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धर्मपरी
मा० ॥ व० ॥ तेहवे हाल कलोल, श्रयो नगरीमा घणो॥ माम् ॥ ॥ २॥ खंभ । त्रास पड्यो सहु लोक, नासे रोये घj॥ मारा लाल ॥ ना० ॥ रडे पडे उन्ना थाय न, NI चाले बल को तणुं ॥ मा० ॥ चा ॥ एक एकने पूछे लोक, जाशुं श्रापण किहां ॥ मा० ॥ जा ॥ श्रांनो उपामी नागे, हाथी श्रावे श्हां ॥ मा० ॥हा॥३॥ तेहवे मुज माताने, मेली नागे मुज पिता ॥ मा० ॥ मे ॥ ॥ जीव्यानी बहु आशा, लागी मनमें नीता ॥माला ॥ नासंता लागी बांहीं, संजोगे गर्न धर्यो ॥ मा० ॥ सं॥ उदर रह्यो हुँ त्यांह, मातानी कुखे नर्यो॥ मा० ॥ मा० ॥ ४ ॥ तात गयो मुजमाताने, मेली एकली ॥ मा०॥ मे ॥ नाठी जाये मात, विकट जाणी वली ॥ मा० ॥ वि०॥ कोमल कंपे काय ते, लोक बोले तिहां ॥ मा० ॥ लो० ॥ दीसे नहीं जरतार, ताहरो । गयो किहां ॥ मा० ॥ ताप ॥ ५ ॥ चाल्यो ते परदेश, गयो जे परहरी ॥ माग दिन दिन वाधे गर्न, लोके वात दिल धरी ॥ मा॥ लो० ॥ पूछे लोक अनेक, तारे गर्न केम थयो ॥ मा० ॥ ता० ॥ अमे जाणुं बुं सर्व तुज, धणी नासी गयो ॥ मा०॥ ॥ ६ ॥ ध० ॥६॥ तव नारी कहे जार, पुरुष संग नवि कों॥ मा० ॥ पु० ॥ हाथ मेलावे |संकट, लाग्यो तेणे धर्यो ॥ मा० ॥ ला० ॥ मानी लोके वात, कर्मगति एहनी ॥मा०॥
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