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________________ ॥ रस पररसनां दंनदुष्टभ्प्रसंत दुर्जयहनै सव के जारा हो । ना के नि राहेत कुसममं गायरंजन नाएाही जा की सवा सनिहारयट प्रददौ रिश्प्रावैचाव सौ ॥ स मे दगिर परवीस जिनवर जिह अच्छा व सौ। उही समे सिवरपर्वत सेतीजे जिन मुनिसुक्ति पधारेजिन के चरणा कवल की पूजा काम बागा विनासनायपु निर्वपामि ती स्वाहा॥ मणिरंजनचक्षुप्रियभ्मतिमिष्ट हो। जिनराजन रनचदाय उतिमयुध्मा हो है निस्टहीतमरिचालकं चनविविधकंचनविविधव्यंजन लीजीरा सुद्धभाव सौ संमेदगिरपर वीस जि बरफ जिहर्ष उठाव सौं॥ उहास मे द सिबरपर्वन से चीजे जिन मुनिमुक्तिप धारे जिनके चरण कवलको प्रजासु द्यावेदनीरोग विनासनाय नैवेयं निर्वपामीति स्वाहा । निवैद्यं ॥ त्रिलोका गर्मित पीनता को मोह निजवस करलीयो •अज्ञानतममैप डपैौचेतनचतुरगतिभरमन की यो विनम हिमोह विद्वंस हो वै मारतिकरिचावसों ॥ ॐ हाँस मे सियरपर्वत सेतीजे जिनमुनिमुक्तिपथा रेजिन के जिन के चरन कवल की पूजा जितेमा हा धकार विनासनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। दीपं ॥ ६॥ सुभ-प्रगरांबरवास सुंदररूपप्रभु दिगंषेप
SR No.010419
Book TitleMahavira Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1115
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size56 MB
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