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खंग
धर्मपरिप्रहाररे ॥ ९हुंकार करता याव्या, अनुक्रमे सहु तेणी वाररे ॥ प्री० ॥१॥ क्रोध
मान माया लोज जरीया, राग द्वेषनां गेहरे ॥ पहेला खंडनी ढाल चोश्रीमां, नेमविजय कहे एहरे ॥प्री० ॥२॥
उदा. तखत उपर बेठा चढी, दीगे सहु परिवार ॥ थालोचे मनमा तिहां, ए कुण कहीए कुमार ॥१॥थानूषण अधिके करी, पहेर्या सोल शणगार ॥ स चं नागेंड ए, अथवा देवकुमार ॥२॥ अन्यो अन्य सांसे' पड्या, जक्ति करे बहु नेव ॥ जगन्य जागना होमथी, श्राव्या सही ए देव ॥३॥ पुण्य थापणां पाधरां, आव्या
परमेश ॥ तुष्टमान थाशे सही, धर्या अनोपम वेश ॥४॥ कोइ कहे ए ने सही, नारायण, रूप ॥ आपण सहुने तारशे, पड्या बीए जवकूप ॥ ५ ॥ कोइ कहे महादेवजी, श्राव्या श्रापणी सेव ॥ हरहर मुख जपे सहु, सहुथी श्रधिको देव ॥ ६॥ कोइ कहे ब्रह्माजी तणो, अनुपम रूप थाकार ॥ ब्रह्मलोकश्री श्रावीया, तारे सहु नरनार ॥ ७॥ कोई कहे ए इंस, को कहे सूरज चं ॥ को वासी पातालनो,
१ संशयमां.