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हुंकारो सुणी जेवेरे, दामोदर चिंतवे तेह ॥ कथा सुणीने हुंकारो दीयोरे, तेम तापस वचन सही एड् ॥ सु० ॥ ७ ॥ द्विजवर कहे सदु साधुं करे, स्मृति पुराणे बोल्युं जेह ॥ वली मने एक विस्मय उपन्योरे, बार वरस रह्यो गर्ने तेह ॥ सु० ॥ ८ ॥ मनोवेग बोल्यो तव फरी वलीरे, कृषि वचन न जाणो गमार ॥ मय नामा तापस बे एक रुयमोरे, वनमें रहे निरधार ॥ सु० ॥ ॥ एक दिन रजनी सूतो ने तिहारे, स्वप्न | दीठो निद्रामां ताम ॥ नारी सरसो जोग मनशुं करेरे, वीर्य खलित दुवो आम ॥ सु० | ॥१०॥ ते वीर्य संदर्यु हाथ मांहीं जदारे, मनशुं की धोरे विचार ॥ रखे मुज वीर्य फोक जाये सहीरे, देखी हसशे नर नार ॥ सु० ॥ ११ ॥ कोपीने वीर्यने लेइ पत्र कमलनुंरे, बीऊं वाली तेणी वार ॥ निरमल नदीना जल मांहीं तदारे, वेहेतुं मेल्युं निराधार ॥ सु० ॥ १२ ॥ देडकीए ते खाधुं पांदकुंरे, गर्भ रह्यो उदर मांहीं ॥ तव तेहने रुतुनो समो हतोरे, डुर्दरीने पेट रधुं त्यांहीं ॥ सु० ॥ १३ ॥ स्त्रीनां लक्षण प्रगट्यां अंगमेंरे, मास दिवस गया अपार ॥ जनम दुवो शुभ लगने करीरे, उंच ग्रह उपन्या बे फार ॥ सु० ॥ १४ ॥ बेटीनुं नाम दीधुं मंदोदरीरे, रूप सोजागी अभिराम ॥ माताने रूप जोवाथी होंश घणीरे, बोलावे लेइ नाम ॥ सु० ॥ १५ ॥