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ए श्रांकणी ॥ हाजी मरुदेवी उदरे उपन्या, रिषजदेव प्रथम जिणंद ॥ तो ॥१॥ त्र्याशी लाख पूरव गया पली, जरतने आप्यु निज राज ॥ तो ॥ आदि देवे दीदा ते अनुसरी, कायोत्सर्ग धरी करे काज ॥ तो ॥२॥ ध्यान धरे जिन जेदवे, तेहवे आव्या साला वेह ॥ तो० ॥ नमि विनमी नामे नला, श्रादि देव प्रते कहे तेह ॥ तो ॥३॥ पुत्र सहुने व्हेंची पापीया, देश नगर तुमे देव ॥ तो॥ अमने का नहीं थापीयुं, तुमारी घणी कीधी सेव ॥तो॥॥ एणी परे मागे साला दोय, हठ लेश्वरी रझा पाय ॥ तो ॥ भ्यान विघन खामीने करे, दीन वचने कृपा थाय ॥ तो ॥५॥ श्रासन कंप्यु धरणेऽनु, नागराज श्रावी करे काज ॥ तो॥ विद्या श्रापी बेहुने घणी, रूप धरी जिनराज ॥ तो॥ ६॥ विजयारध वेश् चालीयो, दक्षिण श्रेण नगर पचास
तो ॥ पचास कोमी गाम तिहां जलां, नमि थाप्यो चक्रवालपुर वास ॥ तो॥ ॥ उत्तर श्रेणि नगर साउ, तेटला क्रोम ने वली गाम ॥ तो ॥ रथनोपुर स्वामी विनमी करी, नागराज गयो निज गम ॥ तो॥७॥ नमिवंशे विद्याधर घणा हुवा, चक्रवालपुर तणा ईश ॥ तो ॥ अनुक्रमे पूर्णमेघ नृप हुवो, दक्षिण श्रेण तणो महीश ॥ तो ॥ ए॥ विनमी अनुक्रमे नृप हुवा, उत्तर श्रेणना राय ॥ तो॥ शत