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एक एक छाजही । दोल शम गोल उपर तसे सुं दरं भौनणार एक एक चारी दिशचार सुभवा वरी । एक एक लरक प्रमल जोजन की भरी चा रि दिशचा रिवीस लाख जोजनवरी भव० 1 १३ सोखनापीनमध्य सोल गिरिदधिमुखं । सह कादशयोजन महालखत्त दी सुखं वा वरी कोन दो मारिदो रति करें। भव॥२४॥ सय लवनीश एक सहरख जो जनक है। च्या रिसोले मिलैस वैवावन कहे ॥ एकएक शीशपरएक जिनमं दिग्भवणाराविंव मठशोरत्नमय सोही देव देवीय सर्वमन मोहई। यां च से धनुयतन पद्म-प्राशन व भवणारा लालमुखनयन वस्था मरुशेन हौ स्याम रंग भोयशी र केशह विदेन है। वचन वो लतमा नौहशत्तकलुश ताहरो भो ॥१७ को टिशशिभान दुनितेज् छिपजात है महावैराग्यचरण म ठहराते है वेननहिक हत होत सम्पक्धरं / भोव० १.१ ॥ दोहा॥ नंदी स्वर जिन धाम । प्रतिमा महिमा को कहै । घाननली नौ नाम । यहभक्तिसवसुख करै।।१७|इति ष्टमीप सुहावरोव रायो सुगु एगुए थान ॥ श्रष्टकर्मनाशन कौ जजौ च सुखका ॥ २०॥ इतिश्री मनि काजा संपूर्ण मय रत्नभयपरजा लि