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चर्चास० पसमचारितहीम्मारैद्यायक चारित वारे चोदे कर्मवाचमें । २३| चारोगतिमेंच्चाश्रव द्वारम किन दोय विनांनरपचपन द्वार आहारक दोय विनात्रेपन विजेचे है। औदारिखदेोय होय आहारक बंधने पांचविन देवन के बावनकै। संच है। प्राहार व होयदायादा रिकनर नारी छ हौ विनाइक्यावननरक में प्रपंच है। चारो तिमां ही प्रेते प्राश्रव
निनमों सिद्धभगवान जहांना हीरं चहै । २४च्या रोगतिमंत्रेपनभाव व्यारा॥वै ३१|| सास्वतौ स्वभावपंचभावसिवंदत होतोनोगतिविनाना पचास होस है । दाय कके पाठ समकित विनामनपर्ययचारित दो ग्यारै विनपसूउनतालीस है। शुभले तीन नरनारी वेददेशयत एछ भाव विना नरक ते ती सहै । हीन तीनले श्या मंडवे रीभावना हि शुभलेश्यानर नारीसुर के चौतीस है। ८५। अथ षट लेश्या वा लेमिथ्यात नस्थान व्यापक लिए कसावीस बंधकी। सवैया ३१ | विकलत्रयस्चम साधारण प्र प्रजापति नरकगतिवान पूर्व नरक आव है। मिथ्यात्तमांहि लेश्या तिनवाधैर कसौस त्तौ नवौ पिनापीत केोत्तर सौभाव है। पसुगति द्यावयानपुर वीउ दोत चारि
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