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चिंदजमुखज सुनें। जिनेंद्रस्य चापधरय च्य शिर धारी मनमथ वीर यांतै ए जो पहूपसौं हरौ मदन सरपीर॥६॥ पुष्पं ॥ कुंदकुंद बिस मी प्रसय निनीसनचैनतेयान् । जाज्याय सारै श्वरुभिः रुशादेनैः (जिने इशपरममन्ननेवेद विधिःसुधाहरननन पोया। जिन जित नैवेद्य सो। मिदैक्षुधादिक दोष चानियेां ॥ ध्वस्त्रौघ मादकत विश्व विश्वमोहांधकारप्रति घानदीप नादीपैकेन त्कांचन पात्र संस्यैौ। जिनेंद्रणासामा पापरदेखे सकला निसमैरीपक होत दीपक सौं जिन जती। निर्मलज्ञान उद्योत ॥ १० ॥ दीपं ॥ दुष्टाष्टकम्मैधन पुढेहीला संप ने भासुरध मकेतून धूपैर्विना निसुंगंध गंधर्जिनेंद्र बावकर है सुगंध कौं। धूप कहा वैसा या सेवन धूप जिनेसपै। कर्मदहन क्षय हो या१शा पंध सुभ्याद्दिलुभ्यन्मन साम्पगमन / कुबा दिबाद(स बलिनप्रभा वान फलैरलै मोक्ष फलाभिलाषै। र्जिने/२आयोजैशी करनी करै। सोने सा फल ले या फलसो जिन पदपूजती । निवैशिवफलदेय ||१४|| फलं | सदारिगंधाक्षतप जाते । नैवेददी पी मल पधमै फलैर्विचित्रैर्घन पुंन्य जो ग्यान जिनेंद्/१५॥ जल चंदन प्रक्षन पुष्याप्ररुवरु