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धर्मपरीतेह ॥ सा ॥ काने बुचो कालो घणो ए, खेश् चाख्या नर बेय ॥ सा ॥४॥ला खंक २
ब्रह्मशाला उत्तर दिशे ए, नील श्राव्या दोय ताम ॥ सा ॥ घंटानाद जेरी तामीने का ३०॥
ए, बेग सिंहासन गम ॥ सा ॥५॥ नाद सुणी विप्र आवीया ए, वाद करीशुं अपार ॥ सा ॥ वचन खंमशं तेह तणां ए, जीतीने कुटशं ते वार ॥ सा ॥६॥ देखीने वामव कोपीया ए, रेरे अधम नर तिम ॥ सा ॥ सिंहासन चोट्या तुमे ए, नेर वजामी किम ॥ सा ॥ ७॥ अघट काम कर्यु घणुं ए, आव्या कहो कोण काज
सा॥ मनोवेग तव बोलीयो ए, सांजलो तमे द्विजराज ॥ सा ॥॥ मीनमो | वेचवा श्रावीया ए, पुलिंदै अमारी जात ॥ सा ॥ विप्र वचन वलतो नणे ए, जु जु मूर्खनी वात ॥ सा ॥ए ॥ लंठ मोटा महा रंगना ए, घंटानाद कियो जेण ॥ सा० ॥ विप्रशुं वाद कर्या विना ए, बेठा सिंहासन तेण ॥ सा० ॥ १० ॥ मनोवेग जणे सांजलो ए, विप्र म धरशो रोष ॥ सा० ॥ नेर घंटारव श्रमे कर्यो ए, विनोद कारण नहीं दोष ॥ सा ॥ ११॥ जो तुमने बेग नवी गमे ए, तो उतरी बेसुं हे॥ सा ॥ दमा
|॥३०॥ करो हिज तुमे नला ए, हर्ष धरी-चित्त ठेठ ॥ सा ॥ १२ ॥ विप्र नणे सुण नील
१लीस.