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साजाची सुखसै च दिजावैं यचदती उतरतीव हुंबरा मानिकदनेम मुक्ती चला २३॥ कैसें है बहुकूट उतंगा मानुपर सतगगरीप्रभंगा सी उच्चता कूदतनी है। प्रतशिव मगनीसरनी है।। २४। जहां पीरां चढ़ी है नर नारीतही चदा वाच कटप्रतिभारी जिजन रद्ध मसक्क थके थेडेलि माहि वैठि चलते थे ।। २५॥ सोमीरहीत ही पचसां चै॥ प्रागे च देिचादै नरकांचे श्री मरिहंत सि मुख बोमा रगध्यान चित्रनही डोलै ॥ २६॥ प्रनुक्रम चढत सिडूयल पहुंचे। पापपुंजभव संचित मुंचे भाग्योदयतेम बिनहां जावै भाग्यहीन दरसनन ही पावै ॥ २७॥ या चलते श्रीने मिजिनेश्वर नि वसुकर्म भए सिवई नरम रमनेक मुनीयाथ लतै सिद्धमए लश्विसुकर्म ननैः। २८ यातैपाव नक्षेत्र सुकहिए भवभव संचित घसवदहि ए जोभविमनवचतन करिवंदे भवमवसंचित पापनिकंदै २ छंदमडिल जेजाबी जनजी हिद्व्यवसुलेय के पंचास्तमभिषेक घरास करे बकै निरगंधसित सालिकु सुभचरुधरी दीपपफलन्नर्घय अनभविश्म करो ३० चंदगीता इमसज्यपरमधुरासुभर्विजननें
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