________________
धर्मपरी०
॥ २४६ ॥
ढाल गीरमी.
दवीला जादव व करी हरीय मनावीए हो लाल - ए देशी. जयसेनाएं पारीयोरे लाल, पोसह व्रत परजातरे ॥ शासन देवी ॥ मूइ दीवी सुंदरीरे लाल, हा केणे कीधी घातरे ॥ शा० ॥ सार करो मुज सामनीरे लाल ॥ ए श्रकणी ॥ १ ॥ साच जूठ कोण जाणशेरे लाल, शोक्या तणो व्यवहाररे ॥शा० ॥ सहु कदेशे मारी होशेरे लाल, कलंक तो अवताररे ॥ शा० सा० ॥ ॥ २॥ शासनसुरी राधवारे लाल, काजस्सग्ग कीधो साररे ॥ शा० ॥ परगट थइ देवी कहेरे लाल, म करो दुःख | लगाररे ॥ शा० सा० ॥ ३ ॥ बंधूसरी दरखित थकीरे लाल, जमाइने घर जायरे ॥ शा० ॥ जाएयुं जयसेना मूइ दशेरे लाल, सुंदरी देखी दुःख थायरे ॥ शा० सा० ॥ ४ ॥ रोती माथु कूटतीरे लाल, थाकंद करती पाररे ॥ शा० ॥ जयसेनाए मारी सुंदरीरे लाल, जइ पोकारी दरबाररे || शा० सा० ॥ ५ ॥ जयसेनाने तेकवारे लाल, माणस मूके रायरे ॥ शा० ॥ तव शासन रखवालीकारे लाल, जोगीने उपायरे ॥ शा० सा० ॥ ६ ॥ जयसेना मोटी सतीरे लाल, एहवां न करे कामरे ॥ शा० ॥ राय यागल जोगी कहेरे लाल, सोने न लागे श्यामरे || शा० सा० ॥ ७ ॥ बंधूसरीए मु
खं 9
॥ १४६ ॥