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खंग ६
धर्मपरी०प० ॥ १६ ॥ नीशालीया ते अनेक नणेजी, सहु साथे रमे वली तेह ॥ एक दिवस
सुखमी आवीजी, मोशालथी घणी जेह ॥ प० ॥ १७ ॥ लाडु खाजां अति घणांजी, ॥१६॥
| मेवा मीग अपार ॥ वस्त्र आनूषण उपतांजी, पहेयां सघले तेणी वार ॥१०॥१७॥ | सुखडी वेहेंची आप आपणीजी, नीशालीए अनेक ॥ कार्तिकेय ना तुमे लेजी, |मोशालनी जे प्रत्येक ॥ प० ॥ १५ ॥ कार्तिकेय कोमामणोजी, वर्ष चौदनो कुमार ॥ घरे श्रावी वेगे पूबीयुंजी, मुज कहो माय विचार ॥ प० ॥ २० ॥ अमने मोशालनी सुखमीजी, नवि आवे कां माय ॥ अश्रुपात माताए कोजी, मन मांहे पुःख घj M थाय ॥ १० ॥१॥ कृतिका बोले सुत सान्नलोजी, कर्म काणी कहुँ केम ॥ घाट न आवे कहेतां घणुंजी, पूछीश मां वली तेम ॥ प० ॥२॥ सुत बोल्यो माता सुणोजी, तो जमशुं अमे आज ॥ जे, होय तेहबुं कहोजी, मुज आगल डोमी लाज ॥ प० ॥ २३ ॥ माता कहे तुज तणो पिताजी, मुज बाप तेहज होय ॥ अन्याय कीधो राजाए घणोजी, बाप बेहुनो सोय ॥ ५० ॥ २४ ॥ हा खंडनी आठमीजी, ढाल कही सुविशाल ॥ रंगविजयनो शिष्य कहेजी, नेमविजय मंगल माल ॥ प० ॥ २५ ॥
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