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रहेर मियाँ चलन प्रात वन सहलान को किलमय रध्वनि कर तिका वरण जहां म्रमिमनोहर प्रति सुरंगान पधेरैने मकर मदनभंगा तहांस फललक्ष सीतल सुद्धा यजल टोरो र निर्मल व हा यासान हां शीतल कुंडमरे सुनीर नहीं मंद सुगंध चलै समी रत हांफ लै फूल बहस घनश्याम । तातै विज्ञातव न सहसा मानोरा से रथ ने फिरे नेमिनाथ ॥ सुनिसोरप उरद या सिंत्या द्वादशमनुप्रेक्षा सुभगचिंत्या भयभीतभयेभवंत संत देशभ वभोगदे हमै भयेउदास तोरीस व मोहनी जूफा सप्तवही लोकांतक देवप्राय पद पुय्यक्षेपि । निजसीसनायाः ४ प्रभु जोग्य विचारी यात राह करिऐन विसंवदेवाधिदेवयोकरि नियोग निज सदनजाय। तव चतुरनिकाय सुदेव माय ॥ ४३॥ रचिशिव का प्रभुतनक रिसिंगार बैठाय लिये निज कंध धारशिवतिय के बींदवने अनुपाल बीहर श्री मुक्ति ति या सुरूपादे प्रभुभक्ति स हि नमानंदधारि इंद्राणी इंदन चै जुसार मानं दमेघगरलग्पोमिस्ट जिहदे वितचक्षु होत पुष ४श ताये ईथेईध्वनिरही पर। सुरसुरीनचैसुर पति हजुर छमछम छम चरुवजेता घन घन