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नक्ति करे नित्यमेव ॥ शु० ॥बेगे सन्नामांहे एम कहे, वाव जगमां देव ॥ शुण् मु० Jan६॥ वित्त सफल करवा नणी, बहु सुवरण नामे जाग ॥ शु॥ ब्राह्मण पासे मंमा
वीयो, पुण्य उपर धरी राग ॥शु मु०॥७॥ जगन करे तिहां दुकमो, विश्वनूति जा रहे विप्र ॥ शु० ॥खले जश् जब जाचीने, साचुं करे ते खिप्र ॥ शुभ मु० ॥ ॥चार कापीमी करे तेदनी, पहेली दुतवह पोख ॥ शु ॥ बीजी अतिथि त्रीजी पोते, चोथी
नारी संतोष ॥ शुग मुण् ॥ ए॥ याव्यो मुनिवर गोचरी, विश्वनूतिने बार ॥ शु०॥ बीजे पिके निमंत्रीयो, नवि लीधो अणगार ॥ शु० मु० ॥ १० ॥ मुज पिंमी त्यो खा-1 मिजी, सचित्ते मिश्रित दीउ ॥ शु० ॥ते पण मुनि लीधी नहीं, नारी बोले मीठ ॥ शु० मु० ॥ ११ ॥ आहार माहारो प्रजु दीजीए, ए मोटुं पात्र ॥ शु॥श्राज सफल |दिन आपणो, जंगम तीरथ जात्र ॥ शुग मुण् ॥ १५ ॥ श्राहार लीधो मुनिए सूजतो, हेम रतन थक्ष वृष्टि ॥ शु॥नर नारी बेहु थयां, सुधां सम कितदृष्टि ॥ शुग मु० ॥१३॥ नरपतिने जहिज कहे, देखो जगन फल देव ॥ शु०॥ कनक धारा वठी घणी, नूप लणे ततखेव ॥ शुण मु०॥ १४ ॥ में धन दीधुं तुम नणी, जश्ने त्यो तुमे तेह ॥ शु०॥त्रीजी ढाल खंग श्राधमे, नेमविजय कहे एह ॥ शु० मु॥ १५ ॥