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| सपचेंद्रीसवघ्नास ठिसहमती नसे छत्तीस सैतीस तिहतीर सारे है। छत्तीसतै पच्यासी खा अधिक तीजा असनमोनाथमेो हि सवदुः खप्तौ उधार है॥ ६६॥ द्यात्तीयाकर्मकी ऋति सेतालीसनांम॥ सवैया॥मति श्रुतवधिमनपर्ययकेवल ग्यानपंचच्यावर शाग्याना वशीपंच भेद है। चतुमोच्च प्रवधिकेवल हासन चारिप्रावरणाचारि निद्रा निद्राषेद है। प्रचलाप्रचलाप्रचला स्त्यानगृह नाभेद दर्सनावरणी मोह दाईसवेदेहै। दान लाभ भोगउपभोगवल अंतराल पंचस वसेत्तालीस घातीयानिये दहे ॥ ६६॥थमोहकी कति पढाईस नाम सवैया इस अनंतानवेधी अप्रत्याख्यानीप्रत्याख्यानी से ज्वलन चौरीको धमान माया लोभ है। हास्यरति परति सोकभयजग्पसानारीनरसंठ एपचीस चारि तकैौक्षोभ है। मिथ्यात समै मिथ्यात समैप्रकत्तिमिथ्याततींनीदर्सन मोह दर्सन कौचा भहै। अठाईस मोहनीये जीवन का मोहतहेनासे यथाख्यातसम्यक चारित्रमोभहै॥६ ८ अथच्प्रधातीयाकी प्रकृति एकस। एकत या आठ कर्म की स्थिति उतकष्टजघन्ययथा | माता प्रसाना दोयवेदनी नरक पसूनरसुर-पावचारि उंचनीच गोत्र है। नामकी तिरान्