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धर्मपरीकहे मतवालो ॥ मा॥१॥ शंकर लागे ब्रह्मा पाय, कर जोडी कह्यो जग राय ॥ खंग ५
मा० ॥ में पापीए कीधो बाध, खीमा करी खमजो अपराध ॥माण ॥२॥ मुज पापीनी ॥ ४ ॥
हत्या जाय, स्वामि ते कहेजो उपाय ॥ मा ॥ खर कपाल पमे वली जेम, वचन नाखजो ब्रह्मा तेम ॥ मा० ॥३॥ कोमल वचने कृपा तव कीध, कोप तजी शिखामण दीध मा॥ ब्रह्मा कहे सांजलरे ईश, पापी मोटो तुं जगदीशमा हत्या माहरी श्रा उतरे एम, वचन कहुं ते करे तुं तेम ॥
माजटाजूट माथे हर राखो, मसाण राख विलेपन राखोमा॥५॥ नर कपाल तणो रचो हार, अस्थि रोम मांही गुंथो फार ॥माण॥ कोटे घालो ते वलीमाल, देखीती मोटी विकराल मा॥६॥माक ने किन्नरी वा अपार, नांग धंतुरो खाउँ फार ॥माणा नगन थ हीमो गामो गाम, निदा मागो गमो गम
मा॥॥ वरणावरण म करशो नेद, सघले लेजो निदा बेद ॥मा॥ मुज कपाल मांहीं घालोजेह, रात दिवस तमे जमजो तेह॥मा॥॥ एणी परे हत्या जाशे तारी, ए शिखामण सारी ॥मा॥ रुधिर देश को पुरशे कपाल, खर मस्तक पडशे तत्काल ॥मा॥ए॥ब्रह्मा
॥४ ॥ वचन सुणी तव श, जोगी रूप धर्यु जगदीश ॥ मा० ॥ कपालीक धरीयो तेह नाम, रात दिवस हीमे गामो गाम ॥मा॥१॥ एम करतां गयो घणो काल, मसाण नूमि सेवी|| |