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धर्मपरी
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सु० ॥ नीकल्यो हुं गर्न मांहींथी, शीघ्र थ एहवे || मा० ॥ श०ि ॥ १२ ॥ खाउँ खाउं बारोवार, करुं हुं तव जदा || मा० ॥ क० ॥ जमण दीयो मुज मात, कहुं तुमने सुदा ॥ मा० ॥ क० ॥ तापस कड़े तेणी वार, ए पुत्र कुलक्षणो ॥ मा० ॥ ए० ॥ धन धान्यनो संहार, करे कुल क्षणो ॥ मा० ॥ कन् ॥ १३ ॥ जे भूषणे तुटे कान, ते सोने शुं कीजीए ॥ मा० ॥ ते० ॥ कोद्धुं धान जो होय, वाडे नाखी दीजीए ॥ मा० ॥ वा ॥ जा जारे मुज आागलथी, मुख लेइ पापीया ॥ मा० ॥ मु० ॥ नहीं तो फेडीश वाम, सही दुःख व्यापीया ॥ मा० ॥ स० ॥ १४ ॥ मंदिर माहरा मांहीं, दवे तुं मत रहे | मा० ॥ ६० ॥ सांजली मातानां वचण, कुमर तिहांथी वहे ॥ मा० ॥ कु० ॥ चाल्यो जाउं परदेश, तापस टोलामां जल्यो || मा० ॥ ता० ॥ रुषिनो लीधो वेश, अयोध्या यावी मल्यो | मा० ॥ ० ॥ १५ ॥ तिहां परणी मुज माय, दीवी में ते| हवे ॥ मा० ॥ दी० ॥ तापस प्रणमी पाय, पूक्या में एहवे ॥ मा० ॥ पू० ॥ तव तापस कहे एम, सांजल तुं वारता || मा० ॥ सां० ॥ स्मृति पुराण जे शास्त्र, मांहीं श्रमे धारता ॥ मा० ॥ मां० ॥ १६ ॥ श्रत योनि परणी ते, नहीं दोष एहमां ॥ मा० ॥ न० ॥ जे नारीनो नाथ, गयो परदेशमां ॥ मा० ॥ ग० ॥ चार वरष लगे वाट,
खंग ४
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