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का एहवी करी विचारणा, गर्जने राखं गोप ॥ खीबुं मंत्र जंत्रे करी, कोइ नवि जाणे
लोप ॥५॥ कमंडल देश हाथमां, जल बांटे जणे मंत्र ॥ जिहां लगे वर पामे नहीं, गर्न रहेजो मांही जंत्र ॥६॥ बेटी बोले वापने, गर्न खील्यो महा पाप ॥ तव मय | तापस बोलीयो, नवितव्यताने प्रताप ॥ ॥ राक्षस कुले लंकापति, विश्ववसु तात कैकै माय ॥ रावण परण्यो मंदोदरी, वार वरसनी अवधे थाय ॥ ७॥ रावणने पहेलो जाणजो, सात सहस गयां वर्ष ॥ रावणने पुत्र ए कह्यो, उपन्यो पाम्या हर्ष ॥ एy सात सहस वर्ष गये हुते, इंजित नाम कुमार ॥ बार वरस हुँ रह्यो गर्नमें, तो | करो विचार ॥ १० ॥ सांजलीने हिज बोलीया, सत्य वचन तुम सार ॥ जात मात्र थका तुमे, वेष लीधो निरधार ॥ ११॥ जे नारीए जनमीयो, फरी परणी ते नार ॥ तुम जनम थया पली, केम परणी बीजी वार ॥ १५ ॥ दोय संदेह एवा श्रबे, तेह |निवारो आज ॥ जेम मत निश्चय अम तणा, सरे सहुनां काज ॥ १३ ॥
ढाल सातमी. _ अमली लाल रंगावो वरनां मोलीयां-ए देशी. मनोवेग कहे जाइ सांजलो, सूत्रकंठ तुमे गे सुजाणरे ॥ ब्रांति लाजे जेम