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वानर राज हो, गुण सुग्रीवनो विचार नुयोजी ॥ १६ ॥ सुग्रीव तणी जे नार हो, Kगुण वाली वानर बेश हारीयोजी ॥ तव श्रीरामे तेह हो, गुण वाली वानर ते
मारीयोजी ॥ १७ ॥ सुग्रीव थापीयो राज हो, गुण् नारी श्रावी तारा रंग नरीजी॥ तव बोल्यो सुग्रीव राय हो, गु० कार्य कहो स्वामि कृपा करीजी ॥ १७ ॥ तुमे परपकारी हो, गु० कीधो स्वामि मुज अति घणोजी ॥ नेह थकी तुमे देव हो, गुण सेवक हुँ ढं स्वामि तुम तणोजी ॥ १५ ॥ राम कहे सुणो मित्र हो, गुण नारी गश् | मुज तणीजी॥ तेहनो करो संजाल हो, गु० किहां दे सीता वहन घणीजी ॥२॥ पांचमा खेम तणी ढाल हो, गुण बीजीए कही निरमलीजी॥रंगविजयनो शिष्य हो, ० नेमविजय कहे अति जलीजी॥१॥
उहा सोरठी. सुग्रीवे तेड्यो ताम, हनुमंत वीर सोहामणो ॥ ते गयो लंकाए सार, शुद्ध करेवा नामणो ॥१॥ मुछिका श्रापी सार, संदेशा कह्या श्रीराम तणा ॥ प्रशंसी सीता नार, कह्यो कुशल ने बेहु जणा ॥२॥ लंका वाली हनुए, शुद्ध थाणी सीता तणी॥ श्रीराम हुवो संतोष, सैन्य चाल्युं लंका नणी ॥३॥ वानर सहु मिलेव, परवत उचेली