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नी॥ सुख पावैशं तो सी आनी जानी सदा सुचि शीलजपतप पानध्यानजभावतै। (नितगंगज मृनसमुइन्हायेभ्प्रयु चिरोशम्भावनै । उप रूप मलमलभरपो मितर कोन विधिघटष्पुचि करै। वह देह मे ली सुगन थली सोच गुणसा धुल है | डे पर नाम मोचधर्म्मा मासमर्थ॥ ॥ाये रखा। काय छ हो प्रतिपा ल।पंच इंडी मनवश करे। ॥ संजम रत्न समा रवि खै चोर वह फिर है ।। ईहीं परब्रह्म ऐड तमसमधलगान वर्ष | चौपाई॥ उत्तम संजम गहुमनमेरेरो भवभव के भाजै प्रपतेरे सुरगनरकपयुगत्तिमै नाहि. माल शहरन करन सुखदा ही टाईप्रथी जल प्रा गिमारुती विचित्रिकरुना धरै । स्पर शंना घाण नयना कामम सववाशिकरे, निशाविना नहिजि गाराज सीओ नूफ सौ जग की चमे इकघडीम त्रिविशराभविकजन -आवजम मुखबिचमै उही परिक्षामा उत्तम संयम धमों गाय म र्च" सोरान व चा हो स्वर राय कर्म्मशिखर को वज्र है हादशविधिसुखदाय सौनिकरै नि जसक्किसु उहीपरमराले उत्तममपधम्मो गाय अर्धे ॥ चौपाई ॥ उनमनपसवमाहिव