्व्यपदेशः, सरावार्थ: स्पाटश्वाघटावक्तव्यश्च भवति। एवमियेससभ जीजी वादियुसम्यग्दर्शनादिखचद्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नाभेदाद्योज यितव्यातच द्रव्यार्थि के कोत| अनिश्चिततचः। अततदेवेत्यवधारणादुन्मत्तव त्यययार्थे को तो पितथैवातद्वतदेवेत्यवधारणादुन्मत्तवरूपा द्वादो निश्चिता ये अपेक्षितयाथातथ्पवस्त्रवादित्वादनन्मन्तवचनवदवक्तव्यैको तोय्यस द्वादः खवचनविरोधात्सदामौनन्ननिकवत्य अम्य्यार्थः स्यादवक्तव्यवादःव क्त व्यावक्तव्यवादित्वात्सत्येतरवचनविशेषशवादने को नेतदभावादव्याप्ति रिति चेन्न तत्रापितद्रपयत्तेः स्यादेतदने कोते साविर्धप्रतिषेधविकल्पना Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नास्तियदिस्यायदानेकांतोनभवतितदाएकांतदोबानयंगोभवेदनवस्थाससंगचततस्तत्रानेकांतवमेवेतिसासमभंगाव्यासिमातीनभवतीतितलविकारांतत्रापित दयपत्तेः स्यादेकोतस्यादभयःस्यादवक्तव्यः स्यादेकांतश्शावक्तव्यश्वस्यादनेको तश्चावक्तव्यश्वास्यादेकांतश्चानेकांतश्चावक्तव्यश्चेतितत्कयमितिचेदच्यते माणनयायेरणादिभेदादेकोनोद्विविधःसम्पगेकांनोमिय्यकांतइतिअनेकांतीति विधः सम्पगनेकोनोमिथ्यानेकांतइतितत्रसम्पगेकोताहेतुविशेयसामषिक्षः समारगप्ररूपितायैकदेशादेशमाएकामावधारोनान्याशयनिराकरणापवान विधिर्मिध्येकात एकत्रमप्रतिपक्षानेकधखरूपनिरूपरणयक्तागमाभ्या मविरुद्धः सम्पगनेकीतस्तदतस्वभाववन्यपरिकल्पितानेकालकेवलवाग्वि ज्ञानमिथ्यानेकांतः तत्रसम्यगेकोतोनयइत्कच्यतेसम्पगनेकोनाप्रमाणनपापणा देकांतीभवतिएकनिश्चयप्रवशावात्रमाणार्यशादनेकांतोनवतिअनेकनिश्च याधिकरणवाद्यधनेकांत अनेकांतण्वस्पालेकोतोभदेवकांताभावात्तत्समूहात्म Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजवा. શ્ कस्पतस्याय्य भावस्पात शाखाद्यभावे वृक्षाद्यभाववत्तदविनाभाविशेषनिराकरणादा रमलो पे सर्व लोप: स्पा देवसन्तरेचभंगाये। जयितव्याः छलमात्रमने कांत इति चेन्न छ ललक्षणाभावत् । स्यान्मतंत देवा स्तित देव नास्ति तदेव नित्यं तदेवानित्यमिति चाने का नरूपणां कुल मात्रमितितन्न कुतः छल लक्षणाभावात् छल स्पहिलक्षणमतंव चनविघातोर्थविकल्पोपप-त्याछलमिति यथा नवकं बलीयइत्यविशेषाभिहितेथे ! वक्तुरभिप्रायादर्थोत्तरकल्पनं न वास्प केवलानचत्वारइतिनवो वास्प केव इतिनव केवलः तयानेकांतवादः व्यत्तउभयगुणप्रधानभावापादितार्पितव्य रसिद्धिविशेयवल लाभप्रायितयुक्ति पय्कलार्थेनिकांतवादः संशयहेतुरिति •विशेयलक्षगणोपलचे स्वात्मतं संशयहेतुरनेकांतवादः कथमेकत्राधारेविरो अनेकस्यासंभवादागमचैवंषनृतः एकें द्रव्यमर्नतपर्यायमितिकिमागमखा स्तिवा नास्तिवानित्यं वानित्यं चेतितञ्चनकस्माद्विशेषलक्षणोपलो रिहसामान्य त्यक्षाद्विशेषाप्रत्यक्षाद्विशेषतेश्यसंशयः तद्यथा स्याणुपुरुषोचिते देशेनाति .. Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशांधकारक लुयायांवेलाया ईत्वमा सारूय्यैपश्यतोवन के वैरविशेषयोनिलय नादीनस्थारणगतान्विशेयान्वस्त्र संसयनशिरकरूयनशिखाबंध नादीन्पुरुषगतीश्च नुपलभमानस्पतेयचरमरतः संशयउत्पद्यते नचतहूदनेकांतवादे विशेयानुपल श्चिर्यतः खपराद्यादेशवासी कृताविशेषाउक्ताव्यक्ता प्रत्यर्थमुपलभ्यते ततेोविशेयो पलश्च संशयहेतुरितियद्‌गदिष्म तत्सम्पन्निरवैष्म एवमपि संशयः कथमिंदनाव दितिप्रष्टव्यः। एवामस्ति त्वादीनां धर्माणां साधन हेतु संनिधाने सत्तिभवितव्यसंशयेने तिउच्यतेविरोधाभावर्शशयाभावः॥ यदिविरोधोभविष्यशेशयो। जनिष्पतनचविरो धोनयोपनीतानां धम्मी गांमस्ति कुतः अरणाभेदादविरोधः पितापुत्रादिसंबंधव दुक्ताद ग्राभेदादेकत्राविरोधेनावरोधोधर्मारिणां पितापुचादिसंवंधवत्तद्ययैकस्प देवदत्तस्पजातिकुलरूपसंज्ञाव्यपदेशविशिष्ट स्पपितापुत्रोभताभागिनेयइत्येवंप कारा संबंधाजन्यजनकत्वादिशा भेदान्नविरुद्धांतेन येकापेक्षयापिने तिः शेषापेक्षयापिपित्ताभवतिशेयापेक्षायादापुत्रादिव्यपदेशा ईइत्युक्तापेक्षयापि Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा छेई तापुत्रादिक्कत संबंधबहुत्वं देवदत्तस्यैकत्वेनविरुध्यते तद्वदरि त्वादयोनयांतिविरोधमेकत्रसपक्षासपक्षापेक्षोपलक्षितसत्वादिभेदोपचितैकधर्मव हा अथवा सपक्षासपक्षपेक्षया उपलक्षितानांस त्वादीनां भेदानामाधारेणापक्षधर्म गोकेनकुलां सर्वद्रव्यंनिरपेक्षयो कत्रवादिप्रतिवादिप्रयोगापेक्षयासंशयउक्तः इतरथाहिपक्षधर्मपि संशयः कल्पेत/एकस्पहेती: साधकदूषकत्वाविसंवादवद्वा अथैवमुपपच्या विरोधेप्रतिपादितेपिमिथ्यादर्शनाभिवेशात्तत्वेनप्रतिपद्यते यस्तैष तिसार्वलो कि कहेतुवादमाश्रित्येोच्यतेद्रहख पक्षमर्यादानक्रमे णन्यायधर्ममनपाल यत्तावादिनाभिप्रेतप्रति ज्ञार्थसिद्विमाशंसनाहेच्चनपदेशे सर्वाभिलषितार्थसिद्धिः प्रतिज्ञामात्रा देवमाज्जापदिति प्रतिषसंग दोघानिवृत्तयेोहेतुरुपदिश्यतेससाधको दुयकश्चखपक्षमाचयतिपरपक्षंदूषयति ननो साधनदूषणार्थी हेतोरन्यौ भवतः नचाननामस्तीतित्वाय नसाधक स्तेनदूयकः येनवाटू करते नसाधकभनतयोसंकरो विरोधोवाः एवंसर्वार्थख विरोध दोषमनुदति विसर्य्यत्यने कोतपक्ति येति सर्व Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवाद्यविपतिपश्यनावपतिवादिनीविसंवदंतएकमनेकात्मकमिनिकेचित्तावदाह सबरजस्तमसासाम्यावस्थाजधानमितितेयाप्रसादलाघवीयतायावरणासाधना विभिन्लस्वभावानांजधानात्मनामियश्चनविरोधगमधमन्येयानपधाननामकं गणेभ्योतिरभूतमंस्तितितरावगरमासाम्यमापन्तानपधानारच्यालभंतति यद्यमानधानस्यारस्यदितत्यासमदायत्राप्रधानमेकमितिमातरवाविरोधः सिद्धायानामवयवानांसमदायस्पचालियरमन्यता अनुत्तिवाभिधानलक्ष सामान्यविशेषइतितेयावसामान्यमेव विशेषासामान्यविशेषरतिएकस्यात्म नःउभयानकनविरुध्यनअपराहावादिपरमाणुसमदायोरूपपरमारगरि नितोककवडात्वादिभिन्ललक्षणानारूपात्मनोमिथचनविरोध अथमतनप रमारालमिकोलिवाह्याकिंतुविज्ञानमेवनदाकारपरिणतपरमाराव्यपदेशाह मित्युच्यते सत्रापिग्राहकविषयाभाससंवित्तिशक्तित्रयाकाराधिकरणस्पेकस्पा पगमालविरोधमकिंचा सवैयमिवतेयापूर्वतिरकालभाव्यवस्थाविशयार्या Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. . . स्पकार्यकारणाशकिसमन्चयोनविरोधास्यास्पदमित्यविरोधासिहावंस णनयैरधिगतानाजीवादीनीषनरय्यधिगमोपायानरपदर्शनार्थमाहानिर्देश खसाधनाधिकरणस्थितिविधानतःकेखनरिमनिर्देशादयः .. मिलमाधिपत्य साधनकारणी प्राधिकरणप्रतिष्टास्थितिः कालक विधानपकार-अधिगमइत्यनुवर्तते एतिरेतेभ्योवाधिगमः पूर्ववत्तसिः • गमःजीवादीनासम्पग्दर्शनादीनांचासतर्हितयानिर्देशाः कर्त अर्थर्वशद्विभक्तिपरिणामोभवति तद्यथा उच्चनिदेवदत्तस्पग्रहारपामंत्र खेनंदेवदत्तमितिगम्पूते (अयकिमर्थमादीनिर्देशउच्यते अवधनार्थ ल्पपतिपत्रादीनिर्देवचनखूरूपेगावटतस्पार्थस्पस्वामित्वादिकाधर्मवि निपत्तिर्भवति यतोऽस्पनिर्देशाम्पादोवचनक्रियते इतरेयोपनवशाक्रमीद • खादीनाप्रश्नवणक्रमोवेदितव्यायद्येवसण्वतावदुच्यताकोजीवर 'तउपशमिकादिभावपर्यायोजीवीपीयादेशावक्ष्यमारराउपशमिकादिभाव Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्यायोजीवन्त्युच्यतेपर्यायादेशार द्रव्याधीदेशालामादिजावरत्यच्यतेतदुभय' संग्रहातमागतस्याभयस्पसंग्रहः।समारणनिदेशदराच्यतेकस्पजीवानस्परिशा मस्यभेदादग्नेरीलसपरिणामायस्पसायनत्यरिणामस्तस्यासोव्यपदिश्पतेकुतः कथंचिद्रेदात्परिणामपरिपगामिनोभेदकल्पनासनावात अग्नेरौनक्तद्यथा लात्मकस्पाग्नदहनपचनखेदनादिक्रियासामर्थ्यमौतभेदेनोच्यताध्यवहारनय वशासवैया जीवादीनीसवैधापदार्थानांव्यवहारनयवशालीवास्वामीकिसाथ नोजीवापारिगामिकभावसाधनोनिश्चयतायोसीजीवात्मापारिगामिकरत साधनाजीवानिश्चयनयनतेनासोवारमानंसर्वकाललभतइनि उपशमिका दिभावसाधनश्चव्यवहारतः व्यवहारनयवशादीयशामिकादिभावसाधनश्यति व्यपदिश्पतेचशब्देनशक्रशोणिताहारादिसाधनश्यंकिमधिकरगोजीवशाख पदेशोधिकरणोनिश्चयतःायोसीखपदेशअसल्यानखरूपनकर्मकृतशरी रपरिमारणानविधायित्वेपिअपरिखामहीनाधिकभावरतदधिकरगोजीव रखा - - - Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा मप्रतिष्ठाकाशवयवहारतः॥शरीराधियानः कर्मापात्तशरीरमेतच्चाधिकरण मात्माव्यवहारनयवशादधितिष्यतीतिउच्यते किंथितिकोजीव स्थितिस्तस्पद्र व्यपपिक्षानाद्यवसानासमयादिकाचा तस्पजीवस्यस्थितिमाद्रव्यपर्यायापेक्षा विधाकल्य्पत्तिाद्रव्यायेक्षाऽनाद्यवशानाजीवद्रव्य हिचैतन्यजी . व्ययपदेशादिसामान्यदिशान्तप्रच्यचतासर्वकालमितिपर्यायस्नुअन्य तितदपेक्षासमयादिकाकल्प्पत्तिकिमस्पविद्याननारकादिसंख्ययोसंख्ययानंत पकागजीव:नारकादय: सैख्यया असंख्ययाअनंतषकाराभिद्यतेजीवस्पन यतरेखामागमाविरोधानिर्दशादिवचनतेनैवप्रकारणागमाविराधैनैतरेखामजी वादीनोनिदेशादयोवक्तव्यारतद्यथासजीवस्तावशाखापर्यायाहितीनामा दिश्चाजीवत्मेिवाजीवस्यवामीजीवोवाभोक्तत्वारा पहलानामणत्वादिसाधन भिदादितन्निमित्वाकालादिधर्मधर्मकालाकाशनौगतिस्थितिवर्तनावगाहहे उत्तापारिणामिकीअरुलघुग्रानुग्रहीताखात्मभूतसत्तासर्वधाजी। Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वातदपेक्षत्वाइत्यादिहेतुताभिव्यताखात्मेवाधिकरणसद्रिव्याणास्वात्मव्यवस्थि तत्त्वादाकाशंसारगार्मसाधारांचघटादिजलादीनांस्थितिद्रव्यापेक्षानाधवसनाप योयापेक्षासमयादिकाविधानधर्मादित्रिकखतिनियतानादिपारिशामिकद्रध्याथी देशादेकैकंपर्यायार्थिकनयादेशादनेको संख्ययानंतानांद्रव्यागीगतिश्यित्यवगा हनाद्यपकारपर्यायादेशाश्यादेकंस्पार्दनेकस्पाशेरव्ययस्यादसख्ययस्यादन्तका लासययोसयोनंतश्चभवति परखत्ययात्सगलद्रव्यरूपस्पर्शादिपारिगामि कद्रव्यार्थीदेशात्स्यादेकंपतिनियतैकानेकसंख्येयासेरव्येयानंतपदेशपर्यायादे शास्यादनेकस्यासव्ययस्यादसंरव्ययस्यादनतंत्रास्त्रवनिर्देश कायवाङ्मनःक्रि यापरिमामानामादिजिीवोस्पखामीकर्मवातन्निमित्तित्वासात्मेवसाधनशुहस्पा तदभावात्कर्मवासतितस्मिन्सहतरधिकरणात्मनेवासीतत्रतत्फलदर्शनात्क मणिकर्मवत्तेचकायादाउपचारतास्थितिवाङमनसास्त्रवयोधिन्नैकसम याउत्करणांतमहूती कायास्त्रवस्पजघन्पनातमहूत उकगानंतकाल: Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. असंख्यया पडलपरिवत्ती-विधानवाङजनसास्ववयोश्चतुर्विकल्पसव्यसत्यम्स योभयानुभयभेदाक्कायास्त्रवः सप्तविध उदारिकवैक्रियिकाहारकमिश्र भेदादोदारिकोदारिकमिश्रकीमनव्यतिरण्यावक्रियिकक्रियकमिश्रकीदेव कागोसाहारकाहारकमिश्रकोर्सयतानाम्यद्विधामानांकामगाकायास्त्रवाविन हापन्लानोकेवलिनीवासमहानगतानीअथवास्त्रवस्पत्रकार यिकः हिंसान्यतयाब्रह्मादिवपत्तिनिवृत्तिसंझावाचिकापरुयाक्रोशवि शुनपरोपघातादिषवचस्मप्रवत्तिनिवृत्तिसंशः मानसोमिथ्याश्रुतेथ्योस्पादि खमनसः सत्तिनिटत्तिसंज्ञावधनिदेशजीवकर्मखदेशान्यान्यसंश्लेयोवंध: नामादिवासजीवस्यतत्रत्तत्फलदर्शनाकर्मणश्चत्तस्पहियत्वान्मिय्यादर्शनाविर तिषमादकषाययोगार्वधस्पसाधने 'धिकरणं भवतिविवक्षात:कारकहते स्थिति जघन्योकृयाचातिब्रजघन्यवे दनीयस्पद्वादशहूर्ता:नामगोत्रयोरटोशेषाणामतमहतकियाज्ञानदर्शना Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरणवेदनीयोतरायारणशसागरोमकोटीकोद्यःमोहनीयस्पसमतिलिमिगोत्रयोर्वि शतिस्त्रयस्त्रिंशशांगरोपमाण्याययः॥अथवावंघसंतानपर्यायादेशाश्पादमादि रेनिधनश्याभध्यानाभध्यानीचकेरोचिधेनतेनापिकालिननसेश्यतिज्ञानावरण दिकत्यिादविनाशाश्यात्सादिसनिधनःविधानवंयसामान्यादेशादेकः द्विवि धःशुभाशुभभेदारत्रिधाइव्यभावोभयविकल्पारचतहसिकृतिस्थित्यनभाग खदेशभेदात्यंचधामिय्यादर्शनादिहेतुभेदाता योदानामस्थापनाव्यक्षेत्रकाल भावासमधारेवभवाधिकैनाअष्टधाज्ञानावरणादिमूलप्रकृतिभेदादेवसरव्ये याख्ययानंतविकल्पश्चभवति हेतुफलभेदावरनिर्देशयास्त्रवनिरोधोना मादिवजिीवोस्परखामीकर्मवानिरुध्यमानविषयत्वान्निरोधस्पताधनंगमिसमि निधम्मोदयरचामिसंर्वधार्हमेवाधिकरणामित्कस्थिनिर्जघन्येनातर्महा। कण्यापूर्वकोटीदेशीना विधानएकादिरयोत्तरशतविधः ततउत्तरश्चसख्ये । यादिविकल्पःनिरोध्यनिरोधकभेदावेदितव्यतत्राष्टोत्तरशतविधउच्यते ति Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. खोयमयःपंचसमितयधदिशविधा अनपेक्षाद्वादशपरीयहाहाविशतिःत योहादशविधंपायश्चित्तनवविध विनयश्चठविध वयाहत्येदशविधवाध्या यः पंचविध व्यत्सगोद्विविधःHध्यानदशाविधंशुतध्यान चतुर्विधमि तिनिजगनिसायथाविपाकात्तपसोवाउपभुक्तवीर्यकम्मनिर्जरानामादिवासा आत्मन: कर्मशावाद्रव्यभावभेदत साधनतयोययाकविधाकश्याधिक .. राित्मैववास्थितिघन्येनेकसमय उक्तर्षेशोतमहतसादिः सपर्यवसानावा विधानसामान्यादेकानिजमा द्विविधायथाकालखक्रमिकभेदा दएधामलकर्मप्रकृतिभेदादेवसंख्ययासरव्ययानंतविकल्पाभवति. कर्मरसनि हरेगाभेदान्माक्षनिर्देशकस्नकर्मसंक्षयोमोक्षोनामादितिस्पस्वामीपरमात्मा मोक्षात्मेववासाचनसम्पग्दर्शनशानचारित्राशिवामिसेवैधाहीमेवाधिकरणांत हिवयाचाखितिस्तस्पसादिरनिधानाविधानं सामान्यादेकोमोक्षद्रव्यभाव मोक्तव्यभेदादनेकः सम्पग्दनि निर्देशस्तत्वार्थबहानसम्पम्दर्शननामादि Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वात खनरात्मनः स्वस्यैववादर्शनमा हापशमादिसाधनं वाह्यं चोपदेशादिखात्मावा स्वामिसंबंधाभागेवाधिकर स्थिति जघन्येनोतर्मुहूर्त भउक्त वैषट्यष्टि सा गरोपमाशिसातिरेकाणि अथवा सोदिसनिधनो: अपशमिकक्षयोपशमिकेसी द्यनिधनंक्षापिकं विधानां) सामान्यादेकं द्विधानिसर्ग नाधिगमज भेदाविधा अप शमिक क्षायिकक्षायोपशमिकल्पादेवंसे ख्ययानंतविकल्पं च भवति अध्यवसा नभेदात् ज्ञाननिद्वेश: जीवादितत्वप्रकासनं ज्ञानं नामादिवतिदात्मनः खाका रस्पवासानावरणादिकर्मक्षयोपशमादिसाधनं स्वाविभविशक्ति अधिकरणं स्वात्माखा कारोवातत्रप्रतिष्ठानात् स्थिति॥ सादिसनिधर्नक्षायोपशमिकं ज्ञानं चतुर्विकल्पे सांधनिधनंक्षायिकं विधानंसामान्यादे कंज्ञानं प्रत्यक्षपरोक्षभेदा द्विधाद्रव्यगुणपर्यायविषयभेदाचिधानामादिविकल्पानुमत्यादिभेदात्यं चधाइत्येवंसंख्ययासंख्येयानंतविकल्पं च भवतिभेदाच्चरित्रनिर्देश: कर्मादान ||कारणानिवृत्तिश्वारित्रं नामादिवतिपुनरात्मनः स्वरूपस्पवाचारित्रमोहोपण Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. मादिसाधनवशक्तिर्वारखामिसंबंधभागेवाधिकरणीस्थितिजघन्यनातमहतलक घेणापूर्वकोटीदेशोनालयवासादिपर्यवसना अपशमिकक्षयोपशभिक सा द्यपर्ययवसानंक्षायिकंशुद्विव्यतपपेक्षधाविधानसामान्यादेकद्विधावाद्याभ्यं तरनित्तिभेदात्रिधाअपरामिकक्षायिकक्षायोपशमिकविकल्या. चतुर्थमभेदारपंचधासामयिकादिविकल्यादित्येवसंख्येयासव्ययान्तविक ल्पचभवति परिणामभेदाक्षिमेतेरेवजीवादीनामाधिगमोभवतिउतान्योय्यधि गमायायोरलीनिपरिएएमालस्तीत्याहासत्संख्या मात्रस्पर्शनकालाजारभाषा न्यवहलेचा अधिगमदत्यनुवतिषशंसादिषसछन्दहते इच्छात: सद्भाव ग्रहणेसछब्दःपर्शसादिवत्ततेतद्यथाप्रशंसायोतावशत्पुरुषः सदश्वश्वे निक्वचिदरिजलेसटा सत्पटइतिक्वेचित्यतिज्ञायमानेषनाजित सत्कथम • भूयात्सवजितहतियज्ञायमानइत्यर्थक्वचिददिरेसचत्यातिथान्नोज तिमाहत्येत्यर्यातत्रेहेछातसड़ावोग्यताअव्यभिचारात्सर्वम्लत्वाच्च Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस्यादौ वचनं सत्वं ह्यव्यभिचारि सर्वपदार्थः॥सत्तां व्यभिचरतियदिव्यभिचरेद्वाग्वि ज्ञानगो वरातीतः स्याता गुणानुरूपादयो ज्ञानादयश्च के खचित्संति केषुचिन्न संतिक्रियांचपरिस्पेदात्मिका जीवपुलेयस्तिनेतरे वेतन व्याप्तिमती, सर्वेयांच विचाराणामस्ति त्वमू लेतेनहि निश्चितस्य वसुनउत्तरार्चिताय ज्पते अतस्तस्पा दीवचनक्रियते सतः परिणा मोपलः संख्यापदेश: सत्तोहिवसुनः संख्या तानंत परिणामोपलो संख्याताद्यन्यनमपरिमारणावधारणार्थ संख्याने दल क्षरणाउपदिश्यतेनिज्ञत्तिसेख्य स्पनिवास विप्रतिपत्तेः। क्षेत्राभिधानंनिश्वये नज्ञानसंख्यस्पार्थस्योध्वधिस्तिर्यग्निवासविप्रतिपत्तेरूद्यिन्यनमनिश्वया वैचित्रिकालविषयोपश्लेयनिश्चयार्थ थे क्षेत्राभिधानं अवस्थाविशेषस्य स्पर्शनं अवस्थाविशेवै। विचित्रत्र्यश्रचतुरस्त्रादिस्नस्पत्रि कालविषयमुप श्लेषणस्परनिकस्पचित्तक्षैत्रमेवस्पर्शनां कस्पचिद्द्रव्यमेवकम्पचिजवः प डटौ वेति एकसर्व जीवसंनिधौतन्निश्चयार्थतदुच्यते स्थितिमत्तोवधिप Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. रिछेदार्थकालोपादानस्थितिमत्तीर्थस्यावधिपरिछेत्तव्यइति कालायादानक्रियते ५२ . अंतरशब्दस्पानेकार्थत्तश्चि. गः कचिछिद्रवर्ततेसातरकारीसछिद्गमितिकचि भतइतिक्वचिन्मध्येहिमवशागरोत्तरइतिवचिशामीप्यस्फटिकस्पष्ठकर कायतररलस्यतहाततिशुलरक्तसमीपास्यस्पेनिगम्यते क्वचि. वारणलोहानोकाटपाषाणावाससानारीपरुयतोयानामतारमहदतरमितिम हान्विशयत्यर्थावचिहहियोगेनामस्यांतरेपारतिक्वचिदुपशमरव्याव्या नेतरेशाटकाइतिक्वचिहिरहेअनभितश्रीटजनेतरेममंत्रयतेत हिरहेमंत्रयतत्यर्थनातहलिगमध्यविरहेवन्यतविदितव्य वीर्य स्पन्यावेपनरूद्धतिदर्शनातचने अठपहनवीर्यस्पदव्यस्यानिमित्त वशात्कस्यचित्पर्यायस्पन्यग्नावसतिननिमितीतरत्तस्यैवाविभावदर्श दत्तरमित्युच्यतेपरिणामंषकारनिर्णयार्थभाववचनउपशभिकादिः). Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ maina मपकारोनिन्नत पंडनिभाववचनक्रियतेसैख्यानाद्यन्यतमनिश्चयेय्पन्योन्यवि यषतिपत्यर्थमल्पवहत्ववचनसंख्यातादिश्चन्यतमेनपरिमाणेननिश्चेताना मन्योन्यविशेषमतिपत्यर्थमल्यवहत्ववचनक्रियतेइमेराभ्योऽ ल्यारमेवह वदत्याहनिदेशवचनाशत्वप्रसिद्धसरग्रहणनिदेवचनादेवसत्वंसिहनास तोनिर्देश तितरमादसदहणमनर्यकंसदहरामसडहर्णनवावास्तिक नास्तीतिचतुर्दशमार्गगास्थानाविशेषणार्थवालवारावदोष किंकारणों नानेनसम्पग्दर्शनादसामान्येनसत्वाच्यतीकितगतीद्रियकायांदिचल ईशाखमार्गास्थानेषवास्तिसम्पग्दर्शनादिचनास्तीत्येवेविशेषणार्थसह चनासर्वभावाधिगमहत्त्वाच्चाधिकृतानोसम्यग्दर्शनांजीवादी चनिद्देश वचनेनास्तित्वमधिगर्तस्यात्वनधिकृत्ताजीवपयोयाःकाधादयसयोवाजी वपर्यायाः वशीदयोघनादयश्चेतेयामस्तित्वाधिगमाषनर्वचन: अनधि छतत्वादितिचेन्नसामर्थ्यास्यादेशदनधिकतारलेलतानपनर्यक्तमेयोग्रहण Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा. मितितन्नतिकारसामोरयामपिग्महगभवति विधानग्रहणानार्थत्वार खास्यादेतद्विधानमहणादेवसंख्यासिद्धिरितितलकिंकारगाभेदगशानार्थत्वात्य कारगणनहितरेदगणना मदमच्यात उपशमसम्यग्दृश्यन्यतः क्षायि कसम्पम्हएयरतावतरतिक्षेत्राधिकरणायोरभेदरतिचेन्नाक्तत्वाश्यादेतद्यते वाधिकरणातदेवक्षेत्री सतस्तयोरभेदात्यायग्रहणामनर्थकमितितन्लकिंका रोमक्तार्थत्वादक्तमेतत्सर्वभावाधिगमार्थत्वादितिक्षेत्रेसनिस्पर्शनोपलश्चेर यघटवत्ययगमहरणं यथेहसतिघटेक्षेत्रवनोवस्थनाजलियमाहुटस्पर्शन नंनद्येतदनिघदेवाअवनियतेनचघर्टस्टशतीतितथाकाशक्षेत्रजीवावस्था नियमादाकाशेस्पर्शनमितिक्षेत्राभिधानेनैवस्पर्शनस्यार्थग्रहमतत्वात्स्यग्यह सामनर्थकोनवाविषयवाचित्वान्लवाययदीयः॥ किंकारणविषयवाचित्वादिषय वाचीक्षेत्रशब्दः यथाराजाजनयदक्षेत्रेवत्तियतिनचकने नेतुरुनविषयमिनिकाल्पगोचरत्वाञ्चयथासांपत्तिकेनीवनासोपतिकंघद Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेत्रेस्टमेनातीतानागतनवमात्मनःसापतिकक्षेत्रस्यर्शनस्पर्शनाभिप्राय:स्पर्श, ||नाभिप्रायः स्पर्शनस्पत्रिकालगोचरवार स्थितिकालयोरीतरत्वाभावइतिचेन्न मख्यकालास्तित्वसंप्रत्ययार्थस्यादेतस्थितिरेवकालकालरावस्थितिरित्यतोना ख्यभयारोतरभावइतितन्नकिकारगामख्यकालास्तित्वसंखत्ययार्थपुनःगका लग्रहणाद्विविधोहिकालोमख्योव्यावहारिकश्यतितमरव्यानिश्चयकालाप योयिपर्यायावधिपरिछेदोव्यावहारिकातयोरुत्तरत्रनिलयोवक्ष्येतोउक्तच. किमतसर्वभावाधिगमहेतुत्वादितिनामादियभावग्रहणात्यनर्भाधायहणामिनि चिन्तापशमिकाद्यपेक्षत्वातस्यादेतलामादिषभावगाहणंकृततेनैधसिहत्या पिनविगाहणमनर्थकमितितन्नकिकारांऊपशमिकाद्यपक्षत्वात्पूर्वभावग्रह गणेद्व्येनभवतीत्येवेपरमिदत्वोपशमिकादिवक्षामाणभावापेक्षर्किसम्पग्दर्शने अपरामिक्षायिकमित्यादिविनेयाशयवशावातत्वाधिगमहतुविकल्यः यवासवैयामेवपरिहार विनेयाशयवशहितत्वाधिगमहेतुविकल्पावेदितव्यः Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• हिस्तरेखाइतरथाहिप्रमाणहरणादेव सिद्धेरि तारेखामधि । गमोपायानीग्रहणमनर्थकंस्पादिति ॥ इनित्तत्वाचा निकेचथमेध्यावपंचम कंसमाते । एवंसम्पदर्श स्पादावुपदिष्ट स्पलक्षणो त्यत्तिस्वामिविषय न्यासाधिगमे। : तत्संबंधेनचजीवादीनांसंज्ञापरिणामादिनिर्दिष्टं तदनंतर मिदानी, सम्पज्ञानविचाराही मित्याह ॥ मति कताच चिमनः परयि के क्लानि ज्ञानं ॥ मत्या दयइत्तिकरातेशव्दाःमतिशब्दाभावक टंकरणसाधनः), अयमतिश दो भावकी वेदितव्यः। मनेर्भावसाधनेक्तिः तदावरणकर्मक्षयोपश मिसती द्वियापेक्षमर्थस्पमननमतिः॥२ []] ऊदासीन्येनतत्त्वकथनाद्वहलापेक्षयाक साधन: करणसाध नोवामनुते यन्मन्यतेनेनेतिवामतिः भेदाभेदविवक्षोपप तेष्टश्रुतशब्दः कर्मसाधनश्च किंचपूर्वोक्त विषयसाधनश्चेतिवर्त्ततेऋतावरणक्ष योपशमायेत रंगवहिरंग हेतु संविधाने सतिश्रूयतेम्मेतिकर्तकन्तरिश्रुतपरिणत आत्मैवटरीतिश्रुतभेदविवक्षायांश्रूयतेनेनेतिश्रुतंश्रवणमात्रेवाः अवपू Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र्धस्पदधाते कमी दिसाधनः। किः कर्मादिखसाधनेय्वन्यतमे किरयं चेदितव्यः अ वधिज्ञानावरणक्षयोपशमाद्युभय हेतु संनिधाने सत्यवधीयते प्रवाग्दधाति अव गधानमात्रंवावधिः॥अवशव्दोधः पर्यायवचन ॥ यथा-अधक्षेपणामवक्षेपण ||मिति अधोगतभूयो द्रव्यविषयोह्यवधेयवावधिर्मर्यादाअवधिनापति वद्वज्ञानंअवधिज्ञानं तथाहिवक्ष्यते रूपिववधेरिति सर्वेषां प्रसंगइतिचेन्न रूदिवशा हावस्थापपत्तेः। गोशब्दखइर्तिवत्मनः प्रतीत्यप्रतिसंधायवाचा नंमनः। पर्ययः तदावरणकर्मक्षयोपशमादिद्वितयनिमित्तवशात्परकीयमभी गतार्थ ज्ञानंमनः। पर्ययः भावादिसाधनत्वं पूर्ववद्वेदितव्यं कथंमनः प्रतीत्य तिसंधाय वा ज्ञानमित्य श्रोच्यते परकी यमनसि गत्तोर्थोमन इत्यु च्यते नास्थात्ताछद्यमितिसचक मनोगतार्थोभावघटादि स्तमर्थे समंतादेत्या वलंव्यवखप्रसादात्म नो ज्ञानंमनः पर्ययः ॥ मतिज्ञानससँगइति चेन्न अपेक्षामात्र त्वात्स्यादेतन्मनः पर्ययाज्ञानमतिज्ञानंप्राकुनमनोनिमित्तत्वादेवंहि आघीप्रक्रियामनसाम Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा. ५५ नः संपरिचिंत्येतितन्नकिं कारमपेक्षामात्र त्वात्खपरमनोपेक्षामा अंतत्रक्रिय नेयथा चंद्रमसंपश्पतिनतकार्यमतिज्ञानवत् (आत्मशुद्धिनिमित्तत्वादेनस्ये ति वाह्याभ्यंतरक्रियाविशेषान्यदर्थ के वंतेत केवलंतपः क्रियाविशेषानवा मनसे कायाश्रयान्वा ह्यानभ्यंतराश्यतयः यदर्थमर्थिनः केवंतेसेवंतेत वलंअभ्युत्पन्तेो वासहायार्थः॥ केवलशव्दः यथाकेवलमलंभुक्ते देवदत इति असहाय व्यंजनरहितं भुंक्ते इतिगम्पते। तथाक्षायोपशमिक ज्ञानासेट असहाय केवलमित्यव्युत्पन्नो यशध्दोद्रष्टव्यःकरणादिसाधनो ज्ञानश व्याख्यातः। अयं ज्ञानशब्दः कररणादिसाधनइति व्याख्यानः पुरस्तादितरे तदद्भावः। इतरेयामेकां तवादिनांतस्य ज्ञानस्पकरयादिसाधनर्धनोपपद्यते 'मिति चेटुच्यते आत्माभावे ज्ञानस्पकरणादित्वानुपपत्तिः कर्त्तुरभावा यामात्मानविद्यतेतेयाज्ञानस्पकरणादित्वं नोपपद्यते कुत कर्त्तुरभावात्सति छेत्तरिपरशोःकरणात्वंहं । तथा चात्मन्यसत्तिनास्पकरवं त : Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावसाधनलमपिनोपपद्यतेज्ञानिनिमितिनासतिभाववतिभावरतिस्यादेना नातीनिज्ञानमिनिकटसाधनत्वमिनितन्ननिरीहकत्वान्तहिनिरीहाकाभावकल त्वमारकंदतिनिरीहकाचसर्वेभावाः॥किंचपूर्वोत्तरापेक्षस्पलीकेकरीवहनचत स्पज्ञानस्पपूर्वोत्तरापेक्षारितक्षणकत्वादत्तोनिरपेक्षस्पकर्टवभावः किंचकरण व्यापारपेक्षस्पलोकेकटत्वंहष्टनचज्ञानस्यान्यत्करणमलिमतोस्पकत्वमापी नोपपद्यतेश्वशक्तिरेवकरणमितिचेन्नशक्तिमद्भेदाभ्युपगमेयात्मारितित्वसिद्धेः अभेदेचसदोयलदवस्थाएवेनिसंतानापेक्षयाकरीकरणभेदोपचारइतिचेन्लप रमाविपरीतत्त्वेम्टया वादोपपत्तेभेदाभेदविकल्पनयोरुक्तदोयससंगाचमन श्चेद्रियं चास्पकरणमितिचेन्ततस्पतछत्तयाभावात्मनस्तावलकररगविनष्टत्वा तयणार्मनंतरातीतविज्ञानयहितन्मतइतिवचनान्नेद्रियमय्यतीतंततरावनाय्य पजायमानस्पकररणत्वनाहिंसव्यवियागीयगपजायमानमितरस्यविधागास्प करगीभवति। किंचजकत्यर्यादन्यस्याभावाशाइत्यस्पा सकतेरववोधन Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजावा. मनतस्मादन्यः कश्चिदोस्तियः कलखमनुभवरानोस्पकरीत्वाभाः वाकिंचएकक्षणावियययत्करीवंतदनेकक्षणगोचरोच्चारणअजन्मनाक लेशव्देनकायमच्यता कर्यवायमेकक्षणेसत्वाचकःस्यासतानावस्थानाहा च्यावाचकभावसंबंधइति चेन्नतस्यपतिविहिनत्वालयमतमेतत्रस्वात्प तितानारनवृष्टिरंवाध्यमेवहितत्वमिय्यतो अव्यापारेयहिसर्वधम्मेयवाय. ॥वहारोनारत्येवेनितदपिनोपपद्यते खवचनविरोधात्तत्वप्रतिपत्फयायापन्ह वपसंगाचा किंचा जानातीतिज्ञानमितिकलसाधनत्वेनोपपद्यतेकतोविशेया तुंपलञ्चेनायेनहिकरीसाधनलमवगतकरणादिसाधनबंचतेनेदेयज्यतेव कुकरीसाधनमिदनकारणादिसाधनमितिनचक्षणिकवादिनः . वार्तिज्ञानविकल्पनाया अनवधारितोभयखभावस्पतहिशेयोपलचिरतिन हिशुक्लेतरविणेयानभिज्ञस्पशुलमिदननीलादीनिविशेयगामपपद्यते अलि त्वय्यविक्रियाम्पतदभावोनभिसंबंधादात्मनश्प्रस्तित्वेपिज्ञानस्पकरणाद्यभावः Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कतोनभिसंबंधाद्यस्यमतमात्मनोज्ञानारख्योगमारतस्माचार्यातरभूत-पादि यमनार्थसन्निकर्याद्यन्निय्यद्यात नदन्यदिनिवचनादितितस्पज्ञानकरगांनभवि, तुमहीतिकुतगरथगात्मलाभाभावादृष्टाहिलोकेळेतुवत्तातिरभूतस्यपरणे लेहागौरवकारिन्यादिविशेषलक्षणोपेतस्यसत: करणाभावः नचतयाज्ञान स्यस्वरूपैययापलभामहोकिंधापेक्षाभावादृष्टीहिपरशोहिवदताधिष्टिताद्य मननिपतनापेक्षस्पकरणाभावशानचतयाज्ञानेनकिचित्कटसाध्यक्रियातरंस मपेक्ष्यमस्तिचितत्यरिणामाभावाछेदनक्रियापरिशतेन हिंदेवदत्तनतक्रिया याया।साचिव्येनिपज्यमान परशुरुकरणमित्येनद्यक्तीनचतयारमाज्ञानकि यापरिणात अतिरत्वेतस्पाशत्वादिहयझानादन्यद्भवतितदहटा यथा || घटादिदव्या तयाचशानादन्यसात्मेत्यञ्जवनसंग सानयोगाइबंदृष्टत्वाई दिवदितिचेन्नतखभावाभावेसंबंधनियमापयतिरिदियमनोवत्रज्ञखभावा भावैसत्यात्मन्येवयोगोनमनसेंहियेगवेतिनियमाभावः यतसिहयोश्चदमिर्द - Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ५७ डिनो से वधो दंड स्पचप्रसिद्धस्य चैप्रै ससनो विशेषणमात्रत्वेनोपादानादात्मनश्च तुटुत्पत्तौ हित विचारणाविक्रियोपपत्तेरसाम्पे उभयेोश्राज्ञयेोः संबंधेय्य त्वप्रसंगो दृष्टत्वात्यंधयेो: संबंधे दर्शनशक्ताभाववत् किं च इंद्रियमनः प्रसंगाद्यदिज्ञायतइति किंचउभयोर्लिक्रिया त्वात्सर्वगतस्य तावदात्मनः कि | यानातिनापि ज्ञानस्पक्रियावत्त्वेद्रव्यस्पैवलक्षणमितिवचनान्ततः क्रियावि रहित्तस्पकथं कर्त्यत्वं करण चैवास्यात्यस्यापिमतमन्यत्तगुणाव्यतिरेकात् दः परुयोनित्यश्च निर्विकारत्वादितिितस्पतानंकरा नभवितुमर्हति कुतः अनभिसे बंधा द्यावुद्धिरिद्वियमनी हे कारमहहृत्प्रपनीता लोचनसे कल्यामि मानाध्यवसायरूपासाप्रकृतिः परुषः पुनरविक्रियः शुद्धश्वतस्यसाक रोक र्थस्याचियापरिणातस्पहिदेवदत्तस्प लोके करण प्रयेोगेो दृष्टत्येवमा दियो ज्येनापिकले साधनत्वंडा ज्यते लोके हिकरणत्वेनप्रसिद्धस्या से शतप्रसं सापरायामभिधानप्रवृत्तौ समीक्षितायोनै गोरख काठिन्याहितविशेषो यमे Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ amana विछिनतीतिकर्मधर्माध्यारोपः क्रियतेनचत्तथाज्ञानकरणखेनपसिद्धमरित पूर्वदीयोपपत्तेः मतोस्पकर्लखमयुक्तीनचभावसाधनलमपपत्तिमरा अवि क्रियस्पतत्परिणामाभावादिक्रियाखभावस्पहिवरखनरतंडुलादविलेदादिदश नात्यचर्नयाकरत्येवमादिभावदिशामुक्तीनाकाशस्येति चिफलाभावाताज्ञा निहिपमारामिटमारगेनचफलवताभवितव्यनचाववोधनमंतरेशाफलमन्यदा पलभ्यतोतस्मादन्येनज्ञानेनभवितव्यंयस्मितसतिसाशातिरववोधः फलमा मनोभवति तच्चनारत्यतीनभावसाधनलंग्नधिगमश्वाचनभावोत्तरमितिफले खामारपोपचारारतिवायुतंगरख्याभावादात्फलप्रमाणापरिकल्पनाचायका आकारावतीभेदाभेदयोरनेकदोयोपपत्तेलिविकल्पकत्वाच्चतत्वस्याकारक ल्पनाभावावायवरत्वकारापोहे अंतरंगाकारालपपत्तिश्चेतिजैनेंदाणांतुप रमविसर्वज्ञपणीतनयभंगगहनप्रपंचविपश्चितास्पाहादलकाशोन्मीलित। ज्ञानचक्षवामेकरिमन्नय्पर्थेनेकपर्यायसंभवादुपपद्यतरतिविम्टटाईम alankarALLAHARI p Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा यतन्मत्यादीनाज्ञानशब्देनपत्येकमाभिसंबंधोधजिवद्ययादेवदत्तजिनदत्तारु दत्ताभोज्यतामिनिदेवतादीनामजिनापत्येकमभिसंबंधोभवतिएवमिहापित स्पेकमभिसंबंधःमतिज्ञानश्चतज्ञानेश्वधिज्ञानेकेवलज्ञानमित्तिसत्यपित। सामानाधिकरगये उपात्तलिंगसंख्यत्वात्तलिंगलेख्योपादानेनारतीयुक्तंपुरता रिश्वतत्वादल्यातरत्वादल्यविषयत्वामतिग्रहणामांदोमत्तिरित्येतत्पदंश्चत मल्याचूरवावध्यादिभ्याविषयश्चास्याल्यावक्षरादीनाप्रतिनियतविषयत्वा तस्मादस्पादोग्यहाँक्रियतेतदनंतरलततत्यूहिक्रतमिनियक्ष्यतेतनस्त दनतरेलातक्रियतेस्तचविययनिधनानुल्यत्वाचमतिश्चतयोनिर्वधोरव्ये व्यसवपर्यायवितियक्ष्यते अतरततुल्पत्याचतदनंतरश्चततत्सहायत्वाचय थानारदपर्वतायत्रपर्वतस्तत्रनारदपरस्परापरित्यागात्तयामनिश्चत्तयोः परस्परापरित्यागायत्रमतिरलत्रशतंयत्रशुत्तत्तत्रमत्तिरितिप्रत्यक्षत्रयम्पा दावधिवचनविश्शुधभावात्सत्पपिमनिश्चताभ्यासत्यक्षवाहिशुहत्वेभव Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धिरौपदिष्टं प्रत्यक्ष ज्ञानमपेक्ष्यअवधिन्नविशुद्धरत तो स्पषा उपन्यासस्ततो विव दुत्तरत्वान्मनः पर्ययग्नहरणं ततोवधेर्मन:पर्ययज्ञानं विष्णुत्तरं किंकृतोपवि शुतरां किंक्ल तो स्पविश्वद्विप्रकर्षः संयमगुण सन्निधान कृतः अतोस्पनदनं तरंगहां ते केव लग्नही ततः परंज्ञानप्रकर्षाभावात्सर्वेषां ज्ञाना नोपरि छेदने केवल सामर्थ्यादस्य चान्येन ज्ञानेनापरिच्छेदद्य त्वान्नातोऽन्यत्प्रकृष्टं ज्ञानं मरती तित्ततः परंज्ञानखक भावस्तेनैवसहनिवरणाच्च यत्तश्र्व केवलेने बसहनिवक्षायोपशमिक ज्ञानैः सहा तोते के वलग्गा हर कश्विदाहम तिश्शुप्तयोरेकत्वसाहचर्यादेकवारखानाच्चाविशेषान्मतिश्चत्तयोरेक लंपा भौतिकुतः साहचर्यादेकभावस्था नाच्चाविशेषान्ना तरन शिद्धेनाविशेषःकु ततस्तसितएवमतिश्वतयोः साहचर्यमेकचावस्थानंची व्यतेस तएवविशेषः सिद्धः प्रतिनियतविशेषसियो हिंसाहचर्यमेकत्रावस्था नवज्यते नान्ययेति तत्पूर्वकत्वाच्च मतिपूर्ववतमितिवक्ष्यते ततश्वा Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नयोर्विशेष यतपूर्वयच्चपश्चात्तयोकथमविशेयः तिसरावाविशेष कारणासह शछाकगपडतेतिचेलातएवनानात्वार स्यादेतद्यतोमतिपूर्वकत्वमतरवा शेयःकुतःकारणासहशत्वाकार्यस्य कर्थतंतुपटवद्यथाशुलादितटकार्य पटद्ध्येशुक्लादियामेव तथामतिकार्यवाछुतस्यापिमत्यात्मकत्वंयुगपढनेश्व यथाम्नावोमप्रकाशनयोगपद्धत्तेरन्यात्मकत्वंतथासम्पग्दर्शनाविर्भावादनंत रंयगपन्मतिश्चतयोनिव्यपदेशदत्तोरविशेषइतितन्नतिकारशर्मितरावना नात्याद्यतएवनानात्वाद्यतरावकारणामइसत्वयमपत्तिश्च चोच्यतेसतराव नामावसिईद्योहिंसाहर्ययगपत्तितिविषयाविशेषादिति चेलमहाभ दाश्पादेतहिययाविशयान्मतिश्चतयोरेकत्वमेवहिवक्ष्यतेमतिश्रुतयोरेकत्वमेवहि वक्ष्यतेमनिश्चतयोर्निर्वयोगटोव्यसर्वपर्यायेवितितन्तकिंकारगारग्रहगाभेदाद न्ययाहिमत्याग्रह्यते अन्यथाश्रुतेनयोहिमन्यतेविययाभेदादविशेषानितस्यै कघटविषयदर्शनस्पर्शनाविशेष:स्पात उभयोरिद्रियानिमित्तत्वादिनिचेन्लन Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिहूत्वानस्पदेतदुभयोरिट्रियानिंद्रियमिनित्तत्वादंत: करणनिमित्तत्वाच्च तदुभय निमितितन्नकिं कारणमसिद्धत्वा जिह्वाहिशब्दोच्चार क्रियायानिमित्तनज्ञानस्पश्र वशामपिस्वविषयमतिज्ञाननिमित्तं नत स्पेसुभयानिमित्तत्वमसि इंसि होहेतुः साध्यमर्थ साधयेन्नासिद्धः: किंनिमित्तंतर्हितमनिंद्रिय निमित्त श्रीवगमःशु संचिनिमितो इंद्रियानिंद्रियव लाधानात्पूर्वमुपलश्वेर्थेनोइंद्रियप्रधान्याद्यदु त्पद्यते सा नंतद्यते ज्ञानं तेई हा दिवसंग इति चेन्नावग्टहीतमात्रविषयत्वात्स्या देतदी हादीनामपिनश्व्यपदेश: प्रासरतेय्यनिंद्रियनिमित्ताइति तन्न किं कारणम वग्टहीतमात्रविषयत्वादिद्वियेरगावग्रही तो घरेल मात्र विषयाईहादयः श्रुतं तद्विषयतर्हितं अपूर्वविषर्यए कंघटेमिद्रियानिद्रियाभ्यां निश्वित्पायंघटइति तजातीयमभ्यमनेकदेश कालरूपादि विलक्षगामपूर्वमधिगच्छनियन्त कुतं नाना प्रकारार्थप्रकारार्थपणपश्यत्ताश्रुतं सथवाइंद्रियानिद्रियाभ्यामेकं जीवमजीवं चोपलम्भ्पतत्रससंख्याक्षेत्र स्पर्शन कालांतरभावास्पबहुत्वादिभिन प्रकारेर पुरू Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. पोकर्तव्येयत्समनछुनं श्रुत्वावधारणाकुनमितिचेलमतिज्ञानपसंगात त्याप देवधारयतितकुत्तमितिकेचिन्मन्य नेतन्नयतकात:मतिज्ञानपर्सगान्तदपिशब्दश्चत्वा गोशध्दीयमितिपतिपद्यते असाधारणननामलक्षणेनभवितव्यश्चनपनस्तस्मिन्नि द्रियग्रहीतारहीतपर्यायसम्हात्मनि शव्दतदभिधेयेचश्रोत्रिद्रियव्यापारमंतरण जीवादीनयादिभिराधिगमापायैर्यायाम्पनावबोधःखमारानयैराधिगमइत्फक्त . रोकेयोचिस्तानमभिमतकेयोचिसंलिकर्यइत्यतीधिकृतानामेवमत्यादीनापमाशाख ख्यापनार्यमाहामायापमाशब्दस्पकार्थःभावकरीकरणत्वोपपत्तेकाप माणशब्दस्पेछातीर्थाध्यवसाय अयंपमाणशब्द भावेकतरिकरणेचवर्ततो नत्र भावतावत्यमेयार्थप्रतिनिवृत्तव्यापारस्पतत्त्वाकयनारसमारणमिति कत्तरिखमया खनिजमारत्वशक्तिपरिणतस्याश्रितत्वात्तवमिणोतिषमेयमिनिसमार्णकरणेष मारपमेययोःसमागापमेययोश्चस्पदिन्यत्वात्पमिशात्यनेनेतिषमा अनवस्थति चितानहाएवात्मदीपवार स्पान्मातमिमिहसंपधार्यखमारासिद्धि Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरवचे नियंदिय था प्रेमेप सिद्दिप्रमाणसिद्धिनं परनोवा स्यात्स्वतएववेतियदियंथाप्रमेय सिद्धिय माणाधीना एवं प्रमाणसिद्धिरपिप्रमाणांत्तराधीनेतित स्याय्यन्यत्तस्याय्यन्यदि त्यनवस्था/अथखतएवसिद्धिः एवमपि यथाप्रमाणस्यस्वनण्वसिद्वितथाषमेया मनएवसिद्विरितिप्रमाण व्यस्थाकल्प नापकाशकः स्वस्य चतथाषमाणमपिइति अथवायमपरार्थः यदिभावक लेकर णनामन्यतमसाधनः प्रमाणशव्दा अन वस्थानामोनित कस्मिन्नर्थात्स निविरुद्व नाव स्थानमिति तन्न किंकारहट वात्प्रदीप वद्यथैक स्पप्रदीप स्प प्रदीपयति प्रदीय्यतेनेनेति वाभावादिशक्तयावि रोधन प्रमाणस्यापीतिइतरथाहिषमारणव्यपदेशाभावः यदिमा स्वस्था स्वरसंवेद्यत्वादस्पसुमाराणव्यपदेशो न स्यात् विषयज्ञानतहिज्ञानयोरविशेषः वि शेषा विषयाकारपरिछेदात्मनि ज्ञानेयदिखा कारपरिखेदो नस्यात्तद्विषयेविशा नेविषयाकारस्रूपते वेतितयोरविशेयः स्यात्रम्टत्यभावप्रसंगश्च न ह्यनुपलश्चपू विथेस एवायमिति स्टत्तिर्भवतियदित्वविज्ञानस्वात्मानं नचि जानीयादुत्तरकालमन Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा. |धिगतखात्मविज्ञानः कयंत्यातशाहमिनिततम्टतिरभावः स्यारफलाभावनिचे माथीववोधेषीनिदर्शनास्यादेतबावसाधनेषमागोममेवसमारामितिनफलमन्यदी पलभ्पतइतिफलाभावरतितलविकारणमर्याववोधेतीतिदर्शनार खभावस्या मनकर्ममलीमसस्यकरमालयनानिश्चयेतीतिरुपजायतेःसाफलमित्य च्यतेउपेक्षाशाननाशीवारागद्वेषयोरखशिधानमपेक्षाअज्ञानसपेक्षाअज्ञानना शवाफलमित्युच्यतेशाटनमारण्योरन्यत्वमितिवेलासपसगात्स्यान्मर्तप्रमियो स्पास्मानपरंवापमायामितिकर्टसाधनखमयुक्तंयस्मादन्यत्समागाँज्ञान संचण गअन्यश्चयमातात्मासचगणीशियायोश्चान्यत्वद्रव्यरूपवत्तथाचात्मे दियमनोर्थसन्निकर्यायभिय्पद्यतेतदन्यदितिचनादन्यत्समारामन्यःषमाताततः करणासाधनत्वमेवयक्तमितितन्नार्किकारणामज्ञानादन्यत्रात्मातस्याशखंखानी तिघवत् सानयोगादितिचेन्नतस्वभावत्वेशारत्वाभावोधजदीपसंयोगवत्तस्याद तट्टानयोगावाटत्वभवतीतितलिकिंकार तस्वभावत्वेशालवाभाव कयम Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रदीप संयोग वद्यथा जात्यंधस्प प्रदीपसंयोगेपिनद्रष्टुत्वां तथा ज्ञानयोगाथा सौय्यन्तस्वभावस्पात्मनो नशाल वं प्रमाणप्रमेययोरन्यत्वमिति चेन्ना नवस्थानात् स्यान्मतः अभ्यत्वमारणमन्यत्प्रमेयंकुतः लक्षणभेदाद्दी पघटवा देति तन्तकिंका रअनवस्थानाद्यदियथावा ह्यातूप्रमेया काण्दन्यत्स्यात् अनवस्था स्पस्यात्प्र काशंवदिति चेन्नप्रतिज्ञा हानेस्तचैतत्स्यान्नानवस्था दोषः कर्यप्रकाशवद्यथाज ||काशस्पघटादीनामात्मनश्वप्रकाशस्य नानवस्था दोषः एवमिहापी तितन्नर्किका राजतिशाहानेः प्रकाशो हिखात्मनो नाशः। खपरप्रकाशनेसमर्थः प्रदर्श्यमानः समाशाप्रमेययेोरन्या त्वप्रतिज्ञां हापयति अनन्यत्वमेवेतिचेन्नाभयाभावप्रसंगाद्य द्यद्यन्यत्वे दो नन्यत्व तर्हिताप्रमाणयोषमाणमेययोश्चेतितन्नकिं कारणम भयाभावप्रसंगाद्यदिज्ञा तुरनन्यत्स मार्ग समारणाचप्रमेयमन्यतराभावेतदविनाभ विनोवशिष्ट स्थाय्पभावइत्युभयाभावप्रसंगक अंतर्हि सिद्धिरने की तासिद्धिः स्पादन्य त्वंस्यादनन्पत्वंस्यादनन्यत्वमित्यादिसंज्ञालक्षणा दिभेदास्यादन्यत्वंव्यतिरेकेशानु Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा-नुपलः स्पादनन्यत्वमित्यादिततःसिहमेतत्वमेयनियमाखमयषमाणेतस्पात्य मार्णस्यात्यमेयमितिवममाणभेदापेक्षयाहित्यनिर्देश: प्राधेपरोक्षजत्यक्षमन्य दितिवक्ष्यतितदपेक्षयापमाणइतिद्वित्वनिर्देशन क्रियतेतहच सन्निकर्यादिनि त्ययीतन्मत्यादिज्ञानवाणीतषमायणव्यपदेशैलभन्तेनसन्निकर्यादीनिमिथसन्नि कर्यादेषमागछेकोदोबासनिकषेत्रमाणेतकलपदार्थपरिछेदाभावग्लदभावा) अस्पमतसन्निकर्ष समागामधिगमः फलमितितस्पसकलपदार्थपरिछेदो नास्तिकतरतदभावात्तस्पसलिकर्षस्थाभावावयमितिचेदुच्यतयेनकेनचित्सर्वशे नभवितध्येतस्यार्थपरिछेदहेतुर्यदिसन्निकर्वनासवतस्यत्रयविषय: स्यात त्रचतश्यविषयस्त्रयविषयश्चनसभवतिमनसइद्रियाणांवायुगपत्वहतित्वात्य तिनियतविषयत्वाच्चानतोहिशेयखिकालविषयातक्ष्मीतरितविलकृष्टरूपः सकथमिहत सन्निकय्यति असनिकृष्टेनत्तत्फलमववोधः अतिप्रवासी साभावः स्यात्ततएवयसैनिकोपिनभवति सर्वगतत्वादात्मनः सकलेनाछे Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नसलिकर्यरतिचेलतस्पपरीक्षायामनयपत्ते यदिहिसर्वगतमात्मास्या-तस्पकि, याभावात्पुण्यपापयो कलवाभावेतत्पूर्वकसंसारस्तदपररितिरूपश्चमोक्षोनयो। क्ष्यतरतिकरणग्रामस्यसंसारइतिचेन्ततस्याचेतनत्वातस्यैवमोक्षजसक्रेश्चसर्व द्वियसलिकर्याभावश्चउपरियाद्वक्ष्यतेसर्वथागहाप्रसंगश्वसीलनासंनिक यत्वाद्यानादियाशिवाय्यकारी गिरपिसर्वथार्थस्परग्रहांपामोतिकतासी लनासंनिकटत्वात्तत्फलस्पसाधारणत्वमसंगास्त्रीपुरुषसंयोगवत्तस्यसनि करस्पषमागास्पयत्फलमर्थावबोधनतेनचसाधारगोनभवितव्यकर्थस्त्रीपुरु घसंयोगवद्ययास्त्रीपुरुयसंयोगजसुखमभयोरपिसाधारणतयेद्रियागोमन सोर्थस्फभाववोधनपामोतिशय्यावदितिवेलाचेतनत्वात्स्यान्मतेयथाशय्यादी नापरुषस्यचसेयोगेसाधारशोपितत्कलेसरखनशय्यादीनामवतिकिंतर्हिषरुष स्पेवेतितयेहापीतितन्नकिंकारामचेतनत्वादचेतनानाशय्यादीनोसत्यपिसेयो) गिसुखेनभवति इहापिततएवेनिचेन्नाविशयात्रस्यादेतन्मनःपटतानासत्याय Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. सलिकनतफलमववोधनभवतिकुत्तोपेतनखादेवेतितलकिंकारगांजविशे यादाखभावस्खेतावत्सर्वयामामादीनामविशतत्रकिंवत्तीयविशेषःसन्नि कर्यफलमववोधनमधोतरभूतमपिसदात्मनैवसंवध्यतेनमनः सम्पतिभिरिति शखभावत्वेचालनपतिज्ञाहानिसमवायादितिवेलाविशवारस्यदितत्सम वायोनामायतसिद्धिलक्षगा:संबंधोरिततरकृतोयविशेषइतितलकिंकारण मवियासमवायोहिसर्वगतासभावशून्यत्वेसमानेपिसात्मनैवज्ञानयोजय|| निनमनप्रतिभिरितिवचननविपश्चिन्मनापीतिकरंएवमिद्रियेपियोपना नुमानीयम्पयारनुमानागमयोरनुमानप्रत्यक्षयोरोपम्पप्रत्यक्षपोरोपम्पाग मप्रत्यक्षयोप्रत्यक्षपरोक्षयोश्चविपर्ययजसैगेमत्यादीनामविशेषेणापमा गाथमाह ॥ भोपरीक्षादिशब्दस्पनेकार्यत्तिखेविवक्षा तपाथम्या सहा अयमादिशब्दोनेकार्यन्तिः क्वचित्याथम्येवनने अकारादयोवा . स्वभादयस्तीर्थकण्रतिक्वचित्यकारभुजंगादयःपिरिहर्त्तव्याइक्विचिद्यव Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aramana स्थायांसपीटिसर्वनामनिवचित्सामय्यिनयादीनिक्षेत्रागीतिक्वचिदवयवेदिदा दिरितिालवहादिशब्दस्यविवक्षातवायम्पाविदितव्यमादीभवमाद्यपि नरसन्मतिःश्चतामहामनयमखानस्यणहानसानातिकतमसपथमत्वान्न हिमश्रुतस्रथम उत्तरापेक्षयादित्वमितिचेलतिषसंगातस्पान्मतोमवध्याय तरमपेक्ष्यश्चतस्यादिवमिनितन्तः किंकारणामतिषसंगाढन्तरमपेक्ष्ययद्यादि वंकल्य्यतेकेवलेव्यदस्यसर्वस्यादिवसामोतिदिलनिशादिनिचेन्लतरवस्थत्वा रस्यादितहिखनिर्देशोनसर्वमहाभवतितानातिनसंगइतितलविकारगोन दिवस्थत्वादेवमप्यनिषसंगणवभवतिकयो योहणमितिनवाप्पत्यासन्ने| निग्रहालवारावदोषार्किकारगौप्रत्यासन्ते वनग्रहणाभवतिद्वित्वनिर्देशाद्री मागीयदाद्यस्पतत्यासन्नतदेवग्यह्यतेतस्पहिसामीय्पादोपचारिकंसायम्पम जातितासामार्यश्वराच्या उपासाउपात्तपरजावान्यादवगमनपरोक्षंड पातानीद्रियाणिमनश्यातपाजकाशीपदेशादितत्वाधान्यादवगमः परोक्षं m Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजवा- उपान्नानीद्रियाशिगमनश्चातपातप्रकाशोपदेशादिनयाधान्यादवगमपरोक्ष यथागतिशम्पपितस्यापिस्वयमेवगंतुमसमर्थस्पयद्याहावलवनप्राधान्यंगमनं तयामनिवजावराक्षयोपशमसतिशखभावस्मालनमाश्वयमेवानिपल मसमर्थस्पपूर्वक्तियत्ययपधानी तानंपरायत्तवान्तदुभयंपरोक्षमियच्यते तरवणमारावाभावइत्यनुपालभः पत्रान्येउपालभतेपरोक्षषमागोमभवति || जमीयतेनेनेतिहिषमा नचपरीक्षेणार्किचिवमीयतेपरोक्षत्वादेवेनिसाउपा लेमः कुतः अतएवयस्मात्परायतपरोक्षमित्राच्यतिनानववीधरति अभिहि तलक्षणात्परोक्षादितरस्यसर्वस्पषत्यक्षवपतिपादनामाहात्याय अन्यत्रिविधप्रत्यक्षमित्कच्यता किमिदखत्यक्षनामईद्रियानिद्रियानपेक्ष मितीतव्यभिचारंसाकारग्रहीषत्यक्षद्रियाणिचक्षरादीनिपंचानीद्रियमनः तेबपेक्षायस्पनविद्यतेतश्मिरतदितिज्ञानव्याभिचारसातीतोस्पाकारोविक ल्पः यत्सहाकारेणवतततत्यत्यक्षामित्युच्यतेद्रियानिद्रियानपेक्षामितिविशे Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 वामतिश्रुतनिकृत्यर्थतीतव्यभिचारमित्येतहि गज्ञातनिहत्य तद्विमिथ्या दर्शनोदयांद्यभिचरतीतिसाकारग्रहणमित्येतदवधिकेवलदर्शनध्य दासार्थ मनाकारहितदितिर्किंगतमेतदियतासूत्रेयाहोश्चिदेववक्तव्यमितिगतषतिप लेकथमितिचेदुच्यतोअक्षजतिनियतमितिपरपेक्षानिहात्तिामलीतिव्या नीतिजानातीनि अक्षमालापासक्षयोपशम पक्षागावरगावातमेवपति नियतप्रत्यक्षमितिविग्महात्परापेक्षानिन्तिकृताभवति अधिकारादनाकार व्यभिचारपूदास अधिकृतमेतत्रज्ञानसम्पगितिचततोनाकारस्यदर्शनस्पत्य भिचारियोज्ञानस्पचव्यवासः कृतीभवनिकरणात्पयग्रहणाभाव इतिचेलहर खादीसवरस्पादेतत्करणात्पयेथे स्परग्रहणीनजान्नोति नपकरणास्पकस्पचिङ्का नहटमितितन्तकिंकाराष्टवाक्कथमीशवद्ययारयस्पकत्तअिनीश उपक रशापेक्षोरयंकरोतिसतवभावेनशक्तोयसपनरीशरतयोविभोयात्परिखासहि || विशेयः॥सवाद्योपकरगाणगानपेक्षःखशक्तवरथेनिवत्तीयनपत्तीतरलथा Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा ६५ . कर्मलीमस आत्माक्षायोपशमिकेंद्वियानं द्रिय काशाद्युपकरणापेक्षार्थासंवेत्ति क्षयोपशमविशेषक्षयेचसतिकारणानपेक्षः" वशक्तीवयन्वितीति को विरोधः ज्ञानदर्शनस्वभावत्वाच्च भास्करादिवद्यथा भास्करादयः प्रकाशस्वभा यत्वात्प्रकाशांतरानपेक्षांप्रकाश्यानर्थान्प्रकाशयेति तथा ज्ञानदर्शनखभावा स्मातदावरणक्षयोपशमशेयेसतिरवरा पदार्थानाविष्करोतीतिसिद्धं इंद्रियमि ज्ञानप्रत्यक्षंतद्विपरीतंपरोक्षमित्यविसंवादिलक्षणमिति चेन्नामम्पप्रत्यक्षा स्पान्मतमिंद्रियव्यापारजनितं ज्ञानंयत्पर्क्षव्यती तेंद्रियविषयव्या 'त्येतदविसंवादिलक्षणांतथा चोक्तं प्रत्यक्षकल्पनापोढनामजा यादक्षैस्तद्यपदिश्यते इंद्रियार्थसन्निकोत्पिन्नं ज्ञानमव्यपदेश्यः प्रव्यभिचारिव्यवसायात्मक आतमेंद्रियमनोथसंनिकर्षाद्य "न्निष्पद्यते तदन्यछ्रोत्रादिवृत्तिः प्रत्यक्षंसत्वत्संप्रयोगेपुरूषस्पें द्वियाणांबद्धि जन्मतत्प्रत्यक्षमितिचसर्वैरैभ्युपगम्पते अतरस्वतल्लक्षणमविसंवादिनेश्वेत Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यमितितलविकारणामासस्यपत्यक्षाभावजसंगारयदद्रियनिमित्तमेवज्ञान, प्रत्यक्षमिष्यते एवंसत्यासस्पषत्यक्षशानंनस्यायनहितस्पेंद्रियपछिीधिग मोयतस्यापिकरणापूर्वकमेवज्ञानंकल्पते.तस्पासर्वशवपरस्तादुक्तीमागमा दिनिचेलतस्पप्रत्यक्ष ज्ञानपूर्वकत्वातस्यादेतदागमादतीदियार्थाधिगमेव्याहत शक्तसर्वार्थाववाघइतितन्नर्किकारांतस्पप्रत्यक्षज्ञानपूर्वकत्वादासनहिक्षी गादीवेशाप्रत्यक्षज्ञानेनप्रशीतनागमोभवनिनस यदिसर्वः स्यादवशेयस्या सवनास्तीत्यागमस्यपामारापाभावः अपौरुषेयादिनिचलतंदसिद्धः स्यादेत दपौरुषेयम्सागमारित पानादिनिधनः अत्यनपरोक्षेवय्पर्येव्वखतिहतगतिरता सर्वाधिगमनतितलविकारांतदसिद्धेनचक्रश्चिदागमोपीरुयेयः सिहोलि हिंसादिविधायिनःपामारापासिद्धि अतीद्रियंयोगिपत्यक्षमितिचेलार्थाभावातस्या मतयोगिनोतीदियेप्रत्यक्षशानमति आगमविकल्पातीततेनासी,सनिर्यान्सत्य शिवेत्ति उक्तंचा योगिनांगरुनिर्देशाद्यनिभिन्नार्थमात्रहकइतितलर्किकाराम Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा 龍 श्रीभावादक्षमक्षयनिवर्त्तते इतिप्रत्यक्ष नचायमथे यो गिनिविद्यते पक्षाभावादथवा नसतिसर्वभावा: खपरोभयहेत्व हे तुम्प उत्पत्या द्यभावात् सामान्य विशेष यो कानक | योत्स्य संभवादिदोषपपत्तेरतोर्थाभावान्निरालंबनंयोगिन। ज्ञानेक शंस्यात्परिकलिता मनानसँतिभावानिर्विकल्पात्मना सेती तिचायुक्तं तदधिगमोपायाभावान्न हिनिर्विक ल्पार्थो स्तितद्विषयं ज्ञानं चेतिप्रतिपादये तुं शकं लक्षणाभावात्तदभावाच्चतस्य योगि नोभावाच्च नहिकश्चित्तत्परिकल्पितायोगी विद्यते विशेष लक्षण विरहात्सर्वविर हाच्चनिवरिणामी तत्रैत स्यान्निर्घारिणं द्विविधं सोपधिविशेयनिरुपधिविशेषं चेति तत्रसेोपधिविशेषे निर्वावोदास्ती तत्रापि यथा वाह्यस्याभावभकल्पातेः॥ तैस्तथा भ्यंतरस्यापीति|वो दुरभावएवयोगजधर्मानुग्न हा दात्माक रणविरहितोय्यवैती तिचे लतस्पनिश क्रियस्य नित्यस्यसत्तस्तचि यात्तदनुग्रहविकाराभावात्तल्लक्षणानु पपत्तिश्वस्व वचनव्याघातात स्पप्रत्यक्षस्योक्तं लक्षणमयि नोपपद्यते। कुतः ख वचनध्माघातादन्यापोहिकप्रति विहितान्येवशेषप्रमाणलक्षणानिततरतत्रनोना Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - तितरपतिविधानादर भाकिंततत्यमारणलक्षणण्णासंभावनातिरस्कारायीकचिया प्रियामहेयदक्तकल्पनापोडंपत्यक्षमितिकल्पनाहिजातिद्रव्ययाक्रियापरिभाषा कृतीवाखद्विविकल्परतत्तापाटंकल्पनापोर्टर्कितत्सर्वथाकल्पनापो-मताहोक यचिदितियदिसर्वथास्तिषमागोतानंकल्पनापोटमित्येवमादिकल्पनाभ्पोय्ययोद मित्यरत्यादिवचनव्याघातः अधारत्यादिकल्पनाभ्यानयोदमिष्यते। सर्वधाकल्प नापोडमितिवचनव्याघातअथकथंचिकल्यनापोटमेकोतवादत्यागात्पुनरपि स्वपिस्ववचनध्याघातएवा अयमानास्माकमेकांत:कल्पनापानमेवेतिकिम येतहिविशेषणपरमतापक्षविशेयरपरमतेहिनामजात्यादिभेदोपचारकल्प नाघोता.ततोयोटनस्वविकल्पादितिउचासवितर्कविचाराहिपंचविज्ञानधा॥ |तवमनिरूपणामस्मरणाविकल्पनविकल्पकादतिपत्रीच्यता मालवनेश्अपरा वितवरतत्रैवाठमथर्शनंविचाररतस्यनामादिभिप्रकल्पनानिरूपणपूर्वानुभू तानुसारेशाविकल्पनमनुस्मरणमित्यतेधर्माक्षिणामानावस्थानेष्वक्षविषयवि - Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ज्ञानयनिरन्वयेनोपपद्यते यगपदत्यन्तेरनवस्थानाच्चातीयाद्यग्रहणाभावाभाव श्वस्यात्सयतरगोविया चार क्रमवृत्तिखेचतेयास्वार्थाभावजसंगतिसंताना द्यपेक्षयातदपपत्तिरितिचेन्लतत्परीक्षाक्षमत्वादतः सर्वस्मिन्लसतिविकल्पेऽय विकल्यापर्यनास्तीतिविज्ञानस्यविवेकानोपपद्यतेसर्वविकल्पविरहाच्चनास्ति त्वमेवास्पस्यात् अनुस्मरगाद्ययपगमेचएकस्पानेकक्षरावर्तिनोवस्खनोस्तिखसिद्धमनुस्मरणादिहिखयमनुभतस्यार्थस्पडलंनानुभूतस्पनान्यनुभूतस्पति तथामानसमपिषत्यक्षंभीयपद्यते अपिचधणामनंतरातीतं विज्ञानयहितन्म नति अतीतमसत्कयविज्ञानस्यकारस्यान अयपूर्वोत्तरनाशोत्पत्याग पहले कार्यकारणभावाकल्यतेभिलसंतानयोरपिविनश्पत्यषमानयो का यकारणभावः स्पादिकसैतानेशक्रनमास्यपगमेषतिज्ञाहानिनस्यादपूर्वाधि गमलक्षणानुपपत्तिश्चसर्वस्पज्ञानस्पत्रमाणाखोपपत्तरपूर्वाधिगमलक्षांश माणमित्येतच्चनोपपद्यतिकतासर्वस्पज्ञानस्पषमाणात्वोयफ्तेशसमीयतेनेने Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निप्रमाणे सर्वेाचज्ञानेनजमीयतेययांधकारेवस्थितानामुत्यत्त्यनं तरं प्रकाश: प्र दीप: उत्तरकालमपिनतंव्यपदेशं जहाति तदवस्थानकारणत्वादेवं ज्ञानमुत्पत्यन तरंघटादीनामवभास कंभूत्वासमा रात्समनुभूयोत्तर कालमपिन तंव्यपदेशं त्यजति तदर्थत्वा अथमतक्षणेक्षणेऽन्यम् वज्रदीपः। अपूर्व मेवप्रकाशकत्वमवलंब इति एवंसतिज्ञानमपि तादृगेवेतिक्षन्प खोपपत्तेरपूर्वोधिगम लक्षणमविशि ष्टमिति जत्रयटुक्रम्टती छायादिवत्पूर्वाधिगतविषयत्वात्तसुनः पनरपिविधा नेज्ञानंप्रमाणमितितया हन्यते खसंवित्तिफलानुपपत्तिश्चार्थातिर त्यो भावात्समा गोली के फलवदुपलभ्यो अस्पच षमाणस्प केन चित्फ लेनभवितव्यमिति कश्चि दाहा भाहिज्ञानमुत्पद्यते स्वाभासं विषयाभासच तस्पोभयाभासस्पयत्संवे दमेतत्फलमिति । तन्नोपपद्यते कुतः अर्थ तरत्या भावाह्मो के समारणात्कलमर्यो तरम्भूतमुपलभ्यते। तद्यथा छेष्ट केन्तव्य छेदनसेनिधाने द्वेधीभावः फलंनचतथा स्वसंवेदनमर्थं तरभूतमस्तित्तस्मादस्पफलत्वेनोपपद्यते। सत्यमेवमेतत प्रत्तण्व Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. --m तस्मिन्नधिगमरूपेफलेसव्यापारसतीततामपाधायनमारणोपचारातिसमारोप चाएनपपत्तिमरख्याभावासतिमयलोके उपचारोवृश्यतेयथासतिसिविशिष्ट तिसंग्गतिपंचेद्रिय जातिनखटासोपभासुरकपिलनयनतारकाद्यवयववि शिअन्यत्रोर्यशायर्यादियशासाधोसिंहोपचारः क्रियतेमचतयेहमख्य जमाणामस्तितदभावारफलेखमागपचारोनयज्यतेमाकारभेदारेदश्तिचेन्न एकोतवादत्यागात्स्यादेतबाहकविययाभाससंवित्तिशक्तिलयकारभेदात्समा| एणमियफलकल्पनाभेदइतितन्नतिकारगाएकांतवादत्यागादेकमनेकाकारमि त्येतजिमेंद्रदर्शनतनयमेकोतवादेषज्यतेयदिह्येवमध्यपम्पतपेकोपरितोयः रूपाद्यमेकालर्कमेपरमाणद्रव्यंज्ञानाद्यनेकामद्व्यमितिअथगव्यसिद्धिा भूदितिआकाराएवनशानमितिकल्पतेएवंसनिकस्पतिआकाराइनितेषामय्य भावः स्याकिंचतेषामाकारागीयोगपश्येनवाउत्पत्तिः स्पाक्रमेणवायदियो गपद्येनहतुहेतुमहाबोविरुध्यतेमयक्रमेणाक्षणिकस्यविज्ञानस्पाकाराणां Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्यक्रमः यदिस्यादधिगमश्चाबनभावातरमितिव्याहन्यते अपिचवाद्यस्पति शेयस्याभार्वेतरंगाकारत्रयकल्पनार्याषमाणापमारणभासोनोपपद्यतेतरंगा काराभेदादसहस्रयत्सदितिकल्पयतितत्वमारणाभासमसदेवेतियत्पतिपद्यते तत्वमाणमित्यत्तिविशेयइतित्वमेययव्यवस्थापितसमाहयकल्पनाच्या घात:वलक्षणविषयहिखत्यक्षसामान्यलक्षणाविषयमनुमानखलक्षणमसा धारगोधर्म विकल्यातीतत्वादिदंतदित्यव्यपदेश्पन्नातद्विपरीनेसामान्यलक्षा मितिसर्वस्यासह किंकृतोयविशेषाअसत्वहिनखतोभिद्यतेसैवधिभेदाश्याद्भवः घरस्पासर्वपदस्यासत्वमितियोघवादीनीसंवधिनामभावेतद्विशेषाभावइनिस्पा न्मतखात्यतितानोरलटिरिष्टमेवाप्तर्कितमपस्थितमतण्वसर्वेविज्ञानाभिधा नमयथार्थपरिकल्पितार्थत्वालिविकल्यार्थगोचरमालीयमेवविज्ञानसमामि तिचा शास्षपक्रियाभेदविद्येवोयवरापीतोमनागमविकल्याहिखर्यविद्या अवततिइतिएबचानुपपन्तदाधिगमोपायाभावादुक्तंचा प्रत्यक्षवुहिःक्रम Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजवा. नयत्रतलिंगगम्पेनतदलिंगेवाचोनवातद्विययेगायोग करतगतिकटमट एयतरनेइत्याहिताभयपकारस्यप्तमारणस्पादिधकारविशेयजतिपत्त्यर्थमाहमति टनिकाचिन्नावोवाइल्यायोमाइतिशब्दस्यानेकार्थसंभवेविवक्षाव शावाद्यसेनत्ययनाइनिशादानेकार्थ संभावितिक्वचिद्धेतोवनीतेहतीनिपलाय तवर्वतीतिधावनिक्वचिदेवमित्यस्याथैवतेइतिस्मनुपाध्यायः कथयतिएवंस्म इतिगम्पते क्वचित्खकारेवतत्तययागौरव शुक्लीनीलश्चरतिलवतेजिनदत्तोदे। वदतइतिएवंषकाराइत्यर्थः क्वचिद्यवस्थायावतीतयथालितिकसेतालोइति क्वचिदर्शविपतितत्तयथागोरित्ययमाहगौरितिजानीतइति क्वचित्समासीव मितिद्वितीयमाहिकमिति क्वचिछापाविपत्तीतइतिश्री एन्तमितिमिहसेनमितितत्रैहविवक्षावशादादिशदार्थविदितव्यहीमतिएटतिज्ञा चिताभिनिवोधादयरत्यर्थः केपनस्तेषतिभाकपलश्यादयीपकारवाएवंष काण्इति कयमेघाशब्दानामनीतरवमतिज्ञानावराक्षयोपशमनिमित्तायो Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविषयत्वादनोतरत्वंरूटिवशादेतेयांमत्यादीनांशदानीमतिज्ञानावरणक्षयो पशमनिमित्तायामोपलचौरोरनोत्तरखवेदितव्येकथएनर्मन मन्यतइति वामतिइत्येवमाद्यविषयाशामेयोमनतिरस्यमित्यतनाहरूदिवशादितियया गछत्तीतिगोरित्यंगीकृतमपिगमनेनशब्दशत्तिनियमकारणरूटिवशालचिदेवती तथामत्यादयः॥शब्दाव्यत्यत्तिकम्मशिसत्यव्यायेणाभेदेक्वचिदेववर्ततिदत्यन थोतरत्वमवसीयतशब्दभेदादर्थभेदोगवाश्चादिवदितिचेलातःसंशयात्स्यादेतन्म त्यादीनीशदानापरस्परतोधोतरत्वमलिकतमशशब्दभेदानवाश्वादिवदितितन्न किंकारामतः संशयाद्यतएवमत्यादीनांशभेदादन्यत्वमाहभवानतरवसंशयः कयमिंदादिवद्ययेंद्रशक्रपरंदरादिशब्दभेदपिनार्थभेदलयामत्यादिशब्दभेदेय्प भेददाति नाहियतरावंसंशयरतनरवनिलयाकिचशब्दाभेदेव्यथैकत्वजसंगा द्यस्पशव्दभेदोर्थ देहतुरितिमततस्पवागादिनवार्थखगोशदाभेददर्शनावागाद्य नामेकत्वमस्तुभयनैतदिष्टुनतहिदभेदोन्यत्वस्यहोतुकिंच.आदेशाव Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा - - चनाद्यथदादीनोमेकद्रव्यपर्यायादेशात्स्यादेकत्वप्रतिनियतपर्यायार्थीदेशाच्चस्यार न्यखंइंदनादिंद्रः शकनाक्रमहरिगापुरंदरइतितयामत्यादीनमिकद्रव्यपर्याया देशात्स्यादेकर्वजतिनियतार्थययादेसाचस्यान्नानात्व मननमतिःस्मरसोरटतिः सज्ञानसंज्ञाचिंतनर्चिता अभिमख्यननियतवोधनमभिवोधइति पर्यायशब्दोल। क्षोंनेतिचेन्लानतीनन्यत्वात्स्यान्मर्तमत्यादयसमिनियोधययोयशदानाभिनि वोधस्यलक्षणोमय्यादिवद्ययामनुष्यमत्यमनुजमानवादय: पर्यायशव्दाम नुष्यस्पलक्षानभर्वतीतितम्नर्किकारातत्तोनन्यखादिहयर्यायिगानन्यपर्याया। शब्दसलक्षाकथमोहनाम्निषद्ययापर्यायशब्दः। ऊस्लमग्ने पर्यायिरगोनन्यस्या दग्नेलक्षिाभवतितयापर्यायशब्दामत्यादयःयाभिनिवाधिकशानपर्यायिगोना न्यत्वेनाभिनिवोचस्पलक्षणे अथवाततोन्यत्वात्ययामनुय्यमय॑मनुजमानवा दयः असाधारणावादन्यघटादिगव्यासर्वधिनोमनुख्यादनन्यत्वात्तस्पलक्षणी अन्यथाहिमनुष्यादिपर्यायालक्षणत्वान्मनुव्यभावोभवेद्यत्तीनमनुष्यादिलक्षण - Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARTH-- व्यतिरेकेगास्यान्मल्लक्षणमस्तीतिनचाभावोतःपर्यायशब्दोलक्षणीतधाम तिम्रत्यादयः असाधारणत्वादन्यज्ञानासंभविनाअभिनिवोधादनन्यत्वात्तस्पल क्षणामितश्चपर्यायशव्दोलक्षयों कस्माद्वाजत्यागतलक्षणग्रहणणात्कथमल्ल वद्यथाग्निरितिगत्वाज्ञात्वाबहिरुप्सपर्यायशब्दंगछतिकर्यगछतिकोयमग्निर्याउन इतिउत्तरतिचत्वादि प्रत्यागछतिकोयमप्तायोग्निरितितयामतिरितिगत्वाख द्विभरटर्तिगछतिकामतिरितिरिति नतःस्टतिरािगत्वावद्धिःजत्यागछत्तिकायम तिमितिरितिएवमत्तरेष्वपितरमाइलाजत्यागालक्षणग्रहणात्पश्याम:पयीय शब्दोलक्षामिति किंचापर्यायहविध्यादग्निवद्ययाग्नेरामभतउरलपर्यायोलक्ष गौनधूमरतस्यवाोधननिमित्तखेकादाचिकत्वात्तथामाभ्येत्तरोमत्यादिपर्याया मतवालक्षानानात्मभूतोवाडोमत्यादिशब्दापगलतत्पत्यायनसमयीत्त स्यवाह्यकरणप्रयोगनिमित्तवादितिकरणास्पवाभिधेयार्यत्वादयवार्तिकरण यमभिधेयार्थीपज्पत्तमति:मति सैज्ञार्चिताभिनिवीधंइतियोोभिधीयत - Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ राजवा तन्मत्तिशानमिति ततो लक्षणत्वमुपपद्यते श्रुतादी नामे तैरनभिधानान्न होतैर्मत्यादिभिः श्रुतादीन्यभिधीयते । वक्षमाणलक्षणसद्भावाच्च तादी नो हि लक्षणं वक्ष्यतेत्तत्तस्तेषा मत्यप्रसंग: 'यदेव लक्षणंमतिज्ञानमवधियते। अथास्यात्मलाभेकिंनिमित्तमित्यता हसतादे द्वियानिद्रियनिमित्तं॥ अथवा आत्मप्रसावाविशेषात्सर्वज्ञानानामेकत्य प्रसंगेनिमित्तभेदान्नानात्वंप्रतिपिपादयिषत्रवीतिसत्य य्यमस्मिन्नविशेषेय्टथक्क मेयामवेमः कुतः यस्मात्तदिंद्रियानिंद्रियनिमित्तमिनिकिमिदमिंद्रियं नामइंद्रिय स्यात्मनोर्थोपलश्चिलिंगमिंद्रियां इंद्रप्रत्मातस्य कर्म्मम लीमसस्पस्वयमर्थात्रिहीन | मर्थस्यार्थोपलभनेयल्लिंगंतदिंद्वियमित्युच्यते॥ अथकिंमिदंमनिंद्रियमः निद्रियं मनोनुद्रात्मनोत्तः करणामनिंद्रियमित्युच्यते कथमिं द्वियप्रतिषेधेनमनउच्च ते यथायमत्राह्मणइत्यक्ते ब्राह्मण स्वरहिते कस्मिंश्चित्संप्रत्ययो भवति तथा इंगलि गविरहितेन्यस्मिन्ननिंद्रियमिति संप्रत्ययः स्यात्तनलिंगलिंग एवमनमिनैष दोषः ई वत्सतिषेधात् कथमनुदावद्यथानुदाकन्याइत्तिनास्पाउदरनविद्यते किंतुगर्भ Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mana - - भारोबहनसमोदराभावादनदरातयानिद्रियमितिनास्पैद्रियत्वाभावः किनच क्षरादिवत्पतिनियतदेशविषयावस्थानाभावादनिद्रियेमनइत्युच्यतातिरंगत करामिद्रियानपेक्षत्वान्तास्पेंद्रियेअपेक्षास्तीतीदियानपेक्षेनह्यस्पयादोयवि चारखविचाप्रपन्नोद्रियापेक्षास्तिततोतरेगेतकरणमिनिवेदितव्यंतदभयम वष्टभ्ययदुत्पद्यतत्तन्मतिज्ञानोतदित्यग्रहणामनंतरत्वादितिचेन्लोजरायवार स्यादेतन्मतिज्ञानस्पानंतरत्वादनेनाभिसंबंधोभवतीतितदित्येतद्रहणामनर्थकमि तितन्लकिंकारगोमत्तरार्यत्वादन्तरार्ययेत इतरयायवग्नहेहावापधारणा मनिशानभेदाइतिविज्ञानुमशवधारतमहोपनः क्रियमाणेनन्मतिज्ञानमवय हादयनिसबंधासुगमोभवति यदेतस्मिन्निमित्तयसंनिधानेसत्यारमला भसत्याग अनिवर्शितभेदमितितनेदसतिपत्त्यर्थमाह नवमहाराज ! राविषयविषयिसनिपातसमनत्तरमाद्यग्रहणमवरमहा विषयविषयिस निपातेदर्शनभवतितदनंतमयस्परमहणामवमहामवहीतेऽर्थतहिशेषा AAA AMANAN Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. || कांक्षामाहायद्यापुरुषदत्यवग्रहीतेतस्यभायावयोरूपादिविशेषेराकाक्षरामी हाविशेषणनिशानाधायाम्पावगमनमंवायाभावादिविशेयनिानात्तस्यया याम्पेनायाामनमवायन्नादाक्षिणात्यायेयवागोरइतिवानिन्लीतार्थाविस्मतिही रणाभावावयोरूपादिविशेवयाथात्म्पननिनातस्परुषस्पोत्तरकालसरावा यमित्यविस्मरणयतोभवतिसाधारणतरतेमतिज्ञानभेदाः अत्राहद्दमाठ पूयोर्ककृतमेयामच्यतोवरग्रहादीनामानपूर्यमत्यत्तिक्रमापेक्षश्रवन हपूर्वकत्वादितरेखामादावावगहा क्रियतेतर्येतरेय्वपियोज्यमन्त्राहावन हेहयोरखमाएपेतत्सद्भावेपिसंशयदर्शनाच्चक्षवद्ययाचक्षधिननिर्मयःसत्ये वतरिमर्किमयस्थाणुराहोश्चित्सरुवइतिसंशयदर्शनात्तथावरग्रहेपिसतिननि सयबहादर्शनादीहायांचननिर्णयायतोनिलयायमाहानत्वीहैवनिन्याय श्वनिलयोनभवतिससंशयाजातीयइत्यपामाएपमनयोरितिवग्रहवचनाद्यत|| नुक्तरुयोयमितिअवमहलस्यभायावयारूपादिविशेयाकांक्षणामीहेनि || Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m निसंशयरलपतिपत्तिरेवेशितलर्किकारांसंशयानतिनकायमालोचनवद्ययाही लोचनेकिमयमर्थािस्थागरुतपुरुषतिसंशयाननियतिलयोहेयिमर्यर|| त्यवाहेईहाद्यपेक्षवारसंशयाननित्तिरुच्यतेलक्षणाभेदादन्यत्वमग्निजलवद्यथा निजलयाईहनपकाशनादिद्रवतारनेहनादिनतिनियतलक्षणभेदादन्यतयाव|| सहसंशययोलोक्षणभेदादन्यत्वकोसीलक्षणभेदउच्यतमनेकार्थानिश्चितापर्य दासात्मकःसंशयरतद्विपरीतोवग्रह खारापरुयाधनेकार्थालंवनसन्निधानादने कार्थात्मकःसंशयएकपरुयाद्यन्यमालकोऽवग्रहास्यारापुरुषानेकधर्मानि श्चितात्मकरसंशयः यनोनस्याराणुधर्मात्सरुयधर्मश्विनिश्चिनोतिअवरग्रहण रुयाद्यन्यतमैकधर्मनिश्चयात्मकः स्थारापरुयोनेकधम्मपिर्यवासासात्मकासं शयायतीनपतिनियतानस्थारापरुयधर्मान्यर्यदस्पतिसंशयाअवरमहा पुनः पर्यदासात्मकःोसह्यन्याभवादीन्यायान्यर्यदस्यपुरुषरत्येकपर्यायालवन:संश यतुल्यत्वमपर्यदासादितिवेलनिर्लयविरोधारसंशयस्यस्पादेतत्संशयतुल्यावर Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजवा. हरकन अपीदासाद्यथासंशयः स्थाणपुरुयविशेयापर्यवासात्मकरतथावय होपिपुरुयरतिभायावयोरुपाद्यपर्यदासात्मक अनश्वेतदेवंयदतरकालंहिशेया यामाहामारभतइतितन्नतिकारणांनिलीयविरोधात्संशयस्पसंशयोहिनिर्णयवि ऐधानत्ववाह निदर्शनादीहायोनत्यसंगइतिचेलार्थादानास्यादेतद्यदिनि नयाविरोध्यवसहरतिनसंशयीनन्वीहायानिर्णयविरोधित्वासंशयत्वषसंगह। नितलविकारणमर्यादानादंवग्रहार्यतविशेषलश्यर्थमर्यादानमाहासंशयः अनन्नाविशेषालवनःसंशयपूर्वकलाबासशयोहिश्वमयज्ञायतेईहाया- कथ मितपरुधर्मवाटयकिमयदाक्षित्यउत्तउदीच्यरत्येवमाद्यप्रतिपत्तीसंशयनारावण शयितस्यात्तरकालविशेयोपलिप्सोपनियतनमीहेतिसेण्यादत्तिरवाअतरव संशयावचनमर्थग्टहीतजासतएवम्ञसंशयोनाक्तःकतःअर्यग्टहीतेसतिसश येईहायानपत्तिलीस्तीतिमाहाकिमयपायउतावाइयतिउभययानदोय अन्य तरवचनेन्पत्तरस्यायग्टहीतत्वात्यदानदाक्षिणात्योयमित्यपार्यत्यागकरोतिमदा| Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदीच्यइति-पवायाधिगमार्थग्टहीतः।यदाचोदीच्यइत्यवायंकरोनितदानदक्षिणा त्यायमित्यपायोर्यग्रहीतः कश्चिदाहयदुक्तंभवताविययविसयिसनिपातेदनिभ वतितदनंतरमवग्रहरतिवदयुक्तमवैलक्षण्यान्लावरमहाद्विलक्षणदर्शनमस्ती त्यत्रोच्यतेनवैलक्षण्याकयमिहयक्षवाचक्षदर्शनावरणवीतिरायक्षयोपण मांगोपांगनामावéभादविभावितविशेषसामयेनकिंचिदेतहस्तितिझालोकनम नाकारंदर्शनमित्युच्यनवालवद्यथाजातमात्रस्पवालस्पषायमिकरन्मेयोसावमा वितरूपद्रव्यविशेषालोचनादर्शनविवक्षितंतथासवेषांततोहित्रादिसमयभावि न्मेवेचक्षरवग्रहमतिज्ञानावरणवायर्यातण्यक्षयोपशमांगोपांगनामावष्टंभा दूपमिदमितिविभाविनविशेयोऽवग्रहःयपथमसमयोन्मेषितस्पवालस्यदर्शनंत द्यधवगहजातीयवारशानमिटतमिथ्याशानवास्थासम्परज्ञानवामियाज्ञान खेपिसेशयविपयनिध्यावसायात्मकस्यात्तनतावत्संशयविपर्ययात्मकंचाचेलि । तस्पसम्यग्ज्ञानपूर्वकत्वात्याथमिकत्वाचतन्नास्तीनिनवानध्यवसायरूपंजात्यंध LammamaAALAIMEAatmammu Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा ७ व्दवत्त्वस्तुमाचाप्रतिपत्तेर्भसम्पग्ज्ञानमर्था काराव लंवनाभावात्किंच कारण नानात्वा कार्यनानात्वसिद्धेः यथाम्टतंतु कारणभेदाद्धटपटा कार्यभेदस्तथा दर्शनज्ञानावरणाक्षयोपशम कारणाभेदात्तक्कार्यदर्शनज्ञानभेदइति अस्ति प्राग वग्रहाद्दर्शनंततः शुक्त कृघ्नादिरूपविज्ञानसामर्थ्यापितस्पात्मनः ॥ किंशुक्लंडत कृप्तमित्यादिविशेषाप्रतिपत्तेः संशयस्ततः॥ शुक्ल विशेषाकांक्षप्रतीहॅनमीहा शुक्लमेवेदंनचूनमित्यवायनमवायः॥ अवेतस्याविस्मरणे धारणाएवंश्रोत्रा न्यस्यपि योज्यं तदावरणकर्मक्षयोपशमविकल्पात्सत्ये कमवग्रहादिज्ञाना कथं ज्ञानावरणामूलप्रकृतेः पंचोत्तरपकृतयस्ता सामय्य-त्तरो विशेषाः सेनिज्ञानावरणस्पोत्तरखकृतयः असंख्या लोकाइतिवच | ईहादी नाममतिज्ञानप्रसंग: कुनः परस्परकार्यत्वादवग्रहः। कारगाईहाका हाकाररणमवायः कार्यमवायः कारणं धारणा कार्य नचे हादी नामिद्रियानिद्रि त्वमस्तीतिनैवदोषः। ईहादी नामनिंद्रियनिमित्तत्वान्मनि ज्ञानव्यपदेशः य Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घेवश्रुतस्यापिसानोतिरंद्रियग्रहातेविषयत्वादीहादीनामिंद्रियनिमित्तत्वमा पचर्यतेनतुचनस्यायविधिरस्तितस्यानिद्रियविषयत्वादितिश्रुतस्याप्रसंगाय घेवचक्षरिद्रियेहादिव्यपदेशाभावनिचेन्लेंद्रियशक्तिपरिणतस्पजीवस्पभावेदि यत्वेनद्यापारकार्यत्वादिद्रियभावपरिणनीहिजीवीभावेंद्रियमिय्याने तस्यवियया कारपरिणामाईहादयतिचक्षरिदियेहादिव्यपदेशदतियइमेवमहादयोमनिशा नत्रभेदाउक्तानातज्ञानावरणक्षयोपशमानिमित्ताःकयोभवतीत्युच्यतेबवाह विद्याक्षिाशानिबातावमा सोसासंख्यावैपुल्पवाचिनोवहुप्राब्दस्प ग्रहणमविशयावहशब्दोहिंसंख्यावाचीवपल्यवाचीचनस्योभयस्पापिमहणों |कस्मादविशेषात्सख्यायामेकाद्वीवहवरनिवैपल्पवहरोदन वहसपनाति वह वग्रहाद्यभाव: प्रत्यर्थवशवतिखादितिचेन्लसर्वदेकप्रत्ययप्रसगात्रस्यादेतत्पत्य यवरावर्तिविज्ञाननानकमगहीलमलमतोवहाहादीमामभावरति तन्नकि काररणसर्वदेकप्रत्ययपर्सगाद्ययारणपरव्योकश्चिदैकमेवपुरुषमवलोकयन्ता Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - राजवा- नेकदत्यवैतिमिथ्याज्ञानमन्यथास्यादेकानेकबहियदिभवेत्तथानगरवनरकंधा वाण्वगाहिनीपित्तस्पेकप्रत्यय: स्यात्सार्वकलिक अनमानेकार्थशाहिविज्ञा नस्यात्येतासभवान्लगरवनरकंधावारखत्ययनिहात्तिन्नेता संज्ञाघेकानिवेशि न्यस्तरमालोकसेव्यवहारनिवृत्तिनकिंचनानात्वनत्ययाभावाद्यस्पैकार्थमेवनि यमानानंतस्यपूर्वज्ञाननित्तान्तरज्ञानोत्पत्तिस्यादेनिहत्तीवाउभययाचदरी बायदिप्रर्वमतरतानोत्पत्तिकालेजियदक्तमेकार्यमेकमनस्वादिनियादावि यथैकमनोनेकजत्ययारभर्कतयैकलत्ययोनेकार्थीभविष्यतिअनेक .. कालसंभवान्लन्वनेकार्यायालचिरुपयस्पतेतत्रयदभिमतमेवै कस्पज्ञानमेवार्थमपलभतइनिअमव्यव्याघातनामयपनहितेष्वमिलो जरज्ञानोत्पत्तिापतिज्ञायतेननसर्वथैकार्थमेवज्ञाननियंतदमामादन्यदित्य पपवहारोनस्पादजियसतस्मान्लर्किविदेतत्किंचनापेक्षिकसेव्यवहारनिहत्त __ यस्पैकसानमनेकाविषयनविद्यतेतस्यमध्यमापरेशिन्यार्यगपदनुपलभात Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिवयदाहखव्यवहारोविनिवर्ततमविक्षिकाह्यसीनचापेक्षालिकिंचसंशया | भावप्रसंगादकाविषयवत्तिीनविज्ञानेखागीपरुषेवापाकात्ययजन्मस्यान्लोभा योनाजतिज्ञातविरोधात्यदिश्यागीपरुयाभावाल्याररावंध्यात्रवत्स्पैशयाभा वनस्पातपथपरुघेतथास्थागद्रव्यानपेक्षत्वात्रसंशयानस्वायतत्पूर्ववलत्वमा वाहनाअतोनेकार्थग्नाहिविज्ञानकल्पनाश्रेयसीतिचिईसितनिष्पत्य नियमाहिसानस्यैकार्यावविवेचित्रकामणिनिलातस्पचैत्रस्यप्राकिलशमा लिखतःस्तक्रियाकलशवत्यकारग्रहणविशानभेदादिनरेजरविषयसंगमाभा वादनेकविज्ञानोत्पादनिरोधक्रमेसत्यनियमेननिष्पत्तिस्पायनसानियमेनमा चिकार्यवाहिरिणविज्ञानविरुद्धततरमान्लानापियत्ययोस्पेयः विवादित्य याभावाच्चएकाविषयवर्तिनिविज्ञानहाविमाविमेवयन्यिादिप्रत्ययस्याभाव: यतोनेकविज्ञानहित्यद्यानासाहकमालिसंतानसंस्कारकल्पनार्याचविकल्यान पनि सतानेसंस्कारेचकल्प्यमानेविकल्यायोरलयपत्तिमसतानबासीकारश्व. Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ज्ञानजातीयोचास्यादशानजातीयोघायद्यज्ञानजातीयभानततः किंचित्खयोज ममलिज्ञानजातीयत्वेपिएकार्यवाहित्वस्यादनेकार्थसाहित्यस्यादनेकार्थनाहि वायधेकार्थनाहिलंदोयविधिस्तदवस्था अथानेकार्थमाहिखंप्रतिज्ञाहानि: सज्यते विधग्रहांलकाराविधयक्तगतषकारासमानाथीइतिनकारा _विधशब्द वहविधवषकारमित्यर्थक्षिणमहामचिरपतिपत्यर्य अचिरजतिपत्ति-कस्यादितिक्षिषाहरणक्रियतेमनिस्टतमहरणमसक लपगलोदुमाथैमनिस्टत्ताहणक्रियतेमसकल गलोजमार्थअनुक्ता मभिपायेगपतिपत्ते अभिप्रायशापतिपनिरस्तीत्यनक्तग्रहणक्रिया यथार्यग्रहणावग्रहांक्रियतेयथार्यग्रहणामरतीतिसतरमहणाहिपर्या विरोधःजल्यमल्पवियचिरनिरवृतमधवमितियतेयामवरोधोभवतिसत राहणादवग्रहादिसंबंधात्कम्मनिर्देशावलादीनोमिनिकम्मीनिर्देशानव महाद्यपेक्षोवेदितव्यःवहादीनामा Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षयोपशमविश्वदिपकर्ययोगेसतिवहादीनामवहादयोभवतीतितियोगमह: गमादीक्रियतेतेचसत्येकमिद्रियानिट्रियेशुद्धादशविल्य्पनेयातद्यथान कयौद्रियावरणवीर्यातरायक्षपशमांगोपांगनामोपटभासभिलो: तान्योवाटगपत्ततावितनघनसुधिरादिशब्दश्रवाहहुशव्दमवग्यहाति ल्पात्रोत्रंद्रियावरणाक्षयोपशमपरिणाम प्रारमातत्तशब्दादीनामन्यतममल्य शब्दमवारहातिप्रकृयत्रोत्रंद्रियावरणाक्षयोपशममादिसन्निधानेसनि तनादिशब्दविकल्पस्पषत्येकमेकद्वित्रिचतु:संख्येयासंख्ययानंतरयास्पा वगाहकत्वाइविधमवग्रहात्यल्पविष्णुहिम्मोद्रियादिपरिणामकार गामात्मातत्तादिशब्दानामेकविधावग्रहणादेकविधमवाटल्लातिपय श्रोत्रंद्रियावरणाक्षयोपशमादिपरिणामित्वात्रक्षिशब्दमवक्तात्यल्पविष्णद्वित्रिद्रियावरणाक्षयोपशमादिपारिगणमिकत्वाचिरेशाशदमवाम्यहा निविष्ठहिनीत्रादिपरिणामात्साकमल्पेनानुचारितस्परग्रहणादनिस्टते - - नाममा Jaan Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा- मवग्यतातिनिस्टांपत्तीतंपकृष्टविशुद्धिाश्रोत्रंद्रियादिपरिणामकारणत्यादेक वर्मनिगमेपिअभिपायेगवानच्चारिताब्दमवण्यलानिर्मभवानशब्दंवक्ष्यती त्यथवास्वरसंचारणात्यातंत्राद्ध्यातीद्याद्या . अभिखायेगावग्याचप्टेभवानिमंशार्दवादयिव्यतीत्यसतीतसंल्लेशपरि गामनिरुत्सकस्पयद्यानुरूपात्रोत्रंद्रियावरणाक्षयोपशमादिपरिणामकार गणवस्थितत्वाधथापाप्यमिकेशव्दगहगीतथावस्थितमेवशब्दमवग्यताति नोननाभ्यधिक यौनः मन्येनसल्केशविशुद्धिपरिणामकारणापेक्षस्पात्लनीय थानुरूपपरिणामोयात्तात्रंद्रियसालिध्येपित्तवावरणस्पेषदीयदाविर्भावा यौनपनिकंपदावलय्याश्रीद्रियावरणादिक्षयोपशमपरिणामत्वाच्चाध वमवग्यतानिशदक्वचिवहक्वचिदपक्वचिवहविर्धक्वचि क्वचिच्चिरेगा क्वचिदनिस्टतेक्वचिलिस्टतेक्वचिदक्विचिदनुक्त। विधयोः कातिविशेषः Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्यतेनविशेयदर्शनाद्यथाकश्चिद्वहनिशास्त्राणिमौनिनसमान्यार्थनाविशेषिते । नव्याचटेननुवहुभिर्विशेषिताथैः कश्चिततेयामेववहूनाशास्त्रागावहुभिर थैः परस्परनिशययुक्तहिकल्पेारख्यानंकरोति तथाततादिशब्दसहरा विशेवपियत्वत्येकेततादिशब्दानामेकद्वित्रिचतुःसंख्यासरख्ययानंतगण | परिणतानांगहातहविधमहगायत्तत्तादीनोसामान्यग्नहोतहहरग्रहण साहउक्तनिःस्टतयो-कप्रतिविशेष यतःसकलशब्दनिःसरणालिस्ट तमक्तमय्येवंविधमेवीच्यते अन्योपदेशपूर्वकशब्दमहामक्तंगोशब्दोयमि निखतरावग्रहणोनिस्टतंचक्षवाचविष्णुद्धचक्षरिद्रियावरणक्षयोपशमपरि गामकारणवाछुलकरमरक्तनालपीतरूपपर्यायवहमवम्टह्णातिअल्पपूर्व वतपकष्टविश्वविक्षरिद्रियादिधक्षयोपशमपरिणामकारणत्वाछुल्लादि पेचतयरूपाणपत्रत्येकमेकहित्रिचतुःसरपयासयमानतगणपरिणा मिनीववाहकत्वसामयहिहुविधरूपमेवग्यतात्येकविधपूर्ववक्षिपचिर Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ एजवा- योरयुक्तरावक्रमःपंचवर्गावस्वकंवलचित्रपटादीनासतदेकदेशविययपंच वस्मीग्रहणात्कृस्लपंचवट्याटेवनिस्टत्तेस्वपितहाचिष्करसामयपदिनि स्तमवग्टक्लातिमथवादेशांतरस्थपंचवर्मपरिणतैकवरयादिकथनाशक ल्पनाकरल्पनाकथितस्पाय्याकदेशकथनेनैवतर कस्तपंचवरणग्रहणादनि स्टतनिस्तखतीतो सुविधविचक्षरिद्रियादिक्षयोपशमआत्मावलकला दिवममिश्रीकरदर्शनात्यारेगगकथितमपिवमिभिखायेगवसतिपद्यतेभवा निर्मवभिनयमिश्रणाकरिष्यतीत्येवंगहयादवक्तरूपमवाटतात्पथवा देशातरस्थपंचवौकद्रव्यकथनेताल्चादिकरणसंश्लेवात्साकसत्कदय्यक थितमेवगव्यमाचरीभावानेवंविधमस्माकंपंचवींव्यतिकरिय्यतीत्यनक्त. मवग्यहातिपरकीयाभिमायानपेक्षमात्मी वोक्तरूपमवरहातिसेले यावरणक्षयोपशमपरिणामकारणावास्थितत्वाद्यथापाथमिकरूपमह Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - गौतद्यावस्थितमेवरूपमवग्रहातिनीनंनाभ्यधिक पीन:पुन्येनसेक्लेशवि छद्विपरियामापेक्षस्यात्ममोययानरूपरिराममोपात्तचक्षरित्रियसान्नि ध्येपित्तदावरणास्पषदीयदाविर्भावारपीनःपनिकैप्रकृष्टावकृष्टचक्ष रिद्रियावरणाक्षयोपशमपरिणामकारणात्वाचाक्रवमयपहानिरूपं कचिहहक्वचिदल्यैवचिबहुविधक्वचिदेकविर्धक्वविक्षिपक्वचिच्चि रेशाक्वचिदनि:स्टतक्वचिनिस्टतक्वचिदनुक्तक्वचिटुक्त एवंघाशाद्य वाहेथ्यपियोज्यतयाइहावायचारणाअपिवदादिभिःसेतरैरवसीयाः कश्विदाह प्रोत्रघ्राणस्पर्शनरसनचठव्यस्पखाय्पकारित्वादनिस्टता उक्तशवाद्यवग्रहहावायधारणानयक्तादत्फच्यतेखासत्वावयपिपीलि कादिवद्यथापिपीलिकादीनानागारसनदेशालासेपिण्डादिद्रव्यगंधरस शानं तच्चयश्चयावद्भिश्चारमदाद्यप्रत्यक्षतक्ष्मण्डावयव पिपीलिकग दिघ्रागारसनेद्रिययोः परस्परानपेक्षावृत्तिजतोनदोवः अमदानी Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. तदभावरतिवेलश्रुतापेक्षत्वाद्यथाभूएहसंवड़ितोछितस्पर्पसश्चक्षरादि भिरंधभासतेम्वपिघटादिघटीयरूपमिदमित्यादियहिशेयपरिशानंतर तापेक्षपरोपदेशापेक्षवात्तद्यारमदादीनामय्यस्थत्तानक्तमपिज्ञानविक ल्पशव्दाद्यवग्रहादिलानेतनापेक्षकिंचलश्चक्षरत्वाळूतज्ञानपी देखरूपयायालश्पक्षरलतकथनखोटापभिभक्तगतद्यथाचा :श्रो घारगारसनस्पनिमनीलश्यक्षरमित्यार्यपदेशातश्चक्षःश्रोत्र घाारसनस्यनियिमनीलशाक्षरसान्निध्यादेतशिध्यनिअनिस्टता तुक्तानामपिशब्दादीनामवग्रहादिज्ञानयद्यवमहादयोववादीनांकम्र्मणामाक्षे मारवहादीनिपुनर्विशेषगानिकस्पेत्यताह अर्थसा। चक्षरादिविषयो अस्तस्यवहादिविशेषणविशिष्टस्यावग्नहादयोभवति इयर्जिपर्यानयंतेवातैरि त्यद्रिव्यप्रत्यामसंबंधिनः पर्यायानुभयनिमित्तवशाढत्यपित्यागानिय सिंगछत्यर्यतेगम्पतेवातैरित्यर्थःकसन रसोद्रव्यकिमर्यामिदमच्यते !! Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ n a वचनंगाग्रहणामिहत्यीकेचिद्रूपादयोयगारावरंद्रियेस्सन्नियंतेत तस्तद्रहणमितिमन्यतेतन्मातनिहत्यर्थमर्थस्पेत्युच्यतेनहितेरूपादयोगणा अमरिंद्रियसंनिकर्षमापातरतितपचयविशेषसतिसलिकर्मसंभव इतिचेन्नयशादीनांजचयानुपपत्तेः सत्यपिवानचयेथोतरखादुर्भावामा वारसंक्षमावस्थाननिक्रमादरमहामवेयास्योलतहीदानीमिदभवतिरू पमयाइटंगंधोवाधानतिभवतिचार्यग्रहणातव्यतिरेकात्तेयामपिग्ग्रह गोपपत्तेमानेससमनिशानामलाभात्सप्तमीसंग व्यतीविषयेषसस मनिज्ञानमाविर्भवति मनोर्थनिवायनानेकीतान्लायमेकांतोलिसत्यर्थे मतिज्ञानभवतीतियनः सत्यय्यर्थवनितलभवनसंभूतम्पकमारस्योनार्म मात्रस्पघटरूपादिमतिज्ञानाभाव अथवानायमेकानास्त्यधिकारणास्प सत्वात्ससमीपसंगायत्तीविषयेससमतिज्ञानमाविर्भवति। अतोर्यवति वायनानेकीतान्लायमेकातोलिसत्ययमनिशानभवत्तीनियत्नासत्यय्पय्येवा menomenawatimammeedMINERATE Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. वी तिलभवनसंभूतस्पकुमारस्ये ती मानस्पघटरूपादिमतिज्ञानाभावः प्र यवानायमे की तोस्त्पधिकारस्यसत्वात्सप्तमी प्रसंग इक स्मात्तस्पाविवक्षितत्वा द्विवक्षावशा डिकार कानिवेतिक्रियाकारक संबंधस्प विवक्षितत्वादवग्रहा | दयः क्रियाविशेषानुक्ताः। तेषामे वश्यं के नकिकर्मणाभिवितव्यमित्तिवक्ता दिविकल्प स्पार्थस्पत्यच्यते बद्धादिसामानाधिकरगणा हुहुत्वखसंग्र:, यतोव का दिरेवाथेना तो परत तो वह्नादिसामानाधिकरपादर्थानामिनिवहवंसा प्नोति नवानभिसंबंधान्न वाग्ष दोषः किं कारणमनभि संबंधान्न ह्यस्पवह त्वादिभिरभिसंबंधः क्रियते के नतविग्नहरणादिभिः कस्येत्युक्ते अर्थस्यै हसंबध्यते तदविशेषयांवह्नादिग्रहणं सर्वस्य वार्यमाणत्वा यत्वंम तो जाति प्रधानत्वान्नि सस्यार्थस्पेत्येकत्वनिर्देशोयुक्तः प्रत्येक मभिसंबंधाद्वा प्रयवाप्रत्येकमभिसंबंधः क्रि येस्पेतिः किममी अवग्न हादयः) सर्वस्पंद्रियार्थस्य भवेयुतकश्चि Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेयोस्तीत्य आह व्यंजनस्यावग्रह। व्यंजनमव्यक्तंशब्दादिजातं तस्यावय होभवति। किमर्थमिदे नियमार्थ में बहाएवने हादयइतिसतर्हेवकारः कर्त्तव्यः नवासामर्थ्यादिवधारणप्रतीतेर नावन्नवाकर्त्तव्यः । किं कारणं सामथ्यीवधा राप्रतीतेः कथमनक्षवद्ययानक श्रियो नभक्षयतीति सामर्थ्यादिवधारणा प्रतीयते अपण्वभक्षयतीतितथासर्वेयामवग्रहादी नीप सिहौ अवग्रहवच नमवधारणाप्यविज्ञायते तयोरभेदोनहरणाविशेषादिति चेन्नव्यक्ताव्यक्तभेदा दभिनवशमववश्यादेतन्तयोरर्थावग्ग्रहयं जनावग्रहयो र्नास्तिनेदः ॥ स्नहरणावि शेयान्न हिशब्दादिग्रहांप्रति विशेषोस्तीतितन्नकिं कारणं व्यक्ताव्यक्तभेदाहा तग्नहंगामर्थावग्ग्रहः अव्यक्तग्रहणंव्यं जनावग्रहभिनवशराववद्यथासूक्ष्म अलकाद्वित्रिसितः शरावोभिनवो नान्द्रीभवतिसएनएन सिच्यमानः श नेस्तिम्पत्ति तथात्मनः । शब्दादीनां व्यक्तग्नहरणासामध्ये जनावग्रहःभव्यक्तग्रह शामर्थावग्ग्रहः सर्वेद्रियाणामविशेवेणव्यजनावग्रहप्रसंगेयत्रा संभवस्त Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजबा• ८१ दर्शप्रतिषेधमाह ॥ नचक्षर निद्रियाभ्ये ॥ चक्षुषाम्प्रनिंद्रिये गायं जनावग्रहे! नभवति कुतः व्यंजनाबग्न हा भावश्चक्षमनसोरजाय्य कारित्वाद्यतः प्रजाम मर्थमविविक्तं युक्तं संनिकर्षविषयेवस्थित्वा ह्यप्रकाशाभिव्यक्तमुपलभते । चक्षर्म नवाजा संततो नानये व्यंजनाथग्न ही रिसइछामाचमिति श्यादेतदिच्छामात्रमिदमप्रासार्थावग्नाहि चक्षुरितितन्न किं कारण सामर्थ्या थं सामर्थ्य आगमतो यक्तिता आगमस्तावत् गाहा पहंसु दिसय्म इंपराविपस्सदेरूवंगंधर चपासंपद्वंपद विजा गादि पस गोदिसद्देन परापरसदेरूवं गंधंरसंचयासंमपद्वंविजा रामदिइनियुक्तितोपि प्राय्पकारिचक्षुः स्पष्टा नवग्नाहादादिनाय्यकारिस्याच्चगिंद्रियवत् स्य्टष्ट मजनंग्टहीयान्न चग्टहात्यतो मनोवदाय्पकारी त्यवसेये अत्रकेचिदाहुः प्राय्यकारिचक्षुःप्रवृत्तानवग्ग्रहात्वागिंद्रियवदिति अत्री च्यते का चात्र स्फटिकानृतार्थावग्नहे सत्यध्यापकत्वादसि हो हेतु बनस्पत्ति चैतन्पेचापक्त Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राय यासंशयहेतुरखास्यकारिस्पयरकांतोपलेसाध्यविपक्षेषिदर्शनादिति भौति कित्वात्याय्यकारिचवरग्निवदितिचेलासयरकांतेनैवप्रत्यक्तत्वाहाह्मेद्रियात्वा खाय्यकारिचक्षरितिचेलगव्येंद्रियोपकरणस्पभावेद्रियस्यप्राधान्यादखाय्य कारित्वेव्यवहितातिविपकृष्टग्रहणखसंगतिचेलायरकांतेनैवप्रत्यक्तता दयस्कांतापलमनाय्पलोहमाकर्ण्यदपिनव्यवहितमाकीतनातिविषकर मिति संशयावस्थमेतदित्यनाय्यकारिखसंसयविपर्ययाभावनिचेत्तत्या य्पकारित्वेपितदविशेषात्कश्चिदाहरश्मिवचक्षरतेजसत्वात्तस्मात्याय्यका रात्यग्निवदित्येतत्वायक्तमनस्युपगमालहिवयमध्यपगछामरतेजसंचक्षरि तितेजोलक्षणमोस्यमितिकवाचक्षरिद्रियस्थानमलस्पान्लचनास्पर्शी निद्रियमलस्यशपिलमाह मितिइताश्चातैजसंचक्षसिरत्वानुपलचिरह स्टवशादंनुलाभासरत्वमितिचेन्नादृष्टस्पयशावादकियस्पभावस्वभावनिय हासामर्यालक्तंचरराधिमदर्शनाइस्मिवच्चक्षरितिचलातेजसोपिपजलन्द्र Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. व्यस्पभासरत्वपरिणामायपत्तेरितिकिंचगतिमहेधादिहयगतिमद्भवतिन नसनिकृष्टविपकप्याभिलिकालेपानोतिनचतयाचक्षुचक्षहिंशारखाचंद्रम सावभिन्लकालउपलभेतेयावताकालेनशाखापानोतितावताचंद्गमसनिस्टो गतिमवैधतरमालगतिमच्चक्षारिनियदिचपाय्यकारिचक्षःस्पान्तमिश्रायो रात्री दूरेग्नीषक्षलतितशमीपगतद्रव्योयलभन्भवनिकतोनातरा. . . लोचनप्रकाशाभावादितिचेन्लते . कंचयदिखाय्यकारिचक्षनास्यात्सोतराधिकरग्रहणांनपामोतिरिंद्रियाणां निरंतरे विषयोगंधादौसीतरग्रहणदृरनाय्यधिकमहणालथमतवहिरधिष्यमाद्वति रिद्रियस्पअनउपपन्नतविषयस्यसोतराधिकरग्रहणमिनितदयतयरमान्नवहि रधियानादिगियो तत्रचिकित्सादिदर्शनादन्यथाधिव्यानपिधानेपि .. मनसश्चावहि वान्मनसाधिष्टिनेहीद्रियेस्वविषयेव्यापियतोनचमनीवहिरधि व्यानमस्तितदभावावग्यहणावसंगानुत्तीचसंभवाभावाद्विपकीनावक्ष Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रस्मिसमहनाकयमणमनोधिष्टस्पति कश्चिदाहा श्रोत्रमप्राय्यकारिविषय विषयग्रहणादिति एतच्चायुक्तप्रमिहत्वात्साध्यतावदेतद्विपकटंग्रहानियो मतघागोंद्रियवदगाखविययभावपरिरणनएनलगव्यंग्यन्हातीतिविवकृष्ट शब्दशहणेचरखकरमतांतर्विलगतमशकशदोनोपल पेतनहीद्रियकिंचिदेक दूरस्एयविषयमाहिदृष्टमितिमाकाशययात्वाछब्दस्पस्पर्शवडगावाभावरति चिन्लास्तरास्यात्मगणावदिद्रियविषयत्वादर्शनादितिखामावग्रहेनोवस्यदिग्द भेदविशिष्टविययग्रहणाभावइतिचेलशब्दपरिणतविसत्यिहुलवेगशक्ति विशेषस्यतयाभावायत्तेःसूक्षमत्वादपतिघानात्समततःप्रवेशाच्चसिद्धमेतच्चन मनसावजयित्वाशेषाणामिद्रियाणांव्यंजनावग्रहासर्ववामिद्रियायाम व महतिमनमोनिद्रियव्यपदेशाभावः स्वविषयमाहोकरणोतरानयेक्षत्वाच सवरियथावक्षरूपग्रहगोकरणीतरनापेक्षतइतिरंद्रियव्यपदेशलभतेतथा मनोपियशादीयविचारादिखव्यापारेकोतरनापेक्षततिरनिर्यनामोलिनानि Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा दियमितिनवाजत्यक्षवालवायवदोषः किंकारांप्रत्यक्षवाद्यथावक्षरा ८३ दिपरस्येंद्रियकत्वात्सत्यक्षंनतथामनरेंद्रियकुतःसूक्ष्मद्रव्यपरि. दनिद्रियमित्युच्यते। अत्रापाकथर्मवगम्पतेखत्यक्षतदरनीति अनुमानान्त स्याधिगम अप्रत्यक्षागामय्यानोलोकेनमानादाधिगतिहटाययादि । गतिर्वनस्पतीनोचद्विहासी तथामनौय्यतिमनुमानादवगम्यतेकोसावतु मानः गपनानक्रियानुत्यन्तिर्मनसोहेतु सत्सचक्षरादिकरोयसक्किमल चवायिरूपादियसतिचानेकस्मित्सयजनेयतोतानानांक्रियायांचयगपद सत्यनिरनदस्तिमनदत्यनमीयत अनुरमरणादर्शनाञ्च यतःसकदृष्टंक्रतवा गुरमीतेतलईर्शनान्तदस्तित्वमवसेयंअन्लाहएकस्यात्मन: कतकरयाभेदः शखाभावस्पापिकरणभेदोऽनेककलाकसलदेवदत्तवन्त शक्तियुपेक्षाकायकर्मणिवत्तमानस्यवासीघरमखवृक्षादनादि .. यात्मनोपिक्षयोपशमभेदाज्ञानक्रियापरिणामशक्तियुक्तस्पचक्षराद्यनेक Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रगापेक्षानविरुद्ध्यतेसनामकर्मसामसिएपकरणभेदोनामकर्मसामय्यांत दितव्यः कथमिहदेतहरीरनामकर्मादयाद्यापादितंयवनालिकासंस्थानश्रोत्रं द्रियमेतदेवशदोपलश्चिमहिलनेतगणितथायदेतद्यार्णोद्रियमतिमुक्तकचंद्र कसंस्थानगतदेवगंधावगमसमर्थनेतगणितयायदेतजद्रियक्षरखाकृत्ये नदेवरसावगमेनान्यानितथायदेतश्यर्शनेद्रियमनेकाकृतितदेवस्पोपलभनेने तरराशि तथापदेतच्चक्षरिद्रियमसरिकाकारंकलताराधिष्टानंतदेवरूपाविष्का रउलनेतराणीनिएवमाभिनियोधिकद्रव्यक्षेत्रकालभाववसेयंद्रव्यतामतिज्ञा नासर्वद्रव्याएपसर्वपर्यायाण्यपदेशेनज्ञानातिधीत्रत उपदेशनसर्वक्षेत्राणिजा नातिअथवाक्षेविषय वक्षय क्षेत्रसमचत्वारिंशद्योजनसहस्राणियष्टय धिकेचह्नयोजनशतेयोजनस्पचकविंशतिः यस्टिभागाः श्रोत्रस्पक्षेत्रहादश| योजनानिघागारमनस्यर्शनानानवयोजनानिकालतः। उपदेशनसर्वकालजाना, तिभावतः उपदेशेनजीवादीनामोदयिकादीन्नावान्वानातीनात्सामान्यादेकर्मिदि। AarmanaraEAT wearamre Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. याभेदाढिधाअवग्रहादिभेदाच्चतहतिरिद्रियश्चितुर्विशतिविधरेवयं जनावग्रहाधिकैरटाविंशतिविधतेरेवमूलभंगाधिकैद्रव्यादिसहितैर्वाद्वात्रिं सहिधतगत्रयोविकल्यानावहादिभित्रात्यडिरितरानपेक्षशिवाचतुश्चत्वा रिंशछनष्टषत्तरंशतानवत्यधिकंशतमितिचभवनितएवववादिमिट्टी दशभित्तिा देशातेअशाशीत्यत्तरेत्रीणितानियाईशानिचतुराशीत्यधिका नित्रीणितानिचभवतिमाहव्यंजनावमहेवाद्यभावाकरमार्दव्यतबादच्य तप्रवाहवत्तसिद्धिःयथाअव्यक्तग्रहणमवग्रहल तथावहादिविकल्पो रूपेणीववेदितव्याअथानिस्तेकर्यतत्रापिपेचयावतश्चपद्लाःसक्ष्मानिस सासतिरक्षमाखसाधारयोग्यतयामिद्रियस्थानावगाहर्नमनिस्टर्तव्य जनावमहापरोक्षदविध्येसत्यपकमलक्षणाविकल्पमतिझानविधायद्विती यमपदियेतविनिमित्तकतिविचंचेसध्यताक्रमनिर्वधनेकवादाने श्रुतशब्दोजहत्वार्थन्तिरूदिवशाकुशलशब्दवद्ययाकुशलशब्दक Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शलशब्दावेथाकणलशब्दःकुशलवनक्रियांपतीत्यव्यत्यादित तहित्वासर्वत्र पर्यवदानेवततथालताशब्दोपिशवरामपादायव्यत्यादितोरूदिवशात्कस्मिंश्चि नविशेषेवर्ततेकार्यपतिपालनात्वररणाद्वापूर्वकारणीकार्यपालपतिपूपत्ती निवापूर्वे! कारगोलिंगनिमित्तमित्यनयतिरी मतिज्ञानव्यारव्यात तत्पूर्वमस्पतिमतिपर्वमनिका रमाकमित्यर्थनामतिपूर्वकत्वेश्रुतस्पतदालकखप्रसंगोघटवदतदात्मकर्खेवा तत्यूर्वकरवाभावाकश्चिदाहामनिपूर्वश्रुतंतदपिमत्यात्मकंवानीतिःकारागा नविधानहिकार्यहोयथाम्रलिमिनीघटोम्टदात्मक अथातदात्मकत्वमिष्यते तत्पूर्वकत्वंतहितिस्पहीयतरति मवानिमित्तमात्रत्वादंगादिवलचेयदीयभाकि कारणोनिमित्तमात्रत्वादंडादिवद्यथाम्रद खयमनभवनपरिणामाभिमख्ये दिडचक्रयोरुयेयनयन्नादिनिमित्तमात्रभवति यतःसत्खपिकादिनिमित्लेख करादिप्रचितोथिंड: स्वयमंतघलभवनपरिगामनिरुत्सकत्वान्लघतीभव नितीम्रपिंडराववाघदंडादिनिमित्तापेक्षामाभ्यंतरपरिणामसालिध्याधये - Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजधा भवतिनदंडादयइतिदंडादानानिमित्तमात्रत्वतयायर्यायिपर्याययोः स्यादन्यत्वा दोरमनः खयमतःचन्तभवनपरिणामाभिमरयमतिज्ञाननिमित्तमात्रभवतिय तःसत्यपिसम्पग्रेप्रोत्रंद्रियवलाधानेवाद्याचार्यपदापिदेशासनि' - नशानावरगणोदयवशीकृतस्पखयमताश्वतभवननिरुत्सकत्वादात्मनो. श्वतंभवति ततोवाद्यमनिशानादिनिमितापेक्षात्मेवाभ्पतरऋतज्ञाना क्षयोपशमायादितश्चत्तभवनपरिणामाभिमख्याकृतीभवतिनमनिसानस्प ऋतिभवनमस्तितस्पनिमित्तमात्रखात अनेकोनाच्वनायमेकांतीक्लिकारणस दृशेमेवकार्यमितिकतरतत्रापिसप्तभंगी संभवा कथंघटवद्यथाघरःकारणे नम्मापनस्पात्सशस्याजसदृशदत्यादिहातिम्टदृव्याजीचा . सानार्पिघटसंस्थानादिपर्यादेशान्तसदृशःपूर्ववदन्तरभंगानेतव्याः कोतेनकारणानरूपकार्येतस्पघटपिंडाशविकादिपर्यायाउपलभ्पतकिंच डेनवदर्शनादपिचम्मात्तिददश Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वघटत्वेनपरिणामवच्चदस्यापिघटत्वेनपरिणामः॥ स्यादेकांत सदृशत्वान्नचैवं भवतिअ तो कांतेनका रासदृशत्वं । तथाशु तं सामान्या देशा स्यात्कारणसदृशय तोमतिरपिज्ञा नंश्रुतमपि अव्यवहिताभिमुखश्रहांना नाज कारार्थप्ररूपणसामर्थ्यादिपर्यायादेशा स्यान्नकारणसदृशं पूर्ववदुत्तरेभंगानेतव्याः । श्रोत्रमतिपूर्वस्यैवश्रुतत्वाषसँगः तद यत्वादिति चेन्नोक्तत्वात्स्यादेतछो त्रमतिपूर्वकस्यैव तत्वंषा प्न तिकुतस्तदर्थत्वाद्यत्वा |वधारणादिष्यमिमित्यच्यतेनचक्षुरादिमतिपूर्वकस्यैव तवं नामोनितन्नं किं कार उक्तत्वात् उक्तमेव तशब्दो यरूढिशब्दइति रूढिशब्दाश्वखेात्पत्तित्रियानपेक्षाः प्रवर्ततइतिसर्वमतिपूर्व स्पश्रु तत्वसिद्धिर्भवति॥ आदिमतों तवत्वाछुतस्यानादिनिधन त्वानुपपत्तिरिति चेन्नद्रव्यादिसामान्यापेक्षयानत्सिद्धेः स्यादेतनस्यादिमध्वमभ्युपग नमतिपूर्वमितिवचनादादिमत्तश्च लोके तव त्वंहयंततः आद्यं तसं भावादनादिनिधनं तमितिव्याहन्यते ततश्वपरुषवतित्वादंखामारापस्पादितिंने दोयः द्रव्यादिसामा न्यापेक्षयातत्सिद्धिः द्रव्यक्षेत्रकालभावानां विशेषस्पाविवक्षायांश्रुतमनादिनिध Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा ई S नमित्युच्यतेनहिकेनचित्पुरुयेणक्वचित्कदाचित्कयंचिदुत्प्रेक्षितमितितेयामेववि शेवापेक्षया आदिरंतश्चा संभवती तिमतिपूर्वमित्युच्यते यथां कु रोवीजपूर्वः सच संता नापेक्षया अनादिनिधनइतिन बापुरखकृतित्वंखामाण्य कारणां चौर्याद्युपदेश स्वास्मर्यमाणकर्रक स्वचामाण्पापसंगाद‌नित्यस्य चप्रत्यक्षादेः । सामारोप की विरोधः सम्यञ्चोत्पत्तौ युगपन्मतिश्चत्तोत्पत्तेर्मतिपूर्वकत्वाभावइतिचेन्नसम्पञ्चस्पतदपेक्ष वात्स्यान्मतं मत्पज्ञान तान्ज्ञानयोः प्रथमसम्पको त्यत्तौ युगपदज्ञानपरिणामान्म तिपूर्वक संम्मतस्पनोपपद्यतइतित्तन्नकिं कारणं सम्पच्चस्पतदपेक्षत्वात्तयो हिस म्यकं सम्पग्दर्शनोत्यत्तौ युगपद्भवति। मात्मलाभख क्रमवानिनिमतिपूर्वकर्वयक्तं तावन्मतिपूर्वकत्वाविशेष इति चेन कारभेदात्तदसिद्धेः नांश्चत्तमविशिष्टंप्राप्नोतिः कुतः कारणाविशेषान्मतिपूर्वत्वंहि यामविशिष्टमितितन्नकि कारण कारणभेदात्तद्वेदसिद्धेः प्रतिपुरुषे हिमतिश्चता वरश्याक्षयोपशमीबहुधा भिन्नस्तद्वेदाद्वाह्यनिमित्तभेदाच्चतस्यप्रकषषिकर्ष Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योगोभवतिमनिपूर्वत्वाविशेषेपिताछुतजतिपलक्षाव्यामिरितिचलतस्या पचारतीमतित्वसिद्धेः स्याम्मनयदाशब्दपरिणतपगलरकंधादाहितवरपिदावा क्यादिभावाच्चक्षरादिविययावसायश्चतविषयभावमापन्लार्दविनाभाविनाक तसंगतिजनोघटाजलधारणादिकार्यसेवंध्यतरंतिपद्यतेधूमादेवग्न्यिादिद्री तदाताकृतपतिपत्तिरितिकृत्वामतिपूर्वलक्षणामध्याघीतितन्लकिंकारगोतस्पो पचारतोमतित्वसिद्ध मनिपूर्वहितक्वचिन्मतिरियपचर्यतेप्रयवाव्यवहिते पूर्वशब्दोवततत्तद्यथा पूर्वमधारया:पाटलीपत्रमितितत साक्षान्मतिपूर्व परंपरयावामतिपूर्वमपिमतिपूर्वग्रहणोनयतभेदणादस्पस्वत्येकंपरिसमामि भाजिवद्यथादेवस्तजिनदत्तयरुदत्ताभोज्यतामितिमजिःपत्यकपरिसमाय्य तितर्यहापिभेदशब्द प्रत्येकमभिसेवध्यतेहिभेदमनकभेदवादशभेदेचेतितवां गप्पविष्यमगवायचेतिहिविच अंगप्रविष्टमाचारादिद्वादशभेदावधतिशयहि सतगणधरनुमतगंथरचनभगवदर्हत्सर्वज्ञहिमवन्निगतवाग्गंगाविमर Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा- लसलिलप्रक्षालिताःतःकरणेवध्यातिशयाईयुक्तैर्गणाधरेनुजगंथरचनामाचा दिग्दविधर्मगप्रविष्टमित्यच्यते तद्यथा आचारसत्रकर्तस्थानसमवायोध्या ख्यापशमिज्ञलिधर्मकथाउपासकाध्ययनअंतकृशमनुत्तरोषयादिकदसजना व्याकरणवियाकम्त्रदृष्टिवादनिश्माचारेचर्याविधानंशुयष्टकपंचसमितियमि विकल्पकथ्यते सूत्रकृतेशानविनयपज्ञापनाकल्य्याळेदोपण्यापनाव्यवहारधर्म क्रिया खरूपने स्थानेनेकानयारणमर्थानानियिः क्रियते समबापेसर्वपदार्थी नोसमवायश्चित्यते सचान विधाद्रव्यक्षेत्रकालभावविकल्पेरतत्रधर्माधर्मास्तिका यलोकाकाशैकजीवानोतुल्याख्येपरदेशवादेकेनप्तमायोनद्रव्यागासमवाप नारद्रव्यासमवायःजवूलीयसवर्थिसिधवतिष्टाननस्कनंदीश्वरैकवापानानः ल्ययोजनशतसहस्रविकभषमाणेनक्षेत्रसमवायनातक्षेत्रसमवायउश्यपिण्य वसपिण्पोखल्यदशसागरोपमकोटीचमाणाकालसमवायीक्षापिकसम्पन्कके वलज्ञानकेवलदनियथारख्यातचारित्राणीयोभावलदनभयस्पतुल्यानंतषमाणत्वा Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावसमवायनाद्रावसमवायव्याख्यातासायटिव्याकरणासहस्त्राणिकिमलिजी) योनारजीत्येवमादीनिनिरूप्यतेशाटधर्मकथायामाख्यानोपाख्यानानांवरुषकाराणी कथनछपासकाध्ययनश्रावकधर्मलक्षणसंसारस्पीतः कृतार्यरतकृतःनमि मनंगमोमिलरामपत्रमदर्शनयमलीकवलीकनिष्र्कचलपालोवष्टपत्राइत्येतेद सवईमानतीर्थकरतीर्थशवम्यमादीनीत्रयाविशतेतीर्थव्वन्पन्येचदशदशानगा। रादशदेशदरगानुपसगीनर्जित्यकलकर्मक्षयादत्तकृत दशास्यांवरफ्तदान अंतकद्दशाअथवा ततादशाअंतकशानस्यामहंदाचार्यावधि:सिध्यतो चउपदोऊन्मपयोजनेयेयोनेइमेऊपपादिका:विजयवैजयतजयंतापराजितस वासिहाव्यानिपंचानुत्तराणिमन्तरेय्चापपादिका अत्तरोपवादिकारवि दासवायसनक्षत्रकार्तिकनंदनंदनशालिभदाभयवारिणचिलानपत्राइत्येतेद शवमानतीर्थकरतीयेएवम्टयभादानोत्रयोविंशतरतीर्थचन्येन्येचदशदानमा रादणादशदारुणानपसगान्निर्जित्यविजयाद्यनुत्तरेवत्यन्लाइत्येवमठत्तरोपपादि Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... मायक्रियिकनबंधविशेयःसाक्षेपविक्षेपैहेर्नुनायाश्रितानोपना नोव्याकरणायमध्याकरणात्तस्मिल्लोकिकवैदिकानामोनानिलयः विपाकम् . कृतादाकतानीविषाकश्चित्यत्तिो हादशामगंदृष्टिवाददातिको कलकाण्वविद्धिको शिकहरिशमक्रमौछपिकरोमसहारितमंडाश्चलादीनोक्रियावाददृष्टीनामशी . मरीचिकुमारकपिलोलकमारपेव्याघभतिवाहलिमातमोजल्योयनादीनामक्रि वाददृष्टीनोचतुरशीनिशाकल्यवाकलयभिसात्यमद्रिवाशायणकंठमाध्ये मोदपैय्यलादवादण्यांवीकृरिकायनवसंजमिन्यादीनामज्ञानिकहानी भावषिष्टापारासरजनकर्णिवाल्मीकिरोमर्पिसत्यदत्तव्यासैलापत्रीय जायस्यगादानोवैनयिकदृष्टानाद्वात्रिंशदेषीदृष्टिशनानांत्रयागात्रिय नराशाखरूपणोनियाहश्वदृष्टिवादीक्रयतेसपंचविधापरिकर्मसूत्रैश्चमा •पूर्वगतंचलिकाचेतितत्रपूर्वगर्नचतुर्दशषकारेउत्पादपूर्वमनायाची . नालियवादेशानसवादेसत्यजवादमात्मवादकर्मपवादचप्रत्या Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख्याननामधेयंविद्यानुवार्दकल्याणनामधेयं प्रारणावार्य क्रियाविशाले लोक वि दुसारमिति कालप्रद्गलञ्जीवादी नोयदायत्रयथाचपर्यायेणोत्पादो वर्ण्यतेतदुत्या दपूर्वक्रियावादादीनां क्रिया अग्नायणी चांगादी नांखसमवायविषयश्चयत्रख्या पितरतद्रायणं छमस्थ केवल गांवी सुरेंद्रदैत्याधिपानांशैड्यो नरेद्रचक्रध बलदेवानांचवीर्यलाभोन्द्रव्याणां सम्पक्क लक्षणे चयत्राभिनंही प्रवादपंचा नामस्तिकायानामर्थेनयानांचानेकपर्यायैरिंदमस्ती देनारतीतिचका नियत्रा बभासितं तस्तिनालिषवादो अथवा मामपिव्यारणभावाभावपर्यायविधि नाखपरपर्यायापामुभयनयवशीकृताभ्यामर्पितानतिसिहाभ्यांयत्रनिरूप तदस्ति नास्तिप्रवादपचानामपि ज्ञानानां प्रादुर्भावविषयायत्तनांनां ज्ञानिनाम ज्ञानिनार्मिंद्रियाणां चप्रधान्येनयत्रविभागेोविभावितः तद्भानवादी वाग्ग्रमसं |स्कारकारण्झयोगोद्वादशधाभाषावक्तारश्यानेकप्रकारम्य्याभिधानंदशप कारश्यसत्यसङ्गावोयत्ररूपितस्तसत्यवादे वाणुसिंवक्ष्यमारणखा करक Page #874 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. रकारगण निशिर कंठादीन्यष्टोस्थानानिवाकपयोगःशभेनरलक्षणोक्ष्याने भ्पाख्यानकलहपैशुन्यासंघ इजलापरत्यरत्यपधिनिकृत्यपातिमोयसम्पग्मि य्यादर्शनामिकाभाषाहादशधाहिंसाकर्मशा कठीवरतस्पविरताविरतस्प वायमस्पकतैत्यभिधानमभ्याख्यान कलहापानातःपयनीदोबाविस्करण पेशन्धमार्थकाममोक्षासवडास्वागसेवहाललाप:शब्दादिविषयदेशादिय रत्यत्यादिकारनिवाक तेम्बेवारत्युत्पादिकारतिवाकयोवाचंश्रत्वापरिमहा निरक्षयादिवासज्पतेसोपधिवाकावणिग्व्यवहारेयामबधानिक । रणमात्माभवतिसानिकृतिवाकयोश्रुत्वानयोविज्ञानाधिकेचपिनरामति साजागतिवाक्याश्रुत्वारतेयेवततिसामोषवाक। ग्दर्शनवाकानदिपरीतामिथ्यादर्शनवाकावक्तारम्याविहत्तवकृत्वपर्यायाही नियादय गव्यक्षेत्रकालभावाश्रयमनेकप्रकारमन्टनादविद्यःसत्यसना वःनामरूपस्थापनातीत्यसंहतिसयोजनाजनपददेशभावसमयसत्यभेदेन Page #875 -------------------------------------------------------------------------- ________________ winner तत्रस:चेतनेतरद्रव्यस्पासत्यय्पर्धेयद्यवहारार्थसंशाकरणतन्नामसत्याई दइत्यादियदछसिनिधानेपिरूपमात्रेणोच्यतेतद्रूपसत्य॑यथाविपरुधादिवस त्यपिचैतन्योपयोगादावर्धपुरुषइत्याद्यसत्यय्यर्थयत्कार्यारथापितंधूताक्ष निक्षेपादियततस्थापनासत्यात्मादिमदनादिसदोपशमिकादीन्नावान्सतात्य यवचनतत्यतीत्यसय॑यलोकोसंहत्यानीर्तवचरतत्संबतिसत्ययथारथिव्याधे निककारणखेपिसतिपके जातपंकजमित्यादिपचूर्णवासानलेपनपघर्यादि सुपनमकरहंससर्वतोभद्रक्रोचव्यूहादियवासचेतनेतरध्यागायथाभाग विधिसनिवेशादिविकंयतचरनलयोजनासत्योहात्रिंशजनयदेय्वायानार्य भेदेवधर्मार्थकाममोक्षाणांषापर्कयचरनजनपदसत्यनामनगरराजगणया घडजातिकलादिधारणमपदेफुयश्चातदेससत्य छयस्थज्ञानस्पद्व्ययाया स्पादर्शनेपिसेपतस्पर्सयतासयतस्पवाखापरिपालनार्थखासकर्मिदममा सुकमिदमपासुकमित्यादियद्वचनद्भावसत्योपनिनियतबद्भयध्यपर्याया Page #876 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. यामागमगम्पानांयायालयाविष्करायचरतत्समयसत्यो यत्रात्मनोस्तित्वना . स्तिखनित्यत्यानित्यत्वकलवमी कृत्वादयोधर्माभयडीवनिकायाभेदाश्चयक्ति तोनिर्दियाग्नदात्मवाद वैधोदयोपशमनिरापर्यायानभवपदेशाधि करणानिखिनिश्यजघन्यमध्यमाञ्ऋष्यायत्रनिद्दिश्पतितकर्मजवादीव्रता नियमपतिलेबनतःकल्पोपसर्गाचारजतिमाविराधनाराधनविणुकपक्र मश्रामरापकारांचपरिमितापरिमितद्व्यभावप्रत्याख्यानेचयत्राख्यातन खत्याख्याननामधेयंसमस्ताविद्याअष्टोमहानिमित्तानितद्विषयोरजुराशि विधिःक्षेत्रं श्रेणीलोकप्रतिव्यासंख्या समवातश्चयत्रकथ्यतेतद्विद्यानु चादो तत्रांगठपसेनादीनामल्पविद्यानीसमशतानिरोहिण्पादानीमहावि द्यानीपंचशतान्पतरिक्षमीमागखरखप्नलक्षाध्यंजनछिन्लान्यष्टोमहा निभित्तानिनेवाविषयोलोकनाक्षेत्रमाकासेपटसूत्रवच्चमविपववद्वान पूर्वगोहधिलियग्व्यवस्थिताः असंख्याताआकाशप्रदेशाभूमयःश्रे, Page #877 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यउक्ताः अलोकाकाशस्यानं तस्पव्हमध्ये सुपतिष्टकसंस्था नो लोक उम धस्तिर्यन दंगवे त्रासनद्गलयकृतितनुयातवलपपरिक्षितऊर्द्धास्तिर्यक्षम तरवृत्तश्चतुद्दशर हायामामेरु प्रतिष्टवज्नवैर्यपटलीत्तररूचक संस्थिताअ ष्टाचाकाशप्रदेशा लेकमध्ये लोकमध्याद्यावदेशानांतरता वदेकार तुरईचमा हेंद्रतिमिस्रः ब्रह्मलोकांते चतुर्था: काप्रिष्टतेचतस्रः महाशुकं तेईप चमाः सहस्त्रांते पंचप्राणतोते अईय्टष्टाः अच्युताय आलोकमध्यादधः यावथर्क राष्टथिव्यतस्तावदेकार सुन तोधः प्टथिवी नापंचानां प्रत्येकमंते Sतोर जुरेकै काटद्वाततो धरतमस्तमः प्रभाया प्रालोकांतादेकारनुः एवं सम्मा धीरजवः घनोदनोदद्धिघनानिलतन बातबलयानित्री गियैरयं परिक्षिमः सर्वः स ताक त्रयाणामय्यधो लोक दिग्विदिकपार्श्वभावनांपत्य के विस्नारोविंश नियोजनसहस्त्राणि ततउपरिक्रमतो हानिवशात्तिर्यग लोकभाविदिक्याव 'ष्टामुप्रत्येकं त्री एपपिवलयानिपंचचतुस्त्रियोजनविस्तीर्णानिपुनरुपरिदृद्धि Page #878 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा वशाल लोके दिग्विदिवया चैव या सुप्रत्येकं बीएप पिवल या निसरपंचचतुर्यो जनविस्तीर्णा निपुनहनिवसाले काग्ने अष्टावपिदिग्वि दिकपार्श्वत्येके एप पिवलयानिपंचचतु स्त्रियोजनविस्तीर्णानिदंडवलयानिपुनरुपय्र्य्यधश्वत्री एयय्पुपरिलोकानेघनादधेर्द्धिगव्यूतीचनानिलस्य कोश 'तनुवात्तस्पदेशोनः कौशो विस्तारः अधः कलंक लग्यथ्वीपर्यंतेघनोदधेः समघनानिलस्पपंचत नुवातस्य चत्वारियोजनानिविस्तारः अधोलोकमूलेदिग्विदिविष्कंभः स सरजवनिर्यले केर जुरेका वस लोके पंचपन'' लोकानेर जुरेका लोकमध्या दधोरजुमवगाह्यशर्करोते अष्टावपिक्षिविदिक्षविश्वंभः रज्जुरेकारक्षा श्वषट्समभागास्त्रतोरज्जुमवगाह्य वालुकाते हेरतुरक्षाश्र्वपेचस सभागास्त तीरज्जुमवगाह्यर्ष कानेति खोरजव रक्षाश्चत्वारः समभागास्ततोरनुमेवगा• ह्यमोतेचतस्त्रोरञ्जवः रक्षाश्रत्रयः ॥ समभागारत तोरनुमवगाश्यत्तम पैचरजवः ॥ रक्षाश्वद्दीसमभागौ नतौर जुमवगाह्येतमस्तमः प्रभातेषज्ञ Page #879 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भासमभागश्चै कस्न तोर जुमवगाह्य कलंकलातेविष्कंभः समरजवः बज्नतलद परिरतुमकम्प विष्कंभी ढेर अरक्षश्व एकः समभागः ततोरनुमुकम्पतिस्त्रो स्वः। रक्षा श्वद्दौ समभागोत तौर जुमुकम्प चतखेोरजवः रक्षाश्वश्रयः सप्तभा गाभा तो दूर तुम कम्परतवः चततो रजसुकम्प चतखोरञ्जयः रक्षाश्य त्रयः समभागाः ततो रज्जुम कम्पतिस्त्रो रजवार हाम्रा हो ससभागोत तोरजू मक्रम्प हेरतूरक्षाश्वएकः समभागः ततोर उत्मकम्प लोकांते रजुरका विष्कं भः एवरज्जु विधिः ह्त्तेर्गमिक्रियत्वात्संभूयात्मप्रदेशानां च वहिरुद्वमनंसमुहा नः सससविधः वेबभाकयायमारणांतिकते जो विक्रिया हारका के वलि विषयभेदा तत्रावातिकादिरोगवियादिद्रव्यसंवधः संतापापादितवेदनात्तोवेदनासा तः द्वितयप्रत्ययप्रकीत्पिादितक्रोधादिकृतः कषायसम हुतिः | ऊपक्रमिकान |पक्रमाटयः॥ क्षयाचिभूतमरणांत प्रयोजनोमारां तिकसमुद्घातः जीवानुग्रहोप "घातप्रवणतेजः शरीरनिवर्त्तनार्थस्ने जस्समात एकत्वय्टथक्क नानाविधि Page #880 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा. विक्रियशरीरवाकप्रचारपहारशादिविक्रियाप्रयोजनोवैक्रियसमुद्धातः प्रोक्त विधिनाऽल्पसावयसक्ष्मार्थग्रहणणअयोजनाहारकशरीरनित्यर्याहारक समहातःवेदनीयस्यवहत्वादल्यत्वाचाययोनाभोगपूर्वकमायासमकरणार्य द्रव्यस्वभावत्वासराद्रव्यस्पफेनवेगवडुदाविर्भावोपशमनवदेहस्थात्मजदेशा नीवहिासमहात केवलिसमहातःआहारकमारांतिकसमडातावेकदि को यतःसाहारकशरीरमात्मानितयरगिगतित्वादेकदिवानात्मपदे शानसंख्यातान्लिगमय्याहारकशारीरन्निमात्रंनिवन्तयतिअन्यक्षेत्रसमद्भा न्यतेनान्यक्षेत्रेतरतावेकदिकोशेषापंचसमझाताःयडिक्वायतोवेदना दिसमहातवशाहहिनिस्टतानामात्मनदेशानांपूर्वपरदिक्षिणोत्तरोधिोदि क्षगमनमिष्टेणिगतिवादात्मपदेशानीवेदनाकषायमारांतिकतेजोये क्रियिकाहारकसमहासायसंख्येयसमयिकाकवलिसमहासानास यसमयिक दंडकपारपतरलोकपूरणनिचलरसमयेखापन:लोक Page #881 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणनियतबसमयेष्ठ पुनःलोकपूरणनि-पतरकपाटदंडकस्वशरीरावप्रवे शाश्वर्धिति रविशशिरग्रहनक्षत्रतारागणानांचारोपपादगतिविपर्ययफला निशक्रनव्याहृतमहबलदेवावासदेवचक्रधरादीनांगर्भावतरणादिमहाक ल्यागानिचयत्रोक्तानित्तवल्याणनामधेयकायचिकित्साघम्टोगमायुर्वेद भ्रतिकर्मजागलिपक्रमः॥पागापानविभागोपियत्रविस्तरेगावर्शितस्तत्वा गावार्यलेवादिका कलादाससतिगाश्चतुषधिस्वरापाःशिल्यानिका व्ययगादोयक्रियाछंदीविचितिक्रियाक्रियाकलापभोक्तारवयत्रध्यारव्याता तक्रियाविशालंयत्राष्टीव्यवहाराश्चत्वारिवाजानिपरिकर्मशिक्रियाविभा गश्चसर्वश्चत्तसंपदपदिव्यातखललोकविंदसार आरतीयाचार्यकृतोगायो प्रत्यासन्नरूपमंगवाह्यं यगणधरशिष्पप्रशिध्येरागतीयैरधिगतवत्तार्थत खैःकालदीयादल्यमेधायचलानोपामिनामनुग्रहार्थमपनिवडासक्षिमा गार्थवचनविन्यासतदगवायतदनेकविधकालिकोवालिकादिविकल्या Page #882 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. तदगवाघमनेकविधंकालिकमत्कालिकमित्येवमादिविकल्पास्वाध्या लेनियतकालकालिको अनियतकालमत्कालिकेत दाउत्तराध्ययनादय अनेकविधा मित्रोहनमानादीनायथगनपदेशाकिमर्थ . पृथगनपदेशःशुलाधरोधाद्यस्मादेतान्यनमानादीनिश्छतेतर्भवति .. यथयपदेशानक्रियते तद्यया प्रत्यक्षपूर्वत्रिविधमनमानेपूर्वव . मान्यतोहरचेति तत्रयेनोग्नेलिस्सरन्यूर्वधूमोहयःसपसिद्धाग्निधूमसंबंधा हितेसंस्कारः पश्चाइमदर्शनादरत्यत्राग्निरितिपूर्ववदग्निग्रहातीतिपूर्व . मान तथायेनवैविधाणाविधागिनो संबंधउपलभरतस्पवियाणरूपद नाद्विवाशिन्यनमानयवत्यातयादेवदत्तस्पदेशांतरपासिंगतिपूर्विको छासवंध्यतसवितरिदेशोतरजामिदर्शनामतेरत्यैतपरोक्षाया सामान्पत्तोपतदेतचितयमपिखपतियत्तिकालेसनक्षरशतपरपतिप तिकालेक्षरस्वतयथागोस्तथागवयः केवलंसारलारहितनखपमानममि Page #883 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खपरखतिपत्तिविषयत्वादक्षरानक्षरशुततर्भवतिजधाशाब्दमपिपमाणों श्रुतमेवरेते स्पचरताहसभगवान्टयभःइतिपरंपरापरुखागमाजा तरतिशतेतवि:प्रकृतिपरुयोदिवानभक्तअथचजीवतात्पर्यादापन्ले | . रात्री इत्यर्यापतिश्चत्वार:पस्था पाटकमितिसतिज्ञानेनाटकदृष्ट्या संभवत्यतिककुडवीवोतिप्रतिपतिसंभवः लगायल्मादानोरनहपफि लाघभावबलाममायतेनूनर्मननदृष्टः पर्जन्य इत्यभावरतेयामय्या पत्यादीनामन्तिानामनमानसमानमितिपूर्वक्लुतातभवि व्याख्यातंयरो क्षेत्रत्यक्षमिदानीवक्ता तहधादेशजत्यक्षसर्वप्रत्यक्षचदेशाप्रत्यक्षम वधिमनःपर्ययशानेसर्वप्रत्यक्षकेवलययेवमिदमेवातावदेवधिज्ञान त्रिपाकारत्यक्षम्पाद्यपाक्रियतामित्यत्रीच्यतोव्याख्यातमस्पलक्षर मात्मवशादविरोधेसत्यत्वसंशाकरणावधीयतेतदित्यवाधिज्ञात मिति यवतस्पेदानीभेदावतध्यम उच्यतोहविधीवधिः भवगराष - - - - Page #884 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्ययसर्वशष्टस्यनिरवशेषवाचित्वात्सर्वावधिमपेक्ष्यपरमावधेद्देशावधित्वमेवेति वक्ष्यामातचयोसौभवपत्ययस्तयतिपादनार्थमाह।भवनपयोवाचविना रकाराभवदसच्यातेकोनॉमभवायनमिकर्मोदयविशेषापादितपर्यायो । सामनोया,पर्यायसाययोनान्तश्चउदयविशेषावकारणापेक्ष विर्भवतिसाधारणलक्षोभवन्त्यच्युत्तेसत्यक्षशब्दस्यानेकार्थसंभवेविवक्षा तोनिमित्तार्यगतिभाशयंप्रत्ययशदोनेकार्थक्वाचितज्ञानेवततो यथार्थाभि धानप्रत्ययाइति क्वचिछपथेवत्ततेययापरद्रव्यहरगादिषसत्यपालभेल. निनवतरतिवचितीवर्ततेयथाविद्यावत्ययाः।मेरकाराशतितत्रेहविवक्षातो निमित्तावेिदितव्यः भवत्ययोभवनिमित्तरतिक्षयोपशमाभावनिचलन रिमसतिसद्भाधारक्षेपतत्रिगतिवारस्यादेतद्यदितत्रभवनिमित्तीवाधिक मणःक्षयोपशमनर्थकरतितन्नर्विकारणांतरिमसतिस . वतययाकाशेसतिपक्षिणोगनिर्भवतितथावधिज्ञानावरणाक्षयोपशमेतरंगे Page #885 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेतोसत्यवधीधोमवस्सुवायोहेतुइतरधाद्यविशेषप्रसंगायदिहिवराहतः स्पासवैधादेवनारकागांतल्पावधेरविशेयनसंगमस्पादिव्यतेचप्रकर्षा पकर्यभावेनहन्तिःकर्यपुनर्भवोहेतुरितिचेवतनियमाद्यभावाद्ययातिर श्यामनुव्यागाचाहिंसावितनियमाहेतुकीवाधिनतथादेवानीनारका पाहिंसादिवतनियमाभिसंधिरस्तिकतोभवंसतीत्यकर्मादयस्पतयाभावा नरमात्तत्रभवण्यवाह्यसाधनंजधानमित्कच्यतसविशेषात्सर्वनसंगरति चेला सम्पाधिकारारस्पादेतदेवनारकारणामित्यविशेयवचनान्मिथ्याही नामय्यवधिसंगइतितन्नर्किकारांसम्पगधिकारात्सम्यग्दर्शनसम्यग्ज्ञानं मितिवन्ततत्संबंधात्सम्यग्दृष्टीनामवाधिर्मिय्यादृष्टीनाविर्भगोवेदितव्यः अथ| वावक्षमाणाभिसर्वधानसर्वश्वसंगःवक्ष्यतेधेतन्मतिश्रुतावधयोविपर्ययो तिअथवाव्यख्यानादिशेयषतिपत्तिगासागमेशसिहेलरिकशब्दस्पपूर्वनि | पातरनिचेन्नोभयलक्षणखासत्वादेवशल्दस्पस्यादेशमारकसदस्पपूर्वनिपा Page #886 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ||तरविचन्लोमयलक्षणालामवाद्देवशदस्यस्यादेतन्नारकसदस्पपूर्वनिपातेनभ विल्य कता आगमेजसिद्दे मागमेहिजीवस्थानादिसदादिव्यनयोगहारे गादेशवचनेनारकामामेवादीसदादिलरूपगाकता ततोनारकशब्दस्पए वनिपातनभवितव्यमितितन्लर्किकारीउभयलक्षाजासत्वाद्देवशब्दस्प देवशब्दोहिल्याजम्पहिनश्यतिवृत्तीपूर्वनियोगाह'आगमोवाका विष योनिर्देशतिनालिनियम आहोतंभवतेय्यतेषकवतिकर्षभावनहति रितिक्कयमितिचेदुच्यते देवेयतावनवासिनांदशप्रकाराणामपिजघन्यो वाधिःपंचविंशतियोजनान्यतयटोसुराणा असंख्यातायोजनकोठीकोटमाध ऊर्व मनुविमानस्योपरिपयेतोनागादिकुमारानवविधानामयलो वधिरघोसरव्यानोनियोजनसहस्त्रारापूर्वमंदरचूलिकाया उपरिपर्यतिरित योगसंख्यातानियोजनसहस्राणियंतराणामष्टविधानांजघन्योवाधिःपंच विशतियोजनानि उत्कृष्टोस्पसंख्यातानियोजनसहस्त्रारपधा। उद्धव Page #887 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नस्योपरिपर्यंतरितयंगसंख्यातायोजनकोटीकोद्यःज्योनियोजघन्योवधे, रघासव्ययानियोजनाएकृष्टयासंख्येयानियोजनसहस्त्राण्यूही मारमा यविमानस्योपरिपर्यंतःतियंगसंख्यातायोजनकोठीकोवःवैमानके सौधर्मशानीयानांजघन्योवधिज्योतियामकृष्टः रत्ननभाया अधारम उत्कृषःसानमारमाहेन्द्रागांजघन्योवधिःरनषभायाअधश्चरमार स्कृष्टःशर्करानभायालयश्चरमब्रह्मब्रह्मोत्तरलोतवकापिय्यानांजच न्यावधिः। शरिषभाया अधश्चरमनवटावालकाजभायाअधश्च रमा लक्रमहाशुक्रसतारसहस्त्राराणाजघन्यायाधिवलिकप्रभायास धश्वरमनकृष्टपेकसभायानिश्चरमउन्कृयपंकनभायामिवचारमः लानतलागातारगायतानाजघन्योवधिपकपभायाप्रधश्चरमाउकृष्ो धूमनभायाअधश्चरम उत्कृष्टःनवानागवेयकानांजघन्योवाधिईम सभायामधश्वरमः उन्कयतमःखभायामधचरमःनबानामवधि Sunaulusara Page #888 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. શ दिशानांपंचामुत्तरविमानवासिनां चलो कनालिपर्यंतोवधिः सौधर्मादीनामं उत्तरांना नाऊ खविमानस्पोपरिपर्यंतस्तिगिरी ख्याता यो जन को टीको द्यः अर्थी कालद्रव्यभावेष्य को वा धरित्यन्नोच्यते। यस्पयांव क्षेत्रावधिरत अस्पतावदाकाशप्रदेशपरि॥ छिन्ने कालद्रव्ये भवतः तावत् सुसमयेय्वतीते व्वनागतेय्पुचज्ञानंवर्त्तते। तावदसंख्या तसे देवनंतप्रदेशेख। पङ्गलस्कंधे जीवेाच सकर्मके खभावतः खविययपद्गलस्कंधानां रूपादिविकल्पे खजीवपरिणामेषु चऊयिकी पशमिकक्षायोपशमिके ॥ यो जनमग च्यूत ही नमागच्यूतात्तद्यथारत्नप्रभायां यो जनमवधिरधः द्वितीयायामधी चतुर्थीनिगतानित्यत्तीयायामंधः श्री गिब्यूतानि चतुर्थ्यामधोई ती यानिगव्यू तानि पंचम्पांग व्यू तेयाद्या मधोर्द्वाधिकंगव्यूतं ससम्पूमधो जपूत सर्वाष्टथिवीखनारकारणामेवधिरुपरि आत्मीयनरकावासो येगसंख्यातायोजनको टीकोद्य कालद्रव्यभावपरिमाणं पूर्ववद्वेदितव्य Page #889 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARVINAMInarutmanasiummeensnaraurmusativeneraMISTRIPATHINmarh दिभवपत्ययोवाधिवनारकाणामटाक्षयोपशमहेनुका कियामित्यतमाहः क्षयोपशामिनबाहेल्बापो अवधिज्ञानावरणस्पदेशघाति स्पईकानामदयेसतिसर्वघातिस्पईकानामदयाभावसशेषारांवोदितव्याः केपन:शेवाःमनपानिर्येचचशेयारततरतेषामविशेबात्सर्वयोतिरचोम नव्यागांवावधिप्रसंगइतितन्तर्विकारणातत्सामर्थ्यविरहात्नयसंज्ञिना मपर्यासकानांतरसामर्थ्यमस्तिसशिनांपर्यासकानांचसयोंकेयाताहिय योक्तनिमित्तसंनिधानेसतिशोत क्षाणाकर्मांतस्योपलश्रेः यथोक्तसम्म ग्दर्शनादिनिमित्तसैनिधानेसतिशीतक्षायाकर्मगोतस्योपलचिर्भवतिननस वस्यक्षयोपशमनिमित्तलत्रकिमच्यते क्षयोपशमनिमित्त शेवाणामिति सर्वस्पक्षयोपशमनिमित्तत्वेतवचननियमामिनक्षवता ययानकशिदपी नभक्षयतीत्यवग्यहाँनियमाीक्रयते अपरावभक्षयतातितथासर्वक्षयो पशमनिमित्तरमहरगोनियमार्य क्षयोयशमनिमित्तागवनभवनिमित्तरति a m e: Page #890 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जवा• a सराबोवधिः ' षड्डिकल्पः कुतः अनुगाम्पननुगामिवर्द्धमान ही यमानावस्थि तानवस्थितभेदात्वधिः कश्विदंवधिर्भास्करज काशबनम नगछति क श्चिन्नानुगतितत्रैवातिपतति उन्मुख प्रश्नादेशिक पुरुयवचनवत् अप बधिररशिनिर्मथनोत्यन्नष्ठाय्कपत्रोपचीयमानेधननिचयसमिद्वपाचक वत्सम्यग्दर्शनादिग्राविवद्विपरिणामसंनिधानाद्यत्परिमाणउत्पन्नस्तेावई तेआअसंख्येयलोकेभ्यः परोवधिः परिछिन्नोपादानसंतत्यग्निशिखा || वत्सम्यग्दर्शनादियहानिस क्लेशपरिणाम विवृद्धि योगाद्यसमाशउत्पन्नस्त तो हीयते आग्रलस्पासंख्येयभागात इतरोदधिः सम्पदर्शनादिगुणाव स्थानाद्यत्परिमाणउत्पन्नस्तत्परिमाणाएवावतिष्टतेनही यते नापिवर्द्धतेलिं गवदाभवक्षयादा केवलज्ञानोत्पत्तेची अन्योवधिः सम्यग्दर्शनादियादि हानियोगात् यत्परिमाणउत्पन्नस्ततोवर्द्धते पावदनेनवर्द्धितव्यही यत्तेचयाव दनेनं हातव्यंवायवेगप्रेरितज लोर्भिवदेवंयद्विकल्पो वधिर्भवतियनरपरेव Page #891 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धेस्त्रयोभदाणदेशावधिपरमावधिः सविधिति तत्रदेशावधिस्त्रेधाजघ न्यउत्कृष्टः अजघन्योत्कृऐति, तथापरमावधिरपित्रिधा सर्वविधिरविक' ल्पखादेकरवउत्सेधागलासरख्पयभागक्षेत्रादेशावधिर्जघन्यः उत्कृप्याक हमलोकरतयोरतरालेसंख्ययविकल्पलजघन्योकृष्टझपरमावधिजघन्य एकप्रदेशाधिकलोकाक्षेत्र उत्कृष्टोऽसंख्ययलोकक्षेत्र अजघन्योलो मध्यमक्षेत्रमा उत्कृष्टपरमावधिक्षेत्रावहिरसंख्यातक्षेत्रसविधिर्वईमानो हायमान अवस्थितम्सनवस्थितामनगाम्यननगामासतिपातिषतिपाती। तियतअष्टोदादेशावधेर्भवतिहायमानप्रतिपातिभेदवदितरेबड़ेदाभव तिपरमावधेरवास्थितीअगाम्पननगाम्पपतिपातीत्येतेचत्वारभदा-सर्वावधे स्तत्रबडाद्याउलक्षण खतिपातीतिविनाशीविद्युत्यकाशवत्वत्तहिपरीतो प्रतिपातीतत्रदेशावधेः सर्वजघन्यस्पक्षेत्रमत्सेधागलस्पासस्पेयगशाला वालकायाअसंख्येयभागाकालमंगलस्यासंख्येयभागक्षेत्रपदेशनमायो|| CHAMPARELATrendeme Page #892 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. द्रध्यंतत्वमारणपरिछिन्लेब्वसंख्येयेरकंधेवनंतपदेशेषज्ञानवर्ततेस्खविषय स्कंधगमानंतवादिविकल्योभावरलस्पद्विरुच्यतेपदेशोत्तरक्षेत्राद्धिारित एकजीवस्पनानाजीवानांघुपदेशोत्तरक्षेत्रवृद्धिर्भवतिभासर्वलोकादेकजीव स्यत्वेगलासंख्येयभागादू विशुद्विवशामंडूकप्त्यांगलासंख्पेयभागक्षेत्र वृद्धिर्भवत्यासर्वलोकान्लानाजीवाअपिवदेशोत्तरधानावहईयोतेयावदेश लस्यासंख्ययभागःकालाद्विरेकजीवस्यनानाजीवानांवामोलादावलिकाला ख्ययभागावक्विचिदेकसमयोन्मराक्वचिहिसमयोत्तराक्वचिसंख्ययसम योत्तरायावदावलिकायामसंख्ययभागासयक्षेत्रकालाहिकयाब्रह्माचल विचयाख्येयभागबधासंपेयगणधासंपेयगावद्यावावंदव्यमयि वईमानंचतुर्विधयावृधावईतभाववाहियोटाअनंतभागवतिरसंख्ययभाग सयेयभागहिःसंख्ययणगादिरसरमेयगणावहिरनंतगावद्धि रितिश्नयाक्षेत्रकालदष्पभावहयोक्तयामासर्वलोका Page #893 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रपितयेवयोंगलसंख्ययभागक्षेत्रोवधिस्तस्पावलिकायासंख्पेयभागकालः अंग्रलसंख्ययभागक्षेत्राकासदेशनमाणोद्रव्यंभावन वर्वादनतोवास्यादर्स ख्ययोवास्पात्लेख्ययावास्याद्योगलमात्रक्षेत्रोवाधिस्तस्पयनामावलिकाका लाद्रव्यभावीपूर्ववद्योगलष्टयक्षक्षेत्रीवाधरतस्यावलिकाकालाद्रव्यभावी पूर्ववद्याहरलप्रमाणाक्षेत्रोवधिस्तस्पावलिकाययकंकाल द्रव्यभावीपूर्वव द्योगव्यूतिमात्रक्षेत्रोवधिरतस्पसाधिकोछासनकालाद्भव्यभावीपूर्ववत यो योजनमात्रक्षेत्रावधिरलस्पभिन्नमहूर्तमकालाद्रव्यभावोपूर्ववद्यापंचविं शतियोजनप्रमाणाक्षेत्रोयधिस्तस्पेबदनोदिवसभकालादध्यभावीपूर्ववद्यौ भरतक्षेत्रमात्रोवधिस्तस्पाईमासकालाद्रव्यभावोपूर्ववरयोजवहीपमात्र नोवाधिस्तस्पसाधिकोमास कालःद्रव्यभावीपूर्ववधोमुनव्यलोकमात्रक्षे| त्रिोवधिरतस्पसंवशर कालन्द्रध्यभावीपूर्ववरायोरुचकंतप्रमाणाक्षेत्रो वधिलस्पसंवत्सरयष्यकालाव्यभावीपूर्ववर यासेरव्येयहीपसमुद्र RadmaanRRAINon Page #894 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा क्षेत्रोवधिस्तस्यासंख्यया:संवत्सरा:कालःद्रध्यभाधीपूर्वरियोसरव्ययद्वीपसम द्रक्षेत्रोवधिस्तस्यासंख्ययागसेवत्सराकाल द्रव्यभावीपूर्ववर एवंजघन्यो कृष्टनियनरागांदेशावाधरुक्त आधानिरण्वामत्कृस्टदेशावाधिरुच्यते क्षेत्रमसरव्येयाद्वीपसमद्रा-कालोय्पसंखयामसंवत्सगंजःशरीर गोद्रव्यं कियच्चतदसंख्ययद्वीपसमन्नाकाशसदेशपरिछिन्नाभिरसंख्ये याभिरतेजः"शरीरद्रव्यवशाभिर्विर्तिततावदसपियरकंधाननंतप देशाजानातीत्यर्थ:"भावपूर्ववत्तिरचामनव्याणीचजघन्योटशाव धिर्मभवतितिरश्चोतदेशावाधरेवनपरमावधिनापिसविाधिःप्रथम नष्पारामकृष्टोदेशावधिरुच्यते क्षेत्रमरिमेयाद्वीपसमा कालो प्पसंपया संवत्सरो द्रव्येकामणिाद्व्यकिपच्चत्तदसरयेयद्वीपसमन्दाका शपदेशपरिछिन्ताअसंख्येयाज्ञानावरादिकामगाद्रव्यवशाभावम्पू वर्वदेवदेशावाधिरुकृष्टोमनपारगासयतानीभवतिपरमावधिरुच्यते Page #895 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जघन्यस्यपरमावधाक्षेत्रप्रदेशाधिकोलीकाकालःसदेशाधिकलोकाकाशप्रदे: शावतसमागअविभागिनःसमयारनेचासंख्याताःसंवत्सराःद्रयंजदेशा धिकलोकाकाशपदेशावधतत्रमार्गाभावःपूर्ववदतनापरक्षेत्रवाहिन्लानाजीवे कजीवानामविशेषेणविशुद्धिवशादसंख्येयालोकाचारवंतावदसंख्येयालोका टाद्विर्यावदकृष्टपरमावधिक्षेत्रकियंतश्चमसंख्येयानामावलिकायाासस ख्येयभागषमागासकालद्रव्यभावामापूर्ववदुष्टपरमावधे क्षेत्रंसलोकालोक समागाअसंख्ययालोकाशयितरलेश्प्रस्तिजीवतुल्याकालद्रव्यभावासापूर्वव सरायत्रिविधोपिपरमावधिरुकृपचारित्रयकस्पेवभवतिनान्यस्पवर्द्धमानोभ वतिनहीयमानःअप्रतिपातिनप्रतियातियस्पयावनिसलोकेलोकसमारणासये यलोकक्षेत्रेजातस्तस्यताघस्यवस्थानादवस्थतीभवत्यनवास्थितश्चवहिपतिन हानिमहलोकिकदेशोतरगमनादनुगामिधारलोकिकदेशांतरानुगमनामावाद ननुगामिसर्वावाधिरुच्यते) असंख्ययानामखेयभेदत्वादुकष्टपरमावधिक्षेत्र Page #896 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. मसरव्येयलोकगणितमस्यक्षेत्रकालद्रध्यभावागावरसण्यनवईमानोनान हायमानोनानवस्थितीनसतिपातिवायतभवक्षयादवस्थितोऽसतिपातिभ वांतरजत्यननगामिदेशोतरखत्यनुगामिासर्वशब्दस्पसाकल्पवाचिवाव्यक्षे कालभावैः सर्वावधेरंत:यातिपरमावधिशामतःपरमावधिरपिदेशावधि रपिदेशावधिखेतिद्विविधरवावधि सविधिदेशावधिश्वोक्तायोवृद्धीयदा कालहिस्तदायतुरामिपिद्धिनियताक्षेत्ररद्धोकालाद्विज्यिास्पात्कालह मस्यालेनिद्रव्यभावयोवद्विर्नियताद्व्यहोभावहाहिनियताक्षेत्रकालव विपन ज्यास्याद्वानवेनिभाववृद्धावपिद्रव्यहाद्विनियानाक्षेत्रकालाहिर्भा । सारापोवधिज्ञानोपयोगोविधाभवति। एकक्षेत्रीनेकक्षेत्रश्नश्री क्ताद्यन्यतमीपयोगोपकरणाएकक्षेत्रः तदनेकोपकर रणोपयोगोतकक्षेत्रायद्येवंपरायत्तत्वात्परोक्षत्वप्रसंगा नेद्रियेयपरत्वम्टेई द्रियाशिम्परागपाहरिंद्रियोभ्यः परंमन:मनसम्परखहिर्वन परतरोहिसइये Page #897 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वबहुधा व्याख्यातं अवधिज्ञानंमन पर्य्यय स्पेदानीमवसरजातस्तस्प भेदपुरा सरं लक्षणांव्याचिख्यासुरिदमाह मशविरा शमतीमनः पर्यायः ॥ ऋज्ञी निवर्त्ति तारणाचक स्मान्निवर्त्तितवाकायमनस् तार्थस्यपरंमनोगतस्पविज्ञानाह श्रीमतिर्यस्य सोयम्टजुमतिः॥अनिवर्त्तिता कुटिला चविपुला कस्मादनिवर्तितवा कायमनस्कृतार्थस्थिपरकीयमनोगत स्पविज्ञानाद्विपलामतिरस्यसविपुलमत्तिः रुजुमतिश्वविद्यलमतिश्चक्र जुविपुलमती एक स्पमतिशब्द स्पगत्तार्थत्वादप योगः। अथवा जुश्व विपलाच विषले विषलेमतीययोद्योज विप्रलमती इतिसएषमनः पर्ययो द्विधा रु जुमतिर्विष लमतिरिति । अत्रोक्तोभे दः लक्षणमस्येदानी वक्तव्यमित्यत्रोच्यतेमन संबंधेनल हत्तिर्मन:पर्ययः वी येत्तिरायमनपर्ययज्ञानावरणक्षयोपशमांगोपांगनाम लाभीपष्टंभादात्मीयप रकीयमानसंबंधेनलचत्तिरुपयोगोमनः पर्ययः मतिज्ञानप्रसंगइति चेन्ना न्यदीपमनोपेक्षामात्रत्वादभचंद्रव्यपदेशवर स्यान्मतंयथामनश्रादिसं Page #898 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. वंधावक्षरादिज्ञानमाविर्भवतितन्मतिज्ञानंतथामन:पर्ययोपिमनःसंबंधा लवत्तिरितिमतिज्ञानानोतीनितन्नविकारणासन्यदीयमानीपेक्षामा त्रत्वात्कयमचंद्रव्यपदेशवद्ययात्रेचंद्रमसंपश्यति मन्त्रमयेक्षाकारणा मात्रभवतिनचचक्षरदिवलिवको चंद्रज्ञानस्पतयान्यदीयमनोय्यपेक्षा कारणामात्रभवनिपरकीयमनसिव्यवस्थितमर्यजानातिमन:पर्ययइनिता तोनास्यतदायत प्रभवतिनयतिज्ञानसंगःखमनदेशेवातावरणकर्मक्ष योपशमव्यपदेशाच्चक्षव्यवधिज्ञाननिदेशवर अथवाचक्षद्देशस्थानां | मात्मपदेशानामवध्यावरणक्षयोपशमाद्ययाचक्षव्यवधिज्ञानव्यपदेश छ नचावधितिवितितयामनःपर्ययज्ञानावराक्षयोपशमाखम नोदेशारथानामात्मनदेशानामनीपर्ययव्यपदेशोनचास्पमतिखमनःप्रति बंधज्ञानादलुमानप्रसंगरतिवेलसत्यक्षलक्षणाविरोधार स्या । धूमपतिबंधास्मसंयटक्केनावनमान तथान्यदीयमानःअतिर्वधात्तन्मनः Page #899 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - संयतानाजानन्मनःपर्ययोनमानमितितलविकारातत्यक्षलक्षणा विरोधाद्यतत्यक्षलक्षणामक्तमिद्रियानिद्रियनिरपेक्षमतीतथ्यभिचारमा कारणहाप्रत्यक्षमितितेनाविरोधोनमनःपर्ययो भवमानहितेनविरुध्य ते उपदेशपूर्वकत्याचक्षरादिकरणनिमित्तत्वादानुमानस्सउपदेशादिप्रय मग्निरयधूमनत्यपलभ्पपश्चादमदनादग्नावनमानकरोतिचक्षरादिक रासंबंधाचततोस्योक्तंप्रत्यक्षलक्षाविरुध्यनेनचतथामनापर्ययउप देशचक्षरादिकरासंबंधेचापेक्षते सवेधास्त्रीकविकल्पात्शमनःपर्य योवेवाकतःस्त्रोतविकल्पाहडमतिर्विपलमतिरिति आधस्त्रेधाजमनीया वायविययभेदाद्यराजमतिमनापर्ययस्वेधकतरजमनोवाक्वायवि ययभेदादजुमनस्कतार्थतःजवा कृतार्थ रजकायकृतार्थज्ञश्चे तद्यथामनसार्थव्यक्तंसंचिंत्यवार्चवाधर्मादियुक्तामर्सकीयमच्चार्यकाया प्रयोगचोभयलोकफलनिष्पादनार्थमंगोपांगप्रत्यंगनिपातनाकंचनप्प Page #900 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा.. सारशादिलक्षाकृलापनरनंतरेसमयेकालोतरेवातमेवाचिंतितंठक्तं कृतवावि रमतत्वान्तशक्तोतिर्चितयितुतमेवेविचमर्थरजमतिमनःपर्यया प्रयोऽप्यो वाजानातिसपर्मसावर्थअनेनविधिनात्वय्याचिंतितःउक्त कत्तीचेतिकयम यमलम्पतेनागमाविरोधादागमेयुक्तमनमामनःपरिछिद्यपरेयोसज्ञादी नजानातीतिमनसालमात्मनेत्यर्थःपरमनासमंताद्विदित्वापरिनियमनसार्चि तितस्पसचेतनेतरस्पायस्पमनस्पवस्थानान्मनोव्यपदेशामचरथानापरुषा गोमय्यपदेशवमात्मनाभस्माक्युध्यात्मनापरेयोचर्चिताजीवितमरणासस दु:खलामालाभादीविजानातिव्यक्तमनसोजीवानामर्थ जानानिनाध्यक्तम नमोव्यक्तःस्फुलाकृती चिंतयासनिवर्तितनयरलेजीवापतमनसस्लेरय चिंतितरजमति नातिनेतरेकालनोजघन्येनजीवानामात्मनश्चद्वित्र 'एयरकपैगामसायानिभवग्रहणानिगत्यागत्यादिभिषरूपयतिक्षेत्रत्तोज व्यूतिययकस्याम्पत्तनवहिरूस्कयैगायोजनय्यक Page #901 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहि द्वितीयःयोलारजवक्रमनीवाक्कायविषयभेदाहितीयोविपलमतिःयोटाभि द्यतेकतारजुवक्रमनोवाक्वायविषयभेदादजविकल्या प्रतिविक्रविकल्पा श्चतद्विपरीतायोज्यागतयात्मनःपरेयांचविंताजीवितमरणासखडाखलाभा लाभादीनव्यक्तमनोभियतमनोभिश्चर्चितितारजानातिविपलमतिकाल तोजघन्येनसमाययानिभवनहगारपत्कर्षशासख्ययानिगत्यागातिभिःापरू पयतिक्षेत्रतोजघन्येनयोजनपथचमत्कवैशामानयोत्तरशैलाभ्यंतरेनयहि एवं हिभेदोमनःपर्ययोवशितिरलस्यकिपरस्परतोविशेयोतिउत्तनास्तीत्यतमाह विशुध्यसानिमाविरोधातावरणकर्मक्षयोपशमेसनिआत्मनः |प्रसादीविचद्धिःपतिपतनखतिपात उपशीतकमायस्पचारित्रमोहानेकात्य सतसेयमाशिवरस्पषतिपातोभवनिक्षीयाकवायस्पजतिपातकारणाभावाद प्रतिपातवियश्चिअपनियातश्चविद्यापतिपातीताभ्योविश्वासतिपात पौतयोविंशयातदिशेया पूर्वसूत्रस्वतयोर्विशेषोनितिन किमर्थपुनरिदमय MAHARAMBINIREmraanaSAMAMAINARODAMADHAARARRARIABAD Page #902 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. विशेयोत्तरपतिपत्यर्छपनर्वचनंया पूर्वसूत्रविशेयउक्तरतावनास्पनपरितोय स्तनोविशेयोतरपतिपक्ष्यर्थपनरिदमध्यते॥चशब्दप्रसंगइतिचेन्ननाथमका, कभेदाभावाचायथामनःपर्ययस्परजुविएलमत्तीभेरौतथाविशद्धाजतिया तावपितस्पेवयदिभेदीस्पातायक्तश्चशब्दःस्यायतस्तुविशुद्धप्रतिपातौर विपलमत्याविशेयोनभेदावतश्वशब्दावसंगतनविशुद्ध्यानावरूजमतो. लमति व्यक्षेत्रकालभावर्विद्धतरः कथमिहयाकाम्मरणद्रव्यानंतभागोत्यः सर्वावाधिनाज्ञातस्तस्पयनरतभागीकृतस्पमनापर्यय योनंतभागोतस्याने तभेदत्वाजमतिकार्मरणद्रव्यानंतभागाइरविषहस्टोल्पीयाननंतभागोविण लमते व्यक्षेत्रकालविशुद्विरुक्ताभावतोविशुद्विरुक्ताभावतीविशाहिसक्षम तरद्व्यविषयत्यादेववेदितव्यापकष्टक्षयोपशमविष्यद्विभावयोगादपनिपा तेनापिविष्लमतिर्विशिष्टःस्वामिन प्रवर्द्धमानचारिचोदयत्वारजमनिपुनः प्रतिपातिीस्वामिनीकमायोद्रेकाद्वीपमानचास्त्रिोदयत्वाद्ययस्यमनत्यर्यय Page #903 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्यपत्यात्ममयं विशेषः॥ अथानयोरवधिमनः। पर्यययोः कुतोविशेषइत्यतसा हा विशुद्धिक्षेत्र स्थामि विप्रयेपौवधिममः मयेयथेो॥ विशुद्धिः प्रसादा क्षे त्रयत्रस्थाना वान्प्रतिपद्यतेखामी प्रयोक्ता विषयो ज्ञेयः अवधिज्ञानान्मनः।) पर्ययस्पविष्द्यभावोत्पद्गव्यविषयत्वादितिचेन्नभूया पर्यायज्ञानात्तस्यात्म तमवाधतानात्मनः। पर्ययोविष्य दूतरः कुतः अल्पद्रव्यविषयत्वाद्यतः सर्वा बधिरूपिद्रव्यानंतभागोमनः पर्ययद्रव्यंनितन्मकिं कारणंभूयः पर्यायज्ञाना द्यथाकश्चिद्वहूनिशास्त्राणिव्याचष्टे एकदेशेननसाकल्पेननगनमर्थशक्तोति वॐ अपरस्ते के सार साकल्पे नव्याचष्टेयावतस्तस्पायरतात्सर्वान्दशक्ती ति वक्तं प्रयंपूर्वमाहिष्णुतरविज्ञानोभवनि तयावधि ज्ञानविषयान भागी पिमनः। पर्ययोविशुद्वत्तरः यत्तस्तमंतन भागरूपादिभिर्ब्रहभिः पर्यायः पुरु पयनिक्षेत्रमक्तंविययोवक्ष्यते खामित्वंप्रत्युच्यते विशिष्ट संयम ययौ कार्यस मवायिमनः पर्ययः विशिष्टः संयमग्ररणोयत्र विद्यते तत्रैववर्त्ततेमन:पर्यय Page #904 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा १०३ विभवतिनदेवनारकतिर्यग्पोनेयमनव्येयचोत्पद्यमानीगर्भवत्पद्यतेनसन छनजेयगर्भजेयूत्पद्यमानः कर्मभूमिजेयूत्पद्यतेनाकर्मभमिजेयकमामिले यूत्पद्यमानःयासकेयूत्पद्यतेनापोसकेपजायमानः सम्यग्दृर्षिखूपजा योनमिथ्यादृषिसासादनसम्परष्टिसम्पमिय्यादृष्टिषसम्पग्हरियूपजायमां नासंपनेयपजायतेनासंयनसम्परहटिसंयतासंयतेषसेयतेखूपजायमाना प्रमत्तादियक्षीयाकवायांतपजायतेनोत्तरेषतत्रीचीपजायमानः चारित्रेयपजायतेनहीयमानचारित्रेयसपवद्धमानचारित्रेषपजायमान:स सविधान्यतमईिपासेयजायतेनेतरेख हिनामिययकेवाचलसीचतिवि शियसंयमग्रहावाककृतमवाधनसुनश्चातगीतिकचितिखामिभेदादय्पन योविंशयन इदानीकेवलज्ञानलक्षणाभिधानंपाकालतलंध्यज्ञाना । ययनिधपरीक्षपति कत्तलस्यमोहमयाज्ञानदर्शनावरणीतरायक्षयाञ्चक क्लमित्यवक्ष्यमाणावाद्ययेवमाद्ययोरेवतावन्मति Page #905 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aamromema च्यतामित्यताहमा यो खोट्येष्ववपर्याय निवंधननिवं - धाकस्पमनिश्लत्तविषयस्पतन्तहिविषयग्रहणकत्र्तव्यनकर्तव्यंजत्यासत्तेः पवतविषयग्रहणाभिसंबंधापकतविषयग्रहणामनिवसकतविशहि क्षेत्रवामिविषयेभ्पनातितत्रपत्यासत्तेनाचियग्रहणामिहाभिसर्वध्यतेननचसा विभक्ततरनिर्दियोनशक्यतरहसंबहुंमर्थवशाहिमकिपरिणाम यथाउच्चानि देवदत्तस्पायहाशिलामंत्रयस्वैनदेवदत्तमिनिगम्पते देवदत्तस्मगावीश्वाहिर एयमाद्योवैधवेयोदेवदत्तरतिगम्पते एवमिहापिनिबंध:कस्पविषयस्पेत्यभिी संर्वध्पतीपथव्येवितिवहत्यनिशान किमर्थ द्रव्येष्विनिवहत्वनिर्देशसर्व द्रव्यपर्यायसंग्रहार्थजीवधर्माकाशकालपजलाभिधानानियन्त्रद्व्याणिते बांसवेवासंग्रहार्छनद्रव्यवितिवहत्वनिर्देशभक्रियतेतविशेषशामिसर्वपि यायग्रहानेयोगव्यायामविशेषेरामनिवनयोविषयभावपसंगतावशेषणा मसर्वपर्यायग्रहणक्रियते तानिद्रव्याणिमतिश्चन्तयाविषयभावमापद्य Page #906 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिया मानानिकतिपयैरेवपर्याययियभावमा दैनिनसर्वपर्यायेरनरपातितकयमिह १०५ मनिश्चक्षरादिकरणनिमित्तारूपाद्यालवनासायमिन्द्रध्यरूपादयोवतनतत्र सर्वान्यायानवग्रहानिचक्षरादिविषयानेवालवतेश्चतमपिशव्दलिंगेशमा श्वसवैसंख्याण्वन्दव्यपीय नन्सयानंजभेदाःनतेसवैविशेवाकारे निर्विषयीक्रियते च यमवणिजाभावाप्रातभागोदअभिलय्या गोपणाविणिजागोषणामातभागोसदाशिवंधोत्ति अंतीद्रियेयमतरंभावात्स वद्रव्यासंयत्ययरतिचेल नोइंद्रियविषयत्वात्स्यान्मत धर्मास्जिकायादिख मोरभावअनादियत्वाकृतीमतिः सर्वद्रव्यविषयानिधेतिलक्षणामयुक्तमि नितलर्किकारनौरंद्रियविषयत्वारे नोद्रियावरणाक्षयोपशमलचपेक्ष नोईद्रियतेषध्यापियने प्रयाहिनवनवनावधिनासहनिप्रिपेतरूपिचिव वृत्ते अद्यमतिश्चत्तयोरनंतरनिर्देशाईस्पावधैःकोविययनिर्वधरत्यता हराचन रूपशब्दस्पानेकार्थत्वेसामथ्पोछल्लादिगाहणीप्रयंरू Page #907 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पमनंतस्वभामितितहसामर्थ्याचक्षयियेशलादीवर्तमानीग्राह्यतेयदिखभाव वाचिनोग्रहास्पादनकस्यालहिकस्पचिस्वभावोनारनीतिमायनेकार्यसे भवनित्ययोगोभिधानवंशाद्यद्यपिमत्वथायस्पभूमादयोविहवःसंभवति । हाभिधानवशालत्ययोगोवेदितव्यनित्यहिपहलायत्तारूपेगोतियथाक्षी गोवृक्षारतियद्येवमानाधिज्ञानस्पपगलारूपमखेनैवविषयभापतिपद्ये रननेरसादिमखेननैयदोबस्तदुपलक्षार्थत्वात्तदविनाभविरमादिगहरण तर्पद्रव्यस्पोपलक्षात्लेनीयातीयतेतरलदविनाभाविनोरसादयोपिम् यते यद्येवंतगतषसर्वेयनतेयुपर्यायव्यवधेविषयनियमाप्नोतात्य तपाहा असर्वपर्याययग्नहगामवृत्तेलसर्वगति असर्वपर्यायविनियत ग्रहणामनवर्ततो यथादेवदत्तायगोहीयताजिनदत्तायकवलतिलायती मित्यभिसवंध्यतेरावामिहाय्पसर्वपर्यायोचिस्याभिसर्वधात्तसर्वगतिविति ततोरूपिवपद्लेषायतन्नध्यादिपरिमागोयजीवपर्यायेखऊदाधिको Page #908 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा· १० | पशमिकक्षायोपशमिके खत्पद्यते अवधिज्ञानरूपिद्रव्य संबंधान्त क्षायिक पा रिणामिके खनापिधर्मास्तिकायादियुत्तरसंबंधाभावात्॥ अथमतः॥पर्ययस्य विषयनिबंधइत्यत आह । तदनं न भागमनः पर्यवस्यः ॥ यहूषिद्रव्यं सर्वा ज्ञानस्यविषयत्वेनसमर्थितंतस्यानंतभागीकृत स्पएक स्मिन्नागमनापर्यय प्रवर्त्ततेोमयां तेयन्निर्द्दिव्यं केवलज्ञानं तस्पको विषयनिबंधइत्यत आह ॥ स वंद्र मयेषुके बलस्य ॥ अत्राह किं द्रव्यंखपर्यायान्द्रयतिद्वयते वातैरिति द्रव्यं आत्मनः पर्यायान्द्रवतिगच्छतीतिद्रव्यं बहुलापेक्षया कर्तरिसाधुत्यते वातैरितिद्रव्यं कथंचिद्भेदसि । तत्कर्ट कर्मव्यपदेससिद्विः द्रव्यस्पपर्यायाणां चकथंचिद्रेदेत्युक्तः ककर्मव्यपदेससिद्ध्यतिइतरथाहितदप्रसिद्धेत्येता व्यतिरेकाद्यद्येको तेने कत्वमवधायेत्तस्यकटक मध्यपदेशाप्रसिद्धिः स्पाक्ततः अत्यंताव्यतिरेकान्नहितदेवनिर्विशेषमेकंशक्त तरायेक्षयाविनाक कर्मच भवितुमर्हति समथक पर्यायस्तस्पतियो भवनंस्रुतिविरोध्यविरोधिनोधर्मारिणां Page #909 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपातानुपातहतकानाशब्दोतरमलाभभिमित्तवादर्पितव्यवहाहेरविययोवा स्थाविशयापर्यायःभियोभवनंपतिकेचिदमर्माविरोधिनः केचिदविरोधिन:त वजीवस्पतावदनादियारिणामिकवेतन्या जीवद्रव्यभव्याभयोईगतिखभावास्ति स्वादिभिरौदयिकादयोभावायथासंभवंयुगपदावादविरोधिनोविरोधिनथ्यना रकतैयारयोनदेवमनुष्यस्वीपनघुसकराकद्वित्रिचतुपंचेंद्रियवाल्यकोमा | रकोपषसादादयासहानवस्थानान्तथापोहलिकाअनादियारिगामिका:रू परसगंधस्पर्शशब्दसामान्यालित्वादयः। शुक्लादिपेचकतिक्तादियंचकगंध हयस्पर्शाटकशब्दबहपर्यायः प्रत्येकमेकहित्रिचतु पंचादिसंख्ययानेतण गापरिणामिभिर्यथासंभवयुगपदावादविरोधनोविरोधिनश्चललकलनीला तिक्तकदुकसरभेतरगंधादय प्रायोगिका वैवासिकश्चपरमारणखस्कंधेष चसहानवस्थानादेवधर्मास्तिकायादिव्वय्पमूतत्वाचेतनत्वासंख्येयपदेशव गतिकारशाखभावास्तित्वादयध्यनंतभेदागरुलघुगणहानिदिविकारैः। Page #910 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजधा. पत्ययैपरमत्ययैश्चगतिकारात्यविशेषादिभिरविरोधिन परस्परविरोधि नश्चयाःतेयकेचिदपातहतकाद्रव्यक्षेत्रकालभावानिमित्ताऊदयिकार यमनपातहतकाश्यत्रियकालेयविकारिणः पारिणामिकाश्चैतन्यादयरने घोविरोध्यविरोधिनांचागामयान्तानयातहतुकानांशब्दांतरात्मलाभास्पनि मित्तत्वाच्चेतनोनारकोवालकरत्यपितिव्यवहारविययतिव्यवहारमनत्रा त्रिविधशब्दनयामक दध्यार्थिकानय्योगात्पर्यायार्थिकेनापितरतस्पविय यस्तस्पद्रव्यस्थावस्थाविशेषपर्यायइत्युच्यत तयोरितरेतरयोगलक्षणो . तयोरितरेतरयोगलक्षणोद्योवेदितव्यम्द्रध्याणिवपर्यायाचगव्यपर्यायाह तिद्वंद्वेन्यबंशक्षन्यगोधवदितिचेल तस्यकथंचिदेदेपिदर्शनानोत्याोपिव तस्यान्मतयदिवानक्षन्यग्रोधवदन्यत्वंद्रव्यपर्यायाराजामातातितन्नति कारगतस्पकर्यचिनेदेपिदर्शनारगोखगोपिंडवद्यथागोवंचगोपिंडण्श्वगोर पिंडाधितिअनन्यस्वेपिडोभवति तथाद्रव्यपर्यायश्चिनिननुसामान्यविशेय Page #911 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in momonaa- योरन्यत्वासाध्यसमेतदितिनैयदोयः। उतमेतदनन्यसामान्यविशेययोव्या महणोपर्यायविशेषणचेन्लानर्थयात्स्यादेतद्रव्यागांपर्याया:द्रव्ययर्यायाइनि द्रव्यमहरापर्यायविशेषामितितार्किकारणामानर्थवषादेवसतिद्रव्यगृहां मनर्थकस्यालह्यव्यस्पपर्यायानासंतीनेद्व्याज्ञानप्रसंगाच्चकेवलेनपर्याय एवज्ञायतनगव्यागीतिद्व्याशाजाप्नोतिउत्तरपदार्थधानत्वात्माअथमत मितत्सर्वेठपर्यायेयज्ञातयानकिंचिदेशातमानिततीव्यतिरिक्तस्याद्रव्यस्याभावा यद्येवंद्रव्यग्रहणामनर्यकमित्युक्तिपरस्तात्तस्मात्सायूक्तहहोयमितिननचई विपिद्रव्यग्रहणामनर्थपर्यायव्यतिरेकेणानपलचरिति यदीवाशाखा लक्षणमादिभेदा दोपफ्तेभाअयसर्वग्रहणकिमयेननवहवचननिदेशादेव ववहत्वसंप्रत्ययसिद्धनासर्वग्रहणौनिरवशेषमतिपत्यर्ययेलोकालोकवेदभि लाधिकालविययाद्रव्यपर्यायासनतासतेयनिरवेशयेषकेवलज्ञानवियय निर्वधनिषतिफ्त्यर्धेसर्वग्रहायावाल्लोकालोकस्वभावीनंतरजावतीनेता meas Page #912 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. नतो यद्यपियरतानपिज्ञानमंस्यसामथ्यमस्तीत्यपरिमितमाहात्म्पतत्केवलशा नवेदितव्योपाहविषयनिर्वधीवटतोमत्यादीनामिदंनुननितिएकमिंन्ता मनिखनिमित्तसैनिधानोयजनितहत्तीनिशानानियोगपद्येनकनिभवतीत्य तउच्यते॥एकादीनिभाज्यानिलगवदकामनावपक्षि एकतिकोयं शब्दः अनेकार्थसंभवेविवक्षातम्याथम्पवचनएकशब्दाअयमेकशब्दः नेकस्मिन्नरामयोगाविचिसंख्यायोवत्तिएकाहीवहवशनिवचिदन्य लेण्के प्राचार्या अन्येभाचार्यइतिक्वचिदसहायेएकाकिनरतेविचरतिवीराद निवचित्वाथम्मेएकमागमनखयममागमन मिति क्वचित्माधान्येएकहनासे नांकरोमिसधानहतासेनांकरोमात्ययोजत्रेहविवक्षातपयम्पवचनएकशब्दो वेदितव्या आदिशब्दश्यावयववचननामादिशब्दश्चायमनकासंभवविव क्षातइहाचववचनोवेदितव्यःक्वचिद्यवस्थायावततनायगादयश्चात्वारोव गणी:ब्राह्मणव्यवस्थाःब्राह्मणक्षत्रियवियनास्त्यर्याक्वचित Page #913 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AINRIME R दयापरिहर्तव्याभुजंगणकारावियवंतइत्यथीकचिसामाय्येनद्यादीनिक्षे वाशिनदासमीपानीत्यर्यविचिदंवयवेरशादिमधानेरूगवयवधीतरत्य गातेनैतहतभवतिएकस्पादिरेकादिषयमावयवरतिकस्यपथमस्पपरोक्ष स्पकःपुनरवयवामिनिसानसामीय्पवचनोवा अथवाभयमादिशब्दःसमा व्यवचनीद्रव्यतेनप्रथमस्पमतिज्ञानस्पश्रुतसमीपमित्यक्तभवतिमतेवहिर्भाव प्रसंगनिचेन्नानयोगसदाव्यभिचारातस्यादेतदेवसतिमतर्वाहभविापानोतीति तलर्किकारणानयोसदाव्यभिचारदेहिमतिशतेसर्वकालमव्यभिचारियाना रदपर्वतक्त्तरमादनयोरन्पतरग्रहणेरम्पमहासलिहितभवति ततोन्पय दान्तावकस्यादिशब्दस्पनिवृत्तिरुष्पखवधथानमरवडष्ट्रमखवन्यख मस्पतिस्तावेकस्यमखशब्दस्पनियुत्तिरेवमिहापिएकादियेयोतानीमन्येकादी। नीतिरकस्यादिशब्दस्पनिदत्तिरवयवनविग्रहसमदायोहत्यर्थअवयवेनधि ग्रहः क्रियतेहत्त्यर्थ समदायोभवतितेनैकादीन्यभ्यंतरीकृत्यभाज्यान्यर्य RamannesamagramusamuHI Page #914 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवाPola त्यर्थ। किंसर्वाशिनेित्याहा साचतुकुतएतत्' केबलस्पासहायत्वादित द्यौगपद्याभावः यत्रकेबले ज्ञानंक्षार्थि क तदसहाय मितराणिचञ्ज्ञानानिक्षयोपशमनिमित्तान्यतो नाभावाभिभूतत्वादहनिनक्षत्रवदिति चेन्न क्षायिक देतन्नाभावः । क्षायोपशमिकानोज्ञानानां केवलिनिकिंतु केवलज्ञानेनमहत्ता ऽभिभूतानिखपयोजनेन व्याप्रिये ते भास्कर भाभिभूतनक्षत्रवदिति तन्नर्किका त्वात्संक्षी रासक लज्ञानावरणे भगवत्पईतिकथेक्षायोपशमिका ज्ञानानांसंभवः नहिपरिषामसर्ववदौपदेपदेशाद्विरस्ति इंद्रियवत्वादिति चे न्नाथनिक्वी धा स्यादेतदेवमागमः ॥ टत्ता पंचेंद्रियाः असंज्ञिपंचेंद्रिया दारभ्पआयोगिकेवलिनइतिअनइंद्रियवत्वात्तत्कार्ये खापि ज्ञानेनभवितव्या तितन्नकिं कारयामार्या र्थानिवदोधा दावेहिसयोग्प योग केवलिनो> पंचिंद्रि यंत्रयुक्तंनभावेंद्वियंप्रतियदिहिभावेंद्रियमभविष्पदपितहसिंक्षीणसक Page #915 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लावरणासात्सर्वशवास्यन्यवर्तिव्यततरमादेतीभवतिएकस्मिन्नात्म निद्वेमतिथुनेकचित्राणिमतिश्चतावधिज्ञानानिमनिशुतमनापर्ययज्ञाना निवाक्वचिचत्वारिमतिश्चतावधिमनापर्ययज्ञानानिनपंचैकस्मिन्रयुगप संयंतीति संख्यावचनोचैकशब्द अथवासंख्यावचनीयमेकशव्दएकमादि ययातानीमानिएकादीनिकथमतिज्ञानएकस्मिन्नात्मनिएकंयक्षरश्वतंद्य नेकदादाभेदमपदेशपर्वतद्भजनीयंस्पादानवेनिजतत्पूर्वचदपर माह सेव्यासहायपाधान्पवचनेएकशब्देसतिएकादीनिकेवलादीनीत्याएकस्मि लामन्यैकेकेवलज्ञानक्षायिकत्वात्रमितिष्ठतरत्यादिपूर्ववर अयोकानिमा त्यादीनिशान्यव्यपदेशमवल तेउत्तान्ययापीत्यनमाह मलित्वावधयो विनाविपर्ययोन्यथाकतःसम्पगाधिकारांचशब्दासमुच्चयार्थः, वि पर्ययश्चसम्पतिकृतपनरेयाविषयीयमिथ्यादर्शनपरिग्रहात्मत्यादि विपर्ययायोसोदर्शनमोहनायोदयेसतिमिथ्यावनिपरिणाममातनसहै। Page #916 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. कार्थसमवायान्मत्यादीनांविपर्य्ययो भवति। ननुचमणिकनकादीनांव चेहिग १५० तानामपिस्वभावविनाशो न भवति तद्वन्मत्यादीनामपि स्पान्नैयदोषः सरजम कदुकालांबूगतदुग्धवत्सरणविना संशयथासर जसकटुका लावूभाऊने निहितंदुग्धे स्वापरित्यजति तथामत्यादीन्यपि मिथ्यादृष्टिभाजनगतानि दुष्यतीति आधारस्पदोषाहि । आधेयस्पदोषो जायते ननु चनायमेकांतउ तमेतन्मणिकनकादयोवच्चे ग्टहगता अपि स्वभावनत्य जंतीतितत्रकथमे तदवसीयते| आनंवृदुग्ध बहुष्पत्तिमत्यादीनि नपुनर्म्मण्पादिवन्तदुष्यंती तिपरिणामशक्तिविशेषात्परिणामक स्पहिवस्तुना शक्तिविशेषादन्यथाभा वोभवतिययालांद्रमंदग्धं विपरिणमयितुंशको तितामिथ्यादर्शनम पिमत्यादी मामन्यथात्वकर्त्तमर्लतद्द्ये अन्यथानिरूपणादर्शनाचेहिं तुमरपादीनीविकारन्यात्यादयत्तुमलं विपरिणामकद्रव्यसंनिधाने ते यामै पिभवत्येवान्यथात्वंयदानसम्पग्दर्शनंप्राद्भूतिदा Page #917 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |भावात्तेयांमत्यादीनांसम्पकमतःसम्पग्दर्शनमिथ्यादर्शनोदयविशेषात्तयां त्रयाणांविधाकृतिर्भवतिज्ञानमत्यशानंतनानंश्रुत्ताज्ञाने अवधिज्ञान विभंगशानमितिापत्राहरूपादिविषयोपलश्चिच्याभिचाराभावाविपर्पया भावःयथैवमतिज्ञानेनसम्पम्हटयोरूपादीनपल तथामिथ्यादृष्टयो पिमत्यज्ञानेनयथैवपटादिषरूपादीरतेननिश्चिन्त्यपदिशतिचपरे भ्यरतयात्रताज्ञानेनापि यथैवावधिनारूपिगोर्यानवयंतितथाविभेगेना पातित्स्मालातिविपर्ययनितसाहारविशनपल श्रुतवासछब्दस्पानेकाईसंभवेविवक्षातम्पर्शसार्थग्रहण येसछन्दोनेकार्थइतिव्याख्यातःगतस्पेहविवक्षातःपर्शसायस्परग्रहावे दितव्यप्रशस्ततत्वज्ञानमित्यर्थ असदज्ञानंतयो सदसतोरविशेषेणा यदृछ्यानपलश्चेःविपर्ययोभवतिकयमन्मत्तवघयोन्मन्तोदोयोदयाड पहत्तद्रियमतिविपरीतयाहीभवतिसोश्वेगोरित्यध्यवस्पतिवाअश्य Page #918 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा इतिलोटसुवर्णसवर्णलोट्टमिनिलोटलीष्टमिनिसुवर्णसवर्णमितितस्पेवमति शेयेगाध्यवस्पतःअज्ञानमेवभवति तहामथ्यादर्शनोपहत्तोद्रियमतमति श्रुतावधयोपिलाज्ञानमेवभवतीतिभवत्यर्यग्रहगोवाअथवासछोयंभ वत्यथैवेदितव्यसहिद्यमानमित्यर्थअसदाविद्यमानंतपौरविशेयेशायह छोपलञ्चेः धिपर्ययोभवनिकदाचिद्पादितदय्यसदितिपतिपद्यतेअदपि सदितिकदाचिन्नसत्सदेवासदय्पसदेवेति कृत 'प्रवादिपरिकल्पनाभेदादि पर्ययग्रह-प्रवादिनीकल्पनाभेदाद्विपर्ययग्रहोभवति तद्यथाकेचित्तावदाह द्रव्यमेवनरूदयइति अपराहु:रूपादयण्वनद्रव्यमिति अपरेयोदनि अन्यद्व्यं अनेकरूपादयरतिकथमेवाविपर्ययग्रहणीउच्यत्तयदिद्रव्यमेव नरूपादय लक्षणाभावाल्लक्ष्यातवधारणाप्रसेगा किंचद्रियेशासन्नि कृय्यमयोदव्यरूपायभावेसर्वात्मानासलिक्वय्येतत्ततसस्मिनामहाप । सेग:करणाभेदाभावपसंगश्चनचासोएटावा . Page #919 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवमपिनिराधारवादभावपसंगकिंचपरस्परविलक्षणानारूपादीनांसम दयेपिसातिएकानोतरभावात्समदयस्पसभिावापरस्परतीतिरभूत खादर्थह्यन्यद्रव्यमन्पेरूपादयः एवमपितेबोलक्ष्यणाभावाभाव परस्प तोरथैतरवारदडिडेवरा लक्ष्यलक्षणाभावइतिचेन्तवैशम्पाययक्त्य तोलक्ष्यलक्षणभावीयक्तीनासतोरितिर्किचरूपादियणगोस्वमूत्तयन्द्र व्यायोतरभूतियनद्रियसनिकयितस्ततश्चन्शानाभाव नचायीतर तंगव्यकारभवितुमहतिर्किचामूलकारणाविषतिपत्ते एयोचटरूपाग दानामूलकारगोषवादिनाविपतिपतिस्तद्यथाकेचिदाह अव्यक्तान्मह दहकारतन्मात्रदियमाहाभनम्रपिंडादिनितिक्रिमेघनादेविश्वरूपा स्पजगतउत्पादनतितदयुक्त नहिपधानस्पामन्तीनरवयवत्वनिःक्रियत्वा तोद्रियत्वानत्यत्वापरपयोज्यत्वादिविशेयोपेतस्पतालक्षणोघलादि-का योभवितुमर्हत्यहष्टत्वान्नवापरप्रयोज्यस्पप्रधानस्पवयमभिवापरहि Page #920 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. .. बैंकप्रसवक्रमायुकःपरुयरतावलिनियत्वान्नमहदादिसर्गा प्रधाननयंते खयंचनिक्कियत्वावधाननामा महदादिसर्गाथैपयोतम जहिस्वयंगतिविकलयंगरामानमेवाय-पोछायगछन्दृष्टाकिंचाव योजनस्पषधानस्पमहदादिसोनयतिमानपरुषभोगःप्रयोजनमितिचेन्न स्पस्पविभोरात्मनभोगपरिणामाभावाचकिवावेतनवादिहलो के चेतनश्चैत्र उदनाधीकियाफलसाधनजलदर्धव्यग्निसंघक्षणादिखप वर्तमानोदृष्टानचतयारधानचेतनमंतोस्पमहदाक्रियातसवकमाभावान .. क्रमस्पषयोजकोनिक्रियत्वादयरआहुपरमाणुभ्पाप्रतिनि यतपार्थिवादिजातिविशिष्टेम्पअदृष्यादितनिधानेप्सनिसहतेभ्यः अर्थात कार्यात्मलाभरतितदरयुक्तनित्यत्वादनांकायारंभशापाभावा .. नेचारंभनित्यवहानेलचार्योत्तरशतस्पकार्यस्यारंभोयताध्यतिरेकानफ्ल रूपलनीचाणमहत्वाभावानचजातिप्रतिनियमालिभिन्नजाती Page #921 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रंभदर्शनादिलजानीयेयसमदयमात्रमिनिचेतल्यजातीयेवपितत्वसेगा नचा मनोघटाद्यारंभेकर्टखमपयननिक्रियत्वान्नित्यत्वाचनाय्यात्मरणास्पायुष्या देनिक्रियखादेवनचनिाक्रियोतिरक्रियाहेतुयनाअन्यमन्यतेवोदिपर माणुसमदपामकारूपपरमाणावोअतीद्रियासमदिताःसंत-इंद्रियग्राह्यत्व मनपघदादिकार्यात्मलाभहेतुत्वंपन्तिपर्वतरतितक्युक्तंप्रत्येकरूयपरमारण नामतीद्रियत्वाततोन्यस्पकार्यस्पाय्पनीद्रियत्वपसगात्ततश्चदृश्पविषयपमगी गाभासविकल्याभावाकार्याभावाच्चतल्लिंगकारणास्याय्यभावना किंचक्षणि कत्वालिःक्रियत्वाच्चकार्यारंभाभावाविविक्तशतीनोयरस्पराभिसंबंधाभावश्च| नचान्यार्थश्वेतनरतेयांसंबंधस्पकाशितदभावात्संवधाभाव एवमन्येचपिप|| वादिखसत्यसदिनिअसत्यपिसदितिविपर्ययोमिथ्यादर्शनोदयेवशाइदितव्यः पित्तोदयाकुलितरसनेद्रियविपर्ययवत्तनीयदक्तरूपादिविषयीयलश्चिव्यभि चाराभावान्लमिथ्याटेनित्रयमज्ञानमितितदसम्परथ्याव्यानंतानलक्ष Page #922 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एजवा• गादिभिरिदांनीचारिचंनिर्देटवानदलंध्यनयाउयते करमान्माक्षविधानेतस्य ११२ वक्ष्यमाणत्वाकतन-मोक्षविधीवक्ष्यातइतिचेमोक्षप्रतिपधानकारगा खात्विंतंजाधान्यकलधननिर्दनकृतंयतआत्माव्यपरतक्रियाध्यानावि भूतात्मवलकिलकर्मेधननिईहनसमोभवतिननक्षायिकसम्पत्य केव लज्ञानीपेतोपि यदिस्यातक्षायिककेवलज्ञानोत्पत्यनंतरमेकरलकर्मक्षयः द्यपरतक्रियाध्यानोत्पादनंतरमेवभवतितवोत्तमंचारित्रकर्मादानोतक्रिया रित्रमितिवचनावादीहतदध्यतमोक्षाविधानेपितहतयमितिगोर वस्यादेवमपिजीवादयोनियख्याउयतेषमागोव्याख्यातंषमागोकदेशानयाः .... सदनतरवचनाहानयाकेनयाइत्यतमाह गण ही माहव्यवहाराहामाहामारूदेवनामा ३ शब्दपेक्षया एकादिसंखोयविकल्पानयागात्रातिसंक्षेपादपतिपत्तिरतिविस्तरेचल्यप नामननुग्रहरतिमध्यतयापतियत्याससानयाभत्रोच्चतषिोसामान्यविशे Page #923 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलक्षवक्तव्यंतत्रा सामान्य लक्षणामुच्यते, प्रमाणप का शितार्थ विशेष रूप को नयः प्रकरणमानजमार्गसक लादेशइत्यर्थः। तेनप्रकाशितानांनप्रमाणाभासप रिग्टहीतानामित्यर्थस्तेयामर्थानामस्तित्वनास्ति त्वनित्यत्वानित्यत्वाद्यं तामानां जी | बादी नांयेविशेयाः पर्यायास्तेयांपकर्षेणरूपकः खरूपकनिरूदोषानुषंगा रेणेत्यर्थः। एवंलक्षणो नयस्तस्पोमूल भदौद्रव्यास्तिक: पर्यायास्तिकइतिद्रव्य मस्तीतिमतिरस्पन्द्रव्यभवनमेवनात्तोन्येभावविकारानाय्पभावस्तह्यतिरेकेणानुप लङ्केरितिद्रव्यारितका पर्यायएवारती तिमतिरस्पजन्मादिभावविकारमात्रमेवभव नंनतत्तोन्पद्रव्यमस्ति तद्ध्यतिरेकेणानुपलब्ङ्केरिति पर्यायास्तिकः॥ अथवाव्यमे वाथेस्पिनः कम्र्म्मणि तदवस्थारूपादितिद्रव्यार्थिकः पर्यायस्वार्थी स्परूपा सु-क्षेपणादिलक्षणो नततो न्पव्यमितिपर्यायार्थिकः अथवार्यतेगम्पतेनिष्य द्यतइत्यर्थः कार्य द्रवतिगच्छती निद्रव्यं कारणद्रव्यमेवार्थोस्य कारणमेवकार्य नार्थतरंनचकार्यकारणायोः कश्चिद्रूपभेदः तदुभयमे काकारमेवपंचांगलि Page #924 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. व्यवदितिद्व्यार्थिकः परिसमंतादाय पर्यायपर्यायरम्वार्थ कार्यमस्पनन्नव्यमताता नागतयोविनव्यानुत्पन्नत्वेव्यवहाराभावात्सराबका कार्यकारणाव्यपदेशभागिति पीयार्थिक अथवार्थनमर्थःप्रयोजनद्रव्यमेवायोस्पप्रत्ययाभिधानानपत्र तिलिंगदर्शनस्पनिन्दोतमशक्यत्वादितिद्रव्यार्थिक पर्यायार्थ प्रयोजनमस्प वाग्विज्ञानव्यायतिनिबंधव्यवहारससिरितिपर्यायार्थिकतनेदानेगमाद यएयाविशयलक्षण्मयतार्थसंकल्पमात्रमाहानेगमा निगळूत्यस्मिन्नि निनिगमनमात्रैवानिगमनानिगमेकशलोभवीवानगमलस्पलोकव्यापारभास र्थसंकल्पमात्रमहापाछेद्रग्य्हगम्पादियानद्यथाकश्चित्वचपरथपुरु यंगछत्तमभिसमीक्ष्याहाकिमर्थगछतिभवानितिसतस्मैप्राचटेपस्कामिति एवमिहरहादावयितथाकत्तरोत्रगमीत्युक्तमाचटेमहंगीतिसंपत्यगछत्य पिगमीतिव्यवहार एवंपकारोन्पोपिनैगमनयस्यविषयमाधिसंज्ञाव्यवहारप्रति चेन्नतव्यासन्निधानारस्पदितनार्यगमनयवियय:भाविज्ञाध्यवहार Page #925 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तितन्न किंकार सांभूतद्रव्यासंनिधानादूर्तहिकुमारतंडुलादिद्रव्यमाश्रित्य राजौदना दिका भाविनी संशाप्रवर्त्ततेनचतथानैगमनयविययेकिंचिडूतंद्रव्यमस्ति यदाश्रया भाविनी संज्ञा विज्ञायेत उपकारोउपलभासंव्यवहारानुपपत्तिरिचेन्नाखतिज्ञाना स्पा देतन्नैगमनयवक्तव्ये उपकारोनोपलभ्यते भावि संज्ञाविषयेतुरा जादावुपल भ्यतेततो नामंयुक्तइति तन्त्रकिं कारण अप्रतिज्ञानान्नैतदस्माभिः प्रतिज्ञातंउपका रेसतिभवितव्यमिति किंतर्ह्यस्पनयस्पविययः प्रदर्श्यतेअपिचउपकारंप्रत्यभिम खत्वादुपकारवानवास्वजात्यविरोधेनैक चोपनयात्समस्तग्रहसंग हवाभिधा मानुषनृर्त्तिलिंगंसाहश्वरूपानुगमो वा जातिसा चेतनाचेतनाद्यात्मिकाशव्दज हर्त्तिनिमित्तत्वेन प्रतिनियमात्स्त्वार्थव्यपदेशभाकखा जाति, वा जाति प्रप्रच्यवन मविरोधा, स्वजातेरविरोधः खन्नात्यविरोधः। तेनस्खजात्यविरोधेनैकत्वापनया के षोभेदानोसमस्तग्रहांसंग्रह, यथासद्द्रव्यं घटइत्यादिसदित्यक्ते सत्तासंबंधा द्रव्यपययितदप्रभेदानांत व्यतिरेकातेनेकनसेमहः। द्रव्यमितिवोक्तेजी Page #926 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. वाजीवरेदयभेदानंद्रव्यत्वाविरोधान्तेनैवसंग्रही घटइतिचीतनामादिभेदाम्टलव रमादिकारणविशेयासिस्थानादिकिविकाराच्चभिन्लानीघटावाच्यानातदव्य तिरेकादेकत्वेनसंग्रह एवमितरेखपीतितत्राभिधानजत्ययोसामान्यनिराकृतवि शेयभावादाहसत्ताद्यर्यातरभूतमलिजदभिसर्वधात्सदादिव्यपदेशः इतितन्न उभयथाउपपत्तरिदमिहसंपधार्यसत्तासंबंधात्याद्रव्यादिखसदित्यभिधानेप्रत्या यश्वस्पा हानवेतियदिस्यात्सत्तासंबंधवैयर्यप्रकाशितप्रकाशनवैयर्यावसत्ताव यसंगश्चएकाअर्पतरीनपरावाद्येत्यत्तश्चसमधविरोधी यलिंगाभावाच्चैकोभावइतिअयनास्तिवरवियागादिश्चतिप्रसंग यविशेषइतिचन्नतस्पपतिषिहरवास्किंचरात्तैजाया-सदितिव्यपदेशस्यसत्तांतद हेरकत्वाहतुकखयोरनवस्थापतिज्ञाहानिदोषप्रसंगमयपदार्थशक्तिपति नियमाद्रव्यादिषसदितिव्यपदेशीनिमित्तोतरहनुकासत्तायोखतरावतिचेल्सस गंवादत्याग लामात्रकल्पनापसंगम्याकिंचमत्तादेनोपदार्थी Page #927 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |वृत्तिः सोम्येतिवास्यात्सोयमितिवाय दिसो स्प्रेतिवृत्तिर्मत्वधीयेन भवितव्यं सत्ताव व्यमितियथा गोमा नुयवमानित्यत्तीमत्वर्थस्पभावार्थस्पचनिवृर्त्तिवक्तव्या अथ सो यमित्यभिसंबंधेनवृत्तिः सत्ताद्रव्यमितिप्राप्नोतियथायष्टि पुरुषइतिन सव्यमि मित्रभावार्थस्पनिवृत्तिर्वक्पा किंचही ताभावान्न होके किंचिदनेकं संबंधि दृष्टंयदियदिति समीक्ष्यसत्तैकानेक संबंधिनी गम्पेता नीली द्रव्यवदिति चेन्न त स्यानेकत्वान्नी लिलवदितिचेन्नत स्पासिद्धत्यात अतोविधिपूर्वकमवहरणं व्यवहा रः एतस्मादत्तः कुतः संग्रहा संग्ग्रहा, नयाक्षिप्तानामर्थानां विधिपूर्वकमवहरणम बिहारः कोविधिःसंग्रह्गृही तो र्थस्तदनुप्रयेविव्यवहारः प्रवर्त्तन इत्ययविधिस्त घथा सर्वसंग्रहास संग्टहीतंतच्चानपेक्षितविशेषंना लं संव्यवहाराये तिव्यवहार नयनाश्रीयतेयन्स न्तदूव्यंगो वेतिद्रव्येणापि चसंग्रहाक्षिसेन जीवविशेयानये क्षेमानशक्यसंव्यवहार इति जीवद्रव्यम जीवद्रव्यमित्तिवाव्यवहार आश्रीयते जीवा जीवावपिचसंग्रहाक्षिमी नालंसं व्यवहारायेतिप्रत्येकं देवनारकादिघवादिश्वव्य Page #928 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा. ||वहारेणश्रीयतेकघायाभयज्यमित्यतेचसामान्यस्पयिशेयात्मकत्यालेयग्रोधादिवि | शेयसामयेनाहिशक्यतभशापिचक्रयतासवःकयायसमाहारकर्जनामस्थापना द्रव्यायिायसंग्रहोपात्तानिनालव्यवहारायतिभावएवम्प्यतेएवमयनयस्तावावर्त तेयावत्यनन्नास्तिविभाग सूत्रपातवारजसत्रायथारजःसत्रपातरतधार जपणास्त्रत्रयतितंत्रयतिरुजस्त्रास:स्त्रिकालविधयानतिशय्यवर्तमानका लविषयमादते अतीतानागतयोविनव्यनत्यन्तत्वेनव्यवहाराभावासमवायमात्र मस्पनिद्दिधिक्षितंकवायोभैज्यमित्यत्रचसंजातरसकयायोभैषज्पेनपायमिक कवायोडल्यानभिव्यक्तरसत्वादस्पविषयापच्यमानःपक्का पक्षखस्यात्यच्य मानस्यादुपरजपाकरित्यसदेतद्विरोधात्यच्यमानइनिवर्तमानःपकाइनितीन स्तयोरेकस्मिन्नवरोधोविरोधातिनवदीयापचनस्यादावविभागसमयेकश्चिदशानि त्तिावानवायदिननित्तिलहायर्यादिबपि निहत्तःपाकाभावः स्यात्नतोभिनिती स्नदपेक्षयापच्यमानापक्चइतरथाहिसमयस्पत्रीविध्यषसंग सराबोदनः Page #929 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aaHAINE m I NEAADORatani LAMEmai नदत्यच्यतेपरभिवायस्यानित्तःपकर्हिसविशब्दसखिन्लोदनेपक्काभिषाय. स्यादपरनयाकतिचोच्यतेकस्यचित्यकस्तावनैवकतार्थवादेवाक्रियमाणकत भुज्पमातभक्तवध्यमानवरसिद्मारसिहादयायोज्यारतथाप्पतिवंतरिमन्नितिष स्थायदैवामिमीतेतीनानागतधीन्पमानासंभवातकुंभकाराभावा शिवकादिपर्या यकरणेतदभिधानाभावातकुंभपर्यायसमयेवखावयवभ्परावनित,स्थितष निचकुनोद्यागछसीतिनकत्तश्चिदित्ययमन्यातकालक्रियापरिणामाभावाद्य मिवाकाशदेप्रामवगाढ़समर्थात्मपरिणामवातत्रैवास्पवसतिलकलकाकः उभयोरपिखात्मकलाकला कलात्मकोनकाकालका यदिकाकात्मक स्याङ्ग मरादीनामपिकाकचप्रसंग-काकश्चकाकालकोनकृनात्मकायादवलात्मक शुल्लकाकाभाव-स्पायंचवात्वाच्चपित्तास्थिकाधिरादीनापीतयलरक्तादिव रविात्तद्यतिरेकेराकाकाभावाच्चनसामानाधिकरण्येमेकस्पपर्याय पानन्यत्वा त्पर्यायाएवविविक्तशक्तयोदय॑नामनकिर्चिदरतीनिकलण्यावाधान्यादितिचे Page #930 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• ૧૦ नास्ति रक्तादिय्वनिडासँगाल्क घायमधुरेचमवनिविरोधादप्रत्यक्षेवाख्यायमाने काकविशेषज्ञेनकेनचित्। पीतरनिवासि न्प उपलबेकल काकविशेषेपुरुषेप्रतिपाद्यमाने संशयो जायते किमयंकाकस्पकारणा धान्यादोचय्टे द्रव्यस्यैववातथापरिणामादित्यत्तः पला लादिदाहाभावः प्रतिवि शिष्टकालपरिन हादस्पहिनयस्पाविभागो वर्तमानसमयोविषयः अग्नि संव धनदीपन ज्ञलनदहनान्यसंक्षेयसमयात्तराला नियती स्पदहनाभावः। किंच य स्मिन्समयेवाहःनत्तस्मिन्नूप लाल भस्मताभिनिवृत्ते यस्मिश्चपला लंनतस्मिन्दा हृदतियत्पलालतद्दहती तिचेन्नसावशेषात्समुदायाभिधायिनशिध्दानामवय वैष्ठवृत्तिदर्शनाददो खइतिचेन्न तदवस्थ त्वादेकदेशदाहाभावस्पोक्तत्वान्तिव शेषदाहासंभवादितिचेन्नवचनविरोधात्तदवस्थवीच्चवचनविरोधस्तावद्यदिनि विशेष स्पपला लस्पदाहस्पासंभवइत्येकदेशदाहात्य लालदा हो नादाहः ननुभ बेद्वचनस्यनिरवशेषपरपक्षदूषकत्वाभावात्परपक्षैकदेशस्पदूयकत्वमतः ` Page #931 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कदेशयकत्वात् सनमयी दंदू बक मेवेत्यस्यसाधकत्वा सामर्थ्यभावइति तदव स्थित्वमय्ये कसमये दाहा। भावइत्युक्तत्वादवयवानेकत्वेयद्यवयवदा हा सर्वत्रदा ह-अवयवीत्तरा हान्ननु सर्वदाहाभावः॥ अथदाहः सर्वत्रकस्मान्नादाहः अतो ||नदाह एवं पानभोजनादिव्यवहाराभावाः, नाक्लः कृलीभवत्पुभयोर्भिन्न काला विस्थत्यात्प्रत्युत्पन्नविषयेनिवृत्तपर्यायानभिसंबंधात्सर्वसंव्यवहारलोपइति चेन्नविषयमन्त्रप्रदर्शनात्पूर्वनयवक्तव्यत्वाशं व्यवहारसिद्धिर्भवतिशपत्पर्थमा, इयतिप्रत्याययतीतिशब्दउच्चरितः शब्दः कृतसँगतेः पुरुषस्परखाभिधेयेष त्यमादधातीतिशब्दच्यते सचलिंगसंख्यासाधनादिव्यभिचारनिवृत्तिपरः लिंगं स्त्रीत्वप्रेरवनपुंसकत्वा निसंख्या एकत्वद्वित्ववहत्वानिसाधनमस्मदाद्येवमा दीनां व्यभिचारोनन्याय्यइतितलिवृत्तिपरोयंनयेस्तद्यथा लिंगव्यभिचाररनावत्स्त्री लिंगे लिंगाभिधानंतारकावातिरितिपल्लिंगे व्यभिधानमावगमो विदेधतिस्त्री वेनपुंसकाभिधाने वीरणा-प्रतोद्यमितिनपुंसके स्वाभिधाने प्रायशक्ति रितिपि Page #932 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा• गेनर्पसकाभिधानपटोवस्वमितिनसकेपलिंगाभिधानद्रव्यपरथुरितिसंख्याव्य भिचारनाएकहिलनक्षत्रपुनर्वसदत्येकवेयहत्वनक्षत्रंशतभिष्यजाइनिहित्खए कर्वगोदोगामतिहिलेवहा पुनर्वस्पंचतारकागदनि वहत्येएकर्वमानावा नमितिावहरहिवंदेवमठय्याउभाराशीइनिसाधनव्यभिचाररहिमन्येरयेनया स्पमिनहियास्यसियानलेपिनेनिमादिशब्देनकालादिव्यभिचारोग्यधविश्वद्या ग्यास्पयत्रीजनित्ताभाविकृत्यमासीदितिकालव्यभिचारसंनिष्ठतेपनियतवि रमसपरमत्यपगाहणाव्यभिचाराएवमादयोव्यभिचाराअताकताप्रन्यर्थ स्पान्यानसंधाभावाद्यनिस्पाटापटोमवतुपटोवाघासावइतितरमाद्यया लिंगयथासंख्ययथासाधनादिचन्याय्यमभिधानी लोकसमयविरोधहतिचेहि रुध्यतीत्तत्वमीमांस्पतिसहस्पचारनानार्थसमभिरीहारसमभिरुवीयती नानाथसिमतीत्यैकमर्थमाभियपनवतस्ततासमभिरुटकतीवरवंतरा संक्रमणातन्निष्टवाकयमवितध्यानवद्ययायनीयंटलंरक्ष्मनियम Page #933 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वितकमविचारध्यानमर्थव्यंजनयोगसंक्रांत्यभावारसूक्ष्मकाययोगनियरल्यात यागीरित्ययंशब्दोवागादिपवर्तमानौगव्यधिरुनःएवंसेवपिरूढिशब्दोस्प विययअयवार्यगत्यशदखयोगतितत्रैकस्पार्थस्पैकैनगतत्वात्यर्याया शब्दप्रयोगोनर्थकाशब्दभेदश्वेदनिअर्थभेदेनाय्पवरपेभवितव्यमितिना नार्यसमाभिरोहणाशमाभिरूनाइदनादिद्शकनालकापूरियासरदा रइत्येवसर्वत्रनयवायोयत्राधिरूढःसत्तत्रसमेत्यभिमख्येनारोहात्समभि रूढःयथावभवानोरलेस्वात्मनीतिकुतःवरतरत्यभावाद्यद्यन्यस्यान्य वहन्निन्स्पारखानादीनोपादानाचाकाशतिःस्यारयेनात्मनाभूतरले नवाथ्यवसाययत्तीत्येवभूति येनात्मनायेनाभिधेयेनमतःशब्दरलेनेवा ध्यसाययत्तिययेंद्रशब्द परमेश्वरत्वाभिधेयःसपरिणामोयत्रयदावत्ती तत्रतदेवयुक्तीननामस्थापनाद्रध्येयतत्परिणामाभावादित्येवमितरेष्वपिशब्दे | खाभिधेयक्रियापरिणतिक्रियाक्षणएवयक्रि न्यदेतिअथवायेनात्मनायेन Page #934 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजवा- . पेरतोयलेनेवाध्यवसाययतियधागछत्तीतिगौरितियदैवेगवतितदेवे . १११ गछतितदेगोरितिनस्थितीनशयितइतिपूवीत्तरकालयोनदोभाधाइडिवार | एवमितरेष्वपिअथवायेनामनायेनायनशानेनभत्तःपरिणतरनेनैवाध्यवसा ययत्तियथाईन्द्राग्निज्ञानपरिणतआत्मैर्वेनाग्निश्चेत्येवभतार्थपत्मायनाछन्द एवंनतःतत्कात्तिाव्यसिद्धे-दाहकत्वाद्यतिप्रसंगइतिचेत्तदव्यतिरेकादर स्यादेतदरम्यादिव्यपदेशोयद्यात्मनिक्रियतेदाहकत्वाद्यतिषस . च्यनेतदव्यतिरेकादपसंगरतानिनामादीनियेनरूपेशाध्यपदिश्यतेततस्तेषामा व्यतिरेकःप्रतिनियतार्थवत्तिबाहर्माणांतनोनोनागमभावाग्नीवर्तमानंदाहक कयामागमभावाग्नीवतउत्तानेगमादयोनया उत्तरोतरवक्ष्मविषयवाद यांक्रमापूर्वपूर्वहतुकवाच्चाएवमेतेनया पूर्वमनेनया पूर्वपूर्वविरुहमहावि ययाउत्तरोत्तरानंकूलाल्यविषयाव्यस्पानंतशतप्रतिशक्तिभिद्यमानाव पाजायते एतेगावधानतयापरस्परसंवा सम्यग्दर्शनहतवपरु Page #935 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार्थक्रिया साधनसामथ्यत्तित्वादयइवयथोपापविनिवेश्यमानाभ पतादिसंज्ञा स्वतंत्राश्वा समर्थारितं त्वादिवदेवचियमउपन्यास तत्वादयो निरपेक्षा अपिकां चिदर्थमात्रां जनयतिहिकश्चित्प्रत्येकं तंतुत्वकारणेसमर्थए कश्चवल्फ जीवं धनेसमर्थः । इमे पुनर्भयानिरपेक्षा: संतः नकांचिदपिसम्यग्दर्शनमात्रापा दुर्भावियंती तिनैष दोषः ॥ अभिहितानववोधादभिहितमर्थमनववध्यपरेणेद सपालभ्यते एतदुक्तं निरपेक्षितं त्वादिपतादिकार्यं नारतीतियत्तत्तेनोप |दर्शितंनतत्पदादिकार्य किंतर्हितत्वादिकार्यमपि तत्याद्यवयवेषु नास्त्येवेत्यस्म |त्यक्षसिद्धिरेवाथतत्वादि कार्यशक्तचापेक्षयास्तीत्फच्यतेनयेय्वपिनिरपेक्षेष भिधानरूपेष कारणवशात्सम्पदनिहेतुत्वविपरिणतिसावादात्म नास्तित्वमितिसाम्पमेवोपन्यासस्प ज्ञानदर्शनयोरत त्वं नया नोचैवलक्षणता नस्पचप्रमाणत्वमध्यायेस्मिन्निरूपितमिति ॥ चितत्वार्थमा र्त्तिध्याख्याचे कारेड थमोऽध्याय ॥ Page #936 --------------------------------------------------------------------------  Page #937 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभावतीति प्रवदंतिसंतः २ तस्याममूद्विश्वजनीनद्रुतिदानां बुवा हो भुविहीरपाख्यः व गोत्र विस्तार न मांशुमाली सम्यकरत्नाभरणार्चिताङ्गः ३ तस्योपरोधवशतो विंशदोरुकीर्ते मा। शोकानंदिकतशा म्न मगाध्वोयम् ॥ स्पष्टीकृतंकृति पयेर्व चेने रु दारे बलि प्रवोधकरमे तदनंत वीर्यैः ४ इतिपरीक्षामु म Page #938 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गूढपदपाययत्रमाहुरनाकुल मिति इदानीमात्मनःप्राख्यनिर्वहण मोहत्यपरिहारंचदर्शयन्नाह परी, मुखमादर्शहयोपादयो तत्वयोः संविदेमादृशोवालः परीक्षादक्षवघ्यथां ॥९॥व्यांकृतवानस्मि किमर्थ संविदेकस्यमादृशः जांचकयंभूत इत्यादवालोमंदमतिःगजनौहत्यसूचवचनमेतत् ॥ तत्वज्ञत्वंचप्रार व्यनिर्वहणादेवाबसीयते कितत्परीक्षामुखतदेवनिरुप्यतिजादमितिकयोः योपादेयतत्वयोः वादर्शात्मनोलंकारमंडितस्यसोरुप्यवरुपयवाप्रनिर्विवीयदर्शनद्वारेणसूचयति तथेदमपिहेयो यतत्वंसाधनदूषणोयपदर्शनद्वारेण निश्चाययतीत्यादर्शत्वननिरुप्यते कयश्वपरीक्षादक्षवत् परी क्षादक्षश्वयथापरीक्षाददाखपारधशानिरुठवांसथाहमपीत्यर्थःजकलंशशांकेयतू प्रकटकृत मखिलमाननिभनिरंतत्संक्षिप्तंमरिभिरुरुयपनिभव्यकिमेतेन ॥इतिपरीक्षामुखलधुवृत्तोप्रमाणा ___ समुद्देशःषष्टःपरिछेदः । श्रीमान्वेजेयनामाभूदयणीतिशालिनी बंदीपालवंशालिव्यो शिरुर्जितः १ तदीयपत्नीभुविविश्रुतासीनाणोवनामागुणशालियामा योरेवतीतिप्रथिताबिक Page #939 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माशातत्वान्नय स्वरुपं शास्त्रांतर प्रसिद्धम् विचारणीय मिहयुक्त्या प्रतिपत्तव्यं तत्रमूलनयेो द्वो द्रव्यार्थिक पर्या यार्थिक भेदा तत्र द्रव्यार्थि करनेधा गम संग्रह व्यवहारमेदात् पर्यायार्थिकम् तुशिनु सूत्रशब्दसमभिरुदैव भूतभेदात् जन्योन्यगुणप्रधानभूतभेदाभेदप्ररूपणा नैगमः नैगमोनगम इतिनिरुक्तेः सर्वथाभेदवाद स्तदाभासः प्रतिपदा व्यपेक्षा सन्मात्र याहीसंग्रहः बलवादस्तदाभासः संग्रहगृहीत भेदको व्यवहारः कल्प निको भेदस्तदाभासः शुद्ध पर्यायग्राहीप्रतिपक्षसापेदाः जजुरुतः क्षणि कैकांत नयस्तदाभासः कालकारक लिंगानां पेदा च्छन्दस्यकथेचिदर्यमदकयनंशब्दानयः अर्थभेदे विनाशब्दा नानावैकांत लदाभासः पर्याय भिदातू पदार्थानानात्व निरुपः सम मिरुढः पर्यायनानात्व मे तेरेणापींद्रा दिभेदकथनं तदाभासः क्रियाश्रये राभेिद प्ररूपणमित्यं भावः क्रियानिरपेक्षत्वेन क्रियाच केयु कल्पनिको व्यवहारस्तदा भासइति इति नद्य तदा भा सलक्षणं संक्षेपेणोक्तं विस्तरे शानय चक्रा प्रति पतव्यं अथवा संभवचिद्यमान मत्यद्वादश लक्षणां मंत्रल क्षणांवान्यत्रोत मिहद्रष्टव्यं तथा चाह समर्थवचनं वाद इतिप्रसिद्धावयवं वाक्यं स्वेष्ट स्यार्थस्य साधकं साधु Page #940 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " क्षं दूषयन्नाह भेदत्वात्मांतवर बतदनुपपतेः अथ यंत्र वात्मनि प्रमाणं समवेतं फलमपि तत्रैव समवेत मिति समवायिलक्षणाप्राप्त्या प्रमाण फल व्यवस्थि तिनात्मं तेरे तत्त्र संग इति चे तपि नस्ल मित्याह समवायेतित्र · इति समवा यस्य नित्यत्वा व्यापकत्वाच्च सर्वात्मनामपि समवाय समवाय समान धर्म केला न्न तनः प्रतियम इत्यर्थः इदानींस्वपरपक्षसाधन दूप रागव्यवस्था मुपदर्शयति प्रमाणातदाभासो दुष्टतया द्वा चिंतोपरि हता दो वादिनः साधन तदाभासो प्रतिवादिनो दूषणाभूषरो। चवादिना प्रमाणमुपन्यस्तं तच्च प्रतिवादिनादुष्टत यो द्रावितम् पुनर्वादिना परि हतं तदेव तस्य साधनं भवति प्रतिवादिनश्च दूषणामिति यदातुवा दिनाप्रमाणा ..मू प्रतिवादिना तथैवोद्भावितम् वादिनाच परिहितं तदा तद्वादिनः साधनाभासो भवति प्रतिवा .मिति अयोक प्रकारेणा शेष विप्रति वादिना तेथे वो द्वा वितम् वादिना परिहनम् तदा तद्वादिनः भासो भवति वादिनश्च भूषणमिति अयोक प्रकारेणाशेष विप्रतिपति निराकरणाद्वारेण त्रमा शातत्वं खञ तिज्ञातं परीक्षनपादितत्व मन्यत्रक मिति दर्शयन्नाह संभवदन्यद्विचारणीयमिनि संभव विद्यमानमन्य " A " Page #941 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चकिचनदेवमात्मकतत्वम् स्वयंसमर्थवाकारिस्यात् प्रथमपतेदूषणामाह समर्थस्यकरणेसर्वदोत्पतिरपेक्ष त्वात् सहकारिसानिध्यातत्कारणान्नेतिचेदवाह परापेक्षणपरिणामिलमन्यथातदभावात् वियुकावस्था यामकुर्वतः सहकारिसमधानयेतायाकार्यकारिणः पूर्वतिरा कारपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणा मोपयतेरित्ययःजन्ययाकार्यकारणामावात् प्राग्भावावस्थायामिवेत्यर्थःअथसिद्वितीयपोदापमाहा। खयमसमर्थस्थ अकारकत्वात्पूर्ववत् जथालाभासंप्रकाशयन्नाह फलाभासंप्रमारादभिन्न भिन्नमेवा कुतः पक्षाहयेषितदामासनेत्याशंकायामाधपोतदाभासलेहेतुमाह अभेदेतघ्यवहारानुपपत्तेः फला मेवप्रमाणमेववाभवेदितिभावः व्यावृत्यासंबृत्यपरनामधेययातत्कल्पनारिखसाह व्यावृत्यापिनतत्कल्स माफलोतरावप्रसंगात यमपिथालाहिजानीयात् फलस्यव्यावृत्यामलव्यवहारलयाली तरी दपिसजातीयाम्यावृतिरयलीफललमेनेवाभेदपक्षदृष्टोतमाह प्रमाणीतराध्यावृत्तवानमारावस्यति । जत्रापिपातन्येव प्रक्रियायोजनीया जमदपक्षनिराकृत्याचार्यपसहरति तलाच्छास्तवाभेदइति भेदेष | Page #942 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संख्याभासमितिदर्शयति सौगतसारख्ययोगप्रभाकरजैमिनीयानांप्रत्यक्षानुमानागमोपमानायपित्य - भावेरेकैकाधिकातिवन् यथापत्यमादिभिरेककाधिक व्यप्तिःप्रतियनशकानेसोगनादिभिस्तथापत्यो गालोकायनिकै परखुबुध्यादिरपीत्यर्थी जथपरबुध्यादिप्रतिपनि प्रयोगमाभूदन्यस्माविष्यनिइ त्याशंक्यार जन मानादेन द्विशयत्यमाणानरलंगच्छतुनपरबुध्यादिभिधीयने जनुमानादेपखुल्या दिविययतेप्रत्यक्षेकप्रमाणवादोहीयतइत्यय जत्रोदारणामाह नर्कस्येचव्याप्तिगोपरत्वेप्रमाणातर त्वंजप्रमाणस्याव्यवस्थापकत्वात् मोगताना मितिशेयः किंचमत्यक्षेत्रमाणवादिनाप्रत्यक्षाकेका कप्रमाणावादिमिशवसैवेदनेत्रियप्रत्यक्षभेदोनुमानभदश्च प्रतिभासभेदेनवनव्योगत्यंतराभावातूस चतडूदोलीकापतिप्रतिपक्षानुमानयोरितरेयोव्याप्तिज्ञानप्रत्यक्षादिनमारोधितिसर्वेयांप्रमागासंख्या विघटनेएनदेवदर्शयति पनिभासभेदस्यभेदकत्वादितिइदानी विषयाभासमुपदीयनुमाह विशया भासःसामान्य विशेषोद्वयवाखतंत्रमिति कथमेवांनदाभासनेत्याह नयाप्रतिभासनान कार्याकारणा Page #943 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदाहारण माह यथा नद्यास्तीरे मोदक राशयः संविधानध्यं मा राराबका कचिन्मय वैकेशकुली रून चेना नत्संग परिि हीर्षया प्रतारण वाक्य नद्यादेश तानू प्रस्थापयती त्या मो के रन्य लादागमाभासत्वं प्रथमोदाहरण मात्रेणातुव्यन्नु दा हरणांत माह जंगुल्पेन हस्विय्यशन मास्ते इति अत्रापिसांख्य पशुः खदुराग मजनित वा सना हि तचे तादृटेट विरुद्धं सर्व सर्वत्र विद्यत इति मन्यमानस्तथेोपदिशतीत्सना पिवचनात्वादिदमपि तथेत्यर्थः कथ मन तर यो वाक्ययोस्तदा भास त्वमित्यारेका यामाह विसंवादातू अविसंवादरूपममा शालक्षणाभावान्न तहि शेषरुपमपीत्यर्थः इदानी सांख्या भासमाह प्रत्यक्षमेवैकं प्रमाणमित्यादि संख्याभासं प्रत्यक्ष परोक्ष दानेद्वैविध्यमुकं तेद्वैपरीत्येन प्रत्यक्षमे वा प्रत्यक्षानुमाने एते पाद्यवधारणं संख्याभासं प्रत्यक्ष मैबैक मिति कथं संख्या भास मित्याह लौकय वि कस्य प्रत्यक्षतः परलेोकादिनिशेधस्य माख्धादेवा सिद्धेर तद्वियत्वात् अन द्विशयत्वात् अप्रत्यक्ष विषयत्वादित्यर्थः शेषं सुगमं प्रपंचे तमेवे तत्संख्या विप्रतिपति निराकरण इ तिनेह पुनरुच्यते इतर सादिनभारणे यता वधारण मपि विघटनइति लोकायतिकदृटांनद्वारेण तन्मते विसं Page #944 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादिन नहिपरीतदर्शनमपिनदाभासमित्याह विपरीतान्वयश्चपादपोरुपेयंनदमनकतास्य .. - विद्यदादिनानिप्रसंगादिति नस्याप्यमनताप्राप्तरित्यर्थः व्याप्तिरेकोदाहरणाभासमार व्यतिरेके सिताव्यतिरेक परिमाणेट्रियसुखाकाशवदिनि जोरुषेयः शब्दोमर्नवादित्यत्रैवासिहासाध्यसाधना यव्यतिरेकापनेतिविग्रहः तनसिहसाध्यव्यतिरेकः परमाणुलस्यापोरुषेयलादिंट्रियसुखमसिहसा व्यतिरकंजाकाशत्वसितोभयव्यतिरेकमिनिसाध्याभावेसाध्यव्यावृतिरितिव्यतिरेकोदाहरणप्रयके. ख्यापितं तत्रातद्विपरीनमपिनदाभासमित्युपदर्शयति विपरीतव्यतिरेजवयन्लामूर्ततन्नापौरुषेयमि वालव्युत्पत्यर्थतंत्रयोपगमइत्युतमिदानीं नानप्रनिएववियहीनतायांप्रयोगाभासमाह वालप्रयोगा . पंचावयवेयकियहीनतानदेवोदाहरणअग्निमानयेदेोधमवत्तायछिदैनदिळे यथानहानसमित्यवय विपर्यायतत्वमाह नस्मादग्निमान्धमांश्चायमितिकथमवयवविपर्ययप्रयोगाभासदस्यारेकायामाह स्पष्ट नयामतपनिपनरयोगान् इदानीमागमभासमाह रागडेयमोहाक्रान पुरुषवचनात् जातमागमाभास Page #945 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोक्याह जाकाशेनित्येप्यस्यनिश्चयात् शंकितवृतिमुदाहरति शंकितवृतिस्तुनास्तिसर्वज्ञोवकृत्वादितिज स्यापिकयं विपक्षेतियशंक्यनत्यत्राह सर्वज्ञेनवकृत्ताविरोधादि जविरोधण्वज्ञानोत्कविचनानामयकर्ण दर्शनादितिनिरुपेनपायजकिंचित्करखरुपनिरुपयति सिद्धमत्यक्षादिवाधितेचसाध्येहेतुरकिंचिकरदा निउदाहरति सिद्धाश्रावणःशब्दः शब्दत्वादिनिकथमस्याकिचित्करत्वमित्याह किंचिदकरणादितिज परंचभेदंप्रथमस्यदृष्टांतीकरणहारेणादाहरति यथानुष्णाग्निर्दव्यत्वादित्यादीविचिक शक्यता दकिंचित रत्वमितिशेषः जपेचदोयोहेतुलक्षणविचारावस एवनचादकालइनिव्यतीकुयान्नाह लक्षणस्वासो दोषोव्युत्पन्नपयोगस्यपक्षदोपैवदृष्टत्वादिति दृष्टांतोन्नयाव्यतिरेकभेदाहिविधइत्यतं तत्रान्वयदृष्टांता भासमान दृष्टांताभासाजन्नयेजसिह साधनोभयाः साध्यंत्रसाधनंचोभयंचसाध्यसाधनोभयानिज सिदानितानियेवितिविग्रहः एतानेकत्रानुमानेदर्शयति अपोरुषेयः शोमतत्वादिट्रियसुखपरमाणु घटवत् इंट्रियसुखमसिङसाध्येतस्यपौरुषेयत्वान् परमाणुरसिहसायवदर्शनीयामिनिदृष्टांताबसेरस लन्देय असिङसाधनोनदर्शयति अपारुषेयः शनायामिति दृष्टीतत्वले Page #946 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नानाहहेत्वाभासा जसिहविरुद्धानकोतिका किंचित्कराः येयाययाक्रमेणलक्षणंसोदाहरणमाहज सत्सतानिश्चयोसिहासताचयश्वसतानिश्चयोजस्तोसतानिश्चयीयस्यभवत्यसत्सतानिश्चयः नत्रप्रया मभेदमाह जविद्यमानसताकःपरिणामीशब्दःचाक्षयत्वात् प्रयमस्यासिद्धत्वमाह गछस्वरुपेणासलाता द्वितीयासिहभेदमुपदर्शयनिजविद्यमाननिश्चयोमुग्धशुद्धिप्रत्यग्निरत्रमादितिजस्याप्यसिहत्ता कथा मित्यारेकायामाह सारव्यप्रतिपरिणामीशदारुतकत्वादितिजस्यामिहनायाकारणमाह तेनाज्ञानत्वा दितिनेनसाख्यनाज्ञानत्वातन्मतेमावि वितिरोभावावेवमसिटौनोत्पत्यादिरिति जस्याप्यनिश्रयाद | सिदत्वमित्यर्थः विरुद्दुरेत्वाभासमुपदर्शयन्नाह विपरीतनिश्चिताविनाभावाविरुहःजपरिणामीशब्दहन कत्वात् लतकत्व सपरिणामविरोधिनापरिणामेनव्याप्तिर्मतिअनेकांतिकत्वेहत्वाभासमाह विपक्षेप्यविरुद्ध तिरनेकांतिकः अपिशब्दान्नकेवलंपक्षसपक्षयोरिनिद्रष्टव्यंसचद्विवियो विपक्षेनिश्चितनिः शकिननि विनिजत्रायंदर्शयन्नाह निश्चितऋनिरनित्यः शब्दाप्रमेयत्तान्पटवदिति कयमस्यविपक्षनिश्चिता निरित्या Page #947 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुमानाभास माह इदमनुमानाभासं इदंवक्ष्यमाणमितिभावः तत्रनदवयवाभासोपदर्शनेनसमुदायरु पानुमानासमुपदर्शयितु कामःप्रयमावयवाभासमाह तत्रापिनिष्टादिः यत्राभासः इष्टमवाधितमित्यादि नलक्षणमुकम्मदानीनहिपरीतं नदासमितिकथयति जनिष्टोमीमासकरयानित्सःशब्दःजसिहाहिए, रानंनदाभासमाह सिदुःश्रावणः शब्दइतिजनुमानागमलोकसवचनैः एतेयाक्रमेणोदाहरणमाह तत्रम त्यक्षादिवाधितोयथा अनुष्टोनियत्ताज्जलपत् सर्शनप्रत्यक्षेप्यनष्णःस्पात्मकोग्निरनुभूयतेजन वाधितमाह जपरिणामीशब्दः कृतकत्वात् घटवनूति अत्रपक्षोपरिणामीशब्दालतकलादित्यनेनवाध्य तेजआगमवाधिनमा प्रत्यासुखप्रदोधर्मः पुरुषाश्रितादधर्मवदिति जागमहिपुरुषाश्रितत्वाविशेष पिपरलोकधर्मस्य सुखहेतुलमुतं लोकवाधितमाह श्रुचिनरशिरः कपालंप्राण्यंगत्वाखशुक्रवदितिलोकेहिपाएपंगत्वेपिकस्यचिटुचितमशुचित्वंचतवनरकपालादीनामशुचित्वमेवेतिलोकवाचितवन वचनवाधितमाह मातामेवंध्यापुरुषसंयोगेष्यगर्भवान सिहवंध्यावदिति इदानी हेत्वाभासानुक्रमाप Page #948 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनिभवति नचक्रमप्राप्तीप्रमाणांतरमलिनेजसत्तमस्तीनिचेनतस्यासिद्धेः जयचक्ष तेजसंरुपादी| नोमध्येरुपस्यैवप्रकारकत्वात् प्रदेतितेदप्यपर्यायोचिताभिधानंमन्यंजनादेः पार्थिववेपिरुपमकारात्वदर्शी नात् प्रथिव्यादिरुपप्रकाशकलेपथिव्यादारधत्वप्रसंगाच्च तस्मात्सनिकस्याव्यापकत्वान्नप्रमाणम् कारणज्ञानेनव्यवधानाञ्चेतिप्रत्यक्षाभासमाह जैपेशयेणत्यक्षनदाभासंनीहस्याकस्माइमदर्शनाहिवि ज्ञानवदनि परोक्षाभासमार वैशयेषिपरोक्षेनदाभासमीमांसककरणज्ञानवदनि प्राइमपंचितमेतत्परोक्षमेदाभासमुपदर्शयन् मयमक्रमप्राप्तस्मरणाभासमाह जतस्मितदितिज्ञानंस्मरणाभासं जिनद निसंदेवदतोययेति जतस्मिन्जनभूत इत्यर्यशेषसुगम प्रसमिज्ञाभासमार सदृशेतदेवेदंतस्मिन्ने वनसदृशंयमलकवदित्यादि प्रत्यभिज्ञानाभासंद्विविधप्रत्यभिज्ञानाभासमुपदर्शिनमेकत्वमिवंधनेसा श्यनिबंधनंचतितत्रैकत्वेसादृश्यावमासः सादृश्यकलावभासतदाभासमितिनकोभासमाह असेबहे नितज्ञानंतकीभासयावालसुत्रःसश्यामइतिययावन् ज्ञानमितिव्याप्तिलक्षणेसर्वधज्ञानमित्यर्थः इदानीं Page #949 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणमितरतदाभासमिति संशयादयश्वप्रसिहास्वतत्रसंशयउभयकोटि संस्पर्शस्थिाणुवपुिरुषोवेनिप रामर्शविपर्ययः पुनरतस्मितदितिविकल्पः विशेषानवधारणामनध्यवसायः कथमेवामस्वसंविदितादीनां तदाभासनेनिजाह स्वविशयोपदर्शकत्वाभावादितिगतार्थ मेनत् जनहठातंयथाक्रममाह पुरुषातरपूर्वी | अंगछतृणस्यस्थणुपुरुषादिज्ञानवत् (पुरुषांतरच पूर्वार्थश्चगच्छतृणस्पभिस्थाणुपुरुषादिश्चतेयाज्ञान, तदिनहत् जपरंचसन्निकर्शवादिनप्रतिदृष्टांतमाह चारसयोटव्यसंयुनसमवायवाश्चजयमर्यःयथा चक्षरसयोः संयुनसमवायःसन्नपिनप्रमातथाचक्षरुपयोरपितस्मादयमपित्रमाणाभासवेनि उपलक्ष. समेततू जतिव्याप्तिकथनमव्याप्तिश्वसन्विकप्रित्यक्षवादीनांचक्षपिसन्निकस्यिासंभवातूजयच प्राप्तार्थपरिछेदकंव्यवहितार्थानांप्रकाशकलात् प्रदीपादिवदितितन सिहरितिमतं नदपिनसाधीयःका चाचपटलादिव्यवहितानिांजपिचक्षमाप्रतिभासनद्रुतोरसिद्धेःशारखाचन्दमसोरेककालदर्शनानुपप निप्रशनेश्चनतन्त्रक्रमेपियोगपयाभिमानइनिवनव्यंकालव्यवधानानुपलयः विचक्रमप्रतिपनिःयाप्तिनिश्चय Page #950 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षत्वायोमदर्यकर्मत्वेनाप्रतीयमानादप्रत्यक्षवेनहि फल ज्ञानस्याप्रत्यक्षतानतरवस्यात् जथ फलत्वेनप्रतिभा नानोचकरणज्ञानस्यापिकरणत्वेनावमासनालत्यक्षमस्तु जयकरणस्यचक्षरोदरपत्यक्षवेपिरुपपाकव्या ' इतिरन्न भिन्नकरीकरणस्येवनध्यभिचारादमिन्नकर्तन करणेसनिक प्रत्यक्षतायानदमिन्नस्यापि करणस्यकथेचितमत्यक्षवेनाप्रत्यक्षकोतविरोधात्प्रकाशात्मनोप्रत्यक्षवेपिप्रदीपप्रत्यक्ष्यविरोधवदितिया - अहिधारावहिज्ञानगृहीतार्थदर्शनोगताभिमतमूनिर्विकल्पेतचतविशयानुपदर्शकत्वादप्रमाणे व्या यस्यैवतज्जनितस्य नदुपदर्शकलादर्यव्यवसायस्य प्रत्यक्षाकारणानुरकत्वामतः प्रत्यक्षस्यैवप्रमाण्य व गृहीतग्राहित्वादनमायामितिमन्नसुभाषितम् दर्शनस्याविकल्पस्यानुपलक्षणानुपलक्षणानदावा सदावेवानीलादाविवक्षयादावपिनदुपदर्शकलप्रसंगातविपरीतसमारोपान्नेनचेतहिसिडेनीला रोपविरोधिग्रहणलक्षणातत्सदाबायोगान् सदावेदानीलादाविवक्षणक्षयादावपिनदुपदर्शकलन गाताविपरीतसमारोपान्नेतिचेनहि सिटुनीलादोसमारोपविरोधिग्रहणलक्षणोनिश्चयनितदात्मकमेव Page #951 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमाणातदिहोदितं इतिपरीक्षामुखस्यलघुत्तोफलसमुद्दशः पेचमः॥५॥जयेदानीमुनप्रमाणावरुषादि चतुष्टयाभास माह ततोन्यतदाभासमिति तत सतातूप्रमाणस्वरुप संख्याविशयफलभेदादन्यहिपरीने नदाभासमिति नत्रक्रमप्राप्तस्वरुपाभासंदर्शयति अस्वसंवदिति गृहीतार्थदर्शनसंशयादयः प्रमाणाभास: अखसंविदितच गृहीतार्थचदर्शनंचसंशयजादिषांतसंशयादयश्चेतिसेषीहंदुः जादिशदेनविषयी. यानध्यवसाययोरपिग्रहरणे तखसंविदितसंज्ञानज्ञानांतर प्रत्यक्षलादितिनैयायिकाः तयाहिज्ञानेखा व्यतिरिक्तवेदनवयंवेद्यत्वातघटवदिति नदसंगतंधर्मिज्ञानस्यज्ञानोतरवेयले साध्यांतःपानित्वेनर्मिला योगान् स्वसविदितित्वैतेनैवहतारनेकांतात् महेश्वरज्ञानेनचव्यभिचाराध्याप्तिज्ञानेनाप्यनेकांनादर्थपनि पत्ययोगाच्च नहिज्ञापनपत्यसंज्ञायंगमयतिशब्दलिगादीनामपितयेवगमकलप्रसंगादनंतरभाविज्ञा नयासकवेतस्यायगृहीनस्यपराज्ञापकत्वानेतरंकल्पनीयं तत्रापिनदेनर मित्सनवस्थानस्मानायपक्ष त्रियान् एतेन करणज्ञानस्यपरोक्षवनावसंविदितत्त्वं ब्रुवन्नपिमीमांसका प्रत्युतःलस्यापिततार्थवत्स Page #952 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मास्वदेह मितिरेवस्थितः द्वितीय विशेषभेदमाह अर्थनिरगताविसहशपरिणामाध्यतिरेकोगोमहि पादिवदिति वैसादृश्यहि प्रतियोगिहरासत्यवभवति नचापदावादस्यावस्तुत्वमवस्तुनपेक्षिाला योगादेपेक्षायावस्तुनिष्टत्वात् स्यालारलांछितमवाध्यमनधर्मसंदेहवामनमशेषमपिप्रमेयं देवैम माणवलितोनिरवादिनच्चसेक्षिप्तमेवमुनिभिर्विवृत मयेनन् ॥१॥ इनिपरीक्षामुरवस्यलभक्तौ विशय - समद्देशचतुर्थः॥४॥ अवेदानी फलविप्रतिपनि निरासार्थमाह अज्ञाननिवृतिहीनेपिादानापेक्षाचाल माक्षात्पादज्ञाननिवृति पारेपयेगाहानादिकमितिप्रमेयनिश्चयोत्तरकालभावित्वातस्यति तहिधमपिफलंगमा गाटूिन्नमेवेनियोगः जमिन्नमेवेतिसोगतास्तन्मतद्वयनिरासनस्वमतेव्यवस्थापयितुमाह प्रमाणादभिन्नंच । कचिदभेदसमर्थनार्थहेतुमाह यःअमितेसस्वनिवृताज्ञानोजहात्पादभेदापेक्षतेचेनिषतः अयमयिस्यैवा मनःप्रभागाकारणपरिणतितस्यैवफलरुपनयापरिणामइत्येकप्रमात्रप्रेक्षयाप्रमाणाफलयोरभेदः कारणक्रियापा रिणामभेदादः इत्यस्यसामोसहलान्नोतंपारंपयेणसाक्षाञ्चलद्वैधाभिधायितत् देवभिन्नमभिन्नंच Page #953 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नापिपृथिव्यादिचतुश्यात्मकत्वमात्मनःसंभाव्यतेजचेतनेन्यःचैतन्योत्पनियोगात धारणरणवारण कतालक्षणाचयाभावाच्च नदहातवालकस्यतन्यादावभिलाशाभावप्रसंगाच्चअभिलाषोहिनत्य भिज्ञानेभवतिनन्यस्मरणस्मरणेचानुभवभवतीतिपूर्वानुभवःसिद्धः मध्यदशायोनियेयानः मतानी रिशोयक्षाहिकूसुस्वयमुत्यनलेनकथयतादर्शनात् अशांचिभवरमुनेरुपलंभाच्चानादिश्चतनसिद्ध एख नथाचोकम् नदहजलनेहानुरदोहोर्भवस्मृतः भूतानन्चयनान्सिम्भिकतिज्ञःसनातनति लचखदेहसमिनिरात्मेत्यत्रापिषमाणाभावात्सर्वत्रसेरायइनिवनव्यम् नत्रानुमानस्ससदाया न नयाहि देवदतात्मा हरवतत्रसर्वत्रैवविद्यते तत्रैवसर्वत्रेवस्खासाधारणगुणाधारतयोग लभात् योयत्रसवेनेवचखासाधारणगुणाधारतयोपलभ्यते सर्वभवसनत्रैवनेत्रचविद्यते यथा विदतग्रहस्खसर्ववचउपलभ्यमानःस्वासाधारणमासुरत्वादिगुण-प्रदीपः तथाचायनस्मा जथेनि नदसाधारयणगुणज्ञानदर्शनसुखवीर्यलक्षणलेचसर्वागीणानेवचोपलभ्यते सुख माल्हादनाकारविज्ञानमेयवोधनशतिः क्रियालमेयास्यामतः कोतासमागमतिवचनात् नरमादा Page #954 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिमाणसामान्याधिकरणत्वमात्मनइत्याचानुपपन्नं व्यधिकरणासिहि प्रसंगात् नहिपरिमा सामान्यमात्मनिव्यवस्थितम् दिनु परिमाराव्यानि वेवेति नचावातरमहापरिमायाहयाधाना यात्मन्यप्रतिपन्नेपरिमारणमात्माधिकरणतातत्र निवेशक्या दृष्टानश्चसाधनविकला जाकारास महापरिमाणाधिकरणतयापरिमाणमात्राधिकरणलायोगात् नित्यद्रव्यत्वेचसर्वयासिह नित्यस्य अमात्रमाभ्यामक्रियाविरोधादिनि प्रसज्यपक्षेपिभावस्यग्रहणोपायाभवान् नचविशेषगांत्वना वाग्रहीतविशेषणेमनाहीतविशेषाविशेश्यबुद्विरितिवचनात् नचप्रक्षेनद्रहणोपायः संवधामा वात् इन्द्रियार्थसन्निकजिहिप्रत्यक्षेनन्मतेसिंह विरोषणाविरोभ्यभावकल्पनायामभावस्यनारही तस्यविशेषणात्वमिति नदेवटूशणं तस्मात् नव्यापकमात्मद्रव्यं नापिवटकणिकामाबंकमनीयका नाकुचजघनसंस्पर्शकालेप्रतिलोमकूपमालादनाकारस्यसुखस्यानुभवात् जन्ययासवेगिागरोमादी दिकादियायोगादाशवत्यालातचक्रवनक्रमेोवनत्सुखमित्स्नुपपन्नं परापरातःकरणसम्बेधत नकारणस्यपरिकल्पनायांव्यवधानप्रसंगातू अन्यथासुखस्यमानसप्रत्यक्षादितिवायोगादिति Page #955 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लायाकारव्याप्तिवदेवस्यक्रमभाविपरिणामियापित्वमित्यर्थः विशेषस्यापिडेविध्यमितिदर्शयति वि शेषस्यापि विध्यमितिदर्शयति विशेषश्रेतिधेत्यभित्रियमाणेनाभिसर्वधः तदेवप्रतिपादयति का यिव्यतिरेकभेदादितिश्यमविशेषभेदमाह एकस्मिन्द्रव्येक्रमभाषिनः परिणामाःपर्यायाजात्मनित विशादादिवदिति जनात्मद्रव्य स्वदेहमितमानमेव नव्याप्य नापिवटकाणिकामात्रं नवकाया कारपरिणातभूतकदेवकमिति तत्रव्यापहले परशामनुमानमात्माध्यापनः व्यत्वेसत्य मूतवादाकाशदि नि तत्रयदिरुपादिलक्षमूर्त वसतिशेधोमूतत्व नदमनसानेकातःजयसवंगतदव्यपरिमाग तत्व तन्निराधलथाचेत्यरंभनिसाध्यसमोहेतुः यच्चापरसनुमानमासाध्यापन जणुपरिमाणाधिकर गोसतिनित्यव्यत्वादाकाशवदिति नदपिनसाधनसणुपरिमारणनधिकररावमित्यत्रनिमयनया र्थःपूर्युदासःप्रनिशेधोवाभवेत् तत्रायपणपरिमारणामाप्रनिशेयेनमहापरिणामावानरपरिमा गाधिकरणलंयव्यापकत्वमेवसाधयतीति परिमाणमानंचपरगसामान्योमैगीकर्तव्यो नयाचाण Page #956 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तराकार परिहारा वा सितिलक्षणा परिणामेनार्थ क्रियोपपतेश्चेति अनुवृत्ता कांरोहिंगो गोरित्यादिशत्ययः व्यावृताकारः श्यामः शबल इत्यादिप्रत्ययक्तयो यो गोचर स्तस्य भाव स्तत्वं तस्मादेवेन तिर्यक सामान्य व्यतिरे कलक्षणा विशेष द्वयात्मक वस्तुसाधितं पूवेत्तिराकार मोर्यथासंख्येन परि द्वारा वाती ताभ्यां स्थितिः सैवलक्षणंयस्य सचासोपरिणामस्य तेनाथक्रियोपपतेश्चेत्यनेन तूर्द्धता सामान्य पर्यायारव्य विशेष इयरुपेय स्तुसमर्थितंभवति अथ प्रथमोद्दिष्ठ सामान्यभेदं दर्शयन्नाह सामान्यं द्वेधातिर्यतामेदात् प्रथम भेदंसोदाहरणमाह सदृश परिणाम स्त्रिय के खंड मुडा दिगोत्ववत् नित्यैकरूपस्य गोत्वादेः क्रमयोग प भ्यामर्थक्रियाविरोधात् प्रत्येकं परिसमात्याव्य क्तिषु वृत्ययोगाश्वानेके सदृश परिणामात्मकमेवेतितिर्य क सामान्य मुक्तं द्वितीय भेद मपि सदृष्टांत मुपदर्शयति परापरविवर्त व्यापि द्रव्य मूर्द्धत । मृदिवस्था सादि स्वति सामान्य मिति वर्तते नायमर्थः उर्द्धता सामान्यं भवति किं तद्रव्यं तदेव विशिष्यते तदेव विशिष्यते पर परविवर्तव्यापीति पूर्वापरकाल यतित्रिकालानुयायी सर्थः चित्रज्ञानस्य कस्य युग पद्धा व्यनेक स्वगतनी Page #957 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्यव्येभ्यइनिकिंच समवायस्यानाश्रितत्संबंधरुपतयेवनघटतेनथाचप्रयोगः समवायोनसबंधःजनाश्रित नित्वादिगादिवदिति अत्रसमवायस्यधर्मिणः कथंचिनादाम्यरुपस्यानेकस्याचपेरेः प्रतिपन्नत्वादुर्भिपाकप माणवाधाजाश्रयासिद्धश्चनवाध्येतिनस्यात्रितत्वेप्यनदभिधीयते नसमायिएकःसंबंधात्मक सत्साश्रित त्वात्संयोगवन् सतायानेकोतइतिसंबंधविशेषणं जयसयोगेविरोननिविडसिथलादिप्रत्ययत्वानानानाना त्वनान्यत्र विसर्पयादितिचे नसमवायेयुत्पतिमत्त्नश्वरत्व प्रत्ययनानात्वस्य सुलभत्वान संबंधिन्नेदाढ़ेदो न्यत्रापिसमानइतिनैकौवपर्यनुयोगोयुक्ततस्यात्मसनगयस्ययोगपरिपरकल्पितस्यविचारासहत्वानहशा एगण्यादिवभेदप्रतीति: जयभिन्न प्रतिभासादवयवावयव्याक्षिनाभेदएवेतिचेन्नभेदप्रतिभासस्याभेदा विरोधात् पटपटादीनामपिकथंचिदभेदोपपतेः सर्वथापतिभासतेदस्या सिद्धेश्व इदामित्यायभेदप्रतिभास स्यापिभावाततः कथंचिढ़ेदाभेदात्मकंव्यपर्यायात्मकंसामान्यविशेषात्मकंच तत्वनीगदर्शिसकुनिन्यायेन्यायात मित्यलामितिप्रसंगेन इदानीमनेकांतात्मकंवरनुसमर्थनार्थमवहेनुहृयमाह अनुसनव्यारत्ययगोचरत्वान् पूर्व Page #958 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निनसामान्यविशेष दृष्टीतेनच परिततो जयतत्रताप्रतिभासनेपरस्यापिवस्तुनितयैवप्रतिभासोलु नस्यपक्ष पाताभावात् निनिसंशयोपिनयुतः तस्यचलितप्रदतिपतिरुपत्वादचलितप्रतिभास दुर्घटत्वात् प्रतिपन्नव लन्यप्रतिपनि रित्यतिसाहसं उपलव्यभिधानादनुपलभोपिनसिहततोनाभाव इतिदृष्टेष्टाविरुहममेकोतरी सनसिट्टमेनेनावयवायविनोगुणगुणिनोः कमलहतोश्कयं चिंदूदाभेदीप्रतिपादितोबोधव्यो अबसमवाया वशान्नेिश्वष्यभेदप्रतीतिरनुत्पन्नवस्तुलाख्यज्ञानस्येतिचेन तस्यापिनतोभिन्नस्यव्यवस्थापयितुमशः तथाहिसमवायवृत्तिः स्वसमवायियुतिमतीस्यादवृतिवादतिर्मत्वेनैववृत्यंतरेणचानवतावदाय-पक्षः समवाया समवायानभ्युपगमात् पंचानांसमवायित्वमितिवचनात् वृत्यनरकल्पनायांनदपिखवंधियुवननेनवेतिकल्पना याहत्यंतर परंपराभनिरनवस्थानसेतरस्यखसंबंधियुनत्यंतरानभ्युपगमानानवस्थेतिरेनहिं समवायेषिहत्येनरे माभून जयसमनासपुसल्वेवसमवायप्रतीतेलस्याश्रितत्वमुपदल्यते तहिमूर्तद्रव्ययुसत्वेवदिग्लिंगस्वेद मतः पूर्वणेत्यादिनस्यकाललिंगस्यचपरादिक्षत्ययस्य सद्भावनयोरपिनदाश्रितत्वेस्यात् नयाचायुतमैदन्यत्रव्य Page #959 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलेचवसुनोसाधारणाकारणनिश्रेनुमशक्तेः संशयस्तत्रश्चापतिपनिस्ततोभावः इत्यनेकांतात्मकमपिनसोरव्यमा भजनीतिकेचिन् नेपीनपातीतिकवादिनः विरोधस्यप्रतीयमानयोरसंभवादनुपलेभसाध्योहिविरोधस्लत्रोपलभ्य मानयाःकोविरोधः यञ्चशीतोष्णस्पर्शयारिवेतिदृष्टीततथोतं तच्चभूपदहनायेकालयविनःशीतोष्णस्पर्शसभी वस्योपलव्धेस्युकमेव एकस्यचलालचरताइतादिविरुहुधर्माणायुगपदुपलब्धेश्वभक्तयोरपिनविरोधइति ए तिनवैय्यधिकरण्यमप्यपास्ता तयोरेकाधिकरणवेनप्रतीतरत्रापिपागुननिदर्शनान्येववोडव्यानि यच्चानवस्था नंदूषणनदपिस्याहादिमतानभिजेरवापादितं तन्मतहिसामान्यविशेषात्मक वस्तुनिसामान्यविशेषविवभेदने दवविनातयोरेखाभिधानाद्रव्यरुपेणाभेद निद्रव्यमेवाभेदःएकानेकात्मनहाइलुनः यदिवाभेदनयप्राधान्येना वस्तुधर्माणामानेत्यान्नानवस्था तथाहि यत्सामान्यंयच्चविशेषतयोरनुवृत्तव्याताकारणभेदलयोश्चार्यको याभेदानदश्वशतिभेदात्सोपिसहकारिभेदादित्यनेतधर्माणामंगीकरणात कुतोनवस्थानयाचोकं मूलदातिक रीमातुरनवस्थाहिंषणं वस्त्वानेतेप्यशकोचनानवस्थाविचार्यतइतिपोचसंकरव्यनिकरो तापपिमेचकज्ञाननिदर्श Page #960 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , युनप्रसंगसाधनान् प्राग्भावादीहिसवा दोसत्वेन व्याप्तउपलव्यतेततश्चव्याप्यस्यद्रव्यादावभ्युपगमो व्यापका सुपगमनांतरीयकइतिप्रसंगसाधने अस्यदोषस्याभावादेतेनदव्यादीनामप्यद्रव्यादिलंट्रव्याचादेर्भदेनितिनं या मा बोद्दव्यंकर्यमाषमुगपदार्थानांपरस्परांभेदेप्रतिनियतस्वरुपव्यवस्थादव्यस्यहि व्यमितिव्यपदेशस्यद्रव्यत्वानि संवैधाभिनेततःपूर्वट्रयस्वरुपंकिंचिद्वाच्यं येनसहव्यत्वामिसंबंधःस्यात् द्रव्यमेवस्वरुपमितिचन्ननस्यामि मतासंबंधादेव नव्यपदेशकारणादेवंरणादिधषिवाच्योरलंसामान्य विशेषसमवायानामेवखरुपसत्वेननया यपदेशोपपतेः तंत्रयव्यवस्थेवस्यान नजीवादिपदार्थानांसामान्यविशेषात्मकस्याहादिभिरभिधीयते न योश्चवसुनोभेदाविति तोचविरोधादिदोषोयनिपातन्नेिवनयभविताविताविति तथाहिभेदाभेदयोविधिप निशेधयोरेनामिन्नवस्वन्यसंभवः शीतोष्णसंस्पर्शयोरिवेनिभेदस्यान्य दधिकरणमभदस्यचान्यदितियधि करण्यं यमात्मानंनुपुरोधायभेदोपचसमाश्रित्याभेदस्तावात्मानौभिन्नीचामिनोच नापिनथापरिकल्पनाद नवस्थायेनरुपेणभेदरलेनभेदश्वाभेदतिसकरः येनभेदनेनाभेदोयेनाभेदनेनभेदतिव्यनिकरः भेदाभेदाम, Page #961 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहकारिभावइतिनस्वभावभेदइश्यते तहिनित्यस्पेकरुपस्यापिवस्तुनः क्रमेणनानाकार्यकारिणः स्वभावभेदका यसीकार्यमाभूतःजक्रमा ऋमिणामनुत्पतेनैवमितिचेदेकानंशकारणासगपदेनेककारण साध्याने काविरोधा दक्रमिणोपिनर्मिकस्पकार्यकारित्वमिति किंचभवत्पक्षेसतोसतोवाकार्यकारित्वंसतः कार्यकर्ने सकल कालक | लाध्यापिक्षणानामेकक्षणावृतिप्रसंगः द्वितीयपक्षेवरविशणादेरपिकार्यकारित्वमसत्वाविशेषात्सल्पलक्षणस्य व्यभिचारश्चनस्मान्नविशेवैकांतपक्षःश्रेयान नापिसामान्य विशेषोपरस्परानपेक्षाविनियोगमपितमपियनि युक्रमवभानिनयोरन्योन्यभेदेहयोरन्यतरस्यापिव्यवस्थापयितुमशनेः तथाहि विशेषास्तावव्यगुणकर्मात्म तः सामानंनतु परापरभेदाहिविधतत्र परसामान्यात्सत्तालक्षणाभेदेसत्यापतिरितितयाचव्ययोगः द्रव्यराण कीयसपाणिसवादयतभिन्नत्वालारभावादिति नसामान्यविशेषसमवायव्यभिचारः तत्रस्वरूप सत्वस्याभिन्नस्यपेरेरभ्युपगमान ननुयादीनांप्रामाणोपपन्नत्वधर्मियासप्रमाणवाधितोहेतुर्येनहिप्रमा गनव्यादयोनिश्चियेनेनेननसलमपीति जयमप्रमाणप्रतिपन्नाद्रव्यादयस्ताहिहेतोराश्रयासिद्धिरितितद Page #962 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मान्य प्रत्यभिज्ञानस्यवहुलमुपलभानलाण्यस्यचप्रागेवीतत्वादुत्तर कार्यपियानुपपतश्चसिद्धत्वात् पञ्चान्यासाधनसा त्वाख्येतदपि विपक्षवत्स्वपक्षेपिसमानत्वासाध्यसिहिनिधनन तथाहि सत्यमर्थक्रिययात्पमालयाचक्रमेयो गपयाभ्यांचेतिक्षाणकान्निवर्तमानेखव्यायामर्थक्रियामादापायनिवर्ततेसाच निवर्तमानाखध्यायसत्वमिति नित्यस्यवक्षणिकस्यापिरखरविशाणवदसत्वमितिनत्रसत्वव्यवस्थानचक्षाणिकस्यवस्तुनःअमयोगपयाभ्याम थक्रियाविरोधोसिद्धलस्यदेशतस्याललतस्यवासनस्यासंभवात् जयस्थितस्यैकस्यहिन देशकालकाला ध्यापित्वंदेशनमः कालक्रमश्चाभिधीयतेनचक्षाण सोस्ति योयत्रैवसतंत्रेश्योसंदेवं दैवेसः नदेशकालयो: ध्याप्तिभावानामिहविद्यते इतिखयमभिधानान नचपूतिरक्षणानामेन लेनकमायोगादसाणिकन्वेनैवसत्वादिसा धनमैनेकांतिकंजवास्तवरलेन नटपेक्षक्रमायुक्तशतिनापियोगपयनतत्रार्थक्रियासंभवति युगपग्रेननत्रार्थक्रिया संभवतीयुगपदेनस्वभावननानाकार्य करणेनकायकत्वस्यान्नानास्वभावकल्पनायोते स्वभावाले नव्यापनीयान त्रिकेनखभावेन नव्याप्तीनेषामेकखरुपतानानास्वभावेनवेदनवस्था जयेकस्यात्रैकस्योपादानस्वभावएवान्यत्र || संतानापियाकम संभनति।