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धर्मपरी०
॥ २५ ॥
ररे ॥ सा० ॥ १२ ॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे साररे ॥ सा० ॥ नारायण उत्पत्ति कहूं, जैनशासननो विचाररे ॥ सा० ॥ १३॥ सुखम सुखम पहेला जयो, बीजो सुखमज कालरे ॥ सा० ॥ सुखम दुखम त्रीजो सुण्यो, दुखम सुखम सुविशाल रे ॥ सा० ॥ १४॥ पांचमो दुखम दोहीलो, दुखम दुखम विकरालरे ॥ सा० ॥ नाम तेवां परिणाम बे, चडतो परतो बे कालरे ॥ सा० ॥ १५ ॥ सुखम दुखम ते अवतर्या, यादिनाथ जवताररे ॥ सा० ॥ तेनो पुत्र जरतेसरो, प्रथम जिन चक्री ते साररे ॥ सा० ॥ १६ ॥ चोथे काले त्रेवीश हुवा, तीर्थकर गुणधाररे ॥ सा० ॥ श्रजितादि ए. जाणजो, महावीर अंतिम साररे ॥ सा० ॥ १७ ॥ जरतादिक ब्रह्मदत्त लगे, चक्री द्वादश जाणरे ॥ सा० ॥ नव नारायण निरमला, त्रिपिष्ट | यदि सुख खापरे ॥ सा० ॥ १८ ॥ हयग्रीव यादे जरासंध ये, पर्यंत नव ए होयरे ॥ सा० ॥ प्रतिनारायण चक्रधरा, श्रढार अधोगति जोयरे ॥ सा० ॥ १९॥ विजय हलधर धूरे कह्यो, अंते महापद्म नामरे ॥ सा०॥ नव बलजड बलवंत जला, ऊर्ध्वगामी अनि रामरे ॥ सा० ॥ २० ॥ त्रिषष्टि पुरुष ए रुयडा, जव्य जीव जवताररे ॥ सा० ॥ पन्नरमी ढाल पहेला खंगनी, नेमविजय निरधाररे ॥ सा० ॥ २१ ॥
खंग १
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