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धको सरु गिरते रवै स्थान विश्रामजाविजिन वैठे नहीं मिटैपंथ श्रम घाय॥ ६॥ चोपई॥उर्ज्जयं नगिरउन म छाजै ॥ भूपरिसिद्ध क्षेत्र शुभराजे •अन्य प्रचलम हिमालविलाजै। वंदन जाकैा घसवभान।। ७॥सनकोस उंचो सुखदाई महिमा जा की बरनीनजाईजा के वननंदन सम सो है रेवत सुरनर के मन मोहे इमबली फलफूल विराज न जालबिकल्पद्रुम लाजता सरसरसालता लनरूभारी एलाश्रीफल सुभगसुभारी॥सासो है। सरस अनार नारंगी पंछी शव्द करत वहच चिंगी॥ मालती चंपा जा यज्ञ ही है। सुमनम धुपक रिमिरही २ स्वक्षसलिलम्भनसरवर सोहैं चक्रवाकसारस ध्वनिमो है। दुख जंतुत होनिज रनमा सो प्रभु प्रतिसय दर सावें शागिर निरतें अय को स उचाई॥ धर्म सालत हो भरंचाई | जहां पहरायितसदा र है है जा बीजन बखारि धेरैहै॥ १२॥ जहां वे तां वरमत के मंदिर तामै काम वडा प्रतिसुंदरात होने कछुक उत्तर दिशजावें निर्मलजल को कुंड सुहावें ॥ ९३॥ जात्रीजनन हां स्नान करावे॥ मानुषाप पंक उतरावें । उन लवस नये हरिष्यु चिहोनें वसु विधिसामग्नीमधी
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