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धर्मपरी
खंक
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३॥
वामांग नेत्रे पाडी वाट ॥ सा ॥ में मनगुं विचारीयु रे, हस्ते करी टालु उपघात ॥ सा ॥ ४ ॥ जो माबो हाथ चालवुरे, तो रंगी करे मुज रीस ॥ सा ॥ जमणो हाथ जो फेरवुरे, चंगी कलेशे हणे शीश ॥ सा ॥५॥ नारी नेह तुटे रखेरे, नेत्र तणो नहीं काज ॥ सा० ॥ माबो चक्षु तव बल्योरे, नाम दीधो शुक्रराज ॥सा॥६॥नारी/ नेहने कारणेरे, नेत्र तणी करी हाण ॥सा॥ महामूरखपणुं माहरुरे, विचारो तमे बुद्धि जाण ॥सा॥७॥ तव बीजो नर एमजणेरे,मुज मूरखनी सुणो वात ॥सा॥मुजघर नारी |बे सहीरे, खरी रीमी नामे ख्यात ॥ सा ॥ ७॥ जमणो पग खरीने दीयोरे, माबो राउमीने ताम ॥ सा ॥ एणी परे सुख हुँ नोगद्रे, महीला सरसो काम ॥ सा ॥ ॥ ए॥ एक दिवस घरे हुँ गयोरे, खरी श्रावी जल लेय ॥ सा ॥ जमणो पग पखालवारे, रीडमी जोय दृष्टि देय ॥ सा ॥ १० ॥ जव खरी जमणो धो गरे, मावा उपर में धर्यों पाय ॥ सा ॥ तव रीडमी कोपे जरीरे, मुसल श्राणी को घाय॥ सा॥११॥ जमणो पग मुज नांजीयोरे, तव खरी करी घणो रोष ॥सा ॥ तुंमोटी | फुवम रीमीरे, मान मच्छर थति शोष ॥ सा० ॥ १२ ॥ निज पतिने तुं नवि धरेरे, अन्य पुरुषशुं रमे रात ॥ सा ॥ तव रीठमी कहे मुने कहोरे, आपणी गंमो श्रा
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