________________
गक्षेत्तका क्षेत्तको अनंतभागपुगाल विसाल है। ताकैौ श्राधौनाम अर्धपुलपरावर्त न फिरतौर हायहायानीभा है। ता हीसमें सम्यक उपजतेका जोगभयौ -और कहासम्य कतालर का का ख्याल है | ७८) भावपरावर्तन अनंततेकरे है जी एकभावते अनंतभौ कपरावर्त है। एक भौसेती अनंतकाल परावर्तक र तकालते अनंतक्षेत परावर्तक रहते है। ए कक्षेवतेपनं तपुल परावर्तन पंच विषै फेरिआय मि घ्यावस पर ते है। सात कै विना सजि न्हे सम्पक प्रकाशते ई द्रव्ययेत कालभावभावते निकर तहै। ७८। पांचलब्धिकथनस चैत्रः॥ ३२॥ याव रतैसे नी हे| यय ही पै उपसम है दान पूजा उद्धत विसोही उपयोग है। गुरु3 | पदे सतत्वायाने मोईदेस नाहै-अनंत कोरा कोरीकर्मकीथितिप्रयोग है। जग में अनंतवारच रलब्धिपाईइन कलब्धिविनांसमक तियोग है। प्रधो-अपूर्व अनहितकर्णाति न करिमि थ्यामा हिपा छैचोथानयोगहै । ८० । अयनंदी स्वरद्वीपयथा॥ सवैया॥ एकसौत्तरेस ठिकरो रचवरामीलाष जोजन चौरा द्वीपवावनपहार है। दिसाचारित्र्पंजनजोजन चौरासी हजार से दधिमुखजोजनदसहजार है । र तिकरहै वत्ती सयोजन हजार एकलवे चौरे उंचेसस्टोल