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धर्मपरी
खंकन
॥१५॥
फूल जिनेश्वर थरचीया, केसर चंदन अगर कपूरे चरचीया ॥ कामलता गले हार घाल्यो रमत मिषे, नाग डस्यो ततकाल पमी नोंय तसे ॥४॥ मृत पुत्रीने देख अका कूटे हैयु, आक्रंद करे अपार दैव तें शुं कीयुं ॥ करे विलाप अनेक नयणे आंसु जरे, घट सरप लेश वेगे श्रावी नृप मंदिरे ॥ ५॥ करती हाहाकार कहे पोकार करी, देव सुणो अरदास सोमा अति मद नरी॥ माहरी बाल हवे हुँ केम करूं, मोशी निराधार जीवित केणी परे धरूं ॥ ६ ॥ सोमा तेमावी राय कहे कुल खांपणी, काम-19 लताने कांमारी ते पापिणी ॥ कहे सोमा महाराज वचन अवधारीए, जयणा सूक्ष्म जीव थूल केम मारीए ॥७॥ मांमी पूरव वात सोमाए सवी कही, देखाड्यो घट साप मित्रा अवसर लही ॥पंच वरण फूलमाल सोमा हाथे धरी, मित्रा जाले हाथ अहि थाये फरी ॥॥ वार त्रण एम नाग कुसुममाला हुवो, कहे सन्ना सहु | कोय सोमा साची जु॥देखी चमक्यो नूप नहीं ए मानवी, प्रत्यक्ष देवी तेह एम मन थाणवी ॥ए। कर जोमी करे राय सोमायुं विनति, कामलता जीवामो अटो तुम महा सती ॥ मंत्र नवकार प्रजाव मूर्ग मटी गइ, सती तणे करस्पर्शे उठी बेठी थइ ॥ १० ॥ सुमित्रा निज करतूक प्रकाशी शुन मते, धर्म तणां फल देख लह्यो धर्म नूप ते ॥
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