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॥ अथ चरचा सतक लिख्यते।। प्रथम सर्वयस्तुति || जैसखाप लोक लोक इक उडवूतदेह स्तामल ज्या हाथलीक ज्या सरव विशेवै। छहोदर व गुरापरज कायत्र्यवर्तमानसमा दर्पननेम कासनासमल कर्मम हातमा परमेष्टी पांचौ विधनहरमालकरी लोकमामन वचन काय सि रलायमुवत्र्यानंदसदेहु धोक में। ॥ वेदेनि मिजिनंद चंदसवकैौ सुखदाई।व लिनारायण वे दिमुकट मशि सोभापाई। व्यत्तरइंद्र व त्तीसभुवन चालीसा आवे। रवित सिचक्री सिंह स्वसा चै वी साध्यावै। सवदेवनके सिरदेव जिन सुगुर नवे गुरदा यहै।। हुजैद पालम महाल पर गुशा नंतसमुदाय है।। २] इंद्रफ निद्रनरिंद्रपूजि तुमभागत्तिवढावै । वलनारायनॅवंदि मनसोभापा मुकर वे । चिनजाने जियभ्रमं जा निधिन सरागवसावै। ध्यानवानरिधिवांनामरपद आापक होवे। स वदेवन के सिर देव जिनसुगुर न के गुरदाय है।। हुजैद यासमम हाल पर गुरा अनंत समुदाय है।। ३ चंदौ आठ करोरलाय छप्पन सत्तानं । सहसचा रिसैासी एक जिनमंदि रजानानवसेवी स डिलाखत्रेपन सत्ताईस | वदौपतिमास र खसहनौस अडतीस व्यंंत रजोतिस नितसकल ली चित्यालेप्रतिमा नमीं । यानंदकारदुःखहारसव फेरिन ही भवन नभ४ लोकईसतनवात