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अनुमजिनेश मिथ्यानमहर तुम ही दिनेशमा नुश नाथ •प्रवप्ररज राहा दीजै सुवासु शिव पर सुगेह ॥५५॥ घत्रा गिरनारी गिरंद सरद सुरनर वंद्यधरि आनंदनंदिन है। नरसुरसुख पावै शिवपुरजावै नि रबलसार गुन मंडिन है । उही श्री गिरनारिशिख रोपरिमुक्ति प्राप्रेभ्यो म नि र्विपामितिस्वा हा डिल जो बंदे मनसाय प्रर्चा गिरनार हो। सिद्धि सिद्धबहर दिल है सुखसा रही। शकरक पभोग्य सुजगधार हो । शा एल. शीर्वादासंवत सतगीस ऊप रित्रयवीस है। पोयं मास सितपस सुपरमजगीस है तिथिभ्प्रष्टमी रविवार प्रमलउ क्रूरंग ही। तादिनवंदै प्रचलराज सब संघ ही ॥ २ ॥ इतिश्री गिर्वार सजा संपूर्ण ॥ संवत्॥१॥ अथापि वरजीको प्रज्ञाभावा लिख्यते ॥ म ल।गिरिस मे देतेवीसजिनेश्वर सिवगए। मेर
संव्यापुनी तिहांने सिडूमरावं दमनबचकाय नपुंसिरनायके ॥ तिष्टौ श्री महाराज्य सवैत यकै । उड्री मेदसियरतै मुक्तिपधारे ज्यां की चर एक मल की स्थापनी प्रञ्चावृतराव खोय ●प्राननाम त्रममसन्निहितोभवभवबाट रे न्नधीकरणां ॥ खंदगीत सोहनकारी रतनजडि