संतानस्यवास्तबावन स्यानिक्षीकत्वेन । Page #963 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुपेणवृतिखसीयते तत्रयथातदोषाणामनवकाशाहिरोधादिदोषश्चाग्रेप्रतिशेल्स्य इतिने प्रतन्येत यंञ्चकक्ष स्थायित्वसाधनेयोयदावेप्रतीत्यायनं तदप्यसाधनंजसिद्वादिदयदुष्टत्वात् तत्रान्यानपेक्षवंतावद सिहघटायभावस्थमन्दराचदिव्यापरान्वयव्यतिरेकानुविधायित्वातत्कात्विोपपतेः कमलादिपर्यायांतरभा वोहिधादरभावलुवाभावस्यसकलप्रमाणगोचरानिक्रांतत्वात् विचाभावोदितत्रोभवेनदान्यानपेक्षत्वं विशेषणयुक्तं तच सोयतमतेलोमतसोसिइतिहेतुप्रयोगाचत्तिकोतत्त्वात् । नचसोगतमते सोसिइतिहेतुप्रयोगा| नवतारएवानेकांतिकंचेदंशालिवीजस्यकोदोकुरजननप्रत्यन्यानपेक्षले नज्जनन स्वभावानियतत्वातस्विभावले सतीतिविशेषणान्नदोषइतिचेन्नसर्वापदार्थानांविनाशस्वभावासिद्धेःपर्यायरुपेणैवहिभावानामुत्पादविनाशावगं क्रियतेनद्रव्यरुपेण समुदेनिविलयमृच्छनिभावोनियमेनापयिनयस्यनोदेतिनोविनश्यति भावनयालिंगितोनित्य नि वचनान नहिनिरचय विनाशेपूर्वदागास्यनतामृताच्छिखिनः काइतस्येवोनरक्षणास्योत्पनिर्घटने व्यरुपणकर्यचिदा अनुरुपस्यासंभवात् नसर्वथाभावाना विनाशवभावत्वंयुकनचद्रव्यरुपस्यगृहीतुमशक्यत्वादभावः नद्रणापाप्यस्य Page #964 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिवाल बिल सितंनिर्विकल्प बोधस्यानुपलक्षणात् गृहीनेति निर्विकल्पक्के नर योर्भेदै अन्या कारा नुराग स्यान्यत्र क ल्पनायुक्ता स्फटिक जया कुसुममाखिनान्यथेति एतेन तयो युग पहूने: लघुवृते वतिदेकत्वाध्यवस्या ये इतिभिर नस्यापि को पान प्रत्ययत्वा दिति क्रेन चातयोरेकत्वाध्यवसायोनता वद्धि कल्पेन तस्या विकल्प वातनिभिज्ञत्वात् ना प्यनुभवेन नस्पविकल्पा गोचरत्वात् नच तदुभया विशेया विश्यं नंदे कन्वाध्यवसाये समर्थ मतिप्रसंगात् नतोन त्यक्ष बुद्धौ नथाविधविशेषावभासः नाप्यनुमान बुडो तद् विनाभूत स्वभाव कार्य लिंगा भावादनुपलं भो /सौहुँ एवव तुरता कार स्य स्थूला कार स्य चोपलब्धेरुक्तत्वात् यदापिपर माणूनामेकदेशेन सर्वात्मना वा संवेधो नोपपद्यते इतित पत्रानुगम्य एवपरिहारः स्निग्धरुक्षाणां सजातीयानां च ध्यधिक गुणानां कथंचित् स्वं का कारि परिणामात्मकस्य सं निः बंधस्याभ्युपगमात् यच्चावयवे निवृति विकल्पादि बाधकमुक्तं तत्राय विनोवृत्तिरेवद्य द्विनोपपद्यते नदानव इत्य भिघातव्यं नैक देशादिविकल्पस्तस्य विशेषांतर नांतरीयकत्वात् तथाहि नैकदेशे भवर्तते नापिसवा न्मनेयुक्ते प्रकारां नरेगा वृतिरित्यभिहितं स्यादन्यथा नवर्तन इसेन वकव्यं इतिविशेषप्रतिशेधस्यशेषाभ्यनुज्ञान रूपत्वा कथंचितास्य धा 巧瓜 वे दा Page #965 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोषइनिचेतदपिनसाधुसेगतं नित्यस्यसमर्थस्यपरापेक्षायोगात् नैःसामर्थ्यकरगेनित्यताहानिः तस्मादिन्न भिवसामर्थनैविधीयन इनिननित्यताहानिरिनिचेतहिनित्यमकिंचित्करमेवस्यात् सहकारिजनिनसामर्थ्यस्ये वकार्यकारिन्दोत्सवधानस्यापिकारिलेनन्संवधस्येवस्वभावित्वेसामयेनानात्वाभावान्नकार्यभेदः अनेकन भावित्वेक्रमवत्वेचकार्यवतस्यापिसोकामिनिसर्वमावर्तते इतिवनकासंगः तस्मान्नक्रमणकार्यकारित्वं नि त्यस्य नापियुगपदशेषकार्याणां युगपटुत्यतीद्वितीयाणकार्याकारणादनर्थक्रियाकारिलेनावत्प्रसंगादिने नित्यस्य कमरोगपयाभावः सिहस्वेतिसौगतः प्रनिपेदिरे नेपिनयुकवादिनः सजातीयेतरल्यावनात्मनोविशे यामनशानासाहकस्य प्रमाणस्थाभावात् प्रत्यक्षस्यस्थिरस्यूलसाधरणा कारवनुमहित्वन निरेशवसुबहणायो गान् नहिपरमाणावः परस्परांसदहाश्चक्षुरादितुंवोपनिमानि तयासत्यविवादप्रसंगादमानुभूयनवाप्रथमेनया क्षण: पश्चातुविकल्पवासनावलादानरालानुपलंभक्षणाद्वार्यञ्चाविद्यमानोपिस्थूलायाकाग विकल्सवोचका सिसचनदाकारणानुरज्यमानःस्वव्यापारनिरस्वत्यप्रत्यक्षव्यापार पुरस्सरत्वेन प्रकृतत्वात प्रत्यक्षायनि तदप्य Page #966 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सॉ करणे घटस्यस्थितिरेव स्यादथविनाश संबंधान्न ष्टइतिव्यपदेश इति चेद्रावाभावयोः कः संबंधो नता वदबिंदास्यं न योर्भेदान्नापितत्य तिर भावस्य कार्याधारत्वाघटा दभिन्नस्य करणे धटादिदेवकृतः स्यात्तस्य चप्रागेवनिःपन्नत्वा व्यर्थ करण मित्यन्वानपेक्षा त्वं सिद्धुमितिविनाशस्वभाव नियत त्वं साधयत्वेव सिद्धेवा नित्यानां तत्स्वभाव नियतले तदितरेषामात्मादीनां विमत्यधिकरण भावापन्नानां सत्यादिना साधनेन दृष्टां तावदु वत्सेव क्षरण स्थितिस्वभावत्वं तथाहि बन्सनन् सर्वमक क्षरा स्थितिस्वभावं यथा धटः संतश्वामीभाव इति जमवा सत्यमेव विपक्षे वाधक प्रमा राम मिति नहिनित्यस्य क्रमेण युगपद्दा सा संभवति नित्य स्यैकैनैव स्वभावेन पूर्वपिर्काल भाविकार्यद्वयं कुर्वतः कार्या भिदकत्वात्तस्यैवस्वभावत्वात् तयहि कार्यनानात्वे अन्यन्त्र कार्यभेदा कारणभेदकल्पना विफलेव स्या ना हशमेकमे व किंचित्कारणंकल्पनीयं येनैके स्वभावेनैव चराचरमुत्पद्यत इति अथस्वभावना नात्वमेव तस्य कार्यभेदादिस्य ते नइति तर्हि स्वभावस्तस्य सर्वदासंभविन स्तदा कॉर्य नो चे तदुत्यति कारणं वाच्यं तस्मादेव मित्येक स्वभावानां दुत्पतौ तत्स्वभावानां सदा संभवा त्सेवकार्याणां युगपत्प्राप्तिः सहकरिक्रमापेक्षया तत्स्वभावानां क्रमे शाभावान्नोर्यसांक Page #967 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तदुकं एकत्रदृष्टोभावोहिक्वचिन्नान्यत्रदृश्यने नस्मान्नभिन्नमस्येतत्सामान्यंबुख्यभेदनइति तेच विशेषाः परस्पण संवहारव तत्संबंधस्यविचार्यमाणस्यायोगातू एकदेशेनसंबंधे जणुशनयुगयोगादणेशतापनेः सन्मिना भिसंवैधषिउस्यास्लुमात्रकापतेः जक्यवनिशेधाजासंबंधत्वमेषामुपपद्यनएव नन्निरोधश्चतिविकल्लादिवाधना न नयाहि जवयवाअवयवविनिवत:निनाभ्युपगनमवयवीचाक्यवेयुवर्तमानः किमेकदेशेनवर्ततेसर्वात्मनावाए। देशैनवत्यावयवानर प्रसंगलवायदेशोतरेणावयविनोदनावनवस्था सर्वामिनावर्तमानोषिप्रत्यवयवखभावदे, नवनिताहोद रुपिरोनि प्रथमपक्षे अवयवविवहुत्वा पतिः द्वितीयपदोववयवाना मेकरुपतापनिरितिप्रत्येकपा रिसमाप्त्यापनावय्यवयविवमिनिलयायदृश्यसन्लोपलभ्यते तन्नास्त्येव ययागगनेन्दीचरनोपलभ्यते चावयवे धवयवीनितथापट्योहेपबुद्धिभावलतीभावार्थतिरं ययावृक्षारहवन मिति नतश्वनिरंशाएवान्योन्यासंस्पर्शिी नोरुपादिपरिमाणवः 'नेचेकक्षणस्थापिनीननित्याविनाशप्रसन्यानपेक्षणान प्रयोगश्ययोयदावंप्रनन्याने सनस्वभावनियता यथायाकारणसामग्रीस्वकार्यनाशोहिमुग्दरादिनाक्रियमाणातनोमिन्नोवाक्रियो भिन्नस्य Page #968 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानवधानसंसर्गादात्मनोपित्तथाप्रनिभासइनितदप्यनुपन्नमप्रनिभासमानस्पापिसंसर्गकल्पनायांनत्वयनायानिश्चेनुम शक्त: नटुनंसंसोदिदिमागश्चेदयोगोलकवहिवन भेदाभेदव्यवस्येवमुछिन्नासर्ववरचिनि यदपिपरिमाणात्य साधने नदप्येकपकनिकयु घटघरीशरवादेचनीदिवेनाप्रशनिकयुपटमुकुटशकदादियुचोपलेभादनेकोनिकमिनि नततः प्रति सिद्धिः नदेवप्रधानमरणोपायासमवान संभवेवानत कादियायोगच्च यदुरूपरेरणाप्रमतर्महान ननाहकारः तस्मादु अशोउपकनस्मादपिशोडशक्रांसचभ्यःपंचभूतानीतिसृष्टिक्रमोमूलमनतिरविझनिर्महदायाःप्रतिविकतयः सप्तशार शिवश्वविकारोनभन्नतिः पुरुषइतिस्वरुपाख्यानचवंध्यासुनसोप्यवर्णनमिवासहिशयत्वापेक्षामर्हति जमूनस्याकाश स्यमनस्यपृथिव्यादेश्चैकारणत्वायोगाश्चजन्यथाजचेननादपिपंचभनजदेवकाच्चैतन्यसिद्धिश्चापनि मलसिद्धिप्रसंगा। सांख्यमलगन्धव नभवन सत्कार्यवादप्रनिशेधश्चान्यत्रविस्तरेणोक इनिनेहीयते संक्षेपस्वरुपवादस्येति तथा विशे, वाएवतन्वं नेपामसमोनेरविशेषोत्मनाविश्लेषात्मकत्वात्सामान्यस्यकस्याने त्रस्याव्यात्यावर्तमानस्यसंभवाभावाञ्च तस्येक व्यक्तिनिष्ठस्यसामरन्यनोपलव्धलघ्यक्तिवदन्यथाव्यतयोपिभिन्नामाभूवन्निनि तनोमुख्यभेदएवसामान्य Page #969 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नत्रसारत्यैःप्रधानंसामान्यमुतंत्रिगुणामविवेकविशयः सामान्यमचेतनप्रसवधर्मिव्यतनथाप्रधानाद्विपरीतन। थाचपुमानिनिवचनात नच्चकेवलंप्रधानमहदादिकानिःपादनायप्रवर्तमानं विमप्यपेक्ष्यप्रवर्तते निरपेक्षवाप्रथमा पक्षनन्निमितवाच्यं यदेपेक्षेप्रवर्ततेननुपुरुषार्थवनवकारगपुरुषार्थ हेतुना प्रधान प्रवर्तते पुरुषार्थश्चधाश दायालब्धियुगापुरुषांतरविवेकदर्शनं चेत्यभिधानादितिचेन सत्यतयाप्रवर्तमानमापिसुभान रुपनविदि दुपकारंसमासादयत् प्रवर्ततीनासादयहाप्रथमपक्षेसउपाकारतस्मादिन्नोभिन्नोवायदिभिन्नःतदानस्येनिया पदेशाभावः संबंधाभावातदभावश्चसमवायादेलस्युपगमात् तादात्म्यचमेदविरोधीतिजथामिन्नउपकार हति पक्षजाश्रीयते तदाप्रधानमेवतेनहानेस्यातू जयोपकारनिरपेक्ष्यमेवप्रधानप्रवर्तते नारीमुक्कामानंप्रत्सपिप्रवर्तन विशेषादेनेननिरपेदाप्रवृतिपदोषिप्रयुक्तलतएव हिंचसिद्धेमधानेसर्वमेतदुपपन्नस्यान्नचनत सिद्धिःकृतचिन्नि श्वीयते इनिननुकायर्याणामेका चयदर्शनादेजकारणभवत्वंभेदानांपरिणामदर्शनाचेनिनदप्यचारुचर्चिवंसुखदुःख मोहरुपनयाघटादेरचयाभावादतावस्येवतयापलंभातूजयातनत्वस्यनसुखादिपरिणामः किंतुनथापरिणम Page #970 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चभावकार्ययोरसंभवान किंचगोशब्दस्यागोपोहराभिधायित्वेगोरित्यत्रगोशब्दस्यकिमभिधेयस्यादज्ञानस्यविधि निशेधयोरनधिकारान् जगोनिनिरितिदितरेनराश्रयत्वमगोव्यवच्छेदोहि जगोनिश्चयभवनिसचागोगोनि वित्यात्मागाश्चागोव्यवष्ठेदरुपइति अंगोरियौनर पदायिनयेवदिशाचिंतनीयः नन्वगौरिसमान्यस्यविधि पोगोशब्दाभिधेयस्तदापोह शब्दार्थ निविघटेन तस्मादयोहस्योनयुक्त्याविचार्यमारणस्यायोगानान्यापोह शब्दायी इनिस्थिनं सहजयोग्यतावशाच्छन्दादयारसप्रनिपनिहनवइति स्मृनिरनुपहनयंप्रत्यभिज्ञानवज्ञाप्रमितिनिरत विनालैगीसंगनार्यभवचनबद्यनिश्चि देववाचारचितमुचिनवाग्मिनथ्यभेनेनगीनं ॥ इतिपरीदासुखस्यलधुनी परोक्षप्रपंचनृतीयःसमुद्देशः॥३॥जयखरुपसंख्याविषतिपनि निराहत्यविशयविमतिपनि निरासार्थमाह सामा त्यविशेषामिातदयविशयः तस्यप्रमाणस्ययायाविशयनियावन् सवविशिष्यतेसामान्यविशेषात्मासा मान्यविशेषोधक्ष्यमाणलक्षणेतावात्मानीयस्येतिविग्रहः तदुभयग्रहणंत्रात्मग्रहणंचवलस्यसामान्यस्यवि। शेिषस्यतटुभयस्यवास्वतंत्रस्यप्रमाणविशयत्वप्रतिशेधार्थतत्रसन्मादेहस्यपरत्रमशानिरस्तत्वातदितरहिचायोग Page #971 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिकनानास्वादिपिकल्लानांप्रतीतेः भेदेवाजभावस्यवस्तुनापतितलक्षणत्याहस्तुत्वस्यनचापोशलक्षणसंवधिभेदा दिदः प्रमेयाभिधेयादिशब्दानम प्रवृत्तिप्रसंगात् व्ययछेयस्यानपणाप्यप्रमेयादिरूपत्वेनताव्यवच्छेदायोगाना अर्थतन्त्र संबंधिमदादूदः किच शावलेयादिविकोपोहो प्रसज्येतकितप्रतिव्यविभिन्न एवस्यादयसांवलेयादय न जन्नमिदंति नर्यश्वादयोपिभेदकामानुभूवन यस्यातरंगाः शावलेपादयोनभेदकालस्याश्चादयोभेदकाइत्यति साहसेक्खनोषिसंबंधिभेदादेदोनोपलभ्यतेविमुतावस्तुनि तयायेकएवतादिः कटन तंडलादिभिरभिसंवध्य | मानोननॉत्वमारितधुवानः समुपलभ्यते इनिभवनुवासंवधिनेदादूदनथापिनवलुभूतसामान्यमनरेणान्यापोता श्रयःसंबंधीमवतिभवितुमर्हति तथाहि यादिशावलयादिषुवरनुभूनसासप्याभावोश्वादिपरिहारण तत्रैवविशिष्या भिधान प्रत्ययोजयस्यातां ततः संबंधिरेदादूदमिच्छसापिसामान्यंवारनवमंगीकनन्यमिनिकिंचापोहशब्दार्यप क्षेसंदेनएवानुपपन्नलद्दरणी पायासंभवातून प्रत्यक्षद्हणसमर्थनस्यवस्तुविशयत्वादन्यापोहस्यचारसुवा दनुमानमपिनतदायमववोधयनि नस्यकायेखभावलिंगसंपायत्वापोहस्यनिरुपाख्यत्वेनायक्रियाकारित्वेनच Page #972 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातू नहिगवादिशब्दश्रवणादेव गवा दिव्यावृतिः प्रतीयते ननस्सारखा दिमत्य ये वृत्ति दर्शनादवगवा दिवुट्ठिजन कं तत्र शब्दोतरं मृग्यं मये करमादेव गोशब्दादर्य द्वयस्यापिसंभावना न्नार्यः शब्दांतरे सो तिचेन्नैव मे कस्य पर विरुद्धा यद्वय प्रतिपादन विरोधातू किंच गोशब्दस्या गोव्यावृति विशयत्वे प्रथमगोरिति प्रतीयते नचैवमतेो नान्यापो हः शब्दार्थः किं चापो हाख्यं सामान्ये वाच्यत्वेन प्रतीयमानं पर्यु दास रूपं प्रसज्य रुपवा प्रथम पक्षे गोत्वमेव ना मांतरे णोकं स्यादभावभावस्य भावांतर स्य भावेन व्यवस्थितत्वात् कश्वायमश्वादिनिवृति लक्षणों भावोभिधीयतेन तावत्स्वलक्षणा रुपस्तस्य सकल विकल्पवाणो च राति कांता त्वान्ना पिशाबलेयादिव्यक्तिरुपस्तस्यासामान्यत्यम संगातू तस्मात्स कलगो व्यक्ति धनुवृत प्रत्ययजनकं तंत्रे व प्रत्येकं परिसमा त्या वर्तमानं सामान्य मेव गोशब्दवाच्यंन स्यापोह इति नामकरणे नाममात्रै भिप्रेतं नार्य इति अतोनामः पक्षः श्रेयान् नापिद्वितीयो गोशब्दादेः क्वचिद्वा येथे प्रवृतियोगा। तुच्छा भावमभ्युपगमे पर मत प्रवेशानुशंगाच्च किंचगवा दयोयेसामान्यशब्दाये चला बले पादयस्तेषां भवदभिप्रायेण पययितास्यादर्यभेदाभावा हु क्षपाद (पादिशब्दवत् नखनुवा भावस्य भेदोयुको वस्तु न्येव संस्टष्ट Page #973 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इति तदप्ययुतं परामिमाया परिज्ञानात् नास्माभिर्वकरभावदस्थपामाएयाभावः समुद्राव्यते किंतुतम्यारण्याचा णांमतीट्रियार्थदर्शनादिगुणाभावनतोदोषाणामायोदितत्वान्नप्रामाण्यनिश्चयइति ततोहरायवेपिवेदस्या प्रामाण्यनिश्चयायोगात नानेनलक्षणारयाव्यापित्वमसमविलवैशलमतिजल्पितेन ननुशब्दार्थयाः संबंधाभावा दन्यापोहमात्राभिधायित्वादाप्तभरणितादपिशब्दात् जयबस्तुभतायोवगमश्त्यमाह सहजयोग्यतासेनेतविराति शब्दादयोरप्रतिपनिहतवइति सहजास्वभावभूतायोग्यताशब्दार्थयोषांच्यवाचनशहितस्यासंकेतसहशादी स्फुटशब्दादयः प्रागुका वस्तुप्रतिपत्तिहेतवइति उदाहरणमाह यथामेघादयःसंतीति ननुथएवशब्दासत्पर्यह शास्तएवायोभावेपिरस्यतेतत्क्यमर्याभिधायिकत्वमिति सदस्ययुकमनर्थवभ्योशदेवार्थवनामन्यत्वान्नचान स्थव्यभिचार यस्यासोयुक्तोनिप्रसंगादन्यमागोपालपटिकांतर्गतस्यधमस्यपायदस्यचयभिचारपर्वतादिधम स्यापिनत्प्रसंगात यन्नतःपरीक्षितकार्य जरणेनातिनेते इत्यन्यत्रापिसमा सुपरीक्षितोहिशब्दार्थनय भिचरति तथाचान्यापोहस्यशब्दार्थत्वकल्पनंप्रयासमात्रमेव नचान्यापोहः शब्दाव्यिवनिष्ठनेप्रतीनिविणे Page #974 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिपादित त्वाभाव प्रमाणो सुनायोगात् प्रमाण पंच कामावे भाव प्रमाशा प्रवृतेः प्रमाशा पंचकं यत्र वस्तु रुपेन जायते व स्वस्वभाव वोधार्थ तत्रा भाव प्रमाशा तेति परैरेभिधानात् नतोनवादिनः कतु रेस्मरणमुपपन्नं नापित्रतिवादिनः स्मरणा तू ननु प्रतिवादिनावेदेव कादयो वह वः कतरिः स्मर्यते, अतस्तत्स्मरण स्य विवाद विशय स्वाप्रामा एमा दुवे देव सर्व स्य कर्तु रेस्मरण मिति चेन्न कर्तृविशेष विशय एवा सौ विवादेनकर्तृ सामान्यतः सर्वस्य कर्तु रेस्मर मप्य सिद्धं सर्वात्मज्ञा न विज्ञानरहितोवाकथं सर्वस्य कर्तुरस्मरणमेवेति तस्मादपौरुषेयत्वस्य वेदे व्यवस्थापयितुमशक्यत्वान्न तदक्षरास्व व्यापकत्वमसंभव त्वं वा संभवति पौरुषेयत्वे पुनः प्रमाणानिवह निसं त्येव सजन्ममरा शिंगोन चरणा दिना स रने कपदसंहति प्रतिनियम संदर्शनात् औरुषेयत्वेपिवानप्रामाण्यं वेदस्योपपद्यते तद्वे तूनां गुणानामभावान ननुनगुणा कृतमेव प्रामाण्यं किंतुदोषा भाव प्रकारेणा पिसचं दोषाश्रय पुरुषाभावेपिनिश्चीयतेन गुरारास द्वावएवेति तथा चोकं शब्द दोषो वरना व इधीन मिति इतिस्थितं तदभावः चितावद्रावक लतः सदूर परुष्टीनोम क दिदोमो द्रवः ना बटूक- धीनमिति इतिस्थिनेानः- संकाव्यसंभवात् यहा वतुरभावेन नस्यु दोषा निण्ड प्रया Page #975 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गसाधनाददोषइतिचेन्नपरप्रतिसाध्यसाधनयोव्यापकमावाभावादिदानीमपिदेशांतरेवेदकारस्याटमादे सोगतादि निरभ्युपगमात् यदप्यपरंपेदाध्ययनमित्यादितदपिविपक्षेपिसमा भारताध्ययनसंवैगुवध्ययनपूर्वकं तदध्ययनया न्यवादतकानाध्ययनंययेति यथान्यदुतमनवाछिन्नसंप्रदायत्वसत्समयमानकर्तृत्वादितितमजीदिपारामादि भिव्यभिचारनित्यमनच्छिन्नसंपदायत्वविशेषणेषिविशेष्यस्यास्मयेनाराककत्वस्यविचार्यमारणस्यायोगादसाधनलं कर्तरस्मरणहिवादिनःप्रतिवादिनःसर्वस्ययातादिनदनुपलव्धेरभावाहा जायेपक्षेपिटकनयेपिस्याद/ नुपलव्यविशेवातत्रपरैः कनरंगीकरणान्नोवेदन एखानापिनतदनुजमावादितिचेदरमा तदभाव सिहावितराश्री यत्वंसिद्धेहितदभावनन्निधनंतदस्मरणमस्माञ्चतदभावइति प्रमाएमान्ययानुपपतेस्तदभावान्नेतरतराश्रयत्वमिति चिन्नप्रामाण्यनाप्रामाण्यकारणस्यैवपुरुषविशेषस्यनिराकरणात् पुरुषमात्रस्पानिराहतेः जथातींद्रियार्यदेशिनी भावादन्यस्यचप्रामाण्यकारणत्वालपपतेः सिहुएवसवेथापुरुषाभावइतिचेन्नकुन सवैज्ञभावोविभावितः प्रामाएयान्य यानुपपरितिदिननराश्रयत्वं करमरणादितिचेञ्चकनसंगः जभावप्रमाणादितिवन्नतत्साधकस्यानुमानस्यमा Page #976 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यार्थएवंवेदोवसीयत्तरतिचेन् नकिंचिज्ञानामतींद्रियार्थयुनिःसंशयव्यारव्यानायोगादधेनासष्यमाणस्या। दिशपरिहरिणामिमतभन्न प्रापगएनुपपतेः किंचानादिव्याख्यान परपरागतत्वविहार्थस्यगृहीताविस्मनस नाकौशलदुष्टाभिप्रापतयाध्यानस्या पभेवकोरणादविसंवादायोगादामाण्यमेवस्यात् दृश्यतेयधुना योतिः शास्मादिषु रहस्ययथार्थमवयंतोपिदुरभिसंधेल्यथाव्याचक्षणाः केचिज्जा तोपिवंचनाकौशला . थोपदिशतः केचिञ्चविस्मृतिसंवेधाः पापातथ्यमभिदधाना इतिकथमन्ययाभावनाविधिनियोगवाक्यार्थ प्रतिपतिवेदस्यान्मनुयास्यवदादीनां श्रुत्यनिसारिस्मृतिनिरुपणायांवातस्मादनादिप्रवाहपतितत्वपि पयार्यत्वमेवस्यादितिस्थितम्।ययोकमतीतानागता वित्यादितदपिखमननिर्मूलन हेतुलेनविपरीतसाधनातदा समेवेति तयाहि अतीतानागतोकालोवेदायज्ञविवर्जितो कालशब्दाभिधेयत्वादधुनातनकालपदिति दिच काल शव्दाभिधेयत्वमतीतानागतयोः कालयोहगोसतिभवति तन्हांचनाध्यक्षनरलयोरतीट्रियत्वादनुमाननी पिनसाध्येनसंबंधलयोनिश्चनुपातिप्रत्यक्षगृहीतस्यैवासंवैधास्युपगमान्नचकालाख्यव्यमीमांसकस्यालि .. Page #977 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उप्रदीपदृष्टांताभ्यांकारमध्यंजक पक्षयोविशेषसिद्धेरित्यलमिनिजल्पितेन यञ्चान्य प्रवाहानत्यत्वेदस्यापोरुषेयत्वमिनिः किशब्दमात्रस्यानादिनित्यत्व मुनविशिष्टानामिनि आयपक्षयएव शब्दालौकिकालववैदिकाइयत्मइदमभिधीय यतेवेदएवापोषियइति किंतु सर्वेषामपिशागणापौरुषेयननि जयविशिष्टयपूर्विकाएकशब्दाजनादित्वेनाभिधीयते नियामवगमतायीनामवगतार्थानांवा अनादितास्यायदितावदुनरः पक्षलदाज्ञानलक्षणामषामाण्य मनुफ्यते अय आय: पदाजाश्रीयते नघ्याव्यातारः विचिताः भवेयुः सज्ञिावा प्रथमपदोडरधिगमः संबंधनामन्यथायर्यस्यकल्लयि | तुंशक्यत्वात् मिथ्यात्वलक्षणमप्रामाण्यस्यातदुतं जपमयनिायमर्यइतिशब्दावदनि नकल्लोयमर्थपुरुषेनेतर्रादि ग. विष्णुताः विच विविज्ञनाव्याख्याताशीवशेषादग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामइत्यस्यदेच्छसमित्यपिवाक्यार्थःकिनस्या न संशयलक्षणमप्रामाण्यमा असर्वविद्विदिनार्थववेदोन्नदिपरंपराधात इतिचेहंत धर्मचोदनेवप्रमाणनि निहतमेतत् जनीदियार्थप्रत्यक्षीकरणसमर्थस्यपुरुषस्यसविच नहचनस्यापिचोदनावदावोधकवेनमा माल्या हिंदस्य पुरुषाभावसिद्धेनप्रनिर्वधनस्यात् जयनय्याख्याटग किचिज्ञपि यथार्थज्ञानपरंपया कच्छिन्नसंतानवेन Page #978 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लंभेन नशा निश्वेतुं नच प्रत्यभिज्ञान बलेनैवां तरा लेसता संभवक्तस्य सादृश्यादपि संभवा विरोधात् नच घटादावेवं प्रसं गस्तस्योत्पत्तावपरा पर मृतपिंडांतर लक्ष शाक्या कारणस्या संभाव्य मानले नां तरा लेसता याः साधयितुं शक्यत्वा तु कारणाना म पूर्वरंगांच्या पार संभावनतो ना तराले सत्ता संभवइति यच्चान्यदुक्तं संकेतान्यथानुपपतेः शब्दस्य नित्यत्व मिनी दमप्यनात्म ज्ञभाषितमेव नित्येपियोजयितु शक्यत्वा तथा हि गृही नसंकेतस्य दंडस्य प्रध्वंसे सत्य ग्रहीतव्या सेकेन इदानीमन्य एव दंड: स मुपलभ्यते इति दंडीति नस्या तथा धूमस्या पिगृहीत व्याप्तिकस्य नाशे अन्य धूम दर्शना इति विज्ञानभावस्य अमसादृश्यान थाप्रतीतिर्नदोष इति वेदनापि सादृश्य वशा दर्थ प्रत्यये कोदोशो येन नित्यत्वे न्न दुर् निवेश आश्रीयते नया कल्पनाया मनराले स त्वमप्यदृष्टं न कल्पितं स्यादिति यज्ञान्यदभिहिन व्यंज कानांप्रति नियतत्वानयुगपछिति तदस्य शिक्षितलक्षितम् समानेंदि द्रियग्रामेषु समानदे मोयु विशयविशयेयु नियमा योगात् तथा हिश्रोत्रं मानदेशं समानेन्द्रियया स समान धमपिन्नानामर्या नाग्रहणाय प्रतिनियतसंस्कारक संस्कायनभवतीन्द्रियत्वात् च शब्दा वा प्रतिनियत संस्कारक संस्कायनिभवंति समानदे श् समानेन्द्रियग्राह्य समान धमपिन्नत्वे सतियुग पदींद्रिय संहुत्वात् घटादिवत् उत्पति पो प्ययं दोषः समानइति नवाच्यमृर्ति Page #979 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटः सर्वगनश्चक्षुरादिसंनिधानादनेकदेशेषतीयतइती ननुयोत्पादकस्य मृत्पिंगदेरनेकस्योपलंभादनेकत्वमैमत्व तथा मरर दरण परिमाणासंभवाञ्चेति तज्जवधिपिसमानं तत्रापिभनिनियतनाल्वादिकारणालापतीधादिधर्मभेदस्यचसंभवाविरोधी व ताल्वादीनांव्यंजकत्वमन्त्रेयनियेस्यतइत्यास्यातवदेनन् अथव्यापिलेपिसर्वनसात्मनास्तमत्वानदोषोयमिति न नथासति सर्वथैकलविरोधान्नहिं देशभेदेन युगपन्सर्वात्मनाप्रतीयमानस्येकत्वमुपपन्नंप्रमाणाविरोधात् नयाचप्रयोग प्रत्येकंगकारादिवर्णानेकएव युगपरिर्वदेशनयातयवसात्मनोपलभ्यमानत्वात् घटादिवत् नसामान्येनव्यामि चारः तस्यापिसदृशपरिणामात्मनस्यमिकवाना पिपर्वनायनेकप्रदेशस्थतया युगपदनदेशस्थिततया पुरुष परितस्य मानेनचन्दाकदिनाव्यभिचारः नस्यानिविष्टतयैकदेशस्थितस्यापिभोतवादने देशस्थत्वेन प्रतीनेः नरानातस्य भान्नेनव्यभिचार कल्पनायुकेति नापिजलपानप्रनिविवेननस्यापिचन्दादिसन्निनपेक्ष्यनयापरिणममानस्यनिक त्वातस्यादनेकप्रदेशेषुगृपासनीभनोपलभ्यमानविशयस्यैकस्यासंभाव्यमानत्वात् नत्रप्रवर्तमानं प्रत्यभिज्ञानप्रमाण मितिस्थितम् तथानित्यत्वमपिनप्रत्यभिज्ञानेननिश्चियत इतिनित्यत्वेदिएकस्यानकक्षणव्यापित्वं तच्चानरालेसमानुप॥ Page #980 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाद सन्निकृष्टे बुद्धिरित्यभिधानात् नाप्ययपितेस्तत्सिद्विरनन्यथाभूतस्यार्थस्याभाव दुपमानोपमेययोरप्रत्यक्षत्वाच नाप्युपमानं साधक केवल म भावप्रमाशामवैवावशिश्यते तच तद भावसाधकमिति नच पुरुष सद्भाव बदस्या पिटुःसाध्य त्यात्संशया पतिस्तदभाव साधक प्रमाणानां सुलभत्वात् अधुना हितदभावे प्रत्यक्षमेवातीतानागतयोः कालयोः अनुमा नं तदभावसाधकमिति तयाचा तीता गतौ कालो वेद कार विवर्जितो कालशब्दाभिधेयत्वादिदानीं तन कालवत् वेदस्या मध्ययनं सर्व तदध्ययनपूर्वकं वेदाध्ययन वा च्यत्वा दधुनाध्ययनं यथेति तया पौरुषेणेोवेदः अनवच्छिन्न संप्रदायत्वे सन्दे सत्य समयमा कर्तृत्वातू आकाशवत् अयपितिरपित्रमा एय लक्षणस्यार्थस्यान्यया भूतस्य दर्शना तद भावे निश्चि यते धर्माधितींद्रियार्थविशयस्य वेदस्यावग्भिाग दर्शिनः कर्तुमशक्यत्वात् अतींद्रियार्थदेशिनिश्वाभावात् प्रामाएम मेपोरुषेयनमेव कल्पयतीति अत्रप्रतिविधीयते यत्तावदुकं वर्णानां व्यापित्वे नित्यत्वेच प्रत्यभिज्ञा प्रमाणामिति दस अत्यभिज्ञायासन प्रमाणत्वायोगात् देशांतरेपि नस्येव नराख्यि सत्ये षंडशः प्रतिपतिस्यात् नहिसर्वत्र व्याप्ता वर्तमान स्यैकास्मिन् प्रदेशे सामस्त्येन यामुपपतियुक्तमव्यापकत्व प्रसंगात् घटादेरपि व्यापकत्वप्रसंग ः शक्य हिन्तुमेव Page #981 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रवण प्रसंगः सर्वदा तदभिव्य के रसंभवश्वाभिव्यंजक वायूनां प्रतिनियतत्वात् नच तेष्ठा मनु पय पन्नत्वं प्रमाणप्रतिपन्न त्वात् तथाहि वक्तृसुख निकटं देशवर्तिभिः स्पर्शनेनाध्यक्षेण व्यंजका बाथ वोग्रमते दूरदेशस्थितेन मुख समीप स्थित तूल चलनादनुमीयन्ते श्रोतृश्रोचंदे शब्द श्रवणान्यथानुपपतेर थपित्याविनिश्रीयते विचोत्पतिपदेोपमानोयं दोष तथाहि वाद्याकाशसंयोगादसमवायिकारणादा काशाञ्च समवाविकारादिद्विशाद्यविभागेनोत्पद्य मानो यशब्दोन सर्वैरनुभूयते अतु नियत दिग्देशस्यैरेव तथा भिव्यज्यमानेपि नाप्यभिव्यक्ति सा कार्यमुभयत्रापिसमा नत्वदियं तथा हि अन्येताल्वादिसंयोगैर्यथान्यावरौनिक्रियते तथाधान्य तर सा रिभिरता त्वा दिभिरन्यो ध्वनिनारभ्यते इत्युत्य अभिव्यक्त्योः समानत्वेनैव नैव पर्यनुपय नुयोगा वैसर इति सर्वे श्वस्यं माभूडुणानां तदात्मकस्य वाशब्दस्य कोटरथ नित्यावं तथाप्यनादिपरंपरा या तत्वेन वेदस्य नित्यत्वात् प्रकृत लक्षणस्या व्यापकत्वं नच प्रवाह नित्यत्वमप्रमाराकमेवास्ये तियुकं वकु मधुना तत्क तु नुपलं भादतीता ना गत योरपिकालयोस्तदनुमापकस्य लिगस्याभावां तद् भावोपिसर्वदाप्यतीं ट्रियसाध्यसाधनसंबंधस्येन्द्रियग्रा भत्वायोगात् प्रत्यक्ष प्रतिपन्नमेव हिलिग मनुमानं । हिग्रहीत सर्व धस्येक देशसं दर्श Page #982 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मि प्रति रेसेनहेतुना पक्षस्तदाधार सूचनाय साध्यव्याप्त साधना थाधार सूचनी योक रततो यदुकं परेशान वोहि दृष्टां ते नदवे दिनव्याप्येते विदुषां वा व्यहेतुरेव हि केवल इतित न्निरस्नं स्युत्पन्नंप्रतियथोक्त हेतु प्रयोगो विपक्ष प्रयोगाभावे साधनस्य नियताधा तानव धारणात् अयानुमान स्वरुपं प्रतिपाद्येदानीं क्रमप्राप्तमागम व रूपं निरूपयितुमाह आत्मवचनादि निबंधन मर्थज्ञा नभागम इति यो यत्रा बेचक्रः सतत्राप्तः आइस्य वचनमादिशब्दे नांगुल्या दिसंज्ञा परिग्रहः आ शिवेचन आदिर्यस्य सतत थोक्तं तन्निबंधनं यस्यार्थ ज्ञानस्येति आप्तशब्दोपादानाद पौरुषेयत्वव्यवच्छेदः अर्थज्ञानमित्यनेनायो हज्ञानस्या भित्रा य सूचनस्य चनिरासः नन्वसंभवीदं लक्षणशब्दस्य नित्यत्वेनापौरुषेयत्वादाप्तप्रणीतत्वायोगा न्नित्यत्वं च तदवयवानांव रणीनां व्यापकत्वान्नित्यत्वाञ्च तच तया पकत्व मसिहं मेकन प्रयुक्तस्य ग कारदिः प्रत्यभिज्ञया देशांतरेपिग्रहणात् स एवायंगका रइति नित्यत्वमपि तयेवावर सीयते कालांतरेपितस्य वग का रादेर्निश्वयात् इतोवानित्यत्वं शब्दस्य संकेतान्यथानुपपतेरिति तथा रिगृही संकेतस्य प्रव्धंसत्यगृहीत संकेत: शब्द इदानींमन्य एवोपलभ्यते इति तत्कय मर्थत्रेत्ययः स्यात् नचासौनभवती तिसएवायं शब्दइतिप्रत्यभिज्ञानस्यात्रा पिसुलभत्वाञ्च नववर्णानां शब्दस्य वानित्य सत्वे सधै सर्वदाश्रवण प्रसंगः सर्वदा Page #983 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनस्यहि कारणभृगस्तस्यविधिमृगारिलस्यकातिच्छन्दममिनिइदे यथाविश्कापिलपावनभवनि यथाप्रमतमपी त्यर्थः वालव्युत्पत्यर्थपंचावयचगिइत्युकं व्युत्पन्न प्रतिकथं प्रयोगनियमइतिशंकायामाह यत्पन्नभयोगस्तुतथोपपत्या न्यथानुपपेतेचवा व्युत्पन्नस्यव्युत्पन्नायवाप्रयोगः क्रियतेइतिशेषः तयोपपत्यानथासाध्येसत्येबीयपतिस्तया अन्यया । उपपत्यैववाअन्यथासाध्यामदिनुपपनिलस्यातमिवानुमान मुमुन्नायनि अग्निमानयदेशलथेवधर्मवत्वोपपत मत्वान्यथानुपपतेविति ननुदतिरिकदृष्टानादरपिव्याप्ति प्रतिपतानुपयोगितात् सत्यमापदाया कयनदप्रयोग इत्याह है। नुप्रयोगोहियथाव्याप्तिग्रहणविधीयते सत्तावन्नानिगा सुत्पन्नैरवधार्यते इनिहिशब्दोयस्मादथै यस्माययाव्याप्तिय हगव्याप्तिग्रहणानतिक्रमेगबहनुप्रयोगाविधीयतेसावतावन्मत्रिणव्युत्पन्नस्तथोपपत्यान्यथानुपपत्यावधार्यते दृष्टातादिन मतरेणैवेत्यर्थः यथादृष्टांतादेव्यतिप्रतिपतिप्रत्यनंगत्वं नयापाकापंचितमिति नेहपुनःप्रतन्यते नापिदृष्टानादिषयोगः साध्यसिध्ययनलवानित्याह तावताचसाध्यसिद्धिः चकारएवकारार्थनिश्चितविपदासंभवहेतुप्रयोगमात्रेणसाध्यसिद्दिरि त्यर्थः तेनपक्षप्रयोगोपिसमलइतिदर्शयन्नाह नेनपसलदाधारसचनायोनः यतःलयोपपत्यन्ययानुपपतिप्रयोगमानगव्या Page #984 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भिदात् बिरुद्धकायोयनुपलब्धिविधीसंभवतीति विरुद्धकारणकार्यस्वभावानुपलब्धिरितिताविरुद्धकार्यानुपलब्धिमाह यथास्मि आणिनिव्याधिविशेषास्ति निरामयचेष्टानुपलब्धरिति व्याधिशिषस्यहित्यसहस्तवावलस्यकार्यानरामयचेष्टातस्यानुपलचे रिनि बिरुद्ध कारणानुपलब्धिमाह अस्सत्रदहनिदुःवमिष्ठसंयोगाभावाच्च 'दुःखविरोधिसुखेतस्य कारणमिटसंयोगस्न दिनुपलब्धिरिति विरुदुखभावानुपलब्धिमा अनौकान्तात्मकंवरचेमा नात्मकंवले कान्त स्वरूपानुपलव्यः अन्यका लात्मकविरोधिनित्यायकान्तनपुनस्तद्विषविज्ञानंतस्यमिथ्याज्ञानरुपतयोपलंभसंभवात् तस्यस्वरुपमावास्तवाकारनस्या अनुपलब्धिः ननुचव्यापकविरुङकायोदीनी परंपरयाविरोधिकार्यादिलिंगानाचवहुलमुपलभरसंभवातान्यपिकिमिति ना चार्यरुदाहृत्तानीत्याशंकायामाह परंपरयासंभवात्साधनभनेवांतभविनीयं अत्रैवैतेषुकादिवित्यर्थः तस्यैवसाध नस्यापलक्षणार्थमुदाहरणहयंप्रदर्शयति अभूदनचक्रेशिवकःखसासत् एतच्चदिसंज्ञिनान्तर्भवतीत्यारेकायामात कार्यकार्यमविरुष्कापिलव्यावतिभविनायमितिसंवन्धः शिवकस्यहिकार्यछत्रं तस्यकार्यस्थास्यः इतिष्ठानहारेराव द्वितीयमदाहरनि नास्यनगृहायाभूगक्रीऽनंमृगारिसंशब्दनात् कारणविरहकार्यविरुद्ध कापिलधौर्यथेति मुगकी Page #985 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शल्यमपि विरुहपूर्वचर माह नोदेश्यतिमुहूततिशकटेरेक्त्युदयात् शकटोदयविरुद्वी सचित्युदयस्लत्पूर्वरोबत्यु दयइतिविरुद्वोत्तरवरलिंगमाह नोदगादूरामहत्पूिर्वपुष्योदयात् भरण्युदयविरुद्बोडिसनवसदयालदुतरखरःषु | प्योदयइति विरुहसहचरमाह नात्यनभित्तोपरभागामाबोभिागदर्शनादिति परभागाभावस्यविरुद्ध लदाखलन सहचरोधागभावप्रति अविसहानुपलब्धिमेदमाह जविहानुपलब्धिः प्रतिशेधेसप्तभावभावण्यापन कार्यकारणापू) वित्तिरसहचरामुपलभभेदाहरणाभाह नास्यत्रभूतलेधटोनुपलबो अवपिशाच परनाएवादिभिः व्यभिचारपरिहार मुपलब्धिः लक्षण प्राप्तेत्वसतीनिविशेषणामुन्नेयं व्यापमानुपलब्धिमाह नास्यनशिशपाइमानुपलब्धःशिरात्री वेहिदात्वेनव्याप्तनदभावनध्यायशिशपायाजयभावः कार्यानुपलब्धिनार नभविश्यान मुनीतेशक हतिको दयानुपलब्धः उतरचरानुपलब्धिमाह नोदगादूरणिमुहूतोलकतएव नतएवतिकोदयानुपलव्धेरेवेत्यर्थः सहचर निपलब्धिः प्राककालेसाह नात्यवसमतुल्यायासु नामानामानुपलव्यः विरुद्धकार्यायनुपलव्धिविधीसभवतीत्या पक्षागालदूदानयत्यतिनावप्रदर्शयितुमाह विरुद्धानुपलब्धिविधोत्रेधाविरुद्ध कार्यकारणस्पभाक्नुपयधि रास्सशतिनामनिराजनलम्वः । अयतिवसामहिकार्य प्रत्यनुपहतशालकत्वाच्यते मावचका डिलमादिति। कारगमयलचिमार जास्तपरसाइनिः पूर्वानुमलाच माहना Page #986 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश् णामीशब्दः कृतकत्वाद्य एवं सएवं दृष्टो यथा घटः कृतक श्वाय तस्मात्परिणामीति यस्तु न परिणामी सनकत को हो वेध्यास्तनंधयः शतमश्वायं तस्मात्परिणामीति स्योत्पतौ आश्रयो क्षितेपर या पौरोहिभावः कृतकउच्यते तच्चक्रत कल्यं न काटस्था नित्यपक्षे नाविक्षणि रूपा किंतु परिणामित्वे सत्ये वे समे वक्ष्यते कार्य हेतुमाह अस्त्यनं देहिनि बुद्दि हारादेः कारणहेतुमाह अस्त्यत्रछायाछत्रात् जयपूर्व हेतुमाह उदेश्यतिशकटं कृति को दया तू मुहूतन्ति इति संबंधः अयोतरचरः उदगाङ्कुरणिः प्राऊन एव अत्रापिमुहूतान् प्रगितिसंवेधनीयं तत एव कृति कोट्या देवत्यर्थः सहचर लिंगमाह अस्त्यत्र मातु लिंगेरुपं रसात् विरुद्धोपलब्धिमाह विरुहूतदुपलब्धिः प्रतिशेधे तथेति प्रतिशेधेसा ध्ये प्रतिषेध्येन विरुद्धानां संवं धिनस्त व्याप्यादयः तेषामुपलब्धय इत्यर्थः तथेतिषोदेतिभावः तत्रसाध्य विरुहुव्या [कोपलब्धिमाह नास्त्यत्रशीत स्पर्शऽष्णादिभिः शीतस्पर्शप्रतिशेध्येन हिविरुद्धोग्निस्त व्याप्यमौष्णमितिविरुद्ध कापिलं भमाह नास्त्य ऋशीत स्पेशी धूमात् अत्रापिप्रतिशेधस्य साध्यस्य शीतस्पर्शस्य विरुद्रोग्निस्तस्य कार्यधूम धम इति विरुद्ध कार णोपलब्धिमाह नास्मिन् शरीराणि सुखमस्ति हृदय राल्यात् सुख विरुद्धो दुःख नस्य कारणं हृदय A Page #987 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दाम्यसंभवादनतरयोरेवपूर्वतिरक्षणयोरेनु मलमावस्यदृष्टत्वातू व्यवहितयोतदघटनात् ननुकालव्यवधानपिका कारणाभावोदृश्यतएव यथाजारामबुदशाभाविभवोधयोभरणारिष्टयोतितत्परिहारमाह भाव्यतीतयोमराजा रहोधयोरपनारिरोहोप्रतिहेतुत्वंसुगमेमेनन जत्रैवोपपतिमाह तम्यारात्रिने हिनदाविभाषितं हिशब्दोयरमा दथेयस्मातस्य कारणस्वभावकार्यस्वभाविवं नदावमाविलंतच्चतघ्यापाराश्रितं तस्मान्नभक्तयोः कार्यकारण भावात्यर्थःजयमर्थः जन्वयव्यतिरेकसमधिगम्योहिसर्वत्र कार्यकारणभावः तौचकार्यप्रतिकारणव्यापाव्यपक्षा विवोपयते कलालस्येवकलशंप्रतिनचातिव्यवहिनेषुनध्यापाराभितत्वमिनिसहचरस्यायुकरेनु धनंतभावंदर्शयनि सहचारिणोरपिपरस्पर परितारणावस्थानात्सहोतादाश्चहत्वतरत्वमितिशेषः जयभभिप्रायः परस्परपरिहारेणापले भातादातभवात्स्वभवहितावनंतमविसोत्पादाश्च नकार्यकारणेवेति नबसमानसमवर्तिनोः कार्यकारणभा यः सव्यतरगोविषाणवत कार्यकारणयो:प्रतिनियमाभावप्रसंगाच नस्मा त्वंतरत्वमेवेति इदानीध्याप्परेलु नप्राप्तमुदारहरकान्वयव्यतिवसरः साशयवशात् प्रतिपादितप्रतिज्ञायनवपंचदर्शयतिपार Page #988 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयाविद्यमानस्यापि निश्चनुमशक्य त्वादितिनदसमीक्षिताभिधानमिनिदर्शयितुमाह रसादेकसामय्यनुमनिनरुपाई नमिवदिरिष्टमेवकिविकारणेहेनुर्यत्रसामध्यमितिबन्धकारणातवैकल्सेइति जास्वायमानाहिरसिकानज्जनिका मय्यनुमायते ततोनुमानभवति पाकनोहिरुपलक्षणः सजातीयरुपलक्षणांतर लसणकार्य बन्नेगविजातीयंरसलक्ष कार्यकरोतिरुपानुमान मिच्छद्विरिष्टमेवविचित्कारण हेतु पालनस्यरुपक्षणस्य सजातीरुपलदाणांतराव्यभिचागद रससमानकालरुषप्रतिपत्तेरयोगात् नमनुकूलमानमंत्यक्षरप्राप्तवकारणं लिंगमीश्यते येनमणिमंत्रादिनासान प्रतिवन्धान कारणातवैकल्पेनवाकार्यव्यभिचारस्यात् द्वितीयक्षणकार्यप्रत्यक्षीकरणनानुमानर्थकावाकार्यो भावितयानिश्चितस्यविशिष्ठकारणस्यछत्रादे: लिंगत्वेनागीकरणात् यत्रसामप्रिनिवन्धकारणानरावेदलचनिया * तस्थेवलिंगत्वनान्यस्येनिनोकदोपप्रसंगः इदानीपूर्वतिरचरयोः सभावकार्यकारणेधननरभावादातरलमेवेनिद यति बचे प्रवैतिरचारिणोतादात्म्य नटुत्पत्तिवीकालमरधाननदनुपलब्धरितिनदास्यसंवेधसाध्यसाधनयोः स्वभावदेना वेतदुत्पतिसेवेधेचकार्यकारणेवात बीविभाव्यते नचतदुभयसंभवः कालव्यवधानतदनपलव्यसहभाविनोरेखना Page #989 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबंधः जस्मिन्पसेकार्यकारणस्योपचारतिशेषः वचनस्यानुमानत्वेचप्रयोजनमनुमानावयवाः प्रतिज्ञादयइतिशास्त्रव्यवा हार एव ज्ञानात्मन्यनंशनध्यवहारस्याशक्यकल्पत्वात् तदेवंसाधनात्साध्यविज्ञान मनुमान मित्यमुमानसामान्यलक्षणं तदनुमानं वेधेत्यादिनानप्रकारचसप्रचंचमभिधाय साधनमुकलक्षणापिक्षयरमप्यनिसंक्षेपणमिद्यमान द्विविधमित्या पदर्शयति सहनैईधोपलस्यानुपलब्धिमेदादितिसुगमेतत् नमोपलब्धिविधिनवानुपलब्धिः प्रतिशेधसायिकवेनिया रस्यनियमं विघदय लपलब्धेरनुपलब्धवाविशेषणविधिप्रतिषेधनत्वमाह उपलब्धिविधिप्रतिरोधोरनुपलब्धिश्चेतिगता मितत् इदानीमुपलव्धरपिसंक्षणविरुहाविसहमदान ध्येविध्यमुपदीयन्तविरुद्वीपलब्धेर्विधीसाध्येविस्तरनोभेदमा| हि अविरुहोपलब्धिविधीशोट व्याप्यकार्यकारण पूर्वतिर सहवरभेदादिति पूर्वचोनरंचसहनिहहः पूर्वोत्तरसरइत्या तिन्यश्वरस्त्यनकारणनिर्देशः हृद्वाश्य माणश्चरशब्दः प्रत्येकमभिसर्वध्यतेनायमः पूर्वरोतरचरसहचराइनि पश्च व्याप्यादिभिसहह. जत्राहसोगतःविधिसाधनंहिविधमेवस्यभावकार्यभदात कारणस्य तुकार्याविनाभावाभावा दलिंगवनावस्यकारणनिकायवंतीवचनातू अप्रतिवहसामथ्र्यस्यकार्यप्रनिगमकल मित्यपिनोत्तरं सामथ्र्यस्यातीन्दि Page #990 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशक्यते इतिनत्स्वरुपमपिशारमिधातव्यमेवेति नदेवमतभेदेनहित्रि चतुःपंचाक्यरुपमनुमा हिमकारमेवेनिदर्शीयन्नार तदनुमानदेया तहेविध्यमेवात स्वार्थपरभेदादितिवपरविप्रतिपतिनिरासफलवाहिविधमेवेनिभावःसा थीनुमानभेदंदर्शयन्नाह स्वार्थमकलक्षणांसाधनात्साध्यविज्ञान सनुमानमितिप्रायकलक्षणंयस्यतत्तयामित्य बहिनीयमनुमानभेदंदर्शयन्नाह परार्थततदर्थपरमशिवचनाजानमिति तस्यत्वाचीनुमानस्यार्भःसाध्यसाथ निलक्षणः परामशती सेवंशीलंतदर्थ परामर्शितज्ञतहचनंचतरमाज्जातमुत्पन्नं विज्ञानं परायोनमान मितिजन वचनात्मपरायीनुमानंप्रसिद्धेनत्वयं तदर्थप्रतिपादकवचनजनितज्ञानस्यपरायीनुमानत्वमभिदधतानसंहीतमितिन वायं मचेननस्य साक्षात्ममितिहेतुत्वाभावननिरुपचरितप्रमाणभावात् मुख्यानुमानहेतुलेन तस्योपचारतानुमान व्यपदेशोनवार्यतस्वदेवोपचरितं परायीनुमानत्वं तद्वचनस्याचार्य प्राह नहचनमपिनहेतुत्वादिनिा उपचारोहि मुख्याभावसतिप्रयोजनेनिमितेचमात्यते नत्रवचनस्यपरायीनुमानव निमितंतहेतुत्वं तस्यप्रतिपाशानुमानस्यहे तुसडूनुलस्यभावस्तयेतस्मानिमिता नहुचनमपिपरापानमानहेन्यस्यतनद्वैतरलस्यभावस्तत्वतनलहूचनमित्तियनि Page #991 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भदेनप्रमाणहिवैप्रथमभेदंव्यापतरव्याचष्टे परोक्षमितरदितिउन मनिपक्षमितरशब्दोबनेः ततःप्रत्यक्षादिनदि तिलभ्यते नचपरोक्षमिनिनस्यवसामग्रीस्वरुपेनिरुपपन्नाहाप्रत्यक्षादिनिमित्तंस्मृतिप्रत्यभिज्ञाननकीनुमानागमों दमिनिषत्यक्षादिनिमित्तमित्यादिशब्देन परोक्षमपिययने नयथावसरं निरुपयिष्यते प्रत्यक्षादिनिमित्तयस्यनि विग्रहः नत्रस्मृनिप्रक्रमप्राप्तादर्शयन्नाह संस्कारोोधनिबंधनानदिसाकारास्मृनिरितिसंस्कारस्योहोधः प्राकटी सनिबंधनंयस्याःसातयोका नदित्याकार नदिल्युल्लेखनीस्वभूनास्मृनिभवतीनिशेषः उदाहरण माह संदेवदतोयथे निप्रत्यभिज्ञान प्राप्तकालमाह दर्शनस्मरणकारणसंकलनप्रसभिज्ञानं नदेवेदनसशंसहिलक्षणंनलतियोगित्या दिजनदर्शनस्मरणकारणकत्वान सादृश्यादिविशयस्यापिप्रत्यभिज्ञानत्व मुलं नेपांनुसादृणाविषयमुपमानारख्यंत्र मानरनिषावैलदाण्यादिविशयंप्रमाणांतरमनुषज्येन तथाचोकं उपमानप्रसिद्वार्थसाधन्सिाध्यसाधनं नेद्वैधम्यो प्रमाणं किस्यात्संक्षिप्रतिपादन इदमसंमहदूरभासनेपोशनेनियाव्यपेक्षानः समपेक्षेर्थेविकल्पःसाधनांनर मिति एषाक्रमेणोदाहरणदर्शयन्नार यथासएवार्यदेवदतःगोसदृशगवयःगोलक्षणोमहिषः इदमरमा रक्षायमित्या Page #992 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसमर्थकारण कार्यस्पापम्पभावान् जन्यथाक्रमेणापिसाततोनस्यात् जयसभागादसोजगन्निर्मिनोति ययाग्निद हतिवायुवातीमतं नपिवालभावितमेव पूर्वक्तिदोषाः निदनेः नयाहिक्रमपनि विपर्नजानमपियुगपटुत्परतापेक्षण यस्य सह कारणोपितत्साध्यत्वेनयोगपदसंभवान् उदाहरणवैशम्येचनादेः कदाचिकखहेतुजनितस्यनियन्श मात्मकत्वो पनेरन्यत्रनित्यव्यापिमर्थकस्वभावकारणजन्यत्वेनदेशकालप्रतिनियमस्य कायेदरुपपादान नदेवधाम | शोसिट्ठी वेदानांनत्सुनप्रबुहारस्थावनिपादनं परमपुरुषारख्यमहाभूतानिवासिनाभिधानंचगगनारविंदमकरंदच्या बनिनदनवधेयाविशयत्वादुपेक्षामर्हति यच्चागमःप्रमासरेवल्लिदेवसत्यादिउणनाभइत्यादिचनसमु कनिधिनाजनीविरोधीनिनावकाशलभते नचारुषेयजागमोस्तीत्यग्रेप्रपंचदश्यते तस्मान्नपुरुषोतमोपिविचार पाचति प्रत्यक्षेताभेदभिन्नममलमा हिपोवोदितं देवेदीप्तगुगविचार्यावधिसंख्यातनः संग्रहान् मानानामि तिनगिप्यभिहितं श्रीरभनयान्येलघ्याख्यानमतोविशुधिषणैवोहव्यमानं मुखसंन्यवहाराभ्यांप्रत्यक्षमुपदशि देवोकमुपजीपतिःसरभिज्ञापिनम्॥इतिपरीक्षामुखस्यलपूनतोद्वितीयः समुद्देशःगजबेरानामुहिरेप्रसोनर । Page #993 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीनि जादिशब्देनपयोवुजदीहंस स्यात् षट्पोदेर्भमस्स्मृतः सप्तपणेतुनल विज्ञेयोनिशमच्छदः पंचवर्णभवेदन मिचकामेश्युलनी अवतीभेकशृंगोपिगंडकपरिकीर्तितः शरभोप्यष्टभिःपादेहिसःचारुसदान्वितः इसेवमादिक्ष श्ररणातयाविधानेनमरालादीनवलोक्य नयासत्यापयनियदानदातासंकलनमपिप्रत्यभिज्ञान मुलं दर्शनस्मरण कारणचा विशेषान् परेषानुनप्रमाणोतरमेवोपपद्यने उपमानादौनस्यानभावाभावान् जथाहोवसरमाप्तइत्याह उ पलभानुपलंभनिमितंव्यतिज्ञानमूहः इदमस्मिनूसत्सेवभवत्सेसतिनभवत्येवेतिचउपलभःप्रमाणमात्रमत्रय घने पदिप्रत्यक्षमेवोपलभशब्देनोच्यते तदासाधनेधनुभवेयुयानज्ञान नस्यात् जथयान्तिः सर्वोपसंहारणमा जीयते साकथमतीन्द्रियस्यसाधनस्यातीन्दियेणसाध्येनभवेदितिनैपत्यक्षविषयेष्यिवानुमानविशवपिव्याप्त त्याविरोधान नरक्षणस्याप्रत्यक्षास्याभ्युपगमान्दाहरणमाह ययाग्नाचेवधमलदभावेनभनोवेनिचन् इदानीम|| अनुमानंक्रमायात मिनिनलक्षणमाह साधनासाध्यविज्ञानमनुमानमिनि साधनस्यलक्षणमाह साध्यविनाभावि वननिश्चितोहेनुरिति ननुरुप्यमेवहेनोर्लक्षणं नस्मिन्ससवरेतोरसिद्वादिदोषपरिहारोपपतेः तथारिपक्ष|| Page #994 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मनमसिद्भुत्व्यवच्छेदार्थमभिधीयने सपक्षेसत्वंनुविशाहुलापनोदार्थविपक्षेचासत्वमेवानकोनिकयुदासाथी मिति नदुके हेनोस्सिवपिपेषुनिर्णयनवगिनिःजसिहपरितार्थव्यभिचार विपक्षनइनियट्युतंजविनाभाब नियमनिश्चयादेवीषनयपरिहारोपपने अविनाभावोसन्यथानुपपन्नत्वनचासिहस्यनसंभवत्सेवजन्यथानु पपन्नखमसिइस्यनसिध्यनीसभिधानान् नापिविरुद्धस्यनलक्षणस्यत्वोपपनि विपरीतनिश्चिनाविनाभाविनी यथोकसाध्याविनाभावनियमलक्षणस्यानुपपने:विरोधानव्यभिचारिण्यनप्रकतलक्षणावकाशमानएवननोन्य थानुपपनिरेक्श्रेयसिनविरुपतानस्यासत्यामपिययोग लक्षणभावेहेनोमिकन्या दर्शनान् तथाहिशस्यामस्तत्व वादितरनपुत्रवदित्यत्ररुप्पसंभवेपिनगमकत्वमुपलक्ष्यने जथविपदाव्यातिनियमवती तन्ननगमकवमिति नदपिमुग्धविलसिनमेवनस्याएवाविनाभावरूपत्वात् इतररूपसाचेपितदावेहेनोःस्वसाध्यसिद्धप्रनिगमकत्वा निष्टप्रधानलक्षणमक्षरणमुपलक्षणीयमिनिनन्सविचेतररुपहयनिरपेक्षनयागमकवोपपतेश्च यथासंत्या दिनपादिनीपिप्रमाणनिष्टानिष्ठसाधनटूषणान्यथाउपपतेर्नचात्रपक्षधर्मत्वंसपक्षानयोवालिकेवलमविभाषमा - 2 Page #995 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशा गम कल प्रतीतेः यस्य परसुतं परैः पक्षधर्मता भावेपि का कस्य काल्या नलः प्रसादइत्यस्यापिगमकत्वा पतिरिति न दप्यनेन निरस्तमन्यथानुपपति केलेने वा पक्षधर्मस्यापि साधुत्वाभ्युपगमान्नदेह सास्ति ततो एवं बिना भाव हेतोः प्रधानं लक्षण मभ्युपगेतव्यं तस्मिन्सत्य सति भिल क्षण त्वेपि हेतोर्गमकल दर्शनादिति नेत्रे रुप्यं हेतु लक्षगमव्यापकत्वानूस षांक्षाणि कले साध्यसत्वादेः साधनस्य सपक्षे सतोपि स्वयं सेोगेतेर्गमकत्वाभ्युपगमात् एतेन पेच लक्षणत्वमपियो परिकल्पि नमून देतो रुपय तिमियतत्य भिहितं बोद्धव्यं पक्षधर्मत्वे सत्यन्वयव्यतिरे का बना धित विश यत्न मसतिपक्ष त्वं च चेतिलक्षणानि तेषामप्य विनाभाव प्रपंचैतेवं बाधित विशयस्थाविना भानयोगात् तत्प्रतिपक्षस्येवेति साध्या भास निशयले नासम्यग्धेतुत्वाच्च यथोक्त पक्ष विशय त्वाभावात् दोषेणैवदुष्टः नातू अनःस्थितं साध्या विनाभावि ले न निश्चितो हेतु रिति इदानीमविनाभाव भेदं दर्शयन्नाह सहचारिणोः व्याप्यव्यापक योश्च सहभाव इति सहचारिणो रूपरसंयो व्याप्य व्यापकयोश्च रक्षत्वशिंशपा लयो रिति सप्तम्या विशयो निर्दिष्ट क्रमभाव नियमस्य विशय न्दर्शयन्ना पूर्वोत्तरचारिणोः कार्यकारणयोग्य क्रमभावः पूवेतिर चारिणोः कृतिकार्यशकटादययोः कार्यकारणयोश्व धूमधूमध् Page #996 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेक जयोःक्रमभावः नन्वेवंभूतस्या विनाभावस्य नप्रत्यक्षेण ग्रहणं तस्यसेन्निहित विशयत्वात् नाप्यनुमानेन प्रकृता परानु मानकं नयामि तेरे तुराश्रयत्वान नस्यावतारा दाग मादेरपि भिन्न विशयलेन सुप्रसिद्धत्वान्न ततोपि तत्प्रतिपति रिसोर कायामाह इष्टमना धिनमसि हूं साध्य मिति अत्रा परे दूषण माचक्षते जासन शयन भोजन पान निधून नादेरपीष्ट वादपि साध्य मनु शज्यत इति तेप्य तिवालिशाः जयस्तुत प्रलापि स्वात् अत्र हिसाधन विशा यत्वेनेप्सितमिष्ट मुच्यते इदानीं स्वाभिहित साध्यलक्ष्यस्य विशेषणा नि सफलपन्न सिद्ध विशेषण समर्थयितुमाह संदिग्धवि पर्यस्तान्युत्पन्नानां साध्यत्वं यथा स्यादि त्यासि हुपदं तत्र संदिग्धंस्था गुवी पुरुषो वेत्यनवधारणे नो भय को टिप रामपि संशया कलितं वस्तु उच्यते विपर्यस्तंतु विपरीता वभास विपर्यज्ञान विशयभूतं रज नादि अव्युत्पन्नं तु नाम जा ते संख्यादि विशेषा परिज्ञानेणानीतविषयानवध्यवसाय या घुमेषां साध्यत्व प्रतिपादनार्थ मासि हुपदो पा दान मत्यर्थः अधुनेष्टा वाधित विशेषण द्वयस्य साफ़ स्वं दर्शयन्नाह अनिष्टाध्यक्षादिवाधितयोः साध्यत्वं मा भूदिति वाधितवचनं अनिष्टोमीमांसकस्या नित्यः शब्दः प्रत्यक्षादिबाधितयोः साध्यत्वं श्वा श्रावणत्वादिः आदि Page #997 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्देनानुमानागमलोक खवचनवाधिनानीयहोचा किंचित्करस्यहेत्वाभासस्यनिरुपणावसेरखयमेवग्रन्यकारःअप चियिस्यतीकपरम्यने तबासिहपदेशतिपण्यपेक्षेत्रहरं परंतुनायपेक्षनिविशेषमुपदयितुमाह नचासिद्वेदि भनिनादिनमितिजयमनिहि सर्वेसर्वापेक्षया विशेषणमपिनुकिंचिकमहिश्यभवतीतिजासिलदितिव्यनि कमुखेनोदाहरणं यथाजसिहूंपतिवायपेक्षयानतथेष्टमित्यर्थः कुजएतदित्साह मत्यापनायहीछावकुरेरा इछया रवलु विशयीकतमिटमुच्यते प्रत्यापनायहीच्छावरेवेनि नवसाध्यधर्मःचानविशिष्टोधर्मोनिष्टटेनदंदायिनी ह साध्ययमः कचिनहिशिष्टोवाधर्मसिोपस्कारणिवाक्यानिभवतिनतामलिभ्यतेच्यामिकालापेक्षयानुसाध्या मकचिलयोगकालापेक्षयानुनहिशिष्टोधर्मसिामाजस्वधर्मिणानामानरमार पक्षानियावन् ननुधर्मधर्मिस मुदायः पक्षइनिपक्षवरूपस्यपुरातनैनि:पिनचाहूर्मिणसहूचनेकनराहानविरोधइति नैवंसाध्यधर्माधारतया विशेषःस्तस्यधर्मिण पक्षलवचनेपिदोषानवकाशन रचनावैचित्र्यमात्रेणनासर्यस्या निराहनावासीहानावि |विरोधान जवाहसोगतः भवनुनामधर्मपिशव्यपदेशभाक्तयापिसविकल्पबुढीपरिवनमानएवनवासनःसर्वाएगा Page #998 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नुमानानुमेयव्यवहारोखुट्यान्टेनधर्ममिन्यायेनवहिःसदसवमेपेक्षतइत्यभिधानादितितन्निरासार्थमाह प्रसिद्दो धनिजयमय:नयंविकल्पबुद्दिहिरेनवनिासादिनालेभनभावाधर्मिणव्यवस्थापनि नदवास्तवत्वेननदाधार साध्यसाधनयोरपिवास्तवत्वानुपपतन हेः पारपर्यणापिवस्तुव्यवस्थानिबंधनवायोगात् तनोविकल्सेनान्येनवा व्यवस्थापिनः पर्वनादिषियभावभजन्नधर्मिताप्रतिपयन इनिस्थि प्रसिद्बोधति नलसिद्धि-श्वशचिहिकल्स नयचित्रमाणतःपविञ्चोभयनइतिनैकानेन विकल्पादिरुठस्य प्रमाणप्रसिद्स्यवामित्वं ननुर्मिणेनिन ल्पान् प्रतिपनोकिनवमित्याकिया मार विकल्मसिनस्मिन्सलेनेरेसाध्ये तस्मिन्धर्मिणिविकल्पसिढेसना वनदेपेक्षयनरासनाचनेहेमपिसाध्येसुनिीता संभव हाधनमारावलेनयोग्यानुपलाधरलेनवनिशेषाजयो दाहरणमाह जस्लिसर्वशीनास्तिखरनिपाणमितिसुगर्म ननुमिएपसिासत्तो भाषोभावोभवर्मिणामसिहावलाई निकानिकत्वादनुमानविशयत्वायोगानू कथसनेनरयाःसाध्यत्वंन्दुम्जतिहोभावर्मिश्चम्पचा भयाश्रितः । वरुद्दोधमेभिावस्य सासनासाध्यतेकथमिनियदुकं मानसपसोभावास्यवधर्मिणः प्रतिपन्नलान् कथम् Page #999 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध ले तू नच ता त्सिद्वैौ तत्सत्वस्यापि प्रतिपन्नत्वात् अर्थमनुमानं तदभ्युपेतमपिवैया त्पाद्यदापरोन प्रतिपद्यते तदानुमानस्य स फल्यातूनच मानसज्ञानाद्गमन कुशम मादेरपि सद्भाव संभावन तोतिप्रसंग: तज्ञानस्य वाधकप्रत्यय व्यपाकृतसत्ताक व परंतु विवियन या मानसप्रत्यक्षाभासत्वात् कथं तर्हितुरगभुंगादेः दुर्मित्व मिति न चोधर्मित्रयोग काले वाधक प्रत्ययानुदया सत्वसंभावनोत्पत्तेः न च सर्वज्ञदि साधक प्रमाणासत्वेन मत्तंप्रति संशीतिः सुनिश्विता संभव हा कत्रमा राखेन सु खादा विवसत्वनिश्वयात् तंत्र संशयायोगात् इदानीं प्रमाणोभय सिद्धे धर्मिणी किंसाध्य मिखाशंकयामाह प्रमाणो भय सिद्धेतुसाध्य धर्मे विशिष्ठता साध्येइतिशब्दः प्राग्दिवचनांतो प्यर्थ देशांदेक वचतन या संबध्यते प्रमाण चोभयेच विकस इयं ताभ्यां सिद्धेधर्मिणी साध्यधर्मविशिष्ठता साध्या अयमर्थः श्रमाशाप्रतिपन्नमपिवस्तु विशिष्ट धर्माधार तया विवादपदमारोहतीति साध्यतांना निवर्तत इति एवमुभयसिंद्वेपियोज्यं प्रमाणोभयसिद्धं धर्मिद्वयं क्रमेण दर्शयन्नाह ग्निमानयदेशः परिणामी शब्द इतिययेति देशो हि प्रत्यक्षेणा प्रसिद्धः शब्दस्तुभय सिद्धः नहिप्रत्यक्षेणावग्दर्शिभिरनिय तदिग्देशकालावच्छिन्नः सर्वेशब्दाः निश्चेतुं पार्थते सर्व दर्शिनस्तु तन्निश्वयेपितं प्रत्यनुमाना नर्थ क्यान् प्रयोगकालापेदा याधर्मविशिष्ठधर्मिशः साध्यत्वमभिधाय व्याप्ति काला पेक्षा या साध्यनियम दर्शयन्नाह यातैौ तु साध्यधर्म एवेत्तिसुगम Page #1000 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मिणोपिसाध्यत्व को दोषइस चाह अन्यथा तदघटनादिति उक्तविपर्ययेन्यथाशब्दः धर्मिणः साध्यत्वे तद् घटनात् व्या a घटनादितिहेतुः नहिधूमदर्शनात् सर्वत्र पर्व तो ग्निमा (निति व्याप्तिः शक्या कर्नु प्रमाराविरोधात् नन्वनु माने पक्षप्रयोग . संभवान् प्रसिद्धो धर्मत्यादिवचनमयुक्तं तस्य सामर्थ्य लव्यत्वात् तथापि तद्वचने पुनरुक्ती प्रसंगातू अर्थादापन्नस्या पिपुनर्वचनं पुनरुक्तमित्याभिधानादितिसौगतः तत्राह साध्यधमोधार संदेहा पनो दापगम्यमानस्यापि पक्षस्य वचनं सा * धर्मस्तस्याधारस्तत्र संदे होमहानसादिः पर्वतादिवेति तस्या पनो दो व्यवच्छेदः तदर्थं गम्यमानस्यापि साध्यसाध * व्यस्त व्यापक भाव प्रदर्शन प्रथालु पपतेस्तदाधारस्य गम्यमानस्यापि पक्ष स्यवचनं प्रयोगः अत्रोदाहरणमाह स रिसाधनधर्माविबोधनाय पक्षधमेपिसं राखत् ॥ साध्येन विशिष्ठो धर्म पर्वता दिस्तत्र साधन धमविबोधनाय पक्षप संहार व पक्षधर्मस्य हेतोरुपसंहारउपनयः स्तद्वत् इति अयमर्थः साध्यव्यास साधन प्रदर्शनेन तदाधारावगतापि नि तधर्मिसंयं धिता प्रदर्शनार्थ यथोपनयस्तथा साध्यस्य विशिष्ठधर्म संयु धितावबोधनाय पक्ष वचनमपीति किंचरेतुप्रयोगे . नाभ्यं वयमसमर्थितस्याहेतुत्वायोगात् तथाच समर्थनोपन्यास िदेव हेतोः सामर्थ्यासिद्धत्वात् हेतुप्रयोगोनय स्यात् हेतु प्रयोगाभावे कस्य समर्थनमिति चेत् पक्षः प्रयोगाभावे हेतु वर्ततामिति समानमेतत् तस्मात्कार्य खभावानुपलभ Page #1001 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोवा भिदेनपक्षाधर्मत्वादितिभेदेनचनियो सुत्कासमर्थयमानेनपक्षप्रयोगोप्यभ्युपगंतव्यखेतिअमुमेवार्थमाह, विधा हिनुमत्कासमर्थयमानोनपक्षयतीति कोवावादीप्रतिवादीचैत्यर्थः किलार्थवाशब्दः युक्त्या पक्षप्रयोगस्यावश्यभाने ककिलनपक्षयति पक्षनकरोत्ययितुकरोत्सेवकिकुर्वन्समर्थयमानः किंहवाहतुमुक्तीवन पुनरमुकेत्ययः समय: हिहेतोरसिद्धत्यादिदोषपरिहारेण स्वसाध्यसाधनसामथ्र्यमरूपवचनं तच्चतप्रयोगोतरकालंपरेणांगीहन मित्युकेनिवचनं ननुभवतुपक्षःप्रयोगःस्तयापिपक्षहेतटातभेदेन अवयवमनुमानामितिसारख्या प्रतिज्ञा हिनदाहरणापनपभेदेनचतुरवयवमितिमीमांसकार प्रतिज्ञाहेन्दाहरणोपनयनिगमनभेदात्येचावयवमितियोग तः तन्मतमयाकुर्वन् खमतसिहमवयवयमेवोपदर्शयन्नाद एतद्वयमेवानुमानानीदाहरणमिति, एतयो लक्षहेतोः इयमेवनातिरिक्तमित्यर्थः एखकोरेगीवोदाहरणदिसक्छेदेसि पिपरमनिरासार्थ पुननेदिाहरण मित्युनं तहिर्विसाध्यप्रतिपत्यर्थमुतखिकैतोरविनाभावनियमार्थमाहोखिन् व्याप्तिस्मरणमितिविकल्यक्रम र्थ साहयन्नाह नहितत्साध्यप्रतिपत्तीयथोकस्यसाध्याविनामावित्वेन निश्चितस्यहतोव्यापारादिति दिनीयविकलं | तदा साध्वजापतरंग कारतो तिसर्वगः तत्रसाध्यशालयौ यसोतस्यता वाभाविक Page #1002 -------------------------------------------------------------------------- ________________ alt प्रमाणन सा प्रतितास क्रोशयन्नाह तद्दविनाभाव निश्वयार्थ वाविपदो वाधकांदेवतत् सिंहः तदितिवर्ततेने तिचतेनायमित्यर्थः तदुदाहर साध्येनाविना भाव निश्वयार्थ वा नभवतीति विपक्षे वाधका देव तत् सिद्धे रविनाभाव निश्चय सिद्धेः किंच व्यक्ति रुपंनिदर्शनं तत्कथंर्सफत्येगव्याप्तिंगमयेत् व्यक्यंतरेषु व्याश्यमे पुनरुदाहरतिर मृग्यं तस्यापि व्यक्ति रुपले नव्याप्तेरवधारयितुमशक्यत्वात् अपरा पर पदंतरापेक्षया मन वस्था स्यात् एतदेवाह व्यक्तिरुपं च निदर्शनं सामा न्येन तु म्या सिस्तत्रापिस्त द्विषभिद्या ना वस्थानं स्या दृष्टां तो तरापेक्षणातू तत्रापिउदा हर रोरोपि तद्विप्रतिपतो सामा न्यव्याप्तिविप्रतिपता मित्यर्थः शेषं व्याख्यानं तृतीयविकल्पे दूषण माह नापि व्याप्तिस्मरणा में तथा पिविधिदे तु प्रयोगा देवतस्मृतेः गृहीतसंबंधस्य हेतु प्रदर्शनेनैव व्याप्तिसिद्धिरगृहीन संबंधस्य दृष्टा नशतेनापि न तत्सम राम मनुभूतविषयत्वात् समरशास्येतिभावः तदेवमुदाहरण प्रयोगस्य साध्यार्थप्रतिनोपयोगित्वं प्रत्युत संशयहेतुत्व मेवेतिदर्शयति तत्परमभिधीयमानंसाध्यधर्मिणी साध्य साधन ने संदेहयति तदुदा हर सां परं केवलमि धीयमानं साधमिति साध्यसाधनेसंदेह्यति संदेह वनीकरोति दृष्टांत धर्मिशी साध्यव्या सामनोपदोनि Page #1003 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिसाध्यमिणीतन्निर्णयस्यकर्तुमशक्यत्वात् इति शेषः जनमेवाची व्यारेकमुखनसमर्थयमानः माह कतोन्य। भोपनयनगमने अन्ययासंशयदुतुत्वाभाविकरमानोपनयनिगमनेप्रयुज्येते अपरः प्राह उपनयनिगम नयोरप्यनुमानांगत्वमेवनदर्भयोगेनिखारसाध्यसंवितरयोगादिति तनिषेधार्यमाह नवेनेनदंगेसाध्यमि गिहित्वसाध्ययो चनादेवासंशयान उपनयनिगमनेजपिवसमाणलक्षणोतस्यानुमानस्योगेनभवनःसाध्यर्थ मिणिहेतुसाध्ययोर्वचनादेवत्यवकारेणदृष्टानादिकमंतरेणोत्यर्थः किंचाविधायापिदृष्टांतादिकसमर्थनमकी जाकव्यमसमर्थितस्याहेतुत्वादिनितदेववरतेनुरुपमनुपानावयबोधानुसाध्यसिद्रौतस्पेवोपयोगानोदाहरणा दिकमेतदेवाह समर्थनंगावरं हेतुरुपमनुमानावययोवास्तुसाध्येतदुपयोगादिति प्रथमोवाशदएरकाराहिती यस्तु पक्षातरमचने शेपंसुगमं ननदृष्टांतादिकमतरणमेदधियानववोधयित्मशस्यलात कपक्षहेतुप्रयोगमा त्रणतषांसाध्यप्रतिपतिरितिताह बालव्युत्पत्त त्रयोपगमेशापयासोमवादनुपयोगादिति वालानामा ल्पज्ञानासुसत्सयतेषामदाहरणादीनांत्रयोपगमेशावासोतत्रयोपगमोनवादेनहिगदकाले शिष्याःयुत्पा Page #1004 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या: व्युत्पन्नानानियतत्राधिकारादिति वालव्युत्पत्यर्यतत्रयोपगमइत्यादिनाशास्त्रेभ्युपगतमेवोदाहगादि यमुपदर्शयति दृष्टांतोहयाजिन्वयव्यतिरेकमेदादितिदृष्टात्तीसाध्यसाधनलदाणोधविन्वयसलेन तिरेकडोरेणवायत्रसदृष्टांतहसमन्वयेसंज्ञाकरणात सहिधैवोपपद्यनेतान्वयष्टोतंदर्शयन्नाह साध्य व्याप्तंसाधनंयत्रदयतसोचयहष्टीतः साध्येनव्याप्त नियतंरेतुःयवादयेत व्यान्तिपूर्वकतयेतिभावः . तायभेदमुपदर्शयति साध्याभाबसाधनाभावोयत्रकथ्यतेसव्यतिरेकदृष्टांतः असत्यसायाव्यतिरेकर नोदृष्टांतोव्यतिरेकदृष्टांतः साभ्याभावेसाधनस्याभावएवेतिसावधारणदृष्टव्यं क्रमप्राप्तमुपनयखरुपनिरुप निहितोपसंहाउपनया पक्षेइत्यायाहार नायनो हतोपक्षधर्मतीसेनासपनयति निगमनरवरुपमुपदर्श च यतिाप्रतिज्ञापास्तु निगमनमितिउपसंहारइतिवतेने प्रतिज्ञायाउपसंहारः साध्यधीवशिवत्वेन प्रदर्शनं नि मित्यर्थः ननुशादृष्टांतादयोवकव्यारवेनिनियमानभ्युपगमात् कयतत्रहिमिहसरिभिःप्रपंचितमितिनचोपं. यमनमभ्युपगमेपिप्रनिपायानुरोधेनजिनमतानुसारिभिःप्रयोगपरिपायाः प्रनिपनत्वात् साचाज्ञान तत्स्वरुपेकर्नु Page #1005 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाप्रसुतसाधकत्वमेवनवाधकल मिसलमिनिप्रसंगेन तथासौगतस्य प्रमाणसंख्या विरोधिविध्वस्तवाधनको ख्यमुपयकतएव नचैतप्रत्यक्षतर्भवनि साध्यसाधनयोाप्यकभावस्य सोकस्येव प्रत्यक्षाविप्रत्याविषयत्व त् नहि नदिसतोव्यापारान् कर्तुशनोमिजविचारकत्वात् संनिहित विशयत्वाच्च नाप्यनुमाने तस्यापिदेशणदिवि যৰিয়িছলনআঘৰিবলা ললিসালুনীলবিলমানিবু নসসাল माप्तिप्रतिपता वितरेतराश्रयत्वप्रसंगाव्याप्नौहिनिपन्नायामानुमाननिर्विकल्पकत्वाखमासायनितदान । लाभेचन्याप्तिप्रतिपतिरिति अनुमानांतरेणाविनाभावप्रनिपतावनस्थामसपरपक्षचर्चचमीनिनानुमानगम्या ध्याप्तिःनापिसरल्यादिपरिकल्पिनरागमोपमानापिसभावे साकल्येनापिनाभावावगनिःषांसमयसैगृहीत सादृश्यान्ययाभूताभावविशयत्वनच्यात्यविशयत्वात् परैस्तथानभ्युपगमारजन्यप्रसमसभावविकत्सा त साकल्येनसाध्यसायभावप्रतिपत्ते प्रामाणानार्थमृगमिसपर सोपिनयुक्तवादीविकाध्यक्षहीनदि विशयस्यवातध्ववस्यापकत्वमाधेपक्षदर्शनस्वतदनंतरभाविनिर्णयस्यापिनियतविशयत्वेनव्यायगोच प्रप.. Page #1006 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्वात् हितीयपक्षपि विकल्पदृय पैसेंकतवन हिकल्सज्ञान प्रमाणमन्यथावेति प्रथमपक्षेत्रमाणातरम् मंतव्यंप्रमाण्डूयलोतम्बावात उतरपक्षेतु नतनोनुमान व्यवस्था नहिव्यानिज्ञानस्याप्रामाण्य नपर्व मनुमाप्रमाणमास्कंदति संदिग्धादिलिंगादप्यत्सायमानस्य प्रामाण्यप्रसंगात् तनोव्याप्तिज्ञानंसविक मपिसंवादकंच प्रमाणहयादन्यदभ्युपगम्यामितिनिसौगताभिमतप्रमाणसंख्यानियमः एतेनानुपलं, कारणथ्यापकानुपलंभाच्च कार्यकारणयापकभावसंवितिरिनिनदलपि प्रयुक्त जनुपलभस्यपसक्षति शवेन कारणायनुपलभस्यचलिगलेननजनितस्यानुमानत्वात् प्रत्यक्षानुमानाभ्याध्याप्तिग्रहणपक्षोपक्षि षानुसंगात् एतेनप्रत्यक्षपलेनोहायोर विकल्पज्ञानेनव्याप्तिप्रतिरिसप्पयाले प्रत्यक्षफलस्याषिप्रस क्षानुमानयोरन्यतरत्वेव्यतिरविषयीकारणात् तदन्यत्वेचप्रमाणातरव मनिवार्यमिति जथव्याप्तिविक . . लत्वान्नप्रामाएयमितिनयुतं फलस्यानुमान लसणफलहेतुनयाममाणत्वा विरोधिन्चान यथासंन्निकरीफ तस्यापि विशेषेशज्ञानस्यविशेश्यज्ञानलक्षाफलापेक्षयाप्रमाणत्वमिति नवशिविकाभ्युपगतोहायोदवि Page #1007 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रूपा दिगो वर चारित्वेन चरितार्थत्वाच ना प्यदृष्टसह का रिसव्यपेक्ष मिंट्रियमेकत्व विशय मुक्त दोषा देव किंचा दृष्ट संस् दिसव्यपेक्षा देवात्मनः सद्विज्ञान मिति किंन करमते दृश्यते दि रस्चन सारखत षांडालिकाक्षिविद्या संस्कृतादात्मनो बि शिष्ट ज्ञानोत्पत्ति रितिन चजना दिसंरकतमपिच करा तिशय मपुल क्षनइति चेत् नतस्य स्वायनतिक्रमे वानिश यो पलब्धेन विशयांतर ग्रहण लक्षणातिशस्य यथा चोतं यत्राप्यतिशयो दृष्टः सस्वार्थानिति लंघनात् कर मक्ष्म दिदृष्टौ स्या यो गोजैनं प्राहन्न रुप श्रोत्र तितेः इति नन्वर्थ वार्तिकस्य सर्वज्ञ प्रति षेधपरत्वा द्विशमो दृष्टांत इति चेत् नइन्द्रियाणां विशयांतर प्रवृतावतिशया भाव मात्रे सादृश्यात् दृषां तत्वोपपतेः न हि सूर्वो दृष्टांत धर्मो राष्टेति के भवितुमर्ह त्वन्यथा दृष्टांत एवनस्यादिति ततः स्थितं प्रत्यक्षानुमानाभ्यामर्थतिर मत्या भिज्ञानं सामग्री स्वरूपभेद वितिनंचे तदप्रमाणं ततो थे परिच्छिद्य प्रवर्तमानस्या थक्रियायाम विसंवादातू प्रत्यक्ष दिति नचे कन्या पलीये वध मोक्षादि व्यवस्था' अनुमानव्यवस्था वा एकत्वाभावे बहुस्यैव मोक्षादे गृहीत संबंधस्यैव लिंगस्या दर्शनादनुमानस्य चव्यवस्था योगा दिति नचास्य विशये वार्धप्रमाण सद्ा बाद प्रामा एयन हिषये प्रत्यक्ष स्व लैंगिकस्य चा प्रनृतेः प्रवृतैौ Page #1008 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यक्षभिज्ञान मपि सौगतीय प्रमाण संख्या विघटयेत्येव तथापि प्रत्याक्षानुमानयोरनंतभावात् ननु तदितिस्म ये रसां मिद् मिति प्रत्यक्षर्मितिज्ञानद्वय मेव नताभ्यां विभिन्नं प्रत्यभिज्ञानाख्पवयं प्रतिपद्यमानं प्रमाणतरमुपल मामहे ततः कथं तेन प्रमाण संख्या विघटन मिति तदप्य घटेत मेवयतः स्मररंग प्रत्याक्षाभ्यां प्रत्यभिज्ञान विशय स्यार्थस्य गृहीतमशक्यत्वात् नापि प्रत्यक्षेण तस्य वर्तमान विवर्तवनित्वात् यदुष्युक्तं ताभ्यां भिन्नमन्यदज्ञानं नास्तीति तदप्ययुक्तमभेद परामर्श रूप तया भिन्नस्यैवावभासना तू नच नयोरन्यतरस्य वा भेदं परामशात्मक त्वमस्तिविभिन्नविषयत्वात् नचैतरस्य वा भेद परा मशत्मित्वकत्वमस्ति विभिन्न विशयत्वात् नचैतन्यसो त भव त्यनुमाने वातयोः पुरो वास्थितार्थ विशय त्वना भूत लिंग संभाविषयत्वेनच ।। पूर्वापर विकार व्याप्ये कत्वाविषयत्वातूंना विना पिस्मरणे तेनापि तदेकत्वस्याविशयी करणात् अथ संस्कार स्मरण सह कृत मिन्द्रिय मेव प्रत्यभिज्ञानं जनयतीन्द्रिय जं चाध्यक्ष मेवे तिनप्रमाणां तर मित्य परः सोप्यति वा लिश एव स्वषिशयामिमुष्यन प्रवर्तमानस्येन्द्रियस्य सहकारिशन समवधानेपि विशयांतरप्रवृति लक्षणातिशयायोगात् विशयांतर चातीत सांप्रतिकावस्था व्याप्येकदच्य मिंट्रियाणां रसोनोपलक्ष्यते तस्यानुभूतविषयत्वात यूर्वोत्तरविवर्ति वत्यैकद्रव्यं हि प्रत्यभिज्ञान विषयः । नच तत्सा Page #1009 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तःपातित्वान्ननतीनुमान नहिभीवेनेखोनीव्यभिचारः अप्रतिभासमानलेपिनध्यवस्थाभावान् नतोनानुमानमिति जयानायविद्या विभितत्वात्सर्वमतदसंबंधनिसनल्पनमो विलसितंजविद्यायामप्युतदोषानुशंगान सकलविका ल्पविकलवानस्यानैवदोषइसायनिभुग्धमाषितम् केनापिरुपेण तस्याः प्रतिभासाभाव नस्वरुपानवधारणात्म अपरमन्यत्र वितरण रेखागमालंकारेतमितिनेतन्यते यचपखलविवर्नलमखिलभेदानामिक नत्राप्यरुपे शान्वितत्वेहेनुरन्वेवचीयमानद्वयाविनाभावित्वेन पुरुषोतिप्रनिवभातीनिपेटविद्यानकारिवाहिरुडःजन्वित चमेहेतु घटादाने हेतु लभभामोराहादावयुपलभ्यतइसने कोनिङ्गःनिमयंचकार्य मसौविदधानि अन्येन प्रयुक्त्वान झपावरान झडावशात् स्वभावाहाजन्यन प्रयुक्त खातंत्र्यतानि हतप्रसंगन लपावणदिनिमीन र सपायाखानामकरुणाप्रसंगात् परोपकरणनिष्टला तस्याः सृष्टः प्रागनुकंपाविशयमाणिनामभावाचन मायुज्यते झपापरस्य प्रलयविधानायोगाच जदृष्टवाहियानस्वातंत्र्यहानिःशापरस्य पीराकारणाहरव्यपदा जोगाञ्चकीडावरण मन्तौनप्रभुलं क्रीडोपायव्यपेक्षणाद्वालकवन् क्रीडोपायस्य नन्साध्यस्यचयुगपदुत्पनिप्रसंगमस Page #1010 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गमायसिउरणेनाभवाशनाचन्द्रकानइयांभसा प्ररोहरगमिवलक्षः सहेतुः सर्वजन्मनामिति नदेनन्मदिरा गद्गदनोदितमेव मदनकोद्रवामपयोगजनित व्यामोत्सग्धविलसिनमिवनिखिलभवभासतविचारासहत्व नयाहि यसक्षस्यसताविशयत्वमभिहितम् नकिनिर्षिशषसना विशयत्वंसविशेषसतावबोधकलंगानता रख्या पक्षःसतायाः सामान्यरुपचा हिशेषनिरपेक्षतया नवभासनात् शावलेयादिविशेषानवभासतेगोवा वभासवत् निर्विशेष हिसामान्यभवेश विशणदित्यभिधानात् सामान्यरुपलेनसतायाः तत्सदित्यन्वय विशयलेन सुप्रसिद्धीवजयपाश्चात्यःपक्षःकक्षीक्रियते नदानपरम पुरुषसिद्धिः परस्परव्यावृताकार विशेषा मध्यक्षतावभासनान् यदपिसाधनमभ्यधायि पनिभासमानत्वं तदपिनसाधुविचारसत्वान् नथाहिनिमा नत्वं वनः परनोवा ननावत्खनोसिहलान् परतःश्नहिरुई परनः प्रतिभासमानत्वंहिपरं विनानोपपयते प्रतिभा मात्रमपिनसिडिमधिवसनि नस्य नहिशेषनोतरीयकवानहिशेषाभ्युपगमेहेनलसनिः किंवधर्महेतु दृष्टाना • मानोपायभूताः प्रतिभासनेनवेतिप्रयमपोप्रतिभासानाः प्रविष्टः प्रतिभासिवहिभूनानाययायःपक्षालदासाय Page #1011 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | नापि इस एयः। तस्या पिसाना वेदकप्रमाणाभावात् नता बस सक्षे तदा वेदकमविप्रति प्रसंगात् नचानुमानमवि नाभाव लिंगाभावात् ननु प्रत्यक्षं नाहक मस्य वाक्ष विस्फालनानंतरं निर्विकल्प कस्य सन्मात्र विधिविशयतयोस | ते: सतायाश्व पर जन रुप त्वात् तथा चोकं अस्ति मालोचनाज्ञानं प्रथमं निर्विकल्पकं बाल मूकादिविज्ञान सदृशे शुद्ध वस्तुजं नच विधिवत् परस्पर व्यावृतिरप्यध्यक्षत प्रतीयते इतिद्वैतसिद्धिः तस्य निशेधाविशयत्वात् तथाचेोके आरु विधा नृपत्य क्षेन निषेडु विपश्चितः नैकर आगम स्लेन प्रत्यक्षेगन बाध्यते अनुमानादपिनन्स ट्रावो निभाय नए तथाहियामा रामादयः मदार्थाः प्रतिभासांताः प्रविष्ठाः प्रतिभासमानत्वात् यत्सतिभासते नत्पति भासांत प्रविष्टं यथा प्रतिभासस्वरुप प्रतिभासतेच निवादा पन्नाइति तदागमनामपि पुरुष एवेदं पद्मं यज्ञ भाव्यमितिव कुलमुपलभात सर्ववैखल्विदं तमने नाना स्ति किंचन । आरामं तस्य पश्यति नतं पश्यति कश्चनेति श्रुतेश्व ननु पर जम ए एव परमार्थसत्वे कथं घटादिभेदो न भासते इति नचाद्यं सर्वस्यापि विवर्त या वभासनात् नचाशेषभेदस्य न द्विवर्तन्लम सिद्धं प्रमाणमसिद्धत्वात् तथाहि विवादाध्यासितं विश्वमेक कारण पूर्वक मेक रूपान्वितं च निखिलं बबित Page #1012 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधाइत्वंचकारणमात्रापेक्षयायदीप्यते तदाविरुई साधनं कारणविशेषापेक्षयांचे दिनरेतराश्रयत्वं सिह हिकारणविशेषमुहिमनीनपेक्षया कारणव्यापारातुविधाइत्वे कार्यत्वे ततःला शेषसिद्धिरिनि सन्निनेशविशि उत्तमचेननोपादनत्वं चोकदोषदुष्टत्वान्नप्रथचित्यते स्वरुपभागासिालादेलवापिसुलभत्लान् विरुद्वावामीहनवो दृष्टानानुग्रहणसशरीरासर्वज्ञपूर्वकल साधनान् नधूमात्पावकानुमानेप्ययंदोषः नत्रतापिार्णादिविशेषाधाणा निमात्रव्याप्तधूमस्यदर्शनात् नैवनात्र सर्वज्ञाकीवशेषाधिकरण तसामान्येनकार्यन्वसव्याग्निःसर्वज्ञस्यकर्नुर तालमानालागसिहत्वात् व्यभिचारिणश्वामीहेनवः बुहिमस्कारणमंतरेणपिपिकदादीनाप्रादुर्भावसेभवान् कम सायनस्थायामबुटिपूर्वक स्यापिकार्यस्वदर्शनात् नदवस्यतत्रापिभगोरख्यकारणमिसनिमुग्धविलसित नध्याप स्याप्यसेभवादशरीरत्वाज्ञानमत्रिणकार्यकारित्वाधटनादिछाप्रयत्नयोः शरीराभावसभावातुदर्शभवश्च पुरातनेविस्तरेणाभिहित जाप्तपरीक्षादोजनःपुनरस्त्रनायने यञ्चमहेश्वरस्यलेशादिभिरपराभृष्टत्व निरतिशयत्व मेश्वोकपनत्वं तत्सर्वमपिगगनाजसोभव्यावर्णनमिवनिर्विशयत्वापेक्षामहति तनोन्महेश्वरस्याशेपत्वं नन्त Page #1013 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अयप्रथमपक्षेजवयवसामान्यनाने कांताहितीयपक्षसाध्याविशिष्टत्वात् अथसन्निशएवसावयवत्वंतञ्चधादि वत प्रथिव्यारावुपलभ्यतरसभूताभावित्वमभिधीयते नरप्पपेशलं संनिशस्यापिविरारासदत्वात् समवयव सिंवधाभवचनाविशेषावा यद्यवयव संबधस्तदागमनादिनानेकांत: सकलमूर्तिमन्यसेवधस्याप्युपरितवानी वगनत्वमप्युपचरितस्यात् श्रोत्रस्यार्थकारिलनचस्यात् उपचरितपदेशरुपलात् धर्मादिनासंस्काराततःसेस युक्तं उपचरितस्यासट्रपस्यनेनोपकारायोगान् खरविशणणस्येव तनोनकिंचिंदनन् जयरचनाविशेषः तदापत्र निभागासिहले नटवस्थमेवेनि नाभूत्वा भाविव विचारसहते नाप्यक्रियादर्शिनापिरुतबुहिउत्पादकत्वं नहिरून समयस्यवाभवेत् सनसमयस्यचेत् गगनादरपिबुद्धिमहेतुकलंस्थात् तत्रापिरखननोसेचनात् कृतमतिगृहीतसके। स्यकलबुद्धिसभावान् सानिध्यतित् वदीयापिकिनस्यात् वाधासदावस्यमनिप्रमाणाविरोधस्यचान्यत्रापिका तुरग्रहणात् क्षित्यादिकं बुद्धिमहेनुकत्वेनभवनि अस्मदायनवग्रामपरिमाणाधारत्वात् गगनादितिप्रमाणस्पस धारणत्वात् तन्नकतसमयस्यकतवुयुत्पादकत्वंनाप्यकत्तसमयस्यासिहत्वात् जविप्रतिसंगाच कारणव्यापारा Page #1014 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिदुपादानमित्यपि वार्तुव स्तूत्पादपेक्षया अभिव्यते रघट नातू वस्त्व पेक्षया भिव्यक्तो कारण संपातात्प्रागपि कार्य वस्तु सान प्रसंगातू उत्पादस्याप्यभिव्य फिर संभाव्या स्व का रहा सभा संबंधलक्षणस्योत्पादक स्मापि कारण व्यापारातू प्रसद्भवेि वस्तु सद्भावप्रसंगात् तलक्षणम्वा तु सत्वस्य प्राक सत एव हि केनचितिरोहितस्याभिव्यंजके नाभि व्यक्तिस्तमस्ति रोहितस्य घटस्येव प्रतिपादिनेति तन्ना न्निव्यन्यर्थ कारणो पादानं युक्तं तन्न स्वकारण स ता संबंधः कार्यत्वं नाप्य भूत्वा भावित्वां तस्यापि विचारासह त्वात् अभूत्वाभावि त्वं हि भिन्न काल किया द्वयाधिकरण भूते कारिसि दुमसाध्यास्ते कांत पद विशषित वाक्यार्थत्वा भुत्वात्रजति इत्यादिवाक्यार्थवत् नचात्र भावना भवन योराधारभूतस्य कर्तररनुभबोलि 'जभवनाधारस्या विद्यमानत्वेन भावनाधारस्यच विद्यमानतया भावा भाव स्योरेकाश्रय विरोधात् अ विरोधेच तयो पर्यायमा विभेदोन वास्तव इति अस्तुवा यथा कथं विदभूत्वा भावित्वं तथापित न्वा दो सर्वशन न्युपगमा द्वावा सिहूं नदिमही एक पारा रामादयः प्रागभूत्वाभवेतोभ्युपगम्यते पते स्लेषा तैः सर्वदा व स्थानामुपगमात् जय सावयवत्वेनतेषामपि सादित्वं प्रसाध्यते तदप्यशिक्षित लक्षिनं अवयव इतेरवयवेरारभ्यत्वेन च सावयवत्वानुपपतेः Page #1015 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुत्पन्नानां भवेयुत्पद्यमानानां सता समतावान तावदसता खरविशाणादेरवि मन्यसे गात् सतां चेत सत्तासमवाया तू ख नोवा नता वत्सता समवायादन वस्या प्रसंगातू प्रागुक्त विकल्पध्यानति इद्धेः स्वतः सतां नुसता समवाया नर्थ को अयोत्पा यमानानां सता संवेधः निधा संबंधयोरेक कालवा भ्युपगमादितिमतं नदासता संवधउत्पादाद्विन्नः इति यदिभिन्नस्तदे त्पत्तेरसत्वा विशेषत्पत्यभावेयाः किं कृतो भेदः अयो त्यति समाक्रांत वस्तुसत्वेनोत्पतिरपि तथा व्यपदिश्यते इतिमनं तद व्यतिजग्य वलिन मे वो पति सत्वं प्रति सत्यं प्रति विवादे वस्तु सन्न स्यानिदुर्घटत्वात् इतरेतराश्रय दोषश्च इत्यन्पतिसंदेव •स्तुनि तदेककालीन सत्ता सम्बधावगम स्तद वर्गमेचनत्रत्य सत्ते नोपति सत्वनिश्वय इति येन दोष परिजिहीर्षया। तयोरेका मभ्यनुज्ञायते तर्हितत्संबंध एव कार्यत्व मिति नतो बुद्धिमहेतुकत्वे गगनादिभिरने भोगः एतेनख कारण संवेधे पिचितेन ज मय संबंधकार्य त्वमितिगतिः सापिन युक्ता तत्संबधस्यापि कदाचित्कले समवा यस्या नियमच प्रसंगात् घटादिवत् जमदा चिकत्वे सर्वदोषलं भः प्रसंग: अथ वस्तू त्यात कारणानां संविधाना भावान्न सर्व दोपलंभन प्रसंग: ननुवस्तु प्रत्यये कारणा नां व्यापारः उत्पादश्व स्वकारणसता संभवामः सच सर्वदाप्यस्ति इति तदर्थं कार गोपादानमनर्थकमेवस्यात् अभिष्यत्य ॐ Page #1016 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चादीनांसुपलेभात् जयतादृशःप्रसादादोसन्निवेशविशेषादृष्टीनतादृशस्य कस्यचिदप्यभावान्सानिशा . हिसानिश्यकतारेगमयनि प्रसादादिवत् नवदृष्टकर्नुकादृष्टकर्नुकाभ्यांनुहिमंत मिनेनरत्तमिहिःकनिमर्मणिमुक्का दिभिव्यभिचारान् एतेनाचेतनोपादानत्वादिकमपिसमर्थिनमितिसतंबुद्धिमहेनुकसंनतश्वसर्ववैदिलमिनिनेदे विमनुमानमुद्रविणदरिद्रवचनमेवकार्यत्वादेजसम्यग्धेनुकत्वेनतज्जनिनस्यमिथ्यारुपपलान् नयाहिकार्यत्वंसक रणसतासमवायःस्यादभूलाभानित्वमक्रियादर्शिनापिकन उठ्युत्पादकत्वकारगन्यापारानुविधायित्ववास्याइत्वं । तिराभावात् जथायःपक्षानदायोगिनामशेषकर्मपक्षेपपक्षानःपातिनिहेतोः कार्यवलक्षणस्यप्रदत्तभागासिद्ध नचतवसनासमवायःस्वकारणसमवायोचासनलिनसत्यक्षपध्वसरूपत्वेनगन्नासमवाययोरभावात् सत्ताया, . गुणक्रियाधारत्वाभ्यनुज्ञानात् समवायस्पचपरेःट्रव्यादिपंचपदार्थवृत्तियोगत्वाभ्युपगमात् जथाभावपरित्यागन भावरेयवेक्किादाध्यासितस्यपक्षीकरणालायंदोषःप्रवेशमागिनिचेन् नर्तिमुत्यर्थिनांतदर्थमीश्वराराधनमनर्थको स्यातत्रस्याकिंचित्कस्त्वातू संगासमवायस्यविचारमधिरोहनःशनधाविशीयमाणानान् स्वरुपासिढुंचकार्य Page #1017 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संवाहुभ्योधमतिसंपति यीवाभूमीजनयन् देव एकनयाव्यासवचनंच जनोजंतुरनीशशेयमात्मनः सुख दुःखयोः ईश्वरीपरितोगछैन्सर्ववाश्चश्रमेववा नचाचेतनेनैव परमाएवादिकारणे पर्याप्तत्वाइछिमन का रणस्यानवयंचतनानांखये कायोत्पनोव्यापारयोगान् लोदिवन नचैवचेतनस्यापिचैतनोतर प्रवकन दिनास्था तस्यसकल पुरुषज्येष्टत्वान्निरतिशयत्वात् सर्वज्ञवीजस्यक्लेशकमविपाकाशेयरसामृष्टत्वादनादि भूना नश्वरज्ञानसंभवाच्च यदाह पतंजलि श्लेशकर्मविपाकाशेयेरपरामृष्टः पुरुषः सर्वज्ञः सर्वशमपिगुरुः लिनविछेदादितिच एवयमनिहतंसहनोविरागःषष्टिनिसर्गनिता वशिनेन्दियेशु जात्संनि सुखम मनापरणाचशकिज्ञानेच सर्व विशयभगवत्सेवेवेसमधून वचनाञ्च नचावकार्यचिमसिई सावयवत्वेनकार्यन सिविपक्षावक्त्यभावातू नायनैको निकं विपक्षेपरमावादावप्रवनेः प्रतिपक्षसिहि निर्वधनस्याभावातून प्रकरणसमंजयान्वादिकं बुद्धिमहेनुकंनभवनि दृष्टकर्वक प्रसादादिलक्षणलादाकाशादिवदित्यस्येवा प्रतिपक्षसाधनमितिनैनकनंदनारसिहलान् सन्निवेशविशिष्टत्वेन प्रासादादिसमानजातीयत्वेनन Page #1018 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मरणेचसर्वज्ञनातिनाज्ञानमभावप्रमाणो युजनापरया नकस्यचिदनाग्दशिनिरिमजगत्रिकालज्ञान सुप . सर्वज्ञस्यानीट्रियस्यवासर्वज्ञचहिनेनोधर्मनयासनीन्द्रियं तदपिनपारुन पुरुषविशयं इति कथमभावप्रमाण यमासादयेत् जसर्वज्ञस्यनदुत्पादसामग्र्याजसंभवातूअसंभवे नथाज्ञातुरेवसर्वज्ञत्वमिनि जत्राधुनातन विसाधनमित्सपि नयुक्तं सिध्यसाध्यनानुषंगान् नतःसिद्धं मुख्यतीदियज्ञानमशेषतो विशंदे सार्वज्ञज्ञानस्या तीन्दियत्वादश्रुच्यादिदर्शनंनद्रसावादनदोषोपि परिहन एवकयमनीन्दियज्ञानस्यवेशयमितिचेत् तयासत्य खपज्ञानस्यभावनाज्ञानस्यचेनि दृस्यनेहिभावनावलादन देशवस्नोपिविशददर्शन मिनि पिहिनेकारणा सिचसूत्रीमुखायरमेयमविचनिर्मिलितनयतेनयापिकांताननं व्यकमितिवरलमुपलभान ननुचनावरणाविले शेराजत्वमपितुननुकरणभुवनादिनिमित्ताचेन नचात्रतन्नादीनांबुद्धिमहेनुकत्वमसिद्ध मनुमानादेनस्य सुप्रसिद्ध चान् तथाहिविकल्पादिकरणभावापन्ने परपिर्वनेतरुनानादिसटिमलकं कार्यवादचेतनोपादानान्सनिवेश शिष्टत्वाद्वावस्पादिसदिनिजागमोपिनदानेदक श्रूयने विश्वावरुनविश्वतोमुखोविश्वतोगदुरुन विश्वनःयान Page #1019 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमिति सिद्धं सकल पदार्थ साक्षात्कारित्वं कस्य चित्पुरुषस्या तो नुमा ना दितिन प्रमा एग पंचका विशयत्व मशेषज्ञस्य जय अस्मिन्ननु मानेतः सर्व वित्व मनहतो वा अनर्हतश्वे दह द्वाक्य मममा सांस्यात् अतिवेत् सो पिनमुखा सामर्थेन वावगे पार्यते स्वशत्याष्टाता तु देशा बाहेतोः पक्षांतरेषितुल्य इति त्वादिनि नंदेतत्परेशां स्ववथाय कसो त्यापन मेववि अधिनिशेधप्रश्वस्य सर्वज्ञसामान्याभ्युपगम पूर्वक त्वात् अन्यथा नकस्याप्य शेष ज्ञत्वमित्वेवं वक्तव्यं प्रसिद्धानुमानेष्य स्पदोषस्य संभवो न जात्यतरत्वाञ्च तथाहि नित्यः शब्दः प्रत्यभिज्ञायमान वादित्युक्ते व्यापकः शब्दो नित्यः नि त्यः प्रसाध्यते अन्यापको ना यद्य व्यापकः तदा व्यापकत्वे नाप्यक रसमा नो नकिचिदर्थं पुष्णाति अथव्यापकः सोपि न त्या सामर्थ नबाबगम्यते स्वशादृष्टांतानुग्रहेावा पक्षांतरे पितुल्य वृत्तित्वादिति सिद्ध मतो निर्दोषासा धनादशेषज्ञत्वमिति यच्चा भाव प्रमाण सत्ता कबलित मशेषज्ञस्येति यदुक्तमेवानुमानस्य नद्रा हरू स्य सावे सति प्रमा शा पंचका भाव मूलस्था भाव प्रमाण स्यो खाना योगा तू गृहीत्वा वस्तु सद्भावं स्मृत्वा च प्रतियोगिनं मानसं नास्तिता ज्ञा नं जायते क्षानय क्षयेति चभावातू के दर्शनं तथा वकालत्रय निलो कल दक्ष वस्तु सदा बग्रहणे जन्यत्रान्यदा ग्रहीत सके Page #1020 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्तेः माट्रा मदन कोद्रवादिभिराबर पपतेः नचेद्रियस्यतै राव रहा मिन्द्रियाणां मचेतनामप्यनावृत मख्यत्व त् स्मृत्यादिप्रतिबंधायोगात् नापिमनसस्तरावरण मात्मव्यतिरेकोणा पस्य मनसो निवेश्यमानत्वात् ततो ना मू तस्य वरणाभावः जतो ना सिद्धं तद्गुहास्वभावत्वे सति प्रक्षीगण प्रतिवन्धप्रत्ययत्वं नापि विरुद्धं विपरीतनि श्विता बिना भावाभावात् नाप्यने कांतिकं देशतः सामरत्येन वा विपक्षे नृत्यभावात् विपरीतार्थेपिस्याभावातू मिस्त्येव विवादापन्नः पुरुषो ना शेषज्ञो वकृत्वात् पुरुषत्वा पाएया दिमत्वाच्च रथ्या पुरुषवदिति नैतावत्वा देरसम्यग्धेतुलात् वक्तृत्वं हि दृष्टष्ट विरुद्वायविक्तृत्वं तद् विरुद्ध वक्तृत्वं वक्तृत्व सामान्य वा गल्ये नराभावान्न प्रथमः पक्षः सिद्धू साध्यतानुशेगान्नापिद्वितीयः पक्षः विरुद्धत्वात् तद विरुद्ध वक्तृत्वं हि ज्ञाना तिशय मं तरेर नोपपद्यत इति वक्तृत्व सामान्यमपि विपक्षाविरुद्धत्वात् नपति साधना यालम् ज्ञानप्रक विकृत्वाय कर्षादर्शनात् प्रत्कृतज्ञाना तिशय बना रचना निशय वतो स्यैव संभवात् एतेन पुरुषत्वमपि निरस्तं पुरुषत्वंहि रागादिदोषरवितं नदा सिद्धसाध्यता नदूषि तंतुविरुडूं वैराग्य विज्ञानादिगुणयुक्त पुरुष न्वस्याशेषज्ञत्व मंत्तरेणा योगात् पुरुषत्व सामान्ये तु संदिग्ध विपक्ष व्यावृति Page #1021 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गयत्वमशेषज्ञस्येति यदुकं नाहकस्यानुमानस्यसंभवा नयाहिकश्चित्पुरुषः सकलपदार्यसाक्षात्कारीताहरणस्वभा वत्वसनिपक्षीणमनिबंधमत्ययाचात् ययगरणस्वभावत्वसनिपक्षीणमतिबंधात्स्यं तत्साक्षात्कारी यथापगतान रिलोचनरुपसाक्षात्कारी तद्गुण स्वभावचेसनिपक्षीणपतियालयबतिवादापन्नः कनिदिनिसकलपरायग्रहण स्वभावलंवेदवचनान्ममोन्सिही चोदनातः सहलपदार्थपरिज्ञानस्यान्यथायोगादेवस्यवादशीपानीनेरिनि व्या विज्ञानोत्पतिवलाञ्चाशेषविशयज्ञानसंभवः केवलं वैशयेविवादः नत्रचावरणायोगस्वकारण रजोनीलागयात्रता ज्ञानस्येवनदपगमइति प्रमाणप्रतिवन्धप्रत्ययत्व कथमिनिचदुध्यने दोषावारणमचिन्निमूलप्रलयमुपाजतः अनस्यमानहानिकत्वान् यस्यपलक्ष्यमानाहानिः सकचिनिलंभलयभुपजति यथाग्निपुट पाकापसारित किट कालिकायनरेगवहिरंगमलहयात्मनिटेम्निमलमिनिनिसिानिशयवनीचदोषावरणे शनियंपुनर्विवादाध्या सिनस्याज्ञानस्यावरणसिद्धं प्रतिशेधस्यविधिपूर्वकला इतिजत्रोच्यते विवादापन्नसावणमविण्यतयास्ववि शयावबोधकत्वाद्रजोनीतारायंतरिताज्ञिानवदिनचान्मनोमूत्वादावारकाहत्स्योग जमूनीयाजपिचेतना | Page #1022 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्तमान विशयत्वाच नचाशेपवेदीसंवट्ठविर्तमानश्शेति नाप्यनुमानानन्सिहरनुमान हिगृहीनसंबंधस्येकदरी दर्शनादसंन्निनतिः नचसर्वज्ञसदावाविनाभाविकालिगंखभावलिगंगासंपश्यामः नदोपूर्व नवभावस्यन कार्यस्यवानन्सदावाविनिमाविनोनिश्चतुमशनेः नाप्यागमानन्सदानः सहिनियोनियोवानन्सट्टावभावयेन ननाव न्नत्यः तस्यार्यवादरूपस्यकविशेषाववोधकत्लायोगान जनादेरागमस्यादिमत्कनुषवाचकला घटनाञ्च ना ! - आगमः सर्वज्ञसाधयनिनस्यापितत्पणीनस्यनन्निश्चयमेनरेगपामाण्यानिश्चयान इनरेनराश्रयत्वाञ्चस्तरपणी , त्वनासादिनप्रमाणभावस्याशेषज्ञप्ररुपएणसरत्वं निनएमसंभाव्यमिति सर्वज्ञसदृशस्य परस्यग्रहणासंभा नोपमान मनन्यथाभूतस्यार्थस्याभावान्नार्थापनिपरिसर्वज्ञावचोधिकेतिधर्माकादेशस्थव्यामोहादपिसेभावान् धोकादेशः सम्यकमिथ्योपदेशभेदात् तत्रमन्वादोनोसम्यगुपदेशो यथार्थज्ञानोदयवेदमूलचान खुहारीनी मोहपूर्वकः नदमूलत्वान् नेपामवेदार्थतत्वान् ननःप्रमाण परकारिशयत्वादभावप्रमाणस्यैवप्रवृतिःलेनचा एवज्ञायने मांशप्रसक्षादिप्रमाणपंचकस्यव्यापारादिति अत्रप्रनिविधीयते यत्तावदु प्रत्यक्षादिप्रमाणावि . Page #1023 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारणदिनाव्यभिचारइति कारणादिकारणेन परिच्छेयमिनिनेनव्यभिचार नवमः कारणत्वातूपरिच्छेयत्वमपितुपरिने यत्वमपिपरिच्छेयाचमपिपरिछेयत्वात्कारणत्वमिनिचेन तथापिशोडकादिनाव्यभिचारान् इदानीमतीन्दियपत्य शव्याचष्टे सामग्रीविशेषविश्लेषिताखिलावरणमतीन्दियमशेषतोमुख्य सामग्रीव्यक्षेत्रकालभावलक्षणानस्या || विशेषसमयता लक्षणोन विश्लेषितानि अखिलान्यावरणानियमनतयानं किविशिर्षअतीन्द्रियमिन्द्रियाएपनिक्री न पुनरपिकीदृशमेवतःसामनेनविशद जशेषतोवेशयनिकारणमितिवेन प्रतिबन्धाभावइतिधमः तत्रापिनिकारणमि | तिचे जतीन्द्रियलमनावरणचेनियमः एतदपिकुन इत्याह सापालेकरणजन्यखेचप्रतिवन्धसमवानू नन्दवधिम नः पर्ययोरनेनासंग्रहादव्यापक मेनलक्षणामिनिनवाच्य तयोरपिस्तविशेयजशवतो विशदत्वादिधर्मसभवान्नमति । श्रुतयोरित्यनि व्याप्तिपरिहारः नदेनदिन्टियमवधिमनः पर्यनलप्रभेदानविधमपिमुख्यंमत्यक्षमात्मसंनिधिमा नापेक्षत्वादिनि नन्वशेषविशयविशदाभासितानस्य ननोवा प्रत्यक्षादिप्रमाणे पंचकाविशयावेनाभावप्रमाणवि परविध्वनाशकाकन्वान् कस्य मुख्यत्वं तथाहि नाध्यक्षमशेषज्ञविशय नस्य रुपादिनीयन गोचरचारित्वात् सं Page #1024 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीत्यर्थः उभयत्रापिधनीपस्यातजन्यस्यालदाकारधारिणोपिनलकाशकत्वं नथाज्ञानस्यापीतर्यः नमुययोदना स्यार्यरुपाननुहारिणोजानस्यायसाक्षात्कारितं तदानियतदिदेशकालवर्तिपदार्थप्रकाश .. सर्वविज्ञानमप्रनिनियनविशयस्यादिनिशंकायामाह वावरणक्षयोपशमलक्षणयोग्यतयाहिप्रनिनियनमर्थ ।। वस्थापयति खनिचतान्यावरणानिचवावरणानिनेपक्षियजदयाभावः नेपामेवसदवस्याउपशमः तावर.. यस्याःयोग्यतायाः तयादेतुभूतया प्रनिनियतमर्थव्ययस्यापयति प्रत्यक्षमिनिशेषः हियस्मादयस्मादेव कदोषइत्ययः इदमत्रतात्पर्य कल्पयित्वपिनापतदुत्पति तदध्यवसा पंचयोग्यतावस्याभ्युपगंतव्यानाद्रूपस्य सामानायैरेनदुत्पतेरिन्द्रियादिभिलक्ष्यस्यापिसमानार्थसमनंतर सदैनितयस्यापिशलेसंख्येपीतिका नेनव्यभिचारयोग्यताश्रवणमेवयेयानि एतेन यदुनं परेाजनघव्यसेनानहिमुत्कार्थरुपनी तस्मात्प्रमेया .. प्रमाणरुपनि तन्निरस्त समाना कारनानाज्ञानयुमेयरुपनायासद्भावात नचपरेशांसारुप्यनास्तिवस्तूभत नियोग्यतयोवार्थप्रनिनियमइनिस्थिनं इदानीं कारण वापरिच्छेद्यो निमनिराकरोति कारणस्यपरिच्छेगले ।। Page #1025 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संग्रहाद्विनेय व्यामोह एव स्यान दियत्तानयधारणात् न चभगवतः परमकारुणिकस्य चेथन घ्या मोहा एवं प्रभव ती त्या शंका यामुच्यते नाथलोको कारणं परिच्छेद्यत्वा तमो वत्सगम मेतत् ननु वा बालो का भावा बिहान नम सो न्यस्याभावात्साधन विकलो दृष्टी । इतिने वमेवं सति वाला लोकस्यापि तमोमानादन्यस्यासंभवाते जो द्रव्यसं संभयइति विस्तरे णे तद लं कारे प्रतिपादितं वाहव्यं अत्रैव साध्य हे त्वेतरमाह तदन्वयव्यतिरेकानुविधाना भावा चः अत्र व्याप्तिः अप्रस्यान्वयव्यतिरेकौनानुविधाति नतत्कारणकयया केशोडुक ज्ञानं नानुविधतेच ज्ञानम र्थान्वयव्यतिरेका विति तथा जालोकेपि एता बानू विशेष स्तनकं चरदृष्टांत इति नक्तंचरामजादादयः ननुविज्ञान मर्थजनितमय कार चार्थस्पमाकम् तदुत्पति मंतरेगा विशयं प्रतिनियमा योगात् तदुत्पत्ते रालो का दाविशिष्ट वातापसहिताया एव तस्यास्तं प्रति निगमहेतुत्वात् भिन्न कालवे पि ज्ञानज्ञेषयोग्राम माहक भावा विरोधात् निथा चोतं भिन्न कालं कथंया संमितिचेद्रा संतां विदुः हेतुत्वमेव युक्तिज्ञा स्तभा का रूप शाक्षम मित्या शंका गर्पणं यामि दमाह जनज्जन्यमपि तदीपक प्रभावत् जयजिन्यमध्यर्थक प्रकाशमित्यर्थः अतज्जन्यत्वमुपलक्षण तेन तदाकार Page #1026 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमिति अर्थः समीचीनः प्रवृतिनिवृतिरूपो व्यवहारः संव्यवहारः तत्रभवं सांव्यवहारिकं भूयः किंभूतमिन्द्रि निन्द्रियनिमित्तं इंद्रियं चक्षुरादि जनिं दियंमनः तेनिमित्तं कारणं यस्य समस्तं व्यस्तं च कारण मभ्युपगंतव्यं इंद्रिय प्रधान्या दनिन्द्रियवला धाना हुपजात मिन्द्रियप्रत्यक्ष मनिन्द्रियादेव विशद्दिसा व्यपेक्षा दुपजाय नमनिद्रियप्रसक्षं तेनेन्द्रियप्रत्यक्ष भवग्रहादिधारणा पर्यंत नया चतुर्विधमपि बहूादिद्वादशभेद मष्ट च रिंशतसंख्यं प्रतीन्द्रियं प्रतिपत्तव्य मनिंद्रिय प्रत्यक्षस्य चोक प्रकारेणाच्च चारिंशद्वेदेन मनोनयन नां चतुथभिपीन्द्रियाणां व्यंजनावग्रह स्याष्टचत्वारिंशद्वेदेनच समुदितस्येन्द्रियानिन्द्रियप्रत्यक्षस्य षटूि दुतरात्रिशती संख्या प्रतिपत्तव्या ननुवसंवेदन भेदमन्यदपि प्रत्यक्षम स्य तत्कथं नोक मिनिन वाच्यं कखादिज्ञान स्वरुपसंवेदनस्यमानसप्रत्यक्षत्वात् इंद्रियज्ञानरूप संवेदनस्य चेन्द्रिय समक्षत्वादन्यथा स्वम्यवसायायोगात् स्मृत्यादिस्वरुप संवेदनं मानसवेतिना परं स्वसंवेदनं नामाधक्षम स्ति ननु प्रत्यक्षस्पो दक कारणं वदतां श्रेथ कारेपियानिन्द्रिय वदर्याला का वपिकिंन कार गालेनो को तदवचने कारणानां साकल्यस्या Page #1027 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प प्रमाणात रत्वमतिर्वर्तते एतेन त्रिचतुः पंचश प्रमाण बाद नोपि सांख्याक्षपादनभा कर जैमिनयः खम माग संख्यान व्यवस्थापयितुं क्षमा इतिप्रतिपादितमवगंतव्य मुक्तन्यायेन स्मृति प्रभिज्ञाना नकीणां वदस्यु " & पगत प्रमाण सख्या परिपृथित्वा दिति प्रत्य क्षेतर भेदा द्वै एवममाणे इति स्थितं गबग जथेदानीं प्रथमप्रमाण भिदस्य स्वरुप निरुपयितुमाह् विशदं प्रत्यक्ष मिति ज्ञानमितिवर्तते प्रत्यक्षमितिधर्म निर्देशः त्रिशदज्ञाना कं साध्य प्रत्यक्षादिति हेतुः तथाहि प्रत्यक्षं विशदज्ञानात्मकं एव प्रत्यक्षत्वात् यन्न विशदज्ञानात्मकेतनत्र त्यक्ष यथा परोक्षं प्रत्यक्षेच विवादापन्नं तस्माद्विशतेज्ञानात्मकमिति प्रतिज्ञार्थैकदेश सिहो हे तुरिति चेत् कापू नः प्रतिज्ञा तदेकदेश्ये वाधर्मिधर्मि समुदायः प्रतिज्ञाः तदेकदेशेोधर्मेौधनविहेितुः प्रतिज्ञा चैक देश सिहइति विन्नधर्मिणा हेतुत्वे असिद्धत्वायोगात् धर्मिणी हेतुत्वे अनन्वय दोष इति चेन् न विशेषस्यधर्मित्वात् सामान्य स्यचहेतुत्वात् तस्य विशेषे मुममो विशेष निष्टत्वात् तस्य सामान्यस्य जथसाध्यधर्मस्य हेतुत्वे प्रतिज्ञार्थकदे शासित्वमिति तद्व्यसंमतं साध्यस्य स्वरुप रौवा सिद्दुत्वात् न प्रतिज्ञार्थकदेशा सिहुत्वेन तस्या सिद्धत्वं धर्मिणा Page #1028 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यभिचारात सपशेवृत्यभायातोरनचयइसप्यसत् सर्वभावानाक्षणभंगसंगममेवांगवेगारमंगीकुर्वनाम तथागतानां सत्वादिहेतुनामनुदयमसंगात् विपक्षेबाधकत्रमाणाभावात् पक्षव्यापकत्वाचावयवत्वप्रनिक नेपिसमानंदानी खोकमेव विशदत्वव्याचष्टे प्रतीसंतराव्यवधानेनविशेषवनयावाप्रतिभास वैशयमिनि । एकस्याप्रतीतल्याप्रनीति:प्रतीत्यतरं नव्यवधान नेनपतिभास वैशय यायवायस्थावग्रहहामनीतिभ्यो व्यवधानंतथापिनपरोक्षवं विशयविंशयिणाभेदनापतीने यत्र विशयविशयिणाभेदेसनिव्यवधानेननपरोस त्वं तर्हिजनुमानाध्यक्षविशयस्यकामयासस्यामिरभिन्यस्योपलंभाध्यक्षस्यपरोक्षतेतिनदयसकनि नविशयत्वाभावात् विसहशसामग्रीजन्याभिन्न विषयाप्रतीतिः प्रतीसंतरमुच्यतेनान्यदितिनदोषः नकेत लमेतदेव विशेषतयावाप्रतिनासनेसविशेषवरसिंस्थानादिग्रहणवेशयं तच प्रत्यक्षद्वेधामुत्यस .वहारभेदादितिमनसिकत्समनसोव्यवहारीलप्रत्यक्षस्योसादिकांसामग्रीतदेदेचार इंदियाणानि दियनिमितंदेशतःसंव्यवहारिकमिनिविशदंज्ञानमिनिचानुवर्तते देशतोविशदज्ञानमिनिसाव्यवहार Page #1029 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % E पादयेत् परस्यप्रत्यक्षेणगृहीतमशक्यत्वान् व्याहादिकार्यप्रेदर्शनातंप्रतिपयनेनिचेत् जायाने नहि कार्यास कारणानुमानजथलोकव्यवहारापेक्षयेण्याएवानुवानपि परलोकादावेवानयुगमारभारादितिकथेनदर्भा वोनुपलव्धेःइतिचे नदानुपलब्धिलिंगजनितमनुमान परमापनित मिनिप्रत्यक्षमायमपिखभावहेतुजा नानुमिनिमेनरेगनोपपतिमियनानिनि प्रागेवोकमित्युपरम्यने नदयुतधर्मकीतिना प्रमाणेतरसामान्य स्थितेरन्यधियोगनेःप्रामाणानरसभावःप्रनिशेधाचकस्यचिदिति ततःप्रत्यक्षमनुमानमिनिप्रमाणाध्यमेवे निसोगतः सोपिनयुकवादिस्मतेरविसंवादिन्या स्मृतीयायाः वकिप्रतिप्रमाएंनएबादनंनतःप्रमाणभूता सं याः सदावान स्मृनरप्रमाण्यं नतथाप्यनुभूतेनार्थनस्यलेवनाचो पपत्तेःजन्यथामत्यक्षस्याप्यनुभूनाविश देवियत्वादनामाण्यमनिवार्यस्यात् स्वविशयावभासनेस्मरणेप्यविशिष्ठमितिकिचस्मृतिप्रामाण्येनुमानवानी व विदुलभानयाध्याप्नेरविशयीकरणेतदुच्छामायोगादितिततः इंदवतव्यस्मृनिःप्रमाणे अनुमानप्रामाण्या यथानुपपने रितिसैवप्रत्यक्षानुमानस्वरुपतयाप्रमाणस्पद्वित्वसंख्या नियमविघटयतीकिनश्चितयातथा -Anal/incomeamatigyantuPATRONMARAamaree नामाण्य Page #1030 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थापिभावात् प्राक् कव्य भिचायैवततः प्रत्यक्ष मैवैकं प्रमारण मस्येवाविसंवादकत्वादिति तदेत हाल विलसित मिवा त्युपपतिशून्यत्वात् तथाहि किमप्रत्यक्षस्योत्पादक कारणाभावा जालं वनाद्वा प्रामाएंय निशिध्यते । तत्र ताबा प्राक्तनःपक्ष: तदुत्पादकस्य सुनिश्चितान्यथा उपपतिनियम निश्वय लक्षणस्य साधनस्य सद्भावा तू नो खलाप्युदी नः पक्षःस्तदाले वनस्य पाचकादेः सकल विचार चतुर चेन सिसर्वदाप्रतीयमान नातू । यदपि खभावतोय चारसंवनमुकं तदप्यनुचितमेव स्वभाव मात्र स्याहेतुलात् व्याप्यरूपस्यैव रच भाव स्य व्यापकं प्रतिगमक भ्युपगमात् नच व्याप्यस्य व्यापकव्यभिचारित्वं व्याप्यत्व विरोधप्रसंगात् किंचैव वा धितोनाध्यक्षमा : तिष्टते तत्राप्यविवादस्यागौण स्वत्वस्यत्रामा एया बिना भावित्वेननिश्चेतुमशक्यत्वात् यच्च कार्य हे तो. न्यथा पिसं भावनं तदप्यशिक्षत लक्षितं सर्ववेचितस्य कार्यस्य कारणाव्यभिचारित्वान् यादृशो लन कार्ये भूधर नितं वा दावतिवहल धवलन या प्रसन्नु पलटिका दाविति यदयुक्तं शक्रमूहूनि धूमस्या थापिभाव इति वेऋम्हुअिग्नि स्वभावो सोधम स्तत्र कथं भवेदिति किंच प्रत्यक्षे प्रमाण मिति रूप मयं परं प्रति एक्र मूर्द्धा अग्निस्वभावोऽन्यथावा यद्यग्नि स्वरमान स्तदा ग्निरेवेति क न उल भ्यतेन सला. पाकने प्रयतं 2717 Page #1031 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयप्रमाणस्वरुप विप्रतिपति निरस्येदानीसंख्याविप्रतिपतिंप्रतिक्षिपन् सकल प्रमाणभेदसंदर्भसंग्रह परंप्रमाणे यताप्रतिपादकंवाक्यमाह नहयतितच्छन्दन प्रमाणपए मृश्यने तलमाणं स्वरुपेणावगतं धाहिप्रकारमेव सकलन माणभेदनामत्रेवांतर्भावान् तहित्यमध्यक्षानुमानप्रकारेणापिसंभवतीति तदाशंकानिराकरणाथैसकलप्रमाएर भिदसंग्रह सालनी संख्या प्रतिकरोतिप्रत्ययेनदादिति प्रत्यक्षवक्ष्यमाणलक्षामितरत्परोक्षंताभ्यांभेद भिदान प्रमाणस्येतिशेषः नहि पर परिकलिनेकेहित्रिचतुःपंचशप्रमाणसंख्यानियम निखिलप्रमाणभेदाना मतर्भाव विभावना शक्याकर्तु तथाहि प्रक्षेकप्रमाण वादिनश्चार्वाकस्यनासंध्यक्षेलैगिकस्यांतर्भावोयुतानस्य तद्विलक्षणत्वान् सामग्रीखरुपभेदातू जयनाप्रसक्षेप्रमाणमति विसंवादसेभावान् निश्चिनाबिनाभावाल्डिंग लगिनिज्ञानमनुमानमित्यानुमानिक शासनंतत्रचस्वभावलिंगस्यवहुलमन्यथापिभावोदृश्यते तथाहि करणय सोपेतानामेतद्देशकाल संबधिनादर्शनेयिदशातरेकालोनरेट्रव्यानरसेबंधेचान्ययापिदर्शनात स्वभावहेतुव्य भिन्चार्यवलता चूतवतू लताशिंशपादिसंभावनाच तयाकालिंगमपिगोपालघटिकादोधमस्यशक्रमहीनेचान्य Page #1032 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशयएवपरानपेक्षत्वव्यवस्थानान् जनभ्यस्नेनुजलमरीचिकासाधारणप्रदेशेजलज्ञानं परापेक्षमेव सत्यमिदंजलं शिष्टा कारबारित्वान् घटचेनिकायेटक एवसरोजगन्धवान् परिदृष्टजलवदित्यनुमान ज्ञानाक्रियाज्ञानाच्च सिहपामाएयालाचीनज्ञानस्य यथार्थत्वमाकल्पमवकल्पत एवयदप्यभिहितं प्रामाण्ययहणोनरकालमुत्पत्य . रिछिनेविशेषोनामावसतइति नत्रयदभ्यस्त विशयनाभावसतइत्कच्यने तदानहिश्यान एव तत्र प्रथममेवनिःसंशयं . . परिछितिविशेषः पूर्वप्रमाणप्रमाणसाधारण्याएव परिछितेउत्पत्निः ननुमामाएयपरिछित्यारभेदाक्कथेपौवाप मितिनैवं नहिसर्वापिपरिछितिः प्रामाण्यामिकाभामाएयतु परिछित्यात्मकमेवेनिनदोषः तदप्युक्तं बाधक कारण ज्ञानाभ्यां प्रामाण्यमयोधनइनि तदपिफल्गुभाषितमेवापामारयेनि नथावतुं शक्मत्वान् तथातिप्रथममप्रामा ज्ञानमुत्पयने पश्चादवायवोधगुणतानोतरकालं नदयोधनइति तस्मात्प्रामाण्यमषामाएयवा स्वकार्य कचिदभ्य नभ्यासापेक्षयाश्चत्तः परतः श्चनिनितव्यमितिदेवस्यसंमनमपानसमा दोषवीदयप्रपंचरुचिरंरचितं समस्य नंदिविभुनाशिशुवोधनोमानस्वरुपममुनास्फुटमभ्यधायिगइनिपरीक्षामुखलघुश्तीप्रमाण स्वरुपोः Page #1033 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्यो दोषाणा मभाव इत्यत्र किंचिन्निवंधन मुत्पत्र किचिन्निवंधन मुत्पश्या मोन्यत्र महा मोहात् अथानुमाने त्रिरुपलि ग मात्र जनित प्रामाण्योपलब्धिरेव तत्र हेतु रिति चेन्न उक्तो तर त्वात् तत्राहि त्रैरुप्य मेव गुणेो यथा नद्वै कल्पं दोष इति न्यासं मत हेतुरपिचा मामा एयेवं वक्तुं शक्यत एव तत्रहि दोषेभ्यो गुणा नाम भाव स्तद्वभावाच्च प्रामाएया सत्ये अ माय मौन्स कि मारुत इत्य प्रामा एयं स्वत एवेति तस्य भिन्न कारण प्रभवत्व वनि मुन्मत्त भाषितमेव स्यात् किं चगुणेभ्यो दोषाणामभाव इत्य भिधना गुगे भ्यो गुणा एवेत्यभिहितं स्यात् भावांतर स्वभावात्वा भावत्वा दभावस्य ततो प्रामा एया सत्वं प्रामा एयभैवेति नैतावता पर पक्षः प्रतिक्षेपः अविरोधकित्वात् तथानुमान गुणः प्रतीयं एव तथाहि प्रामाएये विज्ञान कारणा तिरिक कारण प्रभवं विज्ञानान्यत्वे सति कार्यत्वात् अयमा ए मामा एयवत् तथा प्रमाण प्रामाण्ये भिन्न कार एव जत्ये भिन्न कार्यत्वात् घटवरून वदितिच ततः स्थितं प्रामा एममुत्पेतो पररा पेस मिति तथाविशय परिणितिलक्षणे प्रवृत्ति लक्षणे वास्त्र कार्ये स्वगृह नापेक्षत इतिने कांगः कचिदभ्यस्त वि Page #1034 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यावन्न ज्ञानं नता वस्तु विशयात्पुरुषं निवर्तयतिति तदेतत्सर्वमनल्पतमो विलसितं तथाहि नतानप्रामाण्य. त्पत्तौ सामग्र्येतरा पेक्षत्व मसिह्न नाप्तप्रणी तत्व लाल गुरग सन्निधाने सत्ये वाप्त प्रणीत वचनेयु प्रामा एपदर्श यद्भावाभावाभ्यां यस्योत्पत्य नुत्पती तत्कारण कमिति लोके पि सुप्रसिद्धत्वात् यदुक्तं विधिमुखेन कार्य मुखेन गुणा नाम प्रतीतिरिति तत्र तावदानात प्रणी नशब्देन प्रतीति गुणाना मित्ययुक्त माप्त प्रणीतत्व हानि प्रसंगातून जय क्षणेदोथुरणनाम प्रतीतिरित्युच्यते तदप्ययुक्तं नैर्मल्यादिभिरप्युपलब्धेः अर्थ नैर्मल्यं स्वरुप मेवनगुण. रविनाभाववै कल्प मपि स्वरूप विकल्पतेव नदोष इति समानं जयते कल्प मेव दोष स्तर्हि लिंगस्य चक्षरादेव तत्खरूपसा कल्प मेव गुणः कथं नभवेत् आप्तोक्तेपि शब्दे मोहादि लक्षणस्य दोषस्यभावमेव यथार्थज्ञाना दि क्षण गुए। सद्भावमभ्युपगच्छ न्नन्यत्र त्या नेच्छतीति कथ मनुन्मत्तः अयोक्तमेवशब्दे गुणाः संतोपिनप्रमात्यत्नोव्यापियंते कितुदोषाभाव एवेति सत्य मुक्तं किंतु नयुक्तमेतत् प्रतिज्ञामात्रे ए। साध्यसिद्धेरयोगात् नहिगुगे Page #1035 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यनान्यथेनिनन स्वाप्नोतत्वगुणसदावेपिनतहतमागमस्यप्रामाएप तत्रनि गुणेभ्योदोवारणामभावस्तदभावाञ्चसंश मविपर्यासलक्षणप्रामाण्ययासत्वेप्रामाण्यमोत्सर्गिकमनयादितमालस्वेनिननःस्थितप्रामाण्यमुत्पत्तो सामग्य तरसा पेक्षमिति नापि विशय चितिलक्षणेवकार्यग्रहणसापेक्षमगृहीनप्रमाण्यादेवज्ञानाहिशय परिछितिलक्षण कार्यदर्शनात् ननुपरिछितिमात्रेप्रमाणकार्यनस्यमिथ्याज्ञानेपिसद्भावान् । परिछितिविशेषतुना गृहीनप्रमाणं विरान ज्ञानजनयतीति तदपिवाल विलसितं नहिमामाण्य गृहणोतरकालभुत्पत्सवस्थानः परिछिनेविशेषावभासने र होपामारयादपि विज्ञानान्निविशेयपरिछेदोपलव्धेः ननु परिछिनिमात्रस्यशक्तिकायोजनज्ञानेपिसत्या नस्यापिप्रमाणकार्यत्वप्रसंगइतिचेन भवेदेवेयेयन्यिथावप्रसहखहेतूमदोषज्ञानाभ्यांनन्नापोघेत नस्माय बकारणादोषज्ञानवाधकप्रत्ययोवानोदेति तरखनएवभामाएयमिनि नचेवमभामाण्येप्याशंकनीयं नस्यविज्ञा कारणानिरिक्रदोषस्वभावसामग्रीसमयेक्षनयोत्पत्तेः निनिलक्षणेचस्वकार्य स्वगृहरणसापेक्षलान् । नडिया Page #1036 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मता सनिजदष्टानुपायिकरणत्वानप्रदीपभासुराकारवन् जयभवनुनामोतलक्षणलक्षितंप्रमाणेनयापिनलामाण्यवतः परतोपानतावत्स्वनः अविप्रनिपतिप्रसंगान् नापिपरनोऽनवस्थाप्रसंगादितिमन द्वयमाशंक्यतन्निराकरणनखमन मवस्यापयन्नाह नस्लामाएयस्वनः परनःश्वेनिसोपस्कारागिहिवाक्यानिभवंति ननइदंप्रतिपतव्यमभ्यासदायां चपरतइनितेनप्रागुनेकान्तद्वयनिरास:नचानभ्यासदशायोपरतःप्रामाण्येयनबस्थासमानाज्ञानांतरस्याभ्यस्त विशयस्यस्वतःप्रमाणभूतस्यांगीकरणान जयवाप्रामाण्यमुप्तन्नौपरतवविशिष्टकारणप्रभवत्वाहि विशिष्टका यस्येतिविशयपरिछिनिलक्षणेप्रतिलक्षणवासकार्यजभ्यासेतरदापेक्षयाक्वचित्खतःपरनश्रेनिनिश्नीयत ननूत्पत्तीविज्ञानकारणानिरिककारणान्तरसव्यपेक्षत्वमसिझपामायणस्य तदितरस्येवाभावान् गणारख्यमस्तीनि | वाग्मात्रं विधिमुखेनकार्यमुखेनगागुणानामप्रतीते:नाप्पप्रामाण्यवनस्वप्रामाण्यनुपरनएलेनिपर्यय शक्य निकल्पयितुमन्वयव्यतिरेकाभ्याहित्रिरुपालिगादेवकेवलान् प्रामाण्यामुयमानंदृष्टंप्रत्यक्षादिपितथैवप्रनिपत Page #1037 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रणमेवप्रतीतिरित्यन्येतेषांमतमखिलमपिप्रतीतिवाधितमिनिदर्शयन्नाह कर्मवन्कनुकरणक्रियाप्रतीते: ज्ञानविशयभूतंवस्तुकर्माभिधायने तस्येवज्ञप्तिक्रियाव्याप्यत्वात् तस्यवनहकत्मिाकारणेप्रमाणे क्रियाप्रमि ति:कचिकरणचक्रियाचनासो प्रतिस्तस्याइतितोकापायुकानुभवोलेषेयथाक्रमंतप्रतीनित्याननुशरपरामर्शसचिशेषप्रनिनिर्नवस्तुनत्ववलोपजानेसत्राह शब्दानुच्चारणेपिस्वस्यानुभवनमर्थवन् यया घटादिशब्दानुञ्चारणेपिघटाञ्चनुभवलथाहमहमिकयायोपनमुखाकारतयारभास: सशानुजारणेपित्य मनुभूयतइत्यर्थः जनुमेपार्यमुपपति पूर्वकपरंभनिसाहुंठमाचष्टे कोगनप्रनिभासनमर्थमध्यक्षमिलदेव नदानेहेन्।