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ढाल पांचमी. -- नंद सखुणा नंदनारे लोल, तें मुने नाखी ने फंदमारे लोल--ए देशी.
सृष्टि उपाश् ब्रह्मानी कहीरे लोल, नूतल वायु वनस्पति महीरे लोल ॥ वर्ग मृत्यु पातालमारे लोल, जीव उपाया उजमालमारे लोल ॥१॥ रुखे रुजपणुं तव कयुरे लोल, ब्रह्मा सृष्टि वेगे संहरुरे लोल॥प्रलयकाल वरतावू श्राजधीरे लोल, अमे ईश्वर एवं काजधीरे लोल॥२॥ विष्णु वात विचारी एहवेरे लोल, जुवन चौद पालशुं तेहवेरे लोल ॥ उदर मांही जग लीधो सहुरे लोल, जीवादिक तव राख्यो बहुरे लोल ॥३॥ विष्णु पोहोड्या जश् वम पानमेरे लोल, ब्रह्मा जोवे रान रानडेरे लोल ॥ बहु काल गयो ) जग जोवतारे लोल, देखे नहीं अणखोवतारे लोल ॥४॥ तलसीनो बोम तव दीपमोरे लोल, ब्रह्मा श्राव्यो दील करी मीठमोरे लोल ॥ अगस्त्य ऋषि दीठा एटलेरे लोल, बेहु तापस एका मलेरे लोल ॥ ५ ॥ अन्यादे अन्यादे करीरे लोल, कोटे वलग्या ) बांही धरीरे लोल ॥ सन्मान दीधुं ब्रह्मा जणीरे लोल, श्रासन उपर बेग धणीरे खोल d॥६॥ अगस्त्य कहे ब्रह्मा सुणोरे लोल, केम पधार्या मुजने नणोरे लोल ॥ चिंतातुर नदीसो बो घणुरे लोल, कहेजो स्वामि काज थापणुंरे लोल ॥ ७॥ धाता तव बोड्या