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णके असंख्य परदेसमा निये। एक परदेस में अनंत कर्मवर्गणा है एक वर्ग नाच्ने त परमान्दा नि ये। अणूमे अनंतगुरा एकगुरा में पनंत पर्योय एक वेच्अनंतभेदजानिये । तिनतें हूवेनंत ताते होया अनंत सवज्ञानस में माहिदेवतो व या निये। १०३ | पूरनता||प्ययाचिरचामुख सोभने सुनेप्रानोन ट्रीकांनना केई सुन्य घरजां हिना हिमाषेपिरानन । तिन कौल डिपार सारयहततव नाई। पटतसुनते है वुद्धि सुद्धिजिन वानी गाई। इसमें अनेक सिद्धांत को मथ नवाशद्यानत कहा। सवमा हिजो वको मरम है जीवभाव हम सरदह ॥ १०४ ॥ इतिवरचास तक संपूरणे॥