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निहोल ॥ १ ॥ वाद जीती वनमां गया, विद्याधर बेदु मित्र ॥ मनोवेग कहे सांजलो, पवनवेग पवित्र ॥ २ ॥ पूर्वापर विरोध घणा, कहेतां लागे लाज ॥ देव तथा गुण सांजलो, जेम सरे तुम काज ॥ ३ ॥ क्षुधा तृषा जय द्वेष नहीं, राग क्रोध मद लोन ॥ मान मोह माया नहीं, जन्म जरा मृत्यु होन ॥ ४ ॥ स्वेद खेद विषाद नहीं, निद्रा चिंता नहीं जेह ॥ अष्टादश दोष वेगला, धाराधो वली तेह ॥ ५ ॥ अतिशय चोत्रीश जेहने, प्रातिहार्य ाम सार ॥ अनंत चतुष्टय मंडीया, ते देव जवजल तार ॥ ६ ॥ ब्रह्मा हरि हर देवता, राग द्वेष जंकार ॥ डूषण भूषण भूषिता, पुत्र कलत्र परिवार ॥ ७ ॥ सुदेव कुदेव परीक्षा करो, धर्माधर्म विचार ॥ साचुं होय ते अंगी करो, हेम प्रकार जेम चार ॥ ८ ॥ ताप ताडन बेद घर्षण, दान दया तप जाप ॥ शस्त्री शास्त्र गुरु कुगुरुनो, परीक्षा धरो निःपाप ॥ ए ॥
ढाल सातमी.
राधा रूपे दीसे रुमी, हाथे खलके सोनानी चुमी, मारी सइरे समाणी-ए देशी. कुरु कुदेव कुधर्म तथा जेह, दोष दाखव्या पूरवे घणा एहरे ॥ मारा साजन सुणजो, ग्रंथ वधवाने कारण जेह || पाउल कह्या विचारो तेहरे ॥ मारा साजन० ॥