कोवालौकिक परीक्षकोवातेनप्रतिभासिनुशीलंयस्यसतथोकरले प्रत्यक्षमिवनू विशयिधर्मस्य विशयेउवाचारान् तदेवज्ञानमेव तथा प्रत्यावेनमेठन् जपिनि,देवजन्मयाजप्रमाणिकत्वप्रसंग:स्यादि सर्थः जसोदाहरणमार, प्रदीपवन इदमत्रतात्पर्यज्ञानवनिरिकसजानीयोनरानपेक्षा प्रत्यक्षार्थगणने UNR... Page #1038 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त वृक्षस्य जयेदानीसावशेषेणमर्थग्रहणसमर्थयमानःनदेवस्पष्टीकुर्वन्नाह जनिश्चितोपूर्वार्थइति उ यः • दिमबछेदेनानध्यवसितःसोपूर्वार्थ इत्ययः तेनेहाज्ञानविशयस्यावग्रहादिगृहीतत्वेपिनपूर्वार्थत्वं .: हादिविशयभूतावातरविशेषनिश्चयाभावान् अथोकमकार एवपूर्वार्थःकिमन्योप्यस्तीत्साह द्रष्टोपि तादृगितिदृष्टोपिगृहीतोपिध्यामलिताकारसयायनिर्णनशक्यते तदपिकत्वपूर्वमितिव्या . - समारोपाव्यवच्छेदात् ननुभवतुनामापूर्वार्थव्यवसायात्मकत्वं वितानस्यव्यवतायनविनइत्यत्राहगठः :. प्रतिभास खस्यव्यवसायइतिखस्योन्मुखतास्वोन्मुखतातयाखानुभवनतयाप्रनिभासनं. जनदृशंतमाह जयस्यवतदुस्मुखानयेतिनच्छ नाभिधीयते यथार्थोमुखतयाप्रति . व्यवसायलयाचोन्मुखतयाप्रनिभासनस्वस्यव्यवसोयोभवति जत्रोलेषमाह घट महमात्मनावमानिननु मर्यमेवाध्यवस्यनि नखात्मानमात्मानललंबेतिकेचित् कर्तृकर्मणारेखमतीतिरित्यपरे कर्तृकर्म प्राशिका Page #1039 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवती तिन चैतद् सिद्धं हितप्राप्तये जहित परिहाराय च प्रमारण मन्चे शयति प्रेक्षा पूर्व कारण नव्यसनितया सकलप्रमाण वादि‌द्भिर्मत्वात् जत्राट् सौगतः भवतु नाम संन्नि कशी दिव्यवच्छेदेन तस्यैव प्रामाण्यं नतदस्माभिर्निशिध्यते ननुष्य ||वसायात्मकमेवेत्यत्रनयुक्ति मुत्पश्यामः अनुमानस्यैव व्यवसायात्मनः नः प्रामाण्याभ्युपगमात् प्रत्यक्षस्यतु निर्विकल्प त्वप्यविसंवादकत्वेन प्रामाण्यो पपत्तेः इति नत्राह तन्निश्वर्यात्मकं समारोप विरुद्धत्वादनुमानवदिति तत्प्रमाए त्वेनाभ्युगतं वस्त्रितिधर्मिनिंर्देशः व्यवसायात्मकं मितिसाध्यं समारोप विरुद्धत्वादितिहेतुः अनुमान बदितिट्ट अष्टांत इति अयमभिप्रायः संशय विषयसानध्यवसाय स्वभाव समारोप विरोधग्रहण लक्षण व्यवसायात्मकत्वे सत्येवा विसवा दित्वमुपपद्यते अविसंवादित्वेच प्रमारणत्वमिति चतुविधस्यापि श्रमक्षस्यप्रमाणत्वमभ्युपगच्छता समारो पविरोधग्रहण लक्षणं निश्चयात्मकं मम्युगतं तव्यं ननु तथापि समारोपि विरोधिव्यवसायात्मकत्वयोः समानाम वाकथंसाध्यसाधनभावइतिनमंतव्यं ज्ञान स्वभावतया तयोरभेदेपि न्याय्य व्यापकत्वधर्माचार तयार्भेदोपपत्तेः शिशनाल Page #1040 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिहोहेतुःस्वादितिचेन्न विशेष धर्मिणकत्वासामान्यहेतुबुवंतांदोषाभावात् एतेनापक्षधर्मत्वमपित्रा युतं सामान्यस्याशेषविशेषनिष्टत्वानू नचपक्षधर्मतावलेनहेतोगमकत्वमपित्वन्यथानुपपतिवलेनेति साचात्रनियमवती विपक्षेधिकप्रमाणवलानिश्चितेवः एतेनविरुद्धत्वमनेकानिकत्वंचनिर खोडव्यं वि| रुद्स्यव्यभिचारिणश्चाविनानावनिश्चयलक्षणत्वॉयोगादती भवत्येवसाध्यसिविरितिकेवलव्यनिरेकेणोपि हतोमिकत्वात् सान्मकंजीवच्छगरंप्राणादिमत्वादित्यादिवन जथेदानीखोकप्रमाणलक्षणस्यज्ञान मिनि विशेषणं समर्थयमानःप्राह हिताहितप्राप्तिपरिहारसमयहिप्रमाणं तनोज्ञानमेवात हितसुखकारणेचर खंतत्कारणेचहितवाहितंचहिनाहितेनयोःप्राविश्यपरिहारश्वतत्रसमर्थहिशब्दोयस्मादर्थतनय मर्थसंपादितोभवति यस्माहितप्राप्तिपरिहारसमर्थप्रमाणतत: तस्त्रमाणत्वेनाभ्युपगतवस्तुज्ञानमेवभवितुमर्हनि ज्ञानरुपेसन्निकादितथाचप्रयोगःप्रमाणंज्ञानमेवहिताहितमाप्तिपरितारसमर्थचविवापन्नंतस्मादज्ञान Page #1041 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |त्यक्ष स्म निर्विकल्पस्य प्रत्यक्षत्वेन प्रामाण्यं सौगतेः परिकल्पितं तन्निरासार्थ व्यवसायात्मक ग्रहरणं तथा वहि रथपि वर श्राद्ध न्हतृणां विज्ञाना है तवा दिनां पुरुषाद्वैत वादिनां पश्यतो हरासिंग अन्य कांत वादिनां च विपयसिव्युदा सामर्थग्रह प्रथ नैयायिक गं अस्य चा पूर्व विशेषणं ग्रहीतग्राहिधारा वाहिज्ञानस्यत्र मारण ताया परिहारार्थमुकं तथा परीक्षज्ञान वादिनां सारा से मीमांसकाना मस्ववेदन ज्ञान वादिना भीतर प्रत्यक्षज्ञान वादिनां पौगानांच मत मया कर्तु स्वपदो पादान मित्यव्या यस्य संभव दोष परिहारात् सुव्यवस्थितमेव प्रमारण लक्षणं - अस्यच प्रमाणस्य यथोक लक्षरण त्वे साध्ये प्रमाणत्वा दितिहेतुः क्षेत्रेव दृष्टव्यः प्रमातस्या पिहेतुपरलेन निर्देशेपपत्तेः प्रत्यक्षविशद्ज्ञान मित्या दिवत् तथादि प्रमाणखा पूर्वाथव्यवसायात्मकं ज्ञानं भवनि प्रमाणत्वात्यतुस्वापूवर्थि व्यवसायात्मकं ज्ञानं नभवति नतझमाण व्यथा संशयादिघटादिश्चप्रमाणंच विवादापन्नं तस्मात्त्वा पूर्वार्थि व्यवसायात्मकं ज्ञानमेव भवतीति नचप्रमाणत्वमसि त्य सर्व प्रमाण स्वरुप वादिनां प्रमाण सामान्ये विप्रतिपतिभावान् अन्यथाखेष्टानिष्ट साधन दूषणायोगातू जथध UVS Page #1042 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवाक्यस्य नमस्कारपरतानिधीयते जथस्यहेयोपाट्यलक्षणसंसिद्दिज्ञप्तिभर्वतिकरमालमाणातू . तुष्टयखरुपांतरंगलक्षणदिखभावावहिरंगलक्षणाचलमीमइित्युच्यतेजगनमाणःशब्दःमाचा पाश्चमाणोप्रकष्टोमाणीयस्यासोप्रमाणः हरिहरायसंभविविभूतियुतेदृष्टेष्टाविनद्ववार्य भगवान्होंने निधीयत इत्यसाधारणगुणोपदर्शनमेवनगवतःसंस्तवनमभिधीयतेतस्माप्रमाणादवधिभूतादर्यसं भवति नदाभासाञ्चहरिहरादेरथसिद्दिननवनिइतिहेतो:सर्वज्ञतदाभासयोलक्ष्मलक्षरण महंवक्ष्ये विशेषेत्यादिनाजयेदानीमुपक्षिप्तप्रमाणतत्वेस्वरुपसरव्याविशयफललक्षणासुचनसवुविप्रति 'युमध्येखरुप विप्रतिपतिनिराकरणार्थमाह स्वापूर्थिव्यवसायात्मिकंज्ञानंप्रमाणमितिप्रकर्शनसंश व्यवच्छेदेनमीयतेपरिछियनेवलुतत्वं येनतप्रमाणंनस्यचज्ञान मितिविशेषणमज्ञानरुपस्यसंन्निक नैय्यायिकादिपरिकल्पितस्यप्रमाणवव्यवच्छेदार्थमुतनथाज्ञानस्यापिखसेवेदनेन्द्रियमनोयोगिक Page #1043 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदितिसत्यंप्रमाणतदानासपदोपादानात्तदनिधेयमनिहितमेवप्रमाणतदानासयोरनेनप्रकरणेनाधायन । वंधश्वार्थ-यातःप्रकरणतोनिधेययोवाच्यवाच्यक भावलक्षण:प्रतीयतस्वनयाप्रयोजनंचोकलक्षणमादि लक्षणेश्लोकेनैवसंलक्ष्यते प्रयोजनहिद्विधानियते साक्षान्सरं पस्येति तत्रसाक्षातूप्रयोजनंवक्ष्यते नानिधी) यते शारूनव्युत्पन्नैरेव विनयरान्वेक्षणान् पारंपर्यणातुप्रयोजनमर्भसंसिद्विरित्यनेनोच्यते शारूपव्युत्पन्नातर नावित्वान् अर्थसंसिद्वेरिति ननु निःशेष विनोपशमनायेष्टदेवतानमरकारःशास्त्रकताकथन कृतऽतिनवा न्यतस्यमनः कायाभ्यामपिसभवात् जथवावाचनिकोपिनमस्कारोनेनैवादिवाक्ये नाभिहितोवेदितव्यः किशचिवाक्यानामुभयार्थप्रतिपादन परत्वेनापिदृश्यमानत्वात् यथाश्वेतोधावतिइत्युक्तेश्चाइतोधा विनिश्वेनगुणयुनोधावति इत्यर्थइयप्रतीति-तत्रागत्वमसिहं सर्वप्रमाणखरुपवादिनांप्रमाणमा मान्येविश्पनिपतिनावातू जन्यथाखेष्टानिष्टसाधनदूषणायोगात् जयधर्मिणवहे नुत्वेप्रतिज्ञाथैकी : Page #1044 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाघवे मतिकृत मिह गृह्यतेनपरिमाणकृतं नापि कालकृतं तस्य प्रतिपाद्यत्वव्यभिचारात् कयोस्तलक्ष्मतयोः प्रमाणतदाभासयोःकुतः यतोर्थस्य परिच्छेद्यस्य संसिद्धिः संप्राप्तिर्वाभवति कस्मात् प्रमाणात नकेवलं ञ्य सेसिद्धिर्भवति विपर्ययोर्भवति अर्थसंसिद्धिलावो भवति कस्मात्तदाभावान् इतिशब्दोहेत्वर्थे इतिदे तोःअय मत्रसमुदायार्थः यतः कारणात् प्रमाणादर्य संसिद्धिर्भवति यस्माच्चतदा भासा द्विपर्ययो भवति देतोस्तयो प्रमाण तदाभासयो लक्ष्म लक्षण महं वक्ष्ये ननु संवं धानिधेयशक्या नुष्टानेष्ट प्रयोजन वंति शास्त्राणि भवति तत्रास्य प्रकरणयोवन् निधेयं संबंधोवा नाभिधीयते । नता वदेस्यो पदिय त्वं भवितुमर्हति 3 बंध्यासुतोयानि इत्यादि वाक्यवत् दशदाडिमादिवाक्येवञ्च तथा शक्या नुष्टानेष्ट प्रयोजनमपि शास्त्रादाव यवक्तव्यमेव अशक्या नुष्टानुष्टानस्य इष्ट प्रयोजनस्य सर्वज्वरहर तक्षक चूडारला लंकारो प्रदेशस्येव प्रेक्ष्म नादरणीयत्वात् । तथाशक्यानुष्टा नस्याप्य निष्टप्रयोजनस्य विद्वद्विरवधीरणान् मातृविवाहादि प्रदर्शकवाक्य - Page #1045 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ส श्री वीतरागायनमः।।उनमः सिद्धेभ्यः । नता मर शिरोरत्नप्रभाप्रोत नरख लिये | नमो जिनाय दुवरि मार वीरनख छि वेदे ॥। १॥ अकलंक वचोभोधे रुदश्रेयेन धीमता । न्याय विद्या मृतं तस्मै नमो माणिक्य नंदिने ॥२॥ प्रभेदु वचनो होर च ट्रिका प्रकरे सति । मादृशाधनु गएयन्ने ज्योति रिगण संन्निनाः॥३३॥ तथा पि तद्वचो पूर्व रचना रुचिरंसतां । चेतो हरं मृतं यद्वन्नद्या नव घटे जलम् १४गवैजेय प्रिय पुत्रस्य हीर यस्यो परोधतः । शांतियेणार्थ मोरवा परीक्षा मुख पंचि का ग५। श्रीमन्याया वारपारस्यामेयप्रमेयरत्नसारस्यावगाहनमव्युप्तन्नैः कर्तुं पार्थते । इति तद वगाहनाय प्रोत प्राय मिदं प्रकरण माचार्यः प्राह तत्प्रकरणस्यच संबधादित्रया परेशाने प्रक्षा वतां प्रवृतिर्नस्या दिति तंत्र या नु वाद पुरस्सरे वस्तुनि देशपरंप्रतिज्ञाश्लेाकमाह । प्रमाण दर्थ ससिद्धिस्तदा भासा द्विपर्ययः इतिवक्ष्ये तयो लक्ष्म सिद्धमल्मल घीयसः इत्यस्यार्थः जहं वक्ष्ये प्रतिपादयिष्ये- किनतू लक्ष्म लक्षणं किं विशिष्ट लक्ष्म पूर्व सिद्धं पूर्वाचार्यप्रसिद्ध त्वात् पुनरपि कथं नून मेल्पमल्पग्रन्थ वाच्य त्वातू ग्रंथतो ल्प मर्थतस्तु मह दियर्थः कानू लघी यसो विने यानुद्दिश्य Page #1046 --------------------------------------------------------------------------  Page #1047 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ततकिंभवतः अभिमतनेत्याह यद्यपिकचियपदेशादिभेदहेचपेक्षमायादन्येनयापि नदव्यतिरेकात्तत्परिणामाच्चनान्योयमउन्मत्तीका परिणामति तनिश्वयार्थ मिरमु आते धर्मादीनिळ्याशियेनात्मनामवंतितावः तत्वंपरिणामति माग्यायते सहि विधी नादिरादिमाश्वतत्रानादिर्धमादीनांगत्युपग्रहादिसामान्यापेक्षयामरावादिमानमवनिवि शेयापेक्षया॥॥इति तत्वार्थरतौसर्वार्थसिद्धिसैनिकायोपंचमोध्यायःसमाप्तः॥५॥ Page #1048 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोकच्याप्पावस्थिताः उक्तंचलोयाकासघदेसेएकेजेविदाहएके कारदारासीविवनेकाला एणूमणेदवरुपादिगुण विरहादमूर्तीवर्तनालक्षणस्यमुखकालस्यषमागामुक्तंपरिणामादिग म्यस्यव्यवहारकालस्यकिंघमाणमिति अतरदमुच्यते॥सेनंतसमयः॥सांपत्तिकस्कसमयि कलेव्यतीताअनागतासमयाअंतातीताइतिकलाअनंतसमयस्त्युच्यते अथवामुखस्यै वकालस्यत्रमाणावधारणार्थमिदमुच्यने अनंतपर्यायवर्तनाहेतुत्वादेकोपिकाबालागुरनंतर , त्सुपचर्यतेसमयःपुनःपरमनिरुद्धःकालांशस्तनपचयविशेयावलिकादिरवगंतव्यः माहगु रापर्ययवव्यंइस्युक्तंतबकेगुणारत्यत्रोच्यतेपायाश्रयानिर्गुणागुणाव्यमाश्रयोयेयाने इमाश्रयानिः कोतागुणेभ्योनिर्गुणाएवं उभयलक्षणोपेता इतिनिर्गगारतिविशेषणंद्याका दिनिरत्यर्थतान्यषिहिकारणभूतपरमाणुव्याश्रयाणिगुणावंतितत्तस्मानिर्गुणातिविशेषणा तानिनिवर्तितानिभवंति ननुचपर्याया अपिघटसंस्थानादयोन्याश्रयानिर्गुणानतेवाम पिगुणवंधानोतिन्याश्रयारतिवचनानित्यव्यमारत्यवर्ततेयतेगुणातिविशेषाखान पर्यायाचनियनितामवंति तेहिकादाचित्कातिन्मसकत्यरिणामशदउक्तः तस्यकोर्थर निषनेउतरमाह ५ तद्भावपरिणामः अथवागुणाव्यादयीतरभूतारतिकेयांचिदर्शनं Page #1049 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त् व्यपोदयौपरवत्ययौ अगुरूलघुगुणरविहान्यपेक्षयास्वपत्ययौच तथागुणाअपिकालस्पसा धारणासाधारणरूपाःसंतितवासाधारणा वर्तनाहेतुत्वंसाधारणश्वाचेतनत्वामूर्तत्वास्तक्ष्म वागुरुलघुत्वादयःपर्यायाश्चव्ययोत्यादलक्षणायोज्याः तस्मातदहिसकारलक्षणोयेतत्वात॥ आकाशादिवतकालस्पइव्यवंसिइंतस्यास्तिवलिंगंधादिवतव्याव्यातंवर्तनालक्षणःका लइनिननुकिमर्थमयंकालःपथगुच्यते ननुयवधारयः तत्रैवायमयिवक्तव्यःमजीव कायाधम्माकाशकालरतिपुद्धलारतिनैवंशवतत्रोपदेशेसतिकायत्वमस्पस्यात् नेव्यतेचम य्योपचारपदेशपचयकल्पनाभावान धम्मादीनांतावतमुख्यपदेशपचयउक्त मसंरव्येयापदे शारस्येवमादिनामणोरप्येकदेशस्यपूर्वोतरमावधज्ञापननयापेक्षयाउपचारकल्पनयापदेश अचय उक्तः कालस्पचपुनःविधाषिप्रदेशषचयकल्पनानास्तीत्यकायत्त्वे अपिचत्रपाठेनिःकि याणिचेत्यवधमोदीनामाकाशातानांनिःक्रियखेतिपादितेस्तरेखाजीवपुलानासकियत्व शाप्तिस्तावनकालस्यापिसक्रियत्वंस्यात् अथाकाशातपाकाल उद्दिश्यतेमा माकाशादेकड्या गीतिएकदव्यत्वमस्पस्यात् तस्मात्यथगिहकालोपदेशःक्रियते अनेकद्रव्यखेसतिकिमस्पन मागलोकाकाशस्पसावंतः पदेशाःतावंतःकालावनिःक्रियाएकै काशःप्रदेशेएकैकरस्या Page #1050 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसंकर संगःस्यात्तद्यथा जीवः पुद्गलादिभ्यः ज्ञानादिगुणै विशिष्यतेषुङ्गलादय श्र्वरूपादिभिः ताविशेषे संकरस्यात् ततः सामान्यापेक्षयान्यपिनोज्ञानादयो जीवस्पगुणाः पुद्धलादीनांच रू पादयः तेत्रविकाराद्विशेषात्मनाभिद्यमानाः पर्यायः घटज्ञानं परज्ञान को धोमानः व गोगंधः तीनो मंदइत्येवमादयः तेभ्यः अन्मत्वंकथं विदद्यपद्यमानः समुदायोइव्य व्यपदेशभाक् यदिहि सर्वथा समुदायोऽनर्थोत्तरभूतमेवस्यात् सर्वाभावः स्यात् तद्यथा परस्पर विलक्षणानां समुदाये सतिए कान तरभावात्समुदाय स्पस बीभावः परस्परतोर्थात रभूतत्वा च्यदिदं रूपं तस्मादर्थानरभूनारसो दयः ततः समुदायो मर्योत्तरभूतः यच्चरसादिम्योर्थातरभूतातूरूपादनर्थान्तरभूतः समुदायः सक घरसादिभ्यो यतरम्भूतो न भवेत् ततश्वरूपमात्रं समुदायः प्रशक्तः ने चैकरूपं समुदायोभवितु "मर्हति ततः समुदयाभावाच्चतदनर्थी तरभूतानां समुदायिनामप्पभावइतिसर्व्वाभावः एवंर सा दिख पियोज्यं तस्मात्समुदाय भित्ता कथंचिदर्थात रभावःरायितव्यः उक्तानां द्रव्याणी लक्षण निर्देशात् तद्दिषयएवं द्रव्याध्यवसाये शक्तेभ्प्रनुक्तद्रव्यसंस्तच नार्थमिदमाह ॥ ६२॥ का ला॥ किं द्रव्य मिति वाक्पशेयः कुतस्तलक्षणोपेतवा नदद्विविधलक्षण मुक्तं उत्पाद्व्ययभौ व्ययुक्तं सतगुण पर्ययव द्रव्यमितिचतदुभलक्षणां कालस्पविद्यतेः तद्यथा धौव्यंताय कालस्य स्वप्रत्ययं स्वभाव व्यवस्थाना Page #1051 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योवंधोव्याख्यातः नसमगुणविषयइत्यतमाहः॥॥वंधेधिकोपारिणामिकाचाआधकारा दशब्दःसंवध्यते अधिकगुरगावधिकावितिमाचांतरोपादानंपारिमिककलैक्लिनगुरवत् यथालिनागुडोधिकमधुररसः पतितानारेरावादीनांस्वगुणोपादनात्यारिणामिका तयाम न्याय्यधिक गुणअल्पीयसःपारिणमिकरतिरूवादिगुणादिरिनग्धरक्षस्यचतुर्गणदिरिलो ग्धरक्षणामिकोमवति ततःपूर्वावस्थापच्यवनपूर्वकंतातीपीकमवस्थातरंपादर्भवतिरत्येक बमुपपद्यते इतरथाहिएलकनतंतुवत संयोगेसत्यपिअपरिणामिकत्वात्सर्वविविक्तरू पेणैवावतिष्ठते उक्तनपारिणामिकत्वेनविधिनावंधेषुनःसतिज्ञानावरणादीनांकमणाविंशः सागरोयमकोटीकोट्पादिस्थितिरुपयन्नाभवति उत्पादव्यपध्रौव्ययुक्तं सदितिव्यलक्षणमुक्त पुनरपरेणषकारेणव्यलक्षणपतिपत्यर्थमाहराछ।गुणपर्ययवल्यागुणाश्चपर्ययाश्चगु पर्ययाशतेस्यसंतीतिगुणपर्ययवद्व्यं अनसतोरुत्यत्तायुक्तावसमाधिः कथंचिद्भेदाभेदो पपतेरिति के गुणा केपर्यया: अन्नयिनोगुणाव्यतिरेकिरणःपर्यायाउभयैरुपेतंव्यमिति उन च गुणरतिदवविधादवविकारोछपजर्जमाणदो तेहि मारणेदवं अजुदयसि ईवदिनिच मिदं एतदुक्तं भवति इव्यंयोतरायेनविशिष्यतेसगुणस्तेनहितव्यविधीयते असतितस्मिंद Page #1052 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंशशमहणकिमर्थगुणवैषम्येवंधपतियत्यर्थ सरशनहर्णक्रियते नतोषियमगुणानी तु ल्यजातीयानांमतुल्पजातीयानांचननियमेनबंधषशक्तावशिष्टार्थसंपत्ययार्थमिदमुच्यते॥२॥ यधिकादिगुणानांतु॥हाभ्यांगुणाभ्यामधिकाधिकाकःपुनरसोचतुर्गुणा मादिशाप्रकारार्थः । कापुनरसौप्रकारर्थःयधिकतातेनत्रिगुणापंचगुणादीनांसंप्रत्ययोभवति तेनाधिकादिगुणानी नुल्यजातीयानामतुल्यजातीयानांचवेधउक्तोमवतिानेनरेतयथादिगुणनिग्धस्यपरमाणोः एक गुणनिधेिमहिगुणरिनन्धेननिगुणनिग्धेनपानास्तिवंधाचतुर्गुणरिनग्धेनयुनरस्तिवंधः तस्यैवयु नःहिगुणस्निग्धस्पपंचगुणरिनग्धेनवटसम्राटसंख्येयासंयासंख्येयानंतगुणस्निग्धेननबंधी स्तिएवंचिगुणरिनग्धस्यपंचगुणारिनग्धेनवंधोस्ति शेयःपूर्वोत्तरैज्रमवति चतुर्गुणास्निग्धस्पषद्ध । गरिलग्धेनमस्तिबंधाशेःपूर्वोत्तरै स्तिएवंशेषेवपियोज्यस्तथाहिगुणस्तस्यएकद्विवियु गानीस्तिवंधः चतुर्गुणरुक्षेणवस्तिवंधः तस्यैवहिगुणरुक्षस्यपंचगुणरक्षादिभिःउत्तरेत्री स्तिवंध एवंविगुणरक्षादीनामपिहिगुणाधिकैर्वधीयोज्यः एवं भिन्नजातीयेवपियोज्यः उक्तंच णिस्सािहेणदराधियेणलुखस्सलुखेणदुराधिकणणि इस्सलुखेणउवेदिवंधोजरणवजाति समेसमेवातुसदोविशेषणार्थःप्रतिवेधंच्यावर्तयतिबंधंचविशेषयति किमर्थमधिक गुणविय Page #1053 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरावोःपरस्परम्लेक्लक्षणेवंधेसतिघणुकस्कंधोभवतिएवंसंख्येयासंख्येयानंतप्रदेशस्कंधो योज्यः तबस्नेहगुणाकडिविचतुःसंख्येयासंख्येयानंतविकल्पःतथारुक्षगुणोपितःपरमा रणवःसंतियथा तोयाजागोमहिषीउदीक्षीरघतेमुनिग्धगुणःप्रकोषकगापवर्ततेषांक गिकाशर्करादियुचरुक्षगुणोडयः तथापरमाणुस्वपिरिनग्धरक्षगुणयोईनिःषकर्यापकर्वे गानुमीयतेरिनग्धरूलगुणनिमितेवंधे प्रविशेषेश अनिष्टगुणनिरत्यर्थमाह॥॥ न जघन्यगुरानोजघन्योनिकटगुणोभागःजघन्योगुणोयेयोनेजघन्यगुणाः नेयाजघन्य गुणा नांनास्तिवंधः तद्यथाएकगुणालिग्धस्यएकगुणनिग्धेनद्यादिसंरव्येयासरव्येयानंतगुणस्नि धेनवानास्तिवंधःतस्पचैकगुणास्निग्धस्यएकगुणारतक्षेणयादिसंरव्येयासंख्येयानंतगुणारत क्षेावानास्तिवंधानथाएकगुणरक्षस्पापियोज्यमिति एतौजघन्यगुणरिनग्धरुक्षौवर्जयित्वा अन्येारिनग्धानोरक्षाणांचपरस्परेणवंधोभवतीत्यविशेषेणषसंगेतत्रापिषतिषेधविषय रख्यापनार्थमाह॥॥गुणसाम्पेसहशानांसहशाहणतुल्य जातीयसंजत्ययार्थगुणासाम्यग्नह तुतुल्यभागसंप्रत्ययार्थ एतदुक्तंभवतिहिगुणस्निग्धानाद्विगुणरूक्षेत्रिगुणरिनग्धानांत्रिगुणरू क्षैः द्विगुणनिधानांहिगुणनिग्धैर्डिगुणरुक्षाणांदिगुणरुश्रेत्येवमादियुनातिवंधरति यद्ये Page #1054 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { प्रयोजनाभावात् सतोष्यविवक्षाभवतीत्युपसर्जनी भूतमर्पितं इत्युच्यते मतिं चन्नपितं चमपि तानर्थितेताभ्यां सिद्धिः तस्यापि तानपित सिनी स्तिविरोधः तद्यथा एकस्पदेवदनस्य पितापुत्राश्राताभागिनेयः इति एवमादयः संवेधाजनकत्वजन्यत्वादिनिमिताःनविरुध्यते प्र रणभेदात् पुत्रापेक्षयापितापित्रषेक्षया पुत्र इत्येवमादिन या व्यमपि सामा न्याय या नित्यं वि शेषा या नित्यमितिनास्तिविरोधः, नौचसामान्यविशेषैौ कथंचिद्भेदाभेदाभ्यांव्यवहार हेतूभ वनः मवाहसतो ने कनयव्यवहारतंत्रत्वात् उपपन्ना मेदसंघानेभ्यः सतां स्कंधाना मे बोत्पसिरि दिनुसंदिग्धः किंसंघानः संयोगादेव का दिलक्षणोभवति उत्त कश्विद्विशेयो वत्रियत्नरत्युच्य . नेसत्तिसंयोगे बंधादेकत्व परिणाम कात् संघातान्निव्यद्येतेषयेनमिदमुच्यतो कुतो नुखलुपुद्ध लजात्यपरित्यागे संयोगे चभवति के मां चिद्वेधोप्यन्येषां चने त्पुच्यते यस्माते यांयुद्धलात्माविशेषे प्पनंत पर्याणी परस्पर विलक्षण परिणा माहितसामर्थ्यात् भवन्धनी तः॥स्निग्धरूक्षत्वा द्वैधः ॥ वाह्या भ्यंतरकारवशात् नेह पर्याया विर्भावात् स्निग्धते स्मिन्नितिस्निग्धः तथा रूक्षरणसः खिग्धश्वरू सम्बरिनग्धरुक्षौ नयोर्भावः स्निग्धरूक्षत्वंस्निग्धत्वं चिकिए गुगल क्षणपयीयः तद्विपरीत परिणा मोरूक्षत्वं रिनग्धत्वरूक्षत्वादिति हेतु निर्देशः तत्कुतो वंधो ह्यणुकादिपरिणामः द्दयोः स्निग्धरुक्षयोः 4 Page #1055 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पर्थः उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् उत्पादव्ययध्रौव्याकमितिपावत् एतदुक्तं मवति उपादारी नोत्रीणव्यस्यलक्षणनिदव्यलतबयर्यायाधिकनयापेक्षयापरस्परतोट्याचार्यात रभावः व्यर्थिकनयायेक्षयाव्यतिरेकेणानुपलब्धेरनर्यातरभावतिलस्यलक्षणभावा भावसिद्धिः माह नित्यावस्थितान्यरुपाणीनियुक्तं तबनज्ञायते किंनित्यमित्यत माह॥॥ तद्भावाव्ययंतेयंगतदावइत्युच्यतेकस्तब्दावःपत्यभिज्ञानहेतुता तदेवेदमित्तिस्मरणांप्रत्यभि ज्ञानंतदकस्मानभवतेतियोस्यहेतुःसतभावःभवनंभावःतस्पभावस्तद्भावःयेनात्मनापारहवं वस्तुतेनैवात्मनापुनरपिभावात्तदेवेदमितिपत्यभिज्ञायतोयद्यत्यंतनिरोधोभिनवधादुर्भाव मात्रमेवपास्यात् ततस्मरणानुपपत्तिः तदधीनोलोकःसव्यवहारोविरुध्यते ततस्तदायेना 'व्ययंनित्यमितिनिथ्वीयते तत्कथंचिडेदितव्यंसर्बथानिस्यत्वेअन्यथाभावाभावात्संसार-त. द्विनिकतिकरण प्रक्रियाविरोधस्यात् ननुश्दमेवविरुईतदेवनित्यं तदेवानित्यमितियदिनिर्यव्य योदयाभावात्मनित्यत्ताव्याघातप्रथानित्यमेवस्थित्यभावान्नित्यत्ताच्याघात्तरतिनैतदिलं ईकुतः॥॥अर्पितानर्षितसिडेः॥भनेकात्मकस्यवस्तुनःप्रयोजननशावशायस्यकस्यचित् धर्मस्पविवक्षयापापितषाधान्यंअर्पितमुपनीतमभ्युपगतमिनियावत तद्धिपरीतमनNि Page #1056 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 -पिकश्चिवालयःकश्विरचाक्षुष तवयोचाक्षयासकथंचाक्षयोभवतीतितेच्यतेमेरसंघा. ताभ्यांचाक्षुषः नभेदादितिकातनोपपत्तिरितिचेद्रमासक्ष्मपरिणामस्पस्कंधस्यभेदेसौम्याय रित्यागादचाक्षुषसमेनसौक्ष्मपरिपातःपुनरपरःसत्सेपितद्भेदेन्यसंघातीतरसंयोगासौम्य परिणामोपरेमेस्थौल्यौत्पतीचाक्षुषोभवति माहधर्मादीनांग्याविशेषलक्षणयुक्तानि ? सामान्यलक्षानोनितव्येकिंसदित्यत माह॥५॥सव्यलक्षणमितिमयसत्तव्यमित्यर्थः पयेवंतदेवत्ताबडतव्यकिंसदित्यत्त माह॥॥उत्पादव्ययश्रीव्ययुक्तंसत।चेतनस्यांचतनस्यवा द्रव्यस्यस्वाजातिमजहतः निमितवशाद्भवांतरावाप्ति उत्पादनमुत्यादःस्पिंडस्पघटपर्यायवत. तयापूर्वभावविगमनेव्ययः यथाघदोत्यत्तौपिंडाकतेः अनादिपरिणामिक स्वभावेनव्ययोद याभावानध्रुवनिस्थिरीभवतिरतिध्रुवःध्रुवस्यभावःकर्मवाधौव्यं यथाम्रपिंडघदाद्यवस्था सुम्पदाद्यन्वयात् तैरुत्यादव्ययप्रौर्युक्तं उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सदिति माहभेदेसत्तियुक्तशदो दयः दंडेनयुक्तोदेवदतरतितयासतियांत्रयाणांयुक्तस्यव्यस्यचप्रभावःसानोतिनैयदोषः अभेदेपिकथंचिद्भेदनयापेक्षयायुक्त शब्दोहयः यथासारयुक्त स्तंभरते तयासतियां मविनाभावातसयपदेशोयुक्तः समाधिवचनोपायुक्तशदायुक्तसमाहितःशानदात्मकर । Page #1057 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहकिमेवांपुगलानांचरणस्कंधलक्षणःपरिणामोनादिरूतमादिमानित्युच्यतेसबलू त्यतिमलादादिमानचतिज्ञायते यद्येवंतस्मादभिधीयतांकरमानिमित्तादुत्पतरतितत्रस्कंधा नांतावदुत्पतिहेतुपतिपादनार्थमुच्यते॥शाभेदसंघानेभ्यउत्पद्यते॥संघातानीहितयनिमि नवशाद्विदारणभेदः एथग्भूतानाएकखापतिःसंघाताननुचहित्वातद्विवचनेनभवितव्यंव हुवचननिर्देश तत्तीयसंग्रहार्थःभेदात्संघानानभेदसंघाताभ्यांचउत्पद्यतरतितद्ययाद योःपरमाएवोःसंघातातदियदेशस्कंधउत्पयतेहिवदेशस्यागोवत्रयाणांवा अरणनीसंघा वे तातपदेश दयोः हिवदेशयोस्वपदेशपायोश्चतुर्णाचाानीसंघाताचतुः प्रदेशएवंसंरव्ये यसंख्येमानं तानां अनंतानंतानांनसंघातातावत्यदेशराबामेवभेदात् हिपदेशपर्यताःस्कंधार त्ययंतेएवं भेदसंघाभ्यामेकसमयिकाभ्यांहिवदेशादयःस्कंधाउत्पद्यते अन्यतोभेदेनान्यस्यसं घातेनेति एवंस्कंधानामुत्पतिहेतुरुक्ताअगोरुत्यति हेतु दर्शनार्थमाहा॥भेदादणुः॥ सिद्धेविधिरारम्पमागोनियमार्योभवति मगोरुत्पतिभेदादेवनसंघातात नापिभेदसंघाता भ्यामिति माहसंघातादेवस्कंधानां मामलामेसिडेभेदसंघातग्रहणमनर्थकंरति नगुह एषयोजनपतिपत्यर्थमाह॥शाभेदसंघापांचाक्षुयः॥ अनंतानंतपरमाणसमुदायनिण्यायो Page #1058 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिकश्चिवालयःकश्विदचायतचयोचाक्षयासकथेचाक्षयोभवतीतिनेच्यतेमेरसंघा साभ्यांचाक्षुषः नभेदादिनिकातनोपपत्तिरितिचेडूमःस्रक्ष्मपरिणामस्पस्कंधस्यभेदेसोभ्याय रित्यागादचाक्षुषत्वमेवसोमपरिपात पुनरपरःसत्येपितद्भेदेन्यसंघातीतरसंयोगानसौम्य परिणामोपरेमेस्थौल्यौत्यतीचाक्षुषोभवति माहधर्मादीनाइल्याणांविशेषलक्षणयुक्तानि सामान्यलक्षणंनो तडककिंसदित्यतमाह॥५॥सव्यलक्षामितिगयत्सत्तव्यमित्यर्थः पयेवंतदेवतावरक्तव्यंकिंसदित्यतमाह।।।उत्पादव्ययधीव्ययुक्तसत्॥चेतनस्यचितनस्यवा द्रव्यस्यस्वाजातिमजहतः निमितवशावांतरावाप्ति उत्पादनमुत्पादारथिंडस्यघटपर्यायवत् नयापूर्वभावविगमनेव्ययः ययाघटोत्पत्तौपिंडाकतेः अनादिपरिणामिक स्वभावेनव्ययोद याभावान ध्रुवनिस्थिरीभवतिरतिध्रुवःध्रुवस्यभावःकर्मवाधौव्यं यथाम्रपिंडघदाद्यवस्था सम्पदाद्यन्वयात् तैरुत्यादव्ययध्रौर्युक्तं उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तंसदिति माहभेदेसतियुक्तशदो दयः दडेनयुक्तोदेवदतरतितयासतिनेयांत्रयाणांयुक्तस्पद्व्यस्पचप्रभावःयानोतिनैयदोयः नभेदेपिकथंचिद्भेदनयापेक्षयायुक्तशब्दोहरः यथासारयुक्तस्तंभश्तेतयासतियां मविनामावातसयपदेशोयुक्तः समाधिवचनोवायुक्तशदायुक्तसमाहितः तदात्मकर Page #1059 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...वारसः स पंचविधः ति काम्ल कटु मधुरकषायभेदात् गंधध्यतेगं धनमाचंवागंधः स द्वेधासुरभिर -सुरभिष्व वर्ण्य तेवर्णन मात्रं वा वर्णः स पंचविधः क घ्ननीलपीत पुललोहितभेदान् तराने मूलमेदाः प्रत्येकं संख्ये या संख्ययानंतभेदाच्च भवंति स्पर्शश्वरसव गंभश्व वर्णश्वस्पर्शरसगंधवणीः तरा तेषां संतीति स्पर्शरसगंधवर्णावंत इति नित्प योगे चतनिर्देशः यथाक्षी रियोन्यग्नोधा इति ननु च रू पिणः बुडला इत्यत्र पुद्धलानां रूपवत्त्वमुक्तं तदविनाभाविनश्चरसादयः तत्रैवपरिग्रहीता इति व्याख्या तं तस्मातेनैव युद्धलानां रूपादिम त्वसिद्धेः सवमिदमनर्थक मितिनैष दोषः नित्यावस्थितान्यरूपा गीत्यत्रधम्म दीनां नित्यत्वादिनिरूपणेन युद्धला नामरूप त्वश्च संगेत दया करणार्थ तदुक्तं इदं तु ते यस्वरूपविशेषप्रतिपत्यर्थमुच्यतेभ्प्रवशिष्टपुद्गल विकारप्रतिपत्यर्थमिदमुच्यते ४५॥शब्दवं 'सैम्य स्थेय संस्थानभेदत्तमस् छायातपोद्योतवं तव । शव्दो द्विविधोभा बाल क्षणो विपरी वेति भाषा लक्षणो द्विविधः साक्षर अनक्षरम्श्वेति मक्षरीकृतः शास्त्राभिव्यंजकःसंस्कत विपरीत मेदार्यम्ले व्यवहार हेतुः मनक्षरात्म कोई डिया दीनां अतिशय ज्ञान स्वरूप प्रतिपाद नहेतुः सएव सर्वः प्रायोगिकः प्रभाषात्मको द्विविधः प्रायोगिको वैध्य सिकवेतिवै सिकोव लाह का दिप्रभावः प्रयोगजश्व तु द्वीत्तत वित्तत घन सैषिरभेदात्तचवर्म्मत्तत्तननिमितः पुष्करभे Page #1060 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दी दर्दुरादिप्रभवः ततः तंत्री कृत वीणा सुघो बादिसमुद्भवविततः ताल घंटा लालनाद्यभिघा तजः घनः वंश शंखादिनिमितः सैयिरः बंधोहि विधः वैष्न सिकः प्रोयोगिक व पुरुषप्रयो गानपेक्षा वैश्यसिकः तद्यथा स्निग्धरूक्षत्वगुणानिमितः विद्युदुल्का जलधरा ग्निंदू धनुरादि विषयः पुरुष योगनिमित्तः प्रायोगिकः भ्मजीवविषयो जी वा जीव विषयश्चेतिद्विधाभि न तवाजीव विषयः जनुकाष्टा दिलक्षणः जीवा जीवविषयः कर्मनो कर्मबंध ः सौरपंडिवि समापेक्षिकंचनची त्पं परमाणू नापेक्षिकं विल्वा मलक बदादीनां स्थौल्यम पिहिडि विधं त्यमापेक्षितं चेतितत्रत्यं जगद्यापि प्रन्यवोक्तं सिम्हा स्कंधे प्रापेक्षिकं चवदरामल क विस्वतालादिषु संस्थान माकृतिः तत् द्विविधमित्यलक्षणमनिस्यलक्षणं चेतिवत्तन्यस्त्र चतुरखायत्त परिमंडलादित्यं लक्षणां मतोन्यत्त् मे घादीनां संस्थानमनेकविधं इत्यमिति निरूपणाभावादनित्यं लक्षणं भेदः खोदा उत्कर चूर्ण बंड चूर्ण का पतरा गुचदनविकल्पात् तत्रोत्करः काय्यादीनां कर यत्रादिभिरुक्कर चूरण यवगोधूमादीनां शक्तुकणिकादिः खं डोघो दीनां कपाल शर्करादिः चूर्ण का मात्र मुद्दादीनां जत्तरो अपटलादीनां म चटर्न संतप्ताय स्पिंडादिषु म यो घनादिषु अभिहन्यमानेषु स्फुलिंग निर्गमः तमोर टिपतिवं Page #1061 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धकरणंघकाशविरोधि छायाधकाशावरणनिमितासाद्देधावर्णादिषकारपरिणतापतिवि वमानामिकाचेनियातपादित्यादिनिमितउनबकाशलक्षण उद्योनार्चमणिस्वद्योता दिवभवःषकाशः तएतेशदादयःपुलव्यविकारास्तगतेयांसतीतिशदवंधसोक्षपस्या यसंस्थानभेदतमः छायाद्योततयोवंतःपुगलारत्यभिसंवंध्यतेचशब्देनो नोदनाधभिघा तादयः पुदलपरिणामामागमेनसिद्धाःसमुच्चीयंते उक्तानांपुगलानांभेदपदर्शनार्थमाह ॥त्रणवःस्कंधावाबदेशमानमाविस्पर्शादिपर्यायषसवसामर्यनारायंतेशचंतेति . भगवःसाक्षम्यादात्मादयःमात्मामध्यामात्मांताश्च उक्तंच प्रतादिमतमज्जनतंतनेव रंदियगेजु जंदवअविभागीतपरमाणुवियाणाहि स्थूलमावेनग्गहण निक्षेपणादिव्यापार स्कंधारतिसंज्ञार्यतेरुदौक्रियातचित्सत्तीउपलक्षात्वेनाप्रीयतरतिग्रहणादिव्यापारायो ग्येवपियाकादियुस्कंधारव्यासंज्ञापवर्तते अनंतभेदायियुगलाअजात्यास्कंधजात्या चदैविध्यमापद्यमानाःसर्वेश्रयंतरतितजासाधारानंतभेदसंसाचनार्थवरवचनक्रियत्नेश वास्कंधारतिभेदा विधानपूर्वोक्त सत्रयमेदसंबंधनार्थस्पर्शरसगंधवर्णवतोणवःस्कं धाम्युनःशनबंधसोमयस्यौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातयोद्योतवंतश्वस्यादिवंतति Page #1062 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'माहकिमयांपुगलानां अणुस्कंधलक्षणःपरिणामोनादिरूतादिमानित्युच्यतेसबलू। , त्यतिमखादादिमान्पतिज्ञायतेयद्येवंतस्मादभिधीयतोकस्मानिमित्तादुत्पयंतरतितवस्कंधा नांसावत्यतिहेतुपतिपादनार्थमुच्यते॥॥भेदसंघानेभ्यउत्पयंते॥संघातानाहितयनिमिः तवशाहिदारणभेदः पथग्भूतानाएकखापतिःसंघातःननुनहित्वातद्विवचनेनभवितव्यं व हुवचननिर्देशाततीयसंग्नहार्थ भेदात्संघानानभेदसंघाताभ्यांचउत्पद्यतरतितद्यथा इ. योःपरमाएवोःसंघातादिषदेशस्कंधउत्पयतेहिषदेशस्याणोनत्रयाणांवा अरणनीसंघा त्रि तातपदेशादयोः हिवदेशयोरखपदेशस्यारणेश्वतुर्णाचाणनासंघाताच्चतुः प्रदेशएवंसंरव्ये यसव्येयानंतानांअनंतानंतानाच संघातातावत्यदेशःराषामेवभेदातहिपदेशपर्यता:स्कंधाउ त्ययंतेएवंभेदसंघाभ्यामैकसमयिकाभ्यांहिवदेशादयःस्कंधाउत्पद्यते मन्यतीभेदे नान्यस्यसं घातेनेति एवंस्कंधानामुत्पतिहेतुरुका भयोरुत्यति हेतुनदर्शनार्थमाहाभेदादरणः॥ सिद्धेविधिरारभ्यमाणोनियमार्योभवति अगोरुत्पतिभेदादेवनसंघातात नापिभेदसंघाता, भ्यामितिमाहसंघातादेवस्कंधानां मामलामेसिडेभेदसंघातग्नहरण मनर्थक रति नह एगायोजनपतिपत्यर्थमाहाभेदसंघाम्पांचाक्षुयः॥ अनंतानंतपरमाणसमुदायनियायो। Page #1063 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालस्यास्ति वंगमयइतिः कुतो गौणस्य मुख्यापेक्षत्वाद् द्व्यस्य पर्यायः धम्मीत्तर निछतिः धम्मी तर जनकरूपः अपरिस्पंदात्मकः परिणामः जीवस्य को धादिः पुलस्पवर्गादिः धम्मीधम्मीकाशानी "अगुरुलघुगु गावद्धिहानि कृतः क्रियाप रिस्पंदात्मिका साहिधामा योग वैन्यसिकभेदात् चत्रप्रायोगि की शकी दी। नो वै सिकीनिमितामेषादीनां परत्वापरत्वे क्षेत्रकते काल कते चस्तः तत्रका लोपकार प्रकरयोक्तत्वात्काल कते रोते तराने वर्तनादयः उपकाराः कालस्यास्ति त्वंगम यंतिननुवर्त नागहरा ..मेवास्तु तद्भेदाः परिणा मारयः तेषी एच ग्हा मनर्थकं नानर्थकं काल हय रचनार्थत्वात् प्रपंचस्प का लोहि द्विविधः परमार्थः कालो व्यवहारकालख परमार्थ कालो वर्तना लक्षणः परिणामादिलक्षणेोग्य बहारकालः अन्येन परिच्छिन्नमन्यस्प परिछेदहेतुः क्रियाविशेषः कालः तिव्यव जियते समेधाव्य 'वतिष्ठतेभूतो वर्तमानोभविष्प वित्तित्तवपरमार्थ काले कालव्यपदेशो मुख्यः भूतादिव्यपदेशो गौगः व्य वहारकाले भूता दिव्यपदेशो मुख्यः कालव्यपदेशोगीः क्रियावतदूव्यापेक्षत्वात् काल कत्तत्वाच्च भ्प्रत्रा ह धम्मीधमीकाशपुदुलजीव कालानां उपकारा उक्काः लक्षणं चोक्तं उपयोगोलक्षणमित्येवमादिमुद्र लानां तु सामान्यलक्षणा मुक्तं विशेञ लक्षणं नोक्तं तत्किमि मत्रोच्यते ॥ ॥ स्पर्शरसगंधवर्णावंतः पुङ्गलाः॥ स्पर्श ते स्पर्शनमाचं वास्यर्शः सोष्ट विधः मृदुकविनगुरु लघुशीतो घ्ननिग्धरुक्षभेदा तर स्पतेरसनमा ve Page #1064 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिभावेनतिःपरस्परोपरगहः स्वामीतावदित्तत्मागादिनारयानामुपकारेवर्ततेस्त्यश्वहितपनिषा दनेनाहितपतियेधेनमाचार्य उभयलोककलपदोपदेशदर्शनेन तदुपदेशविहितक्रियानुयाया नेनचशिव्यायामनुग्गहवर्ततेशिख्या अपितदानुकूल्यरत्या उपकाराधिकारेषुनरुपानहवचनंकि मर्थपूर्वोक्तसुखादिचतुल्यपदर्शनार्थपुनरुषग्गवचनक्रियते सुखादीन्यपिजीवानांजीवकत उपकाररतिमाह यद्यवश्यसतोउपकारिणभवितव्यसंश्यकालोभिमतःतस्पक उपकाररति अबोच्यते॥शावर्तनापरिणामक्रियापरवापरत्वेचकालस्यारत्तेजितात्कर्मणिभावेवापुदमी लिंगेवर्तनेत्तिभवतिवमै तेवर्तनमानवावर्तनेति धमादीनांव्याणांवपर्यायनिर्दतिप्रतिस्वात्म नववर्तमानानांवायोपग्नहादिनातहत्यमावात् तस्ववर्तनोपलक्षितः कालरतिकत्वावर्तनाका लस्पोपकारकोणिजथः वर्ततेव्यपर्यायः तस्यवर्तपिताकालव्ययेवंकालस्यक्रियावत्वंयोनोति यथाशिय्य अधीत उपाध्यायोध्यायपतीतिनैयदोयः निमितमात्रेपिहेतुकर्तव्यपदेशोरमः यया कारीयोग्निरमाययतीतिएवंकालस्यहेतुकर्तलासकथंकालरत्यवसीयतेसमयादीनांकियावि शेषाणांसमयादिभिर्निवत्यैमानानांचपाकादीनांसमयःपाकरतिएवमादिस्वसंज्ञाररुदिसद्भावेपिस '. मयःकाल उदनपाककालरनिअध्यारोप्यमाणः कालव्यपदेशः नद्यपदेशनिमितस्पमुख्यस्य Page #1065 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरत्रवक्ष्यते. इदंतुजीवान्प्रतियुगलानामुपकारप्रतिपादनार्थमेवेतिउपकारखकरोउर यतेशरीराणिउकानिउदारिकादीनिसौम्यादप्रत्यक्षाणितदुदयोपयादितरतोन्युयशी राणिकानिचित्रत्यक्षाणिकानिचिदखत्यक्षाणिगतेयाकारणाभूतानिकार्माएपिशरीरग्न हणेनग्यते एतानिपौगलिकानीतिरुत्वाजीवानामुपकारेषुद्रलाःप्रवर्ततेस्पान्मतकाम्मेण मपौलिक अनाकारत्वात् आकारवत्तांऊहारिकानांपोहलिकत्वंयुक्तमितितन्नतदपिपोलि कमेवनहिपाकस्यमूर्तिमत्संबंधनिमित्त्वात् दृश्यनेहिनीह्मादीनाउदकादिव्यसंबंधपापित रिपाकानीपौलिकत्व तयाकामणमपिगुरकंटकादिमूर्तिमव्योपनिपातेसनिविपच्यमानत्वा न पौगलिकमित्याचसेवंचाकाहविधाव्यवाक्भाववागिनिनत्र भाववाक्तावत्वी-तरायम निश्रुतज्ञानावराक्षयोपशमांगोपांगानामलाभनिमित्तवान्पोनलिकी नदभावेतहत्यभावात् तत्सामोपेतेनक्रियावतात्मनाघेर्यमाणाःयुगलाः वाक्वेनविपरिणमंतरतिव्यवागपिपीहति कोनोद्रियविषयत्वात्तरेंद्रियविषयाकस्मानभवति तहोयोग्यस्वातघ्राणना गंध व्येरसानुपलब्धिवन अमूर्तवागितिचे नमूर्तिमगृहावरोधण्याघानाभिभवादिदर्शनातमूर्ति मलसिहेमनोविविध व्यमनोभावमनवेति भावमनस्तावतस्युपयोगलक्षणांपुगलावलव Page #1066 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हः प्राकाशस्येापकारो वेदितव्यः" माहजीवबुद्धलानां क्रियावतामवगाहिनामवकाशदानयुक्त 'धम्मीस्तिकायादयः पुनर्निः क्रियानित्य संबंधास्तेषांकथमवगाहइति चेन् नोपचारतस्तसिद्धेः यथागमनाभावेपिसर्वगतमा का शमित्युच्यते सर्वच सद्भावात् एवं धम्मधम्मी व पिश्रवगाह नक्रियाभावेपिसर्वत्र व्याप्तिदर्शनात् प्रवगाहिनावित्युपचर्येते आहयद्यवकाशदानमस्य स्व भावः वज्रादिभिलौटा दीनाभित्याभिर्गवादीनां च व्याघातो नत्राप्नोति दृश्यते च व्याघातः तस्मादस्या वकाशदानंहीयतइतिनैष दोषः वज्रलोय्यादीनां स्थलानां परस्परव्याघानइति नास्यावकाशदा नसामध्ये हीयते तत्रावगाहिनामेव व्याघातामा वा हुजादयः पुनः स्थालस्वात् परस्यरं प्रत्यवकाश दानं न कुर्वे नीति नासा वा काश दोषः येवलुपुङ्गलाः सूक्ष्मातेपिपरस्परं प्रत्यवकाशदानं कुर्वेति पये वनेदमा काशस्या साधारणंलक्षणमितरेषामपिन सद्भावादिति तत्रसर्व्वपदारथीनां साधारणाव गाहन हेतुत्वमस्यासाधारणलक्षणमिति नास्तिदोषः •मलो का काशेतदभावादभावइनिचेत्-नस्व भावापरित्यागात् मत उक्त प्राकाशस्योपकार प्रयत्नदनंतरो दिष्टानांक उपकार र त्यत्रोच्यते ॥ ६५॥ शरीरबार्डननः प्राणपानाः बुद्धलानां ॥ इदम युक्तं वर्तते कि मचायुक्तं युद्धलानां क उपकारइतिपरि युद्धलानां लक्षणमुच्यते भवता शरीरादीनि पुद्दल मयानीति नैतदयुक्तं बुद्धलानां लक्षणांड Page #1067 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लेष्माचाभिभवः नवामूर्तस्यमूर्तिमड्रिभिघातादयःस्फः प्रतएवात्मास्तित्वसिद्धिःयथा पंजेजतिमाचेष्टितंश्योकुरस्तित्वंगमयतितधामायणायानादिकपिक्रियानमात्मानंसाध यति किमेतावानेवयुगलकतउपकारः माहोम्विदन्योप्पस्तीत्यनमाहासुखदुःखजीवित्तमर गोपरगहाश्वासदसदेयोदयेअंतरंगहतीसीतवाद्याव्यादिपरिपाकनिमितवशान उत्पद्यमानः 'प्रीतितापरूपःपरिणामःसुखदुःममित्यारव्यायतेभवधारणकारणापुराव्यकम्मीदयादवस्थि तिमारधानस्यपूर्वोक्तधाणापानक्रियाविशेषादव्युछेदःजीवित्तमित्युच्यतेतदुछेरोमरण एता निसुरवादीनिजीवस्ययुगलस्यकतउपकारःकुतःमूर्तिमनहेतुसन्निधानेसनितदुत्पतेः उपका ,राधिकारादुषग्नहवचनमनर्थकं नानर्थकखोपबहादर्शनार्थमिदंयुगलानायुगलकत्तउपका रति नद्ययाकंसारिनामस्माभिर्जलादीनांकनकादिभिरयासरतीनामुदकादिभिरुपकार कि येतेचशब्दःकिमर्थःसमुच्चयार्थः अन्यापिपुगलकतउपकारोस्तीतिसमुच्चीयनेयथाशरीराणा वंचक्षुरादीनिंदियाएयापीतिएवमायजीवकतमुयकारंपदर्यजीवकतोपकारपदर्शनार्थमाह॥६॥ परस्परोपग्नहोजीवानांपरस्परशदःकर्मव्यतिहारेवर्तते कर्मव्यतिहारश्यक्रियाव्यतिहारेवर्तते परस्परस्य उपग्नह परस्परोपग्रहःजीवानांमुपकारकःपुनरसोस्वामित्य प्राचार्यशिय्यरत्येवमा Page #1068 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + -नत्वात् पौगलिकेद्व्यमनश्व ज्ञानावरण वीर्यीन रायक्षयोपशमभ्यं गोपी गानामलाभप्रत्ययाःगु दोष विचारस्मरणादिप्रधानाभिमुख्यस्यात्मनो नुग्गाह्काः पङ्गलाःमन स्वेन परियाता इतियौ लिकं कविदाहमनदुव्यां नरं रूपादिपरिणाम विरहितं अणुमात्रंत स्पपौगलिकत्वमयुक्तमिति तदयुक्त उच्यते तदिद्वियेगास नाचसंव इंच स्यादसंव वास्यात् यद्यसंवर्द्धतन्नात्मन उपकारकं न भवितुमर्हतिई दियस्वचसाचिव्यंन करोति प्रथसंवर्द्धएक स्मिन्प्रदेशेसं वद्धंसतदरगुइनरेषुषदे शेयुउपकारं न कुर्यात्प्रयवशादस्य अलातचक्रवत्परिम्नमणमिति चेत्नन सामर्थ्याभावा प्रमूर्तस्यात्मनो निःक्रियस्पारदो गुणः सनिः क्रियःसनिःक्रियः सन् भ्मन्यच कियारं मेनसमर्थः दृष्टा हि वायुटुव्यविशेषः क्रियावान्स्पर्शवान्प्राप्तः वनस्पत्तौ परिस्पंदहेतुः तद्विपरीतलसणाची यंत्र ,तिक्रिया हेतुत्वाभावः चीयतरायज्ञानावरणक्षयोपशमांगोपांगना मोदयापेक्षिणात् मनाउदस्यमानः कोटो वायुरुच्यासलक्षणः प्राणात्युच्यते तेनैवात्मना वाह्येो वायुरभ्यं न रीक्रियमाणे निश्वास लक्षणो पानइत्याष्मायते एवंतावप्यात्मानुग्ना हि जीविनहेतुत्वात् तेषां मनः प्राणापानानां मूर्तिमत्वमव सेयं कुतो मूर्तिमद्भिः प्रतीघातादिदर्शनात् प्रतिभयहेतुभिरशनिपातादिभिरमनसः प्रतीघातोह श्यते सुरादिभिश्वाभिभवः हस्ततलपदा दिति रास्यसंवरणात् प्राणापानयोः प्रतीघात उपलभ्यते भि Page #1069 -------------------------------------------------------------------------- ________________ } नं धर्माधर्म योर्गतिस्थि त्यो श्वय या संरख्यं भवति एवं जीव बुद्द लानां यथा संख्यं प्राप्नोतिधम्मे स्मा पकारो जीवानां गतिमधर्मस्योपकारः बुद्धलानो स्थितिरितितनिरत्यर्थ उपग्रहवचनं कि यते माह धमाधम योर्य उपकारः समाकाशस्ययुक्तः सर्वगतत्वादिति चेत्तदयुक्तं तस्या न्योपकारसद्भावात्सर्वेषां धम्मीदीनां इव्याणामवगाहन त स्म योजनं एक स्पानेक प्रयोजनक सभायां लोकालोक विभागाभावः भूमिजलादीन्येवत स्वयोजन समर्था निनाचे धम्म धम्म भ्यां इति चेतना साधारणान्प्रयइतिविशेय्यो क्तत्वात् मनेक कारणासाध्यत्वाच्चै कस्प कार्य स्पतुल्य व लत्वात्तयोर्गतिस्थितिप्रतिबंधः इति चेत् नाप्रेरकत्वात् मनुपलब्धेर्ने तौस्तः खरवि यान दिति चेत् न सर्बप्रवाद्य विप्रतिपतेः सबै हिमवादिनः प्रत्यक्षाप्रत्यक्षानन भिवं 'तिस्मा तितो र सिद्देश्व सर्वज्ञेन निरतिशय प्रत्यक्ष ज्ञानचक्षुषाधम्मीदयः सर्वे उपल भयंते तदुपदेशाच्चतज्ञानिभिरपि अवाहपद्यतींद्विययोः धम्मी धर्म्मयो रुपका रसंबंधेनास्ति त्वमप्रियते तदनंतर मुद्दिष्टस्य नभसोतींद्वियस्याधिगमेक उपकारइत्युच्यते ॥ ६ ॥ प्राकाश स्पावगाहः ॥ उयकार इति प्रनुवर्तते जीवपुद्रलादीनामवगाहिनामवकाशदानमवगाहः ॥ प्रकाश स्पोपकारोवेदितव्यः प्राहजीवपुद्गलानां कियावतामवगाहिनामवकाशदानमवगा Page #1070 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YER काश परिमाणस्य प्रदीपस्य शराबमा निकाय वर का द्यावरण वशात्तत्परिमाणतेति मन्त्रा धम्मीदीनां मन्योन्यप्रदेशा नुप्रवेशात्संकरे सति एकत्वं प्राप्नोतित्तत्र परस्परात्यंत श्ले से स पिस्वभावनजहति उक्तं चन्भोपविसंता दिना उक्कास मस्मम स्म मे संता विय 'सगसद्भावेन विजर्हति यद्येवंधम्मीदीनां स्वभावभेद उच्यतां मिस्वतमाह ॥५॥गतिस्थित्युप धम्म धर्म योरुप कारः ॥ देशांतरंप्राप्ति हेतुग्र्गतिः तद्विपरीता स्थितिः उपग्रह्यतर तिउपग्नहग तिष्य स्थितिश्वगृति स्थिती गति स्थिती एव उपग्न हो गति स्थित्युपग्न हो धम 'धर्म योरिति कर्त निर्देशः उपकयत इत्युपकारः कः पुनरसौगत्युपग्गहः स्थित्युसम्म हव यद्येवं हित्वनिर्देशः प्राप्नोतिनै यदोषः सामान्येन व्युत्पादितः शब्दः उपात संख्यः शब्दांतरसंबंधे सत्यपिनपूर्वेपात संख्यां जहाति यथा साद्यौः कार्य तपः श्रुते इति एतदुक्तं भवतिगति परिया मिनांजीव बुद्धलानां गत्युपग्न हे कर्तव्ये धर्मास्तिकायः साधारणा यः जलवन्मत्स्यगमने त या स्थित्ति परिणामिनी जीवयुगलानी स्थित्युपग्ग हे कर्तेव्येभ्प्रधर्म्मा स्तिकायः साधारणा यः ष्टथिवी धातुरिवाम्वादिस्थितावितिननुचउपमहवचनमनर्थकमुपकारइत्येवं सिद्ध स्वात् गतिस्थितीधम्मीधम्म यो रुपकार इति नैष दोषः ययासंख्यनिवत्यर्थमुपग्नहबच Page #1071 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नादगारनिचिदो पुग्नल का ए हिस ब दो लोगो सुह मे हिंबा दरे हिं परांना ते हिं विविहे हिंमत्र कसपिंडोह दानः प्रथजीवानां कथमवगाहन मित्यत्रोच्यते ॥ ३ ॥ प्रसं व्येयभागादियुजी National तस्यासंख्येय भागीकृत स्प ए को भागः प्रसेव्ये य भाग इत्युच्यते स भमा दिये यांतेभ्यसंख्येयभागादयः ते खुजी बाना मगा होवेदितव्यः नद्यथा एकस्मिन्नसंख्यभा गएको जीवन एवं द्वित्रिचतुरादिखपि प्रसंध्येय भागे य्वा सर्व लोकादवगाहः प्रत्येतव्यः नाना जीवानां सर्व लोक एव यद्येकस्मिन्न संख्येयभागेए को जीवेोवतिष्ठते कथंद्रव्यप्रमागोना नंतानं तो जीवरासिः सशरीरो व तिष्ठते लेोका का शैक्ष्मभाव देवएक जीवनिगोदावगाह्येपिज 'देशे साधारण शरीराने तानं तावसंति' नतेपरस्परेण वा दरैश्व व्याहन्यत इति नास्त्य वगाह विरोधः म चारुलोका का शत्रु ल्प प्रदेशय को जीव इत्युक्तं तस्य कथं लोक स्पा संख्येयभागादिषुर तिर्न सई लोक या शैव भवेतितव्यमित्युच्यते ॥२॥ प्रदेश संहार विसप्पी भ्यां प्रदीपवत्प्रसू ते स्वभावस्यात्मनो नादिकमैवं धं प्रत्येकत्वात् कथं चिन्मूर्त त्वं विम्भतः कार्म्मा शरीरवशा न्महदचशरीरमधितिष्ठतः तशा प्रदेश संहरणा विसर्पण स्वभावस्प तावत्वमागतायां सत्यांम संख्येयभागादिसुर तिरूपपद्यते प्रदीपवत् यथा निरा वा व्योम प्रदेशे वध्यतज सूक्ष्मवादरभेदाध्वं स्थानं प्रत्येतव्यवाद रास्ताव 1 국 Page #1072 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वासोकालोकविभागसिद्धिः तत्रावध्रियमाणनाअवस्यानभेदसंभवानविशेमपतिपत्य थेमाह॥॥धर्माधर्मयोकलेनाकतलवचनमशेवव्याप्तिदर्शनार्थमोगारेवस्थितोघर रतियथातथाधम्मीधर्मर्योोकाकाशेवगाहोनभवतिकित्तर्हिकतनेयुतिलेयुतैलवदिति अन्योन्यग्नदेशबवेशव्याघातामावोवगाहनशक्तियोगानवेदितव्यः अत्तोविपरीतानां मूर्तिमतांगकपदेशसंख्येयासंरव्येयानंतपदेशानांपुगलानांन्यवाहविशेषपतिपत्यर्थ माहाराकपदेशादियुभाज्यापुद्रलानगएकापदेश राकवदेशःएकप्रदेशमादियेयोते : उमेएकादेशादयातेयुयुगलानामवगाहोमाज्याविकल्पोमवयमविग्नहःसमुदायस मासार्थरतिएकपदेशोपिरयते तबयाएकस्मिन्नाकाशवदेशेपरमागोरवगाहायो रेकनोमयनचवडयोश्चत्रयाणाममेकत्रयोरिचयुचवदानां अवदानांचचरावंसंव्ये यानंतपदेशानांस्कंधानामेकसंख्येयमसंख्येयपदेशेयुलोकाकाशेवस्थानंमत्येतयंन : नुयुक्तं तावदमूर्तयोर्धम्मीधर्मयोरेकवाविरोधेनावरोधरतिमूर्तिमत्तोपुगलानांकथाम पत्रोच्यतेवगाहनस्वभावत्वात सूक्ष्मपरिणामाच्चमूर्तिमतामप्पवगाहोनविरुध्यते। कापवरके भनेकपदीपनकाशावस्थानवत् मागमप्रामाण्याच्चतथाध्यवसेयंउचर Page #1073 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धारकल्पते आकाशस्याप्यन्यामाधारःकल्यःतयासत्यनवस्याप्रसंगरतिनैषदोयाना काशादन्यदधिकपरिमाणांव्यमस्तिपत्राकाशस्थितमित्युच्यने सर्वतोनंतंहितधर्मादी नोपुनरधिकरणमाकाशमित्युच्यते व्यवहारनयवशात्रावभूतनयापेक्षयात्सर्वांगाव्या शिवप्रतिहितान्येवतयाचोकभवानास्ते मातधमनीतिधर्मादीनिलोकाकाशानवहि: संतीतिएतावदवमाधाराधेयकल्पनासाध्यंफलेननुचलोकेपूर्वोत्तरकालभाविनामाधारा धेयभावोदयःयथाकुंडेवदरादीनां तथाकाशेपूर्वधर्मादीनि उत्तरकालभावीनिमतोव्य वहारनयापेक्षयापिन्नाधाराधेयकल्पनानुपपतिरतिनैयदोयःयुगपद्धाविनामपिंधा राधेयभावारश्यतेघदेरुपादयःशरीरेहस्तादयरतिलोक इत्युच्यतेकोलोकाधमादीनिइ व्याणियबलोपतेसलोकरतिनधिकरणसाधनोघर्जमाकाशंविधाविभक्तं लोकाकाश मलोकाकाशंचेति लोकउःसयत्रतस्वीकाकाशंततोवहिःसर्वतोनंतमलोकाकाशंलोका लोकालोकविभागधर्माधर्मास्तिकायसन्हावाविज्ञेयःमसत्तिहित्तस्मिन्धर्मास्ति कायेयुगलजीवानांगतिनियमहेखभावाविभागोनस्यात् असतिवाधर्मास्तिकायेस्थित्ते राश्रयेनिमिताभावास्थितेरभावोलोकालोकविभागाभावोवास्यात् तस्मातदुभयसड़ा Page #1074 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमितिचेनानेतसामान्याता अनंतषमा त्रिविधमुक्तंपरीतानंत अनंतानंतंचेतितत्सर्वम नंतसामान्यनग्रयतेस्यादेतदसंरख्यातपदेशालोकःअनंतबदेशस्यानंतानंतपदेशस्यचस्के धस्याधिकरणमितिविरोधः ततोनानंत्यमितिनैयदोषःसूक्ष्मपरिणामावगाहनशक्तियोगा त परमारवादयोहिसक्ष्ममावेनपरिणताःगकैकस्मिन्नषिमाकाशनदेशेअनंतानंतार अवत्तिदंतेनवगाहनशक्तिश्चैया नव्याहतास्तित्तस्मादेकस्मिन्नपिपदेशेअनंतानंता नामवस्थाननविरुध्यतेषुगलानामित्यविशेषवचनात्परमागगरपिपदेशवत्वषसंगत स्वनिषेधार्थमाह॥॥नाएगभगो देशानसंतोतेवापशेषःकुत्तोनसंतीतिचेत॥ प्रदेशमानत्वात् यथाकाशपदेशस्यैकस्पपदेशभेदाभावादप्रदेशत्वं एवमरोरपिवदेश : मावसात प्रदेशभेदाभावःकिंचततोल्पपरिमाणाभावात् नह्मणोरल्यीपानन्यास्तियनोस्य : घदेशाभिधेरन एयामवछतमदेशानाधर्मादीनामाधारअतिपत्यर्थमिदमुच्यते॥शालो। काकाशेवगाहः। उक्तानांधमादीनांव्याणी लोकाकाशेवगाहोनवहिरित्यर्थः यदिध मीदीनालोकाकाशमाधारः माकाशस्यक माधाररतिमाकाशस्यनारयन्यमाधारःस्व अतिवमाकाशंमधाकाशवप्रतिस्टेधर्मादीन्यपिस्वप्रतिथान्येवप्रथधर्मादीनां अन्यमा Page #1075 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांवेतैसहनाधिक्रियते अजीवकायाश्त्यत्रकायग्नहोनपदेशास्तित्वमा–निजीतनवियत्तावर धारितापदेशानां अतस्तनिहरणार्थमिदमुच्यते॥असंख्येयाःपदेशाःधम्मीधर्मकजी वानसंख्यामतीतामसंरव्येयाप्रसंख्येयरिवविधःजघन्यः उत्कृष्ट अजघन्योत्कयोसंरत्ययः परिग्रह्यतेप्रदिश्यतरतिपदेशःवक्ष्यमाणलक्षणम्परमाणुःसयावतिक्षेनेवनिष्ठतेसषदेशर तिव्यवझियतेधमाधम्मकजीवाःनुल्या असंख्येयपदेशाः तबधर्माधर्मोनिःक्रियोलोकाका, व्याप्यस्थितौजीवस्तावत्यदेशोषिसत्संहरणविसर्पणस्वभावत्वातकर्मनिर्बति शरीरमण महहाअधिनिठस्तावदवगायवर्ततेयदानुलोकपूर्णभवनितदामंदरस्याधःचित्रवज्रगतपा लमध्येजीवस्याटोमध्यपदेशाव्यवतितेस्तरेषदेशाऊईमधस्तिर्यवकलोकाकाशंज्यानी वते प्रथाकाशस्याकतिपदेशाश्त्यतमाहाछामाकाशस्यानं नालोके प्रलोके चाकाशोवा तिते अविद्यमानोंतोयेयोते अनंता:केपदेशाःकस्पभाकाशस्यपूर्ववदेवास्यापिनदेशकल्पना बसेयाउक्तममूर्तानोपदेशपरिमाणइदानीमूर्तानांपुदलानांपदेशपरिमाणनिजी तव्यस्त्यता हासंख्येयासरव्येयाश्ययुगलानीचशदनानंतावानुसयकस्यचित्युहलव्यस्यह्मण कादेःसंख्येयापदेशाकस्पचित प्रसंरव्येयाःप्रदेशाः कस्यचित-अनन्ताश्य अनंतानंतोयसंरत्या Page #1076 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तदनेनरयाप्पता अधिकतानामेवएकरव्यागाविशेषपतिपत्यर्थमिदमुच्यते॥