________________
म्यो महीरे लोल ॥ दीग जाणी श्राव्या तुम कनेरे लोल, कहो स्वामि श्राशा श्रम कनेरे लोल ॥ १६ ॥ विष्णु तव बोल्या सहीरे लोल, सांजलो ब्रह्मा ऋषि वहीरे लोल॥ चौद जुवन निपाया तुमेरे लोल, तेहनी रक्षा करवी अमे रे लोल ॥ १७ ॥ रुजे जव | मांड्यो संहारनोरे लोल, प्रलयकाल करे अपारनोरे लोल ॥ उदरमा तव वेगे। करीरे लोल, सृष्टि तमारी में उधरीरे लोल ॥ १७ ॥ वचन सुणी रीज्या तदारे लोल, जलो कीधो तुमे श्रम मुदारे लोल ॥ खामि नुवन देखामो हवेरे लोल, जीव अमारो घणुं लवेरे लोल ॥ १९॥हरि नणे सांनलो झषि तमेरे लोल, मुखमां पेसो ज जजमेरे लोल ॥ सृष्टि जुङ तमारी एडवी रे लोल, नागे मनना सहु संदेहवीरे लोल ॥२॥ खंड त्रीजे ढाल पांचमीरे लोल, श्रोता सहु जनने गमीरे लोल ॥रंगविजयनो शिष्य एम कहेरे लोल,नेम ते जश जगमें लहेरे लोल ॥२१॥
उदा. ब्रह्मा मुखमां पेग जश्, चौद नुवन दीनं त्यांहिं ॥ स्वर्ग मृत्यु नरकावासनो, पर्वत सागर मही माहीं॥१॥सुर नर किन्नर देवता, हय गय पंखी अनेक ॥ उदर माहिं दीगे सहु, जोतां काल गयो बेक ॥२॥अधोछारे नीकलवा, ब्रह्माए विचारी वात ॥ मल