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________________ जसिखंडकंटकन का प्रावद्यनाभाजना सम्प ज्ञान चरित्र लक्षणधराधग्पाष्टक में धना भता नाग नवर्तमान समये। तेभ्यो जिनेभ्यो नमः श्रीम न मे र कुलाद्वौ र जित गिरबरे शाम लौ जंबूरसे वक्षारे चैत्यव क्षे। रतिकर रुच के कुडले मानवे रख्या कारेजना है। दधिमुखसिखरो व्यंतरे स्वर्ग लोके । यो ति ले के भिवंदे भुवनगले मान चिप्पालया नि |देवासुरेद्रनरनागय सुखसंप पायजणास करिभव्य मनो हरेभ्यः पकैषु जादिवार विशतेभ्यः नित्संनमो जगत्स सर्व जिनालयेभ्य है कंरे निशारहारधवलौ हावं धनोलज हौवं धे कुशमप्रभननवशो दौ च प्रयंगप्रभो। येषा शोडशजन्ममुरिहि ता संतप्तहेमप्रभा । स्ते सज्ञान दिवाकरस्सुर्गु नाः । सिद्धप्रयंकंतुन निःबको उसथापाबीसा बियलल स्काय सहसग ईशा। नवसैति-प्रडिवा ला।। जिन पदमा किद्यमावंदे / हिं इच्छामिभते चेयमका उस क उस्सा लो वे ये उडलोय म्मिकिटमा कि हमारा जाए जिराचे या गाता। एसा शातिय सव लो ये शुभव वासिया व्यं तर जो सिपि कष्प वासिय तिच उदेवा से व्य परवारा दिवे शाम गंधेधून रिबे चू ↑
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
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