छानि:क्रियाणिच । उमयनिमितवशादस्पद्यमानःपर्यायाव्यस्यदेशांतरजाप्तिहेतुःक्रियातस्यानिकांतानिनिःकि याणियत्रचोद्यतेधर्मादीनिव्याणियदिनिःक्रियाणिततस्तेषामुत्पादोनभवेतापरिस्पंदकिया पूर्वेकोहिघटादीनांउत्पादोरमा उत्पादाभावातव्यवाभावरतिसर्वव्याणामुत्पादादिवितयरू पकलपनायाघाततितन्नकिकारणमन्यथोषयते क्रियानिमितोत्यादाभावेप्येयांधमादीनां अन्यथोस्वादःकल्पत्तोतयथाद्विविधउत्पादःस्वनिमितःपरत्ययश्चस्वनिमिमित्तस्तावदनं। तानोमगुरुलघूराणानाध्यागमषामाण्यादभ्युपगम्यमानानांबटस्थानपतितयानाहान्पाच वर्तमानानांस्वभावादेशामुत्पादोज्यपश्चपरवत्ययोपिअन्नादिगति स्थित्यवगाहनहेतुत्वातक्ष रोक्षपोतेयांमेदान्तहेतुत्वमयिभिन्न मितियरयत्ययापेक्षउत्पादोविनाशअध्यावक्रियताननुय दिनिःक्रियाशिधम्मादीनिजीवपुगलानांगत्यादिहेतुस्खनोपपद्यतेजलादीनिहिक्रियावंतिमत्स्या दीनांगस्यादिनिमितानिरयानीतिनैयदोयम्वलाधाननिमितत्वावसुर्वद्यथारूपोपलब्धौचक्षु निमितमितिनव्यासिप्तमनस्कस्यापिभवतिनिधिकतानाधर्माधर्माकाशानांनिःक्रियखेभ्युष गतेजीवपुलानांसक्रियत्वमर्यादापनकालस्यापिसक्रियत्वमितिचेन्नानधिकारान: अतएवा Page #1077 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्यमितिइयता व्यभिचारादेस्थितानी तिउच्यतेन विद्यतेरुप मेतेषां इत्यरूपाणिरूपप्रतिषेधेन तत्सहचारिणां रसादीनामपिप्रतिषेधः तेन भ्मरूपाण्य मूर्नानित्यर्थः । य या सर्वे खांड्व्याणां नि स्यावस्थितानीत्येतत्साधारणलक्षणां प्राप्ततया मरूपत्वमपि प्राप्नंषुद्दला नामपिमतस्तदप वादार्थमाह ॥ ५॥ रुपियाः पुहुलाः॥रूपं मूर्ति रित्यर्थः का मूर्तिः रूपादि संस्थान परिणामो मूर्तिः, रूप मे या मस्तिरू पिणाः मूर्तिवंतस्त्यर्थः अथवा रूपमितिगुणाविशेषवचनशब्द स्तेषामस्तीति रूपिणः रसाद्यग्नमिति चेन्न तदविनाभावानदंततीवः बुद्धलाइ निवहुवचनंभेदप्रतिपाद नार्थ भिन्नाहियुद्धलाः स्कंधपरमाणभेदात्तद्दिकल्प उपरिष्टाद्दक्षतेयदिप्रधानवाद्रूपत्वमेकत्वं चेयंस्यात् विस्वरूप कार्य दर्शन विरोधस्पात्॥ माह किं युद्दलवत् धम्मोदीन्यपि द्रव्याणि प्रत्येकं भि नानीत्यचोच्यते॥२॥॰प्रा॰प्राकाशदेकदूच्या ॥ि प्राङयमभिविध्यर्थः सैौ श्रीमानुपूर्वी मास्टत्यैतद कंतेन धमधम्म का शानि मह्यं ते । एकशब्दः संख्यावन्चनः तेनद्व्यं विशेष्यते। एकं दुर्व्य एक द्रव्य मितिपद्येवं बहुवचनमयुक्त धम्मीद्यपेक्षया वहुत्व सिद्धिर्भवति । एकस्थाने का अवस्थायनशक्तियो गात् । एकैकमित्य स्तुलघुत्वात् द्रव्यग्णामनर्थकंतत्क्रियतेद्व्यापेक्षया एकत्व ख्यापनार्थ दुव्य जहां क्षेत्र भावापेक्षया संख्येयत्वानं तत्त्व विकल्प स्ये स्टत्वात्। (नजीवपुद्दल व देखी बहुत्वमित्ये २८ Page #1078 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दियोगाभावः इति चेत्॥ न वायुस्तावद्धूपादिमानस्यर्शवन्नात्॥घटादिवत् चक्षुरादिक सूना ह्य स्वाभावात्॥ रूपाद्यभावइति चेत्नपरमाण्वादिखतिप्रसंगः स्यात् प्रायोगंधवत्यः स्पर्शादिमत्वा तुष्ट थिवीवत्ते जो पिरसगंधवद्रूपवत्वात् तद्वदेवात्मनो मिद्दिविधंदूव्य मनोभावमनश्येतित्तत्रभा बमनोज्ञानंतस्प जीवगुणत्वात्मात्मन्यंतर्भावः द्व्यमनस्वरूपादियोगात् पुद्गलद्व्य विकारः रूपादिमन्मनः ज्ञानोपयोग कारणत्वात् चक्षुरिंद्वियवत् ननु प्रमूर्तेपि शब्दे ज्ञानोपयोगकाशा वदर्शनात व्यभिचारी हे तुरिति चेत्। ननस्यापिपौद् लिकत्वात्मूर्तिमत्वोपपतेः ननुयया सर्वेषा परमाणुंनां रूपादिमत् कार्यत्वदर्शनात रूपादिमत्वंनत्तथा वायुमनसो रूपादिमत्कार्य दृश्यते तिचेत्तननुतेषामपित्तदपयत्तेः सर्वेयां परमाणूनां सर्वरूपादिमत्कार्यत्वप्राप्तियोग्यत्ताभ्युपगमात् नच केचि सार्थिवादिजातिविशेषयुक्ताः परमाणवः संनि। जाति संकरेणारं भदर्शनान् दिशोप्पाका शतभीवः प्रादित्यादयाद्यपेक्षया प्रकाश प्रदेशपंक्तियुक्त र इमितिव्यवहारोयमतेः उक्तानां । इव्याणां विशेशाप्रतिपत्यर्थमाह ॥२॥ नित्यावस्थितान्यरूपाणि ॥ नित्यं ध्रुव मित्यर्थः नधुवेभ्यइति निधुवे नित्यइति निष्यादितत्वात् धर्म्मादी निव्याणिगतिहेतुत्वादिविशेषलक्षणद्रव्यार्थादेशाद स्तित्वादिसामान्यलक्षण इव्या थी देशाच्च कदाचिदपिन व्ययंतीतिनित्यानिवक्ष्यते हित वाचाव्ययनि Page #1079 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एयकसिद्धेस्तःयद्यपथकसियोरपियोगःस्यातामाकाशकुशुमस्पषकतिपुरुषहितीयशि रसश्चयोगःस्यादिति अथपथकसिद्धिरभ्युपगम्पोव्यत्वकल्पनानिरर्थकागुणसंझावोइयमि तिचेनातवापिगुणानांसमुदायस्यचभेदाभावेतव्यव्यपदेशोनोपपद्यतेभेदाभ्युपगमेचपूर्वोक्त एवदोयोननुगुणान्वतिगुणैर्वादूयतेइतिविग्नहेपिसरावदोयाइतिचेनकचिझेदाभेदोषम तेस्तदव्यपदेशसिहाव्यतिरेकेरणानुपलव्येरमेदःसंजालक्षाषयोजनादिभेदादेदरतिपकता धर्मदयोवहतः। तत्सामाण्याधिकरण्यात्वहखनिर्देशःस्यादेतत्संरव्यानुवतिवत्युलिंगानुरति रपियानोतिनैयदोयः माविरलिंगाशब्दानकदाचिल्लिंगंव्यभिचरंतिाअतीधर्मादयोव्याणि मवंतीति ननंतरत्वाचतुर्मामेवदत्यव्यपदेशप्रसंगेमध्यारोपणार्थमिदमुच्यते॥॥जीवाश्च ॥जीवशब्दोव्याख्यातायःवहुवनिर्देशोन्यायातमेदपतिपत्यर्थःचशब्दाव्यसंज्ञानुकर्षणा र्थःजीवाचव्याणीतिएवमेतानिवक्ष्यमाणेनकालेनसहपदयाणिभवंतिव्यस्यलक्षणं वक्षते।गुणपर्ययद्रव्यमितितलक्षणयोगानधर्मादीनांव्यव्यपदेशोभवतिनार्थःपरिगण . नेनपरिगणनमवधारणार्थतेनान्यवादिपरिकल्पितानांप्रथिव्यादीनानिरतिःकत्तामवति कथंरथिव्यानेजोवायुमनांसियुगलइयंतर्भवंतिरस्परसगंधस्पर्शवत्वाता वायुमनसोरणा Page #1080 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्यारोप्यते । कुन उपचारः यथा शरीरंबुद्दलद्रव्य म्रचयात्मकंत या धम्मी दिव्वपि प्रदेशाचयापे क्षया इव काया इतिभ्न जीवाश्वते का याश्वभ्प्रजीव काया विशेषणं विशेष्येोति वतिः ननु चनी लोत्पलादिषुः व्यभिचारेसति विशेषला विशेय्य योर्योग्यः ॥ इहा यि व्यभिचारो स्ति। प्रजीवश दः काये का लेपि वर्तते कायोंपि जीवे किमर्थः काय शब्दः प्रदेश वहुत्वज्ञापनार्थः धम्मीदीनां प्रदेशावह व इति ॥ नन चश्म संख्ये या प्रदेशाधम्र्म्माधर्मैक जीवानामित्यनेन प्रदेश वहलं ज्ञापितं सत्यं परं किंतु अस्मिन् विधौ सतितदवधारणां विज्ञायते असंख्येयाः प्रदेशान संख्येयानाय्यंनं ताः। इति कालप्रदेशऽचयाः भावज्ञाय नार्थ चरह का यह कालो वक्ष्यते ॥ नस्यप्रदेश प्रचयश निषेधार्थ रहका यग्नहां यथा गोः प्रदेशमा चत्वात् द्विनी याद यो स्य प्रदेशानसं नित्य प्रदेशोयः तथा कालपरमारप्येक प्रदेश त्वादश देश इति तेषां धम्मीदीनां मजीवर नि सामान्यसंज्ञाजीव लक्षणाभावमुख्येन अरनाधम काशपुद्दलाइ तिविशेष संज्ञा सामयिकी चाह सर्व द्रव्य पर्या येषु केवलस्येत्येवमादिषुद्व्यारयुक्तानिका नितानीत्युच्यं ते ॥६॥ दुन्या ॥ यथा यथायोग्यंस्तय श्रीयैते गम्यते प्राप्यते यथाखंयथायथंयथात्मीपपर्यायै यी निड्वं तिचातानीतिया इव्य योगा इव्यमिति चेत्रो भयासिद्धेः यथा दंड दं डिनो ये गोभवनि २थक सियोर्नचतथाद्रव्यद्रव्यले Page #1081 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र्शनार्थमाह ॥६॥ दशवर्षसहस्राणि प्रथमा यो ॥ *अपरा स्थितिरित्यनुवर्तते प्रयभवन वासि नाका जघन्या स्थितिरित्याह ॥ छ ॥ भवनेषुच ॥ चशब्दः किमर्थः प्रकृतसमुच्चयार्थः तेनभवनबा सिनामपरा स्थिनिर्दशवर्षसहस्राणी वभिसंबंध्यते व्यत्तराणां तर्हि का जघन्या स्थितिरित्यता ह॥५॥अंतराणां च ॥ चशब्दप्रकृतसमुच्चयार्थः तेन व्यंतराणामपरा स्थितिर्द्दशवर्षसहस्राणि इत्यवगम्पतेभ्प्रथैषां प रास्थिति के यत्रोच्यते ॥५॥परापत्येोपमधिकं ॥ परा उत्कष्ठा स्थित्तिव्यंत्त राणांचल्यो पममधिकं इदानी ज्योति स्का गांपरा स्थितिर्वक्तव्येत्यत माह ॥ ६५ ॥ ज्योतिष्कारांचच शब्दः प्रकृतसमुच्चयार्थः तेनैवमभिसंबंधः ज्योतिष्काणांचपरास्थितिः पल्योपममधिकमिति अथापरा कि पतीत्याह ॥२॥ तदष्टभागो पराः॥तस्यमल्यो पमस्याष्टभागो ज्योति स्काणामयूरा स्थितिरित्यर्थः मथ लौकी तिकानां विशेयोक्तानां स्थितिविशेश्रो नोक्तः स कियानिति ॥४५॥ लौ कांतिकानामौ सागरोपमा सर्वेषां ॥ अवशिष्टाः सर्वे ते लाले श्याः पंचो त्सेध शरीराः च तुत्रिकाय देवानां स्थानभेदाः सुखादिकंपरावरस्थितिर्लेश्यातुर्याध्यायेनिरूपितं ॥ छ ॥ इतित्त स्वार्थवतौ सर्वार्थ सिद्धिसंज्ञिकायां चतुर्थोध्यायः॥४॥ ३॥दानीं सम्यग्दर्शन विषयभावेनोप ये युजीवादिषुजीव पदार्थो व्याख्यातः मथाजीव पदार्थो विचारप्राप्तः स्तस्य संज्ञाभेद संकीर्तनार्थ मि दमुच्यते ॥५॥ मजीव काया धम्मीधम्मी काश युद्धला॥ काय शब्दः शरीरेव्युत्पादितः रहोय चाराद Page #1082 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तविंशतिः तृतीयेप्रष्टाविंशतिः उपरि मग्मैवेयकेषुष य मेरा कोनविंशत् द्वितीये त्रिंशन ि तृतीये एक चिंशतमनुदिश विमाने सुद्धा विंशत् विजयादिषुनयरिवंश त्सागरोपमा नि उत्कृष्टा स्थितिः सर्वार्थ सिद्धात्रयस्त्रिंशदेवेति निर्दिष्टोत्कृष्ट स्थिति के मुदेवे बुजघन्य स्थितिप्रतिपादना र्थमाह ॥ प्रपरापल्योपममधिकं ॥ पल्यापमं व्याख्यातं प्रपराजघन्य स्थितिः पल्पोषम साधि कंकेषां सौधर्मेशानीयानोकच मवगम्यते परत्तः इत्युत्तरववक्ष्यमाणत्वात् ततॐ जघन्य स्थि तिप्रतिपादनार्थ माह॥५॥ परतः परतः पूर्वापूर्व नंतराव रस्मिन्देशेषरतः वीप्सायां हि त्वं पूर्वसद स्यापिप्रधिकग्ग्रहणमनुवर्तते तेनैवमभिसंबंध क्रियते सौधर्मेशान या सागरोपमे साधिके उक्तेते साधिके सानत्कुमार माहें इयेोर्जघन्या स्थितिः सानत्कुमार माहें द्वयोः परा स्थितिः सप्तसाग रोपमा निसाधिका निता निसाधिका निब्रह्मब्रह्मा तर येोर्जघन्या स्थिति रित्या दिएवं विजयादिपर्य ते युज्ञेयं नार का उत्कृष्या स्थितिरुक्ता जघन्यां सूत्रे नुपातो प्रप्रकृतामपिल घुनोपायेन प्रतिपा दयितुमिच्छन्नाह ॥२॥ नारकाणां च द्वितीयादिषु ।। चशब्दः किमर्थः प्रकृतसमुच्चयार्थः किंचा कृतंपरतः परतः पूर्वीनंतराम परा स्थितिरितितेनायमर्थेौलभ्यते रत्नप्रभा यांनार का णीपरा स्थि तिरेकं सागरोपमं शर्करा प्रभायां जघन्याशर्क राजभायी उत्कृब्दा स्थितिरखी साग रोप माणसा बाल्नु काप्रभायां जघन्येत्यादिएवं द्वितीयादिमुजघन्या स्थितिरुक्ता यमाय का जघन्येतितखद ६ 4 T Page #1083 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्ताअनयो कल्पयोर्देवानांसप्तसागरोषमानि। साधिकानि उत्कठयास्थितिब्रह्मलोकादियच्य. ‘तावसानेगुस्थितिविशेषपतिपत्यर्थमाह॥त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपंचदशभिरधिकानित।। सप्ताहांपकतं तस्येहादिभिनिष्टैरभिसंबंधोद्रव्यः सप्तत्रिभिरधिकानिसप्तसत्यभि रधिकानिस्त्यादिहयोईयोरभिसंबंधोवेदितव्यातुशब्दोविशेयरणर्थःकिंविशिनटिअधिकश ब्दोनुवर्तमानश्चतुभिरिहसंवध्यतेनोत्तराभ्यामित्ययम विशिय्यतेतेनायमोभवति । ह्मलोकब्रह्मोतरयोईशसागरोषमाणिसाधिकानिलांतवकाषिष्टयोदेशसागरोपमा तु निसाधिकानिटक महायुक्रयोःयोडासागरोपमानिसाधिकानि सतारसहरलारयो रवादशसागरोपमानिसाधिकानिः मानतमाणतयोविंशतिसागरोपमाणि भाराव्यु तयोर्विशतिसागरोपमाणितनऊईस्थितिविशेषमतिपत्यर्थमाहाभारणाच्युता दूईमेकैकेननवसुग्मवेयकेविजयादियुसर्वार्थःसिद्दीचा अधिकग्नहणमनुवर्तनेनेनेहसं बंधोवेदितव्यः कैकेनाधिकानीतिनवमहणकिमर्थप्रत्येक मेकैकमधिकमितिज्ञापनार्थरतर थाहिौवेयकेयुएकमेवाधिकंस्पाहिजयादिविनि प्रादिशब्दस्यपकारार्थत्वात अनुदिशानाम पिग्गहणांसर्वार्थसिद्धेश्वपथगगहांजघन्याभावपतिपादनार्थ नायमर्थः अधोगनवेयकेषु. ६ वयोर्विशनिःहितीयेचनुर्विशतिस्ततीयेपंचविंशतिःमध्यमवेयकेयुपथमेडिश निःहिती Page #1084 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्यःशेयास्तियग्योनयः॥उपयादिकाउका देवनारकाःमनुव्याश्यनिर्दियाः पाग्मानुसोतरा न्मनुम्यारनियम्योन्येसंसारिणोजीवाःशेषास्तिर्यग्योनयोवेदितव्या रायोतिरश्चादेवादीनामि बक्षेत्रॉविभागः पुनर्निर्देशव्यासर्वलोकव्यापित्वातेमाक्षेत्रविभागोनोक्ताहस्थिनिरुता सभाबनारकाणांमनुव्याणतिरश्वांचदेवानांनोतातस्यांवक्तव्यायांमादावुदियानाभवनया सिनोस्थितिप्रतिपादनार्थमाह॥शास्थितिरसुरनागसुपर्णहीपशेयारणांसागरोपमत्रिय ल्योपमाईहीनमिताः॥असुरादीनांसागरोपमादिभिर्यथाक्रमअनामिसंबंधोवेदितव्यः . श्यस्थितिरुकाजघन्याप्मुत्तरत्रवक्ष्यते तद्यथाअसुराण्यांसागरोपमास्थिति गानांनी णिपल्योपमानिस्थितिःसुपर्णानाममईततीयानिहीयानां शेषाणांषमाअाईयल्यो पौरामायदेवनिकायस्थित्यभिधानादनंतरंगत्यंतरज्योतिकास्थितिवचनेक्रममालेसति तदुवंध्यवैमानिकानांस्थितिरुच्यते कुतस्तयोरुत्रंधनमुत्तरबलघुनोपायेनस्थितिवचनान्॥ तेयुचादावहिएयोःस्थितिविधानार्थमाह॥शासौधर्मशानयोःसागरोपमेनधिके।सा गरोपमेरतिहिवचननिर्देशातहित्वगतिः अधिकेश्स्ययमधिकार: माकुनामासहरला रात रदंतकुतीज्ञायतेरतिवेत उतरवतुशदकरणात तेनसौधर्मशानयोईवानोदेसा गरोषमेसातिरेके प्रत्येतव्ये उत्तरयोःस्थितिविशेषमतिपत्सर्यमाहासानत्कुमारमाहेन्योः । Page #1085 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वतादित्यां ने प्रग्न्याभस्तर्याभा मादित्यस्य चव न्हेश्वानरेचां द्राभसत्याभाः वारुणांनराले रमे पस्कर क्षेमंकराम रुगदेतो यांत रेवख भेष्ट कामचराः गर्दतोय तुषितमध्ये निम्मी रजो दिगन रक्षिताः तुखिता यावाधमध्ये भ्मात्मरक्षित सर्वरक्षिता अव्या वाधा रिब्दांत राले मरुसवः मरि ष्टसारस्वतांतरे व विस्वाः सर्व्वे स्वतंचा ही नाधिकत्वाभावात् विषपरतिविरहात् देवर्ययइतरेखांदे वानां मर्चनीया चतुर्दश पूर्वधरा तीर्थकर निष्क्रमणज निबोधनपरावेदितव्याः माह उक्ताल कां निकाल तताए कं गर्भवासमवाष्प निर्वास्पितीत्युक्तं किमेवमन्येय्वपि निर्वाण प्राप्ति काल विभा गोविद्यत इत्यत माह ॥७॥ विनयादिव द्विचरमाः ॥ प्रादिशब्दः प्रकाराचैवर्तते तेनविजयवैजयं तजयंता पराजितानुदिश विमानानामिष्टानां जहां सिद्धं भवति कः पुनरत्र प्रकार: महमिंदे सति सम्पग्दव्दनुपपादः सर्वार्थसिद्धिप्रसंगःइतिचेन्न तेषां परमोत्कृष्टत्वात् मन्वर्थसंज्ञा एक चरम त्वसिद्धेः चरमत्वं देहस्य मनुष्यभवापेक्षया है। चरमैौ ये बाते चिरमाः विजयादिभ्यष्यताप्र तिपतितः सम्पत्का मनुष्येषूत्यद्यसंयममाराध्यपुनर्विजयादिषु उत्पद्यनतयुताः पुनर्मनुष्य भव 'मवाप्य सिद्धांतीति द्विवरमदेहत्वं माहजीवस्पऊदधि के शुभावे खुतिर्यग्यो निरोदयिकीत्युक्तं पुन श्रवस्थितौ तिर्यग्योनि जानां चेतितत्र न ज्ञायते के तिर्यग्योनयइति प्रत्रोच्यते ॥ उपपादिकमनुख्ये J Page #1086 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'दंनज्ञायतेस्त भारभ्यकल्पाभवंतीतिसौधर्मादिग्नहामनुवर्ततेतेनायमोलभ्यतेसौधमी दयःपाराग्नवेयकेभ्यःकल्यापारिशेय्यादितरेकल्पातीतारतिलोकोतिवादेवावैमानिकाःसंतःकरां तेकल्योपपन्नेयुकथमितिचेदच्यते॥॥ब्रह्मलोकालयालोकांतिकारात्यतस्मिनीयंतश्यालय भावासोब्रह्मलोक मालयोयेषांतेब्रह्मलोकालया:लोकांतिकादेवावेदितव्याःपद्येवंसयांब्रह्म लोकालयानालोकांतिकत्वेषसतं अन्वर्थसंज्ञारगहणाददोयाब्रह्मलोकोलोकःतस्यानोलोकोतः लोकांतेमवालोकांतिकारतिनसयोग्नहणतेयाहिविमानानिब्रह्मलोकस्यांतेस्थितानिनथवा जातिजरामरणाकोणालोकःसंसारसूतस्पोतोलोकांतेभवालोकांतिकाःतेसर्बपरीतसंसाराः तन श्यताराकंगर्भवासंघाप्यपरिनिवास्पंतितेयांसामान्येनोपदिष्टानांभेदपदर्शनार्थमाह॥॥सारस्व तादित्यवरुणगर्दतोपतुषितान्यावाधारिवाचावेमेसारस्वत्तादयः प्रयासुपूर्वोत्तरासुदिक्षु विदिक्षयथाक्रमेमेते सारस्वतादयोदेवगणावेदितव्या तयथापूर्वोतरकोणेसारस्वतविमानपूर्व स्यांदिशिमादित्यविमान पूर्वदक्षिणस्यादिशिवन्हिविमानं दक्षिणस्यादिशिअरुणस्यविमाने दक्षिणपरकोणेगई तोयविमान अपरस्यादिशितुशितविमानं उतरापरस्यादिशिअव्यावाधा विमान उतरस्पादिशि भरिय विमानंचशब्दःसमुचिनार्थस्तेयामतरेयुद्दौहीदेवगणोतयथासार Page #1087 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधिपनि पत्यर्थमाहावीतयाटललेश्यादिनिशेयेयुपीताचपद्मावलाचपीतप शुक्लाचपीनपावरकालेश्यायेखांतेपीतपद्मश्ललेश्याःकथंह स्वत्वं उत्तरपदिकंयथा दतायांतपरकरणेमध्यावालंवित्तयोरुपसंख्यानमिति अथवापीतवपाश्चरलयपी तपद्मशुक्लाःवर्णवंतोर्याःतेयामिवलेश्यायेयांतेपोतपद्मशुक्ललेश्याः तबकस्यकालेश्ये त्यत्रोच्यतेसौधर्मशानयोःपीतलेश्याःसानत्कुमारमाहेंदुयोःपीतपालेश्याः ब्रह्मलोकन होतरलांतवकायोटप्रक्रमहायुषालेश्यामध्यमांशःसतारसहलारयोःपायल लेश्यमानतादियुत्रयोदशस्थानेयुगललेश्या तत्राप्यनुदिशानुतरेयुपरमसुललेश्या॥ सोऽनभिहितंक मित्रग्रहणंसाहचर्याच लोकवत्तद्यथाछवियोगतीति अछवियु त्रिव्यवहारएवमिहामपियो अन्यतरगहणांभवति प्रयमर्थःसवतःकथंगम्पतेर तिचेदुच्यतेएवमभिसंबंधः क्रियतेहयोःकल्पयोर्युगलयो पीतलेश्याःसानत्कुमारमाहेंदयों पालेश्यायामविवक्षातब्रह्मलोकादियुकल्ययुगलेयुपनलेश्याःयक्रमहाश्कयोःशु ललेश्यायाः अविवक्षितत्वातशेयेयुतारादियशलालेश्यापद्मलेश्याया अविवक्षातइति. नास्तिदोयः माहकल्पोपपत्रारत्युमुक्तंतन ज्ञायतेकेकल्याश्त्युच्यते॥॥पागवैयलेश Page #1088 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीरेणसहस्थानस्थितिःशायानुग्नहशक्तिःपभावःसुखमिंदियार्थानुभवःशरीरवसनाभर . गादिप्तियुनिलेश्यालेश्यायाविशुद्धिलेश्याविबुद्धिः रंदियाणामधिश्वविययइंद्रियावधि विषयातेभ्यस्तैर्वाधिकारतितस्यउपर्युपरिषतिकल्पप्रतिषस्तारंचवैमानिकास्थित्याभिरधि कारत्यर्थः यथास्थित्यादिस्यभरूपर्युपरिअधिकाःएवंगत्यादिभिरवीत्यनिषसंगेतन्नित्यर्थ माह॥णागतिशरीरपरिमहाभिमानतोहीनादेशाद्देशांतरणाप्तिहेतुर्गतिःशरीरवैकियकमु लोभकमायोदयाहिमयेयुसंगःपरितहःमानकमायोदयादुत्पनोहंकार अभिमानःशतैर्गमा दिमिरुपर्युपरिहीनादेशोतरविययक्रीडारनिषक भावातपरिउपरिगतिहीनाःशरीरंसौधम्मे शानयोर्दैवानांसप्तारनिषमाणसानत्कुमारमाहेंइयो यररनिषमाणब्रह्मलोकब्रह्मोतरलोतव काविष्टेयुपंचारनिषमासुकमहाशक्रसतारसहलारेयुचतुरेनिप्रमाण मानताणतयो: परईचतुथीरनिप्रमाणभारणाच्युतयोरनित्रयषमा मधोग्नवेयकेयुभईततीयारलिषमा मध्यमगचेयकेवरनियषमागांउपरिमग्नवेयकेयुअनुदिशविमानेचाध्यदरिलिष माअनुतरेवरनिषमाणपरिग्नहश्चविमानपरिकदादिउपर्युपरिहीनः अभिमानश्वउपर्यु परितनुमंदकवायत्वाहीनःपुरस्ताविधुनिकायेयुदेवानालेश्याविधिरुताइदानींवैमानिके खुलेश्या. Page #1089 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वखारियोजनानिउल्लुत्यशनैश्चराचरंतिसरायज्योतिर्गणगोचरोनभोवकाशोदशाधिक योजनशतबहलतिर्यगसंरव्यातहीपसमुखमाणेघनोदधिपर्यतः उकंच नवतदुरसत्वंस यादसनादीचदतियंदुगच उक्वातारारविससिरिरकावुभनव अंगिरारसणीज्योतिका रणांगनिविशेषतिपत्यर्थमाहामेरुषदक्षिणानित्यगतयोन्ह लोके।मेरो प्रदक्षिणोंमे रुपदिक्षिणमेरुषदक्षिणातिवचनंगतिविशेषनिपत्यर्थविपरीतगति विज्ञायोतिनित्य गतयतिविशेषामनुपरतक्रियापतिपादनार्थरलोकग्नहणविषयार्थमईततीयेयुद्दीपे बुहयोगसमुयोज्योतिकानित्यगतयोनान्यवरतिज्योतिकविमानानां नित्यगतिहेवभावा तहत्यमावरतिचेन्नासिहत्वातगतिरताभियोग्यदेवरितगतिपरिणामात्कर्म विषाकस्य वैचित्र्यातेयाहिगतिसुरवेनैवकर्मविपच्यतरतिएकादशभिोजनशतैरेकर्विशैम्मरुममा प्पज्योतिकाःबदक्षिणावरंतिगतिमज्योतिःसंवंधेनव्यवहारकालपतिपत्यर्थमाह॥२॥ तत्कतःकालविभागः तहणंगतिमज्योतिःपतिभिर्देशार्थनकेवलयागत्यानापिकेवलै ज्योतिभिःकालंपरिछिद्यते अनुपलब्धः अपरिवर्तनाचकालोनिविधःव्यावहारिकोमुख्य अव्यवहारिकः कालविभागस्तत्वतःसमयावलिकादिक्रियाविशेषपरिछिनोअन्यस्या Page #1090 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिछिन्नस्पपरिछेदहेतुर्मुव्योन्योवक्षमाणलक्षणरतरत्रज्योतियामवस्थानलक्षणपति पादनार्थमाहावहिरवस्थिताः॥वहिरित्युच्यतेकुतोवहिलोकातकथमवगम्यते नर्थ वशाहिभक्तिपरिणामोभवतिननुचन्टलोके नित्यगतिवचनादन्यत्रावस्यानंन्योतियासि इंगतोवहिरवस्थिताइतिवचनमनर्यकमितितत्र किंकारणांन्रलोकादन्यन हिज्योतियां अस्तित्वमवस्थानंचनसिई अतस्तदुभयंसियर्थवहिरवस्थितारत्युच्यतेविपरीतगति निरत्यर्थकदाचितगतिनिरत्यर्थचस्स्त्रमारब्धव्यतुरीयस्यनिकायस्पसामान्यसंजासंकीर्ति "नार्यमाह॥वैमानिका वैमानिकग्रहणमधिकारार्थरतउत्तरंयेवक्ष्यतेतेयांवैमानिक संप्रत्ययोयथास्पादित अधिकार क्रिीयतेविशेषेणात्मस्थान सुरुतिनोमानयंतीतिविमा नानिविमानेयुभवावैमानिकार तानिविमानानित्रिविधानिरंश्रेणिपुष्यप्रकीर्णकभदेन तबरंदुकविमानानिरंवत्मध्ये अवस्थितानितेयांचतसमुदिक्षुमाकाशवदेशश्रेणिवद, वस्थानातणविमानानिविदिक्षुप्रकीर्ण पुष्पवदेवस्थानानपुय्यमकीर्णकानियांचेमा 2 निकानांमेदावोधनार्थमाहाकल्पोपपन्नाःकल्यानीताश्चाकल्येमुखोस्वर्गीयपप कर नाःकल्पोपपत्राःकल्यानतीना:कल्पातीततिनवग्नवेयकदेवानवानुदिशदेवाःपंचा। Page #1091 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । नुतरनिवासिनोनिप्रकाराप्रपहमिदा कल्यातीताःकथ्यतेद्विविधावैमानिकाः तेयाम : वस्याविशेयनिक्षीनार्थमाह॥२॥उपर्युपरिकिमर्थमिदमुच्यतेतिर्यगवस्थितिषतिशः . धार्थमुच्यते नज्योतिकवत्तत्तिर्यगवस्थितानसंतखदसमव्यस्थितयः उपर्यपरिश्त्यु - ज्येतेकेतेकल्पापद्येवंकिषत्सुकल्पविमानेयुतेवाभवतीत्यताहाछासौधर्मशानस नत्कुमारमाहेब्रह्मब्रह्मोतरलांतवत्कापिठशुक्रमहाशुक्रसतारसहारेबानतबाण ! तयोरारणाच्युतयोर्नवसुग्रीवेयकेयुविजयवैजयंतजयंतापराजितेयुसर्वार्थसिौच ॥कथमेयांसीधर्मादिशब्दानांकल्पाभिधानंसत्यंचातुरर्थिकनाणस्वभावतोवाकल्पस्या . भिधानभवतिअथकमिंदाभिधानंस्वभावतःसाहचर्याहातत्कथं इतिचेदुच्यतेसुध मीनामसभासास्मिवस्तीतिसोधर्म:कल्पात्तदस्मिन्नस्तीत्यरतत्कल्पसाहचर्यात् ईदोषिसौ धर्मःईसानोनामरंचस्वभावतःईशानस्यनिवासःकल्पऐशानस्तस्यनिवासरत्यणस्तत् साहचर्यादिंदोपिरेशानःसनत्कुमारोनामदुःस्वभावतः तस्यनिवासश्त्यासानत्कुमारः कल्पातत्साहचर्यादिदीपिसानत्कुमारःमाहेंद्नामेंदःस्वभावतस्तस्यनिवासाकल्यःमाहेंद्रः तत्साहचर्यादिदोषिमाहेंदुएवमुत्तरवापियोज्यंभागमापेक्षयाव्यवस्थाभवतीतिउपयु Page #1092 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परीत्यनेन यो ईयोरभिसंबंधो वेदितव्यः प्रथमैौ सौ धम्मैशान कल्पौ तयोरुपरिशात्कु मारमा | हैं। तयोरुपरि ब्रह्मलोकन ह्मौ तरौ त यो रु परिलांत व कापि खैौ तयोरुपरिक्रम हा कौन यो रुप रिसता र सहरमा रौ तयोरुपरि मानता तौत्तयोरुपरिवार एण च्युत्तौ प्रध उपरिच प्रत्येक मिंद्र संबंधो वेदितव्यःः मध्ये प्रतिद्वयं सौधर्मे शान स्म नत्कुमार माहें द्राणां चतुरंगी च 'त्वाररंडा : ब्रह्मलोक ब्रह्मो तर यो रेकः ब्रह्मो ना माली नव कापिष्टयोरे को लात वाख्यः शुक्रमा 'हाउ यो रेकः सतार सहरमा रयो रेकः सतारनामा-मानत आणत मारणाच्युतानां चनुचच त्वारः एवं कल्पवासिनीहा दशकेाभवेनि जंबू ही पे महा मंदो यो जनसहरना वगाहो नव नियोजन "" सहरसा कायः न स्पाधस्ताद धो लोकः वाहल्येन स्वमास्तिर्यक् प्रस्टतस्तिर्य ग्लोकः तस्योपरि यात् उई लोकः चूलिका चत्वारिंशे योजना छाया नस्या उपरि के शांत रमावे व्यवस्थितमनुवि मानमिंद्रकं सौधर्मस्य सर्वमन्य लोकनि योगा हे दिनव्यं न व सुग्मै वे य के वि तिनवशदस्य पय ग्वचनं किमर्थमन्यान्यपिनवविमानानि मनुदिससंज्ञका निसंत्ती निशापनार्थे तेनानु दिशानां जहांवेदितव्यं एषामधिकतानांचे मानिकानांपरस्परतो विशेष प्रतिपत्यर्थमाह ॥ २॥ स्थिति प्रभावसुद्युतिले श्या विश्व ड द्वियावधिविषय तोधिकाः॥ स्वेपा तस्यायुषः उदयात स्मिन्भवे 1 Page #1093 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वानांकुमारावासाःहितीयनिकायस्पसामान्यविशेयसंज्ञावधारणार्थमाह॥शायंतरा किन्नराःकिंपुरुषमहोरगगंधर्बयक्षराक्षसभूतपिशाचाविविधदेशांतराणियेयांनिवासास्ते व्यंतरारतिभन्वर्थासामान्येसंज्ञेयमपिविकल्पानातेवाखंतराणा प्रष्टोविकल्या किनरादयो वेदितव्याःनामकर्मादयविशेषापादिताःकपुनस्तेयामावासाइतिचेदुच्यते ॥अस्माजबूढीपादसव्या यातहीपसमुझानतीत्य उपरिटेखरएथिवीमागेसतानाध्यंतरापर्णमावासाःराक्षसानाकरहुलभा गेतनीयस्पनिकायस्यसामान्यविशेषसंज्ञाकीर्तनार्थमाह॥॥ज्योतिकाःसर्याचंद्रमसौग्नहन क्षत्रप्रकीर्णकतारकायाज्योतिःस्वभावखादेयायंचानामपिज्योतिप्काइतिसामान्यसंज्ञाअन्व ःस्सादयस्तहिशेषसंज्ञानामकदियपत्ययाःराचंदमसावित्तिएथकमहणंप्राधान्य ख्यापनार्थकिंकतंपुनःपाधान्यंषमावादिकतंकपुनस्तेषां भावासारत्यत्रोच्यते अस्मात्समान भूमिमागादूईसनयोजनशतानिनवत्युत्ता उन्मुत्यसर्वेषांज्योतियामधोमागंविन्यस्तास्तारका खरंति तनोदशयोजनान्युत्सुत्यसर्यावरंति नतोशीनियोजनानामुत्पत्यचंदमसोभ्रमति न तस्त्रीणियोजनानि उत्सत्यनक्षत्राणि ततचत्वारियोजनानिवुधाःततस्त्रीणियोजनान्युत्छु । क्रान्ततस्त्रीणियोजनान्यत्युत्यवहस्यतयः॥ततश्चत्वारियोजनानिउहत्य भंगारकातन Page #1094 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्मोतरलांतवकापियुदेवादिव्यांगनाटंगाराकारविलासचतुरमनोज्ञवेयरुपालोकनमा त्रादेवपरमसुखमाप्नुवंतियक्रमहाक्रसतारसहरलारेयुदेवावनितानांमधुरसंगीतम्र दुहसितललितकथितभूषणरवनवणमात्रादेवपरांषीतिमास्कंदंतिमानतपाणतारणा युतकल्पेयुदेवाःस्वांगनामनःसंकल्पमात्रादेवपरंसुममवाप्नुवनि प्रयोत्तरेयोकिंधकारसु समित्युक्तेतन्निश्चयार्थमाह॥॥परेजवीचाराः॥परग्नहणमितराशेयसंग्नहार्थअपवीचार : महणपरमसुमतिपत्यर्थेषवीचारोहिवेदनापतीकारःतदभावतेयांपरमसुषमनवरतमित्यु तंभवति।उक्ताये मादिनिकायादेवाः देशविकल्याइत्तितेयांसामान्यविशेषसंज्ञवधारणार्य मिदमुच्यते।भवनवासिनोरसुरानागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तिनितोदधिद्दीपदिकुमारा॥भवने युवसंतीत्येवंशीलाभवनवासिनः मादिनिकायस्पेयंसामान्यसंज्ञाः असुरादयःविशेषसंजावि शिष्टनामकर्मोदयायादितरतया सर्चयांदेवानां प्रवस्थितवयःस्वभावत्वेपिवेषभूषायुधया नवाहनकीउनादिकुमारवदेवांयाभासत्तरतिभवनवासियुकुमारव्यपदेशोरूद प्रत्येकंपरि समाप्यतेश्नसुरकुमारास्त्येवमादिकतेषांभवनानीतिचेदुच्यतेरत्नषभायाः कवहुलभागे. असुरकुमाराणभवनानिखरप्पथिवीभागेउपर्यधश्वएकैकयोजनसहरसंवर्जयित्वाशेखेन ..LASALA Mant-artisinin Page #1095 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाघोषश्व उदधिकुमारागोजलकांतोजलप्रमाद्वीपकुमाराणापूर्णावसिष्ष्वदिकुमा राणां अमितिणतिरमितवाहनध्वेतिव्यतरेखपिकिनराणहाविदोकिारकिंपुरुषश्चके पुरुयाण्णसत्पुरुयोमहापुरुषश्चमहोरगा अतिकायोमहाकायश्चगंधर्वाणांगीतरतिर्गी तयशाश्चय क्षाणांपूर्णभदोमाणिभदुश्वराक्षसागोभीमोमहाभीमश्चपिशाचानोकालोम. हाकालश्वभूतानांपतिरूपोऽप्रतिस्पश्चअथैयांदेवानांसुखंकीरशमित्युक्तेसुखाववोधना ईमाह।शाकायविचारामारोशानात्॥षवीचारोमेथुनायसेवनंकायेनषवीचारोयेयोते कायषवीचाराः प्रारभिविध्यर्थःअसंहितयानिर्देशः प्रसंदेहार्थःएतेमवनवास्पादया: ऐशानांताःसंक्तियकर्मकत्वात्मनुष्यवतस्त्रीविषयसुखमनुभवंतीर्थः अवधिग्नगणदि त्य तरेबांसुपविभागेपनिीतेतत्प्रतिपादनार्थमाह॥॥शेषाःस्पर्शरपशब्दममःधवीचा . राः।उता विशिवसंगहांपैशेषाहणके पुनरुक्तावशिष्ाकल्पवासिनःस्पर्शश्यरुपचशब्दम्य मनश्वस्पर्शरूपशदमनांसितेयुपवीचारोयेषांतेस्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचाराः कथमभिसंबंध मार्माविरोधेनकुतःपुनःप्रवीचारमहणमिठसंप्रत्ययार्थमितिकःपुनरिलोमिसंबंधामार्यावि रोधीसनत्कुमारमाहेंदयोर्दैवादेवांगनांगस्पर्शमाबादेवपरांजीतिमुपलभ्यतेत्तादेव्यापि ब्रह्म Page #1096 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रिंशाःवयस्पषीठमईसहशा:पश्यिदिभवापारिबदामात्मरक्षाःशिरोपक्षोपमानाः अर्थचरारक्षिकसमालोकपालाःलोकंपालयंतीनिलोकपालापदात्यादीनिसन्तानीका निसैन्यस्थानीकानिदंडस्थानीयानि प्रकीर्णकाःपौरजनपदकल्पाः माभियोग्यादाससमा नावाहनादिकर्मणिपरता मंतेवासस्थानीया:किल्बियिकाःकिल्वियमेयामस्तीतिकि विषिकाएकैकशःगतेदंडादयोदशविकल्पाश्चतुर्युनिकायेयुउत्सर्गेषशक्तास्ततोपवा दार्थमाह॥वायस्त्रिंशलोकपालवाव्यतज्योतिकाव्यतरेयुज्योतिकेयुचवायरिंचं . शानलोकपालांचवर्तयित्वाश्तरेदीविकल्पाडव्याल्मथतेषुनिकायेयुकिमेकैकरंदुर तान्यःप्रतिनियमःकश्चिदस्तीत्यतमाह॥पूर्वयोहीदाः॥पूर्वयोनिकाययो भवनवासिय तरनिकाययोः कथंक्तिीयस्यपूर्ववंसामीप्यात पूर्ववमुपयोक्तंही दाइति मंतरनीतः चीतार्थ हीदौड़दौयेषांतेहाति यथासप्तपर्णाष्टोपदरनितद्यथामवनवासियुताव दसुरकुमारागाहाविदोचमरोवैरोचनश्वानागकुमारागांधरणभूतानंदश्य विद्युत्कुमा राणहरिसिंहोहरिकांतवसुपर्माकुमारावेणुदेवोवेदारोची मग्निकुमाराम ग्निशियोग्निमाणवच वातकुमारावैलंगभंजनश्चस्तनितकुमाराणांसुघोयोम Page #1097 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यांते पीतातले श्याः एतदुक्तं भवत्तिमादित विमुनिका येशु भवन वासिव्यं तर ज्योतिष्का गांमसुरदेवानां कनानी ला का पोत पीते तिचतस्त्रले श्याभवति तेषां निकायाना मंतर्वि कल्पप्रतिपादनार्थमाह ॥ दशाष्ट पंच द्वादश विकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यंताः॥चतुर्गादेव निकायानां दशादिभिःसंख्या शब्दैः य या संव्यमितिसंवध्येवेदितव्यःदशविकल्पाःभवः नवासिनमष्ट विकल्पाव्यंतराः पंचविकल्पा ज्योतिय्काः । द्वादश विकल्पावैमानिका इति सर्व वैमानिकानी हादशविकल्पांतः॥पातित्वेन शक्ते ग्मैवेयकादिनिवृत्यर्थविशेषणमु पादीयते कल्पोपपन्नपर्यंता इतिभ्न यक यंकल्प संज्ञाः। द्रादयः प्रकाराः दशैतेयुकल्प तइतिकल्पाःभवनवासिषुतत्कल्पना संभवेपिरू दिवशात् वैमानिके खे न वर्तते कल्पश दः कल्पेषूपपन्नाः कल्पोपपन्नाः पर्यताये यांने कल्पोपन्न पर्यंताः पुनरपितद्विशेषप्रति पत्यर्थमाह ॥ इंदूसा मानिकनाय खिंशत्परिशदात्मरक्ष लोकपालानीकप्रकीर्णा का भि योग्य किविका क॥ि अन्यदेवा साधारण मादिगुणा योगादिं देती ती इमा श्ये वर्जितं यत्तस्थानायुर्वैर्यपरिवारभोगोपभोगादितत्समानं तस्मिन समाने भवाःसा | मानिकाःमहत्तराःपितुगुरूपाध्यायतुल्याः मंत्रिपुरोहित स्थानीयाः। चयस्त्रिंशदेवत्रय ST: Page #1098 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीभूविललेश्याद्यायुहीयोदधिर्वास्यगिरिसरासरितोमानन्दगोमेदस्थितितिरश्यामयि स्वतीयेशाभवपस्सयोवधिदैवनारकाणमित्येवमादियुमसरुदेवशब्दउक्तःतबनज्ञाय तेकेदेवाः कतिविधाइतिवातनिर्णयार्थमाहाशादेवाचतुर्णिकायाादेवगतिनामक दियेसत्यभ्यंतरेहेतीवाह्यविभूतिविशेबै ही पाइिसमुद्रादिपदेशे यथेमंदीव्यतिक्रीड तिीतिदेवाः॥रहैकवचननिर्देशोयुक्तःदेवश्चतुणेकापरतिसजात्यभिधानात वहूनाप्रति पादकोभवति वहत्वनिर्देशस्तदंतर्गतभेदप्रतिपत्यर्थः इंसामानिकादयोवस्वाभेदाः संन्तिस्थितिस्यादिकत्ताश्वततसचनार्थ देवातिनामकर्मोदयस्पस्वकर्मविशेसापादित भेदस्यसामर्थ्यात्त निचीयंजत्तिनिकायाःसंघाताश्त्यर्थः चत्वारोनिकापाययोतेचतु त्रिकायाः केयुनतेभवनवासिनोव्यंतराज्योतिकावैमानिकाव्येति तेयालेश्यावधारण र्यसिदमुच्यते॥॥ आदितरित्रयुपीतांतलेश्याः॥ मादितइत्युच्यतेनंतेमध्ये अन्यथा बाग्नहोमाविज्ञापीतिमादौमादित इयोरेकस्पचनिरत्यथैत्रिगहणं क्रियतेप्रथच तुनिवत्यर्थकस्मानभवतिमादितरतिवचनातवदुलेश्याउक्ताः तत्रचतस्रालेश्या नांग्गहणार्थपीतांतरगहण क्रियतेपीतांतेजरत्यर्थः पीतातेयासांताःयीतांतालेश्याये Page #1099 --------------------------------------------------------------------------  Page #1100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TVRI Ramay ६ Aamsannuintainsannliner aibarahinentation ने न Aaja --45.IME---- - indayanawwamaniaurana aza nuz.JAGAarusara a n <{{:৫১ খৃঃ৫৯৫ টি ২২ चारमन्त्री जिनसेना कार्यकतालयात स्वयं मुवेनमस्तुभ्यामुत्पाघात्मानमात्मनास्वत्मनेव तयोदता रजयचितवनयनमस्तेजगता पत्यालक्ष्मीमार्बनमोनमःविदांवरनमस्तुभ्यो। नमस्तेवदतांवर कामशहां देवामामने तिमनीयण वामानमन्सुरेगमोलिासग्मार लाभ्पर्चितकमा ध्यानघणनिर्मिनापन घातिमहातरुअनंतमवसंताना जयादासी भरनेतजिना त्रैलोकानिर्जयावानापुर्दपमान 3 दजेयोनवाना॥ विस्ताशेसंसाराबंधनोमब व्यर्वाधव निघुरारिखमीशोभिाजन्मम्रत्युंज मरानका निकालविययाशेषांतत्वमेदात्रि धौस्थित केवलादधचक्षुः स्विनेनोसिख मीशितः॥ सामंधानकंपाहामोहांधासुर मनाताईनेनारयोयस्मादईनारीस्वरो स्वतः शिवःशिव पदधंसा दुरिनारिहरी या हरः शंकरःकनसंलोकेशंभवस्वभवन्मुखे भारमोसिज्जगज्येयः पुरुःपुरुगुणोदयः।। नामेयोनाभिसंरतेरियाककुलनंदनः। त्वमेकपुरुषकंधावं लोकस्यलोचनार्वत्रि १ dlanatanizaad maana Madanalone - manoramadisuaari- MESS r.SASAROLODLATHER. siaDairwasanaksardianRAananmikanarthakumbhirainRSTANDARATraileanILIZLine .. RRD-Lecrewasan . Page #1101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाबुधिसन्मार्गस्विसस्त्रिज्ञानधारकारचत सरणमांगसामर्तिखंचतुरश्रधी पंचब्रह्म मयोदेवा पावनस्सं पुनीहिमा २२(चतुःसरणार मांगसामर्तिस्वं चतुरश्रधा पंचनामयोदेव पावन स्वर्गवतारणेनुभ्यां सद्योजानात्मनः जन्माभियेकमादाय वामदेवो नमोस्तुते ॥१३॥ पुरुयायसुरुषलेन विमुक्तपरमानिने नम स्वत्पुरुषावस्थाभाविनीतेपवित्रते।२९॥श नोक्रांतायघोरायपरंपशममीयुयकेवल ज्ञानसंसिद्धावीशानायनमोस्तुते १५ ज्ञानव रणनि सा नमस्तेनंतचक्षुये रसोनावरण छेदी नमस्तेविश्वदर्शने १ नमोदर्शनमोहने सायिकामलरलयोनमः शारित्रमोहनधि रागायमहौजसे नमस्तेनंजवीर्यायानमाने नस्लुयात्मने नमस्तेनंतलोकायालोकालोकार लोकिनो २८. नमस्तेनंतरानाया नमस्तेनंतलम। नमस्तेनंतभोगापानमोनंतोपमोगिनो नमःपरमयोगायानमस्तुभ्यमयीनयानमः परममतायानमस्तेपरमर्वयो २ नमः रमविद्यायानमःपरमतहिरे नमःपरमतर लायनमस्लेपरमर्वन २१ नमपरमरूपा Page #1102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यानमःपरमतेजसेनिमःपरममार्गाया नमस्तेपरमेटिने (२२॥परमंभेजधाम र मंजोनियनमानमःपारेलमःजातःधानेप । रमरामना२३ नमःक्षीण कलंकायाक्षीया बंधुनमोस्तुलनमस्तेक्षीणमोहायासीगारोगा यतेनमः २४ नमःसुगतयेतुमाशोमनांग निमीयुयानमस्ते नदियज्ञासुरवायोनीडिया मनारशाकायबंधननिर्माक्षारकायायन मोस्तुतोनमः स्तुभ्यममोरवाया योगिनाम धियोगिन।१६: अवेदायनमस्तुभ्य मक या. यतेनमः नमःपरमयोगी वेदिताहिल्याय तेशानमःपरमविज्ञानानमःपरमसंयतः नमःपरमरहम परमार्थायनापनोनमस्तुभम मलेश्यायशुहलेसकस्यशे नमोभव्यतराव स्था व्यतीतायविमोक्षणासासंजसंजिद, यावस्यांव्यतिरिकामलात्मने नमस्तेवितसं ज्ञायानमार्शयिकदृष्य।३सामनाहाराय बनायानमःपरमभाजुयोव्यती सेयरोया य भवाछेपारमीयुये अजरायनमस्तु भ्यामवलायतरात्मनो अलमास्तांगुल स्तोत्रं मनंतास्तावकागुलनामस्मरतिमा Page #1103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. m arah - - - यापर्युपासिशियामहे ।।३३वसिहासहद लक्षांखांगिरपति नाम्लामरसहरलेणतो मोभीमसिहयोतिस्तुतिः श्रीमानस्वयंभुः यभः शंभवःसंहरामरःस्वयंभ प्रभु काविश्वभरपुनर्भवः शविस्वात्माविश्वलो केशोविश्वननसुरक्षरःविश्वविहिश्वविद्येशो विश्चयोनीरनीराइविश्वरपाधिमुद्दीता विश्वेशोविश्वलोचनःविश्वव्यापी विधि शाश्वतोविश्वतोमुखः॥३विश्वकर्माजगसे लो विश्वरन्जिनेश्वर विश्वविश्वरतेशो 'विश्वजोनिरनिवरभाजिनोजिनुरमेयात्मा विलुरीशोजगसनिअनंनयरिचितात्माभि व्यबंधुरबंधनासायुगादिपुरुयोब्रह्मापंचन समयः शिवः परपरन्तर सक्ष्मःपरमेटीस 'नातनम स्वयंयोतिरजोजन्मा ब्रह्मयोनिरयो निनामोहारिविजयीजेता धर्मचक्रीदयाधनः आषांतारिरनंतात्मा। योगीश्चराचिनः बल । विविद्धातखजोनलोविद्योविद्यनिश्वरः १२।। सिहोचुववृहात्मा सिद्धार्थःसिड्सासनःसि सिद्धांतबुदयसिड्साहसोजगद्वितः४३ सहि । सरन्युतो नापभविस्नुर्भवोन्दवः प्रभुलरजरो Page #1104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयो । जितुर्धपिरो व्ययः॥४४॥ विभावसुर संतु/स्वयं मनुपुरातनःपरमात्मा परंज्योति त्रिजगत्परमेश्वरादेशा इतिश्रीयकृत दिव्य भाषापतिर्दिव्या परतवावरत शासन तासा परमं ज्योति धम्ममसोदमीम्परा श्रीप तिर्भगवान चरन्नाविरजा शुचितीर्थ कन के क्लीशान पर जाई नांत कोमलः॥४॥ अनंत दि निर्मानात्मा स्वयं बुद्धः प्रजनि मुक्तसको निरा बाहो निःय्कलो भुवनोश्वर (४चा निरंजनो जग ज्योति निस्कनिरामय प्रचल स्थितिरसोर म्यः कूटस्थस्थानुरक्षयामग्नीनी मो नेता प्रणेता न्यायशास्त्र कत्ः शास्ताधर्म्मपति धम्मधर्मात्माधर्मतिर्यकन् । ४. वयध्वनेो व याधीशोर के बायुधपतिर्भ वयभांकोव बोद्भवः॥५१॥ हिरण्यनामिनासा मतम्मन भावेन प्रभवो विभवोभाभिवो भावोभवातकः॥हिरण्यगर्भः श्रीगर्भः जम्म निविभवो भवः स्वयंप्रभुभुतीमा मनना थो जगत्स्वभुः । ५३ । सर्वा दिसर्व दिवतार्व सर्वज्ञस चंदर्शिनः । सर्वी सासर्व लोके सा सर्वस सर्व लोक जित्॥५४॥ सुगतिः शुश्रुतःसुश्रून् .. 2031217 13 Page #1105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --- -- mi- namuktaLukamamlnama सवापसुरिर्वहश्रुताविशुतोविशुतः पायो विश्वशीर्षमुचित्रवाः २५.सहसशीर्यक्षेत्र ज्ञसहनाक्षःसहरनपात मतभपतवार। जो विश्वविद्यामहेश्वरः ५६ दिव्यशती स्थ विखःस्थविरोज्येसः जसलेस्टोवरीमधीस्ने योगरिसोवहिरी खोणियोगरिलगी। विश्वहिडिम्याडिश्वभुनिश्च नायक विश्वासीविश्वरूपात्मा विश्वजिहिल तांतक ५ विभावोषिभयोबोरोविशोको विजरीमरन विरागोविरतोसंग विवितोवी नमत्सरः विनयजनिताधुर्विलीनाशे अकल्मयः वियोग्गयोगविहिबान विधातासु विधीसुधी सांतिभाग एथिवीमति प्रोतिः भावालिलात्मक वायुम्रेतिरसांगामा त्यहि मुतिरधर्मएका सुपहायजमनात्मा सुला सबामरनिनः ऋखिगयज्ञपतिर्ययोजयां गममतंहविग योमरततरम्रतारमा (नि) लिशोनिमेसोचन: सोमतिःसुसोम्पासास यतिमहाभुः क्षमत्रविन्मजकन्मनी मंत्र मतिरनंतर स्वतंत्रस्तंबक खेतः लतांनोतकातरुत रुतीकतार्थललत्यःकतरुस minitinumandal s -- - -- Page #1106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुताक्रतुः नित्योम्रत्युंजयोम्रत्यु रम्रतासार तोरवः । ब्रह्मनिरूपरंवला ब्रह्मात्मानमस भवमहाब्रमपतिर्बो ब्रह्माबापरेश्वरः ६६ ॥ सुषसनपसन्नात्मा: ज्ञानधर्मरमानमुपशमा स्माषांतात्मा।पुराणपुरुषोत्नमा ३७ बिल्कशान महाशोकवनोशोकः कालव्याप नविष्टर पद्मसत्ययसंमतिः पद्मनाभिरनु तराईट..पायोनि गयोतिरित्यस्तुतिपःस्तुति स्वरः स्तवना_हमीके शो जितजेयरुतःक्रिया सांगणाधिपोगणज्येष्योगुराया पुण्यागुणागली गुणाकरोगुणांभत्धिार्गुणतोगणनायक:[{901 गुणादरीगुणोदी निर्गुण पुण्य गीगुणःश रायपुण्यवावरतोवरेण्यगुणनायक अ गरायपुण्यधीगण्या पुण्यकत्युन्पशासन धमी रामोगुणग्नामापुण्यापुण्यनिरोधकः॥२॥पा पापेनोवियापात्मा विषाभावीतकल्मयःनिई - होनिर्मदःशांतीनिर्मोहोनिरुपद्रवः निर्मि मेयोनिराहारो निःक्रियोनिरुपलवनिःकर्मको निरस्तेनोनिई तागोनिराश्रयः। विशालो विपुलज्योतिरनुलोचिंत्यवैभवः।सुसंवतःसुगु मात्मा सुभत्सनयनखवितशएकविद्योमहा Page #1107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्यो मुनिःपरिहनिःधीशोषिधानिभीसा सीविनिताविहितांतक ईपितापितामहापा ताः पवित्रपवनोगतिः मातावियगवरोवों वर. रःपरमापुमान् कविःपुराणापुरुयोवीया न रमभःपुरुचनियापवसोहेतुर्भुवनैकपिनाम ह.७८.. महापश्रीरक्षलक्षणाःमा क्षो लक्षणयःगुमलक्षणः निरीक्षगरीकासः पुष्कलःषुकरेक्षणासिहदःसिहसंकल्पः । सिहात्मासिसाधनः बुडवोझोमहाबोधिार्ब ईमानोमहईिका वेदांगोवेदवेद्यो जातक पोविदांवर बेदवेषस्वयंवेद्यो विवेोबदतांव रिश अनादिनिधनोव्यक्तो व्यकवाग्व्यक्तशा सनः युगादिकधुगाधारो युगादिजगरादिन ८२ प्रती होती दियोधीदो।महेंडोजीरियार्थहक अतिंद्रियोहमिदात्या महेंदुमहतोमहान्।३।। उदवकारणको पारगोमवतारका अगाहपोग हिनंगुखं पराईपरमेश्वर अमरिमें परिचित्यग्नोसमारनधी धाग्यपायहरोभ्यश्च । या पसग्नोमिमोग्नजामहातपोमहातेजाः महोत्वोमहोरयःमहाजसामधामाः महासलो महाएतिश महाधी-महावीयो.महासंपन्म: Page #1108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महा हाल शाम हा शक्तिर्महा ज्योतिर्महास निर्मा ति आम हा मान महानीतिर्मक्षां निमसे दयः महा सोम हा नंदो । महाभागो महाकविःवच्चाम हा महामहा कीर्ति। महाकांतिर्महावयुः महारानो महाज्ञा नो। महायोगो महागुणः॥भी महामहाप तिषाना महाकल्याण पंचकः। महाप्रभुर्महापतिः हार्यो धीर्यो हमेम्बरः। स्वा मुर्निर्महाध्यानी । महामौनी महारमः । महाक्षमो माहाशी लो। महाय सो महामरवशास॥ महाजनप निर्महेरा मा कांतिविरोधिपः॥महा मैत्रीमयेो मे यो ॥ महो पायो महो म यथा शाम हा कारुणिको म तामहामंत्री महायतिः महाना दो महाघो यो म हे ज्यो म हसाप्रतिगर शामहाभ्ररंधरो धुर्यो । म हौद यौन हिष्टवा का महात्मामहसंधामा महिर्षि महि नोदयःस्थामहा के शां कुष्ट रो| महाभूतपतिर्गुरु महापराक्रमोनं तो। महा को धरिपुर्वसी ॥२५॥ महा भवाहिव संतारि| महामो हा द्विस्ट इनः॥ महागुसा सरसां तो। महायोगीश्वर शस्त्री ॥ ६॥ महाध्मानीय निर्माता | महाधम्म महाव्रतीः । महा कर्मारिहाल ज्ञो महादेवो महेशिता । श्रासर्व केशा पहः साधुस र्वदोषहरोहरः ॥ संख्येयो प्रमेयात्मा । शमात्मा ६ Aut LATTE MO Page #1109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशमाकरः॥भ्यासर्व योगीश्वरो चिंत्यः नासा विस्टरवादंना त्मादर्म तीर्थे शो। मोगो नात्मा ज्ञान सर्वगः॥भाषधानमात्मा जरुतिः परमः प रमोद असणःधकामारी सेमकतसेम शाशनः॥१०॥ प्र एण्वःप्रणयः जाणः प्राणदंगा णते खर प्रमाणंजणधिर्दक्षो । दक्षिणेपर्युरधर मानं दोनं दनो नंदो वंद्योनं द्यो मिनंदक महा का मदका म्या कामधेनुरवजयः ॥ १०२॥६ इति महामुनिशतं ॥ प्रसंस्कत सुसंस्कारो जा छत्तो वै कृतांत कतानः कांगु क्रांति चिंतामणिरभीष्ट द॥३॥म जितो जितका मारी रमितो मितशासनः जितको धो जिता मिंत्रा । जि तले शो जितां नकः॥जिनेंद्रः परमानंदो| मुनिं होदुंदुभिःस्वनः। महेंद्रवं यो योगिंद्रो । यतींद्रोनाभि नंदन नाभे यो नाभि यो जातः सुमनो मुनिरुत्त माममेद्यो निरयो नार्श्वना धिको धिगुरुः सुगी कृि स्वमेधा सहकमी स्वामी । दुराधर्षो निरुत्सुकः विशिष्ट शिष्ट भुकीस्टः प्रत्ययः कामनोनघः क्षेमी क्षेमं करोक्षज्यः । क्षेमधर्मः पती क्षमी । म ग्ना पो ग्यान निर्गी पो। ध्मांनगम्पो निरूत्तरः च सुरुतिर्धानु, रिस्पाई सुनयचतुराननःश्री निवा - 20 1: Page #1110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्वक्रामतुराश्चतुर्मुखी सत्पात्मास त्यत्यविज्ञानासत्यवाक्तत्पशासनासखासी। सत्यसंधान सत्यसत्यपरायणः॥२०॥स्थेयान् । स्थवीयानेदीयानादवीयान दूरदर्शन अगे रणियासुरगाणुरुरायोगरीयसा॥२॥ सरायो गःसदाभोगासदानप्लसदासिवः सरागतिस दासौरव्यासदाविद्यःसहोदयः॥२२॥सुपीयास मुखसौम्पः सुरवर समितःसुकतासुगुप्तगु तितोनालोकाअसोदमेश्वरः।२२३॥इतिसं स्कनशनकारहस्पत्तीर्वाग्मीवाचसतीसरा साधीमनीयोदियरोधीमान शेमुयोशोगि। संपतिनैकरुपौनयोगोनैकारमानकध मरुताअविज्ञोयेषतिकात्माकतजारुतले सणःशजानाग दयाग रत्नगर्भपभा चरा पग महाग हेमगर्भसुदर्शनार लक्ष्मीचारिखदशाँचसोरदीयातनयोशिताम नोहरोमनोज्ञांगोधीरोगंभीरशासनः। मरूपोदयायोगोधर्मनेम मुनिश्वरः धर्मचर। कायुधोदेवोकर्महामनेघोषणाः अमो घर्चगमोघाज्ञो निर्मलामोपसासन स्वरूप सुभगस्त्यागीसमयसमाहितासुस्थितः Page #1111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aduca U-12-h-AARukonRRIN02.35am... muar-. a atarrar2IR- LAYERNARAutcamsarsogram REETuora r m rat.LAAJanama nc. स्वास्थस्वस्थस्यो नीरजस्कोनिरुवामलेपोनिः कलंकामाचीतरागोगनस्य हावावस्येदियोपि मुक्तात्मा निसपलोजितेदियभषांतो नंतधा मिश्रिीमंगलंमलहानयारणा प्रतीइगुपमा नोदिचिवमगोचरसायमीर नीमनेको नै कोनानेकतवरकाश अमात्मगम्पोगम्या समायोगवियोगवंदितः।सर्चन सराभाविधि कालविययार्थरकाशाशंकर शंबोदरांनोद मीक्षा निषरायण अधिषःपरमानंद पराम ज्ञःपरापरः।२४त्रिजगहलमोभ्यर्चबिजन्म गलोदयः निजगत्यतिराज्यहि स्त्रिलोकानशि खामणि२५॥इतिरहवंद ॥ ८॥त्रिकालदर्शी मितेशो लोकधानारतरतः सर्वलोकातिगार ज्यः सर्वलोकैकसारविकशापुराणपुरुयाप विकतरागाविस्तर मारिदेवपुराणायः राणाः पुरदेवोधिदेवनाः॥२आयुग मुरव्योयु गज्येष्यो।युगादिशितिरदेसक-कल्पीमावर्णः कल्याण कल्पकल्पाहालक्षणायाकल्याण परुतीदरीतःकल्पारणमाविकरमसः। विकली कवलातीताकलिलग्नः कलाधरमदेवरे। बोजगनाथोजगबंधुर्जगद्विभुजगरियो Margam arth . anaKATRIKAARonald -LETZ Page #1112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - -famtinkamananewmammu -minut-mm-kmandu लोकज्ञासर्वगोजगदग्नमी।३० चराचरगुरु गोप्यो। दात्मा गदगोचरः सद्योजाताः काशात्मादिल इलनसंपभुः॥३॥ मादित्य वर्णाभर्मामासुषमकनकःपमासुवर्णव रुक्तासासर्यकोदिसमपमानपनीयनि भिस्तुगोवलामोनलषभुगसंध्मानममुहे। माहीतमाचामीकरकविवशानिरक्षकनक। छायाकनकांचनसंमिभः हिरण्यवर्यस्त्र गर्भःशांतकुंमनिभषभः॥३४॥घुम्नाभोज़ान रूपाभोदीक्षिजांबुनराति सुधीतकलधौ तश्रीषदीतोहारकदनि ३५ शिरेयःपुलि दाहिमस्यष्टक्षवाक्षरःक्षम शत्रुघ्नोपनि घोमोघःषशास्तॉशितास्वभुः॥३॥शांतिनि। टोमुनिज्येष्टःशिवतानि:शिवपादित शांतिकृछानि कांतिमत्कामिनषदः॥३५ श्रेयान निधिराधिषिीयाममप्रतियः पतितासु स्थिरस्थावरस्पानापयियावनियःपयुः ३॥इतिनिकालशनंदिग्यासाचानरस नोनिग्येशोदिगंवर निकंचनोनिराशंशो ज्ञानचक्षुरमोमुहासी तेजौराशिरनंतीजा ज्ञानाधिःशीलसागर बेजोमयोमितिज्योति Page #1113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ r deviCaLTroKARANACHER himitannic E a .. ... ... . ... यो तिम्रर्तिस्तमोपहाराजगचुडामणि दीक्षित शंवानविघ्नविनायक कलिधःकर्मशत्रु लोकालोकपकासका अनिदालुरतिदानु। जागरकाप्रमामयः लक्षीपतीजगज्योति ईर्म राजपजाहितासामुमुक्षुबंधमोक्षजो जिताक्षों जितमन्मयःप्रशांतरसशैलूयोभिव्यपेटकना यका४३रेलकरिवलज्योतिर्मुलघोरलका रणामाप्लोषागीश्वरीयान्यायसोक्तिनिरु तवाका पवनामय शामीशोमारजिही माववितासुतनुतनुनिर्मुक्त सुगतोहतदुर्नया यशश्रीशःश्रीश्रितपाराजीचीतभीरभ यंकरः।उछल्लोरोयोनिर्षिोनिचलोलोक वसलादालोकोनरोलोकपतिलोकचक्षुर पारधीआधीरधीहिसन्मानासुहरन्तरत वाका पज्ञापारमितिःपाजो यतिनियम तेद्रियः भदंतोभद्दाकल्परक्षीवरखा ४)सम्रन्मूलनकारि।कर्मकायशुम्युश्म णाकर्मण्यकर्मवाषाश्रु हैयादेयवियक्षण: अनंतशक्तिरछेदहात्रिपुरारिरित्रलोचनः मिनेत्रःस्यविकारवक्षः केवलजानवीक्षण: समंतभदःशांतारिधर्माचार्योहियानिधिः । -- - amiri ---- ... --- RANI - --- N ---- PrimarnasammMERAMANANPHEcraPLANETaarrrrrrowaveMITREE LKumadimanabadliSa m act Page #1114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AS समरशी जितानंगाकपालुधर्मदेशकः॥५२॥ शुभयुःसुखशादतः॥पुनःराशिरःनामयःध धर्मपालोजगपालोहर्मसाम्राज्यनायकः५२॥ हलिदिरवासासी॥१०॥धानांपतेतवामुनिला मान्यागमकोविंदै।समुन्त्रिताननुध्यायनाममा नरजिस्म्रतिभवेता५३ गोचरोपिगिरामाशं बमांगोचरोमतमस्तोतीतथापसंदिग्धत्व तोविल फलंमजेनासमतोसिजगदंदुः। स्वमितोजगरियकावमिनोसिजगदाताल मितोसिहजगहित यात्वमेकंजगतांज्योर, नि स्वहिरूपोपयोगीकात्वंविरुवैकमुतागो स्वानंतचतुल्यः॥६॥वपंचब्रह्मततामा चंचकल्पाननायकशायदेदभाचतत्वज्ञात्वं सप्तनयसंग्रह शादिव्यायगुणाम्रर्तिस्व. नवकेवललब्धिकादशावतारनिर्धायो:मां' पाहिपरमेश्वर यायुस्मनामावलिर्वग्मा विलसत्सोनमालयामवंतंवरिवःस्पामःप्रसी दाजरहागानासाररस्तोत्रमनुस्सारतो. भवतीतितकीयःसंपारंपरस्येवासस्थाक ल्याणमाजात यासंदेहंषुण्यार्थी। पुमा, न्यवतुपुण्यधीपोरस्तीश्रीयंषानुः परिमाम Page #1115 -------------------------------------------------------------------------- _