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गोरियेषु पेशादि देखावा से दिवे एहाः कोचि का ले म ॥ चति प्रतिवदंतिया में सति हि कवि हसतो तत्यस ताई (शीच्च कालं यचमि पुजाम वदामि साम सामि दुरकरक उ कम्मरकउ वोहि लाहो सुगम समाहि मरा जिनगुरा संपत्ति होउ मशी
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॥ व्यथ सिरुरता लिखते ॥ उ उर्धा धोरयुतं सविंद ब्रह्मसु रावेष्टितं । वर्ग पर न तीज र संधिवात त पात्रत टेस् नाह तरह का रसं चेष्टितं । देवंध्यापितयस सुभगो वैरीव कंदी राहीं नमो सि या सिडूपरमेष्ठेि अवावत रावत संवौ श्रद् आव्हाननः । अत्रममसन्निहितोभव भवर्षद सन्निधीकरणमिव तिष्टतिष्यतः यः स्थापन ॥निजमनोमनभाजनभारया। समरसेक सु धारसुधारया। सकल वो धक्का लारमनियक सहज सिद्धमहं परिपूजयेत् ॥ २॥ डेही न सोसि
मां सिरुपरिमेषिते ॥ समना। दर्शन वीर्य | स्वहमेत हेव | अगर लघु । म वाहनं ""अह गुण सिद्धा । जलं ॥ सहज कर्म केल कविनाशनैः रमलभाव सुवाशितचंदन। नुपमान गुणवलिनायकं । सहज.चंद
सहजभाव सुवाशिततं दुलैः सकल दोष