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हे बनाय ( करैजा नसुद्धभाव सो दोग तिमे नही जा या भगियेको सकलकर्महनिमोखि पडिवासित वैसाख ही जिजूं चरण गुरण घोषग संमेदा चलय की । उही संमेद सिखर पर्वत सेती श्री कुंथ नाथ तीर्थ करज्ञान घर कुंड दर्शक लको डिउपवाश रंदिन वै को वित्तीस लाय छिनवें हजार सात से वियालीस मुनि मुक्ति पधारे अजेय सुकलच उदिसदिवस (मोक्ष गए उपनाह जिर्जूमो विदिन के चरा करिकैबहुउ साहा उही समेदसियरपर्वत से ती सुदन वरके ददर्श साफल को डिउपवासमरधर्मनाथती ये कर उगुणीस कोडा कोडि गुरासको डिनोला बनो हजार सात से पिया गावैमुनिमुक्ति पधारे तिन कुंर्च निर्वपामीति स्वाहा॥॥॥ २ ॥ सो रथाः। सिवपुरमै प्रभुजाय चैत सुकल एकादसी •प्रातम सौ लवलाय । लहि अनंत सुखथिर रहे। उ ही समेदसिबर पर्वत सेती अविचल कुंददर्श या फन को डिउपवास प्ररसुमतिनाथतीर्थ कर एक को डा को डिचोरा सिकोड बहन र लाय वासी हजार सात सैमुनिमुक्तिपधारे तिन कुं घे निर्वपामीति स्वाहा॥ प्रर्घ ॥ ॥ सकलकर्मय