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उपर व्युं लिंगहे ॥ सा ॥ सु० ॥ ७॥ पूजी प्रतिष्ठी वंदीयो, तव रोग सोग गया। रहे ॥ सा ॥ विद्याए विघन निवारीयां, सुख संतान घर पूरहे॥ सा ॥ सु ॥ए॥ हस्त पाय मस्तक नहीं, जलाधारी मांहे लिंगहे ॥ सा० ॥ निर्लज लोक लाजे नहीं, बीली धंतुरो चढे अंगहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १० ॥ मूरख मूढ मिथ्यातीथा, हस्त शिर कंठे बांधे तेहहे ॥ सा ॥ हर हर मुख हश्डे धरे, पूजे पखाले वली जेहहे ॥ सा॥ सु ॥ ११॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग तुमे सारहे ॥ सा ॥ सत्य वचन जे जिन तणां, धरजो मन निरधारहे ॥सा॥सु॥१॥ सत्य धरम जिनवर तणो, जिहां |जोए तिहाँ सारहे ॥ सा ॥ जे नर निश्चे चित्त धरे, ते पामे नव पारहे ॥ सा सु ॥ १३ ॥ मिथ्या मत जे मोहीया, घेला ते मूढ गमारहे ॥ सा ॥ असत्य वचन वली आचरे, जव नव जमशे संसारहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १४ ॥ पवनवेग तव बोली, सांजलो नाश् चंगहे ॥ सा ॥ सत्य धरम जिनवर तणो, ते उपर मुज रंगहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १५ ॥ कुदेव कुशास्त्र कुगुरु सहु, में परीहयों मिथ्या धर्महे । ॥ सा०॥ वचन तुमारां सांजली, जांग्यो सघलो मन जर्महे ॥ सा० ॥ सु० ॥ १६॥ सुदेव सुगुरुने शादर्या, आदयों जैननो धर्महे ॥ सा॥ मित्र मनोरथ मुज फल्या,
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