Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vीतिकी धर्मपरी दानो रास. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमविजय महाराजविरचित धर्मपरीदानो रास. पावी प्रसिद्ध करनार श्रावक नीमसिंद माणेक. मुंबई. निर्णयसागर मुद्रायंत्रमा छापी प्रसिद्ध कर्यो. प्रथमावृत्ति. संवत् १९६९. सने १९१३. Printed by R. Y. Sledge, at the N. S. Press, 23, Kolbbat Lane, l'ombuy, and Published by Bhanji Mnya, for Shravak Bhinsi Manek, Maudvi, Saka Lane, No. 225-231, Bombay. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जिनाय नमः श्री पंचपरमेष्ठिन्यो नमः थ श्रीधर्मपरीकानो रास. डदा. प्रथम जिनेश्वर पय नमुं, वृषजनुं लंबन जास ॥ मरुदेवी नंदन रुषज, नाजीराय कुल तास ॥ १ ॥ अठार वर्ष यारा तषां सागर कोमा कोम ॥ गयो धर्म वाल्यो जिणे, तेह नमुं कर जोड ॥ २ ॥ यदि चारित्र श्रादरी, दीघो द्विधा धर्म ॥ मन वच काया वश करी, बेदी याठे कर्म ॥ ३ ॥ शिवपुरना वासी थया, अजरामर सुख ठाम ॥ चोवीशे तीर्थंकरा, तेहने करुं प्रणाम ॥ ४ ॥ समरुं श्रुतदेवी सदा, श्रापे वचन विलास ॥ तुष्टमान थाजो तमे, सफल फले मुज याश ॥ ५ ॥ गुरु दीवो गुरु देवता, गुरु तुठे | गम होय ॥ गुरु कहीए माता पिता, गुरुषी अधिक न कोय ॥६॥ जवियण जावे सांजलो, धरमाधरम विचार ॥ द्वेष बुद्धि दूरे करी, परीक्षा करजो सार ॥ ७ ॥ उत्पत्ति तेहनी Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरिणा उचलं, धर्मपरीक्षा रास॥वातो विविध प्रकारनी, श्राणी हरख उल्लास ॥णा सांजलतां सुख उपजे, मत नावे मन मांय॥सौ जाणे साचो धरम, नाख्यो तिमज कहाय॥ ए॥ ढाल १ ली. देशी चोपाश्नी. जंबूहीप जोयण एक लाख, जंबू वृदनी नामे साख ॥असंख्याता सायर द्वीप कह्या, केवली जाख्या ते में लह्या ॥१॥ जंबछीप मध्य मेरु जोय, सुदर्शन नामे ते होय ॥ बीजा पर्वत कह्या अनेक, मेरु लाख जोयणनो एक ॥२॥ तेथी दक्षिण दिश नणी कयुं, जरत देत्र ते शास्त्रे लयं ॥ पांचसे बवीश ने कला, बत्रीश सहस देश निरमला ॥३॥ साढा पचवीश आरज देश, बीजा अनारज कहीए लेश ॥ थारज धरम मरमनो जाण, म्लेड वर्णनो अनारज गण ॥४॥ पचास जोयणनो परमाण, रूपामय वैताढ्य वखाण ॥ एहवो पर्वत शाश्वतो मान, श्वेत वर्ण फलहलते वान ॥५॥ पचवीश जोयण नूमि मांहि, उंचो पचीश जोयण उगंहिं ॥ दश जोयण डुंगरथी जोय, दक्षिण दिश जणी ते होय ॥६॥ कह्यां नगर मोटां पचास, नगर पुंठ कोम गाम निवास ॥ मुख्य पचास नगरमां जेह, वैजयंतपुर कहीए तेह । ॥ १ ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥७॥ बार जोयणनो लांबो श्रने, नव जोयणनो पोहोलो पडे ॥ गढ मढ मंदिर पोल प्रकार, सोहे उलाल श्रागार ॥ ॥ वाव्य कुवा सरोवर जिहां, जिननां शिवनां मंदिर तिहां ॥ धर्म तणी पोशालो घणी, एवी नगरी विद्याधर तणी ॥ ए॥ वसे विप्र विद्याना धणी, वनिता रूपे रलीधामणी ॥ वणिक करे मोटा व्यापार, वस्तुना नाना अंबार ॥१०॥ बावन वीर तणां त्यां स्थान, वित्तधारीनां मुख पर वान॥ नव नारु नव कारु लोक, वस्त्र पड्यां पचरंगी थोक ॥ ११ ॥ विद्या शक्तिए चाले आकाश, विमान रचना जाणे श्रावास ॥ तीर्थयात्रा करतां दिन जाय, पुण्ये प्राणी निगमे श्राय ॥ १२ ॥ तिण नगरी जीतारि नूप, अद्भुत इंश सरिखं रूप ॥ न्यायमारगमां चाले राय, रामचंड उपम कहेवाय ॥ १३ ॥ राय तणी राणीनुं नाम, पवन-| वेगाथी वाधे काम ॥ दंपति बेहुने वाध्यो नेह, हरख थाये जिम थावे मेह ॥ १४ ॥ रूपे अद्जुत दीसे नार, इंशाणी जाणे अवतार ॥ बेने धर्म तणो ने राग, केवली जाख्यो पाले माग ॥ १५॥ एम जोगवतां सुख अथाग, श्रावी उपन्यो कर्मने नाग॥ राणी कुखे थया नव मास, प्रसव्यो पुत्र सफल यश् श्राश ॥ १६॥ उडव महोदव कीधा घणा, साजन आव्या पोता तप्पा, जमाड्या जोजन पक्वान, ते साखे थाप्यु Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरिवभिधान ॥ १७॥ मनोवेग नामे कुमार, देखी रंजे सहु नरनार ॥ जणी गषीमें प्रौढो थयो, मात पिता मन थानंद जयो ॥ १७॥ शीखी विद्या मवनवी रीत, मीतुं बोले वाधे प्रीत ॥ वन उपवनना खेले ख्याल, जीव जापाना जोवे फाल ॥ १५ ॥ जमी मूलीना जाणे नेद, मंत्र जंत्रथी पूरे उमेद ॥ ढाल नेमविजये ए कही, प्रथम खंडनी पहेली सही ॥२०॥ | जो वैताढ्यगिरि यकी, उत्तर श्रेणि कहाय ॥ दश जोजन पूरे कह्यां, साउ नगर समुदाय ॥१॥एक एक मगर प्रत्ये कह्या, कोक कोम गाम ॥ मानव लोक वसे। तिहां, विद्याधरनां गम ॥५॥ साठ नगरमां शोजतुं, नयर विजयपुर नाम ॥ लंक समोवम जाणीए, अलखत अजिराम ॥३॥प्रनास नामेनूपति, पाले राज श्रखंग॥ मान्य करे मिथ्यातने, पापी मांहे प्रचंग ॥४॥ विपुला राणी तेहनी, सुख जोगवतां सार ॥ पुत्र थयो एक एडवो, पवनवेग कुमार॥५॥ जोवन पाम्यो अनुक्रमे, मिथ्यामतनी बुद्धि ॥ माने नहीं जिनधर्मने, एहवी जेनी शुद्धि ॥६॥ विद्या तणी शकते लाकरी, उमी जाय थाकाश ॥ फिरतो हरतो यावी, मनोवेगनी पास ॥ ७॥ बे जण || ॥ २ ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेग एकग, बहु बंधाणो नेह ॥ नित्य आवे एकेकने, फरी फरीने मेह ॥ ॥ वातो विविध प्रकारनी, करता माहोमांद॥धर्म वखाणे आपणो, अन्यो अन्य उबांद॥ए। ढाल बीजी. रे जीवमा दीधानां फल जोय-ए देशी. मनोवेग कहे सांजलोजी, जैनधरम जग सार॥ केवली जाषित निरमलोजी, उतारे नव पार रे ना ॥ धरम समो नहीं कोय ॥ ए आंकणी ॥१॥ दान शीयल तप नावनाजी, धर्मना चार प्रकार ॥ जीवदया जतने करीजी, जे पाले नरनाररे ॥ ना ध० ॥२॥ सुक्षम बादर जाणीएजी, त्रस थावर दोय जीव ॥ सन्नीई श्रसन्नीजी, संमुर्छिम गर्नज हीवरे ॥ ना ध० ॥३॥ अनेक नेक धर्मनाजी, कहेता नावे पार ॥ तव पवनवेग बोलीउजी, ढुं नवी जाणुं लगाररे ॥ लाए ध॥३॥ त्यांची बेजण श्रावीयाजी, पुष्पदंत गुरु पास ॥ अध्यारु आदिनोज़ी, नात्र नणावे तासरे ॥ ला ध० ॥५॥ जणवा बेग बे जणाजी, ज्योतिष वैदक सार ॥ मंत्र जंत्र की मूलीजी, वेद शास्त्र अपाररे ॥ जा ध० ॥६॥ जणी गणी प्रौढ़ा थयाजी, माम्या परम थानं ॥M मनोवेग भावक जलोजी, प्रवनवेग मिथ्या कंदरे॥ना ध॥७॥ विखाने वेसी बोय Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरिचालीश्राजी, समत क्रीमारे काजः ॥ कुल पर्वत वाब्यो नदीजी, सर बह गिरि सीर ताजरे ॥ जा ध० ॥ ॥ गीत नृत्य गाता फरेजी, स्नान जोजन तंबोल ॥ हास्य विनोद ॥३॥ कौतक करेजी, एक एकनो राखे तोलरे ॥ ना ध० ॥ए ॥ एक दिन मनोवेग बोली-I7 उजी, सांजल ना तुं वात ॥ थापण कीजे पारजी, धर्म पापनी तांतरे ॥ ना० ध ॥ १० ॥ सारनूत संसारमांजी, जैनधरमनोरे जोग॥जो तमे ते पालो सहीजी,पामशोy बोहोलो नोगरे ॥ना ध॥ ११॥ पवनवेग एम सांजलीजी, बोल्यो नहीं मुख वाण जाणे मनमां प्रीतमीजी, तुटे बोत्ये ताणरे ॥ ना ध॥ १२॥ मनोवेग मन चिंतवेजी, बुद्धि करुं को देव ॥ मिथ्या धंधे ए पड्योजी, नवी माने जिनदेवरे ॥ नाण ध॥ १३ ॥ विमाने बेसी एकलोजी, आकाशमारग जाय ॥अढीलीप मांही फिरेजी जात्रा करे जिनरायरे ॥ ना ध० ॥ १४ ॥ अनुक्रमे फरतो श्रावीजी, मालव देश मोकार ॥ उजेणीने परिसरेजी, विमान थंन्यु तेणी वाररे॥ ना ध० ॥१५॥ वासुपूज्य मुनि केवलीजी, दीग त्रिजुवन वाम ॥ हेगे श्राव्यो उतरीजी, वांद्या मुनिने तामरे ना० ॥ ध॥ १६ ॥ धर्मकथा मुनिवर कहीजी, सांजली हरख्यो राय ॥ श्रावकव्रत सुधां लहीजी, वली वली प्रणमे पायरे॥ना ध० ॥१७॥ कर जोडी करे विनतिजी, ॥३॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नखामिन् तुं अवधार ॥ पवनवेग मुज मित्र जी, तेहनो कहो विचाररे ॥ ना धo १७॥ जव्य जीव ने तेहनोजी, किंवा अन्नव्य नर एह ॥ कदाग्रही माने नहींजी, जिनवर वचनज तेहरे ॥ जा ध० ॥ १ए ॥ मुनिवर कहे तुमे सांजलोजी, मनोवेग राय सुजाण ॥ नेमविजय ढाल बीजीएजी, प्रथम खंमनी परमाणरे ॥ ना ध० ॥ . उदा. NI पवनवेग तुज मित्र जे, उत्तम जीव ने तेह ॥ नव्य जीव करी जाणजो, एमां नहीं संदेह ॥१॥ ते माटे तमने कडं, एनो एक उपाय ॥ पामलीपुर दक्षिण दिशे, तुमे जाजो तिणे गय ॥२॥ बिडं बंधव मली एकग, अपूरव करीने वेश॥वादी लोक वसे तिहां, Nउरधर दक्षिण देश ॥३॥ ब्राह्मण नाती मली तिहां, जाग जग्ननो ठगम ॥ श्राडंबर अधिक करी, करे होमनां काम ॥४॥ होमे हिंसा डे घणी, काय विराधन थाय॥ पंचेंजि जीव मोटका, होमे अग्निमांय ॥५॥ त्यां तुमे वाद करो जइ, विप्रना उतारो नाद ॥ लान थशे तुमने घणो, जब सांजलशे साद ॥६॥ गुप्त राखजो जिनधरम, नाखजो मरम पुराण ॥ अगम थर थापा जश्, केजो कथा कुपुराण ॥ ७॥ पवनवेग १ अहंकार. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरि० ॥४॥ तुम मित्रनो, जाशे मन संदेह ॥ जैनधरम आदर करी, पालशे तव सही तेह ॥ ८ ॥ वाणी मुनिनी सांजली, दरख्यो हयमां मांय ॥ प्रणमीने चाल्यो तुरत, बेसी विमान उढांय ॥ ए ॥ मन चिंता करतो घणी, बंधव मलशे कयांहिं ॥ जोवाने फिरतो फिरे, | देश विदेशज त्यांहिं ॥ १० ॥ एम करतां घ्यावी मल्यो, पूर्वी कुशलनी वात ॥ मोहे विंध्या बे जणा, थया दख सुख सात ॥ ११ ॥ ढाल ३ जी. फतमल पाणीमा गश्ती तलाव, लश्कर थायो हामा रायरो-ए देशी. वीरा मारा पवनवेग कहे वात, आज मुने दरख वधामणा ॥ वीरा मारा जोयां में गमोगम, साजन पूब्या में तुम तथा ॥ १ ॥ वीरा मारा घ्यावी मल्या मुने आज, एता दिवस तुमे क्यों दता ॥ वीरा कहो धुरथी ते वात, की हां जइ श्राव्या थया बता ॥ वीरा० ॥ २ ॥ वीरा मनोवेग कड़े तव एम, देश विदेशे हुं जज्यो ॥ वीरा कौतिक दीठां अनेक, छाढीद्वीप मांहे हुं रम्यो ॥ वी० ॥ ३ ॥ वीरा काश्मीर थाने गुजरात, गौम चौड सोहामणां ॥ वीरा जोट आमीर सोजीर, कुंकण कलिंग कनोज तषां ॥ वी ॥४॥ वीरा मलबार सोरठ दालार, हीरंजज मुलतान जाणीए ॥ वीरा अंग वंश कुल्यंग ति खंग १ ॥४॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M व्यंग, मरुधर देश वखाणीए ॥ वी० ॥ ५ ॥ वीरा वागड बाट कर्णाट, कानड मेवाम माळवो ॥ वीरा वैराट वच्छ कच्छ नाम, कजळ नेपाळ जाळवो ॥ वी ॥३॥ वीरा कणवीर कानन देश, काबील बील्यंग मेवातमां॥वीरा गंधार वैदर्जनोगम, बबर कामरु जातिमां ॥ वी० ॥ ७॥ वीरा जोतां जोतां जग मांदे, फरतो दक्षिण दिश श्रावी ॥ वीरा पाडलीपुर नगर मांहे, दी। हरख बहु व्यापी ॥वी॥ ॥ वीरा बार जोयणने विस्तार, नयर पाडलीपुर जाणीए ॥ वीरा चार पोळ तुंग प्राकार, गढ मढ कोरणी वखाणीए ॥ वी० ॥ ए॥ वीरा चोराशी चोवटां बजार, हाटनी श्रेणी सोहामणी । वीरासात नूमि मोहोल श्रावास, गोख ऊरुखे चितरामणी ॥वी॥१॥ वीरा माणिक मोती व्यापार, रतन प्रवालानी नहीं मणा ॥ वीरा हीरा कवेर सुवर्ण, वणिज चलावे वणिक घणा ॥ वी० ॥ ११॥ वीरा ब्राह्मण वरण विशेष, विद्या नणावे विद्यारथी॥ वीरा वेदीया वेद विचार, सांजले बेग खारथी ॥वी॥ १५ ॥ वीरा यज्ञ करी मांड्या ५ याग, मध मदिरा दूध दही घणां ॥ वीरा ज्वलित खारेक खांड, सरसव घृत टोपरां तणां ॥ वी० ॥ १३ ॥ वीरा जोगी तापस संन्यास, तेहना मठ रलियामणा ॥ वीरा के देवल दीसे अनेक, ब्रह्मा विष्णु महेश्वर तणां ॥ वी० ॥ १४ ॥ वीरा हनुमंत गौरी Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरि० ॥ ५ ॥ गणपति, यद शेषनाग ने नागणी ॥ वीरा जवानी खेतरपाल, चंडी चामुंडी नरसिंह धणी ॥ वी ॥ १५ ॥ वीरा गम गम देवल पोशाल, गीत नृत्य वाजिंत्र घणां॥ वीरा वादी विविध प्रकार, वेद निर्घोष बोले जणां ॥वी० ॥ १६॥ वीरा| नक्ति करे नोला लोक, घरघर पुराणनी वारता ॥ वीरा जंगम सादज सैव, नाट नोजक दिल गरता ॥ वी० ॥ १७॥ वीरा नगर विलोकतां वार, लागी कतुहल जोवतां ॥ वीरा बोल्यो पवनवेग मन, केम चाल्युं मने मेलतां ॥ वी० ॥ १७॥ वीरा मित्रनां लक्षण एह, सुख फुःख नेला ते जोगवे ॥ वीरा प्रीत बंधाणी होय जेह, रुडे प्रकारे लोगवे ॥ वी० ॥णा वीरा मित्रा साची तेह, तेडीने साथे संचरे ॥ वीरा नेमविजय कहे एम, ढाल त्रीजी दिल एम ठरे ॥ वी० ॥२०॥ - उदा. पयने पाणीनी परे, प्रीत रीत कही एम ॥ स्वारथ कीधो तुम तणो, कूडो दीसे | प्रेमं ॥१॥ पुष्ट हृदयना बो धणी, बोलो मीग बोल ॥ निश्चे निरवाहो नहीं, कोमीनो तुम तोल ॥२॥ विश्वासघाती होय जे, कृतघ्न कहीए तेह ॥ गुण अवगुण जाणे || नहीं, उरजनना गुण एह ॥३॥ नाश् तुमे खोटा सही, (मुज) मूकी जोया देश || Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाडलीपुर जोवा तणी, मुजने होंश विशेष ॥४॥ देखामो नहीं जो तुमे, रुसणो करशुं एम ॥ श्रमे जाशुं घर थापणे, मुख नवी जोशुं तम ॥५॥ मनोवेग बोल्यो तिहां, मित्रजी म करो रोष ॥ जाशुं आपण बे जणा, जो जे तुमने शोष ॥६॥ पामलीपुर| तुम दाखवू, हश्डे राखो हाम ॥ कशी न करशो शोचना, करशुं सही ए काम ॥ पवनवेग ते सांजली, थयो मन्न रलियात ॥ बे जण बेसी एकठा, करवा मांमी वात ॥ निज घर जश् परवारीने, चालो जए तांहिं ॥ शोने ने शणगारथी, अद्भुत तरु उपनांहिं॥ए॥ परठण करीने उठीश्रा,श्राववा निज श्रावास ॥ मनोवेग लटपट करी, मित्र तेडी तास ॥ १० ॥ ढाल चोथी. ते तरियारे ना ते तरिया-ए देशी. उष्ण पाणीए स्नान करावी, देवपूजा कीधी रंगेरे ॥ चुधा चंदननी अर्चा कीधी, थनोपम वस्त्र पहेयां अंगेरे ॥ प्रीतिनी रीत जुञ्ज तुमे ना ॥१॥ ए आंकणी ॥ नोजन करवा बे जण बेग, नेला साजन मांहेरे ॥ पीरसवा मांडी सुखडी सारी, १ठराव. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरिणअनोपम अधिक उबांहेरे ॥जी॥॥ घेवर मोतीचूर ने लासु, खाजां खुरमां ने पूरीरे|| ॥ साटां फीणी हेसमी मरकी, जलेबी मेसुब चूरीरे॥प्री० ॥३॥सेव सुंहाली लापसी ताजी, खीर खांड श्रांबां केलारे ॥ अखोड जाख ने खजुर खारेक, सुगंधी शाको नेलारे ॥प्री० ॥४॥ कुरदाली दधि दूध उपर, घृत जानी परनालरे॥ सालेवां पापड तली वमी, जमी उठ्या तत्कालरे ॥ प्री० ॥५॥ पान सोपारी लवींग एलची, मुख तंबोल दीधां वारुरे ॥ कपुर वास्यां नीर मंगावी, शौच थया चालवा सारुरे ॥ प्री०॥६॥चंदन कपुर केशर घोली, अंग विलेपन कीधरे॥कुसुममाला पहेरी कोटे, मुहूरत वेला लीधरे ॥ प्री० ॥७॥साज बेश्ने सामग्री कीधी, विमानमा बेसी तामरे ॥ श्राव्या ततक्षण पामली परिसर, दी मनोहर ठामरे ॥ प्री० ॥ ॥ उतरी हेग विमान मांदेथी, पदेयां वस्त्र ते साररे ॥ माथे मुकुट काने कुंमल, कोटे मोतीनो हाररे ॥ प्री० ॥ए ॥ बांहे बाजुबंध बेरखा बांध्या, मुषिका कटी कंदोरारे ॥ पाये मोजडी सोल शणगारे, वशीकरण पासे मोहोरारे ॥प्री०॥ १० ॥एकने मस्तक खडनो जारो, बीजाने मस्तक काठीरे ॥ हाथ कोहामो दातरमा लेश, बीजा हाथमा लाठीरे ॥प्री० १नात दाल. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INI ११॥ रूप कबाडीनो करी थाव्या, नगर प्रवेश ते कीधोरे ॥रूप जोश्ने अचंबो पाम्या, लोकने आशिष दीधोरे ॥प्री० ॥ १२ ॥ नेरी वजाडी मोटे सादे, घंटानाद |सुपायोरे ॥ पूरव दिशे वादीनी शाला, जोवा थनेक लोक यायोरे ॥प्री० ॥१३॥ सिंहासन बेग बे लाइ, अचरिज सहुने आवेरे ॥ गुण गिरथा बेहु पुरुष अनोपम, |किहांधी आव्या किहां जावेरे ॥ प्री० ॥ १४ ॥ सारा नगरमां शब्द सुणायो, नेर घंटानो नादरे ॥ छिज सघला सांजलीने श्राव्या, करवा विद्यानो वादरे ॥जी॥१५॥ |वादी कहे अमे वाद करीशु, ज्ञानी कहे जोशुं वेदरे ॥ एहने पूबशुं जो तुमे जाणो, तो कहो मांहेलो नेदरे ॥प्री० ॥ १६ ॥ जोतिषी जंपे जोष अमारो,जो काढो कोश दोषरे ॥ सवालाख ज्योतिष मान बे, केतोक केशे जोषरे ॥त्री०॥ १७॥ जट्ट कहे। श्रमे भारत मांहेलो, गहन अरथ पूढी लेअ॒रे । कवि बोले श्रमे बंदनी जाति, पूढीने| देशोटो देशुरे ॥ प्री० ॥२०॥ व्यास वदे अमे पूराण वातो, जाणुं केम हवे जाशेरे ॥ कामी कहे अमे कामने जाएं, श्रम बागल खष्ट थाशेरे ॥प्री० ॥ १५ ॥ वैद कहे अमे नाडीनी विधिमा, मोगशुं एहना होमरे ॥ व्याकरणी कहे बाद ते बम, केम काशे पकशे खोडरे।पी० ॥२७॥ पाक पंख्या बोख्या तलखिणे, डीक पाटुना। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरिप्रहाररे ॥ ९हुंकार करता याव्या, अनुक्रमे सहु तेणी वाररे ॥ प्री० ॥१॥ क्रोध मान माया लोज जरीया, राग द्वेषनां गेहरे ॥ पहेला खंडनी ढाल चोश्रीमां, नेमविजय कहे एहरे ॥प्री० ॥२॥ उदा. तखत उपर बेठा चढी, दीगे सहु परिवार ॥ थालोचे मनमा तिहां, ए कुण कहीए कुमार ॥१॥थानूषण अधिके करी, पहेर्या सोल शणगार ॥ स चं नागेंड ए, अथवा देवकुमार ॥२॥ अन्यो अन्य सांसे' पड्या, जक्ति करे बहु नेव ॥ जगन्य जागना होमथी, श्राव्या सही ए देव ॥३॥ पुण्य थापणां पाधरां, आव्या परमेश ॥ तुष्टमान थाशे सही, धर्या अनोपम वेश ॥४॥ कोइ कहे ए ने सही, नारायण, रूप ॥ आपण सहुने तारशे, पड्या बीए जवकूप ॥ ५ ॥ कोइ कहे महादेवजी, श्राव्या श्रापणी सेव ॥ हरहर मुख जपे सहु, सहुथी श्रधिको देव ॥ ६॥ कोइ कहे ब्रह्माजी तणो, अनुपम रूप थाकार ॥ ब्रह्मलोकश्री श्रावीया, तारे सहु नरनार ॥ ७॥ कोई कहे ए इंस, को कहे सूरज चं ॥ को वासी पातालनो, १ संशयमां. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेषनाग नागें ॥ ७॥ द्विज पनीया सांसे सहु, प्रणमे वारोवार ॥ नाव जगति || करतां घणी, कलना न पमी लगार ॥ ए ॥ विप्र एक बोल्यो तिहां, सघला दीसो मूढ ॥ प्रणति करो जो तमे घणी, गुण नवी जाणो गूढ ॥ १० ॥ विष्णु रूप जग ए, नहीं, शंख चक्र नवी पास ॥ ईश्वरनुं रूप केम कहो, त्रिशुल त्रिलोचन तास ॥११॥ चार वेद ब्रह्मा मुखे, अज्ञानी तुमे लोक ॥ शुज शणगारो देखीया, काष्ठ उपाडे थोक ॥१॥ ढाल पांचमी. था चित्रशाली था सुख सज्यारे, जो मन माने तो करो बजारे-ए देशी. अकल सरूपी दीसे बे एहरे, करीने विचार पूबशुं तेहरे ॥ साच जूनुं पारखं कीजेरे, नहींतर एजेने देशोटो दीजेरे ॥१॥ ब्राह्मण सघला बोल्या वाणीरे, कवण| नगरीथी आव्या जाणीरे ॥ कवण जातिना बो तुमे नारे, किण कारण श्राव्या रूप बनारे ॥२॥ कवण धरम करो डो साररे, कवण शास्त्र नएया गुण धाररे ॥ वाद करो श्रमशु निरधाररे, तो श्रम उपजे हरख अपाररे ॥३॥ मनोवेग कहे सांजलो विप्ररे, अमे बीए कबामी दीप्ररे ॥ वाद कहो केम कीजे तुमशुरे, तमे सहु श्राव्या । मलीने श्रमशुंरे ॥४॥न्याय पुराणनी नवी जाणुं वातोरे, धरमाधरमनी न बुर्छ तांतोरे॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरिव माहे रोऊमा जेम जीवरे, ते सरिखा अमे ढुं सदैवरे ॥५॥ द्विजवर तव कोपा लानल थाएरे, जो नवी जाणो तुमे बेहु कांएरे ॥ तो घंटानो केम कीधो नादरे, मेरी वजाडी पाड्यो तुमे सादरे ॥६॥ गर्व घणो आपी मन मांहीरे, ऊंचा चढी बेग बो उछांहीरे ॥ अति घणो कीधो तुमे अन्यायरे, नरम थर बोलो हवे न्यायरे ॥॥ मनोवेग कहे अमे एमरे, नाद कीयो ते कौतुक जेमरे ॥ ते माटे तमे सहु मली श्राव्यारे, तुमने अमे बे दिलमा नाव्यारे ॥ ॥ जो न गमे सिंहासन पर बेगरे, तो श्रमे उतरी बेसुं देगरे । रीस न करो अमने तुमे देवरे, ज्यांथी श्राव्या जाशुं ततखेवरे ॥ ए॥ राजी थश्ने विप्र कहे नारे, रूप देखीने कहीए चित्त लारे ॥ वस्त्र थानूषणे दीसो ताजारे, मीगबोला मोटी माजारे॥ १० ॥नीच काम कां करो कुमाररे, खड इंधणना थाणो नाररे ॥ साच कहो जूतुं मत बोलरे, जेहवा रूपे बो तेहवो तोलरे ॥ ११॥ नाति जातिनो कुल मत लोपोरे, साचुं कहेतां रखे तुमे कोपोरे ॥ | मनोवेग कहे तुमे दो मोटारे, न्याय पुराणमां अमे ढुं खोटारे ॥१२॥ नीच तणां श्रादयाँ श्रमे कामरे, केम पुराय विवादे हामरे ॥ बहु बलवंता संगाते वादरे, कीजे तो वधे विखवादरे॥ १३ ॥श्रमे एकाकी परदेशी लोकरे, जे बोर्बु ते सर्वे थाए फोकरे॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सगां साजन नहीं हां कोयरे, तो श्रमारो साखी कोण होयरे ॥ १४ ॥ ब्राह्मण सहना बोल्या तेणी वाररे, तुमे बेहु नाश् देवकुमाररे ॥ साची वात कहेजो निरधाररे, कयां । पुराण साचां सिरदाररे॥१५॥ न्याय नीति साची कहो वातरे, असत्य नाख्याधी होशे | घातरे ॥ मनोवेग कहे सांजलो वाचरे, घात होये बोलतां साचरे ॥१६॥ सोल मूठी नर कडो एकरे, साच बोख्याधी पाम्यो ठेकरे ॥ गरदन पर सोल मूठ खाधीरे,ते नर नीत रह्यो तिहां बांधीरे ॥१७॥ द्विज सघला तव कहे कर जोगरे, अमने सांजलवानो| NIबे कोडरे ॥ सोल्ल मूवीया नर तणी वातोरे, साच बोव्याधी केस पारयो घातोरे ॥१॥ मनोवेग बोल्यो गुणवंतरे, मलबार देश देशोमां संतरे॥ मंगलपुर नामे के गामरे,वृक्ष वाडीए करी श्रनिरासरे ॥१ए। अगर तगर जंचा ताबरे,श्रीफल फोफल फणस तमाबरे ॥ मरी लवींग सहकारनां गमरे, धनवंत लोक वसे तेणे गामरे ॥२॥ लमर नामे | कुणबी ने एकरे, रूपाणी नामे नार सुविवेकरे॥पहेला खंडती पांचसी ढाबरे,नेमविजय कहे थर उजमाखरे ॥१॥ उदा. मधुकर नामे पुत्र के, कोपी मूरख रीसाल ॥ निख परखं धन खोस्ने विणस्यो Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरि० ए॥ | खेती माल ॥१॥ एक दिन बापे पुत्रने, मोटी कीधी रीस ॥ कोप चढावी चालीयो, गयो गाम दश वीश ॥२॥ याहीर देशमां श्रावीयो, पिंपल नामे गाम ॥ धान खेत्रनां आणीने, ( खलां ) कीधां ठामोठा ॥३॥ मधुकर कहे लोको जी, (आ) धान तथा अंबार ॥ घरं चणा चोला घणा, मग मग्नो नहीं पार ॥ ४ ॥ देश तुमारामां सही, निपन्यां एहवां धान ॥ देश अमारे एहवां, निपजे फोफल पान ॥ ५ ॥ मरी लवींग ने एलची, श्रीफल केलां द्वाख ॥ अनेक वस्तु उपजे, आंबा केरी शाख ॥ ६ ॥ वात मधुकरनी सुणी, श्रचरिज पाम्या लोक ॥ एक कहे नवी मानीए, जे बोले ते फोक ॥ ७ ॥ पटेल तलाटी एम कहे, एहने कीजे केम ॥ ठाकोर तेडी पूबीए, करशुं कदेशे जेम ॥८॥ कोप करी ठाकोर कहे, खोडे' घालो एह ॥ बेदो नाक पटेल के', तलाटी बोले तेह |||| हाथ पाय बेदो परा, जूठाबोलो लोक ॥ तेह राखवो नवि घटे, कलंक मूके फोक ॥१०॥ ढाल बडी. राम सीताने द्वीज करावेरे, त्रणसें हाथ खाइ खणावेरे - ए देशी. देवो शेठ बोल्या दयावंतरे, स्वामी एह दीसे बे संतरे ॥ चीजडां चोरने बूसट १ रुमां. खंग १ ॥ ए॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीजेरे, एवडो ए काम केम कीजेरे ॥१॥ श्राउ ढींक गरदन मांहीरे, दीजे वात, कही सत तांहीरे ॥ राजा श्रादे वात सहु मानीरे, दीधी श्राव ढींक तेहने बानीरे IN||२॥ मधुकर चिंतवे मन मांहीरे, साच बोत्ये खाधो मार बांहीरे ॥ जीवतो निज लापूर जो जारे, तो एहवो मार नवी खाजरे ॥३॥ एम चिंतवी चाल्यो तेणी वाररे, वेगे श्रायो देश मलबाररे ॥ लवींग एलची मरी देखीरे, लोको प्रते कहे तव चेखीरे ॥४॥ सांजलो तुमे मलबारी लोकरे, वयण मारुं मत जाणो फोकरे ॥ एक शाहीर | देश के एहवोरे, में जश् जोयो ते कडेवोरे ॥५॥ घळं साली चणानी राशरे, मग मग चोला जव ते खासरे ॥ एलची ने लवींग सोपारीरे, शुं करीए जुवो चित्त धारीरे ) ॥ ६॥ मलबारी लोको सुणी कोप्यारे, मधुकरनां वयण ते लोप्यारे ॥ पूरव रीति तेणे कीधीरे, श्राठ मूठीनी मार ते दीधीरे ॥ ७॥ खोटाबोलो नर एहरे, अन्यो अन्य कहे सहु तेहरे ॥ लोक धागे कही सत्य वातरे, सोल मूठीनी खाधी घातरे ॥ ७॥ मलबारी लोके तेणे गमरे, सोल मूठी धराव्युं नामरे ॥ मनोवेग कहे विष श्रागेरे, साच बोल्ये वयर ते जागेरे ॥ ए ॥ निज निज देश तणी जे वाचरे, अवर देश न माने साचरे ॥ आपणा मत पागल जे वातरे, न गमे कोश्क थाय उत्पातरे Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरि० ॥ १० ॥ ॥ १० ॥ तेम तुम आगे कहीए वातरे, ते उथापो साची होय ख्यातरे ॥ एम करतां उपजे विरोधरे, यति वाघे मन मांही क्रोधरे ॥ ११ ॥ विप्र बोल्या सांजली वाणीरे, उपजे नहीं दुःखनी खाणीरे ॥ एवो अज्ञानी नथी यहि कोरे, कदेशे वात तुमारी जोइरे ॥ १२ ॥ मनोवेग कहे तुमे वादीरे, वाद करवाने उन्मादीरे ॥ शंका अम मन मांदे पहवीरे, मानो नहीं सही तेहवीरे ॥ १३ ॥ विप्र सांजलीने तव जंपेरे, साच कह्याथी कुण कंपेरे ॥ साच तो जे कह्यो गूढरे, अममां नहीं कोई मूढरे ॥ १४ ॥ मनोवेग अटो तुमे जाणरे, वात कहो साची परमापरे ॥ कहेजो कोइ वात विचारी रे, कोइ न करे मारी तारीरे ॥ १५ ॥ मनोवेग कहे सहु साथरे, तुमे सांजलो वि. याना आर्थरे ॥ मूढ़ उपर कथा कहुं जेहरे, जूठ बोल्या उपर तेहरे ॥ १६ ॥ कदेशुं कथा ते तो रुडीरे, मत जाणो तुमे कोइ कुडीरे ॥ कंठापुर एवं एक बाजेरे, नगर | अवरमांहीं विराजेरे ॥ १७ ॥ प्रजापाल बामे तिहां राजारे, तेहनी बे मोटी माजा रे ॥ ब्राह्मण वरना वासरे, वेद जणावे यति खासरे ॥ १८ ॥ नूतमति नामे बे एकरे, विद्यावंत विनय विवेकरे ॥ वरस पचास थयां वारुरे, निरधनमां सिरदारुरे १ जंकार. खंग १ ॥ १० ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १७ ॥ समस्त मलीने परणाव्योरे, जगनदत्ता नारीने लाव्योरे ॥ पहेला खंमनी ढाल ते बहीरे ॥ नेम विजये जाखी ते मीठीरे ॥ डदा. घर प्युं सघले मली, मंडावी निशाल ॥ ब्राह्मण पुत्र जणे घणा, जमण दीये कुरदाल ॥ १ ॥ जूतमति ब्राह्मण जलो, जगन जाग करे होम ॥ नगरलोक माने घणुं, राखे मनमां जोम' ॥ २ ॥ जगनदत्ता नारी जणी, क्रीडा उपर नाव ॥ गरढो मोह्यो बे घणो, खेले अवसर दाव ॥ ३ ॥ रात दिवस सुख जोगवे, विद्यानो अभ्यास ॥ देशी परदेशी घणा, माने वैदज व्यास ॥ ४ ॥ श्राव्यो एक विद्यारथी, देवदत्त बे नाम ॥ जूतमतिने वांदीने, बेठो जइ एक ठाम ॥ ५ ॥ नूतमतिए पूठीयुं, तुम श्राव्या कुण काज ॥ रूप सोमागे आागला, कहो अमने महाराज ॥ ६ ॥ देवदत्त तव विनवे, वे कर जोमी ताम ॥ श्रम श्राव्या जणवा जणी, तुम पासे सुप खाम ॥ ७ ॥ नूतमतिए राखीयो, मांड्यो शास्त्र अभ्यास ॥ वेद जणावे निरमला, रात दिवस ते पास ॥ ८ ॥ जगनदत्ता नारी थकी, करतां व्होली दास ॥ जोड मली बिहु सारखी, १ जोर. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरि० ॥ ११ ॥ | हसतां दास्य विलास ॥ एए ॥ इम अनुदिन ते बेहुने, बाऊयो बोहोलो नेह ॥ कांति कला वाधी घणी, रूप नोपम देह ॥ १० ॥ ढाल सातमी. सीता ते रूपे रुडी, जाणे थांबा माले सूडी हो सीता श्रति सोहे-ए देशी. एक दिन आव्या जण चार, मथुरां नगरीथी तेणी वार हो ॥ जावे जवि सुणो ॥ नूतमति तेरुवा सारु, विनति करे श्रावी ते वारु हो | जा॥ १ ॥ पधारो मारे देश, | सेवा चाकरी करशुं विशेष हो ॥ जा० ॥ अश्व अजामेध थाशे, मोटो जगन जाग कहेवाशे ॥ जा०॥२॥ तुम विना ते कोण जाणे, तेथे कारण मेल्या टाणे हो ॥ जा०॥ तिहां श्राव्या लोक अनेक, कोण जाणे जगन विवेक हो ॥ जा० ॥ ३ ॥ नूतमतिए दा वाली, साच वेपनी दीधी ताली हो ॥ जा० ॥ नारीने तेमी एकांते, शिखामण | दे जली जाते हो ॥ जा०॥४॥ घर मांही पोढजो राते, लंबन लागे कोइ वाते हो ॥०॥ ते तुमे मत करो काम, फरशो दरशो मां कोइ ठाम हो ॥ जा० ॥ ५ ॥ जोवनमां जोखम लागे, मोह वाधे मदन बहु जागे हो ॥जा॥ श्रति घणुं शुं कहुं तुमने, मास चार थाशे तिहां श्रमने हो ॥जा० ॥ ६ ॥ देवदत्तने बोलाव्यो, घर ए तुमने जलाव्यो हो ॥ खंग १ ॥ ११ ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना॥ शिखामण कहुँ ढुं सारी, एकली घरमां ने नारी हो ॥जा॥७॥ नणजो गण.. |जो ने रहेजो,मरजादे करीने वहेजो हो ॥ना॥राते श्रोटले श्रावी सूजो, तेमशो मां|| कोश् न पूजो हो ॥ना॥ ७ ॥ एम कहीने चाल्यो साथ,एक एकना ग्रहीने हाथ हो ॥ना॥ मथुरा नगरीमा पहोता, त्यां सहु साथ वाट जोता हो ॥ना॥ ए॥ मान दश बेसाड्या उगम, सहु लाग्या श्रापणे काम हो ॥नाणा घरे जगनदत्ता नारी, नव जोवन बालकुमारी हो ॥ना॥ १० ॥ देवदत्त विद्यारथी तेह, मांड्या घणो तेहथी सनेह हो ॥ना॥बोले जगनदत्ता नारी, मुजशुं राखो एकतारी होना॥११॥ गरढो गयो जे गाम, श्रापण बेहुनुं थयु डे काम हो॥ ना॥अस्थी' नारीने जाणी, देवदत्त बोले हवे वाणी हो । ॥ना॥१२॥गोराणी नाम कहावे, तेणे मनमा शंका आवे हो ॥ ना॥शंकरीए कर्मनी केम वातो, मेलीए वयण तुम जातो हो ॥ना॥ १३ ॥ हरि हर ब्रह्मादिक देव, कामे पीडाणा ततखेव हो॥ना॥ आपण बीए मानवी देह,त्रिकरण केम राखे तेह हो ॥ना० ॥१४॥तुम वयण केम लोपाए, ब्रह्महत्या मुजने थाए हो॥नाणा वेधक वयणे एम मलीयां, एक एकनां हृदयश्री नलीयां हो॥ ना० ॥ १५ ॥ गोराणी देवदत्त बात्र, कीमा करवा १गरजाल. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरिणा ॥१२॥ लाग्या सुख पात्र हो जा॥ बेहुनो सरखो मल्यो जोग, राति दिवस माणे नोग हो|| संग १ ना॥१६॥ एम करतां चारे मासे,गया बेहु जण बेसी विमासे हो ॥ना॥ श्रावशे तुम जव प्यारो, तव मुजने मेलशो न्यारो हो ॥ ना॥ १७ ॥ एकांते बेहु जण बेसी, वात करतां नारीव्हेसी हो ॥ना॥ तुमे दिलगीर मत था, मेदूं नहीं जीव जो जाउ हो । ॥ना ॥२०॥प्रपंच करुं एक एडवो, आपण नेलां रहुं तेहवो हो ॥ना॥ तो मुजने साची जाणो, तुमे दुःख हश्ए मत श्राणो हो ॥ जा॥ रए ॥ जगनदत्ता तव चाली, मध्य रात्रि काली करवाली' हो ॥ला पहेला खंमनी सातमी ढाल, नेमविजय कहे ततकास हो ॥ जाण ॥२०॥ उदा. मसाणमा गइ एकली, श्राण्यां ममां बे रंग ॥ एक मूक्युं निज ढोलीए, श्रवर उंटला चंग ॥१॥धन सघलो काढी लीयो, घरे लगावी याग ॥ मध्य रात्रि दो। नीकक्ष्यां, चाव्यां उत्तर नाग ॥२॥ मंदिर लाग्यु अति घ, मलीया लोक अपार ॥ करता हाहाकार त्यां, सर्व बल्यु तेषी वार ॥ ३ ॥ जल गंटीने उलव्यु, बल्यां दीगं| १ तरवार. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N one - IMIबेड निन्न । शोक करे ब्राह्मण घणा, थया खेदधी खिन्न ॥४॥राम राम सहु उचरे, सती शिरोमणि तेह ॥ मीगंबोली गोरमी, एहवी नहीं गुणगेह॥५॥ विष्णु विष्णु एक कहे, मोटो हुई श्रखत्र ॥ गुरुनक्ति विद्यारथी, जस्म थयो हिज पुत्र ॥६॥ शोक करे जन त्यां घणा, कीधां स्नान अपार ॥ ब्राह्मण सहु विचारतो, नफर मेलीए |सार ॥ ७॥ लेख लखीने ब्राह्मणे, नफर मूक्यो निरधार ॥ जूतमति श्रावो जलद, ढील म करो बगार ॥७॥ बली गयुं घर तम तणु, विद्यारथी वनिताय ॥ अगनिमां बलीयां बेहु, थयुं श्रघटतुं श्रांय ॥णा उन्ना नव रहेशो तिहां, पाणी पीवा काज ॥ दहन थयुं घर तुम तणुं, घणुं शुं लखीए राज ॥ १० ॥ ढाल आठमी. ढोलो ले मुख मारुरे, एहनी आंखमीए ऊलक्यो दारुरे,मारा धणुरेसवारे ढोला-एदेशी. | मथुरां पहोतो क्षिप्र, जिहां जूतमति ने विप्ररे । मारा परम सनेही सुणजोए टेक ॥ करी प्रणाम पत्र दीधो, नूतमतिए हाथे बीधोरे ॥मा॥१॥ शोक पाण्यो | लामन मांही, फुख दोहग उपन्यो त्याहिंरे मा० ॥ श्राव्यो कंठपुर शीघ्र, घर परजल्यो । दीगो विनय माण॥१॥ मूरबा यावी ततकास, विहां मलीयां बाल गोपालरे । माय Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . मैपरीकीधो सचेत तेणी वार, मांज्यो करवा पोकाररे । मा॥३॥ हैयुं दबे माथु कूटे, all हाहा दैव शुं चुटेरे ॥ मा॥ एहवी नहीं मले नारी, घरनुं सुख गयो हुँ हारीरे॥ मा ॥१३॥ ॥४॥ मस्तक मूबना केश, लोच करे गेडी वेशरे॥ मा॥थांसुनी धार विबुटी, पडी धाम जाणे लीधोखुंटीरे ॥मा ॥५॥जगनदत्ता सुण नारी, मुज मूकी गइ निरधारीरे॥ मा॥ तुंप्राणप्रिया गुण नारी,मुज दर्शन दे एक वारीरे॥मा॥६॥तुज चंद्रवदन हरीलंक, कनक कलश कुच शंकरे ॥मा तुज विण दीसुं हुं रंक, मुज मेली ग विण करे। मा० ॥७॥ अगनि देव तें शुं कीg, मुज रामा प्राण हरी लीधुंरे ॥मा०॥ अरे पापी तुं दैव ब्रह्म, हत्या कीधी तें सैवरे॥माण ॥॥ मुज हरि हर ब्रह्मा रुठ्या, सघला पड्या ते जूगरे ॥ मा०॥ करता गोत्रजनी सेव, ते नागे गुरुकुल देवरे ॥ मा ॥ ए॥ विद्यारथी तुं पवित्र, परफुःख जंजननो मित्ररे॥मा॥हाहा छिजवर पुत्र, किम रहेशे तुज घर सूत्ररे॥ मा० ॥ १० ॥ ब्रह्मचारी तुं धीर, परस्त्रीनो सहोदर वीररे॥ मा० ॥तुं सुतो उँटला तीर, तुज लाहे. बड्युं शरीररे ॥ मा० ॥ ११॥ मरजो ए ब्राह्मण पापी, मुज तेकी गया मीसापीरे ॥ मा० ॥ यज्ञ कारण सहु व्यापी, मुज घरधरणी जस्मापीरे॥ मा० ॥ १२॥ तिणे अवसर ब्राह्मण एक, श्रावी कहे वातो विवेकरे॥मा॥नारी कारण १३॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुमे एम, फुःख जोगवो बो खोटुं जेमरे॥ मा० ॥ १३ ॥ प्राये नारी कही ले खोटी, || कूड कपटनीमति ने डोटीरे॥माहैयानी वात नवि खोले, सनावे जूतुं बोलेरेमा॥१॥ बार धार श्रशुचिनां ठाम, लोजी निरदयनी हामरे ॥ मा० ॥ शोक करो किण काम, लोक मांहीं जासे तुम मामरे ॥मा०॥ १५ ॥ तुमे पंडित मोटा जानी, नण्या गण्या गे| गुण ज्ञानीरे ॥ मा० ॥धरी वैराग मन मांहीं, राम नाम लाजे उहीरे ॥ मा०॥ १६ ॥ नूतमति सांजली कोप्यो, ब्राह्मणनो वयण ते लोप्योरे ॥ मा० ॥ तुं शुं जाणे अजाण, मुज आगे वात परमाणरे ॥ मा० ॥ १७ ॥ हरि हर ब्रह्मादिक जेह, नारीने वश पड्या तेहरे॥ माण्॥श्रम सरिखा पाठक पंड्या, शास्त्र विद्यानी वाते मंड्यारे ॥मा॥१॥मति तुं अमने आपे, एहवी बुद्धि श्रमारी उथापेरे ॥ मा०॥ महा रांगना जा तुं हांथी, मति देवा श्राव्यो ने क्याथीरे॥ मा० ॥ २७ ॥ ते ब्राह्मण गयो एम वारी, नूतमतिए काबुद्धि विचारीरे॥मा॥पहेले खंडे कही ढाल श्राउ,नेमविजय कहे जुर्म गठ माणा०॥ बेहु तुंब हाथे प्रही, अस्थि घाल्यां मांहीं ॥ स्त्री विद्यारथी बे तणां, लश् चाख्यो| शाही ॥१॥ गंगाजी जात्रा जणी, मारग जातां गाम ॥ श्राव्यो एमां ए गयो, Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीपो विद्यारथी साम॥१॥ नूतमति जणी उलल्या, यावी लाग्यो पाय ॥ विद्यारथी खंग र हुं तुम तणो, तुम पंमित महाराज ३॥थपराधी हुँ ताहरो, गुनोह करजो माफ ॥ पगे लागवा श्रावी. मारा बो माबाप ॥४॥पापी में तुम नारीनं, हरण करीयु थांहीं। nावीने शहां रखो, देजो मुजने बांहीं ॥५॥ जूतमति सुणीने कहे, दीसे दासीपुत्र ॥ कुण तुं क्यांची आवी, धूरत दीसे कुत्र ॥६॥ बोले खोटं तुं सही, ब्रह्मचारी श्रम नार॥ देवदत्त विद्यारथी, एहनो नहीं आचार ॥७॥अस्थि डे ए बेहुना, कावम | मांही जेह ॥ गंगाजी माहे जश, तरतां मेलीश तेइ ॥ ॥ तेमी श्राण्यो घर नणी, देवदत्त कुमार ॥ झानी बेगे चिंतवे, ए कोण दीसे नार॥ए॥ जगनदत्ता मन चिंतवे, जानी थाव्यो पास ॥ पगे लागीने विनवे, अपराध खमजो खाम ॥ १०॥ ढाल नवमी. कपूर होवे अति उजलो रे-ए देशी. कामनी कहे खामी सुणोरे, संजालो पूरव प्रीत ॥ वमपणे परएया मुजनेरे, राखो ॥ १४ ॥ तेहीज रीतरे॥साजन सांजलजो सहु कोय ॥ए श्रांकणी ॥१॥ कोपे जानी कहे तिहारे, ||४|| तुं केहेनी कहे रांड॥ था गाम तणां लोक एहवारे, फोक बोले मांग मांगरे ॥सा Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7॥मुज रामा सती निरमलीरे, अगनिमां परजली तेह ॥ विद्यारथी मुज नारीनारेला अस्थि लइ जाउं पहरे॥सा०॥३॥ मनोवेगे कथा कहीरे, सांजलो विप्र विचार ॥al अज्ञानी तेणे बापडेरे, वचन न मान्यु साररे॥सा ॥४॥ नूतमतिए जेम कह्योरे, तेम तुमे करशो आज ॥ सत्य वचन मुज बोलतारे, नवी मानो गुणजाजरे ॥सा ॥५॥ कथा सुणी द्विजवर कहेरे, सांजलो तुमे कुमार ॥एवो नहीं अममा कोरे, स्त्रीमोही मूढ गमाररे॥सा ॥६॥ सत्य वचन तुम जापतारे, हिजवर नहीं थाणे खेद ॥ जे होय तेह कहोरे, श्रमे करी मानशुं वेदरे ॥ सा ॥ ७॥ तुमने देखी श्रम तणेरे, कौतिक उपजे श्राज ॥ राजकुमार रखिआमणारे, केम कीजे नीच काजरे ॥ सा ॥ रूप सोजागे रुयमारे, हीन करम वल। कांय ॥ बिहु वानां घटतां नथीरे, खरूप कहो वली तायरे॥ सा ॥ ए॥ मनोवेग तव बोलीरे, सांजलो जट्ट विचार ॥ एकमना मन श्राणजोरे, उत्तर देजो साररे॥ सा ॥ १०॥ राजकुमर अमे रुममारे, नीच करुं वली काम ॥ ते बेहु वानां घटतां कहुँरे, ब्राह्मण सुणजो तामरे ॥ सा ॥ ११ ॥ पूर्वापर विचारजोरे, करजो वचन विचार । विष्णुवाद कहुं रुपडोरे, संकेचे ते साररे । स० ॥ १३ ॥ जमुना नदी स्त्रीभावणीरे, तेह तणे उपक्छ । मोकुल पन विस्तार Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी बेरे, तिहां वसे श्रीकंठरे॥सा॥३॥ नारायण देव तुम तणोरे, चौद जुवन विख्यात॥ चौदनुवन मुखमां वसेरे, शत्रु तणो करे घातरे ॥सा ॥ १४॥ पुरुषोत्तम पवित्र जलोरे, चौद जुवननो राय ॥ लोक सहुने उधरेरे, वांदे तेह तणा पायरे ॥ सा ॥ १५॥ शंख चक्र गदा धरेरे, सारंग धनुष वली सार ॥ मस्तक मुगट सोहामणोरे, कंठे एकावल हाररे ॥सा ॥ १६ ॥ काने कुंगल कलकतारे, बढेरखा बांहिं अपार॥ सोल बाजूषण शोजतारे, गुण नवि लाने पाररे ॥सा ॥१७॥ दामोदर एहवो कह्योरे, अथवा साचुं के जूठ ॥ विप्र विचारी बोलजोरे, उचरीए नहीं कुठरे॥सा ॥ १७ ॥ पुराण प्रसिद्ध ए जाणीएरे, महीतल मोटो देव ॥तुम वचन मान्यां खरांरे, श्रमे करीए एनी सेवरे॥ |सा ॥ १७ ॥ ब्राह्मण तव सहु हरखीयारे, कर जोडी कहे सार ॥ साचां वयणां तुमे| कहोरे, खोटां नहीं लगाररे॥सा ॥ २०॥ ए वात साची श्रमे लडंरे, तुमे कही ततकाल ॥ पहेले खंडे मुनि नलीरे, नेमविजय उजमालरे ॥ सा ॥१॥ ..... उदा. |॥१५॥ मनोवेग तव बोली, सुणो हिजवर वाण ॥नंद गोपगोवाली, नीच कुले ते जाण १॥ गाय नेंस तेहने घणी, बालांनो नहीं पार ॥ ते सहु चारे कानुडो, वारु वन Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | मोकार || कानो कर काठी घरी, गले गुंजानो हार ॥ मस्तके फुल केशु तणां, खांधे कामल सार ॥ ३ ॥ वंसी वाये मुख रुडो, महुयर करे सुनाद ॥ नारायण गोवालीयो, गाइ करे वली साद ॥ ४ ॥ गोकुल गौलपीशुं रमे, गाढे तेहज, ढोर ॥ रुडो त्रिभुवन नाथ ते, नीच करम करे घोर ॥ ५ ॥ राजकुंवर रुमा अमे, नीच करम करुं जेम ॥ विश्वनाथ वली वीठलो, नीच करम कीयां तेम ॥ ६ ॥ सामान्य करम जे श्राचरे, ते केमं कहीए देव ॥ खोढुं के साधुं कहो, विप्र विचारो देव ॥ ७ ॥ तव ते ब्राह्मण बोलीया, सत्य वचन जे होय ॥ उत्तर दीधो जाय नहीं, वेद पुराणे सोय ॥ ८ ॥ अमे ते ( कहो ) किम लोपीए, तुमने करुं प्रणाम ॥ घटतां वचन वली कह्यां, गुणद तणां तुम ठाम ॥ ॥ ढाल दशमी. ated पाणी लागणो, काबिल मत चाल्यो - ए देशी. मनोवेग बोले इस्युं, पुराणनी कहुं वातो ॥ इस्तीनागपुर जाणीए, पांव पांच | विख्यातो ॥ १ ॥ जीम युधिष्टर अर्जुन, सहदेव नकुल कुमार ॥ पांच जाइ सुजट जला, १ चोटी. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ १६ ॥ राज पाले गुण धार ॥ २ ॥ दुर्योधन राज करे तिहां, कौरव शत जाइ साथ ॥ राज्यद्वेष आणे घणा, पांगवशुं लीए बाथ ॥ ३ ॥ एक वार कूम कपटे करी, जुवटे दायों | देश ॥ देशोटो बार वरस तणो, चाल्या धरी द्विजवेष ॥ ४ ॥ वैराट देशमां जइ रह्या, वैराट ती करे सेव ॥ गोकुल वाल्यो कौरवे, संग्राम कीधो तिथे खेव ॥ ५ ॥ पांव द्वारिकापुरी गया, नारायण भेट्या ते ॥ कृष्णे काज विमासीडं, मान द‍ राख्या गेट् ॥ ६ ॥ स्नेह धरी परणावीया, सुनद्रा अर्जुन ताम ॥ सुख जोगवे पांगव तिहां, सेव करे कृष्ण राम ॥ ७ ॥ श्ररजुने तव विनवीया, दामोदर ते राय ॥ काज करो तुम श्रम तणां भूतपणुं धरी काय ॥ ८ ॥ हस्तीनागपुर जाय, जांजवो कौरव धीश ॥ नगर पांच श्रापुं तुमने, यानंद घरी नामो शीश ॥ ए ॥ सेवावरती थइ रहो, जाइ कहो तुम देव || कर जोमी कहे त्रीकमो, काम करशुं मे देव ॥ १० ॥ डूतप लइ चालीया, हस्तीनागपुर पोत्या कान ॥ दासीपुत्र विदुर घरे, कृष्ण गया दीघां मान ॥ ११ ॥ श्रादर तेणे दीधा घणा, शाक ने जोजन दीध ॥ अवसर जोइ नेटणं, दुर्योधन राजानुं कीध ॥ १२ ॥ कौरवे मान दीधां घणां, पूब्धुं केम थाव्या कान ॥ नारायण तव बोलीया, सुणो वयष अमारां तान ॥ १३ ॥ डूत थइ अमे श्रवीया, खंग १ ॥ १६ ॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करजो पांडवशुं प्रीत ॥नगर पांच खेउ तुमे, सेवा करजो ए रीत ॥१४॥बोल अमारो मानजो, सबला पुरुषना पाय ॥ सत्य वचन कहुं बुं अमे, नहीं तो मराशो राय ॥१५॥ उर्योधन तव बोलीया, फेहुं पांझवनां गम॥ विष्णु एवं मत कहो, नीच करमनां काम ॥ १६ ॥ नाग पांचे पांडव तिहां, पेग तुमारे गेह ॥ काज करो तेहनां घणां, दूत थश् श्राव्या जेह ॥ १७ ॥ बीजु अघटतुं तमे कर्यु, नीच घरे जोजन कीध ॥ दासीपुत्र विपुर घरे, मुंडापणुं ते लीध ॥.१७ ॥ पांडव छूत थ श्रावीया, गकोर फीटी थया दास ॥ कठिण बोल तुमे कह्या, फेडं तुम तणा वास ॥ १५ ॥ पांगवने कहेजो तुमे जश, करजोसंग्रामनी त्यारी ॥ ढाल दशमी पहेला खंडनी, नेमविजये कही सारी॥२०॥ - उदा. सांजली नारायण वयण, श्राव्या निज श्रावास ॥ पांमव तेमी एम कहे, हवे जुध करशुं तास ॥१॥ कटक करी चाल्या तिहां, कौरव उपर तेह ॥ अर्जुन कहे केशव सुणो, रथ खेमो तुमे एह ॥२॥सारथी थाजो अम तणा, अमे थाशुं फुकार ॥ कौरव तणा कटक जणी, माथे पडशे मार ॥३॥ गोविंदे त्यां हा जणी, रथ चडी १ नाश करूं. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ १७ ॥ | बेठा त्यांहिं ॥ रास परोणो कर ग्रही, हवे रथ खेडे श्रांहि ॥ ४ ॥ कौरव सेना उपरे, मार पमी तेणी वार ॥ पांच पांव जय पामीया, जगमां जस विस्तार ॥ ५ ॥ जीती निज घर श्रावीया, पहोता निज निज ठाम ॥ कथा पुराणे ते कही, मनोवेग कहे तमाम ॥ ६ ॥ ब्राह्मण सढुको सांजलो, पांडव दूत मोरार ॥ गामीत करम कर्यो सही, नीच करम श्राचार ॥ ७ ॥ नारायण रुखमणी बने, जोतरी रथ पुरवासाय ॥ चाबक चोडे तेहने, कीधां कांणां ताय ॥ ८ ॥ विश्वलोक विट्ठल तषां सुर कृषि पूजे पाय ॥ रथ खेडे ते केम जणी, विप्र विचारो कांय ॥ ए ॥ ढाल, गरमी. इमर यांबा यांबलीरे, इमर दामिम भ्राख - ए देशी. विप्र विचारो तुमे जलारे, विष्णु विगोव्यो अपार ॥ वेद पुराणे जे कह्युंरे, सत्य वचन कहुं सार ॥ सजन जन मनशुं करोरे विचार ॥ ए यांकणी ॥ १॥ जश्मांगद कृषि तप करेरे, ईश्वरनुं धरे ध्यान ॥ पंचाग्नि साधी खरीरे, बार वरस गयां मान ॥ स०॥२॥ वृषन चड्या ईश उमीयारे, मारग दीठो ताम ॥ गौरी पूढे ईश्वर जणीरे, ए ध्याये केहनुं नाम ॥ स० ॥ ३ ॥ महादेव कड़े सुप नारी तुंरे, मुजने ध्याये सहु लोक ॥ खंग १ ॥ १७ ॥ 1 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ||गोरी नणे तो शुं एहनेरे, केस होये दर्शन फोक ॥स०॥४॥ तव तुल्या हर तपसीनेरे, मागो श्रापुं वरदान ॥ तपसी चिंते ए पार्वतीरे, त्रिजुवन माहे निधान ॥ स ॥५॥ || शंकर मारी हुँ जोगद्रे, नश्मांगद नणे सार ॥ जो तुव्या आपो श्रमेरे, वंबित फल | दातार ॥स ॥ ६॥ जेने माथे मूकुं हाथमोरे, जस्म थाये बली तेह ॥महादेवे दीधो वर जलोरे, दानव पुंठे थयो जेह ॥स० ॥ ७॥ ईश्वर नाठा जाय सहीरे, तापसे तव कीधी केम ॥ ईश्वर चिंतवे मन मां हिरे, हाथ\ घाली में हेड ॥ स० ॥ ॥ नासीने किहां जायQरे, पापी लाग्यो मुज पुंग ॥ अज्ञानी घेलो थयोरे, नारी बोले एने ||तु ॥ स ए॥ सघला देव तुमे सजिलोरे, हुं फुःख पामुं बुं श्राज ॥ दानवने मारो ||तुमेरे, नवि थापुं वरराज ॥ स ॥१०॥ ब्रह्मा विष्णु पधारजोरे, ए पापीनो करो नाश ॥ एक मूरति त्रिहुंनी श्रापणीरे, वेगे धाउँ सहु पास॥ स॥ ११॥ केशव ज्ञान विचारीनेरे, ईश्वरनी जाणी वात ॥ पार्वती रूप करी तदारे, दैत्यनो करवा घात ॥सण॥१२॥ वेगे श्रावी देवी उमीयारे, लीधुं कंकण तिण खेव॥हर गौरी दोय उलव्यारे, घाट्यु || कंकण कर देव ॥स० ॥ १३ ॥ रूप थयुं पार्वती तणुंरे, उमीया बोली तेणी वार ॥ कुण रूप कुण तमे थबोरे, तापसीने कहे तेणी वार ॥ स०॥१४॥ सांजलो गौरी तुमे कटुरे, Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंम१ ॥ १०॥ श्मासुर मारु नाम ॥ बार वरस तप आचर्यारे, शंकर तुल्या ताम ॥स० ॥ १५॥ तेह । प्रसादे हर मारशुरे, जोगवशुं तुम देह ॥ हसी करी गौरी जणेरे, सांजलो स्वामी कडं तेह ॥स० ॥ १६॥ ईश्वर मुजने नवी गमेरे, बांडे वृषन चमी जाय॥जस्म लगावेदेहनेरे, नांग धंतुरो घणो खाय॥स ॥१७॥सर्प तणो हार कोटमारे, किन्नरी वाये निज हाथ ॥ कांख कोली निक्षा जमेरे, मूढ थर घाले बाथ॥स० ॥ २७ ॥ घर अने हाट एने नहींरे, मसाण गुफा निज वास॥नागो बीहामणो दीसतोरे, गंधाये एहनो सास स० ॥ १५ ॥ दीगे अांखे नवी गमेरे, ईश्वरनो संजोग ॥ श्रा मनमां माहरे हतोरे, ऋषिशुं माणशुं लोग ॥स ॥२०॥ ए धूरत नासी गयोरे, थापणने हुट रंग॥ तणां । सुख माणशुरे, वंछित फले वली चंग ॥ स ॥१॥ मन मांहे आनंद धरीरे, जो करो नाटिक खामी ॥ तो मुजने संतोष होयरे, जोगवीए जोग कामी स॥२२॥ तापसी वचन अंगीकरीरे, ईश्वर वेष धरी तेह ॥ उमीया श्रागल नृत्य करेरे, तान मान गुण-IY गेह ॥स०॥ २३ ॥ जिम जिम उमीया शीखवेरे, तेम नाचे ऋषि सार ॥ मस्तक हाथ मूकावीयोरे, तापस बली थयो बार॥ स ॥१४॥ तेणे अवसर तिहां श्रावीयोरे, चूप विरोचन नाम ॥ गौरी रूप देखी करीरे, हरख पाम्यो नृप ताम॥ सा ॥२५॥ तेडी ॥ १०॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निज घर बेइ गयोरे, रात दिवस माणे जोग ॥ नारायपशुं नेद धरीरे, संसारनां सुख संजोग ॥ स० ॥ २६ ॥ मनोवेग बोले तिहारे, जो जो ईश्वरनां काम ॥ पहेले खंडे अग्यारमीरे, नेमविजय कहे ताम ॥ ० ॥ २७ ॥ डुदा. ब्राह्मण सांजलजो तुमे, हरि रमे स्त्रीरूप ॥ नानां भूषण वस्त्र रस, चूया चंदननो चूप ॥ १ ॥ फल तंबोल सुगंध बहु, वंबित विरोचन राय ॥ दास्य विलास रंग रोलमें, घणो काल एम जाय ॥२॥ रह्यो गर्न करमे करी, पंच मासे घरणी कीध ॥ नाति जाति संतोषीने, गर्न महोत्सव सिध ॥ ३ ॥ एक दिन नारद श्रावीया, दीठो नारी खरूप ॥ ज्ञान बले विचारीयुं, दामोदर एह रूप ॥ ४ ॥ श्रानंद थयो रूषिने घणो, कौतुक जोशुं एह ॥ ब्रह्मा शंकर शोधे सदु, जाइ कदेशुं तेट् ॥ ५ ॥ सहस्र श्रव्याशी कृषीश्वरे, शोध्या विष्णु सोय ॥ सकल देव जोया सदु, (पण) केशव गोत न कोय ॥ ६ ॥ नारद तिहांथी चालीया, (कृषि) देवने कीध प्रणाम ॥ दामोदर देखामीए, जेम सरे तुमारुं काम ॥ ७ ॥ ब्रह्मादिकने तेमीया, विरोचन पटसाल | कृषि देव मेला मख्या, जोवा काज ततकाल ॥८॥ घरमाथी राय नीकली, ब्रह्मादिकने पाय ॥ कहो खामि Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ १॥ कम थावीया, सफल जमारो थाप । ए॥ नारद बोस्या ततखिणे, विरोचन सुखनी खंग? खाण ॥ तुम धरणीने जोश्ने, थमने सफल विहाण ॥ १० ॥ ढाल बारमी. कुखडी ते काजल सारे, ए तो जमर नजारां मारे राज ॥ ए तो फुलमीनो रूप रंग जोजो-ए देशी. राजाए तव पाणी नार राज, कर कांकण बोड्युं तेणी वार राज ॥ तुमे सांजलजो सहु को॥ ए आंकणी ॥नारायण हुवा तव त्यार राज, विस्मय पाम्या लोक अपार राज ॥तु ॥१॥ एक कहे कारण केस्युं राज, नांदी जेवहुं पेटज एस्युं राज ॥तु॥एक कहे । नारायण नोहे राज, विपरीत रूप सही सोहे राज ॥तु॥॥एक कहेगोविंदनी लीस राज, देव चरित्र जाणे नवि सील राज ॥तु॥एक कहे केम वाध्यु पेट राज, जश् पूबीए राजाने ठेठ राज ॥ तु ॥३॥ तव पूज्या विरोचन राज राज, तुमे शुंकीधुंएह अकाज राज ॥तु॥ विष्णु तणुं वधार्यु पेट राज, पापे करी जाशो तुमे हे राज ॥ तु॥४॥ राजा सव फांखो थयो त्यहिं राज,कालु मुख ले गयो घर मांहीं राज ॥तु॥ःख सोग करे थपार राज, हुं केम बुटीश एह संसार राज ॥ तु ॥५॥ हर ब्रह्माए तेड्या|||| Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताम राज, विष्णु देव पधारो आम राज || तुo || कहो कारण हुबुं बे केहवुं राज, विपरीत रूप दीसे एहवं राज ॥ तु० ॥ ६ ॥ नारायणे कथुं तव मांगी राज, शरीर वितक जेवुं लघुं बांगी राज ॥ तु० ॥ खरुखड ते सहु इसीया राज, सांजली वात अचंबे वसीया राज || तु० ॥ ७ ॥ महादेवे हाकोट्या श्रति घणा राज, काला मुख हुश्रा तेह तथा राज ॥ तु० ॥ देव दामोदर त्रिभुवन राय राज, सहुको लागे एहने पाय राज ॥ तु० ॥ ८ ॥ प्रीड्या वचन महेसर मली राज, पूज्या पाय नारायणना वली राज ॥ तु० ॥ क्षमा करजो स्वामी हे देव राज, अमे अपराधी हुवा ततखेव राज ॥ तु० ॥ एए ॥ सधला मली विमासण करे राज, गर्ज काढशुं दवे केणी परे राज ॥ तु० ॥ ब्रह्मा शंकर बोल्या जेद राज, जांग वाढी करी काढो बेद राज ॥ तु०॥१०॥ ते वचन मनमां घरी राज, देव सघले हास्यज करी राज || तु॥ जोर करी काढयुं छोकरूं राज, ते कारण बलि नामज धर्यु राज ॥ तुषं ॥ ११ ॥ विष्णु सदन वैकुंठज अया राज, देव सहु निज ठामज गया राज ॥ तु०॥ मनोवेग कहे कह्यो संखेव राज, अंवर पुराण सांजलजो देव राज ॥ तु० ॥ १२ ॥ बलि राजा बलवंता जाम राज, राज रिद्धि पाम्यो तेणें गम राज ॥ तु० ॥ अपूरव इंड थवा तणी राज, इछा Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१०॥ धर्मपरीउपनी मनमा घणीराज ॥ तु० ॥१३॥ जगन मांड्या हवे तेणे क्षिप्र राज, अनेक तेमा- व्या त्यां विप्र राज ॥ तु० ॥ होम हुताशन परजले राज, पुण्यदान दे जे नर मले राज तु ॥ १४ ॥ जाग नवाणुं थया जव पूरा राज, कंप्युं शासन थक्ष सनुरा राज ॥ तु० ॥ ज्ञाने करी विचार्यु जेह राज, मुज पदवी लेशे सही तेह राज ॥ तु ॥१५॥ विष्णु मंदिर मथवा गयो राज, सांजल गोविंद वात उन्नयो राज ॥तु॥ बलि राजा जगन बहु करे राज, मुज पदवी तणो घातज हरे राज ॥तु॥१६॥ कूम रचो जगनाथ देव राज, नाश करो दैत्य तणो ततखेव राज ॥ तु० ॥बलिने बलो करीने उपाय राज, थाश पुरो मनोरथ थाय राज ॥ तु॥ १७॥ कृपा करी बोल्या तव हरि राज, जाउँ तुम थापणे गम फरा राज ॥तु ॥ निज पदवी नोगवो जाइ राज, अमे करशु काम तुम सा राज ॥ तु ॥ १७॥ रच्यो दामोदरे विचार राज, काश्यप ऋषि तस नार राज ॥ तु०॥ श्रादिति नामे कही नार राज, तेहनी कूखे लीयो अवतार राज तु०॥१५॥ जाणीए त्रेतायुग मांही राज, वामन रूप धरी उछांही राज ॥ तु॥ पहेले खेमे बारमी ढाल राज, नेमविजय कहे तेणे ताल राज ॥ तु ॥२०॥ ॥२०॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - उदा. | लीयो अवतार ए पांचमो, वसिष्ठ गुरु २ तास ॥ नित्य नमे ते गुरु जणी, राखीने विश्वास ॥१॥ भृगु क्षेत्र नणी चालीयो, बांधवा बलिने उपाय ॥ जाग। मंडपमा श्रावीयो, सौ सजान पुंठे थाय ॥२॥ हाथ पाय टुंका अजे, धोतकांबर अंग ॥ चुयांचली वाली काबमा, मस्तक फालीजं चंग ॥३॥ बाग लीयो कर एकवमो, दर्भ पुर्वा वली लीध॥ कंठ जनो निरमली, कसवटे टीपणुं कीध ॥४॥ हादशा | तिलक कर्यां जलां, चार जणे मुख वेद ॥ अचंच्या हिज देखीने, अपर वचन हुवा बेद ॥५॥ काठीधरे पूज्यो वामणा, कहोजी खरूप तुम देव ॥ हिज बोल्यो नाश् श्रावीयो, जाचवाने बलि हेव॥६॥ हुँ जीखारी ब्राह्मणो, अमने मेलवो चुप ॥al रखवाले जर विनव्यु, वामन कयुं स्वरूप ॥ ७॥ बलि श्राव्या वामन कने, वेद सुणी हरख्यो चित्त ॥ कर जोमीने बलि जणे, मागो वंडित वित्त ॥ ॥ देश गाम मागो घणां, मागो मंदिर कलत्र ॥ गाय नेंस मागो पूजती,गज रथ घोमा बत्र ॥ ए ॥ मणि माणिक मोती घणां,नू कनक रूपुंफार॥शुक्र नणेसांजल बलि, विप्रनहीं एसार॥१०॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ २१ ॥ ढाल वेरमी: वीर वखाणी राणी चेलणाजी-ए देशी. वामन रूप धरी केशवोजी, कपट करी मागे दान ॥ बेतरशे तुने बल करीजी, जजमान गइ लुज सान | सूरिजन सांजलजो कथाजी ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ दान म देजो एहनेजी, मानो श्रमारो तमे बोल | बलि बोल्या मम बोलनोजी, शुक्र तमे नवी जाणो तोल ॥ सू० ॥ २ ॥ वासुदेव जाचक थर आवीयाजी, धन धन मुज अवतार ॥ जे जोइए ते मागो वामणाजी, राज रिद्धि श्रापुं अपार ॥ सू० ॥ ३ ॥ वामन वाडव बोलीयोजी, मारे नहीं बहु काज ॥ मढली करवाने कारणेजी, त्रिण क्रम यो महाराज ॥ सू० ॥ ४ ॥ आणी उदक कोरे करवमेजी, दान दीए बलि सार ॥ जाचक मोटा श्रीकंठनेजी, दस्त मांहीं धरे जलधार ॥ सू० ॥ ५ ॥ नालु शुक्रे रुंधीजी, डाज घाली फोड्यं नेत्र ॥ दानव गुरु काणो हुजी, स्वस्ति कह्यो द्विज मित्र ॥ सू० ॥ ६ ॥ नारायण अंग वधारी योजी, ब्रह्मलोके लाग्यो शरीर ॥ भूमि सघली जरी बेहु क्रमेजी, एक क्रम मागे ते धीर ॥सू०॥ 9 ॥ बलि राजाए पुंठ धरीजी, वचन राखवाने काज ॥ वैकुंठे पग मूक्यो त्रीजोजी, चांपवा लाग्यो बलि राय ॥ सू०॥ ८ ॥ तुष्टमान दुवा जग खंग १ ॥ २१ ॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धणीजी, सेवकने सुख थाय ॥ वामन रूप करी थावीयाजी, जय जय हुवा जग मायाला सु०॥तुव्या तो आपोदामोदराजी, सेवावरती था सार ॥ मुज किंकरपणुं तमे करो जी, काठी धरी रहो बार ॥सु०॥१॥ महा विष्णु सेवक थयाजी, काठी धरी रह्या हाथ॥ वचन बांध्या कुःखीथा थयाजी, कष्ट पाम्या जगनाथ ॥सू० ॥ ११॥ दीवालीए गण तणोजी, बलि राणो करे लोक ॥ गोयर घरघर थापीएजी, कृष्ण तणां करी फोक ॥ सू० ॥ १५ ॥ वेद पुराणे कथा कहीजी, विप्र जाणो तुमे नेद ॥ खोटुं के साचुं होयेजी, कहो विचारी वेद ॥सू॥ १३॥ विप्र वचन वलतुं कहेजी, खोटुं नहींय खगार ॥ वेद पुराणे नाखीयोजी, सत्य वचन तुम सार ॥ सू० ॥ १४ ॥ मनोवेग वली बोलीयोजी, सांजलो विप्र सुजाण ॥ लोककथा कहं एक जलीजी, मधरी सुलखित वाण ॥ स. ॥ १५ ॥ दक्षिण देश माहे जलोजी, गाम ते वसे कच्छ नाम ॥ श्रीपुरजी सुचिकार ने तिहांजी, नामो सुत स काम ॥ सू० ॥ १६ ॥ श्रीपुरजी दरिलक्त हवेजी, विष्णु देहरे नित्य जाय ॥ पंचामृत थाली करीजी, तेह विण अन्न न खाय ॥ सू० ॥ १७ ॥ नाश्रीपुरजी परगाम चालतांजी, नामा सुतने देश शीख ॥ दामोदर देरे जाजे सहीजी, जेम तुज टले जवनीख ॥ सू०॥ १७ ॥ पंचामृत शोजन देजोजी, एम कही चाख्यो । Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरी गाम ॥ध लश्ने नामो गयोजी, हरिनु उचरे नाम ॥ सु० ॥१ए॥ध लश्ने मुख थागलेजी, कहे पीयो नारायण देव ॥ पाषाण बिंब बोले नहींजी, बालक रडे पडे nाखेव ॥ सू० ॥ २० ॥ तव हरिने दया उपनीज, दूध पीधुं ततकाल ॥ पहेले खंडे ढाल तेरमीजी, नेमविजय सुविसाल ॥ सू० ॥१॥ उदा. सुचिकार श्रीपुरजी, तेहनो सुत ततकाल ॥तुव्या नारायण नामाने, नगति जलो ए बाल ॥१॥ एक वार नामो जमे, जमतां चिंते ताम॥श्रावे नारायण श्ण समे, जाखरी आपुं राम ॥२॥ ज्ञानदृष्टे करी जोश्युं, (नामो) जोये माहरी वाट ॥श्वान रूप धरी श्रावीया, दीगे जाखर थाट ॥३॥ दोय चार मुखमां ग्रही, नाग श्वान तिणे रूप ॥ नामो पुंठे धाळ, ग्रही लेड हरि नूप ॥४॥ श्राघा जश् रूप फेरव्यु, नामो गयो निज गेह ॥ नामो घर गये एकलो, विष्णु थाव्या स्वयं देह ॥५॥ गोविंदे घर गंगे, (घर ) जेंडी नामे कीध ॥ पोली लय हरि हरखीया, पोहोता वैकुंठ सिद्ध ॥६॥ विप्र सुणो तमे बुद्धिबला, नीच करम कीया देव ॥ पुराण वचन लोक वातथी, सत्य के जूतुं हेव ॥७॥ विष्णु उदर मांही नला, चौद जुवन रहे थेट ॥ बलि राजाए ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किंकरी, मोटो हुवो केम पेट ॥७॥ माह्या थर विचारजो, गर्धव अश्व न होय ॥ पुरुष नारी केम संजवे, विप्र विचारी जोय ॥ए॥ चौद नुवनपति जे कह्यो, ते कम वामन वास ॥ दीन जीखारी बांजणो, बलि जाच्यो य दास ॥ १० ॥ .ढाल चौदमी. . दमिरीया तारा ने मारा टोडीया, चरता एकण नाल-ए देशी. MI लोक प्रसिद्ध वली सांजलो, दामोदर थया श्वान ॥ सनेही ॥ नामा सुश्नी ना-1 खरी, से नाग जगवान ॥ सनेही ॥ सूरिजन सांजलजो कथा ॥ ए आंकणी ॥ ॥१॥ घर बायो नामा तणो, पोली थापी कान ॥ स० ॥ नीच करम नहीं ए थकी, विचार करो सावधान ॥ स० ॥ सू॥२॥ दोय वानां नवि संनवे, मुज माता एह| विध्य ॥ स ॥ नारी बेटा घर घणां, ब्रह्मचारी काबबंध ॥ स॥सू ॥३॥ परनारी चंबाउली, राधा गोवालणी जेह ॥ सा जोगवी स्त्री गोवालणी, न्यायवंत किम तेह ॥सासू॥ ४॥ सिद्ध स्वरूपी जे हवा, ते किम धरे अवतार ॥सा पहेलो अवतार मच्छ तणो, संखाशूर संहार ॥ स०॥ सू॥५॥ बीजो अवतार कच्चनो,कैटन मार्यो| ताम ॥ स॥ लव त्रीजो वाराहनो, दाणव मार्यों ठगम ॥स०॥सू०॥६॥ चोथे नरसिंह Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ ३॥ अवतर्या, हिरणकश्यपनो नाश ॥ स ॥ पांचमे वामन रूप लीयो, बलि चाप्यो नूमिखम र पास ॥स॥सू०॥ ॥ फरसराम बहे सुणो, सहसार्जुन फेड्यो गम ॥ स०॥ सातमे राम हुवो नलो, रावण टाल्यु नाम ॥ स० ॥ सू० ॥ ॥ केशव थाम्मे अवतर्यो, जक रासिंध हण्यो कंस ॥ स ॥ अढार कोणी दल रण इण्यो, कय कर्यो जादव वंश | | सासूणाए॥ नवमो बोध जवांतरे, म्लेच्छ मांही कीधो व्याप स॥ दशमे कलंकी| राजी, जननी चंमालणी हिज बाप ॥ स० ॥ सू० ॥ १० ॥ एकाकार करी घj, श्रच-|| रावे अनाचार ॥स०॥ देव निरंजन जे हवा, ते केम लीये अवतार ॥सणासू॥ ११॥all घृत जेम ध ते नवि थाये,सिद्ध संसारी न होय ॥सापाको धान मही नवि उगे, सिध्यो जीव तेम जोय ॥ स० ॥ सू० ॥ १५ ॥ पाषाण मथी सोनुं काढीयु, ते केम पत्थर थाय ॥ स॥ कर्म हणी जे सिक हुवा, ते केम पुद्गल पाय ॥सासू ॥१३॥ देव दयाल नर जे कह्या, केम करे जीव संहार ॥ स ॥ राग शेष मद मच्छर नहीं, दैत्यने किम ते मार॥सणासू॥ १४ ॥ नारी विजोग पड्यो रामने, सीता सीता पोकार ॥ स ॥ नर तरु पशुने पूढे घj, दरशन होशे मुज नार ॥सणा सू॥ १५ ॥ सर्वज्ञ ते जाणे सहु, पूजे बीजाने केम ॥ स॥ चौद नूवन मुख मांहि , चढे केम लंका जेम Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥०॥ सू० ॥ १६ ॥ विप्रं विचारो देवनां, लक्षण कहीए संखेव ॥ स०॥ सिद्ध खरूपी जे दोयें, तेहने ए नहीं देष ॥ स० ॥ सू० ॥ १७ ॥ दूध मांहि घृत रस रहे, विश्वा नल काष्ठ मांदि ॥ ० ॥ तिल मांदे तेल जिम रहे, जीव कलेवर खांहीं ॥ स० ॥ सू० ॥ १८ ॥ ज्ञान दर्शन चारित्र तथा, जे कह्या पालणहार ॥ स० ॥ लख चोराशी फेमीने, नावे नर अवतार ॥ स० ॥ सू० ॥ १० ॥ ध्यान शुकल मन ध्यावतां, मुगति रमणी होये हाथ ॥ स० ॥ पदे से खंडे ढाल चौदमी, नेम कहे सांजलो साथ ॥ स० ॥ सू० ॥ २० ॥ डुदा. रूप रस गंध वरण नहीं, उदादिकादि नांहिं ॥ जेह निरंजन नित्य बे, ज्ञानमय थाये त्यांहिं ॥ १ ॥ ते विष्णु सदाशिव जणी, ते किम कहीए देव ॥ अवर अज्ञानी जे नरा, तेहनी करे बे सेव ॥ २ ॥ नाम मात्र जे उपन्या, गुण अवगुण जे होय ॥ बुद्धि विना केम उपजे, सुणो वात सौ कोय ॥ ३ ॥ वलतो उत्तर केम होये, विप्र तथां मन जंग ॥ हाथ जोमी प्रणिपति करी, कदे सहु अनुषंग ॥ ४ ॥ वाद करंता दारीया, जीत्या तमे बेदु जाय ॥ कथा कहो कोइक नवी, सांजलवा होंश चाय ॥ ५ ॥ मनोवेग बोल्यो तिहां, संखेपे कहुं एक ॥ गणेश बिचार विवरी करी, Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीo ॥ २४ ॥ ब्राह्मण सुणो विवेक ॥ ६ ॥ नीच उंच कर्मों कर्या, ब्राह्मण सुणजो मर्म ॥ धूरथी मांगीने कहुं, ए देवमां श्यो धर्म ॥ ७ ॥ गौरी नंदन गणपति, सकल देवर्मा सार ॥ प्रथम विनायक सहु जपे, विधन दरे नर नार ॥ ८ ॥ गजवदन गिरु अबे, डुंदालो दीदार ॥ मूषक वाहन शुजगति, पाय घुघरी घमकार ॥ ए ॥ सिद्धि नामे नारी बे, लक्ष लाज वली देय ॥ मोटा मोदक थापे सही, कुटुंब मागे सहु तेय ॥ १० ॥ महीमां मोटो देवता, सुर नर सारे सेव ॥ प्राणीनां विधन दरे, काम करे ततखेव ॥ ११ ॥ विवाद कामे पूजीए, ( घर ) दाट वखारे तेह || गणपतिने संजारीए, अवसर आवे एड् ॥ १२ ॥ ढाल पंदरमी. मी दरीया मन लाग्यो- ए देशी. रावण विमासे मन इस्युं, आराधन करुं देवरे ॥ साजन सांजलो ॥ विनायक यावे जो इहां, विघन जांजे सहु देवरे ॥ सा० ॥ १ ॥ प्रपंच रची साधुं एढ्ने, पढी सुर नर साधुं जेहरे ॥ सा० ॥ किंबहुना गणेश साधी, बंधी खाने घाल्यो तेहरे ॥ सा० ॥ २ ॥ विघनराजे दाथ जोकीया, विनवीयो रावण रायरे ॥ सा० ॥ काज तमारां खामि खंभ १ ॥ २४ ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करूं, शहनीश से पायरे ॥ सा० ॥३॥ रावणे मूक्यो विनायक जणी, रासन चरावो | देवरे ॥ सा ॥ काठी नारो लेता श्रावजो, दातरडु कोहाडो देवरे ॥ सा ॥४॥ रासन चारे रावण तणा, नीच करम करे नित्यरे ॥ सा ॥ जारो लेश मस्तक प्रते, रासन हांके एणी रीतरे ॥सा॥५॥ खम कापी जारो करे, अणउपमतो लीए शिशरे ॥ सा ॥ आणी चारे रासन नणी, करम नोगवे निशदिशरे ॥ सा ॥६॥ रासन राख्या नवी रहे, वाडि कांखरनी करे तामरे ॥सा ॥ विघनराज करणी करे, पाप तणुं फल आमरे ॥ सा ॥ ७॥ करम करे देव एहवां, तो अमने श्यो दोषरे ॥ सा॥ विचार संखेपे करी कह्यो, ब्राह्मण राखजो संतोषरे ॥ सा ॥॥ मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो वामव वातरे ॥ सा॥ खोटं के मेंसाचं का, उत्तर देजो चातरे। सा ॥ ए ॥ विप्र वचन वलतां लण्या, सत्य वचन तुमे जायरे ॥ सा ॥ वेद पुराणे एम कडं, ते अम केम लोपायरे ॥सा ॥ १० ॥ मित्र वदन अवलोकीयु, सामुंजोयु तामरे ॥ सा ॥ समस्या करीने आवीया, पूरव वन गमरे ॥ सा ॥११॥ पवनवेग प्रतिबोधवा, मनोवेग कहे साररे ॥ सा ॥ पूर्वापर विरोध नहीं, जैनसूत्रे सुविचा Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ २५ ॥ ररे ॥ सा० ॥ १२ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे साररे ॥ सा० ॥ नारायण उत्पत्ति कहूं, जैनशासननो विचाररे ॥ सा० ॥ १३॥ सुखम सुखम पहेला जयो, बीजो सुखमज कालरे ॥ सा० ॥ सुखम दुखम त्रीजो सुण्यो, दुखम सुखम सुविशाल रे ॥ सा० ॥ १४॥ पांचमो दुखम दोहीलो, दुखम दुखम विकरालरे ॥ सा० ॥ नाम तेवां परिणाम बे, चडतो परतो बे कालरे ॥ सा० ॥ १५ ॥ सुखम दुखम ते अवतर्या, यादिनाथ जवताररे ॥ सा० ॥ तेनो पुत्र जरतेसरो, प्रथम जिन चक्री ते साररे ॥ सा० ॥ १६ ॥ चोथे काले त्रेवीश हुवा, तीर्थकर गुणधाररे ॥ सा० ॥ श्रजितादि ए. जाणजो, महावीर अंतिम साररे ॥ सा० ॥ १७ ॥ जरतादिक ब्रह्मदत्त लगे, चक्री द्वादश जाणरे ॥ सा० ॥ नव नारायण निरमला, त्रिपिष्ट | यदि सुख खापरे ॥ सा० ॥ १८ ॥ हयग्रीव यादे जरासंध ये, पर्यंत नव ए होयरे ॥ सा० ॥ प्रतिनारायण चक्रधरा, श्रढार अधोगति जोयरे ॥ सा० ॥ १९॥ विजय हलधर धूरे कह्यो, अंते महापद्म नामरे ॥ सा०॥ नव बलजड बलवंत जला, ऊर्ध्वगामी अनि रामरे ॥ सा० ॥ २० ॥ त्रिषष्टि पुरुष ए रुयडा, जव्य जीव जवताररे ॥ सा० ॥ पन्नरमी ढाल पहेला खंगनी, नेमविजय निरधाररे ॥ सा० ॥ २१ ॥ खंग १ ॥ २५ ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. ना कह्या महापूराणमां, सुणजो त्यां विस्तार ॥ विचार कहुँ हवे वर्णवी, निश्चय करी निरधार ॥१॥ नुमानी वली स्थिति कडं, निरंजन कहे मूढ लोक ॥ पूर्व नवे बहु परे नम्यो, निर्नामिक हुर्ड सोक ॥२॥ःखे दीदा श्राचरी, राज रिक देखी। Kाताम ॥ निदान बांध्यो निर्नामिके, स्वर्ग लह्यो सुखठगम ॥३॥ तिहां थकी चवी करी, वसुदेव देवकी चंग ॥ कुखे श्रावी अवतर्यो, कृष्ण हु उत्तंग ॥४॥त्रण खंड साध्या जला, सेवे सुर नर राय ॥ न्यायवंत दामोदरो, परनारी सहु माय ॥५॥ लाख बेंतालीश रथ नला, तेटला गजवर सार ॥ नव कोम घोमा हणहणे, नोगवे त्रिखंम मोरार ॥ ६॥ सोल सहस्र राणी नली, तेहशुं सुख विलास ॥ लोक लंपट लंपट लवे, परनारीशुं निवास ॥ ७॥ तेटला नूप सेवा करे, सुर किंकर बेसार ॥राज रिक केशव || तणी, कहेतां न लडं पार ॥ ॥ श्रावती चोवीशीए नलो, अरिहंत होशे देव ॥ पंच कल्याणकनो धणी, सुर नर करशे सेव ॥ ए॥ पवनवेग तुमे सांजलो, बलि बंधन विचार ॥ जिनवाणी ने रुथडी, संखेपे कडं सार ॥ १० ॥ - Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ २६ ॥ ढाल सोलमी. रंग मोहोलमा राधिका, मुखकमल निहाले ॥ दरपण लेइ मुख देखती, सीगार संजाले - ए देशी. मालव देश मांहिं जली, नयरी उजेली तेह || श्रीब्रह्मा राज करे तिहां, श्रीमती राणी जेह ॥ १ ॥ चार मंत्री चतुर जला, बलि बृहस्पति प्रल्हाद ॥ नमुचि मिथ्याते आगलो, जैनशुं करे बहु वाद ॥ २ ॥ गोख उपर बेठा थका, जाता दीवा लोक ॥ नरपति मंत्रीने कड़े, किदां जाय बे ए थोक ॥ ३ ॥ बलि प्रधान तव बोली, सांजल स्वामी राय ॥ श्रावकलोक यति घणा, साधु वंद जाय ॥ ४ ॥ श्री ब्रह्मा नृप दरखीयो, जतिवर वांदण जाय ॥ चार मंत्री साथे लीया, परिवार पार न पाय ॥ ए ॥ प्रथम कथा तुमे सांजलो, उजेली वन मांदे ॥ अकंपनाचार्य यावीया, सातसें मुनि बे सहाए ॥ ६ ॥ ज्ञानी गुरु ते श्रुति जला, शिख दीये मुनिराय ॥ जो राजपुरुषशुं बोलशो, तो विघन होशे एणे ठाय ॥ ७ ॥ गुरु वचन मनमां धर्यां, धरी ध्यान तेथे ठाम ॥ राजा तव तिहां घ्यावीयो, मुनि वांद्या नृपे ताम ॥ ८ ॥ ते साधुने बोलावीया, उत्तर वलतो न दीध ॥ ढोर अज्ञानी बापडा, मंत्रीए निंदा कीध ॥ ए ॥ राजा तव पाढो वढ्यो, खंग १ ॥ २६ ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्राव्यो नगर मोकार ॥श्रुतसागर मुनि नेटीया, विद्या तणोरे नंडार ॥१०॥दुष्ट वाक्य मंत्री बोलीया, वाद कीधो तिहांसार ॥ विप्र चार हरावीया, मान खंड्युं तेणी वार॥११॥ नरपतिए निचंबीया, एके हराव्या बाज ॥ मुरखा गर्व न आणीए, करो न एवां काज ॥ १५ ॥ ऊखवाणा पडी गया, नीचे जुवे निज पाय ॥ कृष्ण वदन तेहनां हुयां, मारवा कीधो उपाय ॥ १३ ॥ ब्राह्मण वादे हरावीया, गुरु आगे कहे वात ॥ श्राचार्य त्यां तव बोलीया, मुनिवरनो होशे घात ॥ १४ ॥ श्रुतसागरे गुरु पूर्वीया, विघन किम पूरे जाय ॥ गुरुजीए तव नाखीयु, वादस्थानके तुमे जाय ॥ १५ ॥ ध्यान धरजो रुयमो, उपसर्ग जाशे तेम ॥ सांजलीने मुनि तिहां गयो, कायोत्सर्ग रह्यो जेम ॥१६॥ चार मंत्री तिहां श्रावीया, खड्ड काढी ते वार ॥ चारे जण एक घा करे, खील्या जो ते सार ॥ १७ ॥ सूर्योदये तिहां श्रावीया, लोक तणां वली वृंद ॥ फट फट जुंमा सहु| जणे, पाप तणां एह कंद ॥ २० ॥राजा तव तिहां श्रावीयो, गाल दीए अघोर ॥ ध्यान पारी मुनि बोलीयो, उखेलो एह नोर ॥ १५॥ राजाए दंडी करी, खर रोहण| वली कीध ॥ विगोश्ने काढीया, देसोटो तिहां दीध ॥ २०॥ पहेला खंडनी सोलमी, |ढाल कही सुविसाल ॥ नेमविजय कहे सांजलो, आगल वात रसाल ॥१॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० 11 29 11 उदा. पर कथा तु सांजलो, संखेपे करूं सार ॥ हस्तीनागपुर रुयडो, उत्तर देश मोकार ॥ १ ॥ मेघरथ नूपति जलो, पदमावती जरतार ॥ पदम लघु विष्णु वडो, पुत्र बेदु बे उदार ॥ २ ॥ मेघरथ विष्णु मुनि हुवा, पदमरथ थापी राज ॥ चारित्र पाले रुको, बेदु करे श्रातम काज ॥ ३ ॥ गजपुरमां तव श्रावीया, द्विज मंत्री ते चार ॥ राजाने जइ नेटीया, दान मान दीधां सार ॥ ४ ॥ मंत्रीपद श्राप्यां जलां, सुख पाम्या ते चार ॥ सिंहवली शत्रु तेह तणो, देश उजामी अपार ॥ ५ ॥ राजाने चिंता घणी, दिन दिन गे खीणं ॥ मंत्रीए तव पूर्बीजं, शरीर दीसे कां हीए ॥ ६ ॥ पदमरथ राजा कहे, सुणो तमे बलि प्रधान ॥ सिंहवली वयरी श्रम अबे, तेथे करी नहीं सुख मान ॥ ७ ॥ श्रादेश लइ नृपति तणो, प्रधाने कर्यो प्रयाण ॥ सैन्य सुजट निज सज करी, बलि मंत्री बुद्धिमाए ॥ ८ ॥ सबल संग्राम तिहां जइ कीयो, शत्रु कटक दुवो जंग ॥ सिंहवलीने बांध्यो तदा, पाम्या जय जय रंग ॥ ए ॥ वयरी बांधी आणीने, जेट रायने कीध ॥ पदमरथ खाणंद दुर्ज, बलिने वरदान दीध ॥ २० ॥ वलतो मंत्री बोलीयो, सांजलो श्रीमहाराज ॥ मागुं त्यारे श्रापजो, वर आवे मुज काज ॥ ११ ॥ खम १ ॥ २७ ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नरपतिए तव हा जणी, बखि हवो हरख अपार॥सुखन्नर राज्य करे सदा, अवर कथा ॥१५॥ ढाल सतरमी. यतनीनी देशी.. | हस्तीनागपुर वन मांहे, अकंपनाचार्य श्राव्या त्यांहे ॥ सातसें मुनिवर ने साथे, विद्या तणी बहु भाथे ॥१॥ बलि मंत्री तेउने देखी, वयर नावे पूरव लेखी ॥ पदMIमरथ राय पासे आवी, विनति करे तिहां समजावी ॥५॥ वर थापो मने बाज,I दिवस सातनुं श्रापो राज ॥ काज सारो श्रमारु प्रजुजी, तुम विना कोण बीजो| विजुजी ॥३॥ राजाए तव वर थाप्यो, राजन्नार तेहनो थाप्यो । पापी कूड कपट मन मांहीं, धरी सहीये क्रोधातुर तांहीं ॥४॥ वाड करी मुनिने वींट्या, साधुने । घणुंए थाषेव्या ॥ नरमेध जगन जाग मांड्यो, जति कारण बीजो काम बांड्यो ॥५॥ जलचर ने थलचर जीव, ननचर ते पातां रिव ॥ वेद पाठक ब्राह्मण श्राव्या, घj उजमाल थक्ष मन जाव्या ॥६॥ जीव हणवा वामव मलीया, हवन करका हरखमां जलीया ॥ चरम अस्थि ले शिर नाखे, मुनि उपर सहु मनी धांखे ॥॥ एवं Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ २० ॥ नाखे अति घणुं विप्र, रेवणी करे धुम्र गोटे विप्र ॥ एहवा उपसर्ग करी संतापे, तोही मुनि चुके नहीं जाये ॥ ७ ॥ अवर वात कहुं एक एहवी, पवनवेग सुणो तुमें जेवी ॥ मेघरथ विष्णुकुमार, गिरि उपर तप करे अपार ॥ ए ॥ श्रवण नक्षत्र श्राकाशे कंपे, विष्णु मुनि गुरु प्रते जंपे ॥ कहो स्वामि नक्षत्र कंपे, कुण कारण एह अजंपे ॥ १० ॥ अवधिज्ञानी मुनि एम बोले, गजपुरने नहीं कोइ तोले ॥ तिहां मुनि बेठा, ध्यान थापी, उपसर्ग करे विप्र पापी ॥ ११ ॥ ति कारण कंपे श्रवण, विष्णु कहे उपाय कवण ॥ मेघरथ मुनि जणे शिष्य, वच्छ ब्राह्मणने देशुं जीख ॥ १२ ॥ वैक्रियलबधि करो सार, वामन रूप धारो निरधार ॥ मुनिवरनां जतन करो जाइ, वेगे करो एहनी सजाइ ॥ १३ ॥ फोरवी ततक्षण लबधि, उत्पत्ति जाए के उदधि ॥ गजपुर नगरमां आव्यो, पदमरथ रायने नमाव्यो ॥ १४ ॥ वर थप्यो हतो तमे तेने, घणुं शुं कहुं जाइ तुमने ॥ मुनिवरनो मांड्यो घात, याशे तेहथी घणो उत्पात ॥ १५ ॥ पद्मरथ कहे सुखो जाइ, वचन पालुं श्रमे नवी थाइ ॥ कोई करो तमे उपाय, तेथी विघन सवे वली जाय ॥ १६ ॥ विष्णु चाल्यो मंरुप देश, वामन विप्रनो धर्यो वेष ॥ दर्ज दुर्वा जनोइ कंठ, पढेरी धोती ने हाथमें लंठ ॥ १७ ॥ वेदनी ध्वनि उचरे मुख, विप्र खंग १ ॥ २८ ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांजली पामे सुख ॥ बलि राजा हयडे हरखी, वामन रूप नजरे परखी ॥ १७ ॥ वामन वांद्यो पमीने पाये, विनति करे कर जोमी ताये ॥ जे जोशए ते मागो स्वामि, मुज पासे अंतरजामी॥ १॥ वामन विप्र बोट्या ताम, मुज नहीं नृप लोग्ने काम |त्रण क्रमनी नूमि जरी बापो, मठ बांधवा सारु थापो ॥२०॥ वलतुं बसि बोले एहवं, विप्र कहो माग्युं केहबुं ॥ मागोने को राज जंमार, घोमा हाथी वृषन अपार |॥॥ विप्र कहे सुणो महाराज, अवर मारे २ नहीं काज ॥ क्रम त्रण मठ करवाने, मही मांहि नूमि जरवाने॥॥ पात्र लेकर दीए धार,खस्ति दान दीधुं तेणी वार॥मुनिवरेवधार्यो अंग,श्रति घणो देखी थया नंग ॥३॥ प्रथम पाय ठव्योज्यां मेर, मानुषोत्तर बीजो ठेर ॥ पाय त्रीजानो नहीं गम, विष्णु कोप्यो बोले ताम ॥ २४ ॥ बलि बांधी पूठे पाय दीधो, सुर नर मली जय जय कीधो ॥ हाथ जोडीने मुनिवरने, कहे दमा || करो स्वामि श्रमने ॥ २५ ॥ एह बंधन बोमो खामि, क्रोध न कीजे गुणग्रामी ॥ उप-||| शममें थया साधु, बलिबंधन छोड्यो निराबाधु ॥ २६ ॥ विष्णुने सहु लाग्या पाये, मंत्रीए धर्म आचर्यो ध्याये ॥ समकित लीधुं सहु लोके, जिनधर्म पाले जन थोके ॥२७॥ श्रावकव्रत बलिए सीधां, मुनिवर वांदे सुख सीधां ॥पद्मरथ राजाए श्राण्यो Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीनाव, मुनि वांदीने सेजे जाय ॥२॥ विष्णुकुमार वाढल्य कीधो, सातसें मुनि रक्षण सीधो| In राखमी बांधे लोक तेथी, बलेवनो दिन कह्यो एथी ॥णा विष्णुकुमार गुरु कनेजा, ॥ ॥ लीधोप्रायश्चित व्रत धा॥ निरमल जाव धरीने साधे, क्रिया तप जप शान ते लाधे ॥३॥ उदा. . मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग विवेक ॥ जिनशासन महीमा खरो, के मिथ्या धर्म डेक ॥ १॥ पवनवेग बोल्यो तुरत, निश्चय करी सुख गम ॥सत्य वचन तुमे जे कह्यां, रही तुमारी माम ॥२॥श्री हीरविजय सूरि तणो, शुजविजय कवि शिष ॥ जावविजय नावे करी, नमुं तेहने निशदिश ॥३॥ सिफिविजय शिष्य तेहना, रूपविजय कविराय ॥ कृष्ण विजय कर जोडीने, रंगविजय रंग लाय ॥४॥ पहेलो खंड पूरो थयो, सतरे ढाले करी सत्यनेमविजय कहे नेहथी,श्रोता सुणो एक चित्त ॥५॥ इति श्री विष्णुवाद, ब्रह्मविवाद, गणेशोत्पत्ति नीच करमाचरणे, प्रथमोबास प्रथम खंग संपूर्ण १ लाज, शोना. ॥ ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंड ३ जो. उदा. मनोवेग कहे सांजखो, पवनवेग तुम जाय ॥ विप्र पुराणनी वारता, पूर्वापर चित्त लाय ॥१॥ विरोध घणां हुं दाखवू, अघटतां असत्य तेह ॥ सांजलतां थाशो खुशी, एमां नही संदेह ॥२॥ पवनवेग कहे तुमे, जो शास्त्र विचार ॥ शिघ्र नाश् मुज दाखवो, विनोद तणो जंडार ॥३॥ व ढाल पदेली. खाख चोराशी रथ जला ए, तेहना वृषन धोरी सुकुमाल-ए देशी. विद्या प्रचावे बेहु जणे ए, नील तणुं रूप कीध ॥ साजन सहु सांजलो ए ॥ कृष्ण वरण बीहामणा ए, धनुषबाण कर लीध ॥सा० ॥१॥ मस्तक केश ने बाबरा ए, चोपमा नाक वली मुख॥ सा॥ रातां नेत्र गुंजा समां ए, दांत लांबा हो ॥ सा ॥२॥ कठिण हैया करकस देहीए, पुफ वेला शिरनार ॥ सा॥ मयूर पिंड घरेणां धर्या ए, लोह कंकण गुंजाहार ॥ सा ॥३॥ विद्याबल मंजार कर्यो ए, घट मांही ले धर्यो Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीतेह ॥ सा ॥ काने बुचो कालो घणो ए, खेश् चाख्या नर बेय ॥ सा ॥४॥ला खंक २ ब्रह्मशाला उत्तर दिशे ए, नील श्राव्या दोय ताम ॥ सा ॥ घंटानाद जेरी तामीने का ३०॥ ए, बेग सिंहासन गम ॥ सा ॥५॥ नाद सुणी विप्र आवीया ए, वाद करीशुं अपार ॥ सा ॥ वचन खंमशं तेह तणां ए, जीतीने कुटशं ते वार ॥ सा ॥६॥ देखीने वामव कोपीया ए, रेरे अधम नर तिम ॥ सा ॥ सिंहासन चोट्या तुमे ए, नेर वजामी किम ॥ सा ॥ ७॥ अघट काम कर्यु घणुं ए, आव्या कहो कोण काज सा॥ मनोवेग तव बोलीयो ए, सांजलो तमे द्विजराज ॥ सा ॥॥ मीनमो | वेचवा श्रावीया ए, पुलिंदै अमारी जात ॥ सा ॥ विप्र वचन वलतो नणे ए, जु जु मूर्खनी वात ॥ सा ॥ए ॥ लंठ मोटा महा रंगना ए, घंटानाद कियो जेण ॥ सा० ॥ विप्रशुं वाद कर्या विना ए, बेठा सिंहासन तेण ॥ सा० ॥ १० ॥ मनोवेग जणे सांजलो ए, विप्र म धरशो रोष ॥ सा० ॥ नेर घंटारव श्रमे कर्यो ए, विनोद कारण नहीं दोष ॥ सा ॥ ११॥ जो तुमने बेग नवी गमे ए, तो उतरी बेसुं हे॥ सा ॥ दमा |॥३०॥ करो हिज तुमे नला ए, हर्ष धरी-चित्त ठेठ ॥ सा ॥ १२ ॥ विप्र नणे सुण नील १लीस. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डाए, मिंजारना गुण केत ॥ सा० ॥ मनोवेग कहे सांजलो ए, मुज मिंजार गुण एत ॥ सा० ॥ १३ ॥ ऍह शरीर गंध विस्तरे ए, बार जोषण परिमाण ॥ सा० ॥ मूषक नावे त्यां लगे ए ए पूरव गुण जाण ॥ सा० ॥ १४ ॥ सांजलीने विप्र दरखीया ए, मांहोमांदे बोले ताम ॥ सा० ॥ लीजीए मीनडो रुयडो ए, तो सरे सहूनां काम ॥ सा० ॥ १८५ ॥ आपणे गाम जंदर घणा ए, दाण करे कणसूले ॥ सा० ॥ वेचातो लीजे मीनको ए, जील कहो तुमे मूल ॥ सा० ॥ १६ ॥ एह मीनो श्रमे लेयशुं ए, सत्य वचन जाखो सार ॥ सा० ॥ मनोवेग कहे सांजलोए, एहनो मूल साठ दीनार ॥ सा० ॥ १७ ॥ विप्र सहुए विचारी युं ए, मूल थोडो मिंजार ॥ सा० ॥ एटलो जान एक दिवसे होये ए, मूषक करे घरबार ॥ सा० ॥ १८ ॥ एक कहे मूज धोतीयां ए, एक कहे नारी घाट ॥ सा० ॥ चीर सामी फामी उंदरे ए, एक कहे खएयुं दाट ॥ सा० ॥ १५ ॥ एक कहे करड्यां कापडां ए, एक कहे खाधां धान ॥ सा० ॥ एक कहे पग दोय तथा ए, अंगुली ये वही वान ॥ सा० ॥ २० ॥ एम कही मलीया सहु ए, एकेक लीधो दाम ॥ सा० ॥ साठ सोनैया जोमीया ए, आव्या शालाए ताम ॥ सा० ॥ २१ ॥ वारुव कहे जीलमा १ पार्क. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी सुणो ए, अव्य लश् आपो मीन सा॥ मनोवेग कहे परीक्षा करी ए, खेळ पळे कहेशो हीन ॥ सा० ॥ ॥ एक कहे साचुं सही ए, घट मांहीथी काढ्यो तेह ॥सा॥ द्विज सहुए मीनो नीरखी ए, बुचो रुधिर जों देह ॥ सा० ॥ २३ ॥ विप्र जणे सुण, नीलमा ए, मीनमो बुचोसें कान ॥ सा ॥ रुधिरालो दीसे वली ए, कहो कारण गुणवान॥ सा० ॥२४॥पहेली ढाल बीजा खंडनीए, रंगविजय कविराय॥सा॥ तस शिष्य नेमविजय कहे ए, वात सुणो चित्त लाय ॥ सा ॥ २५॥ उहा. मनोवेग कहे सांचलो, वनवासी अमे नील ॥ अपूरव दीगे मीनमो, लीधो | लाजाणी गुण मील ॥१॥ पाली पोषी मोटो कर्यो, अव्य जोइए ने आज ॥ घटमां घाली. मीनमो, श्राव्या वेचवा काज ॥२॥ नूमि पणी चाली करी, श्राव्या वाडव गाम ॥ दिवस गयो रजनी थक्ष, विश्राम रह्या एक गम ॥३॥ थाक्यो नूख्यो मीनडो, घट थकी काढ्यो दीन ॥ एक गमे पमी रह्यो, निडा श्रावी खेद खीन ॥४॥ अमे सुता निडावशे, नीकली लंदर श्रेण॥ सुतो दीगे मीनडो, मूषक मली करे केण ॥५॥y सबल शत्रु ने आपणो, फुःखी कीजे एह ॥ मोटो उंदर भावीयो, (मीनो) सुतो ॥३१॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लादीने तेह ॥६॥ कान दोय तेणे करमीया, बुचो थयो तिणी वार ॥ सांजली ब्राह्मण कोपीया, खोटो नील गमार ॥ ७॥ बार जोजन गंधे करी, बंदर नासे पूर॥ तेना कान केम करडीया, निडा तणे नरपूर ॥ ॥ एहवी अचेतन जेहने, दुर्गंध दीसे क्रूर ॥ तेहने कहो किम लीजीए, शानमीये केम नूर ॥ ए॥ मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो विप्र सुजाण ॥ एक दोष मंजारनो, अवर गुणनी खाण ॥ १०॥ विप्र वदे ए | केम घटे, श्रावण विणसे दूध ॥ स्नेह तूटे लोज खल्पथी, विचारी जुन निज बुद्ध ॥ ११॥ सुगंधी वस्तुमां एक कली, लसण करे उगंध ॥ गुण घणा शुं कीजीए, एक दोष टले बंध ॥ १२ ॥ मनोवेग कहे हिज सुणो, जो कीजे वादनी वात ॥ मिजार दोष हुं परहरुं, तो हिज करे मुज घात ॥१३॥ सत्य वचन मुज नाषतां, लोक न माने श्राज॥ कदाग्रही राजकुमर परे, केम कीजे हिजराज ॥१४॥ ___ढाल बीजी. | तुमे पितांबर पहेरी श्राव्याजी, मुखने मरकलडे-ए देशी. सकल वामव बोल्या वाणीजी, नाश्तुमे सांजलो॥पुलिंद तमे गुण खाणीजी ॥१॥ कदाग्रही पुरुष ते केहवोजी॥ना॥तेहनो गुण हतो जेहवोजी ॥ जाण ॥ वात सुणावो Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खम धर्मपरी अममेजी ॥ला शाबाशी दीजे समनेजी.॥ जाण ॥२॥ वचम सुणी मनोवेगजी जाकहे तुमे राखजो नेगजी जाणाकथा सुणी रखे कोपोजीमा वचन माहरो ॥३ ॥ रखे लोपोजीजाणा॥बगलाण देश मोकारजीना॥नंदरबार नगर उदारजीना॥ नरपति नामे जे राजाजी ॥जा॥ रूपिण राणीना गुण ताजाजी॥ ना ॥४॥ पुत्र हुन Kाजनम अंधजी ॥जा॥ सदु कहे कुमार अंधजीना॥ जाट नीखारीने तेहजीराजा श्रृंगार दान दीए एइजी ॥ना० ॥५॥ नित नवां दीए थान्तरणजी ॥ जा० ॥ मंत्री विनवे जश् राय चरणजी ॥जा०॥कुमार करे धन हाणजी ॥ना॥ मारीने कहे तिण Malगणजी॥ना॥६॥ कमारे माग्यां अलंकारजीजाणामारी कहे तिणी वारजी ॥ ना० ॥ श्राजूषण खुट्यां जंडारजी॥ना॥ शुं श्रापुं तुमने कुमारजी ॥ ना० ॥७॥ अंध कुमरे तज्यां अन्नपानजी ॥ ना ॥ उमनो थर सुतो एक थानजी ॥ मरपतिए सांजली वातजी ॥ना प्रधान तेकीने एकांतजी ॥ ना ॥७॥ अम घर एकज पुत्रजी नाणा तेह रुट्यो जाखे उनजी राजा॥ बुद्धिसागर मंत्री कहे तामजी लामा कुमर मनातुं हुं श्रासजी ॥ जाए॥मंत्रीए तेड्या सोनारजीना लोहना घकी आपो १ प्रीति. ३२॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रृंगारजी ॥ जा ॥ सोनीए घडीने श्राप्याजी ॥ ना०॥ कुमरने हाये जइ थाप्याजी ना०॥ १०॥ जोजन कराव्यु कुमारजी ॥ना मंत्री बोले तिषी वारजी ॥ ना॥ कुमर सुणो तुमे वातजी ॥ना॥ नंमारमाथी काढ्या तुम तासजी। ना॥ ११॥ एक श्रृंगार बे एहवाजी ॥ना॥ विघन निवारे तेहवाजी ॥ ना० ॥ श्रापशो मां तुमे कोशजानेजी ॥ना॥ श्रमे अपायुं तुम जोश्नेजी ॥ना॥ १५ ॥ जे को कहे लोहाजरणजी ना॥ तेहने मार देजो थावे मरणजी ॥ ना० ॥ कुमरे मान्यो तेहनो बोलजीनामा राख्यो मंत्रीनो तक तोलजी ॥ १३ ॥ लोक नणे ए अलंकारजी ॥ना॥ लोढानां श्रापे निरधारजी ॥ ना०॥ ताम कुमर करे तव रीसजी ॥ जालकुटी मारे तस शिशजी ॥ ना ॥ १४ ॥ पुःखीआ थया सह लोकजी ॥ चा०॥ कदाग्रही नाम दीयो थोकजी ॥ ना० ॥ जेहवो हु तेहवो बोलजी ॥ना॥ कदाग्रहीनी परे शो तोलजी ॥ १५ ॥ मनोवेग कहे सारजी ॥ना ॥ सत्य वचन निरधारजी ॥ ना० ॥ विप्र न मानो तुमे बोलजी ॥ना॥ केम रहे अमारो तोलजी ॥ जाण ॥ १६ ॥ तुम तणां वेद पुराणजी पना॥ अरथ कस्तां करो जो हेराणजी ॥शाणा ते माटे केम कहेवायजीवाणाश्रम सपी लाज लोपायजी ॥ ना० ॥ १७ ॥ जेणे श्रादयुं काम कमी जेहजीमामाते आणे - Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ३३ ॥ खरं सही तेजी ॥ जा० ॥ श्रतिमोही नर एक मूढजी ॥ जा०॥ तेहनी कथा चित्त धरो गूढजी ॥१८॥ बीजा खंडनी ढाल कही बीजीजी ॥जा० ॥ श्रोता सदु कहेजो जीजीजी ॥ जा० ॥ रंगविजय कविनो शिष्यजी ॥ जा०॥ नेमविजय प्रणमे निशदिशजी ॥ १५॥ उदा. विप्र वचन तव बोलीया, सुपरे जील सुजाण ॥ कथा कहो तिमोही तणी, सांजलवा सावधान ॥ १ ॥ मनोवेग तव बोलीयो, ब्राह्मण सुणजो सार ॥ कथा कहुं हुं रुयमी, विनोद तणो भंडार ॥ २ ॥ नमीयाम देशमां निरमली, नर्मदा नदी वहे सार ॥ दक्षिण तट तिहां गामको, शामंत नाम अपार ॥ ३ ॥ लोक वसे तिहां रुयमा, धर्म करे अभिराम ॥ माधव मेदेतो अति जलो, अधिकारी ति गाम ॥ ४ ॥ सुंदरी नारी तेह तणी, शीयलवंत गुणवंत ॥ ते बेदु जणथी पुत्र दुवो, सोनपाल नाम महंत ॥ ५ ॥ पुत्र प्रसुत हुवा पढी, माधव न गमे तेह ॥ सुंदरी रूप शुं कीजीएं, जोवन नातुं देह ॥ ६ ॥ शामंत गाम वसुदत्त वसे, सुरंगी नार सुचंग ॥ कुरंगी पुत्री ते तणी, रूप कला सुरंग ॥ ७ ॥ माधवे धन आपी घणुं, परणी कुरंगी नार ॥ जोवनजर रलीश्रामणी, तेहशुं नेह अपार ॥ ८ ॥ काम कुतूहल करे घणुं, इंडी लंपट तेह ॥ खंग १. ॥ ३३ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुरंगीए अति मोहीयो, जोगवे लोग तस देह ॥ ए ॥ सेजे कुरंगी कुसणी , अपर-1 शुं वांडे नोग ॥ कामे पीमी कामिनी, न मले तेने जोग ॥१०॥ ढाल त्रीजी. कंत तमाकु परिहरो-ए देशी. सुंदरीनां लक्षण जलां, शीलवंती शुन नार ॥ मोरा लाल॥पर नर दीगे नवि गमे, पाले शुरु आचार ॥ मो० ॥१॥ सूरिजन सांजलजो कथा ॥ ए श्रांकणी ॥ सुंदरीनो शील नवी गमे, कुरंगी करेरे कुरंग ॥मो० ॥ कोपे चमी नित्य कलकले, श्राप वखाणे || अंग ॥ मो० ॥ सू० ॥२॥ जरतारनो वली बल घणो, दीये अघटतां थाल ॥ मो॥ सापण सरीखी फुफुए, मुख मोडी बोले गाल ॥ मो० ॥ सू॥३॥ सुंदरी मनमां खीमा धरी, उपशमे श्राणे अंग ॥ मो॥ अशुभ कर्म कीधां में घणां, धर्म तणो कीयो नंग ॥ मो० ॥ सू० ॥४॥ कुरंगी कंथ श्रागल कहे, सांजलो खामि एकंत ॥ मो॥ Vवमी नारी तुम न रुयमी, अवगुणनो नहीं अंत ॥ मो० ॥ सू० ॥५॥शोकनी वात कशी कडं, कहेतां श्रावे मुज लाज ॥ मो० ॥ द्वेष माटे तुमे जाणशो, नहीं कहीए ते श्राज ॥ मो० ॥सू० ॥६॥ माधव कोप्यो धमहज्यो, तेहना सांजली बोल ॥मो Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्मपरी ॥ ४ ॥ वनितानो विश्वास करे, ते जाणीए निटोल ॥ मो० ॥ सू०॥७॥माधवे सुंदरी परहरी, खंग श्रलगुं प्राप्युं गेह ॥ मो० ॥ पुत्र सरसी जुश् करी, वहेंची आप्युं तेह ॥ मो० ॥ सूर ॥ ॥ श्राव बलद आप्या जला, दश आपी वली गाय॥मो० ॥ नाग की सहु वेंचीयो, लोके कीधो न्याय ॥ मो० ॥सूाए। अपर मंदिर सुंदरी रहे, नंदन सरसी तेह मो सद्गुरु ते प्रतिबोधीवा, जैन धरममां बेद ॥मोासू ॥१०॥ माधव कुरंगीशुं मोहीयो, |बोले जीजी नाष । मो० ॥ अबलानी आणा धरे, तेह तणो हुन दास ॥ मो ॥ सू० ||॥ ११ ॥ कटकाए चालीयो, देश तणो महीपाल ॥मो॥ माधव जणी पूत मोकथ्यो, तेमी लावो ततकाल ॥ मो० ॥ सू० ॥ १५ ॥ते तव श्रावी कत्यु, माधव म ला वार ॥मोणराजा कटके चालीयो, बोलाव्या फुफार मो॥सू॥१३॥ माधवने तक उपन्यो, कुरंगी उपर मोह ॥ मो० ॥ नारीने तेमी वीनवे, आपण होशे विडोह ॥ मो सू०॥ १४ ॥ कुरंगी कहे स्वामि सुणो, तुम विण घमीयन जाय ॥ मो० ॥ अन्नपान ते नवि रुचे, दिवस वरसां सो थाय ॥ मोप ॥सू० ॥ १५ ॥ अमे तुम साथे श्रावशें,||॥ ३४ ॥ सानही तो करशं प्रापघातामो०॥ मज उपर किरपा करी. मानो श्रम तणावात ॥म सू० ॥१६॥ तक माधव श्म बोलीयो, सांजल शीलवंती मार ॥मो॥ थोडे दिवसे यमे Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावशें, रुमी परे रहेजो घरबार ॥ मो० ॥ सू० ॥ १७ ॥ तुज सतीमां गुण जे घणा, लंपट लोक श्ह गाम ॥ मो० ॥ जगनी सुत महाबुझिने, शीष दर करजो घरकामy AMIT मो० ॥ सू० ॥ १७ ॥ एम कहीने ते चालीयो, पहोतो कटक मोकार ॥ मो० ॥ माधव मनमां चिंतवे, सदाए कुरंगी नार ॥ मो० ॥ सू० ॥ १५ ॥ ढाल त्रीजी बीजा खंगनी, रंगविजय कविराय ॥ मो० ॥ तस शिष्य नेमविजय कहे, आगे कहुं वात बनाय ॥ मो० ॥सू० ॥२०॥ उदा. कटके जव कंत चालीयो, तव हुवो दर्ष अपार ॥ कुरंगीने काम व्यापीयो, मांड्यो कुव्यापार ॥१॥ योवनजर रूपे नलो, सोनार चंगो नाम॥प्रपंच करी घर तेमीयो, एकांत बोली ताम ॥२॥ सांजलो स्वामि रुयमा, रूप तणा नंमार ॥ जोवनवंतां ह जणां, लाहो लीजे संसार ॥३॥ बद्धि माधव श्रम धणी, इंक काटवं तेह सफल जनम थाय श्रापणो, तुम मले सुख थाय देह ॥ ४॥ धूरत चंगो बोलीयो, सांजल नोली नार ॥ सात व्यसन सेवू सदा, ए मुज गमे विचार ॥५॥ तुम वचन मुज लोपतां, ब्रह्महत्यादिक होय ॥ वेद पुराणे आदर्यु, चतुर नर लोपे कोय ॥ ६॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥३५॥ एम कही बिहु जण मढ्यां, नोगवे लोग विलास ॥रात दिवस व्यभिचारीश्रा, धन शविलसे करे हांस ॥७॥ वर्ष एक एणी परे गयो, पाप करंतां तेद॥माधवनो श्रागज हुवो, दिन चन थावे गेह ॥ ॥ जारे श्रावतो जापीने, वाही कुरंगी नार ॥ धूरत धन ले गयो, गली कीध अपार ॥ ए॥ कटकी करीने श्रावीयो, माधव मोह धरंत ॥ आगलथी नर मोकल्यो, कुरंगी श्राव्यो कंत ॥ १० ॥ ढाल चोथी. राणकपुर रलीयामणुंरे लाल-ए देशी. नोजन नलां वेगे करोरेलाल, नूख्या बेनरतार ॥ सनेहीरे ॥ तेणे वचने कांखी थरे लाल, चिंता उपनी अपार ॥ सनेहीरे ॥ सूरिजन सांजलजो कथारे लाल ॥ए श्रांकणी ॥ १॥ सुंदरीने मंदिर गरे लाल, बेठी करीने प्रणाम ॥ स ॥ वमी बेहेन सुणो विनतिरे लाल, घरे आव्या श्रापणा वाम॥ स॥ सू॥॥ तुं बार वमी ज्ञामनीरे लाल, हुँ नानी तेह ॥ स० ॥ जोजन करावो जरतारनेरे लाल, राखो वरुपण देह ॥ स ॥ सू० ॥३॥ तव सुंदरी बोली श्सुरे लाल, मुजशुं प्रीत नहीं कंत ॥ स० ॥ नोजन नहीं करे मुज घरेरे लाल, कुरंगी सुण संत ॥ स०॥सू० ॥ ४ ॥ जमाडं ॥३५॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुज घर कंतनेरे लाल, श्म कही गई निज गेह ॥ स० ॥ सरल खनाव सुंदरी तणोरे लाल, रसवती नीपा तेह ॥ सम्॥ सू० ॥ ५॥ माधव श्राव्यो कुरंगी घरेरे लाल, भूमोह धरी बेगे बार ॥ स० ॥ मधुर खरे सादज करेरे लाल, उत्तर दीयो कुरंगी नार ॥ स ॥ सू० ॥६॥ घणे दीवसे अमे श्रावीयारे लाल, (हवे) सर्यां बेहुनां काज ॥ स० ॥ मनोहर तुं मुज कामनीरे लाल, बाहिर श्रावो तंजी लाज ॥ स० ॥ सूण ॥७॥ शब्द सुणी लोक बहु मल्यारे लाल, ( तेणे ) कडं कां पोकारो नार ॥ स० ॥ सबल लंपट पी रहीरे लाल, गली कीधी कोठे जार ॥ स ॥ सू० ॥ ॥ माधव कहे जूठ कां लवोरे लाल, शीलवंती मुज एह ॥ स ॥ मोह धरी घरमां गयोरे लाल, पाय पमी मनावे तेद ॥ स० ॥ सू० ॥ ए॥ हुँ नूख्यो जोजन दीयोरे लाल, लाज न कीजे जरतार ॥ स० ॥ कोप धरी कुरंगी नणेरे लाल, तुं मोटो उतार ॥ स० ॥ सू० ॥ १० ॥ सुंदरीशुं मोह तुज तणोरे लाल, जोजन रंधाव्युं तें त्यांहिं ॥ स० ॥ उठ जा घरमा तेह तणेरे लाल, पाखंड करी श्राव्यो आंहीं ॥ स० ॥ सू०॥ ॥ ११ ॥ सोनपाल नंदन बोलीयोरे लाल, बापना प्रणमी पाय ॥ स ॥ मंदिर पधारो पिता आपणेरे लाल, रसोश नीपा मुज माय ॥ स० ॥सू०॥१२॥ वयण सांजली तव Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खम ॥३६॥ धर्मपरीपुत्रनारे लाल, नय पाम्यो माधव ताम ॥ स० ॥ बोल बोले कुरंगी आकरारे लाल, मुख निहाले नारी तणुं थाम ॥स०॥ सू०॥१३॥ कोहाड डसी दांत एम कदेरे लाल, श्हां थकी जा जा धूतार ॥ सम्॥ टेक करवाने श्राव्यो इहांरे लाल, जणनारने जा घरबार ॥ स० ॥ सू० ॥ १४ ॥ कोप नारीनो जाणी आवीयोरे लाल, सुंदरी घरे ततकाल ॥ स ॥ मान दीधुं घणुं श्रावतारे लाल, सुंदरी मनमां उजमाल ॥ स ॥ |सू० ॥ १५ ॥ लेखे अवतार आज श्रावीयोरे लाल, स्नान करावे सुंदरी नार ॥ स॥ थाल मांड्यो जमवा नणारे लाल, पासे कचोलांनी हार ॥ स० ॥ सू० ॥ १६ ॥ पक्- वान्न पीरस्यां प्रेमे करीरे लाल, साल दाल घृत पूर ॥ स ॥ माधव महेतो मन में चिंतवेरे लाल, कुरंगी रूठी उःख नूर ॥ स ॥ सू० ॥ १७ ॥ मधुरी वाण सुंदरी||N कहेरे लाल, जोजन नवी करो केम ॥ स ॥ तव माधव एम. उंचरेरे लाल, नवि. नावे अन्न मुज जेम ॥ स सूरजलघु नामनी शाक आणे श्हारे लाल, तो अमृत लागे अन्न ॥ स ॥ तव सुंदरी लेवा गरे लाल, हाथ कचोलो ले मन ॥ स०॥ सू॥१॥ ढाल चोथीबीजा खंडनीरे लाल, रंगविजय कवि शिष्य ॥ स॥ नेमविजय कहे नित प्रतेरे लाल, प्रणति करुं निशदिश ॥ स ॥ सू० ॥ २० ॥ LOWL... . Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. कुरंगी बेन तमे सांजलो, न करे जोजन जरतार ॥ मुजने मोकली लेवा नणी, शाक उपर बहु प्यार ॥ १॥ कुरंगी जाएयु कंत मोहीयो, परीक्षा करुं हवे एह ॥ वृक्ष बलदनो गण देखीने, चणा दाल खाधी जेह ॥२॥ गण कचोढुं जरी करी, लाप्यो सुंदरी हाथ ॥ माधव नणी जश्थापीयो, उष्ण शाकडे नाथ ॥३॥ कुरं गीए शाक मोकल्युं, देखी रीज्यो नाथ ॥ जमतां वखाणे घj, रुडा एहना हाथ ॥॥ जमी उठ्या माधव तिहां, तेड्यो निज नाणेज ॥ एकांत जर पूजे सही, केम उतार्यो कुरंगी हेज ॥५॥ महाबुद्धि तव बोलीयो, सुण मामा एक वात ॥ शील लोप्युं तुम कामनी, खाधुं धन जार संघात ॥६॥ माधव बोल्यो सांगली, सांजल तुं लघु नार ॥ संपदा सघली किहां अजे, तुमे वावरी कुण गर ॥ ७ ॥ कुरंगी बोली ततहीणे, नाणे||जनो ए नेद ॥ सांजलजो धुरथी सहु, वात कहुँ ध्रुव वेद ॥॥ मुजशुं हास्य करे बहु, एक दिन वलग्यो तेण॥हृदय वतुर्यु मुज तणुं,अधिक कहुं शुंएणाणापुण्य तणा परनावथी, शील राख्यु में नेठ ॥ कष्ट दी, मुजने घj, घणी पाडी मुज वेठ॥ १०॥ धन खाधुं एणे बहु, तस्करी करतो नित्य ॥ जपरने देतोसदा, वावर्यु एम घर वित्त ॥१२॥ सुणी माधव Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीकोपे चड्यो, तेमावी ततकालनाणेज नणी ढींक पाटुए, मार दीधी तेणे ताल ॥१२॥घरथीपाखंम २ काढी मेलीयो, लोक करे अपवाद ॥वांक नहीं नाणेजनो, विण वांके कीधो वाद ॥१३॥लोके ॥३७॥ मली विचारीने, माधवनो दीयो नाम॥अतिमोही नर एहवो, सहु कहे गमोगम ॥१॥N ढाल पांचमी. _जंबछीपना नरतमां, एलावरधनपुर सारोरे-ए देशी. मनोवेग कहे सांजलो, विप्र विचारो जेमरे ॥अतिमोही नरनी परे, तुमे करशो वली तेमरे ॥ सूरिजन सांजलजो कथा ॥ ए आंकणी ॥१॥ जे जेणे वस्तु मोहीया, ते जाणे एह साररे ॥ शुज अशुन जाणे नहीं, नूला जमे गमाररे ॥ सू० ॥२॥ वेद पुराण जे तुम तणां, तेणे मोह्या अपाररे ॥ वचन तेह तणां श्रादरी, अघटतुं करे संसाररे ॥ सू० ॥३॥ यथार्थ वचन मुज नाखतां, जो होय शिदा पातरे ॥ नाणेज महाबुद्धिनी परे, (केम न ) होये श्रम तणो घातरे ॥ सू० ॥ ४ ॥ नक्ष अनद अंतर कह्यो, पेय अपेय विचाररे ॥ अनाचार श्राचार नहीं, ते नर मूढ गमाररे ॥४॥३७॥ सू० ॥ ५॥ ब्राह्मण वयण तव बोलीया, सांजलो नाइ नीलोरे ॥ श्रम मांहीं मूढ को नहीं, अतिमोही कुशीलोरे ॥ सू० ॥ ६ ॥ वामव कहे जार सांजलो, मंजारमा एक Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोषरे ॥ केम परहरशो श्रमने कहो, कोइ न करे तुम रोषरे ॥ सू० ॥ ॥ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, विप्र सहुको सुजाणरे॥ वेद पुराणमां जे कद्यु, तेहवी बोलु अमे वाणरे ॥ ७॥ नर्मदा नीर वहे निरमधं, ते कांठे वन सोहे साररे ॥ तापसी पनी तिहां अडे, तापस तपसी अपाररे ॥ सू० ॥ ए॥ मंडपकोशीक तप करे, अहोरात्रि जपे हरि रामरे॥ तापस सर्व बहु तप तपे, स्नान मज्जन रेवा गमरे ॥ सू० ॥ १० ॥ पंचाग्नि धुम्रपानशुं, कंद मूल नदण तेहरे ॥ मोटी जटा मस्तक धरे, पांच इंडि दमे देहरे ॥ सू० ॥११॥ सोमदत्त जजमान नलो, तपसीयांने दीये दानरे ॥ एकदा तापसी नोतर्या, तेड्या सहु दे मानरे ॥ सू० ॥१२॥ विविध प्रकारे नोजन कर्या,बेसणां मांड्यां हारवंधरे॥थाल कचोलां मांड्यां घणां, शाक पक्वान्न सुगंधरे ॥ सू० ॥ १३ ॥ मंझपकोशीक देखीने, बीजे तापसे निंदा कीधरे ॥ थाल मूकीने चाल्या सहु, कोपे दंताधर लीधरे ॥ सू० ॥ १४ ॥ धाइ जजमाने पूर्वीश्रा, जमवा बेग उठ्या केमरे ॥ शुं अपराध अमारडो, काज विणास्यो मुज तेमरे ॥ सू० ॥१५॥ वृद्ध तापस तिहां बोलीया, सांजलो सोमदत्त देवरे ॥ मंडपकोशीक तमे नोतर्या, पंक्तिमा बेसाड्यो खेवरे॥सू॥१६॥मंम्पकोशीके पूबीजं, में शुं कीधो अपराधरे ॥ दोष - Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ३८ ॥ काढ्यो तापसे श्रम तो, फोगट विगोयो कांइ साधरे ॥ सू० ॥ १७ ॥ घरढा तापस तव बोलीया, सांजल मूढ गमाररे ॥ नारी विना तुं वांकीयो, ब्रह्महत्या पग पग साररे ॥ सू० ॥ १७ ॥ पुत्र विना सद्गति नहीं, स्वर्ग मुक्ति नवि होयरे ॥ पुत्र तणुं मुख जोइने, तापस दीक्षा धरे सोयरे ॥ सू० ॥ १७ ॥ मोटो अपराध तुमे कर्यो, थाल विचे चोट्यो तेहरे | पापी नर जाणी उठीया, मूकी जाणां जय गेहरे ॥ सू० ॥ ॥ २० ॥ मंडपकौशीक एम जणे, सांजलो तापस राजरे ॥ बुढो देखी मुज कोण दीए, विप्र कन्या सारे काजरे ॥ २१ ॥ तापस बोल्या सुपो तापस, पुराण स्मृति बोल्युं एमरे || पांच यापद जे स्त्रीने होये, परणो ते मांहेनी तेमरे ॥ सू० ॥ २२ ॥ नासी गयो नर जेहनो, मरण पाम्यो वली जेहरे ॥ तापस थयो नारी तजी, नपुंसक दुवों पढें तेहरे ॥ सू० ॥ २३ ॥ घरको हुई कंत जे तणो, नारीने आपदा पंचरे ॥ एह मांही जेहवी मले, एक परणो करी संचरे ॥ सू० ॥ २४ ॥ नष्टे मृते प्रत्रजे च, क्लिबे च पतिते पतौ ॥ पंचखापत्सु नारीणां पतिरन्यो विधीयते ॥ २५ ॥ वीजा खंड तपी कही, ढाल पांचमी वारुरे ॥ रंगविजय कविरायनो, नेम कहे श्रोता सारुरे ॥ सू० ॥ २६ ॥ खंग २ ॥ ३८ ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. NI अपत्य सहित जे कामिनी, पुरुष चाल्यो परदेश ॥ आठ वरष वाट जोश्ने, अन्य नर साथ प्रवेश ॥१॥ संतान रहित जे ब्राह्मणी, कंत गयो व्यापार ॥ चार वरष लगे वाट जोश, पछे अवर जरथार ॥॥स्मृति वाक्यम् ॥अष्टौ वर्षाणि पश्येत, ब्राह्मणी पतिते पतौ ॥ अप्रसूता च चत्वारि, पुरतोऽन्यः समाचरेत् ॥ वचन सुणी तापस तणां, मंझप हरख्यो ताम ॥ रांमी ब्राह्मणी परणी, माणी तेहनुं नाम ॥३॥ लोग नोगवतां बेहु थकी, पुत्री हुश् गुण माल ॥ वर्ग रंना जाणे अवतरी, बाया नाम रसाल ॥४॥ आठ वरषनी जव थर, (क) मंडपकौशीक सार ॥ सांजल नामनी तुज कहुं, तीरथ जात्रा कीजे अपार ॥५॥ गया (पुत्री) मूकीशुं किहां, गम कहो मुज खास ॥ तापसी कहे खामि सुणो, मेलो थापण शंकर पास ॥६॥ मंडपकौशीक एम नणे, सांजल नोली नार ॥ हर लंपट चंचल सदा, नवि बोडे कन्या सार ॥ ७॥ कामनी कहे बोलो करुं, महादेव त्रिजुवन धीश ॥ लोक सहु पूजे तेहने, व्यभिचारी नोहे ईश ॥ ७॥ तापस कहे सुण कामनी, ईश्वरचरित्र कहुं जेह ॥ महीमंमल मोटो जलो, कैलास पर्वत तेह ॥ ए ॥ गौरी शंकर सुख जोगवे, करे तप जप धरी ध्यान ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी त्रिकाल संध्या कारणे, गंगाए गया जगवान् ॥ १० ॥ स्नान करी देव पूजीया, संध्या खंग ॥३एवंदन कर्यु सार ॥ तिणे अवसर कांठे देखीजं, गंगा नारी रूप फार ॥ ११ ॥ गंगा लादेखी विद्ववल थयो, कामबाण पीड्यो ईश ॥ ध्यान मूकी मन चिंतवे, उर्वशी रंना सुरीश ॥ १२॥ एह कन्या मुजने वरे, सफल देह पण थाय ॥ रूप रच्यु कुंवर तणुं, लघु वय कोमल काय ॥ १३ ॥ ढाल बही. __ एणे पुर कंबल को न लेशी, फेर पाला चाल्या परदेशी-ए देशी. फेरवी रूप हुवो जग त्रात, गंगा सरसी मामी वात॥ सांजल कुमरी मनोहर नार, वाणी तुं हृदय विचार ॥१॥एकला वनमां कारण कशं, माझं मन तुज जपर वस्युं ॥ त्रिजुवन मांहिं तुं रुमी नार, जोवन सफल करो संसार ॥२॥ कुमरी कहे मुज गंगा नाम, परणी नथी कंथ श्रनिराम ॥ केम करीए मोटो व्यनिचार, ए नोहे उत्तम श्राचार ॥ ३ ॥ शंकर कहे सांजल कुमारी, ढुं कुंवारो बुं निरधारी ॥ सरीखोला ॥३ए ॥ जोग मत्यो बे घणो, करीए कारण विवाह तणो ॥ ४ ॥ गंगा वचन गम्युं ते सार, संदेपे कीधो आचार ॥ काम क्रीमा कीधी बेहु घणी, सुख पाम्यो तव ईश्वर धणी Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥५॥ कैलास चडवा चाल्यो जाम, कामनीए कंथ पूज्युं ताम ॥ परणीने क्यां जाशोना नाथ, अमे श्रावीशुं तमारे साथ ॥६॥शंकर कहे सांजल तुं सुंदरी, मुज मंदिर ने गिरि उपरी॥ तिहां रही निरमल ध्यान धरु, नारी संगति तव परिदरं ॥७॥ त्रण काल आई तुम जणी, काम क्रीडा करशुं बेहु घणी ॥ तमे रहेजो तमारे गम, शीघ्र श्रावीशु अमे करी काम ॥ ॥ एम कही ते चाल्यो जाम, पुंठे लागी गंगा ताम ॥ कैलास उपर चमी बेय, पारवतीए दीगं तेय ॥ ए ॥ गौरी कहे सांजल |सुंदरी, कोण नारी तुं केने वरी ॥ गंगा कहे सांजलरे संत, अमे जान्हवी ए मुज कंथ ॥ १० ॥ पारवती कहे तुमे अंज, केम नोगवशो मुज वालंज ॥ गंगा कहे पूबो वृतांत, मुज रतिक्रीमा कहेशे कंथ ॥ ११॥ उमीया कहे सांनलो नरतार, कुण कामनी ए केहेंनी नार ॥ शंकर पत्नणे सुण सुंदरी, क्रीडा करतां में गंगा वरी ॥ १५ ॥ गौरी कहे सुण निर्लङ निगेर, लंपट धुतारो तुं ने जोर ॥ असंतोषी कामी तुं सही, हुँ नारीए तृप्ति तुज नहीं ॥ १३ ॥ गंगा सरीखो करशो नेह, तो हुं मारी मूकीश देह ॥ सांजली शंकर बोल्या ताम, रूपवती तुंबे अनिराम ॥१५॥ तुज जपर मज प्रेम अपार, गंगा तणो करशुं परिहार ॥ संतोषी पारवती सार, मूकवा चाल्यो गंगा नार Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ४० ॥ ॥ १५ ॥ जान्हवी तीरे लाव्यो जाम, काम कुतूहल कीधो ताम ॥ गंगा राखी जटा मोकार, नारी बेशुं करे व्यापार ॥ १६ ॥ मंरुपकौशीक कहे वृतांत, शंकर न होये एहज संत ॥ सुर नर खेचर जाणे सहु, महादेव व्यनिचारी बहु ॥ १७ ॥ थापण ववीए ईश्वर पास, तो सही पामे पुत्री विषास ॥ दूध जलावीए जो मंजार, तो शंकर शुं करो व्यापार ॥ १८ ॥ तापस नारी बोली ताम, ईश्वर मोटो एहनो ठाम | छायाने मूकीशुं तिहां, विचार करीने बीजो जिहां ॥ १७ ॥ कामनी कहे सांजलो तुमे कंत, बाया ववीए पासे अनंत ॥ वासुदेव भुवन त्रय राय, सुर नर जेना सेव पाय ॥ २० ॥ तापस कहे सांजलरे नार, ए मोटो गोवालणीनो जार ॥ केम उवीए ए पासे बाल, सहु जाणे ए परस्त्री काल ॥ २१ ॥ तापसीए विनवीया कंत, स्वामि कथा कहो ते संत ॥ मंरुपकौशीक बोल्यो ताम, सांजलजो नारी अनिराम ॥ २२ ॥ ढाल बही बीजा खंगनी सारी, नेमविजय कड़े निरधारी ॥ श्रोता सांजलजो सहु कोय, वात कहुं जे आगल होय ॥ २३ ॥ उदा. रामती नगरी अबे, दामोदर त्यां राय ॥ नारी सोल सहस्रनो, अधिपति ते कदेवाय ॥ १ ॥ एक दिन दीठी गोवालणी, राधा जेनुं नाम ॥ मही मटुकी मस्तक खंग २ ॥ ४० ॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धरी, वेचण यावी ताम ॥ २ ॥ दहीं दूध जाजन जरी, यावी केशव पास ॥ श्रच रिज पाम्या रूपथी, ते वितक सुण तास ॥ ३ ॥ कामे पीमाणो घणो, विरहानल संताप ॥ अवर नारी ते नवि गमे, लेइ लागी ते आप ॥४॥ सोल सहस्र गोपी तणो, त्यां उतार्यो मोह || राधा उपर प्रति घणो, पाम्यो त्यां व्यामोह ॥ ५ ॥ सुण राधा गोवालणी, तुजशुं रंग अपार ॥ अवर नार मुज नवि गमे, तुज सम को नहीं संसार ॥६॥ दा आप मटुकी तपुं, सांजल मारी वाण ॥ प्रेम धरो मशुं तमें, म करो खेंचा ताण ॥ ७ ॥ तव बोली राधा तिहां, सांजल राजा राम ॥ पुरुषोत्तम ए वातमां, किम सीजे तुम काम ॥ ८ ॥ नारायण सुर नर कहे, प्रयुक्त बोलो श्राज ॥ मोटा पण खोटा दिये, राखो तुमारी लाज ॥ एए ॥ नीच जाति श्रहीरनी, जोला श्रमे नरवाम ॥ तेहने एवं केम घटे, पेखी किम पमो खाम ॥ १० ॥ ढाल सातमी. कर जोकी कामनी जंपे, कहेतां थरहर काया कंपे-ए देशी. सांजल धर्मशास्त्र विचार, ए नहीं उत्तम श्राचार | परनारी लंपट नर जेह, मरीने डुरगति जाये तेह ॥ हो लाल ॥ सुणजो साजन सहुको ॥ ए कणी ॥ १ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खक धर्मपरीरात दिवस जे बांधे पाप, नगर मांही लहे ते संताप ॥ सदा जव होये अशुन्न ध्यान, तेहने को नवि दीये मान हो ला०॥ सु०॥२॥ कर्मजोगे जो राजा जाणे, छेदन नेदन ॥४१॥ I.बह करे कामे ॥ दंडे मुंडे लोकने बांधे, करावे गर्दन रोहण खांधे॥ हो ला॥ सुन ॥३॥ लिंग नासिका होये छेद, सजान सहुको पामे खेद ॥ कालां मुख होवे बांधव || तणां, लजा पामे कुलवंत घणा॥हो ला ॥॥॥ फिट फिट करे सहु कोय, मित्रवर्ग सहु उःखी होय ॥ दान पूजा जश लोपाय,कृष्ण वदन लोकमां थाय ॥ हो ला ॥ सु० ॥ ५ ॥ ते उपर कथा सुणो एक, जेथी श्रावे तुमने विवेक ॥ को गाम रहे एक शेठ, राज काजनी करे ने वेठ॥हो ला ॥सु०॥६॥तेहने श्रीमती नामे नारी, रूपे रंना सुर अवतारी॥शेठने प्रोहीतशु मित्रा, नित श्रावे जावे घर धा॥हो ला ॥ सु॥७॥ एक दिन ते शेठ विचारी, परदेश चाल्या परवारी॥प्रोहीतने नलावी गेह, तस नारीशु मांड्यो नेह ॥ हो ला ॥ सुम् ॥ ॥ शीलवंत नारी कहे ताम, केम कहो बो मुजने श्राम ॥ तव बोल्या प्रोहीत तेह, जो करशो मुजणुं नेह ॥ हो ला ॥ सु०॥ ए॥ तो सुख थाशे तुमने, राजी करशो जो अमने ॥ जे कहेशो ते विधि करशुं, तुम वयण अमे दिल धरशुं ॥ हो ला ॥ सु० ॥ १० ॥ तव चिंतवे नारी एम, शील रहेशे माहरु ४१॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कम ॥ एवी बुद्धि कोश्क उपाजं, प्रोहीतनी लाज लोपाईं ॥ हो ला ॥ सु० ॥ ११ ॥ एम चिंतवी बुद्धि उपाश, प्रोहीतने कहे समजा ॥ पोहोर रात्रि जाये तेणी वार, श्रावजो थाहशियार ॥ होला ॥ सु० ॥१२॥ प्रोहीत थयो तव राजी. गयो निज घर मनमां गाजी॥कोटवाल पासे गश् नारी, तमे बो नगर तणा अधिकारी॥ होला ॥ सु० ॥१३॥ प्रोहीत वांडे मुजणुं प्रीत, तेनी कहेवा श्रावी ढुं रीत ॥सांजली कोटवाल तव बोले, नहीं नारी अवर तुम तोले होला ॥ १४ ॥ अमशुं जो राखशो राग, तो प्रोहीतनो शो लाग ॥ एम सांजली नारी कहे वात, बीजे पोहोरे आवजो रात ॥ हो ला ॥ १५ ॥ तिहांथी ग सचीवनी पासे, वात धुरथी कही नवासे ॥ तुमे नगर | तणा अधिकारी, कोटवालने राखो वारी ॥ हो ला ॥ सु० ॥ १६ ॥ कामांध थयो नारी देखी, कोटवालने नाखुं उवेखी ॥ मुज आगे बल यो एहनो, वयण मानशो मां कां कहेनो ॥ हो ला ॥सु॥१७॥ सचीव कहे मुज साथे, मेलो मेलव्यो जे जगनाथे॥ सुंदरी कहे त्रीजे पहोरे, आवजो थर थापणे तोरे ॥हो ला ॥ सु॥२०॥ राजा न|णी चाली श्रावी, वात धुरथी कही संजलावी ॥राजा पण रीज्यो जोइने, बीसो मां वयण कहे कोश्ने ॥ हो ला०॥सु०॥ १५॥ ढुंगाम तणो बुं राजा, कोण लोपे माहरी Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंग ॥४ ॥ माजा ॥ प्रोहीत प्रधान कोटवाल, तेहने काढी मूकुंरे ततकाल ॥ हो ला ॥ सु ॥२॥ हुँ थापुं करी पटराणी, बीजी तुम आणे पाणी ॥ तव सुंदरी कहे तुमे राय, चोथे पोहरे मुज घर मांय ॥ हो ला ॥ सु० ॥१॥ त्यांथी थावी निज घर माहे, पाडोसण डोसी जे त्यांहे ॥ तेहने तेमी समजावे एम, कागल लखी आपुं जेम ॥ हो ला ॥ सु० ॥२२॥ बीजा खमनी सातमी ढाल, नेमविजय कहे उजमाल ॥ तुमे सुणजो बाल गोपाल, आगल कहुँ वात रसाल ॥ हो ला ॥ सु० ॥२३॥ उदा. कागल ल उतावली, रात रहे घमी चार ॥ रोती रमती आवजे, करती अति पोकार ॥१॥ समजावी पामोसणी, घरमां एक मजूस ॥तेहमां खानां चार बे, चोखी करी ल लूस ॥१॥ एम करतां संध्या थर, श्राव्योप्रोहीत जाम ॥आदरमान दीधो घणो, लटपट करती ताम ॥३॥ नोजन नाजन करे घणां, सजी सोल शणगार ॥ हाव नाव देखामती, पोहोर रात तेणी वार ॥४॥ कोटवाल रही बारणे, कहे| कमाड उघाम ॥ मांहीं थकी बोली तिहां, हुँ जोतीती वाट ॥५॥ तव प्रोहीत नारी नणी, कहे हवे कोण हेवाल ॥ जो जाणे मुजने सही, टाले गम ततकाल ॥६॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IN|मजूस एक ले माहरी, तुम पेसो ते मांहिं ॥ गम न पडे कोइने कशी, मौन करी रहो | त्यांहिं ॥ ७॥ प्रोहीतने मांहिं घालीयो, यंत्र जमीने हार ॥ तलार घरमां तेमीयो, बोलावे तेणी वार ॥ ७॥ खातां पीतां खांतरां, दोय पोहोर ग रात ॥ त्रीजा पोहो रे श्रावीयो, सचीव यश् रलियात ॥ ए ॥ बीन्यो कोटवाल एम कहे, मुज सांतो कोश लगम ॥ मुजने देखे जो श्हां, न रहे माहरी माम ॥१०॥ बीजे खाने घालीयो, सचीन वने लीधो मांय ॥गीत गान करती थकी, सचीव तणो गुण गाय ॥११॥ चोथो पोहोर |||जव यात्रीयो, राजा बोल्यो वाण॥कमाग उघाडो उतावलां, देखे को अजाण ॥१२॥ भासचीवे सादज सांजल्यो, थरथर धूजे काय ॥ नारी जणी बोले तिहां, मज सांतो को गय ॥ १३ ॥ त्रीजे खाने घालीयो, राजा लीधो मांहिं । नयण बाण लगामती, रीजवे राजा तांहिं ॥ १४ ॥ चार घमी रात पाडली, श्रावी पामोसण नार ॥ कागल हाथमां लेश्करी, निपट करती पोकार ॥ १५ ॥ ढाल आठमी. . करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे-ए देशी. उठ उठ रे रांग तुं सूझ रहीरे, मूर्व तुज जरतार ॥ कागल श्राव्योरे आज परछी Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ४३ ॥ पनोरे, सांजल मूर्ख निरधार ॥ सांजलजो श्रोतारे, कथा यचरिज तणीरे ॥ ए की ॥ १ ॥ सांजली नारी रुदन करे श्रति घरे, कुटे हृदय ने शीष ॥ सगां साजन सदु श्रावी मल्यांरे, द्वार उजां पाडे चीस ॥ सां० ॥ २ ॥ मांदे बेठो राजा मन चिंतवेरे, दुवो रंगमां जंग ॥ मुजने सांतो कोइ एकांतमारे, यांवी लाग्यो व्यंग ॥ सां० ॥ ॥ ३ ॥ नारी कड़े तुमे मोटा राजवीरे, किहां सांतुं नथी ठाम ॥ कहो तो मजूस एक मोटो बेरे, मौन करी रहो धाम ॥ सां०॥४॥ कदे राजा तुमे शीघ्र थ हवेरे, म करो दील लगार ॥ चोथे खाने राजाने घालीयोरे, प्रपंच करी तेणी वार ॥ सां० ॥ ५ ॥ नर नारी श्राव्यां घरमां वहीरे, खारीम कारीम कीध ॥ एम करतां परजात थयो हवेरे, वात थइ परसीध ॥ सां० ॥ ६ ॥ वात सुणी दरबारमां राणी एरे, खबर करो जइ राय ॥ चाकर दोड्या नूपने शोधवारे, दीठा नहीं कोइ राय ॥ सां० ॥ ७ ॥ सचीवने शोध्या सारा शहेरमारे, दीसे नहीं कोटवाल | प्रोहीतने जोया वली चिहुं दिशेरे, फरी याव्या ततकाल ॥ सां० ॥ ८ ॥ राणी कड़े ए शेठ दतो वांकीयोरे, एनो माल होये जेह || राणी जाणे गुपत राजा वच्चेरे, मंगावी ले ते ॥ सां० ॥ ॥ ए ॥ सेवक दोडाव्या राणीए तताखणेरे, एढ्ना घरमां वस्तु सार ॥ लावो जश्ने खंग २ ॥ ४३ ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को जाणे नहींरे, ढील म करजो लगार ॥ सांग ॥ १० ॥ चाकर चाव्या सहु थ एक मनारे, पहोंत्या शेग्ने गेह ॥ नारीए दीधो श्रादरत्नाव श्रावतारे, बोल्या अनुक्रमे तेह ॥ सांग ॥ ११॥ सार वस्तु जे तुज घरमां. होयरे, ते आपो अमने थाज ॥ तव बोली ते नारी सांजलीरे, साचा कहुं तुमे राज ॥ सांग ॥ १२॥ मजूस मोटी घरमां अबेरे, माल मांहीं ले सार ॥ वृषन जोडी खेर जावो तुमेरे, मेव्यो | मुज नरतार ॥ सांग ॥ १३ ॥ सांजली दोड्या अनुचर उतावलारे, वृषन आण्या ततकाल ॥ जोडी वृषन तणावी ले गयारे, राणी थर उजमाल ॥ सांग ॥ १४ ॥ ताला उघामी मांदेथी काढीयोरे, प्रोहीतने तेणी वार ॥ राणी कहे तुमे पेग केम हारे, अद्भुत वात अपार ॥ सांग ॥ १५ ॥ तव प्रोहीत कहे बीजुं बार[रे, उघामी देखो देव ॥ ततदण उघाड्यो जव सहु मलीरे, दीगे कोटवाल ततखेव ॥ सांग ॥ १६ ॥ अचरिज देखी राणी एम कहेरे, चोकी करवा काज ॥ तस्कर पकमवा पेग तुमेरे, नली राखी तुमे लाज ॥ सांग ॥ १७ ॥ मुख ढांकीने कोटवाल एम कहेरे, उघामो त्रीजुं बार ॥ तेहवे राणीए कपाट उघामोरे, सचीव दीगे तेणी वार ॥ सां० ॥ H॥ १७ ॥ राणी कहे तुमे दफतर मांझवारे, जश् पेग एकांत ॥ सचीव कहे तुमे मुजने Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ ४॥ कहोरे, केम थर रह्या निचिंत ॥ सांग ॥ १५ ॥ राजाजी साथे सहु मली श्रमे || गयारे, चोथो उघामो गम ॥ ततदण राणीए छार उघामीयुरे, नीचुं घायु ताम ॥ सांग ॥ २० ॥ चादर उढी मुखने सांतीयुरे, फिट फिट करे सहु लोक ॥ उठी त्यांथी | गया निज निज घरेरे, चिंतवे मनशुं फोक ॥ सांग ॥१॥ बीजा खंमनी ढाल ए नाथाठमीरे, नेमविजय कहे सार ॥ श्रोता. सांजलजो सहु एक मनारे, जे वात | होये निरधार ॥ सांग ॥२२॥ दा चारे मली मन चुंपशु, पाणी शुद्धि विवेक ॥ सासरवासो करीये सही, तो उतरे थापणी वेक ॥१॥ ते नारी तेडावीने, कीधी नगनी तेह ॥ सासरवासो करी नलो, वोलावी फरी गेह ॥२॥ एम राधा केशव नणी, समजावे कही वात ॥ परनारीना | संगयी, उपजावे उतपात ॥३॥ नारायण मोटा देवता, लागी मुंडी देव ॥ दामोदर बोल्या तुरत, सांजलो राधा हेव ॥४॥धर्मशास्त्र जाणुं श्रमे, वचन म लोपो आज ॥ परउपगारी परगजु, मोटी तुमारी लाज ॥ ५ ॥ अमे नामनी बहु उधरी,INI कुबजा सरखा केय ॥ पुराण प्रसिझ जाणे सहु, नाकारो मत देय ॥६॥ राधा तव ४ ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजी थइ, ठालो घर कोइ जोय ॥ तेमां गइ उतावली, बेहु जण मलीयां सोय ॥ ७ ॥ वैकुंठे संतोषी घणुं, राधा जोमी हाथ ॥ कहे खामी मुज जाए द्यो, रीस करशे मुज नाथ ॥ ८ ॥ काम काज घरमां घणां, लुच्चो मुज जरतार ॥ क्रोधी गाल थापे घणी, जो जाणे व्यजिचार ॥ एए ॥ राते मुज घर श्रावजो, गुप्त करी तुम देह ॥ घर निशानी सौ कही, पोहोती निज घर ते ॥ १० ॥ ढाल नवमी. कीसके चेले कीसके पूत, श्रातम एकीला हे अवधूत - ए देशी - ( राग बंगाली . ) विरहानल वाध्यो गोविंद, सघले देखे राधा वृंद ॥ मन मान ले ॥ तालावेलि' टलवले तन, कोड सूरज बले व्याकाशे मन ॥ म० ॥ १ ॥ शीत लागे वे अगनी समान, एम करतां श्राथमीयो जाण ॥ म० ॥ रात पकी हुवो अंधकार, गोविंद पहोंतो गोवालपी बार ॥ म० ॥ २ ॥ तस्करनी परे श्राव्या देव, द्वार दीघां दीगं ततखेव ॥ म० ॥ वैकुंठनाथ विभासे ताम, लोक सुता बे एणे ठाम ॥ म० ॥ ३ ॥ बोलावीश तो जागशे लोक, चाम चोरी पमशे मुज फोक ॥ म० ॥ मौन धरुं तो काम न होय, १ एकज ध्यान. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ४५ ॥ बोलुं तो जाणे सदु कोय ॥ म० ॥ ४ ॥ अंगुलीनो संचल कीध, टपोरे कपाटे दीध ॥ म० ॥ राधा बोली जोती वाट, अंगुलीए कोण दणे कपाट | म० ॥ ५ ॥ श्रमे माधव तुं ते महंत, राधा कदे तुमे हो वसंत ॥ म० ॥ नहींरे कामनी हुं चक्रीश, राधा कहे कुंजारनो ईश ॥ म० ॥ ॥ धरणीधर हुँ मोटो देव, शेषनाग तुं श्राव्यो देव ॥ म० ॥ नारे ही मर्दन अजिराम, राधा कहे गरुड तुज नाम ॥ म० ॥ ७ ॥ नहींरे हुं हरि जगदीश, राधा कहे तुं वानर ईश ॥ म० ॥ विष्णु कहे राधा म करो दव, उत्तर देवाने यमे तुं वठ ॥ म० ॥ ८ ॥ राधा रंगे हास्युं एम करी, बार उघाडी लीधा मांदे हरि ॥०॥ काम कुतूहल मांड्यो ताम, जानूदय पाम्यो वली जाम ॥ म॥ए॥ रात्रिए जइ अन्यायज करे, दिवसे यावी राज्य उधरे ॥ म० ॥ नारायण लक्षण बे एह, बाल गोपाल जाणे बे तेह ॥ म०॥ १० ॥ तापस कहे सांजल तापसी, वात विचारी जुर्जने असि ॥ म०॥ सोल सहस्र स्त्री नहीं संतोष, हरिने मोटो परनारी दोष ॥ म० ॥ ११ ॥ थापण ठवीए दरिनी पास, तो पुत्रीनो होये नाश ॥ म०॥ अवर विचार करीशुं जेम, बाया बाला मूकीए तेम ॥ म० ॥ १२ ॥ ताम तापसी वदे वर वाण, सांजलो स्वामि तुमे हो जाए ॥ म० ॥ वात कहुं एम विचारी एक, सृष्टि निपाइ ब्रह्माए विवेक खंग १ ॥ ४५ ॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ १३॥ तप जप संजम करता एह, कृषि सघलामां मूलगो तेह ॥ म ॥ सुर नर मांहीं कहीए सार, बाया पुत्री नलावो कुंवार ॥ म॥ १४ ॥ आपण जश्ए जात्राने काज, तो आपणी रहे जगमा लाज ॥म ॥ खंग बीजानी नवमी ढाल, नेमविजय कहे थश् उजमाल म॥१५॥ उदा. नारी वचन सुणी करी, तापस कहे गुणधार ॥ ब्रह्मा लंपट नहीं जलो, नवी बोडे परनार ॥१॥ पुराण मांहे कडं इस्यु, ते सहु जाणे लोक ॥कांता कपटी ए कह्यो, मुज वाणी नहीं फोक ॥२॥ ब्रह्मा तप जप करे घणो, गंगा कांवें निवास ॥ कंठ जनो करवडो, जप माला जपे जास ॥३॥ मृग चर्म ओढे पाथरे, इंडि दमे अपार ॥ क्रोध लोन माया तजी, ब्रह्म ध्यान ध्याये सार ॥४॥ सहस्र अट्याशी ऋषिने, बेगे नवी। जोये नेत्र ॥ शासनने कारणे, कष्ट करे पुण्य क्षेत्र ॥ ५॥ चोकमी उंग काल गयो जव, तप करतां ब्रह्मराज ॥ तव इंसासन डोलीयु, सुरपति कहे कुण काज ॥६॥ बृहस्पतिने इंजे पूर्वीयु, कहो गुरु कारण एह ॥ मुज श्रासन कंप्यु नबुं, शुं होशे. १ नालवाळु वासण. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खम धर्मपरीकहो तेह ॥ ७॥ गुरु कहे इंड सांजलो, ब्रह्मा तप करे अघोर ॥ अरधी चोकमी हुवा पली, तुम पद लेशे जोर ॥ ७॥ सांजली इंश उपाय रचे, अपरा तेडी तिण काज॥y ॥४६॥ ब्रह्मा तपथी चालवो, जिम रहे आपणो राज ॥ए ॥ नृत्यकी कहे देवेंज सुणो, ए नवि होय अमशुं काम ॥ गरढो कपटी कोपशे, श्राप देश फेडे गम ॥१०॥ ढाल दशमी. नणदलनी देशी. | प्रीतम हे प्रीतम इंफ, कहे सघली मली॥ तिल तिल दी मुज रूप ॥प्री० ॥ तिलोत्तमा निपजावीशु,सर्व कलानो कूप ॥जी॥ सुणजो साजन वातलमी ॥ ए आंकणीy ॥१॥ तिल तिल रूप नृत्यकी दीयो, तिलोत्तमा घमी सुरराज ॥प्री॥ कर जोमी उनी रही,आदेश द्यो कोण जे काज ॥ प्री० ॥सु०॥२॥ अमरपति कहे रंजा सुणो, ब्रह्मा तप करो नाश ॥ प्री० ॥ एह चिंता सहुने घणी, पूरो अमारी श्राश ॥जी॥सु॥३॥y तिलोत्तमा बीरुं धरी, नारद तुमर देव ॥ प्री० ॥ तप करतो ब्रह्मा जिहां, तिहां श्रावी ततखेव ॥प्रीणासु॥४॥सनमुख नाटक मांडीयुं, धप मप धौ धौं कार ॥प्री०॥मादल वाजे मधुर खरे, नं नं न्नेरी विस्तार ॥ प्री० ॥ सु० ॥ ५॥घम घम घुघरी घमकती, ॥४६॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कड कड मोमी काय ॥ प्री० ॥ दाव जाव देखामती, नव रस नाटिक थाय ॥ प्रीण सु०॥ ॥ ६ ॥ जेम जेम नीरखे नारीने, तेम तेम ध्यान गयो दूर ॥ प्री० ॥ तिलोत्तमा रूप देखी करी, हरख उपन्यो जरपूर ॥ प्री० ॥ सु० ॥ ७ ॥ सारी गमपधनी गायतां, चलीयुं रुषितुं चित्त ॥ प्री॥ विकल रूप ब्रह्मा दुवो, श्रवणे सुणी ते गीत ॥ प्रीण सु०॥ ॥ ८ ॥ ब्रह्मा चल चित्त जाणीने, वामांगे मांड्यो नाट ॥ प्री० ॥ राग बत्रीशे थालवी, ताल मेले नहीं घाट ॥ प्री० ॥ सु० ॥ ए ॥ मोह पाम्यो ब्रह्मा घणुं, चिंतवे मन मांहे एम ॥ प्री० ॥ कृषि सघलामां हुं वमो, मुख फेरवी जोउं केम ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १० ॥ जो नवी नीरखुं नृत्यकी, तो मुज दुःख होये देह ॥ प्री० ॥ नयणे निहालुं तिलोत्तमा, | सफल जनम मुज तेह ॥ प्री० ॥ सु० ॥ ११ ॥ एक चोकमी तपने फले, मुख होजो माबे पास || प्री० ॥ वदन बीजुं ब्रह्मानुं हुवो, देखी रूप विलास ॥ श्री० ॥ सु० ॥ १२ ॥ पीन पयोधर पेखतां, रंज्या धाता जाम ॥ प्री० ॥ नाटक रचीयुं पाबले, यानंद नृत्य तिहां ताम ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १३ ॥ सारी ग म प ध नी गायतां, ब्रह्मा विमासे तेह | प्री० ॥ पाहुं फरी अवलोकतां, लाज यावे मुज देह ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १४ ॥ बीजी चोकमी तपे करी, नीकलजो मुख पुंठ ॥ प्री० ॥ वदन दुवो ब्रह्मा तणो, रूप जोश हृदये Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ४५ ॥ तू ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १५ ॥ चित्त चल्युं जाणी करी, नाटक मांड्यं जमणे अंग ॥ प्री० ॥ जाव नेद देखाने घणा, ब्रह्मा नवि जोये रंग ॥ प्री० ॥ ० ॥ १६ ॥ कामबाऐ वींध्यो तदा, मन मांहीं चिंते ताम ॥ प्री० ॥ लाज लागे मुख फेरतां, विष जोए विषसे काम ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १७ ॥ चोकडी त्रीजी तपे करी, मुख नीकलजो सार ॥ प्री० ॥ चोथुं वदन हुवुं जलुं, दीसे दक्षिण नार ॥ प्री० ॥ सु० ॥ १८ ॥ तव नाटिक गगने कर्यु, नव रस ब्रह्म विलास ॥ पी० ॥ सृष्टिकर्ता मन चिंतवे, केम करी देखें याकाश || प्री० ॥ सु० ॥ १॥ उंचुं जोतां हास्युं इसे, जोया विण न रहाय ॥ प्री० ॥ श्ररध चोककी तप तणे फले, मुज मुख गगने थाय ॥ प्री० ॥ सु० ॥ २० ॥ गर्दन वदन नीकल्युं तदा, मूंकारव करे विकराल ॥ प्री० ॥ तव नाठी तिलोत्तमा, स्वर्ग गइ इंडने | कहे देवाल || प्री० ॥ सु० ॥ २१ ॥ दशमी ढाल बीजा खंडनी, रंगविजय कविराय ॥ प्री० ॥ तस शिष्य नेमविजय कहे, सांजलजो चित्त लाय ॥ प्री० ॥ ० ॥ २२ ॥ उदा. सांजलजो खामि तुमे, ब्रह्मानो तप जेह ॥ उंठ चोकडीनो कष्ट कर्यो, विफल थयो। सहु तेह ॥ १ ॥ मुख चारे मुज देखीने, पांचमुं रासजनुं होय ॥ विकल थयो नृत्य जोवतां, खंग २ ॥ ४७ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूं मूं करे मुख तोय ॥ २ ॥ श्रचंध्या सुर सामटा, आव्या जोवा काज ॥ विपरीत रूपने देखीने, खम खम इसत समाज ॥ ३॥ तत्र ब्रह्मा कोपे चढ्यो, सुर उपर कीधी केम ॥ नावा जाए घर जणी, तोहि नाव्यो नीवेम ॥ ४ ॥ मूंमूंकार करतो थको, धायो केमे जाय ॥ कोलाहल स्वर्गमें थयो, छाचरिज सहुने थाय ॥ ५ ॥ के खाशे के मारशे, त्रिभुवनमां पड्यो त्रास ॥ जय पाम्या तापस सहु, तप जप मूकी तास ॥ ६ ॥ नाग लोक बहुभुजता, के पाने पोकार ॥ सुर नर किंनर यागले, यावे करतां मार मार ॥ ७ ॥ ईश्वर शरणे यावीया, कहे मुज राखो देव ॥ ब्रह्मा संतापे बे घणुं, दुःख जांजो श्रम देव ॥ ८ ॥ रुद्र नाव रुद्रे कर्यो, खुंघुं मस्तक खर नख ॥ पीडा उपनी ब्रह्मा घ पी, बोले मुखथी अशन ॥ ए ॥ हत हत्यारा पापीया, तुजने मुंगी देव ॥ मस्तक मा दरुं तोमीयुं, हत्या चड तुज देव ॥ १० ॥ ढाल यामी. . साहेबा मोती यो हमारो, मोहना मोती द्यो—ए देशी मुज कपाल चमो तुज हाथ, जेम न करे वो कहां साथ | मानो तुमे वयष हमारो, सही करी मन मांही धारो ॥ ए आंकणी ॥ आपे ईश्वर थयो तव कालो, महादेव Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीकहे मतवालो ॥ मा॥१॥ शंकर लागे ब्रह्मा पाय, कर जोडी कह्यो जग राय ॥ खंग ५ मा० ॥ में पापीए कीधो बाध, खीमा करी खमजो अपराध ॥माण ॥२॥ मुज पापीनी ॥ ४ ॥ हत्या जाय, स्वामि ते कहेजो उपाय ॥ मा ॥ खर कपाल पमे वली जेम, वचन नाखजो ब्रह्मा तेम ॥ मा० ॥३॥ कोमल वचने कृपा तव कीध, कोप तजी शिखामण दीध मा॥ ब्रह्मा कहे सांजलरे ईश, पापी मोटो तुं जगदीशमा हत्या माहरी श्रा उतरे एम, वचन कहुं ते करे तुं तेम ॥ माजटाजूट माथे हर राखो, मसाण राख विलेपन राखोमा॥५॥ नर कपाल तणो रचो हार, अस्थि रोम मांही गुंथो फार ॥माण॥ कोटे घालो ते वलीमाल, देखीती मोटी विकराल मा॥६॥माक ने किन्नरी वा अपार, नांग धंतुरो खाउँ फार ॥माणा नगन थ हीमो गामो गाम, निदा मागो गमो गम मा॥॥ वरणावरण म करशो नेद, सघले लेजो निदा बेद ॥मा॥ मुज कपाल मांहीं घालोजेह, रात दिवस तमे जमजो तेह॥मा॥॥ एणी परे हत्या जाशे तारी, ए शिखामण सारी ॥मा॥ रुधिर देश को पुरशे कपाल, खर मस्तक पडशे तत्काल ॥मा॥ए॥ब्रह्मा ॥४ ॥ वचन सुणी तव श, जोगी रूप धर्यु जगदीश ॥ मा० ॥ कपालीक धरीयो तेह नाम, रात दिवस हीमे गामो गाम ॥मा॥१॥ एम करतां गयो घणो काल, मसाण नूमि सेवी|| | Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उजमाल ॥माण पापीने घरे गयो ततकाल, रुधिर पूर्वं ब्रह्मा कपाल ॥ ०॥ ११ ॥ ईश्वरनी जमी लीधी हत्या, हाथ थकी तुंबकी पमी धरत्या ॥ मा०॥ कपालीक शंकरनो नाम, लोक कहे जपो शिव ठाम ॥ मा० ॥ १२॥ वेद पुराण कथा बे एह, बाल गोपाल जाणे बे तेह ||मा० ॥ ब्रह्मानी सांजलजो वात, तप संजम कीधो बे घात ॥ मा० ॥ १३ ॥ छांवर गइ तिलो उत्तमा जाम, कामे पीड्यो ब्रह्मा ताम ॥ मा० ॥ विकल रूप दुवो बे अपार, जुवन ज | देखे ते नार ॥ मा० ॥ १४ ॥ विह्वल थयो मलवाने धाय, नर नारी सहु नावगं जाय ॥ मा० ॥ काड बीकने सां देय, देवी जाणे तिलोत्तमा एय ॥ मा० ॥ १५ ॥ मृग पशु तणे धामे जाम, लंपट देखी नासे ताम ॥ मा० ॥ बनी एक मली वन मांय, लथबध करीने तेहने साय ॥ मा० ॥ १६ ॥ रूप जाएयुं रंजानुं एह, वृद्ध ब्रह्माए जोगवी तेह ||मा०॥ रुतुवंती ते हुती ताम, जंबुवंत उपन्यो अभिराम ॥ मा० ॥ १७ ॥ बलवंत बुद्धि तो निधान, प्रसिद्ध जाणे सहु वेद पुराण ॥ मा० ॥ रामचंद्र तणो दुवो ते डूत, जग विख्यात ब्रह्मनो सूत ॥ मा० ॥ १८ ॥ गरढानी करणी बे एद, किम ववीए पुत्री पासे | तेह | मा० ॥ सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को सार, नीपाइ नहीं एके नार ॥ मा० ॥ १७ ॥ बमीशुं कीधो व्यजिचार, मुंमपणुं एहने अपार ॥ मा० ॥ तापस श्रमे सहुको जाएं, Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ४५ ॥ ब्रह्मा लक्षण केतां वखाएं ॥ मा० ॥ २० ॥ बीजा खंडनी इग्यारमी ढाल, सुणजो |सहुको बाल गोपाल ॥ मा० ॥ रंगविजयनो कहे एम शिष्य, नेमविजयनी पही जगीश ॥ मा० ॥ २१ ॥ उदा. कहुं वात एहनी, सांजल बाया मात ॥ वेद पुराणमां एहवी, साची कहुं एक वात ॥ १ ॥ सावित्री नार ब्रह्मा तपी बेटी जग गुणधार ॥ सारदा कुमरी रंजा जीसी, देखी चलीयो तेणी वार ॥ २ ॥ कामे पीड्यो पुंठे थयो, जारती नाठी जाय ॥ वनमां नासी ते गर, पुत्री पुंठे थाय ॥ ३ ॥ ब्रह्मा बेतरवा सही, मृगली रूप धर्यु सार ॥ तव ब्रह्मा कुरंगनो, रूप धरी व्यजिचार ॥ ४ ॥ पुत्रीने विलसी करी, एहवो | जेनो काम ॥ तो पुत्री बाया श्रापणी, केम जलावीए ताम ॥ ५ ॥ तापस कहे नारी जणी, पुत्री न बोके एद || दरि हर ब्रह्मा सारिखा, पर नारी न मूके ते ॥ ६ ॥ कर जोमी तापसी जणे, सांजल स्वामि कंत ॥ सूरज पासे सोंपीए, बाया बाला संत ॥ ७ ॥ तापस कड़े सुण तापसी, दिनकर बे बीनाल ॥ कुंती कन्या जेणे जोगवी, किम बोने ते बाल ॥ ८ ॥ खंग २ ॥ ४५ ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल बारमी. दील लगारे वादल वरणी-ए देशी. सांजल तापसी जादव राजा, समुद्रविजय सुखकारी ॥ तुमे सुणजोरे ॥ श्रागे होइ जे वात, मूकी पर तणी तात ॥तुए श्रांकणी ॥ तेहनी जगनी कुंती कन्या, रूपे रंजा | अवतारी ॥ तु० ॥ १ ॥ चतुर्थ स्नान करवाने वाला, जमुना नदी गई तेह ॥ तु० ॥ वस्त्र विवर्जित स्नान करंती, सूर्यदेवे दीठी तेह ॥ तु० ॥ २ ॥ रूप देखी तब मदने पीड्यो, विप्र वेश वेगे लीधो ॥ तु० ॥ कषांवर पेहेर्यां जनोइ श्रारोपी, सर्वांग तिलकज कीधो ॥ तु० ॥ ३ ॥ राम राम मुख बोलतो निरमल, श्राव्यो कुंतीनी पासे ॥ तु० ॥ श्रशिर्वाद देश करी जंपे, सांजलो कुमरी उल्लासे ॥ तु० ॥ ४ ॥ काम क्रीडा श्रमशुं तमे खेलो, जोवननो लादो लीजे ॥ तु० ॥ कुंती कहे कुमारिका श्रमे तुं, घट काम किम कीजे ॥ तु० ॥ ५ ॥ द्विज रूपी सूरज वदे वाणी, सांजलो कुमरी प्रजाप ॥ तु० ॥ उत्तम वर्ण ब्राह्मण वेद जाण, विना नवि धरुं प्राण ॥ तुप ॥ ६ ॥ पवित्र पात्र श्रमे जगत् प्रसिद्धा, अमने थापे जे दान ॥ तु० ॥ पाप जाय सुख संपत्ति पामे, | स्वर्ग लोके लहे मान ॥ तु० ॥ ७ ॥ विप्र वचन कुमरी मन मान्युं, स्वस्ति जणावी का Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंझ ५ धर्मपरीय ॥ तु०॥-नोग विलास हुवो रंग रोल, हर्ष प्रीत बेउ थाय ॥ तु ॥७॥ गर्न ॥५०॥ धर्यो कुंतीए तेणे अवसर, जोग करी क्लीयो नाण ॥ तु० ॥ कुमरी कहे किहां जा बो स्वामि, वृतांत कहो बांडी काण ॥ तु ॥ ए॥ हिजवर कहे सुणो सुंदरी कन्या, सूर्यदेव श्रम नाम ॥ तु० ॥ रूप देखी चित्त अम तणुं चलीयुं, विप्र हो कीधो काम | ॥तु॥ १० ॥ नुवन प्रकाश करुं दिन गगने, जावा द्यो मुज आज ॥ तु०॥ कुंती कहे हुं बुं बाल कुमारी, उधान रह्यो दिनराज ॥ तु ॥११॥ नासुर नणे नामनी तुम कूखे, पुत्र होशे दातार ॥ तु ॥ रूप कला बल बुद्धि विचक्षण, त्रीजा दिवस मोकार ॥ तु० ॥ १२ ॥ मंत्र अपूर्व वली श्रापुं तुमने, नर आकर्षण होय ॥ तु ॥ समरतां थावे सहु पासे, काज करशुं श्रापण दोय ॥तु॥१३॥ मंत्र आपी करी कुंती संतोषी, जानु गयो निज गम ॥ तु० ॥ कन्याए काने जण्यो सुत सुंदर, करण हुवो तेह नाम ॥ तु॥१४॥ मंझपकौशीक कहे सण तापसी, कंतीने नोगवे जेहतु॥ सरज देवता मोटो लंपट, बायाने केम बोडे तेह ॥ तु०॥ १५ ॥ ढाल बारमी खंड बीजानी, कही। श्रोता जन सारु॥तु॥रंगविजयनो शिष्य एम पत्नणे, नेमविजय कहे वारु ॥तु॥१६॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. तापसी कहे स्वामि सुणो, चंड अडे महा संत॥पुत्री ते पासे उवी, जात्रा जइए कंत ॥१॥ मंझपकौशीक तव कहे,सुण बायानी मात॥चं चपल लंपट घणो, घटती न होय वात ॥॥ तेद कथा वली सांजलो, सोमे कीध अनाचार ॥ गुरुपत्नी तेणे नोगवी, कहेशु तेह विचार ॥ ३ ॥ बृहस्पति वसुधामा वडो, सुर सघलानो गोर ॥ तस नारी दीठी रुयडी, चंडे लीधी चोर ॥४॥व्यनिचार तेहशुं श्राचर्यो, रात दिवस ते चं ॥ सुर गुरुए जाणी करी, राव करी तव इंच ॥ ५ ॥ जजमान तुमे सांजलो, चंडेहरी मुज नार ॥ अन्याय कीधो एणे घणो, वेगे करोश्रम सार॥६॥सुरपति सैन्य ले संचर्यो, जुध करवाने जाम ॥ सोमे शिव संख्या करी, आव्यो ईश्वरने धाम ॥ ७॥ कर जोमी शशीकर जणे, सुणो शंकर महाराज ॥ एक कला देउ लांचनी, अम तणो करो काज ॥ ॥ शंकर तव सेना लश, त्रिशुल धरी निज हाथ ॥ इंछ सामो वेगे जश्, युक करे ते साथ ॥ ए ॥ उत्नय दल फूफे घणां, सुरपति शंकर बेद ॥ संग्राम करतां दिन घणा, केहेतां नावे बेद ॥१०॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंग ॥५१॥ ढाल तेरमी. कंकण मोल लीयो-ए देशी. संधी तव देवे करीरे साजन, संग्राम निवार्यो ताम ॥ सुगुणा सांजलो ॥ गुरुपत्नी थापो वलीरे ॥सा ॥ जा तुमे श्रापणे गम ॥ सु० ॥ १॥ सोम कहे सुर सांजलोरे ॥ सा ॥ बोरु जे श्रम तणुं जेद ॥ सु० ॥ उदर मांही अबला तणेरे ॥ सा ॥ly अपावो श्रमने तेह ॥ सु० ॥२॥ सुरगुरु तव तिहां बोलीयोरे ॥ सा ॥ सांजलो || तुमे सहु देव ॥ सु० ॥ उदरे अपत्य ने माइकैरे ॥ सा ॥ किम अपावो ततखेव ॥ सु०॥३॥ सोम कहे बोरु मादरोरे ॥ सा० ॥ बृहस्पति कहे ए मुज ॥ सु०॥ गुरु जजमान जगमो करेरे ॥सा॥ नवि पामे को सूज ॥सु॥॥ वढतां थकां बेहु वारी-I यारे ॥ सा ॥ न्याय कीधो तिणे एह ॥ सु०॥ गर्नवती स्त्रीने पूबीएरे॥ सा ॥ साचुं कहेशे तेह ॥ सु० ॥५॥ सुर सघले मली पूढीयुंरे ॥ सा ॥ गुरु कामनीने ताम॥ सु०॥ सुधुं बोलो मावमीरे ॥ सा॥केहनो अपत्य अनिराम ॥ सु० ॥६॥ गुरुपत्नी कहे सांजलोरे ॥साण॥ उदर मांहे जे जेद ॥ सु० ॥ तेदने तमे पूरजोरे ॥सा॥ साधु कदेशे वली तेह ॥ सु० ॥ ॥ तव तेणीए ते जनमीयोरे ॥ सा ॥ पुत्र हुवो अनि ॥१॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || राम ॥ सु० ॥ बाप तणां लक्षण घणारे ॥सा॥ देवे मली पूज्यो ताम ॥ सु ॥ ॥ सुत साचुं तव उंचरेरे ॥सा॥ सोम तणो हुँ पुत्र ॥ सु० ॥ सुर सघला जाणे सहीरे॥ सा० ॥ ३णी जननीए प्रसूत ॥सुणाणा सोम सूत सहुए कहेरे ॥सा॥ जाराजात वली | नाम ॥ सु॥ बुधवार बुधि श्रागलोरे ॥ सा ॥ पुराण प्रसिझो ताम ॥ सु० ॥१०॥ चंड तणां लक्षण एहवारे ॥ सा ॥ जाणे बाल गोपाल ॥ सु० ॥ एह पासे केम मूकी-1 एरे ॥ सा० ॥ पुत्री बाया बाल ॥ सु० ॥ ११ ॥ तापसी कहे तापस सुणोरे ॥सा॥ इंश अपूरव श्राज ॥ सु० ॥ तेह पासे पुत्री मेलीनेरे ॥ सा० ॥ पड़ी कीजे निज काज॥ सु॥ १२ ॥ तापस कहे सुण कामनीरे ॥सा॥ तणो व्यभिचार॥ सु० ॥ पुराण प्रसिक जाणे सहुरे, ॥ सा ॥ कहेगुं तेद विचार ॥ सु० ॥ १३ ॥ गंगा नदी के निर्म-IN |लीरे ॥ सा ॥ तापस वसे तिहां सार ॥ सु० ॥ गौतम शषि सहुमां वमोरे॥ सा ॥ अहिव्या तणो नरतार ॥ सु० ॥ १४ ॥ एक वार वर्गह थकीरे ॥ सा ॥३७ सुरासुर राय ॥ सु ॥ विमान बेसीने आवायोरे ॥सा॥वांदवा ऋषिवर पाय ॥ सु०॥१५॥ अहिल्या दीली तिहां रुयमीरे॥ सा॥ रूपे करी रंजा समान ॥ सदेखी विह्वल हवोरे ॥ सा ॥ लाग्यां अंग कामनां बाण ॥ सु० ॥ १६ ॥ रूप रची तेणे Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरी|रुयमोरे ॥ सा ॥ अहिल्या निज वश कीध ॥ सु० ॥ मढी मांहे पेसी करीरे ॥सा |जे आलिंगन दीध ॥ सु० ॥ १७ ॥ स्नान करी तव श्रावीयोरे ॥ सा॥ गौतम तापस ॥५ ॥ जाम ॥ सु० ॥ छार दीधां देखी करीरे ॥ सा ॥ आचंन्यो तेह ताम ॥ सु॥१७॥ पर पुरुष देखी करीरे ॥सा० ॥ उपन्यो कोप अपार ॥सु॥ रंडे मुंडे तापसीरे ॥सा उघाम वेगे करी बार ॥ सु ॥ १ए ॥ जय पाम्या तव बेहु जणांरे ॥ सा ॥ इंस हुवो मिंजार ॥ सु० ॥ घर मांहीं नासी गयोरे ॥सा॥ पेगे चूला मोकार ॥ सु० ॥ ॥ २० ॥ खंड बीजानी ढाल तेरमीरे ॥ सा ॥ श्रागे जे होये वात ॥ सु० ॥ रंगविजय कविरायनोरे ॥ सा ॥ नेमने हर्ष सुखसात ॥ सु ॥२१॥ उदा. AL तव भ्रूजंती तापसी, बार उघाड्यो जाम ॥ महारंड रांगनी शुं कर्यु, गौतम पूजे ताम ॥१॥ कोण पुरुष ते घालीयो, लंपट बुच्चो जार ॥ साचुं कहेरे पापणी, श्रापे| करुं तुज बार ॥२॥ कामनी कहे कंथ सांगलो, घरमां ने मिजार ॥ ब्रांत पमी | all तुम घणी, नहीं कीधो व्यभिचार ॥३॥ गौतमे झान विचारीयु, जाएयुं बेहुर्नु पाप ॥ शीला कीध पाषाणनी, अहिल्याने दीध श्राप ॥ ४॥ बिलामो थ नासतो, इंज ॥५ ॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धस्यो तेणी वार ॥ फिट पापी महा रंगना, तापसी कीध व्यभिचार ॥ ५ ॥ पर नारी तें जोगवी, ते उपर तुज रंग ॥ सहस्र शरीरे नीकलो, जगाकार उत्तंग ॥ ६ ॥ तापसने श्रापे करी, जोनि हुइ ततकाल ॥ मघवा शरीर जर्यु खरं, अशुभ दीसे विकराल ॥ ७ ॥ पाय लागी इंद्र विनवे, सांजल तुं ऋषिराज || लोक हांसुं होशे घणुं, लागशे बोहोली लाज ॥ ८ ॥ क्षमा करो खामि तुमे, जग टालो मुज अंग ॥ ढुं अपराधी पापीयो, मुज़ उपर करो रंग ॥ एए ॥ इंद्र वचने उपशम करी, गौतम बोल्या ताम ॥ दोजो माहारी कृपा थकी, सहस्र लोचन अजिराम ॥ १० ॥ सहस्राक्ष नाम तेहनो दुवो, वेद पुराणे तेह || लंपट पासे केम मेलीए, बाया पुत्री एह ॥ ११ ॥ तापसी कहे तापस सुणो, बृहस्पति विद्यानो वास ॥ सुर सघलानो गुरु जलो, पुत्री ग्वो तेइ पास ॥ १२ ॥ तापस कहे सुण कामनी, तुं मोटी बे अजाण ॥ जाइनी जामिनी जोगवी, केम ठवीए होय हा ॥ १३ ॥ ढाल चौदमी. बावा किसनपुरी, तुम विना मढियां उजड पमी - ए देशी. ताम तापस कहे सुख नार, सुर सघला लंपट निरघार ॥ साजन वात सुणो, सां Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TIPS 9 धर्मपरीनली सहुको मत अवगुणो ॥ ए श्रांकणी ॥ ते पासे केम ग्वीए बाल, नामनी सुण तुं थर जमाल साासां॥१॥ एक वात में हृदय विचार, जम जग माहीं रुडो ते| ॥५३॥ |सार ॥ सा ॥ जो धर्म विचारे तेह, बाया पुत्री पासे मूकीए एह ॥सा॥सांग॥२॥ मंडपकौशीक तापस ताम, बाया लाव्यो जमने गाम ॥ सा ॥ कर जोडी कहे सुण महाराय, धर्माधर्म जाणो तुमे न्याय ॥सा॥ सां० ॥३॥ शीलवंत खामि गुणवंत, महीयल मोटो तुं महांत ॥ सा ॥ निकलंक तुं सुणीए महाराज, विनति माहरी| सांजलो आज ॥ सा॥सांग ॥४॥ तीर्थजात्राए अमे जावं देव, डाया थापिण राखो हेव ॥ सा ॥ तुम प्रासादे करुं श्रमे जात्र, पवित्र होशे श्रमारां गात्र ॥ सा॥सांग ॥५॥ जम कहे सुण तापस राज, ए अमने नहीं लागे लाज ॥ सा ॥डोमी जा तुमे या एह, अनोगत श्रावी लेजो तेह ॥ सा ॥ सांग ॥ ६ ॥ तापस तव रलि-I यात थयो, जम पासे मूकीने गयो ॥ सा ॥ अडसठ तीरथ करे फरी जाम, कृतांत |वात सांजलजो ताम ॥ सा ॥ सांग ॥ ७॥ गया रूप देखी श्रनिराम, जम सर्वांगे || व्याप्यो काम ॥ सा० ॥ मनमां चिंतवे नोगतुं एद, सफल जनम करूं मुज देह ॥ सा० ॥ सांग ॥ ७॥ जोलवी घरमांहे तेमी बाल, पाप करम मांड्यो विकराल ॥ साon ॥५३॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रघट काम कन्याशु कीध, धर्मराज महीयल परसीध ॥ सा ॥ सांग ॥ ए ॥ बाया सरसुं सुख जोगवे, रात दिवस ते जनम अनुनवे॥ सा ॥ सुर सघले तव जाणी नार, एहवी नहीं त्रिजुवन मोकार ॥ सा ॥ सांग ॥ १० ॥ हरवा हेरे पमीया देव, यममंदिरनी मामी सेव ॥ सा ॥ रात दिवस ते टांपे घj, ध्यान लाग्युं बे बाया तणुं सा॥ सांग ॥ ११॥ जमे जाण्यो तेहनो संच, सुर सघला मुज करशे वंच॥सा॥ उपाडीने गली ततकाल, उदर मांहीं उतारी बाल ॥ सा ॥ सांग ॥ १५ ॥ देव देखे नहीं गया तेह, माथु खंजोली गया निज गेह ॥ सा ॥ धर्मराज विमासण करे, सुर रखे मुज नारी हरे ॥ सा ॥ सांग ॥ १३॥ एकलो निज मंदिरमा जश्, सघले निरखे उनो थ॥ सा० ॥ जोतां स्थान नवि देखे कोय, उबकीने जम काढे सोय ॥ सा ॥ सा ॥ १४ ॥ पाप करम तेहशुं संचरे, काम कुतूहल एणी परे करे ॥ सा० ॥ काम पड्ये काढे ततकाल, नोग करीने गले ते बाल ॥ सा ॥ सांग ॥ १५ ॥णी परे काल बहु तस जाय, जमकरणी केहने गवी न थाय ॥ सा ॥ पवनदेव पृथ्वी |मांहे नमे, जलमां थलमां श्राकाश ते रमे ॥सा॥सां॥१६॥ अदृश्य रूपे सघले संचरे, लाए ते कारज करे ॥ सा ॥ तेणे दीठी बाया जाम, अग्नि मित्रने घर आव्यो, Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंग ॥५४॥ ताम ॥ सा ॥ सांग ॥ १७ ॥ विश्वानल तुं सांजल आज, जनम सफल करे महाराज ॥ सा ॥ रूपवंत बायानो संजोग, तेहशुं जम करे नित नोग ॥ सा ॥ सांग ॥१॥ उदर मांही राखे ते बाल, काज पड्ये काढे ततकाल सा॥ विश्वानल कहे सांजल नाय, त्रिजुवन माहे तुं मोटो वाय ॥ सा ॥ सां॥रए ॥ खंम बीजानी चौदमी ढाल, नेमविजय कहे जमाल ॥ सा ॥ श्रागल सांजलजो सहु कोय, वायुकुमार करे ते होय ॥ सा० ॥ सांग ॥२०॥ उदा. जोग मले तेहशुं करो, जीव जातो मुज राख ॥ सांजलजो वायु कहे, वचन अमारां नाख ॥१॥ जम जूठगे कामी घणो, घडी एक न मेले बाल ॥ केम मेलाप तेहशुं होये, उदरमा राखे ततकाल ॥२॥ आज एक वात विचारी में, पुण्ये सरशे काज ॥ गंगा स्नान करवा नणी, जम राजा करी साज ॥ ३॥ पोहोर एक जाय ध्यानमां, बाया मेली एक गम ॥ संध्या जाप करे तिहां, श्रापणो होशे काम ॥४॥ एक पोहोर अवकाशमां, जम नावे बाया पास ॥ तेणे समे तिहां जाश्ने, बाया हरीए तास ॥५॥ ॥५४॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल पंदरमी. अणसणरारे योगी-ए देशी. विश्वानल आनंद्योताम, सांजल पवन अमारो कामरे ॥ सुणजो तमे जाय॥जो एक पोहोर मलशे संजोग, तो नवि पम्शे कांश विजोगरे ॥सु॥॥ बिरूल बोलीने चाल्यो जाम, अगनि गयो गंगातट तामरे ॥ सु० ॥ म्नान करवा आव्यो जम जांहीं, विश्वानल खोसीयो त्यांहीरे ॥ सु० ॥ ॥ जम श्राव्यो जमना तट जाम, संघले देखी निरंजन गमरे ॥ सु० ॥ वमन करी तव काढी नार, बाया सांती कोतर मोकाररे ॥ सु०॥३॥ जम जल पेसी करे सनान, संध्या तरपण मांड्यो ध्यानरे । सु०॥ अगनि अपूरव रूपज लीध, बानूषण सघलां अंगे कीधरे ॥ सु॥४॥ बाया पासे आव्यो ताम, हास्य वचन बोल्यो अनिरामरे ॥ सु०॥ साचुं सांनल सुंदरी आज, अमे सायु तमारं काजरे ॥ सु ॥५॥ त्रिजुवन मांहीं मोटो ढुं देव, सुर नर किंनर करे मुज सेवरे ॥ सु॥ तेत्रीश क्रोम तणो हुँ मुख, हुं देखें सघलाने सुखरे ॥ सु० ॥६॥ होम हुताशन जे करे मुज, मारो नाम राखे ते गुजरे ॥ सु० ॥ मुजने जे वली दीये । दान, तेहने वाधे सुख संतानरे ॥ सु० ॥॥ आपण बेहु डं रूप निधान, नावे दीजीए Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग २ धर्मपरीनोगनुं दानरे ॥ सु०॥ याने तव उपनो रंग, वाहा करीने आप्युं अंगरे ॥ सु० ॥ ॥ काम क्रीमा कीधी ततकाल, जम आवतो दीगो विकरालरे ॥ सु०॥ बाया कहे तुं सांजल कंत, कृतांत करशे तुमारो अंतरे ॥ सु० ॥ ए ॥ जीवता जा तुमे हवे श्राज, नहीं तो बेहुने लागशे लाजरे ॥ सु० ॥ कान नाक बेदे तव माहारो, मारी करशे कोथलो ताहरोरे ॥ सु० ॥१॥ कशी संख्या न करो ए वात, नहीं तो आपणो होशे घातरे ॥ सु० ॥ आगे जीववधी यमराय, ते उपरे कीधो अन्यायरे ॥ सु० ॥ ११ ॥ विश्वानल कहे सांजल नार, हुं पग पांगलो बुं अपाररे ॥ सु० ॥ चरण होय तो दो श्राज, यम बागलथी करुं हुं काजरे ॥ सु० ॥ १२ ॥ यम जय पामी बाया बाल, अगनि देव गढ्यो ततकालरे ॥ सु॥ धर्मराज याव्यो तेणी वार, जपाडी गली बाया नाररे ॥ सु० ॥ १३ ॥ घर श्रावीने उबके जेह, जोग करीने वली गले तेहरे ॥ सु० ॥ स्नान करवा जम गंगा जाय, पोहोर एक तप जपने थायरे ॥ सु०॥ ॥ १४ ॥ बाया तव उबके बे आग, पोहोर एक आवे तसु नागरे॥सु॥यम देखीने गले बाग बाया, नारीने लागी एम मायारे ॥ सु०॥ १५॥ एणी परे कामिनी जोगवे बेह, अपर वात सांजलजो तेहरे ॥ सु०॥ दिवस मास बहु जाये एह, अगनि ॥५॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाठो जग मांही तेहरे ॥ सु० ॥ १६ ॥ लोक तणां तव रांधणां रहीयां, घर हाटे ||५|| अंधारां वहीयारे ॥ सु० ॥ काचो कोरो खाए लोक, पेटपीडे करी पाडे पोकरे ॥ सु० ॥ १७ ॥ सोनार लोहार पोकज पाडे, अगनि विना केम घाट घाडेरे ॥ सु॥ कम करे जगन जानी जाग, नहीं जाप विना को लागरे ॥ सु० ॥ १७ ॥ जाप शाविना देव थयाने घेला, इंज आगे पोकारे गया वेहेलारे ॥ सु०॥ सुरपति चिंता उपनी जाम, पवनदेव पूब्यो तेणे तामरे ॥ सु॥रए ॥ वायु वदे सांजल मेघवान, अगनि जोयो में सघले गमरे ॥ सु० ॥ एक जायगा तेह तणी वारु, जोश्ने कहेशुं बीहंति' वारुरे ॥ सु॥२०॥ ढाल पंदरमी खंग बीजानी, श्रागे कहेशुं वात त्रीजानीरे ॥ सु० ॥रंगविजयनो शिष्य एम बोले, नेमविजय नवि वात खोलेरे॥सु॥ । उहा. . पवने तव सहु नोतर्या, सुर नर किन्नर देव ॥जमने मांड्यां बेसणां, त्रण जणांनां | हेव ॥१॥ जम मन मांहे चमकीयो, वायु कवण ए काम॥ एकेको आसन सहु जणी, थमने केम त्रण ठाम ॥२॥ वायु कहे साचु कडं, उदर मांहीं तुम तेह ॥ सहुना १ पत्तो. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंझ ५ ॥५६॥ संदेह नांजशे, प्रत्यक्ष थाशे जेह ॥ ३ ॥ जमने काढी उबकी, बायाने ततकाल पवन कहे नानी सुणो, मित्र अमारो बाल ॥४॥ बायाए वमी करी, विश्वदेव कहाड्यो ताम ॥ जम जूठो कोप्यो घणुं, अग्निनो टावं गम ॥ ५॥ विश्वानल नागे तदा, कृतांत पुंठे धाय ॥ पग पांगलो अगनिदेव ते, पमतो नागे जाय ॥ ६ ॥ तमोवम नाग बेहु जणा, व्यनिचारी मार आज ॥ पेठो जश् पाषाणमां, विश्वानल तिण ताज ॥७॥ ढाल सोलमी. सुण बेनी पीयुमो परदेशी-ए देशी. __ अगनि अलोप न दीसे जाम, जम पाडो आव्यो गमरे ॥ घरे ले गयो बायाने सार, नोगवे कृतांत अपाररे ॥ सांजलजो साजन जे कडं वात ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ मनोवेग कहे सानलो साच, वामव बोट्युं जे वाचरे ॥ वेद पुराणे ने ए वात, साचुं] जू कहो चातरे ॥ सांग ॥२॥ हिजवर बोक्या सांजल वाच, वचन तुमारो साच- रे ॥ शास्त्र अमारे बोल्यु एम, अमे लोप्युं जाये केमरे ॥ सां० ॥३॥ मनोवेग बोल्यो वली ताम, सांजलो ब्राह्मण गुणधामरे ॥ जमदेव जाणे सहुए जगमां, अतीत ॥५६॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनागत वर्तमानमारे ॥ सां० ॥ ४॥ विश्वानल तस पेट मोकार, पोहोर एक जोगवे || नाररे ॥ झाने करी जाण्यो नहीं तेह, जमे हुकमो आपणो देहरे ॥ सांग ॥ ५॥ तो केम जाणे त्रिजुवन वात, दोष मोटो एक घातरे ॥जम सघलो जाणे संसार, अगनि न जाण्यो उदर मोकाररे ॥ सां० ॥ ६॥ तेम मुज मीना गंधी जाय, बार जोजन जंदर न थाय रे ॥ जेम हिज सहुए जमने मान्यो, तेम मिंजार गुणनो वानोरे ॥ सांग ॥ ७॥ वली सांजलो ब्राह्मण तमे वात, एक दोषे गुण नोहे घातरे ॥ उमीया ) ईश्वरने अर्धाग, जटा मांहीं राखे गंगरे ॥ सां॥॥ पारवती गंगाशुं नेह, तारक केम कहीए तेहरे ॥ नारायण लंपट अपार, गोवालणीशु कीधो व्यभिचाररे ॥ सां॥ए॥ रीडमी सुताशुं कीधो संग, ब्रह्मचर्य ब्रह्मानो नंगरे ॥ सूरजने समरो तुमे सार, कुंतीशु कीधो व्यनिचाररे ॥ सांग ॥ १० ॥ सोम सदा सहुए श्राराध्यो, गुरुपत्नीनो दोष वाध्योरे ॥ देव जपे सहु कर जोड, अहिल्यानी लागी खोमरे ॥सांग ॥ ११ ॥ सुरगुरुने वहूनुं बाल, जाणे ने बाल गोपालरे ॥ विश्वानल नर घणो व्यभिचारी, हवन होमनो अधिकारीरे ॥ सांग ॥१॥ जमने सह कहे धर्मनोराय, बाया सरसो करे अन्यायरे ॥ ऋषि तापस मिथ्याती तेह, तेहनां बिछ अति घणां जेहरे ॥सांग॥१३॥ N Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंग ॥ ७॥ परनारी तणो दोष एक, वेद पुराणे जु विवेकरे ॥ जो देव तणा नहीं लीजे दोष, तो मीनमानो श्यो रोषरे ॥ सांग ॥ १४ ॥ वाडव वचन बोल्या तव सार, तुं वादी मोटो ) गुणधाररे ॥ जयवाद पाम्या तुमे अपार, विप्र हार्या श्रमे वीश वाररे ॥ सांग ॥१५॥ मनोवेग वली बोल्यो ताम, पवनवेग सुणो अनिरामरे ॥ देव तणा गुण दीठा तुममे, काम विकार कह्या अममेरे ॥सां॥१६॥ मदन महा सुनट जीत्यो जेह, देव करी मानो तुमे तेहरे ॥ नवी चले रामा रूपने देखी, विषयने नाखे उवेखीरे ॥ सांग ॥१७॥ सराग वचन जे बोले वाम, ते उपर न धरे मन कामरे ॥ इंजिनां सुख करे असार, ते देव कहीए निरधाररे ॥सांग॥१॥ शील सहस्र पाले अढार, ते तारण तरण संसाररे॥ एहवा जाणो जिनवर देव, नावे जगते करो सेवरे ॥ सांग ॥ १५ ॥ त्रिनुवन | नायक सेवे जेह, स्वर्ग मुक्ति पामे तेहरे ॥ जीती करी वामवने वेगे, वनमां श्राव्या धरी तेगेरे ॥ सांग ॥ २० ॥ खंड बीजानी सोलमी ढाल, सांजलजो बाल गोपालरे ॥ रंगविजयनो शिष्य दयाल, नेम कहे थइ उजमालरे ॥ सांग ॥१॥ . उदा. । पवनवेग तव बोलीयो, सांजलो ना विचार॥देव दोष जे दाखव्या, सत्य वचन ते Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सार ॥ १॥ एक उत्तर आपो वली, मनोवेग महंत ॥ देव मांहिं जे गुण अजे, ते सहु । | कहो तुमे संत ॥२॥ मनोवेग कहे सांचलो, पवनवेग पवित्र ॥ सुर सघलाना गुण कहुँ, मनमां विचारो चित्र ॥३॥ जुवन व्यंतर ज्योतषी, स्वर्गवासी जे देव ॥ तेह तणा गुण । सांनलो, आठ कहुं संखेव॥धाअणिमा अणुं मात्रज करे, मणिमा मेरु समान।लघिमा, लघुपणुं श्राचरे, गरिमा नारी जाण ॥५॥ प्राप्ति सर्व प्राक्रम करे, इस तणो गुण देय॥ काम रूप चिंत्यु करे, वशीकरण वशी तेय ॥६॥ आठ गुणो ने एह जला, देव तणे जे अंग, ब्रह्मादिकने ते नहीं, एक गुण जे उत्तंग ॥ ७॥ लघिमा गुण ते पामीया, जेणे होये वहोत्तर लाज ॥ लोक मांहीं हलवा हुवा, ते कहीशुं गुण आज ॥७॥ सहु पर्वत मांहे नलो, कैलास उत्तम गम ॥ शंकर तप जप तिहां करे, एकाकी गुणधाम ॥ एy नारद ऋषि तिहां आवीया, हरने करी प्रमाण ॥ कर जोमी वदे विनति, सनिलो हर मुज वाण ॥ १० ॥ पुत्र विना गति नवी होये, पहेले परणो नार॥ पुत्र तणी उत्पत्ति करी, पढी शषि व्रत धार ॥११॥ईश्वर तव तिहां बोलीयो, सांजल तुं मुनिराज ॥ कन्या जुवो तमे रुयमी, वेगे करो श्रम काज ॥१२॥ उत्पत्ति करुं संताननी, वाधे मुज | तो वंश ॥ परणाव्यानुं पुण्य घj, तुम होशे सुख हंस ॥ १३ ॥ नारद तव ते सांजली, Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंम धर्मपरीचाल्यो कन्या काज ॥ हेमाचलने जश् मख्यो, सांजल तुं गिरिराज ॥ १४ ॥ तुम कुमरी रुयडी, शंकरने द्यो तेह ॥ वर कन्या ए योग्य बे, महादेवशुं करो नेह ॥ १५ ॥ हेमा॥ ७॥ चल कहे नारद सुणो, पारवती में दीध ॥ लगन लेश झषि चालीयो, हरने जाण तव कीध ॥ १६ ॥ ढाल सत्तरमी. चरणाली चामुंमा रण चढे-ए देशी. ईश्वर वर तव सज थक्ष, वृषन पलाणी चमीयोरे ॥ नेरव नूत जोटींग घणां, जान सहित पंथ पडीयोरे ॥सुणजो साजन वातडी॥ ए श्रांकणी ॥१॥ शंकर सासु डे मीनका, वर देखी होश जांखीरे ॥ मीनका कहे सहु सांनलो, मुज बेटी श्हां कुणे नाखीरे ॥ सु० ॥२॥ जग जीरण गरढो ए अबे, चमवानो बलद ने बांगोरे ॥ गाम गम एहने नहीं, मात पिता नहीं रांडोरे ॥ सु०॥३॥जात ने जात को नवि कहे, जस्म विनूषित देहरे ॥ कोटे डे साप बीहामणो, उढण गजचर्म तेहरे ॥ सु ॥४॥ नरमुंग माला गले अडे, नांग धंतुरो ते खायरे॥हस्त कपाल कांखे कोली, शिर जटा किन्नरी वायेरे N सु ॥५॥ एणे जमा मुज खप नहीं, जो देशो तो मरशुं श्राजरे ॥ जल मांहे ॥॥ TabT. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम तो नाखुं ए बालिका, विष चारुं नहीं हर काजरे ॥ सु० ॥ ६ ॥ ब्रह्मा वमसाले श्रावीया, | मीनाने कहे सुणो मातरे ॥ जोली चक्रवरती ईशनी, त्रिभुवन मांहिं विख्यातरे ॥ सु० ॥ ७ ॥ पारवती परणावो ईशने, विवाह म मोमो ए श्रजरे ॥ जो रे कोपे एह शंकरो, करशे नरथ काजरे ॥ सु० ॥ ८ ॥ सहुने श्रापी जस्म एह करे, टाले ए गमरे ॥ मीनाएं मौन धर्यु तदा, विवाह तपो मांड्यो कामरे ॥ सु० ॥ ए ॥ वरराजा तोरण श्रावीयो, मलीयुं बे कामिनी थोक रे || पोमादें हांसलदे जली, दरपादे सोमादे धोक रे ॥०॥१०॥ रंगादे नांमलदे देमादे, टहकादे खलके कर चुमीरे ॥ | माणकदे यावी मलपती, रतनादे टबकादे रुमी रे ॥ सु०॥ ११ ॥ कमलादे काकी जामादे जानी, मामी मोकलदे फुइ फालुरे || गोरी सखी चांदी चेटीका, जोगण सीकोतरी लाबुरे ॥ सु०॥१२॥ वर पासे नूत जोटींग घणां, दानव जंगम जोगीरे ॥ तेन्रीश क्रोम देव संचर्या, कृषि ब्रह्मा दामोदर जोगीरे ॥ सु०॥ १३ ॥ पोंखीने वर लीधो मांहरे, ब्रह्मा साधे लगन | साररे ॥ समय वरते सहु सावधान, पाणीवल अंतर नहीं वाररे ॥ सु०॥ १४ ॥ ब्रह्माए दर गौरी तो, हस्त मेलापक की धरे ॥ गीत गावे वर कामनी, वृद्धने लघु कन्या दीधरे ॥ सु० ॥ १५ ॥ चोरी मांहे बेठां वर वहू, ब्रह्मा जणे वेद चाररे ॥ मंगल चार ते वरतीयां, दुवो तिहां Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म प० 112 11 जय जयकाररे ॥ सु० ॥ १६ ॥ शंकर यागल संचरे, पालथी गौरी नारीरे ॥ फेरा दीये चोरी पाखले, ब्रह्मावांचे वेद उचारीरे ॥ सु० ॥ १७ ॥ हुताशन साखे त नाखे, पाणेतर गौरीए पढेयरे ॥ बेमो लाग्यो उमीया तणो, उंचो लइ जलवतां वियोंरे ॥ सु० ॥ १८ ॥ जंघा दीठी तत्र रुयमी, विकल थयो ब्रह्मा तामरे ॥ काम कुतूहल चिंतवतां, खलप हुवो तेणे ठामरे ॥ सु० ॥ १५ ॥ देव सघला तिहां देखता, लाज्यो ब्रह्मा मन मांहिंरे ॥ वेलु वाली पगे मरदले, वीर्य ढांक्यो निज त्यांहिंरे ॥ सु० ॥२०॥ चुरी वेलु मांही उपन्या, सहस्र श्रव्याशी ऋषिरायरे ॥ कमंडल मंड हाथे धर्यां, नवीने लाग्या ते पायरे ॥ सु०॥२१॥ वालुष नाम यादे करीरे, ब्रह्मा पुत्र पुराणे प्रसिद्धरे ॥ वालुखल रूपे ते रुयमा, तप जप तिहां थकी लीधरे ॥ सु० ॥ २२ ॥ खंड बीजानी ढाल ए कही, सत्तरमी सुणजो वारुरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजय श्रोता सारुरे ॥ सु ॥ २३ ॥ उदा. मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग विचार ॥ ब्रह्मचर्य ब्रह्मा तपुं, नातुं तिहां अपार ॥ १ ॥ खंग २ ॥ ५५ ॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुर नर सघला देखता, लजा पाम्या तेह ॥ इबुपणुं ब्रह्मा हुवो, लघिमा गुण जे तेह ॥२॥ ब्रह्म पुराणे नाखीयो, मिथ्या मत विचार ॥ जिनशासन नहीं मानीए, खोटुं एह असार ॥ ३॥ जगगुरु जिनवर जाणजो, निकलंक खामि देव ॥ दोष एक दीसे नहीं, तेह तणी करो सेव ॥ ४ ॥ ईश्वर लघुपणुं पामीयो, सांचलो तेह विचार ॥ कुकविए एम नाखीयु, लिंग पुराण मोकार ॥५॥ ढाल अढारमी. ___ तो चढीयो घण माण गजे-ए देशी. - हेमाचल कुमरी वरी ए, शंकर मन उदास तो॥ हर कैलासे श्रावी करी ए, गौरीशु लोग विलास तो ॥१॥ जमीया कहे शंकर सुणो ए, नृत्य करो मनोहार तो॥ देवदार वनमा जश्ने, नाटिक मांड्यो सार तो ॥२॥ मस्तक शेखर शशिकला ए, गले गरल' बांहिं नाग तो ॥ नरमुंड माला शोचती ए, कटीमेखल कटी नाग तो॥३॥ जस्म विलेपन अंग रच्यु ए, घुघरीनो घमकार तो ॥ नव रस नाटिक नाचतां ए, फांऊरनो ऊमकार तो ॥४॥ नृत्य करीने चालीयो ए, निदा तापस वास तो ॥ तापस तरुणी विह्वल हुए, १ फेर. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खम ॥६०॥ मोद धरे विश्वास तो ॥ ५ ॥ लांबु लिंग देखी करी ए, निदा घासे सार तो ॥ कंदम- ल वनफल घणां ए, हरने श्रापे नार तो ॥६॥ जरतार नगत बोमी करी ए, हीडे ईश्वर साथ तो ॥ सुंदरी कहे शंनु सजिलो ए, लीजे आपण बाथ तो ॥ ७॥ एक कहे| शंकर सुणो ए, उधरजो महाराज तो॥अंगे थालिंगन रुयमो ए, कृपा करी द्यो श्राज तो ॥॥ वनमां शंकर जश् रह्यो ए, ध्यान धरे अपार तो ॥ तापस कामनी तिहां गए, ईश्वरशंजोग विकार तो॥णातापस तव पुःखीया थया ए,नारीए मुक्यो संग तो॥विचार करे सघला मली ए, केम रहेशे घर रंग तो॥१॥ देवपूजा रही आपणी ए, अंगे गयां सनान तो ॥रांधण सिंधण सहु तज्यां ए, नूखे गया जीव ज्ञान तो ॥ ११॥ आपणने मूकी धरे ए, हरने सेवे नार तो ॥शंकरने केम श्रापीए ए, ए में त्रिजुवन तार तो ॥१॥ नारी मोही आपणी ए, जेह देखीने अंग तो ॥ दंम करो तुमे तेहनो ए, श्रापीने करो नंग तो ॥ १३॥ तापस मलीने श्रापीयो ए, लिंग पड्युं ततकाल तो ॥ जुवन मांहे ते का विस्तयुए, कर्म करे विकराल तो ॥ १४ ॥ लिंगे लक्षण प्रगट कीयो ए, त्रिभुवन पाड्यो । त्रास तो ॥ नर नारी संजावीयाए, लोक पामे बहु हास्य तो ॥ १५ ॥ रुष कोप्यो Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृषि उपरे ए, लिंग डेगुं मुज बाज तो॥ शंकरे शषि तव श्रापीया ए, लिंग पड्यां सर्व || काल तो ॥ १६ ॥ लिंग तुट्यां तापस तणां ए, वेदना व्यापी अंग तो ॥ वृहदल झषि सघला हुवा ए, हर शरणे गया चंग तो ॥ १७॥ शंकर खामि सांजलो ए, तुं मोटो महादेव तो ॥ कृपा करो श्रम उपरे ए, श्रमे करूं तुम सेव तो॥ १७ ॥ हरि हर ब्रह्मा तुं नलो ए, नुवन तणो तुं त्रात तो ॥ सरजी पाली पोषे घणुं ए, सेष्ट करे वली घात तो रए॥श्रघट काम श्रमे थाचर्यु ए, दमा करो तुमे एह तो॥ोरु कडोरु होये घणुं ए, GIमाबाप नहीं दीए लेह तो ॥ २० ॥ ढाल कही श्रढारमी ए, खंड बीजानी एह तो॥ रंगविजयनो शिष्य कहे ए, नेमविजयने नेह तो ॥ १॥ उदा. | नोलो शंकर बोलीयो, सांजलो तापस सार॥ लिंग अमारो वेश करी, व्वजो योनि मोकार ॥१॥प्रतिष्ठा करो तुमे तेह तणी, पूजा रचो सुखकार ॥ नाव नगति करो घणी, थाराधा नित्य सार ॥२॥ कामनीशुं सुख नोगवो, लिंग लागे तुम देह ॥ तापस तव सघले मली, लिंग धर्यु तिण तेह ॥ ३ ॥ नामा दोरे लिंग बांधायु, बल करे तापस१ विवेक ॥ हाल हाल करे घणुं, तव तुट्यां दोर अनेक ॥४॥ खांध नांग्या तापस तणा, Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म प० ॥ ६१ ॥ | केताकना गया प्राण || दोहले थइने श्राणीयो, तापस आश्रम ताप ॥ ५ ॥ लिंग प्रतिष्ठा कृषि करे, सुर नर मलीया ताम ॥ दवन होम मंत्री करी, योनि मांहीं व्युं जाम ॥ ६ ॥ कोटे बांधे नर केटला राखे मस्तक मांहीं ॥ लिंगायत लोक दुवा घणा, | लिंग बांध्यां बेदु बांहीं || || तेह दिवस यादे करी, मूढ पूजे लिंग तेह ॥ श्रापे लिंग गली पड्युं, जांड विगोव्यो एह ॥ ८ ॥ शंकर लघुपणुं पामीयो, लिंग पुराणे सार ॥ हरि इंद्र चंद्र वा सुरपति, पर रमणी लघुपणुं धार ॥ ए ॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे याज ॥ सुर सघलाना गुण कह्या, जिणे पामीए बहु लाज ॥ १० ॥ परनारी जे जोगवे, तेहने मोटां पाप ॥ डुरगति दुःख पामे घणां, नरके लहे संताप ॥ ११ ॥ परनारी जे जोगवे, दोषवंत ते देव ॥ पूज्यपणुं तेने नहीं, किम कीजे तस सेव ॥ १२ ॥ निष्कलंक जिन जाणजो, | दोष नहींय लगार ॥ पर तारक यांपे तरे, देव जाणो ते सार ॥ १३ ॥ पवनवेग तुमे सांजलो, जैनशास्त्र विचार ॥ शंकर ब्रह्मा उत्पत्ति कहुं, सत्य वचन जिन सार ॥ १४ ॥ ढाल अंगणी शमी. उजी बावाजीरी पोल, देवर आणे श्रावीयोरे लाल-ए देशी.. जरत क्षेत्र मांहीं सार, गंधार देश रलीश्रमणोरे लाल ॥ वसीपुर नगर उदार, खंग ‍ ॥ ६१ ॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यंधर राजा सोहामणोरे लाल ॥ १ ॥ सत्यवती राणी तास, सत्यकी सूत नामे जलोरे लाल ॥ सिंधु देश मांहीं जाण, विशाला नगरी भूपति नीलोरे लाल ॥ २ ॥ चेटक राय करे राज, सुजद्राशुं सुख जोगवेरे लाल || तेहने कन्या दुइसात, प्रीत कारणी मीतुं | चवेरे लाल ॥ ३ ॥ मृगावती सुप्रजा बाल, प्रजावती चेलणा गुणवतीरे लाल ॥ ज्येष्टा बडी सार, चंदना लघु सातमी सतीरे लाल ॥ ४ ॥ राजग्रही श्रेणिक नूप, तस पुत्र बुद्धे आग| लोरे लाल ॥ जयकुमार गुणवंत, प्रधान पद जोगवे जलोरे लाल ॥२॥ पदम चितारो जेद, | चेला पट लखी लावीउरे लाल ॥ रूप देखी यचच्यो राय, श्रेणिक मनमां जावीयोरे लाल ॥ ६ ॥ श्रेणिक लेइ श्रादेश, अजयकुमार उद्यम करीरे लाल ॥ श्रेणिक पट लखी रूप, वणजारा वेशे बलद जरीरे लाल ॥ ७ ॥ विशाला नगरी उद्यान, जिन जुवने जइ उतरे लाल || चेला ज्येष्टा यावी ताम, जिन प्रतिमा वंदन कर्योरे लाल ॥ ८ ॥ कुमरे प्रसार्यो पट ताम, रूप जोइ कन्या विद्रवल हुइरे लाल ॥ था जवे ए जरचेलणा कुमरी एम लवीरे लाल ॥ ९ ॥ श्रजयकुमर जणे ताम, तुम मेलुं श्रेणिक भूपतिरे लाल | सुरंगमां थर थावजो देव, श्रमे लेइ जाशुं तुम सतीरेलाल ॥ १० ॥ कुमरी घर गइ दोय, चिंतातुर थर बालिकारे लाल ॥ श्रेणिक वर मन धार, श्रृंगार तार, Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरी ॥६ ॥ पेहेरी उजमालिकारे लाल ॥ १॥ श्रावी वन विशाल, बीजे दिने बेहु बेनमीरे लाल॥ टाटुं सोकनुं साल, चेलणाए चिंतव्यु तिण घमीरे लाल ॥ १२ ॥श्रम विसरीयां बा. चेलणा कहे ज्येष्टा सुणोरे लाल ॥ उतावलां तुमे जाश, आजरण लावो श्रम तणारे । लाल ॥ १३ ॥ लेवाने तव जाम, ज्येष्टा जव पानी वलीरे लाल॥श्रावी सहीयरने वगम, चेलणा तव श्रावी मलीरे लाल ॥१४॥ अपहरी अनयकुमार, लाव्यो निज पुर गममारे लाल ॥श्रेणिक चेलंणा दोय. परणाव्यां जबरंगमारे लाल ॥ १५॥श्रानरण ज्येष्टा लेय, श्रावी तेणे गमे वहीरे, लाल ॥ चेलणाने वन मांहीं, जो जाम देखे। नहींरे लाल ॥ १६ ॥ आवी जिनने गेह, दुःख करी पाली वलीरे लाल ॥ एणे मुज देहनो नेम, परणेवा संयम नलीरे लाल ॥ १७ ॥ ज्येष्टाए तव जाम, दीक्षा लीधी। रुयमीरे लाल ॥ शास्त्र शीखी ताम, जशोमती बाई पासे खडीरे लाल ॥१०॥ ज्येष्टा-1 नी जे वात, सातकी राजाए सांजलीरे लाल ॥ हुवो नोगनो घात, मुज देवी बोली हतीरे लाल ॥ १॥श्राव्यो ते मन मांहीं, परणवानो नेम करीरे लाल ॥ दीक्षा लीधी त्यांहिं, समाधि गुप्ति गुरु पय धरीरेलाल॥२०॥उंगणीशमीकही ढाल, खंम बीजानी ए। सहीरे लाल ॥ रंगविजयनो शिष्य, नेमविजय कहे में कहीरे लाल ॥१॥ ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. - सातकी मुनि तप श्रादरे, पाले पंचाचार ॥ ध्यान धरे अति निरमबुं, गिरि गुफा मोकार ॥१॥महावीर चोवीशमो, तीर्थकर ते वाम ॥बासघली ते वांदवा, श्रावे देते धाम ॥२॥ अकाल मेघ तव उमट्यो, गाज वीज अपार ॥ वरसाद वरसे सरवडे, हुवो घणो अंधकार ॥३॥ चिंटुं दिशि नाठी आर्जिका, जय पामी तेणे गर ॥ ज्येष्टा तव नासी गश, गिरि गुफा मोकार ॥४॥ अंधकार अधिको थयो, मुनि न दीठो जाम ॥ नीनां वस्त्र मूकी करी, नीचोवे तेणे गम ॥५॥ सातकीए देखी करी, ज्येष्टानो वली अंग ॥ चित्त चट्युं मुनिवर तणुं, कीधो शीलनो नंग ॥ ६॥ उदरे उधान उपनो, ज्येष्टा गरे तव जाम ॥ पुनरपि दीक्षा गुरु कने, लीधी सातकी ताम॥७॥ चिह्न जाण्यां ज्येष्टा तणां, जशोमतीए ताम ॥ चेलणा घर आणी करी, आपी तेहने नाम ॥ ७ ॥ उपासना अधिकी करे, टाली शासन लाज ॥ समकित सुधुं दृढ धरे, एह नविनां काज ॥ ए ॥ नव मास वडे जनमीयो, ज्येष्टाए सुत जाम ॥ चेलणाए सुत प्रसवीयो, राजा बोले ताम ॥ १० ॥ BETaman RSS Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंक धर्मपरी ॥ ६३॥ ढाल वीशमी. बे को आण मेलावे साजना, साजना बेगले लागनां बे-ए देशी. श्रेणिक तव महोठव कर्यो, दीधां बोहोलां दाम हो ॥ पुत्र जनम जणावीयो, लोक मांही ताम हो॥होसाजन वातसुणो इसी ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ नंदन तव मोटो हुवो, हींडे ते अन्याय हो ॥ रुरु नाव करे पर तणां, पुत्रने देश् थाय हो॥होणाशाराणीए रुष नाम कडं, लोक ते जपेताम हो॥रुष नाम कहे बोकरां,नासे ठामो गम हो॥हो॥३॥ ढींके पाटु चाबखे, मारे तेह अपार हो॥उष्टपणे दंडे हणे, लोक पाडे पोकार हो ॥हो॥४॥चेलणाने आवी कडं, बहु लोके मली ताम हो॥राणी मन मांही चिंतवे,एहने नहीं कोई ठाम हो॥y हो॥५॥ अणाचारथी उपन्यो, केम होए ते संत हो ॥ दूधे सिंच्यो जेम लींवमो, केम होए ते महंत हो ॥ हो ॥ ६ ॥रीस करी राणी कहे, सांजल पापी जात हो॥ कुण तन कुणे जनमीयो, कोण ताहरो तात हो ॥ हो ॥ ७॥ सांजलीने रुष चिंतवे, एह कारण डे केशुं हो ॥ श्रेणिकने आवी कयु, अमे तो नहीं जमेगुं हो ॥ हो ॥ ॥ मुज माता पिता कहो, कारण शुं एह हो ॥ राजाए मांडीने कडं, सहु वीत्युं तेह हो ॥ हो ॥ ए ॥ तव रुख तिहां गयो, ज्यां ने पिता गम हो ॥ सातकी ॥६३ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनि पिता कने, लीधी दीक्षा ताम हो ॥ हो ॥ १०॥ सिद्धांत शास्त्र शिखे घj, मानणे अंग अग्यार हो ॥ दश पूरव पाठे कर्या, लीधी विद्या सार हो॥ हो ॥११॥ वडी विद्या वसुधा नली, जाणे ते सत पंच हो ॥ लघु विद्या सातसें, बोले ते वली संच हो ॥ हो ॥ १२ ॥ पुण्य प्रजावे तुम तणे, सिधां सहु अमे आज हो ॥ कर जोमी | विद्या नणे, कां दीयो श्रम काज हो॥होण॥ १३॥ रुजे विद्या वश करी, राखी सहु जाम हो॥गोकरण गिरि थावे घणा, श्रावक अजिराम हो हो॥१॥ सातकी मुनिवर वांदवा, श्रावक बहुश्राव्या हो ॥ वाघ सिंह रूप रुखे करी, घणो त्रास पड़ाव्यारे हो ॥ke होणारा सातकी मुनिवर एम नणे, रुघ सांजलो थाज हो ॥ इष्ट चेष्टा तुं कां करे. नहीं तुजने लाज हो ॥ हो ॥ १६॥ नारी निमित्त तुज तप तणो, होशे तेहनो नंग) हो ॥ सांजलीने रुष वेगे गयो, कैलास गिरि उत्तंग हो ॥ हो १७ ॥ श्रातापन जोगे रह्यो, कैलास गिरिए जाम हो ॥ अवर कथा तुमे सांजलो, कहेशुं ते श्रनिराम हो। हो ॥ १०॥ विजयारध पर्वत थडे, दहण श्रेणि जाणी हो ॥ त्रिपुर नगर राजा हेमरथ, तस मनोरमा राणी हो ॥ हो॥ १५॥ प्रथम पुत्र ते देवदारु, बीजा विद्युत नाम हो ॥ राज्ये थापी देवदारुने, दीदा लीधी ताम हो ॥ हो ॥ २० ॥ खम बीजानी Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ ४॥ ढाल वीशमी, श्रोताजनने काज हो॥रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय लहे लाज ||| खम १ हो ॥ हो ॥१॥ उहा. -हेमरथ बहु तप करे, पाले पंचाचार ॥ राज करे ते रुअमो, देवदारु कुमार ॥१॥ विद्युते विश्वास करी, तव मांड्यो संग्राम ॥ वमो ना बंमावीयो, निज राज्यनो गम ॥२॥ कैलासे नासी गयो, देवदारु कुमार ॥ ऽव्य कुटुंब विमान रची, आव्यो सहु परिवार ॥ ३॥ श्राप कन्या तस रुयडी, रूपे रंना समान ॥ रमल करती सरोवरे, ग करवाने स्नान ॥ ४ ॥ श्राजरण वस्त्र मूकी करी, अंघोल करवा ताम ॥ रुखे दीठी रुयमी, कन्या रूप निधान ॥५॥ ते देखी विह्वल थयो, कामे पीड्यो अपार ॥ विद्याए वेगे करी, हाँ वस्त्र शणगार ॥ ६॥ कन्या कहे मुनिवर सुणो, श्रम देहनो शणगार ॥ तुमे बता कोणे अपहयां, कीदां ने स्वामि सार ॥७॥ रुख मुनि तव एम जणे, सांजकालजो तुमे बाल ॥ अंगीकार करो श्रम तणो, तो आपुं सुविशाल ॥ ॥ कन्या कहे ॥ ४॥ मुनि सांजलो, केम लोपीए लाज॥श्रमे विद्याधर बेटडी, पिता अणपूज्यां काज ॥ए॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुद्र कहे कन्या सुणो, पिता जणी पूढो खाज ॥ वस्त्र विभूषण तुम तणां, लेइ करजो काज ॥ १० ॥ ढाल एकवीशमी. करेलमां घर वेरो—ए देशी. कुमरी ते तव तिहां गर, पिता तो ते पास ॥ वात विचारी सदु कही, विवादनी ते वास ॥ सुगुण जन सांजलोरे ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ विद्याधर देवदारुए, मोकल्या तव प्रधान ॥ रुद्र पासे यावी कहे, सांजलजो सावधान || सु० ॥ २ ॥ विद्युत विद्याधर अम तणो, मोटो रिपु राज ॥ राज लीधुं वे यम तणुं, तेहने मारो खाज ॥ सु० ॥ ३ ॥ काज करो जो श्रम तणो, कन्या देशुं तेह ॥ रुद्धे तव तेहने कयुं, काज करीशुं एह ॥ सु० ॥ ४ ॥ विद्याए विमान रची, करी कटक अपार ॥ विजयार्थे वेगे जइ, मांड्यं जुद्ध कुकार ॥ सु० ॥ ५ ॥ विद्युत तव सामो थयो, करे सुर संग्राम ॥ रुद्रे रूप घणां करी, फेड्यो तेहनो गम ॥ सु० ॥ ६ ॥ विद्याए विजांमीयो, सहुनो कीधो घात ॥ त्रिपुर नगर तेणे जालीयुं, लघु मार्यो तिहां जात ॥ सु० ॥ ७ ॥ देवदारु राजे ठवी, कीधो यति उच्छाद ॥ विद्याधर सहु जेटीया, मांड्यो तिहां विवाद ॥ सु० ॥ ८ ॥ कुमरी परणी आठ ते, रुडे Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीरूपवंती नार ॥ अपर कन्या परणी घणी, नवि जाणुं तेहनो पार ॥ सु॥ए॥ सबल काम सेवा नणी, रुखे नहीं संतोष ॥ जे जे कामनी जोगवे, ते ते पामे दोष॥ सु०॥१०॥ ॥६५॥ मरण पामी ते अति घणी, रुडे मांड्यो अन्याय ॥ विद्याधर मारी करी, परण्यो कन्या जाय सु० ॥ ११॥ कन्यानो तेणे कय कयों, नवि लाने को पार ॥ हेमाचल राजा नलो, विद्याधरनो सार ॥सु०॥१२॥ तस नारी रुयमी, मीना तेहनो नाम॥पुत्री पारवती तस तणी, रूपे रंना समान ॥ सु० ॥ १३ ॥ पारवती परणी करी, रुढे श्राणी ताम ॥ काम लोग तेहशुं करे, पामे सुख सुधाम ॥ सु० ॥१४॥ पारवतीशु संग करी, नव्यो रुरु ते Kजाम ॥ अपवित्र अंगे पूजतां, नाठी विद्या ताम ॥ सु० ॥१५॥ त्रमा नामे विद्या गर, रुडे रच्यो उपाय ॥प्रतिमा कीधी तसुतणी, मामीने ते ध्याय॥सु०॥१६॥ व्रमा विद्यानो जाप जपे, रुस रचीने ध्यान ॥ विघन करेवु मांडीयु, विद्याने बलतान ॥सु०॥१७॥ नृत्यकी नारी रूप धरी, गीत गावे ते सार॥श्राकाशे उंची रही, नाचे विविध प्रकार Hal॥ सु० ॥ १०॥ नव रस नाटक सांजली, तव चलीयो ते ध्यान॥ईश्वर मुख उंचुं करी,IMITEum जोयुं नृत्यकी तान ॥ सुः॥१ए॥ ढाल ए एकवीशमी, खम बीजानी एह ॥ रंगविजKायनो शिष्य कहे, नेमविजयने नेह ॥ सु० ॥ २० ॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. मोह पाम्यो नृत्य देखतां, नाटकी नख जो ताम ॥ विद्याए विपरीत रूप कर्यु, नानीचुं रुखे दीतुंजाम ॥१॥प्रतिमास्थाने पुरुष एक, वदन चारदीसे तेह ॥ पांचमुं मुख चुं खर तणुं, लुंलुंकार लुंके जेह ॥२॥ कठिण चित्त रुखे करी, कर नखे खुर्वा कपाल । ब्रह्मा विद्या नासी गश्, हस्त चोंव्यं विकराल ॥३॥ कपालिक नाम रुपनु, ते दिनथी कहे लोक ॥ एकदा रुज गौरी बेहु, विमान बेसी तजी शोक॥४॥वणारसी वन जायतां, वीर उन्ना धरी ध्यान ॥ गौरी शंकरने कहे, तुम जा रह्यो मूकी मान ॥५॥ प्रिय कारणी सुत संजमी, तुमे श्रति लंपट नूर ॥ हास्य करीश्म रुरु नणे, ध्यान करूं एह चूर ॥६॥ रुखे उपसर्ग मांमीयो, मेघवृष्टि करी घोर ॥ गाज वीज घणुं गरगडे, वाघ सिंह सर्प घोर ॥ ७॥ वायु श्रने पाषाणनी, वृष्टि कीधी घणी वार॥रात सघली उपव कर्यो, जिन मन न चट्युं लगार ॥॥प्रजात हुवो शिव चिंतवे, में पापी कीधश्रकाज ॥ मेरु सरिखो निश्चल मुनि, क्षमावंत जिनराज ॥ ए॥ निंदा गुरु अति घणी करी, महावीर धर्यु नाम ॥नक्ति नावे पाय चांपीया, खर मस्तक पड्यु ताम ॥१०॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥६६॥ ढाल बावीशमी. बेनी प्रीत पूरव पुण्ये पामीए-ए देशी. अज्ञानी मूढे श्राचर्यु, चतुर्मुख ब्रह्मा तेहहे ॥ साजन ॥ ब्रह्मविद्या नामे जाणजो, जिनशासन सत्य एहहे ॥ सा ॥ १॥ सुणजो वात सोहामणी॥ ए श्रांकणी ॥ जिन वांदी रुख घरे गयो, गौरीशुं अति बहु नेहहे ॥ सा ॥ सांजलो काम शुं शुं करे, विद्याबले शंकर तेहहे ॥ सा० ॥ सु० ॥ २॥ ससरोसालो घणुं पीमीया, माने गणे नहीं केहहे ॥सा॥चाताए पारवतीने पूबीयु,हरथी केम रहे विद्या बेहदेसा॥सु॥३॥ गौरी कहे ना सांजलो, शरीर राखे विद्या पूरहे ॥ सा ॥ काम सेवा शंकर करे, तप विद्या रहे पूरहे ॥साम्॥सु॥४॥ नगनी संतोषी वचन रसे, कूड रच्यो उपायहे | ॥ सा० ॥ हर गौरी शंकर समे, खड्ने हण्यां बेहु कायदे ॥ सा० ॥ सु० ॥५॥ ईश्वर अधोगति पामीयो, विद्याए विडंबीया लोकहे॥सा॥मरकीए माणस मरे, राजनुवन प्रजा शोकहे ॥ सा० ॥सु० ॥६॥निमित्त जो निमित्ति कहे, विद्या संतापे सारहे|| T ॥ सा ॥ आचरण जेने बेहु मुश्रां, लिंग उपर जलाधारहे ॥सा०॥ सु० ॥॥ शिखामण एहवी करे, विद्या संतोषाए चंगहे ॥ सा ॥ तव लोके सहु तिम कर्यु, जोनि an Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KanoonrmanaKen w aaNGENERANDRAairiwww उपर व्युं लिंगहे ॥ सा ॥ सु० ॥ ७॥ पूजी प्रतिष्ठी वंदीयो, तव रोग सोग गया। रहे ॥ सा ॥ विद्याए विघन निवारीयां, सुख संतान घर पूरहे॥ सा ॥ सु ॥ए॥ हस्त पाय मस्तक नहीं, जलाधारी मांहे लिंगहे ॥ सा० ॥ निर्लज लोक लाजे नहीं, बीली धंतुरो चढे अंगहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १० ॥ मूरख मूढ मिथ्यातीथा, हस्त शिर कंठे बांधे तेहहे ॥ सा ॥ हर हर मुख हश्डे धरे, पूजे पखाले वली जेहहे ॥ सा॥ सु ॥ ११॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे सारहे ॥ सा ॥ सत्य वचन जे जिन तणां, धरजो मन निरधारहे ॥सा॥सु॥१॥ सत्य धरम जिनवर तणो, जिहां |जोए तिहाँ सारहे ॥ सा ॥ जे नर निश्चे चित्त धरे, ते पामे नव पारहे ॥ सा सु ॥ १३ ॥ मिथ्या मत जे मोहीया, घेला ते मूढ गमारहे ॥ सा ॥ असत्य वचन वली आचरे, जव नव जमशे संसारहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १४ ॥ पवनवेग तव बोली, सांजलो नाश् चंगहे ॥ सा ॥ सत्य धरम जिनवर तणो, ते उपर मुज रंगहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १५ ॥ कुदेव कुशास्त्र कुगुरु सहु, में परीहयों मिथ्या धर्महे । ॥ सा०॥ वचन तुमारां सांजली, जांग्यो सघलो मन जर्महे ॥ सा० ॥ सु० ॥ १६॥ सुदेव सुगुरुने शादर्या, आदयों जैननो धर्महे ॥ सा॥ मित्र मनोरथ मुज फल्या, ENTERSITESLIM Romamariaw Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरी अशुज टख्यां मुज कर्महे ॥ सा ॥सु॥१७॥ श्री हीरविजय सूरि तणो, शुजविजय शिष्य तेहहे ॥ सा० ॥ नाव विजय शिष्य तेहना, सिफिविजय शिष्य एहहे ॥ सा ॥ ॥६ ॥ सु॥१॥ रूपविजय रंगे करी, कृष्ण विजय कर जोमहे ॥ सा ॥ रंगविजय कविरावजनी, नावे कोश् होडहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १५ ॥ खंम बीजो पूरो थयो, ढाल बावीशे सारहे ॥ सा ॥ नेमविजयने नित्य प्रत्ये, जग माहीं जयकारहे॥ सा ॥ सु० ॥ २० ॥ ॥ इति श्री हरिहरब्रह्मार्कचंऽयमसुरेंअसुरगुरु देवादि दूषणनामा द्वितीयोऽधिकारः॥ A Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - खंम ३ जो. उदा. सकल जिनवर पय नमी, सद्गुरु चरण नमेव ॥ त्रीजो खंड कहे\ हवे, नेमविजय कहे हेव ॥ १॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे चंग ॥ मिथ्यात पुराण वली दाखवू, फेरवी रूप उत्तंग ॥२॥ ढाल पदेली. मन मधुकर मोही रह्यो-ए देशी. विद्या प्रनावे रूप पालट्यां, बेहु हुवा साधु महंतरे ॥ पश्चिम पोले प्रवेश करी, हिजशालाए श्रावी संतरे। मनोवेग बुकि विचक्षणो॥ ए आंकणी॥१॥ दंड धरीनेरी बालवी, कीधो घंटारव तामरे ॥ सिंहासन बेग मुनि रुश्रमा, जोवा मत्युं सन गामरे ॥ म॥२॥ शब्द सुणी हिज श्रावीया, बोले बिरुद अनेकरे ॥ देखी जति प्रते एम कहे, नणो मुनि प्रत्युत्तर एकरे ॥मण॥३॥ दर्शन उन्नु मत तणा, करो अमथी वाद विशालरे॥कोण दर्शन कोण गुरु शिष्य, जवाब देजो दयापालरे ॥मा॥४॥ विष Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग३ cannamasumaana धर्मपरीप्रिते मनोवेग नणे, सानलो विप्र सुजाणरे ॥ वाद विद्या श्रमे नवी लह, केवां शास्त्र पुराणरे ॥ म० ॥ ५ ॥ जतिवेष श्रापणे पाली, गुरु नथी अम तणे शिषरे ॥ पाट-IN ॥६ २७ ॥ ॥ लीपुर जोवा श्रावीश्रा, निगुरा उइए हिज धिषरे ॥ मं० ॥६॥ कोप करी हिज बोलीश्रा, सुणो मुनि मूढ गमाररे ॥ वाद विवाद जाण्यो नहीं, केम कीधोनेरी प्रहाररे ॥ म ॥ ७ ॥ घंटारव बहु वार कयों, सिंहासन बेग केमरे ॥ नवी गुरु विना चेला सांजल्या, नगर को प्रेमरे ॥ म ॥ ॥ माया जति कहे सांजलो, हेलाए वजाव्या घंट नेरीरे ॥ सहजे सिंहासन चांपीयां, न गमे तो बेसीए फेरीरे ॥ म॥ ए ॥ विप्र वचन एम चरे, दपणक मोटा धुताररे ॥ मुनि नणे वामव तुमे सुणो, सत्य केतां लहीए माररे ॥ म ॥ १० ॥ ते उपर कथा कहुँ, सांजलजा सज साथरे ॥ कोश्क गामे एक शेठ रहे, घरमां बहु आथरे ॥ म० ॥ ११ ॥ पुत्र बेहु शेग्ने अडे, जिनपाल अने जिनदत्तरे ॥ गुरु मढ्या जिनदत्तने, ली, मकित सतरे ॥ म॥१२॥ साचुं बोले वणजतां, कूम कपट नवि राखेरे ॥ साचाबोलो सहु कहे, नगर लोक एम जाखेरे ॥ म ॥ १३ ॥ हाटे बेगे नित्य रहे, थावे लोक अनेकरे ॥ साचो जाणी आवे घणा, बोले विनय विवेकरे ॥ म ॥१४॥ नाममायापOSSAnicaNRIBE ॥ ६ ॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना मोटो मन चिंतवे, मुजने कीधो नचिंतरे ॥ व्यापारी मोटो थयो, मात पिता मन खंतरे ॥ म ॥ १५ ॥ साच बोले लान केम होये, कूम कपट मांहिं लानरे ॥ कूमो संसार सौए कह्यो, कूमो जलधर आनरे ॥ म ॥ १६ ॥ व्यापार करतां दिन घणा, गया तव लाज न दीसेरे ॥ मात पिता नाइ सहु मली, श्रावी बेग बोले रीसेरे ॥ म० ॥ १७ ॥ कहे ना तुं शुं करे, लोक आवी नेलां थायरे ॥ एहवो व्यापार किहां शीखी, अव्य ले किहां खायरे ॥ म ॥ १७ ॥ के लुब्ध्यो वेश्या नारीशु, के गुप्त दान दीधोरे ॥ के कोइ व्यसन पड्यो श्रडे, तुं तो दीसे सीधोरे॥ म० ॥ १५॥ नामां लेखां संजालीने, बोलावे लघु नारे ॥ लाज ठामे खोट केम होये, ए शी कीधी कमारे ॥ मम् ॥ २० ॥ ढाल पेली त्रीजा खंगनी, सांजलो बाल गोपालरे ॥ रंगविजय कविराय ने, नेमविजय उजमालरे ॥ म० ॥२१॥ उदा. | तव बोल्यो लघु नात ए, तमने अव्यनी हुंश ॥ कोटिध्वज था तमे, कूम करी लो दूंस ॥१॥श्रमने ए तो नावडे, तुमने तो घणो लोन ॥ बेसो हाटे जश् हवे, घरना बगे तमे मोज ॥२॥साचे मारे चालवू, कहेवुमारे साच॥ देवं साचनु, श्णी परे पावं Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ६५ ॥ वाच ॥ ३ ॥ समकित मारे पालतुं, गुरु वयण केम लोपाय ॥ जीव जाये तो पण सही, किम करुं हुं अन्याय ॥ ४ ॥ एवं वयण ते सांजली, रीस चमी वृद्ध जाय ॥ धर्मी थ‍ बेठो हवे, एने केम कदेवाय ॥ ५ ॥ पांच शेरी लइ हाथमां, नाखी सामे लघु जात ॥ लागी मर्म वामे तदा, मरण पाम्यो जीव जात ॥ ६ ॥ साच बोल्याथी ए थयो, मनोवेग कहे ताम ॥ पुनरपि वात कहुं वली, सांजलजो सदु श्राम ॥ ७ ॥ ढाल बीजी. खाणे पडवे ससरो सूता, पहेले पमवे बाइजी ॥ एक घमीनी ढील करो तो करशुं राजी, बेडो नांजी - ए देशी. पुरोहित हरिजट्टे जेम लहीन, बंधन ताकन दंग || जेवुं होय तेहवुं जाखतां, तेम मने थाये जंग ॥ सहुको सुणजो ॥ हांरे तुमे सांजलीने मत कोपो ॥ स०॥ ए यांकणी ॥ १॥ द्विजवर पणे मुनि तमे सुणजो, हरिजट्ट तणी कहो वात ॥ याप वीती पढी परकाशजो, सांजलशुं ते ख्यात ॥ सं० ॥ २ ॥ वेशधारिक मनोवेग कड़े तव, सुणजो विप्र सुजाण ॥ श्राडकथा निरमली हुं कहुं हुं, सांजलो सुखनी खाए ॥ स०॥ ३ ॥ अंग देश चंपापुरी नगरी, गुणसागर महाराज || हरि ब्राह्मण राजगर बे तेहना, सेवे भूपति पाय खंग ३ ॥ ६ए ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Nn स० ॥ ४॥ एक दिन अशूचि टालवा काजे, कारी जरी चाब्यो दूर ॥ मल मोचन तकरी जव्यो तव, दीवं नदी श्राव्युं पूर॥ स॥५॥ शिला तरती श्रावीजल पर, देखी अचंच्यो ताम ॥ वेगे जश्ने नृपने विनव्यु, सांजलो कौतक स्वाम ॥ स॥६॥ बाहिर नूमि गयो हूं वेगलो, नदी कीनारे उनो जाम ॥ मोटी शिला एक जलमां तरती, दीठी अमे अनिराम ॥ स ॥७॥ पुरोहितनी वाणी सांजलीने, राजा कदे विख्यात ॥ नूत जोटिंग व्यंतरे बलीयो, असंजव बोले वात ॥ स ॥ ॥ हरिजद्द शाही दृढतर बांध्यो, ढींक पाटु घणी मूके ॥नोपा आण्या मंडप तव मांड्यो, चाबख दोरी न चूके ॥ स ॥ ए॥ धूणे धंधोले अदत गटे, हाथ पाय शिर कूटे ॥ बुंब करतो हरिजट्ट चिंते, मरण आव्युं अणखूटे ॥ स० ॥ १० ॥ पुरोहित कहे सांजलो नृप लोका, जूवं बोट्युं नोहे साच॥नूत जोटिंग वलग्यो नथी मुजने, खोटुं हास्युंहस्यो वाच ॥स०॥१९॥ शिला तरंती नदीए नदीठी, बोडावो महाराज ॥ गुणसागरे ततखिण बोमाव्यो, हरिनट। पाम्यो घणी लाज ॥ स० ॥ १५ ॥ घरे ज पुरोहित चित्त चिंते, मुज मुख नूपे कर्यु कालु ॥ सत्य वचन बोलतां मुने कूट्यो, श्ह साटुं केम वाढुं ॥ स० ॥ १३ ॥ एकदा हरिनट्ट वनमां चाल्यो, वामीमां वानर दीग॥राजागुरुए शिखव्या नृत करवा, नव रस | Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीनाटक करे मीग ॥ स ॥ १४ ॥ रमवा राजा वनमां गयो तेहवे, राणीशुं प्रेम धरंतो || खंग ॥ एकलो वनवाडी ज जोश, दीगे वानर नृत्य करंतो॥स० ॥ १५ ॥ नव रस नाटक || ॥७ ॥ जोतां नहीं तृपति, श्रावोराणी जुन एह॥साद सुणी राजा तणो बीना, वानर नाग तव तेह ॥स॥१६॥ राणीने श्रावी नृप कहे सुंदरी, वानरनृत्य देख्यु सार ॥ राजसजा श्रावी नृप बेगे, प्रोहित सहु परिवार स॥१७॥ राजा कहे सहुको सांजलजो, कौतिक दी में आज ॥ नव रस नाटिक वानर करता, जोतां थका सीजे काज ॥ स० ॥ १७ ॥ तव राणी कहे में नवदीवं, सुणजो लोक विचार ॥नवी दीवं सांनट्युं श्राज पहेलु, नूपति ऊंखे असार ॥ स ॥ १७ ॥ हरि प्रोहित कहे सांजलो सङान, राजाने वलगाड वन मांहीं ॥ ए वचने ताणी नृप बांध्यो, नोपा वैद मल्या त्यांहिं॥ स० ॥२०॥ धूणे धंधोले अंग पबगडे, हरिनट्ट निवार्या तेह॥ निज हस्ते राजाना बंध जोड्या, वस्त्र विनूषित देह ॥ स ॥ २१ ॥प्रोहित जाणे नूपति सुणो लोका, वानर नाटिक जेम वारु॥ नदी मांहे तरती थकी दीठी, तेम शिला सत्य मन धारं ॥ स ॥२॥ श्लोक-संजाव्यं न वक्तव्यं, प्रत्यक्षमपि यद्नवेत् ॥ ॥३०॥ यथा वानरसंगीतं, तथा सा तरति शिला ॥१॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वचन सुणी राजा तव हरख्यो, सत्य वाणी एहसार॥प्रत्यक्ष दीतुं तो नवि कहे, नवि माने मूढ गमार ॥ स ॥२३॥त्रीजा खंम तणी ढाल बीजी, कही श्रोताजन सारु ॥ रंगविजयनो शिष्य एम पत्नणे, नेमविजय कहे वारु ॥ स० ॥ ॥ उहा. हरिजनी कथा रुयमी, विप्र सुणी तमे तेह ॥अद्लुत वचन मुज बोलतां, तामन करशो देह ॥१॥ते वामव तव बोलीया, सांजलो नानूर ॥ सत्य वचन तुम बोलतां, श्रमे नवि थारुं क्रूर ॥२॥ माया मुनि तव बोलीयो, मनोवेग वर वाण ॥ कथा कडं वली मुज तणी, सुणजो तेह सुजाण ॥३॥ ढाल त्रीजी. केसर वरणो हो के काढी कसुबो मोरा लाल-ए देशी. श्रीपुर नगरे हो वणिकोत्तम नाम ॥ मारा लाल ॥ जिनदत्त शेठ हो श्रावक कुलदात ॥ मारा लाल ॥ जिनदत्ता नामे हो कहीए तस नारी ॥ मारा ॥ तेहनो हुं पुत्र हो गुणवंत धारी॥मा ॥१॥ माहरो नाम दीधो हो जिनचरणदास ॥मा॥ जणवा मूक्यो हो मुनिवर पास ॥ मा ॥ नणी गणीने हो विद्या अनेक ॥ मा० ॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ७१ ॥ गुरुने आराध्यो हो विनय विवेक ॥ मा० ॥ २ ॥ एक दिन मुजने हो दीधुं काम ॥ मा० ॥ कमंगल नरी श्रावो हो गुणना ग्राम ॥ मा० ॥ मारग जरवा हो चाल्यो जाम ॥ मा० ॥ बोकरां रमतां हो दीगं ताम ॥ मा० ॥ ३ ॥ रमतां देखी हो जोवा रही यो ॥ मा० ॥ निशालीए जइने हो गुरुने कहीयो ॥ मा० ॥ जिनचरणदास हो करे बहु क्रीमा ॥ मा० ॥ गुरुजी कमंडल हो नहीं नरे व्रीडा ॥ मा०॥ ४ ॥ जति जोवाने हो नीकल्या जाम ॥ मा० ॥ बात्र एक यावी हो कहे मुज ताम ॥ मा० ॥ नासी जाए हो गुरु आव्या एह ॥ मा० ॥ रुट्या रीस करशे हो जारे तुज देह ॥ मा० ॥ ५ ॥ जयजीत नावगे हो तव हुं जाम ॥ मा० ॥ कर धरी कमंगल हो बीजे गाम ॥ मा०॥ जातां जातां हो श्राव्युं एक गाम ॥ मा० ॥ हस्ती पुंठे हो लाग्यो ताम ॥ मा० ॥ ६ ॥ पूर्वे कीधां हो जे जेम पाप ॥ मा० ॥ करिवर केको हो न ढां व्याप ॥ मा० ॥ जयजीत | मुजने हो कंपे दे ॥ मा० ॥ काल कृतांतज हो सरिखो तेह ॥ मा० ॥ ७ ॥ नासी न शकुं हो करिवर श्रागे ॥ मा० ॥ चिंतव्युं में किहां हो रहेशुं लागे ॥ मा० ॥ जमीनो बरेटो हो में दीठो जाम ॥ मा० ॥ काले वलगाड्यो हो कमंगल ताम ॥ मा० ॥८॥ कर्मनलना मुखमां हो हुं जइ पेठो ॥ मा० ॥ रीसे जरीयो हो हाथीए दीठो ॥ मा० ॥ नालुए ३ ॥ ७१ ॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देरी हो जोयुं में जाम ॥ मा ॥ हुं मांही पेठो हो दीगे ताम ॥ मा॥ ए माहारी पुंठे हो पेगे ते नाग ॥ मा० ॥ हुं नासंतो हो नवी देखू लाग ॥ मा ॥ कमंडल मांहीं हो करे बहु केममा ॥ उजावानी हो न करूं जेड ॥ माण॥॥ काल घणो मुजने हो नासंतां थयो । मा० ॥ गजवर केडो हो बांडी न गयो । मा० ॥ उजातां मारी हो उटी कामी॥मा॥ हस्तीशुं तव हो सुंढे धरी हडी ॥मा ११॥ नागो थश्ने हो नागे हुँ ताम ॥ मा०॥रीसे करिवर हो केमे जाम ॥मा ॥ नाबुए नीकली होजो बुंजेह॥मा॥ पुंठेथी हाथी हो नीकले ने तेह ॥ माण्॥१२॥ नाबु बेदी हो नीकल्यो देह॥माण ॥ पुंबनो केश हो वलग्यो ने तेह ॥ मा० ॥ कोप करी में हो दीधी गाल ॥ मा॥ मर मर हाथी हो तुं अकाल ॥ मा० ॥१३ पापी जे नर हो पर पीमा करे ॥ मा०॥ गजनी परे हो ते नहीं संचरे॥मा॥अवकाश लहीने लाहो नागे हुं जाम ॥मा॥ अपर नगर हो दीतुं में ताम मा०॥१॥ जिनवर जुवन हो दी में चंगमा॥मुजमन उपनो हो बहोलो रंगमा॥ नाव करीने हो वांद्या अरिहंत Nnमा०॥ निराचरण हो नासुर माहंत मा॥१५॥ वांदी करीने होडंबेगे जाम ॥मा॥ नर नारी नवि देखुं ताम ॥मा॥ शून्य जुवन डे हो जिनवर केरुं ॥मा॥ नामे गमे हो| Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ ॥ a masumeenaramananmaancaimum जो अनिने ॥मा॥१६॥ उंची दृष्टि हो जोयुं जाम॥मा॥पीबी कमंगल हो दी तामा खंग३ मा॥ जतन करीने हो बांध्यां ने जेह॥मा हस्ते करीने हो उतार्यां तेह ॥माण॥॥ मन मांहीं हो विचार्यु एहर्बुमा॥ वस्त्र विहुणा हो करशु केहेकुंमा॥श्रावक सुतने हो जाचुं अहीं केम ॥मा पीबी कमंगल धरीयां तेह ॥मागारमा गुरुजी पाखे हो दीदा में लीध ॥मा॥ देश विदेशे हो विहारज कीध मा॥ पाटलीपुरमांहोश्राव्यो ढुं आज ॥मा कथा कही बेहो में मूकी लाज॥मा॥रणा संबंध कथानोहो कह्यो जे एह ॥मा॥ हिजवर वातो हो विचारो तेह ॥ मा० ॥ साचां वचन हो कह्यां ने अमो॥ मा० ॥ खोटां वचन हो म करशो तमो ॥ मा० ॥२०॥ खंग त्रीजानी हो ढाल कही त्रीजी ॥ मा॥ हो करे जो जीजी ॥ मा० ॥रंगविजयनो हो शिष्य एम बाल ॥मा नेमविजयने हो नहीं कोई तोले ॥ मा ॥१॥ उदा. विप्र वचन तव बोलीया, सांजलरे अजाण ॥ जूठो किमही न बोलीए, कलि केमा उगे जाण ॥१॥ खोटां वचन तमे उचाँ, दीसो बोरे लबाम ॥ डिंग मोल्यां ने श्रणघड्यां, तुमे धूरत महा थाम ॥२॥ कमंगल मांहीं मयगल तुमो, पेग बो एह || n Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HamaramanaKAAMRUNARIBRARASIMANDARINEERINEETINENIFERDURIKARYANAHason जूठ ॥ करि नीकलतां नालुए, केश वलग्यो महा कूट ॥३॥ माया मुनि तव बोलीयो, सांजलो विप्र विचार ॥ वचन श्रमारां खंमीयां असत्य कीयां अपार ॥॥ जयं वचन तुमे कां करूं, जो नहीं मानो एह ॥ वेद पुराणे जे कह्यां, सत्य करो कांश्तेह ॥५॥ ब्राह्मण तव ते बोलीया, सांजलो ना सार ॥ वेद पुराणे नहीं सुण्यां, एहवां वचन जालगार ॥६॥ दी सांजव्यां जो. होये, वेद पुराणो मांहीं ॥ कपटी केता का नश्री, | विलंब करो बगे कांहीं ॥ ७॥ मनोवेग तव बोलीयो, सुणजो विप्र विचार ॥ सत्य वचन मुज बोलतां, शिक्षापात लहुं मार ॥ ७॥ ब्राह्मण वचन वलतो नणे, सांजल मूढ गमार ॥ योग्य वचन परकाशतां, को नवि दीये प्रहार ॥ ए॥ ढाल चोथी. एक दिन दासी दोमती, आवी श्रेणिक पास रे--ए देशी. वेषधारी मुनि तव कहे, सांजलो हिजवर जेहरे ॥ वेद पुराण सुएयु एशुं, तुम पास नाखशुं तेहरे ॥ वेषधारी ॥ १ ॥ कुरुजांगल हस्तीनागपुरे, पांमव पांच ते वातरे ॥ युधिष्टर जीम अर्जुन जलो, सहदेव नकुल प्रख्यातरे ॥ वे ॥२॥ धर्मराजाए मन । चिंतव्युं, पुण्य कीजे अपाररे ॥ विनय करी तेमावीया, खेचर सुर नर साररे ॥ वे० ॥ पाकमकामा Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥३॥ ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा, ऋषि सहस्र अव्याशीरे ॥ कर जोडी युधिष्टर नणे, खंग ब्रह्मा कहोने विमासीरे ॥ वे ॥४॥ धर्म केही परे उपजे, अमे करूं ते काजरे ॥ ॥७३॥ ब्रह्मा कहे युधिष्टर सुणो, जाग मांगो महाराजरे ॥ वे ॥५॥ अश्वमेधे तुरंगम हणो, पुंडरिक मांहे हाथीरे ॥ गोमेध पुण्य गायज हणी, अजामेध श्रज साथीरे ॥ वे ॥६॥ राजसूय महा जागमां, नरपति होमो साररे ॥ विविध जीव जागे कह्या, तेहनो पुण्य नहीं पाररे ॥ वे ॥७॥ श्लोकः-गोसुवे सुरनिर्हन्यात्, राजसूये च जुजम् ॥ अश्वमेधे हयं हन्यात्, घुमरिके च हस्तिनम् ॥ १॥ MT तव राजाए प्रारंजीयो, राजसूय जागनो नामरे ॥ दैत सघला रोषे जढ्या, लांजी जागनो गमरे॥ वे ॥॥ युधिष्टर राजा तव नणे, थर्जुन सुणो तमे नारे॥शेषनाग तमो पातालथी, साते ऋषि वेगे जारे॥ वे ॥ ॥ते थावे तो कारज सरे, नहींतो विणसे जागरे॥अर्जुने तव बाण मूकीयु, फोड्यो नूमि नागरे ॥ वे ॥१०॥ बाण जिला ॥७३॥ पेगे अर्जुनो, पाताल गयो तामरे ॥ नाग रिषिने सहु का, पधारो खामि गामरे | Nm वे ॥ ११ ॥ शेषनाग झषि सातशें, विचारी करी साररे ॥ धर्म काम करशुं अमे, 2. FEAR தேகததேன் a mwwwwwnemamaHATurmeena SHARE meramanar Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लीधो सैन केडे फाररे ॥ वे ॥ १५ ॥ वाण बिडे सहु नीकली, दश क्रोड ते सेनारे॥ दैत्य साथे संग्राम कर्यो, नाग्या दानव बीनारे ॥ वे ॥ १३ ॥ जगन संपूरण तव थया, पांडव पांच ते हरख्यारे॥ वेद पुराणे बोट्युं एह, विप्र जुर्व तमे परीक्षारे Kalin वे ॥ १४ ॥ नट्ट नणे मुनिवर सुणो, सत्य वचन ए मोटुंरे ॥ स्मृति पुराण वेदे का, केम थाये श्रम खोटुंरे ॥ वे ॥ १५ ॥ माया मुनि कहे सांजलो, विप्र एहीज वातोरे ॥ हय गय पायक अहिपति, इषिवर चाख्या सातोरे ॥ वे ॥ १६ ॥ बाण नि समाया सहु, वली नीकल्या जेमरे ॥ कमंडल मुखे हुँ करी, समया बेहु तेमरे ॥वे॥१७॥ विप्र वचन नणे मुनि सुणो, घटतां दीसे ए दोयरे॥वली विचारी कडं अमे, उत्तर देजो सोयरे ॥ वे ॥ १७ ॥ कमंडल मांही हस्ती तुमे, माया एह। संदेहरे ॥ घणो काल नमतां थका, केम न चांगी जीमी तेहरे ॥ वे ॥ १५ ॥ नाबुए कुंजर केम नीकट्यो, केम वलग्यो पुंब वालरे ॥ चार संदेह पड्या अडे लो, जुर्म दयापालरे ॥ वे ॥ २० ॥ खंड त्रीजे ढाल ए कही, चोथी सुणो सुविशालरे ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय उजमालरे ॥ वे ॥२१॥ ADMINNERSARAMMARKENDRAMAILOMAMRENDAINIKEDUREME Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग ३ immediaWARA धर्मपरी उदा. ॥ ४॥ जिनचरणदास बोल्यो जति, ब्राह्मण सुणजो वात ॥ अगस्त्य ऋषिवर अनिनवो, पुराण प्रसिद्ध ए ख्यात ॥१॥ उठ हस्तीनी देहमी, सायर समीपे वास ॥ तप जप ध्यान धरे बहु, सामग्री राखे पास ॥२॥ जोली माजन पात्रने, स्नाने शुरू करे गात्र ॥ सायर तीरे बेसी करी, जोय मेव्यां सवि पात्र ॥३॥ चाख्यो करवा स्नान ते, समुनी लागी लेहेर ॥ जल कलोले लीधी सहु, उपन्यो झषिने जेहेर ॥४॥ पूजा सामग्री माहरी, पापी जलधिए लीध ॥ तो संहारं एहने, तव तिहां सागर पीध IN ॥ ५॥ एक च में एटलो, पीधो सागर सर्व ॥ केटलोक काल पेटमा रह्यो, हुँ कहुँ मूकी गर्व ॥ ६॥ हिज सहु को तमे सांजलो, पुराण प्रसिको ताम ॥इंडिमां समायो जो सही, तो हुँ हस्ती बेहु उगम ॥ ७॥ अगस्त्य ऋषिए पीधो सहु, वहाण सायर मठ ॥ एह वात मानो खरी, तो माहरी वातो सच्च ॥ ॥ विप्र बोल्या तव सहु मली, पुराणमां वात मनाय ॥ तुम वयण केम लोपीए, लाग्या तुमारे पाय ॥ ए॥ माया मुनि तव बोलीयो, ब्राह्मण सुणजो वात ॥ अपर वात पुराणे कही, सनिलजो विख्यात ॥१०॥ । लusaReal ४ ॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल पांचमी. -- नंद सखुणा नंदनारे लोल, तें मुने नाखी ने फंदमारे लोल--ए देशी. सृष्टि उपाश् ब्रह्मानी कहीरे लोल, नूतल वायु वनस्पति महीरे लोल ॥ वर्ग मृत्यु पातालमारे लोल, जीव उपाया उजमालमारे लोल ॥१॥ रुखे रुजपणुं तव कयुरे लोल, ब्रह्मा सृष्टि वेगे संहरुरे लोल॥प्रलयकाल वरतावू श्राजधीरे लोल, अमे ईश्वर एवं काजधीरे लोल॥२॥ विष्णु वात विचारी एहवेरे लोल, जुवन चौद पालशुं तेहवेरे लोल ॥ उदर मांही जग लीधो सहुरे लोल, जीवादिक तव राख्यो बहुरे लोल ॥३॥ विष्णु पोहोड्या जश् वम पानमेरे लोल, ब्रह्मा जोवे रान रानडेरे लोल ॥ बहु काल गयो ) जग जोवतारे लोल, देखे नहीं अणखोवतारे लोल ॥४॥ तलसीनो बोम तव दीपमोरे लोल, ब्रह्मा श्राव्यो दील करी मीठमोरे लोल ॥ अगस्त्य ऋषि दीठा एटलेरे लोल, बेहु तापस एका मलेरे लोल ॥ ५ ॥ अन्यादे अन्यादे करीरे लोल, कोटे वलग्या ) बांही धरीरे लोल ॥ सन्मान दीधुं ब्रह्मा जणीरे लोल, श्रासन उपर बेग धणीरे खोल d॥६॥ अगस्त्य कहे ब्रह्मा सुणोरे लोल, केम पधार्या मुजने नणोरे लोल ॥ चिंतातुर नदीसो बो घणुरे लोल, कहेजो स्वामि काज थापणुंरे लोल ॥ ७॥ धाता तव बोड्या Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग३ धर्मपरीवहीरे लोल, अगस्त्य सुणो वातो सहीरे लोल ॥ सृष्टि निपाश्में श्रादर करारे लोल, पापी नर कोणे संहरीरे लोल ॥ ॥ जोयुं जगत्र न दी कहीरे लोल, घणो काल ॥ ५॥ नमीयो महीरे लोल ॥ नुवन चौदनी थाशा मूकी खरीरे लोल, उर्जन कोणे कीधो । विणासहीरे लोल ॥ए॥ अगस्त्य ऋषिवोल्या तदारे लोल, सांसलो ब्रह्मा ऋषि मुदारे लोलतलसीमाले वलग्यो एडनो रेलोल, सरसव जेवडो कमंडल तेहनो रेलोल॥१०॥ लकमंगल मुखमां पेसी जोयरे लोल, विश्व आपणो वेगे होयेरे लोल ॥ ब्रह्माने आनंद श्रावीयोरे लोल, पेठो कमंमलमां नावीयोरे लोल ॥ ११॥ कुंमी मधे जोये जे जदारे लोल, वम वृक्ष मोटो दीगे तदारे लोल ॥माले चढी जोये पाननेरे लोल, निझानर दीग तिहां काननेरे लोल ॥१२॥पासे श्रावी जोये जेहवेरे लोल, कोण पुरुष दीसे एहवेरे लोल ॥ किंवा विष्णु घटे गोवालीयोरे लोल, हरि विना नोहे नूपालीयोरे लोल ॥ १३ ॥ वझपाने सुता जगनाथजीरे लोल, उठो स्वामि मलो देहाथजीरे लोल ॥ साद कीधो जव्या गोविंद धसीरे लोल, ब्रह्मा मल्या आनंद हसीरे लोल ॥ १४॥ नारायणे पूब्यो तदारे लोल, तुमे पधार्या केममुदारे लोल ॥ ब्रह्मा मुख तद बोल्या एशुरे लोल, सांजलो विष्णु कहुं जेशुरे लोल ॥ १५॥ सरजी सृष्टि न देखुं कहींरे लोल, घणो काल हुं न MEROLARA ५॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म्यो महीरे लोल ॥ दीग जाणी श्राव्या तुम कनेरे लोल, कहो स्वामि श्राशा श्रम कनेरे लोल ॥ १६ ॥ विष्णु तव बोल्या सहीरे लोल, सांजलो ब्रह्मा ऋषि वहीरे लोल॥ चौद जुवन निपाया तुमेरे लोल, तेहनी रक्षा करवी अमे रे लोल ॥ १७ ॥ रुजे जव | मांड्यो संहारनोरे लोल, प्रलयकाल करे अपारनोरे लोल ॥ उदरमा तव वेगे। करीरे लोल, सृष्टि तमारी में उधरीरे लोल ॥ १७ ॥ वचन सुणी रीज्या तदारे लोल, जलो कीधो तुमे श्रम मुदारे लोल ॥ खामि नुवन देखामो हवेरे लोल, जीव अमारो घणुं लवेरे लोल ॥ १९॥हरि नणे सांनलो झषि तमेरे लोल, मुखमां पेसो ज जजमेरे लोल ॥ सृष्टि जुङ तमारी एडवी रे लोल, नागे मनना सहु संदेहवीरे लोल ॥२॥ खंड त्रीजे ढाल पांचमीरे लोल, श्रोता सहु जनने गमीरे लोल ॥रंगविजयनो शिष्य एम कहेरे लोल,नेम ते जश जगमें लहेरे लोल ॥२१॥ उदा. ब्रह्मा मुखमां पेग जश्, चौद नुवन दीनं त्यांहिं ॥ स्वर्ग मृत्यु नरकावासनो, पर्वत सागर मही माहीं॥१॥सुर नर किन्नर देवता, हय गय पंखी अनेक ॥ उदर माहिं दीगे सहु, जोतां काल गयो बेक ॥२॥अधोछारे नीकलवा, ब्रह्माए विचारी वात ॥ मल Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंम ३ ॥ ६॥ मूत्र अशूचि नंमारनो, पुगंध गंध उतपात॥३॥ इहां नीकलवू नवि घटे, वदने थाये बहु वर्ष ॥ नानिकमल जे विष्णुनी, तेमां काढुं देह तो हर्ष॥४॥पहेलो काज विचाजारीए, तेहने नावे को लाज ॥ विष्णु नाजिने बिजे करी, ब्रह्मा नीकल्या श्राज ॥५॥ डंटी वलग्यो केश अंगनो, धाता न लहे लवलेश ॥ ब्रह्मा तिहां वलगी रह्या, माटु थया वलगे केश ॥६॥ नानिकमल रचना करी, पांखमी अष्ट प्रकार ॥ उपर श्रासन पूरीयुं, नाम कमलासन सार ॥७॥ दिवस तेहज थादे करी, पदम जात तेह नाम॥ नाभिकमले हरि उपन्या, कथा जाणो ब्रह्मानी ताम ॥७॥ माया मुनि हसी बोलीयो, विप्र विचारी जोय ॥ वेद पुराणे कथा कही, साची जूठी होय ॥ए॥ विप्र वचन तव, बोलीया, पुराण प्रसिद्धो एम ॥सर्व शास्त्र मांहीं कडं, खोटुं कहीए केम ॥१०॥ ढाल बही. घमी एक द्योने राणी सुंबरो, सुंबरो दरियोरे न जाय-ए देशी. मनोवेग पवनवेग जणी, सामुंजोश मित्त॥ मित्र वचन मुज सांजलो, एक मनमां धरी चित्त ॥ साजन सहुको सोनलो ॥ ए आंकणी ॥१॥जेम कमंगल सरसव जेटले, मध्ये जग मायंत॥ तो कमंमल मोटा मांहीं, गजश्रमे केम न पेसंत ॥सा० ॥२॥ जेम चौद ॥ ६॥ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुवन नारे करी, तुलसी माल नवि नंग ॥ तेम मयगल मुज नारथी, नीडी माल न मंग ॥ सा ॥ ३ ॥ जेम विष्णु उदर मांहीं लम्यो, ब्रह्मा तिहां बहु काल ॥ अपणो IN जग जोतां थका, एम कहे बाल गोपाल ॥ सा ॥४॥ कमंडल मांहीं बेहु जम्या, साव कहुं गज जेम ॥ करि पुंठे नमे घj, नाठो जाउं तेम ॥ सा॥५॥ जेम नानिकमल बिडे करी, श्राखो नीकल्यो देह ॥ श्रांमवाल वलगी रह्यो, ब्रह्मानो वली तेह ॥ सा ॥६॥ तेम हस्ती नालुए नीकल्यो, पुंबनो वलग्यो केश ॥ बलवतरे बहु बल कर्यो, हाब्यो नहीं लवलेश ॥ सा ॥७॥ वचन सुणी हिज बोलीया, सांजलो साधु नरेश ॥ कर जोडी तुज पाय पड्या, उत्तर नोही लवलेश ॥ सा ॥ ॥ मनोवेग मन नलसी, बोल्यो मधुरी वाण ॥ पवनवेग सहु सांजलो, वचन विरोध पुराण ॥ सा॥ ए॥जो विश्वलोक सघलो गब्यो, विष्णुए उदरज मांहीं ॥ तो कमंगल बाहेर केम रद्यु, कहो केम पेठा त्यांहीं ॥ सा ॥ १० ॥ अगस्त्य तुलसी काडवे, कमंमल तुब मोजार ॥ वड वृक्ष तणे पांदडे, पोढ्या देव मोरार ॥ सा ॥ ११॥ ए सौ जग बाहिर घटे, तिहां करजो विचार ॥ विप्र सह पुराणनां, वचन विरोध अपार ॥सा॥१२॥ जे ब्रह्मा ध्याये थके, मूकाए नव पास ॥ विष्णुनी नानिकमले रह्यो, पाम्यो फुःख निरास Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंक ३ धर्मपरी ॥७ ॥ सा०॥ १३ ॥ जो ज्ञानवंत ब्रह्मा होये, तो कां पूजे अगस्ति ॥ सृष्टि मारी को हरी गयो, कहो ऋषिवर किहां वस्ति ॥ सा ॥ १४ ॥ ब्रह्माए सहु सरजीयुं, तो सरजी नहीं एक र ॥रीबमीने सेवे सदा, कामांध होये गमार ॥सा०॥ २५॥ नारायण जाणे सह, सृष्टि तणो संहार ॥ तो सीताहरण नहीं जाणीयो, पूज्यो सयल संसार ॥ १६ ॥ जकमबंध बांध्या थका, बूटे सघला लोक ॥ रामचं समरथ सदा, नांजे सहुनो शोक ॥ सा ॥ १७ ॥ रावण पुत्र पराक्रमी, इंजित जेहनुं नाम ॥ सकल सैन तेणे बांधीयो, लक्ष्मण ने वली राम ॥ सा० ॥ १७ ॥ शोक सहुने उपन्यो, रवि जगमते एह ॥ सस्प विसख्या औषधी, नावे तो मरे तेह ॥ सा॥ १७ ॥ हणुमंते वेगे करी, श्राणी सल्प विसस्य ॥ राम लक्ष्मण सेना तणां, नांज्या सघलां शल्य ॥ सा ॥ २० ॥ निज बंधन जेणे नहीं टल्यां, नहीं टल्या शोक संताप ॥ परनां ते केम टालशे, विचारो महा पाप ॥ सा ॥ २१॥ खंग त्रीजे ही ढालमां, जाख्या नवनवा नेद ॥ रंगविजय || शिष्य एम कहे, नेमने हर्ष उमेद ॥ सा० ॥ ॥ उदा. ब्राह्मण सहु ना रह्या, नहीं उपजे ते बोल ॥ मनोवेग मन उलस्यो, विप्र हुवा - Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निहोल ॥ १ ॥ वाद जीती वनमां गया, विद्याधर बेदु मित्र ॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग पवित्र ॥ २ ॥ पूर्वापर विरोध घणा, कहेतां लागे लाज ॥ देव तथा गुण सांजलो, जेम सरे तुम काज ॥ ३ ॥ क्षुधा तृषा जय द्वेष नहीं, राग क्रोध मद लोन ॥ मान मोह माया नहीं, जन्म जरा मृत्यु होन ॥ ४ ॥ स्वेद खेद विषाद नहीं, निद्रा चिंता नहीं जेह ॥ अष्टादश दोष वेगला, धाराधो वली तेह ॥ ५ ॥ अतिशय चोत्रीश जेहने, प्रातिहार्य ाम सार ॥ अनंत चतुष्टय मंडीया, ते देव जवजल तार ॥ ६ ॥ ब्रह्मा हरि हर देवता, राग द्वेष जंकार ॥ डूषण भूषण भूषिता, पुत्र कलत्र परिवार ॥ ७ ॥ सुदेव कुदेव परीक्षा करो, धर्माधर्म विचार ॥ साचुं होय ते अंगी करो, हेम प्रकार जेम चार ॥ ८ ॥ ताप ताडन बेद घर्षण, दान दया तप जाप ॥ शस्त्री शास्त्र गुरु कुगुरुनो, परीक्षा धरो निःपाप ॥ ए ॥ ढाल सातमी. राधा रूपे दीसे रुमी, हाथे खलके सोनानी चुमी, मारी सइरे समाणी-ए देशी. कुरु कुदेव कुधर्म तथा जेह, दोष दाखव्या पूरवे घणा एहरे ॥ मारा साजन सुणजो, ग्रंथ वधवाने कारण जेह || पाउल कह्या विचारो तेहरे ॥ मारा साजन० ॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ १७ ॥ ॥ १ ॥ लोक लोकाकाश मोजार, उंचो चौद राज विस्ताररे ॥ मा० ॥ सात राज देवो धो लोक, मेरु कंदथी गणजो थोकरे ॥ मा० ॥ २ ॥ मेरु समो उंचो मध्य लोक, तिहांथी सात राज मोक रोकरे ॥ मा० ॥ अधो सात राज मध्य एक, पूर्वापर करजो विवेकरे ॥ मा० ॥ ३ ॥ ब्रह्म लोक राज बे पांच, एक राज उपर वली खांचरे ॥ मा० ॥ दक्षिण उत्तर सघले तास, वायु ऋण विधो विख्यातरे ॥ मा० ॥ ४ ॥ लोक मध्य उजी तस नाल, चौद राज उंची विशालरे ॥ मा० ॥ त्रस नानि त्रस थावर जरी बे, एक राज विस्तारे करी बेरे ॥ मा० ॥ ५ ॥ बाहेर जरीया थावर पंच, आगम कहीए एवो संचरे ॥ मा० ॥ धनराज जाणो त्रिलोक, त्रणसें तेंताली | थोकरे ॥ मा० ॥ ६ ॥ कटीकर कीधो पुरुषाकार, अथवा मादल दोढ आकाररे ॥ मा० ॥ अर्ध मादल धर्युं धो लोक, श्राखुं मादल उपर कर्यु थोकरे ॥ मा० ॥ ७ ॥ अधो लोक बे नरकावास, ब राज मांहीं सात अवकासरे ॥ मा० ॥ एक राज अधो देगे लोक, थावर पांच जर्यो ते थोकरे ॥ मा० ॥ ८ ॥ लोक त्रणनो घणो विचार, सिद्धांत थकी सुणजो साररे ॥ मा० ॥ कोणे नहीं ए सृष्टि निपाइ, अनादि कालनी एह सदाइरे ॥ मा० ॥ ए ॥ मिथ्याती एम कहे बे केता, जल व्याप्त ब्रह्मांडे वदेतारे ॥ खंग ३ ॥ ५८ ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ढाल, सुणजो सहु बाल गोपालरे ॥ मा० ॥ रंगविजय शिष्य एम जाखे, नेमविजय गुण एम दाखेरे ॥ मा ॥ २६ ॥ उदा. KI मनोवेग कहे सांचलो, पवनवेग गुणवंत ॥ मूढ मिथ्यातनी वारता, आप विगोए एकंत ॥१॥ ढाल आठमी. वणकारानी देशी. मारा नायकरे, विष्णु ब्रह्मा बेह, वाद वदे स्मृष्टि कारणे॥मा०॥ब्रह्मा कहे सृष्टि एह, में स-1 रजी सुख कारणे॥माणा॥मा॥ विष्णु वदे मुज तषी सार, सृष्टि रदा करूं अमे खरी मा० ॥ मा०॥जुग काजे वलगतातेह, शंकर पासे गया मन धरी ॥ मा० ॥२॥ मा॥ कहो ईश्वर महाराज, श्रमे बेहु मांहे सृष्टि केहु तणी ॥ मा० ॥ मा० ॥ शंकर कहे सुणो ब्रह्मा विष्णु, मुज लिंग डे जाए ते धणी ॥माण॥३॥मा॥ ब्रह्मा तुमे जाउँ उर्ध लोक, मुज लिंगनो अंत ज्यां होये ॥ मा० ॥ मा० ॥ विष्णु जाउँ अधो लोक, लिंग Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खम ३ NAMAMMARTINDIANRAINING RAHAKAALAM धर्मपरी ब्रह्मा अखंगरे ॥माण्॥१०॥ ब्रह्मानो काश्यपी ऋषिजात, काश्यपथी काश्यपी ऋषि संघा- ॥ एता तरे ॥ मा० ॥ काश्यप ऋषि पतनी हु तेर, दीतीए जाया दैत्य दाणव ढेररे ॥ मा०॥ ॥ १५ ॥ श्रादितिथी उपन्या अपार, तेत्रीश क्रोम देव सुत साररे ॥ मा०॥ कमुए जाया नवकुली नाग, वनिता सुत गरुम विषनागरे ॥ मा० ॥ २० ॥ सुप्रनाए पुत्री जणी सात, नवसे नवाणुं नदी विख्यातरे ॥ मा ॥ एकीए जणीया छीपज सात, साते सागर जाया एकीए रातरे ॥ मा० ॥१॥ एकीए जाया पर्वत वृंद, सेना ब्राह्मणी जणीया चंदरे ॥ मा० ॥ एकीए सहुए सूरज जाया, तारा ग्रह नक्षत्र बहु मायारे॥ मा० ॥ २२ ॥ हव्यकाए जाया ऋषिवर खाम, अव्याशी सहस्र तणां ने नामरे । मा० ॥ खडनेत्री जणीया चारे खाण, खेद अंग जरा अदबुद जाणरे ॥ मा० ॥ ३ ॥ चार खाणथी चोराशी लाख, जीव योनिनी उत्पत्ति जाखरे ॥ मा० ॥ बेतालीश लाख थलचर जोय, जलचर ननचर बाकी होयरे ॥ मा० ॥ २४ ॥ जीव थकी उपन्या जुग चार, कृत त्रिता छापर कलि साररे ॥ मा॥ एणी परे सृष्टि तणो ने लाग, मिथ्यादृष्टि कह्यो विनागरे ॥ मा० ॥ २५ ॥ खंम त्रीजानी सातमी w wwsawaimms Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ढाल, सुणजो सहु बाल गोपालरे ॥ मा० ॥ रंगविजय शिष्य एम जाखे, नेमविजया गुण एम दाखेरे ॥ मा० ॥ २६ ॥ उहा. मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग गुणवंत ॥ मूढ मिथ्यातनी वारता, श्राप विगोए एकंत ॥१॥ ढाल आठमी. वणकारानी देशी. मारा नायकरे, विष्णु ब्रह्मा बेह, वाद वदे सृष्टि कारणे॥मा०॥ ब्रह्मा कहे सृष्टि एह, में सरजी सुख कारणे ॥मा॥१॥मा विष्णु वदे मुज तषी सार, सृष्टि रक्षा करुं अमे खरी॥ ॥ माजग काजे वलगतातेह, शंकर पासे गया मन धरी॥माण॥३॥ मा॥ कहो ईश्वर महाराज, श्रमे बेहु मांहे सृष्टि केहु तणी ॥ मा० ॥ मा० ॥ शंकर कहे सुणो ब्रह्मा विष्णु, मुज लिंग डे जाए ते धणी ॥मा॥३॥मा॥ ब्रह्मा तुमे जाउँ उर्ध लोक, मुज लिंगनो अंत ज्यां होये ॥ मा॥ मा० ॥ विष्णु जाउँ अधो लोक, लिंग - - Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ८० ॥ बेमो यावे सोइ ॥ मा० ॥ ४ ॥ मा० ॥ ब्रह्माए बथाव्यं लिंग, हस्त धरी उंचो चढे ॥ मा० ॥ मा० ॥ लिंग वलगी चाल्यो कान, वेगे पाताले हरी जडे ॥ मा० ॥ ५ ॥ मा० ॥ जातां थियो घणो काल, लिंग अंत न पावीयो ॥ मा० ॥ मा० ॥ नारायण थाक्यो ताम, पाठो वली दर कने यवीयो ॥ मा० ॥ ६ ॥ मा० ॥ विष्णु कहे सुख ईश, लिंग पार में नवि लह्यो | मा० ॥ मा० ॥ दुःखी हुवो ब्रह्मा वाट, मुख फी को करीने रह्यो | मा० ॥ ७ ॥ मा० ॥ खसी पड्यं केवडी पत्र, लिंग उपरथी तले यदा ॥ मा० ॥ मा० पडतो काल्यो कहे ब्रह्म, कूमी साख देजो केवमी तदा ॥ सा० ॥ ८ ॥ मा० ॥ बेदु श्राव्या ईश्वर पास, ब्रह्मा कहे हुं ठेठे गयो ॥ मा० ॥ मा० ॥ लिंग उपरथी एह, केवमी श्राणी साचो जयो । मा० ॥ ए ॥ मा० ॥ कहे केवडी साची वात, ब्रह्मा श्रव्यो तुज लगे ॥ मा० ॥ मा० ॥ केवमी कहे सुण खाम, ब्रह्मा वचन नवि मगे ॥ मा० ॥ १० ॥ सा० ॥ ज्ञाने जोइ करी ईश, खोटुं जाणी श्रापी केवडी ॥ मा० ॥ मा० ॥ म चमीश माहरे लिंग, कांटा होजो तुज तेवडी ॥मा०॥११॥ मा० ॥ खोटा बोलो ब्रह्मा तुं जांग, सृष्टि न होशे तुज तणी ॥ मा० ॥ मा०॥ सत्यवादी गोविंद, सृष्टि सहुनो ए धणी ॥ मा० १२ ॥ मा० ॥ पवनवेन विचारी जोय, मालती वात एके नहीं || मा० ॥ मा० ॥ परीक्षा करी धरो चित्त, सुधुं समकित मन रु ३ Go Il Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रही॥ मा०॥१३॥ मा०॥ जिनशासननानेद, शास्त्र सिद्धांत विचारीए ॥मा० ॥ माला वीतराग देव बाराध, जैन वाक्य हृदय धारीए॥ मा॥रामा ॥श्री हीरविजय सूरिराय, शुजविजय शिष्य तेहना ॥ मा० ॥मा०॥ नाव विजय शिष्य तास, सिफिविजय शिष्य एहना ॥ मा० ॥ १५ ॥ मा० ॥ रूपविजय सही एह, शिष्य कह्या जाणो सही मा॥ मा॥कृष्ण विजय कति मांहीं, शिष्य नाम धराव्यो मही ॥ मा॥१६॥मा रंगविजय रंग लाय, शिष्य कहीए जगमें जदा ॥मा॥ मा ॥ नेमविजय शिष्य नाम, नित्य उदय होजो तदा ॥ मा ॥१७॥ मा॥ एह संसारमा सार, धर्मपरीदा जाणीए aluमा ॥ मा॥ मिथ्या मत तणो ध्वंस, त्रीजो अधिकार मन आणीए ॥ मा ॥१॥ मा० ॥त्रीजो प्ररोथयो खंम, ढाल श्रावे प्ररण करी॥मा०॥ मा०॥नेमविजय कहे लानित्य, गुरुनु नाम हृदय धरी ॥मा० ॥ १५॥ इति श्रीधर्मपरीक्षायां मिथ्यादेवशास्त्रपुराणगुरुयूषण नामा तृतीयोऽधिकारः - Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंग खंड ४ यो. उदा. जिनशासन समरी करी, प्रणमी वे कर जोम ॥ चोथा अधिकारनी कथा, कहुं बुं गर्वने बोल॥१॥ मनोवेग वलतो नणे, पवनवेग नणी वात ॥ अवर पुराणनी वारता, सांजलजो तुमे जात ॥२॥ निरमल मन तुमे राखजो, जैन धर्म पर रंग ॥ समजावू सहु हिज नणी, विचार देखाडं चंग ॥३॥ अद्नुत रूप करी नवां, जश्ए थापण बेय ॥ V एकांते नवि उलखे, फरी श्रावशू एणे गेह ॥ ४ ॥ तापस रूप धर्यां जलां, पाटलीपुर | मनोहार ॥ उत्तर दिशि पोखे संचर्या, हिजशालाए तेणी वार ॥५॥ ढाल पदेली. गोकुल गामने गोंदरेरे, म करो लुटालुट, मारा वालारे, हुं नहीं जा मटी वेचवारे-ए देशी... नेर वजाडी रुयमीरे, घंटा तणो कीधो नाद ॥मारा साजनरे॥सिंहासन बेग चमीरे, विप्रथाव्या करवा वाद ॥ मा० ॥ कौतिक वात सुणजो सहुरे ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तापस देखी श्रचंनीयारे, जट्ट एक बोल्यो मन रंग ॥ मा० ॥ वाद वदो तुमे अति घणारे, प्रथम वचन करुं नंग ॥ मा० ॥ कौ ॥२॥ घंटा धंधोली श्रम तणीरे,नेर व जावी वली थाप ॥ मा० ॥चांप्यु सिंहासन हेमनुरे, तेहनो देजो एम जबाप ॥मा॥ * कौ ॥३॥ मनोवेग तव बोलीयोरे, सांजलो विप्र विचार ॥मा॥विनोद कारण वाजां वाश्यारे, सिंहासन बेग अमे सार॥माण॥ कौ ॥४॥ बेग तुमने नवि गमेरे, उतरीए नीचा ततकाल ॥मा॥वाद न जाणुं होय केहवोरे, जण्या नहीं निशाल ॥मा॥कौ॥५॥ विप्र वचन तव चरेरे, सांजलो तापस राज ॥ मा॥ किंहा थकी तुमे आवीयारे, कोण उपन्यो बे काज॥माणकौ॥६॥कोण कुले तमे उपन्यारे, कोण तमारी जात मा०॥ वास निवासे किहां रहोरे, उत्तर दे अम ब्रात ॥ माण॥ कौ ॥ ७॥ मनो वेग तव बोलीयोरे, सुणजो विप्र विचार ॥ मा० ॥ साचुं कहेतां सुख नहींरे, जूठे बो-| Kले लहीए मार ॥ मा० ॥ कौ॥ ७॥ तरती शिला वली जेणे कहीरे, जेणे कह्यो मर्कट ना-] च ॥ माण ॥ असंभव वाक्य लवता थकारे, ताडन लडं तेणे घाट॥माण॥ कौ०॥ए॥ भू मूरख मोटा होये घणारे, सना मांहीं नर वली जेह ॥ मा० ॥ विवेक विचार जाणे नहींरे, शुं कहीए आगल तेह ॥माण ॥ कौ० ॥१०॥ हिजवर वाणी बोलीयारे, तापस Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग ४ धर्मपरीकहो तुमे सार ॥ मा ॥ मोटा मूरख ने किसारे, बोलो तेह अधिकार ॥ मा॥ कौ ॥११॥ मनोवेग तव उचरेरे, सुणजो विप्र विचार ॥ मा०॥ मूरख कथा तुमने कहुं रे, श्रुतसागर तुमे पार ॥ मा० ॥ कौ ॥१२॥ सन्ना मांहीं मूरख नरेरे, को होशे हिजवर श्राज ॥ मा० ॥ तो खोटी कथा करे मुज तणीरे, नवि सरे अमारो काज ॥ मा० ॥ कौ ॥ १३ ॥ मूरख होय ते शुं करेरे, सुणजो कथानो समाज ॥ मा ॥ एक चित्ते भौनज धरीरे, हरख उपजे जेम बाज॥मा॥ कौ ॥१५॥चार नर मारग सांचर्यारे, मूरख मोटा वली तेह॥मा॥मुनिवर एक सामो मध्योरे, उत्तम चारित्र गेह ॥मा० ॥la कौ॥ १५ ॥ मौन धारी जोग श्रागलोरे,सुमति गुपतिव्रत धार॥मा॥ नगन मुजा परिसह सहेरे, जव्य जीव जवजल तार ॥ मा०॥ कौ ॥१६॥ एहवो मुनिवर दीठमोरे, तव मूरख चारे चंग॥मा०॥ वांद्यो मुनिवर नाव धरीरे, तव जतिवर बोल्यो रंग ॥ मा ॥ कौ ॥१७॥ धर्मवृद्धि तुमने होजोरे,वचन सुणी चारे ताम ॥मा०॥ मारग चाट्या मलपतारे, जोजन दोढ गया जाम॥माणाको॥१७॥ चोथा खंड तणी कहीरे,प्रथम ढाल रसाल ॥ मा॥रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमविजय उजमाल ॥माण॥ कौ० ॥ १ ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. तव मूरख एक बोलीयो, शाशिष दीधी मुनिराज ॥धर्मवृद्धि मुजने कही, सरशे N अमारो काज ॥१॥ बीजो कहे मुजने कही, त्रीजो बोले तेणी वार ॥ चोथो कहे। मूजने कह्यो, श्राशिष मुनि गुणधार॥२॥मांहोमांहे वलगे घj, पाठा श्राव्या तिणे गम, मुनिवर तिहां दीग नहीं, न्याय कारण अन्य ग्राम ॥३॥ बुद्धिवंत व्यवहारीया, तेहने ज मध्या ताम ॥ न्याय करो शेठ श्रम तणो, महा मूरख अम नाम ॥॥ तव शेठे ते पूर्वीया, के शी मूरखा अंग ॥ चार मध्ये एक बोलीयो,मूरख मूरखाश्चंग॥५॥ ढाल बीजी. टुंक अने टोमा वचेरे, मेंदीनां दोय रूंख, मेंदी रंग लागो-ए देशी. न मारे मंदिर दो नारी अरे, चंगी निरंगी सुखखाण ॥ साजन सांजलो॥एक दिवस सूतो सज्यारे, थयो निखावश आण ॥ सा ॥१॥ तव नामनी यावी बेहुरे, सूती माबे जमणे पास ॥ सा ॥ एकेको हाथ मारो ग्रहीरे, हृदय उपर करी श्रास सा॥२॥ तेणे अवसर मुज मंदिररे, दीपक हतो एक चंग ॥ सा ॥ तव उंदर वलग्यो आवीरे, दीवट ताणी चाल्यो रंग ॥ सा ॥३॥ मुज उपर उंचो रहीरे, माSHEDनाम Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंक AakrantineKEMEDI ॥ ३॥ वामांग नेत्रे पाडी वाट ॥ सा ॥ में मनगुं विचारीयु रे, हस्ते करी टालु उपघात ॥ सा ॥ ४ ॥ जो माबो हाथ चालवुरे, तो रंगी करे मुज रीस ॥ सा ॥ जमणो हाथ जो फेरवुरे, चंगी कलेशे हणे शीश ॥ सा ॥५॥ नारी नेह तुटे रखेरे, नेत्र तणो नहीं काज ॥ सा० ॥ माबो चक्षु तव बल्योरे, नाम दीधो शुक्रराज ॥सा॥६॥नारी/ नेहने कारणेरे, नेत्र तणी करी हाण ॥सा॥ महामूरखपणुं माहरुरे, विचारो तमे बुद्धि जाण ॥सा॥७॥ तव बीजो नर एमजणेरे,मुज मूरखनी सुणो वात ॥सा॥मुजघर नारी |बे सहीरे, खरी रीमी नामे ख्यात ॥ सा ॥ ७॥ जमणो पग खरीने दीयोरे, माबो राउमीने ताम ॥ सा ॥ एणी परे सुख हुँ नोगद्रे, महीला सरसो काम ॥ सा ॥ ॥ ए॥ एक दिवस घरे हुँ गयोरे, खरी श्रावी जल लेय ॥ सा ॥ जमणो पग पखालवारे, रीडमी जोय दृष्टि देय ॥ सा ॥ १० ॥ जव खरी जमणो धो गरे, मावा उपर में धर्यों पाय ॥ सा ॥ तव रीडमी कोपे जरीरे, मुसल श्राणी को घाय॥ सा॥११॥ जमणो पग मुज नांजीयोरे, तव खरी करी घणो रोष ॥सा ॥ तुंमोटी | फुवम रीमीरे, मान मच्छर थति शोष ॥ सा० ॥ १२ ॥ निज पतिने तुं नवि धरेरे, अन्य पुरुषशुं रमे रात ॥ सा ॥ तव रीठमी कहे मुने कहोरे, आपणी गंमो श्रा E BERRIANORIERRMAINTANDOMEONIमामला ॥३॥ ..URGARसमाRRORISM Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ renायाvaanwuratvdeos INमी जात ॥ सा ॥ १३ ॥ चोरे चोवटे तुं रमेरे, अन्य जाणे सहु लोक ॥ सा ॥ नरतार बापमो पाधरोरे, नाक कान बेदे बीजो रोक ॥ सा ॥ १४ ॥ तव खरीने चमी। रीसमीरे, सबलो मुसल कर लीध ॥ सा० ॥ प्रहार मेट्यो पग नपरेरे, चरण माबो खोमो कीध ॥ सा ॥ १५॥ मारो पग तेंत्नांजीयोरे, तारो पग कयों में नंग ॥ साग साट साटुं वदयु आपणुंरे, हवे बेहु शोक्योमां रंग ॥ सा ॥ १६ ॥ पग बेहु कूटी नांजीयारे, नारी में दुहवी न लगार ॥ सा ॥ मोटो मूरख मुज समोरे, को नविली दीसे गमार ॥ सा० ॥ १७ ॥ चोथा खंड तणी कहीरे, ढाल बीजी सुविशाल ॥सा॥ रंगविजय शिष्य नेमनेरे, होजो मंगल माल ॥ सा ॥ १७ ॥ उदा. तव त्रीजो एणी परे जणे, सांजलो बुद्धि निधान ॥ मुज सरीखो मूरख नहीं, श्री गुरु केरी आण ॥१॥ नागर लोक पूढे तदा, कहे मूरख तुज वात ॥ जेम न्याय विचारी कीजीए, विनोद होये विख्यात ॥२॥ ढाल त्रीजी. नाह गयो तो वामीएरे, लाव्यो चंपानो फूल । नानो नाहलोरे--ए देशी. smananewBERasawwa सम Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ ४॥ तव त्रीजो मूरख कहेरे, तुमे सहु सांजलो श्राज ॥ साजन सांजलोरे ॥ मुजखम ४ मूरखपणुं वरणवुरे, जेम सरशे मुज काज ॥ सा ॥१॥ एक दिवस नारी अमेरे, मलीयां एकण सेज ॥ सा ॥ होड पामी मौने रह्यारे, एम बोली बेहु हेज ॥ सा॥ ॥ ॥ जे दारे ते होडे दीएरे, घृत खांम जरी दश पोली ॥ सा ॥ साकर साथे मिश्र करीरे, सुगंध घृतमां ऊवोली ॥ सा ॥३॥ एम परठी मौन रह्योरे, नर नारी बेहु चंग ॥ सा ॥ तेहवे तस्कर आवीयारे, धन हरवा उत्तंग ॥ सा ॥ ४ ॥खात्र देश घरमा गयोरे, वित्त काढ्यु अपार ॥ सा ॥ श्रानरण वस्त्र घणां लीयारे, मोती लीयां दीनार ॥ सा० ॥ ५ ॥ तोही श्रमे नवि बोलीयारे, होम हारवा माट सा|| स्त्री शणगार उतारीनेरे, लेवा लाग्यो तब घाट॥सा॥६॥ नारी कहे कंत सांजलोरे, |चोरे हयु अव्य क्रोम ॥ सा० ॥ हसी करी में ताली दीधीरे, नारी तुं हारी होम ॥ सा० ॥ ७॥ पोली घृत खांडे जरीरे, सुज थापो तुमे थाज ॥ सा ॥ तस्कर वित्त ले गयारे, लोक मांही लागी लाज ॥ सा० ॥6॥ एवी कथा मुज तणारे, महा। मूरख मारो नाम ॥ सा ॥ सकल लोक विचारजोरे, धर्म वृद्धिनो ढुं ठाम ॥ सा॥ ॥ ए ॥ चोथो नर तव बोलीयोरे, खकीय कथा परसंग ॥ सा० ॥ मुज मूरखपएं। - Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । सांजलोरे, जेम होये तुमने रंग ॥ सा॥ १० ॥ एक दिवस सासरे गयोरे, स्त्री श्राणाने काज ॥ सा ॥ तव माता मुज शिखव्युरे, सोनल पुत्र तुं आज ॥ सा ॥ १९॥ सासरे नित्य जमीए नहींरे, उदर नरीने अपार ॥ सा ॥ एक दिवस नूख्या रहोरे, बीजे पण थोमोथाहार ॥ सा ॥ १२ ॥ शिखामण देश्मोकट्योरे, वहु लेवाने काज सा० ॥ सासरे गयो उलट धरीरे, सहुने मल्यो हुइ लाज ॥ सा ॥ १३ ॥ खेम कुशल पूर्वी सालकेरे, जमवा उठो जगनी वोर ॥ सा ॥ अमे कयु तमे सांजलोरे, जमी श्राव्यो हुं घोर ॥ सा ॥ १४ ॥ बीजे दिन लोक श्रावीयारे, जमण तणो नहीं लाग ॥ सा ॥ रात पडी साला बोलीयारे, जमा थारोगो महा जाग ॥ सा ॥ ॥ १५ ॥ साला प्रते हुं बोलीयोरे, निशिनोजन नहीं चंग ॥ सा ॥ लूख नयी मुज अति घणीरे, श्रवाधा उपनी वली अंग ॥ सा ॥ १६ ॥ सासुए मनशुं विचारीयुरे, शाहबुर्ड कीजे अन्न ॥ सा ॥ चोखा नींजव्या वाटलीरे, कुर निपावाने मन्न ॥ सा॥ IN १७ ॥ जव मागशे तव पीरसगुंरे, एवो करी सुविचार ॥ सा॥ कचोर्चुनरी तंकुल मूकीयोरे, ढोलीया देठे आधार ॥ सा ॥ १७ ॥ मुज महिला तव सांचरीरे, आंगणे लघु नित काज ॥ सा ॥ नवकं देखी में चिंतव्युरे, तेह सांजलो धनराज ॥ साम्॥ मनात Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ १५ ॥ कुधाए पीड्यो रही नव शकुंरे, दोय लांघण थर मुज ॥ सा० ॥ तांडुलखम ४ देश में मुख नर्युरे, नहीं जाणे को गुज ॥ सा ॥ २० ॥ तव नारी प्रावी मुज " " तणीरे. मुख दीवं विकराल ॥ सा॥ बोलाव्योहं बोलु नहींरे, जामनी कीयो बुबाल॥ सा० ॥ २१॥ खंग चोथानी ए कहीरे, ढाल त्रीजी गुणखाण ॥ सा ॥ रंगविजय शिष्य एम कहीरे, नेमे उलट थाण ॥ सा ॥ २२ ॥ उहा. मुज स्वामी मुख शुं थयु, धाजो ना बाप ॥ लोक बहु आवी मल्यो, कोलाहल संताप ॥ १॥ वेगे वैद बोलावीया, माह्या सात ने पांच ॥ ते श्राव्या उलट धरी, Kऔषध मेलो करी सांच ॥ २ ॥ रोग परखे लोक अति घणा, कर्णशूल गंमोल ॥ एक कहे पीत कोपोयो, जोग मंमावो मंगोल ॥३॥ उतारणां करो शक्तिनां, कुलदेवीने लोग गोगा गणेश जद पूजतां, टले गलानो रोग ॥॥ वेगे वैद निहालीयो, खाट हेठे नयों वाट ॥ तांफुले जो कंठ समो, मध्ये दीगे घाट ॥५॥ मस्तक धूणी ते बोलीया, न ॥५॥ जीवे जमा आज ॥ तांफुल व्याधि ए उपनी, गलामा रोग असाज ॥६॥ तांडल सरिखा उपन्या, कीटक विषम ने अंग ॥ वित्त वस्त्र घणां श्रापजो, जमाश्ने करुं चंग ॥७॥ MAITHIKSHORENAKETERESOMANTanamamaeWETAIMERMIRHIEasammausmaNAMIRSINHasi URATRA Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शस्त्र काढी गाल बेदीयो, साही रह्या जण चार ॥ बुंबारव करता थका, काढ्या तांडुल तेणी वार ॥ ८ ॥ रुधिराला ते नीकल्या, वैदे लीधां वस्त्र दान ॥ गालस्फोटक मुज नाम दीयो, मूरख मोटो नहीं सान ॥ ए ॥ मूरख चारे कथा कही, सांजली सघले लोक ॥ न्याय नहीं ए तुम तणो, शुं कहीए मे फोक ॥ १० ॥ धर्मवृद्धि मुनीश्वरे कही, महा मूरख तमे चार ॥ वढवाम तजी जार्ज मंदिरे, एकेक अक्षर लेवो तार ॥ ॥ ११ ॥ तव द्विजवर ते बोलीया, सांजलो तापस वात । एवो मूरख श्रममां नहीं, कहो हवे तमारी ख्यात ॥ १२ ॥ ढाल चोथी. एणे सरोवरी यारी पाली, उजी दोय नागरी मोरा लाल —ए देशी. मनोवेग द्विजराज, सुपो तमे सदु मली ॥ मारा लाल ॥ सु० ॥ साकेत्ता नामे नगरी, अबे ते निरमली ॥ मारा लाल ॥ श्र० ॥ विश्वभूति नामे ब्राह्मण, एक तिहां रहे | मारा लाल ॥ ए० ॥ तेहने कन्या वे एक, जोवन वयमां वहे ॥ मारा लाल || जो० ॥ १ ॥ मुज पिता जी ताम, विवाह ते मेलीयो ॥ मा० ॥ वि० ॥ मांडयो विवाद मोच्छव, मनोरंगे जेलीयो ॥ सा० ॥ म० ॥ कीधो हाथ मेलावो, वर कन्या बेदु तणो Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी मा० ॥ व० ॥ तेहवे हाल कलोल, श्रयो नगरीमा घणो॥ माम् ॥ ॥ २॥ खंभ । त्रास पड्यो सहु लोक, नासे रोये घj॥ मारा लाल ॥ ना० ॥ रडे पडे उन्ना थाय न, NI चाले बल को तणुं ॥ मा० ॥ चा ॥ एक एकने पूछे लोक, जाशुं श्रापण किहां ॥ मा० ॥ जा ॥ श्रांनो उपामी नागे, हाथी श्रावे श्हां ॥ मा० ॥हा॥३॥ तेहवे मुज माताने, मेली नागे मुज पिता ॥ मा० ॥ मे ॥ ॥ जीव्यानी बहु आशा, लागी मनमें नीता ॥माला ॥ नासंता लागी बांहीं, संजोगे गर्न धर्यो ॥ मा० ॥ सं॥ उदर रह्यो हुँ त्यांह, मातानी कुखे नर्यो॥ मा० ॥ मा० ॥ ४ ॥ तात गयो मुजमाताने, मेली एकली ॥ मा०॥ मे ॥ नाठी जाये मात, विकट जाणी वली ॥ मा० ॥ वि०॥ कोमल कंपे काय ते, लोक बोले तिहां ॥ मा० ॥ लो० ॥ दीसे नहीं जरतार, ताहरो । गयो किहां ॥ मा० ॥ ताप ॥ ५ ॥ चाल्यो ते परदेश, गयो जे परहरी ॥ माग दिन दिन वाधे गर्न, लोके वात दिल धरी ॥ मा॥ लो० ॥ पूछे लोक अनेक, तारे गर्न केम थयो ॥ मा० ॥ ता० ॥ अमे जाणुं बुं सर्व तुज, धणी नासी गयो ॥ मा०॥ ॥ ६ ॥ ध० ॥६॥ तव नारी कहे जार, पुरुष संग नवि कों॥ मा० ॥ पु० ॥ हाथ मेलावे |संकट, लाग्यो तेणे धर्यो ॥ मा० ॥ ला० ॥ मानी लोके वात, कर्मगति एहनी ॥मा०॥ meaningemasterstudimanaSCRescusamananMANDIasuramananitatianemamamaasana Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क० ॥ पीहर ते रही कुण, करे वात तेहनी ॥ मा० ॥ क० ॥ ७ ॥ नव मास वाडा, पूरण थवा यवीया ॥ सा० ॥ ५० ॥ जमवा कारण तापस, घणा तेमावीया ॥ मा० ॥ घ० ॥ विश्वन्नूतिए घरणी, करी जमामीया ॥ मा० ॥ क० ॥ सनमुख उजो विनति, करे हाथ जोमीया ॥ मा० ॥ क० ॥ ७ ॥ नारी तणो तिहां तात पूबे तापस जणी ॥ मा० ॥ ५० ॥ जवितव्यतानो विचार, कहो बुद्धिना धणी ॥ मा० ॥ क० ॥ कहे तापस तमे सांजलो, वात कहुं नवी ॥ मा० ॥ वा० ॥ तुम देश मांहीं डुकाल, थाशे सही संजवी ॥ मा० ॥ था० ॥ बार वरसांनो काल, सही करी जाणजो ॥ मा० ॥ स० ॥ पेट मांहींथी में सुणी, वाणी परमाणजो || मा० ॥ वा० ॥ हुं हवे रहुं पेट मांहीं, डुकाल एम लागीए ॥ मा० ॥ ० ॥ बोल्या तापस वयण, थाशे एम पालीए ॥ मा० ॥ या० ॥ ॥ १० ॥ सुकाल यया पढी नीकलुं, तो सुखी थाइए || मा० ॥ सु० ॥ जो नीकलुं काल मांहीं, तो मातुं याइए ॥ मा० ॥ तो० ॥ ते तापस तेणी वार चाव्या परदे शमां ॥ मा० ॥ चा० ॥ बार वरस फरी याव्या, नवनवा देशमां ॥ मा० ॥ न० ॥ ११ ॥ | दीधो यादरमान, श्राहार घणो पीयो ॥ मा० ॥ ० ॥ पाम्या दरख | सुकाल नाम थापीयो ॥ मा० ॥ सु० ॥ उदर मांहींथी वात, सुपी में तेहवे ॥ पार, मा० ॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ ८५ ॥ सु० ॥ नीकल्यो हुं गर्न मांहींथी, शीघ्र थ एहवे || मा० ॥ श०ि ॥ १२ ॥ खाउँ खाउं बारोवार, करुं हुं तव जदा || मा० ॥ क० ॥ जमण दीयो मुज मात, कहुं तुमने सुदा ॥ मा० ॥ क० ॥ तापस कड़े तेणी वार, ए पुत्र कुलक्षणो ॥ मा० ॥ ए० ॥ धन धान्यनो संहार, करे कुल क्षणो ॥ मा० ॥ कन् ॥ १३ ॥ जे भूषणे तुटे कान, ते सोने शुं कीजीए ॥ मा० ॥ ते० ॥ कोद्धुं धान जो होय, वाडे नाखी दीजीए ॥ मा० ॥ वा ॥ जा जारे मुज आागलथी, मुख लेइ पापीया ॥ मा० ॥ मु० ॥ नहीं तो फेडीश वाम, सही दुःख व्यापीया ॥ मा० ॥ स० ॥ १४ ॥ मंदिर माहरा मांहीं, दवे तुं मत रहे | मा० ॥ ६० ॥ सांजली मातानां वचण, कुमर तिहांथी वहे ॥ मा० ॥ कु० ॥ चाल्यो जाउं परदेश, तापस टोलामां जल्यो || मा० ॥ ता० ॥ रुषिनो लीधो वेश, अयोध्या यावी मल्यो | मा० ॥ ० ॥ १५ ॥ तिहां परणी मुज माय, दीवी में ते| हवे ॥ मा० ॥ दी० ॥ तापस प्रणमी पाय, पूक्या में एहवे ॥ मा० ॥ पू० ॥ तव तापस कहे एम, सांजल तुं वारता || मा० ॥ सां० ॥ स्मृति पुराण जे शास्त्र, मांहीं श्रमे धारता ॥ मा० ॥ मां० ॥ १६ ॥ श्रत योनि परणी ते, नहीं दोष एहमां ॥ मा० ॥ न० ॥ जे नारीनो नाथ, गयो परदेशमां ॥ मा० ॥ ग० ॥ चार वरष लगे वाट, खंग ४ ॥ ८७ ॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NamaMIRMA ते जुवे वेशमां ॥ मा० ॥ ते० ॥ जो जरतार नाव्यो, करे बीजो लेशमां ॥ मा० ॥ कं० ॥ १७ ॥ १. स्मृत्युक्तं-सनिर्वाचा प्रदत्ता या, यदि पूर्वतरो मृतः ॥ सा चेददतयोनिः स्यात्, पुनः संस्कारमहति ॥१॥ पुत्रवती जे नार, मु धणी तेइनो ॥ मा० ॥ मु० ॥ बेठी रहे आठ वरस, लगे मान एहनो ॥ मा० ॥ लम् ॥ फरी बीजो जरतार, करे नारी वली ॥ मा० ॥ कona तो शास्त्रे कह्यो दोष, नारीने जाये टली ॥ मा० ॥ ना० ॥ १७ ॥ श्लोकः-अष्टौ वर्षाणि सपुत्रा, ब्राह्मणी पतितंपति ॥ - अप्रसूता च चत्वारि, पुरतोन्यः समाचरेत् ॥२॥ परण। वे तुम माय, विचार तेहनो नहीं ॥ मा॥ वि०॥ ते सांजलीने हूं श्राव्यो, ब्रह्मशाला मह ॥ मा० ॥ ॥ कौतिक कारण नेर, घंटानाद में कीयो ॥ मा ॥y घं ॥ चाल्यो तापस साथ, तिहां वेश में लीयो ॥ मा० ॥ ति ॥ १ए॥चोथा खंमनी ढाल, चोथी ए सही ॥ मा० ॥ चो० ॥ रंगविजयना शिष्य, नेमविजये कही ॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ga धर्मपरी ॥ ७ ॥ मा० ॥ ने ॥ सांजलजो कोय, बागल वात वे घणी॥ मा० ॥ श्रा० ॥ वचनमा खंक न करशो व्याघात, राखो रंग सहु मली ॥ मा० ॥ राण ॥२०॥ उहा. तव ब्राह्मण एम बोलीया, असत्य वचन गमार ॥ पुरुष जुज लाग्या थकी, केम रहे गर्न श्राधार ॥१॥ गर्न मांहींथी केम सांजले, तापस कह्यो जे विचार ॥ बार वरस कहो केम रहे, उदरमा गर्न ते सार ॥ ५ ॥ जात मात्र बालक कहो, केम ते वेश धरंत ॥ तुज सरीखो खोटो नहीं, मही मंगल जोयंत ॥३॥ मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो हिजवर वाच ॥ स्मृति पुराणे जे कडं, ते अ॒ वचन असाच ? ॥४॥ तव वाडव कोपी कहे, रे तापस अजाण ॥ वेद पुराणे जे कयु, ते कहो अमने वाण ॥५॥ ढाल बही. मेडते नगारो वाजीयोरे ढोला, पमीरे दवा में ठगेर ढोला, नाजी मत जाजोरे सगताउत ढोला--ए देशी. मनोवेग तव बोलीयोरे, साजन सांजलो ब्राह्मण वात॥साजन तुम जयथी ध्रुजु घणुरे, सा केम कहुं शास्त्र विख्यात ॥ सा ॥१॥ साजन सहु सुणजोरे, श्रागे जे होय || Mainamane RiceKISEDICINEMAIL ॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGAROTAKOSHOPURI-H ॥ सा ॥ ए श्रांकणी ॥ तव छिजवर बोच्या वलीरे, साण सुणजो तापस चंग ॥ सा॥[. शंका नय मेली करीरे, साण पुराण कथा कहो रंग ॥ सा॥२॥ मनोवेग चित्त हरखीयोरे, साप बोल्यो तव मनोहार॥सा॥ वेद पुराण माने नहींरे,साण ते नर जाणो गमार सा॥३॥मनोवेग तापस तणीरे, सावाणी पुराणनी अनंग ॥सा॥अंग उपांग प्रसिद्ध रे, सावेद माने ते चंग ॥सा॥४॥चिकित्सा वली वैद्यनीरे, सा ज्योतिष शास्त्र देश यादि ॥सा०॥सीधी बाझाए सहीरे, साशास्त्र वचन अनादि ॥ सा ॥५॥ उक्तं च-पुराणमानवोधर्म-सांगोवेद चिकित्सितम् ॥ थाासिद्धानि चत्वारि, न तव्यानि हेतुनिः ॥१॥ सर्व वेद रीखीनी कहीरे, सा० वाणी करे अप्रमाण ॥ सा ॥ ते ब्रह्म हत्यारो कह्योरे, सारा जवजव होये अजाण ॥ सा० ॥६॥ उक्तं च-मंतव्यं व्यासवासिष्टं, वचनं वेदसंयुतम् ॥ अप्रमाणं तु यो ब्रूयात्, स नवेकर्मघातकः ॥१॥ | तव ते छिजवर बोलीयारे, सा कहो तापस ए सार ॥ सा ॥कांश्क वचन मात्र-16 श्रीरे, सा० पाप न लागे लगार ॥ सा०॥ ७॥ जेम अगनि उनो घणुंरे, सा कहेतां न Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ ॥ बले अंग सार ॥ सा ॥ तेम शास्त्र तणो दोष कहामतां, सा कहेतां न पाप लगार ॥ सा॥॥तव वचन सुणीने एशुं रे, सा नय तजी बोल्यो झषिदेव ॥ सा ॥ हुँy तो वेद पुराणनारे, साप दोष सुणो कहुँ खेव ॥ सा० ॥ ए ॥ एक नगर मांहीं रहेरे, सा० नारी दोय श्रति सार ॥सा॥ एक नागी वीजी रथीरे, सा जोवनन्नर मनोहार ॥ सा ॥ १० ॥ बाल कुंवारी ते बेहुरे, साग बेहु सूती सेदेज मोकार ॥ सा ॥ते बेहु । नारी संजोगथीरे, सान्जायो सुत सुविचार ॥ सा ॥११॥नाम दीधुं तव तेहनोरे, सा नागीरथी पुत्र चंग ॥ सा॥ ए तो नारत पुराणमारे, सा० वखाण्यो मनने रंग॥सा॥ ॥ १२ ॥ जुर्म नारीना जोगथीरे, सा० जायो पुत्र सुविचार ॥ सा ॥ तो नारी नर संजो-IN गथीरे, साण हुँ जनम्यो तेम सार॥ सा ॥ १३॥ अवर दृष्टांत वली कहुँरे, सा सांजलो हिजवर राज ॥ सा॥ जेम संदेह मन लांजशेरे, सा० सरशे तमारां काज॥सा॥१४॥ गंधारी एक नारीएरे, सा० धृतराष्ट्र करे ए काज ॥ सा॥ एवो निश्चय कीधो तिहारे, सा सांजलो तुमे हिजराज ॥ सा ॥१५॥ तव नारी गंधारी सहीरे, सा रोमांचित हुश् जाम ॥ सा ॥ तव नारी तणे धरमें हुश्रे, सामाथे हुश् ते ताम ॥ सा ॥ १६ ॥ चोथे दिवसे नारीएरे, साग स्नान कर्यु तेणी वार॥ सा० ॥ पली वस्त्र विहुणी हतीरे, सा Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फणस आलिंगन अपार ॥ सा ॥ १७ ॥ तेह काल समे पढीरे, साण मास गयो जव । एक ॥ सा ॥ तेह नाथ परण्यो तिहारे, सान् धृतराष्ट्र धरतो विवेक ॥ सा०॥ १७ ॥ तव पुष्पवती नारी तणीरे, सा० नवि ग मुखनी बांह ॥सा ॥ कंत जय थकी नारी-| एरे, सा नर विष्णुनी धरी बांह ॥ सा ॥ १ए ॥ तेह वृत्तांत गर्ननोरे, सा० नाव कह्यो तेणी वार ॥ सा०॥नर नारायणे करीरे, सा० मनशुं करीय विचार ॥ सा ॥॥ चोथा खंग तणी कहीरे, साल पांचमी ढाल ए सार॥सा॥ रंगविजय तस शिष्यनेरे. सा नेमविजय जयकार ॥ सा ॥१॥ उहा. तव कुटुंब तेमावीया, अंधक विष्णु श्रादि सार ॥ धृतराष्ट्र बेसामीने, कह्यो तेहने सुविचार ॥१॥तव सहुने संतोषीया, दिवस गया तेणी वार ॥ एक दिवस गंधारीए, फणस जायो उदार ॥२॥ ते तो फणस माहींथी, सुत नीकल्या शत एक ॥ ए तो नारते नाखीयुं, तुम तणे शास्त्र विवेक ॥३॥ मुज माता ने तातने, संजोगे हुवो हुँ सार ॥ तो मुज माता पिता तणो, केम कीजे ते विचार ॥॥ तव वाडव बोल्या सढु, तुम तणां कवचनो सत्य ॥ तमे तापस मुना नली, नवि नाखो असत्य ॥५॥पण सांजलो एक वात Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीमें, बोल्यो खोटो जेम ॥ गर्न थकी केम सांनट्यु, खोटुं वयणज एम ॥६॥एह वचन लाखक ४. केम मानीए, सांजलो तापसराय॥ एह कथा अमने कहो, मन धरी बहु पसाय ॥७॥ ॥ ०॥ ढाल सातमी. प्रीतमी न कीजेरे नारी परदेशीयारे--ए देशी. | वचन सुणी तव मनोवेग बोलीयोरे, सांजलो वामव तुमे विचार ॥गर्न मांहींथी साद | ते में सुएयोरे, वाद निवारं ते निरधार ॥ सुणजो साजन जे कडं वातमीरे॥ए आंकणी| d॥१॥ महानारत मांहे वाणी जे कहीरे, ते नवि जाणो सुख अन्नंग ॥ एक मना थ सुणजो सहु तमेरे, संदेह निवारण ए उत्तंग ॥ सु॥२॥ जादव वंशे वसुदेव जाणीएरे, तेनी बेटी अमृत वाण ॥ रूप कला विन्रम विलासनीरे. सुना नाम गुण-IN खाण ॥ सु० ॥३॥ विष्णु तणी ए नगनी जाणजोरे, अर्जुन वर कीधो जरतार ॥ गर्न धर्यो सुन्नमा नारीएरे, पूरा मास हुवा जव त्यार ॥ सु० ॥४॥असमाधि उपनी तव ते बालनेरे, कृष्ण कथा कहो जाइ विचार ॥ चक्रावो वर्णन करीने दाखव्योरे, सुनमा ||पामी निता अपार ॥ सु० ॥ ५॥ प्रत्युत्तर नवि बोले को तिहारे, गर्ने हुंकारो दीधो ताम॥ नारायण तव मन विस्मय पड्योरे, ए को पुरुष मोटो जाम ॥सु॥६॥ गर्न Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुंकारो सुणी जेवेरे, दामोदर चिंतवे तेह ॥ कथा सुणीने हुंकारो दीयोरे, तेम तापस वचन सही एड् ॥ सु० ॥ ७ ॥ द्विजवर कहे सदु साधुं करे, स्मृति पुराणे बोल्युं जेह ॥ वली मने एक विस्मय उपन्योरे, बार वरस रह्यो गर्ने तेह ॥ सु० ॥ ८ ॥ मनोवेग बोल्यो तव फरी वलीरे, कृषि वचन न जाणो गमार ॥ मय नामा तापस बे एक रुयमोरे, वनमें रहे निरधार ॥ सु० ॥ ॥ एक दिन रजनी सूतो ने तिहारे, स्वप्न | दीठो निद्रामां ताम ॥ नारी सरसो जोग मनशुं करेरे, वीर्य खलित दुवो आम ॥ सु० | ॥१०॥ ते वीर्य संदर्यु हाथ मांहीं जदारे, मनशुं की धोरे विचार ॥ रखे मुज वीर्य फोक जाये सहीरे, देखी हसशे नर नार ॥ सु० ॥ ११ ॥ कोपीने वीर्यने लेइ पत्र कमलनुंरे, बीऊं वाली तेणी वार ॥ निरमल नदीना जल मांहीं तदारे, वेहेतुं मेल्युं निराधार ॥ सु० ॥ १२ ॥ देडकीए ते खाधुं पांदकुंरे, गर्भ रह्यो उदर मांहीं ॥ तव तेहने रुतुनो समो हतोरे, डुर्दरीने पेट रधुं त्यांहीं ॥ सु० ॥ १३ ॥ स्त्रीनां लक्षण प्रगट्यां अंगमेंरे, मास दिवस गया अपार ॥ जनम दुवो शुभ लगने करीरे, उंच ग्रह उपन्या बे फार ॥ सु० ॥ १४ ॥ बेटीनुं नाम दीधुं मंदोदरीरे, रूप सोजागी अभिराम ॥ माताने रूप जोवाथी होंश घणीरे, बोलावे लेइ नाम ॥ सु० ॥ १५ ॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग ४ धर्मपरीएहरूप केनुं नवि होयरे, एहने बेगं माणस जोय ॥ कीधो विचार तेणे एम चिंत वीरे, प्रौढ कमलदले मेली सोय ॥ सु ॥ १६ ॥ स्नान करेवा नित्य जाये वहीरे, नदीए थावे मय ऋषि सार ॥ कमल उपर दीठी ते कुमारिकारे, तापस चिंतवे मन मोकार ॥ सु० ॥ १७ ॥ मुज वीर्य थकी उपनी ए बालिकारे, ते कारण मुज वाधे नेह ॥ मादी पुत्री हो संसारमारे, रूप लक्षणे दीसे एह ॥ सु० ॥१॥ नाम थाप्यु |बेटीनुं मंदोदरीरे, लश् श्राव्यो निज स्थानक ताम ॥ जोजन करीने जमाडे बालिकारे, जोवनवंती हो जाम ॥ सु० ॥ १५ ॥ चोथा खंड तणी ही ढालमारे, रंगविजय कवि सार ॥ श्रोता सांजलजो सहु एक मनारे, नेमविजय जयकार॥सु ॥२०॥ उदा. एक दिन ऋतुवंती हुश्, कोपीन तापसनी सार ॥ वीर्य तणी खरडी अने, पेहेरी पुत्रीए तेणी वार ॥१॥ ते कोपीन परवेशथी, गर्भ रह्यो तिहां मांहीं ॥ दिन दिन वाधे अनुक्रमे, कुमरीने मुख बांहीं ॥२॥ तापस जाणे चित्तमें, मुज वीर्य निरधार॥ गर्न धर्यो ए कुमरीए, होशे कोश्क अवतार ॥ ३ ॥ जो अवर झषि को जाणशे, तो उसशे निश दिश ॥ लाज शरम जाशे खरी, श्ये मुख बोलीश जीह ॥४॥ ॥ ॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - का एहवी करी विचारणा, गर्जने राखं गोप ॥ खीबुं मंत्र जंत्रे करी, कोइ नवि जाणे लोप ॥५॥ कमंडल देश हाथमां, जल बांटे जणे मंत्र ॥ जिहां लगे वर पामे नहीं, गर्न रहेजो मांही जंत्र ॥६॥ बेटी बोले वापने, गर्न खील्यो महा पाप ॥ तव मय | तापस बोलीयो, नवितव्यताने प्रताप ॥ ॥ राक्षस कुले लंकापति, विश्ववसु तात कैकै माय ॥ रावण परण्यो मंदोदरी, वार वरसनी अवधे थाय ॥ ७॥ रावणने पहेलो जाणजो, सात सहस गयां वर्ष ॥ रावणने पुत्र ए कह्यो, उपन्यो पाम्या हर्ष ॥ एy सात सहस वर्ष गये हुते, इंजित नाम कुमार ॥ बार वरस हुँ रह्यो गर्नमें, तो | करो विचार ॥ १० ॥ सांजलीने हिज बोलीया, सत्य वचन तुम सार ॥ जात मात्र थका तुमे, वेष लीधो निरधार ॥ ११॥ जे नारीए जनमीयो, फरी परणी ते नार ॥ तुम जनम थया पली, केम परणी बीजी वार ॥ १५ ॥ दोय संदेह एवा श्रबे, तेह |निवारो आज ॥ जेम मत निश्चय अम तणा, सरे सहुनां काज ॥ १३ ॥ ढाल सातमी. _ अमली लाल रंगावो वरनां मोलीयां-ए देशी. मनोवेग कहे जाइ सांजलो, सूत्रकंठ तुमे गे सुजाणरे ॥ ब्रांति लाजे जेम Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ए ॥ सघली मन तणी, तेम बोबुं हुं हवे वाणरे ॥ स्मृति पुराण वेदमां जु॥ए श्रांकणी १॥ मोटो पारासर रिषिमां कह्यो, एक दिवस कीधो विहाररे ॥ गंगा नदी उपकंठे रही तिहां, नाव खेडे कन्या एक साररे ॥स्मृ॥ मगंधा नाम ले तेहनो, कुरूप अनागणी देहरे ॥ गंधाय शरीर जोजन लगे, वीजु नाम धर्यु वली तेहरे ॥ स्मृ॥ ॥३॥ दीठी एकली कन्या पारासरे, नावे बेठगे जो तस रूपरे ॥ जाग्यो मनोनव तव स्तन देखीने, विकल थयुं तव स्वरूपरे ॥ स्मृ ॥ ४ ॥ ऋषि कहे अमशुं कृपा करो, दान देउ कायानी सारीरे ॥ सुणो तपसी तव नणे कामनी, मुज तनु उगंध धारीरे ॥ स्मृ॥५॥ अजुयाले लोक देखे सहु, अघटतुं केम कीजे काजरे ॥ देह कीधो सुगंध हाथ फेरीने, धुंयर केरी लोपी लाजरे ॥ स्मृ॥६॥ नोग विलास करतां अनुक्रमे, जनम हु वेद व्यासरे ॥ मुब कुंबने कमंगल धर्यो हाथमें, वेद पुराण मुख बोले जासरे ॥ स्मृ॥७॥ कोटे जनो कर जपमालिका, मृगचर्म दंड उत्तंगरे ॥ कर जोमी लाग्यो तापस रूपे, मात तात पाय मन रंगरे ॥ स्मृण ॥oman ए५ ॥ थादेश पारासुरनो लही, तप मांड्यो गंगाने तीररे ॥ वेद व्यास मोटो ऋषीश्वर थडे, ध्यान धरे महावंत धीररे ॥ स्मृ० ॥ ए॥ वनमां शिख देश इषि गयो, एकली Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रही बाला जामरे ॥ सांत राजा क्रीडा करवा श्रावीयो, दीठी जोजनगंधा तामरे ॥ स्मृ ॥ १० ॥ सुगंध शरीर देखी रंजीयो, विवाह विधे परणी तेहरे ॥ जेम कन्याए वेद व्यास जाल, तास सरूप शुन्न देहरे ॥ स्मृ॥ १९ ॥ ततकाल जण्यो तापस जेम हुवो, तेम मुजने हिज जाणोरे ॥ जेम परणी जोजनगंधा वली, तेम मुज जननी वखाणोरे ॥ स्मृ० ॥ १५ ॥ वलता विप्र फरी एम उचरे, सुणो तापस तुमे डो सुजाणरे ॥ सत्य वचन तुमे जे थमने कह्यां, ते सहु वेद पुराणरे IN स्मृ०॥ १३॥ वली विप्र सांजलो वारता, मनोवेग कहे अवर विचाररे ॥ अंधक वृष्टि जादव रायनो, हरिवंशी नर सेवे पायरे ॥ स्मृ०॥ १४ ॥ कुंती नामे तेहनी| कुमारिका, रूप सोजागी अनिरामरे ॥ घर बिग्रे किरण सूरज तणां, पेगं कुंता काने तामरे ॥ स्मृ ॥ १५ ॥ गर्न धर्यो तव ते सूरज तणो, काने करण ते बेटो जायोरे॥ 1.पने पांमु राजाने परणावीने, अक्षत जोनि तणे उमायोरे ॥स्मृ॥१६॥ करण तणी माता कन्या कही, तो मुज जननीमांशी खोडरे ॥ जेम करण हुवो तेम हुँ हुवो, वली| सांजलो बे कर जोमरे ॥ स्मृ॥ १७ ॥ चोथा खंम तणी ढाल सातमी, कही विशेष करी विगतारे॥रंगविजयनो शिष्य एम कहे, सांजलजो सहुचित्त लारे॥स्मृ॥॥१॥ wasnRIDAMINAIDUNIA Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी उदा. खंग४ उदायिन तापस अडे, तप जप करे उदार ॥ क्वेश करावे क्रोधथी, तेणे बीहे नर नार॥॥एक दिवस सतो थको, स्वप्नमांनोगवे काम ॥ वीर्य खलित हवो तदा. मनशुं विचारे ताम ॥२॥ वीर्य मूकवाने कारणे, गंगा गयो ततखेव ॥ कमलमां वीर्य मूकीने, स्नान कर्यु तेणे हेव ॥३॥ रघुराजानी पुत्रिका, चंमती नाम विवेक ॥ गंगा नदीए जीलवा, श्रावी एकाएक ॥४॥ पुष्पवती ते बालिका, कमलशुं कीधी याल ॥ पदम लइ नाके धर्यु, गर्न रह्यो तेणे काल ॥५॥ ढाल आठमी. वाघाना नावनीरे--ए देशी. सगर्ला बेटी दीठी मात, सांजल बेटीना तातहे ॥ ससनेही सुंदर ॥ अनाचार पुत्रीए कीधो, गर्न पारको लीधोहे ॥सा साजन सहुको सांजलो॥ एषांकणी ॥१॥ रघुराजाए लाज धरी मनमां, बेटी मूकी वन माहे ॥स ॥ वाघ सिंहना शब्द घणा थाये, उःखे करीने नरायेहे ॥सणासा॥॥ते वन मांहे तापस वास, वांई तापसमोटोथासहे॥सा बहु करे जतन तापस तेहनो, नारीने मन एहनोहे ॥सासा ॥३॥नागकुमर तेणीए || Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जएयो सार, रूपे जाणे नागकुमारहे ॥ सातव चंमती एम कहे माय, पुत्र तुंतात जोवाने जायदे ॥ स० ॥ सा ॥४॥मजूस मांहे सुत घाख्यो जाम, गंगा प्रवाहे मेव्यो तामहे॥ स ॥ प्रवाह मांहे मजूस ते चाली, उदायिने दीठी कालीहे ॥ स०॥ सा० ॥ ५॥ श्राणी गम उघामी जाम, पिताए पुत्र दीगे अजिरामहे ॥ स ॥ सुत देखी। उपन्यो वह नेह, चंजमती श्रावी तव गेहहे ॥सासा॥६॥ कुंवरी कन्या कहे बेसार, उदायिन तुं मुज जरतारहे ॥ स० ॥ विवाह करी तुमे परणो श्राज, जेम सरे बेहुनां काजदे ॥ स० ॥ सा ॥॥ उदायिन तव बोल्यो जति, ए वात श्रमने नहीं घटतीहे ॥ स ॥ तुज पिता परणावे सोय, तेह तारो जरतारज होय ॥ स० ॥ सा० ॥ ॥ तापसे जइ माग्यो रघु राय, बेटी अमने करो पसायहे॥स० ॥ नहींतो श्रापीने जस्मज करुं, के तुज माझं के हुं मरुंहे ॥ स ॥ सा ॥ ए ॥ राजा कहे बेटीने वरो, उदायिन तमे कोप परिहरोहे॥स॥ तापस तव जमाश् कर्यो, चंमतीने वेगे वयोंहे ॥ स०॥सा |॥ १० ॥ वेद पुराणे बोल्यो एम, चंमती परणी ते केमहे॥ स० ॥ पुत्र जणे कन्या जे होय, पड़ी विवाह करो ते जोयहे ॥ स ॥ सा ॥ ११ ॥ जेम चंमती कन्या कही सार, तेम मुज मातानो कशो विचारहे ॥ स०॥ सूत्रकंठ कहे साची वात, तुमे का Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीते जग विख्यातहे ॥ स ॥ सा ॥१२॥मनोवेग बोल्यो गुणजाज, पवनवेग संबोधन || खंग४ Wwwdकाजहे॥ स॥ वेद पुराण कथा कही सारी, तुम पागल कही विस्तारीहे ॥ स ॥ सा ॥ १३ ॥ पुत्र जणी कन्या विवाह, स्त्री संजोगे उपजे गर्न उदारहे ॥ स ॥ फणस थालिंगन नारी सार, शत बेटानो हुवो अवतारहे ॥ स ॥ सा ॥ १४ ॥ सुनसानो गर्न सांजली शब्द, नारायण हुंकारो लब्धहे ॥ स ॥ देमकीए जणी मंदोदरी नार, गर्न रह्या पितानो सारहे ॥ स॥ सा ॥ १५॥ सात सहस्र थयां बे वर्ष, पुत्र इंड-IN जित रावण हर्ष ॥ स ॥ पारासुर जोगवतां नार, वेद व्यास सुत उपन्यो सारहे ॥ स० ॥ सा ॥ १६ ॥ काने कर्ण जएयो दातार, कमल सुगंधना गर्न अपारहे ॥ स॥ पूर्वापर ने विरोध अपार, तुम पुराण साचां न लगारहे ॥ स ॥ सा ॥ १७ ॥ बोलतां बहु लागे खेद, तुम पुराण नहीं साचां वेदहे ॥ स० ॥ सुधर्म थाराधो जो वली तमे, NIजिन जाष्यु ते कहीए अमेहे॥ स ॥ सा० ॥२०॥ चोथा खमनी आठमी ढाल, कहे। ॥ ए ॥ बागल वात रसालहे ॥ स० ॥ रंगविजयनो शिष्य एम जंपे, नेमविजय एम पयं ॥ स० ॥ सा० ॥१॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे आज ॥ स्मृति वेद पुराणनां, वयण विपरीत अकाज ॥१॥ उपवन थापण जश् करी, कहेशुं तुमने सार ॥ जिनशासन मत दाखवू, सुणजो सार विचार ॥२॥पूर्व वनमां तव गया, रह्या अपूरव उगम ॥ कर्ण कथा पांमव तणी, मनोवेग कहे ताम ॥३॥ ढाल नवमी. धण समरथ पीयु नानडो-ए देशी. मित्र वचन मुज सांजलो, होजी पवनवेग गुणधार ॥ कुरुजांगल देशज जलो, | होजी हस्तीनागपुर सार ॥ साजन सुणजो एक मना ॥ ए आंकणी ॥१॥ कुरु | वंशी राजा हुवो, होजी सोमप्रन श्रेयांस ॥ तेह परंपरा उपन्या, होजी नृपति || घणा श्रवतंस ॥ सा ॥२॥सांतनु सुत सोहामणो, होजी व्यास नाम गुणवंत ॥ |रूपणी नामा जामनी, होजी पुत्र त्रण हुवा संत ॥ सा० ॥ ३ ॥ धृतराष्ट्र पहेलो निलो, होजी पांमु बीजो जेह ॥ त्रीजो विर मनोहरु, होजी करे राज्य सहु तेह ॥ सा ॥४॥ पांमु कुंवर चिंता जर्यो, होजी गयो वन अनिराम ॥ कुसुम Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरीसज्या दीठी नली, होजी मुडिका पडी तेणे गम ॥ सा० ॥५॥ थपूरव देखी मन उलस्यो, होजी कर कीधी तेणी वार ॥ विद्याधर तव श्रावीयो, होजी चित्रांगद ॥ए ॥ कुमार ॥ सा० ॥ ६॥ फुलशयन जो घj, होजी गम गम अनेक ॥ पांमु दीगो रलियामणो, होजी पूढे करीय विवेक ॥ सा ॥ ॥ मुज कर मुखिका रुयडी, होजी नापमी एहीज गम ॥ कामरूपी कर मुखमी, होजी जोडं बुं श्रनिराम ॥ सा ॥७॥ हाथ लेश श्रागल धरी, होजी पांमु नृप कहे तेह ॥ मुखिका ली खग तुम तणी, होजी चित्रांगद हुवो नेह ॥ सा ॥ ए॥ कृश शरीर दीसे तुम तणुं, होजी मित्र नाकहोने विचार ॥ पांमुजणे वक्षन सुणो, होजी विद्याधर तुमे सार ॥ सा ॥ १० ॥ सुरीपुर राजा रुयमो, होजी अंधकवृष्टि नाम ॥ तस पुत्री रूपे नली, होजी कुंती डे गुणग्राम ॥ सा ॥ ११॥ विवाह पहेलो गुज मेलीयो, होजी पढे जाण्यो रोग ॥ अंधकवृष्टिए अनादों, होजी नोग कीधो विजोग ॥ सा ॥१५॥ विरहानल व्याप्पो घणो, होजी चिंतातुर अतीव ॥ मित्र माटे में तुज कह्यो, होजी संदेह पड्यो जीव॥ सा० ॥ १३ ॥ चित्रांगद खग बोलीयो, होजी सांजली नाश् वात ॥ कामरूपी मुज मुखमी, होजी रूप करेरे विख्यात ॥ सा ॥ १४ ॥ श्रदृष्टि करण होये करी, होजी ए ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाजो वली तुमे सार ॥ रूपवंत थइ विलसजो, होजी कुंतीशुं घरबार ॥ सा० ॥ ॥ १५ ॥ नवमी ढाल चोथा खंमनी, होजी सांजलो बाल गोपाल ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, होजी नेमने मंगल माल ॥ सा० ॥ १६ ॥ उदा. मुडमी लीधी रुयडी, चाल्यो सुरीपुर वास ॥ अदृश्य रूप लेइ करी, गयो कुंती | श्रावास ॥ १ ॥ काम कुतूहल करी रमे, कुंतीशुं करे वात ॥ रात्रि दिवस एम जोगवे, गया वासर सात ॥ २ ॥ पांशु कुमर निज घर गयो, गर्ज धर्यो कुंती कुमार ॥ सुनडा जननीए जाणीयो, प्रगट गर्ज आकार ॥ ३ ॥ गुप्तपणे घरमां रही, पुत्र जयो विख्यात ॥ कुटुंब बेसी विचारीयुं, वाधशे अपक्षपात ॥ ४ ॥ मंजूस मांहीं घाली करी, मूक्यो जमुना मांहीं ॥ चंपापुरी गइ पाधरी, आदित्य राजा बे त्यांहीं ॥ ५ ॥ ढा दशमी. काली पीली वादली राज, वरसण लाग्यो मेद, साहीबोरे, मारो कवहीक घर वे हो रंग लाय—ए देशी. निज मंदिर श्री करी राज, मजूस उधामी जाम || बालक दीठो रुयको राज, Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ए६ ॥ संतोष थयो वली ताम ॥ मारा साजनरे ॥ सुएजो एक मना थइ, वात चित्त लाय ॥ एक ॥ १ ॥ उत्तम लक्षण एह तणां राज, कर दोय कीधा कान ॥ गात्र पवित्र देखी करीरे राज, करण धर्यु श्रनिधान ॥ मा० ॥ २ ॥ पुत्रीयो राजा रवि राज, रतनादे राणी तास ॥ तेने दस्ते समरपीयो राज, हुवो ते सुख निवास ॥ मा० ॥ ३ ॥ पांडु पुत्र पावन जलोरे राज, करण ते महा राय ॥ काने सुत ते केम जयो राज, धातु रहित रवि राय ॥ मा० ॥ ४ ॥ अंधकवृष्टिए तेमी करी राज, पांडु कीधो विवाह ॥ कुंती मुंडी परणावीया राज, कीधो अति उच्छाह ॥ मा० ॥ ५ ॥ अंधकवृष्टि जाइ जलो राज, नरपति विष्टि नाम ॥ गंधारी पुत्री रुयमी राज, धृतराष्ट्र परणी ताम ॥ मा० ॥ ६ ॥ पांगु कुंतीए पुत्र जया राज, युधिष्टर जीम ने पार्थ ॥ मुंडीए बे जनमीया राज, नकुल सहदेव सार्थ ॥ मा० ॥ ७ ॥ धृतराष्ट्र राजा थकी राज, गंधारी अभिराम ॥ शत पुत्र कुखे उपन्या राज, दुर्योधनादिक नाम ॥ मा० ॥ ॥ ८ ॥ पांव करण उत्पत्ति कढ़ी राज, कौरवनी वात एह ॥ जरासंध चक्री जलो राज, उत्तम नर बे तेह || मा० ॥ ए ॥ घट मान तुमे परिहरो राज, रवि सुत नोहे करण || युधिष्टर नोदे जम तणो राज, उत्तम नर ए वरण ॥ मा० ॥ १० ॥ खंग ४ ॥ ए६ ॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायु पुत्र नोहे जीमडो राज, नोहे शक्रनो अर्जुन ॥ श्रश्वनीकुमारथी नहीं उपन्या राज, सहदेव नकुल बे धन ॥ मा० ॥ ११ ॥ अर्जुन नारी रुयमी राज, सती | डुपदी जे सार ॥ मिथ्या वचन नवि मानीए राज, जे खोटां वे सार ॥ मा० ॥ १२॥ मय विद्याधर महीपति राज, मदनसुंदरी नार ॥ तस बेटी मंदोदरी राज, सती शिरोमणि सार ॥ मा० ॥ १३ ॥ रावण रंगे परणी राज, मंदोदरी शुभ नार ॥ इंद्रजित सुत उपन्यो राज, मोक्षगामी जवतार ॥ मा० ॥ १४ ॥ दशमी ढाल चोथा खंगनी | राज, सांजलजो नर नार ॥ रंग विजय शिष्य एम कहे राज, नेमने जयजयकार ॥ मा० ॥ १८५ ॥ डुदा. मिथ्या वचन न मानीए, पवनवेग खगेश ॥ व्यासे महाभारत रच्यो, सत्य | तो नहीं लेश ॥ १ ॥ ढाल गीयारमी. नदी जमुनाके तीर मे दोय पंखीया – ए देशी. सांजलो जाइ वात जे वेद पुराणनी, व्यासे रच्यो ग्रंथ लाख ॥ सचाइ चुरणनी से न विचार्य, एम मूरख सहु लोकमां ॥ महाभारतनी वात करशे सदु फोकमां ॥ १ ॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीचि ॥ए ॥ किंवा सत्य करशे एह किंवा नहीं करे, ए वातनो संदेह ते मनमा अति धरे।पुस्तका खंक४ खेश्ने चाल्यो व्यास जात्रा जणी, गंगा श्राव्यो शुज गात्र करवा ढुंश घणी ॥२॥ ताम्र तणुं एक नाजन नबुं बे माहरूं, रखे तस्कर खेर जाय श्हांथी परुं ॥ वेबुनो कीधो पुंज गंगा तटमां जश, ते मांही घाल्यो जाजन शंका मननी ग॥३॥ गंगा| नदी मांही व्यास पेठगे श्रावी वही, हरि हरि करी मुख जंपे उबाले जल रही। जात्रा करण बह लोक मली सहावीया, व्यासे कीधो वेलु थोक देखी मन नावीयाl ॥४॥ को कहे एवं लिंग होये ईश्वर तणुं, हुं पण थापुं एहदुं करीने अतिपणुं ॥ जे श्राव्या हता लोक तेणे पुंज थापीया, वेलु तणा हुवा गंज अन्योअन्य व्यापीया। ॥५॥ स्नान तर्पण करी व्यास नीकल्यो उतावलो, ताम्र जाजनना पुंज देखी थयो नांनलो॥पोता तणो कीधो पुंज ते नवि उलख्यो, सरखा सरखं रूप देखी मनमां धख्यो ॥ ६ ॥ जो नांगँ सवि पुंज तो अपजश सहु करे, ईश्वर देवना लिंग तणो रूप केम | फिरे ॥ ताम्र तणुं मुज नाजन जाउं तो जा परुं, अपजश बोले लोक तेहथी हुँ मरूं एyn ॥ ७॥ तेम मादरी कथा फोक ते केम होये वली,जेम एक ढगली देखी कर्या सहुए मली ॥ एक करे तेम सर्व करे. लोक एणी परे, परमारथनी बुद्ध को मन नहीं । Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घरे ॥ ॥ मूरख लोक मल्या २ ए सहु खारथी, ताम्र नाजन खोयुं ताम एणी परे हारश्री ॥ महानारतनी वात विस्तारे थायशे, साचं खोटुं परीक्षा करीने जायशे॥ए॥ __ श्लोक-गतानुगतिको लोको, न लोकः परमार्थिकः ॥ पश्य लोकस्य मूर्खत्वं, हारितं ताम्रजाजनम् ॥१॥ पवनवेग सुणो मित्र विचार जे एटला, मिथ्या वचन विचार कहं लक केटला ॥ जिनशासननो धर्म साकर सम जाणीए, खाइए जे वारे तेह मीठो परमाणीए ॥१॥ थाठ करमना वारक देवता ते खरा, तरण तारण गुरु नाम कहीए जे नरा ॥ केवली नाषित धर्म कहीए ते खरो, अवर मिथ्या जर्म तेहने कां वरो ॥ ११॥ सूत्र सिद्धांत ने शास्त्र जाख्यां जे जिन तणां, तेहमां विनय विवेक गहन अर्थ घणा ॥ जिनवाणीनी वात साची करी मानीए, तो सरशे तुम काज शिवसुखने जाणीए ॥ ॥ १५ ॥ सांजली पवनवेग कहे पावन थया, हिज सघला मली ताम कदे संदेह गया। जगमां जोतां जेने धरमनो आधार , नूला जे नवि लोक तेहने ए पार ॥ १३ ॥ हे ना तुम वात हश्ये मारे वसी, पाम्यो शुद्ध श्राचार फिकर नहीं कसी ॥ मनोवेग तुमे नाश् साचा बो सही, एटला दिवस गम मुजने रही नहीं ॥ १४ ॥ ब्राह्मण Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी बोले तव वाणी मनोवेग सांजलो, धर्म परीक्षा कीष नथी कांच आंमलो ॥ पूरणा चोथो खंग ढाल श्रग्यारमी, श्रोता सुधड होये तो दिल तेहने रमी ॥ १५ ॥ हीरविजय सूरिराय तपगठनो धणी, थकबर शाह प्रतिबोधित अमार पमावी घणी॥शुजविजय तस शिष्य नावविजय कवि, सिफिविजय तस शिष्य वात हु तेवी ॥ १६ ॥ रूपविजय रंग लाय कृष्णविजय कडं, रंगविजयने नित्य हुँ प्रणिपति वहुँ । नेमविजय कहे एम ढाल अग्यारमी, पूरण चोथो खंग कर्यो ते सहुने गमी ॥१७॥ इति धर्मपरीक्षारासे मिथ्यातपुराणभूषणे मिथ्यामतध्वंसनो नामा चतुर्थोऽधिकारः ए ॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंम ५ मो. उदा. पवनवेग जाइ सांजलो, मनोवेग कहे सार ॥ अवर पुराण वली दाखवू, जेम | लदो विवेक विचार ॥१॥शुको जिन धर्म कीजीए, नहीं विरुद्ध लगार ॥ मिथ्या | मारग परिहरो, जेम तरो संसार ॥२॥ बोध रूप बेहु जणे धयां, पहेयां रक्त सुवस्त्र ॥ शिर मुंमा जोली बांही , कर दंग धरीने शस्त्र ॥३॥ पाटलीपुर प्रवेश करी, वादशालाए गया चंग ॥नेर घंटारव तव कीयो, बेठा सिंहासन रंग ॥४॥ नाद सुणी विप्र आवीया, देखी बोल्या ताम ॥ खट् दर्शन विवाद करो, ऊंचा बेग श्रम गम | ॥५॥ मनोवेग कहे सांजलो, विप्र तमो को सुजाण ॥ वाद शास्त्र जाणुं नहीं, अमे| खरे ढुं अजाण ॥६॥ विप्र कहे मूरख सुणो, केम को घंटानाद ॥ केम सिंहासन | चांपीयुं, जो नहीं जण्या विवाद ॥ ७॥ कुण गाम गमथी श्रावीया, कुण दीक्षा धरी अंग ॥ कपट तजी साचं कहो, नहींतो लहेशो नंग ॥ ॥ बोध रूपे मनोवेग वदे, सुणो नट्ट नाश् सार ॥ साचुं कहेतां अमे एकला, कुटाइए निराधार ॥ ए॥ तुम Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ एए ॥ सजा मांही को नरवर, विघन संतोषी होय ॥ तो तुम श्रगल केम कहुं, श्रम ती वातो सोय ॥ १० ॥ तव ते द्विजवर बोलीया, विधन संतोषी नर केद ॥ प्रथम कथा कहो ते तणी, जय नहीं धरशो देह ॥ ११ ॥ ढाल पढेली. नगर रतनपुर जाणीए, ते सुरनिधि समो वखाणीए, आणीए अवर उपम कहो कोण ती ए-- ए देशी. मनोवेग कहे ब्राह्मण सुणो, आहीर देश रायपुर ते गणो, नरपति राजा राज्य पाले जलो ए ॥ राजाए सेवक थापीयो, लुब्धदत्त नामे ते पापीयो, दया दान रहित दुष्ट ते प्राणीयो ए ॥ १ ॥ परधन देखी द्वेषज धरे, कुरु कपट मनमां धरे, दंगावे राय कने उपाय करी ए ॥ खोटां थाल चडावे बहु, लोक संताप्या तेणे सदु, धण कण त्रस्त्र विभूषित टालीयां ए ॥ २ ॥ नगर लोक घणुं दुःख वदे, गाम कुटन तेनुं नाम कहे, लुब्धदत्तने पर पीड्या विना संतोष नहीं ए ॥ तिहां कणबी एक वसे जलो, तुंगनड नाम धण कण नीलो, दान पुण्ये लोक मांही महिमा अति घणो ए ॥ ३ ॥ तुंगन उपर कोप करे, दंगावना लुब्धदत्त पुंठे फरे, कणबीए धन बहोलुं खंग ५ ॥ एए ॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेहने दीयु ए ॥ जव मन जाणे तेह तणुं, तव लांच श्रापे ते धन घj, एणी परे बुद्धि बले काम निगमे ए॥४॥ लुब्धनी देहे उपन्यो, पाप प्रनावे रोग उपन्यो, औषध अनेक कर्यां तोही नवि टले ए ॥ नूमि घाल्यो बुब्धदत्त जेहवे, श्रायुकर्म तुम हतुं तेहवे, आरतध्यान पाम्यो ते तरफडे ए ॥ ५॥ पुत्र कहे पिताजी सांजलो, चिंतातुर कांश टलवलो, दान पुण्य जे कहो ते कीजीए ए ॥ वृक्ष पापी ते कहे ताम, धर्म दान नहीं मुज काम, पुत्र तमे सांजलजो जे हुँ कहुं ए ॥६॥ नेम नांग्यो एक मुज तणो, कार्य करो तुमे अति घणो, तो वली प्राण जाये सुख माहरो ए ॥ सकल लोक | दमावीया, तुंगन दंग नहीं फावीया, लांच श्रापीने एणे हुं वारीयो ए॥७॥ लाजे काज एहनो सिको, राजदंग शिरमें नवि कीधो, गो महिषी धण कण एहने के बहु। ए॥ माहरी बुद्धि इश्डे धरो, बकनी वात रखे कंशए करो, रोठ तो श्राण देखें बु मुज तणी ए॥ ॥ प्राण गया पली मुज वली, वस्त्र श्रृंगार पहेरावो वली, पाबली रात्रि मुज देश उन्नो राखजो ए ॥ तुंगना क्षेत्र सेढे रही, मुज हस्ते काढी ग्रही, || गाय नेंस घाली तुमे उलवी रहो ए ॥ ए ॥ कणवी आवी मुज लमयमशे, जीव रदित अंग नूमि पमशे, बूम पामी तुमे लोक बहु मेलजो ए ॥ मुज तातनो कीधो Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म प० ॥ १०० ॥ घात, हत्यारो ए लोक सुणो वात, पोकारी राजा कने दंगावजो ए ॥ १० ॥ मुज इस्ते तुमे बोल दे, शिख सघली पाली लेर्ड, तव पुत्र बोल दीधो पिता करे ए ॥ प्राण गया लुब्धदत्तना, नरक द्वारे पहोंच्या तर्तना, शिख सहु करी पुत्रे तुंगनऊ दंडावीयो ए ॥ ११ ॥ पर विघन संतोषीयो, नर होये जो एहवो राशी यो, तो केम विप्र सजामां बोलीए ए ॥ वाडव कड़े तुमे सांजलो, श्रममां एहवो मा बोलो, साचां ते वचन बोलो तुमे आपणां ए ॥ १२ ॥ पांचमा खंड तणी कही, ढाल पहेली ए सही, श्रोता सांजलजो तुमे सहु मली ए ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय ते सहदे, निरवड़े साचो नर संसारमां ए ॥ १३ ॥ उदा. खगपति कड़े द्विजवर सुणो, पूरव दिशि सुखखाण || विक्रमपुर सोहामणं, चतुर नर नारी वखा ॥ १ ॥ तात मात मुंज तिहां वसे, बोध जति करे तेह ॥ बोध पासे ाम मूकीया, सेवा विद्यानो बेद ॥ २ ॥ जणुं गणुं शास्त्रज घणां, गुरुनां करूं बहु काम | एक वार गुरु लुगकां, नदीए धोइ सुकाव्यां ताम ॥ ३॥ खंग ५ 1| 200 || Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल बीजी. मारी अरज सुणजो हो, गढरा नायक, विनति श्रवधारी गुजर पधारजोजी - ए देशी. पाणी बाहिर जली भूमि हो, गुण नायक, सुकवीए रतांवर छामे बेदु जणाजी ॥ शियाल बे श्राव्यां ताम हो, गु० जय उपन्या अमने अति घणाजी ॥ १ ॥ रातां युगमां लेइ दोय हो, गु० जाइ श्रमे दोय नाग उतावला ॥ पुंठे धायां ते शियाल हो, गु० तव गिरि उपर चड्या श्रमे बलाजी ॥ २ ॥ बूम पाडी श्रमे बेहु जाय हो, गु० धार्ज लोक श्रम रक्षा करोजी ॥ मुंगर उचेली ताम हो, गु० म बेदु सहित श्राकाशे धरोजी ॥ ३ ॥ बेइ गया शियाल हो, गु० जोजन बार विक्रमपुर थकीजी ॥ मूकी वन मोकार हो, गु० जक्षण लाग्यां शियाल बे बकीजी ॥ ४ ॥ बेदु जंबुक मली जाम हो, गु० श्रमने खाशे कुधा वश पड्याजी ॥ पारधी आव्या ताम हो, गु० श्वान सहित पापे नड्याजी ॥ ५ ॥ श्वान जयथी तेद हो, गु० नागं बेदु ते शियालीयांजी ॥ डुंगरथी उतर्यां बेह हो, गु० पारधी पुंठे चालीयाजी ॥ ६ ॥ जयजीत थया श्रमे बेह हो, गु० भूमि जोइ तव यति घणीजी ॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीसंबल रहित अपार हो, गु० वार नहीं वली केह तणीजी ॥ ॥ वली विचायु एम हो, गुण बोध धर्म डे अम तणोजी ॥ वेश्ए दीक्षा बेह हो, गुण रक्त ॥१०१॥ वस्त्र में गुरु गुणाजी ॥७॥ बेहु नाश् चिंतवी एम हो, गुण मस्तक मुंगाव्यां बेहु । जणाजी ॥ रातां वस्त्र पहेरेय हो, गुण बौध धर्म मुखे लण्योजी ॥ ए॥ काठी कर धरेव हो, गुण घर घर निदा बेहु नमुंजी ॥ पात्र पडे ते खेय हो, गु० सात सात घमी मांहे जमुंजी ॥१॥ नमतां देश विदेश हो, गु० तुम नगरे थावीयाजी॥ तव बोख्या हिजराज हो, गु० असत्य वचन तुमे लावीयाजी ॥११॥ जे सहु खोटुं संसार हो, गुण तोली करी तुने घड्याजी ॥ तव बोल्यो मनोवेग हो, गुण |ए सहु तुम पुराणे जड्याजी ॥ १२ ॥ सांजलजो हिजराज हो, गुण देखाडं जेजे जिहां कझुंजी ॥ रामायण पुराण हो, गुण वाल्मिके नाख्युं ते लडुंजी ॥ १३ ॥ एक वार श्रीराम हो, गु० सीताशुं वनवासे गयाजी ॥ खरदूषण मारी जाम हो, गु० लक्ष्मण सहु वन मांही रह्याजी ॥ १४ ॥ सुर्पनखा ग ताम हो, गु० ॥११॥ रावण राजा उपार्जजी ॥ सीता देवाने काज हो, गु० धसमस्यो रावण धाश्योजी ॥ १५ ॥ सीता लेश गयो तेह हो, गु० मोहथी राम फुःखीयो दुवोजी ॥ एहवे Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वानर राज हो, गुण सुग्रीवनो विचार नुयोजी ॥ १६ ॥ सुग्रीव तणी जे नार हो, Kगुण वाली वानर बेश हारीयोजी ॥ तव श्रीरामे तेह हो, गुण वाली वानर ते मारीयोजी ॥ १७ ॥ सुग्रीव थापीयो राज हो, गुण् नारी श्रावी तारा रंग नरीजी॥ तव बोल्यो सुग्रीव राय हो, गु० कार्य कहो स्वामि कृपा करीजी ॥ १७ ॥ तुमे परपकारी हो, गु० कीधो स्वामि मुज अति घणोजी ॥ नेह थकी तुमे देव हो, गुण सेवक हुँ ढं स्वामि तुम तणोजी ॥ १५ ॥ राम कहे सुणो मित्र हो, गुण नारी गश् | मुज तणीजी॥ तेहनो करो संजाल हो, गु० किहां दे सीता वहन घणीजी ॥२॥ पांचमा खेम तणी ढाल हो, गुण बीजीए कही निरमलीजी॥रंगविजयनो शिष्य हो, ० नेमविजय कहे अति जलीजी॥१॥ उहा सोरठी. सुग्रीवे तेड्यो ताम, हनुमंत वीर सोहामणो ॥ ते गयो लंकाए सार, शुद्ध करेवा नामणो ॥१॥ मुछिका श्रापी सार, संदेशा कह्या श्रीराम तणा ॥ प्रशंसी सीता नार, कह्यो कुशल ने बेहु जणा ॥२॥ लंका वाली हनुए, शुद्ध थाणी सीता तणी॥ श्रीराम हुवो संतोष, सैन्य चाल्युं लंका नणी ॥३॥ वानर सहु मिलेव, परवत उचेली Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीश्राणीया ॥ बांधी समुद्रमा पाज, पाणी उपर तर्या पाहाणीया ॥ ४॥ राम लक्ष्मणना खंक ५ सेन, सागर पाजे उतारीया ॥ लंका जश् की, युद्ध, रावण राक्षस मारीया ॥५॥ ॥१२॥ सख्य विसल्या काज, औषधिगिरि उचेली धरीय ॥ आण्यो लंकापुरी मांही, हनुमंत सेन बेठो करीय ॥६॥ रामायण वादिमक रिषि, नाषित ते मांही कर्वा ॥ जो साचं होय एह, मुज जाख्युं खोटुं केम लयं ॥७॥ तव बोल्या हिजराज, ए खोटुं केम नाखीए ॥ वली मनोवेग कहे वात, एक वयण तुम दाखीए ॥ ॥ वानर पांचे मिलेव, डुंगर मोटा उचेलीया ॥ लाव्या जोजन लाख, सागर बांध्यो ज्युं नेलीया ॥ ए ॥ तो लघु डुंगर तेद, शियाल बे केम नवि धरे ॥ वचन सुणी द्विजराज, सत्य सत्य कही गया घरे ॥ १० ॥ वाद जीपी वन मांही, श्राव्या पूर्वली परे ॥ मनोवेग कहे सुणो जाय, सुग्रीव हनुमंत वानर करे ॥१९॥ विद्याधर हुवा राम, रावण राक्षस नवि होये॥ खगपति तणो वंश चंग, पवनवेग तुमे सांजलो ॥१५॥ ढाल त्रीजी. ॥१२॥ राम पुरा बजारमां-ए देशी. कोशल देश अयोध्यापुरी, राज पाले नानि नरिंद ॥ तोरी बलीहारीरे श्रादि जिणंदनी॥॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए श्रांकणी ॥ हाजी मरुदेवी उदरे उपन्या, रिषजदेव प्रथम जिणंद ॥ तो ॥१॥ त्र्याशी लाख पूरव गया पली, जरतने आप्यु निज राज ॥ तो ॥ आदि देवे दीदा ते अनुसरी, कायोत्सर्ग धरी करे काज ॥ तो ॥२॥ ध्यान धरे जिन जेदवे, तेहवे आव्या साला वेह ॥ तो० ॥ नमि विनमी नामे नला, श्रादि देव प्रते कहे तेह ॥ तो ॥३॥ पुत्र सहुने व्हेंची पापीया, देश नगर तुमे देव ॥ तो॥ अमने का नहीं थापीयुं, तुमारी घणी कीधी सेव ॥तो॥॥ एणी परे मागे साला दोय, हठ लेश्वरी रझा पाय ॥ तो ॥ भ्यान विघन खामीने करे, दीन वचने कृपा थाय ॥ तो ॥५॥ श्रासन कंप्यु धरणेऽनु, नागराज श्रावी करे काज ॥ तो॥ विद्या श्रापी बेहुने घणी, रूप धरी जिनराज ॥ तो॥ ६॥ विजयारध वेश् चालीयो, दक्षिण श्रेण नगर पचास तो ॥ पचास कोमी गाम तिहां जलां, नमि थाप्यो चक्रवालपुर वास ॥ तो॥ ॥ उत्तर श्रेणि नगर साउ, तेटला क्रोम ने वली गाम ॥ तो ॥ रथनोपुर स्वामी विनमी करी, नागराज गयो निज गम ॥ तो॥७॥ नमिवंशे विद्याधर घणा हुवा, चक्रवालपुर तणा ईश ॥ तो ॥ अनुक्रमे पूर्णमेघ नृप हुवो, दक्षिण श्रेण तणो महीश ॥ तो ॥ ए॥ विनमी अनुक्रमे नृप हुवा, उत्तर श्रेणना राय ॥ तो॥ शत Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खम धर्मपरीलोचन खगपति जलो, रथनुपुर सेवे नर पाय ॥ तो ॥ १० ॥ चक्रवालपुर जई वी- टीयो, शतलोचने तेणी वार ॥ तो ॥ पूर्णमेघ रणवट करी, हणीयो शतलोचन मार ॥१३॥ ॥ तो ॥ ११ ॥ सहस्रलोचन तिहां श्रावीयो, पिता तणो सांजली मरण ॥ तो | विषम संग्राम ताम तव तेणे कर्या, पूर्णमेघ गयो जम शरण ॥ तो॥ १२ ॥ तेह तणो सुत मेघवाहन, सहस्रलोचन साथे संग्राम ॥ तो ॥ मेघवाहन नागे जाजीने, विमाने बेसी निज जाम ॥ तो० ॥ १३ ॥ सहस्रलोचन पुंठे थयो, समोसरण दीतुं म-19 नोहार ॥ तो ॥ मेघवाहने प्रवेश कर्यो, अजितनाथ वांद्या नवतार ॥ तो ॥ १४ ॥ पाउलथी शत्रु थावीयो, सहस्रलोचन वली काल ॥ तो ॥ मानस्थंन दीठे मानज गब्यु, शांत रूप थ वांद्या दयाल ॥ तो ॥ १५॥ वयर मूकी दोय जण मख्या, नर कोठे बेग ने जाम ॥ तो॥ पूर्व नवांतर जिनेश्वर कह्या, सांजली हरखीया ताम ॥ तो॥ १६ ॥ पांचमा खंग तणी जली, ढाल त्रीजी कही सुविशाल ॥ तो ॥ रंगविजयनो शिष्य एम जणे, नेमविजयने मंगल माल ॥ तो० ॥ १७ ॥ उदा. राक्षस इंजीम महाजीम, व्यंतर कोटी सुण तेह ॥ मेघवाहन नवांतर जा ॥१३॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णीयो, पूर्वे यम पुत्र पद ॥ १ ॥ राक्षसने स्नेह उपन्यो, राक्षसी विद्या दीध ॥ नवसर हार थाप्यो जलो, नव मुख दीसे मांही सीध ॥ ३ ॥ मेघवाहन लंका द्वीप, सातसें जोजन मान ॥ त्रिकुट गढ नव जोजन लगे, बत्रीश जोजन पुर यांन ॥ ३ ॥ उत्र मुगट धजादिक शीरे, राक्षस लांबन सोय || जीम महाजीमे सहु दीयो, मेघवाहन लंकापति मोय ॥ ४ ॥ ॥ ढाल चोथी . एम विसरे सुखां, वालाजीना जोवा मुखमा ॥ मुखडे मोह्यारे इंदा, वदन कमल जाणे शारद चंदा-ए देशी. मेघवाहन राणी तनुमती, महा राक्षस सुत दुवो शुभ मति ॥ गुणवंती राणीना पुत्र बेह, जानु राक्षस देव राक्षस तेह ॥ १ ॥ समुद्र मांही द्वीप अनेक, लोक व | साव्या ते विवेक ॥ जानु राक्षस देव राक्षस केडे, एकसठ राजा गया बे तेडे ॥ | २ || कीर्तिधवल राजानो वंश, लंका राज करे परशंस || लक्ष्मीमती बे राणी तास, सुख जोगवे करेय विलास ॥ ३ ॥ रतनसंचय पुर दक्षिण श्रेण, श्रीकंठ खगपति राजा तेण ॥ तिहांथी लंकापुरी याव्यो, बेन बनेवी मलवा धायो ॥ ४ ॥ कीर्तिधवल Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खरु५ ॥१०॥ MAHERMEREMOIRORint राजा आनंद, सालाने श्रालिंग्या जन बंद ॥ लक्ष्मीमती मली नाश्ने, मान सनमान दीधां धाश्ने ॥ ५॥ कीर्तिधवल कहे सांजलो सार, तुज साये मुज स्नेह अपार ॥ जे जे लक्ष्मी ने अमारे, ते ते श्रीकंठ बे तुमारे ॥६॥छीप देश पुर पाटण जाणो, जे आपणे वे ते तुमे माणो ॥ जे जोए ते मागो आज, रत्नहीपादिक जोगवो राज ॥७॥ वानरसीप माग्युं अजिराम, श्रीकंठ सालाने श्राप्यु ताम ॥ बेन बनेवीने मोकलावी, वानरछीपे थाण पलावी ॥ ॥ कुटुंब सेनादिक परिवार, छीपे आणी वास्या नर नार ॥ वानरछीप मध्ये जे सार,कीष्कंध पर्वत उंचो अपार ॥ ए॥ कंधपुर वास्यो श्रीकंठ, राज्य नोगवे मन उत्कंछ ॥ खगे विद्या वानरी साधी, ते माटे कहेवाय हरिबांधी ॥ १० ॥ वानरछीपे घणा वानर, विनोद क्रीमा करे ते फरफर ॥ श्रीकंठ विद्याधर नरवरेश, वानर रमत करे विशेष ॥ ११ ॥ मुगट न धजादिक गेह, सघले वानर लीखीया तेह ॥ वानर कहे लोक अजाण, विद्याधर राजाए सुजाण ॥ १२ ॥ एणी परे मेघवाहन लंकेश, मुगट ध्वज बत्रे राक्षस ॥ मेघवाहन कुले उपन्या राय, त्रिखंग पति रावण ते थाय ॥ १३ ॥ श्रीकंठ खगेश परंपरा जाण, वाली सुग्रीव पवन्नादिक जाण ॥ नमि विनमी वंशे विख्यात, वानर राक्षस नोहि e sNARENarmineratorSTERTAIME ॥१०॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात ॥ १४ ॥ वानर तो तिर्यंचनी जाति, व्यंतर राक्षस होये नाति ॥ पशु व्यंतर केम होय युक, ए सहु जाणो महा विरुफ ॥ १५ ॥ विद्याधर विद्यावल चाले, गिरि उचलतां ततक्षिण काले॥कदाचित् होये तो सबली होय, सागर बंधन घटतुं जोय ॥१६॥ मनोवेगे कथा कही साची, पवनवेग मनमा रह्यो राची ॥ जिनवर वचन कर्यां अंKागीकार, मिथ्या वचन कीधां परिहार ॥ १७ ॥ पांचमा खंक तणी ढाल, चोथी कहीए निपट रसाल ॥ रंगविजय शिष्य एम बोले, नेमविजयने नहीं को तोले ॥१७ उहा. | पवनवेग कहे जाश्ने, रावण केरो वृत्तांत ॥ के मिथ्यातिए अने, के जिनशासन सांत ॥ १॥ मनोवेग कहे सांजलो, रावण केरी वात ॥ जेम निश्चय तुमने पडे, नांगे मननी ब्रांत ॥२॥ त्रिकुट गढ लंका तणो, मोटो महीयल मांहीं ॥ रावण राज तिहां नोगवे, हार तणे महीमाहीं ॥३॥ त्रिखंड राज्य तणो धणी, नव ग्रह बांध्या पाय ॥ वीश नुजा तेणे करी, सुर नर सेवे पाय ॥४॥ त्रीश सहस वर्षों तणी, श्रायुस्थिति कहेवाय ॥ नव धनुष काया तणो, मान कह्यो जिनराय ॥ ५॥ बत्रीश सहस नारी अडे, पुत्र पुत्री परिवार ॥ जामाताए जस घणा, कहेतां नावे Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खम ५ ॥१५॥ EDIA पार ॥ ६॥ लाख ३तालीश गज तुरी, लाख बेंतालीश रथ ॥ क्रोम श्रमतालीश पा- यक जला, श्रायुध उत्रीशे सब ॥७॥ सोल सहस सामंत , क्रोम श्रमतालीश गाम ॥ अढार दोणी कटक तणो, राजा रावण नाम ॥ ७॥ ढाल पांचमी. वयरागी थयो-ए देशी. लंका परिसर एकदारे, मुनिसुव्रत जिनराय ॥ विहार करंता श्रावीयारे, साधु तणो समुदायोरे ॥ सुगुण सांजलो ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ खरदूषण नूपति जलोरे, रावण बनेवी तेह ॥ चंडनखा नारी तणोरे, पति कहेवाये एहोरे ॥ सु० ॥२॥ समोसरण देवे रच्युरे, नामंगले करी सार ॥ त्रगडे बेग देशनारे, करे नविक जन |निस्तारोरे ॥ सु० ॥३॥ वनपालक जर विनवेरे, सांजलो स्वामिरे वात ॥ श्राज श्राव्या ने श्रापणेरे, त्रिजुवन स्वामी विख्यातोरे ॥ सु० ॥ ४॥ वारु दीध वधामणीरे, थयो मन उरंग ॥ चतुरंग सेना से करीरे, वाजते ढोल मृदंगोरे ॥ सु० ॥५॥ बेग जिन वांदी करीरे, अनिगम सांचवी पांच ॥ देशना सांजली जिन ॥१० ॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तणीरे, मूकी मन खल खांचोरे ॥ सु०॥ ६॥ दीजे अमने सुखासिकारे, खामि थापो सेस ॥ श्ररथ सरें अमने घणोरे, तुमने सान विशेषोरे ॥सु॥७॥ तव त्रिभुवन स्वामी कहेरे, सांजलो राय सुजाण ॥नोग करम तुमने घणोरे, केम पालशो पच खाणोरे ॥ ७॥ तव रावण फरी विनवेरे, मुजथी थाये जेह ॥ तेह उपाय कहो ह. वेरे, पालुं निश्चय तेहोरे ॥ सु॥ ए॥ वीशमा स्वामी तव कदेरे, तुमथी थाशे जेह ॥ नव नेदे जे शील बेरे, तेहनो नांगो एहोरे ॥ सु०॥ १० ॥ जे स्त्री राजी थ कहेरे, तेहशुं जोग विलास ॥ राजी विना श्रमशो मतीरे, एहवो व्रत उबासोरे ॥ सु ॥ ११॥ तव व्रत लीधो जिनने मुखेरे, रावण मनने रंग ॥ तव खरपूषण एम कहेरे, व्रत खेवा उबरंगोरे ॥ सु० ॥ १२ ॥ जिननी मूरति नित्य प्रतेरे, पूजीने लेलं अन्न ॥ न करुं दातण पूज्या विनारे, त्रिकरण राखुं मन्नरे ॥ सु ॥ १३ ॥ व्रत सीधो बे जणे तिहारे, श्राव्या श्रापणे वास ॥ मन शुझे पाले तिहारे, पाम्या हरख नहासोरे ॥ सु० ॥ १४ ॥ विद्यानी शक्तिए करीरे, चाले अंबर वेग ॥ तीर्थयात्रा करता फरेरे, सबली जेहनी तेगोरे ॥ सु ॥ १५ ॥ विहार कर्यो जिनवरे तिहारे, फरता देश विदेश ॥ नविजनने प्रतिबोधवारे, तरण तारण विशेषोरे ॥ १६ ॥ पांचमा Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीखंड तणी कहीरे, पांचमी ढाल रसाल ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमने मंगल मालोरे ॥ सु० ॥ १७॥ ॥१६॥ उहा. NI सवि सामग्री सज करी, रावण राजा जाय ॥ मंदोदरी राणी सहित, श्रष्टापद तीरथ आय ॥१॥ विद्या तणी शक्ते करी, चढी उंचा ततकाल ॥ प्रणम्या रिषनदेवने, पहेरावी मंगल माल ॥२॥ धूप दीप आरती करी, सवि सजी शणगार ॥ मंदोदरी अधर रही, नाचे देवल मोकार ॥३॥ रावण जंत्री लेश्ने, गाये वाये गीत ॥ नावे नावे नावना, बत्रीश बद्धनां नृत्य ॥४॥ श्रीमंमलने सज करी, तांत बत्रीशे तार ॥ जवट आणी अंगमें, तान मान ऊणकार ॥५॥ अढलिक नावे जे नवि, नावे यधिक जे नाव ॥ तेहने सागर संसारनो, उतारे जव नाव ॥६॥ नाव बले करी ना. वतां, वातां तांतनो तार ॥ तुट्यो तेण समे रावणे, नस काढी तेणी वार ॥ ७॥ सां-IN कधी तांत तेणे समे, खंमित न कर्यो लगार ॥ नहींतो मंदोदरी. नारीनो, मरण होत तेणी वार ॥ ॥ लान उपायो अति घणो, लीधो तीर्थंकर पाट ॥ श्रावती चोवीशीमां होशे, जिनरूपी सम घाट ॥ ए॥ ॥१०६॥ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल ही. त्रीपदीनी बे कर जोमी तामरे न विनवे-ए देशी. - तिहांथी श्राव्या निज घरेरे, रावणनो परिवार, चंडनखा नगनी सही एnly तेहनो पुत्र ने एकरे, विधनपति नामे, नित्य जाये ले वन वही ए॥१॥ पर विघननी विद्यारे, साधवाने काजे, वंशजाल गुठा मांही ए ॥ साधे नित्य प्रते तेहरे, एकाकी वन मांहे, नवी देखे कोश तांहे ए ॥२॥ तेहने नोजन काजरे, माता तेहनी, ला थावे जे नित्य प्रते ए॥ एम करतां एक दिनरे, राम ने लक्ष्मण, सीता साथे ले बते ए॥३॥ श्राव्या ने वनवासरे, तेह निज गमे, लक्ष्मण चोकी करता फरे ए ॥चिंतवी मनमां एमरे, पुर्धर कोश्क जीव, उपजव श्रावीने करे ए॥४॥ते माटे लेश खमगरे, वांसनी जालमां, बेदे ते खड्गे करी ए॥ ते कुंवर विघनपतिरे, बेगे ध्याने, घा वाग्ये गयो मरी ए ॥ ५॥ दीठो लक्ष्मणे तामरे, उरतो कर्यों घणो, निमित्त मात्र मिटे नहीं ए॥ पाठा फरी वली श्रावेरे, कुंवरनी माता तिहां ॥ जोजन ले भावी वही ए॥६॥ देखी कलेवर तामरे, रुदन करे घj, पुत्र कोणे मारो मारीयो ए॥शीश कुटे लट तोडेरे, हृदये आस्फाले, नयणे आंसु जारीयो ए॥७॥ मनमां चिंतवे एमरे, कोण होशे 5 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MH धर्मपरीश्म न, ज नीहा तेहने ए॥ श्रावे पग जोती तामरे, दीगे लखमण, श्रावीने कहे खंग एहने ए॥ ॥ देखी लक्ष्मण रूपरे, विकल थ मने, पुत्र चिंता मटी गए ॥ कहे ॥१७॥ मुखथी तव बोलरे, अहो थहो सोनागी, हुं तुम पर राजी थर ए ॥ए॥ तुं माहरो जरताररे, माहरे ण नवे, एम निश्चय करी जाणजो ए॥तादरी उत्तम प्रजातरे, जो होये तो सही, नाकारो मत थाणजो ए ॥ १० ॥ लक्ष्मण कहे तव वातरे, ए काम हुँ| |नवि करूं, परनी स्त्री केम जोगq ए ॥ मी पण थयु एवंरे, परनुं जे चाख्युं, ते तो हुँ नवि जोगवु ए ॥११॥ चंजनखा कहे वातरे, मादरे में कडं, मत उथापे तुं हवे ए॥ जो सुख वांडे एमरे, तो मन धारजे, कुम वयण तुं मत लवे ए॥ १२ ॥ लक्ष्मण कहे| हवे एमरे, जगनी माहरी, धर्मनीमाता तुंबडे ए॥क्रोधातुर थइ एमरे, खबर राखे माहरी, एम कहीने पाली गजे ए ॥१३॥ तुज सरीखो वे नारे, तो चिंता कशी, एम हुं नित्य जाणती हती ए ॥ माहरो विधनपति पुत्ररे, मार्यो लक्ष्मणे, तो हुँ नारी अती बती ए ॥ १४ ॥ वार करो हवे मारीरे, ढील न करो कशी, जे घमी जाये जुग समीलाnam ए ॥ सांजली रावण तामरे, पूत एक मोकल्यो, सामंत नेला कर्या नमी ए॥ १५ ॥ खरदूषण परिवाररे, लश्कर करी नेलो, चढ्या कटक गेडी थरए॥ श्रावी मेरा दीधारे, Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सायरने कांठे, प्रतिमा घरे विसरी गए ॥ १६ ॥ दातण करवा नीमरे, लीधो पचखाण, जनवचन केम नांगीए ए ॥ बाण वेलु करी नेलोरे, बिंब कीधो नवो, पूजा करी पगे लागीए ए ॥ १७ ॥ अनुक्रमे दरशन कीधोरे, प्रतिमा कुपक माही, मूकीने | सहु चालीया ए ॥ घणा काल लगी मांहीरे, अधिष्टाता तिहां, धरणे तिहां जा-IN लीया ए ॥ १७ ॥ श्रावी काढ्यो विंबरे, अंबर अधर राखी, अंतरिक नाम थापीयो. ए ॥ श्रागे एहनो विस्ताररे, बहुश्रुत ते जाणे, माहरी मत सारु व्यापीयो ए ॥१५॥ पांचमा खंड तणीरे, ढाल बही ए कही, श्रोता सुगुण नणी गमी ए ॥ रंगविजयनो शिष्यरे, नेमविजय कहे, माहरा दिलमां ए रमी ए ॥ २० ॥ उदा. लश्कर सहु नेलो मली, श्राव्या वन वंशजाल ॥ रामचंछ लक्ष्मण बेने, खबर थ ततकाल ॥१॥ लक्ष्मण कहे रामचंधने, तुमे सीताने पास ॥ रहेजो सावधान थका, हुं जाउं लडवा तास ॥२॥ जो हुं नाद करुं सिंहनो, तो मुज करजो वार ॥ मेलशो मां सीता रली, कहुं हुं वारंवार ॥३॥ लक्ष्मण चाट्या फुफवा, लश्कर सन Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१०॥ मुख जाय ॥ एक बाण नाखे थके, सहस्र संख्या थाय ॥ ४ ॥ वासुदेव बल धागले, खंम ५ सहस पचवीश देव ॥ एता शरीरना देवता, रक्षा करे नित्यमेव ॥५॥ जे श्रा. युध लश्कर तणां, लक्ष्मण उपर आवे ॥ ते देवता रदा करे, ते सर्वे निष्फल थावे ॥६॥ जे लक्ष्मण नाखे तदा, जे उपर ताणी बाण ॥ तेहने सहस गमे सही, जाये तेहना प्राण ॥ ७॥ खरषण राजा तिहां, मरण गयो ततकाल ॥ तेणे अव-16 सर लक्ष्मण तव, मनशुं थ उजमाल ॥ ॥ सिंहनाद करूं जो हवे, कटक जाये सवी नाज ॥ एम चिंतवी तेणे कर्यो, सिंह समो आवाज ॥ ए॥ ते अवसर रामे तिहां, सुणीयो सिंहनो नाद ॥ सीता मूकी एकली, श्राव्यो करवा वाद ॥ १०॥ बे|| | नाइ मली एकग, मार्यों काढ्यो पूर ॥ नागे ले लश्कर वेगलो, जीतनां वाग्यां तूर ॥ ११ ॥ चंदनखा उतावली, गश्रावणनी पास ॥ श्राकुल व्याकुल थाती थकी, मूकती मुख निःश्वास ॥ १२ ॥ कदेवा लागी नाश्ने, मार्यो मुज जरतार ॥ मुख \ ॥१०॥ देखाडे लोकमें, लाजे नहीं लगार ॥ १३ ॥ रावण उठ्यो सांजली, पुफक लेश विमान ॥ अद्भुत रूप नवो करी, आव्यो सीता गम ॥ १४ ॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ढाल सातमी. शियालो हे जले श्रावीयो-ए देशी. सीता दीठी एकली, चिंतवे मन मांही रावण विचार के ॥ कोश्क बुद्धि हवे केल, जेम श्रावे हे माहरे हाथे नार के ॥ सुगुण सोनागी सांजलो ॥ ए श्रांकणी ||॥ १॥ अतित रूप करी अति जलो, निदा कारण हे श्राव्यो ततकाल के ॥ अलेक जगाव्यो श्रांगणे, सीता श्रावी हे उनी उजमाल के ॥ सु॥२॥ केम स्वामि तुमे || श्रावीया, तव जोगी हे बोले मुख वाण के॥ताहरे पीयु मने मोकट्यो, तेमवा श्राव्यो हे तुमने तिण गण के ॥ सु० ॥३॥ लश्कर श्राव्यो बे घणो, को कुश्मन हे तुमने ले जाय के ॥ ते माटे उतावलां, तुमे बेसो हे या विमान मांय के ॥ स॥ ly सीताए जाएयु ए सही, मांहे बेग हे उघाड्युं विमान के॥आगल जातां सामो मिल्यो, विद्याधर हे एकलो तेणे स्थान के ॥ सु० ॥५॥पूब्युं रावणने तिहां, कुण नारी हे के-1 हनी कदेवाय के ॥ तक रावण कहे रामनी, सीता नारी हे कहेजे ले जाय के ॥ सुपू ॥ ६॥ ते विद्याधरे रामने, संजलावी हे सीतानी वात के ॥ रामने लक्ष्मण बे मली, कुःख पाम्या हे कहेतां नावे घात के ॥ सु० ॥७॥ राम रोश् घणुं टलवले, मुख | Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१०॥ जपे हे तरुवर जणी एम के ॥ कहो मुजने तुम इहां रह्या, केम मलशे हे सीता मुज जेम के ॥ सु० ॥ ॥ तरुवर वाये मोलतां, राम जाणे हे कहे धुणीने शीश के ॥ श्रमे न जाणुं किहां गश्, एम धारी हे मुजने करे रीस के ॥ सु०॥ ए॥ तव केकी पंखी प्रते, राम बोले हे तुमे उमो आकाश के ॥ सीता माहरीनी वातमी, बतावो हे हुँ श्रापुं शाबाश के ॥ सु॥१०॥ तव पंखी बोले मुख थकी, क्यां वा क्यां वाहे न जाणुं श्रमे आप के ॥ राम जाणे ए जे कहे, किम खोवे हे आपनो माप के ॥ सु० ॥ ११ ॥ पशु चोपगने पूढे वली, जातां वलतां हे दीठी सीता नार। के ॥ शियाल बोल्यां ततदणे, सांजलीने हे रामे कीधो विचार के ॥ सु ॥ १५॥ जंजं जे मुखथी कहे, ले जातां हे न दीठी जण गण के ॥ लक्ष्मण राम जणी कहे, जंजालनां हे बोलो मुख वाण के ॥ सु० ॥ १३ ॥ जा तुमने केम घटे, स्त्री माटे हे श्यो करो वेखास के ॥ जो विद्यमान बेग तुमे, काले लावणुं हे राखो विश्वास के ॥ सु० ॥ १४ ॥ रोयां राज न पामीए, राखो धीरज हे आवे श्रापण लाज ॥१० के ॥ लाजे काज बगाडीए, ना तुमने हे केम घटे श्राज के ॥ सु०॥ १५॥धीरा धीरा राउता, धीरां धीरां हे सर्वे काज होय के ॥ चार पहोरने यांतरे, पूध फीटी ॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हे दहीं थाये जोय के ॥ सु० ॥ १६ ॥ धीरा धीरा जे करे, मालीनी परे हे सो घडा सिंचाय के ॥ पण ऋतु श्रावे नीपजे, रुतु वगर हे फल कीणी परे थाय के ॥ सु० ॥ १७ ॥ तो हवे उद्यम कीजीए, तेहथी जाये हे आरति सवी दूर के || हनुमानने ते डावीए, मोकलीए हे तेवा दलपूर के ॥ सु० ॥ १८ ॥ विद्याधर वाली वानरा, राउत राणा हे जद सरूप के || हाथी घोमा रथ पालखी, उंट पोठी हे श्रणावो अनुप ॥ ० ॥ १७ ॥ पांचमा खंड तणी कही, ढाल सातमी हे सहु सुणजो सुजाण के ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय हे कीधां रुमां वखाण के ॥ सु० ॥ २० ॥ उदा. बोलाव्यो हनुमानने, संजलावी सवी वात ॥ देशे परदेशे फरी, जेली करो सदु न्यात ॥ १ ॥ हनुमान तिहांथी चालीयो, गयो देश विदेश ॥ उमराव अनेक भेला हुवा, विद्याधर वानर विशेष ॥२॥ यक्ष राक्षस वली श्रावीया, चतुरंग दल परिवार ॥ संख्या करतां नवि बने, लश्कर मलीयो अपार ॥३॥ श्रासो सुदि दशम दिने, शुभ वेला शुभ वार ॥ शुभ शुकने सिद्ध करी, थर घोडे अश्वार ॥ ४ ॥ सायर कांठे घ्यावीया, दीकुं | देवल एक ॥ ते पासे श्रावी उतर्या, दर्शन कीध विवेक ||५|| करे अरदास बेठा तिहां, Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी सायर केम उतराय ॥ सात मास ने नव दिने, सायर पाज बंधाय ॥६॥-सीताने से खंग ५ गयो, रावण लंका मांय ॥ फुलवामीयावासमां, राखी ले तेणे गय ॥७॥ नित्य आवे ॥११०॥ सीता प्रते, पूरे वारंवार ॥पट्टराणी था' करी, मान वचन निरधार ॥७॥ ढाल आठमी. बेमले जार घणो ने राज-ए देशी. जनक सुता हुँ नाम धरावं, राम अंतर जामी ॥ पल्लो श्रमारो डोमी दे पापी, कुलमां लागशे खामी ॥ मुजने अमसो मां जो राज, नाहलीयो उहवाशे ॥ए श्रांकणी ॥१॥ मरु महीधर गम तजे जो, पथ्थर पंकज जगे ॥सायर जोमरजादा मूके, पांगलो अंबर पुगे ॥ मु० ॥२॥ तोपण तुं सांजलरे रावण, निश्चे हुं शील न खंडं॥ प्राण श्रमारा परलोके जाये, तोपण सत न बंडं ॥ मु॥३॥ हुँ धणीयाती पीयु गुणराती, हाथ डे माहरे बाती ॥ रहे अलगो न चयुं तुज वयणे, कां कुल वाये काती ॥ मु ॥४॥ कोण मणिधरनी मणि लेवाने, हश्मे घाले हाम ॥ सतीय संघाते स्नेह धरीने,|||॥१०॥ कहो कोण साधे काम ॥ मु० ॥५॥ कहो परदारा संग करीने, श्राखो कोण उगरीयो॥ INउंडं तुं तो जोय आलोची, सही तुज दहामो फरीयो ॥ मु॥६॥ अग्निकुंममा निजी Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । तनु होमे, वाम्युं विष कोण लेवे॥जेद थगंजित कुलना जोगी, ते केम फरी विष सेवे ॥मुन ॥७॥लोक हसे निज गुण सवि नीकसे, विकसे पुरगति बारी॥एम जाणीने कहो कोण सेवे, पाप पंक पर नारी ॥मु॥॥ वलीय विशेषे स्त्रीने संगे, बोध बीज वली जावे ॥ लोको मांही अपजश थावे,तो केम मरण न आवे ॥मुगाणा को मूरख चंदन काजे, बगरके कोयला थाणे ॥ विष हलाहल पीधा थकी जे, कोण चिरंजीवित माणे ॥मु० ॥१०॥सीता बोलीवचन रसालां, जेम अंकुश शुंडाल तोपण रावण न मेले चाला, ए. हनां कर्मनां काला ॥ मु०॥ ११ ॥ एहवी सीतानी जे वाणी, सांजले नित्य एम जा-1 णी ॥ सती जाणीने न कहे ताणी, आणतां शुं तो श्राणी ॥ मु० ॥१२॥ लीधा मेली| वात थ ते, अहिए बटुंदरी पकमी ॥ मेले तो थाय आंखे अंधो, खाधे मरे पड्यो जकमी ॥ मु०॥ १३॥ एणी परे मनमां जाणे रावण, करतां शुं तो कीधी ॥ थानारो थाशे जे श्रागल, लेतां शुंजे लीधी।मु० ॥१४॥ पांचमा खंम तणी ए ढाल, थाउमी सही करी जाणो॥रंगविजयनो शिष्य एम पनणे, नेमनी वात वखाणो ॥ मुण॥१५॥ उदा. सात मास नव दिन लगे, पूज्या थंजणपास ॥ अधिष्ठाता शेषनागजी, पसाय Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ १११ ॥ कीधो तास ॥ १ ॥ लश्कर पाजे उतर्यो, लंका नेडी बीध ॥ खबर थर रावण जणी, नगरमां वात प्रसिद्धं ॥ २ ॥ बिभीषण नाइने कहे, राम चम श्राव्या खाज ॥ जाइ करीने थापीए, सरवे सरशे काज ॥ ३ ॥ रावण कहे जाइ सुणो, राम बे दुश्मन जात ॥ बनेवी आपणो मारीयो, विघनपति नाम सुजात ॥ ४ ॥ एवो वेरी मेलीए, तो अपजश जग होय ॥ घर श्रांगण आव्यो थको, जावा दे कहो कोय ॥ ५ ॥ बिभीषण कहे रामशुं, जाइजी म करो वेर ॥ वेध पमशे ए वातमां, याशे ए कामे केर ॥ ६ ॥ तव रावण कहे जाइने, न गमे तुजने एम ॥ तो तुं राम जेलो जइ, थापे जाइ कर जेम ॥ ७ ॥ बिभीषण राम नेलो मल्यो, रावणने चड्यो मान ॥ सेना सरवे सज करी, मेरा दीधा रण थान ॥ ८ ॥ ढाल नवमी. कमखानी देशी. दल वादल चड्या मेह सम गाजीया, वाजिंत्रनी ध्वंस श्राकाश वागी ॥ बत्रीश श्रायुध सज्यां यामुहा सामुहा, जूऊनी हुब उमंग लागी ॥ द० || १ || सिंडूरीया गज दल यागल कर्या, अश्व तणी पाखरे रोल काफी ॥ नाल घोमा ती धसमस पके खंग ५ ॥ १११ ॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेग हरवा ॥ चणण गाला घणी, श्रावी श्रड्या घणा शूरमांजी ॥ द० ॥२॥ सिंधू राग सरणाश्ए टहुकीयो, |बंदीए सरस गाया पवामा ॥ चारणे चरचीया बिरुद उहडालमा, मेली नेला कर्या | मल अखामा ॥द॥३॥ शक्ति विद्या तणी अंबर चमी ऊता,रूप करी कारीमा फूज मांडे ॥ श्रायुध आकाशमां घन जेम गडगमे,वीज ऊलका सम ज्योति खांमेदा ॥ तीनीयो बरनीयो पार निरजीयो, सणण वहे बाण अरि वेग हरवा ॥ चणण गोली। वहे ढाल तिहां खमखडे, कडकमे तुंड रहमांही फरवा ॥ द० ॥५॥ गोलीए कं| मुथा बाण लाग्यां घणां, केश पड्या हय गय पय पसारी॥थारमे केश्याकुल व्याकुल | थका, जाणे वणजारनी पोठ उतारी ॥ द० ॥६॥ नम लोहा थकी जे नर जागीया, लडथमता धड उठे वली एम ॥ शूर फळे तिहां कायर कंपे घणा, थरथरे काय मुख |तृण लीधां जेम ॥ द० ॥॥ केश रथ चूरीया नालगुंफूरीया, केश उमी गया बत्रधारी| ॥ केश सुखासन मांहे बेग थका, अकाल मरणे गया घjज हारी ॥ द० ॥ ॥ दश | मस्तकी तणी तत्र श्रावी बनी, वासुदेव उपरे चक्र फेर्यो ॥ त्रेसठ शलाखा पुरुष ते उपरे, सहस पचवीश ते देवे घेर्यो ॥ द॥ए ॥ अवरना मारीया केम मरे एहवा, || तेहवे चक्र पालो चलायो । लक्ष्मणे रावण मारवा कारणे, शीश दश बेदी धराशें Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ D R . 27. ORDER धर्मपरीजनल जलायो ॥ द ॥ १० ॥ तेहवे तिहां हाहाकार वरत्यो घणो, रामनी जीत जगतिख प्रसिद्धी ॥ लक्ष्मण बिनीषण बेहु नेला मैली, नगरी लंका ततकाल लीधी ॥ द॥ ॥१९ ॥ ॥ ११ ॥ पाट थाप्यो बिनीषणने बक्षीसमां, त्रिकूट गढमे बाण फेरी ॥ तेहवे राम ने लक्ष्मण बेहु जणे, तेमावी नारी सीताजी आप केरी ॥ दण् ॥ १५ ॥ दंपती बेहु मव्यां वर्षमा सहु जल्या, बिनीषणे तिहां बहु नक्ति कीधी ॥ घणा दिवस रही रिक समृद्धि सही, शीख दीधी वख्या पाज सिसि ॥ दण॥१३॥ श्रनुक्रमे श्रावीया थंजणपासे देवले, मास चोमास रह्या तेह गमे॥पूजा प्रजावना मोठव कीधा घणा, थापना कीधी थंजणोपास नामे ॥ द ॥ १४ ॥ पांचमा खंग तणी ढाल नवमी नली, रंगवि-| जय गणि शिष्य नाखी ॥ नेमविजय कहे श्रोता सहु सांजलो, रावण रायनी वात श्राखी॥ द॥ १५॥ उहा. अनुक्रमे सीता नारीने, स्वकीय उदर मांय॥ गर्न वाधे दिन दिन नलो, हरडे हर-|| ख न माय ॥ १॥ एक दिन लक्ष्मण सीता बने, सूतां ले बे जण पास ॥ लक्ष्मणने । माता समी, सीता नारी तास ॥२॥ निझावश सूतां थकां, वस्त्र रहित थयां बेह॥ -IN ॥११॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीगं रामचंद्रे तिहां, शंका उपनी तेह ॥ ३ ॥ लक्ष्मण सरिखो नाइ मुज, मारवो न घटे मुज ॥ सीताने हुं जाणतो, सीतानां लक्षण गुऊ ॥ ४ ॥ ए तो बगमी बे सही, | मायें अपजश थाय ॥ तो केम हुं हवे करूं, काढी मेलुं वन मांय ॥ ५ ॥ लक्ष्मणने वातो कही, एहने मेलो वनवास ॥ तव लक्ष्मण बोल्या तिहां, नाइ तुमने श्याबास | ॥ ६ ॥ कष्ट उपजावी लावीया, सीता सुलक्षणी नार ॥ एहने वनवासे मेलतां, लाज जाये संसार ॥ ७ ॥ रामचंद्र माने नहीं, मनमां पमी बहु प्रांत ॥ साचे साधुं चालशे, | कर्म न जाणे नाति जात ॥ ८ ॥ ढाल दशमी. निकी वेर हुइ रही - ए देशी. रामे मेली सीता वनवासमां, तिहांथी श्रावी हो तापसने श्रावास के ॥ गिरि कंदर गुफा जिहां, तापसनां हो श्राश्रम निवास के ॥ सुगुण सोजागी सांजलो ॥ ए कणी ॥ १ ॥ अंतराय कर्मना योगथी, आवी लाग्यां हो कर्मनां फल एह के ॥ राम गया घर आपणे, सीता नारी हो विसारी मेली तेह के ॥ सु० ॥ २ ॥ अनुक्रमे मास पूरण थया, दोय कुमर हो जनम्या श्रीकार के ॥ लव ने कुश नाम थापीयां, Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥११३॥ सेवा चाकरी हो करे तापस नार के ॥ सु ॥३॥ खिण खिणमां करे श्रावीने, पुण्य योगे हो सर्व विधि व्यवहार के ॥ अनुक्रमे कंवर मोटा थया, जर जोबन हो पाम्या तेणी वार के ॥ सु०॥४॥ करम जोगेश्रावी मल्यो, लश्कर नेलो हो कीधो अपार के॥ वनिता नगरी उपरे, चडी श्राव्या हो समवाने तेणी वार के॥ सु०॥५॥ को विद्याधर श्रावी विनवे, तुम जनक हो रामचंदर राय के ॥ ते साथे तुम लमतां थका, जगमां अपजश हो तुमने घणो थाय के ॥ सु० ॥६॥ वली विद्याधर जश् कहे, राम आगल हो विनवे महाराज के ॥ ए कुंवर दोय तुम तणा, तेहने तेमी हो मनावो आज के ॥ सु० ॥ ७ ॥ तव राम ने लक्ष्मण बे मली, दोय कुमर हो तेमाव्या तेणी वार के ॥ साजन सहु श्रावी मख्या, अंग उलट हो उपन्यो अपार के ॥ सु० ॥ ७॥ सीता तेमावी ततक्षणे, शंका टाली हो मननी ततकाल के ॥ उजम अंगमें अति घणा, सुख विलसे हो दंपती उजमाल के ॥ सु०॥ ए॥ सीतानी शोक ते एमy कहे, राम आगल हो कुड कपटनी वात के ॥ सीता नारी जे तुम तणी, रावणे । राखी हो लंपट कुजात के ॥ सु ॥ १०॥ बगडी नारी जे तेहने, केम राखवी हो घटे घर मांय के ॥ निंदा थाय ने नातिमां, काढी मेलो हो बीजे कोय गय के ॥ ॥११३॥ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सु०॥ ११॥ तव राम मनमां चिंतवे, शोकनो संबंध हो लागे मनमां खार के ॥ ते माटे सहु एम कहे, मुज न घटे हो काढवी घर बार के ॥ सु० ॥१२॥ एक दिन वस्त्र ते धोयवा, धोबीने दीधां हो रामचंद्र तेणी वार के ॥ राते पलाळी मूकीयां, प्रजात उठी हो जगाडे नार के ॥ सु० ॥१३॥ उठरे रांड तुं सुश् रही, राजा करशे हो आप-| Mणने रीस के ॥ वेहेलां वस्त्र जो आपीए, तो पति हो आपे श्राशीष के ॥ सु ॥ १४ ॥ तव धोबण मुखथी कहे, 5 मूरख हो शु लव करे आज के ॥ तुं ने राजाबे जण मली, जा ऊंचा हो ज्यां ने जमराज के ॥ सु०॥१५॥ राजानो सेवक एक जणो, सूची थावा हो बेगे तेणे गम के॥सांनले धोबीनी वातमी, कहे नारीने हो तुं सांजल थाम के ॥ सु० ॥ १६ ॥ ताहरा नाक कान वाटुं हुं तो, राजाने घरे हो एहवा थाये| चयन के ॥ रावणे बार वरस लगे, सीता राखी हो कीधां मोटां फयन के॥सु० ॥१७॥ ते बगमी घर माय बे, हुं तो नवि राखुं हो एहवी जे नार के ॥ ते सेवके वात सांजली, राय पासे हो विनवे तेणी वार के ॥ सु ॥ १७ ॥ रामचं मन चिंतवे, नारी |माथे हो कलंक चड्यो जेह के ॥ सीता सती माहरी खरी, पण एहनो हो उतारं एही Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक धर्मपरीके ॥ सु ॥ १ए ॥ पांचमा खंम तणी कही, ढाल दशमी हो सुणजो नर नारी के॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय हो नित्य नित्य जयकारी के ॥सु० ॥॥ ॥१४॥ उदा. रामचंड सीता प्रते, कहे एक दिन वात ॥ निंदा करे बे लोक सहु, कलंक चमावे नात ॥१॥ तेहनो साच करो तुमे, पावकमां द्यो पग ॥ निंदा न थाये नातमां, वातो आवे वग ॥२॥ सीता कहे साचु कडं, लोकापवाद न जाय ॥ साहेब करशे ते तासही, थानारो ते थाय ॥३॥त्रणसें हाथ खाइखणी, नयों खेर अंगार ॥ राजे राणा, नेगा मख्या,श्राव्या जोवा नर नार ॥४॥ ना धोश् सीता सती, पहेरी उत्तम चीर॥ समरण करी साहेब तणो, संनार्यों श्ष्ट वीर ॥५॥ पावक मांही प्रवेश कयों, श्रगन फीटी थयो नीर ॥अचरिज पाम्यां श्रादमी, धन धन एहनी धीर ॥६॥धन धन एहना शीलने, धन धन एहनी जाति ॥धन एहना मावित्रने, धन कुंवरी सुजाति ॥७॥ पावक मांहींथी नीकली,प्रगटी अगननी काल ॥ सती सती मुख सहु कहे, देव वाणी ततकाल ॥ ॥ पुष्पवृष्टि यश् तदा, जयजयकारनी वाण ॥ चरम शरीरी ते अडे, मुक्तिरूप निरवाण ॥ ए॥ ॥१९ ॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल गीयारमी. मयपरे हा सती - ए देशी. बरंगे सीता जी हां, रामचंद रंग लाय॥ सुगुणा सांजलो ॥ घामा हाथी शणगारीया रे दां, गीत गान गवराय ॥ सु० ॥ १ ॥ सुखासने बेसामीनेरे हां, आव्या निज घर मांय ॥ सु० ॥ शोक सरवे रीसे बलीरे हां, नीचुं मुख करी जाय ॥ सु० ॥ २ ॥ तेणे अवसर सीता सतीरे हां, विनवे निज पति पास ॥ सु० ॥ जो श्राज्ञा आपो तुमेरे हां, दीक्षा दरख उल्लास ॥ सु० ॥ ३ ॥ रामचंद्र सीता जणीरे हां, कहे वचन अमोल ॥ सु० ॥ न घटे एवं बोलतांरे हां, राखो मोटो तोल ॥ सु० ॥ ४ ॥ स्वामि कर्म घणां अबेरे हां, ते दय करवा काज ॥ सु० ॥ तप जप करूं एक ध्यानधीरे हां, श्राज्ञा आपो श्राज ॥ सु० ॥ ५ ॥ श्राज्ञा लीधी निज पतिरे हां, सहुशुं | कीधी शीख ॥ सु०॥ साधुना संजोगधीरे हां, उबरंगे लीधी दीख ॥ सु० ॥ ६ ॥ विहार कर्यो अन्य देशमांरे हां, पाले चारित्र पांच ॥ सु०॥पांच महाव्रत पालतांरे हां, पांच सुम तिना संच ॥ सु० ॥ ७ ॥ त्रण गुपतिने गोपवीरे हां, चार कषायने वार ॥ सु० ॥ राग द्वेषने टालीनेरे हां, उतार्यो कर्मनो जार ॥ सु० ॥ ८ ॥ श्रायुस्थिति पूरी करीरे हां, मास Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खक धर्मपरीसलेखणा कीध ॥ सु०॥ श्रुते श्रणसण श्रादरीरे हां, पहोती शिवपुर सीध ॥ सु०॥ ए॥ रामचंछ पण जावधीरे हां, पोहोता सिझने गम ॥ सु० ॥ लक्ष्मणनो जीव ना. ॥११५॥ रकीरे हां, कर्म तणां एह काम ॥ सु०॥ १० ॥ लव ने कुश राज थापीयारे हां, सुख विलसे संसार ॥ सु ॥ ए अधिकार एम जाणजोरे हां, सूत्र थकी निरधार ॥ सु० ॥ ११ ॥ बहु श्रुत होशे ते जाणशेरे हां, निर्बुकि शुं जाणे लोक ॥ सु० ॥ शास्त्र प्र|माणे कथा कहीरे हां, वांची जोजो थोक ॥ सु० ॥ १२ ॥ हीरविजय सूरिसरुरे हां, शुनविजय तस शिष्य ॥ सु ॥ नाव विजय जगते करीरे हां, सिकि नमुं निश दिस ॥ सु० ॥ १३ ॥ रूपविजय रंगे करीरे हां, कृष्णविजय कर जोम ॥ सु० ॥ रंगविजयना रूपनेरे हां, नावे अवर को होम ॥ सुम् ॥१४॥ पांचमो खंग पूरो थयोरे हां, ढाल अग्यारे रसाल ॥ सु० ॥ नेमविजयने नित्य प्रतेरे हां, होजो मंगल माल ॥ सु०॥ १५ ॥ इति श्रीमिथ्यात्खंमन, रावणोत्पत्ति, सीताहरण, रामचं मिलण, धर्म परीदारासे पांचमो खंड संपूर्ण. ॥११५॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खं ६ हो. उदा. मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग सुजाण ॥ बडो अधिकार दाखवुं, मिथ्यामत अवर पुराण ॥ १॥ ढाल पहेली. जाटनी देशी. विद्याधर कुंवर बेहुजणे, कीधां जोगीनां रूप ॥ पाटलीपुर मांहे सांचर्या, लोक जोवे कल सरूप ॥ १ ॥ जाइ तुमे जोजो मिथ्यात वातडी ॥ ए कणी ॥ ब्रह्मशालाए बेहु जण श्रावीया, कीधो नेरी घंटानाद ॥ कनक सिंहासन आरोहीयुं, द्विज आव्या करवा वाद ॥ जा० ॥ २ ॥ जोगी सिंहासन देखीने, विप्र कहे सुणो तमे वात ॥ वाद जीती बेसो आसने, नहींतो याशे तुम तो घात ॥ जा० ॥ ३ ॥ मनोवेग तिहां बोलीयो, नहीं गमे जो तुमने एम ॥ तो अमे उतरी देवा बेसशुं सहु सुख पामो द्विज तेम ॥ जा० ॥ ४ ॥ जट्ट बोले सुणजो जाइ तुमे, कोण वाद Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ११६ ॥ करशो सुजाण ॥ शैव सांख्य बौध जैनना, जे जाणो ते बोलो वाण ॥ जा० ॥ ५ ॥ कोण देश कोण तुम गाम बे, कोण जातिना कोण गोर ॥ कोण कारण इहां श्रावीया, सत्य कहो मांगीने धूर ॥ जा० ॥ ६ ॥ जोगी रूपे खगपति ते जणे, सांगलो द्विजवर तुमे सार ॥ वाद विवाद मे जाएं नहीं, केवा कहीए शास्त्र प्रकार ॥ जा० ॥ ७ ॥ आपणपो वेष मे धर्यो, गुरु नवि दीवो कोय जोय ॥ गाम गम कुल जाति हुं कहुं, सुजो द्विजवर वातो सोय ॥ जा० ॥ ८ ॥ बड़ा खंग ती ए में कही, पहेली | ढाल ए सोय ॥ रंग विजयनो शिष्य ते एम कहे, नेमनी आशा पूरण होय ॥ जा० ॥ ए ॥ ढाल बीजी. या चित्रशाली या सुख सज्यांरे - ए देशी. गुर्जर देश वंशवाडे सुणो गामरे, जरवा वासो वसे अजिरामरे ॥ म तपो पिता मांगण जरवाकरे, बालां बाली गामर बहु धामरे ॥ १ ॥ बालां गारुरनो घणो डुजाणोरे, सकल कुटुंब सुखीयो तुमे जाणोरे ॥ श्रमो गाडर रक्षक गोवालरे, गामर सहु राखुं वनमालरे ॥ २ ॥ एक दिवस पिता मांदो पमीयोरे, पुत्र सांजलो श्रमने ज्वर खंभ ६ ॥ ११६ ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चडीयोरे ॥ बालां गाडर रक्षक तुमे जारे, सुखे करी घर निरवाउरे|| ॥३॥ मांगण घरढे एम शीख दीधीरे, तात आज्ञा श्रमे मस्तक कीधीरे ॥ गामर रक्षण गया श्रमे बेयरे, वमो नाश हुं लघु ना एहरे ॥४॥ वन माहीं गामर राखु बुं जेहरे, वनक्रीमा करीए वली ना बेहरे ॥कोठ वृद दोगे तिहां साररे, पाकां को दीगं अपाररे॥५॥ लघु नाश्ने कयु में तामरे, गामर मेंढां राखो तुमे जामरे ॥ कोठ तणां फल खालं एहरे, तिहां लगे राखो बालां तेहरे ॥ ६ ॥ कपीठ फल लावु घणां तुमनेरे, कुधा तणी वेदन जाये अमनेरे ॥ गामर वन जणी हांकी जायरे, तेम चारे जेम सुखीयां थायरे ॥ ७॥ मढां बालां चारी लावजे शहारे, पडे श्रापण बे मलशुं तिहारे ॥ गामर हांकी चाल्यो वन मांहीरे, कोठ खावाने रह्यो ढं त्यांहिंरे ॥ ७॥ कोठ वृक्ष दीगे उत्तंगरे, चमवा शक्ति नहीं मुज अंगरे ॥ विचार्यों में वृक्ष घणो ऊंचोरे, चमाय नहीं हुं दुं नीचोरे ॥ ए ॥ कटी मांहींधी कातुं काढीरे, मस्तक निज हाथेशुं वाढीरे ॥GL ठेलीने मूक्युं हाथेरे, चडी बेतुं कोग तणे माथेरे। ॥१॥ दांते त्रोमी खाधां घणां कोठरे, मुख जरायुं नवि श्रावे वेठरे ॥ जेम जेम माथे खाधुं को ठेठरे, तेम तेम पेट जरायुं हेठरे ॥११॥ तृप्ति पाम्यां मुज मस्तक देहरे, Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ ११७ ॥ पठी विचार कर्यो में एहरे ॥ जाइ काजे फल घणां जोयेरे, दांते चुंटी नाख्यां भूमि सोयरे ॥ १२ ॥ देह बले वृक्ष धंधोल्यो जामरे, मस्तक लाग्यं श्रावी निज ठामरे ॥ माथुं धम हुवा बेड एकरे, पोटली कोठ बांध्यां वली बेकरे ॥ १३ ॥ कोठ गांठको मस्तक लेइरे, वन मांहीं जाइ जोयो फरी तेहीरे ॥ जोतां थकां दीठो लघु चातरे, सूतो निद्राजर तेहशुं जातरे ॥ १४ ॥ साद करी उठाड्यो जाइरे, गामर क्यों बेरे किदां जाइरे ॥ लघु जाइ जणे बांधव तुमे सुणजोरे, कुधा दोष मुज उपन्यो गणजोरे ॥ १८५ ॥ तरुवर तले सूतो हुं जामरे, मेंढां न जाएं गया कोण ठामरे ॥ बेदु जा मली जोयां वन मांहींरे, नहीं दीगं गामर अज त्यांहींरे ॥ १६ ॥ मन जयजीत दुवो हुं जामरे, लघु जाने कहुं हुं तामरे ॥ सांजल जाई श्रापणो पितारे, कोप करशे आपण ने जीतारे ॥ १७ ॥ माता श्रापणी जूठी बहु बेरे, मंदिर पेसवा नहीं दीए पढेरे ॥ वारु विचार घटे वे एहरे, आपण जश्ए परदेश बेहेरे ॥ १८ ॥ पेट जरवानी परेज कीधीरे, | मस्तक मुंडावी दीक्षा लीधीरे ॥ कंठ कंठा काने मुद्रा कीधरे, हस्त दंग धर्यो हुवा एम सिद्धरे ॥ १९ ॥ देश विदेशे निक्षाने जमतांरे, एणी परे काल बेहु निगमतारे ॥ पाटलीपुरमां फरता याव्यारे, जोतां देखी भूमिका फाव्यारे ॥२०॥ वादशालाने खंग ६ ॥ ११७ ॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देखी दरख्यारे, नेर घंटा वजामी परख्यारे ॥ कोडे वाड्यां श्रमे वाजांरे, सिंहासन | बेठा न रही माजारे ॥ २१ ॥ द्विजवर वादी बोले वे एमरे, खोटा मांहेला दीसो बो | तेमरे ॥ माया कपटी जूगबोलारे, तुम तोले आवे कोइ गोलारे ॥ २२ ॥ बहा खंग तणी ढाल बीजीरे, श्रोता सहुको कहेजो जीजीरे ॥ रंग विजयनो शिष्य कहे वारुरे, | नेमविजय कहे श्रोता सारुरे ॥ २३ ॥ उदा. मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो जाइ जट्ट ॥ स्मृति पुराणे जे कयुं, नवि सांजस्युं तुमे ऊह ॥ १ ॥ विप्र वादी तत्र बोलीया, कहेरे किदां बे एम ॥ ढींक पाटुए करशुं जाजरा, जो खोढुं कहेशो तेम ॥ २ ॥ स्मृति पुराण जाण्यां घणां प्रमाण शास्त्र वली | वेद || जोग जुगति वली जाखतां, श्रमे न धरवो खेद ॥ ३ ॥ ढाल त्रीजी. मुनिवर हिरण पांगरे - ए देशी. वेषधारी मनोवेग बोलीयोरे, सांजलो विप्र विचाररे ॥ साचां वचनरे मुजने बोलतांरे, खेद नवि करवो लगाररे ॥ ५० ॥ १ ॥ दशमुख रावण राणो जाणीएरे, सबल शरीर अपार Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंम धर्मपरी रे॥त्रिजुवन धणी थावाने कारणेरे, उपाय रचे तेणी वाररे ॥ द० ॥२॥ईश्वरने नावे जो थाराधीएरे, तो आपे त्रिजुवन राजरे॥एम मनमां विचारीने गयोरे, हर प्रासादे करवा ॥११॥ काजरे ॥ द० ॥ ३॥ एक दिन ईश्वरनी पूजा करीरे, श्राराधे श्रतिही चंगरे ॥ नव मस्तक हस्ते बेदी करीरे, पूज्युं ईश्वरनुं लिंगरे ॥ द० ॥ ४॥ एक मस्तक राख्युं धड उपरेरे, नवि कीधी एह तणीपूजरे॥ईश्वर तो मुजने त्रसे नहींरे, केशुं करुंरे अबुजरे॥द N५॥नव शिरकमले शंकर अरचीयारे, लोचनकमल अढाररे॥ईश्वरे वरदान नहीं पापी-| योरे, कशो वली करुं हुं विचाररे ॥ दण् ॥६॥रावणे निज बांहीं सघला बेदीयारे, नस काढी वली देहरे ॥ रावणहथो बांधी तेणे कीयोरे, नसा जाली गुंश्री तेहरे ॥ द० ॥७॥ सारी ग म प ध नी सरस नलीरे, तान मान ध्यान उसासरे ॥ गीत गान गाये श्रति घणुं रे, उ राग बत्रीशे नासरे ॥ द० ॥ ॥ तांडव नाटिक नृत्य करे वलीरे, गीत तणो उबले घोषरे ॥ ईश्वर तव मनमा उलस्यारे, पाम्या अतिही संतोषरे ॥ द॥ ॥ चौद चोकमी राज लोगवोरे, मस्तक मलजो गमरे ॥ रामायण वाहिमके | एम बोलीयुरे, अन्य पुराणे वली तामरे ॥ दम् ॥ १० ॥ विप्र वचन वलतुं बोलीयारे, सांजल नाश् श्रम तणी वाचरे ॥ पुराण प्रसिद्ध रावण तणीरे, कथा कही ते साचरे |॥१९॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ० ॥ ११ ॥ नव मस्तक बेदी हस्ते करीरे, पूज्युं ईश्वर तणुं लिंगरे ॥ चौद चोकमी राज्य प्राप्युं खरं रे, माथां वलग्यां तेह तणां अंगरे ॥ ५० ॥ १२ ॥ रावणहथो राजाए करीरे, गीत गान नृत्य की धरे ॥ हर तुट्या ते श्रमे सुरयुं घरे, पुराण मांही बे प्रसिद्ध रे || द० ॥ १३ ॥ मनोवेग तव एवं बोलीयोरे, सांजलो द्विजवर एहरे ॥ नव शिर चोट्यां जो रावण तणांरे, तो एक शिर लाग्यो मुज देहरे ॥ द० ॥ १४ ॥ मनोवेग वली एम बोलीयोरे, सांजलो विप्र विचाररे ॥ तापस सघले ईश्वर श्रापीयोरे, लिंग पड्युं तेज साररे ॥ ५० ॥ १५ ॥ ईश्वरे वलता कृषिवर आापीयारे, तापस लिंग पड्यां साररे ॥ पर मरणादिक दुःख टालीएरे, आपण सहीए पाररे ॥ द० ॥ १६ ॥ पर कथा पुराणनी सांजलोरे, विप्र करोरे विचाररे ॥ मस्तक मात्रज जे वली उपन्योरे, दधिमुख नामे कुमाररे ॥ द० ॥ १७ ॥ बहा खंरु तणी ढाल त्रीजीएरे, वात कही सुविचाररे ॥ श्रगल सहुको साजन सांजलोरे, नेमविजय कहे वि स्ताररे ॥ द० ॥ १८ ॥ डुदा. श्रीकंठ नगर सोहामणुं, विप्र वसे तिहां एक ॥ तेहनी ब्राह्मणी रुपमी, दधिमुख Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१९ ॥ सुत विवेक ॥ १॥ मस्तक जणीयु केवल, देह नहीं ते सार ॥ दधिमुख वेद पुराणा खंम६ नणे, नगर प्रसिद्ध कुमार ॥२॥ पुण्य दान दिन दिन करे, पिता तणे घर रहे रंग ॥ अगस्त्य ऋषि तव आवीयो, दधिमुख मंदिर चंग ॥३॥ मान सनमान दीधां घणां, अन्यादे करीय प्रणाम ॥ पवित्र मंदिर आज श्रम तणो, बोले दधिमुख जाम ॥४॥ विनय करी कहे पग धुर्ज, लोजन करो झषिराय ॥ जनम सफल होये अम तणो, तुम दरशने सुख थाय ॥ ५॥ __ ढाल चोथी. आज हजारी ढोलो प्राहुणो-ए देशी. अगस्त्य ऋषि बोल्या एशें, सांजलो दधिमुख तुमे वाण ॥ साजन मारा हे॥ विनय विवेकी तुज समो, नहीं दीठो को सुजाण ॥ साजन मारा हे ॥ श्रोता सुणजो एक मना ॥ ए आंकणी ॥१॥ दधिमुख तुं ने कुंवारडो, नारी परण्यो नहीं सार ॥ सा० ॥ कुंवाराने घेर जमवो नहीं घटे, अघटतो दीसे आचार ॥ सा० ॥ श्रो० ॥२॥ दान देवा नर योग्य ते, जेहने घरे नारी होय ॥ सा० ॥ स्त्री विना दान पुण्य नहीं, स्मृति श्लोक एहवो जोय ॥ सा ॥ श्रो० ॥३॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकः-दानयोग्यो गृहस्थश्च, कुमारो न दमो नवेत् ॥ दानधर्मदमः साधु- गृहीणी गृहमुच्यते ॥१॥ ___एम कहीने अगस्ति गया, दधिमुख तव निज गेह ॥ सा० ॥ श्रादर कर्यो विवाह तणो, मात तात परणावे बेह ॥ सा ॥ श्रो० ॥ ४॥ पिता कहे पुत्र तुमे सुणो, क-IN न्या नवि दीए विप्र कोय ॥ सा ॥ परण्या विना नोजन तणो, दधिमुख निम लीधोन सोय ॥ सा ॥ श्रो० ॥५॥ मातपिता शोक उपन्यो, तेह नगरे विप्रज एक ॥ सा ॥ पुर्बलने धन श्राप्युं घj, तेहनी पुत्री परणी विवेक ॥ सा ॥ श्रो० ॥६॥ विवाह करी घरे श्रावीया, घरे अव्य नहींरे लगार ॥ सा०॥ चार माणस घर खरच घणो, पिता तव कहे तेणी वार ॥ सा ॥ श्रो॥ ७॥ दधिमुख सुत तमे सांनलो, वित्त खरच्युं अमे विवाह ॥ सा ॥ अमे उद्यम हवे नहीं थाये, तुमे करो खर्च नि-IN हि ॥ सा० ॥श्रो ॥ ७॥ दधिमुख कहे कामनी सुणो, मातपितानो अपमान ॥ सा० ॥ घर रहेवा घटतुं नथी, जो होय हश्मामा सान ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ ए॥ दधिमुख शिर सीके धयु, तेह नारी लेश चाली ताम ॥ सा ॥ देश नगर गामे सांचरे, पतिव्रता नारीनो नाम ॥ सा० ॥ श्रोण ॥ १० ॥ जरतार नगति घणी करे, सती Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंक धर्मपरीजाणीने सहु लोक ॥ सा ॥ धण कण दान दीये घj, सुख पाम्यां दोये गयो शोक सा० ॥ श्रोग् ॥ ११॥ नमतां नमतां उजेणी गया, पूतनी शाला मोकार ॥ सा ॥१०॥ ॥ जुथारी घणा जुवटे रमे, तिहां लावी तेह नरतार ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ १२ ॥ सीकुं खुंटे बांधीने गश्, सती हाट शेरी निदा काज ॥ सा ॥ एहवे जुथारीने मुज हुवो, खड्ने हएयो तराज ॥ सा ॥ श्रो० ॥ १३॥ शिर तुटीनूमिए पड्यु, सीकुं बेदाणुं वली ताम ॥ सा ॥ दधिमुख पुण्य प्रगट थयुं, मस्तक लाग्युं धड उगम ॥ सा॥ श्रो ॥ १४ ॥ अन्य कबंध शिरपर तणुं, दधिमुख निपन्यो एह ॥ सा ॥ विप्र कहो केम नवि मिले, मुज शिर मुज तणो देह ॥ सा० ॥ श्रो० ॥ २५ ॥ हा खंडनी ढाल चोथीए, विवेक तणी कही वात ॥ सा ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजयने सुख सात ॥ सा ॥ श्रो० ॥ १६ ॥ . उदा. ब्राह्मण कहे जोगी सुणो, सत्य वचन तुम एह ॥ स्मृति पुराणे अमे सांजत्यु, खोटुं कहीए केम तेह ॥ १॥ खग कहे अपर वली सुणो, रावण लाव्यो हरी सीत॥हनुमंत अंगद मोकल्यो, रामे विस्टाली प्रीत ॥ २॥ वाली पुत्र अंगद नलो, बोल्यो | ॥२०॥ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोटा बोल ॥ रावणे रीसे मारीयो, खड्गे कीधो बे तोल ॥ ३॥ अंगद फाडी दोय फाडीयां, हनुमंते लीधां बेह ॥ वनमां आणी सांधीयां, लाग्यो तेहनो देह ॥ ४ ॥ पुनरपि ते वली जीवीयो, अंगद अपूरव जेह ॥ माहरूं मस्तक मुज धड चड्यु, केम न मले मुज तेह ॥५॥ ढाल पांचमी. चोपाश्नी देशी. अपर कथा ब्राह्मण तुमे सुणो, संबंध कहुं पुराण तुम तणो ॥ दानवपति ते दशरथ नाम, बे नारी तेहने श्रनिराम ॥१॥ पुत्र पाखे ते दुःखीयां थया, ईश्वर नणी ते त्रणे गयां ॥ महादेवनी मांमी नक्ति, आराधे पूजे बहु जुक्ति ॥२॥ महादेव तव तुव्या तेह, पुत्र होशे तुमारे देह ॥ मुज लाम् चमीयो ने एक, लक्षण, जामनी करो विवेक ॥३॥ में वरदान दीधो ले थाज, पुत्र होशे तुमारे काज ॥ घर निज लश् गया लाडु तेह, बे फामी कीधो वली एह ॥४॥ नामनी बेहुने वेंची दीध, नार्याए ते लक्षण कीध ॥ गर्न रह्या बेहुने वली ताम, नव मास वाडा गया ते| काजाम ॥५॥ एके दिवसे ते बेदु जण्या, अरधो अरध अंग तेहज नएयां ॥ जय Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीसंनलाव्यो दशरथ तात, पुत्र एक दोय खंमज जात ॥ ६॥ बापे दीधी श्राझा तेह, |लेश नाखो वनमां एह ॥ माताने तव उपन्यो नेह, जोर करी संघाड्यो देह ॥७॥y ॥११॥ जरासंध परव्यो वली तेह, जोरे बंधाणो तेहज देह ॥ जरासंध ते नामज धर्यु, नारायणाशुं वेरज कयु ॥ ॥ सबल संग्रामे ते फुकार, शरीर मट्युं बे खंम अपार ॥ तेम मुज माथु माहरे देह, एह वातनो नहीं संदेह ॥ ए॥ अपर वली कहुं सांजलो | वात, शास्त्र पुराणे तेह विख्यात ॥ ईश्वर मोटो सबलो देव, पारवती नारीशुं टेव ॥ १० ॥ जमीयाने जोगवतां गयां, सहस वरस देवतानां थयां ॥ सुर सघलाने चिंता थाय, केम करीशुं आपण नाय ॥ ११ ॥ पुत्र उपजशे एहनो जेह, सबल संतापी होशे तेह ॥ देव दानवने करशे ताम, जगत् जगमशे ते महा पाप ॥ १२ ॥ तो आपण हवे करीए एम, नोग दिजोग उपाइए तेम ॥ देव मली विचार ए कीध, गोरी बांधवने आज्ञा दीध ॥ १३॥ विश्वानर तुमे विश्वना देव, सुर नर करे तुमारी सेव ॥ पार्वतीना ना नणी, काज वो सहु देवज तणी ॥ १४ ॥ ईश्वर नोग करो| anam अंतराय, तो सहुने सुख हर्षज थाय ॥ अग्निदेव तेणे मान्यो बोल, उमीया ईश तिहां गयो निटोल ॥ १५ ॥ जश् खोखारो बाहीर जाम, विघन उपन्यु वीर्य खलतां Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ताम ॥ पार्वती उठी तेणी वार जाइ देखी लाजी अपार ॥ १६ ॥ ईश्वरने बहु कोपज चड्यो, लष्टि मुष्टि विश्वानर पढ्यो | साला माटे मार्यो नहीं, मुख धररे वीर्य मूकुं सही ॥ १७ ॥ वीर्य पृथ्वी रेलाइ सदु, ते माटे मुख धररे करूं ॥ तव विश्वानरे मुख ते धर्यु, उदरे वीर्य सघलुं सांचर्युं ॥ १८ ॥ वीर्य बले तव कोढी थयो, अग्निदेव ते दुःखीयो जयो || कृषिपत्नी तव गंगा जश्, स्नान करी यावे ते सही ॥ १७ ॥ नारी कार्तिका तेनो नाम, अनि सगमीय तापे बे ताम ॥ वीर्य काव्युं मुख मांही थुंक, योनि संचायुं मांहीं फुंक ॥ २० ॥ गर्न वाधे हवे नारी तणो, रुषिए जाएयो नहीं आपणो ॥ पेट मांहींथी काढी करी, सर्वण वनमां मूक्यो धरी ॥ २१ ॥ गर्न ता व कटका तेह, एकता मेली कीधो देह ॥ कार्तिकेय दुवो तस नाम, षड्जनमा बीजो जिराम ॥ २२ ॥ षड्मुख नाम कहे ते सदु, षड्मातुर जाणे ते बहु ॥ ब कटका तस देहज मले, तो मुज शिर धडसें नवि मले ॥ २३ ॥ बघा खंडनी पांचमी ढाल, सांजलजो तमे बाल गोपाल ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजयनो वयण सह ॥ २४ ॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१२॥ उहा. अपर कथा तुमे सांजलो, गोरीनंदन गणपत ॥ पार्वती एक अवसरे, मऊन करवा निमित्त ॥१॥ अंग मेल उतारवा, सखी संघाते बेठ॥ अंग जगटणो घणो, पुरुष निपायो तेउ ॥॥ गणेश रूप करी थापीयो, जीवतो कीधो तेह ॥ खड्ग थाप्यो निज हाथमें, समजावे वली जेह ॥३॥ बेसाड्यो ते बारणे, चोकी करवा काज ॥ अवर म.देजे श्राववा, नावा बेठी आज ॥४॥ईश्वर आव्या उतावला, बेगे दीगे तेह ॥ अन्योअन्य पूढे फरी, कोण तुं माहरे गेह ॥५॥ ढाल बही. चोपाश्नी देशी. गणेश बोल्यो तव कोण जे तुं, घरमा पेसण नहीं देखें हुं ॥ तव ते लाग्यो जुड़ा अपार, गणेश ईश्वर के कुकार ॥१॥ तव ते ईश्वर कोपे करी, खडगे माय मस्तक धरी ॥ मी गडे मस्तक ते तणुं, ज्यासी जोजन पोच्यु घणुं ॥२॥ ईश्वर तव आव्या घर मांहीं, पार्वती नाहे जे त्याहीं ॥ केम स्वामि आव्या श्हां ईश, छारपाल मार्यो में रीस ॥३॥ पार्वती बोल्यां जगदीश, एह पाप शुं कीधुं ईश ॥ पुत्र माहरो कम ॥१२॥ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्यो तुमे, नहीं बोवू हवे तुमशुं अमे ॥ ४॥ पुत्र हत्या लागी तुज हाथ, ए अघ-II लाटतुं की, काज ॥ पुत्र हत्यारा घरथी जाय, काला मुखवालो केम थाय ॥५॥ जो जीवंतो करशो एह, तो तुमशुं धरीशुं स्नेह ॥ ईश्वर तव आवी जोये बार, धम दीवं एकलुं तेणी वार ॥ ६॥ खेत्रपालने तव दीधी शीख, जो लावो गणपतिनुं शीश ॥ नाखेत्रपाल जोवे जग माहीं, नवि देखे मस्तक वली कयांहीं ॥ ७॥ गम गम जोयु | ते मंक, नवि दीसे गणपतिनुं तुम ॥ मुआ हस्तीनी आणी सुंढ, चोडी गणेश तणे जे रंग ॥ ७॥ गजवदन हुवो तसु नाम, जीवतो हुवो तेहज ताम ॥ मिथ्याति सहा पूजे लोक, एह वचन साचां के फोक ॥ ए ॥ विप्र सांजलो एहज साच, अमारी। नहीं मानो तुमे वाच ॥ आपणुं वचन आपणने गमे, बाकी सहु ते फोके धमे ॥१॥ शूज अन्य अग्राह्य एम कहे, घृत पक ते सहुने ग्रहे ॥ हिजवर सहु ते कांखा थया, मौन धरीने वलता रह्या ॥१९॥ ब्राह्मण एक बोल्यो वली एम, धूर्त बेहु दीसो बो तेम॥ |तुमे कह्या ते मान्या सहु, एक संदेह ने अमने बहु ॥ १२ ॥ कोठ उपरथी खाधा मुंग, हेवं केम धरायुं रंग ॥ पर खाय ने पर केम ध्राय, एह वात केम घटती थाय |॥ १३ ॥ मनोवेग तव बोल्यो वाण, सांजलो वामव तुमे अजाण ॥ श्ह लोके विप्र Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग ६ - धर्मपरीनाजोजन करे, परलोके पूर्वज तृप्ति धरे ॥ १४ ॥ मातपिता सहु मुवा घणां, चोराशी लाख जोनिए जएयां ॥ काल घणो हुवो ने तेह, न जाणीए अवतरीया केह ॥ १५॥ १५३॥ अर्ध पदना पंदर दीस, संवबरी बमासी प्रीस ॥ ब्राह्मण सगां जमे सहु, ते पामे पूवज वली बहु ॥ १६ ॥ पितर नवांतर पाम्या जेह, विप्र सगां जमतां पामे तेह ॥ तो मुज माथु कोठां खाय, मारुं पेट कहो केम न जराय ॥ १७ ॥ ही ढाल खंम। हा तणी, एहवी वात ते हिजवर सुणी ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजयनी वात एम रहे ॥ १७ ॥ उहा. ब्राह्मण सहु हाथ जोमीया, बोले वचन श्रनाथ ॥ जीत्यो जीत्यो मुखथी वदे, हार्या अमे जगनाथ ॥१॥ तुम साथे अमे बोलतां, नथी पुरवतो कोय ॥ साचा संघाते केम घटे, स्मृति पुराणे होय ॥२॥ वाद जीती वनमां गया, मित्र बेहु आणंद ॥ पवनवेग कहे नाइ सुणो, मिथ्या पुराण कह्यो वृंद ॥३॥ ते में खोटां जाणीयां, जिनवचननो नहीं नेद ॥ तेह कथा कहो निरमली, मिथ्या कथा करो बेद ॥४॥ ॥१३॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ ढाल सातमी श्रांगण वावु एलचीरे, पमवे नागरवेल, धणरा ढोला-ए देशी. मनोवेग तव बोलीयोरे, सांजलो मित्र सुजाण ॥ मतरा लोनी ॥ रावण श्रादे देश कहुंरे, जिन जाषित सुख खाण ॥ म ॥१॥ मानो मानोरे सुगुण कहीयो मानो, माहारी एक अरदास ॥ म ॥ ए आंकणी ॥ मेघवाहन अनुक्रमे हुवारे, लंकापति नरेश ॥ म ॥ संख्या पार न पामीएरे, कहुं शास्त्र लवलेशरे ॥म॥ मा०॥२॥ रतनश्रवा लंका धणीरे, केकै जसी राणी राय ॥ म ॥ रावण पुत्र ते अवतारे, सुर नर सेवे पाय ॥ म ॥ मा० ॥३॥ मय विद्याधर पुत्री जलीरे, मंदोदरी रूपनी खाणी ॥ म ॥ ते आदे रावण परणीयोरे, अढार सहस्र घर राणी ॥म०॥ मा०॥४॥ दय गय रथ सुजट तणोरे, चक्रीनो अरधो मान ॥ म० ॥ प्रतिनारायण आठमोरे, जिन पूजे दीये दान ॥ म० ॥ मा० ॥ ५॥ हार प्रनावे नव मुख होयरे,मुलगुं एकज | देह ॥ म ॥ दशमुख नाम हारे करीरे, लोक मांहीं हुवो तेह ॥ म ॥ मा० ॥६॥y राम नारी सीता हरीरे, राम रावण हुवो संग्राम ॥ म ॥ रावणर्नु दल नांजीयुरे, |राम सुनटे फेड्यो गम ॥ म ॥ मा॥७॥ लदमणे मार्यों लंकापतिरे, नरक चोथी Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१४॥ गयो तेह ॥ म० ॥ अनागत चोवीशीए जिन होशेरे, पंच कल्याणक गेह ॥ म॥ खंग६ मा० ॥ ॥ जैन रामायण मांही कहीरे, विस्तारपूर्वक कथा राम ॥ म० ॥ दधिमुख कथा तिहां जाणजोरे, बीजा अधिकार मांही ताम ॥ म ॥ मा ए॥ ईश्वर लिंग तणी कथारे, वीजे अधिकारे कह्यो नेद ॥ म ॥ जिनमत शिवमत बेहु तणेरे, ते जोश करजो बेद ॥ म० ॥ मा० ॥ १०॥ जरासंधनी उत्पत्ति सुणोरे, संखेपे कहुँरे विचार ॥ म ॥मगध देश राजग्रहीरे, नृप हुवा संख्या न पार ॥ म ॥ मा० ॥ ११॥ हरिवंशे मुनिसुव्रत हुवारे, तेहज अनुक्रमे जाण ॥म वृहदरथ राजा रुयमोरे, श्रीमती राणी गुणखाण ॥ म ॥ मा० ॥ १५ ॥ जरासंध सुत उपन्योरे, अरध चक्री तुमे एह ॥ म ॥ कालिंदी श्रादि करीरे, सोल सहस्र गुण गेह ॥ म ॥ मा०॥ १३॥ कालयवन आदे करीरे, पुत्र हवा महा शर ॥मा अश्व करि रथ सुलट नलारे, त्रिखंड लक्ष्मी नरपूर ॥ म ॥ मा० ॥ १४ ॥ श्राप ॥१२४॥ विद्याधर प्रतिहरिरे, नूचर नवमो जरासंध ॥ म० ॥ कुरुक्षेत्रे संग्राम हुरे, नारायणे बेद्यो कंध ॥ म ॥ मा० ॥ १५ ॥त्रीजी पृथ्वी गया ते दोश्रे, होशे तीर्थकर | देव ॥ म ॥ पवनवेग विचारजोरे, शास्त्र कडं में संखेव ॥ म ॥ मा० ॥ १६ ॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | सातमी ढाल बहा खंमनीरे, सुणजो सहु नर नार ॥ म० ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमने हर्ष अपार ॥ म० ॥ मा० ॥ १७ ॥ उदा. गणेश कर्यो देमेलनो, केम श्रव्यो जीव मांही ॥ सप्त धात केम नीपजे, समजावो मुज यांही ॥ १ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, गणेश संबंध अधिकार ॥ जिनशासन मतमां घणो, सुणजो ते सुविचार ॥ २ ॥ अयोध्या नगरी अनोपम कही, रामचंद्र नामे राय ॥ तेनो हस्ती मद जर्यो, मुनि पुंठे मारण धाय ॥ ३ ॥ समीपे आव्यो जेदवे, मुनि देखी उपसंत ॥ पूरव जव मुनीश्वरे कह्यो, सुणतां उपनी खंत ॥ ४ ॥ जातिस्मरण गज उपन्यो, वैराग पाम्यो अजिराम ॥ मुनि पासे व्रत उंचर्या, द्वादश जिनमत ताम ॥२॥ फास आहार करे निरमलो, फासु जल पीए ताम ॥ लोक मांहीं जस वाप्यो घणो, बेठो रहे एक ठाम ॥ ६ ॥ धर्मथी सामी सहु कर्या, थाप्यो विनायक नाम ॥ संयम पाली निरमलो, गज मरी देवलोक वाम ॥ ७ ॥ ते लोक मांहीं व्यापीयो, गणेश विनायक नाम ॥ विपरीत रूप करी सहु, पूजे राखी धाम ॥ ८ ॥ सिद्धि बुद्धि नामे नारी दो, लख लाज दो पुत्र ॥ मूढ मिथ्याति मानवी, Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीमागे घरनां सूत्र ॥ ए ॥ अढार दोषथी वेगला, वीतराग गुणवंत ॥ तेहने पूज्ये पामीए, सुगति सुख अनंत ॥ १० ॥ पवनवेग तुमे सांजलो, कार्तिकेय वृत्तांत ॥ जिन॥१५॥ वचने जेम नाखीयु, एक मना सुणो शांत ॥ ११ ॥ . ढाल आठमी. सुविवेक विचारी जुर्ग, जुर्म वस्तु स्वनाव-ए देशी. कार्तिकपुर नगर नकुंजी, श्रगनिश्श नामे जे राय ॥ विमलमति ते नामनीजी, उमीया सरखी काय ॥ पवनवेग जाणजो जैन विचार, करजो मिथ्यात परिहार, पवKalनवेग ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ कृतिका पुत्री रूयमीजी, रूपे रंन समान ॥ अष्टानिका INवत याचरीजी, महोत्सव नृत्यज ग्यान ॥ प॥२॥ श्रावक साथे सह घणाजी. राजा गयो वन मांहीं ॥ नवण कीयां जिनवर तणांजी, उपवास अष्टमी त्यांहीं ॥ प० ॥३॥ कार्तिका गंधोदक लेजी, पिता नणी आवी ताम ॥ तात वांदो ए निरमबुंजी, शेष लेजो जिन स्वाम ॥ १०॥॥ शरीर देखी पुत्री तणुंजी, रूपे मोह्योरे राय . C१॥ कामबाणे करी तामीयोजी, नृपचित्त विह्वल थाय॥प ॥५॥राजसजाए श्रावी करीजी, खट् दर्शन तेमी लोक ॥शैव सांख्य बौध पूढीयाजी, जट्ट सन्यासीना थोक ॥१०॥६॥मुज Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंदिर रतन उपज्युंजी, कहेजो केर्नुरे तेह ॥ प्रत्येक पंच दरशनी कहेजी, राजा तj होय एह ॥ ५० ॥ ७॥ मुनि पूठ्या जिन दरशनीजी, कहो जति केहनो स्त्रीरत्न ॥ मुनिवर बोल्या नृप सुणोजी, जैन मारग कह्यां यत्न ॥ प० ॥ ॥ चौद रतन विचार घणोजी, सात चेतन शुन होय ॥ अचेतन सात जाणजोजी, घर उपन्यु स्त्रीरतन जोय ॥ १० ॥ ए॥ वचन सुणी नूप कोपीयोजी, निंद्या तिहां मुनि तेह ॥ देशे न रहे श्रम तणेजी, जाजो सहु जैन बेह ॥ १० ॥ १० ॥ मुनिवर तिहांधी चालीयाजी, दक्षिण देश मोकार ॥ पापी राजा परणीयोजी, पुत्री कीधी घर नार ॥ प० ॥ ११॥ अग्नीश कामांधो थकोजी, पुत्रीशु जोगवे नोग ॥ गर्न रह्यो कृतिका उदरेजी, जनक तणे संजोग ॥ १० ॥ १५ ॥ पूरे मासे सुत जनमीयोजी, कार्तिकेय तेहy नाम ॥ रूपे सहु लोक रंजीयाजी, महोत्सव कीधो श्रनिराम ॥ ५० ॥ १३ ॥ पुत्री जणी एक निरमलीजी, वीरमति नामे सार ॥ रूप सौनागे आगलीजी, कार्तिकेय सम मनोहार ॥ प० ॥ १४ ॥ क्रौच नाम नरपति नलोजी, रोहीम नयरनो राय ॥ वीरमती परणावी तेहनेजी, महोत्सव करी उगाह ॥ प० ॥१५॥ क्रौच परणी निज गामे गयोजी, वीरमतीने लेश ताम ॥ कार्तिकेय जणवा मूकीयोजी, गुरु पासे पढी शास्त्र जाम Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग ६ धर्मपरी०प० ॥ १६ ॥ नीशालीया ते अनेक नणेजी, सहु साथे रमे वली तेह ॥ एक दिवस सुखमी आवीजी, मोशालथी घणी जेह ॥ प० ॥ १७ ॥ लाडु खाजां अति घणांजी, ॥१६॥ | मेवा मीग अपार ॥ वस्त्र आनूषण उपतांजी, पहेयां सघले तेणी वार ॥१०॥१७॥ | सुखडी वेहेंची आप आपणीजी, नीशालीए अनेक ॥ कार्तिकेय ना तुमे लेजी, |मोशालनी जे प्रत्येक ॥ प० ॥ १५ ॥ कार्तिकेय कोमामणोजी, वर्ष चौदनो कुमार ॥ घरे श्रावी वेगे पूबीयुंजी, मुज कहो माय विचार ॥ प० ॥ २० ॥ अमने मोशालनी सुखमीजी, नवि आवे कां माय ॥ अश्रुपात माताए कोजी, मन मांहे पुःख घj M थाय ॥ १० ॥१॥ कृतिका बोले सुत सान्नलोजी, कर्म काणी कहुँ केम ॥ घाट न आवे कहेतां घणुंजी, पूछीश मां वली तेम ॥ प० ॥२॥ सुत बोल्यो माता सुणोजी, तो जमशुं अमे आज ॥ जे, होय तेहबुं कहोजी, मुज आगल डोमी लाज ॥ प० ॥ २३ ॥ माता कहे तुज तणो पिताजी, मुज बाप तेहज होय ॥ अन्याय कीधो राजाए घणोजी, बाप बेहुनो सोय ॥ ५० ॥ २४ ॥ हा खंडनी आठमीजी, ढाल कही सुविशाल ॥ रंगविजयनो शिष्य कहेजी, नेमविजय मंगल माल ॥ प० ॥ २५ ॥ ॥१६॥ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - उदा. कार्तिकेय नंदन कहे, सांजलो मोरी माय ॥ काम निवार्यो कोणे नहीं, एहवो जे अन्याय ॥ १॥ श्रघट मान एणे कीयो, को नहीं हुवो तव धर्म ॥ पापी अन्यायी जीवमा, ते बांधे निज कर्म ॥२॥ मात कहे सुत सांजलो, मुनिवर जे गुरुराय ॥ तेणे घणी परे प्रीव्यो, तोही कीधो अन्याय ॥३॥ ढाल नवमी. वर वाघेलो वामीए उतर्यो-ए देशी. कार्तिकेयरे कहे माता सुणो, किहां ने मुनिवर वली तेहरे ॥ जननी बोलेरे सुतजी सांजलो, जैन मुनिवर हता जेहरे॥साजन सहुकोरे सुणजो एक मना ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ तुज पिताएरे ते निरघाटीया, श्हांथी गया दक्षिण देशरे ॥ जिहां तुज तातनी आण फरे नहीं, लोक सहु जिनधर्म शीशरे ॥ सा ॥२॥ मात कहो ते श्राचार केहवो, जेहनो श्रावो निरमल धर्मरे ॥ राजा अन्यायेरे जेणे वारीयो, दूषण रहित करे ने कमरे ॥ सा ॥३॥ कुमरने मात कहे तुमे सुणो, चोवीश परिग्रहथी ते Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीपूरे ॥ निग्रंथ साचा ते गुरु जाणीए, मोह मद टालण ते कह्या शूररे ॥ सा ॥४॥||खम ६ उघो मुहपत्ति माला कर धरे, तप जप संजमनां ते गेहरे ॥ दोष बेंतालीश टाली ॥१२॥ थाहार करे, अंतराय बत्रीश पाले तेहरे ॥ सा ॥ ५॥ वचन एहवारे सुणी माता तणां, वैराग उपन्यो सुतने अंगरे ॥ दमा करीने तिहांथी नीकट्यो, मुनिवर गुरुने जोवा रंगरे ॥ सा ॥६॥ दक्षिण देश कार्तिकेय गयो, वांद्या जश्ने मुनिना चरणरे ॥ दीदा मागे श्रीगुरुनी कने, संसारसागर स्वामि तरणरे ॥ सा ॥ ७॥ गुरु तव बोल्या व तुमे सांजलो, दीक्षा मारग उक्कर तेहरे॥तुमे बो बालक लघुमतिना धणी, | नवि संचवाए साधुपंथ जेहरे ॥ सा॥॥ अति आग्रह करी संजम लीयो, चारित्र थाचर्यु पांच प्रकाररे ॥ गुरुनी सेवा शास्त्र नणे घणां, राग द्वेष तजीने अहंकाररे । सा ॥णा कृत्तिका नारी पुत्र विजोगथी, भारत ध्याने तजीने देहरे ॥व्यंतर गतिमा जीव ज उपन्यो, सुख विलसे तिहां तेहरे ॥ सा ॥ १० ॥ विहार करंता कार्तिकेय मुनि, रोहिम नगरे पोत्या जामरे ॥ ज्येष्ठ मास अमावास्याने दिने, पारणुं करवाने ते M an तामरे ॥ सा ॥ ११॥ र्यापथिकी नूमिका शोधता, मौनव्रती मुनि अधीशरे ॥ क्रौच राजानी सप्त नूमि तले, सुतो राणी खोले शीशरे ॥ सा॥१२ ॥ नगिनीए नाश Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | तिहां देखीयो, मुनिवर साधुनो रूपरे ॥जाइ जाणीने मोह व्यापीयो, उसीसे मस्तक धरी नूपरे ॥ सा ॥ १३ ॥ वीरमती राणी देठी उतरी, बांधवने कर्यो रे प्रणामरे ॥ आलिंगन देश घणुं नीमीयो, पोहोंचो नाश् श्रापणे धामरे ॥ सा ॥ १४ ॥ क्रौच राजा तिहां तव जागीयो, राणी किहां गइ कहो आजरे ॥ पुष्ट मंत्री तिहां तव एम जणे, जुठ जुलं राणीने महाराजरे ॥ सा ॥ १५ ॥ खमणो वलग्यो तुम राणी नणी, हस्ते करी देखाडे तेहरे ॥क्रौच राजाए कोपी धनुष्य धर्यु, बाणे नेद्यो मुनिवर देहरे सा० ॥१६॥ विषम बाण लाग्युं मुनिने घj, नूमि पडीयो मुनिवर स्वामरे ॥राग केष मोह मान परिहरी, मन धरी जिनवरना गुणग्रामरे ॥ १७ ॥ वीरमती ते देखी दुःख नयो, ना तणो उपन्यो सोगरे ॥ विलाप करे अति घणुं वलवले, धाजो |सहु श्रावक लोकरे ॥ सा० ॥१०॥ बहा खंमनी नवमी ढालमां, सुणजो सहुको बालगोपाखरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एणी परे जणे, नेमविजयने हर्ष उजमाखरेसा ॥१॥ उदा. वीरमति विलाप करे अति, मुख करे हाहाकार ॥ बांधव ए मुज सोहामणो, Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मपरी ॥१२॥ मुनिवर ए व्रतधार ॥१॥ वन नाइ उगे तमे, मुज घर खेजो थाहार ॥ निराधार खंग६ हुँ बेनमी, एक बार दी श्राधार ॥॥ जो वीरा तमे बोलशो, तो दुःख सुख कहुँ| वात ॥ पापी राजाए शुं कर्यु, हणीयो मारो जात ॥३॥ लघु वेशे संयम ग्रह्यो, मूकी माय ने बाप॥राज रिकि सुख परिहरी, खम्यो परिसह ताप ॥॥ मास पारणे पहोत्या मुज घरे, बाणे वींध्यो शुन अंग ॥ वेदना व्यापी हशे घणी, देव कीधो रंगनो नंग॥५॥ ढाल दशमी. उठ कलालणी नर घडो रे-ए देशी. - एम विलपंती कूटे हैयुं हे, शिर फोडे पाडे पोक ॥ हाहाकार ढुवो घणो हे |मलीया नगरना लोक ॥ साजन सांजलो हे, कर्म तणी ए वात ॥ ए आंकणी ॥१॥ महीपति पासे श्रावीयो हे, जाण्यो सहु वृत्तांत ॥ काम कीधो में पामुर्ड ए, दुःख धरेरे एकांत ॥ सा० ॥५॥ पापी मंत्रीए थाज तो हे, कराव्यो वृथा पाप ॥ नरक १०॥ | निदान बंधावीयो हे, मुनि हत्यानो संताप ॥ सा ॥३॥ व्यंतरीए तव जाणीयो हे, पुत्रने कष्ट अपार ॥ वेगे करी थावी तिहां हे, पूरव माय गणधार ॥ सा० ॥ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रूप रच्यं मयूर तणुं हे, उनी कार्तिकेय पास ॥ मूळ पामी मुनिवर पडयो हे, लीयो वृष्टि निवास ॥ सा ॥ ५॥ मयूर चाट्यो सामी लेश्ने हे, वन मांही प्रासाद शीतल जिनवरदेवनो हे, दी। टले विषवाद ॥सा॥६॥तिहां मूक्यो जति निरमलो हे, श्रावक करे बहु सेव ॥ मूळ ग सावधान थ हे, मुनि ध्याये जिनदेव ॥ सा॥ ॥ ७॥ करीय संन्यासी मन चिंतवे हे, अनुपेदा ते वार ॥ पवनवेग तुमे सांजलो हे, जावना संखेप विचार ॥ सा० ॥ ॥ धण कण शरीर श्रथिर ले हे, नहीं थिर कुटुंब परिवार ॥ राज रिक सहु अथिर अडे हे, जेसो वीज ऊबकार ॥ सा ॥५॥ शक सचीवने राखवा हे, समरथ नोही स्वछ ॥ मरण काले प्राणीने जथा हे, सिंह धर्यो मृग वह ॥ सा॥१०॥ चार गति जीव पुःख सहे हे, कहेतां न खहं पार व्य खेत्र नव नावे जम्यो हे, काल ते पंच संसार ॥ सा०॥ ११ ॥ चार गते जीव एकलो हे, साथे नहीं तिहां कोय ॥ फुःख सुख सहे ते एकलो हे, चोराशी लाख जोनि जोय ॥ सा० ॥१२॥ अन्य कलेवर अन्य जीवडो हे, अन्य सह परिवार ॥ जनम जनम ते जुजुया दे, मोह म करशो लगार ॥ सा ॥ १३ ॥ शरीर थडे सात धातुमें हे, मल मुत्र तणो नंमार ॥ रेत ने रुधिरे उपन्युं हे, अशुचि देह मोकार ॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ १२२ ॥ सा० ॥ १४ ॥ मिथ्या मत अविरत कषायना दे, तेहना जेद पार ॥ पन्नर प्रमाद वली जोगना है, कर्माश्रव ए धार ॥ सा० ॥ १५ ॥ समकित सुधे संजम है, सुमति गुपति वर धर्म | परिसर संवर उपजे हे, सुगति मुगति होय शर्म ॥ सा० ॥ १६ ॥ चार ग तिना जीवने है, निर्जरा होये सविपाक ॥ मुनिवर स्वामी तपबले दे, निर्जरा करे विपाक ॥ सा० ॥ १७ ॥ अधो मध्य ऊर्ध्व को दे, त्रण प्रकारे लोक ॥ उंचो राज चौद तो दे, त्रणसें त्रितालां थोक ॥ सा० ॥ १८ ॥ नरनव दुलहो जाणवो दे, डुलदो श्रावक धर्म ॥ रतन त्रय व्रत डुलहो हे, मुगति गमन जिहां शर्म ॥ सा० ॥१॥ दमा मार्दव श्रार्जव गुणे दे, संजम शौच तप त्याग ॥ सत्य निग्रंथ व्रत पालवुं दे, एह धर्म तथा दश जाग ॥ सा० ॥ २० ॥ ढाल दशमी बडा खंगनी दे, सांजलजो सहु कोय ॥ | रंग विजय शिष्य एम कहे हे, नेमविजय सुख होय ॥ सा० ॥ २१ ॥ दा सोरठी. कार्तिकेय मुनि नाम, शुन ध्यान मनमां धरी ॥ श्रातम ध्याये सुख, होय सुगति मुगति जीवे वरी ॥ १ ॥ बेद्यो भेद्यो नवि जाय, तेह शरीर बेदन नेदन सहे ॥ अप्पा ६ ॥ १२५ ॥ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्पे नावजो तेम, जेम पासे मुगति रहे ॥२॥ पाषाण देम घृत दूध, तिल मांही जेम तेल रह्यो॥करमे वींव्यो ए जीव, शरीर मेल जिनजीए कह्यो ॥३॥ ढाल अगीआरमी. मोरा साहेब हो श्री शीतलनाथके विनति सुणो एक मोरडी–ए देशी. - पुरुषाकारे हो ध्या श्रातमा सारके, शरीर मांहे तेज पुतलो ॥ जेमं कोस मांहि हो रहे तरवारके, तेम थातमा श्रति उजलो ॥१॥ सासो सासे हो रुंधी करी ताम के, दशमे पुथारे वली लीजीए ॥ टालीए एम हो संकल्प विकल्प विचारके, मन निनश्चल दृढ कीजीए ॥२॥शुध बुध हो चेतन चिदानंदके, केवलान सरूप ॥शुज चिप हो हुँ वली सिझके, परम जोति सुख कूप ले ॥३॥ एम चिंतवी हो श्रातम ध्यानके, कार्तिकेय स्वामी मन रली ॥ समाधिमरणे हो साधी दुवो कालके, सर्वार्थ सिकि विमन फली ॥॥ तेत्रीश सागर हो जोगवी श्रापके, मध्य लोके नरजव सही। कर्म हणीने हो लही केवलज्ञानके, शीवरमणे वरशे सही ॥ ५॥ देव सहु तिहां हो श्राव्या ततकालके, पूजा महोबव घणो कर्यो ॥ लोक सहुए हो ए श्रापर्यु| तीर्थके, प्रसिझ सामी महिमा विस्तयों ॥६॥ माता व्यंतरी हो तेणे उपाय व्याधके, Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग६ धर्मपरीलोक पामा घणी करे ॥ श्रावे जात्राए हो जे नर नारके, तेदनां रोग संकट हरे ॥ ७॥ मयूरवाहनो हो स्वामी कार्तिकेयके, नाम कही लोक तीर्थ जाये ॥ वीरमती नगि॥१३० ॥ नीधी होये नाबला बीजके, पर्व हर्बु ते दिनथी थाये ॥७॥ श्रीजिनवरदेवे हो कह्या सकल विचारके, कुमार स्वामी कार्तिकेय तणो ॥ पवनवेग तुम हो ए जाणजो सत्यके, अपर ग्रंथ विस्तार घणो ॥ए॥ मिथ्यात्वीनां हो ए वचन असारके, मन मांही थकी ए टालजो ॥ नोला लोकज हो नूला नमे गमारके, जिनवर वचनज पालजो ॥ १०॥ पवनवेगने हो थाणंद नयो तामके, समकितधारी श्रावक थयो । मनोवेग मित्रने हो करी प्रणामके, विमान रची ले निज गामे गयो ॥ ११॥ मनोवेग कहे हो सांजलो मित्रके, श्रावकनो धर्म हूं कई ॥ श्रादि समकित हो सुधं धरे |चित्तके, सात व्यसनथी पूरे रयं ॥ १२ ॥ मूल गुण हो पाले श्राज नेमके, कंदमूल सहु परिहरे ॥ व्रत पाले हो श्रावकनां बारके, सामायिक त्रण काल करे ॥ १३ ॥ तिथि पर्वणी हो पोसो करे शुझके, सचित वस्तु पूरे तजो ॥ रात्रिनोजन हो निवारो ब्रह्मचर्यके, पालो नव नेद शील नजो ॥ १४ ॥ गृह व्यापारे हो टालो पापारंजके, परिग्रह पूरे टालीए ॥ विवाह श्रादे हो अनुमत नवि देयके, उदेस्यो थाहारने ॥१३०॥ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ति निहालीए ॥ १५ ॥ एकादश हो प्रतिमा ए सारके, श्रावकनी शुद्धि कही ॥ सांजलीने हो हरख्यो कुमारके, पवनवेगे मन दृढ ग्रही ॥ १६ ॥ पवनवेग हो पवित्र व्रतधारके, जैनधर्म लीधो खरो ॥ दोय मित्रज हो आनंद दुवो सारके, जव्य जीव धर्म स्नेह धरो ॥ १७ ॥ व्रत पालीने हो श्रायुषा ांतके, बेहु मित्र स्वर्गे गया । पाम्या घणी हो देवीनी रिद्धके, देवीशुं जोग सुखीया यया ॥ १८ ॥ श्रवतरीने हो पामशे मनुष्यनो जन्मके, चारित्र पाली जिन तयुं ॥ ष्ट करमनो हो वली करीने घातके, मोद लक्ष्मी पामशे घणुं ॥ १५ ॥ हीर विजय सूरि हो तपगछ मंमाणके, शुज विजय शिष्य जाणीए ॥ जावविजय हो जगमें जयवंतके, सिद्धि विजय परमाणीए ॥ २० ॥ रूपवि जय हो रूपर्वत कहेवायके, कृष्णविजय कर जोमीने ॥ रंगविजयने हो प्रणमुं निशदीसके, अंग बड़े अंग मोमीने ॥ २१ ॥ खंग बडो हो पूरो थयो आजके, ढाल अग्यारे सुणो सही ॥ नेमविजये हो उलट मन आणके, वात छानोपममें कही ॥२२॥ इति धर्मपरीक्षा से षष्ठोऽधिकारः संपूर्णः ॥ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ १३१ ॥ खं मो. उदा. एकदा पाटलीपुर जणी, विहार करंता एम ॥ श्राव्या श्रार्यसुहस्ती सूरि, परिवारे करी तेम ॥ १ ॥ वनपालक दे वधामणी, संप्रति राजा जणी जाय । सघलो साथ लेइ करी, वंद श्राव्यो राय ॥ २ ॥ द्विज श्राव्या सघला मली, सुणवाने उप| देश || गुरु कहे मूल बे धर्मनो, समकित मर्म विशेष ॥ ३ ॥ समकित विण शिवपद नहीं, सांजलजो सहु कोय ॥ श्रण सहित क्रिया लप, बहु फलदायक होय ॥ ४ ॥ जिनवरदेव सुसाधु गुरु, केवली जाषित धर्म ॥ सदहीए सुधां सहित, ए सम कितनो मर्म ॥ ८ ॥ तेणे कारण नवियण तुमे, वारी विकथा वात ॥ एक मना अवधारजो, सम कितनां अवदात ॥ ६ ॥ ढाल पहेली. समुद्रपाल मुनिबर जयो-ए देशी. जंबुद्वीप जरत क्षेत्रमां, एसो मगध देश मनोहार ॥ समे ही ॥ राजग्रही नयरी राजा खंग 3 ॥ १३१ ॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिहां, एतो श्रेणिक चेला नार ॥ सनेही ॥ १ ॥ संप्रति राजा सांजलो, समकित | कथा सुजाण सनेही ॥ ए श्रकणी ॥ बुद्धि निधान वडो पुत्र बे, ए तो नामे अजयकुमार ॥ सनेदी ॥ सर्व कला कही पुरुषनी, ए तो राजधुरंधर धार ॥ स० सं० ॥ २ ॥ श्रईदास शेठ तिहां वसे, जेहने घर वित्त जरपूर ॥ स० ॥ चित्त उदार जिन चरचीने, दुःखी जन करे दुःख दूर ॥ स० सं० ॥ ३ ॥ आठ रमणीशुं सुख जोगवे, पाले ते नव वाडे शील ॥ स० ॥ समकित सुधुं सहहे, धर्म करतो न करे ढील ॥ स० सं० ॥ ४ ॥ गिरि वैजारे एकदा, समोसर्या श्रीमहावीर ॥ स० ॥ वनपालके वधामणी, पासे गौतमस्वामी वजीर ॥ स० सं० ॥ ५ ॥ सांजली संतोष्यो शुभ परे, पृथ्वीपतिए परजात ॥ स० ॥ महा मोछव करी वांदवा, श्राव्यो आणंद अंग न मात ॥स० सं०॥६॥ पांच निगम साचवी, जगवंत उपर धरी जाव ॥ स० ॥ वांदी बेठा विधिपूर्वके, कहे जवजल तारण नाव ॥ स० सं० ॥ ७ ॥ पूजानाव आणे चित्तमें, ए तो चोथ तणो फल जोय ॥ स० ॥ पूजोपगरण हाथे ग्रहे, वह तो फल होय ॥ स० सं० ॥ ८ ॥ गमणागमणे फल श्रमे, पासे श्राव्यो दशम फल जाए ॥ स० ॥ डुवालस फल जिन परवेशे, प्रदक्षिणे पक्ष फल आप ॥ स० सं० ॥ ए ॥ मास फल जिन Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग ७ धर्मपरीबिंब देखीएं, पमजणे शत उपवास ॥ स० ॥ सहस्र फल विलेपने कह्यो, फुलमा- लाए लाख फल तास ॥ स० सं० ॥ १० ॥ अनंत फल गीत नृत्यथी, एहवां फल ॥१३॥ सुणी शेठे तास ॥ स ॥ नीम धार्यो त्रण कालनो, जिनपूजा विना उपवास K स० सं० ॥ ११ ॥ श्राव्यो उबव एहवे, कौमुदी कौतिककार ॥ स० ॥ सुंदर वेश सजी सवे, नगर बहार थावे नर नार ॥ स० सं० ॥ १२ ॥ खेलो हसो मन खांतशें, हुकम करे राजान ॥ स० ॥ कार्तिक पुनेमने दिने, गाउँ वजाउँ तान ॥ स० सं० ॥ ॥ १३ ॥ बार वरसने अंतरे, पमहो वजामे एम ॥ स ॥ अर्हदास शेठ मन चिंतवे, मुज व्रत रदेशे हवे केम ॥ स सं० ॥ १४ ॥ उडुं मनमां बालोचीने, आव्यो शेयर नृपने पासे ॥ स ॥ मोती बागल मूकीने, उनो अरज करे उल्लासे ॥ स० सं० ॥ ॥ १५ ॥ में लीधुं ने व्रत नेम जे, ते तुमे जाणो बो वाम ॥ स ॥ आज श्रादेश हुवो एसो, केवु कर हवे काम ॥ स० सं० ॥ १६ ॥ धन देश धन धन कही, ए तो घणुं प्रशंसे राज ॥ स० ॥ जिनधरमी जयवंत तुं, करो जश् घरनां काज ॥ स सं० ॥१७॥चोकी मेली चिहं दसे, ए तो सुजट रह्या सावधान ॥स०॥ रात |पमी राजा कहे, ए तो सांजल तुं परधान ॥ स० सं० ॥ १७ ॥ पहेली ढाल खंग ॥१३ ॥ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सातमे, सांजलजो सहु नर नार ॥ स० ॥ रंगविजय कविराजनो, नेमविजय जयकार ॥ सा सं० ॥ १॥ उहा. चालो जोवा जाइए, बोले श्रेणिक राय ॥ अजयकुमार वलतुं कहे, नावे मारे दाय ॥१॥ नारी जाति मली तिहां, पुरुष नहीं ले बेक ॥ श्रापण केम जश्ए तिहां, मनमा धरो विवेक ॥२॥ इति पांच जीती जीके, ते विनयी कहेवाय ॥ गुणवंत कहीए ते नरा, सहु जनमां पूजाय ॥ ३॥ राजा कहे परधानने, हुं बुं इंज समान ॥ लोको शुं करशे मने, बलवंत ढुं. राजान ॥४॥प्रधान वलतुं एम कहे, अजिमान जान कीजे फोक ॥ परजा थकी सुख पामीए, कुःख न दीजे लोक ॥५॥ वली नर पति एम उचरे, घणे न सीजे काज़ ॥ सूरज जग्यो एकलो, तारा जाये जाज ॥६॥ प्रधान कहे नरपति तमे, बहुशुं न करो वेर ॥ घणां मली कल्याण करे, घणांधी उपजे फेर ॥ ॥ ते उपरे कथा कहुँ, सुजोधन नृपनी वात ॥ बातो मन शीतल जाकरे, वात करे उतपात ॥७॥ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ १३३ ॥ ढाल बीजी. कोया कामनी कहे चांदला, चांदा तुं बे परउपगारीरे - ए देशी. हस्ती नागपुर वर जलो, राजा सुजोधन तिहां रायरे ॥ मंत्री पुरुषोत्तम तेहने, राजा पुरोहित कापिल कहेवायरे ॥ १ ॥ जमदं नामे कोटवाल बे, राजा बेठा सजा मोकाररे ॥ दूत यावी एक एम कहे, राजा अरिदल श्राव्यं अपाररे ॥ २ ॥ नूतनुं वयण सुणी एशुं, राजा चकुटी चढावी जालरे || घाउँ निसाणे घमकीया, राजा कोप्यो रिपुनो कालरे ॥ ३ ॥ दय गय रथ पायक सजी, राजा राये प्रयाणज कीधरे ॥ राज नगरनी रक्षा करे, राजा जमदंमने जलामण दीधरे ॥ ४ ॥ लश्कर लेइ अरि उपरे, राजा बेहु दल फुके अपाररे ॥ दिवस घणा तिहां लागीया, राजा सांजलो वात विचाररे ॥ ५ ॥ जमदंडे जस उपराजीर्ज, राजा रुमी परे प्रजा राखेरे ॥ राजकुंवर लोक वश थया, राजा यमदंड वयण जे नाखेरे ॥ ६ ॥ श्ररि जीती नृप आवीउं, राजा सनमुख सहु लोक जायरे ॥ राजा पूढे कुशल सहु, राजा कहे यमदंग पसायरे ॥ ७ ॥ विलंब करी पूढे वली, राजा तुमने वे समाधिरे ॥ यमदंमना परसादथी, राजा कशी नयी समाधिरे ॥ ८ ॥ चिंतवे नूपति चित्तमें, राजा राज्य खंग ॥ १३३ ॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखे जे जायरे ॥ दूध बिलामी राखवा, राजा पडे ते पस्तायरे ॥ए ॥ कूड राखी मनमां घणो, राजा मौन करे नूपालरे ॥ इंगित श्राकारे उलखे, राजा जाणे मनमें कोटवालरे ॥ १० ॥ मंत्री पुरोहित नूपति, राजा त्रणे मली एक वायरे ॥ यमदंमने यमघर जणी, राजा TI, राजा मूकण विचार करायरे ॥११॥ देखो घर-IG |जन दुरमति, राजा पर जश देख्यो न सुहायरे ॥ राजा परधान पुरोहित मली, राजा कुकरम एह कमायरे ॥ १५ ॥ खजानो निज खोसवा, राजा मध्य रात्रे पेगे तेहरे ॥ कूम कपट करे घणां, राजा अंते पडी मुख खेहरे ॥ १३ ॥ मुखा जनोश पादुका, राजा मुखे मूके लेश खात्ररे ॥ धन काढे ते धसमसी, राजा काम करे एह कुपात्ररे ॥ १४॥ खात्र मुखे विसरी गया, राजा पादुका मुना जनोरे ॥ प्रातः समे यमदंगने, राजा तेडीने नाखे सोरे ॥ १५ ॥रे निर्लज तुं नगरने, राजा राखे । रुडी रीतरे ॥ श्राज भंडार फाडी गया, राजा तुं सुश् रह्यो निचिंतरे ॥ १६ ॥ वस्तु सहित जो चोरने, राजा नहीं लावे मादरी पासरे ॥ चोर तणो दंग तुजने, राजा नाथाशे सही एम विमासरे ॥ १७ ॥ तुरत गयो मुख खात्रने, राजा पाउकादिक पड्या | दीरे ॥ पाम्या चोर ते पापीया, राजा मन माहीं हरख पश्चरे ॥ १७॥ कोटवाल Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीचित्त चिंतके, राजा जुर्ड राय एम करतरे। तो कहीए केहने जइ, राजा सुणजो सर्व जन जखम संतरे ॥ १५ ॥ राजा आगल श्रावीने, राजा चोर न साध्यो खामरे । कोपे करी ॥१३॥ राय एम कहे, राजा एहने मारो तस ममरे ॥ २० ॥ मसी महाजन विनवे, राजा अवध दीजे दिन सातरे ॥ चोर वस्तु आणे नहीं, राजा मनमानी करजो वातरे॥१॥ कष्टे भूपे कयु कयु, राजा परजानु राख्यु मन्नरे ॥ यमदंड सहु धागल कहे, राजा सुणजो एक वचनरे ॥ २५ ॥ राजानुं मन एहवं, राजा कहोने हवे कीजे केमरे ॥ महाजन कहे बीजो रखे, राजा न्यायीने थाशे खेमरे ॥ २३ ॥ परमेश्वर पद न्यायनो, राजा करशे सही जाणो साचरे ॥ ढाल बीजी खंग सातमे, राजा नेमविजयनी वाचरे ॥२४॥ उदा. । शठपणे सघले फरे, चोर गवेषण काज ॥ पहेले दिवस सन्ना गयो, तव पूढे महा-| १३४॥ राज ॥१॥ चोर न लाव्यो चोरटा, जमदंम कहे नरनाथ ॥गम गम में जोश्यो, चोर न श्राव्यो हाथ ॥ २॥ एवमी वार किहां रह्यो, कहे कोटवाल ते वार ॥ कथा Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक कहेतो हतो, सांजलतां थर वार ॥३॥ जेणे मरण तुज विसर्यु, ते कहे मुजने वात ॥ उत्पातकी बुझे करी, कथा कदेशे सात ॥४॥ ढाल त्रीजी. अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी-ए देशी. __ कहे कथा यमदंम युक्तियुं, सांजल राय सुजोधरे ॥ मन मांही जाणे यमदंग जो वली, पामे किमही प्रतिबोधरे ॥ कहे कथा ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ वन मांही एक मोटो सरोवर, सजल कमल विस्ताररे ॥ तेहनी पाले सरलो अति उंचो, तरुवर श्रले उदाररे ॥ क० ॥॥ हंस घणा रहे जे तरु उपरे, व्याध तणो नहीं लागरे ॥ वेले अंकुर तस मूले देखी, वमो हंस कहे महानागरे ॥ क० ॥३॥ चंचुपुटे करी अंकुर त्रोमो, तो तुमने सुख थायरे ॥ वधती वधती एहज वेखना, थाशे तुम पुःखदायरे ॥ ॥॥ तरुना हंस हस्या सवि तेहने, बीकण मोटो तुं वृद्धरे॥ एम सांजली मौन कर्यु तेणे, पामशे थापणुं की, रे ॥ कम् ॥५॥ काले वधी ते सबली वेखमी, जश लागी तरु शीशरे ॥ ते व्याध चडी ते श्रवलंबीने, नाख्योपास जगीशरे॥क०॥६॥ चुप करीने सांजे हंस संघला, पासे पीथा आयरे ॥ श्राक्रंद करतारे पूड़े वृक्षने, Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१३॥ बुटण तणो उपायरे ॥ क० ॥७॥ जोवन मद मतवाला मुंरख जे, नवि मान्युं मुज वयणरे ॥ तेह तणां फल ए प्रत्यक्ष, देखो श्रापणे, नयणरे ॥ क० ॥ ॥ श्रण-IN जाणे अथवा परमादे, कारज विणतुं संजालरे ॥ पडे प्रयास होये विफल सघलो, जल गये बांधी पालरे ॥ क० ॥ ए ॥ दीन वचने बोले दादाजी, तुमे बो बुद्धिनिधानरे ॥ दया करी निज बालक उपरे, दीजे वंडित दानरे ॥ क० ॥ १० ॥ प्राण रहित सरीखा थ रहेजो, सघले मानी शीखरे ॥ परमाते देखी ते पापीयो, चिंते नांगी नीखरे ॥ क० ॥ ११॥ हंस सकलने हेग नाखीया, उड्या ते समकालरे ॥ मान्युं वचन वमानुं तेमणे, पाम्या सुख विशालरे ॥ १५ ॥ गाथा-दीहकालंठीया जब, पायवे निरुवदवे। मुला उठीयावती, जायं सरणं उजयं ॥१॥ __गाथा एह कही वडे हंसे, समजो राय मयालरे ॥ कथा पहेली संपूरण ए कही, समजो श्रोता दयालरे ॥ क० ॥ १३ ॥ सातमा खंड तणी ढाल त्रीजीए, समजाव्यो राय सुजाणरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एम कहे, नेमविजय परमाणरे क० ॥ १५ ॥ ॥१३५॥ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदा. प्रिय पूज्य नहीं, डुराग्रहवंत नरिंद ॥ मगसेलीयो जींजे नहीं, वरसे पुष्कर वृंद ॥ १ ॥ बीजो दिन श्राव्यो वली, पूढे तेम महीराय ॥ कथा एक कदेतो हतो, ते | मुज श्रावी दाय ॥ २ ॥ कोइक नगर कुंजार एक, खाण खणी मन खंत ॥ नाजन निपजावी जलां, वेची थयो धनवंत ॥ ३ ॥ जुवन कराव्युं अति जलुं पुत्र विवाहज कीध ॥ जाचक जन संतोषीया, नगर थयो प्रसिद्ध ॥ ४ ॥ माटी खणवा एक दिन, गयो खाप मोकार ॥ तड तुटी उपर पमी, गाथा कड़े कुंजार ॥ ५ ॥ गाया - जेण निखं बलिंदमि । जेण पोसेमीनाय ॥ ते मे पठिया जगा । जायं सरणं उत्जयं ॥ १ ॥ कथा कही नि घर गयो, समज्यो नहीं राजान ॥ श्रीजे दिन कथा कहे, ते सुणजो सावधान ॥ ६॥ ढाल चोथी. बंगालो राग. देश पांचाल कांपिलपुर सार, सुधरमा राजा सिरदार | सुखो वारता ॥ जैन धरम Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ १३६ ॥ उपरे तसु राग, मंत्री जयदेव बे चार्वाक ॥ सु०॥ १ ॥ शत्रु तणो पराजव जाण, चाल्यो नरपति निग्रह जाण ॥ सु० ॥ जीती नगरमां श्रावे जाम, पोल वडी पमी आगल ताम ॥ | सु० ॥ २ ॥ श्रपशुकन जाणी निरधार, बहार रह्यो राजा तेणी वार ॥ सु० ॥ उतावली कीधी ते पोल, पेसे वीजे दिन करत कलोल ॥ सु० ॥ ३ ॥ पमी वली तिमहीज ते पोल, मंत्री करावी देश बहु मोल ॥सु०॥ त्रीजे दिने पेसे जब नूप, पुनरपि थयो तेह सरूप ॥ सु०॥४॥ मंत्री कहे राजन श्रवधार, कोइक सुर कोप्यो सुविचार ॥सु०॥ निज हाथे माणस एक मार, तेहने रुधिरे जो दीजे धार ॥ सु० ॥ ५ ॥ तो निश्चय ए याये स्वाम, छावर पूजा बलि नावे काम ॥ सु०॥ भूप जणे हिंसा जिहां होय, तेह नगरशुं काम न कोय ॥ सु० ॥ ६ ॥ जे सुवरणे तुटे कान, पहेरे तेने कोण अजाण ॥ सु० ॥ जिहां हुं तिहां नगर विशाल, कोण करे एड्वो जंजाल || सु० ॥ ७ ॥ निश्चय राजानो ए जाए, मंत्री महाजनशुं करे वाण ॥ सु०॥ राजा नवि माने ए वात, निज नगर केम छोड्यो जात ॥ सु०॥ ८ ॥ सदु मली विनवी राय, श्रमे करशुं एह उपाय ॥ सु०॥ पुण्य तणो जेम बडो विनाग, पामे नरपति पाप विभाग ॥ सु० ॥ ॥ पाप त फल श्रमने देव, तमे पुण्यवंत प्रभु नित्यमेव ॥ कंचन पुरुष कराव्यो एक, अलंकर्यो तेने सुविवेक ॥ सु० खंग ॥ १३६ ॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ॥ १० ॥ रथ श्रारूढ करी नर तेय, जाखे पुत्र थापे सो लेय ॥ सु० ॥ वरदत्त नामे ब्राह्मण रंक, रुद्रदत्ताशुं कहे निःशंक ॥ सु० ॥ ११ ॥ सातमो रुद्रदत्त देइने दान, सोनुं लीजे जेम वाधे वान ॥ सु० ॥ एम थालोच करी निज बाल, दीधो कनक लीधो ततकाल ॥ सु० ॥ १२ ॥ चिंते रुद्रदत्त मन मोजार, श्रहो स्वारथी मीठो संसार ॥ सु० ॥ श्राव्यो कुंवर राजाने पास, इस्यो कुंवर पूबे नृप तास ॥ सु० ॥ १३ ॥ बच्चा मरणथी नहीं तुज बीह, कारण हसवानुं कहे सीह ॥ सु० ॥ माता मारे सुतने जाम, पिता कने पुत्र जाये ताम ॥ सु० ॥ १४ ॥ मात पिता पीड्यो नृप पास, भूप पीड्यो महाजन श्रावास ॥ सु० ॥ जो माता हाथे विष देय, तात गले बरी वाहेय ॥ सु० ॥ १५ ॥ श्लोक - माता यदि विषं दद्यात् । पिता विक्रयते सुतम् ॥ राजा हरति सर्वस्वं । का तंत्र प्रतिवेदना ॥ १॥ नरपति प्रेरे तेने वली, मारण महाजन धन दे मली ॥ सु० ॥ तो कहो केहवो हवे शोग, जुठे करम तो कोण जोग ॥ सु० ॥ १६ ॥ पोल नगरशुं नहीं मुज काज, करुणासागर कहे महाराज ॥ सु० ॥ धराधवनुं धीरज देख, नयर देवी तुठी सुवि Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरी शेष ॥ सु० ॥१७॥ कीधी फूल तणी तिहां वृष्टि, धरापतिने थइ सुख सृष्टि ॥ सु०॥ सातमा खमनी चोथी ढाल, नेमविजय कहे रंग रसाल ॥ सु ॥ १७ ॥ ॥१३॥ उदा. श्रारक्षक वली श्रावी, चोथे दिवस अकाल ॥ रे नवि लाव्यो चोरने, एम पूजे नरपाल ॥१॥ मारग मांहीं श्रावतां, आज थपूरव नाथ ॥ कथा एक में सांजली, सह सांजलजो साथ ॥२॥ ढाल पांचमी. रे जाया तुज विण घडीय न जाय-ए देशी. वन मांहीं एक हरणलीजी, निज बालकने संग ॥ हरी चरे निकरण तणांजी, जल पीए मनरंग ॥ सुजोघन सांजलजो मुज वात, मत करजो व्याघात॥सुजोधन Kलए श्रांकणी ॥१॥ वनने पासे ढंकडंजी, नयर वसे मनोहार ॥ नयर तणा राजाननेजी, बहोला बाल कुमार ॥ सु॥२॥ आहेडे वन एकदाजी, जश्ने मांड्यो जाल ॥ बीजा मृग नासी गयाजी, पास पड्यो एक बाल ॥सु०॥३॥कोश्क नृपना कुंवरनेजी, थाणीने ते दीध ॥ बीजाने रमवा नवि दीएजी, तेणे सघले रढ लीध ॥ सु० ॥४॥ ॥१३॥ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारधी तेमी पूडीयुंजी, कुरंग घणां ने केथ ॥ वन तेणे तेह बतावीयुंजी, चाख्यो राजा तेथ ॥ सु॥५॥ व्याध वेष राये परीयोजी, पारधीनो परिवार ॥ पीडे मृगने पापीयोजी, व्याप्यो मोह अंधकार ॥ सु० ॥६॥ खणी अजामी खांतशुंजी, फोमी सरोवर पाल ॥ बंधन सघले मांगीनेजी, काल्यां मृगनां बाल ॥ सु० ॥७॥ पारधीने परशंसतोजी, हमहड नूप हसंत ॥ कोश्क पंमित देखीनेजी, गाथा एम नणंत ॥ सु०॥6॥ गाथा-सबदिसंजहिं सलीलं । सवारणं च कुवसंथन्नं ॥ . राया य सर्यवाहो । तमियाणं कर्ज वासो ॥१॥ मूरख नृप समज्यो नहींजी, बुद्धि बमी संसार ॥ धन पाम ते सोहेबुंजी, समजण दोहिली नर नार ॥सु॥ए॥ पूढे वली दिन पांचमेजी, तिणहीज परे नूपाल ॥ श्राज कथा में सांजलीजी, कहे वलतुं कोटवाल ॥ सु० ॥ १० ॥ देश नेपाल पाटलीहै पुरेजी, वस्तुपाल महीपाल ॥ कवित कला शुकि लहेजी, जाणे बालगोपाल ॥ सु N॥ ११॥ जारतीनूषण तेदनोजी, मंत्रीश्वर कहेवाय ॥ राय कवित तेणे फुःखीयोजी, बेग महा कविराय ॥ सु० ॥१२॥रीसे नूपति धमहड्योजी, मंत्री बंधाव्यो ताम || Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१३॥ गंगा मांही नखावीयोजी, वहेतो जाये जाम ॥ सु० ॥ १३॥ पुण्य जोगे थल पामी- खम ७ नेजी, व्ये विश्राम जे वार ॥ अकस्मात् पुर श्रावीयोजी, कहेवे करी पोकार॥सु०॥१४॥ यतः-जेण बीयावरोहन्ति । जेण सिच्चंति पायवा ॥ तस्स मजे मरिस्सांमि । जायं सरणं उनयं ॥१॥ _शीतल जल गुण ताहरोजी, निरमल डे तुज देह ॥ अशुचि शुचि संगत हरेजी, थाये नहीं संदेह ॥ सु० ॥ १५ ॥ ताहरा गुण केता कटुंजी, तुं जीवन आधार ॥ नीच पंथ तुं श्रादरेजी, तो कोण तारणहार ॥ सु० ॥१६॥ बाना चर मूक्या हताजी, सांजव्युं तेणे सर्व ॥ राजाने श्रावी कहेजी, गिरुया न करे गर्व ॥ सु० ॥१७॥ निंदा करतो आपणीजी, कोमल करी प्रणाम ॥ जलथी तुरत कढावीनेजी, थाप्यो पहेले गम ॥ सु० ॥१॥ वात सुणावी एहवीजी, गयो जमदंम निज गेह ॥ सातमा खंमनी पांचमीजी, ढाल कही नेमे एह ॥ सु० ॥१॥ उदा. ॥१३ ॥ जव आव्यो तव पूजीयो, के दिन नूपाल ॥ तस्कर खवर नवि करे, दीसे वमो वाचाल॥१॥ सूनां मंदिर शोधीयां, वेश्या तणां निवास ॥ जुथारी घर जोश्यां, पग | Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवि पामुं तास ॥ २ ॥ सरस कथा में सांजली, लाग्यो तेणे मन्न ॥ प्रभु पासे मुज आवतां, अधिको आव्यो दन्न ॥ ३ ॥ ढाल बडी. में तोजी खणावी वावडी - ए देशी. या कथा में सांजली, सुणजो सहु सावधानरे; राज ॥ गजपुर नयर कुरु देशमां, नर कुबेर नयर समानरे ॥ रा०आ० ए ० ॥ १ ॥ राज करे तिहां रंगशुं, नामे सुन | नरिंदरे ॥ रा० ॥ वरुवमा राणा राजीया, वांदे चरण अरिवृंदरे ॥ रा० आ० ॥ २ ॥ परितापे रवि सारिखो, कोइ न खंडे आपरे ॥ रा० ॥ शीषे फुल जेम सहु धरे, दिन दिन वधते वानरे ॥ रा० आ० ॥३॥ क्रीडा वानर तेहना, निरजय नगर मंतरे ॥ रा० ॥ उपद्रव अति घणो करे, नवि कोइ वरजंतरे ॥ रा० आ० ॥ ४ ॥ विविध जातिनां वृक्ष तिहां, वेल अनेक प्रकाररे ॥रा० ॥ पान फुल फले नर्यु, उद्यान बे सुखकाररे ॥ रा० ॥ आ० ॥ ५ ॥ वनथी यावी वांदरा, ताकी पी थया मत्तवालरे ॥ रा०॥ रक्षके वार्या नवि रहे, तोडे तरुवर मालरे || रा० आ० ॥ ६ ॥ वनपालक घ्यावी कहे, विनतमी छाव - धारोरे ॥ रा० ॥ बाग विणासे वांदरा, वनचर वेगे वारोरे ॥ रा० ० ॥ ७ ॥ क्रीमा Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१३॥ कपि राये मूकीया, तेहने जीतण काजेरे ॥ २ ॥ जश् मलीया निज जातिशु, वृक्ष खंग विशेष नांजेरे ॥ रा० श्रा०॥ ॥ असमंजस देखी एशु, एम चिंते रखवालरे ॥रा०॥ गाथा एक तिहां नणी, सुणो ते कहुं प्रजापालरे ॥ रा था ॥ ए॥ आमरष्यया जथ्थ मकमा । सुरारष्यया मुंमा ॥ अजारस्याविजया जथ । मूल विणलंतु कजं ॥१॥ अपूरव वात संजलावीने, कही यमदंम गयो घेररे ॥रा॥श्रणसमजु समजे नहीं, तेहनी शी करवी पेररे ॥राण्या॥१॥ सातमे दिन सविशेषथी, मोडो आव्यो मांडलारे ॥ रा॥ज्रकुटी नाले चमावीने, जमक्यो नूत नराडरे ॥रा आ० ॥ ११॥ रे निर्लज निरलकणा, सांजल माहरी वातरे ॥ रा॥पारिपंथक पाम्या विना, केम बूटीश तरजातरे ॥ राम् आ० ॥ १२ ॥ त्रिक चाचर ने चोवटा, धूरत लंपटनां गमरे ॥ वन गहवर में जोश्यां, चोर न लाध्यो स्वामरे ॥ रा० श्रा० ॥ १३ ॥ पासे तुमारे श्रावतां, सुण्यो में एक विरतंतरे ॥रा०॥ कहुं हुं ते तुमने कथा, मन धरजो मतिवंतरे ॥YInsum रा० श्रा० ॥ १४ ॥ देश सकलमां दीपतो, मोटो मालव देशरे॥ रा॥ नोणी नगरी नली, जितशत्रु नामे नरेशरे ॥ रा० आ० ॥ १५ ॥ गढ मठ मंदिर गोरमी, नदी Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्वाण अनुपरे ॥ रा० ॥ शिव मंदिर जिन देहरां, सरगपुरी सम रूपरे ॥ रा० आ० ॥ १६ ॥ देवदत्त नामे कापडी, तीरथ करे सुविवेकरे ॥रा० ॥ देश नगर बहोला नमी, चरिज देखी अनेकरे ॥ रा० ॥ ० ० ॥ १७ ॥ जरा पहोती जाणीने, उझेणी धिर वासरे ॥ ० ॥ असत तीरथ एणे कर्या, सेवे बहु जन तासरे ॥ रा०या० ॥ १८ ॥ आव्यो पर्व हवे एकदा, पाम्यो सरस आहाररे ॥ रा० ॥ लालचपणे लीधो घणो, निशि थयो उदर विकाररे ॥ रा० आ० ॥ १७ ॥ जीरण तने जरे नहीं, जारी सबलुं अन्नरे ॥ रा० ॥ मंदानल जेम मोटके, इंधणे शमे अगनरे ॥ रा० आ० ॥ २७ ॥ उपचार कीधा श्रति घणा, नवि उपशमी रोगरे ॥ रा० ॥ गाथा एक कहे कापमी, सांजलजो सहु लोगरे ॥ ० ० ॥ २१ ॥ गाथा - जया जीवंति विश्वानि, जया तुष्यन्ति देवता । तयाहं मारितो लोका, जातं सरतोजयं ॥ १ ॥ एम नृपति प्रतिबोधवा, कही कथा करी बुद्धरे ॥ रा० ॥ समस्या मांहीं सम ज्यो नहीं, मोटो राजा मूढरे ॥ रा० था० ॥ २२ ॥ सातमा खंगनी ए कही, ढाल Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंग ७ ॥१४॥ बहीए श्राव्यो श्रावासरे ॥ रा०॥रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजयनी पूरवा था- शरे ॥ राण श्रा० ॥१३॥ उठा. श्राव्यो वासर थाम्मे, यमदं सना मोकार ॥ तेमज नूप पूज्यो तुरत, तस्कर तणो विचार ॥१॥ देव न लाध्यो एम सुणी, नरपति कीधो रोष ॥ परजाने कहे सांजलो, मारो नहीं कांश दोष ॥२॥ कथा कही मुज वंचीयो, सात दिवस पर्यंत ॥ दंड चोरनो देश्ने, एहनो करशं अंत ॥३॥ कहे माजन यमदंमने, चोर तणुं कोइ चिह्न ॥ देख्यु होय तो दाखवो, मत करजो नय मन्न ॥४॥ ढाल सातमी. बांगरीयानी बारे गरवडो-ए देशी. वयण सुणी महाजन तणुंरे, एम बोले यमदंडरे ॥ परज सुणो ॥ अहिनाणी लाथाएया पबीरे, श्यो करशो तस दंगरे॥१०॥ १॥ राजसुतादिक सहु कहेरे, जो होशे नरराजरे ॥ ५० ॥ चोर तणो दंड एहनेरे, करशुं मूकी लाजरे ॥ प०॥ २॥ निश्चय एहवो जाणीनेरे, काढ। त्रणे वस्तरे ॥ ५० ॥ सजा माहे मेली ॥२४॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहेरे, ए चोर मोटो मस्तरे ॥ ५० ॥ ३॥ पावमीए नृप परखीरे, वींटीए परधानरे ॥ १०॥ यग्नसूत्रि करी जाणीउरे, पुरोहित पापनिधानरे ॥ प० ॥४॥ वोलावो चोरी करेरे, वाम चीजमां खायरे ॥ प०॥ दांत विणासे जीजनेरे, तिहां कोण श्रामो थायरे ॥ ५० ॥५॥ चमक्या देखी चित्तमेंरे, चोर तणां अहिनाणरे ॥ १० ॥ जे मन माने ते करोरे, जेम न करे ए कामरे ॥ ५० ॥६॥ नृपति कपिल प्रधाननारे, तुरत थयां मुख श्यामरे ॥ १० ॥ सहुको कहे हवे तेम करोरे, श्रागोह थामयदानरे ॥ प० ॥ नगर थकी ते काढीनेरे, पाटीए निज निज पुत्ररे ॥ ५० ॥ थाप्या महाजन नामली करीरे, सहु राख्यु एम सूत्ररे ॥ ५० ॥ ७॥ यतः-मित्रं शाठ्यपदं कलत्रमसतीं पुत्रं कुलध्वंसिनम् । मूर्खमंत्रिणमुत्सुकं नरपतिं वैद्यं प्रमादास्पदम् ॥ देवं रागयुतं गुरुं विषयिणं धर्म दयावर्जितम् । यो नैवं व्रजति प्रमादवशतः स त्यज्यते श्रेयसा॥१॥ ५ सुणी सुजोधन वारतारे, श्रेणिक करे प्रशंसरे ॥ १०॥ धन्य प्रधान मति ताहरीरे, लातुं मुज कुल अवतंसरे ॥ १० ॥ए ॥ राजा कहे रजनी घणीरे, बे हजी अनयकुमा Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ररे ॥पण॥ कांइक अचरिज जोशएरे, नमीए नगर मोकाररे ॥०॥१॥ जमतां एकण, चाचरेरे, दीठी माणस बांहरे ॥ प० ॥ पुरुष नारी दीसे नहींरे, अचरिज थयुं मन ॥ १४१॥ मांहीरे ॥ ५० ॥ ११ ॥ कहो प्रधान दीसे किशुरे, लोहषुरो प्रनु चोररे ॥ प०॥अंजन बल अदृश्य थश्रे, नगर पडावे सोररे ॥ ५० ॥१॥जोए ए किहां जाय रे, कौतके चाल्या पीठरे ॥ प० ॥ अर्हदास घर श्रांगणेरे, वडे चमी बेगे धीरे ॥ प y IN॥ १३ ॥ अलद थका बेहु जणारे, श्रावी बेग हेठरे ॥ प० ॥ एहवे कुंदलता कहेरे, सुणो वयण मुज शेठरे ॥ प० ॥ १४ ॥ महोसव मूकी कौमुदीरे, देव पूजादिक कर्मरे | ॥ प० ॥मांमी बेग मेहेलमारे, केणे लगाड्यो नमरे॥ प० ॥ १५॥परलोकार्थी कीजी-| एरे, ए करणी सुणी वामरे ॥ १० ॥केणे दीगे परलोकनेरे, इहलोके सुख कामरे ॥ प॥ १६ ॥ परलोके सही पामीएरे, धर्म थकी सुख लकरे ॥ १०॥ इहलोके फल एहद्रे, में दी प्रत्यदरे ॥ ५० ॥ १७ ॥ कांता ते तुजने कहुँरे, धर्म तणां अवदातरे ॥ १० ॥ खंम सातमानी ए थरे, ढाल सातमी नेम विख्यातरे ॥ प० ॥ १७॥ ॥१४॥ उहा. श्णहीज नगरे राजवी, थयो प्रसेनजीत नाम ॥ तास पुत्र राजा अडे, Ram Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेणिक गुणनो धाम ॥१॥ जिनदत्त शेठ हुवो इहां, पिता माहरो जेह ॥ नंदन रूपषुरा तणो, लोहषुरो ले तेह ॥२॥ सांजली चिंते चोर एम, कांश्क मारी वात ॥ करशे तेणे निश्चल सुणो, राजा ते पण धात ॥३॥ ढाल आठमी. रामचंजके बाग चांपो मोरी रह्योरी-ए देशी. शेठ कहे सुण नार, रूपषुरो जे तस्कर ॥ चोरी करे अपार, साथे को न लश्कर ॥१॥ अंजन विद्या सिझ, नगर.मांहीं परसीधो ॥ हाथ न श्रावे तेह, नृप उपाय बहु कीधो ॥२॥ जाणी ते पुःख साध्य, राजा एम पयंपे ॥ घरघर दीप दीनार, दीजे तसु एम जंपे ॥३॥ मांगवीए वली तास, एक विश्वो करी दीधो ॥ वृत्तिए थयो निचिंत, वानरने मद पीधो ॥ ४ ॥ माकण चडीय जरख, कोण तेहने कहो पाले ॥ नगरे फरे निःशंक, मन गमते पंथ माले ॥५॥ नट विटने रहे साथ, सात व्यसनने सेवे॥ द्यूत मांस परदार, मदिरा चोरी लेवे ॥६॥ ज आहेडे जीव, जात जातना मारे ॥ वेश्याशुं बहु प्रीत, रात दिवस चित्त धारेला ॥ रूपषुरो एक दिन, नृप घर परिसर जावे ॥ रसवती सरस सुगंध, परिमल N Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० 11 282 11 " तेनो थावे ॥८॥ चिंते चित्तमां एम, अहो अहो ए जोजन ॥ करी कोइ दाय उपाय, जमीए तो धन दिन ॥ ए ॥ साली दाली घृत गोल, जात जातनां व्यंजन || बेसी राजा साथ जमे नयन करी अंजन ॥ १० ॥ रसलंपट थयो चोर, स्वाद ते न मूकाए ॥ खा जाये नित्य, राजा दुर्बल थाये ॥ ११ ॥ मतिसागर परधान, पूढे नृपने जाखो || देव डुबला कांय, कारण मुजने दाखो ॥ १२ ॥ अन्न अरुचि तुम कोय, अथवा बीजी चिंता ॥ कहेवा सरखी वात, होये तो कहो गुणवंता ॥ १३ ॥ तुजथी बानी वात, मारे नहीं कहे भूप ॥ पण बे चरिज एक, सांजलो तेह सरूप ॥ १४ ॥ घणुं जमुं दिन दिन, तृप्ति न पामे देह || हास्य वचन बे ए मांहे, कह्युं न जाये ते ॥ १५ ॥ सांजली ए विरतंत, मंत्री चित्त धरेरी ॥ श्रदृश्य को नर कोय, जो जन नक्की करेरी ॥ १६ ॥ निश्चय करी परधान, जोजन मंरुप श्रागे ॥ सूकां छर्कनां पान, फूल बिखेर्या विभागे ॥ १७ ॥ श्राप रह्यो परबंन, जोजन अवसर आयो ॥ चरणे चांप्यां पान, मंत्रीसर मन जायो ॥ १८ ॥ दीधां दृढतर वार, सुनट चिहुं दिश मूक्या ॥ करीख तणां जे गम, धूम रथे ते फुंक्यां ॥ १७ ॥ धूम तणे संजोग, नयन अंजन सवि नाठो ॥ रूपषुरो प्रत्यक्ष, सघले सुजटे दीगे ॥२०॥ पाबेवाइ बांध, आयो खंग ७ ॥ १४२ ॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नृपनी पासे ॥ते वेला ते चार, मन मांही एम विमासे ॥१॥ हा शुंकी, काम, जीवा जीवन केम राखुं ॥ विणव्यां बेहु काज, हवे हुँ केहने नाखुं ॥२॥ शो कीजे पस्ताव, नवितव्यता बलवंत ॥ देह बाया जिम तेह, उलंघी नवि जंत ॥ २३॥ राजाने श्रादेश, तस्कर शूली दीधो ॥ एहशुं बोले जेह, तेहने ए दंड सीधो॥ २४ ॥ मूक्या जोवा काज, बाना चर पोताना ॥ कोइ न जाये पास, पामीजे बोतानां ॥॥ एणे अवसर ए ढाल,थाठमी थए पूरी॥ नेमविजय कहे एह, कथा अ श्रधुरी ॥६॥ उदा. मुजने साथे खेश्ने, चैत्य वांदवा शेठ ॥ गया हता वलतां थकां, पापी पमीयो देव ॥१॥ तव में पूज्युं तातने, कवण पुरुष डे एह ॥ रूपषुरो व्यसनी जिको, राये विमंब्यो तेह ॥२॥ द्यूत थकी सुत धर्मनो, मांस थकी बक जोय ॥ मद्य थकी यङनंदना, वेश्या चारु विगोय॥३॥ ब्रह्मदत्त नप मगया थकी. चोरीथी शिवन्त्रत IN परदाराना दोषथी, रावण तेह विगुत ॥ ४॥ एक एक व्यसने करी,ए सहु पाम्या उःख ॥ सात व्वसन पूरी होये, ते केम पामे सुख ॥५॥ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरी ॥१४३॥ ढाल नवमी. नमणी खमणी ने गयगमणी-ए देशी. चोर कहे सांजल व्यवहारी, तुं तो मोटो परउपगारी ॥ शियाले खाधा मुज च-IN कारण, कागे मस्तके पाड्यां वरण ॥ १॥ पूरव कर्मे कमाया पोते, ते सवि उदय श्राव्यां|| जोते ॥ पाणी माग्युं बहु जण पासे, कोई न पाये सहुको नासे ॥२॥ त्रण दीवसनो तरस्यो हुं बुं, तुजयी पाणी पीवा वांडं ॥ तुं धरमी पाणी जो पाये, तो मुज प्राण सुखे सही जाये ॥ ३ ॥ जलसीत करुणा कहे शेठ वाणी, हमणां तुजने पाशु पाणी॥ हूं लेवा जलं वं श्राप, पंच परमेष्टी जपे तुं जाप ॥४॥ एम कहीने तस। मंत्रज नाख्यो, मुजने तेने थानके राख्यो ॥ जल लेश्ने आवे वेदेला, चोरे प्राण तज्या ते पेहेला ॥५॥ महा मंत्र मन निश्चल ध्यायो, पहेले देवलोके देवगति पा-14 यो ॥ जल लेश्ने श्राव्यो मुज तात, चोर तणी दीठी ते घात ॥ ६॥ मुजने घरनो फुर्ज दीधो, पोते देहरे काजस्सग्ग कीधो ॥ माणस जे मूक्यांतांबाने, तेणे वात कही राजाने ॥ ७॥ शेठ तणे घर मूडा धारो, कोप्यो नृप कहे जश्ने मारो ॥ दोड्या सेवक मारण सही, अवधिनाण दीठो सुर तवही ॥ ७॥ थाए सौनो डे उपकारी, ॥१४॥ Sa Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एणे माहरी डुरगति वारी ॥ मारा गुरुने ए दुःख देशे, द्वारे रह्यो दंग धरीने वेषे ॥ ए ॥ एटले जण राजाना याव्या, हांक्या पेसा मांहि नव पाव्या ॥ रोष करी इणवा ते सुंड्या, देवे निज दंगे ते गुड्या ॥ १० ॥ पढी नृपे मूक्यो कोटवाल, तेहने पण सुरे देश गाल ॥ दंडे दणीने वली ते पाड्यो, नूप सुणीने श्रति घणुं त्राड्यो । | ११ ॥ पोते बल वाहन लेइ चाट्यो, जव नजरे ते देवे निहाल्यो | मारी ढांक कटक सवी त्रागे, प्राण लेइने राजा नावो ॥ १२ ॥ एकले सकल नगर एम जीत्युं, मतिसागर मंत्री सरे चिंत्युं ॥ माणस रूप नहीं सुए नूप, ए तो दीसे देव सरूप ॥ १३ ॥ धूप देप बल बाकुल दीधो, विनति करीने परगट कीधो ॥ केणे अपराध कर्यो तुज स्वामि, नाखों नाम कहुं शीर नामी ॥ १४ ॥ विवेक ए राजा ताहारो, सजन शिरोमण धर्मगुरु माहारो ॥ जिनदत्त शेठने निरापराध, करवा मांगी श्रुति श्रबाध ॥ १५ ॥ तेणे हुं नगर लोकने मारुं, माहारा गुरुनी पीडा वारु ॥ तुम गुरु शेठ थयो केम देव, पूरव जव दाख्यो तव देव ॥ १६ ॥ धन्य तुं देव मंत्रीसर बोले, जन्मांतर उपगारी तुं तोले || पहेली वय पाणी जे पीधुं, अंतकाले श्रीफल ते दीधुं ॥ १७ ॥ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी यतः-प्रथमवयसि पीतं तोयमस्पं स्मरंतः । खंग शिरसि निहितनारा नालिकेरा नराणाम् ॥ ॥९४४॥ उदकममृतकल्पं दाराजीवितांतं । न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति ॥१॥ __ नगर तणुं टालो पुःख देव, जे कहो ते हवे कीजे सेव ॥ सहुको शरण करो, |जिनदत्तनु, जो मन डे तुमने जीवितनुं ॥ १७॥ राजा प्रजा सहु देहरे आवे, पगे| लागी अपराध खमावे ॥ हाथीपर बेसारी शीष, नगर मांहीं आएयो अवनीशे ॥ रए॥ नव्या सुजट थयो जयकार, सोवन वृष्टि करी अति सार ॥ रतन त्रण अमु लक दीधां, शेठ तणां मनवंडित सीधां ॥ २० ॥ सहुको लोक करे परशंसा, धर्म तणी Nन करे को खींसा ॥ देखो धर्म तणां फल वीर, नवमी ढाल नेमे कही सधीर ॥२१॥ उहा. रतन लेइ ते मुज पिता, शेजय गिरनार ॥ चैत्य करावी अजिनवां, तिलक च-1 माव्यां सार ॥१॥ प्रसेनजीतने श्रापीयां, र तने श्रापीयां, रतन त्रण उदार॥माहरा गुरुनोजक्त ए, ए ॥ १४४॥ मन करी विचार ॥२॥ लोहषुराने वली दीयां, रतन त्रण सुखकार ॥ तेणे द्यूते ते | Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हारीयां, सुर गयो स्वर्ग मोजार ॥ ३ ॥ केणे दीक्षा के बार व्रत, केणे समकित सुविशेष | बालपणे दृढ हुं थयो, धरम तणां फल देख ॥ ४ ॥ कहे सघली साचुं कयुं, कुंदलता कहे जूठ ॥ राजा श्रेणिक चिंतवे, अहो नारी ए डूव ॥ ५ ॥ मुज पिताना राजमां, ए इ सघली वात ॥ पापण ए माने नहीं, पूढीश हुं परजात ॥ ६ ॥ शेठ कड़े जयश्री प्रते, सुण गोरी गुणराश ॥ तें दीतुं कं सांजस्युं, धर्मफल तेह प्रकाश ॥ 9 ॥ ढाल दशमी. चोपानी देशी. कड़े पहेली नारी सुणो कंत, नगरी उजेपीए नृप गुणवंत ॥ संग्रामसुर नामे जयकारी, शेव रिषनसेन समकितधारी ॥ १ ॥ तेहने घर जयसेना नारी, शील गुणे सीता अवतारी ॥ समकितवंत सदा सत्य संधा, कर्म वशे करी ते बे वंध्या ॥ | २ || एकदा नाह जणी ते जाखे, पुत्र विना कोण वंशने राखे ॥ एक घमीमां घमी जल बुके, नंदन विष नाम क्षणमां कुले ॥ ३ ॥ बीजी नारी तणो विवाद, कंत करो करी मन उच्छाद ॥ वय परिणत थइ सुण नारी, वात म काढे ए मुख बहारी Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ २४५ ॥ ४ ॥ लोक हसे कहे बुढो बेल, वरघोडे चढी यइ बेल ॥ संतति काजे नहीं कोई डूषण, पुत्र यया पढी थाशे भूषण ॥ ५ ॥ जोरे इज्य तणी एक बेटी, परणावी सुंदरी गुण पेटी ॥ सुंदरीने सोंपी घर जार, जयसेना करे धर्म व्यापार ॥ ६ ॥ सुंद रीने जन्म्यो सुत सार, वांकीयानां उघड्यां घरवार || पीहर सुंदरी पहोती जाम, बंधूसरी माता पूढे ताम ॥ ७ ॥ सुखणी तुं बे माहरी जाइ, शोक्य संकटमां केशो सुख माइ ॥ शोक उपर दीधी तुमे जाणी, पूब्बुं घर पीने पाणी ॥ ८ ॥ शोक मांदी घाली सुख इच्छा, मायुं मुंगावी नक्षत्रनी प्रीवा ॥ जयसेना मुज घणुं संतापे, मादारी बांग देखे तिहां कापे ॥ ए ॥ जंजेरी मूक्यो जरतार, दासीथी अवगणे पार ॥ बंधूसरी सुणी ए वचन्न, जंपे पुत्री धीरज धर मन्न ॥ १० ॥ जयसेनानुं जी - वित दरशुं, तुजने सुख याशे तेम करशुं ॥ एहवे एक जोगी तिहां श्रव्यो, बंधूसरी | मन अधिको सोदाव्यो ॥ ११ ॥ उठी उजी थइ चरणे लागी, सरस निक्षा दीधी अनुरागी ॥ संतोष्यो श्रासन बेसारी, मुज घर निक्षा लेजो हितकारी ॥ १२ ॥ आवे ते दिन दिन आवासे, नवि रसवती आपे उल्हासे ॥ जगते रीजयो जोगी बोले, ताहरे - खंग ७ ॥ १४५ ॥ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोइ न माइ तोले ॥ १३ ॥ मन माने ते हवे तुं माग, बंधूसरी चिंते मुज लाग ॥ गद्गद साद पुत्री विरतंत, जयसेनाने मारो महंत ॥ १४ ॥ कालीचौदश कहे कपाली, विद्या साधीश समरीश बाली॥ हरखी बंधूसरी मन कूमी, दशमी ढाल नेमे कही रुमी ॥ १५॥ उदा. कालीचौदशने दिने, जोगी जश् मसाण ॥ वेताली देवी तणुं, समरण करे सुजाण ॥१॥प्रत्यद थ देवी कहे, वच्च समरी श्ये काज ॥ जयसेनाने मारो जश्, करो वेगे ए काज ॥२॥ देवी आवी मारवा, कर साही करवाल ॥ सामुं जोश नवि शकी, पोसह व्रत रखवाल ॥३॥त्रण प्रदक्षणा देश्ने, आवी जोगी पास ॥ तिमहिज पाली मोकली, जयसेना श्रावास ॥४॥ वार त्रण एम देवता, श्रावी फरी मसाण ॥ जोगी चिंते मुजने, मारे हवे निदान ॥५॥ जयसेना अथ सुंदरी, बेहुमां विरु जेह ॥ मारो माता तेहने, म करो को संदेह ॥६॥ जश्ने मारी सुंदरी, |देवीए ततकाल ॥ परने चिंते पाडुर्ज, तेना एवा हाल ॥७॥ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ २४६ ॥ ढाल गीरमी. दवीला जादव व करी हरीय मनावीए हो लाल - ए देशी. जयसेनाएं पारीयोरे लाल, पोसह व्रत परजातरे ॥ शासन देवी ॥ मूइ दीवी सुंदरीरे लाल, हा केणे कीधी घातरे ॥ शा० ॥ सार करो मुज सामनीरे लाल ॥ ए श्रकणी ॥ १ ॥ साच जूठ कोण जाणशेरे लाल, शोक्या तणो व्यवहाररे ॥शा० ॥ सहु कदेशे मारी होशेरे लाल, कलंक तो अवताररे ॥ शा० सा० ॥ ॥ २॥ शासनसुरी राधवारे लाल, काजस्सग्ग कीधो साररे ॥ शा० ॥ परगट थइ देवी कहेरे लाल, म करो दुःख | लगाररे ॥ शा० सा० ॥ ३ ॥ बंधूसरी दरखित थकीरे लाल, जमाइने घर जायरे ॥ शा० ॥ जाएयुं जयसेना मूइ दशेरे लाल, सुंदरी देखी दुःख थायरे ॥ शा० सा० ॥ ४ ॥ रोती माथु कूटतीरे लाल, थाकंद करती पाररे ॥ शा० ॥ जयसेनाए मारी सुंदरीरे लाल, जइ पोकारी दरबाररे || शा० सा० ॥ ५ ॥ जयसेनाने तेकवारे लाल, माणस मूके रायरे ॥ शा० ॥ तव शासन रखवालीकारे लाल, जोगीने उपायरे ॥ शा० सा० ॥ ६ ॥ जयसेना मोटी सतीरे लाल, एहवां न करे कामरे ॥ शा० ॥ राय यागल जोगी कहेरे लाल, सोने न लागे श्यामरे || शा० सा० ॥ ७ ॥ बंधूसरीए मु खं 9 ॥ १४६ ॥ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनेरे लाल, जमामी नली नातरे ॥ शा॥ प्रारथना एहवी करीरे लाल, जयसेना| करो घातरे ॥ शा सा ॥ ७॥ में वेताली श्राराधीनेरे लाल, मूकी मारण तासरे ॥ शा॥ कोण मारे पुण्यवंतनेरे लाल, सुंदरी मारी पापराशरे॥ शा० सा॥॥ एहवे । शासनदेवतारे लाल, श्रावी नाखे साखरे ॥ शा० ॥ वचन मख्यां बेउ सारिखारे लाल, वलतुं राजा नाखरे ॥शा सा ॥ १० ॥ बंधूसरी देश बाहरेरे लाल, काढो करे | हुकमरे ॥ शा० ॥ श्राज पठी कोइ एहवारे लाल, न करे अशुन कामरे ॥ शाण सा| I॥ ११॥ रिषनसेननी नारीनेरे लाल, महोच्छव करे महाराजरे ॥शा० ॥ निज मं-1 कदिर पोहोती करीरे लाल, सिध्यां वंबित काजरे ॥शा सा०॥ १२॥ सोवन वृष्टि करी| तिहारे लाल, महिमा कीधो देवरे ॥ शा॥ साचो धरम संसारमारे लाल, सह क-IM रजो नित्यमेवरे ॥ शा० सा० ॥ १३ ॥ राजा समकित पामीरे लाल, धरम तणां सफल देखरे ॥ शाण ॥ हुँ धरमे निश्चल थरे लाल, ते देखी सुविशेषरे ॥ शा० सा० |॥ १४ ॥ शेठ सहित बनामनीरे लाल, कहे साचु कडं एहरे ॥ शा० ॥ लता कहे लामानुं नहींरे लाल, जाख्यु कूड़ें तेहरे ॥ शा सा ॥ १५॥ श्रेणिकादिक चिंतवेरे लाल, जुर्ड हठीली नाररे ॥ शा० ॥ सातमो खंग पूरो थयोरे लाख, नेमविजय सुख Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंक ॥१७॥ काररे ॥ शा० सा० ॥ १६ ॥ हीरविजय सूरि तणोरे लाल, शुजविजय तस शिष्यरे शा० ॥ नाव विजय कवि दीपतारे लाल, सिकि नमुं निशदिसरे ॥शा सा॥ १७॥ रूपविजय रंगे करीरे लाल, कृष्ण विजय कर जोडरे ॥ शा० ॥ रंगविजय गुरु | माहरारे लाल, नावे को एहनी होमरे ॥ शाण सा ॥ १७ ॥ सातमा खंड तणी कहीरे लाल, अग्यारमी ढाल रसालरे ॥ शा॥ नेम कहे नवियण तुमेरे लाल, सां-y लो बालगोपालरे ॥शा सा० ॥१५॥ इति श्रीधर्मपरीक्षारासे सप्तम खंड संपूर्ण. ॥ १४७॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग G मो. उहा. पूढे चंदनश्री प्रते, अर्हदास उदास ॥ नामनी ते जगवंतनो, लह्यो धर्म तेम नास ॥१॥ कहे नारी कपीथपुरे, अरिमर्दन राजान ॥ सोमदत्त ब्राह्मण वसे, दारिज तणो निधान ॥२॥ तेहनी नारी सोमीला, ताप थकी मूछ सोय ॥ रति नवि पामे हिज किहां, करे पुःख बहु रोय ॥३॥ सोमदत्त वनमां गयो, मख्यो साधु महानाग ॥ तेहने वचने उपन्यो, निर्जय मन वैराग ॥४॥ यतः- नवश्रौतबिलेऽमुष्मिन् । कलेवरगृहे किल ॥ | जीवस्य वसतः काल-व्यालतः कुशलं कियत् ॥१॥ श्रावकनां व्रत श्रादरी, श्राव्यो नगर मोकार ॥ धर्म प्रजावे धन मत्यु, तज्या || पाप व्यापार ॥ ५॥ वामवने माने घj, व्यवहारी धनपाल ॥ खामी जाणी थापणो, करे सार संजाल ॥६॥ रोगाकुल थयो एकदा, ब्राह्मण ते सोमदत्त ॥ तेमावी धनपालने, कहे बांधव सुण वत्त ॥ ७ ॥ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खम G ॥१४ ॥ ढाल पहेली. मुज लाज वधारो रे-ए देशी. ब्राह्मण कहे वातरे, सुण शेठ सुजातरे, दिन रयणी न जात चिंता ने मुजनेरे ॥ ते टालो जाश्रे, जेम सद्गति थाश्रे, तुं परम सखा कडं बुं तुजनेरे ॥१॥ चिंता हेतु दाखोरे, कांश मनमां न राखो, जे मुजने नाखो ते करशुं सहीरे ॥ सोमदत्त वली बोलेरे, तुं पुरुष अमोलेरे, तारे कोण तोले श्रावे श्ण महीरे ॥२॥ सोमा मुज कन्यारे, गुण लक्षणे धन्यारे, नहीं एवी अन्या सोपुं तुज नणीरे ॥ ब्राह्मण नहीं खीणोरे, जिन धर्मे लीणोरे, जोश प्रवीणो करजो एहनो धणीरे ॥३॥ शेठे कडं वारुरे, परमेसर सारुरे, एम करशुं विचारी आणी निज मंदिरेरे ॥ हिज सरगे पहोतरे, जिहां सुख बहोतरे, शेठ गुणयुत पाले पुत्रीनी परेरे ॥४॥ संगति साध्वीनीरे, साते धाते नीनीरे, जिन धरमे लीनी करती जिन पूजनारे ॥ दीठी रुरुदत्तेरे, लागी तस चित्तेरे, निज मित्रने पूढे ए केहनी धूवारे ॥ ५॥ मित्र कहे सुण नारे, सोमदत्तनी जारे, धनपाल घरे श्राश् वाधे सुंदरीरे ॥ रुखदत्त कहे परणीरे, करीश डं घरणीरे, ए अनोपम तरुणी सोवन मुघमीरे ॥ ६॥ हुती वमनागीरे, दीदिता ॥१४॥ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिक मागीरे,हुश्रा बहु रागी जिन विण थर नहींरे ॥ तुं तो जुधारीरे, सात व्यसअननो धारीरे, केणी परे अविचारी पामशे एहनेरे ॥ ७॥ बोले अहंकारीरे, जो जो मति मारीरे, न परj ए नारी तो कहेजो पशुरे ॥ चाल्यो पर छीपेरे, एक साधु समीपेरे, सघली विधि दीपे जेम श्रावक शिशुरे ॥ ७॥ फरी श्राव्यो वेगेरे, मनने उद्वेगेरे, देहरे संवेगे श्रावी पूजा करीरे ॥ गाये गीत रसालरे, चोखी कहे ढालरे, देखी धनपाल पूछे उलट धरीरे ॥ ए॥ किहांथी तुमे श्राव्यारे, कोण जाते कहाव्यारे, मनमां बहु नाव्या वाणारसी नयरे वसुंरे ॥ माबापे कालरे, कीधो अकालरे, ब्राह्मण दयाल अर्बु कहुं केशुंरे ॥ १०॥ धीरज मन धरतारे, तीरथ जात्रा करतारे, एणी परे फरतां एक दिन मुनिवर मल्योरे ॥ तेणे नाख्यो धर्मरे, जेहथी शिव शर्मरे, सुणी जिनधर्म मुज मिथ्या मत टस्योरे ॥११॥ चैत्यवंदन काजरे, आव्यो श्हां आजरे, अवधारो महाराज शेठ कहे अशुंरे ॥ घर श्रावो देवरे, करशुं तुम सेवरे, सोमा ततखेव तुजने परणावगुंरे ॥ १२ ॥ विष सरी-10 खी वामरे, तेहशुं नहीं का मरे, तेवशं नहीं कामरे, तस बीजे नहीं नाम ग एम कढेरे॥ श्राग्रहशति कीधरे, जाएयु कारज सीधरे, परणीने परसीध संधा निरवहीरे ॥१३॥ जुवारी जेथरे, Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ २४५॥ जाइ जाखे तेथरे, सहु श्रावो एथ कंकण बांधी थावरे ॥ कीधो परपंचरे, दुवो रोमंचरे, जुई मुज संन्ध सोमा घर लावीउरे ॥ १४ ॥ करे कै तव प्रशंसारे, कर जोमी नमस्यारे, न करे कोइ खींसा ते सुख जोगवेरे ॥ पूरे मन आशरे, नरनारी यावासरे, सवि विलास रयणी दिन जोगवेरे ॥ १५ ॥ गयो केतो कालरे, वली तेहज हवालरे, नवि जाये ढाल जेहने जे पमीरे ॥ प्रकृति जासरी ररे, विचले नवि धीररे, पहेली सुणो वीर ढाल खंग आठमे जमीरे ॥ १६ ॥ उदा. मरजादा पाली नली, दिवस केटला सीम ॥ द्यूतासक्त वली थयो, श्यो कपटीनो नीम ॥ १ ॥ सुमित्रा वेश्या सुता, कामलता तसु नाम ॥ तेहशुं विलसे रात दिन, तजी आपणी वाम ॥ २ ॥ सोमा मनमां दुःख धरे, नयणे मूके नीर ॥ सुखी वात शेठे सहु, | दे पुत्रीने धीर ॥ ३ ॥ बेटी दुःख कीजे नहीं दीजे कर्मने दोष ॥ सुख दुःख सरज्यां पामीए श्यो कीजे हवे शोष ॥ ४ ॥ आशा तजी जरतारनी, धरी बेठी धर्म ध्यान ॥ इह जव परजव जेहथी, सुख पामशे निरवाण ॥ ५ ॥ मार्न । वात पिता तणी, एक प्रासाद कराव | प्रतिमा श्री शांतिनाथनी, थापी मनने जाव ॥ ६ ॥ प्रतिष्ठा कीधी खं ॥ १४५॥ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पड़ी, संघ नगत करी सार ॥ सुमित्रा कामलता सहित, तेड्यो रुष जुवार n suly |जोजन नलां करावीने, दीधां फोफल पान ॥ जजे न उत्तम अधम पाप, चंड तणो थहिनाण ॥ ७॥ यतः-निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु । दयां कुर्वति साधवः ॥ न हि संहरति ज्योत्स्ना । चंपश्चांमालवेश्मनि ॥२॥ ढाल बीजी. काची कलीय म तोम लविंगरी मालीयां, पीयु चाल्या परदेश बेठी होती मालीयां-ए देशी.. सोमानुं रूप देखी सुमित्रा शिर धूणे, चिंते चित्त मांही एम अहो ए किम बने ॥ एहवी सुंदर नारी तजी केम पापीए, अथवा कै तव बुद्धि विचारे नवि हीये ॥१॥ काम एह कयुं जे पुत्रीने नायगे, जो रहे जीवती एह पाये शख्य जायगे ॥ एम विचारी फूल सर्प घाली घडे, कामलता ले साथ श्रावी श्रादर वडे ॥ २॥ सरस कुसुमनी माल श्राणी में जोवती, पूजी एणे जिनराज पापमल धोवती ॥ सरलपणे करस्पर्श कर्यो घटे जेटले, जुजंगम फूलमाल थयो ते तेटले ॥३॥ ले सुगंधी Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंकन ॥१५॥ फूल जिनेश्वर थरचीया, केसर चंदन अगर कपूरे चरचीया ॥ कामलता गले हार घाल्यो रमत मिषे, नाग डस्यो ततकाल पमी नोंय तसे ॥४॥ मृत पुत्रीने देख अका कूटे हैयु, आक्रंद करे अपार दैव तें शुं कीयुं ॥ करे विलाप अनेक नयणे आंसु जरे, घट सरप लेश वेगे श्रावी नृप मंदिरे ॥ ५॥ करती हाहाकार कहे पोकार करी, देव सुणो अरदास सोमा अति मद नरी॥ माहरी बाल हवे हुँ केम करूं, मोशी निराधार जीवित केणी परे धरूं ॥ ६ ॥ सोमा तेमावी राय कहे कुल खांपणी, काम-19 लताने कांमारी ते पापिणी ॥ कहे सोमा महाराज वचन अवधारीए, जयणा सूक्ष्म जीव थूल केम मारीए ॥७॥ मांमी पूरव वात सोमाए सवी कही, देखाड्यो घट साप मित्रा अवसर लही ॥पंच वरण फूलमाल सोमा हाथे धरी, मित्रा जाले हाथ अहि थाये फरी ॥॥ वार त्रण एम नाग कुसुममाला हुवो, कहे सन्ना सहु | कोय सोमा साची जु॥देखी चमक्यो नूप नहीं ए मानवी, प्रत्यक्ष देवी तेह एम मन थाणवी ॥ए। कर जोमी करे राय सोमायुं विनति, कामलता जीवामो अटो तुम महा सती ॥ मंत्र नवकार प्रजाव मूर्ग मटी गइ, सती तणे करस्पर्शे उठी बेठी थइ ॥ १० ॥ सुमित्रा निज करतूक प्रकाशी शुन मते, धर्म तणां फल देख लह्यो धर्म नूप ते ॥ sarams Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुदत्तादिक अवर तिहां श्रावक थया, तेणे गमे सुणी स्वामि पाप सवि मुज गयां ॥ ११॥ शेठ शेगणी सर्व कहे साचुं कडं, कुंदलता कहे जूठ में नवि सदा ॥श्रेणिक अनयकुमार वचन ते सांजली, चिंते हीली नार न दीसे ए नली ॥ १ ॥ देशुं दंम प्रजात राते नवि बोलीए, वेचीने निज उंघ उजागरो कोण लीए ॥ श्रा-IN ग्मे खंडे ढाल बीजी ए सोहती, कहेशे मित्रश्री वात नेम मन मोहती ॥ १३॥ | उहा. __ अर्हदास मित्रश्री प्रते, पूजे बहु धरी प्रेम ॥ केम प्राप्ति थर धर्मनी, सा पामी कहे तेम ॥१॥ वच्छ देशे नगरी वमी, कोसंबी सुख थान ॥ धनंजय राजा तिहां, सोमशर्मा परधान ॥ २ ॥ मासोपवासी एकदा, श्राव्यो साधु उद्यान ॥ तास प्रजावे वन थयां, नवां फूल फल पान ॥३॥ मासखमणने पारणे, नगरमा ऋषिराय ॥ श्रा-IN व्या वोहोरण देखीने, प्रणमे मंत्री पाय ॥४॥ शुद्ध पान असने करी, प्रतिलाग्यो| धरी नाव ॥ पंच दिव्य प्रगट थयां, पात्र दान प्रस्ताव ॥ ५॥ विस्मय पाम्यो वेगशु, श्राव्यो जिहां अणगार ॥ पूजे बे कर जोडीने, जगवन् कहो विचार ॥६॥ अग्निनहोत्री दिक्षित जणी, दीधां में बहु दान ॥ कनक नाग तिल अश्व रथ, दासी मही| Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीपरधान ॥ ७॥ कन्या कपिला धेनु वली, महादान दश एह ॥ पण अतिशय दीगे दाखंग । नहीं, शुं कारण तेह ॥ ७॥ ॥१५॥ ढाल त्रीजी. नणदलनी देशी. ___ मुनिवर कहे महेता सुणो, असंजति एह अजाण ॥ शुन्न मन ॥ कायनी हिंसा करे, तेणे फल नहीं मन आण ॥ शु० मु॥१॥ ए आंकणी ॥ उखर खेत्रे वावीयो, जेम निष्फल थाये बीज ॥ शु० ॥तेम दी, कुपात्रने, ते पण गणो तिमहीज ॥ शुन मु० ॥२॥ ज्ञानवंत क्रिया करे, ते जाणीजे सुपात्र ॥ शु॥तेहने दीधुं बहु फले, तप करे निरमल गात्र ॥ शुग मु० ॥३॥ यतः-एकवापीजलं सिक्त-माने मधुरतां व्रजेत् । निंबे च कटुतां याति । पात्रापात्रनियोजनात् ॥ १॥ NI पूजे मंत्री मुनि प्रते, चित्त कोमल नहीं धी॥शु०॥माहारी परे बीजे केणे, दान MIn५३॥ तणां फल दीठ ॥ शु० मु०॥४॥विश्वनूति ब्राह्मण तणी, कथा कहे मुनिराज ॥ शु॥ अादेश वैराट दक्षिण दिशे, सोमप्रन तिहां राज ॥शु मु०॥५॥ ब्राह्मणने माने घj, Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नक्ति करे नित्यमेव ॥ शु० ॥बेगे सन्नामांहे एम कहे, वाव जगमां देव ॥ शुण् मु० Jan६॥ वित्त सफल करवा नणी, बहु सुवरण नामे जाग ॥ शु॥ ब्राह्मण पासे मंमा वीयो, पुण्य उपर धरी राग ॥शु मु०॥७॥ जगन करे तिहां दुकमो, विश्वनूति जा रहे विप्र ॥ शु० ॥खले जश् जब जाचीने, साचुं करे ते खिप्र ॥ शुभ मु० ॥ ॥चार कापीमी करे तेदनी, पहेली दुतवह पोख ॥ शु ॥ बीजी अतिथि त्रीजी पोते, चोथी नारी संतोष ॥ शुग मुण् ॥ ए॥ याव्यो मुनिवर गोचरी, विश्वनूतिने बार ॥ शु०॥ बीजे पिके निमंत्रीयो, नवि लीधो अणगार ॥ शु० मु० ॥ १० ॥ मुज पिंमी त्यो खा-1 मिजी, सचित्ते मिश्रित दीउ ॥ शु० ॥ते पण मुनि लीधी नहीं, नारी बोले मीठ ॥ शु० मु० ॥ ११ ॥ आहार माहारो प्रजु दीजीए, ए मोटुं पात्र ॥ शु॥श्राज सफल |दिन आपणो, जंगम तीरथ जात्र ॥ शुग मुण् ॥ १५ ॥ श्राहार लीधो मुनिए सूजतो, हेम रतन थक्ष वृष्टि ॥ शु॥नर नारी बेहु थयां, सुधां सम कितदृष्टि ॥ शुग मु० ॥१३॥ नरपतिने जहिज कहे, देखो जगन फल देव ॥ शु०॥ कनक धारा वठी घणी, नूप लणे ततखेव ॥ शुण मु०॥ १४ ॥ में धन दीधुं तुम नणी, जश्ने त्यो तुमे तेह ॥ शु०॥त्रीजी ढाल खंग श्राधमे, नेमविजय कहे एह ॥ शु० मु॥ १५ ॥ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंगत ॥१५ ॥ उहा. - धन लेवा ब्राह्मण गया, तव ते थया अंगाल ॥ क्षण एक रहीने वली ग्रहे, जव थाये ते व्याल ॥१॥ वृझे नूपतिने कडं, नहीं जगन फल नाथ ॥ विश्वनूति कृत | दान फल, इह नव परन्नव साथ ॥२॥ नूप नणे विश्वनूतिने, हुं श्राव्यो तुज गेह NI जगन्य श्राध फल लेश्ने, दान बाध फल देह ॥३॥ विश्वनूति बोले हसी, दान फल न देवाय ॥ देव तणुं वित्त व्यो तमे, अध फल द्यो कहे राय ॥४॥ | विश्वनूति वलतुं कहे, सांजल राय सुजाण ॥ स्वर्ग मुक्ति सुख जेहथी, ते कोण वेचे | दान ॥५॥ देखी सत्य नृप हिज तj, त्रुट्यो आपे रिक॥ दलिज गयुं विश्वन्नूतिनुं, जिहां साहस तिहां सिझ ॥ ६॥ नूपति पूजे मुनि प्रते, दान केतां कहो वाम ॥ त्रिधा दान मुनिवर कहे, दीधे सीजे काम ॥ ७॥ ढाल चोथी. नयरो नगीनो मारो, हाररो हीरो मारो, केसररो जीनो मारो साहेबो, राजेंड मारा, घडी एक रहो जूकाय हो-ए देशी. शास्त्रे दान ते जाणीए, राजेंड मारा, रा लिख लिखावी ग्रंथ हो ॥ साधु नणी १५२॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते दीजीए, राण वावे मुक्तिनो पंथ हो ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ दान नविक जन दीजीए, राण दाने दोलत थाय हो ॥ जश कीरति श्ह लव लहे, रा० परनव मुगति जाय हो ॥ दा॥२॥ अजयदान नर जे दीए, रा तेहने नय नवि कोय हो ॥ श्द नव परनव जाणजो, रा० शिवपुरनां सुख होय हो ॥ दा० ॥३॥ आहार उषध वस्त्रे करी, राग थिर धरमे थापीजे हो ॥ धरम थयो नाव दानथी, रा० आठ करम कापीजे. हो ॥ दा० ॥४॥ कर नीचा जिनवर करे, रा० अन्नदान परधान हो । तेहनी उपम कुण कहुं, रा० दीजे देश मान हो ॥ दा० ॥५॥ यतः-ददस्वान्नं ददखान्नं । ददखान्नं युधिष्ठिर ॥ अन्नदःप्राणदो लोके । प्राणदः सर्वकामदः ॥१॥ रोगियो नेषजं देयं । रोगा देह विनाशकाः॥ देहनाशे कुतो शानं । ज्ञानानावे न निवृत्तिः ॥२॥ वस्त्र विविध प्रकारनां, रा० हित करी थापे हाथे हो ॥ तेहy फल सद्गुरु कहे, रा० बत्र धरावे माथे हो ॥ दा॥६॥ दान त्रण एम सांजली, राण पृथ्वीनापति प्रतिबुक हो । विश्वनति पण तिहां थयो, राण व्रतधर श्रावक शुद्ध हो । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीदा ॥॥ सोमशर्मा मंत्रीश्वरे, राण कथा सुणी नीम लीध हो ॥ लोहायुध धरूं| खंमत नहीं, रा० काठ कृपाणज कीध हो ॥ दा० ॥ ॥ पिशुने काठ कृपाणनी, राण ॥१५३॥ नूपतिने वात ते नाषी हो ॥ सना मांहे नृप बेसीने, रा० असिनी वात प्रकाशी हो ॥ दा० ॥॥ खड्ग जोश क्षत्रिय तणां, राम मंत्रीनो थसि माग्यो हो ॥ खल| विलसित जाण्यु खलं, रा० नरम सही मुज नांग्यो हो ॥ दा ॥ १० ॥ यतः-परवादे दशवदनः । पररंध्रनिरीक्षणे सहस्रादः ॥ . सधृती वित्तहरणे । बाहुसहस्रार्जुन पिशुनः॥१॥ साचो धरम जो माहरो, रा तो लोहमय असि थाजो हो ॥ एम कही राजाने | दीयो, राग संकट पूरे जाजो हो ॥ दा ॥ ११॥ कोश थकी राये काढी, राम लोह फलहलतो दीठ हो ॥ खल साहमुं जो कहे, रा० केम जूतुं कडं धीठहो॥दा॥१२॥ यतः-सर्वदेवमयो राजा । वदंति विबुधा जनाः ॥ तस्मात्तत्पुरो नैव । वदेन्मृषा कथंचन ॥१॥ | ॥१५३॥ ___ कालो चुगलने नृप वदे, रा तव मंत्री एम आखे हो ॥ कोप प्रजुजी मत करो, रा ए जू नवि लाखे हो ॥ दा० ॥१३॥ में जिनधर्मज आदर्यो, राण जाण्यो लोहनो Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोष हो ॥ काष्ठ कृपाण करावीयो, रा० पुण्य तणो थयो पोष हो ॥ दा ॥ १४॥ हमणां धर्म प्रनावथी, राण लोह खड्ग ए दीसे हो ॥ सांजले राजा प्रजा सहु, राण धरम करो निशदिसे हो ॥ दा ॥ १५॥ हुं धरमे निश्चल थश, रा० प्रत्यक्ष प्रत्यय जोय हो ॥ शेठ प्रमुख साचुं कहे, राण लता न माने सोय हो ॥ दा० ॥१६॥ चोर मंत्री राजा कहे, रा तजे न पुरजन चाल हो॥ खंग आग्मे चोथी जली, राण नेमविजय कहे ढाल हो । दा० ॥ १७ ॥ उदा. | नागश्री पूजे थकी, जंपे मधुरी वाण ॥ में एम समकित पामीयु, प्रीतम दयडे आण ॥१॥ नगरी नाम वणारसी, जीतारि तिहां नूप ॥ कनकचित्रा राणी रतन, रंजा सरखी रूप ॥२॥ सुता सुमित्रा तेहनी, माटी बहोली खाय ॥ पांडु रोग तेथी| थियो, थार्या मली एक आय ॥३॥ तस उपदेशे तिणे तज्यां, अनंतकाय अजद ॥ निरुज थ ते कन्यका, फल्यो नियम प्रत्यद ॥४॥ जोवन आवी जाणीने, नृप विवाह निमित्त ॥ पट्ट अनेक देखामीया, कोश न आव्यो चित्त ॥५॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंग ॥१५ ॥ ढाल पांचमी. सुमला संदेशो कहे मारा पूज्यनेरे, मानीश तुज उपगाररे-ए देशी. एहवे अंगदेशनो धणीरे, नवदत्त नामे नूपालरे ॥ जीतारि नृप प्रते एम कहेरे, मुजशु करो विवसालरे ॥ ए०॥ १॥दासीना पुत्र तुज केम देरे, जाति हीण मनमा जाणरे ॥ राजकन्या जोग ए केम होयेरे, बोलजे विमासी वाणरे ॥ ए॥२॥ नवदत्त कहे जाति शुं करेरे, जो मांहि गुण नवि होयरे ॥ गुणने आदर सहु करेरे, जाति न माने कोयरे ॥ ए० ॥३॥ गुणवंत तो पिण तुज नणीरे, कन्या केम देवायरे ॥ जो लाखिणी तोपण वाणहीरे, तेहिज पेहेरवी पायरे ॥ ए० ॥४॥ राज्य तणी करे कामनारे, तो पुत्री परणावरे ॥ नहिंतर बेवे लेयशुरे, मुज वचन मन लावरे ॥ ए॥५॥ जीतारि कहे जीतशेरे, संग्रामे मज जेहरे ॥ मजयी श्रधिको जे होशेरे, कुंवरी पति गणे तेहरे ॥ ए० ॥६॥ घर भावी सेना सजीरे, जव चाले न-IN वदत्तरे ॥ राणी कहे तिणे अवसरेरे, एक सुणो प्रजु वत्तरे ॥ ए ॥ ७॥ कन्या काजे कलह किशोरे, सरखे कुले विवाहरे ॥ नृप कहे वचन जीतारिनुरे, कारण क|रण उच्छाहरे ॥ ए ॥ ७ ॥ नवदत्त आव्यो उतावलोरे, अरिनी सीम नजीकरे ॥ ॥१५॥ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीतारिए ते सांजलीरे, वदे वचन निजीकरे ॥ ए०॥ ए॥ मूषक जेम मंजारी तजाणारे, दिल करे पामण दंतरे ॥ मृगलो सिंहने जेम मारवारे, खरी धरे मन खंतरे ए ॥ १० ॥ वींटी नगरी ते चिडं दिसेरे, मंत्री कहे तेणी वाररे ॥ कन्या खामि श्रापणी दोजीएरे, नीति वचन संजाररे ॥ ए ॥ ११ ॥ यतः-त्यजेदेकं कुलस्यार्थे । ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ॥ ग्रामं जनपदार्थे च । श्रात्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत् ॥१॥ बोले जीतारि रखे बीहोरे, अरि बल नाखू तोमरे ॥ साधु का तुमे स्वामिजीरे, पण परदल बहु जोररे ॥ ए ॥ १५ ॥ साहस सिहि होशे सहीरे, नेली करो बहु नेडरे ॥ सत धरी राम लक्ष्मणेरे, रावण नाख्यो उथेमरे ॥ ए० ॥ १३ ॥ पूत मूकीने कहावीयोरे, नवदत्ते जली जातरे ॥ सुता देश्ने सुखे रहोरे, कां पमो मृत्युनी पांतरे ॥ ए ॥ १४ ॥ वचन सुणीने परजस्योरे, पूतने कीधो दूररे ॥ रणमंका वजमावीनेरे, चमी प्रबल पररे ॥ ए० ॥ १५ ॥ नेला सुजट मली नड्यारे, नारी थयो | नारथरे ॥ नाठी सेना जीतारिनीरे, बोले मंत्रीसर तथरे ॥ ए०॥१६॥राजन श्हां र-19 Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१५॥ हेतुं नहींरे, जीतारि कहे तामरे ॥ जीत्यो नर लक्ष्मी लहेरे, वरे मृतने सुरवाम ॥ ए०॥१७॥ जीवे च लभ्यते लक्ष्मीः। मृते चापि सुरांगना ॥ कायोऽयं क्षण विध्वंसी । का चिंता मरणे रणे ॥१॥ पामे शिवसुख जीवतोरे, एम समजाव्यो नरंदरे ॥ आठमा खमनी पांचमीरे, ढाल कही नेमे आणंदरे ॥ ए० ॥ १७ ॥ उदा. जीतारि गढमां रह्यो, नवदत्त नांजी पोल ॥ नगर बुंटवा मांडीयो, थयो हाल कलोल ॥१॥ मुज कारण अनरथ होये, सुमित्रा देख सरूप ॥ सागारी अणसण पर कोड सती करी, जाइ पमी जल कूप ॥२॥ पुण्य प्रनावे थल थयु, थावी सुरवर कोड ॥ सती थापी सिंहासने, उजा बे कर जोम ॥३॥ राजजुवनमा पेसतां, देवे थंन्यो नवदत्त॥ एहवे किणही श्रावीने, कहे सुमित्रा वत्त ॥ ४ ॥ तज्यो क्रोध अहंकार सुण, पाम्यो परम समाध ॥ सुमित्राने श्रावी कहे, नगिनी खम अपराध ॥ ५ ॥जीतारि जवदत्त ॥१५५॥ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बे, मलीया मांहो मांह ॥ पाटे थापी निज पुत्रने, लीधी दीद उबांह ॥ ६॥प्रत्यद पुण्य फल देखीने, हुँ थ समकित धार ॥ कुंदलता कहे ए असत्य, तें नाख्यु निरधार ॥ ७॥ ढालही. __रसीया राचोरे दान तणे रसे-ए देशी. पूरे पदमलताने शेठजी, केम थर समकित प्राप्ति ॥ सोनागी ॥ सा कहे स्वामि| कंपिलपुरवरे, हरिवाहन राजा शुन मति ॥ सो० पु० ॥१॥ रिषनदास शेठ तिहां । वसे, पदमावती प्रिया श्राधार ॥ सो० ॥ पदमश्री पुत्री के तेहने, प्रत्यक्ष लक्ष्मीनो अवतार ॥ सो पु०॥२॥ नरजोक्न युवति श्रावी जली, एक दिन देहरे जातां दीत ॥ सो० ॥ बुधदास शेठ तणे सुते वली, बुद्धसिंह घरे श्राव्यो नीठ ॥ सो पु० ॥३॥ काम तणे बाणे करी पीमीयो, पमीयो जाइ जुने खाट ॥ सो ॥ जमणवेला थर पूजे शेठजी, जमे नहीं नंदन श्या माट ॥ सो पु० ॥४॥ लाज तजीने वात कही तेणे, बेटा जूठी न कीजे जक ॥ सो० ॥ मदिरा मांस जखी जे थापणे, चंमालथी तिण गणे अधिक ॥ सो पु० ॥५॥ तेहनी पुत्रीनी आशा Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग धर्मपरीकीसी, वलतुं बोले बुद्धसिंह बोल ॥ सो० ॥ के परj के सरणुं श्रागर्नु, ए मुज जाणो वचन अमोल ॥ सो पु० ॥ ६॥ आश्वासीने तेह जमामीयो, करशुं ता-1* ॥१५६॥ दरं वेगुं काम ॥ सो० ॥ दिन दिन देहरे जा नपासरे, श्रावक थयो कपट परणाम | ॥ सो पु० ॥ ७ ॥ बुद्धसिंहे परणी रिषन सुता, पदमश्री आणी आवास ॥ सो ॥ मिथ्या करणी देखी तेहनी, दिल मांही ते रही विमास ॥ सो० पु० ॥ ७॥ पदमश्रीने बुध गुरु एम कहे, पुत्री सिध्यां वंडित काम ॥ सो ॥ सर्व धर्म मांहे बोध धर्म वडो, जिहां कुःख तणुं नहीं नाम ॥ सो० पु० ॥ ए॥ उत्तर वलतो पदमश्री दीए, हंस सरिखा जे नर होय ॥ सो० ॥ पाणी दूध पटंतर ते करे, अरिहंत धर्म समो नहीं कोय ॥ सो पु०॥ १० ॥ रिषनदास अणसण करी आराधना, काळे पहोतो मुगति मोकार ॥ सो० ॥ सासु ससरो नणंद विशेषथी, संतापे वली तस नरतार ॥ सो पु० ॥ ११॥ तोपण धरम न मूके मानिनी, ससरो कहे वहु सांजल |वात ॥ सो० ॥ तारो बाप मरी मृगलो थयो, वनमां मुज गुरु लही अवदात ॥ सो ॥ १२ ॥ जो तुम गुरु एवा ज्ञानी अजे, तो परनाते तेह जमाम ॥ सो ॥ हुँ पण साचो धरम समाचलं, ना मिथ्यामति सवि बांझ ॥ सो पु० ॥१३॥ वहुनुं वचन सु ॥१५६॥ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाणीने हरखीयो, तेडयो जोजन करवा बुध ॥ सो ॥ पग माबानुं गुरुर्नु पगरखं, गर्नु| सीधुं न जाणे मूढ ॥ सो पु० ॥ १४ ॥ सुहम खंड करी वघारीयु, दहीनो दीयो काको कोल ॥ सो० ॥ शाक करी पीरसे निज हाथY, गुरु शिष्य जमतां करे कलोल an सो पु॥ १५ ॥ अद्भुत व्यंजन शाक समारीयो, पदमश्रीने दे श्याबास ॥ सो० ॥ आवमा खंमनी ढाल बही कही, नेमविजयनी बुद्धि प्रकाश ॥ सो पु० ॥ १६ ॥ उदा. जोजन करीने उठीया, दीधां फोफल पान ॥ आज कृतारथ हुँ थयो, गणुं जनम सुप्रमाण ॥१॥ बाहिर श्रावी वाणही, जोवे गुरुजी जाम ॥ एक अजे बीजी नहीं, पूरे सेवक ताम ॥२॥ शोध करी सघले कडं, अमे न जाणुं पूज्य ॥ पदमश्री श्रावीने कहे, तुमने न पडे सूज ॥ ३॥ गति जाणो मुज तातनी, पेट पड्युं पगत्राण ॥ पोता ने प्रीडो नहीं, अहो नबुं तुम ज्ञान ॥४॥ बुध गुरु रीसे धडधड्यो, मुखथी बोले ल गाल ॥ खाg अमे शुं खासकुँ, पापिणी बोल संजाल ॥५॥ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१५ ॥ ढाल सातमी. खंग बिंदलीनी देशी. रिखजी रीस न कीजे, क्रोधे करी संजम बीजे हो ॥ नारी मति निरखोजी ॥ हुँ। नवि बोर्बु मरखा, प्रत्यद देखाईं परीक्षा हो ॥ ना० ॥१॥ जो कुमी थक्ष रंग, देवो. तुज एडवो दंग हो ॥ ना० ॥ मुंमी मस्तक खर चामी, तुजने मूकीशुं कहामी हो ॥ ना ॥२॥ जो हुं था साची, तुमे जैन धरमे रहो राची हो ॥ ना० ॥ एम मांहो मांहे नाखी, पामोशी राख्या साखी हो ॥ ना०॥३॥ उबकाव्या ते मोगा, मिंढलना करी प्रयोगा हो ॥ ना ॥ खंग चरमना जीणा, देखामी कीधा दीणा हो ॥ ना० ॥ ४ ॥ मठ पोताने श्राव्यो, बुधदास शेठ तेमाव्यो हो ॥ ना ॥ कहे वहुने काढ घरपी, कुटुंबनो जो होये थरथी हो ॥ ना ॥ ५॥ काढी वहु काली हाथे, बुद्धसिंह निसरीयो साथे हो॥ना ॥ मान जिहां नवि खहीए, ते नगरी मांडे नवि हो ॥ ना० ॥ ६ ॥ एम चिंतवी नीकलीयां, सारथवाहने जश् मलीयां हो ॥ ना ॥४॥२५॥ पदमश्री देखी बलीयो, सारथवाहनो मनं चलीयो हो ॥ ना ॥७॥ श्रादर बहोलो १ मूर्ख. Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । तस कीधो, अरधासन बेसण दीधो हो ॥ ना ॥ जो ए जम घर जावे, तो नारी मु|ज घर श्रावे हो ॥ ना० ॥ ॥ चिंतवी एम रसोश, विष सहित करावे सोश हो ॥ |ना ॥ जोजनवेला सुविसाले, जमवा बेग एक थाले हो ॥ ना ॥ ए॥ रसवती पारसी जुझ, बुझसिंह मन शंका दुश् हो ॥ ना० ॥ जला बेग नाश, एक थाल किसी || जुदा हो ॥ ना० ॥ १० ॥ एम कही नेधुं अन्न, कीर्छ जम्या विण मन्न हो ॥ ना० ॥ |पड्या मूरा खाइ, लोके कयुं शेग्ने जाइ हो ॥ ना० ॥ ११॥ शोकाकुल तिहां श्रावे, |पदमश्री एम बोलावे हो ॥ ना ॥ पुत्र सारथवाह खांणी, में साकणी तुं सही जाणी हो ॥ ना० ॥ १२ ॥ एहने तुं जीवामे, नहींतर घालुं तुज खांडे हो ॥ ना ॥ संकट ए कोण श्राव्यु, पदमश्री मनमा जाव्युं हो ॥ ना० ॥ १३ ॥ सतीए जपी नवकार, उतार्यो विषनो नार हो ॥ ना ॥ पंच दिव्य तिहां वूग, शासननी देवा तुग हो । ना० ॥ १४ ॥ पदमश्री प्रिय साथे, नगरे थाणी नरनाथे हो ॥ ना ॥ बोध जति |बुधदास, करे जैन धरम उल्लास हो ॥ ना० ॥ १५ ॥ हुँ तिहां समकित पामी, प्रत्यक्ष |फल देखी स्वामि हो ॥ ना० ॥ कुंदलतानी कसोटी, ए वातां सघली खोटी हो ॥ नाण Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥२५ ॥ १६ ॥ श्रापमा खेमनी ढाल, सातमी कही निपट रसाल हो ॥ ना०॥ रंगविजयनोखंमत शिष्य, नेम प्रणति करे निशदिस हो ॥ ना० ॥ १७ ॥ उदा. हवे कनकमाला प्रते, पूजे शेठ विचार ॥ तुज समकितनी वात कदे, रे गुणवंती |नार ॥ १॥ ते बोली पीउ सांजलो, सूर्यपुरे नरपाल ॥ नूपति शेठ समुदत्त, सागरदत्ता सुकुमाल ॥२॥ तेहनी कुखे उपनो, सागर नामे कुमार ॥ जिनदत्ता बेटी वली, IN मातपिता सुखकार ॥३॥ शेठ कोसंबी नगरने, जिनदत्ते परणी तेह ॥ सागर करम वशे करे, व्यसन सातशुं नेह ॥४॥ वचन न माने बापर्नु, घणी वार तलार ॥ कानाली मूक्यो तेहने, गणी शेठ सुत सार ॥ ५॥ श्रारदक वली एकदा, काली सोंप्यो राय ॥ कोमी जतन जो कीजीए, मूख्य खन्नाव न जाय ॥६॥ तेडी तेदना तातने, राजा नाखे एम ॥ काढ एहने घर थकी, जो तुं वांडे खेम ॥७॥ | ॥२५ ॥ उर्जनजनसंसर्गात् । साधोरपि जवंति विपदो वा ॥ दशमुखकृतेऽपराधे । वारिधिरपि बंधनं प्राप्तः ॥१॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल आठमी. कोयलो परवत धुंधलोरे लोल-ए देशी. मंदिरथी सुत काढीयोरे लोल, सांजली नृपनी वाणरे॥सुगुण नर ॥सागर कोसंबी) गयोरे लोल, जिन जगिनीने जाणरे ॥ सु० ॥१॥ व्यसन निवारो वेगलां रे खोल, (ए ० ) व्यसन अबे फुःखदायरे ॥सु॥ व्यसन संगति वारजोरे लोल, जेम तुमने सुख थायरे ॥ सु व्य० ॥२॥ व्यसनी सांजली तेहनेरे लोल, बेहेने न दीधो मानरे ॥ सुणा जाग्यहिण जाये जिहारे लोल, तिहां पामे अपमानरे ॥ सु० व्य० ॥३॥ नगर मांही सागर जमेरे लोल, कोइ न पूछे वातरे ॥ सु०॥ मुनि दीगे एक तेहवेरे लोल, हयडे हरख न मातरे ॥ सु० व्य० ॥४॥ चरणकमल नमी तेदनां रे लोल, सुणे उपदेश सुजाणरे ॥ सु॥ अनंतकाय थजदय तज्यारे लोल, व्यसन तणां पच्चरकाणरे ॥सु० व्याय॥ हरखी जिनदत्त इयमलेरे लोल, धरमी सांजली नायरे ॥सु॥ माणस मूकी तेडावीयोरे लोल, जगति करे मन लायरे ॥ सु० व्य॥ ६॥ आपीने धन श्रापए॒रे लोल, मंडाव्यो व्यापाररे ॥ सु॥ हलवे हलवे पामीयोरे लोल, शोजा अव्य अपाररे ॥ सु व्य० ॥ ७॥ तिहां व्यापारे श्रावीयारे लोल, सूरजपुरना शाहरे ॥ सु० ॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंग 5 धर्मपरी तेहने देखी तातनेरे लोल, मलवा करे उमाहरे ॥ सु व्य० ॥ ॥ गामां उंट ने पोठीयारे लोल, नलां नरी क्रयाणरे ॥ सुणा बेहेन तणी अनुमति लेरे लोल, सागर ॥१५॥N कीध प्रयाणरे ॥ सु० व्य० ॥ ए ॥ नगर श्रव्युं जब हकमुरे लोल, निसरीया साथ | मूकरे ॥ सुणा उतावला घर जाइएरे लोल, राते गया वाट चूकरे ॥ सु व्य०॥ १० ॥ अटवी मांही जर पड्योरे लोल, नूखे अति पीमायरे ॥ सु॥ फल पाकां ने फूटरांरे । लोल, सहने श्राव्यां दायरे ॥ सा व्य॥११॥सागर प्रले तेहनेरे लोल, कहो।। एहनुं तुमे नामरे ॥सु॥ नाम अमे जाणुं नहींरे लोल, एशुं नहीं मुज कामरे ॥ सुन व्य० ॥ १५ ॥ जेणे फल खाधां ते ढळ्यारे लोल, धरणी तले भ्रसकायरे ॥ सु० ॥ स्त्रीरूप धरी वनदेवतारे लोल,नियम परीदे थायरे ॥सुव्य० ॥१३॥ सरस सुगंध फल आगोरे लोल, मूकी नाखे नारीरे ॥ सु॥ ए फल सुंदर जे जखेरे लोल, रोग जरा दे निवारीरे ॥ सु व्य० ॥ १४ ॥ जरा जाजरी हुं हतीरे लोल, तरुणी था। फल खायरे ॥ स॥ सागर कहे नाम एनंरे लोल, मुजने सुणावो मायरे ॥ सु n व्यम् ॥ १५ ॥ नाम नथी हुँ जाणतीरे लोल, तो मुजने ले निमरे ॥ सु० ॥ व्रतनो नंग करूं नहींरे लोल, ज्यां जीवं त्यां सीमरे ॥ सु० व्य० ॥ १६ ॥ दृढपणुं देखी wr Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवतारे लोल, त्रुठी कहे वर मागरे ॥ सु॥ मित्र उगमो माहरारे लोस, जेम पुःख जाये नागरे ॥ सु० व्य० ॥ १७ ॥ टाली मूरग तेहनीरे लोल, श्राएया सूरजपुर पासरे ॥ सु०॥ रतनमंझपे सागर ग्वेरे लोल, नाटक करे उदासरे ॥ सु० व्य० ॥ ॥ १७॥ राजा अचरिज सांजलीरे लोल, आव्यो जोवा काजरे ॥ सु०॥ मातपिता श्रावी मल्यारे लोल, धर्मश्री सीध्यां काजरे ॥ सु० व्य० ॥ १५॥ धर्म जिनेश्वरनो| तिहारे लोल, में पाम्यो मन नावरे ॥ सु० ॥ कुंदलता माने नहींरे लोल, तुमे कहो |||| |वात बनावरे ॥ सु व्य० ॥२०॥ नूप सचिव मन चिंतवेरे लोल, पापणी न माने साचरे ॥सु॥ आठमा खमनी भाउमीरे लोल, ढाल कही नेमे वाचरे ॥सु व्य० ॥१॥ विद्युक्षता प्रते वारता, हवे शेठ पूबंत ॥ तुजने प्राप्ति धर्मनी, केम थर कहो विरतंत ॥ १ ॥ बोले ते विद्युलता, चंपापुरे सुदंग ॥ नूपति राज करे नलो, वरते श्राण अखंड ॥२॥ शेठ नाम सुरदेव बे, गयो व्यापारे विदेश ॥ अश्वरतन ले। श्रावीयो, कुशल आपणे देश ॥३॥ मूल देश राजा लीया, घोमा घणा प्रधान ॥ वधी प्रीति नृप शेग्ने, ते दिनथी बहु मान ॥४॥ मासखमणने पारणे, शेठ घरे Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१६०॥ एक साध ॥ श्राव्यो देखी चिंतवे, चिंतामणि में लाध ॥ ५॥ मोदक तस प्रतिला- खम ७ नीने, वांदे बे कर जोम ॥ देवे करी घर आंगणे, वृष्टि कनकनी क्रोड ॥६॥ समुअदत्त नामे वणिक, दान तणां फल देख ॥निंदे निज निरधनपणुं, शेठ प्रशंस विशेख ॥७॥ ___ढाल नवमी. सुण मेरी सजनी रजनी न जावेरे-ए देशी. हुँ हवे परदेशे जश् धन खाटुंरे, दलिखी तणुं नाम पूरे दाटुंरे ॥ चार मित्रशुं समुदत्त चाल्योरे, सिंहलहीप जश् नयणे निहाल्योरे ॥१॥ पलास गाम अनुक्रमे पहोतारे, मांहो मांही कहे गहगहतारे ॥ समुदत्त कहे रहेशुं अहींयारे, मन माने ते जाउँ तिहारे ॥२॥ सहुको वली इहां एका थाशुरे, पठी आपणी नादिशे जाशंरे ॥ बीजो साथ नगरमां पेगोरे, सरोवर पाळे समुदत्त बेठोरे ॥३॥ अशोक नामे सोदागर थाव्योरे, समुपदत्तने तेणे बोलाव्योरे ॥ जो तुं मादा घोमाy पालेरे, ताहरु माग्युं करूं हवालेरे ॥४॥ दिन मांहे दोय वेला नूतिरे, खट मास ॥१६ ॥ अंतरे कंवल जूतिरे ॥ त्रण वरसनी अवधि कीजेरे, अश्व युगल मन गमता लीजेरे| ॥५॥ एम परवीने रह्यो समुदत्तरे, अशोक पुत्रीशुं लाग्युं चित्तरे ॥ मीगं फल Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस आणी श्रापेरे, कमलश्री पति तेहने थापेरे ॥६॥ एक दिन कमलश्री प्रते नाख्युरे, निज देश जवा में मन राख्युरे ॥ ते कहे हुं तुज आवीश साथेरे, लखीयो पति तुं माहरे माथेरे ॥ ७॥ ईश्वर पुत्री तुं मृदु अंगीरे, सिंहण लंकी नयण कुरं- गीरे ॥ हुँ निरधनने पंथिक विदेशीरे, केम तुं माहरे साथ श्रावेशीरे ॥ ७॥ तुज | गुण राती प्रीतम मोरारे, वचन न बोलो एवां कोरांरे ॥ रागे महिला सोंपेरे प्राणरे, वीरवी रामा करे तस हाणरे ॥ ए॥ .. । ददाति रागिणी प्राणान् । हन्ति प्रेषिणं पुनः॥ पाहो रागो विरागो वा । कोपि लोकोत्तरः स्त्रियः ॥१॥ ___ जव मुज तात देखाडे घोमारे, तव उबला बे खेजो सजोडारे॥ जे धोलो ते श्राकाशे उडेरे, रातो ते जलमां नवि बुडेरे ॥ १० ॥ एम संकेत करी ते रहीयारे, चारे मित्र श्राव्या उमीहारे ॥ चालो थापणे देशे जश्एरे, कुटुंबशुं मली सुखीया थश्एरे ॥ ११ ॥ समुदत्त श्रावी अशोकने आगेरे,त्रण वर्षनी मस्तुकी मागेरे॥मेरा मोटी| १ चाकरी. २ अश्वशाळा. Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंकन ते देखावेरे, अश्व युगल लो जे दाय श्रावेरे ॥१२॥ उबला दीठा ते वे लीधारे, समुन दत्तनां वांडित सिर्धारे॥आठमा खंडनी नवमी ढालरे, नेमविजये कही उजमालरे ॥१३॥ ॥१६॥ उदा. अशोक कहेरे मूढ तुं, आज कालमां प्राण ॥ मूके एहवा अश्वने, कां से ए अंध जाण ॥१॥ कनकाजरण अलंकर्या, माता उंचा वाह ॥ बीजा से तुं बापडा, बांकी एहनी चाह ॥२॥ समुदत्त कहे एणे सयु, नहीं अवरशुं काम ॥ पासे उना ते कदे, जम उराग्रही नाम ॥३॥ हित उपदेश एहने विषे, दीधो निष्फल थाय ॥ धूमूरखनु औषध नहीं, कहे महा कविराय ॥४॥ यतः- मूर्खस्य षड्चिह्नानि । गर्व उर्वचनं मुखम्॥ विवादी विरोधी च । कृत्याकृत्यं न मन्यते ॥१॥ जा मुज पुत्री थासक्त डे, कह्यो दशे एह नेद ॥ गहन चरित्र के नारीनो, कसो करूं मन खेद ॥५॥ जो ए थश्व आपुं नहीं, थाय प्रतिज्ञा नंग ॥ कमनश्री परणावीने, वादीधा तेह तुरंग ॥६॥ M ॥१६१॥ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाल दशमी. उदया ते पुररो मामवोरे, गढ अरबुदरी जान महाराजा, अमा मोरी, केसरीयो वर रुमोजी लागे-ए देशी. समुदत्त हवे चालीयोरे, साथे कमलश्री लेय ॥ जन जोजो ॥ अशोक नौवाहक | शिखव्यारे, उतरतां कहे तेय ॥ जन जोजो सहु कोय ॥ वात अपूरव जे होय ॥ए श्रांकणी ॥१॥ जिनधर्म सखा जीवनेरे, श्ण नव परजव जोय ॥ जन ॥ धर्म धाविना धंधे पड्यारे, सुख नवि पामे कोय ॥ ज० वा० ॥२॥अश्व युगल जो तुं दीएरे, नदी उतारूं तुज ॥ ज० ॥ समुदत्त कहे तुमे चोरटारे, बोलो एहवं अबुज ॥d ज० वा ॥३॥ जो तुं बेसीश नावारे, तो रहेशे हय दोय ॥ ज० ॥ कमलश्री कहे पीयुजीरे, सवि चिंता नाखो खोय ॥ ज० वा ॥४॥ श्राकाशगामी उपरेरे, चढी बेसो मुज संग ॥ ज० ॥ जलगामी हाथे धरीरे, जलनिधि तरो निःशंक ॥ ज० वा ॥५॥ तेम करीने ते उतारे, श्राव्यां चंपापुरी मांह ॥ ज०॥ एक अश्व नृपने दीयोरे, नूप पुत्री दे उडाह ॥ ज० वा ॥६॥ अर्ध राज वली उपरेरे, बे नारीशुं सुख ॥ ज० ॥ समुदत्त नित जोगवेरे, घर गयां सवि सुःख ॥ ज० वा० ॥ ७॥ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंगत धर्मपरी०सुरदेवने श्रापीयोरे, हय नृप रक्षा काज ॥ ज० ॥ सुर तीरथयात्रा करेरे, चढी विजय तर वाज ॥ ज० वा० ॥ ७ ॥ गगने जातां देखीयोरे, पतिपतिए एक वार ॥ ज० ॥ ॥१६॥ सुनट सहुने ते कदेरे, बेठो सना मोकार ॥ ज० वा ॥ ए ॥ ए अश्व श्राणी थापे जीकेरे, पुत्री सहित अर्ध राज ॥ ज० ॥ तेहने आपुं सांजलीरे, कुंतल कहे लावू वाज ॥ ज० वा० ॥१०॥ चंपा मांहे श्रावीनेरे, जश्य हरण उपाय ॥ज ॥कोय न लाने तव तिहारे, कपट श्रावक ते थाय ॥ ज० वा० ११॥सुरदेवने देहरेरे, अांखे पाटा बांध ॥ ज० ॥ पडीयो पूढे तेहनेरे, कहे मुजने आबाध ॥ ज० वा ॥ १२ ॥ सुरदेव जिन पूजीनेरे, पूज्यु ए जे कुण ॥ ज० ॥महा श्रावक श्रचाक कद्देरे, नेत्रा म गांठीन तुण ॥ज वा० ॥ १३ ॥ पय प्रणमीने विनवेरे, दयावंत सुरदेव ॥ ज० ॥ वाले श्रावो आपणेरे, घर करूं तुमारां नेव ॥ ज० ॥ वा० ॥ १४ ॥ मंदिर तेड्यो हाथ\रे, करे परि-| चर्या तास ॥ ज० ॥ कपटी निशि अवसर लहीरे, हय चढी चाल्यो आकाश ॥ ज० वा० ॥ १५ ॥ वहेता वाहने चाबखोरे, मार्यों कुंतल वीट ॥ ज० ॥ पाड्यो हेगे पापीनेरे, शत खंड थयो शरीर ॥ ज० वा ॥ १६ ॥ अश्व जश् अष्टापदेरे, चैत्य तणे रह्यो बार ॥ ज० ॥ विद्याधर हरि देखीनेरे, ऋषिने पूढे विचार ॥ ज० वा० ॥ १७ ॥ ॥१६॥ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |चारण मुनिए अवधे करीरे, कडं गंधर्व सरूप ॥ ज० ॥ तुरंग विना सुरदेवनेरे, वेदन करशे नूप ॥ ज वा ॥ १७ ॥ श्रापमा खंड तणी कहीरे, दशमी ढाल रसाल ॥ ज० ॥ रंगविजय शिष्य एम कहेरे, नेमविजय उजमाल ॥ ज० वा ॥ १५ ॥ उदा. | सूतो उठ्यो शेठजी, हय नवि दीगे तेथ ॥ अश्वपालने पूबीयु, कोण जाणे गयो केथ ॥ १॥ ठगी गयो ते धर्म ठग, श्यो उत्तर नृप देश ॥धर्म करता एड्वो, श्रावी| जापमीयो क्लेश ॥२॥ टाले श्री जगवंतजी, मरणांतग उवसग्ग ॥ शरण करी जिन- II धर्मनो, चैत्य कर्यो काउस्सग्ग ॥३॥ चुगले जश् चाडी करी, कह्यो अश्व उदंत ॥ घर बुंटी नूपति कहे, करो एहनो अंत॥४॥चाकर चैत्ये दोमीया, कर साही करवाल ॥ देरा मांही पेसतां, देवे थंच्या ततकाल ॥५॥ सेनानी नृप मूकीयो, कदेवा तेह हे वाल ॥ कोपी सेना सज करी, चमी थाव्यो नूपाल ॥६॥ नूप विना सहु थंजीया, लाचिंते राजा चित्त ॥ कोई उपाय इसो होये, रहे रतन ने मित ॥ ७॥ विद्याधर जिन|वर नमी, सामी साहाय्य निमित्त ॥ श्रश्व लेश्ने श्रावीया, चंपापुरी तुरत ॥ ७॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥१६३॥ ढाल अगीआरमी. जगजीवन जग वालहो-ए देशी. अश्वने मूकी श्रांगणे, जिनहर मांही जाय लालरे ॥ पदपंकज परमेष्ठिनां, प्रणमी जणे सुणीताय लालरे ॥ साचो धरम संसारमां ॥ ए श्रांकणी ॥१॥ साचो धरम संसारमां, धरम करो सहु कोय लालरे ॥ धरमे धण कण संपजे, धरमश्री शिवसुख होय लालरे ॥ सा ॥२॥ अमे विद्याधर आवीया, अष्टापदनी जात्र लालरे ॥ श्रश्व तुमारो श्राणीयो, तुज दीवे या गात्र लालरे ॥ सा०॥३॥ शरण करी नृप शेठनो, चरण नमे वारंवार लालरे ॥ मूकी सेना मोकली, देवे थंनी जे छार लालरे ॥ सा ॥४॥ सुरदेव कानस्सग्ग पारीने, हय सोंप्यो नृप हाथ लालरे॥वय गये संयम लीयो, शेठ नूपति बे साथ लालरे ॥५॥ विद्याधर उबव करी, पहोत्या निज आवास लालरे ॥ एम प्रत्यक्ष फल देखीने, धरम को उबास लालरे ॥ सा ॥६॥ नारी सहित कहे शेठजी, तें नाख्यु ए सत्य लालरे ॥ कुंदलता कहे एकली, ए पण वात असत्य लालरे ॥ सा ॥ ७॥ चित्त मांहे एम चिंतवे, श्रेणिक अजयकुमार लालरे ॥ प्रत्यद दी लवे, अहो पापिणी ए नार लालरे ॥ सा ॥ ७ ॥ हुँ एदने रुमी परे, Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देशुं शिदा सवार लालरे ॥ श्राज पढ़ी जेम एहवं, न कहे कूड़ें केवार लालरे ॥ सा ए॥ अरुणोदय देखी हवे, कुकडे कीधो सोर लालरे ॥ श्राव्यो मंदिर श्रापणे, राजा मंत्री चोर लालरे ॥ सा० ॥ १० ॥ परनाते परिवारशुं, परवरीयो नूपाल लालरे ॥ अहदासने घर श्रावीयो, शेठ रतन जरी थाल लालरे ॥ सा ॥ ११॥ श्रागल मूकी नेटणु, कर जोमी पाये लाग लालरे ॥ उनो एम विनति करे, माहरो मोटो नाग| लालरे ॥ सा ॥ १२॥ जंगम तीरथ माहरे, घर श्राव्या महाराज लालरे ॥ प्रसन्न | | यश् प्रनु नाखीए, मुज सरि जे काज लालरे ।। सा० ॥ १३ ॥ अवनिपति कहे धर्म-| नी, कथा कही तुमे रात लालरे ॥ निंदी नारी जेणीए, दाखवो ते मुज जात लालरे | ॥ सा० ॥ १४ ॥ निग्रह करशुं तेहनो, सुणी शेठ कांखो थाय लालरे ॥ शुं नूप पोते। श्रावीयो, के पुर्जने कडं जाय लालरे ॥ सा ॥ १५ ॥ असत्ये नृप दंग पामीए, सा-1 चे नारी नाश लालरे ॥ एम त्यां जन कहेवे सहु, अर्हदास रह्यो विमास लालरे ॥ सा ॥ १६ ॥ कुंदलता निसुणी एशें, आवी नृपने पास लालरे ॥ उष्ट नारी ते ढुं श्रद्धं, पण सुणजो अरदास लालरे ॥ सा ॥ १७ ॥ धणी शोकने श्रावीयो, परियागत |जिनधर्म लालरे ॥ पितर न जाणे माहरा, श्रीजिनशासन मर्म लालरे ॥ सा० ॥१७॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी० ॥ १६४ ॥ तोपण ए फल सांजली, पामी ढुं वैराग लालरे ॥ प्रिय पूर्वी करी पारं, व्रत लेशुं धरी राग लालरे ॥ सा० ॥ १७ ॥ महीमा दीठो धरमनो, एणे सघले साक्षात् लालरे ॥ तोपण जोग तजे नहीं, तेणे जूठी कहुं वात लालरे ॥ सा० ॥ २० ॥ आठमा खंग तणी कही, अग्यारमी ढाल रसाल लालरे ॥ रंगविजय शिष्य एम नणे, नेमविजय उजमाल लालरे ॥ सा० ॥ २१ ॥ डदा. जो ए संयम आदरे, तो सघलुं कहुं सत्य ॥ नूपादिक सहको कहे, अहो श्रहो ताही मत्य ॥ १ ॥ व्रत सेवा मुंज मन हतुं, पड्यो जोगने पास || दीक्षा लेशुं हवे श्रमे, एम जंपे अईदास ॥ २ ॥ जोजन नक्ति करी जली, नृप संप्रेड्यो धाम ॥ श्राव दिवस व करी, धन खरच्युं शुभ गम ॥ ३ ॥ सद्गुरु पासे संयम लीयो, याव नारीशुं यदास ॥ तप जप कर्म खपावीने, कीधो शिवपुर वास ॥ ४ ॥ सुहस्ती सूरि |देशन सुणी, संप्रति नाम नरेश ॥ जिनवर धर्म विशेषथी, वरतावे निज देश ॥ ५ ॥ धरम करो जवियण सदा, धरमे जावत जाय ॥धरमे मनवंबित फले, वसे शिवपुर मांय ॥ ६ ॥ जिन प्रासाद करावीयां, दीघां बहु परे दान ॥ जनम सफल करी श्रापणो, खंग ॥ १६४ ॥ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाम्यो श्रमर विमान ॥७॥श्री हीरविजय सूरीसरु, शुजविजय तस शिष्य ॥ नावनाविजय कविजन नला, सिकि नमुं निशदिस ॥ ॥ रूपविजय कविराजमां, कृष्ण वि||जय कर जोम ॥ रंगविजय बे रंगीला, नावे एहनी होमए॥श्राठमो खंड पूरो थयो, || ढाल अग्यारे सार ॥ नेमविजयने नित्य प्रते, होजो जयजयकार ॥ १० ॥ - इति श्रीधर्मपरीक्षारासे अष्टम खंमः Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंमए ॥१६५॥ खंड ए मो. ढाल पदेली. ते मुज मिठामि मुक्कम-ए देशी. सांजलरे तुं प्राणीया, सद्गुरु उपदेश ॥ मानवनव दोहिलो लह्यो, उत्तम कुल एश ॥ सां० ॥ १॥ देवतत्व नवि लख्यो, गुरुतत्व न जाएयो ॥ धरमतत्व नवि, सद्दह्यो, हयडे झान न थाण्यो ॥ सांग ॥२॥ मिथ्यात्वी जिन सूर प्रते, सरिखा करी जाण्या ॥ गुण अवगुण नवि उलख्या, वयणे वखाण्या ॥ सांग ॥३॥ देव थया मोहे ग्रह्या, पासे राखे ने नारी॥काम तणे वशे जे पड्या, अवगुण अधिकारी सांग ॥४॥ | कोश्क क्रोधी देवता, वली क्रोधना वाह्या ॥ को कीणथी ते बीहता, हथियार संवाह्या ॥ सांग ॥५॥ क्रूर नर जेहने घj, देखंतां मरीए ॥ मुखा जेहनी एहवी, तेहथी शुं| तरीए ॥ सांग ॥६॥श्रा करम सांकल जड्या, जमे जवही मोजारो ॥ जनम मरणां नव देखीने, पाम्यो नहीं पारो ॥ सां०॥७॥ देव थ नाटक करे, नाचे जण जण श्रागे॥ वेष करी राजा कृष्णनो, वली निदा मागे ॥ सां० ॥ ॥ मुखकर वाये वांसली, पहेरे तन वागा ॥जावतां मन नोजन करे, एहवा त्रम लागा॥ सां०॥ ए॥दे-IN ॥१६५॥ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खो दैत्य संहारवा, थया उद्यमवंतो ॥ हरि हरणांकस मारीयो, नरसिंह. बलवंतो ॥ सांग ॥ १०॥ म कल अवतार लेश, सहु असुर विदार्या ॥ दश अवतारे जुजुश्रा, दश दैत्य संहास्या ॥सां॥११॥ माने मूढ मिथ्यामति, एहवा पण देवो॥फेर फेर अवतार से, देखो कर्मनी देवो ॥ सां० ॥ १५ ॥ खामि शोने जेहवो, तेहवो परिवारो ॥ एम जाणीने परिहरो, नेमविजय विचारो ॥ सांग ॥१३॥ ढाल बीजी. उधव माधवने केजो-ए देशी. | जगनायक जिनराजने, दाखवीए देव ॥ मूकाणा जे कर्मश्री, सारे सुरपति सेव ज०॥१॥ क्रोध मान माया नहीं, बांड्यां आठे मदथान ॥रति अरति वेदे नहीं, नहीं लोन अज्ञान ॥ ज० ॥२॥ निमा शोक चोरी नहीं, नहीं वयण अलीक ॥ म-16 घर जय बंध प्राणीनो, न करे त्रण तीक ॥ ज० ॥३॥प्रेम क्रीमा न करे कदी, नही नारी प्रसंग ॥ दास्यादिक अढार ए, नहीं जेहने अंग ॥ ज० ॥४॥ पद्मासन पूरी करी, बेग अरिहंत ॥ निश्चल लोयण जेहनां, नाशाय रहंत ॥ ज०॥५॥ जिन| मुसा जिनराजनी, दी। परम उल्लास ॥ समकित थाये निरम, दीपे ज्ञान उजास Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी ॥ १६६॥ ज० ॥ ६॥ गत थागत सहु जीवनी, देखे लोकालोक ॥ जिन देखे सवि वस्तुने, खमए केवलझाने अलोक ॥ ज० ॥७॥ मूरत श्री जिनराजनी, समतारस जंडार ॥ शीतल नयण सोहामणां, नहीं वांक लगार ॥ ज० ॥ ॥ हसित वदन हरखे हीयो, देखी श्री जिनराय ॥ सुंदर बबी प्रजु देहनी, शोजा वरणीन जाय॥ज०॥ ए॥अवर तणी एहवी बबी, कीहांए न दीसंत ॥ देवतत्त्व एम जाणीए, सहु सुणजो संत ॥ ज० ॥१०॥ नवमा खंड तणी कही, ढाल बीजी ए सार ॥ रंगविजय शिष्य नेमने, होजो जय-16 जयकार ॥ ज०॥ ११ ॥ ढाल त्रीजी. यत्तनी देशी. श्री जिनवर प्रवचन जाख्या, मांही कुगुरु तणा गुण दाख्या ॥पासबादिक पंचेश्, पाप श्रमण कह्या पंचे॥१ ॥ गृहीनां मंदिरथी श्राणी, आहार करे जात पाणी॥ |सुश् जंघे जे निशदिस, मरमादि विसवा वीस ॥२॥क्रिया न करे केणे वार, पमिकमj ॥१६६॥ सांज सवार॥न करे सूत्र थरथ सजाय, विकथा करतां दिन जाय ॥३॥ घृत पूध दहीं अप्रमाण, खाये न करे पच्चरकाण ॥झान दर्शन ने चारित्र, मूकी दीधां ते सुपवित्र॥४॥सु Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहित मुनि समाचारी, पाले नहीं ते अणगारी ॥ आहारना दोष बायाल, टाले नहीं कीही काल ॥ ५ ॥ धब धब धसमसतो चाले, काचे जले देह पखाले ॥ चरचा अर चना वंदावे, वस्त्रादिक शोन बनावे ॥ ६ ॥ परिग्रह वली जोजो राखे, वली वली अधिकाने धांवे ॥ माठी जे करणी कहीए, ते सघली जिसमें लदीए ॥ ७ ॥ एवा जेह कुगुरु आरंजी, मुनि साधु कहेवाये जी ॥ किय कम्म प्रशंसा करीए, जव जव ग्रहमा अवतरीए ॥ ८ ॥ लोढानी नावाने तोले, जवसायरमां जे बोले ॥ नेम कहे जलो अहि कालो, पण कुगुरुनी संगति टालो ॥ ए ॥ ढाल चोथी. | कर जोमी आगल रही - ए देशी. ju गिरुत्रा गुरु जैलखो, दयडे सुमति विचारीरे ॥ गुरु सुपरीक्षा दोहली, मूलां पडे नर नारीरे ॥ गु० ॥ १ ॥ पांचे इंद्रि वश करे, पंच महाव्रत पालेरे ॥ चार कषाय तजी जेणे, पांचे किरिया टालेरे ॥ गु० ॥ २ ॥ पांचे सुमते सूमता रहे, तीन गुपति जे धारेरे ॥ दोष बेंतालीश टालीने, पाणी जात आहारेरे ॥ गु० ॥ ३ ॥ ममता बांकी देहनी, निरलोजी निरमायीरे ॥ नवविध परिग्रह परिहरे, चित्तमें चिंतन कांइरे Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी खंमए ॥१६॥ गु०॥४॥ पमिलेहण नित्ये विधे, करे प्रमाद निवारीरे ॥ काळे शुद्ध क्रिया करे, पन्नर हायाग निवारीरे ॥ गु०॥५॥ धर्म तणां उपग्रण धरे, संयम पालवा काजेरे ॥ नोंय जो पगलां जरे, लोक विरुरूथी लाजेरे ॥ गु० ॥६॥ वस्त्रादिक शुद्ध एषणी, व्ये देखी सुविशेषरे ॥ काळ प्रमाणे खप करे, झूषण टलता देखेरे ॥ गु० ॥७॥ कुषी संबल जे कह्या, सानिध्य केमही न राखेरे ॥ दे उपदेश यथास्थिते, सत्य वचन मुख नाखेरे ॥ गु० ॥ ॥ तन मेला मन उजला, तप करी दीण देहरे ॥ बंधन बेदी करी, विचरे जन निसनेहीरे ॥ गु० ॥ ए ॥ एहवा गुरु जो करी, आदरीए शुन नावेरे ॥ बीजो तत्त्व सुगुरु तणो, जगमां एम कहावेरे ॥ गु० ॥ १० ॥ नवमा खेमनी नाए कही, ढाल चोथी ए वारुरे ॥ रंगविजय शिष्य एम कहे, नेमविजय श्रोता सासरे ॥ गु० ॥ ११॥ ढाल पांचमी. करम न बूटेरे प्राणीया-ए देशी. नवसायर तरवा नणी, धरम करे सारंज ॥ पथ्थर नावेरे बेसणे, तरवो समुख | १ कर्मादान. ॥१६॥ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डुर्लन ॥ ज०॥१॥ आपे गोकुल गायनां, आपे कन्यारे दान ॥ आपे क्षेत्रे पुण्यारथे, ब्राह्मणने देइ मान ॥ ज० ॥ २ ॥ लुटावे धाणी वली, पृथ्वी दानशुं प्रेम ॥ गोला कलसारे मोरीया, आपे हल तिल हेम ॥ ज० ॥ ३ ॥ वली खणावेरे खांतसुं, कुवा सुंदर वाव ॥ पुष्करणी करणी जली, सरवर सखर तलाव ॥ ज० ॥ ४ ॥ कंदमूल मूके नहीं, अग्यारस व्रत दीस ॥ श्रारंभ ते दिन प्रति घणो, धरम किहां जगदीश ॥ ज० ॥ ५ ॥ याग करे होमे तिहां, घोडा नर ने रे बाग || होमे जलचर मींगकां, धर्म किहां वीतराग ॥ ज० ॥ ६ ॥ करे सदाइरे नोरतां, जीव तथा श्रा आरंभ ॥ दणे सारे बोकडा, जेहथी नरक सुलंन ॥ ज० ॥ ७ ॥ सरावे ब्राह्मण कने, पूर्वज तणोरे श्राद्ध ॥ ते मी पोंखेरे कागमा, देखो एह उपाध ॥ ज० ॥ ८ ॥ तीरथ जाये गोदावरी, गंगा ग यारे प्रयाग ॥ नाहे अणगल नीरमां, धरम तो नहीं लाग ॥ ज० ॥ ए ॥ इत्यादिक करणी करे, परजव सुखनेरे काज ॥ एषी करणी मले नहीं, एहथी शिवपुर राज ॥ ज० ॥ १० ॥ नवमा खंग तणी जली, पांचमी ढाल रसाल ॥ रंगविजय शिष्य एम जणे, नेमने मंगल माल ॥ ज० ॥ ११ ॥ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरी | खंमए ॥१६ ॥ ढाल ही. जंबूझीपना जरतमां-ए देशी. धरम खरो जिनवर तणोरे, शिवसुखनो दातार ॥ श्री जिनराजे प्रकाशीयोरे, जेहना चार प्रकारोरे ॥ ज्ञान विचारी जोय ॥ उरगति पमतां जीवनेरे, धारे ते धर्म होयरे ॥ झा० ॥१॥ पांच महाव्रत साधुनारे, दश विध धर्म विचार ॥ हितकारी जिनवर कह्यारे, श्रावकनां व्रत बारोरे ॥ झा० ॥२॥ पांचुंबर चारे वगेरे, विष सहु माटी हेम ॥ रात्रिनोजनने कह्यारे, बहुबीजांनो नेमरे ॥ झा० ॥३॥ घोलवमा वली रींगणारे, अनंतकाय बत्रीश ॥ अणजाण्यां फल फूलमारे, संधाणां निशदिसोरे ॥ झा ॥४॥ चलित अन्न वासी कह्योरे, उंच सहु फल दद ॥ धरमी नर खाये नहींरे, ए बावीश अनदरे ॥ झा ॥५॥ न करे निधंधसपणेरे, घरना पण श्रारंज ॥ जीव तणी जयणा घणीरे, न पीए अणगल अंबरे ॥ झा ॥६॥ घृत परे पाणी वावरेरे, बीहे करतो पाप ॥ सामायिक व्रत पोषधेरे, टाले जवना तापोरे ॥ झा॥७॥ सुगुरु सुदेव सुधर्मनीरे, सेवा नगति सदीव ॥ धर्मशास्त्र सुणतां थकारे, समजे कोमल जीवोरे ॥ शा०॥5॥ मास मासने यांतरेरे, कुश अग्र मुंजे बाल ॥ ॥१६॥ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कला न पहोंचे सोलमीरे, श्री जिनधर्म विशालोरे ॥ ज्ञा० ॥ ए ॥ जिनधर्म मुक्तिपुरी दीएरे, चोगति भ्रमण मिथ्यात ॥ एम जिनवर प्रकाशीयोरे, त्रीजो तत्त्व विख्यातोरे ॥ ज्ञा० ॥ १० ॥ ढाल सातमी. घर श्रावोजी खांबो मोरीयो - ए देशी. श्री जिनधर्म आराधीए, करी निज समकित शुद्ध ॥ जवि तप जप क्रिया कीधली, | लेखे पडे ते विशुद्ध ॥ १ ॥ कंचन कसी कसी लीजीए, नाएं लीजे परीख ॥ देव गुरु धर्म जोश्ने, खादरीए सुपो शीख ॥ कं० ॥ २ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्मने, परिहरीए विष जेम | सुगुरु सुदेव सुधर्मने, ग्रहीए अमृत करी तेम ॥ कं० ॥ ३ ॥ मूल धरम जिनवरे कह्यो, समकित सुरतरु एह ॥ परजव सुख संपत्ति थकी, समकितशुं धरी नेद ॥ कं० ॥ ४ ॥ सकल वामव प्रतिबूजीया, के ग्रह्मां व्रत बार ॥ केश्ए चोथा व्रतने ग्रह्मो, केइ थया अणगार ॥ कं० ॥ ५ ॥ के मृषावाद उंचरे, के पाले शुद्ध आचार ॥ समकतिधारी सहु थया, विनयी विवेकी नर नार ॥ कं० ॥ ६ ॥ सुस्ती सूरिना उपदेशथी, पाम्या धर्मनो मर्म ॥ केइ जाशे सुरलोकमें, केइ पामशे मृत्यु - Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मपरीलोक धर्म ॥ कं० ॥ ७॥ संवत् अढार एकवीशमां, मास वैशाक सुद पल ॥ तिथि नखंग ए पांचम गुरुवासरे, गाया गुण में सल ॥ कं ॥ ॥ विजापुरमा विराजता, वृक्ष ॥१६॥ तपा पदे सनूर ॥ चंद्र गठमां दीपता, श्री जिनसागर सूर ॥ कं० ॥ ए॥ तेहनी सानिध में सही, गायो रास उल्लास ॥ उदो अधिको अदर होये, शुद्ध करजो पंमित तास ॥ कं० ॥ १० ॥ रास कर्या कविए घणा, पण धर्मपरीक्षानो रास ॥ एह समोवम को नहीं, जेमा अधिकार ले खास ॥ कं० ॥ ११॥ सर्व संख्याए ग्रंथ कह्यो, पांच हजार उपर पांच ॥ ढालो कही नव खंमनी, एकसो ने दश वांच ॥ कं० ॥१२॥ श्री हीरविजय सूरि तणो, शुजविजय तस शिष्य ॥ नाव विजय कवि दीपता, सिछि नमुं निशदिस ॥ कं० ॥ १३ ॥ रूपविजय रंगे करी, कृष्ण नमुं कर जोम ॥ रंगविजय गुरु माहरा, मुज प्रणम्यानो कोम ॥ कं० ॥ १४ ॥ नवमो खंम प्रो थयो, साते ढाले करी सत्य ॥ नेमविजय कहे नित्य प्रते, राखजो धर्मशुं चित्त ॥ कं० ॥ १५ ॥ N ॥१६ ॥ इति श्रीधर्मपरीदारासे नवम खंमः समाप्तः A Page #341 --------------------------------------------------------------------------  Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SEAGRAMMARPAGRAMPARASTRAGRARIAGRACRACRASRAR R LGBTAARA धर्मपरीदानो रास समाप्त. RREE AVOYVAA