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खंग६
धर्मपरीलोक पामा घणी करे ॥ श्रावे जात्राए हो जे नर नारके, तेदनां रोग संकट हरे ॥ ७॥
मयूरवाहनो हो स्वामी कार्तिकेयके, नाम कही लोक तीर्थ जाये ॥ वीरमती नगि॥१३० ॥ नीधी होये नाबला बीजके, पर्व हर्बु ते दिनथी थाये ॥७॥ श्रीजिनवरदेवे हो
कह्या सकल विचारके, कुमार स्वामी कार्तिकेय तणो ॥ पवनवेग तुम हो ए जाणजो सत्यके, अपर ग्रंथ विस्तार घणो ॥ए॥ मिथ्यात्वीनां हो ए वचन असारके, मन मांही थकी ए टालजो ॥ नोला लोकज हो नूला नमे गमारके, जिनवर वचनज पालजो ॥ १०॥ पवनवेगने हो थाणंद नयो तामके, समकितधारी श्रावक थयो । मनोवेग मित्रने हो करी प्रणामके, विमान रची ले निज गामे गयो ॥ ११॥ मनोवेग कहे हो सांजलो मित्रके, श्रावकनो धर्म हूं कई ॥ श्रादि समकित हो सुधं धरे |चित्तके, सात व्यसनथी पूरे रयं ॥ १२ ॥ मूल गुण हो पाले श्राज नेमके, कंदमूल सहु परिहरे ॥ व्रत पाले हो श्रावकनां बारके, सामायिक त्रण काल करे ॥ १३ ॥ तिथि पर्वणी हो पोसो करे शुझके, सचित वस्तु पूरे तजो ॥ रात्रिनोजन हो निवारो ब्रह्मचर्यके, पालो नव नेद शील नजो ॥ १४ ॥ गृह व्यापारे हो टालो पापारंजके, परिग्रह पूरे टालीए ॥ विवाह श्रादे हो अनुमत नवि देयके, उदेस्यो थाहारने
॥१३०॥