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धर्मपरी
खंग
॥५१॥
ढाल तेरमी.
कंकण मोल लीयो-ए देशी. संधी तव देवे करीरे साजन, संग्राम निवार्यो ताम ॥ सुगुणा सांजलो ॥ गुरुपत्नी थापो वलीरे ॥सा ॥ जा तुमे श्रापणे गम ॥ सु० ॥ १॥ सोम कहे सुर सांजलोरे ॥ सा ॥ बोरु जे श्रम तणुं जेद ॥ सु० ॥ उदर मांही अबला तणेरे ॥ सा ॥ly अपावो श्रमने तेह ॥ सु० ॥२॥ सुरगुरु तव तिहां बोलीयोरे ॥ सा ॥ सांजलो || तुमे सहु देव ॥ सु० ॥ उदरे अपत्य ने माइकैरे ॥ सा ॥ किम अपावो ततखेव ॥ सु०॥३॥ सोम कहे बोरु मादरोरे ॥ सा० ॥ बृहस्पति कहे ए मुज ॥ सु०॥ गुरु जजमान जगमो करेरे ॥सा॥ नवि पामे को सूज ॥सु॥॥ वढतां थकां बेहु वारी-I यारे ॥ सा ॥ न्याय कीधो तिणे एह ॥ सु०॥ गर्नवती स्त्रीने पूबीएरे॥ सा ॥ साचुं कहेशे तेह ॥ सु० ॥५॥ सुर सघले मली पूढीयुंरे ॥ सा ॥ गुरु कामनीने ताम॥ सु०॥ सुधुं बोलो मावमीरे ॥ सा॥केहनो अपत्य अनिराम ॥ सु० ॥६॥ गुरुपत्नी कहे सांजलोरे ॥साण॥ उदर मांहे जे जेद ॥ सु० ॥ तेदने तमे पूरजोरे ॥सा॥ साधु कदेशे वली तेह ॥ सु० ॥ ॥ तव तेणीए ते जनमीयोरे ॥ सा ॥ पुत्र हुवो अनि
॥१॥