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जुवन नारे करी, तुलसी माल नवि नंग ॥ तेम मयगल मुज नारथी, नीडी माल
न मंग ॥ सा ॥ ३ ॥ जेम विष्णु उदर मांहीं लम्यो, ब्रह्मा तिहां बहु काल ॥ अपणो IN जग जोतां थका, एम कहे बाल गोपाल ॥ सा ॥४॥ कमंडल मांहीं बेहु जम्या,
साव कहुं गज जेम ॥ करि पुंठे नमे घj, नाठो जाउं तेम ॥ सा॥५॥ जेम नानिकमल बिडे करी, श्राखो नीकल्यो देह ॥ श्रांमवाल वलगी रह्यो, ब्रह्मानो वली तेह ॥ सा ॥६॥ तेम हस्ती नालुए नीकल्यो, पुंबनो वलग्यो केश ॥ बलवतरे बहु बल कर्यो, हाब्यो नहीं लवलेश ॥ सा ॥७॥ वचन सुणी हिज बोलीया, सांजलो साधु नरेश ॥ कर जोडी तुज पाय पड्या, उत्तर नोही लवलेश ॥ सा ॥ ॥ मनोवेग मन नलसी, बोल्यो मधुरी वाण ॥ पवनवेग सहु सांजलो, वचन विरोध पुराण ॥ सा॥ ए॥जो विश्वलोक सघलो गब्यो, विष्णुए उदरज मांहीं ॥ तो कमंगल बाहेर केम रद्यु, कहो केम पेठा त्यांहीं ॥ सा ॥ १० ॥ अगस्त्य तुलसी काडवे, कमंमल तुब मोजार ॥ वड वृक्ष तणे पांदडे, पोढ्या देव मोरार ॥ सा ॥ ११॥ ए सौ जग बाहिर घटे, तिहां करजो विचार ॥ विप्र सह पुराणनां, वचन विरोध अपार ॥सा॥१२॥ जे ब्रह्मा ध्याये थके, मूकाए नव पास ॥ विष्णुनी नानिकमले रह्यो, पाम्यो फुःख निरास