________________
अष्टक ॥ चालनंदीवर जापान नरायक की मै ॥ क्षीरोदधि को शुभ वारिहाटक मंगभ रूं जिनचरनदेनधारजन मजराधिहरु जपत गिरराज महिमा को वर रौ ॥ मनव नजूंसार मातम हितकर ह गिरना रिथ्म चलो परिमुक्तिप्रालानां निनो म्भूमिभ्मोजन्मजराम्म त्यु विनाशनाय जलं
यामीति स्वाहा॥॥मलया गिरमरुकर केसर संग घ सुं। जिन चरण सरोज विले पडवसंभवतपसुं श्री सिद्धक्षेत्र गिरनार हिमा को वर | मनवचतनए जूं सारमा महित करणै । उहाँ श्री गिरनारि प्रचलो रिमुक्तिप्राप्तानां निर्धारमिम्पो भवतापनि | नाशनाय चंदनं निर्वयामीति स्वाहा। शसि तसोमसमान प्रखंडतंदुल सुबदासी जिन चरणध्मग्नधरिपुंज पाऊसुयरासी। श्रीसि दक्षेम गिरनारमहिमा को वश । मनवच तन पूजूं सार प्रात महित कर गोंग उंड्री श्रीगि रनारिध्चलो परिमकिपालानां निर्धारण भूमिम्पो प्रक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। शबर