________________
अप्पे नावजो तेम, जेम पासे मुगति रहे ॥२॥ पाषाण देम घृत दूध, तिल मांही जेम तेल रह्यो॥करमे वींव्यो ए जीव, शरीर मेल जिनजीए कह्यो ॥३॥
ढाल अगीआरमी. मोरा साहेब हो श्री शीतलनाथके विनति सुणो एक मोरडी–ए देशी. - पुरुषाकारे हो ध्या श्रातमा सारके, शरीर मांहे तेज पुतलो ॥ जेमं कोस मांहि हो रहे तरवारके, तेम थातमा श्रति उजलो ॥१॥ सासो सासे हो रुंधी करी ताम
के, दशमे पुथारे वली लीजीए ॥ टालीए एम हो संकल्प विकल्प विचारके, मन निनश्चल दृढ कीजीए ॥२॥शुध बुध हो चेतन चिदानंदके, केवलान सरूप ॥शुज चिप हो हुँ वली सिझके, परम जोति सुख कूप ले ॥३॥ एम चिंतवी हो श्रातम ध्यानके, कार्तिकेय स्वामी मन रली ॥ समाधिमरणे हो साधी दुवो कालके, सर्वार्थ सिकि विमन फली ॥॥ तेत्रीश सागर हो जोगवी श्रापके, मध्य लोके नरजव सही। कर्म हणीने हो लही केवलज्ञानके, शीवरमणे वरशे सही ॥ ५॥ देव सहु तिहां हो श्राव्या ततकालके, पूजा महोबव घणो कर्यो ॥ लोक सहुए हो ए श्रापर्यु| तीर्थके, प्रसिझ सामी महिमा विस्तयों ॥६॥ माता व्यंतरी हो तेणे उपाय व्याधके,