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धर्मपरी
खंगत
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उहा. - धन लेवा ब्राह्मण गया, तव ते थया अंगाल ॥ क्षण एक रहीने वली ग्रहे, जव थाये ते व्याल ॥१॥ वृझे नूपतिने कडं, नहीं जगन फल नाथ ॥ विश्वनूति कृत |
दान फल, इह नव परन्नव साथ ॥२॥ नूप नणे विश्वनूतिने, हुं श्राव्यो तुज गेह NI जगन्य श्राध फल लेश्ने, दान बाध फल देह ॥३॥ विश्वनूति बोले हसी,
दान फल न देवाय ॥ देव तणुं वित्त व्यो तमे, अध फल द्यो कहे राय ॥४॥ | विश्वनूति वलतुं कहे, सांजल राय सुजाण ॥ स्वर्ग मुक्ति सुख जेहथी, ते कोण वेचे | दान ॥५॥ देखी सत्य नृप हिज तj, त्रुट्यो आपे रिक॥ दलिज गयुं विश्वन्नूतिनुं, जिहां साहस तिहां सिझ ॥ ६॥ नूपति पूजे मुनि प्रते, दान केतां कहो वाम ॥ त्रिधा दान मुनिवर कहे, दीधे सीजे काम ॥ ७॥
ढाल चोथी. नयरो नगीनो मारो, हाररो हीरो मारो, केसररो जीनो मारो साहेबो,
राजेंड मारा, घडी एक रहो जूकाय हो-ए देशी. शास्त्रे दान ते जाणीए, राजेंड मारा, रा लिख लिखावी ग्रंथ हो ॥ साधु नणी
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